WDS 88: प्रमेह- मेद/मूत्रवह् स्रोतस् व्याधि ? (Prameha concerned to Medavah or Mutravah Srotas ?) by Vaidyaraja Subhash Sharma, Prof. Ramakant Sharma, Chulet, Prof. Giriraj Sharma, Dr. Pawan Madaan, Dr. Manu Vast, Dr. Amol Kadu, Dr. Pradip Mohan Sharma, Dr. Rajendra Vishnoi & others.
[7/3, 00:03] Vd. Subhash Sharma Ji Delhi:
*स्रोतो विमर्श - प्रमेह मेदोवाही स्रोतो व्याधि है या मूत्रवाही स्रोतों की ???*
*मेदोवाही स्रोतों का मूल ‘मेदोवहानां स्रोतसां वृक्कौमूलं वपावहनं च’
च वि 5/7
और मूत्रवाही स्रोतों का मूल ‘मूत्रवहानां स्रोतसां बस्ति: मूलंवंक्षणौ च।’
च वि 5/7*
*‘मूत्रवहे द्वे तयोर्मूलं वस्तिमेढ्रं च।
सु शा 9*
*विद्वानों से इस विषय पर चर्चा अपेक्षित है।*
🙏🙏🙏🙏
[7/3, 00:13] Vd. Subhash Sharma Ji Delhi:
*मेदोवाही स्रोतोदुष्टि कारण - अव्यायामाद् .... वारूण्याश्चातिसेवनात्।
च वि 5/15 अर्थात अव्यायाम दिवास्वप्न मेदोवर्धक पदार्थ और अति मदिरापान।*
*मूत्रवाही स्रोतो दुष्टि कारण - मूत्रितोदक ...क्षीणस्याभिक्षतस्य च। अर्थात मूत्रवेग धारण में जलपान एवं भक्ष्य पदार्थ सेवन, मूत्रवेग धारण धातु क्षीणता एवं क्षत।
च वि 5/20*
[7/3, 07:50] pawan madan Dr:
*मेदस और क्लेद प्रमेह रोग के समवायी दुष्ट धातु हैं। मुझे लगता है मुख्या रूप से मूत्रवह स्रोतस दुष्टि है।*
[7/3, 07:55] Dr Giriraj Sharma:
संभवत प्रमेह मेदोवह स्रोतः की दुष्टि जन्य रोग है जो सम्प्राप्ति तक मूत्रवहः की भी दुष्टि कर देता है ।
*आचार्य सुश्रुत मतानुसार मेदो वह का मूल कटी वृक्कों बताया है #
मेदोवह द्वे त्योर्मुलम कटी वृक्कों,,,,,,
आचार्य चरक = वृक्कोंमूलं वपावहनम
आचार्य सुश्रुत =वृक्कों कटी
मूत्रवहः स्रोतः
आचार्य सुश्रुत= बस्ति मेड्र
आचार्य चरक =बस्ति वंक्षण
[7/3, 07:57] Dr Giriraj Sharma:
कटी से क्या तात्पर्य लिया जाए ।
[7/3, 07:59] Dr Giriraj Sharma:
वपावहनम से क्या तात्पर्य लिया जाए ?
[7/3, 08:15] Dr Giriraj Sharma:
मर्म परिप्रेक्ष्य में बस्ति
अल्प मांस शोणितो आभ्यंतर कट्यां मूत्रशयो बस्ति,,,,
कटिक तरुण
तत्र पृष्ठवंश उभ्यत प्रति श्रोणिकांड अस्थिनी कटी तरुण ,,,,,
[7/3, 08:35] Vd. Subhash Sharma Ji Delhi:
*ग्रन्थों में मूत्र रोग और बस्ति रोग लगते तो एक ही हैं पर बस्ति रोगों में मूत्रकृच्छादि का तो वर्णन है पर प्रमेह का नही, मूत्ररोगों की चिकित्सा से प्रमेह में कोई result नही मिलता पर मेदोरोग की चिकित्सा करते हैं तो प्रमेह रोग में लाभ होता है।*
[7/3, 08:45] Dr Harsh Kishore:
आचार्य गिरिराज के मत से सहमत हूं कि मेदोवह स्रोतो दुष्टि जनित रोग जो कि मूत्रवह स्रोत्रस की भी दुष्टि करता है।
प्रमेह के निदान में .."आस्य सुखं स्वप्न सुखं दधिनी ग्राम्य उदक आनूप रसः पयंसि " बताया है जो कि कफ और मेद वर्धक निदान हैं यही निदान मेदोवह स्रोतो दृष्टि में भी मिलते है। अतः निदान समान होने से प्रमेह को मेदोवह स्रोतो दुष्टि जन्य रोग मानना उचित होगा। यदि कोई त्रुटि हुई हो तो क्षमा । आप सभी आदरणीय आचार्यो के विचार पढ़कर ज्ञानवर्धन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ आप सभी का धन्यवाद🙏🙏🙏
[7/3, 08:47] Vd. Subhash Sharma Ji Delhi:
*इसीलिये तो यह प्रसंग लिया है क्योंकि शास्त्रों में कुछ रोगों में दोष दूष्यों पर तो प्रधानता दी है पर अव्यवों का विस्तृत वर्णन नही मिलता जैसे वृक्क रोगों का या जो मधुमेह को diabetes कहा जा रहा है वो इस से भिन्न लगता है तभी juvenile diabetes की चिकित्सा सम्प्राप्ति नही बन पाती, प्रमेह मेदोवाही स्रोतो से है तथा स्वतन्त्र मूत्र रोग ना लगकर मूत्र दोष ही लगता है इस विषय पर मैं भी आपसे सहमत हूं।*
🙏🙏🙏🙏🙏
[7/3, 08:49] Prof. Ramakant Chulet Sir:
श्रेष्ठ जिज्ञासायें है आपकी , आपका एतदर्थ अभिनन्दन !!!!!!
चूँकि आप शारीरविद् है अत: विषय को दिशा देने की दृष्टि से आपकी जिज्ञासायें परमोचित है किन्तु शारीर विषयक जिज्ञासाओं में आपको समाधान कर्ता के रूप में पढ़ना व देखना चाहते है अत: ननु न च शैली में इन प्रश्नों के समाधान के विकल्प प्रस्तुत करने का शाम करें आचार्य l
[7/3, 08:54] Dr Rajender Bishnoi:
DM type 1___or. Type 2. dono me medovahi srotus dusti hai kya..?
[7/3, 08:54] Dr Giriraj Sharma:
सादर नमन आचार्य
प्रश्न होंगे तो निश्चित रूप से उत्तर भी होंगे ।
पर सभी की अपनी दृष्टि औऱ समझ है ,,,,,,
सम्भवत इस विषय पर भी श्रेष्ठ विश्लेषण और तथ्यात्मक ज्ञान अर्जित होगा ,
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🌹🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
[7/3, 08:55] Prof. Ramakant Chulet Sir:
जो विषय वैद्यराज ने विचारणीय प्रस्तुत की है उसके षट् वैचारिक उप विभाग करलें :- स्रोतो रचना, स्रोतस् क्रिया, स्रोतो विकृति, सम्प्राप्ति घटक, चिकित्सा सिद्धान्त, एवम् चिकित्सा क्रम योगादि l
[7/3, 08:55] Dr Giriraj Sharma:
🙏🏻🙏🏻🌹🙏🏻🙏🏻
[7/3, 08:55] Prof. Ramakant Chulet Sir:
🙏🙏🙏💐💐
[7/3, 08:55] Dr Giriraj Sharma:
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🌹🙏🏻🙏🏻🙏🏻
[7/3, 08:57] Dr Rajender Bishnoi:
DM type 2 me bhi. Ek prakar ki chikitsa labhkari nahi hoti dekhi hai....
[7/3, 09:00] Vd. Subhash Sharma Ji Delhi:
*आपके ज्ञान की अभिलाषा मुझे भी बहुत है*
🙏🙏🙏🙏
[7/3, 09:01] Dr Rajender Bishnoi:
Samprapti tak Kai baar mutravah srotus dusti nahi hoti...mutravah k lakhsan na aakar anya sroto dusti se diabetes ptta chalti hai..
[7/3, 09:02] Vd. Subhash Sharma Ji Delhi:
*अभिलाषा ना समझ कर पिपासा समझें*
[7/3, 09:02] Dr Rajender Bishnoi:
ye mane ki DIABETES alag hai or madhumeha alag..
[7/3, 09:03] Dr Harsh Kishore:
प्रमेह रोगियों को भी दो प्रकार से विभाजित किया गया है स्थूल प्रमेही और कृष प्रमेही। स्थूल प्रमेही मेदो वृद्धि की वजह से अर्थात type2 में समझे जा सकते है और कृष प्रमेही मेद क्षय जन्य स्थिति है तो type1 में समझ सकते हैं।
[7/3, 09:06] Prof. Ramakant Chulet Sir:
थोड़ा संशोधन करना चाहूँगा , चिकित्सार्थ किसे गये इस वर्गीकरण में स्थूल प्रमेही बलवान् है तथा कृशप्रमेही दुर्बल है यह तथ्य महत्वपूर्ण है अत: इस शब्दयुग्म को युग्म रूप में ही प्रयोग करने का अनुरोध है ।
[7/3, 09:08] Dr Giriraj Sharma:
आचार्य सादर नमन
🌹🌹🌹🙏🏻🌹🌹🌹
आचार्य ,,,शर्मिंदा ना करे ,,आपके ज्ञान , चिकित्सीय गहन समझ एवं अनुभव का कोई सानी नही ,, आपके जैसे चिकित्सको का सानिध्य मात्र ही मेरे लिए गौरव की बात है ।
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🌹🙏🏻🙏🏻🙏🏻
[7/3, 09:14] Vd. Subhash Sharma Ji Delhi:
*बिल्कुल सही कहा, इसी तरह एक लक्ष्य पर पहुंचेगें हम*
🙏🙏🙏🙏
[7/3, 09:14] Vd. Subhash Sharma Ji Delhi: 🙏🙏🌹🌹🙏🙏
[7/3, 09:18] Prof. Ramakant Chulet Sir:
सभी लोगों से प्रार्थना है कि जिस उप विभाग पर चर्चा चल रही हो उसी से संबंधित शंका समाधान चलें ताकि लक्ष्य पर पंहुचे, अन्य उपविभाग पर कोई महत्वपूर्ण विचार आये तो उसे नोट करलें, उस उप विभाग की चर्चा के समय उसे प्रस्तुत करदें बस इतना सा निर्णय लेने से चर्चा में विषयान्तर नहीं होगा l
[7/3, 09:42] Vd Subhash Joshi:
👍💐👏
[7/3, 09:52] amol kadu Dr:
Respected gurujan. Diabetes aur prameha ko hamesha hi ek hi aaine se dekhna uchit nahi lagta. Jo ki aap kahte hai dm 2 me ek hi chikitsa labhkari nahi hoti. Kyoki yah raktagat kled hi hai jisake karan anek ho sakte hai. Nawjwar me , amlapitta me aur bhi anek karan jisme bsl badh ti hai. To kisiki tribhuwan se to kisi ki sutashekharse. Rasashastra na manane wale hamre param adarniya mehtre sir vacha haridradi gan ya raktagat kled ki chikitsa se bsl kam karte hai unhone apne yah anubhaw saza bhi kiye hai. ( yah dono vichar vaidya jamdagni sir aur mhetre sir ne diye hue hai jiska maine pratyaksh anubhaw liya Hai).. 🙏🙏🙏🙏
[7/3, 09:52] Vd. Subhash Sharma Ji Delhi:
*जो increased b sugar रोगी की आजकल मिलती है, उसमें शारीरिक आहार का कम और मानसिक आहार चिन्ता शोक भय उद्वेग क्रोध का role अधिक है अर्थात मनोवाही स्रोतस, उसे भी लेना है*l
[7/3, 09:53] amol kadu Dr Ayu:
Sahi hai sir..
[7/3, 09:54] amol kadu Dr Ayu:
Mansik bhaw se grasit vyakti ka aahar pachan thik na hone se ajirna ki vajah se bhi bsl badhti hai... Aam chikitsa karne se bhi bsl kam ati hai...agar kuch galat ho to correct kare.
[7/3, 09:56] Vd. Subhash Sharma Ji Delhi:
*सही कहा आपने*
👍👍👍
[7/3, 09:57] Mayur Surana Dr.:
उपतप्त मन , उद्वेग, भय ये आमोत्पत्ती के कारण है.अतः उत्पन्न आहार रस परमसूक्ष्म नही हो पाता..जो संभवतः increased bsl आदी अनेक रुप मे दिखता है..इसलिए तन्मना भुंजीत यह निर्देश है..
[7/3, 09:58] amol kadu Dr:
मिश्रं पथ्यमपथ्यं च भुक्तं समशनं मतम्॥३३॥
विद्यादध्यशनं भूयो भुक्तस्योपरि भोजनम्।
अकाले बहु चाल्पं वा भुक्तं तु विषमाशनम्॥३४॥
त्रीण्यप्येतानि मृत्युं वा घोरान् व्याधीन्सृजन्ति वा।
[7/3, 09:59] amol kadu Dr:
न चातिमात्रमेवान्नमामदोषाय केवलम्॥३१॥
द्विष्टविष्टम्भिदग्धामगुरुरूक्षहिमाशुचि।
विदाहि शुष्कमत्यम्बुप्लुतं चान्नं न जीर्यति॥३२॥
उपतप्तेन भुक्तं च शोकक्रोधक्षुदादिभिः।
[7/3, 10:00] amol kadu Dr:
Atimatrashan vishamashan samshan adhyashan these are common practices now a days and very unique concepts given by our acharyas....
[7/3, 10:01] amol kadu Dr:
Achary charaka clearly mentioned or even first priority to vyavam and jirnashan in all santarpanjanya vyadhi including prameha. But that would not be much focused.
सन्तर्पयति यः स्निग्धैर्मधुरैर्गुरुपिच्छिलैः ।
नवान्नैर्नवमद्यैश्च मांसैश्चानूपवारिजैः ॥३॥
गोरसैर्गौडिकैश्चा१न्नैः पैष्टिकैश्चातिमात्रशः ।
चेष्टाद्वेषी दिवास्वप्नशय्यासनसुखे रतः ॥४॥
रोगास्तस्योपजायन्ते सन्तर्पणनिमित्तजाः ।
प्रमेहपिडकाकोठकण्डूपाण्ड्वामयज्वराः ॥५॥
कुष्ठान्यामप्रदोषाश्च मूत्रकृच्छ्रमरोचकः ।
तन्द्रा क्लैब्यमतिस्थौल्यमालस्यं गुरुगात्रता ॥६॥
इन्द्रियस्रोतसां लेपो बुद्धेर्मोहः प्रमीलकः ।
शोफाश्चैवंविधाश्चान्ये शीघ्रमप्रतिकुर्वतः ॥७॥ these the hetu and vyadhis due to santarpanjanya samprapti..
[7/3, 10:03] amol kadu Dr:
And what is the basic chikitsa sutra given charak in contex of santarpanjanya vyadhi chi is
[7/3, 10:05] amol kadu Dr:
व्यायामनित्यो जीर्णाशी यवगोधूमभोजनः ।
सन्तर्पणकृतैर्दोषैः स्थौ२ल्यं मुक्त्वा विमुच्यते ॥२५॥
उक्तं सन्तर्पणोत्थानामपतर्पणमौषधम् ।
[7/3, 10:07] Manu Vats Dr Patiala:
Congratulations and best wishes Dr Joshi💐💐
[7/3, 10:10] amol kadu Dr:
Sahi hai sir. jisase hame aur bhi gyanprapti hone ka awsar milega.. Really all stalwarts who share there knowledge, experiences specially sparing their time and energy and all the those things which makes the discussion fruitfill. .... Nice initative sir...👍👍👍👍👍🙏🙏🙏🙏🙏
[7/3, 11:33] Prof. Ramakant Chulet Sir:
@सुभाष जी शर्मा की ओर से...
[7/3, 11:48] amol kadu Dr:
Phir to pratham paritoshik unhi ko jayega...
[7/3, 11:49] amol kadu Dr: 😊😊🙏
[7/3, 11:52] Prof. Ramakant Chulet Sir:
ऐसा जरूरी नहीं है , आप को भी मिल सकता है , किसी भी अन्य को मिल सकता है इमानदारी से प्रयत्न करना चाहिये बस इतनी काफ़ी है l
[7/3, 11:54] amol kadu Dr:
No. he really deserve and all those who really spare time and share their knowledge. Mai to aaj train me hu. Isiliye har ek post ka aanand le raha hu😊🙏
[7/3, 11:59] amol kadu Dr:
Le pa raha hu....
[7/3, 12:11] Dr. Pradip Mohan Sharma:
*बह्वबद्दम मेदो मांसं शरीरक्लेद: शुक्रम शोणितम वसा मज्जा लसिका रसश्चओज:संख्यात इति दुष्यविशेषा:*।। चरक निदान स्थान अध्याय 4 श्लोक संख्या7 ।।
प्रसर एवं स्थानसंश्रय के (षट क्रिया काल के सिद्धान्तानुसार) समय तदनुरूप ही प्रमेह की व्यक्त अवस्था (manifestation) होगी।
[7/3, 12:13] Dr. Pradip Mohan Sharma:
प्रमेह मूत्रवह संस्थान के साथ साथ अग्निवैषम्य से जुड़ी हुई व्याधि है। प्रमेह को केवल मूत्रवह संस्थान तक सीमित नही रख सकते। प्रमेह तो एक अम्ब्रेला टर्म है जो समस्त प्रमेहों को कवर करता है।
[7/3, 12:16] Dr Giriraj Sharma: 🙏🏻🙏🏻👍🏻🌹🙏🏻🌹🙏🏻🙏🏻
[7/3, 12:17] Dr. Pradip Mohan Sharma:
यदि निदान कफ को प्रकुपित करेंगे तो कफ प्रधान प्रमेह और संबंधित संस्थानों / स्रोतों की दृष्टि के साथ साथ स्थानीय धातुओं की विकृतियां भी अपेक्षित होंगी।
[7/3, 12:19] Dr. Pradip Mohan Sharma:
मेरे संक्षिप्त ज्ञान के अनुसार प्रमेह वृक्क, मूत्र वाहिनी, बस्ति एवम मूत्रमार्ग सभी की या इनमें से किसी की भी दृष्टि होने की संभावना रहेगी।
[7/3, 12:19] Dr. Pradip Mohan Sharma:
सभी प्रकार के दोषों में अग्निवैषम्य मिलेगा ही।
[7/3, 12:26] Dr Giriraj Sharma:
मेद
मांस
शरीर क्लेद
शुक्रं
शोणित
वसा
मज्जा
लसिका
रसज
ओज
1 Mineralocorticoid - रस, लसिका, क्लेद,
2. Glucocorticoid- ओज,,,
3. Sex hormone = शुक्र
4.Chromaffin cells = ओज
5. Capillaries - शोणितम
[7/3, 12:42] Dr Giriraj Sharma:
मेदोवह दुष्टि को अगर प्रमेह का प्राथमिक हेतु माना जाए और उसके मूल में कटि और वृक्क है तो वृक्क kidney सर्व विदित है पर कटी के विषय मे इसे कटी प्रदेश समझा जाये या कोई अंग विशेष ,,,,,,, जो प्रमेह के दोष दुष्य से सम्बंधित हो जिसमें रस लसिका वसा शरीरक्लेद, शुक्र ओज, मेद मांस , रक्त जैसे धातु उपधातु प्रभावित होते हो ऐसे अंग को कटी के समक्ष मानना होगा ।
संख्या भी दो हो तथा वृक्क से भी सम्बंदित हो तो ऐसे में कटि को किसी Gland विशेष से तुलना की जा सकती है l
[7/3, 12:46] Dr Giriraj Sharma:
अगर इसे प्रमेह में किसी अंग से यह सब धातु उपधातु प्रभावित होते है तो Suprarenal Gland के विषय मे भी एक चर्चा अपेक्षित है ,,
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🌹🙏🏻🙏🏻🙏🏻
[7/3, 13:37] shekhar singh MP:
Same in Kushtha & jwara...
[7/3, 14:01] Dr. Pradip Mohan Sharma:
*हेतुर्व्याधिविशेषणाम प्रमेहणाम च कारणम।*
*दोषधातु समायोगो रूपम विविधमेव च*।।
च निदान/4/45
इह खलु निदानदोषदुष्य विशेषेभ्यो... के सिद्धान्तानुसार विभीन्न व्याधियों के हेतु प्रमेहों के कारण द्वारा, दोष और दूषित धातुओं का संग्रह/संयोग विभिद प्रकार के प्रमेह उत्पन्न होते हैं।
[7/3, 14:03] Dr. Pradip Mohan Sharma:
प्रमेह आधुनिक यूरोलॉजी एवम इंडोक्रयनोलॉजी का मिलाजुला स्वरुप भी लगता है यद्यपि ये चर्चा का विषय है🙏🏼
[7/3, 14:07] Dr Giriraj Sharma:
👍🏻👍🏻🙏🏻🌹🙏🏻👍🏻👍🏻
[7/3, 14:19] Dr Giriraj Sharma:
कटी ....?
Pancreases ....?
Suprarenal ,,,,,,?
Both........?
विचारणीय l
[7/3, 17:43] Vd. Subhash Sharma Ji Delhi:
*सम्प्राप्ति में मूल किसे माने फिर ... मेदोवाही स्रोतस या मूत्रवाही ???*
[7/3, 17:57] Vd. Subhash Sharma Ji Delhi:
*प्रश्न यहीं आ कर रूक जाता है और प्रश्न पर प्रश्न उठते है कि कटि को या पूर्ण कटि प्रदेश को क्या समझा जाये ?*
*मुझे पूर्ण आशा है कि बहुत से प्रश्नो के उत्तर आप से ही मिलेंगे या हम कहीं सही दिशा में पर पहु्चेगे जरूर,बहुत से प्रमेह रोगियों की clinical reports मेरे पास है जो post करूंगा उनमें मेदोवाही स्रोतो दुष्टि चिकित्सा से लक्षण दूर हो bsugar within normal limit पर कहीं कुछ कमी जरूर प्रतीत होती है जो प्रमेह के चिकित्सा सूत्र को सर्वमान्य बना सके*
🙏🙏🙏🙏
[7/3, 17:58] Vd. Subhash Sharma Ji Delhi:
*नि:संदेह लगता है*
🙏🙏🙏
[7/3, 17:59] Vd. Subhash Sharma Ji Delhi:
👌👌👌🙏🙏🙏
[7/3, 18:06] Prof. Deep Narayan Pandey: 👌👍🌹🌹
[7/3, 18:12] Vd Subhash Joshi:
👏😍😁😃🤣😂ESI. ME. To. MAR. KHA. GAYA. " INDIA "!!! Jo VAIDYA. PRAVAR. Hai. Vo. Kaise. BAKAT. RAH. Sakte. Hai.!!! Yes. Hamari. LAGNI. Evam. Magani. C6!!!👏💐
[7/3, 18:14] Manu Vats Dr Patiala:
Sir...my answer is Medoveh stores is the Mool...As per lifestyle changes are mainly responsible for both Daibetes and hypertension(diastolic) in very early age..Physical inactivity junk food etc causes diastolic BP in early twenties ..on basis of principle human body is prone to kaffaj in balavastha and piitaj disease in middle age.....So Medoveh srotas gets affected the most ...Aam ras production and accumulation also starts talking this age...Above stated all hetus ultimately sooner or later gives rise to diabetes.....That's why until and unless change in lifestylestyle as per medoveh srotus dushtee and also according treatment is result oriented
[7/3, 18:16] Manu Vats Dr Patiala:
If 2 in number is considered then suprarenal is more appropriate than pancreas.
[7/3, 18:18] Dr Rajender Bishnoi:
Kati....ye to dekne me aata hai ki santarpaniya DM.me. Kati means diameter of lumber is more than chest. ....hum is ratio ko har patient me note kre to ho sakta hai ek border line mil jaye....ek veiw hai🙏🙏
[7/3, 18:19] Manu Vats Dr Patiala:
Aampachan chikitsa se agar Blood sugar normal aa jaatee hai....then it proves medoveh srotus dushtee is the main cause
[7/3, 18:19] Manu Vats Dr Patiala: 🙏🙏Regards
[7/3, 18:28] Dr Giriraj Sharma:
दो संख्या से अर्थ लिया जाए या दोनो ओर से,,,,
suprarenal glands दो है ।
pancreas दोनो ओर है vertebrae coloum के ,,,
पर अगर कटी को posterior internal wall of abdomen माना जाए तो suprarenal, pancreas, with kidney भी एक विकल्प है ।
कटि शब्द से मुलतः कटि प्रदेश अगर माने तो ,,,,,
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🌹🙏🏻🙏🏻🙏🏻
[7/3, 18:30] Dr Giriraj Sharma:
कटि
posterior internal abdominal wall.....
pancreas and suprarenal glands are retroperitoneal organs with kidney.....
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🌹🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
[7/3, 18:31] Prof. Ramakant Chulet Sir:
😆😆😆😆😆😆😆😆😆🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏👏👏👏👏👏👏👏👏👏
[7/3, 19:03] Vd. Subhash Sharma Ji Delhi: 🙏🙏🙏🙏
[7/3, 19:19] Prof. Ramakant Chulet Sir:
तीन शब्द शक्तियों - अभिधा लक्षणा व्यंजना के प्रसंग में एक उदाहरण दिया जाता है “गंगा पर घर है “इसका तात्पर्य यह नहीं है कि गंगा नदी की धार पर घर है, प्रवाह के ऊपर घर है इसका तात्पर्य है कि गंगा के किनारे घर है उसी तरह नाभि, कटि, बस्ति, पार्श्व आदि पदों, शब्दों के -पदार्थ, शब्दार्थ, भावार्थ, तात्पर्यार्थ, लक्ष्यार्थ आदि प्रसंगानुसार एवम् लक्ष्यार्थ हमें खोजने होंगे तथा प्रस्तुत प्रसंग में लक्ष्यार्थ यही है यह भी सुनिश्चित करना होता है, शास्त्र प्रमाण से
[7/3, 19:20] Prof. Deep Narayan Pandey:
सुंदर व्याख्या
👌🌹🙏
[7/3, 19:23] Prof. Ramakant Chulet Sir:
किसी के पास पारिषद्यम् शब्दार्थ शारीरम् हो तो, उसमें अनेक शब्दोंके अनेक प्रासंगिक अर्थ सुनिश्चित किये जा चुके है जो सुनिश्चित एवम् समुचित लगते है , उन तकनीकी शब्दों के अर्थ वहाँ से ग्रहण कर लेने चाहिये
[7/3, 19:31] Vd. Subhash Sharma Ji Delhi:
🙏🙏🙏🙏
*एक ही शब्द अलग अलग स्थानों पर अलग अर्थ सहित प्रयुक्त होता है, भाव भी यही था, अच्छी व्याख्या की आपने*
👌👌👌👌
[7/3, 19:43] Vd. Subhash Sharma Ji Delhi:
👍👍👍👍
[7/3, 19:53] Manu Vats Dr Patiala:
🙏🙏🙏Thanks for endorsing Sir
[7/3, 20:33] Dr Deepak Saxena, Kurukshetra:
👌🙏🙏🙏
[7/3, 20:34] Dr Giriraj Sharma:
Suprarenal Gland
(Pheochromocytoma )
Hyperglycemia
Metabolic disorder
Polyuria
Glucosuria
Sweating
Weight Loss
[7/3, 20:41] Dr Giriraj Sharma:
आयुर्वेद आचार्य गण सच मे बडे बुद्धिबल ,तपबल , ज्ञानबलवान थे उनको समझना ,,,,,,,,
Pheochromocytoma
Pheochromocytoma (PCC) is a neuroendocrine tumor of the medulla of the adrenal glands (originating in the chromaffin cells), or extra-adrenal chromaffin tissue that failed to involute after birth,[1] that secretes high amounts of catecholamines, mostly norepinephrine, plus epinephrine to a lesser extent.[2] Extra-adrenal paragangliomas (often described as extra-adrenal pheochromocytomas) are closely related, though less common, tumors that originate in the ganglia of the sympathetic nervous system and are named based upon the primary anatomical site of origin. The term is from Greek phaios "dark", chroma "color", kytos "cell", -oma "tumor".
PheochromocytomaSynonymsPhaeochromocytomaHigh magnification micrograph of a pheochromocytoma, showing the nested arrangement of cells (Zellballen) and stippled chromatin. H&E stain.SpecialtyOncology
Signs and symptomsEdit
The signs and symptoms of a pheochromocytoma are those of sympathetic nervous system hyperactivity,[3] including:
Skin sensationsFlank painElevated heart rateElevated blood pressure, including paroxysmal (sporadic, episodic) high blood pressure, which sometimes can be more difficult to detect; another clue to the presence of pheochromocytoma is orthostatic hypotension (a fall in systolic blood pressure greater than 20 mmHg or a fall in diastolic blood pressure greater than 10 mmHg upon standing)PalpitationsAnxiety often resembling that of a panic attackDiaphoresis (excessive sweating)Headaches – most common symptomPallorWeight lossLocalized amyloid deposits found microscopicallyElevated blood glucose level (due primarily to catecholamine stimulation of lipolysis(breakdown of stored fat) leading to high levels of free fatty acids and the subsequent inhibition of glucose uptake by muscle cells. Further, stimulation of beta-adrenergic receptors leads to glycogenolysis and gluconeogenesis and thus elevation of blood glucose levels).
A pheochromocytoma can also cause resistant arterial hypertension. A pheochromocytoma can be fatal if it causes a hypertensive emergency, that is, severely high blood pressure that impairs one or more organ systems (formerly called "malignant hypertension"). This hypertension is not well controlled with standard blood pressure medications.
Not all patients experience all of the signs and symptoms listed. The most common presentation is headache, excessive sweating, and increased heart rate, with the attack subsiding in less than one hour.
[7/3, 21:28] Vd. Subhash Sharma Ji Delhi:
*इस प्रकार के लक्षण कई रोगियों में मिलते हैं*
👍👍👍
[7/3, 21:30] Vd. Subhash Sharma Ji Delhi:
*ज्ञान का प्रवाह बनाये रखें, ये सब रोगियों की आयुर्वेदानुसार सम्प्राप्ति और विघटन में सहायक है।*
🙏🙏🙏
[7/3, 21:30] Vd. Subhash Sharma Ji Delhi:
*ज्यादातर ही मिलते हैं*
[7/3, 21:38] Ashutosh Pandya Dr MO:
In the book there's no conclusive statement.
[7/3, 23:29] pawan madan Dr:
*PRAMEHA as one of the Vyaadhi of Mutravaha srotas . There is dushti of Mutravaha srotas anatomically or physiologically as a result of which various Dushyas gets involved and we see different types of Prameha*. *THE MEANING OF PRAMEHA*
*TATRAVILPRABHUTMUTRALAKSHANAH SARVA EVA PRAMEHA - (SUSHRUTA, NIDAN 6/6)*
*SAMANYAM LAKSHANAM TESHAM PRABHUTAVILMUTRATA DOSHADUSHYAVISHESHEPI TATSAMYOG VISHESHATAH, MUTRAVARNADIBHEDEN MEDO MEHESHU KALPATE. - (ASHTANGHRIDAYA NIDAN 10/7)*
1. PRAMEHA is the Sanskrit word formed from the verb root MIH SECHANE OR MIGH. It means to void or pass urine, make water upon, to cause to make water.
2. Increase in amount (PRABHOOTA MOOTRA) and turbidity of urine (AAVILA MOOTRA) are the characteristic symptoms of PRAMEHA. INVOLVEMENT OF MUTRAVAHASROTAS / CLEARANCE OF THR WORD BASTI –
तस्य चैवम्प्रवृत्तस्यापरिपक्वा एव वातपित्तश्लेष्माणो यदा मेदसा सहैकत्वमुपेत्य मूत्रवाहिस्रोतांस्यनुसृत्याधो गत्वा बस्तेर्मुखमाश्रित्य निर्भिद्यन्ते तदा प्रमेहाञ्जनयन्ति ||४||- SUSHRUT NIDAANA - here the DOSHAS establish the relation with MEDAS which is the the DOOSHYA here which reaches to the BASTI and cause the DOOSHANA of the BASTI ------- if the DOOSHANA of BASTI wouldnt have OCCURED then there was no possibility of manifestation of disease. And also PRAMEHA has many DUSHYAS not the only medas........Medas is only one type ---------- *DOOSHYA IN PRAMEHA* -
MEDAS in excess (BAHU) and with liquidity (ABADDHA AGHANA / lost consistency / unformed / devoid of unctuousness)
MAAMSA (PISHITA) - in abundance (BAHU) and with liquidity (ABADDHA AGHANA / devoid of density, firmness)
VASAA (S`HUDDHA MAAMSA SNEHA) - in abundance (BAHU) and with liquidity /density (ABADDHA AGHANA)
MAJJAA - in abundance (BAHU) and with liquidity (ABADDHA AGHANA) / devoid of unctuousness and granular structure
SHAREERAJA KLEDA (AMBU) EXCESS KLEDA
SHUKRA in excess (BAHU) / devoid of density, unctuousness, heaviness,
S`HON`IT A (ASRA) - in excess (BAHU) / increased fluidity
LASEEKAA (MAAMSA TVAG ANTARE UDAKABHAAGAH) - in abundance (BAHU)
RASA (WHICH IS LIKE OJA) - IN EXCESS (BAHU)
OJA
---C.Chi.6/8
*Another point to understand that it is a vyadhi of Mutravaha Srotas is as follows -----* *SAAMAANYA SAMPRAAPTI* –
मेदश्च मांसं च शरीरजं च क्लेदं कफो बस्तिगतं प्रदूष्य|
करोति मेहान् समुदीर्णमुष्णैस्तानेव पित्तं परिदूष्य चापि||५||
क्षीणेषु दोषेष्व*वकृष्य बस्तौ* धातून् प्रमेहाननिलः करोति|
दोषो हि *बस्तिं समुपेत्य मूत्रं सन्दूष्य* मेहाञ्जनयेद्यथास्वम्||६|| - CHARAKA CHIKITSAA 6/5-6
KAPHA aggravates due to its causative factors, like AASYAA etc.
KAPHA vitiates MEDAS, MAAMSA AND KLEDA (BODY FLUID) (BASTIGATA KLEDA) WHICH ARE *LOCATED IN BASTI.*
This is the basic cause of MEHA. (KAPHAJA MEHA)
Similarly, PITTA aggravated due to hot things vitiates MEDAS, MAAMSA, KLEDA *situated in the BASTI* causes MEHA. (PITTAJA MEHA)
When other two DOSHA (PITTA AND KAPHA) are relatively diminished, the aggravated VAAYU takes away the DHAATU (MAJJA, OJA AND LASEEKAA - CHAKRAPAANI C.CHI.6/6) TO BASTI (urinary bladder) causing MEHA (VAATAJA MEHA)
I want to emphasize the highlighted points and yes the treatment of Dooshita Medas is the upashya here because in most of the types of pramehas KLEDA is the culprit DOOSHYA and the treatment of Medas or medovaha srotodushti gives favourable results. NEED MORE GUIDANCE FROM THE GURUJANAS🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
[7/3, 23:32] Dr Deepak Saxena, Kurukshetra:
सजीवनी वटी की मात्रा है जो रोगानुसार है रोग के बल लक्षण दोष को देखते हुए रोगी को दी जाती है । इस प्रकार 18- 20 गोली दी जाती है ।fixed dose combination is not a rule in ayurveda as is in allopathy on wt basis .
[7/3, 23:32] Dr Deepak Saxena, Kurukshetra:
Sanjeevani vati is given in properly hydrated pt only. Great caution is used in a pt whose renal function is compromised.
[7/3, 23:50] Dr Surendra A Soni:
Great discussion !!
Sorry I couldn't participate.
😑😌🙏🙏
[7/4, 00:32] Anita Bhirud: 👏🏻👏🏻👏🏻
[7/4, 00:50] Vd. Subhash Sharma Ji Delhi:
*प्रमेह में दोनो स्रोतस में दुष्टि होती है, मेदोवाही और मूत्रवाही, पर दोनो अलग है। *
*मेदोवाही स्रोतोदुष्टि का कारण * *अव्यायामाद् .... वारूण्याश्चातिसेवनात्। च वि 5/15 अर्थात अव्यायाम दिवास्वप्न मेदोवर्धक पदार्थ और अति मदिरापान।*
*मूत्रवाही स्रोतो दुष्टि कारण - मूत्रितोदक ... क्षीणस्याभिक्षतस्य च। अर्थात मूत्रवेग धारण में जलपान एवं भक्ष्य पदार्थ सेवन, मूत्रवेग धारण धातु क्षीणता एवं क्षत।
च वि 5/20*
*प्रमेह के हेतु और मेदोवाही स्रोतस के हेतु लगभग समान होने से वहां निश्चित ही मेदोवाही स्रोतस दूषित होंगे और मेदोरोगियों में प्राय: प्रमेह हो जाता है।*
*मूत्रवाही स्रोतोदुष्टि के कारण और प्रमेह के हेतु बिल्कुल अलग है।*
*स्रोतांसि स्रोतांस्येव.... अर्थात दूषित स्रोत दूसरे स्रोतों को और दूषित धातु दूसरी धातुओं को दूषित कर देती है।
च सू 5/9*
*अत: प्रमेह में मूत्रवाही स्रोतो की दुष्टि मेदोवाही के कारण ही प्रतीत होती है तथा मूत्र विकृति को मूत्र दोष कहा जा सकता है।*
*रोग की अभिव्यक्ति और अधिष्ठान का स्थान होता है तो उपरोक्त तथ्यों से प्रमेह अधिष्ठान मेदवाही और अभिव्यक्ति केन्द्र मूत्रवाही स्रोतस मान सकते हैं।*
*बस्ति के रोगों मे प्रमेह को नही लिया गया*
*मेदोवाही स्रोतोदुष्टि और प्रमेह की चिकित्सा में समानता मिलती है।*
*अनेक रोगों मे मूत्रविकार हो जाते हैं, पीत मूत्र रक्त वर्ण मूत्र पर उन्हे हम मूत्रवाही स्रोतो गत प्रमेह नही मान सकते*
🙏🙏🙏🙏🙏🙏
[7/4, 06:53] pawan madan Dr:
प्रणाम सर।
*आपका कहना बिल्कुल उचित है।*
*Prameha is an umbrella term under which many different diseases can be included and surely in many types of prameha there is Dushti of both Medovaha and Mutravaha srotas.*
Prameh in Practice can be des ribed as ..
*...Poorvaroop sahita prameha*
This is characterized by significant morbidity of Medas and leading to poorvaroop sahit prameha. This samprapti leads to metabolic disorders and diabetic mellitus related disorders.
*....Poorvaroop rahit prameha*
This is characterized by no or insignificant morbidity of Medas leading to APOORVAROOPA PRAMEHA and this has comparatively better prognosis. This samprapti may indicate toaards non metabolic renal pathologies leading to prameha.
*In Poorvarooparahit prameh the following samprapti works..*
*शरीरक्लेदं पुनर्दूशयं मुतृत्वेना परिनमयती मुतृवहानां च स्रोतसां वन्क्षनं बस्ती पृभ्वानां मेदा क्लेद उपहितानी गुरुनी मुखानी आसाद्या पृतिरुध्यते तत पृमेहा तेषां स्थैरयं साध्यतां वा जनयती पृकृति विकृति भूतत्वात।*
चरक निदां 4/8
*As per this there occurs sjarir kleda doosham which then involves the medas, ambu and maans dhaatus of the body and the afflicting the mutravaha srotas.......thus manifesting few kinds of prameha which can be suitably corrected by doing mutravah srotodushti chikitsa.*
*Some other inputs can be taken from Charak nidaan 4/36-44 where it is indicated that there is acute dushti of Vaata dosha which then afflicts various dhatus of the body and carrying the metabolites of thes dushta dhaatus to the urinary system and affling basti there manifesting as prameha. This then leads to Madhumeha.*
In practice we see....
...a kind of pretienuria type Prameha..nephrotic syndrome
...Nephritic syndrome
...auto immune manifestations of SLE in kidney causing prameha
....and other similar afflictions
*And in such cases we even dont find the saamaanya hetus of prameh as mentioned.*
In these we may not find the medovaha sroto dushti.
*aapne bilkul uchit bataaya ke prameha me dono srotaso ki dushti apekshit hai*
Please guide and correct whereever this understanding is wrong. 🙏🏻
[7/4, 07:36] Dr. D C Katoch sir:
वस्तुतः प्रमेह urinary disorder (मूत्र रोग) नहीं है, metabolic disorder (धात्वग्नि विकृतिजन्य रोग) है जिसमें मूत्र अन्तिम दूष्य है और मूत्रदुष्टिलक्षण के रूप में अभिव्यक्त होता है।
[7/4, 07:37] pawan madan Dr:
*On the other side we can consider the Prameha as multisrotas dushti janya vyaadhi.*
LETS CONSIDER THIS ..
CHARAK CHIKTSA 6/78-81
1
*PRAAGA ITI BHUSTAVAATA*
*Shleshama...should be in excess for the manifestation of Prameha*
2
*Dooshita and prakuoita Shleshama spreades to all the body due to its hetus*
3
*While spreading....Shleshma first afflicts Medodhatu as the qualities of the Medas are similar to shleshma...SAMAAM GUNA BHUSTWAATA*
4
*The spread of Shleshma is enhanced by ABHADHATAVA and BAHUTVA qualities of Medas at this time*.
5
*This Dooshit Shleshama + Medas then gets mixed up with the body fluids i.e. Kleda and Maansa* *dhatu......increasing them substantially with qualities of ABHATAVAMA and BAHUTVAM*.
6
*FURTHER these dooshit body fluids gets to the urinary system affecting this physiilogically or anatomically.*
*This then manifests into various kinds of the pramehas*
🙏🏻🙏🏻.
[7/4, 07:38] pawan madan Dr:
Ji sir.
🙏🏻💐🙏🏻
Pranaam....🙏🏻
[7/4, 08:10] Vd. Subhash Sharma Ji Delhi:
🙏🙏🙏🙏
*जी सर, यही कहना उद्देश्य था क्योंकि जब रोगी की चिकित्सा करने के लिये जब सम्प्राप्ति बनाते हैं तो रस रक्त मांस मेद मज्जा शुक्र धातुएं और ओज, अम्बु वसा लसीका, साम धातुएं और धात्वाग्नियां ही प्राप्त होती हैं।*
[7/4, 08:18] pawan madan Dr:
🙏🙏🙏
*ji sir. Upar 7.37 post me mere kahne kaa taatparya bhi yahi hai.*
[7/4, 08:18] Vd. Subhash Sharma Ji Delhi:
*अतिप्रवृत्तिजन्य - 20 प्रमेह*
*अप्रवृत्तिजन्य - * 👇🏿
*मूत्राघात - इसमें वात कुंडलिका वाताष्ठीला वात बस्ति मूत्रक्षयादि*
*मूत्रकृच्छ - वातादि चार, अश्मरी जन्य शुक्र जन्य और रक्त जन्य*
*बस्तिगत रोगों में प्रमेह को ना ग्रहण करना इन्हे अलग सिद्ध करता है*
🙏🙏🙏🙏
[7/4, 08:22] Vd. Subhash Sharma Ji Delhi:
*जी सर, बिल्कुल मान लिया 🙏🙏🙏, चर्चा का विषय यही था कि प्रमेह का मूल मूत्रवाही स्रोतों में लिया या मेदोवाही में ?*
[7/4, 08:23] pawan madan Dr:
*You are right sir*.
*My point is....not to emphasize that it should be kept in bastigata roga......but my point is that in Prameha there is involvement of only Medovaha srotas.....but different varieties of prameha can include* *different Srotas as Katoch sir said that it imcludes various metabolic dosorders.*
*For example..*
*Lalameha......which is due to proteinuria.......includes mutravaha sroto duahti......althogh it is not a bastigata roga.*
[7/4, 08:24] Vd. Subhash Sharma Ji Delhi:
*सूत्र रूप में कही आयुर्वेद पर जितनी च्रर्चा उतना बौद्धिक विकास*
🙏🙏🙏🙏
[7/4, 08:24] pawan madan Dr:
*ji sir......main usi dishaa me hi baat karne ki koshish kar rahaa tha..*🙏
[7/4, 08:25] pawan madan Dr:
Not only.......correction..
[7/4, 08:28] Dr Giriraj Sharma:
तानि तू प्राण अन्न उदक रस रक्त मांस मेद मूत्र पुरीष शुक्र आर्तव वहानि,,,, सु शा
इनके क्रम में आचार्य ने मेदोवह स्रोत के बाद शुक्रवह स्रोतः का वर्णन नही करके मूत्रवहः स्रोत का वर्णन किया है ।
क्रम को इस तरह से रखने में कोई विशेष कारण तो रहा होगा ।
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🌹🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
[7/4, 08:28] Vd. Subhash Sharma Ji Delhi:
*एसे ही शनै:मेह और पिष्ट मेह में अति प्रवृत्ति है ही नही फिर भी प्रमेह है 😀😀😀*
[7/4, 08:34] Vd. Subhash Sharma Ji Delhi:
*अवश्य रहा होगा, यह भी विचारणीय है ।*
*इसके अतिरिक्त कई बार एक रोग दूसरे रोग का निदान भी बन जाता है, practice में बहुत देखने को मिलता है जैसे ज्वर रक्त पित्त का कारण और ये शास्त्रोक्त है*
[7/4, 08:37] Prof. Ramakant Chulet Sir:
वो कारण क्या हो सकता है आचार्य ?
आपने इससे पूर्व भी इस बिन्दु पर विचार किया हुवा है ,यह निश्चित हो रहा है आपके वाक्यांश से !!!!
[7/4, 08:38] Vd. Subhash Sharma Ji Delhi:
*पांडु कामला के बाद कई रोगी इतना स्निग्ध आहार मधुर रस और आस्या सुखं स्वपन सुखं लेते हैं कि कामला पूर्णत: ठीक भी नही हुआ और आम एवं धात्वाग्नि मांद्य से प्रमेह रोग उत्पन्न हो जाता है*
[7/4, 08:39] pawan madan Dr:
Bilkul sir.
Main aise hi types ki taraf aapkaa dhyaan aakarshita karne ki koshish kar rahaa tha ...jis me main safal raha...😆🤪
[7/4, 08:40] Dr Rajender Bishnoi:
Mutra... colour ..viscosity frequency.. quantity....ye sabhi ya kii ek.... this is only a symptom.... prominent symptom which indicate the type of prameha
[7/4, 08:42] Vd. Subhash Sharma Ji Delhi:
*आप सफल ही हैं और जीवन में सफलता के उच्चतम शिखर पर पहुंचे हमारी यही प्रभु से प्रार्थना है*
🙏🙏🙏🌹🌹🌹🙏🙏🙏
[7/4, 08:42] pawan madan Dr:
Sir Can I know in which chapter of sharir?
[7/4, 08:43] pawan madan Dr:
🙏🙏🙏🙏💐💐💐💐
[7/4, 08:43] Dr Giriraj Sharma:
सु शा 9
[7/4, 08:49] pawan madan Dr:
Ji sir....🙏🙏
[7/4, 08:54] Dr Giriraj Sharma:
आचार्य चरक सुश्रुत ने अध्याय के जो क्रम रखे है उनमें भी एक दूसरे से ये निदानात्मक भाव रखते है मुझे ऐसा प्रतीत होता है यथा
आचार्य चरक ने चिकित्सा में प्रथमतः ज्वर का उल्लेख किया है जिसका मूल कारण अपरिग्रह (मोह) बताया है और मोह से पित्तदोष की प्रबलता वाला ज्वर
ज्वर के पित्त से समान गुण धर्मी रक्त दूषित हो जाता है तो दूसरा अध्याय रक्तपित्त रहा होगा ।
पित्त और रक्त के दूषित होने पर सर्वव्यापी वायु दूषित होने पर गुल्म
रक्त पित्त एवं वात के दूषित होने के बाद आचार्य ने कफज कृत प्रमेहरोग का वर्णन किया है ।
प्रमेह के उपरांत ,,,,
[7/4, 08:55] Vd. Subhash Sharma Ji Delhi:
🙏👌👌👌🙏🙏
[7/4, 09:02] Dr Giriraj Sharma:
प्रमेह में तीनों दोष एवं विषेशकर दुष्य ज्यादा प्रभावित होते है तो कुष्ठ
कुष्ठ से राजयक्ष्मा जिसमें दोषो, दुष्य के साथ मन भी प्रभावित होता है और मानसिक विकृति लक्षण दृश्य होते है यथा भोजन में केश, का दिखना, अदृश्य वस्तु को देखना जैसे पूर्वरूप
राजयक्ष्मा में मन के दूषित होने पर मानसिक रोग उन्माद एवं अपस्मार का वर्णन
मन दुष्टि से प्रज्ञा अपराध जिससे हित अहित का ज्ञान नही होता तो गिरने से उरक्षत का वर्णन ,,,,,
फिर उदर आदि रोगों का
ऐसा मुझे लगा,,,
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🌹🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
[7/4, 09:11] pawan madan Dr:
Aapaka kahana sarvatha sahi hai..
Aur
Taani tu praanaadi ...ke kram me aapkaa kyaa vichaar hai?
[7/4, 09:45] Vd. Subhash Sharma Ji Delhi:
*रोगों के क्रम में क्या कारण है ? इस विषय में जामनगर में कई दिन चर्चा एवं तर्क वितर्क चले थे और इस क्रम को सही माना गया था, आपकी दिशा भी उसी तरफ है, बाकी memory भी recall होगी एवं अतिरिक्त चिंतन से हम इस विषय को और अधिक स्पष्ट रूप दे सकते है।*
🙏🙏🙏🙏
[7/4, 10:52] Manu Vats Dr Patiala:
This one is the Most appropriate analysis Sirji👏👍
[7/4, 11:32] Dr Giriraj Sharma:
आचार्य सादरनमन !
तानि तु प्राण अन्न उदक
आचार्य सुश्रुत ने यह क्रम रखा है परंतु आचार्य चरक ने प्राण उदक अन्न यह क्रम रखा है ।
आचार्य सुश्रुत ने सु शा 4
गर्भ व्याकरण शारीरम में इनका वर्णन मिलता है व्याकरण शब्द से
व्याकरणं विवरण इति
The set of rules and governing the natural sequential process of growth and development of embryo .
इसमे इन्होंने सबसे पहले प्राण वर्णित किया है जो अन्न एवं उदक से प्रत्यागमित होते है गर्भ में और यह प्राण या जीवनीय शक्ति अन्न एव जल पर ही निर्भर है ।
आचार्य ने प्राण के उपरांत
त्वचा का वर्णन किया है जो रस प्रधान्य है फिर कला का और अंग प्रत्यंग का निर्माण बताया है ।
तानि प्राण अन्न उदक उसके लिए प्रयुक्त हुआ है ,,,
प्राण अन्न उदक रस रक्त मांस मेद मूत्र पुरीष
अंतिम शुक्र आर्तव का उल्लेख
शुक्र को विश्वचर रूपम भी कहा है ,,,,
प्राण से प्रारंभ होकर स्रोतः प्राण (शुक्र) तक की यह जीवनीय यात्रा अन्न उदक के प्रभाव से स्वस्थ अस्वस्थ, हित अहित सुखी असुखत्व को प्राप्त होती है ।
स्रोतःका समुदाय ही शरीर है
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🌹🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
[7/4, 11:43] Dr Giriraj Sharma:
यह विषय आध्यात्मिक एव दार्शनिक समझ रखने वाले आचार्य अगर इस पर चर्चा करेंगे तो निश्चित कुछ ज्ञान प्राप्ति होगी ।
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🌹🙏🏻🙏🏻🙏🏻
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Above discussion held on 'Kaysampraday"(Discussion) a Famous WhatsApp-discussion-group of well known Vaidyas from all over the India.
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Compiled & Uploaded by
Vd. Rituraj Verma
B. A. M. S.
ShrDadaji Ayurveda & Panchakarma Center,
Khandawa, M.P., India.
Mobile No.:-
+91 9669793990,
+91 9617617746
Edited by
Prof. Surendra A. Soni
M.D., PhD (KC)
Head
P.G. DEPT. OF KAYACHIKITSA
Govt. Akhandanand Ayurveda College
Ahmedabad, GUJARAT, India.
Email: surendraasoni@gmail.com
Mobile No. +91 9408441150
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