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WDS 83 : KATUKA (Picrorhiza kurroa) by Prof. Satyendra Narayan Ojha, Vaidyaraja Subhash Sharma, Vd. Raghuraj Bhatta , Dr. Pawan Madaan, Vd. Atul Kale, Prof. Giriraj Sharma, Vd. Megh raj Pakadakar & Others.

[2/24, 9:15 PM] Vd. Atul J. Kale  *मलादिकमबद्धं च बद्धं वा पिण्डितं मलै:।।* *भित्वाध: पातयति तद्भेदनं कटुकी यथा।  शा.सं. प्र.अ.४/५* यन्मलादिकमबद्धं मलबद्धं *पिण्डितपरिपाकात् पिण्डीभूतम्* परिपाकात् वाय्वग्निकार्यं.... पुरीषं वाय्वग्निधारणं  ...... बद्धं, विबद्धं, शुष्कं, ग्रथितं च .... तत्र शुष्कं पुरीषविषयं (अतिरिक्त वाय्वाग्नि साहचर्य)  ग्रथितं दोषादीनाम् (संग-ग्रंथि) *कटुका* द्रव्यों का चिकित्सीय अभ्यास एकल द्रव्य उपयोगिता में बहु उपयोगी सिद्ध होता है। ग्रंथों में विशेषतः चरक संहिता में प्रथम अध्याय से ही द्रव्य आते दिखते है।  जैसे जैसे अध्याय आगे जाते है वैसे वैसे सामान्य से विशेष की ओर मार्गक्रमणा होती दिखती है। किंतु सामान्यमेंभी एक विशेषता उजागर होती है।  जैसे उदाहरणस्वरुप महाकषायोंके द्रव्यों का चिकित्सीय उपयोग..... सामान्यत: ये द्रव्य एकत्र करके परिणाम तो आएंगे ही किंतु हर एक द्रव्यकी कार्मुकता भिन्न होगी, प्रभाव भिन्न होगा। संप्राप्तियोंके सूक्ष्म अंशांश कल्पनाओंमें उपयोगी सिद्ध हो सकती है। अनेक रेषाओंका छेदन जीस बिंदू पर होगा उस बिंदूपर जो द्रव्य प्राप्त होगा ओ आशातीत लाभ करे