[7/29, 11:36 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
Case-presentation-
स्तन ग्रन्थि, षडक्रिया काल और BIRADS 3 के अनुसार आयुर्वेदीय चिकित्सा व्यवस्था.
vaidyaraja subhash sharma, MD (kayachikitsa, jamnagar - 1985)
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*USG BREAST*
5-8-24
right breast
infective lesions
10/7 mm & 19/5.4 mm
BIRADS 3
left breast
few lymphnodes
largest 16/7 mm & 15/6 mm
BIRADS 3
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21-7-25
right breadt
no infection
echoic lesion 4.5/3.6 mm
BIRADS 2/3
left breast
largest lymph node 5.8 mm
BIRADS 2
[7/29, 11:36 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*रूग्णा 32 वर्षीया/ married/ housewife*
*पिछले लगभग 18 महीनों से स्तनों में ग्रन्थि जो गुरूता, कभी कभी दबाने पर शूल, कैंसर के भय से अनवस्थित चित्त, पिछले कुछ समय में स्थौल्य, आर्तव अब अनियमित आदि लक्षण।*
*पिछले अनेक वर्षों में स्तन ग्रन्थि की रूग्णाओं में दोष- दूष्य, स्रोतस और उनकी दुष्टि परीक्षण के बाद भी बिना किसी risk लिये आधुनिक जांच भी अवश्य कराते आये हैं और इस प्रकार की अवस्थाओं में निदान और चिकित्सा के स्तर को षडक्रिया काल के स्तर पर स्थापित कर रखा है जिसे आधुनिक जांच BIRADS अर्थात breast imaging reporting and data system जो एक मानकीकृत प्रणाली है जिसका उपयोग मैमोग्राफी, अल्ट्रासाउंड और एमआरआई जैसी स्तन इमेजिंग रिपोर्टों का वर्गीकरण करने के लिए किया जाता है, को भी साथ ले कर चलते हैं।*
*कोई भी ग्रन्थि या अर्बुद और कभी कभी पित्ताश्य अश्मरी आदि कब कैंसर रूप धारण कर ले आजकल के आहार, विहार, प्रदूषण और जीवन शैली में इसके लिये जांच की आधुनिक तकनीक सहायक ही रहती है।*
*'वातादयो मांसमसृक् प्रदुष्टा: संदूष्य मेदश्च तथा सिराश्च, वृत्तोन्नतं विग्रथितं च शोथं कुर्वन्तयो ग्रन्थिरिति प्रदिष्टः'
मा नि 38/11
वात, पित्त और कफ स्वकारणों से प्रकुपित हो कर मांस, रक्त, मेद और सिराओं को दूषित कर गोल और उभरे हुये ग्रन्थि के समान शोथ को उत्पन्न कर देते हैं।*
*स्वकारणों से दोषों से दूषित शरीर के विभिन्न भागों में मांस और मेद युक्त शोथ युक्त ग्रन्थि संचय प्राय: सबसे ज़्यादा स्तन, उदर, फुफ्फुस, लसिका ग्रंथियों, नेत्र, मुखादि प्रदेश सहित शरीर में कहीं पर भी त्वचा में पाए जाते हैं।*
*सु नि अध्याय 11 में वात, पित्त, कफ, मेदो और सिराज ग्रन्थि 5 भेद बताये हैं और 'ग्रन्थिर्महामांसभव:' इस कथन से चरक संहिता में मांस ग्रन्थि का भी वर्णन है। अष्टांग संग्रह उत्तर तन्त्र अध्याय 34 में
'दोषासृंगमांसमेदोऽस्थिसिराव्रणभवा नव'
अर्थात वात पित्त कफ रक्त मांस मेद अस्थि सिरा और व्रण से नौ प्रकार की ग्रन्थियां बताई गई हैं।*
*ये जो भी विकार उत्पन्न हो रहे हैं इसके पीछे मूल कारण आमोत्पति है । ये आम दो प्रकार से शरीर में हो रहा है एक अपक्व अन्न रस जो जाठराग्नि की दुर्बलता से है और दूसरा आम युक्त अपक्वावस्था की रस धातु जो जाठराग्नि और धात्वाग्नि दोनों के गुणों की क्षीणता से है।*
*'संचय च प्रकोपं च प्रसरं स्थानसंश्रयम् व्यक्तिं भेदं च यो वेत्ति दोषाणां स भवेद्भिषक्'
सु सू 21/36
यह सुश्रुत संहिता का व्रण प्रश्न अध्याय है। इतने वर्षों के चिकित्सा काल में यह हमारा अनुभव है कि अनेक शारीरिक रोगों में शरीर में सूक्ष्म व्रण ही बाद में कैंसर के रूप में परिवर्तित होते है और षडक्रिया काल को व्रणप्रश्नाध्याय में देने का कुछ कारण आचार्य का अवश्य ही रहा होगा क्योंकि यह 6 अवस्थायें लक्षणों और परीक्षा के आधार पर रोग की गंभीरावस्था को अवश्य ही स्पष्ट करती है।*
*BIRADS स्तन में पाई जाने वाली असामान्यता की कैंसर होने की संभावना को दर्शाता है जिसकी श्रेणियां 0 से 6 तक होती हैं और इसका उपयोग हम षडक्रिया काल में कैसे करते है यह भी स्पष्ट करेंगे।*
*स्तन ग्रन्थियों में षड्क्रिया काल की छह अवस्थायें प्रायः इस प्रकार मिलती हैं...*
*1 संचय -*
*इस अवस्था में दोष विशेषकर कफ का अपने स्थान पर संचय होने लगता हैं लेकिन अभी तक किसी धातु को विकृत नहीं करता।*
*लक्षण - बहुत अल्प और अस्पष्ट से होते हैं। स्तन में गुरूता, कभी कभी मंद शूल या बेचैनी आनुभव होती है जो आर्तव काल चक्र से भी संबंधित होती है। सामान्य विकृति से जैसे अजीर्ण, उदर और ह्रदय-वक्ष प्रदेश में गुरूता एवं आलस्य।कभी कभी कुछ रूग्णायें ये कहती भी मिली हैं कि 'शरीर के अंदर कुछ ठीक सा नहीं है' यह अनेक रोगियों या रूग्णाओं में उनका अनुभव जन्य ज्ञान है और प्रायः सही भी मिलता है।इसीलिये रोगी के हर कथन को हमें ध्यानपूर्वक सुनना चाहिये।*
*BIRADS 1 में संचय अवस्था में USG कराने पर कुछ बहुत ही प्रारंभिक और सूक्ष्म परिवर्तन जो अभी तक imaging पर स्पष्ट रूप से दिखाई नहीं देते हैं।*
*2 प्रकोप -*
*इस दूसरी अवस्था में संचित कफ अब प्रकुपित होकर बढ़ने लगता हैं। कफ अपने स्थान से प्रसरित होने की कोशिश करता है।*
*लक्षण अधिक स्पष्ट होने लगते हैं लेकिन अभी भी स्थानिक होते हैं जैसे स्तन में गुरूता, पीड़ा,शोथ अथवा लघु ग्रन्थि का अनुभव होनी। इस अवस्था मे ग्रन्थि अभी भी लघु और मृदु होती है, ऊंगली और अंगूठे से पकड़ने पर सरलता से चल सकती है। कभी कभी पीड़ा या शूल अधिक नियमित और तीव्र हो जाता है। आध्मान या आनाह, विबंध, आलस्य जैसे सामान्य कफज लक्षणों की वृद्धि मिलती है।*
*यह USG कराने पर BIRADS 2 की प्रारंभिक अवस्था के लक्षण हैं जहां benign cyst या फाइब्रोएडीनोमा बनना शुरू हो गया है लेकिन अभी भी छोटा ही है।*
*3 प्रसर -*
*प्रकुपित दोष अपने मूल स्थान से फैलकर शरीर के अन्य भागों में जाने लगते हैं। कुपित कफ और आमविष स्रोतस में फैलना शुरू करते हैं।*
*दोषों के प्रसरण के कारण लक्षण शरीर के अन्य भागों में भी दिखाई देने लगते हैं। स्तन में ग्रन्थि अब बड़ी और अधिक स्पष्ट हो जाती है और थोड़ी कठोर। कभी शूल बढ़ जाता है और आसपास के क्षेत्रों में भी होने लगता है जैसे under arms में, अग्नि के मंद होने से पाचन संबंधी समस्यायें, शरीर में गुरूता, आलस्य और त्वचा में हल्का पीलापन या कंडू जैसे लक्षण भी मिलते हैं। निद्रा सामान्य नहीं रहती और मनोद्वेग जिसमें चिड़चिड़ाहट, हर action पर reaction या मानसिक तनाव की वृद्धि हो जाती है।*
[7/29, 11:36 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*यह काल BIRADS 2 की अवस्था को दर्शाता है कि ग्रन्थियों ने अब अपना मूर्त स्वरूप ले लिया है और स्थापित हो गई हैं।अब यहां ग्रन्थियां बड़ी और अधिक palpable जिन्हे अंगुलियों से अनुभव किया जा सकता है ऐसी हो गई हैं। कुछ BIRADS 3 की आरंभिक अवस्थायें भी यहाँ आ सकती हैं यदि ग्रन्थि बढ़ रही है लेकिन अभी भी benign प्रतीत होती है।*
*4 स्थान संश्रय -*
*प्रसरित दोष शरीर में 'खःवैगुण्य' पर अपना स्थान बना लेते हैं और वहां से रोग उत्पन्न करना शुरू करते हैं। इस अवस्था में ग्रन्थि या अर्बुद का वास्तविक गठन शुरू होता है।*
*लक्षण - रोग के स्पष्ट और स्थानीय लक्षण दिखाई देने लगते हैं। स्तन में एक विशिष्ट, निश्चित ग्रन्थि बन जाती है जो किंचित काठिन्य भाव युक्त कठोर और शूल के साथ भी होती है। nipple से स्राव, त्वचा में परिवर्तन जैसे नारंगी रंग की तरह या nipples का अंदर की ओर धंसना जैसे लक्षण भी दिखाई देते हैं, विशेषकर यदि यह अर्बुद की ओर बढ़ रहा हो। इस अवस्था में अग्निमांद्य और स्रोतोदुष्टि के स्पष्ट लक्षण मिलते हैं। जैसे लगातार अजीर्ण, विबंध और आम विष जन्य लक्षण।*
*यह काल BIRADS 2 की अधिक स्पष्ट और BIRADS 3 की विशिष्ट अवस्थाओं को दर्शाता है। इस चरण में, ग्रन्थि इमेजिंग पर स्पष्ट रूप से दिखाई देती है और उसकी विशेषताओं का मूल्यांकन किया जाता है। यदि ग्रन्थि में अनियमितता या तेजी से विकास दिखता है, तो यह अर्बुद की ओर संकेत करता है और इसीलिये हम आयुर्वेदीय निदान के साथ इसका उपयोग करते हैं।*
*5 व्यक्ति -*
*दोषों और दूष्यों की विकृति अब स्पष्ट रूप से प्रकट होती है और रोग अपने पूर्ण विकसित रूप में होता है।*
*स्तन में ग्रन्थि स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगती है या आसानी से स्पर्श द्वारा अनुभव की जा सकती है। ग्रन्थि बड़ी, कठोर और प्रायः पीड़ा युक्त होती है। निप्पल से रक्तस्राव, त्वचा में व्रण, बगल में lymph nodes का बढ़ना, हाथ में शोथ या कंधे का दर्द जैसे अधिक गंभीर लक्षण दिखाई देने लगते हैं। यदि यह अर्बुद है तो रोगी को वजन कम होना, क्षुधा का न लगना, थकान, और सामान्य दुर्बलता जैसे लक्षण भी अनुभव होत हैं।*
*BIRADS 3 की वह अवस्था जहां ग्रन्थि की प्रकृति अधिक संदिग्ध हो जाती है या BIRADS 4/5 जो कैंसर की उच्च संभावना की प्रारंभिक अवस्थायें है और इस चरण में बायोप्सी जैसी जांच की आवश्यकता होती है।*
*6 भेद -*
*रोग अपनी जटिल अवस्था में पहुंच जाता है, जहां दोषों ने स्थायी रूप से धातुओं को क्षतिग्रस्त कर दिया है और रोग कृच्छसाध्य या असाध्य भी हो जाता है।*
*रोग शरीर के अन्य अंगों में फैल जाता है जिसे मेटास्टेसिस मान सकते हैं, स्तन में ग्रन्थि बड़ी और व्रण युक्त हो जाती है। तीव्र शूल, शरीर में शिथिलता, अंगों की कार्य क्षमता बाधित होना और अन्य गंभीर उपद्रव दिखाई देते हैं। इस अवस्था में उपचार बहुत ही कठिन हो जाता है।*
*BIRADS 4/5 की यह अवस्थायें जहां कैंसर की पुष्टि हो जाती है और वह अन्य अंगों में फैल चुका होता है।*
*स्तन ग्रन्थि के हेतु -*
*जिस प्रकार से पैक्ड फूड और घर बैठे डिलीवरी से प्राप्त आहार का उपयोग हो रहा है जो दोषों को प्रकुपित करते हैं और शरीर में आम का संचय कर आम विष की उत्पत्ति कर रहें हैं, जिससे ग्रन्थि, अर्बुद और वो भी कैंसरजन्य जैसी स्थितियां उत्पन्न हो रही हैं।*
*अत्यधिक गुरु और अभिष्यंदी (रूकावट द्रव्य और ये कफ और आम को बढ़ाते हैं, जिससे स्रोतस में अवरोध उत्पन्न होता है यथा पनीर, दही (विशेषकर रात में या भोजन के साथ), भैंस का दूध, तिल, उड़द दाल, मैदा।*
*अत्यधिक अम्ल, लवण और कटु द्रव्य जो पित्त और रक्त को दूषित करते हैं, उदाहरण अत्यधिक खट्टे फल ज बिना पकाये हैं, सिरका, अचार, प्रोसेस्ड और अत्यधिक नमकीन खाद्य पदार्थ, लाल मिर्च का अत्यधिक सेवन।*
*विरुद्ध आहार में ऐसे खाद्य पदार्थों का संयोजन जो एक साथ नहीं खाने चाहिए, क्योंकि वे शरीर में विषाक्त पदार्थ पैदा करते हैं।*
*उदाहरण जैसा आजकल खूब चल रहा है अत्यधिक शीत और अति उष्ण द्रव्य, ये अग्नि को मंद करते हैं या अति तीव्र कर सकते हैं, जिससे पाचन संबंधी समस्याएं होती हैं जैसे फ्रिज का बहुत ठंडा पानी, आइसक्रीम, अत्यधिक गर्म और ताजा तला हुआ भोजन।*
*प्रदूषित या बासी भोजन जैसे कीटनाशकों से दूषित सब्जियां, फफूंदी लगे अनाज, लंबे समय से रखा हुआ या बासी भोजन।*
*कृत्रिम रंग और preservatives आधुनिक खाद्य पदार्थों में पाए जाने वाले रसायन यथा, प्रोसेस्ड फूड, पैकेज्ड स्नैक्स, डिब्बाबंद खाद्य पदार्थ।*
*गुरू और स्निग्ध व्यंजन जैसे पूड़ी, पराठे, समोसे, कचौरी, पिज्जा, बर्गर (विशेषकर जब मैदा और भारी पनीर से बने हों)।*
*अत्यधिक डेयरी उत्पाद जैसे अत्यधिक घी, पनीर, दही का सेवन जो आसानी से पचते नहीं।*
*अचार और चटनी जो अत्यधिक खट्टे, नमकीन और मसालेदार होने के कारण।*
*फास्ट फूड और प्रोसेस्ड फूड इनमें अक्सर खराब तेल, अत्यधिक नमक, चीनी और कृत्रिम योजक होते हैं।*
*बेकरी उत्पाद जैसे केक पेस्ट्री, बिस्कुट जिनमें मैदा, चीनी और अस्वस्थ वसा का अधिक उपयोग होता है।*
*जीवनशैली संबंधी कारण भी दोषों के प्रकोपण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।*
*अत्यधिक दिवास्वप्न (दिन में सोना) कफ और आम को बढ़ाता है, पाचकअग्नि को मंद करता है।*
*रात में देर तक जागना वात और पित्त को बढ़ाता है, शरीर की प्रकृति से लय को बाधित करता है।*
*अत्यधिक व्यायाम से वात बढ़ जाता है, जबकि व्यायाम की कमी से कफ और आम की वृद्धि होती है।*
*मल-मूत्र, छींक, प्यास, भूख के वेगों को रोकना।*
*मानसिक तनाव और भावनात्मक विषय जैसो क्रोध, चिंता, भय, शोक जैसे नकारात्मक विचार दोषों को कुपित करते हैं विशेषकर वात और पित्त को।*
*प्रदूषित वायु और जल प्रदूषण शरीर में विषाक्त पदार्थों की वृद्धि करता है।*
*नियमित दिनचर्या का अभाव जैसे भोजन, नींद और अन्य गतिविधियों के लिए कोई निश्चित समय न होना।*
*शराब और तंबाकू का सेवन,ये सीधे तौर पर शरीर विभिन्न धातुओं को दूषित करते हैं।*
*इसके अतिरिक्त आनुवंशिक हेतु, यदि परिवार में स्तन रोगों का इतिहास रहा है।*
*रसायनिक पदार्थों के संपर्क में रहना।*
*सम्प्राप्ति घटक -*
*दोष-वात- प्राण समान व्यान वात*
*पित्त- पाचक और रंजक*
*कफ- क्लेदक श्लेषक अवलंबक*
*दूष्य -*
*रस धातु - स्तन्य उपधातु का पोषण करने वाली पहली धातु है। रस की दुष्टि से द्रव का जमाव और ग्रन्थि का निर्माण।*
*रक्त धातु - शोथ और संक्रमण।*
*मांस धातु -ग्रन्थि का ठोस हो जाना।*
*मेद धातु - ग्रन्थियों प्रायः में मेद धातु की ही अधिकता होती है।*
*स्रोतस -*
*रसवाही स्रोतस - इसकी दुष्टि से पोषण की कमी या संग।*
*रक्तवाही स्रोतस - रक्त परिभ्रमण*
*मांसवाही स्रोतस - मांस धातु का पोषण।*
*मेदवाही स्रोतस - मेद धातु का पोषण।*
*स्तन्यवाही स्रोतस - विशेष रूप से स्तन से संबंधित है।*
*लसीकावाही स्रोतस - आधुनिक चिकित्सा के अनुसार लसीका प्रणाली आयुर्वेद में रस और रक्त से संबंधित है। इसकी दुष्टि से lymph nodes में शोथ या ग्रन्थियां हो जाती हैं।*
*स्रोतो दुष्टि -*
*संग - रसवाही, मांसवाही और मेदोवाही स्रोतस मे।*
*अग्नि -*
*जाठराग्नि - पाचक अग्नि जो मंद होने पर आम का निर्माण करती है और आम ही कई रोगों का मूल कारण है जिसमें ग्रन्थि रोग भी हैं।*
*धात्वग्निमांद्य*
*चिकित्सा सूत्र -*
*निदान परिवर्जन,
आम पाचन, स्रोतोशोधन, धातु पोषण, ग्रन्थि भेदन-विलयन, कफ-वात शमन, बल्य एवं सत्वाजय।*
*औषध प्रयोग -*
*लगभग 6 महीने की चिकित्सा अवधि में दी गई औषधियों की कार्मुकता इस प्रकार रही...*
*आरोग्यवर्धनी वटी- 1-1 gm दो बार*
*यह एक उत्कृष्ट रसायन और पाचक औषधि है,जठराग्नि को प्रबल करती है, आम का पाचन करती है और इसका यकृत व प्लीहा पर अच्छा कार्य है। यह पित्त और कफ को शांत करती है जिससे शरीर में संचित विषाक्त पदार्थों को निकालने में मदद मिलती है। स्तन ग्रंथि में यह आम और कफ के जमाव को कम करने में सहायक है।*
*कांचनार गुग्गुलु - 2-2 गोली दो बार*
*यह विशेष रूप से ग्रंथियों, अर्बुद और लिम्फ नोड्स के लिए एक प्रमुख औषध है। यह कफ और मेद को कम करती है, स्रोतोस को खोलती है और संग्रहित द्रव्य को घोलने में मदद करती है। यह वात कानअनुलोमन करती है और शरीर में अतिरिक्त वृद्धि को नियंत्रित करती है। स्तन ग्रंथि में इसका सीधा प्रभाव होता है।*
*नित्यानंद रस - 2-2 गोली दो बार*
*यह मुख्य रूप से वात और कफ रोगों में उपयोगी है विशेषकर ग्रंथि और अर्बुद में। इसमें पारद और गंधक होने से तीव्र चिकित्सीय प्रभाव दिखाते हैं। यह ग्रन्थि के आकार और शूल को कम करने एवं शोथ को नियंत्रित करने में सहायक है।*
*शरपुंखा चूर्ण - 5-5 gm चूर्ण फांट रूप मे*
*शरपुंखा यकृत प्लीहा वृद्धि और ग्रंथियों के लिए प्रसिद्ध है। यह रक्त शोधक, दीपन और पाचक है। यह आम और विषाक्त पदार्थों को कम करने में मदद करता है और लसीका प्रणाली पर इसका अति उत्तम प्रभाव है।*
*पंचनिम्ब क्वाथ - fine powder 3-3 gm क्वाथ बना कर दो बार खाली पेट*
*निम्ब अपनी रक्तशोधक, कफघ्न, पित्तशामक और रोगाणुरोधी गुणों के लिए जाना जाता है। पंचनिम्ब क्वाथ शरीर से विषाक्त पदार्थों को निकालने और संक्रमण को नियंत्रित करने में मदद करता है। यह रक्त और रस धातु को शुद्ध करने में सहायक है।*
*सुदर्शन घन वटी - 2-2 गोली दो बार*
*यह मुख्य रूप से ज्वर और संक्रमण के लिए उपयोग की जाती है लेकिन इसमें पाचन को सुधारने और आम को कम करने के गुण भी होते हैं।ग्रंथि में कोई संक्रामक घटक ना रहे इस हेतु हम इसका उपयोग काफी समय से करते आ रहे हैं।*
*उपरोक्त दी गई चिकित्सा ने बहुत सार्थक परिणाम दिये हैं जैसे ...*
*संक्रमण का समाप्त होना जिसमें infective lesions का no infection में बदलना एक महत्वपूर्ण सुधार है, जो पंचनिम्ब क्वाथ और सुदर्शन घन वटी जैसे रक्तशोधक और रोगाणुरोधी औषधियों की कार्मुकता को दर्शाता है।*
*ग्रन्थियों का आकार कम होना - राइट ब्रेस्ट में 10/7 मिमी और 19/5.4 मिमी की गांठों का 4.5/3.6 मिमी तक कम होना बहुत अच्छा संकेत है। यह कांचनार गुग्गुलु और नित्यानंद रस के ग्रंथि विलायक गुणों का परिणाम है।*
*लिम्फ नोड्स का आकार कम होना - लेफ्ट ब्रेस्ट में 16/7 मिमी और 15/6 मिमी के लिम्फ नोड्स का 5.8 मिमी तक कम होना भी आशाजनक परिणाम है, जो शरपुंखा चूर्ण और कांचनार गुग्गुलु के प्रभाव से है।*
*BIRADS श्रेणी में सुधार जैसे BIRADS 3 से BIRADS 2/3 (राइट ब्रेस्ट) और BIRADS 2 (लेफ्ट ब्रेस्ट) में सुधार यह बताता है कि कैंसर की संभावना अब काफी कम हो गई है जिसने न केवल लक्षणों को कम किया है, बल्कि मूल कारणों को संबोधित करते हुए ग्रंथि के आकार और संक्रमण को भी नियंत्रित किया है।*
*पथ्य -*
*करेला, टिण्डा, सीताफल, कुन्दरू, mix veg, कच्चा पपीता, तोरई, परवल, लौकी, टिंडा, मेथी, हल्दी, अदरक, धनिया, ये कफ और आम को कम करने में मदद करते हैं।*
*पपीता, सेब, अनार, नाशपाती।*
*जौ, बाजरा, रागी, पुराने चावल*
*मूंग दाल,चना और मसूर दाल।*
*सीमित मात्रा में शुद्ध गाय का घी, यह अग्नि वर्धक है।*
*दिन भर गर्म पानी पीना आम का पाचन करता है।*
[7/30, 7:16 AM] M. L. Jaysawal sir:
ऊँ
भुवनेश्वर (आरोग्य देव) से मान्यवर वैद्यराज जी को सादर वन्दन।
जीर्ण संक्रमित स्तन अन्तर विद्रधि की सुव्यवस्थित औषधाहार चिकित्सा व्ववस्था व औषध द्रव्यों के कार्मुकत्व की युक्तिसंगत विवेचना
इस प्रकार के विकारावस्था में बाह्य व आभ्यन्तर रुप से देवदारु(धूपनीय प्रलेप (देवदारु तैल /सारभाग या देवदारु फल )का संयोजन सुफलदायक है अन्य औषध व्यवस्था के साथ क्योंकि यह परम वातकफशामक, वेदनाहर, संक्रमणरोधी- देवदार्वादि गण की फलश्रुति देखें, विशिष्ट सुगन्धियुक्त देवदार की पौराणिक उत्पत्ति का मायथोलाजिकल आख्यान पढें- संभवतः माँ पार्वती जी के स्तन से इसके फल का सादृश्य, हिमालयी क्षेत्र में इसके फलों को देखा है।
हार्दिक धन्यवाद सुप्रभात
अभिनन्दन 🚩👏
[7/30, 8:25 AM] Vd. V. B. Pandey Basti(U.P.):
बहुत सुन्दर प्रस्तुति देवदारु के बारे में 🙏
[7/30, 8:29 AM] Dr. D. C. Katoch sir:
Suprabhat, Shubhamastu, Sushthu Iti के साथ यह जिज्ञासा है कि क्या Arogyavardhini Vati की 1-1 gm मात्रा बहुत अधिक नहीं।
[7/30, 9:08 AM] Dr. Ravikant Prajapati M. D, BHU.:
प्रणाम गुरुजी 🙏🌹
कृपया मार्गदर्शन करें .....
बहुत बार ग्रंथि, अर्बुद् आदि की रुक्ष, और लेखन चिकित्सा करते हुवे बहुत बार वात वृद्धि हो जाती है या भय लगा रहता है ....... इससे बचाव के लिए ... चिकित्सा व्यवस्था में क्या परिवर्तन या सावधानी बरतनी चाहिए 🙏🙏
[7/30, 9:12 AM] Dr. Bhadresh Naik Gujarat:
Good morning sirji
6 kal rodnidan and birads analysis 👌
Can we added
1 raspachakvati
2 medopachakvati
3 local application of nagaradi or kullathagi churna
4 bhalllatac
According to stage of granthi...?
Always sirji
U gv indepth idea to any disease according to ayurved perspective
Bcz u r always masters and legends of ayurved 🌹🌹👍👍👏👏
[7/30, 9:24 AM] Vd.Vinod Sharma:
आदरणीय जायसवाल जी सादर प्रणाम 🙏🙏🙏
वैद्यराज जी ने इसे स्तन ग्रंथि सिद्ध कर चिकित्सा व्यवस्था दी है|
आपने इसे जीर्ण संक्रमित स्तन विद्रधि Chronic Infected Breast iner Abscess माना है जिसमे विकृति स्तर में Pathological level में असमानताएं है |
ग्रंथि में infection नहीं मिलता, चिकित्सा में भी विभिन्नताये होती है | कृपया संशय दूर कीजियेगा प्रभु 🙏🙏🙏
[7/30, 9:26 AM] Vd.Falguni:
बहुत सरल प्रभावी तरीक़े से समझाया है आपने sir ji । बहुत बहुत धन्यवाद ।
[7/30, 9:26 AM] Vd. V. B. Pandey Basti(U.P.):
आधुनिक सिबसकस सिस्ट ग्रंथि जनित infection ही तो है सर।
[7/30, 9:34 AM] Vd.Vinod Sharma:
प्रणाम पाण्डेय जी,
बात स्तन ग्रंथि की हो रही है,
Sebacious cyst बिलकुल अलग अवस्था है |
इस पर भी चर्चा करेंगे, पहले ग्रंथि और विद्रधि पर कर लेते है 🙏🙏
[7/30, 9:42 AM] Dr. Bhadresh Naik Gujarat:
Inflammation
Abceses
Tumour
Cyst r different etiology
[7/30, 9:51 AM] M. L. Jaysawal sir:
ऊँ
पथ्याहार में कर्कोटी (कीकोडा, ककोडा) का संयोजन हितावह जो वर्तमान वर्षाकाल में फलशाक रुप उपलब्ध।
अन्य शरद ऋतु में प्रयोग हेतु इसे चिप्स बनाकर शुष्ककर रखा जा सकता है जिसे तलकर (तैल में) सेवन रुग्ण कर सकते हैं - रस स्तन्य आर्तव रक्त मेदादि के शोधनार्थ (यकृतशोधक होने से )श्रेष्ठ।
कल्पस्थानोक्त जीमूतक (देवदाली -देवानिन्द्रियाणि दालयति क्षोभयति -Its irritant to sensory organs, जीमूत-मेघ इव द्रवः नि:सारयति- Stimulate watery discharge, आखुविषहा- मूषिकविषं हन्तीति, गरागरी-Antipoisonous, वेणी-वेणति शोधयति, वेणु गतिज्ञानादिषु '-used as purifying measure , व्यवहारिक नाम - बन्दाल डोडा)
से शोधन व्याधिसंशोधक होता।
उल्लिखित पर्यायों पर चिन्तन करें
जिससे संक्रमणरोध, दूषितस्राव निःसारण, विषघ्न आदि कर्मकारक
उभयतोभाग विशेषतः उर्ध्वभागस्थ कफापित्तादि दोष तीव्र आशुकारी संशोधक द्रव्य होने से।
पंसारियों के पास बन्दाल दोहा नाम से उपलब्ध भी है।
लेप रुप में भी स्तन पर प्रयोजनीय। अवशोषणपूर्वक कार्मुक।
[7/30, 10:03 AM] Dr. Bhadresh Naik Gujarat:
Acharya sushrut described arbud in classical way
Vataj > multiple
Descreat
Fast growth
Painful
Tender
Majority time matastatic stage
Pitaj> worms
Pus formeted
Necrosis
Ulcer
Kufaj> hard
Large
Pain less
Non descret
Slow progressive
[7/30, 11:17 AM] Dr Divyesh Desai:
रक्तार्बुद में metastesis तीव्रता से होता है, या माँसार्बुद में ? या फिर रक्तार्बुद के बाद की अवस्था माँसार्बुद है ?
आचार्यो ने जितने भी व्याधियो के अरिष्ट लक्षणों बताया है, वो भी कभी कभी इस ऑर्गन के कैंसर से रिलेटेड लगते है,
आयुर्वेदोक्त रक्त धातु से संबंधित ऑर्गन
फुफ्फुस,
यकृत,
प्लीहा,
मज्जा या बोनमेरो के कैंसर में शीघ्रता से प्रसार होता है और मृत्यु दर भी ज्यादा है ।
आयुर्वेद में वर्णित अर्बुद से ज्यादा तो आज आदरणीय सुभाष सर ने ग्रंथि का वर्णन किया वो लक्षण मॉडर्न के कैंसर से ज्यादा मिलते है ।
सर, वरुणादि क्वाथ ओर हीरक भस्म का कैंसर के व्याधिविपरित औषध के रूप में कितना महत्व है ?
Cyst को कम करने में वृद्धिवाटिका रस और नित्यानंद रस उपयोगी है जबकि lymphnode एनलार्जमेंट कम करने में कांचनार उपयोगी है, और साथमे उपयोग करने से जल्द ही size कम होती दिखती है ।
सुभाष सर के औषध चयन से एक बात सीखने को मिली है कि
फ्रेश सूक्ष्मचूर्ण का बनाया हुआ क्वाथ रेडीमेड या पुराने यवकूट क्वाथ से ज्यादा बेहतर है और साथ मे औषध सेवन काल भी हरेक अलग अलग कैंसर में अलग अलग बताया है, जो महत्वपूर्ण है, ईस बातको ज्यादातर हम भूल जाते है।
सर, जब केस प्रेजेंट करते है, तब हमें हमारी गलतियों का अहसास होता है की यही सब औषधियों का चयन करने के बावजूद क्यों रिजल्ट नही मिलते, साथमे षडविध क्रियाकाल या रोग की अवस्था की भी महत्व है,।।
प्रणाम सुभाष सर एवं समस्त गुरुजनों को।🙏🏾🙏🏾जय आयुर्वेद
[7/30, 1:04 PM] Prof.Vd.Arun Rathi:
*प्रणाम सरजी*
🙏🙏🙏
[7/30, 1:17 PM] Dr. D. C. Katoch sir:
Nityanand Ras is the drug of choice for lymphatic elephantiasis (Shleepad) and similar chronic soft tissue inflammatory conditions with implications of functional blockage (संग) and appearance of swelling & tumors. This formulation is made from Tikshna, Ushna, Lekhan and Kledahar dravyas.
[7/30, 2:24 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*सुप्रभात - सादर नमन आचार्य जायसवाल जी ❤️🌹🙏 मेरे यहां तो प्रातः काल ही है क्योंकि आजकल यह सब लेखन काय सम्प्रदाय में ireland से ही आ रहा है जो भारत से 4.5 घंटे पीछे है।*
*देवदारू पर आपका विशिष्ट ज्ञान अवश्यमेव ही प्रभावी है क्योंकि जिस प्रकार के गुणों से यह परिपूर्ण है निःसंदेह श्रेष्ठ कार्य करेगा। इसे भी अपनी चिकित्सा का एक भाग अब आगे बनायेंगे।*
[7/30, 2:32 PM] Prof. Madhava Diggavi Sir:
Devadarvyadyarishta is indicated in diabetic skin complications. Devdaru has transplacental penetration in gaseous stage, I got to know this information.
Devadaru taila ..wood oil sugandhit and vatahara .
[7/30, 2:37 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*सुप्रभात सर 🌹🙏 आरोग्य वर्धिनी और पुनर्नवा मंडूर की व्यवहारिक मात्रा जीर्ण और गंभीर रोगों में एक बार में 1 ग्राम है यह हमने जामनगर से सीखा था जो दो बार सरलता से दी जा सकती है।*
*जब हम कोई अन्य रेचक योग जैसे कुटकी, हरीतकी या एरंड नहीं दे रहे तो यह इस मात्रा में सरलता से लेखन, भेदन, मेद क्षपण करती है।*
*आरोग्य वर्धिनी के combinations भिन्न भिन्न प्रकार से इस प्रकार हमारे गुरूजी बताते थे...*
*आरोग्यप्रभा - 1 gm आवर्धिनी और 500 mg चन्द्रप्रभा।*
*आरोग्यप्रभा मंडूर - 1 gm आवर्धिनी 500 mg चन्द्रप्रभा और 500 mg पुनर्नवा मंडूर।*
*चन्द्रप्रभा (शिलाजतु युक्त) और मंडूर अनेक रोगियों में मल को रूक्ष और कठिन भी कर देती है एवं अनेक रोगियों में अग्नि और बलानुसार आवर्धिनी 500 mg एक बार भी दी जाती है।*
*आरोग्य वर्धिनी को 1-1 ग्राम दो बार कामला, जलोदर, hypo thyroidism, अर्बुद आदि में निश्चिन्त हो कर प्रयोग कर के देखिये, शीघ्र लक्ष्य की प्राप्ति होगी।*
*औषध का role चिकित्सा मे हम पहले भी बता चुके हैं कि मात्र 8% है शेष चिकित्सा तो पथ्यापथ्य सहित आहार, विहार, दिनचर्या, रात्रिचर्या, ऋतुचर्या, मानसोपचार जिसमें आश्वासन, meditation आदि ही है। वात प्रकोप का कारण रोगी के मानस भाव से तो बहुत ही अधिक है।*
*आयुर्वेद इस प्राकृतिक शरीर को प्रकृति के अनुरूप लयबद्ध करने की एक जीवन शैली भी है।*
[7/30, 2:46 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*नमस्कार भद्रेश जी, आपने जो औषध द्रव्य लिखे हैं इन सब का प्रयोग भी अपनी उपलब्धता और सुविधा के अनुसार कर सकते हैं और सब कार्य करेंगे.. 👍👍*
[7/30, 2:53 PM] Prof.Vd.Arun Rathi:
*विगत दो period से काँलेज मे छात्रों को षटक्रिया काल ही पढा रहे थे*
*मै अक्सर श्वास, मेदोरोग और प्रमेह इन व्याधियों के उदाहरण षटक्रिया काल मे देता हूँ, अब स्तन ग्रंथि का with investigation भी दुगाँ।*
🙏🙏🙏
*If you give Applied Aspects of Ayurvedic Principles, then it's very easy for students to grasp and learn Ayurveda*
[7/30, 2:56 PM] Dr. D. C. Katoch sir:
Subhash Sir !
Spasht aur swanubhavaadharit vaktavya ke liye Hardik Dhanyavaad. Shastra mein Arogyavardhini Vati ki 1gm ki matra ka yadi kahin nirdesh ho to avashya batayein, kyonki body weight ke hisab se Arogyavardhini ki dainik matra 75-90 mg per kilogram ek scientific article mein kabhi padhi thi🙏🏼
[7/30, 3:00 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*हमारे यहां आवर्धिनी 500 mg की भी होती है तो 2-2 गोली दो बार भी देते है, जैसे कह रहे हैं कभी प्रयोग कर के तो देखिये। हम 41 वर्ष से private practice ही कर रहे है और आयुर्वेद चिकित्सा ही जानते, यदि रोगी को हानि होगी तो वो दोबारा नही आयेगा और लाभ नहीं मिला तो भी नहीं आयेगा।*
*आयुर्वेद चिकित्सा चर्चा से अधिक चिकित्सा करने की विद्या है।*
[7/30, 3:03 PM] Prof.Vd.Arun Rathi:
*प्रणाम कटोच सरजी*
🙏🙏🙏
*If we consider the dose of आरोग्यवर्धीणी वटी 75 mg per kg of body wt. and in general we consider 60 kg body of pts then the dose of आरोग्यवर्धीणी वटी will be*
*75 mg × 60 kg = 4500 mg.*
*Means 4.5 gm of आरोग्यवर्धीणी वटी / day.*
*This is very interesting*
[7/30, 3:10 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*सादर नमन सर, आयुर्वेद में अगर body wt. के अनुसार औषध दी जा रही है तो वह आयुर्वेदीय ना हो कर हर्बल है, हमारे यहां औषध की मात्रा रोगी की प्रकृति, विकृति, अग्निबल, वय, मानसिक और शारीरिक बल, देश, काल, अनुपान, व्याधि किस अवस्था में है सुख साध्य, कृच्छ साध्य या असाध्य और इन सब मे रोग प्रकृति और रोगी प्रकृति का तो सर्वाधिक महत्व है।*
*अगर आवर्धिनी के साथ अनुपान फलत्रिकादि क्वाथ होगा तो उसकी मात्रा 1 gm नहीं स्वतः ही कम दी जायेगी क्योंकि दोनो में कुटकी है।*
[7/30, 3:57 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*नमस्कार विनोद भाई, आपने बहुत अच्छी चिकित्सा की थी हमें अभी तक स्मरण है।* 👍👌
*CA BREAST को हम निजी मत से अनुक्त व्याधि ही मानते हैं और पहले भी इस पर चर्चा की थी कि प्रथम दृष्टि में कैंसर रोग की तुलना आयुर्वेदीय अर्बुद से अधिकतर विद्वान करते है उचित नही क्योंकि आधुनिक समय में अव्यवों में मिलने वाले कैंसर अनुक्त रोग है और आयुर्वेदोक्त अर्बुद साधारण या सामान्य अर्बुद की श्रेणी के हैं कैंसर नही,
'गात्रप्रदेशे क्वचिदेव दोषाः सम्मूर्च्छिता मांसमभिप्रदूष्य वृत्तं स्थिरं मन्दरुजं महान्तमनल्पमूलं चिरवृद्ध्यपाकम्, कुर्वन्ति मांसोपचयं तु शोफं तमर्बुदं शास्त्रविदो वदन्ति वातेन पित्तेन कफेन चापि रक्तेन मांसेन च मेदसा च '
सु नि 11/13-14
ये अर्बुद त्रिदोष,मांस और मेद के हैं तथा ग्रन्थि के समान ही है जो शनैः शनैः वृद्धि करते है, स्थिर, गोल, अल्प पीड़ा युक्त, गभीर धातुगत और पाक ना होने वाले हैं। आधुनिक विद्वानों के अनुसार साधारण अर्बुद एक कोष से उत्पन्न होते हैं जिसमें छेदन से सब का निर्हरण किया जा सकता है, अर्बुद प्रायः एक ही मिलता है,सामान्यतः इनमें व्रण की उत्पत्ति नही होती और रक्त स्राव भी नही होता, वृद्धि चिरकालीन होती है, शरीर पर विशिष्ट घातक नही होते अगर मर्म स्थान या स्वर यन्त्र में इनकी उत्पत्ति ना हो तब तथा समीपस्थ धातुओं सदृश इनकी रचना मिलती है।*
*वर्तमान की अनुक्त व्याधि कैंसर आचार्य सुश्रुत के रक्तार्बुद
'दोषः प्रदुष्टो रुधिरं सिरास्तु सम्पीड्य सङ्कोच्य गतस्त्वपाकम्, सास्रावमुन्नह्यति मांसपिण्डं मांसाङ्कुरैराचितमाशु वृद्धिम्, स्रवत्यजस्रं रुधिरं प्रदुष्टमसाध्य मेतद्रुधिरात्मकं स्यात्, रक्तक्षयोपद्रव पीडितत्वात् पाण्डुर्भवेत् सोऽर्बुद पीडितस्तु '
सु नि 11/15-16
लक्षणों से भी भिन्न हैं क्योंकि वर्तमान समय में रोगियों में मिलने वाला कैंसर अत्यन्त तीव्र गति से वर्धन करता है अर्थात द्रुत गति से प्रसरण शील जो वात के चल और सर गुण से संबंधित है।यह समस्त धातुओं में पहुंच कर अपनी स्थिति नियत कर लेता है।*
*अगर इसे शल्य कर्म से छेदन कर के निकाल भी दें तो पुनः उद्भव संभव है, यह आवरण मुक्त होता है अर्थात इस पर किसी प्रकार का आवरण नही होता, यह अत्यन्त बलवान होने से एक होते हुये भी अन्य सभी स्रोतस और अव्यवों में secondary deposits या metastatic उत्पत्ति करने का बल रखता है, त्वचा को दूषित कर व्रणोत्पत्ति भी कर देता है ।*
*जिस से अति रक्तस्राव जन्य पांडुता, भय, अवसाद तथा अनेक विकार संभव है,अनेक रोगियों में आमोत्पत्ति जन्य संग दोष कैंसर का हेतु मिलता है तथा यह कैंसर आम विष को घोर अन्न विष बना देता है
'अरोचकोऽविपाकश्च घोरमन्नविषं च तत्'
च चि 15/46
यहां इस आम विष की विषाक्तता इतनी लिखी है कि इसे घोर अन्न विष कहा है और जब
'रसादिभिश्च संसृष्टं कुर्याद्रोगान् रसादिजान्'
अर्थात जब यह आम विष रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि मज्जादि धातुओं से युक्त होता है तो उन उन से संबंधित रोगों को उत्पन्न कर देता है।*
7/30, 4:12 PM] Dr. D. C. Katoch sir:
This BIRAD scoring system for tumorous disease gefrom 0 to 6 can be equated respectively to
(0)Samyavastha or Prakritavastha (Physiological State);
(1)beginning of Pathophysiological state due to disturbed host- environment interaction (Sanchaye);
(2)proliferation or advancement or extension of pathophysiology
(Prakop);
(3)dissemination of morbidity causing materials (Prasar);
(4)Localization of morbidity causing materials to initiate the pathogenesis
(Sthansanshreya);
(5)Development /appearance of signs & symptoms of the pathological process i.e. Clinical manifestation
(Vyaktavastha) when the patient approaches doctor/hospital;
(6) stage of resolution of the disease process (Samprapti Vigghattan) or emergence of complications due to advancement or furtherance of the pathological process to other tissues/ organs/ systems (Bhedavastha).
Pathogenetic process is sustained and enhanced with sequential cycle of Sanchaye- Prakop- Prasar- Sthansanshreya of morbid materials.
[7/30, 4:20 PM] M. L. Jaysawal sir:
ऊँ
सूक्ष्मता से औषध मात्रा निर्धारण का आयुर्वेदीय द्रव्यगुण सम्मत अनुभवात्मक विचार। 🌷
[7/30, 4:32 PM] Dr. D. C. Katoch sir:
Very nice.
[7/30, 4:44 PM] Prof. Madhava Diggavi Sir:
Respected sir
Gomutra and panchagavya anusandhan says that, the antioxidant and antimitotic activity are effective in arbuda chikitsa. Gomutra is katu ushna , panchagavya is tikta. Shothahara, pachana effect are found.
Any inputs in this regard ji sir.
As anupana, pathya is it possible to get results sir .
[7/30, 4:45 PM] M. L. Jaysawal sir:
ऊँ
यही द्रव्य मात्रा निर्धारण आदि की द्रव्यगुणात्मक पृष्ठभूमि श्री श्री रविशंकर जी गुरु जी के श्री श्री विश्व विद्यालय कटक में अध्येताओं व शिक्षक महानुभावों को उद्बोधित किया।
चरकीय आहारीय व औषधीय द्रव्य
प्रयोग के परिप्रेक्ष्य में अन्य विचारणीय तथ्यों के साथ।
👏
[7/30, 4:52 PM] Prof. Madhava Diggavi Sir:
Cancer is an intelligent disease. Based on the response to chikitsa upakrama, further Rx is to be planned.
Anticancer activity of bhallataka, kushta, haritaki, amalaki, Triphala, haridra, taxis buccata, yashtimadhu, tulasi, tamra, shilajit, abhraka, heeraka, so on.
Is it possible to make arbudahara gana sir. samanya samprapti of arbuda is amaratva of cells. Its the best thinking to make avastha pratyaneeka cancer chikitsa based on ayurveda principles. Pottali-kalpas are also tried as fast acting drugs in atyayika avastha .
[7/30, 4:53 PM] Dr. D. C. Katoch sir:
Aushadh Matra Nirdharan mein aapka vaktavya bahut hi samicheen hai.
M. L. Jayaswal ji !
[7/30, 5:00 PM] Prof. Madhava Diggavi Sir:
Acharya chakrapani comments rasa pradhana dravya is ahara, veerya pradhana dravya is aushadha . Sir
[7/30, 5:02 PM] Vaidya Sanjay P. Chhajed:
Arogyavardhini......
Jyada bhi di sakati Hai. Psoriasis jaise jinnah logo me din me karsha praman bhi di jati hai.....
[7/30, 5:07 PM] Vd.Vinod Sharma:
🙏🙏प्रणाम 🙏🙏
मार्ग दर्शन के लिए हृदय तल से नमन 🌹🌹
[7/30, 5:19 PM] Dr. D. C. Katoch sir:
वृक्क रोगी में आयुर्वेद सिद्धांत अनुसार जल सेवन की मात्रा का निर्धारण कैसे किया जा सकता है- इस बारे में कुछ बताइए और अनुभव भी साँझा करें ।
[7/30, 6:23 PM] L. k. Dwivedi Sir:
Nahi 😔 mool sandarbh me......
"*ततश्च गुटिका कार्या राजकोल फलोपमा। "* एएफआई में योगसूत्र है वहां २२भाग *कटुकी* वाला है। कुल ४४भाग का फार्मूला है इसमें रसद्रव्य रसगंधलोहाभ्रंशुल्ब भस्म ससमभाग मिलित ५भाग है ( एक-एक भाग) है। ऊपर से दो-दिन निंब वृक्ष दलाम्भ (स्वरस/क्वाथ की दो भावना) है । योगसूत्र में कटुकी शोधन करके उपयोग नहीं किया जा रहा, निंब की दो भावना नहीं दिया जा रहा। सही विनिर्माण विधान से बने तो, *राजकोल फलोपमा* (७.५ ग्राम) कल्ये जलेन प्रयोग करते हैं। कल्प क्रम से तो पहले दिन ( १) २.५ - (२) वही
(३) वही मात्रा फिर चोथे दिवस से ७.५ ग्राम को २.५ ×३ =७.५ग्राम। वा प्रातः एक मात्रा। एसे ४५ दिवस दें । बन्द करते समय मात्रा ह्रास पूर्वक बन्द करके । समयांतर से पुनः देना ४५ दिन(४८ दिवस एक मण्डल) ९० दिवस ली जा सकती है। *धातु भस्में ६८० मिग्रा प्रति दिन करीब होती है* प्रति दिन कटुकी - करीब करीब ३ ग्राम होती है। तो भी रेचन नहीं हो सकता है। *बशर्ते कटुकी शोधन* करके उपयोग किया होता एवं *निंबदल स्वरस क्वाथ की विधि वत दो भावना* देंगे तो। संदर्भित सभी रोगों में उपयोग से परिणाम मिलेंगे। वस्तुतस्तु यह योग *विसर्प विस्फोट* में विहित है। वर्तमान में व्यवहार किसी और ही दृष्टि से परिणाम चाहते हैं।
[7/30, 6:36 PM] Vaidya Sanjay P. Chhajed:
'बिल्कुल उपयुक्त होती है गुरुदेव
[7/31, 6:41 AM] Prof B. L. Goud Sab:
मैं मूल रूप से प्रारंभिक रूप से एक कायचिकित्सक ही हूं मैंने कायचिकित्सा से ही पोस्टग्रेजुएट किया है राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर का प्रथम पोस्ट ग्रेजुएट हूं।
लगभग 59 वर्ष से चिकित्सा भी कर रहा हूं संयोग से एवं दैवयोग से मौलिक सिद्धांत में आया और मौलिक सिद्धांत में रहकर भी काय चिकित्सक बना रहा।
आचार्य ने अनेक योगों की जो मात्रा कही है वह वर्तमान में अधिक लगती है मैं भी सामान्यतया अधिक मात्रा में ही औषधियों का प्रयोग करता हूं। लेकिन पहले कम मात्रा में देते हुए अभिवर्धन करके उपयुक्त वृद्ध मात्रा का प्रयोग करता हूं यह संयोग कहें या शास्त्र का अनुसरण कहें या घुणाक्षरन्याय कहें मैं इस रूप में ही प्रयोग करता आया हूं क्योंकि मैंने प्रायोगिक रूप से पर्पटी कल्प में वृद्धिंगत एवं ह्रसीयसी मात्रा को प्रत्यक्ष रूप से देखा है।
एक बार प्रोफेसर द्विवेदी जी से इस विषय में चर्चा चली तो उन्होंने कहा कि आप यह प्रयोग संयोग से नहीं कर रहे यह सिद्धांत है और यह सिद्धांत रसेन्द्रचिंतामणि में कहा गया है जहां मात्रा की वृद्धि करते हुए उपयुक्त मात्रा तक ले जाने का विधान है और वापस उपयुक्त मात्रा में ह्रास करते हुए उसे न्यूनतम मात्रा में लाते हुए बंद करने का विधान है अतः शास्त्र का निर्देश भी समुचित मात्रा में प्रयोग करने का है और जो चिकित्सक चिकित्साभ्यास करते हैं उनके अनुसार भी पर्याप्त मात्रा ही उपयुक्त मात्रा है ऐसे मानते हुए जो चिकित्सा की जाती है उसमें सफलता प्राप्त होती है।
यद्यपि सन 1962 में मैंने रसेन्द्र चिंतामणि अच्छी प्रकार से पढ़ी थी श्लोक भी याद थे पर प्रयोग करते समय यह सिद्धांत ध्यान में नहीं था केवल प्रत्यक्ष कर्माभ्यास देखने का ही अनुसरण कर रहा था।
वैद्यराज सुभाष जी इसी सिद्धांत का परिपालन करते हुए वृद्ध मात्रा जो कि उपयुक्त मात्रा है उसमें प्रयोग करते हुए चिकित्सा में सफलता प्राप्त करते हैं यही बात सिद्धांत रूप में प्रोफेसर द्विवेदी जी ने परिपुष्ट की है मेरे जैसे अनेक चिकित्सकों का यह अनुभव भी है कि औषधि की मात्रा उपयुक्त होनी चाहिए इसीलिए आचार्य ने सिद्धांत स्थापित किया है 'मात्राया: नास्त्यवस्थानम्'। लेकिन यह वृद्ध मात्रा सोच समझ करके ही करना आवश्यक है कई बार आनंद भैरव रस मृत्युंजय रस संजीवनी आदि की अधिक मात्रा प्रयुक्त करने पर घातक हो सकती है।
श्री कटोच जी की आशंका भी सही थी क्योंकि आरोग्यवर्धिनी में ताम्र भस्म भी होती है। अतः किस योग में कौन-कौन से द्रव्य हैं यह जानना परमावश्यक है उसके बाद ही अधिक मात्रा या अल्प मात्रा का प्रयोग करना उपयुक्त है संभवत: कटोच जी का आशय भी यही था अतः चिकित्सा में योग का प्रयोग शास्त्रानुमत होने के साथ-साथ सिद्धांतपरक और प्रयोगपरक होना परमावश्यक है
[7/31, 6:54 AM] Vd. V. B. Pandey Basti(U.P.):
🙏अति उत्तम विश्लेषण गुरुवर 🙏
[7/31, 6:56 AM] Dr. D. C. Katoch sir:
https://in.docworkspace.com/d/sICWOsqlMy6esxAY?sa=601.1074
Namastubhyam, Shubhamastu Bhavtaam. Adyatan Acharyashresth Vaidya Prof. Gaur Sahib ji ke atisameechan evum atyaupyukt vaktavya ke anantar Tamra Bhasm se sambandhit ek review article link prastut kar raha hun jisme yeh nishkarshit hai ki vibhinn aushadh yogon mein prayukt Tamra Bhasma ko 65 mg se 250 mg tak ki matra mein sevan karne ka samanya vidhan hai.
[7/31, 7:13 AM] Dr Divyesh Desai:
कल स्तनविद्रधी/Breast Lump/अडेनोफिब्रोमा और BIRADS स्कोर पर और साथमे आरोग्यवर्धिनी की मात्रा पर अत्यंत आवश्यक एवं INFORMATIVE चर्चा हुई, यहाँ इंडिया में मॉडर्न डॉक्टर्स BIRADS स्कोर के हिसाब से न जाकर अपने अपने हिसाब से सर्जरी करते है, केवल इंस्टिट्यूशनल अस्पताल में BIRADS को फ़ॉलो करते है, कम मात्रा में प्राइवेट डॉक्टर्स भी फ़ॉलो करने वाले है, आगे 1 या 2 रिपोर्ट्स में BIRADS के बारे मे देखा था, अभ्यास नही किया था, कल आदरणीय सुभाषसर / कटोच सर से BIRADS का षडविध क्रियाकाल से COMPARISION पर मार्गदर्शन मिला, बाद मे BIRADS स्कोर और ब्रेस्ट लम्प का अभ्यास किया तो जो पढ़ाई से जो जानकारी प्राप्त हुई वो इस ग्रुप में साज़ा करता हूँ, ताकि इस विषय मे ज्ञान प्राप्ति हो,
Causes of Breast Lump-
Breast lumps can be caused by various factors, including:
- *Fibroadenoma*:
A benign tumor that is common in younger women.
- *Cysts*:
Fluid-filled sacs that can be painful and tender.
-*Fibrocystic changes*:
Hormonal changes that can cause lumps, tenderness, and swelling.
-*Infection*:
Mastitis or abscesses can cause breast lumps.
-*Breast cancer*:
A malignant tumor that can present as a lump.
Breast Lump Symptoms
Symptoms of breast lumps can vary, but may include:
- *A new lump or thickening*:
A lump or area of thickening that feels different from the surrounding tissue.
- *Pain or tenderness*:
Pain or tenderness in the breast or nipple.
- *Change in breast shape or size*:
A change in the shape or size of the breast.
-*Nipple discharge*:
Discharge from the nipple, which can be clear, yellow, or bloody.
- *Skin changes*:
Redness, dimpling, or puckering of the skin.
BIRADS Score:
The Breast Imaging Reporting and Data System (BIRADS) is a widely used system to categorize breast imaging findings. The BIRADS score ranges from 0 to 6, with the following meanings:
- *BIRADS 0*:
Additional imaging evaluation and/or comparison to prior exams is needed.
- *BIRADS 1*:
Negative; there is nothing to comment on; routine screening recommended.
-*BIRADS 2*:
Benign finding(s); noncancerous finding; continue routine screening.
-*BIRADS 3*:
Probably benign; a short-term follow-up is suggested, but the findings have a high probability of being benign.
-*BIRADS 4*:
Suspicious abnormality; biopsy should be considered. Subdivided into:
-*4A*:Low suspicion of malignancy.
-*4B*: Moderate suspicion of malignancy.
-*4C*:High suspicion of malignancy.
-*BIRADS 5*:
Highly suggestive of malignancy; appropriate action should be taken.
- *BIRADS 6*:
Known biopsy-proven malignancy prior to definitive treatment.
A BIRADS score helps guide further management and decision-making for breast abnormalities.
साथ मे आरोग्यवर्धिनी वटी की मात्रा बैधनाथ के आयुर्वेद सार संग्रह पुस्तक में 2 रत्ती (250 MG) की 2 से 4 गोली की 2 बार की मात्रा बताई है, Kaleda की पुस्तक में आरोग्यवर्धिनी पर विस्तृत वर्णन है,
[7/31, 7:22 AM] Dr Divyesh Desai:
ग्रुप में लिखने की 1 अहम वजह ये है कि लिखने से हमारा खुद का revision हो जाता है, साथ मे इसी विषय पर दूसरे गुरुजनों से मार्गदर्शन और गूढ़ रहस्य की जानकारी मिलती है, शायद ये काय सम्प्रदाय की तद्वित संभाषा की Beauty है, इस लिए चर्चा में भाग न लेने वाले सदस्यों को विनंती है कि आप भी आपका ज्ञान share करे, जिससे बाकी सदस्यों लाभान्वित हो सके।🙏🏾🙏🏾 जय आयुर्वेद, जय धन्वंतरि, सुप्रभात🙏🏾🙏🏾
[7/31, 11:20 AM] L. k. Dwivedi Sir:
Katoch Sir !
Article me jo table no 1- hai vo dekhiyega errors are there. And Amritikarna not discussed. Krvyad Rasa me copper 33 % ye jyada bata rahe hai. Ye poore table me ho. Bhavana ka yield me incorporation consider nahin hai. Kravyaad Ras me nimbu swaras, 3.072 kg/lt, panchakola kwath, ki 50 bhavani then prakshepa bhi hai to final product me how copur 33 %? Artical likhne wale Schooler se pucha hota, riewear ne?
[7/31, 11:30 AM] Dr. D. C. Katoch sir:
Prof. L. K. Dwivedi ji !
Hardik aabhar. Aisa sookshma vishleshan aur truti aakalan Rasa shastragya hi kar sakte hain aur author ko bata sakte hain. Mere jaise samanya chikitsak nahin kar payenge yeh.
[7/31, 6:28 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*सादर चरण स्पर्श द्विवेदी सर ! 🙏🙏🙏समय के साथ जैसी जीवन शैली और आहार लोगों ने बना लिये तो काय सम्प्रदाय में कुछ वर्ष पूर्व आरोग्यवर्धिनी ताम्र रहित और इसमें कुटकी की तीन भावनायें दे कर हम प्रयोग करते आ रहे हैं और जो लाभ हमें चाहिये वह पूर्ण प्राप्त होता है।*
*आरोग्यवर्धिनी में कुटकी की अतिरिक्त तीन भावनायें पित्त का रेचन और मल का भेदन भली प्रकार से कर देती हैं।*
[7/31, 3:03 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
दिव्येश भाई, सूत्र रूप में शास्त्रीय आयुर्वेदिक ग्रंथ ज्ञान की एक जीवंत परंपरा का प्रतिनिधित्व करते हैं जिसके लिए निरंतर विद्वत्तापूर्ण जुड़ाव, व्याख्या और कभी-कभी पुनर्व्याख्या की आवश्यकता होती है ताकि उनकी गहराई को पूरी तरह से समझा जा सके और समझ में आने वाली संभावित अस्पष्टताओं या ऐतिहासिक परिवर्तनों को संबोधित किया जा सके। यह आयुर्वेद की गतिशील बौद्धिक विरासत को उजागर करता है, जहां ज्ञान केवल प्रसारित नहीं होता है, बल्कि सदियों से सक्रिय रूप से व्याख्या और चर्चा के माध्यम से विकसित होता है।*
*जिससे इसकी निरंतर प्रासंगिकता और गहराई सुनिश्चित होती है।निदान में अन्य शास्त्रों के मत और तकनीक शास्त्रों का वर्धन ही करती है।*
*आयुर्वेद में evidence based ज्ञान की वर्तमान में बहुत आवश्यकता है और यह कोई कठिन कार्य नहीं है।*
*अनेक स्थलों पर आधुनिक मत और आयुर्वेदीय सिद्धान्तों की तुलना नहीं हो सकती और ना ही अनावश्यक सामंजस्य बिठाना चाहिये पर जहां भी संभव हो सकता है अपने कार्य और मत को प्रकट करते रहिये क्योंकि अनेक विद्वानों द्वारा अधिक समय तक अधिक कार्य ही नवीन मत स्थापित करेगा।*
****************************************************************************************************************************************************************************************************************************Above case presentation & follow-up discussion held in 'Kaysampraday (Discussion)' a Famous WhatsApp group of well known Vaidyas from all over the India.****************************************************************************************************************************************************************
Presented by-
Vaidyaraja Subhash Sharma
MD (Kaya-chikitsa)
New Delhi, India
email- vaidyaraja@yahoo.co.in
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