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Showing posts from October, 2022

WDS 95: जिव्हा परीक्षा(Tongue-examination) by Vaidyaraja Subhash Sharma, Vd. Atul Kale, Prof. Mohanlal Jaysawal, Vd. Sanjay Chhajed, Prof. Deep Narayan Pandey, Vd. Pradeep Kumar Jain, Vd. Arun Tiwari & Others.

10/10, 4:21 PM] Dr.Deepika:  Aaj ye rugna kandu ki complaint lekar aayi thi,jihwa parikshan par ye centre se cut tha,iske bare mein kuch clinical experience share kiziye [10/10, 5:36 PM] Dr.Pradeep kumar Jain:  जिह्वा विदार वात पेतिक [10/10, 7:30 PM] Dr. Ashwani Kumar Sood:  Normal in most of the pts untill some complaint. [10/10, 9:44 PM] Vd. Atul J. Kale:  जिह्वामें एक दरार.  क्यों???? जिह्वा रक्तमांसके प्रसादभागसे बनी हुई, लचिली, अन्नको इधर इधर करनेवाली, रसास्वादन करानेवाली.  रक्तमांसधातुओंके उचित संधानसे, बोधक कफ रसनास्थायी.     स्निग्धा, आरक्ता.         गुण:- रुक्ष, खरत्व वृद्धी. निमित्तकारण may be उष्णतीक्ष्णत्व of पित्त. उष्णत्वसे द्रव एवं स्निग्धत्वशोषण एवं तीक्ष्णत्वके साहचर्यसे भेदनपूर्वक संधानबंध विलगीकरण. महाभूतसंगठन पृथ्वी++++जल+++अग्नि+ अग्नि++वायु++++पृथ्वी++++जल+  ऎसा कुछ कहीं सकते है। [10/10, 10:06 PM] Dr Arun Tiwari:  जिह्वाऽनिलेन स्फुटिता प्रसुप्ता भवेच्च शाकच्छदनप्रकाशा | पित्तेन  पीता परिदह्यते च चिता सरक्तैरपि कण्टकैश्च | कफेन गुर्वी बहला चिता च

Case presentation:*नेत्रदृष्टिमांद्य* by Vaidyaraja Subhash Sharma

10/10, 1:01 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:  *Case presentation* *नेत्र दृष्टिमांद्य एवं चश्में से मुक्ति* *तीन वर्ष पूर्व स्वस्थ किये रूग्णा के updates...)* *कुछ वर्ष पूर्व आपने अनेक रोगियों को स्वस्थ किया वो भी कृच्छ साध्य या असाध्य रोगों मे, अब वे कैसे हैं ? स्वस्थ भी हैं या कहीं रोग पुनः तो नही उद्भव हुआ ?* *इसका ज्ञान भी आयुर्वेद का प्रमुख अंग है क्योंकि एक आयुर्वेद भिषग्  त्रिकाल की चिकित्सा करता है  'युक्तिमेतां पुरूस्कृत्य त्रिकालां वेदनां भिषक्,  हन्तीत्युक्तं चिकित्सा तु नैष्ठिकी सा विनोपधाम।'  च शा 1/94  वैद्य त्रिकाल की के रोगों की चिकित्सा करता है क्योंकि उपधा रहित चिकित्सा नैष्ठिकी चिकित्सा है।* *उपधा धर्म, अधर्म, अज्ञान, वैराग्य, अवैराग्य, एश्वर्य और अनैश्वर्य सात भावों को कहते है।* *चिकित्सा के पश्चात रोगियों को रसायन चिकित्सा का एक पैकेज दीजिये वो भी ऋतु अनुसार उस से रोग के पुनः आने की संभावना नही होगी और रोगी आप से दीर्घ काल जुड़ कर आयुर्वेद नियमों का पालन कर सदैव स्वस्थ रहता है।* *चरक चि 26 में नेत्र रोगों का वर्णन करते हुये  'तेषामभिव्यक्ति... न न: प्रयास&