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Case presentation: Jeern Raktatisar/pravahika by Vaidya Pratyush Sharma

12/27, 11:49 PM] Dr.Pratyush Sharma: 

*Case presentation*

मैं वैद्य प्रत्यूष शर्मा, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से  एम.डी. कायचिकित्सा २०२१ से कर केवल एक साल से प्रैक्टिस कर रहा हूँ। कृपया गलतियों पर टोकें ज़रूर।

 एक रोगी रक्तयुक्त मलप्रवृत्ति की हिस्ट्री के साथ लेकिन उस समय विगत 5 दिनों से मल प्रवृत्ति ना होने की समस्या लेकर आया था। तात्कालिक तौर पर मैंने परीक्षण कर दोषानुसार अविपत्तिकर चूर्ण व ईसबगोल खाने को दिया।

3 दिन बाद वह रोगी मलप्रवृत्ति से संतुष्ट होकर अपनी मुख्य समस्या, ढेर सारी दवाइयों, जांच व  एक गैस्ट्रोलॉजिस्ट के 12-15 हज़ार रुपये प्रति माह की दवाइयों से त्रस्त हूँ ऐसा बताते हुयेआया।   
 रोगी के पास अल्सरेटिव कोलाइटिस की डाइग्नोसिस व कोलोनोस्कोपी में अल्सर्स की उपस्थिति की रिपोर्ट थी; उसने मुझसे इस बीमारी का इलाज करने को कहा। हीमोग्लोबिन 8ग्राम/डेसीलीटर था।
रोग के अनुसार तो अतिसार जैसे लक्षण मिलने थी लेकिन  वह विबंध जैसे लक्षणों के साथ आया था (कारण ऐलोपैथिक दवाइयाँ थी)

A male of 45 years of age with Chief complaints of- Non-passage of stool or passage of hard stool. (Rest everything Almost normal now with modern medicines.) (वात स्थान में दुष्टि)

-H/O- Passage of Blood mixed stool 5-10 times a day since 2 years, which occasionally subsides by itself. (रक्त व मल की अतिप्रवृत्ति- अतिसरण (प्रवाहण अनुपस्थित)
-No other comorbidities or no any significant medical history.

-On examination & interrogation following important points I could gather: 

#Appetite reduced (अग्निमांद्य) (साथ ही आम के अन्य लक्षण भी थे जैसे- साम जिह्वा, बलभ्रंश गौरव)

#Mild Gradual loss of weight (धातु क्षय के लक्षण)

#paleness of skin (पाण्डुत्व)
Rough & dry Skin (रौक्ष्यं-त्वक्स्फोटनं-- पाण्डु पूर्वरूप)

#Anxious but depressed behavior

 थोड़ा और समझने पर मुझे पाण्डु की सम्प्राप्ति से कुछ कुछ शब्द याद आये-(आगे कोष्ठक मे इंगित-)

[दोषाः पित्तप्रधानास्तु] [यस्य कुप्यन्ति धातुषु] | शैथिल्यं तस्य धातूनां गौरवं चोपजायते || [ततो वर्णबल-स्नेहा ये चान्येऽप्योजसो गुणाः | व्रजन्ति क्षयमत्यर्थं दोषदूष्यप्रदूषणात् ||[सोऽल्परक्तोऽल्पमेदस्को] [निःसारःशिथिलेन्द्रियः] 
 वैवर्ण्यं भजते…

प्रत्यक्ष प्रमाण स्वरूप कोलोनोस्कोपी को आयुर्वेद की दृष्टि से देखने  पर पक्वाशय (वातस्थान/पुरीषधरा) में व्रण जिससे रक्तस्राव हो रहा है (पित्त की निश्चित उपस्थिति के कारण), ऐसा भी समझ आया ।

सम्प्राप्ति घटक -

दोष- पित्त प्रधान 
(रक्त की दुष्टि) (व्रण व पाण्डु की सम्प्राप्ति)
दूष्य- रस, रक्त, (क्षय), पुरीष, ओज (क्षय)
अग्नि- जाठराग्नि, (मंद) 
अग्निदुष्टि- मंदाग्नि
स्रोतस- रक्तवह, पुरीषवह
स्रोतोदुष्टि- अतिप्रवृत्ति, बाद मे संग
उद्भव स्थान- पक्वाशय
स्वभाव- चिरकारी
साध्यासाध्यता- कृच्छ्र्साध्य

चिकित्सा के लिये जो मुझे उपाय समझ मे आये- 

1. पित्तशमन, व्रणरोपण जिससे कि रक्त स्राव रुके। 
2. ग्राही द्रव्यों का प्रयोग तब उपयुक्त नहीं लगा। 
3. पाण्डु चिकित्सा 4. आमपाचन

चिकित्सा के लिये जो औषधि मैंने चुनींं-

1. मधुयष्टी चूर्ण- पित्तशमन, व्रणरोपण, ओजोवर्धक रसायन

2. प्रवाल पिष्टी व मुक्ता पिष्टी (कम मात्रा में)- पित्तशमन, रक्त पर भी कार्यकारी

3. ताप्यादि लौह- पांडु रोगाधिकार्। पित्तशामक, रजत आदि युक्त्। रसतंत्रसार के अनुसार यह आंत्र में व्रण  टूट-फूट पर कार्य कारी (Ulcerative colitis + anemia को ध्यान में रखते हुये) 

4. कहरवा पिष्टी- रक्तस्राव रोकने हेतु (यदि रक्तस्राव रुक जाये तो irritant के न होने से intestinal movement भी कम हो जाते हैं जिससे अतिसार लक्षण कम होता है)

ये योग लगभग लगातार ही चला,  एक एक करके कहरवा, मुक्ता व प्रवाल हटाते गये। प्रारम्भ मे कुछ तिक्त द्रव से आमपाचन फिर रूक्षता व वातवृद्धि को देखते हुये कुछ दिन पंचतिक्त घृत (व्रणरोपक। और आंत्र में व्रण को त्वक दोष की तरह भी देख सकते हैं ऐसा किसी वैद्य से सुना था)। ईसबगोल (शीतबीज) का भी प्र्योग किया- शीत, पिच्छिल गुण से युक्त; सम्यक मलप्रवृत्ति में भी सहायक।

1 महीने बाद हीमोग्लोबिन घट कर 7 हुआ लेकिन फिर अगले महीने मे occult Blood test negative आया  फिर  हीमोग्लोबिन बढ़ता रहा। modern medicines बंद करने की वजह से द्रवमल प्रवृत्ति बढने पर बीच बीच मे मुस्ता-अतिविषा युक्त कुटज घन वटी भी प्रयोग होता रहा। 

Patient was symptomatically stable in 3 months.  Occult Blood in stool was continued to be negative and Hemoglobin gradually increased to 11g/dl. After 5 Months patient repeated Colonoscopy which was normal.

[12/27, 11:59 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma: 

*दोष विपरीत, व्याधि विपरीत और उभयात्मक ... यहां ul. colitis में सर्वप्रथम व्याधिविपरीत चिकित्सा की जाती है, व्याधि विपरीत - व्याधि दोष-दूष्य की सम्मूर्छना से है, व्याधि प्रत्यनीक में दोषों की साम्यावस्था गुप्त रूप में अपने आप ही होती रहती है पर अगर चिकित्सा दोष प्रत्यनीक है तो व्याधि को वो पूर्ण ठीक नही कर रही क्योंकि व्याधि की चिकित्सा में दोषों के अतिरिक्त धातुओं को समावस्था में लाना, उनका सम्यक निर्माण एवं पोषण भी आवश्यक है। अगर सम्प्राप्ति में दोष दूष्य विकृति विषम समवेत है तो यह प्रक्रिया ठीक है।रस शास्त्र में वर्णित रसौषधियां एवं आशुकारी गुण युक्त आसव अरिष्ट व्याधि प्रत्यनीक चिकित्सा का उदाहरण है।*

*कुछ कार्य आप कर रहे हैं, रोगी को लाभ बहुत है पर वो कैसे  मिला और आपकी चिकित्सा का आधार क्या था ये आपको नही पता ? इसलिये अपने कार्य में सफल होने के बाद भी अपने ऊपर आपका विश्वास नही होता तो ऐसा समझ लीजिये कि जब भी रस योग और आसव-अरिष्ट आप रोगी को दे रहे हैं तो पहला जवाब आपको ये मिला कि चिकित्सा व्याधि प्रत्यनीक है, रोगी के परीक्षण में दोषों का निर्धारण आपने अपने पूर्ण  ज्ञान और अनुभव से किया है तो दोष प्रत्यनीक भी आपकी चिकित्सा है और दोनों ही विधियां उभय प्रत्यनीक कही जायेंगी।*

*व्याधि विपरीत चिकित्सा प्रत्यक्ष रूप से शारीर अव्यवों या स्रोतस पर प्रभाव डालती है इसका उदाहरण रसौषधि कर्पूर रस जो अहिफेन युक्त है, इसमें प्रयुक्त अहिफेन अपना सीधा प्रभाव पुरीष वाही स्रोतस पर डालती है। क्रूर कोष्ठ में इच्छाभेदी रस यह रस योग जयपाल के कारण सीधा प्रभाव पुरीषवाही स्रोतस पर डालता है।*

[12/28, 12:20 AM] Dr. Hemant Gupta: 

Dear Vaidyas Pratyushji, This was amazing case presentation specifically for learning purpose. I am glad throughout your presentation you kept hold on Ayurvedic approach to Samprapti and Samprapti vighatan. One of the best and yet simple presentation to expand and enrich Yukti-vyapashray chikitsa and save it from herb, formula or protocol based treatment.

 Thanks 🙏🙏

[12/28, 12:46 AM] Dr. Rahul Pathania: 

Great work sir !
But pls share what ahaar kalpanas or pathya did u advise along with??

[12/28, 1:00 AM] Dr Mansukh R Mangukiya Gujarat: 

Excellent the case presentation Vd. Pratyushji .
Thanks for sharing the case .💐💐💐

[12/28, 1:27 AM] Vaidya Ashok Rathod Oman: 

Very nice case management Vaidya Pratyush ji. Only one thing I would like to mention here that there is  significant difference between Paandu vyaadhi and Raktakshaya. You can count this case under Raktakshaya but not Paandu vyaadhi.

[12/28, 2:29 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma: 

*अभिवादन वैद्य प्रत्युष जी 👌👏👍 संभव हो सके तो इसकी reports भी भेजिये। इस प्रकार के case presentations काय चिकित्सा ब्लॉग पर upload कर दिये जाते हैं जिस से अन्य सभी को भी लाभ मिलता है ।*

[12/28, 7:12 AM] Dr. Kaustubh badave: 

Excellent case presentation 👏🏻👏🏻

[12/28, 7:14 AM] Vd. V. B. Pandey Basti(U. P. ): 

🙏बहुत सुंदर गुरूवर निदान और औषधीय चयन दोनो में बहुत सुंदर तालमेल बिठाया रोगी भी बधाई का पात्र है धैर्य और निष्ठा के लिए एक सुझाव दादीमाड घृत का योग रसायन के रूप में संभवतः और भी अधिक फल दायी होगा ।🙏

[12/28, 7:23 AM] Vd. Mohan Lal Jaiswal: 

ऊँ
सद्प्रयास जी
गुडूची स्वरस व दाडिमाद्य घृत का सतत प्रयोग पध्यादि व्यवस्थापूर्वक करे़ं।ंं

[12/28, 7:54 AM] Dr. Pawan Madan: 

Good mng.

Best use of madhutashti and tapyaadi loh...👌🏻👌🏻

Tikta rasaatmak Patolaadi kashya can also be useful in such cases.

Very good Dr Pratyush...☺️👍🏻

[12/28, 8:55 AM] Dr. Bhavesh R. Modh Kutch: 

आदरणीय गुरुवर्य श्री  सुभाषजी एवं  श्री प्रत्यूष शर्माजी  के दो केस सुबह सुबह हि पढे, 
मेरे पास भी एक ऐसा पर थोडा सा अनोखा  केस आया था 
एलोपथीक निदान सिवियर  सिग्मोइड  रीजन मे अल्सरेशन  का था कुछ GR 3, 
तीन  साल से  जब जरूरत पडी तब स्टीरोइडझ  थेरेपी  कीया हुआ था अब की बार स्टीरोइडझ  के इंजेक्शन  देने के बाद भी  स्टूल मे ब्लड  आना बंद नही हुआ था इसलिए  अंतिम शरण आयुर्वेद  की ढूँढते हूए मरीज आया था ।
मेरे पास आने से पहले दो पंचकर्म  आयुर्वेद  फिजिशीयन  के पास हो के आया था 
वहाँ समस्या  यह थी के बस्ति  देने के साथ तुरंत बस्तिनेत्र निकालने के साथ हि बस्ति वापस आ जाती थी 
मरीज की दलील व फरियाद थी की 500/- की दवाइ पांच सेकंड  अंदर नही रहेगी तो असर क्या करेगी। 

मरीज  की हाइट 6'.6", शरीर भार 68KG,  प्रमुख फरियाद सुबह मे तीन से पांच बार मलप्रवृत  के लिए जाना पडता था  व पंद्रह से बीस बुंद फ्रेंक ब्लड  गिरता था,  शेष दिन मे  कोइ तकलीफ  ना थी पेटदरद  या बार बार प्रवाहण  भी नही था  HB 14 के आसपास हि रहता था शरीर भार कम नही हुआ था भुख व पाचन संबंधित  कोइ फरियाद  ना थी । निर्व्यसनी  था । 
हिस्ट्री मे मिला की बंदा मोबाइल   पे पुरे दिन  आध्यात्मिक व भक्ति के संबंधित  कार्यक्रम सुनता रहता है ।
पूछने पे बताया की सिर्फ 10 लाख का कर्ज है विवाह के लिए  व दुसरे सामाजिक  खर्च के लिए  पर  मासिक  आय  50,000/-  के आसपास  है, इसलिए  कोइ अधिक चिंता नही है ।

फिर भी मुझे  लगा की थोडा सा तो स्ट्रेस  है हि तभी तो प्रभु भक्ति  हो रही है ।
मैंने  पहले अजमाया  हुआ भींडी +दुग्ध  की बस्ती का एक सप्ताह प्रयोग किया ( शाल्मली की पिच्छा बस्ति के अवेजी मे भींडी व शाल्मली  का वनस्पति  वर्ग एक ही है व बस्ती मे पिच्छिलता  भी एक समान होती है, शाल्मली पुष्प  या मोचरस  के वैकल्पिक व्यवस्था मे मेंने भींडी  चयन किया है )

परीणाम नही मिला। 

बाद मे 30 दिन के लिए  प्रति रात 20ml कोष्ण एरंडतेल सैंधव मिश्रित  की मात्रा बस्ति  दि। 
करनानी  फार्मा की ट्राइकर  टेब.  जिसमे आवला वचा अजवाइन जटामांसी सर्पगंधा  सौंफ  त्रिकटु हरितकी  अश्वगंधा  को  त्रिफला  जटांमासी  विजया-भंङ्गा  धतुर व अश्वगंधा  की भावना दे के वटी निर्माण  की है ।
उसे सुबह शाम  दो चम्मच  घृत के अनुपान से दिया 
साथ हि मे कुटज घन वटी 1 ग्राम सुबह शाम 

चिकित्सा के 15 दिन के बाद  मरीज को कुछ ज्यादा संतोष नही था, 
फिर दैवव्यापाश्रय चिकित्सा का सोचा,  एक  नागदेवता  के मंदिर मे गया वहां के पुजारी ने बताया के पितृदोष  है तुझे नारियल की बाधा लेनी पडेगी एक धागा कलाइ पे बाधा व कहा एक महीने के बाद आ जाना 
इसके बाद दो दीन मे मल मे खुन  आना बंद हो गया मरीज काफि श्रद्धा के साथ शेष 13 दिन बस्ति  व औषध को लिया आज करीब तीन महीना चिकित्सा बंद किए हुए  हुआ मरीज स्वस्थ है  बिमारी के सारे लक्षण विदा हो गए 
यहा एन्डोस्कोपी  के 8000/- होते है मरीज ने पहले तीनबार करवाई है अब करवाना  नही चाहता क्योंकी  तकलीफ नही है व श्रद्धा जो है उसे तोडना नही चाहता। 

पुरी केस के समरी  यही है के हिलिंग  फोर्स शरीर का खुद का ही होता है उसमे भी एक बार मन की श्रद्धा प्रगट हो जाए तो सामान्य से औषध भी मेजिक  दिखाते  है ।

[12/28, 9:07 AM] Dr. Ravi Kant Prajapati: 

🙏🙏💐

[12/28, 10:32 AM] Dr Mansukh R Mangukiya Gujarat: 

🙏 નમસ્કાર ડો ભાવેશભાઇ 
आपकी एक एक पोस्ट आयुर्वेद प्रेक्टिसनर को लाभान्वित करती है ।

[12/28, 11:17 AM] Dr.Pratyush Sharma: 

जी सर! इस पोस्ट के माध्यम से ही मुझे कायसम्प्रदाय के बारे में पता चला था।

जी और भी समझता हूँ पढ़ कर

 Thank you Subhash sir!

[12/28, 11:23 AM] Dr.Pratyush Sharma: 

I advised my patient to avoid अम्ल, कटु, ऊष्ण, तीक्ष्ण भोजन.

To use- पेठा, द्राक्षा, मूँग दाल खिचड़ी, लौकी नेनुआ आदि तिक्त मधुर द्रव्य।

Dr. Rahul !

[12/28, 11:40 AM] Dr.Pratyush Sharma: 

Thank you Ashok sir. Noted. 

I’ve assessed this as Pandu due to samprapti & lakshana; not due to anemia & raktakshaya.


[12/28, 11:40 AM] Dr.Pratyush Sharma:


Before treatment


[12/28, 11:40 AM] Dr.Pratyush Sharma:

After treatment


[12/28, 11:43 AM] Dr.Pratyush Sharma:

 जी सर दाड़िमादि घृत ध्यान में आया था लेकिन कभी प्रयोग नहीं किया था तो रुक गया। अगली बार किसी रोगी में अवश्य करूँगा।

Prof. Jaysawal Sir !

🙏

 Thank you sir! Will keep in mind.

[12/28, 12:24 PM] Vaidya Ashok Rathod Oman: 

All right Vaidya Pratyush ji, You are the best decision maker since you are the treating Vaidya. I'm a spectator, I just made my point which came into my mind. Thank you so much for the clarification. 🙏🏼😊

[12/28, 12:26 PM] Dr.Pratyush Sharma: 

Sir,
That too is an important thing to minimise the mistakes. Thanks again.

[12/28, 12:33 PM] Dr. Pawan Madan: 

👏🏻👏🏻👌🏻👌🏻👏🏻👏🏻👌🏻👌🏻

[12/28, 3:02 PM] Dr.Kaustubh badave: 

Kya is case me 
 *शतावरी घृत* का प्रयोग किया जा सकता है क्या  ?

 *रक्तं विट्सहितम पुर्वं पश्चाद यो अतिसार्यते शतावरीघृतं तस्य लेहार्थम उपकल्पयेत

 च.चि 19/97*

[12/28, 3:11 PM] Vd Chinmay phondekar: ✅👍🏼

[12/28, 3:16 PM] Vd Chinmay phondekar: 

Constipation happens while Ulcerative Colitis is in remission phase.
द्राक्षा-आरग्वध फाँट भी उपयुक्त होता है ऐसे अवस्था में |

[12/28, 3:59 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma: 

*बहुत ही अच्छा परिणाम 👌👍👏 इसी प्रकार आयुर्वेद गंभीर और असाध्य रोगों में अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करता है... आगे भी अपने रोगियों के case present करते रहे... आयुर्वेद को आप जैसी ऊर्जावान एवं युवा पीढ़ी की बहुत आवश्यकता है।*



Editorial note:

It is very natural and common in Ayurved experts to raise questions on treatinng physician when ever there is a kind of discussion or sambhasha, because of various components or elements or tools have been mentioned by our sages to understand the basic samprapti/pathogenesis  and initiate the Ayurveda management; that's why uniformity in the approach of various Vaidyas is not usually seen & difference in approach is there unless there is an exact modern diagnosis. It is absolately natural because we have multiple complex system to understand the disease like......
1. Dosha
2. Dhatu/Dushya
3. Srotas
4. Guna
5. Avayav
6. Aashay
7. Adhishthan 
8. Marma

and many more.

 Honourable Vaidyaraja Acharya Subhash Sharmaji uses most complex 'Guna' concept in diagnosis and management. Many of his posts on 'Guna-siddhantas' are available on this blog. This is our speciality not a kind of weakness.
It is upto the physician that what kind of the tool he uses to understand the disease and start the management. Nomenclature has been not given too much importance in Ayurveda by Acharyas because of great importance has been given to Tridosha, the basic components of livings.


विकारनामाकुशलो न जिह्रीयात् कदाचन ।
न हि सर्वविकाराणां नामतोऽस्ति ध्रुवा स्थितिः ॥४४॥
स एव कुपितो दोषः समुत्थानविशेषतः ।
स्था१नान्तरगतश्चैव जनयत्यामयान् बहून्  ॥४५॥
तस्माद्विकारप्रकृतीरधिष्ठानान्तराणि च ।
समुत्थानविशेषांश्च बुद्ध्वा कर्म समाचरेत् ॥४६॥
यो ह्येतत्त्रितयं ज्ञात्वा कर्माण्यारभते भिषक् ।
ज्ञानपूर्वं यथा२न्यायं स कर्मसु न मुह्यति ॥४७॥

Ch. Su.- 18

Many more posts are available on this blog on ulcerative colitis. Readers may click to links given below.

https://kayachikitsagau.blogspot.com/2016/11/management-of-raktaj-pravahika.html


https://kayachikitsagau.blogspot.com/2017/06/whatsapp-discussion-series-39-raktaja.html


https://kayachikitsagau.blogspot.com/2020/01/case-presentation-raktaja.html




      इति शुभम् !!

********************************************************************************************************************Above case presentation & follow-up discussion held in 'Kaysampraday (Discussion)' a Famous WhatsApp group  of  well known Vaidyas from all over the India. ********************************************************************************************************************









Presented by

वैद्य प्रत्यूष शर्मा
एम.डी. कायचिकित्सा
बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी
चन्द्रप्रकाश आयुर्वेद संस्थान
वाराणसी, भारत 
Mobile: +91 9696465436
pratyush.email@gmail.com



Compiled & Uploaded by

Vd. Rituraj Verma
B. A. M. S.
Shri Dadaji Ayurveda & Panchakarma Center,
Khandawa, M.P., India.
Mobile No.:-
 +91 9669793990,
+91 9617617746

Edited by

Dr. Surendra A. Soni
M.D., PhD (KC) 
Professor & Head
P. G. DEPT. OF KAYACHIKITSA
Govt. Akhandanand Ayurveda College
Ahmedabad, GUJARAT, India.
Email: surendraasoni@gmail.com


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Compiled  by Dr.Surendra A. Soni M.D.,PhD (KC) Associate Professor Dept. of Kaya-chikitsa Govt. Ayurveda College Vadodara Gujarat, India. Email: surendraasoni@gmail.com Mobile No. +91 9408441150

UNDERSTANDING THE DIFFERENTIATION OF RAKTAPITTA, AMLAPITTA & SHEETAPITTA

UNDERSTANDING OF RAKTAPITTA, AMLAPITTA  & SHEETAPITTA  AS PER  VARIOUS  CLASSICAL  ASPECTS MENTIONED  IN  AYURVEDA. Compiled  by Dr. Surendra A. Soni M.D.,PhD (KC) Associate Professor Head of the Department Dept. of Kaya-chikitsa Govt. Ayurveda College Vadodara Gujarat, India. Email: surendraasoni@gmail.com Mobile No. +91 9408441150

Case-presentation- Self-medication induced 'Urdhwaga-raktapitta'.

This is a c/o SELF MEDICATION INDUCED 'Urdhwaga Raktapitta'.  Patient had hyperlipidemia and he started to take the Ayurvedic herbs Ginger (Aardrak), Garlic (Rason) & Turmeric (Haridra) without expertise Ayurveda consultation. Patient got rid of hyperlipidemia but hemoptysis (Rakta-shtheevan) started that didn't respond to any modern drug. No abnormality has been detected in various laboratorical-investigations. Video recording on First visit in Govt. Ayu. Hospital, Pani-gate, Vadodara.   He was given treatment on line of  'Urdhwaga-rakta-pitta'.  On 5th day of treatment he was almost symptom free but consumed certain fast food and symptoms reoccurred but again in next five days he gets cured from hemoptysis (Rakta-shtheevan). Treatment given as per availability in OPD Dispensary at Govt. Ayurveda College hospital... 1.Sitopaladi Choorna-   6 gms SwarnmakshikBhasma-  125mg MuktashuktiBhasma-500mg   Giloy-sattv...

Case-presentation: 'रेवती ग्रहबाधा चिकित्सा' (Ayu. Paediatric Management with ancient rarely used 'Grah-badha' Diagnostic Methodology) by Vd. Rajanikant Patel

[2/25, 6:47 PM] Vd Rajnikant Patel, Surat:  रेवती ग्रह पीड़ित बालक की आयुर्वेदिक चिकित्सा:- यह बच्चा 1 साल की आयु वाला और 3 किलोग्राम वजन वाला आयुर्वेदिक सारवार लेने हेतु आया जब आया तब उसका हीमोग्लोबिन सिर्फ 3 था और परिवार गरीब होने के कारण कोई चिकित्सा कराने में असमर्थ था तो किसीने कहा कि आयुर्वेद सारवार चालू करो और हमारे पास आया । मेने रेवती ग्रह का निदान किया और ग्रह चिकित्सा शुरू की।(सुश्रुत संहिता) चिकित्सा :- अग्निमंथ, वरुण, परिभद्र, हरिद्रा, करंज इनका सम भाग चूर्ण(कश्यप संहिता) लेके रोज क्वाथ बनाके पूरे शरीर पर 30 मिनिट तक सुबह शाम सिंचन ओर सिंचन करने के पश्चात Ulundhu tailam (यह SDM सिद्धा कंपनी का तेल है जिसमे प्रमुख द्रव्य उडद का तेल है)से सर्व शरीर अभ्यंग कराया ओर अभ्यंग के पश्चात वचा,निम्ब पत्र, सरसो,बिल्ली की विष्टा ओर घोड़े के विष्टा(भैषज्य रत्नावली) से सर्व शरीर मे धूप 10-15मिनिट सुबज शाम। माता को स्तन्य शुद्धि करने की लिए त्रिफला, त्रिकटु, पिप्पली, पाठा, यस्टिमधु, वचा, जम्बू फल, देवदारु ओर सरसो इनका समभाग चूर्ण मधु के साथ सुबह शाम (कश्यप संहिता) 15 दिन की चिकित्सा के ...