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WDS 80: 'Jal-chayapachay' or 'Avastha-pak' ? (Metabolism of Water ?) by Prof. Satyendra Narayan Ojha, Prof. Arun Rathi, Prof. Mrinal Tiwari, Prof. Ranjit Nimbalakar, Prof. Sanjay Lungare Vd. Atul Kale & others.

[6/3, 7:43 AM] +91 80878 73115
Prof.Ranjit Nimbalker: 


अष्टांग संग्रह कहते है कि अन्न पचने में ४ याम (१२ घंटे) लगते हैं , और पानी पचने के लिये २ याम (६ घंटे )...

ब्राह्मे मुहूर्ते उत्तिष्ठेत् जीर्णाजीर्णं निरूपयन्

ऐसा भी कहते है... 

मतलब, 

१. अगर ब्राह्म मुहूर्त पे उठना है, प्रात: ४:३० बजे, तो शाम का खाना सायं ४:३० को हो जाना चाहिये? तो सुबह का खाना उससे भी १२ घंटे पहले, मतलब सुबह ४:३० बजे खाना पडे़गा (निद्राबोध के तुरंत बाद)

२. जो खाना खा लिया है, वो अगर १२ घंटे तक पच रहा है, तो बीच में पानी पियें या नहीं? क्यों कि जब अन्न का पाचन चल रहा है, तो उसीमें पानी पिया जाय, जिसको पचाने मे ६ घंटे लगनेवाले है... तो ऐसी अवस्था में कैसे विचार करें? और कैसे implement करें ?


[6/3, 9:07 AM] वैध आशीष कुमार: 


गुरुदेव ! भूख और प्यास का वेग लगने पर ग्रहण करना कैसा रहेगा !


[6/3, 9:17 AM] +91 80878 73115: 
Prof. Ranjit Nimbalkar 


हम ये मानते हैंं, और ग्रंथों में भी बताया है... क्षुधा और अग्नि ये दोनों अलग अलग बातें है... 

अब ये कैसे समझें कि अभी मुझे सिर्फ भूख लगी है (खाने की इच्छा) या सच में मेरा अग्नि प्रदीप्त हो चुका है ? 


[6/3, 9:26 AM] +91 80878 73115:
Prof. Ranjit Nimbalkar:


 अग्नि प्रदीप्त है या नहीं ये कैसे समझें? 

स्नेहपान में संदर्भ आता है

जीर्णाजीर्णविशंकाया पुनरुष्णोदकं पिबेत्
तेनोद्गारविशुद्धि: स्यात् ततश्च लघुता रुचि:

तो क्या यही नियम का उपयोग करें ? 

अगर भूख की संवेदना हुई तो गरम पानी पीकर देखें... अगर फिर भी क्षुधा रही तो अग्नि प्रदीप्त समझें... 

लेकिन अब जो गर्म पानी पी लिया है, उसके पचने तक ५-६ घंटे इंतज़ार नहीं करना पडेगा ? 


[6/3, 9:29 AM] वैध आशीष कुमार: 

पानी पचने का समय अलग अलग है सर।

साधारण पानी का अलग
उष्ण करके ठंडा किया अलग और कोष्ण जल का अलग !

अभी संदर्भ याद नही है, शायद भाव प्रकाश !


[6/3, 9:31 AM] +91 80878 73115:
Prof. Ranjit Nimbalkar:

 ठीक है सर..... उष्णोदक के पचने का काल २-३ घंटे मान लेते है... फिर भी उतना तो रुकना पडेगा ना ? ये मुख्य मुद्दा है ?


[6/3, 9:31 AM] वैद्य आशीष कुमार: 


एक बार मे अधिकतम 04 घूंट पानी पीने पर गुरुदेव धर्माधिकारी सर जोर देते हैं !


[6/3, 9:50 AM] +91 93722 12148:
Prof. Mrunal Tiwari:

ठंडा पानी पचने - 1याम =3 घंटे का समय
गरम करके ठंडा किया हुआ पानी पचाने का समय - 1/2 याम = 1& 1/2 घंटे का समय
गरम पानी पचानेे का समय - 1 मुहुर्त= 48मिनीट
--मदनपाल निघण्टु

[6/3, 10:15 AM] Vd. Atul J. Kale, Pune. : 

किंतु जल का पाचन कैसे संभव है  ? समझ में नहीं आ रहा । पचाने वाले सभी स्राव द्रव और अग्न्यंश एक विशिष्ट मात्रा में संयोग प्रतित होता है.। पाचक पित्तके द्रव शोषण से अग्न्यांश ज्यादा पाचक होता है। किंतु जलपानसे पाचकपित्त द्रवत्त्व बढने के उपरान्त जलका पाचन भिन्न हो के कैसे होगा ये नहीं समझमें आ रहा है।


[6/3, 10:25 AM] Prof. Satyendra Narayan Ojha: 

पाचन से अवशोषण का ग्रहण करें !


[6/3, 11:05 AM] Prof. Satyendra Narayan Ojha: 

तत्र तु खल्वेषामूष्मादीनामाहारपरिणामकराणां‌ भावानामिमे कर्मविशेषा भवन्ति. तद्यथा - ऊष्मा पचति, वायुरपकर्षति, क्लैद: शैथिल्यमापादयति, स्नेहो मार्दवं जनयति, काल: पर्याप्तिमभिनिर्वर्तयति , समयोगस्त्वेषां परिणामधातुसाम्यकर: संपद्यते.
 च.शा.६/१५.
 आहार द्रव्य ➡️प्रकृत्यादीनां य: समयोग:  ➡️आहार परिणाम कर भाव ➡️ पर्याप्तिमिति पाकनिष्पत्तिं; सत्यप्यूष्मादिव्यापारे काल वशादेव पाको भवति, नोष्मादिव्यापारमात्रादिति भाव: ➡️सम्यक् पचन व्यापार ➡️ परिणामधातु साम्यकर: संपद्यते ➡️ आयुर्विवृद्धये

संपूर्ण पक्ष के विवेचन से स्पष्ट है की कार्य में भागीदारी करने वाले सभी घटकों का सम्यक् , पर्याप्त रहना अभिष्ट है; काल का वैशिष्ट्य महत्त्व है फिर भी आहारादि विभिन्न भावो के सापेक्ष ही....


[6/3, 11:05 AM] +91 80878 73115
 Prof. Ranjit Nimbalkar: 

तो उदक के पाचन में अवस्थापाक होते है, या नही सर ?


[6/3, 11:24 AM] +91 9372212148 
Prof. Mrunal Tiwari: 

उदक का पाचन होने तक वह अन्नवह स्रोतस मे वैसे ही रहता होगा जैसे अन्न ।लेकिन जैसे ही अग्नि के संपर्क मे आता है वह शोषित हो जाता हैं। शरीर उपयोगी द्रव होने के लिए उसे सिर्फ अग्नि के संपर्क मे आना है। इसलिए पानी का अवस्थापक नही कहा गया है।


[6/3, 11:30 AM] Prof. Ramakant Sharma, jaipur: 

अग्नि नहीं है ऐसा किसी जीवित व्यक्ति में नहीं होता, क्षुधा का वेग वास्तविक और अवास्तविक दो तरह का में सकते हैंं, मैं उसे शारीरिक क्षुधा और मानसिक क्षुधा कहता हूं ।
यदि पानी पीने से डकार आ जाए और भूख मिट जाए तो क्षुधा अवास्तविक या मानसिक है,
यदि पानी पीने के बाद 5-7 मिनट में ही खाने का मन करे तो क्षुधा वास्तविक और अथवा शारीरिक है ।
ऐसा केवल मैने अपने समझने के लिए तय किया है !


[6/3, 12:23PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha


*Ingested water appeared in plasma and
blood cells within 5 min and the half-life of absorption
(11–13 min) indicates a complete absorption within *75–120 min. The 2-CM showed that in 42% of the no
subjects, ingested water quickly distributed within a central
compartment before diffusing with a very short half-life
(12.5 ± 4.3 min) to a peripheral compartment (18.5 ± 4.3
and 31.6 ± 6.4 L, respectively), which were in complete
equilibrium within 90 min. 
Pharmacokinetic analyses of
water labeled with D2O can help describe water absorption
and distribution, for which there is no well defined reference
method and value; depending on the characteristics of the
subjects and the drinks, and of environmental condition

[6/3, 8:53 PM] Prof. Arun Rathi, Akola:

 पानी अर्थात जल महाभुत प्रधान द्रव्य का अवस्थापाक नहींं कहाँ गया, ये कैसे और किस चिन्तन पर आधारित है।

अपने चिन्तन को कृपया स्पष्ट करे ।



[6/3, 11:49 PM] Prof. Arun Rathi, Akola

उदक या पानी का अवस्थापाक नहीं कहा गया है, यह बहुत ही ऊपरी स्तर पर दृष्टिगोचर विधान होगा

अग्नि निरूक्ति:

 गतो  धातु से ( गति सूचक )

ऊर्ध्व गति - to Sublimate

 अंगति ऊर्ध्व गच्छति इति अग्नि ।
अंगति व्याप्नोति  इति अग्नि।

शरीर मे विजातीय द्रव्यों को सजातीय बनाने के लिए निरंतर कार्य जिस तत्व द्वारा होता है उसे अग्नि कहते हैं।

विजातीय द्रव्य को सजातीय कर प्रथम आहाररस का निर्माण होता है, तत्पश्चात आहार रस द्वारा सप्त धातुओं का निर्माण; उत्तरोत्तर धातु का पोषण; उपाधातु निर्माण, पोषण; दोषपोषण; मलपोषण; धातुसारता निर्माण एवं ओज उत्पत्ति यह अग्नि पर आश्रित है
Since the tissue of the living body are not exactly similar to the food substances, hence food must be converted in such a manner that they are absorbed in the system to reach every cell of the body and then they become completely homologus to the body tissue.
अग्नि is required for any sort of transformation in the substance it means without अग्नि there is no tissue building and hence No Life.

आहार निरुक्ति :

आहिनयते अन्ननलिक्या यत्तदाहार:
च. सू. ४- ५४ पर चक्रपाणि.
आहारयते प्राणीवृध्यते आहार: ।
आहिनयते शरीरधातवाः अनेन इत्याहारः।

# जिसे अन्न नलिका द्वारा ग्रहण किया जाता है।
# जिससे शरीर का या प्राणी का वर्धन होता है।
# जिससे शरीर धातुओं का पोषण होता है।

आहार परिणामकर भाव :

उष्माः  वायुः क्लेदः स्नेहः कालः समयोगश्र्चेतिः।
च.शा. ६ - १४.
तत् स्वभावादुदकं क्लेदयति
च. सू. २७ - ४.
आहार परिणाम कर भाव में अप ( जल ) का महत्व स्पष्टता से वर्णित है. क्लेदन यह  क्रिया अवस्थापाक और विपाक दोनों में एक अविभाज्य अंग है।

आहार पाचन प्रक्रिया :

विविधमशितं पीतं लीठं खादितं ....यथा स्वेनोष्मण सम्यग्विपच्यमानं....।
धातवो हि धात्वाहाराः प्रकृतिमन्नुवर्तन्ते।।
च. सू. २८ - ०३.
तत्र पाञ्चभौतिकस्य चतुर्विधस्य षड्ररसस्य...गुणस्योपयुक्ताहारस्य सम्यक परिणतस्य यस्तेजोभूतः सारः परमसुक्ष्मःस रस इत्युच्यते।।
सु. सू. १४ - २.

जठाराग्नि पाक के अंतर्भूत, पंचमहाभुतात्मक आहार का सम्यक पाचन होने के पश्चात आहार द्रव्यों का विभाजन यह अवस्थापाक के अन्त मे सार और किट्ट स्वरुप को प्राप्त करता है.
सो, जल या अप महाभुत का भी अवस्थापाक होता है।

अवस्थापाक :

मधुरावस्थापाक :
अन्नस्य भुक्तमात्रस्य षड्ररसस्य प्रपाकतः।
मधुराद्यात् कफो भावात् फेनभूत उदीर्यते।।
च.चि १५ - ९.
यस्त्वामाशय संस्थितः । क्लेदकः सोङन्नसङ्घातक्लेदनात.....।
आ.हृ. सू. १२- १६,१७.
मधुर अवस्थापाक में आहार को संपूर्णता मधुर भाव प्राप्त होता है और कफ दोष का पोषण होता है.
यहां पर आप महाभूत के अंशों व्दारा आहार का संघात भेद और क्लेदन होता है.

अम्लावस्थापाक :
परं तु पच्यामानस्य विदग्धस्याम्ल भावतः।
आशयाच्च्यवमानस्य पित्तमच्छमछदीर्यते।।
च. चि.अ. १५ - १०.
अच्छमिति अधनम्।
च. चि. अ. १५ - १० पर चक्रपाणि.
स्वेददोषाम्बुवाहिनि स्त्रोतांसि समाधिष्ठतः।
अन्तरग्नेश्च पार्श्वस्थः समानोङग्निबलप्रदः।।
च. चि. २८ -८.
समानोङग्नि समीपस्थः कोष्ठे चरति सर्वतः।
अन्न गुह्णाति पचति विवेचयति मुञ्चति।।
आ.हृ. सू. १२ - ८.
अम्लस्थापाक यह, जठाराग्नि पाक प्रक्रिया की दूसरी अवस्था है।
यह अवस्थापाक अधो आमाशय मतलब आमाशय और पक्वाशय के मध्य स्थित अवयव "ग्रहणी" जिसे पच्यमानाशय कहते हैं, यही पर मुख्यतः होता है ।
ग्रहणी यह पित्तधरा कला का स्थान है।
इस अवस्थापाक में आहार पक्व और अपक्व अवस्था को प्राप्त करता है। इस  विदग्धावस्था के कारण संपूर्ण आहार को अम्ल भाव प्राप्त होता है. इस अम्ल रस की उत्पत्ति से पित्त का वर्धन होकर शरीरस्थ पित्त का पोषण होता है।
इस अवस्था में ग्रहणी, यकृत एवं पित्ताशय में स्थित पाचक पित्त के द्रवांश का वर्धन होता है, इसको अच्छ पित्त की उत्पत्ति कहते हैं. यहां पर आचार्य चक्रपाणि ने अच्छ मतलब "अघनम्" कहा है
इसी अवस्थापाक के अंत में आहार के बहुतांश का पचन होकर सार और किट्ट मे विभेद होता हैंं।
सो, जल महाभूत का पाचन यहां पर हो चुका होता हैंं। इसी स्थान पर स्वेद और अम्बुवह स्त्रोतसो का स्थान कहा गया है।

कटु अवस्थापाक :
पक्वाशयं तु प्राप्तस्य शोष्यमाणस्य वह्निना ।
परिपिण्डित पक्वस्य वायुः स्यात्कटु भावतः।।
च. चि. अ. १५ - ११.
शोष्यमानस्य वह्निन नेति यद्याप्युर्ध्वदाह क्षमोः वह्निनः।
च. चि. १५ - ११ पर चक्रपाणि.
पच्यमानस्य इति पदं परित्यज्यं शोष्यमाणस्य इति कृतम्।
च. चि. १५ - ११ पर चक्रपाणि.
कटु अवस्थापाक यह जठराग्नि पाक प्रक्रिया की तृतीय अवस्था है। यह पक्वाशय में संपन्न होती है।यहां पर अग्नि का बल यह अल्प होता है। इसी स्थान पर पूर्णतः सार् किट्ट विभजन हो,उनका आचुषण होकर अपने-अपने स्त्रोतस द्वारा यथा स्थान पर भेजे जाते है। पक्व  आहार में स्थित जलीय अंश का शोषण होने से किट स्वरूप स्थुल आहार द्रव्यों को पिंड स्वरूप प्राप्त होता है। यह कार्य मुख्यतः मलधरा कला द्वारा होता है। शेष स्थूल आहार कटु भाव को प्राप्त करता है और इस कटु रस की उत्पत्ति से वात दोष का पोषण होता है।

Thus, जठाराग्नि पाक leads to the संघात भेद or breakdown of proximate components of the food and render them fit for शोषण or absorption.
भूताग्नि पाक processes and convert the nutrients absorbed from the अधो आमाशय as Pre Homologues of  substances, which are meant  finally to be utilised for the उपचय or building up of स्थाई धातु i.e the seven basic structural elements of the body.
जल या अप महाभूत का जठराग्नि पाक प्रक्रिया में और अवस्थापाक में अपना महत्व है. आहार, जल और औषधि रूप में सेवित अप महाभूत के अंशों का भी पाचन प्रक्रिया के अवस्थापाक में पाचन होता है. "तो , यह कहना कि जल का अवस्थापाक नहीं होता यह युक्ति संगत नहीं है"


[6/4, 4:44 AM] Dr.Ramakant Sharma, jaipur: 

बहुत व्यवस्थित, अच्छा,तार्किक,
तथ्याधारित प्रस्तुति करण
साधु साधु !!!!!

Prof. Arun ji !


[6/4, 5:26 AM]वैद्य मेघराज पराडकर, गोवा : 

आपके ज्ञानाग्निने के कारण इस विषय का पाक होकर वह हमारे बुद्धि में शोषित हो गया । 


[6/4, 7:40 AM] Vd. Atul J. Kale

बहुत ही बढियाँ सर।

किंतु परंतु हमे जलको विभिन्न तरिकेसे विभाजित करना पडेगा क्या? जैसे....... 

१) पांचभौतिक अन्न में प्रकृतितः उपलब्ध आप महाभूत,
 
२) अन्नद्रव्यके साथ क्लेदन कर्म के लिए लिया जल, तथा

३) केवल लिया हुआ जल

तत्त्वतः हमे
इन मुद्दोंपर विचार करना होगा।

 १) जैसे अन्नद्रव्य के साथ लिया जल अवस्थापाकों से निःसंशय गुजरेगा। किंतु केवल जल लेनेके उपरान्त हम कम समयमें उसे रसरक्तमें अनुमानीत कैसे कर पाते है ? 

२) तुरन्त मूत्र की संवेदना व्यक्त होकर मूत्रमात्रा भी बढती दिखती है। कईं मूत्रल द्रव पदार्थ जैसे ईक्षुरस, नारिकेलजल तुरन्त मूत्रकी मात्रा बढाते दिखते है। और इन द्रव्यॊमें जलव्यतिरिक्त कुछ तो पृथ्वी अंश रहता ही है फिर भी रसरक्तमें इन द्रव्योंका गमन पृथ्वी-अंशोंके साथ शीघ्र होता दिखता है।

३) तृष्णावेग के समय क्षुधावेग नहीं दिखता। अगर उसका  अवस्थापाक होता तो वेग भी शायद एकही होता।

४) शरीरमें अबधातु क्षय होनेसे तृष्णाकी अनुभूती होती है। ये अनुभूती का काल क्षुधा जैसे निश्चित नहीं होता।

५) तृष्णामें प्रथम वायु पश्चात अग्नि कारण होता है जो रुक्षत्वसे और उष्णत्व से क्रमेण शोषण करते है। मारूतसेवन, अतिकष्ट र फिर आतपसेवन से अबधातु शोषण होके तृष्णाकी पराकाष्ठा होती है।

६) अगर केवल जल पुरे अवस्थापाकोंसे आगे जाएगा तो तृष्णापिडित तो मर ही जाएगा। किंतु ऎसा दुखतात नहीं, र अवस्थापाक  कम समय में संभव होगा ऎसा करता नहीं।

मेरे विचार से जल अवस्थापाकों की अपेक्षा नहीं करता है, किंतु शरीरमें जहाँ कहाँ जरुरत है,वहाँ के धातु पात्र की अवश्य ही अपेक्षा करता है। जो पात्र खाली हो वहाँ जाके बैठता है। विजातीयसे सजातीय रुपांतर आंत्रस्थ कोषाओंके स्तरपर तुरन्त होता है। इसके लिए वायुका रुक्ष गुण, अग्निका उष्ण गुण उसको शोषित करते करते सजातीय बनाते है इसलिए ये प्रक्रिया शीघ्रकारी प्रतीत होती है। 

सृष्टि में भी जलका गुरूत्व, लघुत्व देखा जाता है न की कोई परिणमन जो रुपतः गुणतः पुरा बदला हो र अपने पुराने स्वरुपको प्राप्त न कर सके।

[6/4, 8:02 AM] Prof. Satyendra Narayan Ojha: 

वैद्यराज अतुल जी ! 
सृष्टि में जब भी  जल का सम्बंध अग्नि से होता है, तो जल वाष्प स्वरुप प्राप्त होता है, जिसकी गति उर्ध्व होती है, अर्थात् पाक प्रक्रिया से जल में सरत्व गुण नहीं रह पाएगा, जबकि उदक का उदक स्वरुप में बने रहने पर ही द्रवत्व ➡️ सरत्व अभिष्ट है. रसादि अम्बु धातु का वहन भी अम्बु के सर गुण से ही सम्भाव्य है.

जल को जल ही रहने दो कोई नाम न दो !


[6/4, 8:33 AM] Prof. Satyendra Narayan Ojha

आचार्य चक्रपाणी; यद्यपि भूताग्नि पार्थिवादिद्रव्यं पच्यते, तथाऽपि पार्थिवादिद्रव्याणां पाकेनैतदेव जननं यद्विशिष्टगुणयुक्तत्वं, तेन पाकेन जन्यमानेऽपि द्रव्ये गुणा एव जन्यन्त इत्यभिप्रायेण पार्थिवादीनाहारगुणाञ्जनयन्तीत्युच्यते. अनेन गुणजननमेवाग्निनोच्यते , न द्रव्यजननम्;
 
अग्नि से गुणो का जनन होता है न की  द्रव्य का.

जाठरेणाग्निना पूर्वं कृते संघातभेदे पश्चाद्भूताग्न्य: पञ्च स्वं स्वं द्रव्यं पचन्ति.. 

अर्थात् अवस्थापाक के पश्चात् प्राप्त संघात से जलीयांश को अलग कर उसके द्रवत्व - सरत्व गुण का जनन ही आप्य भूताग्नि का कर्तव्य है


[6/4, 8:34 AM] +91 93722 12148 
Prof. Mrunal Tiwari: 


अन्न पचन होते समय क्लेदन कार्य क्लेदक कफ करता है, साथ मे पिया हुआ जल भी सहाय्यभूत होगा।
पांचभौतिक अन्न पचन होते समय अन्नवह स्रोतस मे सभी पंचमहाभूत की अग्नि की उपस्थिति रहती है। तभी वह संघात दूर होके अन्नरस तैयार होगा।
जल पर जलमहाभूताग्नि का संस्कार होते ही वह शरीर मे उपयोगी होती है।


[6/4, 8:39 AM] Prof. Satyendra Narayan Ojha : 

द्रवत्व से ही उपक्लेदन होता है, अर्थात् क्लेदक कफ से क्लेदन जल महाभूत का कार्य है !

जलीय द्रव्य द्रव गुण प्रधान तथा उपक्लेदन उनका प्रधान कर्म है


[6/4, 8:44 AM] +91 93722 12148
Prof. Mrunal Tiwari: 

पिया हुआ जल शरीर स्थित सभी सभी घटको का मूर्तरूप कफ, पित्तका पोषण/आप्यायन करेगा।


[6/4, 8:44 AM] Prof. Satyendra Narayan Ojha

0.5-1 litre salivary secretion and 1-1.5 lt gastric secretion help in क्लेदन कर्म..

शरीर में स्थित जलीयांश को नियमित रखना ही समान वायु और आप्य भूताग्नि का कर्तव्य है

increased salt inrake ➡️Increased osmolality of plasma ➡️ stimulation of osmoreceptors ➡️ thirst ➡️ increased water intake to normalise osmolality of plasma ➡️प्रकृतिस्थापन , विकृति विघात भाव..
विकृति विघात अभाव ➡️ adipsia ➡️adipsic hypernatremia ➡️ hypertonic dehydration➡️ tachycardia, postural hypotension, azotaemia, hyperuricemia , hypokalemia- muscle weakness, pain rhabdomyolysis, hyperglycemia, hyperlipidemia and acute renal failure


 [6/4,10:18AM] Prof. Arun Rathi, Akola: 

प्रश्न उचित है !

पोष्ट का आरंभ ही मैने अग्नि तत्व के निरुक्ति से किया है।
आप के सभी शंकाओं का समाधान वही पर मिल जायेगा
पाचन प्रक्रिया यह शरीर विजातीय द्रव्यों को शरीर सजातीय करने के लिए होती है।
द्रव्य जितना शरीर सजातीय होगा, उस पर अग्नि की क्रिया उतनी कम होगी।

Ex.1. If we give electrolyte or glucose or normal saline by transfusion, it will be readily absorbed in the body and there is no need for  जठाराग्नि पाक. Direct भुताग्निपाक will be there.

2 : If plasma  or blood transfusion is given it will go directly in रसरक्तवह स्त्रोतस. Only भुताग्नि पाक is required.
3. If a person is having hypoglycemic shock or a person is suffering from hypoglycemia, if you  give , glucose then just it will be absorbed on the surface of tongue itself.
It will not go through  the metabolic processes such as polysaccharides will be converted into monosaccharides.

4. if we use amino acids instead of poly peptides, then they will be readily absorbed in the body without having the digestion and metabolism at elementary Canal level.


[6/4, 11:00 AM] Prof. Satyendra Narayan Ojha

Transformation of water either in ice or in steam, are they needed for body ??

[6/4, 11:01 AM] +91 80878 73115:
Prof. Ranjit Nimbalakar:

 १. अगर पानी के पचन में अवस्थापाक नही होते, तो ६ घंटे का समय किसलिये ? 

२. क्या सच में पानी का पचन होना होता है ? अगर ऐसा है, तो सोनोग्राफी के वक्त पानी पीने पर आधे घंटे में ब्लॅडर फुल कैसे होता है? 

३. अतिसार में अग्निमांद्य होने के बावजूद ORS पिलाने पर पानी का और भी अजीर्ण होने की बजाय रुग्ण की जान कैसे बचती है? 

४. आधुनिक विज्ञान सीधे खून मैं पानी डाल देते है IV infusion.... उससे अग्निमांद्य और बढके रुग्ण की हालत बदतर होने की जगह बहुत बार सुधरती कैसे है?


[6/4, 11:03 AM] Prof. Satyendra Narayan Ojha

No need to transform water, so no need of action of jatharagni, aapya bhootaagni only to maintain dravtava-saratva.. 
don't confuse yourself, please !
Prof. Ranjit ji !


[6/4, 11:04 AM] Prof. Arun Rathi, Akola: 

जल यह पांचभौतिक द्रव्य है, जठाराग्नि पाक मे इसका संधात भेद होकर तत् पश्चात सभी पाँचभौतिकाग्नि की उस पर क्रिया होगी और उसके बाद उन सभी तत्वों का आचुषण होगा।
यह सामान्य न्याय है।
अब जल यह जितना शरीर सजातीय होगा, उसी अनुसार उस पर अग्नि की क्रियाओं की आवश्यकता होगी।


[6/4, 11:30 AM] Prof. Satyendra Narayan Ojha


Absorption of Water and Electrolytes

The small intestine must absorb massive quantities of water. A normal person or animal of similar size takes in roughly 1 to 2 liters of dietary fluid every day. On top of that, another 6 to 7 liters of fluid is received by the small intestine daily as secretions from salivary glands, stomach, pancreas, liver and the small intestine itself.

By the time the ingesta enters the large intestine, approximately 80% of this fluid has been absorbed. Net movement of water across cell membranes always occurs by osmosis, and the fundamental concept needed to understand absorption in the small gut is that there is a tight coupling between water and solute absorption. Another way of saying this is that absorption of water is absolutely dependent on absorption of solutes, particularly sodium:

Sodium is absorbed from the intestinal lumen by several mechanisms, most prominently by cotransport with glucose and amino acids, and by Na+/H+ exchange, both of which move sodium from the lumen into the enterocyte.
Absorbed sodium is rapidly exported from the cell via sodium pumps - when a lot of sodium is entering the cell, a lot of sodium is pumped out of the cell, which establishes a high osmolarity in the small intercellular spaces between adjacent enterocytes.
Water diffuses in response to the osmotic gradient established by sodium - in this case into the intercellular space. It seems that the bulk of the water absorption is transcellular, but some also diffuses through the tight junctions.
Water, as well as sodium, then diffuses into capillary blood within the villus.
As sodium is rapidly pumped out of the cell, it achieves very high concentration in the narrow space between enterocytes. A potent osmotic gradient is thus formed across apical cell membranes and their connecting junctional complexes that osmotically drives movement of water across the epithelium.

Water is thus absorbed into the intercellular space by diffusion down an osmotic gradient. However, looking at the process as a whole, transport of water from lumen to blood is often against an osmotic gradient - this is important because it means that the intestine can absorb water into blood even when the osmolarity in the lumen is higher than osmolarity of blood.


[6/4, 11:56 AM] Prof. Satyendra Narayan Ojha: 

 The best ORS from Ch.chi.19/28; 
वृक्षाम्लं दाडिमाम्लं च सहिङ्गु विडसैन्धवम् , प्रयोजयेदन्नपाने विधिना सूपकल्पितम्


[6/4, 12:01 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha

The citrate in ORS is needed for the treatment of acidosis, which occurs frequently with dehydration. Glucose is included in the solution principally to help the absorption of sodium and not as a source of energy.


[6/4, 12:01 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha:


 Pomegranate juice contained the highest concentration of citrate (16.51 ± 0.78 g/L) and apple juice contained the least concentration (0.29 ± 0.03 g/L)


[6/4, 1:25 PM] +91 99609 67230 Prof. Sanjay N. Lungare:


 पानिय जल में अन्तरिक्ष जल को श्रेष्ठ कहा हे।
आन्तरिक्षमुदकानां।
च सू २५/३८
अगर वह प्राप्त नहीं हैं तो भूमिष्ठं लें।
तदभावे च भूमिष्ठं पेयम्।
 अ सं सू ६/५
लेकिन वह अन्तरिक्ष जल का अनुकरण करने वाला होना चाहिए ।

यद् गुणै: स्वच्छत्वादिभिरान्तरिक्षमनुकरेति तत्सदृशं गुणैरित्यर्थ

अव्यक्त रस के कारण ही वह अन्तरिक्ष जल समान बनता है।

आकाशगुणाधिके चाव्यक्तरसत्वादान्तरिक्षसमगुणम्।
इन्दु अ सं सू ६/६पर

मैं इसे deionised / distilled water मानता हुं।
भूमि संपर्क तथा अन्य कई कारणों से इसमें रसोत्पत्ति होती है।

तस्यानिर्देश्यरसस्यापि निर्देश्यरसत्वे कारणं निर्दिशन्नाह सु सू ४५/४ डल्हण

केवल ऐसे ही जल का,
व्यक्तरसता रसदोष: सु सू ४५/११
विपाक दोष कहा है।

तस्य स्पर्शरूपगन्धवीर्यविपाकदोषा:
यदुपयुक्तं चिराद्विपच्यते विष्टम्भयति वा स विपाकदोष।
अन्तरिक्ष जल के लिए नहीं।
त एते आन्तरिक्षे न सन्ति।११

तस्य लिङ्गमजीर्णस्य विष्टम्भ:सदनं तथा। 
च चि १५/४५
विष्टम्भ इति विष्टम्भोऽप्रचलनरूपतयाऽवस्थानम्।

तो अर्थापत्ति से यहां अवशोषण ( absorption) को भी पाचन के अन्तर्गत ले सकते हैं।
It inhibit absorption of water in circulation.

पाक: पचनं द्रव्याणां स्वरूपरसयो: परावृत्ति !

पाक संज्ञा के लिए स्वरूप तथा रस परिवर्तन अपेक्षित है। तथा धातुपरम्पराक्रम अपेक्षित है। परंतु वृष्यादी द्रव्य यह क्रम follow नहीं करते।
वह अव्यक्तरस के कारण आहाररस का तात्काल से अनुवर्तन करते हैं ।

अन्नरसांश्चानुवर्तते इति अव्यक्तरसेन जलं यथा चक्रपाणि चि २३/२५ पर।

तो जल के संदर्भ में अवस्थापाक या विपाक का विचार शास्त्र द्वारा युक्तिसंगत नहीं है ।
केवल आचार्य सुश्रुत द्वारा जल का  विपाकदोष बतलाया गया है। वहां भी विष्टम्भ यानी प्रचलन यानी absorption मे देरी यह अर्थ युक्तिसंगत है।
भावप्रकाशोक्त या मदनपाल निघण्टु में बताये गये जल पाचन का अर्थ time required to absorb ingested water from gut to circulation. यह अर्थ ठीक लगता है।
I have already posted one paper on this group which supports this view.
This is my view, other may have different.


[6/4, 1:33 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha

Key words ; *आकाशगुणाधिके चाव्यक्तरसत्वादान्तरिक्षसमगुणम्
अन्नरसांश्चानुवर्ते इति अव्यक्तरसेन जलम्


[6/4, 2:01 PM] 
+91 9960967230: Prof. Satyendra N .Lungare:

इसी के पुष्ठ्यर्थ एक शास्त्रीय संदर्भ।
अविरोधाद्धातूनां रसयोनित्वाच्च जलमुष्णम्। च सि १०/१४

In enemas,sour liquid, urine, milk, wine and decoction should be used along with hot water because of no antagonistic nature of water.


[6/4, 5:25 PM] +91 74660 37470 Prof. Satish Panda, K. C.:

: Water is more absorbed than digestion. Means very easily get digested.Very easily homologous for the body.
But should be clean and healthy. 

If someone is drinking water on an empty stomach, they are more likely to experience a faster rate of water absorption

 Water,  is a very simple molecule, so our body doesn’t have to break it down into smaller, simpler molecules. As a matter of fact, water molecules are so small that they have no problem diffusing through the phospholipid bilayer that forms the cell membrane of human tissues. This cell membrane (presumably) consists of small channels or pores through which water or water-soluble substances can enter, meaning that water is directly absorbed through the epithelial cells that cover humans’ intestinal tract.


[6/4, 5:51 PM] +91 94146 05694:
 Prof. Lakshmikant Dwivedi

"Atyambupanann vipacyatennm ,nirambu panaccasaev doshah !
TasmAnnaro vahnnivivardhanAya muhurmuhuhpibedabhurivAr i!!


[6/4, 7:21 PM] Dr. Pawan madaan: 


क्या ये जरूरी है के जो 6 घंटे वाला रूल लिखा गया है वो सही ही हो या हर परिस्तिथि में या हर व्यक्ति के सही ही हो ??

बहुत सारे नियम सामान्य होते है व विशिष्ट अवस्था मे अलग भी ही सकते हैं ।


[6/4, 9:21 PM] Prof. Surendra A. Soni: 


१. अगर पानी के पचन में अवस्थापाक नही होते, तो ६ घंटे का समय किसलिये ? 

पानी के पाचन से तात्पर्य उसके शीतादि  गुण, तापमान आदि का शरीर के अनुरूप करना है ।
आदरणीय प्रो लूँगारे जी ने इसे शास्त्र सन्दर्भ सहित बताया है । आदरणीय प्रो ओझा जी और प्रो अरुण जी ने विस्तृत वर्णन किया है ।

२. क्या सच में पानी का पचन होना होता है ? अगर ऐसा है, तो सोनोग्राफी के वक्त पानी पीने पर आधे घंटे में ब्लॅडर फुल कैसे होता है ? 

प्रो ओझा जी ने उत्कृष्ट आधुनिक वर्णन किया । आपका यह प्रश्न आपके प्रथम प्रश्न का उत्तर भी है कि जल का अवस्था पाक नहीं होता है तथापि कृश दुर्बल में यह जलपान अपने गुणों से अग्नि को मंद करने वाला तो होता ही है ।

३. अतिसार में अग्निमांद्य होने के बावजूद ORS पिलाने पर पानी का और भी अजीर्ण होने की बजाय रुग्ण की जान कैसे बचती है ? 

अतिसार में अप धातु क्षय होता है और ORS आवश्यक भूताग्नि घटकों से सम्पन्न द्रव सर्वदा सर्व भावानां..... सिद्धांत से प्राणरक्षक होता है ।

संशम्यापान्धातुरन्तः कृशानुं वर्चोमिश्रो मारुतेन प्रणुन्नः । 
वृद्धोऽतीवाधः सरत्येष यस्माद्व्याधिं घोरं तं त्वतीसारमाहुः ।।६।।
सु सू 40

डल्हण
अपान्धातुः कायद्रवः श्लेष्मपित्तरसादिकः। अन्ये तु कफदुष्टं रसं स्वेदं चापान्धातुशब्देनाहुः।

४. आधुनिक विज्ञान सीधे खून मैं पानी डाल देते है IV infusion.... उससे अग्निमांद्य और बढके रुग्ण की हालत बदतर होने की जगह बहुत बार सुधरती कैसे है ?

धातु क्षय अवस्था में स्थिति सुधरती है । इस विषय पर विद्वानों द्वारा भूताग्नि कार्य का विस्तार से विवेचन किया जा चुका है ।

Prof. Ranjit Sir !

[6/4, 9:24 PM] Dr Ashwini Kumar Sood, Ambala: 

सारगर्भित एवं उत्कृष्ट  !

[6/4, 9:26 PM] Dr. Mrityunjay Tripathi, Gorakhpur: 

बहुत ही अच्छा ओझा सर जी !

[6/4, 9:26 PM] Dr. Mrityunjay Tripathi, Gorakhpur: 

अतुल सर ! अरुण सर ! लूँगारे सर !


[6/4, 9:37 PM] Dr. Ashok Rathod, Oman: 

Good !

[6/4, 9:49 PM] Prof Satyendra N Ojha: 

प्राध्यापक सुरेन्द्र भाई !

[6/4, 10:12 PM] Dr Sandesh Chavhan: 

Good !

[6/4, 10:23 PM] Dr Narinder Pal, Jammu: 

kuch shesh na raha !

[6/5, 6:42 AM] Prof. Ranjit Nimbalakar, Pune: 

बढिया !

[6/5, 7:07 AM] pawan madan Dr: 

Nice ! Good mng Soni ji.







**************************************************************************


Above discussion held on 'Kaysampraday" a Famous WhatsApp -discussion-group  of  well known Vaidyas from all over the India. 



Compiled & Uploaded by

Vd. Rituraj Verma
B. A. M. S.
ShrDadaji Ayurveda & Panchakarma Center,
Khandawa, M.P., India.
Mobile No.:-
 +91 9669793990,
+91 9617617746

Edited by

Dr.Surendra A. Soni

M.D.,PhD (KC) 
Professor & Head
P.G. DEPT. OF KAYACHIKITSA
Govt. Akhandanand Ayurveda College
Ahmedabad, GUJARAT, India.
Email: surendraasoni@gmail.com
Mobile No. +91 9408441150

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