CLINICAL AYURVEDA PART-15: Case presentation- विशद गुण - सैद्धान्तिक एवं प्रायोगिक स्वरूप by Vaidyaraja Subhash Sharma
[12/14, 7:09 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
CLINICAL AYURVEDA PART-15
*case presentation-
विशद गुण - सैद्धान्तिक एवं प्रायोगिक स्वरूप में ENLARGEMENT OF PROSTATE & PSA के उदाहरण के साथ ....*
*सर्वप्रथम विशद की निरूक्ति एवं परिभाषा देखें तो पृथम दृष्टि में ही इसका महत्व चिकित्सा में कितना अधिक है यह स्पष्ट हो जाता है, 'शतलृ शातने' धातु में टक् प्रत्यय से विसर्ग पूर्वक विशद शब्द की उत्पत्ति होती है जिसका अभिप्राय शुद्ध बना देना और संशोधन कर देना है।*
*सुश्रुत की हेमाद्रि टीका में इसे 'शुचि विमली तु विशद विशेषौ अदृष्टाना हि मलानां क्षालने शक्तिं शुचित्वं दृष्टानां विमलत्व' लिखा है अर्थात जो द्रव्य शरीर में दोष, धातु एवं मलों का शुद्धिकरण कर के उन्हे विमलत्व अर्थात शुद्ध, निर्मल एवं पारदर्शी सदृश बना दे उसे विशद कहा गया है।*
*'पिच्छिलो जीवनो बल्यः सन्धानः श्लेष्मलो गुरुः, विशदो विपरीतोऽस्मात् क्लेदाचूषणरोपणः'
सु सू 46/517
यहां आचार्य सुश्रुत इसे पिच्छिल के विपरीत कर्म वाला अर्थात शरीर में से क्लेद का शोषण कर निर्मल बनाता है और रोपण कर्म भी करता है।जो शरीर में स्निग्धता और मृदुता उत्पन्न करता है
'स्नेहमार्दवकृत् स्निग्धो बलवर्णकरस्तथा रूक्षस्तद्विपरीतः स्याद्विशेषात् स्तम्भनः खरः'
सु सू 46/516
वह स्निग्ध है। हेमाद्रि कहते हैं 'यस्य क्लेदने शक्तिः स स्निग्धः' स्निग्ध का यह क्लेदन गुण आमाश्य में क्लेदक कफ के साथ क्लेदन में सहयोग देता है इस से यह सिद्ध होता है कि विशद गुण क्लेदक कफ की अति वृद्धि में उसके कम करेगा और शरीर की अति स्निग्धता का ह्रास भी करेगा।*
*विशद गुण क्लेद के सर्वथा विपरीत है, क्लेद शब्द क्लिद् धातु में घन् प्रत्यय लगकर बना है जिसका अर्थ आर्द्रता (गीलापन या moisture) और स्राव है । सभी क्षार लवण रस प्रधान होते हैं जिसमें लवण के गुण स्वभाव से ही रहते हैं। औद्भिदलवण के गुण देखें ते
'सतिक्तकटुकक्षारं तीक्ष्णमुत्क्लेदि ..'
कटु तिक्त, क्षार गुण युक्त ती़्ण और क्लेद कारक होता है।
अ ह 6/147*
*क्षार और लवण 'पाकि' कर्म युक्त होते हैं अर्थात जो किसी भी पदार्थ को गला देते है और यह कार्य तभी सरलता से और शीघ्र होगा जब उसे क्लेदता माध्यम के रूप में मिलेगी। विशद गुण का यह स्वभाव उसका अवरोध कर रोपण में सहयोग देता है ।*
*गुग्गलु का वर्णन भाव प्रकाश में देखें कि किस प्रकार रूक्ष और विशद गुण का पृथक महत्व है यह यहां स्पष्ट किया है -
‘गुग्गलुर्विशदस्तिक्तो वीर्योष्ण: पित्तल:सर: कषाय: कटुक: पाके कटू रूक्षो लघु: पर:....’
भा प्र कर्पूरादि वर्ग*
*गुग्गलु कटु तिक्त कषाय उष्णवीर्य रसायन बल्य लघु रूक्ष विशद गुण युक्त है। इसे त्रिदोष नाशक भी कहा है, मधुर होने से वात हर, कषाय रस से पित्तहर और तिक्त रस होने से कफ नाशक है। मगर यही गुग्गलु पुराना होने पर ‘पुराणस्त्वतिलेखन:’ लेखन कर्म करता है अर्थात शारीरिक धातुओं को शुष्क कर शरीर से बाहर निकालता है।*
[12/14, 7:09 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*रूक्ष और विशद गुणों का उपयोग प्रतिदिन औषध और आहार में सर्वदा करते हैं पर यह कहां और किस प्रकार कर रहे हैं यह आपको ज्ञात नहीं है, आज इसी विषय को स्पष्ट करेंगे।*
*विशद गुण का अवलोकन करें तो
'गुरुखरकठिनमन्दस्थिरविशदसान्द्रस्थूलगन्धगुणबहुलानि पार्थिवानि'*
*'उष्णतीक्ष्णसूक्ष्मलघुरूक्षविशदरूपगुणबहुलान्याग्नेयानि'*
*'लघुशीतरूक्षखरविशदसूक्ष्मस्पर्शगुणबहुलानि वायव्यानि'
च सू 26/11*
*श्लक्ष्णसूक्ष्ममृदुव्यवायिविशदविविक्तमव्यक्तरसं शब्दबहुलमाकाशीयं'
सु सू 41/4*
*पृथ्वी, वायु, अग्नि और आकाश भूत प्रधान द्रव्य विशद होते हैं।*
*यह आयुर्वेद का स्वतन्त्र दर्शन है जो विशद को गुण मानता है पर अन्य दर्शनो में विशद को गुण नहीं माना।*
*स्वच्छता, पारदर्शिता एवं श्वेतवत् स्पष्ट हो जाना संदर्भों में विशद का उल्लेख है।*
*मद्य के 10 गुणों
'लघूष्णतीक्ष्णसूक्ष्माम्लव्यवाय्याशुगमेव च रूक्षं विकाशि विशदं मद्यं दशगुणं स्मृतम्'
च चि 24/30
में विशद भी प्रमुख गुण है जिसका विपरीत पिच्छिल के अतिरिक्त प्रसन्न भी कहा है।*
*प्रोस्टेट कैंसर का पता लगाने के लिए आधुनिक जांच में PSA test सबसे आम प्रारंभिक प्रयोगशाला असामान्यता है, क्योंकि शुरुआती प्रोस्टेट कैंसर वाले अधिकांश पुरुषों में कोई लक्षण नहीं होते हैं। PSA test एक बहुत ही संवेदनशील लेकिन अपेक्षाकृत गैर-विशिष्ट और सटीक जांच उपकरण है जिसमें PSA का स्तर उम्र, प्रोस्टेट ग्रंथि के आकार,प्रोस्टेट ग्रन्थि शोथ या संक्रमण के साथ भी बढ़ता है। आयुर्वेदानुसार इसे हम आरंभिक अवस्था में स्रोतस का संग दोष मान कर चलते हैं जिसमें कालान्तर में विमार्गगमन की संभावना हो सकती है।*
*प्रोस्टेट ग्रन्थि का वर्णन स्पष्ट रूप में ना मिल कर इस प्रकार प्राप्त होता है कि
'शकृन्मार्गस्य बस्तेश्च वायुरन्तरमाश्रित:।
अष्ठीलाभं घनं ग्रन्थिं करेत्यचलमुन्नतम्। वाताष्ठीलेऽति साऽऽध्मानतविण्मूत्रानिलसंगकृत।।
अ ह नि 9/23*
*अर्थात मल तथा मूत्रमार्ग मध्य स्थित अपानवायु पत्थर ढेला सदृश स्थिर ऊंची ग्रन्थि बना देता है, जिससे उदर आध्मान, मल, मूत्र, अपान वात प्रवृत्ति में बाधा उत्पन्न होती है।*
*चरक अनुसार ‘मूत्रकृच्छ: स य: कृच्छ्रान्मूत्रयेद्..’ अर्थात कष्ट पूर्वक मूत्र त्याग करता है और मूत्राघात पर विजयरक्षितजी की टीका माधव निदान में कहा है
‘मूत्रकृच्छ मूत्राघात तयोश्चायं विशेष: मूत्रकृच्छ्रे।*
*कृच्छ्रलमतिशयितं ईषद विबन्ध: मूत्राघाते कु विबन्धो बलवानं कृच्छ्रत्वमल्पमिति*
*अर्थात मूत्रकृच्छ्र में मूत्र कष्ट पूर्वक होता है पर मूत्राघात में आता ही नही।*
*सामान्यतः इस रोग के सम्प्राप्ति घटक इस प्रकार अनेक रोगियों में बनते हैं.....*
*दोष - अपान समान वात, पाचक पित्त, क्लेदक कफ*
*दूष्य - रस, क्लेद, पुरीष और मूत्र*
*स्रोतस - रस, अम्बुवाही, मूत्र और पुरीष वाही*
*स्रोतो दुष्टि - संग*
*उद्भव स्थान - आमाश्य *
*रोगधिष्ठान - पक्वाश्य*
*साध्यासाध्यता - कृच्छ साध्य*
*चिकित्सा सूत्र - पाचन, अनुलोमन, मूत्र शोधन (मूत्र reaction acidic ना हो इसलिये), शोथध्न, भेदन, मूत्र प्रवृत्ति सम्यग् होती रहे इसके उपाय।*
[12/14, 7:09 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*संजीवनी वटी का प्रयोग आम के पाचन हेतु ज्वर में करना भी विशद गुण का वर्धन है, आमवात, आमाश्यगतवात, रक्त, मांस, मेद, शुक्रगत वात, योनिरोग, प्रमेह, मूत्राघात, त्रिक, मन्या, मूत्रकृच्छ, बद्धोदर आदि अनेक रोगों में हम अनेक ऐसे द्रव्यों या कर्मों का प्रयोग कर रहे हैं जिनमें विशद गुण है अर्थात विशद गुण उन द्रव्यों में आश्रित है और अपना कार्य कर के किस प्रकार अपनी सत्ता का महत्व सिद्ध करता है यह PROSTATOMEGALY (ENLARGEMENT OF PROSTATE ) में विशद गुण प्रधान गुग्गुलु के प्रयोग से देखते हैं...*
[12/14, 7:09 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*प्रोस्टेट ग्रन्थि में शोथ या संक्रमण है तो विशद गुण शरीर के अव्यवों में क्लेद का शोषण करने के साथ संक्रमण गत स्थल के द्रवांश का शोषण कर जीवाणुओं की सक्रियता को मंद करता जायेगा क्योंकि जहां क्लेद अधिक होगा वहीं जीवाणु संक्रमण अति शीध्र गति से प्रसरण करेगा।*
*विशद गुण व्रण या संक्रमण ग्रसित क्षेत्र मे रोपण मार्ग में अवरूद्ध धातुओं का लेखन करता है, वहां एकत्रित किट्ट भाग का शोषण करता है।*
*विशद गुण प्रधान रस -*
*कटु, तिक्त और कषाय रस विशद गुण प्रधान और वातवर्धक है।*
*भाव प्र.
'तिक्तः कषायो मेदोघ्नः कृमिमेहज्वरव्रणान्
श्वित्रशोथाम पित्तास्रपाण्डु कुष्ठकफान् हरेत्'
वटादि वर्ग 32-
यहां खदिर में देखें यह विशद गुण मिलेगा। मेदोघ्न, कृमि, संक्रमण जन्य ज्वर, व्रण, शोथ, कुष्ठ या fungal infection इन सब में खदिर का विशद गुण मूल हो गया।*
*भाव प्रकाश गुडूच्यादि वर्ग में निम्ब में विशद गुण की कार्मुकता का अवलोकन सूक्ष्मता से करें तो मिलेगा,
'निम्बः स्यात्पिचुमर्दश्च पिचुमन्दश्च तिक्तकः, अरिष्टः पारिभद्रश्च हिङ्गुनिर्यास इत्यपि...निम्बः शीतो लघुर्ग्राही कटुपाकोऽग्निवातनुत् ... अहृद्यःश्रमतृट्कासज्वरारुचिकृमिप्रणुत् व्रणपित्तकफच्छर्दि कुष्ठहृल्लास मेहनुत्... निम्बपत्रं स्मृतं नेत्र्यं कृमिपित्तविषप्रणुत् ... वातलं कटुपाकञ्च सर्वारोचककुष्ठनुत्... निम्बफलं रसे तिक्तं पाके तु कटुभेदनम्... स्निग्धं लघूष्णं कुष्ठघ्नं गुल्मार्शः कृमिमेहनुत्'
92-96 ...
जिन्हे संस्कृत ना समझ आये वो कृपया हिन्दी टीका का अवलोकन कर लें।*
*शाक वर्ग में सूरण के गुण-कर्म देखिये 'सूरणः कन्द ओलश्च कन्दलोऽर्शोघ्न ....सूरणो दीपनो रूक्षः कषायः कण्डुकृत् कटुः.....सर्वेषां कन्दशाकानां सूरणः श्रेष्ठ उच्यते ...दद्रूणां कुष्ठिनां रक्तपित्तिनां न हितो हि सः...
भा प्र 91-93
दद्रु, कुष्ठ आदि अनेक अवस्थायें क्लेद जन्य ही हैं जिनमे मात्र रूक्षण नही क्लेद नाशन के साथ संशोधन और रोपण भी चाहिये जो कटु, तिक्त, कषाय रस जन्य विशद गुण ही प्रदान करेगा।*
*ऊपर हम पूर्व में गुग्गुलु का वर्णन सब से पहले कर के ही चले हैं।*
*साहचर्य भाव से चले तो जिन द्रव्यों में लघु उष्ण तीक्ष्ण रूक्ष कठिन सर सूक्ष्म और खर गुण प्राप्त होते हैं प्रायः उनमें विशद भी मिलता है। साथ ही अम्ल और कटु विपाक में विशद गुण मिलता है।*
*शीत गुण वातवर्धक होने से यह विशद गुण का अधिष्ठान है, पूर्ववर्ती आचार्य धातुओं में मांस और अस्थि और त्वक्, सिरा, स्नायु और कण्डराओं जैसी उपधातुयें विशद गुण का अधिष्ठान मानते हैं।*
*मलों में देखे तो केश, नख और पुरीष विशद गुण प्रधान हैं।*
*चिकित्सा में हम कहां कहां विशद गुण का प्रयोग करते हैं .....*
*यह अत्यन्त महत्वपूर्ण पक्ष है कि जो नित्य प्रति चिकित्सा में हम प्रयोग करते है, लाभान्वित होते है पर यह लाभ क्यों मिल रहा है यह अज्ञात रहता है ! इस पर भी विस्तार से स्पष्ट करते हैं,
'यत्किंचिल्लाघवकरं देहे तल्लघंनं स्मृतम्'
च सू 22/9
अर्थात जिस क्रिया या पदार्थ से देह में लघुता हो वो लंघन है। लघु, उष्ण, तीक्ष्ण, विशद, सूक्ष्म, खर, सर, विशद और कठिन द्रव्यों के अतिरिक्त वमन विरेचन नस्य निरूहण वस्ति, पिपासा आतप और वात का सेवन,पाचन औषधियों का सेवन, उपवास और व्यायाम ये सब चरक सू 22/18 में लंघन कहे गये हैं। यहां हम विशद गुण की भी वृद्धि ही कर रहे है।*
[12/14, 7:09 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*रोगी age 66 वर्ष*
USG - enlarged prostate 51.3 gm
post void residual urine 96 cc (significant)
[12/14, 7:09 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*रात्रि को भी 5-6 बार मूत्र प्रवृत्ति रूक रूक कर बूंद बूंद और विलम्ब से होती थी।*
*10-9-22 ... PSA - 21.57 (0-4.1)*
*रोगी को CA PROSTATE का भय था अतः भल्लातक क्षार के साथ गोक्षुरादि गुग्गुलु high dose में 1-1 gm तीन बार दी गई, दो बार पाषाण भेद पुनर्नवा वरूण ह. यहूद दी गई । सोते समय कुटकी और हरीतकी, नित्यानंद रस दो बार 250 mg भी दिया गया।*
*28-9-22... PSA - 10.70 पर आ गया जो लगभग 18 दिन में बढ़ी सफलता थी। औषध यही दी गई। रात्रि को मूत्र प्रवृत्ति 1-2 बार रह गई थी।*
*19-10-22... PSA - 5.91 मिला जो लगभग सामान्य ही आता जा रहा था, रात्रि को अब कभी कभी एक बार मूत्र त्याग हेतु जाना पड़ता था। गोक्षुरादि गुग्गलु का स्टॉक दवाखाने में समाप्त था और औषध निर्माणाधीन थी तो पाषाण भेद, पुनर्नवा, गोखरू और वरूण छाल क्वाथ तीन बार दिया गया।*
[12/14, 7:09 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*11-11-22 ... PSA - 7.45 बिना गोक्षुरादि गुग्गुलु के बढ़ गया था।अब यह योग 500 mg दिन में दो बार पुनः आरंभ किया।*
*8-12-22 ... PSA - 6.71 अब पुनः कम आ गया।*
[12/14, 7:09 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*गुग्गुलु में आश्रित विशद गुण का संशोधन, लेखन, रोपण, अव्यव तथा क्रियाओं को स्वच्छ और पारदर्शी कर देना, मूत्र और रक्त का शुद्धिकरण, अम्बु तत्व की अधिक प्रवृत्ति को कम कर के सम्यग् कर देना यह विशद गुण से ही संभव है।*
[12/14, 7:09 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*इसी प्रकार हम आयुर्वेद के सभी गुणो पर सैद्धान्तिक और प्रायोगिक अनुसंधान कर के उनकी महत्ता को व्यवहारिक रूप में सिद्ध कर सकते हैं।*
[12/14, 7:19 PM] आयुर्वेद:
नमो नमः गुरूवर 🙏🙏🙏🙏
[12/14, 7:51 PM] Dr Sanjay Dubey:
गुरुदेव सादर प्रणाम 🙏🙏
गुणों को इतने व्यवहारिक तरीके से समझाने के लिये धन्यवाद 🙏
[12/14, 7:57 PM] Vd. Arun Rathi Sir, Akola:
*प्रणाम गुरुवर*
🙏🙏🙏
*आपका ससंदर्भ लेखन मस्तिष्क पटल पर छप जाता है*
*आप व्दारा लिखे शास्त्र सिद्धांतों का व्यवाहरिक चिकित्सीय प्रायोगिक पक्ष (Applied Aspect) हर बार संहिताओं को पढने के प्रेरित करता है*
🙏🙏🌹🌹🙏🙏
💓💓💓💓💓💓
[12/14, 8:23 PM] Dr.Deepika:
सादर अभिवादन गुरूदेव धन्य हो गए हम काय संप्रदाय में आकर। 🙏🙏
[12/14, 8:38 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*यह हमारी आयुर्वेद शिक्षा प्रणाली में ही कमी है नही तो आयुर्वेद सरल ही है, शिक्षण क्षेत्र में ना होते हुये भी सदैव प्रयास यही रहेगा कि आपकी सभी शंकाओं का समाधान यहां सभी गुरूजनों द्वारा मिलता रहे जिस से आप सभी आयुर्वेदज्ञ होने का गर्व कर सकें 🌹🙏*
[12/14, 8:39 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*आभार प्रो.राठी जी ❤️🙏*
[12/14, 8:42 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*अभी रूक्ष को भी स्पष्ट करेंगे जिस से रूक्ष और विशद में भेद क्या है यह अंतर पता चल जायेगा, आयुर्वेद के किसी भी सिद्धान्त पर आपकी जो भी जिज्ञासा हो आप सहर्ष पूछ सकते हैं दीपिका जी ।*
[12/14, 9:51 PM] Vd. Mohan Lal Jaiswal:
ऊँ
विशद गुण का विस्तृत सैद्धांतिक सह चिकित्सकीय प्रायोगिक विवेचन महत्वपूर्ण व हस्तामलकवत है।
धन्य हैं वैद्यवर जी ।
सद्गगुरुदेव जी के सैद्धांतिक पक्ष का वास्तविक चिकित्सकीय व्यावहारिक विस्तार शुचि मति से दे रहे हैं ।🚩👏
[12/14, 9:52 PM] Vd. Mohan Lal Jaiswal:
ऊँ
सद्गगुरुदेव जी की कृपा व दृष्टिपात का परिणाम ।
सादर शुभरात्रि सम्मान्य वैद्यवर जी।
[12/14, 10:22 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*यह सब गुरूजनों की कृपा है जिन्होने आयुर्वेद को प्रयोग करना और जीना सिखाया 🌹❤️🙏 ह्रदय तल से आभार *
[12/15, 12:31 PM] Vd. V. B. Pandey Basti(U. P. ):
विशद गुण व गुग्गुल का महत्व ऐसा गूढ विषय आपने बहुत ही सुंदर तरीके से समझाया इसके लिए दिल से आभार। इस चर्चा में आपने सूरण की भी चर्चा की है सूरण को कपडमिटी कर कंडे की अग्नि का पुट देकर हम इसकी राख(क्षार)बनाते है व गुदा जनित सभी विकारों में गुण के साथ प्रयोग करते हैं। क्या सूरण को भी विशद गुण प्रधान माना जाए। 🙏
[12/15, 5:14 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*नमस्कार पाण्डे जी, भाव प्रकाश शाक वर्ग में देखें तो
'सूरणः कन्द ओलश्च कन्दलोऽर्शोघ्न इत्यपि सूरणो दीपनो 'रूक्षः' 'कषायः' कण्डुकृत् 'कटु'....'विशदो' रुच्यः कफार्शः कृन्तनो लघुः'
91-92
इसके अनुसार आप जो भी गुद् विकारों में दे रहे हैं वैसे भी शास्त्र सम्मत ही है। सूरण में विशद और रूक्ष दोनो ही है तथा कटु-कषाय से साहचर्य भाव यहां लागू होता है क्योंकि यह क्लेद का शोषण कर के संक्रमण और स्राव का अवरोध करता है, दीपन भी है तो पुरूषं पुरूषं वीक्ष्य सिद्धान्तानुसार अनेक रोगियों में जहां शीघ्र परिणाम देगा वहां विशद प्रमुख बन जायेगा।*
*आपने देखा होगा हमने विशद गुण की व्याख्य में मद्य का उदाहरण दिया है जिसमें यह 'अनुलेपकर' अर्थात शारीर की वर्धनकारी धातुओं का ह्रास करता है पर सरदार खुशवन्त सिंह जी तो मद्यपान करते हुये 98 years स्वस्थ रह कर जीवन जी गये, उनकी स्कॉच में भी विशद गुण था पर वो ऐसा ही था जैसा जिमिकन्द या सूरण में होता है क्योंकि अरिवत् अर्थात जो शत्रु की तरह प्राणों को हरता है वह अर्श है और जिमिकन्द रक्षक बन गया ।*
*डॉ पाण्डे जी किसी भी प्रकरण को एकाकी रूप में ना लेकर सर्वांगीण रूप में ले कर चलें और आहार विधि का भी ध्यान रखें जैसे, कौन सा आहार द्रव्य,गुण,कर्म और स्वभाव से किस प्रकार का है तथा हितकर एवं अहितकर कैसे माना जायेगा
'तस्माद्धिताहितावबोधनार्थमन्नपानविधिमखिलेनोपदेक्ष्यामोऽग्निवेश! तत् स्वभावादुदक्तं क्लेदयति, लवणं विष्यन्दयति, क्षारः पाचयति, मधु सन्दधाति, सर्पिः स्नेहयति, क्षीरं जीवयति, मांसं बृंहयति, रसः प्रीणयति, सुरा जर्जरीकरोति ....'
च सू 27/4
इसका विस्तृत वर्णन जैसे मधु भग्न संधान करता है, मदिरा धातुओं का लेखन कर देती है, दही शोथ करती है, घृत स्नेहन कर देता है, क्षार पाचन तो करता है पर शुक्र और दृष्टि को हानिकारक है आदि आदि जो आप चक्रपाणि टीका के साथ चरक के आधार पर विस्तृत रूप में जान सकते हैं।*
*आहार विधि का प्रभाव रस,वीर्य और विपाक के अनुसार हमारे शरीर पर पड़ता है और इस आहार विधि के 8 विशेष आयतन होते हैं और इन 8 आयतनों का प्रयोग ना करना क्या है ????
'विषमाशनमग्निवैषम्यकराणां'
च सू 25/40
आहार से उत्पन्न विकार और औषध द्रव्यों के कर्म अर्थात हित और अहित पुरूष के लिये क्या है इसका विशिष्ट वर्णन चरक में करते हुये विषमाशन को अग्नि वैषम्य का कारण माना है।आचार्य चक्रपाणि ने इस विषमाशन को स्पष्ट किया है कि
'विषमाशनं प्रकृतिकरणादिविषमाशनम्'
आहार विधि के 8 नियमों का पालन ना करना विषमासन है।*
*आयुर्वेद में इन सब को अलग अलग अध्यायों में वर्णित किया गया है।अब इस विषमाशन को विस्तार से विमान स्थान में समझाया है कि
'प्रकृतिकरणसंयोगराशिदेशकालोपयोगसंस्थोपयोक्त्रष्टमानि (भवन्ति)'
च वि 1/21
अर्थात प्रकृति करण संयोग राशि देश काल उपयोग संस्था और उपयोक्ता ये आहार विधि के आठ आयतन हैं जिनसे पुरूष स्वस्थ रहता है । *
*आयुर्वेद का यह वो ज्ञान है जिस पर समस्त संसार इसका महत्व जान कर धीरे धीरे आ जायेगा।*
[12/15, 8:18 PM] Vaidya Ashok Rathod Oman:
*नमॊ नमः गुरुवर्य श्रीl*🙏🏼🙏🏼🙏🏼🌹🌹🌹
*क्षालने विशद:l* अ. हृ. सू. १/१८ हेमाद्रि
*संक्षेप मे*
*विशद गुण का प्रमुख कर्म: स्रोतसो से कफ दोष का निर्हरण करना l*
*साधारणतः वे द्रव्य जिनमे कषाय रस (astringent) होता है, वे क्षालन कर्म मे प्रयुक्त होते हैl*
*विशद गुण के क्षालन कर्म से कफ दोष का क्षय अपेक्षित है जो अपने विरुद्ध गुण - पिच्छिलता (slimmy) को कम करता है l*
*पंचभौतिकत्व: तेज पृथ्वी आकाश एवं वायु महाभूत l*
🙏🏼🙏🏼🙏🏼🌹🌹🌹🙇🏽♂️
[12/15, 9:27 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*नमस्कार वैद्यवर अशोक जी 🌹🙏 क्षालन कर्म पर हमने जानबूझ कर नही लिखा क्योंकि यह बहुत बढ़ा विषय है... कषाय रस का संदर्भ दे कर आपने अच्छा किया इस पर आगे कभी लिखेंगे कि यह किस प्रकार रोपण कर्म का प्रमुख भाग है।*
*यही आयुर्वेद का वह विशिष्ट ज्ञान है जिस पर ना कभी चर्चा होती है और ना ही कहीं पढ़ाये जाते हैं जबकि चिकित्सा के प्रमुख स्तंभ है।*
[12/15, 9:50 PM] Dr.Deepika:
प्रणाम गुरू जी,
एक प्रश्र क्षमा याचना के साथ,
आपने लिखा है कि सहचार्य भाव से देखे तो जिन द्रव्यों में लघु उष्ण तीक्ष्ण रुख कठिन सर सूक्ष्म और खर गुण होगा उनमें विशद भी मिलता है, ये सारे तो समझ आ गए परंतु सर गुण वाला द्रव्य कैसे ? और यदि विशद गुण किसी कारण वश शरीर में ज्यादा हो जाए तो लक्षण क्या मिलने चाहिए?
[12/15, 10:08 PM] Dr. Pawan Madan:
प्रणाम गुरु जी।
एक वाक्य में समझें तो विशद वह property है जो के क्लेद रूपी कीचड़ का शोषण कर clarity प्रदान कर्ता है जिसे विशदता कहते हैं।
🙏🙏
[12/15, 10:11 PM] आयुर्वेद:
जी सर गोक्षुर क्लेद का वहन कर बाहर निकालता है l
[12/15, 10:12 PM] Dr. Pawan Madan:
गुरु जी, इसमें जो आपने खदिर का संकेत दिया, उसके लिये बहुत बहुत धन्यवाद।
[12/15, 10:15 PM] Dr. Pawan Madan:
अभी मैने संजीवनी का अधिक मात्रा मे प्रयोग करवाया जिस से आज कल के हो रहे ज्वर के बाद होने वाले अंगमर्द के रोगियों को बहुत उपशय मिला।
ये शायद इस के क्लेद शोषक गुण से ही सम्भव हुआ।
🙏
[12/15, 10:15 PM] Dr. Satish Jaimini:
कफ पित्त आम क्लेद के विरुद्ध कार्य विशद के अंतर्गत समाविष्ट है व्यापक रूप से बहुत अधिक कार्य विशद ही करता है क्योकि खर और रुक्ष भी विशद के बहुत निकट हैं यद्यपि अंतर भी है रुक्ष खर वात वर्धक होने से
[12/15, 11:23 PM] Vd. Mohan Lal Jaiswal:
ऊँ
खदिर तो गजब का विशद है। अभी बाद में इस पर प्रकाश डाल सकते हैं।यह गायत्री है।🚩👏
[12/16, 5:36 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*दीपिका जी,
'लघूष्णतीक्ष्णविशदं रूक्षं सूक्ष्मं खरं सरम्'
च सू 22/12
सूत्र ध्यान से देखिये कि सर गुण क्या होता है... इस से पूर्व में हम साहचर्य भाव भी विस्तार से सोदाहरण स्पष्ट कर चुके हैं।*
[12/16, 5:38 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*संशोधन और रोपण कर पवन जी 🌹🙏*
[12/16, 5:42 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*बबूल, माजूफल, हरीतकी आदि इसके और भी प्रमुख उदाहरण है, यह सब विशद प्रधान हैं।*
[12/16, 5:45 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*वाह ! बहुत खूब और सटीक उदाहरण आपने संजीवनी वटी का दिया 👌👌👌 इसके अतिरिक्त अनेक गुग्गलु योग, यव, शुद्ध मधु, मद्य, तिल तैल आदि अनेक भी उदाहरण है।*
[12/16, 5:47 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*सही कह रहें है आप खदिर और खदिरारिष्ट भी।*
[12/16, 5:49 AM] Vaidya Sanjay P. Chhajed:
हम रोजाना जो टुथपेस्ट, दन्तमंजन, साबुन आदी का उपयोग करते हैं वे विशद गुण के ही है। अगर गड़बड़ हो गयी तो रुक्षता भी वही दृग्गोचर होगी।
[12/16, 5:54 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*सुप्रभात आचार्य संजय जी 🌹🙏 पहले के समय में भी नीम या बबूल की दातौन, अनेक साबुन, स्फटिका युक्त मंजन... ये सब विशद गुण युक्त ही हैं।*
[12/16, 5:56 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*आजकल अनेक साबुन ऐसे भी हैं जो शरीर को स्निग्ध कर देते हैं जैसे Dove, कितना ही पानी डालिये लगता है अभी भी साबुन लगा ही है 😂😂*
[12/16, 5:58 AM] Vd. Mohan Lal Jaiswal:
ऊँ
खर्जूर व खर्जूरारिष्ट भी।
सादर सुप्रभात अभिवादन वैद्यवर जी।🚩👏
[12/16, 6:00 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*सुप्रभात - नमो नमः आचार्य जायसवाल जी ❤️🌹🙏*
[12/16, 6:12 AM] Vd. Mohan Lal Jaiswal:
विशद के साथ सूक्ष्म, सुगन्धिगुण का अद्भुत संयोग है गुग्गुल में।
इसीलिये यह देवधूप प्रकृति (वातावरण)का भी छालन करता है।
[12/16, 6:20 AM] Vd. V. B. Pandey Basti(U.P.):
हमारी समझ से गुग्गुल वर्ग ही श्रेष्ठ रहेगा कारण हरीतकी कफज रोग व प्राकृति में कषाय रस प्रधान होने के कारण स्तंभन भी करती है जिससे रोगी को भारी भारीपन लगता है।
[12/16, 6:20 AM] Vaidya Sanjay P. Chhajed:
हां गुरुदेव।
यही हमें रुक्ष- विशद- स्निग्धता का अंतर भी समझाती है। डव्ह कितनी भी स्निग्धता महसूस करावे वह अभ्यंग के मानिंद नही। रक्षा- राख का प्रयोग विशद है पर अधिक मात्रा में रुक्षता करेगा। गले में चिपचिपा सा लगता है, खदिरादी वटी चुसो।
[12/16, 6:38 AM] Dr.Deepika:
सादर प्रात वंदन गुरुदेव,
ये बात सही है, परंतु मेरे दिमाग में कुछ उलटा चल रहा था कि जब पित्त रुक्ष हो जाता है तब उसकी सर गुण समाप्त हो कर अनल रूप ले लेता है।
सर गुण होने के लिए जल और पृथ्वी भी होनी चाहिए।🙏🙏
********************************************************************************************************************Above case presentation & follow-up discussion held in 'Kaysampraday (Discussion)' a Famous WhatsApp group of well known Vaidyas from all over the India. ********************************************************************************************************************
Presented by
Vaidyaraja Subhash Sharma
MD (Kaya-chikitsa)
New Delhi, India
email- vaidyaraja@yahoo.co.in
Compiled & Uploaded by
Vd. Rituraj Verma
B. A. M. S.
Shri Dadaji Ayurveda & Panchakarma Center,
Khandawa, M.P., India.
Mobile No.:-
+91 9669793990,
+91 9617617746
Edited by
Dr.Surendra A. Soni
M.D., PhD (KC)
Professor & Head
P. G. DEPT. OF KAYACHIKITSA
Govt. Akhandanand Ayurveda College
Ahmedabad, GUJARAT, India.
Email: surendraasoni@gmail.com
Comments
Post a Comment