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Case-presentation: Dadru-kushtha chikitsa by Vd. Rituraj Verma

Case-presentation- Treatment given- [10/10, 5:15 PM] Dr Isha Aneja:  Rasmanikya kis company...... [10/10, 5:15 PM] Dr Ankur Sharma, Delhi:  Bahut shandaar Atiuttam 👍👌👌🙏🙏 [10/10, 5:16 PM] Dr. Rituraj Verma: 🙏🙏🙏 [10/10, 5:17 PM] Dr. Roji DG: अति उत्तम🙏🏻 [10/10, 5:17 PM] Dr Shekhar Singh Rathoud:  Excellent 👌🏻👌🏻 what was diagnosis ? [10/10, 5:18 PM] Dr. Rituraj Verma:  रस माणिक्य धुतपपेश्वर का सरजी । [10/10, 5:19 PM] Dr Isha Aneja:  Thanku sir [10/10, 5:19 PM] Dr Ankur Sharma, Delhi:  It is chronic tinea  infection  Most probably relapsing  Well demarcated Annular skin lesions  Dadru  In moisture retaining Genital pelvic region [10/10, 5:20 PM] Vd Raghuram Bhatta, Banguluru:  Great job sir .. congratulations💐💐👏👏🙏 [10/10, 5:21 PM] Dr Ankur Sharma, Delhi:  This is most important query .. I also want to know ...

Case-presentation: Tiryak-raktapitta (ITP) by Vd. Arun N. Rathi

*Case Presentation :* *Chronic Idiopathic Thrombo- cytopenia (Ch-ITP) and its Ayurvedic Management :* *रुग्ण लिंग : पु.   वय : 36 वर्ष.* *ऊंचाई : 5.7 ft. वजन :  102.3 kg.*  *व्यवसाय : प्राध्यापक.* *व्याधि काल : 4 वर्ष. जाति : मुस्लिम* *रुग्ण इतिहास : सप्टेंबर 2012 में अचानक रुग्ण को संपूर्ण शरीर पर यत्र तत्र नील रक्तवर्ण के धब्बे दिखाई दिए, परीक्षण करने पर ज्ञात हुआ कि platelet count reduced to 3000 / cu mm. Dengue test was negative. Patient was hospitalized at Akola, stat dose of 40 mg. Omnacortil was given in evening platelet count was 7000 / cu mm. 2nd day patient was shifted to higher Centre for investigation at Nagpur. Patient was throughly investigated and diagnosed as suffering from ITP and was kept on 100 mg of Omnacortil for 15 days. Since last 4 years patient was given steroids on and off, in mean time patient gain 9 kg of weight and have renal dysfunction.*  *रोग विनिश्चय :  रक्तपित्त*  *दोष : त्रिदोष पित्तप्रधान* ...

Case-presentation: Medoja-granthi (Lipoma) by Vaidyaraja Subhash Sharma

[9/29, 1:40 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi:  *मेदोरोग पर MD में हमने थीसिस लिखी थी तो कई सिद्धान्त स्थापित किये थे जिसमें शरीर में होने वाली मेदोज ग्रन्थियों को स्थानिक मेदोरोग माना था और इनकी चिकित्सा में विभिन्न प्रयोग की संभावनायें बनाई थी जिसे हम अब अपनी practice में प्रयोग करते हैं तो आशातीत सफलता मिलती है।* *इस प्रकार की मेदोज ग्रन्थियों में चिकित्सक आरोग्य वर्धिनी और कांचनार गुग्गलु का प्रयोग करते तो हैं पर उन्हे अधिक सफलता नही मिलती। अगर आप भी इस प्रकार के रोगी लें तो उनकी चिकित्सा में क्षार का प्रयोग अवश्य करें, हमारे बहुत से रोगी स्वस्थ होने पर परिचितों से कहते हैं कि वैद्यराज जी ने तो औषधियों से ही हमारी surgery कर दी ।* *इस प्रकार की ग्रन्थियों को समाप्त करने के लिये उष्ण तीक्ष्ण लघु रूक्ष दहन छेदन भेदन कर्षण लेखन द्रव्यों की आवश्यकता होती है जो हमें क्षार में मिलते है और इसकी चिकित्सा का सूत्र हमें चरक संहिता से ही मिला था ...।* *तीक्ष्णोष्णो लघुरूक्ष्ष्च क्लेदी पक्ता विदारणा:, दाहनो दीपश्च्छेता सर्व: क्षारोऽग्निसन्निभ :।  च सू ।* *कांचनार य...