Skip to main content

Posts

WDS 80: 'Jal-chayapachay' or 'Avastha-pak' ? (Metabolism of Water ?) by Prof. Satyendra Narayan Ojha, Prof. Arun Rathi, Prof. Mrinal Tiwari, Prof. Ranjit Nimbalakar, Prof. Sanjay Lungare Vd. Atul Kale & others.

[6/3, 7:43 AM] +91 80878 73115 Prof.Ranjit Nimbalker:  अष्टांग संग्रह कहते है कि अन्न पचने में ४ याम (१२ घंटे) लगते हैं , और पानी पचने के लिये २ याम (६ घंटे )... ब्राह्मे मुहूर्ते उत्तिष्ठेत् जीर्णाजीर्णं निरूपयन् ऐसा भी कहते है...  मतलब,  १. अगर ब्राह्म मुहूर्त पे उठना है, प्रात: ४:३० बजे, तो शाम का खाना सायं ४:३० को हो जाना चाहिये? तो सुबह का खाना उससे भी १२ घंटे पहले, मतलब सुबह ४:३० बजे खाना पडे़गा (निद्राबोध के तुरंत बाद) २. जो खाना खा लिया है, वो अगर १२ घंटे तक पच रहा है, तो बीच में पानी पियें या नहीं? क्यों कि जब अन्न का पाचन चल रहा है, तो उसीमें पानी पिया जाय, जिसको पचाने मे ६ घंटे लगनेवाले है... तो ऐसी अवस्था में कैसे विचार करें? और कैसे implement करें ? [6/3, 9:07 AM] वैध आशीष कुमार:  गुरुदेव ! भूख और प्यास का वेग लगने पर ग्रहण करना कैसा रहेगा ! [6/3, 9:17 AM] +91 80878 73115:  Prof. Ranjit Nimbalkar  हम ये मानते हैंं, और ग्रंथों में भी बताया है... क्षुधा और अग्नि ये दोनों अलग अलग बातें है...  अब ये कैसे समझें कि अभी मुझे सिर्फ भूख लगी है (खाने की इच्छा) या सच में मेरा अग्नि प

Case-presentation: Kitibha Kushtha (Psoriasis) by Vaidyaraja Subhash Sharma

Case No.- 1 [12/5/2019, 12:05 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi:  *case presentation ...* *एक कुष्ठ-किटिभ कुष्ठ - विसर्प कुष्ठ एवं psoriasis ... आयुर्वेदीय चिकित्सा* *कुष्णातीति कुष्ठम् - जो त्वचा आदि धातुओं को नष्ट करे, कुष्णाति वपु इति कुष्ठम् - शरीर के धातुओं की विकृति के संदर्भ में ये का गया है, कुष निष्कर्षे में क्थन् प्रत्यय लगाकर इसकी उत्पत्ति हुई । जो रोग शरीर को विकृत कर दे उसे कुष्ठ रोग कहते है।* *रूग्णा - Age 11 yrs/ student* *रोगी - Age 18 yrs/male / student* *एक कुष्ठ -  'अस्वेदनं महावास्तुयन्मत्य्स्यशकलोपमम्' मा नि 49/17 स्वेदावरोध, व्रण का अधिष्ठान गुरू, त्वचा मछली सदृश हो। सुश्रुत 5/9 में 'कृष्णारूणं येन भवेच्छरीरं' शरीर का वर्ण कृष्ण और अरूण हो जाये । चरक का मत एक कुष्ठ में 'अस्वेदनं महावास्तु यन्मत्स्य' च चि 7/21 माधव ने चरक का मत ले कर जिसने रोग ग्रस्त स्थान अधिक घेर लिया हो ही लिखा है।* *विसर्प कुष्ठ -  'स्त्वग्रक्तमांसान्यभिभूय शीघ्रम्, मूर्च्छाविदाहारतितोदपाकान्'   सु नि 5/11  त्वचा, रक्त और मांस को दूषित कर