[11/23/2020, 1:49 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*क्लिनिकल आयुर्वेद - भाग 1 *
*काय सम्प्रदाय के लिये शास्त्रोक्त ज्ञान को clinical practice में हम कैसे apply करते हैं और रोगी रोग मुक्त होता जाता है, एक पूरी series के रूप में लिखने का प्रयास किया है, कुछ विषय कठिन लगेगें क्योंकि यह post graduation या Ph.D विषय का ज्ञान है जिसे हम सरल कर के चलेंगे जिस से सामान्य आयुर्वेद graduates भी लाभान्वित होंगे -
वैद्यराज सुभाष शर्मा, एम.डी.(काय चिकित्सा -जामनगर 1985),
आज पहली भाग आपके सामने है।*
*नीचे दिये गये वीडियो को बहुत ध्यान से देखिये, zoom कर के भी देखे, रोगी का मुख, पाद , हस्त और चलने से पहले का प्रयास और फिर किस प्रकार से उसने गति पकड़ी ...*
[11/23/2020, 1:49 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*लगभग दो महीने के बाद इस रोगी का लिया गया दूसरा वीडियो देखिये, रोग तो असाध्य है जो रोगी को पहले ही बता दिया गया था पर सम्प्राप्ति विघटन से रोगी में आत्मविश्वास और मनोबल की तो वृद्धि हुई ही साथ में रोगी अपने दोनो पांव उठाकर सरलता से चल लेता है।*
[11/23/2020, 1:49 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*आयुर्वेद में उत्तम भिषग् बनना है तो clinical practice का पहला सूत्र, आपको वेदना और लक्षण का भली प्रकार से ज्ञान होना चाहिये कि दोनों में क्या अंतर है तभी आप रोगी के अन्तर्मन में प्रवेश कर पायेंगे ।*
*वेदना शब्द 'विद्' धातु से ज्ञान के संदर्भ में है अर्थात जिन रोग के जिन लक्षणों का ज्ञान या अनुभूति केवल रोगी को होती है वह वेदना है जैसे अंगमर्द,दाह,शूल आदि*
*लक्षण 'लक्ष' धातु से बना है जिसमें रोगी के लक्षण श्रोत्र, चक्षु, घ्राण और त्वचा से स्वयं रोगी, वैद्य या अन्य जन देख सकते हैं। रसना की परीक्षा रोगी से पूछ कर या अनुमान द्वारा की जाती है जैसे मूत्र पर चींटियां आने से मधुरता की, शुद्ध रक्त का स्राव रोगी के शरीर से हो अगर इसे कौआ सा कुत्ता सेवन करे तो रक्त शुद्ध है और ना करे तो यह रक्तपित्त रोग का दूषित रक्त है।*
*कानों से आन्त्रकूजन, संधियों में स्फुटन या चट चट आवाज, स्वरभंग आदि, चक्षु द्वारा शरीर की प्राकृत या वैकृत स्थिति, पांडु रोगी की पीतता,वर्ण,कान्ति आदि। नासिका द्वारा गंध का ज्ञान और त्वचा रूक्ष,स्निग्ध, प्राकृतिक है या रूग्ण ये त्वगेन्द्रिय द्वारा ज्ञान होता है।*
*इस रोगी का मुख देखिये, एक भावशून्य चेहरा, दूसरे वीडियों में आप इसकी आवाज सुनेंगे तो अतिशीघ्रता से और लड़खड़ाता हुआ स्वर जैसे अति मद्यपान कर रखा हो, मन कहीं और खोया हुआ जैसे स्मृति क्षीण हो गई हो, पैर स्तंभित हो गये हो, संपूर्ण शरीर की चेष्टाओं में एक गुरूता युक्त अवरोध हो गया है जिसके कई लक्षण
'गुरूणि सर्वगात्राणि स्तम्भनं चास्थिपर्वणाम् ।
लिङ्गं कफावृते व्याने चेष्टास्तम्भस्तथैव च ' सु नि 1/37
में वात व्याधि अधिकार में कफावृत व्यान के लक्षणों में स्पष्ट किया है कि कफावृत वायु में सभी अंगों में गुरूता, अस्थि और पर्वों में स्तम्भन अर्थात जकड़न तथा मन की इच्छा के अनुरूप चेष्टा का स्तम्भ या असमर्थता हो जाती है।*
*रोगी 72 वर्ष/ retd. from govt. job/ parkinson's disease 4 वर्ष से/अन्य कोई विकार नही/ history में धूम्रपान, मुख से खाने वाला तम्बाखू और नियमित मद्यपान/अनियमित दिनचर्या एवं मिथ्या आहार।*
*इस रोगी में हमें जो लक्षण मिले उनमें अब कंप नही मिल रहा क्योंकि हाथों में कंपन था जो लगभग चार महीने कौंच बीज, पारावत घनवटी, शुद्ध कुचला, भल्लातक से दूर हो गया। अब इसके शरीर में कंप के स्थान पर मिलता है...*
[11/23/2020, 1:49 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*स्फुरन*
*स्पन्दन*
*निद्रा ना आने पर देर रात्रि tv देखने से कभी कभी शिरो कंप*
*इसके अतिरिक्त चलने से पूर्व पाद चेष्टा स्तंभ*
*चलना आरंभ करते ही अति तीव्र गति पकड़ना*
*हस्त पाद अंगुलियों में जाढ्यता*
*अपने पैरों की तरफ या शून्य में देखते रहना*
*वाक् विकृति*
*अल्प स्मृति*
*विबंध*
*आज कल HT, lock down में घर में रहते हुये मंदाग्नि होने पर एक चिकित्सक ने लवण भास्कर और चित्रकादि वटी दे दिया तो BP 210/160 तक आ गया जिसके लिये रोगी amlodepine सेवन कर रहा है।*
*आधुनिक विज्ञान में इसे parkinson's disease कहा है और आयुर्वेद में आधुनिक समय में इसे अनेक विद्वान कंपवात कहते हैं पर चरक और सुश्रुत में कंपवात नाम से कोई व्याधि नही मिलेगी।*
*चरक में वेपथु और सुश्रुत में कफावृत व्यान में इस रोग के कुछ लक्षण मिलते है जो हमें भिन्न भिन्न स्थानों पर मिलेंगे, इस रोग या किसी भी रोग की सम्प्राप्ति के मूल को समझने के लिये हमें शास्त्रों के समुद्र में गहराई तक जाना पड़ता है और इसी मार्ग पर कैसे चलेंगे ? यही हमारी सम्प्राप्ति का निर्माण करेगा।*
*कभी भी व्याधि या लक्षणों को मूल तक समझना हो तो पहले उसे जानने के लिये हेतुओं तक एक जासूस की भांति रोगी की history ले कर पहुंचिये, आपकी आधी से अधिक चिकित्सा तो यही कार्य कर देगा। यह सभी हेतु आपको रोगी नही बतायेगा क्योंकि वो जल्दी में है और शीघ्र ही स्वस्थ होना चाहता है अत: आपको 'शास्त्रोक्त भिषग्' बनने के लिये बहुत प्रयास करना पड़ेगा और हेतुओं को समग्रता से इस प्रकार जान कर व्याधि के मूल तक पहुंचिये ...*
[11/23/2020, 1:49 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*व्याधि के मूल तक और सम्प्राप्ति निर्माण तक हमें ये घटक पहुंचायेंगे ...*
*1- मातृज और पितृज भाव*
*मातृज,पितृज,रसज,आत्मज , सात्म्यज भाव का ज्ञान चिकित्सक को होना अति आवश्यक है, ये ज्ञान रोग की हेतु, सम्प्राप्ति और चिकित्सा में बहुत सहायक है। शुक्र और शोणित दूषित तभी होगें जब रोग रस रक्तादि धातुओं में उत्तरोत्तर बढ़ता चला जाता है और शुक्र शोणित को दूषित कर चुका होता है और यह बीज रूप में गर्भ में आ जाते हैं। जैसे वृक्क रोगों को ही ले तो यह बीज रूप में रहता है , जन्म के समय तो baby स्वस्थ होता है पर मिथ्या आहार विहार और काल के अनुरूप जैसे ही उस रोग के बीज को अनुकूल परिस्थिती मिलती है तो उस रोग के बीज का अंकुर फूट जाता है और रोगावस्था आरंभ करना शुरू कर देता है।*
*सु शा 3/43 में गर्भ के पितृज भाव
'तत्र गर्भस्य पितृजमातृजरसजात्मजसत्त्वजसात्म्यजानि शरीरलक्षणानि व्याख्यास्यामः, गर्भस्य केशश्मश्रुलोमास्थिनखदन्तसिरास्नायुधमनीरेतः प्रभृतीनि स्थिराणि पितृजानि '
और चरक शारीर 3/7 में
'केशशमश्रुनखलोमदंतास्थ्सिरास्नायुधमन्य: शुक्रन्चेति...' केश, श्मश्रु, लोम, अस्थि, नख, दंत, सिरा, स्नायु, धमनी, रेत इत्यादि कठिन अव्यव पितृज भाव के अव्यव बताये गये हैं।*
*सु शा 3/43 मातृज भाव -
'मांसशोणितमेदोमज्जहृन्नाभियकृत्प्लीहान्त्रगुदप्रभृतीनि मृदूनि मातृजानि,
चरक शा 3/7 मे
'त्वक च लोहितं च मांसं च मेदश्च नाभिश्च ह्रदयं च क्लोम च यकृच्च प्लीहा च वृक्कौ च बस्तिश्च पुरीषाधानं चामाश्यश्चोत्तरगुदं चाधरगुदं च क्षुद्रान्त्रं च स्थूलान्त्रं च वपावहनं...'
अर्थात मांस, रक्त, मेद, मज्जा, ह्रदय, नाभि, यकृत, प्लीहा, आन्त्र, गुदा आदि ये मातृज अव्यव है।*
*सु शा 3/43 रसज भाव -
'शरीरोपचयो बलं वर्णः स्थितिर्हानिश्च रसजानि' पुष्टि, बल, वर्ण, स्वास्थ्य और अस्वास्थ्य आदि रसज भाव है*
*सु शा 3/43 आत्मज भाव -
'इन्द्रियाणि ज्ञानं विज्ञानमायुः सुखदुःखादिकं चात्मजानि' अर्थात इन्द्रियां, ज्ञान, विज्ञान, आयुष्मान, सुख, दुख आदि आत्मज भाव हैं। आत्मा के निर्विकार स्वरूप से ये सब भाव जो आत्मा के सन्निकर्ष में आने से होते हैं ऐसा समझना चाहिये।*
*सु शा 3/43 सात्म्यज भाव -
'वीर्यमारोग्यं बलवर्णौ मेधा च सात्म्यजानि ' अर्थात वीर्य, आरोग्य, बल, वर्ण और मेधा ये सात्म्यज भाव है।*
to be continued.....
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Above case presentation & follow-up discussion held in 'Kaysampraday" a Famous WhatsApp group of well known Vaidyas from all over the India.
Presented by
Vaidyaraj Subhash Sharma
MD (Kaya-chikitsa)
MD (Kaya-chikitsa)
New Delhi, India
email- vaidyaraja@yahoo.co.in
Compiled & Uploaded by
Vd. Rituraj Verma
B. A. M. S.
ShrDadaji Ayurveda & Panchakarma Center,
Khandawa, M.P., India.
Mobile No.:-
+91 9669793990,
+91 9617617746
Edited by
Dr.Surendra A. Soni
M.D., PhD (KC)
Professor & Head
P.G. DEPT. OF KAYACHIKITSA
Govt. Akhandanand Ayurveda College
Ahmedabad, GUJARAT, India.
Email: surendraasoni@gmail.com
Mobile No. +91 9408441150
We are living in era of Good Clinical Practice with an international ethical and scientific quality standard. There are many questions which remain unanswered in clinical practice methodology. Since a patient is made up by chemistry and consciousness, we need to assess him at body-mind level. In order to become a classical practitioner, we should be able to differentiate between complaints and presenting sign and symptoms. Vaidyaraja Shri Subhash Sharma have presented excellent way to deal a Parkinson’s patient. . The concept of कफावृत व्यान and its management with कौंच बीज, पारावत घनवटी, शुद्ध कुचला, भल्लातक is remarkable.
ReplyDeleteपारावत घनवटी reference kya hai ??
ReplyDeleteCh.chi.Raktapitta
DeleteSir , bhallatak ko kis form me aur kese use kiya hai... Also want to know about parvat ghan wati
ReplyDeleteCh.Chi.1/2/16
ReplyDeleteThank you... Sir..
DeleteHello Dr, could you send me the full course for Parkinson's. My father's problem is increasing day by day and I m not getting these medicines here.. 9560656507... This is my no.. please contact... I can consult online if it's possible. Thank u
ReplyDeletePlease email to vd Subhash ji. Email address is there.
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