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Case-presentation: 'Hyperinsulinemia' by Vaidyaraja Subhash Sharma

[11/22, 9:19 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi: 

*case presentaion- अग्नि विकृतिजन्य मेदोवाहीस्रोतोदुष्टि - hyperinsulinemia - आयुर्वेदीय दृष्टिकोण एवं चिकित्सा व्यवस्था*

*काय चिकित्सा अर्थात अग्नि की चिकित्सा, चिकित्सा में सर्वाधिक महत्व अग्नि का ही है 'तदेतत् स्रोतसां प्रकृतिभूतत्वान्न विकारैरूप सृज्यते शरीरम्म्' च वि 5/7 जब तक इस शरीर में 3 या 13 प्रकार की अग्नि सम्यक है, धातुवाही स्रोत अति प्रवृति, संग, विमार्ग गमन और ग्रन्थि से विकृत नही है तब ही शरीर के अव्यवों की पुष्टि होती रहती है।यहां हम आयुर्वेद पक्ष को ही ले कर चले हैं कि वर्तमान में insulin level की वृद्घि होने पर रोगी आयुर्वेद चिकित्सा के लिये आते हैं और उन्हे पता होता है कि इस से मेदोरोग, DM type 2, HT, increased triglycerides, artherosclerosis, uric acid वृद्धि, अनियमित आर्तव, PCOD एवं thyroid function विकृति आदि संभव है।*

* *रूग्णा age 29 yrs/ unmarried/ teacher*

*प्रमुख लक्षण - मुख त्वक वैवर्णय, मुख हस्त उदर पुरूषों के सदृश अति रोम, क्षणिक ही उत्तेजित एवं क्रोधित होना, अनियंत्रित क्षुधा, मधुर रस सेवन तीव्र इच्छा, अंगमर्द, शैथिल्य, आलस्य, गात्र गुरूता, ह्रद स्पंदन तीव्र हो जाना, स्वेद की अति प्रवृत्ति।*

*History of present illness - रूग्णा को आरंभ से ही आर्तव में विलंब होता था जिसके लिये 28 days तक allopathic medicine से ही आर्तव प्रवृत्ति होती थी, पिछले कुछ समय से tab glyciphase sr 500 mg OD सेवन कर रही थी *

*past history - बाल्यावस्था से ही रूग्णा को कभी कभी प्रतिश्याय, कास, ग्रहणी दोष पीड़ित करते रहते थे जिसके लिये ऐलौपैथिक औषधियों का प्रयोग बहुधा होता रहा।*

*family history - रूग्णा की  माता को भी आर्तव दोष रहा था।*

*सम्प्राप्ति विवेचन - 29 वर्ष की होने पर भी इसे विवाह को ले कर चिन्ता थी जिस से मानसिक उद्वेग प्रधान था, गात्र में रोमाधिक्य  के लिये laser treatment कराने के बाद भी पुन: रोम उत्पत्ति से हीन भावना ने पीड़ित कर रखा था।निरंतर hormones का सेवन और उसके उपद्रव स्वरूप अग्नि की विकृति से भ्राजक पित्त जन्य मुख वैवर्ण्य , जब हमारे पास आई तो wt. 69.3 kg. था height कम होने से स्थौल्य जनित शरीर था।कफ और मेद के गुण समान है, क्लेदक कफ का स्थान आमाश्य है और अन्य कफ क्लेदक कफ से ही पुष्टि प्राप्त करते है। कफ का मंद गुण स्रोतों की गति को भी मंद कर देता है जिस से वायु का क्लेद को शोषित करना तथा पित्त का उष्ण स्वभाव से रूक्षण कर्म करना आदि प्राकृतिक क्रियाएं मंद हो जाती हैं तथा शरीर में मूर्त्त एवं कठिन भाव उत्पन्न हो जाते है जो अवरोध कर वायु का आवरण कर देते है। कफ और मेद दोनो समस्वभावी होने से यह कार्य करते हैं जिस से उपरोक्त आलस्य अंगमर्द गुरूता शैथिल्य आदि लक्षण उत्पन्न करते है।*

*अनियन्त्रित क्षुधा का कारण मेदोवृद्धि के कारण वात का बाह्रय मार्ग कफ या मेद से आवृत होने के कारण वह कोष्ठ में ही रह जाता है और वृद्ध हो कर कोष्ठ में संचार कर अग्नि को शोषित और प्रदीप्त कर देता है जिस से भोजन का पाचन शीघ्र शीघ्र होने लगता है। जिस से बार बार भोजन की इच्छा होती है और ना मिलने पर दौर्बल्य जनित क्रोध स्वाभाविक है।*

*सम्प्राप्ति घटक -*

*दोष - समान, अपान और व्यान वात, पाचक और भ्राजक पित्त और क्लेदक कफ*
*दूष्य - रस, मेद , त्वक ,आर्तव और क्लेद*
*स्रोतस - रस,रक्त,मेद ,आर्तव एवं स्वेद*
*स्रोतो दुष्टि - संग*
*अग्नि - जाठराग्नि, मेद धात्वाग्नि*
*रोगोद्भव स्थान - आमाश्य*
*रोग मार्ग - बाह्य*

*चिकित्सा सूत्र -  आहार विहार और औषध, निदान परिवर्जन, संशोधन, कर्षण, मेद क्षपण, अनुलोमन, आर्तवजनन, प्रमाथी।*

*मेदोवाही स्रोतो दुष्टि में मेद क्षपण अर्थात इसे नष्ट करने वाले आहार विहार का चिकित्सा में सर्वाधिक योगदान होता है।कर्षण,भेदन,लेखन और मेद का छेदन आहार और औषध द्रव्यों से ही किया जा सकता है।*
*'मेदोजलपृथिव्यात्मकम्' मेदोवर्धक द्रव्य पृथ्वी एवं जल महाभूत की अधिकता युक्त स्निग्ध,मधुर और विशेषकर बृंहण गुण की अधिकता युक्त होते है।*

[11/22, 9:20 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi:

 *इसके विपरीत हमें ऐसी आहार और औषध की कल्पना करनी पड़ती है जो आकाश,अग्नि और वायु प्रधान हो पर वायु को विषम ना करे और उष्णता तीक्ष्णता से संग दोष को भी दूर करे साथ ही मेद का रूक्षण, छेदन,भेदन करे और आर्तव प्रवर्तन में सहायक हो।*

*आहार में हमने प्रधानता यव को दी, मात्र लंघन से वायु प्रकुपित होने का भय बना रहता है अत: यव के साथ चने का आटा मिश्रित कर चपाती सेवन कराई गई, ये दोनो ही मेदहर कार्य में श्रेष्ठ हैं। 40-40 मिनट प्रात: सांय भ्रमण तीव्र गति से, रात्रि भोजन में कभी मूंगदाल कृशरा और बाजरे की कृशरा भी, बीच बीच में रात्रि के समय मूंग+मसूर दाल mixed soup ही dinner में दिया गया। मधुर स्निग्ध पदार्थों की अति अल्पता कर दी गई, bfast में पोहा भी दिया गया जिसकी विशेषता है कि यह जल्दी क्षुधा नही लगने देता।*

*औषध - अल्प मात्रा में गुग्गुलु, शिलाजतु का प्रयोग एवं अधिक मात्रा में यव एवं चणक का प्रयोग चिकित्सा काल में किसी ना किसी रूप में लाभ की निरंतरता के लिये सदैव चलता रहा।*

*आरोग्य वर्धिनी 3-3 वटी, ये संग दोष हर है, मेद कम करती है, गुग्गुलु, शिलाजीत और कुटकी तीनों से युक्त है।*
*चन्द्रप्रभा वटी 2-2 वटी, ये भी शिलाजीत एवं गुग्गलु युक्त है, प्रमेह मेद से संबधित है और मेदोवाही स्रोतों पर इसका बहुत अच्छा प्रभाव मिलता है, स्त्रियों में गर्भाश्य के लिये बल्य है, इस से पूर्व भी हमने hyperinsulinemia  की रूग्णाओं में इन दोनो औषधियों की प्रामाणिकता सिद्ध की थी।*
*रज: प्रवर्तिनी वटी 2-2-2 वटी, कभी कभी इसकी गोलियां 3-3 भी दी गई तब रज की प्रवृति हुई।*
*त्रिकटु चूर्ण - 1-1 gm 1 tspful मधु के साथ lunch और Dinner के बाद दिया गया, क्योंकि रूग्णा को भोजन के बाद मीठा सेवन की आदत थी तो हमने मधुर रस के बहाने मधु को लिया जिसमें कषाय अनुरस है और प्रमाथी - ये अपने वीर्य से स्रोतों के मल को निष्कासित कर स्रोतो शोधन करते है इसके लिये त्रिकटु दिया गया, भोजन के बाद क्लेदक कफ का काल होता है इसमें  देने से आमोत्पत्ति नही हुई तथा गुरूता,आलस्य,अंगमर्द आदि लक्षणों में भी लाभ मिला।*
*फलत्रिकादि क्वाथ  - रूग्णा school teacher है जिसे early morning school जाना होता है तो अति मल की प्रवृति से बचाने के लिये संध्या लगभग 7 बजे evening walk के बाद कुटकी चूर्ण 2-3 gm मधु के साथ फलत्रिकादि क्वाथ दिया गया और रात्रि भोजन 8 बजे, इस से दैनिक कार्य में कोई व्यवधान नही पड़ा।*
*नष्टपुष्पांतक रस - इसका उपयोग तीन चार दिन आर्तव के विलंबित होने पर बीच में किया गया।*
*बीच में कुछ समय त्रिकटु के स्थान पर फलत्रिकादि क्वाथ में त्रिफला चूर्ण 3 gm अतिरिक्त मिला कर भोजन के पूर्व दिया गया ।*

*उपरोक्त चिकित्सा से लक्षणों मे तो पूर्ण लाभ मिला ही और जब ये हमारे clinic पर आई तो संयोग से काय सम्प्रदाय ग्रुप के कुछ सदस्य भी हमारे साथ थे तो इसका कहना था कि शरीर को लोम भी 25% के लगभग रह गये हैं और औषध त्यागने पर पुन: बढ़ने लगते है, इस विषय पर और कार्य हमारा चल रहा है कि किस प्रकार अनावश्यक लोम आयुर्वेद द्वारा स्त्रियों में कम या समाप्त किये जा सकते है।*

👇🏿👇🏿👇🏿






















[11/22, 9:25 PM] D C Katoch Sir: 

Great o Great । 👏🏽👏🏽

[11/22, 9:32 PM] Samta Tomar Dr Jmngr: 🙏🏻🙏🏻🙏🏻

[11/22, 9:32 PM] Vd Raghuram Bhatta, Banguluru: 

Great sir🙏🙏💐💐💐

The way you put up your explanation, step by step, with logical application of sutra and bheshaja is exemplary sir. 👏👏👏
Inspiring, like always. 🙏

[11/22, 9:41 PM] Dr. Rituraj Verma: 

श्रष्ठ गुरुवर चरणस्पर्श🙏🙏

[11/22, 9:41 PM] Dr. Digvijay Singh: 🙏🏻🙏🏻💐💐

[11/22, 9:42 PM] Dr. Rituraj Verma: 🙏🙏🙏

[11/22, 9:42 PM] Dr. Ajay Gopalani:

 इतने कठिन रोग को इतनी सरलता से साध्य करना ये आचार्य जी आप से ही हम सीख सकते हैं..... *साष्टांग दण्डवत प्रणाम* 🙏🏻🙏🏻🙏🏻

[11/22, 9:43 PM] Dr. Ajay Gopalani: 

🙏🏻🙏🏻👌🏻👌🏻👏🏻👏🏻

[11/22, 9:47 PM] Dr Shashi Jindal: 

Amazing 👍🏼👌👌🙏🏼🙏🏼💐🙏🏼

[11/22, 9:48 PM] Dr. Ajay Gopalani:

 अत्युत्तम गुरूवर🙏🏻🙏🏻🙏🏻

[11/22, 9:48 PM] Dr. Ajay Gopalani: 🙏🏻👌🏻👌🏻👏🏻👏🏻

[11/22, 9:51 PM] Dr. Ajay Gopalani: 

बिल्कुल सही बात है। Allopathic medicines ke wrapper per bhi kabhi koi indications nahi likhe hote....ye ayurveda me pata nahi kisne start kiya hai ?

[11/22, 10:05 PM] Dr Sanjay khedekar: 👏🏻👏🏻🙏🏻🙏🏻

[11/22, 10:16 PM] Dr Rupinder Kaur: 👌👌👌👌💐

[11/22, 10:21 PM] Dr. Mrityunjay Tripathi, Gorakhpur: 

Uttam Uttam...... Uttam sir ji 🙏🙏🌹🌹🙏🙏

[11/22, 10:31 PM] Shivam Sinwar Gngangr: 🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

[11/22, 10:34 PM] Dr Ved Prakash, Delhi: 👍👍👍🙏🙏

[11/22, 10:45 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi: 

*all you scholars give me so much love, it is a great thing for me.*

                 🙏💐🌺🌹

[11/22, 10:55 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi:

 *अभी आने वाले समय में जैसे जैसे समय मिलेगा ul.colitis, typhoid, psoriasis आदि के चिकित्सा पत्र vd evidence यहां देंगे, कुछ रोगों में जिन्हे हम कठिन समझते हैं वो हैं इतने कठिन हैं नही और इसके लिये हमें format से बाहर आना पड़ेगा क्योंकि समय बदल गया है अब रोगी का व्याधि क्षमत्व कम हो गया है और वो बढ़ेगा निदान परिवर्जन, संसर्जन कर्म, पथ्य अपथ्य का पालन, हित और अहित का ज्ञान से।*

[11/22, 10:56 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi: 

🙏🌺💐🌹🙏
[11/22, 11:04 PM] Vd. Aashish Kumar, Lalitpur: 

बहुत बहुत धन्यवाद गुरुवर,आपके पास रोगी इतने आते है कि उनको आप चाहकर भी समय नही दे सकते है, इतने कम समय मे पूरे ध्यान से हिस्ट्री लेना,रोग समझना,पथ्य समझाना, औषधि चयन करना । ये सारी चीजें अपने आप मे आश्चर्य है🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻आपकी हर पोस्ट प्रेरणादायक है गुरुदेव !🌹🌹🙏🏻🙏🏻

[11/22, 11:14 PM] Dr. Ashok Rathod, Oman: 

आचार्य, अति प्रोत्साहनीय केस sharing 💐💐💐🙏🏼आपसे एक मार्गदर्शन कि अपेक्षा करता हूं रज:प्रवर्तीनी वटी के बारे में। यह वटी का प्रयोग लगातार कितने दिन करना चाहीये? मेरे महाविद्यालयीन गुरूसे अपेक्षित माहवारी दिन के पूर्व एक सप्ताह से देने का मार्गदर्शन रहा। आपने इस रुग्ण को यह वटी कैसे प्रायोजित कि? और कितने माह तक करेंगे या करना चाहीये? कृपया उचित मार्गदर्शन करें । 🙏🏼🙏🏼💐

[11/22, 11:21 PM] Prof Mamata Bhagwat: 

Pranams Sir🙏🏻 as always Crystal clear presentation and logical explanation.. 💐💐 Long way to be trodden to analyze principles of Ayurveda Ike you.. 🙏🏻🙏🏻

[11/22, 11:31 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi:

 *एक स्त्री को 32 वर्ष की अवस्था में early menaupose declare कर दिया था, जब वो 42 वर्ष की थी तो संधिवात की चिकित्सा के लिये आई थी तो हमने अभी तक मुझे याद है 8 महीने संधिवात की चिकित्सा के साथ ही रज प्रवर्तिनी दी थी साथ में बीच बीच में 1-1 महीना उलट कंबल और हरमल के बीज, उसे आर्तव आरंभ हो गये और 43 yrs में गर्भ धारण 😄😄😄 उसका husband आ कर बोला ' वैद्यजी ये क्या हो गया' उनका वो बेबी अब 10 th class में है। रज प्रवर्तिनी हमने पहले भी कहा था पुरूषों को भी हम देते हैं, ये स्रोतों के संग दोष को दूर करती है, अनुलोमन करती है, पक्वाश्य और अपान वात पर इसका तुरंत प्रभाव पड़ता है हम इसे पुरूषों की gall stone में भी बहुत देते है और इसमें ऐसा कोई द्रव्य नही है जो अधिक दिन देने से हानि करे। इसीलिये हमने ऊपर लिखा है कि format से बाहर आईये और देखिये आयुर्वेद की पहुंच वहां तक है जहां कोई सोच भी नही सकता, आने वाला समय केवल आयुर्वेद का ही है ।*

[11/22, 11:34 PM] Dr. Ajay Gopalani: 👏🏻👏🏻👏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻😀

[11/22, 11:34 PM] Prof Giriraj Sharma: 

🙏🏼🙏🏼🙏🏼🌹🙏🏼🙏🏼
फॉर्मेट से बाहर निकलने की बात करने पर एक श्लोक लिखा था 

*विवेच्यति च तथ्यानि कृतघ्नभावो* 
*टीकाकारणाम शास्त्र घृषणम*
*पापक्रिया तँत्रयुक्तविहीन कर्म च प्रज्ञापराधम शास्त्र विरोधिचिन्तनम* ।

[11/22, 11:35 PM] Prof Giriraj Sharma: 

इनसब आरोप को सहना पड़ेगा 
😅😅😅🙏🏼👏🏻🌹🙏🏼😅😅😅

[11/22, 11:35 PM] Dr. Ashok Rathod, Oman: 

समर्थ एवं अनुभवी वाणी, बहोत बहोत धन्यवाद🙏🏼🙏🏼💐

[11/22, 11:40 PM] pawan madan Dr: 

प्रणाम सर।
बहुत ही शानदार विवेचन एंड परिणाम
💐💐💐💐💐💐💐💐

मुझे लगता है औषधियो की गुणवत्ता एक सीरियस issue है।

आपके कमान से निकलने वाले तीर सटीक निशाने पर लगने में इतने सक्षम हैं उन का न तो कोई जवाब है ना कोई तोड़।

Proper history with सटीक निदान एवं एक लक्ष्य साधित चिकित्सा सूत्र

ये सब आपने इतना सहज कर दिया है के अब इसके बिना संतोष ही नही होता।

आपको सहस्र बार धन्यवाद एंड चरण स्पर्श।
💐🙏💐🙏💐🙏💐

[11/22, 11:41 PM] Dr Ankur Sharma, Delhi: 

👍🙏
चरण स्पर्श सर आपकी हर पोस्ट विशिष्ट होती है और बहुत ही प्रेरणादायक होती है आपके विशिष्ट चिकित्सा  अनुभवों से हम जैसे अल्प बुद्धि के चिकित्सकों को बहुत लाभ मिल रहा है आपको कोटि-कोटि प्रणाम🙏

[11/22, 11:44 PM] Dr Isha Aneja: 👌

[11/22, 11:45 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi: 

🙏🙏🙏😄😄😄
*आयुर्वेद तो बहुत विशाल ह्रदय का है इसने तो द्रव्यों के अभाव में प्रतिनिधि द्रव्यों को भी स्थान दिया है, चरक के स्रोतस और सुश्रुत के भिन्न हैं पर दोनो अपनी जगह ठीक हैं क्योंकि एक काय चिकित्सक है एक शल्य समुदाय के को हम आज जिस काल में आ गये हैं, समय और परिस्थिति के अनुसार आधार हमारा शास्त्र ही है पर हम उसका उपयोग आज के समय में करेंगे तो वो format से बाहर होगा ही, 'मक्षिका स्थाने मक्षिका' तो संभव नही। इसका उदाहरण हमने रोगियों में संसर्जन कर्म के दिन कम कर दिये, विरेचन को रोगी की अवस्थानुसार कभी रेचन तक भी सीमित करना पड़ता है।*

[11/22, 11:51 PM] Dr Sandesh Chavhan: 

Out of the box thinking सरजी🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

[11/22, 11:55 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi:

 *पवन जी , बहुत बहुत धन्यवाद 🙏🙏🙏 आप तो हमारे clinic पर आते रहे हैं, अगली बार जब आयेंगे तो आपको रोगी की history के साथ दशविध परीक्षा का नया रूप भी देखने को मिलेगा।*

[11/22, 11:56 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi: 

*अंकुर जी, आप अल्प बुद्धि नही श्रेष्ठ विद्वान एवं अनुभवी चिकित्सक हैं।*

            🌺💐🌹

[11/22, 11:56 PM] pawan madan Dr: 

जी सर
जल्द ही आता हूँ।
और जो मैंने दशविध परिक्षा का format बनाया है
वो भी आप के मार्गदर्शन हेतु लेता आऊंगा
💐🙏💐

[11/22, 11:58 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi: 

*सारा काम कुटकी की quality पर निर्भर करता है, इसीलिये हम आरोग्य वर्धिनी में कुटकी की तीन भावनाये अतिरिक्त दिलाते है इस से cost बढ़ जाती है पर परिणाम तुरंत मिलता है।*

[11/22, 11:59 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi: 🙏🙏🙏

[11/23, 12:00 AM] pawan madan Dr: 

इस तरह की रचना जरूरी लग रही है गुरु जी अब तो।

[11/23, 12:03 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi: 

*रोग पर विजय के लिये हमारे शस्त्र औषध हैं और औषध की क्वालिटी पर ही बहुत कुछ निर्भर है, आजकल हमारी दो आ वर्धिनी भी रोगियों को तीन चार विरेचन करा रही है क्योंकि इस बार की कुटकी बहुत वीर्यवान है।*

[11/23, 12:07 AM] pawan madan Dr: 

जी सर
मैं अब ये समझ ह्या हूँ।
चार पाड़ो में सटीक औषध के बिना सफलता संभव नही।
🙏🙏

[11/23, 12:08 AM] pawan madan Dr: 

अब आप विश्राम करें
💐🙏💐

शुभरात्रि !

[11/23, 12:15 AM] Urvashi Arora Dr:

 Sir so many solutions in one case 
U have no comparisons 🙏🙏🙏🙏🙏🙏

[11/23, 12:16 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi: *शुभ रात्रि*

            💐🌺🌹

[11/23, 12:17 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi: 🌺💐🌹🙏

[11/23, 1:08 AM] Dr Reena Kakkad:

 🙏🙏🌹🌹sir aap ne bataya ki pt ki facial hairy growth bhi kam ho gayi hai .sir u said u r working on this. Sir pls guide us in future for reduction of facial hairy growth .

[11/23, 1:09 AM] Dr Reena Kakkad: 👏👏🙏🙏

[11/23, 1:12 AM] Dr Reena Kakkad: 🙏🙏

[11/23, 8:14 AM] Prof. Surendra A. Soni: 

नमो नमः आचार्य श्री ।
आपने धातुगत स्तर के सामत्व का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत किया है । रक्त में अंतः स्रावों के मिश्रण होना और उनका चयापचय होना ये दोनों अलग अलग विषय हैं । यही विषय वस्तु आवरण को समझने में भी सहायक हो सकती है ।

🙏🏻🙏🏻🌹🌹

[11/23, 8:16 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi: 

*आपकी बात बिल्कुल सही है, वास्तव में अधिकतर लोगो के मस्तिष्क इस प्रकार बन चुके हैं कि रोग का नाम सुनते ही उनके अंदर औषधियों के फार्मूले चलने लगते है और दिमाग 'सेट' हो गये है जो उचित नही, हमारी तो मंड,पेया,विलेपी,यवागू और कृशरा पर कुछ दिन रोगी को रखकर ulcerative colitis जैसे रोगों में रखकर इतना लाभ एकदम द्रुत गति से दिया है कि रोगी को भी आश्चर्य होता है, पर्पटी कल्प तक तो पहुंच ही नही पाये और रोगी स्वस्थ हो चुका था, इसी यवागू मंड पेयादि योजना को मास में 2 बार रिपीट करते रहे और साधारण सी औषधियां कुटज घन वटी आदि दी । चिकित्सा का अभिप्राय केवल औषधियां नही चिकित्सा तो एक समग्रता के साथ जिसमें आहार, विहार, दिनचर्या, पथ्य अपथ्य सहित औषध की युक्ति है।*

[11/23, 8:19 AM] Dr Shashi Jindal: 

👌👌🙏🏼🙏🏼💐🙏🏼🙏🏼
We can change format according to our resources, time and need, but not sidhant, golden tip 👌👌👌👌👌🙏🏼🙏🏼🙏🏼💐

[11/23, 8:28 AM] Dr Shashi Jindal:

 hanji sir nidaan parivarjan, aahar, and vihaar are necessary for treatment plan, because without these even best medicines do not work.🙏🏼🙏🏼🙏🏼

[11/23, 8:31 AM] Vd V. B. Pandey Basti U. P:

 🙏जी सर इसके लिए हमें अपने विचारों की तीव्रता पर नियंत्रण करना होगा ।कम से कम मैं तो इससे बहुत नुकसान कर चुका हूँ अपना रोगी ने इधर बोला उधर चिकित्सा पत्र तैयार ।

[11/23, 8:35 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi: 

*नमस्कार सर, अगर आपको स्मरण हो इसी रोग पर दो बार तीन रोगियो का पहले भी case present कर चुका हूं, वो तीनो कभी कभी clinic पर परिवार के साथ या किसी अन्य को दिखाने आती रहती है, बिना औषधियों के आहार और व्यामम से ही उनकी insulin normal है, साल में एक बार test करा लेती है, हमारे सिद्धान्त तो उचित है तभी रोगियों के रोग दूर होते है इन पर और अधिक कार्य आप और अन्य ग्रुप मेम्बर्स जो शिक्षण में हैं ही कर सकते है और अपने छात्रों से करा भी सकते है क्योंकि आप लोग प्रतिदिन डल्हण,चक्रपाणि, अरूणदत्त जैसे टीकाकारों से जुड़े रहते हैं जिन्होने सूत्रों का विस्तार किया।*

*मुझे तो कुछ रोगों की चिकित्सा के लिये प्रेरणा इस ग्रुप से मिली क्योंकि यहां विद्वानों की सैद्धान्तिक चर्चा नें विषय को स्पष्ट किया । ये सब टीम वर्क है, आप विद्वान लोग सिद्धान्त देते है उसे स्पष्ट करते हैं , हमें और अधिक कार्य की प्रेरणा मिलती है।*

                🙏🙏🙏🙏🙏

[11/23, 8:40 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi: 

*good morning डॉ शशि जी,चिकित्सा में औषध का रोल 7-8 % है जो बाद में आता है , रोगी स्वस्थ होने में 92% role निदानपरिवर्जन, पथ्यादि और युक्ति का है।*

             🌹🌹🌺💐

[11/23, 8:41 AM] Vd. Sameer Mukund Paranjanjape: 

Namaste sir !
Aap saakshat adhunik kaal me rishi hai.aapka krupabhilashi.

[11/23, 8:41 AM] Vd. Sameer Mukund Paranjanjape: 

Mai har ek rugna ko sansarjan kram shaman chikitsa me adv karta hu.
Shunthi aamlaki sharkara siddha yawagu sach me nidra laati hai.bade bade kalpana jaha kaam nahi karte vaha ye kaam karti hai.

[11/23, 8:42 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi: 

*रोगी परीक्षण में आयुर्वेद सिद्धान्त अवश्य ले, इस से रोगी में और वैद्य में अपने आप ही धैर्य आ जाता है जब सत्व परीक्षा पर आते है।*

[11/23, 8:44 AM] Dr Shashi Jindal: 

ji sir 🙏🏼🙏🏼🙏🏼💐💐

[11/23, 8:45 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi: 

*जी समीर जी, ये सब ही तो वास्तविक आयुर्वेद है जिसे भूल कर लोग pharmaceutical co's के द्वारा दिखाये जा रहे glamour world में भाग रहे हैं।*

            🌹🌺💐
[11/23, 9:04 AM] Dr Ashwini Kumar Sood, Ambala: 

Wonderful case presentation , this is an example why we should get pts investigated throughly with modern parameters and scientifically proof how AYURVEDA is best in such complicated health problems .

[11/23, 9:14 AM] D C Katoch Sir:

 आयुर्वेद की आहार विहार परक पथ्य व्यवस्था वैद्य  रोगियों को तभी बता सकता है यदि उसे स्वयं सम्यक आहार विहार पालन करने का अनुभव हो । वर्ना वह औषधियों को ही ज्यादा से ज्यादा बताता है।

[11/23, 9:15 AM] D C Katoch Sir: 

Not miracles Sir Ji, rational outcomes and clinical success.

[11/23, 9:17 AM] Dr. Ashok Rathod, Oman: 

👆🏽👆🏽🙏🏼🙏🏼💐 आहार विहार भी उच्चतम औषधींयां ही है।

[11/23, 9:33 AM] Prof. Satish Panda K. C: 

अतुलनीय पोस्ट प्रणाम गुरुवर
शब्द ढूंढना पड़ गया कैसे इस पोस्ट की प्रसंसा करे।
🌹❤🙏🏻🙏🏻❤🌹

[11/23, 2:35 PM] Prof. Deep Narayan Pandey: 

*अत्यंत महत्वपूर्ण विषय पर उत्कृष्ट चिकित्सा प्रबंध आपने प्रस्तुत किया है आचार्य श्रेष्ठ*
👌👌👌👌🌹🙏
प्रायः चिकित्सा पर टिप्पणी करने से बचता हूं। तथापि इस प्रकार के प्रकरणों में सफलता की योजना बनाना, उसे क्रियान्वित करना, क्रियान्वयन के दौरान निगरानी करना, और अंततः प्राप्त हुए परिणामों को शास्त्रों के परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत करना सभी को आपसे सीखना चाहिए। 

मुझे बचपन में गुरु श्रेष्ठ का यह निर्देश बार-बार याद आता है कि जब आप किसी रोगी की चिकित्सा प्रारंभ कर देते हैं तब उसके शरीर के लिए जो भी द्रव्य या अद्रव्य आप विहित कर रहे हैं, उनका तर्क आपके माथे में स्पष्ट होना चाहिए। उनका यह कथन भी मुझे याद आता है कि यदि हम ऐसा नहीं करते तो वह चिकित्सा आयुर्वेद चिकित्सा नहीं बल्कि अंधेरे में चलाया गया लट्ठ है।

[11/23, 2:38 PM] D C Katoch Sir: 

लाजबाव टिप्पणी 👏🏽👏🏽 सुष्ठु सुष्ठु!

[11/23, 2:39 PM] Prof. Deep Narayan Pandey: 

बहुत-बहुत धन्यवाद आचार्य श्रेष्ठ !
🙏💐🌹🙏

[11/23, 2:42 PM] D C Katoch Sir:

 चिकित्सक को रोगी के बारे में मां की तरह सबकुछ हर स्थिति में पता होना चाहिए ।

[11/23, 2:51 PM] D C Katoch Sir: 

पर यह तभी सम्भव है जब रोगी में निर्देशकारित्व भाव हो और अपने और अपने रोग के बारे में कुछ न छिपाए।

[11/23, 6:02 PM] Dr Manu Vats, Patiala: 

Super Sir  Thanks for sharing such case history..
It's a classic example of what we discussed few days back  .Stholya Samprapti..
Regards 🙏💐

[11/23, 6:33 PM] Prof Giriraj Sharma: 

प्रणाम आचार्य सुभाष जी !
बहुत ही अच्छे परिणाम आप सर्वदा देते है । 
एक जिज्ञासा थी 
इस केस में आपने महिला के *अतिरोम*  लक्षण का उल्लेख किया ,,,,
रोगी में आर्तव स्रोतः दुष्टि के लक्षण भी है ,,,,
अति रोम आर्तव वह दुष्टि के लक्षण  में मानकर चिकित्सा दी ,,,,,
आर्तव वह स्रोतः एवं शुक्रवह स्रोतः दोनो ही स्त्री में पाए जाएंगे , 
 अति रोम ,,,,अस्थिवहःस्रोतः (चरक)या अस्थि गत व्याधि लक्षण माना गया है ,,, 
1 जहां तक मैं समझ रहा हूँ अतिरोम शुक्रवह स्रोतः की दुष्टि (उपद्रव) ज्यादा  प्रतीत होगी या आर्तव वह की ,,,,,
2 आपने इसमे शुक्रवह / आर्तव वह की या फिर अस्थि वह /  अस्थि दुष्टि जन्य ,,,, लक्षण माना 
🙏🏼🙏🏼🌹🙏🏼🙏🏼🙏🏼🌹

[11/23, 8:54 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi: 

*आचार्य गिरिराज जी सादर नमन, हमने पहले तीन रूग्णाओं पर भी ऐसे case present किये थे, सब में insulin level increased था, मेद वृद्धि सभी में मिली और रोम वृद्धि केवल पहले एक में और इस चौथी रूग्णा में थी, अनेक और भी ऐसे cases जो चलते रहे हैं और अभी भी चल रहे हैं उनमें आर्तव दुष्टि अनेक में मिलती है और कुछ में आर्तव चक्र सही है पर मेद वृद्धि सब में मिलती है। अस्थि वह स्रोतो दुष्टि प्राय: नही मिलती, कई वर्षों में भी रोम और अस्थिवाही स्रोतों को ले कर कोई सिद्धान्त स्थापित नही कर सका। मेद और अग्नि के अनुसार चिकित्सा करने पर insulin level normal आ जाता है, आर्तव दुष्टि ना होने पर भी रोम मिलते हैं।*

*यहां मैं सुविधानुसार सुश्रुत सू 9/11 अनुसार मेद के बाद मूत्र पुरीष शुक्र आर्तव वाही स्रोतस में मेद+आर्तव और आर्तव दुष्टि ना होने पर मात्र मेदोवाही स्रोतस ग्रहण कर के चलता हूं, अभी ये सब परीक्षण के दौर में चल रहा है। संभव हो तो आप श्रेष्ठ शारीरविद् हैं इस विषय में और मार्गदर्शन करें।*

            🙏🌺🌹💐🙏

[11/23, 9:19 PM] Prof Giriraj Sharma: 

*प्रणाम आचार्य* 
*आपके प्रयोगिक अनुभव निश्चित ही अपने आप मे एक सिद्धान्त स्थापित करते है ।*
*अतिरोम*
फिर भी मेरा चिन्तन मात्र है कि
*शुक्रवहाना स्रोतसां वृषणों मूलम शेफश्च*च
*शुक्रवहे द्वे त्योर्मुलम स्तनौ वृषणों च* सु 
*आर्तवह द्वे त्योर्मुलम गर्भाशय आर्तववाहीनयस्य* सु


Regarding to अतिरोम  शुक्रवह स्रोतस as per Aachary Sushrut    *शुक्रवह द्वे त्योर्मुलम स्तनौ वृषणों च* more appropriate  than Aartavah Srotas & and Shukrvah Srotas Of CHARAK.

*शुक्रवहे द्वे त्योर्मुलम स्तनौ वृषणों च* सु 
Here *स्तनौ*. Represent the woman Harmon's Laval

*वृषणों* Represent Male Harmon's Laval 


अतिरोम -  आर्तववह दुष्टि न होकर शुक्रवह दुष्टि ज्यादा प्रतीत होती है ,,,
क्योकि शुक्रवह के मूल स्तन एवं वृषण है जो male and female Hormons को रिप्रेजेंट का रहे है सम्भवत ,,,
*Male में स्तन शुक्रवह स्रोतः मूल low amount of progesterone,  estrogen की उपस्तिथि की और इंगित करती है*
*एवं female में वृषण  low amount of male hormones की तरफ तो इंगित नही कर रहा है कहीं,,,*
Polycystic ovary syndrome (PCOS) is a condition that affects a woman’s hormone levels. *शुक्रवहे द्वे त्योर्मुलम स्तनौ* 
Women with PCOS produce higher-than-normal amounts of male hormones. *शुक्रवहे ,,,, वृषणों च* सु 
This hormone imbalance causes    *शुक्रवहे द्वे त्योर्मुलम स्तनौ वृषणों च* सु 
शुक्रवह की विध्द या दुष्टि से आर्तव वह स्रोतः प्रभावित होता है या स्त्री में आश्रयी आश्रय भाव से लक्षण प्रकट करते होंगे ,,

PCOS also causes hair  growth on the face and body, and baldness. It is relevant to *शुक्रवहे द्वे त्योर्मुलम ,,,, वृषणों च* सु 

इन लक्षणो से शुक्रवह स्रोतः की चिकित्सा ज्यादा महत्वपूर्ण है
आर्तववह स्रोतः की दुष्टि के साथ,,,,,

*एक चिंतन मात्र*

[11/23, 9:21 PM] Dr Shashi Jindal:

 ati lom, alom med dushti, ashatnindnaaya adhayay charak.

[11/23, 9:32 PM] Prof Giriraj Sharma: 

कफ पित्त मल खेषु स्वेद स्यान्नंख रोम च  सु सू 46
[11/23, 9:45 PM] Prof. Surendra A. Soni: 

कफः पित्तं मलः खेषु स्वेदः स्यान्नखरोम च । 
नेत्रविट् त्वक्षु च स्नेहो धातूनां क्रमशो मलाः ।।५२९।।


Dalhan-- very important quote..............
👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻

तेषामेव दोषमलानां यतो यतो यस्योत्पत्तिस्तां दर्शयन्नाह- कफ इत्यादि। तत्राहारस्य मलौ विण्मूत्रे प्रागुक्ते। कफो रसस्य मलः। पित्तं रक्तस्य। मलः। खेष्विति खेषु कर्णश्रोत्रमुखादिषु स्रोतःसु मांसस्य। स्वेदः प्रस्वेदः, स मेदसो मलः। नखरोम पुनरस्थ्नो मलः। नेत्रविट् त्वक्षु च स्नेह इति नेत्रविट् अक्षिपुरीषं, त्वक्षु च स्नेहस्त्वाचां च यः स्नेहः स मज्ज्ञो मलः। धातूनामित्यादि रसादिमज्जान्तानां यथाक्रमं मला इत्यर्थः। शुक्रं पुनरमलं सहस्रधा ध्माताक्षयसुवर्णवदिति; 

*आकृष्टाण्डकोषस्य पुंसः श्मश्रुपातात् श्मश्रु एव शुक्रमल इत्येके, तन्नेच्छति गयी।।५२९।*

👆🏻👆🏻👆🏻👆🏻👆🏻
आचार्य गिरिराज जी !!
आपका चिन्तन विशुद्ध रूप से सत्य ।।

🙏🏻🙏🏻🌹🌹👌🏻👌🏻

[11/23, 9:49 PM] Prof Giriraj Sharma: 🙏🏼🙏🏼🌹🙏🏼🙏🏼

[11/23, 9:50 PM] Prof. Surendra A. Soni: 

नाम में ही अष्ट है वर्णन दो का ही है और आचार्य चरक ने अवशिष्ट छह का चिन्तन ही नहीं किया गया है । 

डॉ शशि जी !

*पता नहीं क्यों ??*🤔🤔

[11/23, 10:47 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi: 

*पुन: सादर नमन आचार्य गिरिराज जी, ये मात्र आपका चिन्तन ही नही है हमारे लिये भविष्य की चिकित्सा के अनेक मार्ग प्रशस्त करेगा जहां स्त्रियों में रोमाधिक्य होगा,जैसे अन्य चिकित्सा के साथ क्षार एवं अन्य कर्षण द्रव्यों का प्रयोग।*

*आपके इस चिंतन पर हम भी गंभीर चिंतन कर चिकित्सा सूत्र बनाकर नवीन रोगियों में जो कुछ भी औषध देंगे आपको अवश्य अवगत करायेंगे, आप सही में सर्वश्रेष्ठ शारीरविद् हैं*

                🙏🙏🙏🙏🙏

[11/23, 10:53 PM] Prof Giriraj Sharma: 

🌹🌹🌹🙏🏼🌹🌹🙏🏼🌹🌹🌹
🙏🏼🙏🏼आप का शुभाशीष बना रहे🙏🏼🙏🏼

[11/23, 11:10 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi: 

*मैं आपसे उम्र में बढ़ा हूं पर ज्ञान में आप मुझ से बहुत बढ़े हैं, अपनी कृपा सदैव बनाये रखें।*

                  🙏🌺💐🌹🙏





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Above case presentation & discussion held in 'Kaysampraday" a Famous WhatsApp group  of  well known Vaidyas from all over the India. 



Presented by











Vaidyaraj Subhash Sharma
MD (Kaya-chikitsa)

New Delhi, India

email- vaidyaraja@yahoo.co.in


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