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Consideration on 'Soumya' & 'Aagneya' 'Jwar' (आग्नेय एवं सौम्य ज्वर चिन्तन) by Prof. Satyendra Narayan Ojha, Vaidyaraja Subhash Sharma, Dr. Raghuraj Bhatta, Dr. Dinesh Katoch, Dr. Atul Kale, Dr. Pawan Madaan, Dr. Rajneesh Gadi, Dr. Manu Vatsa, Dr. Sanjay Chhand, Dr. Rituraj Verma & others.

[9/12, 10:01 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।: 

*आग्नेय ज्वर ➡️चंदनादि तैल ➡️१०५ द्रव्य*
*सौम्य ज्वर ➡️अगुर्वादि तैल ➡️९८ द्रव्य*

*इतनी सदुपयोगी विषय वस्तु उपेक्षित*

एक प्रश्न ➡️ 
आग्नेय ज्वर ➡️वातपित्तात्मक है ;इसमें और वातपित्तज द्वन्दज ज्वर में अन्तर क्या है ?
सौम्य ज्वर ➡️ वातकफात्मक ; इसमें और वातकफज द्वन्दज ज्वर में अन्तर क्या है ‌?

[9/12, 10:20 PM] Vaidya Manu Vats, Punjab: 

प्रणाम Sir 🌹....Just I want to try..
👉.in वात पित्त ज्वर...कफ is   क्षीण ,वात कूपित,पित्त सम which makes द्वंद्वात्मक Vaat pittaj jvar by virtue of कूपित वात
👉वात कफज: कूपित वात,सम कफ and क्षीण पित्त

[9/12, 10:22 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।: 

❎❎✖️✖️

[9/12, 10:22 PM] Vaidya Manu Vats, Punjab: 

Reference Charak ch.17,shlok 46,47

[9/12, 10:23 PM] Vaidya Manu Vats, Punjab: 

🙏

[9/12, 10:24 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।:

 संदर्भ : च.चि. ३

[9/12, 10:26 PM] Vaidya Manu Vats, Punjab: 

Ok....Sir.....Now I understand your question....I misunderstood...

[9/12, 10:27 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।:

 ✅☺️🌹

[9/12, 10:43 PM] Vaidya Manu Vats, Punjab: 

Sir...again I am trying now 👉first between chikitsa sthaan ch3.between shlok 86 and 91 ...in vaatkafaj द्वंद्व ज्वर there is कफ and vata प्रकोप and vaatkaf pradhaan being सन्निपात there is कफ संचय due to मन्द पित्त।
👉Similarly its between shlok 85 and 90..
Vaatpitt jvar there is प्रकोप of both vaat and pitt while in vaatpitt pradhan being sanipaataj there is पित्त संचय..

I know ..99percent chance of wrong answer ....but i tried.💐🙏

[9/12, 10:47 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।:

 उत्तर देने की इतनी भी जल्दी क्यो है ?
विद्वत गण के अभिमत की प्रतिक्षा किजिए

[9/12, 10:48 PM] Vaidya Manu Vats, Punjab:

 🙏🙏Ji Sir...Sure

[9/12, 11:16 PM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar: 

मुझे लगता है के आग्नेय व सौम्य ज्वर के नाम ज्वर के बल व प्रकृति के अनुसार होने चाहिए।
कोई वात पैत्तिक द्वंदज ज्वर किसी विशेष अवस्था मे आग्नेय भी हो सकता है व सौम्य भी
🤔

[9/12, 11:23 PM] DR. RITURAJ VERMA: 

🙏🙏🙏🙏

[9/12, 11:29 PM] Vd. Atul J. Kale M.D. (K.C.) G.A.U.: 

योगवाहः परं वायुः संयोगादुभयार्थकृत्||३८|| दाहकृत्तेजसा युक्तः, शीतकृत् सोमसंश्रयात्|३९|

ज्वर चिकित्सामें आया हुआ ये सूत्र आग्नेय ज्वरको ज्यादा व्याख्यायित करेगा ऎसा प्रतित होता है।

अग्नि (उष्ण-तीक्ष्ण)+ वायु (चल)
पित्तस्थ द्रवत्वका शोषण होके अाग्नेयत्व प्रखर होगा।  High grade fever ये लक्षण हो सकता है। (viral fever) उसके साथ तृष्णादी लक्षण भी मिल सकते है अौर वायूने लक्षण पित्तकर साहचर्यसे (गुणोंकी अंशांश कल्पना एवं संयोग) 
जैसे
*तृष्णा मूर्च्छा भ्रमो दाहः स्वप्ननाशः शिरोरुजा |*

न चैतावदेव संसर्गलक्षणमित्याह|

अपि च||२३||

*शिरोर्तिमूर्च्छा* वमि
*दाहमोहकण्ठास्यशोषा* अरतिपर्वभेदाः|

अरुणदत्त टीका :

स०-चलात्सपित्तात्-वातपित्तसंसर्गजे, शिरोर्त्यादयः स्युः| कण्ठास्ययोः शोषेण सम्बन्धः| *वातज्वरे शिरोर्त्यादीनि* *वातकारक साहचर्य प्रभुत्व हो तो* प्रायो दृष्टानि, कानिचित्तु पित्तज्वरे दृष्टानि, तानि च वातपित्तज्वरे दृश्यन्ते| तथा, अन्यान्यप्यधिकान्यत्र वातपित्तज्वरे दृश्यन्ते, यानि न केवले वातज्वरे नापि पित्तज्वरे दृष्टानि| एवमन्ययोः संसर्गज्वरयोर्योज्यम्| उपजातिवृत्तम्|

[9/12, 11:38 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।:

 *नातिसुंदर व्याख्या*

[9/12, 11:40 PM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar: 

क्या कहना चाहते हैं आप अतुल जी साधारण शब्दो में?

[9/13, 12:06 AM] Vd. Atul J. Kale M.D. (K.C.) G.A.U.: 

सर मुझे ज्वर क्लिष्ट प्रतित होता है। ज्वर जाननेका स्वरूप भी हर जगह भिन्न भिन्न प्रतित होता है। 
     मै इतनी सुंदर व्याख्या नहीं कर सकता ये मुझे ज्ञात है। किंतु प्रयत्न तो करना चाहिए इसलिए दुःसाहस किया। 

आग्नेय अौर सौम्य जैसे दो विरुद्ध भावयुक्त ज्वर कतिपय ज्वरोंका दो प्रकारोमें वर्णन करते हुए किया है। आग्नेयसे 'पित्तांतर्गत उष्मा' जहाँ तक शरीरकी बात आती है हो सकता है। यहाँ वात सहचारी होगा किंतु आग्नेय व्यपदेशस्तु भूयसा से अौर वायु गुणोंसे परम होगा।

वातपित्त ज्वरमें दो दोषोंके लक्षण आचार्योंने बताए है। किंतु अंशांशकल्पनासे उष्ण तिक्ष्ण रुक्ष सूक्ष्म चल गुणोंकी वृद्धी आग्नेयत्वको यहाँभी प्रेरीत करेगी किंतु आग्नेय गुणही वातपित्त ज्वरमें दिखे ऎसा जरूरी भी नहीं।  इस विचारसेही संभवतः तृष्णादी लक्षण आचार्योंने दिये है। 

गलती हुई तो माफी चाहता हूँ  😊 🌹🙏🏻🙏🏻

[9/13, 1:04 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi: 

*बढ़े रोचक और चिंतनीय विषय पर आपने ध्यान केन्द्रित किया ओझा सर,  'तस्य प्रकृतिरूद्दिष्टा दोषा: शारीर मानसा:, देहिनं न हि निर्दोषं ज्वर: समुपस्वते। च चि 3/12  शारीरिक दोष वात पित्त कफ और मानसिक रज और तम ज्वर की प्रकृति है, यदि मनुष्य इनसे दूषित ना हो तो उसे ज्वर नही हो सकता।*

*यदि अति सूक्ष्मता से देखे तो चरक में ज्वर के विभिन्न भेद चार आधार पर किये गये हैं 1- विधि या प्रकार भेद से 2- दोषकाल और बलाबल 3- आश्रय के अनुसार और 4- कारण भेदानुसार और इन चारो के विस्तार में जायें तो ज्वर निम्न प्रकार से वर्णित है ...*

*अधिष्ठान के अनुसार - शारीर और मानस*
*अभिप्राय अनुसार - सौम्य और आग्नेय *
*वेगानुसार - अन्तर्वेग और बहिर्वेग*
*ऋतु अनुसार - ऋतुओं के स्वाभाव जन्य और विकृती जन्य*
*साध्यासाध्यता - साध्य,कृच्छ साध्य और असाध्य*
*दोष और काल के बलानुसार - संतत,सतत,अन्येद्धुष्क,तृतीयक और चतुर्थक *
*आश्रयानुसार - सप्तधातुगत*
*हेतु अर्थात कारणानुसार - वात,पित्त,कफ,द्वन्द्वज,त्रिदोषज और आगंतुक कुल आठ।*
*अवस्थानुसार - आम,पच्यमान और निराम तथा साम एवं निराम*
*तरूण, जीर्ण और पुनरावर्तक*
*दो अन्य प्रकार - त्वकस्थ इसमें शीतपूर्वक और दाहपूर्वक और गंभीर जिसे धातुगत भी कहा है।*

[9/13, 1:26 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi: 

*अगर सात प्रकार के  ज्वर एकदोषज, द्वन्दज या त्रिदोषज है तो हेतु सन्निकृष्ट है और अन्य प्रकारों में भी दोष प्रकोप की कल्पना और भेद इसी प्रकार से द्वन्द्वजादि मिलेंगी पर हेतु विप्रकृष्ट संभव है ।*

[9/13, 3:51 AM] Vaidya Sanjay P. Chhajed Sir Mumbai:

 To err is human, गलतिया हो सकती है इस हेतू न रूक सकते है, यह परिक्षालय नही है. यह एक सम्भाषा स्थल है. जब कोई भी विषय विचारनीय होगा तब अपने विचार रखना महत्वपूर्ण है. तभी तो विद्वान हमे मार्गदर्शन कर सकेंगे. हमारी गलतिया उजागर करेंगे, इसी से सिखन्गे. अगर हम प्रकट होना ही नही सिखे तो मंथन कैसे कर पायेंगे.  सो माफी मान्गना अनावश्यक है.
रही बात ज्वर की वह क्लिष्ट नही, विस्तृत है. वह हमे निदान की सिढीया बताता है. शायद इसी रोग का वर्णन अनेक अवस्थानरुप किया गया है. किसी भी रोग की सम्प्राप्ती काल प्रकर्ष से कितनी अवस्थाओ मे से जा सकती है इसका प्रारुप है ज्वर. आप क्रमश: विचार करे बिल्कुल सामान्य कारनोसे  मात्र काल से ज्यादासे ज्यादा लंघंन से ठिक होने वाले ज्वर से लेकर जन्म और मृत्यु के समय होनेवाले अनिवार्य ज्वर तक
एक दोष से, दो दोष से, तिनो दोषो से, तर तम भाव सहित, दुष्य परिवर्तन सहित, एक तान ता से विषम उपस्थिती तक, अलग अलग व्याधियो मे ज्वर के लक्षण रुप मे ऊपस्थीती तक, बहुविध सम्प्राप्ती द्वारा उसके निर्मिती का उहापोह विस्तृत है. वह यही बताता है की ज्वर जो रोग का पर्याय वाची है, वह बहु आयामी है. हर स्थानपर उसे अलग नजरिये से देखना पडेगा. राजयक्ष्मा व्याधी मे हर एक लक्षण की सम्प्राप्ती कैसे घटित होती है इसका वर्णन है. 
ज्वर हमे यही सिखाता है की रुग्ण जब हमारे सम्मुख उपस्थित हुआ है तो क्या वह लक्षण स्वतंत्र व्याधी स्वरुप मे अपने स्वयं के सम्प्राप्ती के साथ है या फिर किसी और व्याधी के लक्षण रुप मे परत्ंत्रा सम्प्राप्ती से है.
क्या वह संसर्ग के रुप मे स्वतंत्र व्याधी है या उपद्रव स्वरुप मे दुसरे व्याधी के सम्प्राप्ती के परिणाम स्वरुप पुन:घटित सम्प्राप्ती से है. चिकित्सा मे अंतर होगा. *हर बार जरुरी नही की शास्त्र विहित लक्षण सम्प्राप्ती मिले तथा चिकित्सा सूत्र का यथावत उपयोग हो*.

हम सुभाष सर को आक्सर देखते है की वे रुग्ण की सम्प्राप्ती बनाते है, साथमे उनके पास जो अनेक औषधी बाण  है जो अनेक शास्त्रो से संग्राहित है, अपनी सोच से नयी कल्पनाओ से जैसे पानीय क्षार, जैसे पेठे का रस, अलग अलग शरबत, कुछ हकिमी या युनानी दवा उनको एक असाधारण यशस्वी चिकित्सक बनाता है. साथमे उनसे सबसे अधिक ग्रहण करनेवाली जो बात हमे लगती है वह है हर एक से सिखने की प्रवृत्ती. जब कोई भी कुछ नयी बात कहता है तो वे उसकी जरुर प्रशंसा करते है. और इससे भी महत्वपूर्ण बात है उनका आत्मविश्वास. जब भि केस प्रदर्शित करते है या अपने बहु आयामी विचार राखते है तब कभी आपने उनसे यह पढा की "मै धारिश्ट्य कर रहा हू, या मुझसे गलती हो गयी हो तो हमे माफ करना आदी"
वे अपना विचार बेबाक राखते है बिना इस डर के की गौर साहब , या गुरुदिपसींह सर क्या कहन्गे, क्या मै गलत हू? मेरे ज्युनियर क्या सोचन्गे? यह निर्भिकता ही ऊन्हे लिखने प्रेरित करती है.
हमे भी अपनी बात शास्त्र के अपने आकलन के साथ रखणी चाहिये, अगर सम्भव हो तो स संदर्भ ना हो तो संदर्भ विरहित. तभी तो चर्चा होगी

[9/13, 6:29 AM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar: 

Good morning Sanjay ji.

आपने बहुत बढ़िया कहा।
अपनी बात कहना जरूरी है, हो सकता है के बात गलत हो, पर फिर यदि हम गलत भी नही करेंगे रो गुरुजन हमे ठीक कैसे करेंगे।
👌👌


[9/13, 6:40 AM] Vd. Atul J. Kale M.D. (K.C.) G.A.U.: 

सुप्रभात, 

बहोत बढिया सर,
ज्वरका विस्तार आपने बहोत अच्छा बताया। 🌹🌹🙏🏻🙏🏻👌🏻👌🏻

[9/13, 6:52 AM] Prof.Amol Kadu Jaipur: 

सभी को सुप्रभात।


[9/13, 7:01 AM] Prof.Amol Kadu Jaipur:


 इस श्लोक के संदर्भ में एक शंका मन में निर्माण हुईं की, ज्वर का agneytva या  सौम्य त्व भूत के स्वरूप पर भी निर्भर नहीं हो सकता ?....

स्पष्ट है कि , निर्दोष देह में ज्वर जो कि एक भूत विशेष है प्रवेश नहीं कर सकता है जैसा कि चक्रपाणि टीका में वर्णन है
👇🏼👇🏼👇🏼
समुपसेवते इति भाषया भूतविशेषरूपस्य ज्वरस्यावेशं दर्शयति;

यह भूत विशेष कुछ भी हो सकता है, corona virus, ya Anya bacterias / Vitus/ ......

Unke swabhaw ke nusar Kya jwar ka agneyatwa ya saumyatwa nirdharit ho sakta hai Kya

👇🏼👇🏼  शरीर में प्रवेश होने पश्चात अर्थात् वह दोष- धातु पर ही प्रभाव करता है उसिसे सौम्य या आग्नेय भाव प्रतीत होता है... लेकिन ऐसा विचार भी हो सकता है क्या👏👏👏

[9/13, 7:04 AM] Vaidya Sanjay P. Chhajed Sir Mumbai: 

👍👍👍👍👍👍


[9/13, 7:06 AM] Prof.Amol Kadu Jaipur: 

मुख्य बात जो विचारणीय है वह यह है कि शरीर निर्दोष है तो कोई भी ज्वर रूपी भूत विशेष शरीर में प्रवेश ही नहीं नहीं कर पाएगा। 

और निर्दोष शरीर स्थिति nirman- ऋतुचर्या ,दिनचर्या, आहार संबधित नियम पालन, सदवृत्त पालन, रसायन सेवन आदि से होगा

[9/13, 7:10 AM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar:

 Suprabhat Guru ji.

जब हम च चि 3/32>35 देखते है तो हम पाते हैं के आचार्य द्वारा ज्वर के केसो को कई तरह से परिलक्षित किया गया है।

इसी क्रम में शरीर मानस, अन्तरवेग बहिरवेग, प्राकृत विकृत एवं आग्नेय सौम्य का निर्देश है।

जैसे सभी विषम ज्वर सन्निपातज है पर फिर भी वेगानुसार उनके नाम अलग हैं उसी तरह यहां ज्वर का स्वभाव विवरण हेतु ये प्रकार बताए गए हैं।

चक्रपाणि कहते है जो ज्वर उष्णकारण आरब्धवेंन है वह आग्नेय है।
मुझे लगता है के जिस किसी भी प्रकार के ज्वर में ये कारणता पाई जाएगी उसको उस अवस्था मे आग्नेय कहा जा सकेगा।

इसी तरह शीतकारण आरम्भ से जो जो उसे सौम्य कहा जायेगा।

ये भी हो सकता है कोई सन्निपातज ज्वार ही किसी अवस्था मे सौम्य ज्वार कहा जा सके।

या केवल वातज ज्वार किसी विशेष अवस्था में आग्नेय कहा जा सके।

इसी प्रसंग में अन्तरवेग व बहिर वेग ज्वर भी कहा गया है । 
समझने के लिए ये उसी प्रकार हो सकता है जैसे कोई वायरल फीवर very mild hai तो प्राकृत या सौम्य कहा जा सकता है, कोई viral fiver जब गंभीर hemorrhagic अवस्था तक पहुंचता है तो उस स्तिथि में उसे आग्नेय कहा जा सकेगा।

अल्पमति से इतना समझ हूँ सर
बाकी आप विशेषज्ञ है, मार्गदर्शन करें।

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏


[9/13, 7:11 AM] Dr.Deep Narayan Pandey Sir: 

प्रवेश तो होगा। संक्रमन्ति नरान्नरम् सिद्धांत का स्मरण किया जाए।

पैथोजेनेसिस होगी या नहीं होगी यह अन्य कारणों पर निर्भर करेगा। बीज - भूमि सिद्धांत स्मरण किया जाए।

[9/13, 7:13 AM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar: 
🙏🙏🙏
नमस्ते सर।

उचित बताया आपने।

[9/13, 7:13 AM] Dr.Deep Narayan Pandey Sir: 
🙏💐🙏
सुप्रभात डॉक्टर साहब

[9/13, 7:46 AM] Vaidya Sanjay P. Chhajed Sir Mumbai: 

This is universally accepted fact. It's not the pathogen but the immunity plays the most important part in manifestation of the disease

[9/13, 7:55 AM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।: 

*शुभ प्रभात वैद्यराज सुभाष शर्मा जी एवं आचार्य 0 नमो नमः* 🙏🙏💐🌷🌹🙏🙏

[9/13, 7:55 AM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।: 

नमस्कार मदन जी

[9/13, 8:02 AM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।: 

*यह एक जिज्ञासावश किया हुआ प्रश्न है, मैं अपने आदरणीय गुरुवर्य गण से अनुरोध करता हूं तथा अपेक्षा भी रखता हूं की मेरा प्रश्न निरुत्तर न रहे* . 🙏🙏

[9/13, 8:57 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:

 *सुप्रभात एवं सादर नमन सर आपको एवं समस्त कायसम्प्रदाय परिवार को*

              🙏🌹💐🌺🙏

[9/13, 9:16 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:

 *नमस्कार वैद्यवर संजय जी,इस ग्रुप का हर सदस्य महत्वपूर्ण,विद्वान और श्रेष्ठ है।आगे चलकर इन्ही में से अनेक विद्वानों को आयुर्वेद क्षेत्र में उपलब्धियों के कारण राष्ट्रीय पुरूस्कारों से भी सम्मानित किया जायेगा।*

*उत्तर भारत में छोटे छोटे ढाबों में काम करने वाले बच्चों को 'छोटू' कहा जाता है पर वो बच्चे अपने परिवार के 'बढ़े' होते हैं क्योंकि उनके कारण ही परिवार का पालन-पोषण होता है।फिर यहां तो सभी वैद्य/वैद्या हैं तथा वैद्य तो नारायण स्वरूप है,सम्माननीय और पूजनीय है क्योंकि रोगी अपना तन-मन और भविष्य उसे सौंप देता है कि मुझे स्वस्थ करो। यहां सब असाधारण और बहुत बढ़े वैद्य श्रेष्ठ हैं।*

*आज कई दिनो बाद आप पूर्ण उत्साह और आयुर्वेदीय ज्ञान प्रवर्तक  'फुल मूड' में दिखे,नियमित रूप से आप चर्चा में भाग लेते रहते है तो आनंद मिलता है।*

            🙏🌹💐🌺🙏

[9/13, 9:21 AM] DR. RITURAJ VERMA:

 ज्वर is an umbrella term that covers aal ds. With a metabolic compromise associated with increase body temperature.
Dysmetabolism happening in multiple systems.
सौम्य and तीक्ष्ण--
पवने योगवाहित्वात शितं श्लेष्मयुते भवेत।
दाह: पित्तयुते मिश्रं अंत: संश्रये पुनः।।
Vitiated वात दोष with पित्त दोष, it creates ज्वर with pridominance of burning sensation,
ज्वर occurs with predominance of coldness. This due to योगवाहित्वात of वात.

Usually the सौम्य ज्वर are those in which the fever occurs as constitutional symptom of another ds.
Eg. Ferver occurring in rheumatoid arthritis.
तीक्ष्ण ज्वर predominantly are fever having viral or bacterial origin.

[9/13, 9:22 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi: 

*नमस्कार पवन जी, निर्भय और निर्द्वन्द्व ही बनना है और अपनी बात कहनी अवश्य चाहिये।मैं तो अपने गुरू की डांट खा कर ही परिपक्व हुआ हूं और कभी कभी गलत लिखने पर मेरे papers फेंक दिये जाते थे, पर उस डांट में एक वात्सल्य था, स्नेह था जो हमें समर्थ और सक्षम बनाने के लिये था मुझे प्रसन्नता होती है कि वो वात्सल्य और स्नेह भाव यहां भी है जिसकी वर्तमान में आयुर्वेद शिक्षा के साथ परम आवश्यकता है।*

[9/13, 9:23 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi: 

*सुप्रभात अमोल जी* 🌹💐🙏

[9/13, 9:28 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:

*आयुर्वेद के अनेक पक्ष ऐसे हैं जो बहुत उपयोगी है यहां तो सर्पविष को भी महर्षियों ने औषध बनाना सिखा दिया।*

[9/13, 9:31 AM] DR. RITURAJ VERMA: 

दाहादि and शितादि ज्वर--
Both types are सन्निपातीक nature.
Difference occurs due to diffrent patterns of दोषिक अवस्था in a सन्निपातीक state.
If पित्त predominantes in सन्निपातीक state and localized in त्वक and कोष्ठ, it creates दाहादि सन्निपातीक ज्वर .
If in similar manner वात and कफ gets segregated and localized in त्वक एंड कोष्ठ,it creates शितादि सन्निपातीक ज्वर.

[9/13, 12:19 PM] Vd.Rajaneesh Ghadi Palghar, Maharashtra: 

च चि ३/३७-३८ चक्रपाणीटीका मे आचार्य चक्रपाणी महोदय ने इसका उत्तरदिया है

[9/13, 12:32 PM] Prof.Madhava Diggavi Sir: 
🙏🏻

[9/13, 12:40 PM] Vd.Rajaneesh Ghadi Palghar, Maharashtra:

 स्वभावभेद से चरकाचार्यजीने सौम्याग्नेयादि प्रकार वर्णन किये है.. तथा कारणभेदसे एकदोषज, द्विदोषजादि वर्णित है.. These are different classification modules of same subject .. द्विदोषजादिमे कभी कभी विकृती विषमसमवाय जन्य प्रभावनिर्मित लक्षणे दिखती है जो कारक दोषोंसे मेल नही खाती.. But for practical purpose सौम्य ज्वर जिसमे उष्णांकाक्षा होती है.. वह केवल कफज वा वातकफज हो सकता है.. वैसे ही आग्नेय ज्वर जीसमे शिताकांक्षा होती है वह केवल पित्तज वा वातपित्तज हो सकता है.. पित्तकफज ज्वर को चरक मिश्रस्वभाव का मानते है.. पर वाग्भट टीकाकार हेमाद्री इसे आग्नेय का उपप्रकार ही समझते है.. सुसहत्व तथा दुःसहत्व के अनुसारभी सौम्य तथा आग्नेयादि प्रकार किये जाते है.. कफपित्तज ज्वर मे थोडासा दुःसहत्व रहताही है इसलिए इसे आग्नेय उपप्रकार मानना चाहीए ऐसा हेमाद्री मत है

[9/13, 12:49 PM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar: 

🙏🙏👌👌

आग्नेय व सौम्य
असल मे किसी भी ज्वर की एक विशेष प्रकार की characharistic को लक्षित करने का एक साधन है।

[9/13, 2:17 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।: 

*वैद्यराज रघुराम जी , इस समूह में अति श्रेष्ठ गुरु , शिष्य सभी है ,  योग्य है , मैं भी एक शिष्य हूं और गुरु भी . शिष्य स्वरुप होने से गुरु से प्रश्न और गुरु स्वरुप होने से शिष्यों से प्रश्न किया हूं*. 
*मेरे प्रश्न पर अति सुंदर व्याख्या अभी तक मिली नहीं है , मेरे मन को उत्साहित , आनन्दित करने वाली व्याख्या की अपेक्षा.*

[9/13, 2:32 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:

 *प्रणाम सर, आपका व्यक्तिगत चिन्तन क्या कहता है कि इसका उत्तर क्या हो सकता है ? *

[9/13, 2:34 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi: 

*क्योंकि मैं तो आपको आधुनिक चक्रपाणि मानता हूं जो चरक में उत्पन्न सारी जिज्ञासाओं का समाधान करने में समर्थ है।*

[9/13, 2:40 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।:

 *सादर प्रणाम वैद्यराज सुभाष शर्मा जी, मेरी सोच है लेकिन मुझे मजा नहीं आ रहा है , इसलिए मैंने यहाँ पर चर्चा हेतु प्रस्तुत किया है , आचार्य गण , प्रा. गौड गुरु जी , प्रा. खाण्डल गुरु जी , प्रा. चुलेट सर जी , महामहिम कटौच सर जी और आप से ही परिपूर्णता सम्भाव्य है*

[9/13, 2:43 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।: 

*ए दिल मांगे more* ☺️☺️

[9/13, 2:43 PM] Vd.Ajay Kumar Singh Mumbai: 

सम्भवतः सौम्य और आग्नेय ज्वर का विभाजन उनके होने वाले कारणों के आधार पर किया गया है चरक चिकित्सा ज्वर अध्याय श्लोक नंबर 257
महर्षि ने जब वाह्य चिकित्सा के बारे में बोलना शुरू किया तो उन्होंने स्पष्ट शब्दों में शीत जन्य में उषष्ण और उष्ण जन्य में शीत चिकित्सा कहा है।

[9/13, 3:01 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi: 

*फिर तो इच्छा अवश्य पूरी होगी, देर है अन्धेर नही ।* 🌹💐🌺🙏

[9/13, 4:16 PM] DR. RITURAJ VERMA:

 In many cases of vasculitis the patient feel cold on touch,still records elevated temerature.this can be as शितादि ज्वर.
In fever associated with ketoacidosis seen in insulin resistance,many symptoms resemble that of दाहादि ज्वर.

[9/13, 4:18 PM] Vd Raghuram Shastri ,Banguluru: 

Charan sparsh Guruji🙏💐
Sir, I am always your humble student, your humble words hv left me speechless. As always. I had not got time to go through the discussion, I will go through the previous discussions and will write my thoughts sir. I kindly request you to give me some time🙏🙏💐

[9/13, 4:21 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।: 

👌✅☺️🌹

[9/13, 5:45 PM] Dr Mansukh R Mangukiya Gujarat: 

वातपित्तज ओर  वातकफज ज्वरमें दोषों के अपने अपने लक्षण समुह प्रकट होते हैं।
जबकि वातपित्तात्मक ओर वातकफात्मक ज्वरमें दोषों अपने अपने लक्षणो से विपरीत लक्षणसमुह या लक्षण मिलते है । जो व्याधिविनिश्रिय में द्रिधा उत्पन्न कर देता है। " परस्परेन उपहतानाम् "  In some cases one Disha may subdue others and produce lakshanas without specific rules.
   Bhrama which is a feature of Vatapitta samsarga manifests in vatakapha jwara.
क्षमाप्रार्थी हूं अगर गलत हूं।
🙏🙏🙏

[9/13, 7:55 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:

 *ज्वर में लंघन का महत्व साधारण मनुष्यों को भी ज्ञात था ...*

*जुर जाचक और पाहुना तीनू एक सा भाव*
*लंघन तीन कराईये कदै ना आवे द्वार ।*

*ज्वर, याचक अर्थात मांगने वाले और अतिथि तीनों को तीन तीन दिन लंघंन करा दीजिये अर्थात कुछ खाने को मत दीजिये तो ये लौट कर फिर वापिस नही आयेंगे।*

*चिकित्सा का ज्ञान पुराने समय से सामान्य जन के पास कहावतों या मुहावरों में भी इसी प्रकार से प्राचीन काल से चला आ रहा है।हम अपने बुजुर्गों को भी देखते आ रहे हैं उन्हे आयुर्वेद सिद्धान्तों का बहुत ज्ञान था और उसका पालन भी करते थे।*

[9/13, 7:56 PM] Vaidya Sanjay P. Chhajed Sir Mumbai: 

👌👌👌👌👌👌

[9/13, 8:01 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi: 

* दक्ष यज्ञ में केवल ज्वर ही उत्पन्न नही हुआ, अन्य रोग भी देखिये जरा ...* 👇🏿

*सृष्टवा ललाटे चक्षुर्वे दग्ध्वा तानसुरान् प्रभु, बालं क्रोधाग्नि संतप्तमसृजत् सत्रनाशनम् - च चि 3/20*

*'ज्वरस्तु खलु महेश्वरकोपप्रभव:' च नि 1/35 *

*दक्षाध्वरध्वंसे ... गुल्मोत्पत्तिरभूत:..हविष्प्राशात् प्रमेहकुष्ठानां भयत्रासशोकैरून्मादानां विविध भूताशुचि... अपस्माराणां ज्वरस्तु खलु महेश्वरललाटप्रभव:, तत्संतापाद् रक्तपित्तं .. अति व्य्वायात्... राजयक्ष्मेति।' च नि 8/11*

*उपरोक्त सूत्रों के जरा देखें , दक्ष प्रजापति के यज्ञ में सर्व प्रथम ज्वर की उत्पत्ति नही हुई कुल मिलाकर तब सात रोग उत्पन्न हुये थे।सब से पहले गुल्म फिर प्रमेह,कुष्ठ, उन्माद, अपस्मार ,ज्वर और रक्तपित्त।शिव जी को क्रोध आया जो रजो गुण से आता है, क्रोध अग्नि है और पित्त अग्नि गुण की प्रधानता से है।शिव का ललाट शरीर का ताप नियन्त्रक केन्द्र है और शारीरिक ताप से पहले मानसिक ताप अर्थात क्रोध पहले उत्पन्न हुआ।*

[9/13, 8:09 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:

 *ज्वर में मात्र पित्त ही नही वात का भी उतना ही महत्व है वात कलाकलीय अध्याय च सू 12/8 में वात को 'स हि भगवान् प्रभवश्राव्यश्च .. वह भगवान वात ही प्रभव अर्थात उत्पत्ति का कारण है और इसे 'प्रजापति.. विश्वकर्मा विश्वरूप...विष्णु:..' संज्ञा भी दी है।*

[9/13, 8:12 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi: 

*रघु जी 💐🌺🌹🙏*

[9/13, 8:16 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi: 

*रघु जी का आयुर्वेद में चिन्तन और उसे प्रायोगिक रूप देना बहुत ही श्रेष्ठ लगता है, रघु जी से भी बहुत कुछ नया सीखने को मिलता है, हमारे ग्रुप की नई पीढ़ी को नि:संकोच हो कर अपने विचार यहां नियमित रूप से व्यक्त करते रहना चाहिये और डरिये मत कि कहीं गलत तो नही ? आप सब एक से बढ़कर एक श्रेष्ठ हैं और चर्चा के मार्ग प्रशस्त करते हैं।*
 🌺🌹💐🙏

[9/13, 8:18 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:

 *हमारे डॉ नरेन्द्र पॉल जी का आध्यात्मिक और clinical पक्ष बहुत सुदृढ़ है पर लगता है वो भी कहीं व्यस्त है, उनसे भी चर्चा में नियमित भाग लेने का आग्रह है।*

[9/13, 8:21 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi: 

*भद्रेश जी, भावेश जी आदि सदस्यों के विचारों से भी एक नवीन चिंतन प्राप्त होता है क्योंकि वो सभी आधुनिक समय को सम्यग् दृष्टि से देखते हैं और समयानुसार चलते है।*

[9/13, 8:23 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi: 

*ग्रुप में नवीन समयानुकूल विषयों पर जिज्ञासा और अपने विचार प्रकट करते रहें तभी आयुर्वेद का महत्व समयानुकूल सिद्ध होगा।*

[9/13, 8:24 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:

 *आप सभी इस जीवन का एक अभिन्न अंग है।*

[9/13, 9:35 PM] Vd Raghuram Shastri ,Banguluru: 

*SowmyaJwara v/s VataKaphaja Jwara* & *AgneyaJwara v/s VataPittaja Jwara*

💐💐💐💐💐💐💐

*Respected Guruji, Ojha Sir*, thanks so much for raising this important question. This was not simple to answer because it needed some *research and exploration* into the treatises. I have put my thoughts on *your_query* and *submitting* it to your evaluation. I also thank hon *ShubhashSharma* sir for having *alerted* me to *respond* to this question.

💐💐💐💐💐💐💐

*Section1*👇👇👇

🌫 ️ *Sowmya* and 🔥 *AgneyaJwara*

*_Sowmya_and_Agneya_Jwara* have been mentioned in the classification of Jwara in Charaka Chikitsa 3/32 as part of vidhi bhedha & magnified in verse 37. But its preface has been given in *NidanaSthana* 1/32 wherein master Charaka tells that *Nija Jwaras, on the basis of Vatadi Vikalpa may be of 2, 3, 4 or 7 types*.

It is *interesting* to see that master *Chakrapani clarifies the dwividha nija jwaras* as –

*द्वैविध्यं संसृष्ट असंसृष्ट जन्यत्वेन शीतोष्ण अभिप्राय भेदात्।चक्रपाणि, च.नि.१/३२*

The two types of nija jwara are *shita (sowmya) and ushna (agneya) jwaras* . These may be due to combination of doshas or also due to individual doshas. This means –

👉 *SowmyaJwara may be – Vataja, Kaphaja or VataKaphaja*

👉 *Ushna Jwara may be – Pittaja or VataPittaja*

The reason for Vata *partnering* in both conditions is given in Chikitsa Sthana Chapter 3 where further details of these two types of jwara are given as *yogavahitva of vata*.

We will now come back to *ChikitsaSthana* Chapter 3, verse 32. In its commentary we get to see that –

👉 *Sowmya jwara is caused due to Shita Karanas*

👉 *Agneya Jwara is caused due to Ushna Karanas*

This is a *hyperlink* to what has been explained in Nidana Sthana with clarification. Here, this had to be clarified because *Charaka also had to add other variants to the Vidhi Bheda*.

*Jumping to verse 37*, we get more clarification when we see the below mentioned explanation –

👉 *Vatapittatmaka Jwaras i.e. Agneya Jwaras respond to cold comforts* and

👉 *Vatakaphatmaka Jwaras i.e. Sowmya Jwaras respond to hot comforts*

*_Further master Chakrapanai clarifies by telling_* –

👉 *KevalaVatajanya and Kevala Kaphajanya Jwaras* being cold natured and being sowmya respond to ushna upacharas. Therefore *Vatakaphatmaka Jwara* too responds to hot comforts.

👉 Similarly *Kevala Pittajanya Jwaras* being hot in nature responds to shita upachara. While in Vata *PittajanyaJwara*, vata will *follow the ushnata of pitta* being yogavahi and the nature of jwara will be ushna and thus responds to ushna upachara.

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*Section2* 👇👇👇

*What_are_VataPittaja_and_VakaKaphaja Jwaras?*

These two are the types of *samsargajaJwara*. An interesting point is that these dwandwa and sannipata jwaras have *not been detailed* by master Charaka in Nidana Sthana. He had *reserved them to be described* in Chikitsa Sthana.

*Importantly* we can see a *set of nidanas mentioned for dwidoshaja and tridoshaja jwaras* being enlisted in the Nidana Sthana. Ref – Cha Ni 1/28.

I found an *interesting aspect* here.

I would like to put these *set of nidanas as* –👇👇

👉 *SamanyaNidanas for aggravation of 2 or 3 doshas* – विषमशनादनशनाद्...........मिथ्योपचाराद्..... *From Vishama ashanat to mithyopacharad* (for Vikriti Vishama Samavayarabdha jwaras)

👉 *VishishtaNidanas for aggravation of 2 or 3 doshas* - *_यथोक्तानां च हेतूनां मिश्रीभावाद् यथा निदानं द्वन्द्वानाम् अन्यतमः सर्वे वा त्रयो दोषो युगपत् प्रकोपमापध्यन्ते....!च.नि.१/२८।_* 
Charaka says that the hetus mentioned for the individual doshas get mixed in twos or threes and cause *dwandwaja or sannipataja jwaras*. 

He later tells that the symptoms of the individual doshas which have been mentioned previously are *jointly available* in the dwandvaja and sannipataja jwaras and the *diagnosis of these jwaras* should be done accordingly. (for Prakriti Sama Samavayarabdha jwaras)

*We get to see some more clarification from MadhavaNidana* 👇👇👇👇 

*Quoting the VataPittaja and VataKaphaja Jwaras* from Sushruta Uttara, the commentator tells that the *symptoms of these two jwaras are vikriti vishama samavayarabdha*. In these jwaras we get to see some lakshanas which *do_not_belong* to the causative doshas. *Examples*,👇👇

👉 In *vatapittaja jwara*, Romaharsha and aruchi are neither the symptoms of vata nor of pitta, they are *neither seen in vataja or pittaja jwara*.

👉 Similarly in *Vatashleshmaja Jwara*, sweda pravritti and santapa. (I am not touching upon the other part of the explanation to stay with only these two dwandwa jwaras as context of discussion).

These symptoms *do_not_look_like* being caused by the doshas which have been aggravated due to their causative nidanas. So we have *two_types_of_samsarga here*

👉 *Prakriti Sama Samavayarabdha Dwandwaja Jwara* – wherein the symptoms will be *in accordance to* the doshas involved and those doshas would have been aggravated by their respective nidanas. The *karya will be in accordance to the karana*.

👉 *Vikriti Vishama Samavayarabdha Dwandwaja Jwara* – wherein at least few symptoms will not be in accordance to the doshas involved and those doshas would not have been aggravated by their respective nidanas. The *karya will not be in accordance to the karana*.

💐💐💐💐💐💐💐

*Section3*👇👇👇

*How_do_these_dwidoshaja_jwaras_differ_from_sowmya_and_agneya_jwaras?*

We can *connect_the_dots* from the above found explanation and *sum_up in this way*.

👉 *Sowmya and Agneya Bhedas* are forms of jwaras which are caused by *sheeta and ushna karanas respectively*. There is *prakriti_sama_samavayarabdha* factor involved here. VataKapha and VataPittaja Jwaras *need not be caused by* sheeta and ushna karanas (respectively) as a rule because we also have *Vikriti_Vishama_Samavayarabdha* types of these two jwaras.

👉 Sowmya and Agneya Jwaras *may be caused by individual_or_dual_doshas* VataKaphaja and VataPittaja Jwaras are *essentially caused by combination of two doshas*.

👉 Sowmya and Agneya Jwaras *essentially respond to opposite treatments*. VataPittaja and VataKaphaja Jwaras *need not respond* to opposite treatments. *On the contrary* they may sometimes respond and sometimes not respond to opposite treatments. So there may be recurrence or strange clinical picture involved in these conditions.

👉 *VataPittajaJwara* is caused by involvement of vitiated vata and pitta. Here the nidanas for aggravation of both vata and pitta are *needed*. *AgneyaJwara* is caused due to *ushnakaranas*, followed by aggravation of pitta and later further vitiation of pitta by vata due to yogavahi nature of vata. *Here Vata aggravatin factors are not needed*. But it is *still prakriti sama samavayarabdha* because pitta has aggravated by its own causes and just has association of vata.

*To_differentiate* these two factors sowmya and agneya jwaras have been mentioned separately.

 We can see that master Charaka has explained dwandwa jwara lakshanas *after the explanation of* sowmya and agneya jwara.

💐💐💐💐💐💐💐

*Section4*👇👇👇

*To sum up* (limited to topic of discussion, not including kaphapittaja and sannipataja) –

👉 The *dwandwaJwaras* (Vata Pittaja and Vata Kaphaja) or *eka_doshaja_jwaras* caused by ushna and sheeta karanas respectively following the rule of prakriti sama samavayarabdha principle, cause similar symptoms as that of involved doshas and respond to opposite treatments i.e. sheeta and ushna upachara are called as *agneya and sowmya jwara respectively*.

👉 The *dwandwa_Jwaras* (Vata Pittaja and Vata Kaphaja) *essentially involving two doshas*, caused not essentially by ushna and sheeta karanas (may be caused by strange mixing of sheeta and ushna nidanas), caused by *nidanas unrelated* to the aggravation of doshas (some nidanas may be related to the aggravation of doshas) following the rule of vikriti vishama samavayarabdha principle, cause at least some symptoms *not pertaining* to either of the involved doshas and need not respond to opposite treatments are *vikriti vishama samavayarabdha samsarga jwaras*.

💐💐💐💐💐💐💐

This is my *humble submission to *Guru Ojha Sir* and this *elite panel KS*🙏🙏🙏💐💐

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*Dr Raghuram Y.S.*

[9/13, 10:02 PM] Dr Mansukh R Mangukiya Gujarat: 

🙏 I could not explained as you can. 🙏

[9/13, 10:16 PM] Dr.Ashwani Kumar Sood Ambala: 

बहुत अच्छा लिखा।
Step by step explanation makes it easily digestible 
Excellent writing skills in AYURVEDA 
And ofcourse in ALLOPATHY also

[9/13, 10:20 PM] DR. RITURAJ VERMA: 

🙏🙏🙏 great sir ji

[9/13, 10:23 PM] Vaidya Manu Vats, Punjab: 

Good Evening Sir..
Thanks a lot for your excellent explanation for all of us from your busy schedule..
Will go through again..its not meant to read only once...

Regards💐🙏
MANU VATS

[9/13, 10:27 PM] Dr.Ashwani Kumar Sood Ambala: 

Please Dr Raghuram explain JIRNA JAWAR AND VISHAM JAWAR on similar  lines. I could not resist myself to ask for these topics as it's style has been so lucid . Though it might waste your another Sunday

[9/14, 5:47 AM] Vaidya Sanjay P. Chhajed Sir Mumbai: 

*गुरुदेव, एक प्रश्न मन मे उठता है, जब हम यह बिलकुल मानते है की मानवी देह इस ब्रम्हांड का एक छोटा प्रारुप है. जो कुछ इस ब्रम्हांड मे घटित होता है , वही इस शरीर मे घटित होता है 
तब आयुर्वेद अवतरण हो या रोगोत्पत्ती मे  शिव आदी के क्रोध से ज्वरादी की निर्मिती हो
हमे आक्सर कुछ नाम मिलते है. 
ब्रम्हा, प्रजापती, इंद्र, शिव, दक्ष, आदी तथा इनसे सम्पर्क कर सकने वाले भी बहोत कम जैसे भारद्वाज इनका वर्णन मिलता है.
हाल ही मे नाडी परिक्षा पर  हो रही परिचर्चा मे लाड परम्परा मे शिव से नाडी का अवतरण तथा नेपाळ और तिब्बत मे शिव, ब्रम्हा, विष्णू आदी कलो का वर्णन आता है
कैलास शिव का स्थान कहा गया है. चरक संहिता मे अनेक जगह पर  हिमवत पार्श्व का वर्णन मिलता है
अब प्रश्न यह आता है की मानवी शरीर मे इन सबको कैसे जाने?

गुरुवर गौड साहब इस गुत्थी को सुलझावे, और इनका चिकित्सकीय प्रारुप क्या हो सकता है इसपर विचार विमर्श हो सकता है

हवी जो यज्ञ का प्रसाद है जो प्राशन करने वाला है , वह वास्तव मे क्या हो सकता है जिससे प्रमेह कूष्ट जैसे त्रिदोशात्मक, अनेक धातु तथा क्लेद को एक सामयिक दुष्टी करने की क्षमता हो?
ऐसा या तो विरुद्ध आहार या पर्युशीत आहार मात्र से हो सकता है तो यह कोनसा यज्ञ होगा जहा इस प्रकार का प्रसाद परोसा गया होगा?

[9/14, 6:31 AM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar: 

👌👌👌
Suprabhat Guru ji

[9/14, 8:12 AM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar: 

Good mng Raghu Ji.
Appreciate your style of writing and taking all points in to consideration.

Section 1.
*1...the classification of Somya and Aagney jwar is based on the cause as  sheet and ushna as per ch chi 1/32*

*2...Prakriti sam samvaaya and Vikriti Visham samvaaya.....very nice referenves....Vijayrakshit and Vachaspati both explain this with example that a white cloth is formed from white dhaaga but when yellow haridra is mixed it becomes vikriti visham samvaaya. So there has to be some other causes involved.*

Secrion 2

*3...Yes...Vaatapittatmak and vaatkaphaatmak need not to be caused by sheet and ushn causes.....but any type of jwar can ba caused by sheet or ushn hetus....and then that can be called as Somya ir Aagney.*
E.g.
Viral infection producing jwar....may be caused by the hetus which can be sheet in winters and can be ushn in summer. There can be more variations, so the same type of clinical presentation may be called as Somya or Aagney in different situiations as per the producing reasons.

*4...Somya and Aagney jwar essentially respond to opposite treatments. I have a doubt. If a vaatapittatmak jwar is a somya one that Can this respond to cold treatments??*

All this is the theoretical understanding which I am doing.

*Whats the clinical use of understanding of aagney and somya jwar?*

*A patient with fever produced in the month of August, diagnosed as  viral fever, can we or how we can lebel that as somya or aagney and how it will effect our treatment?*

Ojha sir, Subash sir, Katoch sir and all respected stalwarts here, I need to apply this concept in practice.
Kindly guide.
🙏🙏🙏🙏

[9/14, 8:32 AM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।: 

Vaidyaraja Raghuram ji , perfect clinical interpretation , nothing is left to discuss further , nothing is untouched . Definitely , we are needed such class of commentary whenever we are discussing with the subject. We should expend lots of time before Posting here , should not be in hurry to reply. 
God bless you my dearest Dr Raghuram Garu. Happiness comes with excellence in education and training purposes only. 🌹👌✅☺️💐❤️❤️

[9/14, 8:40 AM] Dr.Satish Jaimini, Jaipur: 

🙏🙏🙏😃आपके प्रश्न हैं जल्दी कैसे हल हो सकते हैं गुरुजी मनु जी सर तो एटेम्पट ले रहे हैं

[9/14, 8:43 AM] Dr. Ravi Mahajan:

Good question Sir. I also have the same query.  But couldn't muster the courage to ask this question.

[9/14, 8:46 AM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।: 

Dr Pawan ji , is it possible that vatapittatmaka jvara is Soumya ?

[9/14, 8:49 AM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।: 

Virus itself is hetu , season is not hetu , season should be considered as bhoomi - kaala - beeja interlinking

[9/14, 8:50 AM] Dr.Dinesh Chand Katoch Sir: 

Suprabhat. I may fail to provide any co-relative inputs since while discussing clinical condition, I keep Shastra in Almirah. Chikitsa Siddhant and Chikitsa Karm are two diffrent platforms. I am sure Vd Khandel Ji, Vd  Subhash Ji and Dr Raghu can throw optimal light on the issue you have raised.

[9/14, 8:55 AM] Dr.Dinesh Chand Katoch Sir:

 Practically, symptom complex of the febrile patient needs to be assessed in terms of underlying factors of samprapti ( Vikriti- pathological diagnosis) not clinical manifestation and provisional diagnosis only.

[9/14, 9:03 AM] Dr.Satish Jaimini, Jaipur: 

वात पित्त शिरोग्राही ऐसा भी महृषि चरक ने कहा है ये द्वंदज की अवस्था के विषय मे

[9/14, 9:06 AM] Dr.Satish Jaimini, Jaipur: 

 वात पित्ताधिक्य में दाह तृषा भ्रम आदि प्रबलता से पाए जाते हैं आगे गुरुदेव ही जाने🙏🙏

[9/14, 9:07 AM] DR. RITURAJ VERMA: 

*दाहादि सन्निपातीक ज्वर*- पित्त stands separately from वात and कफ in त्वक or कोष्ठ creating burning sensation.
*शितादि सन्निपातीक ज्वर*-
वात and कफ stand separate from पित्त in the त्वक and कोष्ठ creating cold

[9/14, 9:19 AM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।: 

The classification of Soumya and Aagneya jvar is based on abhipraaya , what is abhipraaya to classify is the concern.
(1) to describe nature of jvara whether it's Soumya or aagneya .
(2) to note involved dosha 
(3) to observe vaata as yogavaahi. 
(4) to execute treatment plan.
(5) making chandanaadi tail wich contains 105 dravya of sheeta veerya indicated in Aagney jvara or when there is maximum daaha ; एतत्तैलमभ्यङ्गात् सद्यो दाहज्वरमपनयति. एतैरेव चौषधैरश्लक्ष्णपिष्टै: सुशीतै: प्रदेहं कारयेत् .एतैरेव‌च शृतशीतं सलिलमवगाहपरिषेकार्थं प्रयुञ्जीत. . इति चन्दनाद्यं तैलम. च.चि.३/२५८.
अथोष्णाभिप्रायिणां ज्वरिताम् ( सौम्य ज्वर ) , शीत ज्वर के शमनार्थ अगुर्वाद्यं तैलं जिसमे ९८ उष्ण वीर्य द्रव्य की निर्मिती और‌ प्रयोग .
One condition of hypothyroidism when there is myxedema coma , hypothermia is present which is needed to elevate temperature by using agurvaadyam tailam..

[9/14, 9:21 AM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।: 

Daaha is because of maximum heat production and sheeta is because of minimum or less than required production..

[9/14, 9:23 AM] Vaidya Shrikrishna Khandel Sir: 

Namaskar Raghuji and thanks to dear prof ojha its a point of great value 
Kindly consider my view too 
1. Jwar is an example otherwise all the diseases can be understood in light of soumya and Agneya 
2. These two categories depends more on aatur then nidana 
3. Soumya means laghav 
4. Agneya means critical too 
6. Deshadi 10 factors are supporting or opposing the disease constitutes 
7. Result are S or A
8. Pl refer ch ch 30/ 288 this concluding chapter reveals the Param rahasya and that is dasha tattwa 
9. Rest exercise done by Raghuji and others are appropriate no need to repeat

[9/14, 9:24 AM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।: 

Abhipraaya is also desire of patient for sheeta beverages and ushna beverages in Aagney and Soumya jvara...

[9/14, 9:26 AM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar: 

Pranam sir.

Before replying this question first we will need to ponder that what type of clinical presentaions come under the category of Vaatapittaj jwar?
Is every Vaatpittaj jwara is a serious condition?
If vaatpittaj jwar is having vikriti visham lakshans e.g that is having somya symptoms ...is that possible?

🙏

[9/14, 9:28 AM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar:

 Pranam sir.

Thanks sir. But your perfect clues give us a perfect direction.
Kindly help...🙏🙏

[9/14, 9:28 AM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar: 
Ji sir...🙏🙏

9/14, 9:23 AM] Vaidya Shrikrishna Khandel Sir: 

Sadar Pranam Guru ji.
Yes , Sir , even in pittaja paandu , Acharya Charak mentions ज्वरदाहसमन्वित: ....... And शीतकामश्च..
 
लिङ्गं पित्तावृते दाह: .........
शीतकामिता..

Why sheetakaamita in presence of daaha .. 
Pitta ➡️ushna➡️ daaha➡️to counter ⬅️ sheeta.

[9/14, 9:41 AM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar:

 Namaste Verma ji

That may mean a sannipaattika jwar may be somya in some specific condition....
🤔

[9/14, 9:44 AM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar: 

Thanks sir.

I tried to illicit similar like you, perhaps you missed to nitice that.

Kindly examine and guide..🙏

Posted at 7.10 am yesterday

Suprabhat Guru ji.

जब हम च चि 3/32>35 देखते है तो हम पाते हैं के आचार्य द्वारा ज्वर के केसो को कई तरह से परिलक्षित किया गया है।

इसी क्रम में शरीर मानस, अन्तरवेग बहिरवेग, प्राकृत विकृत एवं आग्नेय सौम्य का निर्देश है।

जैसे सभी विषम ज्वर सन्निपातज है पर फिर भी वेगानुसार उनके नाम अलग हैं उसी तरह यहां ज्वर का स्वभाव विवरण हेतु ये प्रकार बताए गए हैं।

चक्रपाणि कहते है जो ज्वर उष्णकारण आरब्धवेंन है वह आग्नेय है।
मुझे लगता है के जिस किसी भी प्रकार के ज्वर में ये कारणता पाई जाएगी उसको उस अवस्था मे आग्नेय कहा जा सकेगा।

इसी तरह शीतकारण आरम्भ से जो जो उसे सौम्य कहा जायेगा।

ये भी हो सकता है कोई सन्निपातज ज्वार ही किसी अवस्था मे सौम्य ज्वार कहा जा सके।

या केवल वातज ज्वार किसी विशेष अवस्था में आग्नेय कहा जा सके।

इसी प्रसंग में अन्तरवेग व बहिर वेग ज्वर भी कहा गया है । 
समझने के लिए ये उसी प्रकार हो सकता है जैसे कोई वायरल फीवर very mild hai तो प्राकृत या सौम्य कहा जा सकता है, कोई viral fiver जब गंभीर hemorrhagic अवस्था तक पहुंचता है तो उस स्तिथि में उसे आग्नेय कहा जा सकेगा।

अल्पमति से इतना समझ हूँ सर
बाकी आप विशेषज्ञ है, मार्गदर्शन करें।

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

[9/14, 9:46 AM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar: 

Sir
Then where ever there is minimum heat producrion and there is no high temp than 98.4 , that condion can also be categorized under Jwar....🤔

Means hypothermia could also be said as one tupe of Jwar...🤔

[9/14, 9:49 AM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar: 

Charan sparsh sir.
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

Sir ..many many thanks.
There is no point of discussion beyond your conclusive remarks.

Thanks Guruji. 
I was saying this opinion feom yesterday but was not sure weather its right or wrong. 

With your guidanve I am satisfied now. 
This can be used in every clinical condition.

Thanks sir.
🙏🙏🙏

[9/14, 9:50 AM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar: 

Ji sir..👌👌👌👌
This concept can be used in other diseases also.

[9/14, 9:50 AM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।: 

In vaata pittaja jvara Acharya Charak mentions दाहो ........कण्ठास्यशोषो .....तृष्णा , मूर्च्छा भ्रम.... 
Bhrama , moorchha⬅️Cerebral hypoperfusion⬅️Hypovolumia  ⬅️Fluid volume depletio ⬅️अब्धातोरतिवृद्धावपां क्षये ⬅️नाग्निं विना हि तर्ष: पवनाद्वा तौ हि शोषणे हेतू⬅️वात + पित्त ➡️ उष्णाभिवृद्धि➡️दाहादिलक्षण

अब्धातोरतिवृद्धावपां क्षये तृष्यते नरो हि ➡️ Hypovolumia➡️ increased osmolality of plasma➡️ stimulation of osmoreceptors ➡️ desire for water intake ➡️ thirst
[9/14, 9:50 AM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar: This explains thw whole concept of Somyta and Aagnetva.
Thanka sir...🙏🙏🙏

[9/14, 9:53 AM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar:

 Sir
Your saying is absolutely right.
But  it that every vaatpittaj jwar would reach to the highest complications like extreme fluid volume depletion. In the early stages it may be of the somya nature which could be treated with mild treatments.

🙏🙏

[9/14, 9:54 AM] Vd Raghuram Shastri ,Banguluru: 

Good morning Guruji... 
Thanks for your kind words. Further motivates to work harder🙏🙏❤💐 Thanks for your blessings sir🙏🙏

[9/14, 9:56 AM] DR. RITURAJ VERMA:

 जी सर जी

[9/14, 9:56 AM] Prof.Madhava Diggavi Sir: 

🙏🏻

[9/14, 9:57 AM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।: 

The natural response to becoming cold is two-fold, including:
Behavioural – the person will try and move around to generate heat, and seek shelter from further heat loss.
Physiological – the body shunts blood to the core to keep it warm, hair stands on end to trap a layer of warm air around us (goose bumps), we shiver to make more heat and our body releases hormones to speed up our metabolism to create more heat.
If these measures don’t work, hypothermia will result.

[9/14, 9:58 AM] Vd Raghuram Shastri ,Banguluru:

Charan sparsh Guruvar🙏🙏💐❤ 
Thanks for value additions and enlightening us with good points sir. Hv noted them. 🙏🙏

[9/14, 9:58 AM] Vd Raghuram Shastri ,Banguluru: 

👌👌🙏🙏❤💐

[9/14, 9:59 AM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।:

उष्णाभिप्राय ⬆️⬆️

[9/14, 9:59 AM] Vd Raghuram Shastri sir,Banguluru: 

Wow Guruji... Just great🙏🙏👌❤💐

[9/14, 10:00 AM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar: 

Somya and Aagney are not some different clinical entities. These are possibly the characheristics which can be labeled with many types of jwars as Resp Khandel Guru ji has advised.

🙏🙏🙏

[9/14, 10:04 AM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।: 

Pawan ji , both are different clinical conditions may be present in various diseases , but always vaata , kapha and vaatakapha are reason of soumya jvara and vaatapitta , pitta are reason of agneya jvara. going to take off from discussion , my purpose is solved

[9/14, 10:05 AM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।: 

*No need to repeat the same as referred by Guru ji too*

[9/14, 10:09 AM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।: 

Thanks to all of you for your kind participation in discussion. 
Very nice presentation by Vaidyaraja Raghuram ji.
The best conclusion by Acharya Shri prof. khandal Guru ji.
🙏🙏💐🌹🌷🙏🙏

[9/14, 10:21 AM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।: 

*आप ठीक है , परंतु प्रश्नानुसार ही उत्तर की अपेक्षा है जिस प्रकार से रघुराम जी ने प्रस्तुत किया है वैसा ही या सदृश व्याख्या अति प्रशंसनीय है*

[9/14, 10:31 AM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।: 

पित्तज विसर्प ➡️ शीतवातवारितर्षोऽतिमात्रं ➡️शीतवात शीततोययो: तृष्णा
कफज विसर्प ➡️ शीतक: (शीतम्)  शीतज्वरो.

[9/14, 10:32 AM] Vd Raghuram Shastri ,Banguluru: 

Thanks Pawan sir🙏🙏💐

*Sec1.1* ✅✅

*Sec1.2* Right sir, *I din write the analogy given there purposely*, not to overstretch my already lengthy post. The intention and soul of writing shouldn't go missing. 

*Sec2.3* I couldn't get the perspective of example. *But virus can't be sheeta or ushna karana*

*Sec2.4* 
👉Vatapittaja should be ushna if caused by ushna Karanas and responds to sheeta upachara as a rule and vata is just yogavahi here and hence Agneya jwara. The prakriti Sama Samavayarabdha rule applies here. 
👉If Vatapittaja jwara is sheeta it should not hv caused by ushna Karanas but in fact caused by weird nidanas not specific for vata or pitta (ChaNi1) or it should be a part of Vishama sannipata wherein kapha too is vitiated to a small proportion. Here Vikriti Vishama Samavayarabdha rule applies. 
This is why these concepts hv been explained separately. 
My write up touches on them. That's why I hv put them into sections. Connecting dots is the key. 

*Clinical utility of Sowmya and Agneya jwara* - to differentiate from Vikriti Vishama Samavayarabdha Dwandwaja Jwaras. 

*For the case you hv posted* - diagnosis shd be done as per jwara prakriti and treat accordingly. Rest I hv explained in my write up. 

🙏💐🙏💐


[9/14, 10:34 AM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar: 

सर जी आपने बिल्कुल सत्य कहा।
रघु जी ने जैसे लिखा वह अति प्रशंसनीय है इस मे कोई शक ही नही।

मुझे सिर्फ इस बात की अपेक्षा है के जो मैं समझ हूँ वह सही है या नही एवं जो उत्तर मैंने दिया वह सही है है या नही।

[9/14, 10:36 AM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।: 

रघुराम जी के इस व्याख्या से वस्तुस्थिती स्पष्ट है.

✅👌🌷❤️☺️☺️💐💐

[9/14, 10:52 AM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।: 

चलते चलते
(१)शैत्यं ...... वातश्लेष्मणे ...पित्तावरे ..
(२) शैत्यं मुहुर्दाह: ... मन्दवाते .....पित्तकफोल्बणे.
(३) दाह... हीनवाते मध्यकफे.. पित्ताधिके.
(४) शीतको ..... हीनपित्ते वातमध्ये.. श्लेष्माधिके.
(५) दाहे ... कफहीने वातमध्ये.... पित्ताधिके..
(६) क्षणे दाह: क्षणे शीतम् ........त्रिदोष प्रधान सन्निपातिक ज्वर.
(७) दाहो ... वातपित्त ज्वराकृति: 
(८) शीतको.......वातश्लेष्मज्वराकृति; 
(९) मुहुर्दाहो मुहु: शीतं....... श्लेष्मपित्तज्वराकृति:.
द्वन्दज ज्वर ⬆️

[9/14, 11:08 AM] Vd Raghuram Shastri ,Banguluru: 

Best conclusive remarks and differential diagnosis Guruji🙏🙏💐
Noted✅

[9/14, 12:45 PM] Dr.Ashwani Kumar Sood Ambala: 

Very convincing -- the final analysis .

[9/14, 2:18 PM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar:

 🙏🙏🙏👌👌👌

Regarding the example
Here virus is not being considered as cause and it is not sheet or ushn but it is the reasons before the infection by the virus. The same virus attacks in a particular condition when alrwady khavaigunya is preswnt due to other reasons...may be sheet or ushna hetus.

🙏🙏🙏🙏

[9/14, 8:31 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।: 

Dr Raghuram , Sec.2-2 , vaatapittaja jvara is never sheeta ..

[9/14, 8:33 PM] Vd Raghuram Shastri ,Banguluru: 

Yes sir, noted and totally agree with you🙏🙏

[9/14, 8:35 PM] Dr.Dinesh Chand Katoch Sir:

 Further to our discussion today afternoon I must emphasize that Soumya Jwara is Kaphadhisthit and Agneya Jwara is Pittadhisthit. Dwandwaj and Sannipatik  Jwara with involvement (Anubandh)  of Vata may have labile symptoms but it does not mean that Soumya Jwara can manifest from Ushna Nidan and Agneya Jwara can manifest from Sheet nidan owing to Vikritivishamsamvet dosh-doosya sammoorchhna. In clinical symptom complex of Soumya and Agneya Jwara and their treatment we can not ignore Satkaryavaad of dosh lakshan sambadh and ashrayi-ashreya siddhant.  Morning's discussions on this issue need to be resolved accordingly.

[9/14, 8:37 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।:

 Yes , sir ji , I am agreed and Dr Raghuram too..

[9/14, 8:40 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।: 

*Key words are labile symptoms due to involved vaata dosha*

*Perfect , well executed sixer* 👌✅☺️🙏🌹

[9/14, 8:49 PM] Vd Raghuram Shastri ,Banguluru: Ultimate summary sir🙏🙏💐❤ Noted✅✅

[9/15, 9:06 AM] Prof. Sachin Chandaliya: Actually we should be able to make it more speciifc in terms of temperature also, if possible..

Converting them from "symptom" to "sign" mode ..🙏🏻

[9/15, 9:06 AM] Prof. Sachin Chandaliya: 

Great approach sir..

[9/15, 11:39 AM] Dr.Satish Jaimini, Jaipur: 

🙏🙏🙏प्रणाम गुरुदेव

[9/15, 12:39 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।: 

आचार्य चरक , आचार्य चक्रपाणी; 
संसृष्टा: ( युग्मभूता:) सन्निपतिता: (त्रयोऽपिमिलिता:)  पृथग्वा कुपिता मला: ➡️ रसाख्यं धातुमन्वेत्य ➡️ पक्तिं (पक्तिहेतुतया जाठराग्निं ब्रूते) स्थान्निरस्य च (स्थानादिति ग्रहण्या: ,ग्रहणी हि जाठराग्निस्थानम्) ➡️ स्वेन ( दोषोष्मणा) तेनोष्मणा ( जाठराग्न्यूष्मण) ➡️चैव कृत्वा देहोष्मणो (सकलदेहचारिण: प्राकृतोष्मण: ) बलम् ➡️ स्रोतासिं रुद्ध्वा ➡️संप्राप्ता: केवलं (समस्तम्) देहमुल्वणा: ➡️ संतापमधिकं देहे जनयन्ति नरस्तदा ➡️ भवति अति उष्ण सर्वाङ्गो ➡️ ज्वरितस्तेन च उच्यते 

विशेष वक्तव्य ; 
वातश्लेष्मणोस्तु यद्यपि पित्तवदुष्मा नास्तिं, तथाऽपि तयोर्भूतत्वेन ऊष्मा योऽस्ति , स इह ग्राह्य: ; वक्तव्यं हि ग्रहण्यध्याये ➡️ भौमाप्याग्नेयवायव्या: पञ्चोष्माण: सनाभसा: (च.चि.१५/१३) इति.
🙏🙏🌹🌷💐🙏🙏

[9/15, 12:42 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।: 

च.चि.३/१२९,३०,३१,३२

[9/15, 1:26 PM] Dr.Satish Jaimini, Jaipur: 

🙏🙏🙏🙏जै हो गुरुजी

[9/15, 6:33 PM] Vd. Atul J. Kale M.D. (K.C.) G.A.U.: 

Great......  sir 🙏🏻🙏🏻🙏🏻🌹

so now we can,  we must see Daha through different diagnostic parameters. Its a combination outcomes of different doshas and gunas.

[9/15, 6:34 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।: 

Yes..

[9/15, 6:34 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।: 

*It's the beauty of Ayurveda*

[9/15, 6:39 PM] Vd. Atul J. Kale M.D. (K.C.) G.A.U.:

 Yes sir. And we all are- ---part of Ayurveda.

[9/15, 6:41 PM] Vd. Atul J. Kale M.D. (K.C.) G.A.U.: 

And its a beauty of our beloved OJHA sir that he can talk, he can right on any subject of AYURVEDA. 🌹🙏🏻🙏🏻😊

[9/15, 6:42 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।: 

Hyperthyroidism➡️ increased thyroid hormones ➡️ increased BMR ➡️ increased callorigenesis ➡️ excess  heat production ➡️ heat intolerance ➡️दाह⬅️पित्ताधिक्य ⬅️पित्तान्तरे अग्नि ⬅️अग्नि उत्तेजक भाव वृद्धि ⬅️समान आवृत उदान

[9/15, 6:56 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।: 

उदान आवृत समान ➡️ अग्नि उत्तेजक भाव की अल्पता➡️ अग्निसाद ➡️ पित्तावर ➡️ वात कफाधिक्य ➡️शैत्य ➡️ शिशिर द्वेष ⬅️cold intolerance ⬅️cutaneous vasoconstriction ⬅️  decreased heat production⬅️ decreased callorigenesis ⬅️ decreased BMR ⬅️ decreased thyroid hormones⬅️ hypothyroidism

[9/15, 7:30 PM] Dr.Ashwani Kumar Sood Ambala:

 बहुत अदभुद self explanatory method to make  someone understand

[9/15, 7:31 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।: 

Thanks Sir ji

[9/15, 7:39 PM] वैद्य नरेश गर्ग: 

प्रणाम सर

[9/15, 7:40 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।:

 नमस्कार गर्ग जी

[9/15, 7:42 PM] वैद्य नरेश गर्ग: 

सर बहुत सारे पेशेंट इसे कहते हैं कि उनको बाहर का तापमान तो अधिक नहीं लगता है लेकिन अंदर से उनको तापमान लगता है इसी परिपेक्ष में उसको कैसे समझा जा सकता है

[9/15, 7:44 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।:

 There is conservation of heat to maintain set point of heat regulating center , it's normal phenomenon , if core temperature is within normal limit

[9/15, 7:48 PM] वैद्य नरेश गर्ग: 

अंतर्वेग और बहीर्वेग ज्वर क्या इस स्थिति को माना जा सकता है

[9/15, 7:53 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।: 

In cases of 'internal fever' you can feel very hot but the thermometer does not show this rise in temperature. The most common situation is that a person has the same symptoms as a real fever, such as malaise, chills and a cold sweat, but the thermometer is still at 36 to 37 °C, which does not indicate fever.

[9/15, 7:53 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।:

 No  नरेश जी

[9/15, 7:53 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।: 

अन्य लक्षण भी मिलेगें

[9/15, 7:54 PM] वैद्य नरेश गर्ग:

 ok sir

[9/15, 7:55 PM] वैद्य नरेश गर्ग: 

thanks sir

[9/15, 7:58 PM] Dr.Dinesh Chand Katoch Sir: 

Santap is one of the symptoms of Jwara. In certain types of Jwara , there may not be Santap ( bahya or abhyantara or both).

[9/15, 7:59 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi: 

*शुभ सन्ध्या सर 🙏🌺🌹💐🙏👆🏿 👌👍👏it's the beauty of आयुर्वेद & ओझा सर।आपकी व्याख्या को पढ़ने का एक अलग आनंद है।*

[9/15, 7:59 PM] Dr.Radheshyam Soni Delhi: 

ज्वर का प्रत्यात्म लक्षण *शारीर और मानस संताप* की उपस्थिति आवश्यक है, चाहे ज्वर का भेद कोई भी हो।
फिर चाहे अन्तर्वेगी हो।

[9/15, 7:59 PM] Dr.Radheshyam Soni Delhi: 

👌👌🙏🌹
प्रणाम सर🙏💐

[9/15, 8:00 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।:

 Anxiety is found major cause of internal fever..
वैचित्यं , अरति: , ग्लानि: मनस: ताप लक्षणम्

[9/15, 8:00 PM] Dr.Dinesh Chand Katoch Sir: 

Then it is Mansik Jwara

[9/15, 8:01 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।: 

ज्वरप्रत्यात्मिकं लिङ्गं संतापो देहमानस:

[9/15, 8:01 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।:

 *आभारी हूं आपका वैद्यराज सुभाष शर्मा जी*

[9/15, 8:02 PM] Dr.Dinesh Chand Katoch Sir: 

Yes, Jwara has either Daihik Santap or Mansik Santap or both

[9/15, 8:02 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।: 

🙏🙏

[9/15, 8:06 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।: 

अन्तर्वेग ➡️ अन्तर्दाह , तृष्णाधिक्य , प्रलाप , श्वसन , भ्रमादि लक्षण .
बहिर्वेग ➡️ बाह्य संतापाधिक्य , अल्प तृष्णादि लक्षण

[9/15, 8:07 PM] Dr.Radheshyam Soni Delhi: 

सर कल ही किसी ने इस पर पृश्न किया था मुझसे,

और आज आपने बिना मांगे मुराद पूरी कर दी।

बहुत बहुत धन्यवाद।🙏🌹

मैं आपके रेफरेन्स के साथ इसे उनके साथ साझा करने की अनुमति चाहता हूँ।🙏😊

[9/15, 8:08 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।: 

जी निश्चित रुप से साझा करें

[9/15, 8:08 PM] Dr.Radheshyam Soni Delhi: 

अन्तर्वेगी अधिक कष्टकारी प्रतीत होता है।

[9/15, 8:09 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।: 

✅👌☺️

[9/15, 8:16 PM] वैद्य नरेश गर्ग:

 अंतर्वेग ज्वर में भ्रम आदि लक्षण शंका उत्पन्न करते हैं  निदान कैसे किया जाए

[9/15, 8:21 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।:

 अलग से..

सप्ताहाद्वा दशाहाद्वा द्वादशाहात्तथैव च ५१.
सप्रलापभ्रमश्वासस्तीक्ष्णो हन्याज्ज्वरो नरम् , च.चि.३.
(१) 
सप्ताहात् वातोत्तर: हन्ति  ➡️ शीघ्रतम विकारकारित्वात् वात
पैत्तिको दशाहात् हन्ति ➡️ शीघ्रतर विकारकारित्वात् पित्त 
कफजो द्वादशाहात् हन्ति ➡️ शीघ्र विकारकारित्वात् कफ.

अन्ये तु 
सप्ताहात् सप्रलाप: , दशाहात् सभ्रम: , द्वादशाहात् सश्वाशो हन्ति..

[9/15, 8:21 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।: 

क्या शंका उत्पन्न करते हैं ?

[9/15, 8:22 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।: 

अन्तर्दाह hyperthermia सदृश अवस्था है..

[9/15, 8:24 PM] वैद्य नरेश गर्ग: 

भ्रम की अवस्था मानसिक विकार की ओर संकेत करती है जबकि यह ज्वर का लक्षण की वजह से हो रहा है

[9/15, 8:16 PM] वैद्य नरेश गर्ग:

अंतर्वेग ज्वर में भ्रम आदि लक्षण शंका उत्पन्न करते हैं  निदान कैसे किया जाए

[9/15, 8:21 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।: 
अलग से..

सप्ताहाद्वा दशाहाद्वा द्वादशाहात्तथैव च ५१.
सप्रलापभ्रमश्वासस्तीक्ष्णो हन्याज्ज्वरो नरम् , च.चि.३.
(१) 
सप्ताहात् वातोत्तर: हन्ति  ➡️ शीघ्रतम विकारकारित्वात् वात
पैत्तिको दशाहात् हन्ति ➡️ शीघ्रतर विकारकारित्वात् पित्त 
कफजो द्वादशाहात् हन्ति ➡️ शीघ्र विकारकारित्वात् कफ.

अन्ये तु 
सप्ताहात् सप्रलाप: , दशाहात् सभ्रम: , द्वादशाहात् सश्वाशो हन्ति..

[9/15, 8:21 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।: 

क्या शंका उत्पन्न करते हैं ?

[9/15, 8:22 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।: 

अन्तर्दाह hyperthermia सदृश अवस्था है..

[9/15, 8:24 PM] वैद्य नरेश गर्ग:

 भ्रम की अवस्था मानसिक विकार की ओर संकेत करती है जबकि यह ज्वर का लक्षण की वजह से हो रहा है

[9/15, 8:36 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।: 

Please don't correlate अन्तर्दाह with internal fever

[9/15, 8:37 PM] वैद्य नरेश गर्ग:

 Ok sir

[9/15, 8:37 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।:

 In Sun strok like conditions , अन्तर्दाह तृष्णाधिक्य प्रलाप श्वसन भ्रमादि लक्षण मिलते हैं

[9/15, 10:00 PM] Dr Mansukh R Mangukiya Gujarat:

 नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।
गुरुवर हम आपके आभारी है और रहेंगे । 🙏

[9/15, 10:06 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।: 

धन्यवाद भाई

[9/15, 10:43 PM] Vaidya Ashok Rathod Oman:

 🙏🙏🙏🌹🌹🌹


[9/16, 8:23 AM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।: 

*शुभ प्रभात वैद्यराज सुभाष शर्मा जी एवं आचार्य गण नमो नमः*🙏🙏💐🌷🌹🙏🙏

*वातिक ज्वर के ऐसे लक्षण जिनका नैदानिक दृष्टी से महत्त्व है*

विषमारम्भविसर्गित्वम् ,

उष्मणो वैषम्यं ( क्वचिच्छरीरप्रदेशे महानूष्मा , क्वचिन्मन्द इत्यादि), 

तीव्रतनुभावानवस्थानि ज्वरस्य.
⬆️⬆️
एतत्सर्वं वायोरनवस्थितत्वेनोपपन्नम्.

आस्यवैरस्यं ➡️अरसज्ञता

अन्नरसखेद: ➡️ अन्नरसे खेदोऽवसादोऽन्नरसखेद:➡️ सर्वरसेष्वनिच्छेत्यर्थ: .

अरुचिस्तु वक्ष्यमाणा वक्त्रे प्रविष्टान्नभ्यवहरणाद्बोद्धव्या. 

उष्णाभिप्रायता➡️ उष्णप्रियता.


[9/16, 10:19 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi: 

*उष्णाभिप्रायता - उष्णप्रियता , दिखने में साधारण से इस प्रकार के सूत्र छोटे नही बहुत बढ़े हैं और  clinically बहुत महत्व रखते है और चिकित्सा में आधार  बनते है।*


[9/16, 10:24 AM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।:

 ✅👌☺️

[9/16, 8:43 PM] DR. RITURAJ VERMA,M.p.: 

 प्रणाम गुरुवर 
ज्वर के चिकित्सा सूत्र के सम्बंध में भी मार्गदर्शन देने की कृपा करें गुरुवर

[9/17, 4:18 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।:

 इस संदर्भ मे पित्तज ज्वर वाले रुग्ण को पिपासा होने पर तालु प्रदेश में लेप करें.
तृष्णा ⬅️उदकवह स्रोतस् दुष्टि लक्षण ➡️ तालु (स्रोतस् मूल ) ⬅️Pallate

[9/17, 4:19 PM] Vd.Yashpalsinh A.Jadeja Gujarat: 

जी ।
धनयवाद ओझा सर एवं अन्य वैद्यगण🙏🏼

[9/17, 4:28 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।: 

*चरक  संहिता में शिर प्रदेश में लेप करने के लिये कहा गया है*.
*दाडिमदधित्थलोध्रै: सविदारीबीजपूरकै: शिरस: , लेपो  गौरामलकैर्घृतारनालायुतैश्च हित: . च.चि.२२/३६.*

[9/17, 4:46 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।:

 पिपासाज्वर में; 
मुस्तपर्पटकोशीरचन्दनोदीच्यनागरै: , शृतशीतं जलं दद्यात् पिपासाज्वरशान्तये. च.चि.३/१४५-४६
दाहतृष्णापरीतस्य वातपित्तोत्तरं ज्वरम् , बद्धप्रच्युतदोषं वा निरामं पयसा जयेत् . १६७-६८.
बलावृक्षाम्लकोलाम्लकृशीधावनीश्रृताम् , अस्वेदनिद्रस्तृष्णार्त: पिबेत् पेयां सशर्कराम्. १८७.

[9/17, 4:49 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।: 

च.चि.३/१९४, १९७, १९८,१९९⬅️ *तृष्णारुचिप्रशमना मुखवैरस्यनाशना :*

[9/17, 4:52 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।:

 *वैद्यराज‌ जदेजा जी , चरक संहिता में वर्णित चिकित्सा व्यवस्था आसान भी है और उपयोगी तो है ही.*

[9/17, 5:01 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।:

 सनागरं समृद्वीकं सघृतक्षौद्रशर्करम्, श्रृतं पय: सखर्जूरं पिपासाज्वरनाशनम् , २३७ ⬅️संतर्पणार्थ ⬅️अपतर्पण⬅️अम्बु धातु क्षय⬅️ज्वरो नास्त्यूष्मणा विना ➡️ अग्नि ➡️अम्बुधातु क्षय ➡️ तृष्णा

[9/17, 5:21 PM] Vd.Yashpalsinh A.Jadeja Gujarat: 

🙏🏼😊

[9/17, 5:23 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।: 

Thanks

[9/17, 8:08 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।:

 Exogenous pyrogens ➡️ in side body / in circulation ➡️ activation of immune cells ➡️ synthesis and secretion of various cytokines ➡️ in circulation ➡️ reached at preoptic nucleus ➡️ activation of prostaglandins in heat regulating center➡️ activation of cyclic AMP ➡️ firing of nurones of heat regulating center➡️ elevation of thermoset point of HRC ➡️(1) signal to cerebral cortex ➡️desire for hot beverages and clothes , change in posture to decrease surface area to minimize heat loss
(2) activation of  autonomic nervous system ➡️ vasoconstriction ➡️ reduced sweating
(3) increased BMR ➡️ increased heat production
(4) if above processes are not able to increase core temperature up to level of set point of HRC
(5) violent contraction of skeletal muscles ➡️  shaking of body (Rigors) ➡️ increased heat production to reach at set point of HRC➡️ increased core temperature ➡️ fever..

[9/17, 8:11 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।: 

Typical cold ➡️ hot ➡️ resolution phases are not observed because of early start of antimicrobial agents and antipyretic..

[9/17, 8:16 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।:

 Signal to cerebral cortex also change in behaviour like aggressiveness , irritability , etc

[9/17, 8:20 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।: 

*आचार्य चरक , आचार्य चक्रपाणी*; 
संसृष्टा: ( युग्मभूता:) सन्निपतिता: (त्रयोऽपिमिलिता:)  पृथग्वा कुपिता मला: ➡️ रसाख्यं धातुमन्वेत्य ➡️ पक्तिं (पक्तिहेतुतया जाठराग्निं ब्रूते) स्थान्निरस्य च (स्थानादिति ग्रहण्या: ,ग्रहणी हि जाठराग्निस्थानम्) ➡️ स्वेन ( दोषोष्मणा) तेनोष्मणा ( जाठराग्न्यूष्मण) ➡️चैव कृत्वा देहोष्मणो (सकलदेहचारिण: प्राकृतोष्मण: ) बलम् ➡️ स्रोतासिं रुद्ध्वा ➡️संप्राप्ता: केवलं (समस्तम्) देहमुल्वणा: ➡️ संतापमधिकं देहे जनयन्ति नरस्तदा ➡️ भवति अति उष्ण सर्वाङ्गो ➡️ ज्वरितस्तेन च उच्यते 

विशेष वक्तव्य ; 
वातश्लेष्मणोस्तु यद्यपि पित्तवदुष्मा नास्तिं, तथाऽपि तयोर्भूतत्वेन ऊष्मा योऽस्ति , स इह ग्राह्य: ; वक्तव्यं हि ग्रहण्यध्याये ➡️ भौमाप्याग्नेयवायव्या: पञ्चोष्माण: सनाभसा: (च.चि.१५/१३) इति.
🙏🙏🌹🌷💐🙏🙏
Exogenous pyrogens ➡️ in side body / in circulation ➡️ activation of immune cells ➡️ synthesis and secretion of various cytokines ➡️ in circulation ➡️ reached at preoptic nucleus ➡️ activation of prostaglandins in heat regulating center➡️ activation of cyclic AMP ➡️ firing of nurones of heat regulating center➡️ elevation of thermoset point of HRC ➡️(1) signal to cerebral cortex ➡️desire for hot beverages and clothes , change in posture to decrease surface area to minimize heat loss, change in behaviour like aggressiveness irritability etc
(2) activation of  autonomic nervous system ➡️ vasoconstriction ➡️ reduced sweating
(3) increased BMR ➡️ increased heat production
(4) if above processes are not able to increase core temperature up to level of set point of HRC
(5) violent contraction of skeletal muscles ➡️  shaking of body (Rigors) ➡️ increased heat production to reach at set point of HRC➡️ increased core temperature ➡️ fever..

[9/18, 4:29 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।: 

*संक्षिप्त ज्वर विचार*. 

*आचार्य चक्रपाणी; उष्णं शीतं चेति विकल्प इच्छाविशेषकृत: ; प्रबले वाते उष्णं , पित्ते त्वतिबले शीतम् .*

*शिष्य गण , और अनुज गण ➡️ संदर्भ ?*

*एक बार पुनः चरक संहिता का अध्ययन*

[9/18, 4:35 PM] वैद्य मेघराज पराडकर गोवा: 

कासाच्छ्वासाच्छिरःशूलात्पार्श्वशूलाच्चिरज्वरात्|
मुच्यते ज्वरितः पीत्वा पञ्चमूलीशृतं पयः||२३४||
एरण्डमूलोत्क्वथितं ज्वरात् सपरिकर्तिकात्|
पयो विमुच्यते पीत्वा तद्वद्बिल्वशलाटुभिः||२३५||
त्रिकण्टकबलाव्याघ्रीगुडनागरसाधितम्|
वर्चोमूत्रविबन्धघ्नं शोफज्वरहरं पयः||२३६||
सनागरं समृद्वीकं सघृतक्षौद्रशर्करम्|
शृतं पयः सखर्जूरं पिपासाज्वरनाशनम्||२३७||
चतुर्गुणेनाम्भसा वा शृतं ज्वरहरं पयः|
धारोष्णं वा पयः सद्यो वातपित्तज्वरं जयेत्||२३८||
जीर्णज्वराणां सर्वेषां पयः प्रशमनं परम्|
पेयं तदुष्णं शीतं वा यथास्वं भेषजैः शृतम्||२३९||

पाठक्रमागतक्षीरप्रयोगानाह- कासादित्यादि| अत्र पञ्चमूल्यादिद्रव्यस्य तथा क्षीरस्य पानीयस्य च मानानुक्तौ वृद्धवैद्यव्यवहारसिद्धया परिभाषया मानकल्पना; यदुक्तं- “द्रव्यादष्टगुणं क्षीरं क्षीरात्तोयं चतुर्गुणम्| क्षीरावशेषः कर्तव्यः क्षीरपाके त्वयं विधिः” इति| एतच्च द्रव्यस्यार्धपलं, क्षीरं पलचतुष्टयं, पानीयं पलानि षोडश दत्त्वा, क्षीरावशेषः पाकः कर्तव्यः; एवम्प्रकारा मानव्यवस्था| यत्र तु माषपर्णीभृतीये “मेदां पयस्यां जीवन्तीं विदारीं कण्टकारिकाम्| श्वदंष्ट्रां क्षीरिकां माषान् गोधूमांश्छालिषष्टिकान्|| पयस्यर्धोदके पक्त्वा कार्षिकानाढकोन्मिते| विवर्जयेत् क्षीरशेषं” (चि.अ.२) इत्यादिना क्षीरद्रव्यादिमानमुक्तं तत्तत्रैव विषये ज्ञेयं, तन्त्रान्तरपरिभाषा- गृहीतत्वादस्य मानस्य| प्रदेशान्तरयोगोक्तं हि मानं तदेव प्रदेशान्तरेऽपि मानलिङ्गं भवति यत् परिभाषानुगतं, यत्तु परिभाषान्तरबाधकं मानं तत् स्वविषय एवावतिष्ठते; यथा- “साधयेच्छुद्धशुष्कस्य लशुनस्य चतुष्पलम्| क्षीरे जलाष्टगुणिते क्षीरशेषं च ना पिबेत्” (चि.अ.५) इति; एवमन्यदपि तन्त्रान्तरे यत् परिभाषाविरुद्धमानकथनं तत्तत्रैव प्रयोगे व्यवस्थितं ज्ञेयम्| परिकर्तिका परिकर्तनाकारा गुदादिवेदना| नागरमित्यादौ क्षौद्रस्य पाकानर्हत्वेनोत्तरकालं द्रव्यान्तरतुल्यमानस्यैव प्रक्षेपो ज्ञेयः| *उष्णं शीतं चेति विकल्प इच्छाविशेषकृतः; प्रबले वाते उष्णं, पित्ते त्वतिबले शीतम्*||२३४-२३९||

[9/18, 4:42 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।: 

वैद्य मेघराज ✅👌🌹☺️💐

[9/18, 4:44 PM] DR. RITURAJ VERMA: 

जी गुरुवर

[9/18, 4:45 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।: 

वैद्य मेघराज , वर्च विबन्ध में भी परिकर्तिका हो सकती है , फिर अलग अलग वर्णन क्यो ??

[9/18, 6:30 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।: 

*पञ्चमूलीशृतं पय: ➡️ कास , श्र्वास , शिर:शूल , पार्श्वशूल‌, चिरज्वर.. ➡️ एक ऐसी अवस्था है जो प्राणवह स्रोतस् दुष्टि होने पर सम्भाव्य है. वातपित्तघ्न द्रव्य शृत पय देने से तात्पर्य जीर्ण ज्वर के साथ साथ वातपित्ताधिक्य की एक सोच भी अभिष्ट है. आधुनिक काल में उत्पन्न व्याधियो मे दोषादि ज्ञान पश्चात् ही चिकित्सा व्यवस्था युक्तियुक्त है*

[9/18, 6:54 PM] Dr.Kapil Kapoor Sir: 

*आचार्य चक्रपाणी; उष्णं शीतं चेति विकल्प इच्छाविशेषकृत: ; प्रबले वाते उष्णं , पित्ते त्वतिबले शीतम् .*
कफे न तु देयं  ....क्या ऐसा अर्थ भी उचित है तन्त्र युक्तित: ?

[9/18, 6:55 PM] वैद्य मेघराज पराडकर गोवा: 

क्षीर का अधिकरण है । इसलिए कफ में नही देना है 

[9/18, 7:03 PM] वैद्य मेघराज पराडकर गोवा: 

परिकर्तिका वातज अतिसार एवं वातज ग्रहणी का भी लक्षण बताया है । केवल वर्च विबंध ही परिकर्तिका का सदैव कारण नही है ।

[9/18, 7:05 PM] Dr.Dinesh Chand Katoch Sir:

 Parikartika primary bhi hai aur secondary bhi -jaise Vaataj Atisaar, Vaataj Grahani, Vibandh aadi mein.

[9/18, 7:05 PM] वैद्य मेघराज पराडकर गोवा: 

बिल्व शलाटू = ग्राही + परिकर्तिका हर
एरंड मूल = अनुलोमन + परिकर्तिका हर

[9/18, 7:14 PM] Vd.V.B.Pandey Basti(U.P.): 

अमलतास का गूदा और हरीतकी चूर्ण को हम जल के साथ देते हैं परिकरतिका की चिकित्सा में ।

[9/18, 8:00 PM] Dr.Kapil Kapoor Sir: 

🙏🏻💐

[9/18, 8:10 PM] Dr.Satish Jaimini, Jaipur: 

जी सर कई बार हिंग्वाष्टक ओर इसबगोल से ही ठीक हो जाता है इसमें दीपन अनुलोमन दोनों सिद्धांत कार्य करते हैं🙏🙏🙏

[9/18, 8:10 PM] DR. RITURAJ VERMA: 

In परिकर्तिका एवं अर्श 
1.पाठा +धमासा- hemostatic congestion,शोथ
2.पाठा+ अजवाइन- आधमान, ऑटोप भी साथ मे हो
3.पाठा+ शुण्ठी - प्रवाहिका साथ मे हो
4. पाठा+ बिल्व - अतिसार ज्यादा हो

[9/18, 8:14 PM] Dr.Satish Jaimini, Jaipur: 

🙏🙏

[9/18, 8:17 PM] Dr.Dinesh Chand Katoch Sir: 

Avashya primary parikartika mein yeh labh ledenge.

[9/18, 8:22 PM] Prof.Madhava Diggavi Sir: 

🙏🏻

[9/18, 8:23 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।:

 परिकर्तिका वातिक (पक्व) अतिसार में  एक लक्षण है , परंतु वातिक ग्रहणी में परिकर्तिका लक्षण वर्णित नहीं है .
दीपन , पाचन , एवं ग्राही होने से अपक्व बिल्व मज्जा का प्रयोग है ,  वातिक पक्व अतिसार में  बिल्वादि प्रयोग है परंतु शृत पय रुप में नहीं. 
पित्तातिसार में विरेचनार्थ दुग्ध प्रयोग प्रशस्त है. 
परिकर्तिका पुरीषावृत वात में भी वर्णित है और इस संदर्भ मे स्नेहयुक्त अनुलोमन का प्रयोग बताया गया है.
सपरिकर्तिका ज्वर में अनुलोमक द्रव्य वातघ्न हो इसलिए एरण्डमूल शृत पय बताया गया. अर्थात् उपरोक्त दोनो ही जीर्ण/चिर अवस्था है इसका ध्यान रखना अपेक्षित है.

[9/18, 8:24 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।:

 जी.. वातपित्त ⬆️ कफ ⬇️

[9/18, 8:32 PM] DR. RITURAJ VERMA: 

🙏🙏🙏💐

[9/18, 8:33 PM] Dr.Ravi Kant Prajapati  (M.D) Prayagraj: 

👌👌🙏🙏💐💐

[9/18, 8:42 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।: 

गुदगत वात में विबंध है , परंतु परिकर्तिका नहीं.. सभी विबंध में परिकर्तिका लक्षण मिलना जरुरी नहीं.
व्यान आवृत अपान मे परिकर्तिका का वर्णन है , अर्थात् आवृत अपान होने पर जब उसे शुष्क , रुक्ष मल निष्क्रमणार्थ अत्यधिक शक्ति लगानी पड रही है , तभी परिकर्तवत् वेदना होती है.
परिकर्तिका/विकर्तिका को समझने के लिये अर्श , उदावर्त , पुरीषावृत वात और वातिक हृदय रोग आदि में उत्पन्न प्रक्रिया  को समझना अपेक्षित है

[9/18, 8:44 PM] DR. RITURAJ VERMA:

 गुद गत रुक्षता वृद्धि

[9/18, 8:46 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।: 

❎❎ मल में रुक्षता वृद्धि

[9/18, 8:48 PM] DR. RITURAJ VERMA: 

जी गुरुवर

[9/18, 8:59 PM] DR. RITURAJ VERMA: 

व्यान आवृत अपान 
वम्याध्मानमुदावर्तगुल्मार्तिपरिकर्तिकाः (211)

[9/18, 9:04 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।: 

कफज अर्श में परिकर्तिका लक्षण वर्णित है, परंतु प्रवाहिका लक्षण वातिक   और कफज अर्श दोनो में वर्णित है.. 
प्रधानत: कफज अर्श शुष्कार्श है , अत एव रक्त स्थापन की जरुरत नहीं है.
हां , रक्तज (स्रावी) अर्श कफानुबंधी हो सकता है , तब रुक्ष शीत चिकित्सा उपयोगी है

[9/18, 9:05 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।: 

सम्प्राप्ति घटक का सांगोपांग विचार अपेक्षित है

[9/18, 9:10 PM] DR. RITURAJ VERMA: 

Oh सहृदय धन्यवाद गुरुदेव
सूक्ष्म ज्ञान एवं मार्गदर्शन मिलता है आपसे

[9/18, 9:11 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।: 

*चरक संहिता का अध्ययन शुरु किजिए*

[9/18, 9:13 PM] DR. RITURAJ VERMA:

 जी गुरुवर

[9/18, 9:18 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।: 

Proctitis होने पर ही प्रवाहण लक्षण मिलता है

[9/18, 9:33 PM] वैध आशीष कुमार: 

💓💓अष्टाङ्ग हॄदयः,धन्यवाद ऋतुराज सर 🙏🏻🙏🏻

[9/18, 9:35 PM] DR. RITURAJ VERMA: 

🙏🙏🙏

[9/18, 10:49 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।: 

Namaste Madan ji

[9/18, 10:49 PM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar: 

Namaste sir.
🙏🙏🙏

[9/18, 11:08 PM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar: 

👌👌👌

[9/19, 12:47 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:

 *शुभ रात्रि सर 🙏🙏🙏 जिस प्रकार से आज आपने class ली है जहां तो संभव हो अपने व्यस्त समय में से थोड़ा समय निकाल कर अलग अलग विषयों पर ऐसी कक्षा नियमित होनी चाहिये।*

*आयुर्वेद का दिन भर आपने ऐसा समां बांध दिया कि सभी का ज्ञानवर्धन हुआ, मेरा सभी इच्छुक सदस्यों से भी निवेदन है कि आयुर्वेद में जहां कोई शंका हो ऐसे विषय दीजिये और चर्चा में नियमित रूप से भाग लीजिये, ओझा सर की ऊर्जा, ज्ञान और अनुभव हम सभी के लिये प्रेरणादायक है।*

           🙏💐🌺🌹🙏

[9/19, 5:49 AM] Vaidya Sanjay P. Chhajed Sir Mumbai: 

सुप्रभात सभी गुरुजनोको,
शायद इसिलिये की विबंध से उत्पन्न परी कर्तिका तथा ज्वर से उत्पन्न परिकर्तिका मे हेतू भेद से सम्प्राप्ती मे बदल है. 
ज्वरर्पश्चात अनेको बार मुख के आसपास कता हुआ सा भाग दिखाता है जिसे महाराष्ट्रीय बोली मे "जर उमटने" कहा जाता है. वैसे ही ज्वर मे गदा मे भी होता है. यह ज्वरस्थ उष्मा की देन है. विबंध मे रुक्ष प्रधानता होती है.

[9/19, 1:21 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।: 

*च.चि.३ , ज्वर चिकित्सा में १५ बार शुंठी का प्रयोग किया गया है*.
*दीपन पाचन के अतिरिक्त to enhance the bioavailability of other components of yoga/kalp is important action of vishwabhaishaja..*

[9/19, 1:22 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:

 *वाह 👌👍🙏*




**************************************************************************


Above discussion held on 'Kaysampraday" a Famous WhatsApp -discussion-group  of  well known Vaidyas from all over the India. 



Compiled & Uploaded by

Vd. Rituraj Verma
B. A. M. S.
ShrDadaji Ayurveda & Panchakarma Center,
Khandawa, M.P., India.
Mobile No.:-
 +91 9669793990,
+91 9617617746

Edited by

Dr.Surendra A. Soni

M.D.,PhD (KC) 
Professor & Head
P.G. DEPT. OF KAYACHIKITSA
Govt. Akhandanand Ayurveda College
Ahmedabad, GUJARAT, India.
Email: surendraasoni@gmail.com
Mobile No. +91 9408441150




Comments

  1. सर, में आयुर्वेद यूनिवर्सिटी में एडमिशन लेना चाहता हु। कृपिया मुझे बताये कौनसी यूनिवर्सिटी सबसे अच्छी हैं |

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