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WDS 95: जिव्हा परीक्षा(Tongue-examination) by Vaidyaraja Subhash Sharma, Vd. Atul Kale, Prof. Mohanlal Jaysawal, Vd. Sanjay Chhajed, Prof. Deep Narayan Pandey, Vd. Pradeep Kumar Jain, Vd. Arun Tiwari & Others.

10/10, 4:21 PM] Dr.Deepika:

 Aaj ye rugna kandu ki complaint lekar aayi thi,jihwa parikshan par ye centre se cut tha,iske bare mein kuch clinical experience share kiziye
[10/10, 5:36 PM] Dr.Pradeep kumar Jain: 

जिह्वा विदार
वात पेतिक

[10/10, 7:30 PM] Dr. Ashwani Kumar Sood: 

Normal in most of the pts untill some complaint.

[10/10, 9:44 PM] Vd. Atul J. Kale: 

जिह्वामें एक दरार. 
क्यों????

जिह्वा रक्तमांसके प्रसादभागसे बनी हुई, लचिली, अन्नको इधर इधर करनेवाली, रसास्वादन करानेवाली. 

रक्तमांसधातुओंके उचित संधानसे, बोधक कफ रसनास्थायी. 
   स्निग्धा, आरक्ता.

        गुण:- रुक्ष, खरत्व वृद्धी.
निमित्तकारण may be उष्णतीक्ष्णत्व of पित्त. उष्णत्वसे द्रव एवं स्निग्धत्वशोषण एवं तीक्ष्णत्वके साहचर्यसे भेदनपूर्वक संधानबंध विलगीकरण.

महाभूतसंगठन
पृथ्वी++++जल+++अग्नि+

अग्नि++वायु++++पृथ्वी++++जल+ 
ऎसा कुछ कहीं सकते है।

[10/10, 10:06 PM] Dr Arun Tiwari: 

जिह्वाऽनिलेन स्फुटिता प्रसुप्ता भवेच्च शाकच्छदनप्रकाशा |

पित्तेन  पीता परिदह्यते च चिता सरक्तैरपि कण्टकैश्च |

कफेन गुर्वी बहला चिता च मांसोद्गमैः शाल्मलिकण्टकाभ।
सु निदान

[10/11, 12:54 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma: 

*अत्युत्तम अंशांश कल्पना वैद्यवर अतुल जी 👌❤️🙏*

*आतुर बल प्रमाण - इसमें प्रकृति, विकृति, सार, संहनन आदि 10 भाव *

*रोग बल परीक्षा - प्रश्न, दर्शन, स्पर्शन आदि सहित अष्टविध परीक्षा जिसमें नाड़ी, मूत्र, मल, जिव्हादि की परीक्षा ।*

*जिव्हा की परीक्षा बताती है कि रोग का बल कितना है और रोग शरीर में कहां है, किन स्रोतस और अव्यवों में है। साथ ही दोष और उनकी अंशांश कल्पना भी जिव्हा स्पष्ट कर देती है।नाड़ी विद्या की तरह यह भी एक परीक्षण की गुप्त विद्या रही है।*

*आज प्रकरण जिव्हा पर चल रहा है तो clinic में हम किस प्रकार जिव्हा से दोषों का निर्धारण करते हैं और रोगानुसार किस तरह उसका विनिश्चय करते हैं तथा जिव्हा से रोग का बल देखा जाता है अपने रोगियों के कुछ चित्र दिखाते हैं.... *

*आर्ष ग्रन्थों में लिखा जिव्हा परीक्षा आप्त ज्ञान है, प्रत्यक्ष। मिलता है, अनुमान प्रमाण सहायक है और युक्ति पूर्वक इस से रोग के बल का निर्धारण तुरंत ही हो जाता है ...*

.

[10/11, 12:55 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma: 

*कुछ चित्र zoom कर के देखिये तो और स्पष्ट दिखेगा।*


*इसे zoom करिये और श्वेत अंकुर सदृश जो दिख रहा है पक्वाश्य और अपान वात का स्थान है जिसमें मूत्रवाही स्रोतस और वस्ति भी है।*




*निर्द्रव या रूक्ष पित्त पर हमने पिछले दिनों बहुत विस्तार से लिखा पर किसी ने इसे सीरियसली जानने का प्रयास नही किया , आज बहुत सारे syndromes में हेतु यही है और जिव्हा और मुख गत कैंसर के अनेक रोगियों में भी*



*ऐसे रोगी बहुत मिलेंगे जिन्हे जरा सा लवण भी दुख देता है और इनकी चिकित्सा बहुत सरल*


*धीरे धीरे रूक्ष पित्त जिव्हा में cuts ला देगा।*



*इसकी जिव्हा में स्थूलता है*



*त्रिदोषज में भी वातदोष अधिकता से रोगी की जिव्हा का size कम हो गया है।*



*इसको हमने ही diagnosis किया था कि कैन्सर नही है और जांच कराने पर मिला भी नही, यह electronic सिगरेट पीता रहा है और पिछले 14 वर्ष से*



*ग्रन्थों में तो रस, रक्त, मांस, मेदादि वृद्धि पढ़ी है और कुछ देखी भी, एकांग या एक देशज रक्त वृद्धि देखिये... चाईनीज फूड चाऊमिन ऐर उसमें बहुत chilli सॉस तथा momos की चिली सॉस का अति सेवन इसका हेतु मिला।*



[10/11, 1:17 AM] Vd Sachin Vilas Gajare Maharashtra: 
🙏🏻🌻

[10/11, 4:24 AM] Vaidya Sanjay P. Chhajed: 

गुरुदेव प्रणाम, आप बिल्कुल सही हो। नाड़ी विद्या तो थोड़ी बहुत बच गयी, पर जिव्हा परीक्षण मात्र सामता  निरामता तक सिमित रही। विपरीत इसके चायनीज मेडीसीन में दोनों ने चरम उत्कर्ष पाया। हम भी अपना एक अनुभव जोड़ना चाहते हैं। डायाबिटीस के रुग्ण में उसकी जिव्हा की सामता से रक्तगत शर्करा का सटिक अनुमान लगाया जा सकता है, जो हम हमेशा उपयोग करते हैं। अग्नि की स्थिति भी आसानी से निर्धारित की जा सकती है।

[10/11, 6:03 AM] Vd. Mohan Lal Jaiswal: 

ऊँ
सुप्रभात, सादर अभिवादन वैद्यवर जी
मांसरक्तोत्पन्न द्वय इन्द्रियों का संचालन करने वाली जिह्वा पर अद्भुत अनुभव।
क्या इस परीक्षण से मेद, अस्थि, मज्जा व शुक्रगत दुष्टि का भी परीक्षण/अनुमान हो जाता है ?
आप के इस विस्तृत अनुभव को रोग निदान सम्बंधित ग्रन्थ का रुप दिया जाना अपेक्षित है जिससे रोगनिदान के क्षेत्र में आधुनिक व्ययशील व जटिल विधियों के बीच सरल,सुगम व बोधगम्य परीक्षण का विकास होकर भावी पीढी लाभान्वित हो सके। इसमें जिह्वा के शीत-उष्ण, सान्द्र-द्रव आदि गुणपरक भावों का परीक्षण भी आप समावेशित करते हैं ?
जय आयुर्वेद

[10/11, 8:36 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma: 

*नमस्कार नाड़ी गुरू संजय जी, बहुत ही सही आंकलन किया आपने। प्रातः उठकर सबसे पहले मनुष्य दर्पण के आगे अपनी जिव्हा अच्छी तरह देखे और दिन में अलग अलग समय तीन चार बार भी तो भीतर का सिस्टम धीरे धीरे समझ आने लगेगा और दो चार दिन पूर्व सेवित आहार ने अग्नि पर क्या प्रभाव डाला है यह भी समझ आने लगेगा।*

[10/11, 9:01 AM] Vd. Atul J. Kale: 

गुरुजी सुप्रभातम्
आपने जिह्वापरिक्षणका द्वार खोल दिया।

थोडा अंशांश कल्पनाके स्तरपर बतानेका प्रयत्न करता हूँ।

साम जिह्वा अग्निका मांद्य दर्शाता है। अग्निके पाचन कर्मका र्हास 
१) पाचक पित्तकी अल्प उपलब्धता के कारण हो सकता है। 
२) पाचक पित्तमें द्रवांश ज्यादा होके. 
३) व्यक्ती क्षुधा जागृत होनेसे पहलेही खाना खा लेता है तो अन्न आमाशयमें पाचक पित्तके बिना पडा रहता है अौर उसमें शारीर उष्माके कारण पर्युषत्व आ जाता है।
४) क्षुधाकी उपेक्षासे पाचक पित्त स्थित अग्नि शांत हो जाती है। उसमें स्थित उष्णतीक्ष्णत्व क्षयीत होता है अौर पाचन नहीं हो पाता।

पाचन न होनेसे साम अन्नरस रसरक्तके द्वारा जिह्वाको साम कर देता है।

[10/11, 9:02 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma: 

*सादर नमन आचार्य जी, नाड़ी, जिव्हा और मूत्र यह रोग परीक्षा में इतने सही और सटीक साधन हैं कि रोगी आश्चर्यचकित भी रह जाते हैं।*

*हमें अपनी इन्द्रियों को समर्थ बनाना चाहिये कि वह अपने विषयों को जानने में अति सक्षम रहे, जहां जांच के आधुनिक साधन ना मिले या उनके प्राप्त होने में अभी समय लगेगा तो क्या हम रोगी को भाग्य के भरोसे छोड़ देंगे ? कदापि नही, नेत्र, जिव्हा, त्वक् देख कर HB%, कामला में s.billirubin, जलोदर में कि कितना जल निकाला जाये इसका अनुमान हो जाता है और जैसा आचार्य संजय छाजेड़ भाई जी ने कहा जिव्हा से रक्त शर्करा का अनुमान यह सब संभव है।*

*सब गुणो का ही खेल है 6 रस भी शीत उष्ण में समाहित, वीर्य और विपाक अंततः गुणों में ही आ गये, संसार के समस्त चर-अचर पदार्थ और जीवन के प्रत्येक कण की अभिव्यक्ति गुणों पर ही आश्रित है, एक ही प्रकार में रोग के अनेक रोगी देखते हुये अभ्यास से शनैः शनैः यह अनुमान होने लगता है कि अगर यह मिला तो इस दोष,दूष्य और इस विशिष्ट स्रोतस की विकृति है और चारों प्रमाण से मत बनते चले जाते है जिसमें अन्यों परीक्ष्य साधनों का सहारा भी ले लिया जाये और अन्यों द्वारा या रोगी को भी सिखा दिया जाये कि प्रतिदिन जिव्हा की फोटो लेते रहिये और अगली बार आ कर दिखाना।*

*जिव्हा भी अन्तः शरीर में चल रहे रोगों के गोदाम का शोरूम है जो बता रही है कि क्या क्या छिपा हुआ है, कभी सोचा नही था कि सहज रूप मे  जैसे हम चिकित्सा कर रहे हैं उसे यहां सिखाना भी पड़ेगा तो शब्दों और जो मिला उसे स्पष्ट कैसे करें यह अभाव हो जाता है।*

*हम अपनी चिकित्सा में अत्यन्त परिश्रम सदैव करते हैं कि निदान उचित हो और रोग निर्ण कर के सहीचिकित्सा दें, आपने धातुओं के परीक्षण पर जो कहा उसे समय समय पर स्पष्ट करेंगे 🌹❤️🙏*

[10/11, 9:11 AM] Vaidya Sanjay P. Chhajed: 

गुरुदेव, आपके इसी बात पर तो  आपत्ति है। शायद आप ही ऐसे प्रशिक्षक है जो, क्लिनिकल जमीन पर रुग्ण, रोग, दोष, संप्राप्ति, शास्त्र और औषधि समझाते हैं। संप्रदाय का हर एक सदस्य आपके बोल्ड में लिखे शब्दों की आतुरता से प्रतिक्षा करता है। जैसे दिखे सकून से २-३ बार पढ़कर उसे सुरक्षित कर लेता है की कभी भविष्य में काम आवे। और आप नाड़ी और जिव्हा के बारे में जब कहते हो की शब्दरुप नहीं दे पाते हैं, तब बहोत कुछ छुटा सा लगता है। आशा है आपश्री हमारी भावना समझे।

[10/11, 9:16 AM] Vd. Atul J. Kale: 

किणत्व, खरत्व इस जिह्वा में प्रतित हो रहा है। रक्त एवं मांससे बनी जिह्वा में प्रकुपित पित्त के उष्ण तीक्ष्ण गुणों के कारण एक देश पितत्व-आरक्तत्व एवं वायुके साहचर्य से एवं उष्ण गुण से (वायु+आतप से वृक्ष का तना बदलता जाता है तद्वत) रुक्ष-खर-परुष-कठिणत्व ऎसे गुणोंका अभिधान होके किणत्व आ जाता है। ऎसा किणत्व त्वचा में भी व्याधीस्वरुप पाया जाता है।  इस किणत्व में वायु का सूक्ष्म गुण भी कार्य करता दिखेगा। क्योंकि सुक्ष्म स्तर पर वायुके गुणोंको ले जानेके लिए सक्षमता इस गुणके बिना संभव नहीं।
    जिह्वा स्थित बोधक कफ को रुक्ष प्राय करके यहाँ भी धातुओं का संगठन बिगड जाता है। 
पहले कफ दोष + रुक्ष वायु+ उष्ण पित्त:- पिच्छिल आस्यता 
      ⬇️
कफ दोष पूर्ण शोष एवं क्षय
      ⬇️
धातु गामित्व- जिह्वा गामित्व
     ⬇️
किण खर जिह्वा

[10/11, 9:18 AM] Vd. Atul J. Kale: 

कार्ष्ण्य, अरुणत्व, आरक्त वातपित्तप्रधान त्रिदोष सरंभयुक्त सदाह, सशूल.

[10/11, 9:21 AM] Vd. Atul J. Kale: गु

रुजी इसमें व्रणोत्पत्ती भी हो जाती है ना? पित्त के उष्णतीक्ष्ण गुणोंसे आरक्तता. हेतूओं का सेवन करते रहनेसे भेदन, छेदन एवं पाक भी. 
    रात्रप्रजागरै: ये कारण ज्यादातर लोगों में पाया जाता है।

[10/11, 9:25 AM] Vd. Atul J. Kale: 

मुखपाक ये लक्षण विधिशोणितीय में दिया हुआ है। रक्त की दुष्टी होने से, रक्त में पित्त की उष्णतीक्षत्व की वृद्धी होने से ये अवस्था मिलती दिखती है।
     Pamphigus vulgaris में भी मेरी एक रुग्णा में ऎसे ही लक्षण दिख रहे थे। ज्यादातर गुणों के स्तर पर रक्तपित्तदुष्ट के ज्यादा लक्षण दिखते है।

[10/11, 9:35 AM] Vd. Atul J. Kale: 

गुरुजी
ये रुग्ण तमाखू खाता होगा। 
तमाखू से तालु कालेपन के साथ पितत्व रहता है और दाँत भी काले हो जाते है।

[10/11, 9:45 AM] वैद्य सुखबीर सोनी: 

*आचार्यों ने भूताग्नि का वर्णन किया है कृपया उनकी चिकित्सीय उपयोगिता के बारे में  मार्गदर्शन करें।*

[10/11, 10:00 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma: 

*अत्यन्त आनंदकारी और सूक्ष्मता से व्याख्या अतुल जी... अभी इस विप्र सुदामा को मजदूरी करने दवाखाना, जीवन भरण पोषण करने हेतु जाना है वापिस आ कर या देर रात्रि समय मिल पायेगा ... तब और चर्चा करेंगे* ❤️🙏

[10/11, 10:02 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma: 

*संजय भाई, धीरे धीरे लय बनती जा रही है । आयुर्वेद में जो मिला है वो सब अनुभव के साथ यहीं दे कर जाना है ।* 🌹❤️🙏

[10/11, 10:03 AM] Vd. Atul J. Kale: 

😄 🙏🏻🙏🏻🙏🏻🌹🌹🌹❤️❤️❤️😌

[10/11, 10:07 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma: 

*कुछ लोगों के लिये यह विषय भारी हो सकता है पर जिसने जिसने इसको पकड़ लिया वह असाध्य रोगों का विशेषज्ञ बन जायेगा क्योंकि कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में 3- और 13 अग्नि में किस प्रकार जाठराग्नि को 'बाई पास' कर के चिकित्सा की जाती है यह अनुभव जन्य ज्ञान है।*

[10/11, 10:17 AM] Vd. Divyesh Desai Surat: 

विप्र सुदामा ही केवल एक धनी है कि श्रीकृष्ण  को इनकी ज्यादा फ़िक्र होती थी, आप आयुर्वेद के वही *विप्र सुदामा* है कि आयुर्वेद को कोई भूल न पाए इसके लिए आपके माध्यम से अश्विनीकुमारो, धन्वंतरि, आत्रेय, ब्रह्मा विष्णु, महेश जैसे आयुर्वेद के देवो ने आप जैसे   *विप्र सुदामा* को ये भारत (आयुर्वेदका उत्पत्ति स्थान) के पाटनगर दिल्ली में जन्म दिया।।
जो भारत का केंद्र बिंदु है।🙏🏻🙏🏻सादर प्रणाम एवं चरणस्पर्श, गुरुश्रेष्ठ💐💐👏🏻👏🏻

[10/11, 11:06 AM] Dr. Vandana Vats Madam: 

बहुत सुन्दर विश्लेषण अतुल जी।
धन्यवाद 🙏
हमें जिह्वा परिक्षण का शास्त्रोक्त reference दे दे, हम भी detail में अध्ययन करना व सीखना चाहते है?

[10/11, 11:07 AM] Dr. Vandana Vats : 

*किण* का शाब्दिक अर्थ क्या है?

[10/11, 11:21 AM] Dr. Vandana Vats  : 

सादर प्रणाम गुरूवर 🙏
बहुत ही सराहनीय व अनुकरणीय परीक्षा भाव। धन्यवाद, अब स्वयं अध्ययन कर आपके इस अमूल्य योगदान को detail में समझकर apply कर सकते है
🙏
[10/11, 11:52 AM] Vd. Atul J. Kale: 

किणखर ये स्पर्शग्राह्य के संदर्भ में कुष्ठचिकित्सा में आया है। किणवत् खर: स्पर्शो यस्य तत् 'किणखरस्पर्शम्'

किण: अर्थात् 'व्रणस्थान,' 
व्रणस्थान ऎसा उल्लेख ना कि व्रण। व्रणरोहण के पश्चात जैसी स्पर्शप्रचिती होगी वैसा स्पर्श। व्रणरोहण ये सामान्य स्थिती होनेके उपरान्तभी विकार कैसे समझे इसलिए उपमा अलंकार से आचार्यों नें समझाने का प्रयत्न किया है।
    व्रणस्थान के समान खुरदरे स्पर्शवाला।
    खुरदरा स्पर्श (जैसे पाॅलिश पेपर, जैसे सागवृक्ष का पत्ता इ.) दृश्य स्वरुपता से भी खरस्पर्श का अनुमान लगा सकते है। जिह्वाका सामान्य स्वरूप बदल के यदी अतिह्रस्व सन्निध किलवत् प्रवर्धन बन गये तो उसमें रुक्ष, उष्णा, चल, सूक्ष्मादी गुणों का साहचर्य रहता ही है।

[10/11, 12:28 PM] Vd. Mohan Lal Jaiswal:

 ऊँ
अभिप्राय जैसे गोजिह्वा, ऋष्यजिह्व ।
धन्यवाद जी

[10/11, 1:30 PM] Prof. Lakshmikant Dwivedi Sir: 

पारिजात पत्र भी ।

[10/11, 1:42 PM] Vd. Atul J. Kale: 

जी गुरुजी, क्या बात है!!!! मैं भी यही सोच रहा था।





[10/11, 3:39 PM] Dr. Deep Narayan Pandey Sir: 

इसकी संप्राप्ति समझने में मेरी रुचि है। अगर संभव है तो बताइए।

[10/11, 3:40 PM] Dr. Deep Narayan Pandey Sir: 

आजकल ग्रुप में विचार विमर्श का समय नहीं मिलता लेकिन आप लोगों द्वारा प्रदान की गई जानकारी प्रायः मानस पटल पर रखता रहता हूं।






[10/11, 3:41 PM] Dr. Deep Narayan Pandey Sir: 

संप्राप्ति तो मैं इसकी नहीं समझ पाया लेकिन मैंने प्रायः यह पाया है कि इस प्रकार के रोग सुबह-शाम त्रिफला क्वाथ से धोने और नियमित जात्यादि लगाने से प्रायः ठीक होते पाए गए हैं।

[10/11, 3:43 PM] Dr. RAJNEESH PATHAK VARANASI: 

👌🏻👌🏻👏🏼👏🏼

[10/11, 3:48 PM] Dr. D. C. Katoch sir: 

ठीक कह रहे हैँ आप -घोड़ों और हाथियों में ऐसे लक्षणों वाले चर्म रोगों में त्रिफला क्वाथ से प्रक्षालन /परिशेक संतोषजनक लाभ देता है ,  श्रीलंका में  पशुवैद्यों में यह चिकित्सा बहुत प्रचलित है।

[10/11, 3:58 PM] Dr. Deep Narayan Pandey Sir: 🙏💐

[10/11, 4:16 PM] Dr. D. C. Katoch sir: 

Very nice approach to treat with Jalouka Avcharan।👍🏼

[10/11, 4:27 PM] Vd. Mohan Lal Jaiswal: 

ऊँ
अगर त्रिफला क्वाथ फलप्रद है तो इसमें कफपित्त व रक्त दुष्टि है।
शेष आपलोग कायचिकित्सज्ञ निर्धारित करें।👏🚩

[10/11, 4:30 PM] Vd. Mohan Lal Jaiswal: 

मान्य .पाण्डेय जी के कथन से  वात से वात भी सहगामी है।

[10/11, 4:44 PM] Vd. Mohan Lal Jaiswal: 

किटिभ की ओर संकेत रजनीश जी का सही प्रतीत होता है।
तब इसमें अपामार्ग का वाह्य आभ्यन्तर प्रयोग भी कल्याणकारी होगा।रास्ना भी समायोजनीय है।

[10/11, 6:01 PM] Dr Laxmidutta shukla: 

Skin is hastidaleat hence atop Katy rohindi yoga  we can think
Triphala internally may be better.

[10/11, 6:01 PM] Dr Laxmidutta shukla: 

Patolkaturohinyadi

[10/11, 6:02 PM] Dr. Pawan Madan: 

Pranaam Subhash Sir.

Very useful information which is needed in the practice.

Thanks a lot.
🙏

[10/11, 6:11 PM] Dr. Pawan Madan: 

Pranaam sir.

This can be categorised in Kitibh.

For understanding of samprapti we need to know the hetus...probable hetus ...and need to know the course of its development as there can be different ways of its development.
🙏

[10/11, 6:16 PM] Dr. Bhadresh Naik Gujarat: 

Sirji add bhallatac churna with takra upnah along lepan
Hypertrophy of skin
Kuf guru and stir gun vrughi the caused.

[10/11, 6:58 PM] Dr. Deep Narayan Pandey Sir: 

बहुत-बहुत धन्यवाद डॉक्टर साहब 
यही तो समझना चाह रहा हूं।

[10/11, 9:40 PM] Vd. Atul J. Kale: 

गुरुजी सुप्रभातम्
आपने जिह्वापरिक्षणका द्वार खोल दिया।

थोडा अंशांश कल्पनाके स्तरपर बतानेका प्रयत्न करता हूँ।

साम जिह्वा अग्निका मांद्य दर्शाता है। अग्निके पाचन कर्मका र्हास 
१) पाचक पित्तकी अल्प उपलब्धता के कारण हो सकता है। 
२) पाचक पित्तमें द्रवांश ज्यादा होके. 
३) व्यक्ती क्षुधा जागृत होनेसे पहलेही खाना खा लेता है तो अन्न आमाशयमें पाचक पित्तके बिना पडा रहता है अौर उसमें शारीर उष्माके कारण पर्युषत्व आ जाता है।
४) क्षुधाकी उपेक्षासे पाचक पित्त स्थित अग्नि शांत हो जाती है। उसमें स्थित उष्णतीक्ष्णत्व क्षयीत होता है अौर पाचन नहीं हो पाता।

पाचन न होनेसे साम अन्नरस रसरक्तके द्वारा जिह्वाको साम कर देता है।

[10/12, 7:32 PM] Dr.Pradeep kumar Jain:

 दोषो के बारे में तो चर्चा बहुत की लेकिन इसके आयुर्वेदिक उपक्रम की चर्चा नहीं हो पाई है कृपया मार्गदर्शन करें


[10/12, 7:44 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma: 


*साम त्रिदोषज जिव्हा का रोगी जिसका हमने दो दिन पूर्व जिव्हा पुराण में वर्णन किया था, चिकित्सा के पश्चात आज का चित्र । इसे दिन में तीन बार फलत्रिकादि क्वाथ+शरपुंखा चूर्ण के अतिरिक्त शिवक्षार पाचन एवं गंधक रसायन आदि दिया गया ।*

[10/12, 7:44 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma: 

*लगभग चार महीने चिकित्सा का परिणाम ।*

[10/12, 8:06 PM] Dr. Vinod Sharma Ghaziabad: 

किण और खर --
किण --- कण वत -- like Granulation tissue .
   जब पूय रहित व्रण में लाल चमकदार कण दिखाई दे - ऐसा लगना । जीव्हा में भी ये कण निराम अवस्था में होतें हैं ।
खर --- स्पर्श में रूखा लगना , जैसे हरसिंगार पत्र के निम्न तल का स्पर्श ।
इसे गाय जीभ जैसे स्पर्श भी मां सकतें हैं ।


[10/12, 8:39 PM] Vd. Atul J. Kale: 


रक्तमांसगामी, रक्तप्रसादक, पित्तवातहर, संधानीय-स्निग्ध पिच्छिल मधुर-मधुर-शीत

इस तत्त्वके आधारपर कोईभी चिकित्सा सफल होगी। 
   मृदु अनुलोमन भी बीचबीचमें दे सकते है।









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Above case presentation & follow-up discussion held in 'Kaysampraday (Discussion)' a Famous WhatsApp group  of  well known Vaidyas from all over the India.****************************************************************************************************************************************************************



Compiled & Uploaded by-

Vd. Rituraj Verma
B. A. M. S.
Shri Dadaji Ayurveda & Panchakarma Center,
Khandawa, M.P., India.
Mobile No.:-
 +91 9669793990,
+91 9617617746

Edited by-

Dr. Surendra A. Soni
M.D., PhD (KC) 
Professor & Head
P.G. Dept of Kayachikitsa
Govt. Akhandanand Ayurveda College
Ahmedabad, Gujarat, India.
Email: kayachikitsagau@gmail.com

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