CLINICAL AYURVEDA PART-15: Case presentation- विशद गुण - सैद्धान्तिक एवं प्रायोगिक स्वरूप by Vaidyaraja Subhash Sharma
[12/14, 7:09 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma: CLINICAL AYURVEDA PART-15 *case presentation- विशद गुण - सैद्धान्तिक एवं प्रायोगिक स्वरूप में ENLARGEMENT OF PROSTATE & PSA के उदाहरण के साथ ....* *सर्वप्रथम विशद की निरूक्ति एवं परिभाषा देखें तो पृथम दृष्टि में ही इसका महत्व चिकित्सा में कितना अधिक है यह स्पष्ट हो जाता है, 'शतलृ शातने' धातु में टक् प्रत्यय से विसर्ग पूर्वक विशद शब्द की उत्पत्ति होती है जिसका अभिप्राय शुद्ध बना देना और संशोधन कर देना है।* *सुश्रुत की हेमाद्रि टीका में इसे 'शुचि विमली तु विशद विशेषौ अदृष्टाना हि मलानां क्षालने शक्तिं शुचित्वं दृष्टानां विमलत्व' लिखा है अर्थात जो द्रव्य शरीर में दोष, धातु एवं मलों का शुद्धिकरण कर के उन्हे विमलत्व अर्थात शुद्ध, निर्मल एवं पारदर्शी सदृश बना दे उसे विशद कहा गया है।* *'पिच्छिलो जीवनो बल्यः सन्धानः श्लेष्मलो गुरुः, विशदो विपरीतोऽस्मात् क्लेदाचूषणरोपणः' सु सू 46/517 यहां आचार्य सुश्रुत इसे पिच्छिल के विपरीत कर्म वाला अर्थात शरीर में से क्लेद का शोषण कर निर्मल बनाता है और रोपण कर्म भी करता है।जो शरीर में