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Showing posts from March, 2022

Case-presentation: 'रेवती ग्रहबाधा चिकित्सा' (Ayu. Paediatric Management with ancient rarely used 'Grah-badha' Diagnostic Methodology) by Vd. Rajanikant Patel

[2/25, 6:47 PM] Vd Rajnikant Patel, Surat:  रेवती ग्रह पीड़ित बालक की आयुर्वेदिक चिकित्सा:- यह बच्चा 1 साल की आयु वाला और 3 किलोग्राम वजन वाला आयुर्वेदिक सारवार लेने हेतु आया जब आया तब उसका हीमोग्लोबिन सिर्फ 3 था और परिवार गरीब होने के कारण कोई चिकित्सा कराने में असमर्थ था तो किसीने कहा कि आयुर्वेद सारवार चालू करो और हमारे पास आया । मेने रेवती ग्रह का निदान किया और ग्रह चिकित्सा शुरू की।(सुश्रुत संहिता) चिकित्सा :- अग्निमंथ, वरुण, परिभद्र, हरिद्रा, करंज इनका सम भाग चूर्ण(कश्यप संहिता) लेके रोज क्वाथ बनाके पूरे शरीर पर 30 मिनिट तक सुबह शाम सिंचन ओर सिंचन करने के पश्चात Ulundhu tailam (यह SDM सिद्धा कंपनी का तेल है जिसमे प्रमुख द्रव्य उडद का तेल है)से सर्व शरीर अभ्यंग कराया ओर अभ्यंग के पश्चात वचा,निम्ब पत्र, सरसो,बिल्ली की विष्टा ओर घोड़े के विष्टा(भैषज्य रत्नावली) से सर्व शरीर मे धूप 10-15मिनिट सुबज शाम। माता को स्तन्य शुद्धि करने की लिए त्रिफला, त्रिकटु, पिप्पली, पाठा, यस्टिमधु, वचा, जम्बू फल, देवदारु ओर सरसो इनका समभाग चूर्ण मधु के साथ सुबह शाम (कश्यप संहिता) 15 दिन की चिकित्सा के वाद

WDS 92: 'रजस्वला-परिचर्या' by Vaidyaraja Subhash Sharma, Prof. B. L. Goud, Dr. D. C. Katoch, Dr. Vandana Vatsa, Dr. Sanjay Chhajed, Prof. Giriraj Sharma, Dr. Divyesh Desai & Others

[2/24, 8:47 AM] Vd. Divyesh Desai Surat:  🙏🏾🙏🏾Sir, As usual great and Practical Presentation, that's why Charan sparsh👏🏻👏🏻 सर, आज सुबह में योगरत्नाकर में पुनः श्लोक पढ़ा कि... शयनं पितनाशाय, वातनाशायम मर्दनम, वमनं कफ नाशाय, ज्वर नाशाय लंघनम । ये श्लोक का चिंतन किया, किन्तु आपके पितप्रकरण को पढ़ने के बाद शयनं पितनाशाय का सही मतलब मालूम हुआ..। शयन करने से सारे मानसिक उद्वेग कम होने से नेगेटिविटी भी कम हो जाती है, स्ट्रेस के जितने भी कारण है, उससे मन डाइवर्ट होता है और अपने आप बढ़े हुए पित्त का शमन होता है। 👏🏻👏🏻सुप्रभात गुरुजनो💐💐 [2/24, 9:01 AM] Dr. D. C. Katoch sir:  ऐसे ही नहाने से जो मनःप्रसादन होता है वो वस्तुतः साधकपित्तप्रसादन है। [2/24, 9:03 AM] Vaidya Sanjay P. Chhajed:  भ्राजक या साधक सर? [2/24, 9:21 AM] Dr. D. C. Katoch sir:  स्नान से भ्राजक पित्त प्रसादन भी होता है, परन्तु साधकपित्तप्रसादन के अनन्तर। [2/24, 9:30 AM] Prof. Giriraj Sharma:  त्वचा तत्रैकं स्पर्शनमिन्द्रियाणामिन्द्रियव्यापकं , चेतः- समवायि, स्पर्शनव्याप्तेर्व्यापकमपि च चेतः; तस्मात् सर्वेन्द्रियाणांव