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WDS103: लीन दोष भाग-२ (Leen-dosha, Part-2) by Vaidyaraja Subhash Sharma, Prof. L. K. Dwivedi, Dr. Dinesh Katoch, Prof. Arun Rathi, Dr. Pawan Madaan, Dr. Sanjay Chajed, Vd. Atul Kale, Vd. Vd. Akash Changole, Vd. Vandana Vats, Vd. Shailendra Mehata & others

[3/21, 12:25 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:  *लीन दोष -भाग 2....  लीन दोष की व्याख्या और clinical presentations - Liver Cirrhosis- Liver Fibrosis एवं अनेक रोगों के साथ* *वैद्यराज सुभाष शर्मा, एम.डी.(आयुर्वेद-जामनगर,गुजरात -1985)* *'स्वल्पं यदा दोषविबद्धमामं लीनं न तेजःपथमावृणोति|  भवत्यजीर्णेऽपि तदा बुभुक्षा सा मन्दबुद्धिं विषवन्निहन्ति' सु सू 46/513, अर्थात वात, पित्तादि से बद्ध हुआ किंचित सा भी आम लीन हो कर (यहां दोष अल्प हैं, विबद्ध हैं और आम के साथ लीन हैं) भी पित्त के मार्ग को नहीं रोक पाता तब अजीर्ण होने पर भी क्षुधा की प्रतीती होती है और वह मिथ्या क्षुधा भोजन करने से उस मंदबुद्धि मनुष्य के प्राणों का हरण कर लेती है।* *आचार्य सुश्रुत के इसी प्रकरण को ध्यान में रख कर आरोग्य मंजरी में आचार्य नागार्जुन ने एक बहुत ही श्रेष्ठ उदाहरण रसशेषाजीर्ण का दिया है कि भोजन के पश्चात जब अजीर्णावस्था से मनुष्य बाहर आ गया और शुद्ध उद्गार भी आ गई पर फिर भी मनुष्य आगामी भोजन काल में भोजन करने की इच्छा नहीं है, किसी आहार में कोई रूचि नहीं है, मुख में श्लेष्मा या चिकनाई सी प्रतीत होती है, सन्धि