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Showing posts from February, 2022

CLINICAL-AYURVEDA PART- 14: 'Importance of approach to Samprapti' by Vaidyaraja Subhash Sharma

[2/16, 12:38 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:  *चिकित्सा में सम्प्राप्ति क्यों आवश्यक है ?* *रोगी की विस्तार से history ले कर सम्प्राप्ति और चिकित्सा सूत्र आपके पास ब्लू प्रिंट होता है कि सामने जो रोगी है उसे व्याधि क्या है और हमें अब आगे क्या करना है ! हर रोगी महत्वपूर्ण है और आपको कुछ अनुभव सिखा कर जाता है जिसमे एक यह भी कि जिस रोग के आप गंभीर मान रहे थे वो तो बहुत साधारण अवस्था है और बिना औषध के भी ठीक किया जा सकता है ।* *'एक देशे वृद्धि और अन्य देश में क्षय' अत्यन्त महत्वपूर्ण सूत्र है और इसके साथ ही अनेक व्याधियों में संबंधित कर के चलते हैं 'मेदोमांसातिवृद्धत्वाच्चल स्फिगुदरस्तन:'  च सू 21/9  में मेद संचय के ये स्थल स्पष्ट किये है, नितंब, उदर और स्तन पर ये स्थान प्रतीक मात्र हैं इसके अतिरिक्त अनेक स्रोतस और अव्यव भी हैं जहां मेद का संचय होता है, उनसे होने वाली अनेक व्याधियां शास्त्रों में वर्णित नहीं है और आधुनिक समय में ज्वलंत समस्या है । इनका निर्धारण स्रोतस के अनुसार स्वयं करें जैसे रक्तवाही स्रोतस में एक देशज मेद वृद्धि fatty liver, आर्तववाही स्रोतस में एक देशज मे...

WDS 91: "Sannipataj v/s Tridoshaja Vyadhi" by Prof. B. L. Goud, Vaidya Subhash Sharma, Prof. Satyendra Narayan Ojha, Dr. Pawan Madaan, Prof. L. K. Dwivedi, Prof. Giriraj Sharma, Vd. Raghuram Bhatta YS, Vd. Hiten Vaja, Dr. Sanjay Chhajed, Vd. Bhavesh Modh, Vd. Radheshyam Soni, Vd. Atul Kale, Vd. Sadhana Babel, Prof. Deep Narayan Pandey, Prof. Mrinal Tiwari, Vd. Narinder Paul, Vd. Divyesh Desai & Others.

Admin Note : This is detailed discussion with the blessings of great Gurus & experts. Readers are advised to consult the classical text books who have difficulty in understanding the Sanskrit. Prof. Surendra A. Soni  4/2, 6:43 PM] Dr. Sadhana Babel :  One query ! सान्निपतिक एवम त्रिदोषज ? Differnce ? कही त्रिदोषज कही सान्निपतिक शब्द ? Prayojan ? [4/2, 6:58 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha:  सान्निपातिक ज्वर है, और त्रिदोषज गुल्म,  उनके लक्षण देखे, व्याधि की तीव्रता समझ में आती है. व्याधि के अनुसार ही समझे. कहीं कहीं प्रकृति सम समवेत लक्षणो की उत्पत्ति होती है, वहां पर भी दोनो ही सान्निपातिक/त्रिदोषज शब्द आये हैं, यथा- सान्निपातिक रक्तपित्त, सन्निपातज मूत्रकृच्छ, त्रिदोषज अर्श, त्रिदोषज हृदय रोग.‌ नैदानिक एवं चिकित्सकीय नजरिये से कोई अन्तर दिखता नहीं.... [4/2, 7:00 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha:  *विशिष्ट टिप्पणी के लिये महोपाध्याय आचार्य श्रेष्ठ गुरु गण को सादर अनुरोध* 🙏🙏 [4/2, 7:09 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:  *नमस्कार साधना जी, चरक विमान अध्याय...