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Showing posts from January, 2021

'CLINICAL AYURVEDA' Part- 3 by Vaidyaraja Subhash Sharma

[11/28/2020, 11:57 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:  *क्लिनिकल आयुर्वेद - भाग 3* *हमने पिछले दिनों 180 से अधिक रोगियों का data select कर जिनमें DM type 1, type 2, एक-किटिभ कुष्ठ, ग्रहणी दोष, राजयक्ष्मा, hepatitis B, CKD, CLD आदि शारीरिक के साथ मानसिक रोगों से भी जो ग्रस्त है एक format बना कर फोन और मैसेज भेज कर के स्वयं और अपने staff की सहायता से तीन तीन पीढ़ियों तक संक्षिप्त history ले कर रोग के हेतु को जानने का गंभीर प्रयास किया, अधिकतर लोगों के पास पहले ग्रामीण क्षेत्रों का जीवन था, धन का अभाव, investigations की सुविधाओं अभाव, कुछ लोगों का जांच ना कराने के पीछे हठी स्वभाव और विवश्ता आदि अनेक कारण मिले।वस्तुत: जिस प्रकार सैंकड़ों वर्ष देश गुलाम रहा तो आयुर्वेद में वह प्रगति और अनुसंधान संभव ही नही था और जो आयुर्वेद हमें संरक्षित मिल सका उसके लिये हमें अपने पूर्व आचार्यों का आभारी होना चाहिये।* *गर्भ के घटक द्रव्य 6 हैं अर्थात 6 भावों से गर्भ की उत्पत्ति होती है, इसमें चार भावों के समूह से एक बीज बनता है और यह चार भाग है मातृज, पितृज, आत्मज और सत्वज शेष दो भाग इस बीज का निरंतर

'CLINICAL AYURVEDA' Part- 2, by Vaidyaraja Subhash Sharma

[11/24/2020, 1:10 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:  *क्लिनिकल आयुर्वेद - भाग 2* *कल हमने हेतु, सम्प्राप्ति और चिकित्सा के मूल सु शा 3/43 में गर्भ के पितृज भाव  'तत्र गर्भस्य पितृजमातृजरसजात्मजसत्त्वजसात्म्यजानि शरीरलक्षणानि व्याख्यास्यामः, गर्भस्यकेशश्मश्रुलोमास्थिनखदन्तसिरास्नायुधमनीरेतः प्रभृतीनि स्थिराणि पितृजानि'  और चरक शारीर 3/7 में  'केशशमश्रुनखलोमदंतास्थ्सिरास्नायुधमन्य: शुक्रन्चेति...'  केश, श्मश्रु, लोम, अस्थि, नख, दंत, सिरा, स्नायु, धमनी, रेत इत्यादि कठिन अव्यव पितृज भाव के अव्यव बताये गये हैं।* *सु शा 3/43 मातृज भाव -   'मांसशोणितमेदोमज्जहृन्नाभियकृत्प्लीहान्त्रगुदप्रभृतीनि मृदूनि मातृजानि,  चरक शा 3/7 मे  'त्वक च लोहितं च मांसं च मेदश्च नाभिश्च ह्रदयं च क्लोम च यकृच्च प्लीहा च वृक्कौ च बस्तिश्च पुरीषाधानं  चामाश्यश्चोत्तरगुदं चाधरगुदं च क्षुद्रान्त्रं च स्थूलान्त्रं च वपावहनं...'  अर्थात मांस, रक्त, मेद, मज्जा, ह्रदय, नाभि, यकृत, प्लीहा, आन्त्र, गुदा आदि ये मातृज अव्यव है पर चर्चा की थी।* *यह जो पितृज और मातृज भाव बताये गये हैं यह क्यों ब