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Showing posts from February, 2020

Case-presentation: Baalarsha (Haemorrhoids in Children) by Vaidyaraja Subhash Sharma

[2/6, 12:51 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi:  *case presentation...* *बाल्यावस्थाजन्य अर्शांकुर* *च चि 14 अनुसार  'द्विविधान्यर्शासि कानिचित् सहजानि कानिचिज्जातस्योत्तर-कालजानि'  । अर्श जन्म से ही सहज और जन्म के पश्चात जातोत्तरकालज होता है । अर्श गुदा के आभ्यंतर और बाह्य वलियों में होता है।गुदा के बाहर आधे अंगुल के प्रदेश को गुदौष्ठ कहते हैं जो बाह्य अर्श का स्थान है ।* *यह वात प्रधान त्रिदोषज व्याधि है जिसमें रक्त, मांस, मेद और त्वचा दूष्य है और पुरीषवाही स्तोतोदुष्टि जन्य व्याधि है । चरक में नासा, लिंग आदि स्थान पर होने वाले मासांकुर को भी अर्श ही कहा है क्योंकि वो शस्त्र, क्षार या अग्नि से ही साध्य है । चरक ने इस प्रकार को मासांकुर को अगर ये गुदा से अन्यत्र उत्पन्न होता है तो अधिमांस कहा है ।* *मेरे जैसे काय चिकित्सक का ये चिकित्सा क्षेत्र नही है पर इस रोगी की मां तीन शल्य चिकित्सकों के prescriptions लाई थी जिनमें एक ने early stage of fistula in ano और अन्य दो ने hemorrhoid diagnosis किया था, उसकी इच्छा थी कि  मुझे पुत्र की अभी surgery नही करानी और आ

Case-presentation: Khalitya/Indralupta by Vaidya Pawan Madaan

[2/9, 12:33 AM] pawan madan Dr:  A case presentation .. *Indralupta* *इंद्रलुप्त एक गंभीर समस्या है एवं जब तक रोगी हमारे पास आता है तो वह गभीर त्रिदोषज अवस्था मे पहुंच चुका होता है। ऐसे रोगों पर बहुत ही मथ्था पच्ची करने पर कभी ही सफलता मिलती है।* *ये 20 साल का नौजवान जब मेरे पास आया तो एक साल से कोई आयुर्वेदिक इलाज ले रहा था पर ज्यादा सफलता नही मिल पा रही थी।* *वह 2017 से इस इंद्रालुप्त से पीड़ित था व हमेशा विग पहन कर आता था ।* *पूरा इतिहास लेने पर बचपन से अब तक के समय मे बहुत सारे कृमि के लक्षण मिले* *दोष .. पित्त प्रधान त्रिदोष* *दूषय..रस रक्त मांस त्वचा* *अग्नि,,विषम* *स्रोतास,,रस रक्त वह* *सरोतोदुष्टि,,संग* *अधिष्ठान,, त्वचा* *निदान ... त्रिदोषज कुष्ठ , कृमि* *चिकित्सा सूत्र ,, शोधन, कृमि नाशक, प्रकृति विघात, रसायन* *30-3-19 को चिकित्सा शुरू की गई* *अलग अलग स्तिथि में निम्न औषधीयों का प्रयोग किया गया* *कृमिधातिनि चूर्ण,,, भैषज्य रत्नावली* *भृंगराज* *भारंगी* *कृमिकुठार रस* *तापयादी लोह* *आमला, गिलोय* *सप्तामृत लोह* *सा

Case-presentation: 'Yakrit-vidradhi(Hepatic-abscess) by Vaidya Radheshyam Soni

[2/6, 11:18 PM] Dr. R S. Soni, Delhi: *यकृत विद्रधि* रोगी -30वर्षीय पुरुष व्यवसाय -अर्धसैनिक बल कर्मचारी  प्रकृति - वात कफ़ज शाकाहारी अव्यसनी *रोग वृत्त* रोगी को अगस्त 2019 में पेटदर्द और ठंड लगने के साथ तीव्र ज्वर आने लगा। जिसके लिये अस्पताल में गया। जांच में यकृत विद्रधि का निदान हुआ। जिसके लिये लगभग 1 माह तक रोगी अस्पताल में भर्ती रहा । वहां पर एलोपैथिक उपचार किया गया । *बुखार आता रहा और पुनरावृत्ति की दर कम होती गयी। इस स्थिति में संजीवनी वटी और आरोग्यवर्धिनी वटी साथ मे दी गयी तो 10 दिन बाद ज्वर की निवृत्ति हो गई ।* वर्तमान रोग वृत्त रोगी को ज्वर मुक्ति के पश्चात उदर में भारीपन और मंदाग्नि की स्थिति थी। और साथ ही अल्ट्रासाउंड में यकृत वृद्धि तथा विद्रधि की ग्रंथि दृष्टिगोचर थी अतः इसका उपचार किया गया। *उपद्रव* ज्वर की चिकित्सा के दौरान ही रोगी की दक्षिण अक्षिगोलक का बाहर की ओर गति बाधित हो गई। *चिकित्सा सूत्र* पूय शोषक, ग्रंथिहर, लेखन, कृमिहर, क्लेद नाशक, वात शामक रसायन । *औषधि* त्रिफला गुग्गुलु 2-2 गोली 2 बार कृमिमुद्गर रस 2-2 गो