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WDS 83 : KATUKA (Picrorhiza kurroa) by Prof. Satyendra Narayan Ojha, Vaidyaraja Subhash Sharma, Vd. Raghuraj Bhatta , Dr. Pawan Madaan, Vd. Atul Kale, Prof. Giriraj Sharma, Vd. Megh raj Pakadakar & Others.

[2/24, 9:15 PM] Vd. Atul J. Kale 

*मलादिकमबद्धं च बद्धं वा पिण्डितं मलै:।।*
*भित्वाध: पातयति तद्भेदनं कटुकी यथा।
 शा.सं. प्र.अ.४/५*
यन्मलादिकमबद्धं मलबद्धं
*पिण्डितपरिपाकात् पिण्डीभूतम्*
परिपाकात् वाय्वग्निकार्यं.... पुरीषं वाय्वग्निधारणं 
......
बद्धं, विबद्धं, शुष्कं, ग्रथितं च ....
तत्र शुष्कं पुरीषविषयं (अतिरिक्त वाय्वाग्नि साहचर्य) 
ग्रथितं दोषादीनाम् (संग-ग्रंथि)

*कटुका*
द्रव्यों का चिकित्सीय अभ्यास एकल द्रव्य उपयोगिता में बहु उपयोगी सिद्ध होता है।
ग्रंथों में विशेषतः चरक संहिता में प्रथम अध्याय से ही द्रव्य आते दिखते है। 
जैसे जैसे अध्याय आगे जाते है वैसे वैसे सामान्य से विशेष की ओर मार्गक्रमणा होती दिखती है। किंतु सामान्यमेंभी एक विशेषता उजागर होती है। 

जैसे उदाहरणस्वरुप महाकषायोंके द्रव्यों का चिकित्सीय उपयोग.....
सामान्यत: ये द्रव्य एकत्र करके परिणाम तो आएंगे ही किंतु हर एक द्रव्यकी कार्मुकता भिन्न होगी, प्रभाव भिन्न होगा। संप्राप्तियोंके सूक्ष्म अंशांश कल्पनाओंमें उपयोगी सिद्ध हो सकती है। अनेक रेषाओंका छेदन जीस बिंदू पर होगा उस बिंदूपर जो द्रव्य प्राप्त होगा ओ आशातीत लाभ करेगा। (रसादी विपाक, प्रभाव, रसादी पर कार्य, दोषोंपर कार्य आदी) 

कटुका का उपयोग कौन से बिंदूओं पर आएगा ये देखना पडेगा।

प्राथमिक विस्तृतीके लिए
*भेदनीय गणमें* कटुकाका उल्लेख है।

सुवहा-त्रिवृत
अग्निमुखी -लाङ्गली
चित्रा-दन्ती
शङ्खिनी
शकुलादनी-कटुका
स्वर्णक्षीरिण्य
चित्रक
चिरबिल्व 

भेदनीय महाकषायके जादातर द्रव्य उष्ण-तीक्ष्ण है किंतु कटुका कटुविपाकी होने पर भी शीत है।
युक्त:- वायु+ आकाश (one is volatile with max. dryness and subtle in nature and one gives space) 
*गुण*:- रुक्ष, लघु परंतु तीक्ष्ण नहीं (भेदने....) 
*कटु विपाक*- वायु+ अग्नि
किंतु गुणस्वरुपमें अग्नि महाभूत नही बताया। विपाकमें अग्नि का लक्षणस्वरुप पाना ये विचित्रप्रत्ययारब्धत्वका उदाहरण।
तो भेदत्व विपाकमें उत्पन्न होता है क्या? निष्ठापाक का समय अग्नि अनुसार निश्चित करके भेदत्व विपाकमें अवस्थित है या नहीं देख सकते है।  जैसे कटुरस शोणितसंघातभिनत्ती ।

*लेखनीय, स्तन्यशोधन एवं तिक्तस्कन्ध*

*तिक्ता*- आमाशय में वायु-आकाश से कफ का शोषण एवं अग्निके लिए अवकाशोद्भव. 
*लेखनीय*:- वायू- आकाश :- वायू के चल गुणका साहचर्य, रुक्षादी से मध्यंतर अवकाश बढना, रसमें मेद पोषकत्व का ह्रास. 
*लेखन* :- अपने स्थानसे धातुकणों को विलग करके स्थानविभक्त करना।
Required things:- Rough media, max. sharp particles in minimum possible area. But in circulating Rasa these particles will be of moving nature. These particles are the outcome of all avasthapak and vipaka. These particles will be Vayu and Akash dominated. 

 

*भेदिनी*:- पुरिष पर कार्य, पुरिष की अवस्था में किंतु स्निग्धादी कफ गुण वृद्ध हो. अपान क्षेत्रमें कार्य.

*दीपनी:- Pittarechaka - *not Pachaka* (as all tikta dravyas are) but Deepak. So it gives stimulation and evacuates gastric juices. 

*कार्य एवं व्याधिनुरुप*

*ह्रद्या*:- रस, रक्त, मांस, कफ पर विशेष कार्य. भेदन कार्य यहाँ भी प्रतीत होगा।

*कफपित्तज्वरापहा*:- रसपाचक, रक्तपाचकोंमें उपयोग, सतत, संतत ज्वर ( *विषमज्वरनाशिनी* ) 

*प्रमेह*:- क्लेदपर कार्य
*श्वास*:- उरःस्थान एवं अामाशयपर कार्य
*कास*:- कफजकास, उदावर्तजन्य कफजकासपर कार्य.
*अस्रदाहजित्*:- रक्तस्त्थ उष्णतीक्ष्णतापर कार्य. 
*अरोचक*:- रसपर कार्य

*धातु*:- रस, रक्त, मांस, मेद
*उपधातु*:- स्तन्यशोधन गण- स्तन्य
*दोष*:- कफ, पित्त
*मल*:- पुरीष 
*कफ*:- बोधक कफ, अवलंबक कफ, क्लेदक कफ, तर्पक कफ
*पित्त*:- पाचक पित्त, रंजक पित्त
*वात*:- व्यान, प्राण, उदान, समान, अपान

[2/24, 9:29 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha : 

*संध्याकालिन चर्चा में मेरी तरफ से इतना ही.. खान पान विश्राम का समय, शुभ रात्रि वैद्यराज सुभाष शर्मा जी एवं आप सभी को*

[2/25, 12:52 AM] Vaidyaraj Subhash
Sharma

 *वैद्य अतुल जी, बहुत ही लाजवाब विशलेषण 👌👌👌*


[2/25, 1:22 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma
*🙏🙏🙏 प्रतिदिन नये नये रोगियों की भीड़ लगी रहती है, cholesterol 275 तथा tgl 491 और हेतु शीत ऋतु में गोंद के लड्डू, घृत में गाजर का हलवा, मिठाईयां, मक्खन का अति प्रयोग, व्यायाम का अभाव ।इस प्रकार के रोगी ही एक दिन में कम से कम 10-12 तो नये ही आते है। चिकित्सा प्रथम आम दोष की, आहार, विहार, दिनचर्या का पालन, meditation और औषध चिरायता+कुटकी+ कालमेघ, कुटकी+ गुग्गलु योग, शुंठि+ जीरक फांट, हरीतकी चूर्ण आदि से साधारणत: एक से डेढ़ महीने में ये reports सामान्य आ जाती है।*

*वृक्काश्मरी + DM type 2 और जन्म से ही एक वृक्क अगर समय रहते उचित चिकित्सा रोगी ना ले तो वृक्क दुष्टि आरंभ हो कर b urea और s cr. दोनों की वृद्धि होने लगती है जैसे इस रूग्णा में है, आज ये पहली बार आई थी। कल हमने एक रोगी की report post की थी जिसका जन्म से ही एक वृक्क था और इसे मिलाकर हमारे यहां कुल 22 रोगी जन्म से ही एक वृक्क के है। इन सभी के लिये एक proforma बनाया गया है जिसमें history ले कर यह जानने का प्रयास कर रहे है कि आयुर्वेद मतानुसार मात्र एक ही वृक्क होने के क्या क्या कारण हो सकते है, हम इनके grand parents तक की history एकत्र कर रहे है।आयुर्वेद में अनुसंधान का बढ़ा विशाल क्षेत्र है, आदि बल और जन्म बल रोगो पर जब भी कार्य करते हैं तो आश्चर्य होता है कि हमारे प्राचीन आचार्य जैसे महान वैज्ञानिक तथा त्रिकालदर्शी थे और जैसा उन्होने ग्रन्थों में लिखा है वैसा ही सब कुछ मिलता है जबकि तब इतने संसाधन भी नही थे।*

[2/25, 1:40 AM] Dr. Sanjay Khedekar: 

👌🏻👌🏻
सादर प्रणाम गुरुजी🙏🏻🙏🏻


[2/25, 1:41 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma

*सप्रेम नमन जी डॉ संजय खेडेकर जी 🌹🌺🙏*


[2/25, 1:46 AM] Dr. Sanjay Khedekar:

 गुरुजी, चरकसंहिता में वर्णित दिव्य चक्षु-ज्ञान चक्षु यही हो सकते है, तपोबल सामर्थ्य...आप बहुत तेजी से सोच लेते है गुरुजी🙏🏻


[2/25, 1:48 AM] Dr. Sanjay Khedekar: 

जी गुरुजी ... निश्चित ही मेरा सौभाग्य है... मैं जरुर आऊंगा...🙏🏻


[2/25, 2:03 AM] Vd Sachin Vilas Gajare Maharashtra: 

🙏🏻
यह कडी जरूर नोबेल पारितोषिक आपके पास लाएगी।
कृपया अनुसंधान के कार्य में काय संप्रदाय को काम में लगाए।
हमारी दृष्टि भी बढ़ेगी।
धन्यवाद!!!


[2/25, 5:37 AM] Dr.Pawan Madan :

 बहुत बढिया अतुल जी।
🙏🌹🙏


[2/25, 5:41 AM] Dr.Pawan Madan : 

कहने का तात्पर्य ये है के कुटकी के ज्यादतर प्रभाव विचितृप्र्त्यारब्ध ही हैं?🤔


[2/25, 5:43 AM] Dr Mansukh R Mangukiya :

 🙏 मस्त विवरण दिया है वैद्य अतुल काले सर🙏


[2/25, 5:45 AM] Vd.V.B.Pandey 

साधारण योगों से असाधारण परिणाम।


[2/25, 7:30 AM] Dr. Chandraprkash Dixit :

 🙏🙏


[2/25, 7:31 AM] Dr. Chandraprkash Dixit :

 🙏🙏पंचकोल चूर्ण के भी बहुत अच्छे और शीघ्र परिणाम मिलते हैं सर


[2/25, 7:33 AM] Dr. Chandraprkash Dixit : 

पंचकोल चूर्ण सुबह-शाम और अर्जुनत्वक् का कषाय के बेहतरीन परिणाम हैं
🙏


[2/25, 7:37 AM] Prof.Satyendra Narayan Ojha :

 जी , कटु, तिक्त, एवं कषाय द्रव्यो का प्रयोग से लाभ मिलता ही है, निश्चित रुप से किराततिक्त, कुटकी, पटोल, निम्ब, सारिवा, असन, पंचकोल इस श्रेणी के अग्र्य है .


[2/25, 7:38 AM] Prof. Satyendra Narayan Ojha : 

पंचकोल चूर्ण को अर्जुन कषाय के साथ देना अति विशिष्ट प्रयोग है जिससे लाभ मिलता ही है.


[2/25, 7:41 AM] Prof. Satyendra Narayan Ojha : 

वैद्यराज अतुल काळे जी , क्रमबद्ध प्रस्तुतीकरण के लिये साधुवाद.. लगातार आपकी लेखन शैली में परिपक्वता झलकती है , ऐसे ही लिखते रहिये.. 🌹🌹


[2/25, 7:46 AM] Vd. Atul J. Kale : 

धन्यवाद पवनजी. 

जी नहीं, मैंने सिर्फ यह बतानेकी कोशिश की है की रसके नियमसे विपाक है किंतु गुण भिन्न होनेके कारणभी भेदन कर्म कटुकामें विद्यमान है उसका कार्यकारणभाव यही रहेगा या अन्य होगा? ओ मैं भी समझनेकी कोशिश कर रहा हूँ, अचिन्त्य प्रभावका भी उल्लेख नहीं है।
तो ये ज्यादातर तिक्त रससे शोषण करके मलमें अवकाश उत्पन्न करके वायूके चल गुणको उद्दपित करके तो भेदन नहीं करती। किंतु ऎसे अन्य तिक्त द्रव्यही है जो ग्राही, मलस्तम्भक है, उनमें रसानुमेयी कार्य नहीं दुखतात, तो ये कुटकीका अचिन्त्य प्रभावही होगा जो बताया नहीं किंतु समझना होगा (संभवत:)
     दुसरी बात कुटकीका हर कर्म विशेष विशेष जगहोंपर रसादीकी शृंखला सेही कार्यान्वित होते दिखता है।


[2/25, 7:49 AM] Vd. Atul J. Kale:

 सुप्रभात गुरुजी
धन्यवाद सर, ये आपकी अौर गुरुवर्य सुभाषसरकीही प्रेरणा है जो हम विद्यार्थीयोंको प्रेरणा अौर उर्जा देती रहती है। 🌹🌹🌹🙏🙏🙏🙏


[2/25, 7:53 AM] Prof. Satyendra Narayan Ojha : 

आचार्य चरक लिखते ही है की गुण , रस , वीर्य , विपाक के अनुसार कर्म प्राय: मिलते हैं.. यहां पर गुण प्रधान से भेदन , रस वीर्य विपाक से पित्तकफघ्न जिससे ज्वरादि में बहुतायत से उपयुक्त..


[2/25, 8:08 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma : 

*सुप्रभात - सादर नमन ओझा सर एवं सभी विद्वानों को 🌹💐🌹🙏*


[2/25, 8:17 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma : 

नमस्कार डॉ सचिन जी, काय सम्प्रदाय हमें सब कुछ दे रहा है, परम विद्वानों से प्रदत्त ज्ञान , विभिन्न शंकाओं का समाधान , आयुर्वेद ज्ञान चर्चा, सब से बढ़ी बात अगर आप को कोई भी योग जो आपका मन चाहे और अति उत्तम क्वालिटी के तो प्रो.चुलैट सर, प्रो. दीप पाण्डेय जी, वैद्य विश्वासु गौड़ जी, प्रो. अरूण राठी जी की सेवायें ले कर इनसे निर्माण करा लेता हूं , आप लोग भी इनका सहयोग ले सकते है और यहां सब share करके चलता हूं कि आप सब भी चिकित्सा में समर्थ बन सके।*

*ओझा सर प्रतिदिन इतनी व्यस्तता के बाद भी जिस प्रकार ऊर्जावान रहकर सभी के प्रश्नों के उत्तर देते है तो हमें इस से अधिक और क्या चाहिये ?*


[2/25, 8:22 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma :

रोगी स्वयं ही स्वस्थ होता है जॉ पाण्डे जी क्योंकि शरीर को ज्ञान है कि किस प्रकार वो संचालित होता है, औषध उसे सहयोग देती है बस।मरणासन्न रोगी को वायु चाहिये, रेगिस्तान में किसी को जल ये साधारण ही तो हैं और निशुल्क पर उस समय अनमोल और अमृत। अत: हर औषध असाधारण है।* 🌹🙏


[2/25, 8:26 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma 

*पंचकोल तो हमने अनेक रोगियों को बता रखा है कि घर पर गरम मसाले की तरह ही बना कर रख ले, अनेक रोगी नियमित रूप से दाल,शाक या दही में भी मिलाकर थोड़ा थोड़ा नियमित दिन में दो-तीन बार लेते है और अपने यहां से भी हम देते है, अति श्रेष्ठ कार्य करता है वैद्य दीक्षित जी 🌹🙏*


[2/25, 8:27 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma : 

*जी सर, इन सभी का उपयोग ही तो हमारी चिकित्सा का प्रमुख भाग है ❤️🙏*


[2/25, 8:28 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma : 

👌👌👌🙏


[2/25, 8:30 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma : 

सही कहा सर, अतुल जी जिस प्रकार से लिखते है वो अति विद्वतापूर्ण और to the point होता है।*


[2/25, 8:54 AM] Vd.V.B.Pandey : 

सब कुछ स्पष्ट कर दिया गुरूवर आपने  कटुकी के बारे मे।🙏


[2/25, 8:58 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma : 

*शार्गंधर चतुर्थ स्थान में 'मलादिकमबद्धं यद् बद्धं वा पिण्डितं मलै:, भित्वाध: पातपति तद् भेदनं कटुकी यथा' मल किसी भी प्रकार का हो बद्ध, अबद्ध, दोषों के द्वारा ग्रथित उसे किसी भी प्रकार तोड़ कर बाहर निकालना भेदन कर्म है और यह कुटकी करती है।च सू 4/4 भेदनीय महाकषाय में दस भेदनीय औषधियां त्रिवृत्त, अर्क,दन्ती , कटुकी आदि है।अनुलोमक, स्रंसक,भेदक और रेचक द्रव्य अधो मार्ग से दोषों का निर्हरण करते हैं। कल्प स्थान के पहले अध्याय में रेचन द्रव्यों को उष्ण तीक्ष्ण सूक्ष्म व्यवायी विकासी कहा है। सु सू 14 में इस प्रकार के द्रव्यों को पृथ्वी और जल महाभूत के गुणों से युक्त हो कर अधोगमन करते हैं और उनका प्रभाव भी माना गया है।*


[2/25, 9:00 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma :

 *कुटकी मे प्रभाव महत्वपूर्ण है, पहली मात्रा ही वो कार्य कर देती है कि विश्वास नही होता ।*


[2/25, 9:02 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma :

 *हरीतकी के विषय में कथन है कि हाथ में मुठ्ठी में रखो तो भी विरेचन ला देती है ऐसी भी हरीतकी आचार्योॉ को मिली , ये भी हरीतकी का प्रभाव है।*


[2/25, 9:05 AM] Prof. Satyendra Narayan Ojha : 

*जी , वैद्यराज सुभाष शर्मा जी , 🙏🙏सत्य कथन.. विजया ऐसा ही करती है , आचार्य भावप्रकाश  जो ऋतु हरितकी का प्रयोग बताये है , अप्रतिम है..*


[2/25, 9:23 AM] Prof.Giriraj Sharma  : 

*सादर प्रणाम आचार्य श्री*
🌹🌹🌹🙏🏼🌹🌹🌹
*मलादिकमबध में मल शब्द से सिर्फ पुरीष के साथ साथ अन्य मलो को भी ग्रहण करना चाहिए जो प्रयोगिक एवं शास्त्रसम्मत प्रतीत होता है यथा अन्न के मल पुरीष केलिये जैसे कारगर है वैसे रक्त के मल पित्त पर भी कुटकी उतनी ही कारगर है अर्थात कुटकी रसादि सभी धातु के मल पर कार्यकारी है जिसमे विशेषकर रक्तधातु मल पित्त प्रायः प्रयुक्त करते ही है ।*
*रसधातु मल श्लेष्मा,एवं  अस्थिधातु मल नख, केश आदि धातुमलो पर भी यह कारगर होनी चाहिए, मलादि को अगर सर्वधातु मल के अर्थ में ग्रहण करे तो कुटकी की उपयोगिता को औऱ ज्यादा प्रयोग एवं शीघ्र फलदायी के रूप में प्रयुक्त कर सकते है अश्मरी भी एक तरह का धातु मल ही है ऐसा मेरा मानना है वहां भी यह अपने स्वाभाविक कर्म भेदन से शीघ्र निहरण कर सकती है*
*आपश्री ओझाआचार्य जी,अतुलजी, मदान जी, आदि सम्मानीय चिकित्सकगण इस विषय परप्रयोगिकता अनुभत कर सकते है*

🙏🏼🙏🏼🙏🏼🌹🙏🏼🙏🏼🙏🏼


[2/25, 10:01 AM] Dr.Radheshyam Soni : 

प्रणाम आचार्य🙏🙏🌹

तार्किक विवेचन।

आचार्य सुभाष शर्मा जी द्वारा प्रस्तुत case presentations में gall bledder sledge एक प्रकार का रक्त मल पित्त ही है जिसका निर्हरन बखूबी कुटकी के प्रयोग से प्रमाणित है।

हम भी रोज के कामला रोगियों में कुटकी के प्रयोग से लाभ देखते हैं।
🙏🙏


[2/25, 10:04 AM] Prof.Lakshmikant Dwivedi : 

Bhedi ca Aamalki yatha.
Katuki ke saath Aamalki bhi. Tridosha har rasayan hone se.😃🙏🏼


[2/25, 10:06 AM] Prof.Lakshmikant Dwivedi : 

Vo Rasayan hai.


[2/25, 10:10 AM] Prof.Lakshmikant Dwivedi : 

....varshashu Abhaya prAshyA RasAyan hitrshinah."😃🙏🏼

[2/25, 10:15 AM] Vd. Atul J. Kale :

 गुरुजी कम शब्दोंमें व्यापक वर्णन. 🌹🌹🙏🙏


[2/25, 10:20 AM] Vd. Atul J. Kale  : आचार्य आपका कथन सत्य है, किंतु कटुकाकी ग्रंथोक्त कार्मुकता देखी जाय तो मेदधातुपर्यंतही उसका कार्य प्रतीत होता है, किंतु चिकित्सा क्षेत्रमें अनुभव अौर भी आगे जा सकता है।


[2/25, 10:33 AM] Prof. Satyendra Narayan Ojha :

 आचार्य गिरिराज जी , साधुवाद..
चिंतन की दिशा अति सुंदर है , जरुरत है पहले यह देखे की आचार्य गण ने कुटकी का प्रयोग किन किन संदर्भो में किया है. यथा रक्तपित्त में आचार्य चरक ने त्रिवृत हरीतकी आरग्बध का प्रयोग किया है परंतु कुटकी का नहीं..

[2/25, 10:39AM] Dr.Mukesh D jain 
Kutki (Picrorhiza kurroa) is now popular as “picrosides” and used  for the treatment of cancer. Research says the anti-oxidant and anti-inflammatory action of picrosides is responsible as the key mechanism in reducing oncogenesis. Action of *picrosides* on detoxifying enzymes, cell cyle regulation and induction of signal transducers inhibiting apoptosis has also been scientifically verified.

[2/25, 10:39 AM] Vaidya Sanjay P. Chhajed :

 गुरुदेव यह शायद इसलिये भी हो सकता है की रक्तपित्त पित्त के रक्त वत बनने की प्रक्रिया है उसमे रक्त से पित्त बनने की प्रक्रिया मे बिघाड होनेसे वह रक्त समान एवम जिवनीय कर्म मे आता है वापर भेदन कर्म के द्वारा पित्त विरेचन अपेक्षित नही है रक्तपित्त मे जहा विरेचन अपेक्षित है वहा भी पित्त को नहीं बंडाचा है


[2/25, 11:03 AM] Dr.Shekhar Singh Rathore : 

🙏🏻🙏🏻

हरीतकी की एक प्रजाति के बारे में वर्णन है कि उसके वृक्ष की छाया में बैठने से भी विरेचन हो जाता है।।


[2/25, 11:07 AM] Dr.Radheshyam Soni : 

चेतकी


[2/25, 11:12 AM] Prof.Giriraj Sharma:

 *सादर प्रणाम आचार्य श्री*
🌹🌹🙏🏼🌹🌹
*आपके कथन से पूर्णतया सहमत हूँ परन्तु रक्तपित्त रोग में रक्त के साथ पित्त उल्लेख हुआ है वह दोष पित्त है सम्भवत, न कि रक्तमल पित्त,,,*

*रक्त मल पित्त होता कुटकी होनी चाहिए थी परन्तु यहां पित्त दोष है इसलिए कुटकी का प्रयोग नही किया ।*

*कुटकी  रक्तपित्त में ऊर्ध्व अधः रक्तपित्त को तिर्यक रक्तपित्त में हेतुकारक  भी हो सकती है सम्भवत आचार्य ने इसलिए कुटकी का उल्लेख न किया हो ।*

*स्वेद मल की अति प्रवृत्ति (मलादि)  (रोमकूप) तिर्यगगतानां रक्तपित्त को उपद्रव या असाध्यता की ओर ले जाती सम्भवत रक्तपित्त में कुटकी का प्रयोग आचार्य ने नही किया सम्भवत ।*

🙏🏼🙏🏼🌹🌹🌹🙏🏼🙏🏼


[2/25, 11:14 AM] Vd. Atul J. Kale: 

शब्द:चेतकी
लिङ्गम् प्रकारश्च :: स्त्री
अर्थः सन्दर्भश्च :: (चेतयते उन्मीलयति ज्ञानेन्द्रियबलादीनि । चित + ण्वुल् । गौरादित्वात् ङीष् । ) हरीतकी । इत्यमरः । २ । ४ । ५९ ।। हिमाचलभवा त्रिशिरा हरीतकी । सा च सर्व्वरोगनाशिनी गन्धयुक्तद्रव्यकरणे प्रशस्ता । इति वैद्यकम् ।। (“चेतकी द्विविधा प्रोक्ता आकाराद्बर्णतस्तथा । षडङ्गुला हिता प्रोक्ता शुक्ला चैकाङ्गुला स्मृता ।। श्रेष्ठा कृष्णा समाख्याता रेचनार्थे जिगीषुणा । चेतकी वृक्षशाखायां यावत्तिष्ठति तां पुनः ।। भिन्दन्ति पशुपक्ष्याद्या नराणां कोऽत्र विस्मयः । चेतकीं यावद्बिधृत्त्य हस्ते तिष्ठति मानवः ।। तावद्भिनत्ति रोगांस्तु प्रभावान्नात्र संशयः ।। ” इति कल्पस्थाने प्रथमेऽध्याये हारीतेनोक्तम् ।। एतस्या उत्त्तिगुणजात्यादिकं यथा भावप्रकाशे पूर्ब्बखण्डे प्रथमे भागे । “पपात बिन्दुर्मेदिन्यां शक्रस्य पिबतोऽमृतम् । ततो दिव्या समुत्पन्ना सप्तजातिर्हरीतकी ।। हरीतक्यभया पथ्या कायस्था पूतनाऽमृता । हैमवत्यव्यथा चापि चेतकी श्रेयसी शिवा ।। वयस्था विजया चापि जीवन्ती रोहिणीति च । विजया रोहिणी चैव पूतना चामृताऽभया ।। जीवन्ती चेतकी चेति पथ्यायाः सप्तजातयः । अलावुवृत्ता विजया वृत्ता सा रोहिणी स्मृता ।। पूतनास्थिमती सूक्ष्मा कथिता मांसलामृता । पञ्चरेखाऽभया प्रोक्ता जीवन्ती स्वर्णवर्णिनी ।। त्रिरेखा चेतकी ज्ञेया सप्तानामियमाकृतिः । विजया सर्व्वरोगेषु रोहिणी व्रणरोहिणी ।। प्रलेपे पूतना योज्या शोधनार्थेऽमृता हिता । अक्षिरोगेऽभया शस्ता जीवन्ती सर्व्वरोगहृत् ।। चूर्णार्थे चेतकी शस्ता यथायोगं प्रयोजयेत् । चेतकी द्विविधा प्रोक्ता श्वेता कृष्णा च वर्णतः ।। षडङ्गुलायता शुक्ला कृष्णात्वेकाङ्गुला स्मृता । काचिदास्वादमात्रेण काचिद्गन्धेन भेदयेत् ।। काचित् स्पर्शेन दृष्ट्यान्या चतुर्द्धा भेदयेच्छिवा । चेतकी पादपच्छायामुपसर्पन्ति ये नराः ।। भिद्यन्ते तत्क्षणादेव पशुपक्षिमृगादयः । चेतकी तु धृता हस्ते यावत्तिष्ठति देहिनः ।। तावद्भिद्येत रोगैस्तु प्रभावान्नात्र संशयः । न धार्य्यं सुकुमाराणां कृशानां भेषजद्विषाम् ।। चेतकी परमा शस्ता हिता सुखविरेचनी ।। ”) जातीपुष्पम् । इति राजनिर्घण्टः ।।


[2/25, 11:21 AM] Prof.Giriraj Sharma  : 

आदरणीय सादर नमन।
आपकी बात से सहमत हूँ कि मेदधातु पर ज्यादा कार्यकारी है कुटकी ,,,,,
परन्तु मल के परिपेक्ष्य में मेरा मन्तव्य है मलादि शब्द पर विशेषकर,,,,
🙏🏼🙏🏼🙏🏼🌹🙏🏼🙏🏼

[2/25, 11:22 AM] Prof. Satyendra Narayan Ojha :

 पित्तज गुल्म में कुटकी का प्रयोग है , यहाँ भी दोष संज्ञायुक्त पित्त सम्प्राप्ति में भागीदार है, परंतु रक्तज गुल्म में कुटकी का प्रयोग नहीं है और वर्णित है ; रुधिरेऽतिप्रवृत्ते तु रक्तपित्तहरी: क्रिया:..


[2/25, 11:24 AM] Prof.Giriraj Sharma  : 

नमस्कार आचार्य जी
रक्तमल पित्त के साथ अन्य धातु मल यथा केश, दंत, स्वेद मूत्र आदि पर भी हमे कुटकी का प्रयोग के विषय मे चिंतन करना चाहिए,,,,
ऐसा मेरा मन्तव्य है मात्र
🌹🌹🌹🙏🏼🌹🌹🌹


[2/25, 11:29 AM] Prof. Satyendra Narayan Ojha :

 वैद्यराज अतुल काळे जी, एक संदर्भ देता हूं ; उरुस्तम्भ में मेदसा सह इति मेद: सहितं आमं और उरु श्लेष्मा समेदस्को वातपित्तऽभिभूय तु कहा गया है और चिकित्सा में कुटकी भी, इस संदर्भ में भी पित्त दोष है न कि मल..


[2/25, 11:30 AM] Prof.Giriraj Sharma  : 

आचार्य श्री 
मैं धातु एवं दोष के विषय मे नही बल्कि मल पित्त के कुटकी प्रयोग के विषय मे चिंतन है ।
पित्त दोष एवं मेदधातु पर कुटकी का प्रभाव सर्वज्ञ है ।
रक्त एवं रक्तमल पित्त की चिकित्सा में सामान्य एक सिद्धान्त से समझना चाहिए,,,,
दोष धातु की क्रिया प्रतिक्रिया का परिणाम है मल ,,,,
उसका अपना स्वभाव प्रकृति भी है चाहे वो रक्तजन्य हो या मेदजन्य
🙏🏼🙏🏼🙏🏼🌹🙏🏼🙏🏼


[2/25, 11:31 AM] Prof. Satyendra Narayan Ojha :

 मान्य है आचार्य शर्मा जी , संदर्भ के तलाश में हूं


[2/25, 11:35 AM] Prof.Giriraj Sharma  : 

प्रणाम
अगर ज्वर रोगी को कुटकी दे तो क्या कुटकी स्वेद मल स्त्राव  कराने में समर्थ होगी ।
कुटकी ज्वर में स्वेदप्रवर्तक हो सकती है क्या ,,,
मेरे मन्तव्य का एवं जिज्ञासा का मूल यही है कि मल अवरोध को हटाती है क्या 
🌹🌹🌹🙏🏼🌹🌹🌹


[2/25, 11:35 AM] Prof. Satyendra Narayan Ojha : 

खालित्य में भल्लातक का प्रयोग किया गया है परंतु कुटकी का नहीं...
*मेरे सभी संदर्भ चरक संहिता से है*


[2/25, 11:45 AM] Prof. Satyendra Narayan Ojha : 

नमस्कार.
विषम ज्वर , पित्तकफज ज्वर‌, सन्निपातिक ज्वरादि में वर्णित है.
.......... कटुरोहिणीम् ...... ज्वरात् शीघ्रं विमुच्यते..
.......... कटुरोहिणीम्... अनुलोमिक:.....
साथ में कौन कौन से द्रव्य है उस आधार पर मिश्रण की कार्मुकता में विविधता मिलती है


[2/25, 11:47 AM] DR. RITURAJ VERMA: 

हरितक्या:शूलकृच्छकामलाह नाशन:। (अर्क प्रकाश)


[2/25, 11:48 AM] Prof. Satyendra Narayan Ojha : 

जीर्ण ज्वर‌ में कुटकी प्रशस्त नहीं है

[2/25, 11:50 AM] Prof. Satyendra Narayan Ojha : 

कुटकी प्रयोग शामक कषाय‌ स्वरुप है

[2/25, 11:51 AM] Prof.Giriraj Sharma  : धन्यवाद 
आचार्य श्री
🙏🏼🙏🏼🙏🏼😊🙏🏼🙏🏼🙏🏼


[2/25, 11:57 AM] Prof. Satyendra Narayan Ojha : 

कुटकी का प्रयोग शामक कषाय के रुप में आठवें  दिन करना है . लंघन और स्वेदन आठ दिन पूर्व की चिकित्सा है, आज हम सिद्धांत का निर्वाह नहीं कर सकते इसीलिए सब घालमेल है


[2/25, 12:02 PM] Prof.Giriraj Sharma  : 

Menopause and Menorrhagia में कुटकी का युक्तिगत प्रयोग करने की सोच रहा हूँ , आर्तव को रक्तमल की तरह देखकर,,,,
परिणाम की चर्चा जरूर करूंगा 21 दिन के उपरांत यथा सम्भव

🌹🌹🙏🏼🌹🌹


[2/25, 12:02 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha : 

ज्वर के प्रारम्भ से ही यदि विबंध है तो ➡️ विबद्धवर्चा: सयवां पिप्पल्यामलकै: शृताम्..

[2/25, 12:02 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha : 

अच्छी बात है , सोच के साथ कार्य .. ✅👌🌹☺️


[2/25, 12:03 PM] Prof.Giriraj Sharma  :

 🙏🏼🙏🏼🌹🙏🏼🙏🏼


[2/25, 12:06 PM] Prof.Satyendra Narayan
Ojha : 

आर्तव को रक्त मल क्यो ? 
जबकि आर्तव रक्त का उपधातु है.
रक्त को स्त्रियो में रज संज्ञा भी मिली है


[2/25, 12:10 PM] Prof.Giriraj Sharma  : 

उपधातु में बीज ovem एवं स्तन्य की तरह पोषक नही है 
आर्तव स्त्राव अंत या बहिर्पोषक  नही है

[2/25, 12:12 PM] Vaidya Sanjay P. Chhajed 

हरीतकी को मात्र सुंघने पर विरेचन  होने का वर्णन भगवान बुद्ध की जीवनी मे आता है

[2/25, 12:12 PM] Prof.Giriraj Sharma  :

 स्तन्य बहिर्पोषक है 
आर्तव रज या बीज पोषक है काल स्वभाव उपस्नेह उपसवेद चरक स्वभावत रज , अंगिसोमिय गर्भ का पोषक है 
As Property of ova and sperm....


[2/25, 12:15 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha :

 ससंदर्भ व्याख्या करने से अपनी सोच का विस्तार होता है


[2/25, 12:15 PM] Prof.Giriraj Sharma  : 

Nutrition of 1st 7 day of embryo


[2/25, 12:17 PM] Prof.Giriraj Sharma  :

 गर्भ पोषण रसनिमितजा

[2/25, 12:21 PM] Prof.Giriraj Sharma  : 

आर्तव स्त्राव में पोषक भाव नही है इसलिये उपधातु को मल के रुप में देख रहा हूँ 
जबकि स्तन्य बहिर्पोषक है शिशु का ,,,,
इसलिए इस तरह का चिंतन है 
बाकी शास्त्र ही शाश्वत है 
🌹🌹🌹🙏🏼🌹🌹🌹


[2/25, 12:22 PM] Vd. Atul J. Kale : 

रस के ही उपधातु ऎसे है जो स्थायीभाव नहीं रखते। निमित्तकारण है।


[2/25, 12:33 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha :

 उपधातु को उपधातु ही समझना यथोचित है; उक्तं च भोजे ➡️
सिरास्नायुरज:स्तन्यत्वचो गतिविवर्जिता: धातुभ्यश्चोपजायन्ते तस्मात् उपधातव: ..


[2/25, 12:34 PM] Vd. Atul J. Kale 

 रसवह स्रोतसमें रजकी उपधातुस्वरुप उत्पत्ती होती है, और आर्तववह स्रोतसमें आर्तवका उत्पत्ती, परिणमन, वहन, उत्सर्जन होता है तो निश्चितही आर्तव और भिन्न संज्ञाएँ है। रसके पोषणसे गर्भाशयभित्तीका (रक्त उपधातुरुप) निर्माण और गर्भधारणा न होनेसे रजोदर्शन ये रसके उपधातुस्वरुप प्रतीत होता है। जबकी आर्तववह स्रोतसमें गर्भाशय एवं बीजवाही धमनीयोंसे गर्भाशयमें आनेवाला बीज आर्तवस्वरूप प्रतीत होता है। आर्तव और रक्त का मासिक स्खलन मिलने रज प्रतित होता है।


[2/25, 12:41 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha :

 *बहुत बार रजस , रेतस और आर्तव समानार्थक है*


[2/25, 12:43 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha :

 पित्तावृत अपान में अति आर्तव प्रवृत्ति मिलती है : यह भी ध्यान रखे


[2/25, 12:49 PM] Vd. Atul J. Kale :

 जी सर, स्थानस्वरूप हमे संज्ञाओंका निर्धारण करना होगा, किंतु फिरभी रज, आर्तव, रक्त एकही है तो दो स्रोतस विभिन्न कैसे इसको कैसे समझेंगे। जटिलतासे सरलताकी ओर तो जानाही पडेगा।


[2/25, 12:50 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha :

 *आर्तव निर्मिति एक प्रक्रिया के तहत होती है जिसमे रसादि धातु तथा प्राणादि सभी का योगदान होता है*


[2/25, 12:53 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha : 

जटीलता नहीं है , कार्य विशेष के आधार पर कुछ स्रोतस् बताये गये यथा संज्ञावाही , मनोवाही आदि

[2/25, 1:11 PM] Prof.Giriraj Sharma : 



[2/25, 1:12 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha : 

*एक संदर्भ आचार्य चक्रपाणी का ➡️ वृद्धेन रक्तेन योजयित्वा रजो विवर्धयति यस्मात्*


[2/25, 1:12 PM] Prof.Giriraj Sharma :

 आर्तव शब्द भिन्न भिन्न स्थानों पर भिन्न अर्थ में प्रयुक्त हुआ है उनके कुछ संदर्भ


[2/25, 1:14 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha :

 क्षीणरक्त की उपस्थिति में प्रदर रोग असाध्य है


[2/25, 1:15 PM] Prof.Giriraj Sharma  :

 रस सम्भव।  बीज
रक्त सम्भव   स्त्राव


[2/25, 1:17 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha : 

*अपत्यमार्ग से  सर्पिर्मज्जवसोपमम् का सृजन होना असाध्य है*


[2/25, 1:23 PM] Prof.Giriraj Sharma  : 

रसज व्याधि क्लेब्य


[2/25, 1:31 PM] Prof.Giriraj Sharma : 

सुश्रुत शारीर में 
शुक्र शोणित शुद्धि शारीरं में आर्तव स्त्राव यहां लाक्षा रस सम वर्ण
प्रथम से तृतीय रात्रि

गर्भावक्रान्ति शारीरं  आर्तव बीज के परिपेक्ष्य में वर्णन है । ईषत कृष्ण विगन्धं
द्वादशात रात्री,,,,,


[2/25, 4:35 PM] वैद्य मेघराज पराडकर : 

कुटकी के संदर्भ में बहुत ही अच्छी जानकारी मिली 🙏

एक प्रश्न है, 

ऐसी कौन सी अवस्थाये है, जिनमे कुटकी नही देनी चाहिए ?

आदरणीय ओझा सर जी ने जीर्ण ज्वर यह बताया । और कौनसी अवस्थाये है, यह जानने की इच्छा है । 🙏


[2/25, 4:56 PM] Vd Raghuram Shastri :

 *Nice discussions on Katuki. Good surgical attacks and deep discussions on the topic by Guruji Ojha sir and Resp Giriraj Sir*🙏🙏💐❤

💐💐💐💐💐💐💐

*Just a couple of thoughts to add*

👉 *Going through the entire discussion it is clear that Katuki can be used as a weapon to clear the mala – mala bhedana - from the system. It is also beneficial for flushing pitta – be it mala rupa or dosha rupa*

👉 *In the context of Rakta-Pitta Katuki is not the choice because here we need to look at the samprapti of the disease. There is samyoga and paraspara dushana of rakta and pitta. The same rakta and pitta have ashraya ashrayi bhava. Here we need to see that pitta is not a part of samsarga or sannipata, nor an independent vitiation. Pitta is a component of the main samprapti of the disease as is rakta. Pitta is thus a joint partner in the disease, that too with its ashraya. If we are looking at Pitta Bhedana there may also occur ashaya nasha – rakta nasha and that is not desired since bleeding is already occurring in the disease. Since the pitta is already getting eliminated along with rakta in one or the other form, from one or the other route, pitta bhedana is illogical here. Same is the case with Rakta Gulma as Ojha sir has mentioned that Raktapitta line of treatment should be followed*

💐💐💐💐💐💐💐

*What do we see on the other side?*

✅ *KATUKI is NOT PREFEREBLE whenever RAKTA IS INVOLVED, even when PITTA IS INVOLVED WITH RAKTA* 

✅ *But in all other conditions of pitta, either individual vitiation or in association or as a part of Sankhya Samprapti like Pittaja Gulma as Ojha sir has mentioned, Katuki shall be used*

✅ *So Katuki is useful in – High Pitta conditions & Pittaja Roga Bhedas like Pittaja Gulma and not when Pitta and Rakta are jointly involved as in Raktapitta and in Raktaja Roga Bhedas like Raktaja Gulma*

*More points*

👉 *If some of the actions of Katuki can be contributed towards its Sheeta Guna, Katuki is said to be ASRAJIT – if we can take the meaning as CHECKS or ARRESTS BLEEDING, it may not be useful in the initial stages of raktapitta wherein stambhana is not contraindicated. Pitta is kapha pitta hara. It has pitta balancing role but when given in large doses it may expel the same pitta. The same effect might just be on rakta as well*.

💐💐💐💐💐💐💐

*This is my humble submission to the elite panel. Experts may correct if I am wrong in this perspective* 🙏

💐💐💐💐💐💐💐

*_Dr Raghuram_*


[2/25, 5:09 PM] वैद्य मेघराज पराडकर : 

कुटकी is not preferable when Rakta is involved

I think this is not so

Because

Kashay on Satata vishamajvar (Raktashrit dosh) katuka is told
Patol, Sariva, Musta, Patha, Katukarohini.

[2/25, 5:12 PM] Vd Raghuram Shastri ,Banguluru:

 *Rakta is involved as in Active Bleeding...examples included in my post...*


[2/25, 5:28 PM] Prof.Giriraj Sharma  : 

🙏🏼🙏🏼🌹👍🏻🙏🏼🌹🌹


[2/25, 5:29 PM] वैद्य मेघराज पराडकर : 

🙏

[2/25, 5:39 PM] +91 94608 04292:

 So more and nice discussion on Kutki
Former principal of ayurved college Udaipur  Pro.Roopshankar sharma used Kutki in pneumonia treatment in children.
He told me that Kutki acts as mucolytic and antipyretic  action.
I have seen some patients there.


[2/25, 5:54 PM] Prof.Giriraj Sharma  :

 👍🏻👌🏻🙏🏼🙏🏼🌹


[2/25, 6:11 PM] Vd Rajnikant Patel: 



[2/25, 6:11 PM] Vd Rajnikant Patel:

 अलग अलग ग्रंथो में कटुकी का संदर्भ

[2/25, 6:22 PM] Dr.Ashwani Kumar Sood : 

Well concluding analysis👌🏻


[2/25, 6:31 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha : 

What a Raghuram style presentation , so , nicely interpreted , 🌹☺️✅👌


[2/25, 7:12 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma

गर्भावस्था एवं स्तन्यपान अवस्था में हम कुटकी का प्रयोग नही करते।*

[2/25, 7:13 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma
युवा ऋषि रघुराम जी 👌👌👌🌹🙏*

[2/25, 7:15 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha : 

शुभ संध्या वैद्यराज सुभाष शर्मा जी*


[2/25, 7:15 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma : 

शुभ सन्ध्या सर - सभी आचार्यों को भी 🌺🌹💐🙏 अति व्यस्त कार्यक्रम है आपके।*


[2/25, 7:28 PM] Vd Raghuram Shastri: 

*Thanks Guruji...loved your posts  references on Katuki, got a lot to learn about Katuki*🙏🙏💐❤️

*Just added some points to the awesome discussion between your kind self, Giriraj sir and other experts*🙏🙏💐


[2/25, 7:34 PM] Vd Raghuram Shastri: 

*Two EYES of our group to be precise...through which we are having Ayurveda darshanam daily...Ayurveda in its true, comprehensive and unadulterated form*🙏🙏💐❤️

*Hearty momentary welcome to the great author Munshi Premchand ji into our group...his works will remain immortal...always🙏💐❤️*


[2/25, 7:38 PM] Vd. Atul J. Kale :

 Totally agree Raghusir, पूर्ण अनुमोदन. Acharya Ojha sir and Acharya Subhash sir are ever green inspirations for us. अखण्ड ज्ञानस्रोत.


[2/25, 7:41 PM] Prof. Satish Panda : 

गुरुवार को गुरू द्वे को संध्या प्रणाम।
💐🙏🏻🙏🏻💐


[2/25, 9:19 PM] Dr.Shekhar Singh Rathore :

🤣🤣🤣

आप द्वय श्री तो अश्विनी कुमार है सर । 🙏🏻🙏🏻

[2/25, 10:05 PM] Dr.Pawan Madan : 

जी अतुल जी
मेर भी कहने का यही अर्थ था
बहुत से द्रव्यों की कार्य कारंत बहुत बार रस गुण आदी के नियम से बतानी बहुत मुश्किल हो जाती है इसिलिए ज्यादातर उनका प्रभाव अचिंत्य ही प्रतीत होता है।

ऐसा अनेक द्रव्यों के बारे मे है।
🙏🙏


[2/25, 10:08 PM] Dr.Pawan Madan:

 शुभा सन्ध्या गुरु जी

कुटकी का प्रयोग अब हमारी प्रक्टिस मे बहुत हो गया है।
🙏🙏


[2/25, 10:09 PM] Dr.Pawan Madan: 

शुभ सन्ध्या गुरु जी
🙏🌹🙏


[2/25, 10:14 PM] Dr.Pawan Madan : 

नमस्कार गिरिराज जी

आपका कहा जाना उचित है।
ये कुटकी लगभग सब धातु मालो पर कार्य करती है
बल्कि केवल मल ही नही स्वयमेव कई बार धातुओ पर भी कर्षण का कार्य करती है।
🙏🙏🙏


[2/25, 10:18 PM] Dr.Pawan Madan : 

Prakticaly भी कुटकी बहुत बार मल के अतिरिक्त दोष वा धातुओ पर भी कार्यकारी है।
🙏


[2/25, 10:27 PM] Dr.prajakta Tomar :

 लंबे समय इसका उपयोग करने पर वात प्रकोप के लक्षण भी देखने मिले है

[2/25, 10:28 PM] Dr.Pawan Madan :

 वो तभी यदि इस की उचित मात्रा का प्रयोग ना हो।
Therapeutic उचित मात्रा मे कुछ लम्बे समय तक भी दी जा सकती है।

[2/25, 10:34 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma : 

सादर नमन आचार्य गिरिराज जी, चिंतन किया तो इसका उत्तर बहुत ही विस्तृत मिलता चला गया क्योंकि कुटकी मेरी थीसिस ड्रग थी, आने वाले समय में विस्तार से लिखूंगा ।* 🌹🙏


[2/25, 11:28 PM] Vaidya Sameer Shinde
कुछ दिन पहिले मूत्र अश्मरी पर बहुत सुंदर चर्चा हुई थी।
और आजही एक विस्मयकारी रुग्ण अनुभव मिला।
6 दिन मे ही एक नही दो नही पुरी 15 अश्मरी पातन हुआ. जो मेरे लिये भी आश्चर्य की बात थी।

रुग्ण इतिहास
पुरुष रुग्ण, 40 वर्ष आयु, उदरशूल, सशुल अल्प मूत्रप्रवृत्ती, जी मचलना ये लक्षण लेकर आया था।
USG करवाने पर multiple intra renal calculi along with 2 lower uretric calculus of 3.4 and 4.5 were present.

प्राप्त प्रधान हेतू

व्यवसाय से शिक्षक और अभी कोरोना की वजहसे एक ही जगह पार बैठकर काम करना।

प्राय मूत्र वेग का अवरोध

उक्त रुग्ण 1 माह पहले कोरोना पोसिटीव्ह हुआ था तबसे हार रोज सुबह 2 अंडे एवं 1 ग्लास दूध का सेवन।
सप्ताह मे 3 बार चिकन सेवन

अल्प जल सेवन।

हेतू एवं अपान वायू की दुष्टी ध्यान मे रखकर निम्न औषधी चयन किया।
गोक्षुरादि गुग्गुळ 
2....2...2भोजन  के बाद
चंद्रप्रभा वटी
 2...2....2  भोजन से पहले

नारिकेल पुष्प (2ग्राम)+ यवक्षार (500 mg) 
दिन मे 3 बार (भैषज्य रत्नावली)

Tab  Cystone forte    1...1...1 भोजन के बाद

प्रात आचार्य सुभाष सर द्वारा वर्णीत भुट्टे के बाल का पाणीय क्षार ।

चिकित्सा सुरू करणे 6 दिनके बाद रुग्ण आनंद से क्लिनिक मे आया और बताया की अश्मरी निकल गयी मैने सोचा ureteric calculus गिर गया होगा पर जब उसने अश्मरी दिखाई तो मै आश्चर्यचकीत हो गया एक दो नही पुरी 15 अश्मरी वो साथ लेकरं आया था।
धन्य है आयुर्वेद  एवं धन्य है आप सभी आचार्य गण जिनकी प्रेरणा से हमेशा चिकित्सा की सोच प्राप्त होती है।
🙏🙏🙏


[2/25, 11:32 PM] Vd Sachin Vilas Gajare : 

🙏🏻 गुरुदेव।
कुटकी तो स्तन्यशोधन महाकशाय का प्रतिनिधि है।
फिर आप ने कोई विशेष अनुभवसे कुटकी प्रयोग स्तन्य पान अवस्था में बंद किया है।


[2/25, 11:44 PM] +91 98762 17500:

 Sir please tell about narikel pushp

[2/25, 11:53 PM] Vaidya Sameer Shinde

नारियल के फूल

[2/26, 6:34 AM] Dr.Pawan Madan: 

सुप्रभात

बहुत बढिया
😊👌👌


[2/26, 7:53 AM] Dr.Pawan Madan : 

कुटकी के बारे मे कुछ विचार*

1...⤵️
*रस मुख्यतः कटु है, विपाक भी कटु है, परंतु वीर्य शीत है, गुण मुख्यतः रूक्ष व लघु हैं*

2..➡️
*क्या ये सारे factor हर बार हर समय act करते हैं, संभवतः नहीं, रस गुण वीर्य विपाक व प्रभाव, इसमे से क्या किस समय कार्य करेगा, ये कुटकी की मात्रा, उसके सहकारी द्रव्य, रोग, रोगी की प्रकृति, रोगी के कोष्ठ व ऋतु एवं काल पर निर्भर करेगा*

3...❗
*2 से 3 ग्राम की एक मात्रा यदि एक रोगी मे मल भेदन कर देती है तो हो सकता है के अन्य किसी रोगी मे सिर्फ एक बार साफ motion ले कर आये।*

4..⏩
*तिक्त रस कटु विपाक रूक्ष लघु गुण वा शीत वीर्य जब अति active होंगे तो कुटकी अत्यंत वातवर्धक हो सकती है जिस से पेट मे मरोड हो कर मल भेदन हो जाता है।*
5,,⏩
*तिक्त रस व शीत वीर्य होने से ये उचित मात्रा मे पित्त का शमन भी करती है, संभवतः ज्वर मे, रक्त पाचक योग मे प्रयोग करने का ये ही कारण है।*

6,,,⤵️
*कुटकी के तिक्त रस कटु विपाक रूक्ष लघु गुण जब उचित रूपेण कार्यकारी होते हैं तो ये उचित मात्रा मे प्रयुक्त करने से कफ का शमन भी करती है, इसिलिए प्राण वह स्रोतस की कफ प्रधान व्याधियों मे भी बहुत बार प्रयुक्त की जाती है*

7,,,▶️▶️
*मात्रावत प्रयोग से ये रस व रक्त दोनो का प्रसादन करती है, याने रस व रक्त धातुओं का उचित formation व function मे सहायक होती है*

8,,,👇🏻👇🏻
*अल्प मात्रा मे देने पर तिक्त रस के कारण दीपन का कार्य करती है।*

9,,,⏩⏩
*श्वास कास रोग मे कफ व पित्त का अधोगमन कर के बहुत लाभ देती है।*

10,,,▶️▶️
*रक्तपित्त मे यदि अल्प मात्रा मे समुचित अन्य द्रव्यो के साथ प्रयोग किया जाये तो ये पित्त का शमन करते हुये , रक्त पित्त की सम्प्राप्ति भंग करने मे सहायक हो सकती है, ये रोगी की अवस्था व रोग की अवस्था पर निर्भर करेगा, क्योंकि कुटकी रक्त प्रसादक है, केवल इसका judicial प्रयोग करना होगा। तिक्त रस, शीत वीर्य गुण से ये रक्तपित्त की कुछ अवस्थाओं मे सहायक हो सकती है।*

10,,💐💐
*रूद्ध्पथ कामला मे ये कफ व पित्त शोधन करते हुये अति सहायक होती है।*

11,,,➡️
*जलोदर आदी उदर रोग मे ये उचित मात्रा मे व अन्य द्रव्य जैसे हरीतकी के साथ बहुत प्रभावी है, कारण,,, वात के प्रकोप से होने वाल मल भेदन*

12,,,⬇️⬇️
*ये तिक्त रस युक्त व कटु विपाक होने से कफ व पित्त दोनो का शमन करने वाली है, इसलिये कुछ अन्य द्रव्यों के साथ प्रयोग करने से बहुत बार अजीर्ण, अम्लपित्त व व्रणरोपण मे भी लाभकारी है।*

💐💐💐💐💐


*Good mng Subhash Guru ji and Ojha sir ji and Atul ji.*
*This is my humble submission for the review of you and all experts in the elite group.*


*This is only based on my experiences with possible descriptions in shastra.*

*More guidance solicited.*.
🙏🙏🙏🙏


*Vaidya Pawan Madaan*
🙏


[2/26, 7:55 AM] Dr.Bhavesh R.Modh : 

👌👍🙏😊


[2/26, 7:59 AM] Prof.Shriniwas Gujjarwar : 

👌🏻👌🏻👍🏻🙏🏻


[2/26, 7:59 AM] Shekhar Goyal Sir : 

🙏🌹👌


[2/26, 8:35 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma

 *नमस्कार डॉ पवन जी, बढ़ा विस्तार से और स्पष्टता के साथ विश्लेषण 👌🌹🙏 अगर प्रभाव का उदाहरण रोगी में देखना हो तो कुटकी है, इसका कार्य क्षेत्र वहां तक है कि आश्चर्य होता है।*


[2/26, 8:41 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:

 *गर्भावस्था पूर्ण होने के बाद हम कुटकी का प्रयोग स्फिक, उदर एवं अन्य स्थानों से मेद कम करने के लिये करते है और वो भी अधिक मात्रा में जिसमें मल के वेग दिन में तीन चार भी आते है तो स्तन्य काल में शिशु को भी मल द्रव और अति आने लगता है, उसका body wt. नही बढ़ता और अग्रिम नवनिर्मित धातुओं का क्षय हो सकता। *


[2/26, 8:43 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma

*सामान्यत: गर्भावस्था पूर्ण होने के आठ महीने बाद हम कुटकी देते है और उनको जो स्तन्यपान नही कराती।*

[2/26, 8:43 AM] DR. RITURAJ VERMA: 

प्रणाम गुरुवर

[2/26, 8:49 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma :

 *डॉ समीर जी, जिस प्रकार से अश्मरी पातन हुआ वो सुखद है और आप प्रशंसा के पात्र हैं।* 👌👌👌🌹


[2/26, 8:50 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma
आचार्य ऋतराज जी नमस्कार 🌹🙏*


[2/26, 8:57 AM] Vd.Shailendra : 

Great Sir...🙏🏻🙏🏻👌🏻👌🏻🌷🌷

[2/26, 9:18 AM] Dr.Radheshyam Soni : 

सुंदर अभिव्यक्ति पवन सर👏👏🙏🌹

[2/26, 9:21 AM] Dr.Radheshyam Soni :

 बहुत ही विस्मयकारी परिणाम आचार्य👏👏🙏🌹

अश्मरी देखने में फॉस्फोरस की लग रही है।


[2/26, 9:29 AM] Dr.Bhadresh Naik : 

Kutki discussion is up to mark by all guruji
What I learnt how to used single drug with different anupan
And quantity
We must follow indiction of herbs on prescribed in text book
It's make a clinical trials with evidence
I found kutki harde miracles in luecoderma case
Within 15 days pigmetions regeneration strat
Without giving any luecoderma medicine
Thanks all guruji🙏🙏🙏


[2/26, 9:38 AM] Vd. Atul J. Kale : 

बहुत बढियाँ पवनजी. मुझे हमेशा आपमें पुनाके वैद्योंके आयुर्वेद बुद्धीला प्रतिबिंब दिखता है. 👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻


[2/26, 9:44 AM] +91 94265 64441:

 वाह पवन जी
हम भी कभी इतना नहीं सोच पाते जितना आप सोच लेते हैं।
 साधुवाद


[2/26, 11:33 AM] Prof.Madhava Diggavi : 

Bahut vyapak arth me prastuteekaran sir

[2/26, 11:42 AM] Vd.V.B.Pandey : 

🙏Thanks sir for this information about  kutkkee in leucoderma.


[2/26, 11:53 AM] Dr Mansukh R Mangukiya : 

🙏 अथ થી इति कटुकी के बारे में।
धन्यवाद वैद्य पवन सर 🙏


[2/26, 12:02 PM] Dr.Santanu Das:

 Narikela puspa (Male coconut) plant.... ka Gall stone pe bhi aachha respond hei...But use it as charcoal


[2/26, 12:04 PM] Dr.Kalpna Monga :

 Sir y kahan s milta hai.. koi b  coconut lena hai .. ?

[2/26, 12:05 PM] Vaidya Vivek Sawant : 

नारिकेल पुष्प का मैने तो घृत ही करके रखा था.उसका ना भी ashamri हर घृत ऐसा दिया था. बहुत अच्छा रिझल्ट हैं ashmari मे🙏🏻


[2/26, 12:30 PM] Dr. Shekhar Singh Rathore :

 With which  Anupaan sir ??


[2/26, 12:35 PM] Dr.Santanu Das: 

No no I use Male flower of Coconut... means jinse phal neheen hota but flower hota hei...


[2/26, 12:38 PM] Dr.Santanu Das: 

Simply nariel ka peed pe phool jab aata hei pata chal jaata hei male aur female catagory....... agar sample mila to post karunga


[2/26, 1:02 PM] Dr.Pawan Madan :

 प्रणाम सर

ये सब आपके मार्गदर्शन से ही सम्भव है।
🙏🙏🌹🌹❤️


[2/26, 1:03 PM] Dr.Bhadresh Naik : 

Vd subhash sirji explain very nicely guide about anupan and add different herb as a carrier for different strotus and dosh


[2/26, 1:03 PM] Dr.Pawan Madan  : 

Great Addition Bhadresh ji
🙏🙏


[2/26, 1:18 PM] Vd Raghuram Shastri : 

*Pawan Sir...ati adbhut...really good compilation and interesting shortlist of Katuki, its properties, its action and the possible perspectives with which it should be chosen if it needs to be used in clinical practice. An interesting ready reckoner indeed. You have also made key remarks on the dose and pharmaceutical role of katuki in terms of rasa, guna etc through an Ayurveda lens. The term judicial which you have used in point 10 is so true, yukti holds to be a key tool in successful clinical practice. Thanks for short, sweet and yet broad spectrum presentation sir* 🙏🙏💐💐❤️❤️👌👌🙏🙏


[2/26, 1:26 PM] Dr.Bhadresh Naik : 

According to my interpretation in luecod erma effects
Ia obstruction at cellular and cappilary level open by medicine
It's open the gate for malanin to enter up to skin


[2/26, 1:59 PM] Dr.Pawan Madan : 

Thanks sir.
Kindly share more about this. 🙏


[2/26, 2:00 PM] Dr.Pawan Madan :

 अतुल जी
सम्मान के लिये धन्यवाद।
बस आप सब से ही सब सीखकर थोडी सी कोशिश की है।
🙏🙏🙏


[2/26, 2:05 PM] Dr.Pawan Madan : 

धन्यवाद रघु सर
अद्भुत नहीं, बस अपना अनुभव ही सान्झा किया है।

आप के लेखन के सामने तो ये कुछ भी नही सर।

आप से बहुत प्रेरणा मिली है। आपके लेखो को पढ कर बहित कुछ सीखा है।
अतीव धन्यवाद।
🙏

[2/26, 2:42 PM] +91 94137 20487: 

female , 24 year, 
H/o -Typhoid then jaundice but LFT is Range now,
(4month ago)

present c/o-
 mild Fever, bodyache, weakness, lower appetite, since 1 month.

Sometimes pt feels healthy and after some times she feels mild to moderate joint pain, mild fever , and extreme Weakness.

धातुगत विषम ज्वर /पूनरावर्तक ज्वर की व्यक्त-अव्यक्त अवस्था मान कर सम्प्राप्ति विघटन की तरफ़ आगे बढ़ा जाए गुरुवर ?

सभी गुरूजनो से निवेदन है की कृपया उचित मार्गदर्शन करे ।


[2/26, 3:19 PM] Dr.Rajeshwar Chopde: 

Tiktak Ksheerbasti +1-2 Pippali while making Ksheerpak will be helpful in this condition


[2/26, 3:58 PM] Prof.Giriraj Sharma : 

नमस्कार सर 
चिकित्सा अधिकार नही है मेरा ,
परन्तु सरल अनुभत योग जो परीक्षित है बहुत बार ,,
प्रातः   सायं। लगभग 21 दिन
महासुदर्शन चूर्ण  3 ग्राम
      मिश्री।          3 ग्राम 

रात्रि में
पंचकोल चूर्ण (3 ग्राम )को दुग्ध में उबालकर छानकर पिलाये ।
🙏🏼🙏🏼🌹🙏🏼🙏🏼


[2/26, 3:59 PM] Dr. Trilok Chand Goyal: 

🙏🙏


[2/26, 4:25 PM] Prof. Satish Panda : 

माहसुदर्शन घन वटी
पुनर्नवा मंडूर
अमृतारिस्ट दे
आहार-लघु आहार दे
आतप सेवन से अभी बचाये।
1 से 2 माह तक दे सकते हैं


[2/26, 4:40 PM] Prof. Lakshmikant Dwivedi:

😃🙏🏼


[2/26, 4:45 PM] Dr.Radheshyam Soni : 

जवरोत्तर दौर्बल्य और पांडु मानकर चिकित्सा करें।

पुटपक्व विषमज्वरान्तक लौह का प्रयोग।

पिप्पली साधित क्षीर

अमृतारिष्ट


[2/26, 4:52 PM] वैद्य नरेश गर्ग: 

ज्वरौत्तर दोर्बल्य में श्रमहर महा कषाय के द्रव्यों का चूर्ण दूध के साथ में उपयोगी है ऐसे केस में लघु मालिनी वसंत और मधु मालिनी  का भी अच्छा रिजल्ट मिलता है।


[2/26, 5:04 PM] Dr.Bhavesh R.Modh : 

ज्वर चिकित्सा के दो अति महत्वपूर्ण चिकित्सा सूत्र स्मृति मे  आए है ।
1) ज्वरान्ते विरेचनम् ।
2) जीर्ण ज्वरे घृतपानः ।

🙏😊


[2/26, 5:06 PM] Vd.V.B.Pandey : 

लंघन सबसे महत्वपूर्ण।


[2/26, 5:28 PM] Prof.Giriraj Sharma: 

अच्छा याद दिलाया
जीर्ण में घृतपान के साथ जीर्ण ज्वर में पय (दुग्धपान) का भी उल्लेख मिलता है ।
👌🏻👌🏻👍🏻


[2/26, 5:29 PM] Dr.Ravi Kant Prajapati: 

🙏🙏 
1. स्वर्ण बसंत मालिनी + गिलोय सत
2. अमृतारिष्ट

ज्वर पश्चात की निर्बलता एवं अग्नि पर कार्य करके...... रसादि धातुओं में साम्यता स्थापिति करेगा


[2/26, 5:41 PM] Dr.Ravi Kant Prajapati: 

जॉइंट पेन ज्यादा हो तो.....
स्वर्ण बसंत मालिनी + प्रवाल / godanti + मंडूर भस्म


[2/26, 5:43 PM] Dr.Radheshyam Soni :

 👍🏻👍🏻

आचार्य सुश्रुत कहते हैं जो दुग्ध नव ज्वर में कृष्ण सर्प के विष के समान हानिकारक है, वही दुग्ध जीर्ण ज्वर में अमृत के समान लाभदायक है।🙏

[2/26, 5:56 PM] Dr. Sadhana Babel : 

लघुमालिनी वसंत 
महासुदर्शन
लक्ष्मीनारायण रस 
अन्य घृत as per pt


[2/26, 6:17 PM] Prof.Giriraj Sharma :

 जीर्ण ज्वर में घृतपान एवं दुग्धपान दोनो का उल्लेख आचार्य चरक ने किया है ।
घृतपान से औषधयुक्त घृतपान है एवं दुग्धपान पथ्य के रूप में,,,,
तैल का प्रयोग भी है सम्भवत
रसोंन सतैलस्य प्राग उपसेवते,
पुनरावर्तक ज्वर में किरात्तिकतादि का उल्लेख है ।


[2/26, 6:41 PM] Vd.Shailendra : 

🙏🏻🙏🏻 Jwaraantey virechan...Ki jagah... Jwarmuktey virechnam paath h....Kyunki...Jwar sey mukti ke lakshan visheyshtah kahey gaye hn.....JWAR KAA ANT TO SHAAYAD HI HOTAA HOGAA...🙏🏻🙏🏻🙏🏻🌷🌷


[2/26, 7:00 PM] Dr. Suneet Aurora: 

नव ज्वर में अधिकतर साम दोष मिलता है, अतः दुग्ध निषेध हुआ।

ज्वर जीर्ण होने पर अधिकतर धातु क्षय मिलता है, अतः दुग्ध रसायन हुआ।

फिर भी, युक्ति अनुभव से देखा कि जीर्ण ज्वर में पिप्पली/ अश्वगंधा-शुंठी-मारिच क्षीरपाक अधिक प्रभावी रहा।

साथ अनुलोमन का विशेष ध्यान रखते हुए, जिसके लिए गुरुदेव सुभाष जी का कुटकी-हरीतकी योग प्रशस्त है।

🙏🏼


[2/26, 8:19 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha : 

Dr Raghuram ji , the treatment of Pradar is as per Raktaatisaara, Raktapitta, Raktarsha .
In all above diseases, katuki is not indicated. Katuki is indicated in sannipatika atisaara but not in Raktaja atisaara, katuki is mentioned in arsha but not for Raktarsha , Katuki is used for gulma but not in raktaja gulma , katuki is not indicated in Raktapitta ...
Katuki is not used in Pradar.. 
All above references show that where there is bleeding condition  katuki is not adviced.. 
Taking care of such information helps to avoid certain undue effects..


[2/26, 8:26 PM] Vd Raghuram Shastri: 

*Guruji Good evening. Great information about Katuki sir. Thanks so much. Everywhere bleeding is a contraindication for use of katuki...wow...now the concept is very clear. You have given an ultimate conclusion for not only the indications but also contraindications of Katuki. Noted everything sir* 🙏🙏💐💐❤️❤️🙏


[2/26, 8:27 PM] Dr. Chandrakant Joshi : 

सही है सरजी।🙏🙏


[2/26, 8:32 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha : 

*Our concern with dravya is not only  indications but contraindications too*


[2/26, 8:43 PM] Dr.Pawan Madan:

 Pranam Guru ji.

You have given very important directions.

There are small doubts.

When kutaki is used in Patolaadi kashaay with Patol, Chandan, Murva, Guduchi and Patha.....then ....Can this combination can be used in some states of Raktapitta to act upon the Raktadushti and Pittadushti ?🤔🤔


[2/26, 8:44 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha : 

No need , we should use this combination without katuki


[2/26, 8:46 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha: 

Vasa shatavari chatushparni laghupanchamoola like dravya are available to work in better way


[2/26, 8:46 PM] Dr Shivali Arora: 

Sir can we use katuki in urdhwaga raktapitta?


[2/26, 8:46 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha:

 No

[2/26, 8:47 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha : 

Haritaki aragvadha are good choices


[2/26, 8:47 PM] Dr Shivali Arora: 

Thanks sir🙏🏻


[2/26, 8:48 PM] Vaidya Sanjay P. Chhajed: 

ज्वरादौ लंघनं कुर्यात
ज्वरमध्ये तु पाचनं
ज्वरान्ते भेषजं दद्यात
ज्वरमोक्षे विरेचनं


[2/26, 8:49 PM] Vd.Shailendra :

 🙏🏻🙏🏻Sir due to its ruksha guna may be ur avoiding it.... rukshVirechan not recommended...🙏🏻🙏🏻


[2/26, 8:50 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha:

 Acharya Charak was not convinced to use kutaki where there is bleeding condition..


[2/26, 8:51 PM] Prof. Lakshmikant Dwivedi : 

Shadehe-shadehe, deyam- 
Sarpih-Ksheeram-Virecanam.


[2/26, 8:51 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha :

 We are needed more data from Charak Samhita to reach on conclusions about kutaki


[2/26, 8:52 PM] Shekhar Goyal : 

🙏🙏very important point गुरुवर.

[2/26, 8:53 PM] Vd.Shailendra : 

Ok Sir...As bleeding (shudh)is itself rukshtaa kar....So katukaadya Ghrit will be good🙏🏻🙏🏻


[2/26, 8:53 PM] Dr.Satish Jaimini:

 🙏🏻🙏🏻🙏🏻 असाधारण गुरुदेव रुक्ष शीत होने से वात को बढ़ाती है शायद इसलिए गतिमान दोषों की अवस्था मे प्रयुक्त नहीं होती 🙏🏻🙏🏻


[2/26, 8:54 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha:

 डॉ सतिश, बात में दम है.. ✅👌


[2/26, 8:55 PM] Vd. Atul J. Kale: 

सर 🙏🏻🙏🏻
*अस्रदाहजित एक अवस्था में कटुका का उपयोग बताया है।*

अस्र में पित्त आश्रयी है इसी पित्तकी उष्ण-तीक्ष्णताकी वृद्धी से अस्रस्थ दाह बढेगा। 

कटुकाका रस, विपाक एव गुण सब उष्ण-तीक्ष्णता की वृद्धी कर सकते है, एकही *वीर्य* है जो अस्रदाहमें कार्यकारी हो सकता है।

    इस दाहका शोधन *रक्त आश्रयी पित्तके शोधन से ही* संभव होगा या कटुका के शीतवीर्यता से *अस्रस्थ दाहशमन होगा?* तिक्तादी तो अग्निवर्धन में ही सहचारी हो सकते है..

*अनंता का दाहशामक कार्यकारी भाव समझने में सरल है किंतु कटुका का उतना नहीं।*

रक्तपाचकमें (विषमज्वरघ्न कषाय) दोंनोका (कटुका एवं अनंताका) अंतर्भाव है। रक्तपाचक कार्यकारीता रक्ताग्निवर्धन करके ही होती है। (हर एक पाचक / विषमज्वर कषाय की कार्यकारीता एवं व्ययापकता यही है)  और उसका अनुभव भी मिलता है।

*सब धातुपाचक या विषमज्वरमें दिये कलिङ्गकादी कषायों में ज्यादातर द्रव्य शीतवीर्य ही है।*

   तो इनसे वर्धित होनेवाला अग्नि उन गुणोंसे परिपूर्ण होना चाहिए।
  *समानसे समानकी वृद्धी*
पाचकत्व द्रव्य की अपेक्षा करता है जबकी दीपकत्व नहीं। 
तो इस अपेक्षा से ही हम पांचभैतिकाग्नि तक आ जाते है क्या?


[2/26, 8:55 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha:

 Kutaki in any form is not good ..


[2/26, 8:55 PM] Vd.Shailendra : 

Jee Sir....

[2/26, 8:56 PM] Dr.Satish Jaimini:

 🙏🏻🙏🏻🙏🏻कृपा गुरुजी

[2/26, 8:57 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha : 

रक्तपाचक सदृश शब्द तो मान्य नहीं है  !

[2/26, 8:57 PM] Dr. Vinod Sharma

🙏🏾🙏🏾🙏🏾pranaam  bhai ji .

[2/26, 9:00 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha: 

रक्त पाचकादि शब्द प्रयोग  विषम ज्वर चिकित्सा सिद्धांत के तहत नहीं आते

[2/26, 9:05 PM] Vd Sachin Vilas Gajare :

 🙏🏻

[2/26, 9:07 PM] Vd. Atul J. Kale : 

ये एक महाराष्ट्रकी वृद्धवैद्यपरंपरा कह सकते है जो अव्याहत चली आ रही है। अभी इन पाचकों के चैतन्य फार्मा के घन भी उपलब्ध है जो महाराष्ट्रमें काफी मात्रा में उपयोग में लाए जाते है।  मैंने मेरे पोस्टमें उसी परंपराके आधार पर कुछ बाते रखी।


[2/26, 9:09 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha: 

ठीक है, मेरा विषय चयन चरक संहिता से है न कि किसी परम्परा या व्यक्तिगत सोच से..


[2/26, 9:12 PM] Vd Sachin Vilas Gajare : 

In Diabetic nuropathy where burning sensation is present can use of kutaki wil helpful or not.
By doing shodhan of pitta dosh.

[2/26, 9:14 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha :

 वैद्यराज अतुल काळे जी, संतत ज्वर द्वादशाश्रय युक्त है, फिर प्रयुक्त द्रव्य रसपाचक कैसे हो सकते हैं ??


[2/26, 9:16 PM] Vd. Atul J. Kale 

आचार्य इन सभी प्रश्नों के उत्तर तो मैं भी ढूंढ रहा हूँ।

[2/26, 9:18 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha: 

चलिए , मिलकर ढूंढते है

[2/26, 9:19 PM] Vd. Atul J. Kale: 

आप है तो राह मुष्कील नहीं। 😊


[2/26, 9:21 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha :

 धात्वाग्नि वृद्धि ➡️ धातु पाचन ➡️ धातु क्षय ; क्या इसकी अपेक्षा है?


[2/26, 9:23 PM] Vd. Atul J. Kale: 

जी सर, मेदोरोगमें परिणाम भी मिलते है।

[2/26, 9:24 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha: 

फिर अपतर्पण के साथ गुरु क्यो‌?

[2/26, 9:30 PM] Vd. Atul J. Kale

थोडा समय दिजिएगा, मेरी अल्पमतीसे प्रयत्न करता हूँ।


[2/26, 9:31 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha: 

विषम ज्वर के संदर्भ में आचार्य चरक अन्य मत भी प्रस्तुत किए हैं , जो कि विषय के व्यापकता को स्पष्ट करता है


[2/26, 9:34 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha :

 तृतीयक के त्रिक , पृष्ठ , शिरोग्राही भेद विषय के व्यापकता को बढा देते हैं..


[2/26, 9:36 PM] Dr. Chandrakant Joshi:

 ऐसे न कहिए गुरुवर।आपके सान्निध्यमें कुछ सीखनेंका प्रयासा चलता रहता है।आपकी सोचसे कुछ नयी दृष्टी मिलती रँहती है।🙏🏾🙏🏾


[2/26, 9:36 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha:

 *विषम ज्वर पर आचार्य चक्रपाणी , आचार्य डल्हण , आचार्य हेमाद्रि और आचार्य विजयरक्षित के मत अवलोकनीय है*





**************************************************************************************************************************Above discussion held in 'Kaysampraday' a Famous WhatsApp group  of  well known Vaidyas from all over the India. 

*********************************************************************************************************************************************



Compiled & Uploaded by

Vd. Rituraj Verma
B. A. M. S.
Shri Dadaji Ayurveda & Panchakarma Center,
Khandawa, M.P., India.
Mobile No.:-
 +91 9669793990,
+91 9617617746

Edited by

Dr.Surendra A. Soni
M.D., PhD (KC) 
Professor & Head
P.G. DEPT. OF KAYACHIKITSA
Govt. Akhandanand Ayurveda College
Ahmedabad, GUJARAT, India.
Email: surendraasoni@gmail.com
Mobile No. +91 9408441150

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