WDS104: "Grahani" by Prof. Satyendra Narayan Ojha, Vaidyaraja Subhash Sharma, Prof. S. K. Khandal, Prof. L. K. Dwivedi, Dr. Dinesh Katoch, Prof. Arun Rathi, Prof. Deep Narayan Pandey, Dr. Pawan Madaan, Prof. Aruna Ojha, Dr. Rituraj Verma, Dr. Narender Paul, Vd. Rajneesh Gadi, Prof. Haresh Soni, Vd. Ramaprasad Bhat, Vd. Amol Kadu, Dr. Shashi Jindal, Vd. Mrityunjay Tripathi, Vd. Ravikant Prajapati, Dr. Naresh Garg& Others.
[6/15 ,1:30PM]Dr.Pawan Madan Ji:
Resp Guruvarya and friends. This case seems to be a simple case of Agnimaandya leading to Grahni but actually it needs discussion esp for the young Vaidya as we need to be very specific in chosing the right chikitsa sutra as well as aushadhi. Kindly guide...🙏
[6/15, 1:58 PM] Dr.Dinesh Chand Katoch Sir:
Start with Kravyad Ras 1 pill and Hingwastak Churan Itsf with ghee before breakfast and dinner and Amaltas Phant or Trivritavleha at bed time ( about two hours after dinner).
[6/15, 2:36 PM] Dr.Pawan Madan Ji:
Good afternoon sir.
Thank you sir.
Please help me understand your thought process of samprati of this case.
🙏
[6/15, 7:20 PM] Dr.Dinesh Chand Katoch Sir:
Just think how we ignite Hawan Agni. Anuloman and Yogavahi karm are also required to along with Agnideepan to streamline the whole gastrointestinal function leading to normal digestion, absorption of aahar ras and defecation.
[6l/16, 10:43 AM] Dr.Pawan Madan Ji:
🙏🙏🙏
[6/16, 10:45 AM] Dr.Pawan Madan Ji:
This case is very important.
When we make this as GRAHNI and do deepan grahi chikitsa...Results are not good.
When we do anuloman here...Then also results are not good.
🤔🤔
[6/16, 11:03 AM] Dr.Pawan Madan Ji:
सविनय निवेदन
इस मरीज की संप्रपति व निदान कैसे समझ सकते है
🙏
[6/16, 12:34 PM] Vaidya Shrikrishna Khandel Sir:
जब दोष निर्हरण योग्य वृद्ध नहीं होते तो लीन होकर पड़े रहते हैं
[6/16, 9:59 PM] Dr.Pawan Madan Ji:
Need help for this case....🙏🙏
क्या इस रोग को ग्रहणी की श्रेणी में रखा जाएगा?
[6/16, 10:01 PM] Vd.Rajaneesh Ghadi Palghar, Maharashtra:
Sir आपने मलपरीक्षण किया है..
[6/16, 10:03 PM] Dr.Pawan Madan Ji:
परीक्षण खुद नही किया
केवल पूछा है sir
This is semisolid generally, not evidently containing undigested food.
[6/16, 10:04 PM] Dr.Rajendra Bishnoi Bikaner
Amoebic dysentery with vitamin deficiency
[6/16, 10:05 PM] Dr.Pawan Madan Ji:
On what basis you are staying this?
[6/16, 10:13 PM] DR. RITURAJ VERMA:
प्रणाम पवन सर जी
अम्लपित्त न हो तो संजीवनी वटी
मानसमित्र वटकम
या बिल्व, मुस्ता, धान्यक का योग
या शुण्ठी चूर्ण का उपयोग किया जा सकता है ।
[6/16, 10:14 PM] Vd.Rajaneesh Ghadi Palghar, Maharashtra:
Sir please get a stool routine done from a genuine laboratory ...
Most of the time its amoebiasis or giardiasis in indian context.. which can be correlated with grahani poorva roopa.. Or may be gluten allergy or IBS which can be classified according_to signs & symptoms of grahani.. Eructations are mostly because_of aerophagy than hyperacidity.. aerophagy is also a sign of disturbed mindset who eats too fast.. Generally a short couse of शंखवटी, समशर्करा चूर्ण takes care of initial symptoms till reports guide us.
Request to all Vaidyas to correct my approach ..🙏
[6/16, 10:17 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha sir:
Diagnosis is important, given clues are insufficient to reach out to diagnosis
*मल परिक्षण अष्टविध का प्रमुख घटक है, जिसे हम उपेक्षित करते है*
सम्प्राप्ति घटक क्या है ? किस आधार पर किसी द्रव्य का प्रयोग किया जाय ?*
दशविध परिक्ष्य भावों का भी उल्लेख नहीं है??
वैद्य राज शर्मा जी के लगातार प्रयास के बावजूद कोई भी पूर्ण प्रपत्र तैयार नहीं करता ??
पवन जी ।
[6/16, 10:30 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Delhi:
*शुभ सन्ध्या सर 🙏🙏🙏
allopathic diagnosis कर आयुर्वेदीय औषध देना कोई आयुर्वेद की चिकित्सा नही है ।*
[6/16, 10:30 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha sir:
*पूर्ण वृतांत के साथ प्रस्तुतीकरण अपेक्षित है*
[6/16, 10:30 PM] Dr.Pawan Madan Ji:
Points noted.
I couldn't place this case in Amlapitta.
Even could nt put under Grahni. As I have experienced number of times .... Doing grahni chikitsa doesn't work in such cases..
This is not gluten allergy.
Generally it is put in IBS but then the problem is chikitsa sutra...
[6/16, 10:30 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha sir:
*सादर प्रणाम वैद्य राज जी* 🙏🙏
[6/16, 10:32 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha sir:
What is IBS as per Ayurveda perspective ?
On which basis correlation should be done ?
[6/16, 10:32 PM] Dr.Pawan Madan Ji:
I tried in this case as much as possible..😔
[6/16, 10:32 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Delhi:
*हम लोग अनेक बार एक सरल सा format बताते रहे है दशविध परीक्षा कर ली जाये और modern investigations साथ में हो तो वो भी सहायक है।*
[6/16, 10:33 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha sir:
As much as possible is not concerned , only option is perfect diagnosis.
*जी, किसी भी माध्यम के संपूर्णता की जरुरत है*
[6/16, 10:36 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Delhi:
*पवन मदान जी तो स्वयं भी सम्प्राप्ति बनाने के समर्थक हैं पर कई बार भावनाओं में बह जाते हैं।* 😄😄😄
[6/16, 10:38 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha sir:
*IBS जैसे शब्दो की आयुर्वेद विशेषज्ञ को क्या जरुरत है ?*
*निदान-सम्प्राप्ति- लक्षण- चिकित्सा सह संबंध स्थापित करने पर ही चिकित्सा व्यवस्था से लाभ मिलना अभिष्ट है*
[6/16, 10:42 PM] Dr.Pawan Madan Ji:
Sir
I have not made the diagnosis yet.
[6/16, 10:42 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Delhi:
*आयुर्वेद दोष- दूष्यों पर आधारित विज्ञान है, IBS से modern medicine तो संभव है पर आयुर्वेदीय चिकित्सा नही क्योंकि मल में आम-पक्व, रोग बल- रोगी बल, समुचित हेतु का ज्ञान, अग्नि बल, काल आदि सब देखना है।*
[6/16, 10:43 PM] Dr.Pawan Madan Ji:
गुरु जी
कई बार दुविधा में फस जाता हूँ तो ही प्रश्न उपस्तिथ करता हूँ😔
[6/16, 10:46 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha sir:
*जी , कल ही मैंने भाई अरुण जी से कहा की भल्लातक योग से आपको अतिसार में लाभ मिलता है , लेकिन किस प्रकार के अतिसार में ? ६ प्रकारो में से किस भेद में उपयोगी योग है, इसपर चर्चा अपेक्षित है*
[6/16, 10:46 PM] Dr.Pawan Madan Ji:
आदरणीय गुरुवर्य द्वय
मेने आयुर्वेदिक निदान के बारे में ही प्रश्न उपस्तिथ किया है
😥
[6/16, 10:47 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Delhi:
*हमें पता है कि आप भावुक है, बहुत परिश्रमी है और आपके ऊपर कार्यों का बोझ भी अधिक रहता है पर आप इस रोगी में history अनुसार हेतु, दोष और उनकी अंशाश कल्पना तक आईये, दूष्य- स्रोतस और स्रोतोदुष्टि आपके लिये बहुत आसान कार्य है तो फिर कहां अटक रहे हैं आप ?*
[6/16, 10:48 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha sir:
Lock down में अटक गये है. 😅😂
[6/16, 10:48 PM] Dr.Pawan Madan Ji:
जी गुरुवर उचित है।
कल सुबह एक बार आपके आदेश अनुसार कोशिश करता हूँ
🙏🙏😊
[6/16, 10:50 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha sir:
पवन जी
*भावुक है , लेकिन कठोर भी है , हां , लोगो के लिये , खुद के लिये नहीं*
[6/16, 10:53 PM] Dr.Pawan Madan Ji:
Khud ke liye bhi ban rahaa hoon..😊🙏
[6/16, 11:03 PM] DR. RITURAJ VERMA:
मन्दाग्नि से आम की उत्तपत्ति
[6/16, 11:05 PM]Dr.Rajendra Bishnoi Bikaner
Feeling incomplete evacuation
Motion frequency
Feeling weakness
.... IBS ... NO Cardinal symptoms
Gluten intolerance.... No history of weight loss with anaemia
Prostate size...??
Differential diagnosis required
Dr. Pawan ji !
[6/16, 11:25 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Delhi:
【Vaidya Shrikrishna Khandel Sir
जब दोष निर्हरण योग्य वृद्ध नहीं होते तो लीन होकर पड़े रहते हैं】
*सादर नमन सर, आपने बहुत महत्वपूर्ण विषय लिया है , इस पर आपसे कुछ अतिरिक्त ज्ञान की अपेक्षा है ।*
🙏🙏🙏
[6/16, 11:27 PM]Prof.Satyendra Narayan Ojha sir:
*लीन दोष पर एक सम्भाषा अपेक्षित है*
[6/16, 11:47 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir:
*(१)कृतेऽप्यकृतसंज्ञ:*
*(२) स्निग्धं श्वेतं पिच्छिलं तन्तुमदामं गुरु दुर्गन्धं श्लेष्मोपहितमनुबद्धशूलम्*
*(३) अल्पाल्पमभीक्ष्णमतिसार्यते सप्रवाहिकम्* .
*(४) सदन*
*श्लेष्मातिसार*..
*भिन्नामश्लेष्मसंसृष्टगुरुवर्च:प्रवर्तनम्*,
*अकृशस्यापि दौर्बल्यमालस्यं च कफात्मके (ग्रहणी)*..
*भिन्नामश्लेष्मसंसृष्टगुरुवर्च:प्रवर्तनम्,
श्लेष्मणा संवृतेऽपाने कफमेहस्य चागम:*.
*संदर्भ ग्रन्थ - चरक संहिता चिकित्सा स्थान- १५, १९ , २८*
[6/16, 11:52 PM] Dr.Haresh Soni ,Gujarat:
【Prof.Satyendra Narayan Ojha sir:
लीन दोष पर एक सम्भाषा अपेक्षित है】
कृत्स्नेऽर्धेऽवयवे वाऽपि यत्राङ्गे कुपितो भृशम् |
दोषो विकारं नभसि [१] मेघवत्तत्र वर्षति ||२९||
नात्यर्थं कुपितश्चापि *लीनो मार्गेषु तिष्ठति |*
*निष्प्रत्यनीकः कालेन हेतुमासाद्य कुप्यति ||३०|*
[6/16, 11:53 PM] Dr.Haresh Soni , Gujarat:
Lina dosha....stage at prasara kriya kala as explained by Acharya Sushruta
[6/16, 11:56 PM] Dr.Haresh Soni Gujarat:
Lina doshas....they always remain within srotas without producing symptoms, that's why they are nishprtaneek....
Kaal is the factor which plays important role in aggravation of Lina doshas
[6/16, 11:59 PM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir:
*साम मल* ;
*(१) मज्जत्यामा गुरुत्वाद्विट् पक्वा तूत्प्लवते जले , विनाऽतिद्रवसङ्घातशैत्यश्लेष्मप्रदूषणात्* .*
(२) विज्जलत्वामगन्धित्वप्रकारैर्लक्षणैस्तस्योरप्यामातिसार रुपावस्था ज्ञेयैव.*
*संदर्भ ग्रंथ- चरक संहिता चिकित्सा स्थान , १५,१९*
[6/17, 12:03 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Delhi:
【Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir:
(१)कृतेऽप्यकृतसंज्ञ:*
*(२) स्निग्धं श्वेतं पिच्छिलं तन्तुमदामं】
👌👌👌👌🙏🙏🙏
[6/17, 12:05 AM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir:
*लीनं(अनुक्लिष्टम्) पक्वाशयस्थं वाऽऽप्यामं स्राव्यं( इति विरेचनीयम्)सदीपनै:*
*च.चि.१५*
*स्राव्यं सदीपनै:, दीपनद्रव्यसंयुक्तै: विरेचनप्रयोगै:*
[6/17, 12:19 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Delhi:
*सर्वदेहप्रविसृतान् सामान् दोषान् न निर्हरेत्, लीनान् धातुष्वनुत्क्लिष्टान् फलादामाद्रसानिव। आश्रयस्य हि नाशाय ते स्युर्दुर्निर्हरत्वत:।
अ ह दोषोपक्रमणीय अध्याय 13/28
सर्व शरीरगत प्रसरित साम दोषों के निर्हरण का प्रयत्न नही करना चाहिये क्योंकि वे रस, रक्तादि धातुओं में विलीन हो कर पड़े रहते हैं और बाहर निकलने के लिये प्रयत्नशील भी नही होते। ऐसी स्थिति में उन्हे बाहर ना निकालें और उनका निर्हरण भली प्रकार हो भी नही पायेगा जैसे कच्चे फल से रस तो निकलेगा नही और जिस फल में रहता है वो भी नष्ट हो जायेगा अर्थात जिन धातुओं में हैं उनका भी क्षय हो जायेगा। अत: इस प्रकार की स्थिति में उन्हे सामानस्था में लाने के लिये लंघन, दीपन पाचन औषध, स्नेह से स्रोतों को स्निग्ध कर स्वेदन द्वारा, वमन, नस्य , निरूहण या विरेचन द्वारा निष्कासन करना चाहिये।*
[6/17, 12:20 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Delhi:
【 Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir:
*लीनं(अनुक्लिष्टम्) पक्वाशयस्थं वाऽऽप्यामं स्राव्यं( इति विरेचनीयम्)सदीपनै:* 】
🙏🙏🙏
[6/17, 12:24 AM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir:
【Vaidyaraj Subhash Sharma Delhi:
सर्वदेहप्रविसृतान् सामान् दोषान् न निर्हरेत्, लीनान् धातुष्वनुत्क्लिष्टान् फलादामाद्रसानिव।】
✅💐🌷👌👌🙏🙏
[6/17, 12:27 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Delhi:
*पवन मदान जी ने जो रोगी पर मार्गदर्शन कहा है ऐसे अनेक रोगी मिलते है जिन्हे आम दोष और विबंध में अंतर पता नही होता। आम दोषज रोगी चिकित्सक को कहता है कि मुझे कब्ज रहती है जबकि रोगी दो तीन बार मल त्याग करता है पर एक असंतुष्टि सी बनी रहती है तो चिकित्सक उसे विरेचक औषधियां दे देता है जबकि उसे सर्वप्रथम दीपन पाचन औषधियों की आवश्यकता होती है। तीव्र विरेचन आन्त्रों की पेशियों का प्राकृतिक आकुंचन और प्रसारण गति को विकृत कर देती है जिससे उसकी अनुलोमक गति भी अल्प रह जाती है इसे हम पक्वाश्य गत अपान वात विकृति मानते है और रोगी पूरा जीवन कायम चूर्ण, looz syp आदि औषधियां ही सेवन करता रहता है।*
[6/17, 12:30 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Delhi:
*आम दोष, लीन दोषों का ज्ञान प्रत्येक चिकित्सक के लिये आवश्यक है।*
[6/17, 12:30 AM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir:
*सर्वदेहानुगा:(सूक्ष्मसिरात्वगाद्यनुगता:) सामा(सामत्वेन स्त्याना अप्रचलाश्च) धातुस्था(धातुषु अत्यन्तानुप्रवेशव्यवस्थिता:) असुनिर्हरा:, च.चि.३*
[6/17, 12:31 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Delhi:
Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir:
【सर्वदेहानुगा:(सूक्ष्मसिरात्वगाद्यनुगता:) सामा(सामत्वेन स्त्याना अप्रचलाश्च) धातुस्था(धातुषु अत्यन्तानुप्रवेशव्यवस्थिता:) असुनिर्हरा:, च.चि.३*】
*अति सूक्ष्म विवेचन सर 🙏🙏🙏*
[6/17, 12:32 AM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir:
*जी वैद्यराज , व्यवच्छेद निदान जरुरी है*
[6/17, 12:33 AM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir:
【Vaidyaraj Subhash Sharma ji
*अति सूक्ष्म विवेचन सर 】
*आचार्य चरक और आचार्य चक्रपाणी* 🙏🙏
[6/17, 12:35 AM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir:
बिबंध , विष्टब्धाजीर्ण एवं पुरीषावृत वात में भी व्यवच्छेद अपेक्षित है*
[6/17, 12:35 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Delhi:
*आयुर्वेद तो एक संपूर्ण बृहद शास्त्र है इसे पेटेन्ट औषधियों और रोग तथा फार्मूला तक सीमित करने के प्रयास हम दोनों को ही विचलित कर देते हैं क्योंकि हम लोग आकंठ शास्त्र में डूब चुके है और इसी से बढ़े बढ़े गंभीर रोग ठीक करते हैं।*
[6/17, 12:36 AM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir:
उदावर्त , गुदगतवात भी
[6/17, 12:37 AM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir:
आपने मेरे मन की बात कही, सत्य वचन..
[6/17, 12:38 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Delhi:
*इनके साथ ही अपानावृत अपान भी मैं लिखने वाला था।*
[6/17, 12:39 AM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir:
*व्यानावृत अपान*
[6/17, 12:40 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Delhi:
जी सर*
[6/17, 12:42 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Delhi:
*हाथ थक गये सर लिखते लिखते अब तो विश्राम ही किया जाये ।*
[6/17, 12:42 AM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir:
*समानावृत अपान मे भी ग्रहणी वर्णित है जिसमे दीपनीय घृत उल्लेखित है*
[6/17, 12:44 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Delhi:
*पक्वाश्य गत विकार, ग्रहणी बहुत विस्तृत है।* 👍👍👍
[6/17, 12:44 AM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir:
*शुभ रात्रि वैद्यराज सुभाष शर्मा जी , आप सदैव अविश्रांत आयुर्वेद का प्रचार -प्रसार करते रहे , यही प्रार्थना*
[6/17, 12:44 AM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir:
*कभी चर्चा करेगें* 🙏🙏
[6/17, 12:46 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Delhi:
*आप मिल जाते हैं जब साथ तो एक अजीब सी ऊर्जा मिल जाती है आपसे, धन्य हूं मैं तो जो आपका साथ मिला । अब वृद्धावस्था नही आ सकती कभी ।*
🙏🙏🙏🙏
[6/17, 12:46 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Delhi:
*शुभ रात्रि सर 🙏🌹💐🌺🙏*
[6/17, 12:46 AM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir:
🙏🙏🌹💐🌷🙏🙏
[6/17, 12:48 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Delhi:
*लीन दोषों में symptoms नही मिलते इस पर पुनर्विचार किया जा सकता है। दोषों का जब संचय होता है तो लक्षण जहां चय होता है वहां पर स्थानिक मिलते हैं।*
[6/17, 12:50 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Delhi:
*ये डॉ हरेश सोनी जी के प्रश्न में विनम्र निवेदन है।*
[6/17, 12:50 AM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir:
*जी , इसीलिए मैंने कहा की एक सम्भाषा अपेक्षित है*
[6/17, 12:51 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Delhi:
*सही कहा सर और आदरणीय खांडल सर से भी निवेदन है कि लीन दोषों पर प्रकाश जरूर डालिये 🙏🙏🙏*
[6/17, 12:52 AM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir:
*निष्प्रत्यनीक अर्थात जिसका विरोधी न हो ; जैसे शब्दो की अतिरिक्त विवेचन की जरुरत है*
[6/17, 12:53 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Delhi:
*आपने तो और अधिक गहनता तक विषय को पहुंचा दिया।* 👌👌👌🙏🙏🙏
[6/17, 12:54 AM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir:
*जी , खांडल सर , प्राध्यापक पवन गोदतवार जी सदृश विद्वान व्यक्तित्व से हमें अतिरिक्त ज्ञान वृद्धि की अपेक्षा है*
[6/17, 12:56 AM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir:
*काल आदि से बल प्राप्त होने के पश्चात ही लीन दोष बलवान होते हैं*
*अब लेखनी को विराम देते हैं*
🙏🙏
[6/17, 12:58 AM] Dr.Haresh Soni Gujarat:
लीन एकदेशस्थितः| निष्प्रत्यनीका निष्प्रतिक्रियः||२९-३०||
Nishprtyanika means non reactive?
[6/17, 12:59 AM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir:
*संदर्भ , संतत ज्वर , च.चि.३*
[6/17, 1:05 AM] Dr.Haresh Soni Gujarat:
व्यभिचारी यथा– यो दुर्बलत्वाद्व्याध्यधिकरणासमर्थः|
Lina dosha
Margeshu tishthati
Means not moving ahead
Due to alpa dosha bala
Thats why wait for proper kaala
Hence relation of vyabhichari nidana and Lina dosha is also to be understood.
[6/17, 1:06 AM] Dr.Haresh Soni Gujarat:
The discussion continues .... Good night to all legendary acharyas
🙏🙏🙏
[6/17, 1:10 AM] Vd.Rangaprasad Bhat Chennai:
Pawan bro'
FYI.,
Probably you'll get a clue from the following verses.
चिकित्सास्थानम् - १९. अतिसारचिकित्सितम्
दोषाः सन्निचिता यस्य विदग्धाहारमूर्च्छिताः|
अतीसाराय कल्पन्ते भूयस्तान् सम्प्रवर्तयेत्||१४||
न तु सङ्ग्रहणं देयं पूर्वमामातिसारिणे|
विबध्यमानाः प्राग्दोषा जनयन्त्यामयान् बहून्||१५||
दण्डकालसकाध्मानग्रहण्यर्शोगदांस्तथा|
शोथपाण्ड्वामयप्लीहकुष्ठगुल्मोदरज्वरान्||१६||
तस्मादुपेक्षेतोत्क्लिष्टान् वर्तमानान् स्वयं मलान्|
कृच्छ्रं वा वहतां दद्यादभयां सम्प्रवर्तिनीम्||१७||
तया प्रवाहिते दोषे प्रशाम्यत्युदरामयः|
जायते देहलघुता जठराग्निश्च वर्धते||१८||
प्रमथ्यां मध्यदोषाणां दद्याद्दीपनपाचनीम्|
लङ्घनं चाल्पदोषाणां प्रशस्तमतिसारिणाम्||१९||
आयुर्वेददीपिका व्याख्या (चक्रपाणिदत्त कृत)
दोषाः सन्निचिता इत्यादिना चिकित्सामाह| विदग्धशब्देनात्रापक्वाहारवाचिना चतुर्विधमप्यामं, विदग्धं, विष्टब्धं, रसशेषं चाजीर्णं गृह्यते| सम्प्रवर्तयेदित्यनेन प्रवर्तमानस्योपेक्षया प्रवर्तनं, तथा स्तोकं वहतां विरेचनयोगात् प्रवर्तनं; यद्वक्ष्यति- ‘कृच्छ्रं वा वहतां दद्यादभयां सम्प्रवर्तिनीम्’ इति| न तु सङ्ग्रहणं पूर्वं देयमामातिसारिणे इत्यत्र पूर्वमिति विशेषणेनोत्तरकालं देयमामातीसारे सङ्ग्रहणं दर्शयति| प्रथमं चामातीसारस्योपेक्षया विरेचनदानेन प्रवर्तनमुक्तमिति विरोधे इयं व्यवस्था- यत् प्रवृद्धे आमे बलवति च पुरुषे प्रवर्तनमेव कर्तव्यं, यदा तु दुर्बलः पुमान् क्षीणश्चामस्तदा प्रथममुपेक्षया प्रवर्तनं कृत्वा सङ्ग्रहणं कर्तव्यं; तस्यां ह्यवस्थायामसङ्ग्रहणे आतुरस्य बलभ्रंशान्मरणमेव स्यात्| अन्ये तु पूर्वं सङ्ग्रहणं न देयमिति प्रधानमम्बष्ठाशाल्मलकुटजत्वगादिसङ्ग्रहणं न देयं, मुस्तोदीच्यादि तु पाचनसङ्ग्रहणं देयमिति वर्णयन्ति| इयं चामातिसारचिकित्सा सर्वामातिसाराणां साधारणी ज्ञेया| कृच्छ्रं वा वहतामिति सविबन्धं वहताम्| प्रमथ्यामिति पाचनदीपनीयं कषायं; प्रमथ्याशब्दो हि वृद्धपरम्परया पाचनदीपनकषाये वैद्यकशास्त्रे परिभाषितः श्रूयते; यथा- विडङ्गकषायः शैखरिककषायशब्देन वैद्यैरुच्यते| बहुदोषे प्रवर्तनं, तथा मध्यदोषे प्रमथ्योक्ता, अल्पदोषे च सामे प्रथमकर्तव्यमाह- लङ्घनमित्यादि||१४-१९||
[6/17, 1:14 AM] Vd.Rangaprasad Bhat Chennai:
Vital clue for your case from above verse as from the words of AcArya CakrapANi - *बहुदोषे प्रवर्तनं, तथा मध्यदोषे प्रमथ्योक्ता, अल्पदोषे च सामे प्रथमकर्तव्यमाह- लङ्घनमित्यादि||१४-१९||*
[6/17, 6:02 AM] Prof.Amol Kadu Jaipur:
बिल्कुल नहीं सर, आयुर्वेद को आयुर्वेद के सिद्धांत अनुसार ही सीखना है इसमें किसीको कोई संदेह होना ही नहीं चाहिए और मुझे लगता है कि किसीको वो है। लेकिन हमारी शिक्षा प्रणाली ही ऐसी है कि हम बच्चों का कोई दोष है ऐसा मै मानता नहीं। आप जैसे वैद्यगण आयुर्वेद सिद्धांत के ऊपर सफल चिकित्सा करते हुए रुग्ण अनुभव साझा करते है तो सब को संप्राप्ति एवं उसका विघटन कैसे करे इसका विचार मन में आता है और सभी उस और अब सोचने लगे है। आप ऐसा बिल्कुल ना सोचे कि ग्रुप सदस्य की इसमें रुचि नहीं ।।। आपसे त्रिविध बोध्य संग्रह का महत्व रुग्ण अनुभव के आधार पर पढ़कर और दृढ़ हुआ गई और समझ में आ रहा है👏👏👏
[6/17, 6:51 AM] Dr.Pawan Madan Ji:
प्रणाम गुरु जी
आपने बिल्कुल सत्य कहा
अलग अलग कैसो का dd करना मेरा प्रिय विषय है।
इसी के लिए मुझे history से बहुत लाभ मिलता है। ये केस में भी मैं तुरंत ही चिकित्सा शुरू कर सकता था क्युके इस तरह के 100s ऑफ केसेस मेरे सामने स्व निकल चुके हैं पर फिर भी मुझे कुछ और भी बातें राह गयी थी जिसका समाधान ढूंढने की मेरी कोशिश है।
[6/17, 6:52 AM] Dr.Pawan Madan Ji:
आप दोनों गुरुवर द्वय ने बहुत से hint दे दिए हैं अब इस पर काम शुरू।
[6/17, 6:56 AM] Dr.Pawan Madan Ji:
Thanks a lot Ranga bro.
Will come to you later in the day.
[6/17, 8:21 AM] Dr.Shashi Jindal Chandigarh
Virudh dravyaas and leen doshas ;
Dravyas have gunas in three forms, tara, sama and tama bhavas.
We need dravyas of sama bhavas for physiological functioning of tree doshas.
When dravyas of tara bhavas of gunas are consumed they vitiate doshas and vyadhies appear.
But when dravyas with tama bhavas of gunas are concerned they vitiate doshas but in their potential energies not in their kinetic energies. They wait for proper potential to show lakshanas. These are leen doshas.
E.G. honey is ruksh lekhan and ghrit is snigdh santarpan, when they are consumed separatly, but when we mix them their gunas effect antagonistic to each other's gunas. And if they are mixed in equal they antagonise them completely, causing leen doshas. And if in unequal ratio, either of two will excel other's gunas, causing one effect properly, by antagonizing tara gunas of other.
🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼
This is my understanding of virudh dravyaas and leen doshas.
It becomes clear from sutra of Ch. Sut 26.
[6/17, 8:31 AM] Dr.Shashi Jindal Chandigarh:
leen doshas - low potential doshas.
Vitiated doshas- high potential doshas converting into kinetic doshas.
Sama doshas-having balanced potential and kinetic energies.
[6/17, 8:40 AM] Dr.Santanu Das: 👌🏻
[6/17, 8:53 AM] Dr.Shekhar Singh Rathore Jabalpur:
👌🏻👍🏻👍🏻✅
[6/17, 9:01 AM] Dr.Shashi Jindal Chandigarh:
👍🏼👌🙏🏼🌹🙏🏼
[6/17, 9:04 AM] Dr.Ashwani Kumar Sood Ambala:
Simplified ✅
[6/17, 9:07 AM] Dr.Shashi Jindal Chandigarh:
🙏🏼🌹🙏🏼
Sir I think not only nirharan, leen doshas are doshas which are getting sanchit in long duration of time, they are not in sancharanavastha, e.g. in greesham ritu due to rukshta and heat in season , vayu is getting sachit, but not vitiating due to ushan climate, but if someone uses lots of A.C. , sheet aahar vihar it can ? But in end of greesham it vitiates due to sheetata in weather.
🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🌹🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼
Am I right sir ?
[6/17, 9:08 AM] Dr.Shashi Jindal Chandigarh:
🙏🏼🌹
[6/17, 9:11 AM]Vaidyaraj Subhash Sharma Delhi:
*सच्चे आयुर्वेदज्ञ किसी से रूष्ट हो ही नही सकते, हंसी मजाक कई बार चलता रहता है। हमारा हर प्रयास रहता है कि आप सब आयुर्वेद मय हो जायें। कई वर्षों से मैने अनुभव लिया कि कई छात्र छात्रायें कभी कभी clinical ज्ञान लेने के लिये मेरे यहां आते हैं और वो BAMS कर चुके है या final year में हैं पर उन्हे कफ के क्रम से पांच भेद और स्थान भी नही ज्ञात, स्रोतस के विषय में और उनकी दुष्टि पर वो मूक है क्योंकि उन्होने परीक्षा में पास होने के लिये सब रटा था।जो कमियां उनमें रह गई या शिक्षा प्रणाली की भूल कहें, हमारा तो प्रयास यही है कि आप सभी उस स्तर पर आ जायें कि स्थापित आयुर्वेज्ञ बने नही तो आयुर्वेद का मूल स्वरूप धीरे धीरे खोता जा रहा है। बाजारवाद हावी है, marketing और self promotion से बिना डिग्री के बाबा, स्वामि लोगों को ही आयुर्वेद का जनक मान लिया गया है।*
[6/17, 9:20 AM] Dr.Santanu Das:
Sahi sir....bahut hi chhoti BAAT ki sidhanta ke anusar bitha liya jata he to treatment bahut easy ho jata hei jeise.....Agnimandya....ajirna mein Dipaka pachak ka Sahi use ......Kaphi phaida hota hei......🙏
[6/17, 9:36 AM] Prof.Lakshmikant Dwivedi Sir:
"Pramathya" -
pAribhAshik Shabda hai.
Pramathya ke yoga sutra Carak Samhita me hai.
Kintu Nirman Vidhan , simply kwatha ki tarah hai/or nahi bhi hai.
Ekiyamat me ye, mand Vishesh hai .
Iske nirman me Anna ka bhi upyoga hota Aaya hai. eaisi sthiti me, pramathya Bhaishaja siddha Aahar kalp banta hai.ref. SSMK -mustadi pramathya sans. comments, and Ayurveda saukhya TOdaranand.😁🙏🏽
[6/17, 9:46 AM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir:
(१) पिप्पलीमूलं दीपनीयपाचनीयानाहप्रशमनानाम्
(२) चित्रकमूलं दीपनीयपाचनीयगुदशोथार्श:शूलहराणाम्
(३) मुस्तं सांग्राहिकदीपनीयपाचनीयानाम्
(४) उदीच्यं निर्वापण दीपनीय- पाचनीयच्छर्द्यतीसारहराणां
(५)कट्वङ्गं (सोनापाठा) सांग्राहिकपाचनीयदीपनीयानाम्
(६) बिल्वं सांग्राहिकदीपनीयवाणकफप्रशमनानाम्
(७)अतिविषा दीपनीयपाचनीयसांग्राहिकसर्वदोषहराणां
(८) पृश्निपर्णी सांग्राहिकवातहरदीपनीयवृष्याणाम्
(९)अमृतासांग्राहिकवातहरदीपनीयश्लेष्मशोणितविबन्धप्रशमनानाम्
(१०)हिंगुनिर्यासश्छेदनीयदीपनीयानुलोमिकवातकफप्रशमनानाम्
(११)अम्लवेतसोभेदनीय- दीपनीयानुलोमिकवातश्लेष्महराणाम्
(१२)पिप्पलीपिप्पलीमूलचव्यचित्रकश्रृङ्गवेराम्लवेतसमरिचाजमोदाभल्लातकास्थिहिङ्गुनिर्यासा इति दशेमानि दीपनीयानि भवन्ति
(प्राध्यापक अरुण जी➡️भल्लातकास्थि➡️ दीपनीय)
(१३)प्रियङ्गवनन्ताम्रास्थिकट्वङ्गलोध्रमोचरससमङ्गाधातकीपुष्पपद्यकेशराणीति दशेमानि पुरीषसंग्रहणीयानि भवन्ति.
➡️ कृच्छं वा वहता दद्यात् अभयां संप्रवर्तिनीम् , तया प्रवाहिते दोषे प्रशाम्यति उदरामय: , जायते देहलघुता जाठराग्निश्च वर्धते.
➡️दीपनीय द्रव्यो में सर्व प्रथम पिप्पली उल्लेखित➡️
पिप्पलीनागरं धान्यं भूतीकमभया वचा, ह्वीवेरं भद्रमुस्तानि बिल्वं नागरधान्यकम्, पृश्निपर्णी श्वदंष्टाॣ च समङ्गा कण्टकारिका, तिस्र: प्रमथ्या विहिता : श्लोकार्धरतिसारिणाम् ➡️ प्रमथ्यां मध्यदोषाणां दद्यात्
➡️दीपनपाचनीम् .
वचाप्रतिविषाभ्यां (कफज अतिसार) वा मुस्तपर्पटकेन (पित्तज अतिसार) वा, ह्वीवेरश्रृङ्गवेराभ्यां (वातज अतिसार) पक्वं वा पाययेज्जलम् (षडङ्गविधिनाऽत्र जलसाधनं ज्ञेयम्)..
⬇️⬇️
➡️युक्तेऽन्नकाले क्षुत्क्षामं लघून्यन्नानि भोजयेत्. तथा स शीघ्रमाप्नोति रुचिमग्निबलं बलम् ..
⬇️⬇️
➡️तक्रेणावन्तिसोमेन यवाग्या तर्पणेन वा, सुरया मधुना चादौ यथासात्म्यमुपाचरेत्.
⬇️⬇️
➡️यवागूभि: विलेपिभि: खडै: यूषै रसोदनै:, दीपनग्राहिसंयुक्तै: क्रम: च स्यादत: परम् .
➡️क्रमश: यथोचित लंघन ➡️ दीपन ➡️पाचन➡️ग्राहि..
➡️मोहोऽल्पोऽग्निरतीसार उर्ध्वगेऽपानसंवृते, वाते स्याद्वमनं तत्र दीपनं ग्राहि चाशनम्..
➡️अपानेनावृते व्याने भवेद्विण्मूत्ररेतसाम्, अतिप्रवृत्तिस्तत्रापि सर्वं संग्रहणं मतम्.
➡️ अपानेनावृते सर्वं दीपनं ग्राहि भेषजम् , वातानुलोमनं यच्च पक्वाशयविशोधनम्.
⬆️⬆️ हरितकी प्रयोग ➡️ वातानुलोमनं पक्वाशयविशोधनम्.
⬇️⬇️
४ प्रकार की ग्रहणी, ६ प्रकार के अतिसार, पित्तावृत अपान, कफावृत अपान, अपानावृत उदान, अपानावृत व्यान
➡️रोगमादौ परीक्षेत् ततोऽनन्तरमौषधम्, तत: कर्म भिषक् पश्चाज्ज्ञानपूर्वं समाचरेत्.
यस्तु रोगमविज्ञाय कर्माण्यारभते भिषक्, अप्यौषधविज्ञानज्ञस्तस्य सिद्धिर्यदृच्छया.
यस्तु रोगविशेषज्ञ: (वैद्यराज सुभाष शर्मा जी) सर्वभैषज्यकोविद:, देशकालप्रमाणज्ञस्तस्य सिद्धिरसंशयम्..
⬇️⬇️
प्रायोगिक ज्ञान का विस्तृतीकरण ही अपेक्षित है ; कर्मदर्शनजनितज्ञान..
🙏🙏💐🌷🌹🙏🙏
[6/17, 9:53 AM] वैद्य मृत्युंजय त्रिपाठी उत्तर प्रदेश:
🙏🙏
[6/17, 9:53 AM]Dr.Ashwani Kumar Sood Ambala:
अतिउत्तम
[6/17, 9:57 AM] Vd.V.B.Pandey Basti(U.P.):
🙏 मेरे लिए ये note key के समान है ।गुरु वर।
[6/17, 9:57 AM]Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir:
*(१)कृतेऽप्यकृतसंज्ञ:*
*(२) स्निग्धं श्वेतं पिच्छिलं तन्तुमदामं गुरु दुर्गन्धं श्लेष्मोपहितमनुबद्धशूलम्*
*(३) अल्पाल्पमभीक्ष्णमतिसार्यते सप्रवाहिकम्* .
*(४) सदन*
*श्लेष्मातिसार*..
*भिन्नामश्लेष्मसंसृष्टगुरुवर्च:प्रवर्तनम्*,
*अकृशस्यापि दौर्बल्यमालस्यं च कफात्मके (ग्रहणी)*..
*भिन्नामश्लेष्मसंसृष्टगुरुवर्च:प्रवर्तनम्,
श्लेष्मणा संवृतेऽपाने कफमेहस्य चागम:*.
*संदर्भ ग्रन्थ - चरक संहिता चिकित्सा स्थान- १५, १९ , २८*
*साम मल* ;
*(१) मज्जत्यामा गुरुत्वाद्विट् पक्वा तूत्प्लवते जले, विनाऽतिद्रवसङ्घातशैत्यश्लेष्मप्रदूषणात्* .
*(२) विज्जलत्वामगन्धित्व प्रकारैर्लक्षणैस्तस्योरप्या मातिसार रुपावस्था ज्ञेयैव.*
*संदर्भ ग्रंथ- चरक संहिता चिकित्सा स्थान , १५,१९*
*लीनं(अनुक्लिष्टम्) पक्वाशयस्थं वाऽऽप्यामं स्राव्यं (इति विरेचनीयम्)सदीपनै:*
*च.चि.१५*
*स्राव्यं सदीपनै:, दीपनद्रव्यसंयुक्तै: विरेचनप्रयोगै:*
*सर्वदेहानुगा:(सूक्ष्मसिरात्वगाद्यनुगता:) सामा(सामत्वेन स्त्याना अप्रचलाश्च) धातुस्था(धातुषु अत्यन्तानुप्रवेशव्यवस्थिता:) असुनिर्हरा:, च.चि.३*
*(१) पिप्पलीमूलं दीपनीयपाचनीयानाहप्रशमनानाम्*
*(२) चित्रकमूलं दीपनीयपाचनीय गुदशोथार्श: शूलहराणाम्*
*(३) मुस्तं सांग्राहिकदीपनीयपाचनीयानाम्*
*(४) उदीच्यं निर्वापण दीपनीय- पाचनीयच्छर्द्यतीसार हराणां*
*(५)कट्वङ्गं (सोनापाठा) सांग्राहिकपाचनीय दीपनीयानाम्*
*(६) बिल्वं सांग्राहिकदीपनीयवाणकफप्रशमनानाम्*
*(७)अतिविषा दीपनीयपाचनीयसांग्राहिकसर्वदोषहराणां*
*(८) पृश्निपर्णी सांग्राहिकवातहरदीपनीयवृष्याणाम्*
*(९) अमृता सांग्राहिकवातहर दीपनीयश्लेष्मशोणित विबन्धप्रशमनानाम्*
*(१०) हिंगुनिर्यासश्छेदनीयदीपनीयानुलोमिक वातकफ प्रशमनानाम्*
*(११) अम्लवेतसो भेदनीय- दीपनीयानुलोमिक वातश्लेष्महराणाम्*
*(१२) पिप्पलीपिप्पलीमूलचव्य चित्रकश्रृङ्गवेराम्लवेतस मरिचाजमोदाभल्लातकास्थिहिङ्गुनिर्यासा इति दशेमानि दीपनीयानि भवन्ति*
*(१३)प्रियङ्गवनन्ताम्रास्थिकट्वङ्गलोध्रमोचरससमङ्गाधातकीपुष्पपद्यकेशराणीति दशेमानि पुरीषसंग्रहणीयानि भवन्ति*.
➡️ *कृच्छं वा वहता दद्यात् अभयां संप्रवर्तिनीम्, तया प्रवाहिते दोषे प्रशाम्यति उदरामय:, जायते देहलघुता जाठराग्निश्च वर्धते*.
*➡️*दीपनीय द्रव्यो में सर्व प्रथम पिप्पली उल्लेखित*➡️*
*पिप्पलीनागरं धान्यं भूतीकमभया वचा, ह्वीवेरं भद्रमुस्तानि बिल्वं नागरधान्यकम्, पृश्निपर्णी श्वदंष्टाॣ च समङ्गा कण्टकारिका, तिस्र: प्रमथ्या विहिता* : श्लोकार्धरतिसारिणाम् ➡️ प्रमथ्यां मध्यदोषाणां दद्यात्
➡️दीपनपाचनीम् .
*वचाप्रतिविषाभ्यां (कफज अतिसार) वा मुस्तपर्पटकेन (पित्तज अतिसार) वा, ह्वीवेरश्रृङ्गवेराभ्यां (वातज अतिसार) पक्वं वा पाययेज्जलम् (षडङ्गविधिनाऽत्र जलसाधनं ज्ञेयम्)*..
⬇️⬇️
*➡️*युक्तेऽन्नकाले क्षुत्क्षामं लघून्यन्नानि भोजयेत्. तथा स शीघ्रमाप्नोति रुचिमग्निबलं बलम्*..
⬇️⬇️
*➡️तक्रेणावन्तिसोमेन यवाग्या तर्पणेन वा, सुरया मधुना चादौ यथासात्म्यमुपाचरेत्*.
⬇️⬇️
*➡️यवागूभि: विलेपिभि: खडै: यूषै रसोदनै:, दीपनग्राहिसंयुक्तै: क्रम: च स्यादत: परम्* .
*➡️क्रमश: यथोचित लंघन ➡️ दीपन ➡️पाचन➡️ग्राहि*..
*➡️मोहोऽल्पोऽग्निरतीसार उर्ध्वगेऽपानसंवृते, वाते स्याद्वमनं तत्र दीपनं ग्राहि चाशनम्*..
*➡️अपानेनावृते व्याने भवेद्विण्मूत्ररेतसाम्, अतिप्रवृत्तिस्तत्रापि सर्वं संग्रहणं मतम्*.
*➡️ अपानेनावृते सर्वं दीपनं ग्राहि भेषजम् , वातानुलोमनं यच्च पक्वाशयविशोधनम्*.
*⬆️⬆️ हरितकी प्रयोग ➡️ वातानुलोमनं पक्वाशयविशोधनम्*.
⬇️⬇️
*४ प्रकार की ग्रहणी, ६ प्रकार के अतिसार, पित्तावृत अपान, कफावृत अपान, अपानावृत उदान, अपानावृत व्यान*
*➡️रोगमादौ परीक्षेत् ततोऽनन्तरमौषधम्, तत: कर्म भिषक् पश्चाज्ज्ञानपूर्वं समाचरेत्*.
*यस्तु रोगमविज्ञाय कर्माण्यारभते भिषक् , अप्यौषधविज्ञानज्ञस्तस्य सिद्धिर्यदृच्छया*.
*यस्तु रोगविशेषज्ञ: सर्वभैषज्यकोविद: , देशकालप्रमाणज्ञस्तस्य सिद्धिरसंशयम्*..
⬇️⬇️
*प्रायोगिक ज्ञान का विस्तृतीकरण ही अपेक्षित है* ; *कर्मदर्शनजनितज्ञान*..
🙏🙏💐🌷🌹🙏🙏
*संदर्भ ग्रंथ - चरक संहिता- आयुर्वेद दीपिका व्याख्या*
[6/17, 9:59 AM]Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir:
*एक चिकित्सक- प्राध्यापक का आचार्य चरक एवं आचार्य चक्रपाणी को कोटिश: नमन*
🙏🙏💐🌷🌹🙏🙏
[6/17, 10:00 AM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir:
*शुभ प्रभात वैद्यराज सुभाष शर्मा जी एवं आचार्य गण नमो नमः !💐💐*
🙏🙏
[6/17, 10:04 AM] Dr.Shashi Jindal Chandigarh:
👏👏👏👏👏👌👌👌👌👍🏼👍🏼🙏🏼🌹🙏🏼
[6/17, 10:17 AM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir:
*आचार्य चक्रपाणी; प्रायो रक्तमिति रक्तं दूषयन् मांसादि चाल्पं दूषयतीत्यर्थ:*
*अभिघातजे ➡️ वायु: ➡️ प्रायो रक्तं प्रदूषयेन् ➡️ रक्त, मांस , मेद अस्थि , मज्जा, संधि ➡️ व्यथा शोफ वैवर्ण्यं रुजं ज्वरं भेदोऽस्थिपर्वणां सन्धिशूलं मांसबलक्षय: प्रसारणाकुञ्चनयो: प्रवृत्तिश्च सवेदना हर्ष: पिपीलिकानां संचार विनाम: इत्यादि लक्षण*
[6/17, 10:18 AM] DR. RITURAJ VERMA:
धान्याकातिविषोदिच्य यवानीमुस्तनागरम् ।
बलाव्दिपर्णीबिल्वं च दघाद्दीपनपाचनम्।।
[6/17, 10:28 AM] DR. RITURAJ VERMA:
शुण्ठीं समुस्तां सविषा गुडूचीं पिबेज्जलेन क्वथिता समांशाम्।
मन्दानलत्वे सततामतायामामेनुबन्धे ग्रहणी गदे च।।
मन्दाग्नि ,सवर्दा आमकोष्ठता, आम का अनुबंध हो, ग्रहणी विकार में पान उपयुक्त है।
[6/17, 1:11 PM] DR. RITURAJ VERMA:
ग्रहनिमाश्रितं दोषमजीर्णवदुपाचरेत्।
अतीसारोक्तविधिना तस्यामं च विपाचयेत्।।
वागभट्ट जी elaborates pathogenesis of ग्रहणी- अग्निमांध and consequent generation of आम .
*Pathogenitic considratiin*---
अतिसारे निवृते अपि मन्दागने रहिताशिन:।
भूय: संदूषितो वन्हिग्रहणीभिदुषयेत।।
ऐकैकश: सर्वशश्च दोषैरत्यर्थमूर्छितै:।
सा दुष्टा बहुशो भुक्तमाममेव विमुन्चति।।
पक्वं वा सरूजं पूति मुहुर्बधं मुहुद्रवम्।
ग्रहणी रोगमाहुस्तमायुर्वेदविदो जना:।। (मा.नि.4/1,2,3)
*Prodromal features:*--
प्रग्रुपं तस्य सदनं चिरात्पचनमम्लक:।
प्रसेको वक्त्रवैरस्यमरूचिःतृट् भ्रमः क्लमः।।
आनधोदरता छर्दिः कर्णक्ष्वेडो आन्त्रकूजनम्।
(आ.हॄ.नि.8/19,20)
*वातज ग्रहणी*
कटुतिक्तकषायातिरुक्षसंदुष्टभोजनैः।
प्रमितानशनात्यध्ववेगनिग्रहमैथुनै:।।
मारुत:कुपितो वन्हिं संछाघ कुरूते गदान्।।(मा.नि.4/5)
संदुष्टभोजनं संयोगादि विरूधभोजनम्।
प्रमितमल्पभोजनम्। अनशनमुपवासः।।(मधुकोश:)
*पित्तज ग्रहणी*
कत्वजीर्णविदाविह
अम्लक्षाराघैः पित्तमुल्बणम्।
आप्लवयेत् हन्ति अनलं जलं तप्तमिवालम्।।(मा.नि.4/12)
यथोष्णगुणयुक्तमपि जलमनलं हन्ति, तथा द्रवांशेन परिवृधं पित्तमूष्मरूपमग्नि हन्त्येवेति।।
(मधुकोश:)
*कफज ग्रहणी*
गुर्वतिस्निग्धशीतदिभोजनादति
भोजनात्।
भुक्तमात्रस्य च स्वप्नात् हन्त्यग्निं
कुपित: कफ:।।(मा.नि.4/13)
भुक्तवतां दिवास्वापो अत्यन्त कफवृध्या अग्निं हन्ति, अभुक्तवतां तु समधुक्षयति।
(मधुकोश:)
[6/17, 1:26 PM] Prof.Giriraj Sharma Sir Ahamadabad:
🙏🏼🙏🏼👍🏻🌹🙏🏼🙏🏼
नमन आचार्य श्री
ग्रहणी का विवेचन किया आपने धन्यवाद
मेरी जिज्ञासा आप सभी से संग्रहणी के परिपेक्ष्य में है ,,,,
*दिवाप्रकोपो भवति ,,,,,,,*
संग्रहणी में दिन पर प्रकोप होता है रात्रि में शांति रहती है, इसका क्या कारण हो सकता है आयुर्वेद एवं आधुनिक परिपेक्ष्य में ,,,,,
🙏🏼🙏🏼🙏🏼🌹🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼
[6/17, 1:26 PM] Dr.Shashi Jindal Chandigarh:
Overwork, enthusiasm is the cause of vata vaigunya, specially in greesham ritu, sir must take rest, both physical and mental. He will be fine in 2 - 3 days.
🙏🏼🙏🏼🙏🏼🌹🙏🏼🙏🏼🙏🏼
[6/17, 1:48 PM] DR. RITURAJ VERMA:
प्रणाम गुरुवर
शाम को इस संदर्भ में कुछ लिखता हूँ।
[6/17,3:21PM]Dr.Ashwani Kumar Sood Ambala:
Very important question for making differential diagnosis in all chronic cases of जीर्ण संग्रहणी, answer to this decides line of treatment in all those pts getting Rx here and there without significant relief
[6/17, 3:45 PM] Prof.Arun Rathi sir:
*किसी भी व्याधी को समझने के लिए एवं उसकी चिकित्सा करने के लिए रोगमार्ग, स्रोतस, दोषदूष्यसंमूर्च्छणा आदि निदानपंचक का ज्ञान होना ज़रूरी है.*
*उसी तरह विकारावस्था के पूर्व प्राकृतावस्था का ज्ञान आवश्यक है.*
*प्रकृतिज्ञानानन्तरत्वाद् विकृतज्ञानस्य।*
चरक.चि.१५ / ३ से १४ पर चक्रपाणि.
*" Medicine Is What Physiology Makes It "*
*आयुर्वेद क्रियाशारीर का Applied Aspect Of Physiology का ७० - ८० प्रतिशत तक वर्णन यह चरक चिकित्सा स्थान के अध्याय - १५ ग्रहणीदोष चिकित्साध्याय और अध्याय - २८ वातव्याधी चिकित्साध्याय मे मिलता है.*
*ग्रहणीदोष अध्याय मे अग्निकार्य, अग्निदुष्टी, अाहरपचन, अवस्थापाक, विपाक, अन्नरस निर्माण, जठाराग्नि, भुताग्नि, धात्वाग्नि व्यापार, धातु उत्पत्ती, धातु पोषण, ओज उत्पत्ती का वर्णन मिलता है.*
*वातव्याधी अध्याय मे वात प्रकार, दोषधातुगत वात लक्षण और वात आवरण लक्षण यही मिलते है.*
*रोग चिकित्सा करने हेतु इन दोनो अध्याय मे वर्णित शरीरक्रिया के मौलिक सिध्दांतों का ज्ञान आवश्यक है.*
*Here only we get the maximum Applied Aspects.*
[6/17, 4:19 PM] Vd.V.B.Pandey Basti(U.P.):
🙏यदि संभव हो तो बताइएगा कि किस प्रकार वात वयाधी में निदान कर चिकित्सा करें ।
[6/17, 4:37 PM] DR. RITURAJ VERMA:
*संग्रहणी*
आन्त्रकूजनमालस्यं दौर्बल्यं सदनं तथा।
द्रवं शीतं घनं स्निग्धं सकटीवेदम् शकृत्।।
आमं बहु सपैचिल्यं सशब्दं मन्दवेदनम्।
पक्षाद्मासाद्दशाहाव्दा नित्यं वाप्यथ मुन्चति।।
दिवा प्रकोपो भवति रात्रौ शान्ति व्रजेच्च या।।
(मा.नि.4/17)
[6/17, 4:44 PM] DR. RITURAJ VERMA:
*आम acc. to योगरत्नाकर*
अत्याहारस्य संक्षोभाव्दिदग्धाहारमूरछितात्।
स्थानात्प्रमुच्यते श्लेष्मा आममित्याभिधीयते।।
[6/17, 5:23 PM] DR. RITURAJ VERMA:
सा भवेदामवातेन संग्राह ग्रहणी मता।
आमसंसृष्ट प्रकुपित वात के कारण संग्रहणी होती है।
[6/17, 5:56 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Delhi:
*विकार अवस्था से पूर्व प्राकृत ज्ञान आवश्यक है बिल्कुल सही बात डॉ राठी जी , सब से पहले तो यही पता होना चाहिये कि स्वस्थ मनुष्य आखिर है क्या ?*
👌👌👍👍🙏
[6/17, 5:56 PM] Dr.Pawan Madan Ji:
👌🏻👌🏻
आपका क्या विचार एवं अनुभव है ऋतुराज जी।।🙏
[6/17, 7:10 PM] Dr.Pawan Madan Ji:
*एक पुरुष रोगी 50 वर्ष*
*,,,दो साल से अम्ल उद्गार ज्यादातर दोपहर के भोजन के बाद, रात के भोजन के बाद भी होते हैं*
*,,,दो साल से दिन में 3 से 4 बार मल प्रवृत्ति, ये प्रबृत्ति पूरे दिन में होती है, केवल सुबह 10 या 11 बजे तक नही*
*,,,मल सख्त या कठोर नही बल्कि semi solid type का रहता है*
*,,,शरीर मे आलस्य व भारीपन भी रहता है*
*,,,शरीर मे ऊर्जा की कमी महसूस होती है*
*,,,सुबह के समय भूख नही लगती पर दोपहर तक खाने का मन हो जाता है या भूख लग जाती है पर जैसे ही खाना खा लेता है, तकलीफ बढ़ जाती है*
*,,,खाना न खा के ज्यादा अच्छा महसूस करते है*
*Past history*
*,,रुग्ण को पिछले 15 से 20 सालों से दिन में दो बार माल प्रवृत्ति की आदत है जी और ये मल का स्वरूप अधिकतर नार्मल है*
*,,,कब्ज की शिकायत कभी नही हुई*
*,,,घर मे आम तौर पर मध्यम स्तर का तीखा खाना खाते रहे है*
*,,,मल त्याग के पश्चात भी incomplete evacuation की फीलिंग बानी रहती है*
*,,,No smoking, No drinking, No non veg ever*
*....अमलाउद्गार कोई भी ppi लेने से कुछ समय के लिए ठीक हो जाती है*
*,,,रोगी को रात को बहुत भूख लगती है और वो रात को एक heavy meal लेता है जैसे के 4 चपाती एवं चावल भी। एक interesting बात,,, उसको रात का खाना खाने के लगभग 1 या 1.5 घंटे के बाद फिर भूख लगती है और उसको कुछ न कुछ जरूर खाना पड़ता है जैसे कि ब्रेड जैम या मैग्गी या कुछ और*
*,,,पिछले 4 से 5 साल से रोगी रोज रात को एक प्लेट तरबूज कहा कर सोता है चाहे सर्दी हो या गर्मी। इस से उसको लगता है के कुछ आराम मिलता है।*
*,,,मल में अपक्व अन्न नही मिलता*
*,,जिह्वा,, अल्प आम युक्त*
*Samprapti,,,*
*दोष,,,कफ प्रधान त्रिदोष*
*दूषय,,,रस, रक्त, मल*
*अग्नि,,,विषम*
*कोष्ठ,,,,मृदु*
*सरोतस,,, अन्न वह एवं पुरीष वह*
*Srotodushti,,, अति प्रवृत्ति*
*अत्यधिक विरुद्ध आहार सेवन*
*+ अन्नवह स्रोतों में खवैगुनय(बचपन से अन्न वह स्रोतों दृष्टि के जीर्ण हेतुओं का सेवन)*
>>>>
*जीर्ण अग्निमांद्य*
>>>>
*अत्यधिक आम विष की उत्तपत्ति*
>>>>
*आमविष का सर्व धातुओं में प्रसार*
>>>>
*आम विष वृद्धि व अत्यधिक मधुर गुरु आहार के जीर्ण सेवन से क्लेद वृद्धि*
>>>>
*कृमि उत्तपत्ति*
>>>>
*ऋतु, अवस्था, या अन्य फैक्टर्स के अनुसार अलग अलग लक्षणों की उत्तपत्ति*
*चिकित्सा सूत्र*
*कृमिहर चिकित्सा*
*गुरुवर्य सुभाष जी एवं ओझा सर का बहुत बहुत धन्यवाद जी आज उन्होंने मुझे झकझोरा एवं इस प्रकार से सोचने के प्रवृत्त किया। ये केस जो दो दिन से परेशान कर रहा था, मेने उसे इस तरह समझा। गुरु जी आपसे प्रार्थना है आप चेक करें व मार्गदर्शन करें।*
मेरी समस्या ये थी के ऐसे बहुत से कैसो में मैं दीपन पाचन ग्राही चिकित्सा सूत्र से चिकित्सा कर चुका है पर ज्यादा सफलता नही मिली।
गुरुवरयो का बहुत बहुत आभार।
इस के परिणाम भिबाने वाले दिनों में रखूंगा।
रोगी का खान पान भी ठीक करूँगा।
🙏🙏🙏🙏
[6/17, 7:36 PM] Prof.Lakshmikant Dwivedi Sir:
Atisaar me lavanke yogo ka pryog alpa or Nahi prayujya hai , viparit iske Grahani me prayah lavanvale vale yog adhik sanstut hai.
Antra kshobhak batate huve lavan ko Atisaar me jyada prayog sanstut Nahi Kiya
Viparit Grahani me prayah lavanvale yog sutra hai.( Ye vicar CD ke hai.)😁🙏🏽👍
[6/17, 7:46 PM] Deep Narayan Pandey Sir:
*अत्यंत महत्वपूर्ण केस आपने साझा किया है डॉक्टर पवन मदान जी।*
आप निश्चित रूप से इस रोगी के चेहरे पर मुस्कुराहट ला सकेंगे।
हालांकि चिकित्सा पर मुझे लिखना नहीं चाहिए लेकिन मुझे लगता है कि एक सुझाव मैं दूंगा जिस पर आप चिंतन मनन करिएगा।
एक तरफ इस रोगी को दो किस्तों में व्यायाम दिन में आवश्यक है और दूसरी तरफ सुबह नित्य क्रिया इत्यादि से निवृत्त होकर नहा धोकर प्रथम भोजन मजबूत करने के लिए सुझाव पर विचार करिए। यह रोगी जैसे ही कालभोजी होगा सभी संकट समाप्त हो जाएंगे। कालभोजी से मेरा तात्पर्य प्रातः और सायं के भोजन से है। बीच-बीच में खाने की आदत को तिलांजलि देनी होगी। तीन-चार दिन में एडजस्ट हो जाएगा। जहां तक योग का प्रश्न है त्रिफला, त्रिकटु और यष्टिमधु (भोजन के पूर्व) इस व्यक्ति की समस्या का समाधान कर देंगे। ऐसा मेरा विश्वास है।
[6/17, 7:48 PM] Deep Narayan Pandey Sir:
एक बात थोड़ा उल्टा लिखूंगा। इस व्यक्ति की आप चाहे जितनी चिकित्सा कर लें, बिना कालभोजी हुए परमानेंट समाधान नहीं मिलेगा।
[6/17, 7:52 PM] Dr.Dinesh Chand Katoch Sir:
Prakriti lakshan ( vikar) aushadhiyon se theek nahin hote. Aaharcharya theek karani hogi.
[6/17, 8:52 PM] Dr.Pawan Madan Ji:
प्रणाम सर (Deep Narayan Pandey Sir)
बहुत अच्छा सुझाव है।
अवश्य ध्यान रखूंगा।
💐💐
[6/17, 8:53 PM] Dr.Pawan Madan Ji:
जी सर।।
🙏🙏🙏💐💐
[6/17, 8:53 PM] Dr.Aruna Ojha M.D(KC) Raipur:
सर रात्रि काल में अग्नि स्वभाव से ही गुरु आहार का पाक नहीं कर पाती है रोगी को लघु आहार का सेवन करना चाहिए ।लेकिन निदान देखने से यह स्पष्ट हो रहा है कि रोगी रात्रि काल में प्रकृति और मात्रा दोनों में ही गुरु आहार का सेवन करता है साथ हीअध्यशन भी करता है। जिससे विदग्धाजीण की स्थिति बनी रहती है ।
अतः मेरे विचार से चिकित्सा में सर्वप्रथम निदान परिवर्जन आवश्यक है🙏🙏🙏
[6/17, 8:56 PM] Dr.Pawan Madan Ji:
जी सर
सही
पर एक सवाल है
उसकी अग्नि रात्रि के समय क्यों बढ़ रही है
और उनको रात को ज्यादा भूख क्यों लगती है
🤔
[6/17, 8:58 PM] वैद्य मृत्युंजय त्रिपाठी उत्तर प्रदेश:
पवन सर जी प्रणाम क्या ऐसा नहीं लगता कि ग्रहणी की तरफ या रोगी जा रहा है या जा चुका है क्योंकि ग्रहणी के पूर्व रूप में भी इस तरह की परेशानी का पूरा लक्षण दिखता है मुझे लगता है कृमि सर चिकित्सा के साथ
ग्रहणी को बल देने के लिए चिकित्सा दी जाए जिससे समानवायु और पाचकाग्नि दोनों ठीक हो जाए
ऐसा मैं सोचता हूं , अगर गलत हो तो क्षमा और मार्गदर्शन करें मुझे 🙏🙏
[6/17, 8:58 PM] Dr.Aruna Ojha M.D(KC) Raipur:
Sir wo false appetite bhi ho sakti hai. Jo shayad pani peene se khatm ho jaye🙏
[6/17, 9:00 PM] Dr.Deep Narayan Pandey Sir:
इस व्यक्ति में *सदाआतुर* के सारे लक्षण हैं। उसी तरह की चिकित्सा व्यवस्था आप को संभालनी पड़ेगी।
[6/17,9:06PM]Dr.RaviKant Prajapati (M.D) Prayagraj:
Pranam sir🙏🙏
Aisi condition mujhe Kaphavritta Pitta me dekhne ko mili hai........
Guluchyadi kashayam aur sutshekhar ras se mujhe achhe result mile the...🙏
[6/17, 9:25 PM]वैद्य नरेश गर्ग :
नमस्कार सर मेरे मत के अनुसार यह विदग्धाजीर्ण का केस है और इस केस में निदान परिवर्तन की आवश्यकता है शाम का खाना अधिक मात्रा में लेने की वजह से भी उसको प्रॉब्लम हो रही है
[6/17, 9:25 PM] Dr.Pawan Madan Ji:
आपकी बात सही है
पर जैसा मैंने कहा के मेने ऐसे कई कैसो में ग्रहणी हर चिकित्सा की है पर समुचित उपशय नही मिला
[6/17, 9:26 PM] Dr.Pawan Madan Ji:
Asal me samprati yahi hai
Aap dhyaan de....Maine aise hi likha hai
[6/17, 9:27 PM]Dr.Sunil Kumar jain , Delhi :
Thought process gives anxiety
Anxiety gives false appetite
In any given time ( day or night )
💐
[6/17, 9:29 PM] वैद्य नरेश गर्ग:
रोगी को अनिद्रा या चित्तविभ्रम की शिकायत भी रहती है क्या
[6/17, 9:30 PM] Dr.Pawan Madan Ji:
ना
[6/17, 9:36 PM] Prof.Arun Rathi:
*अतिसार, प्रवाहिका और ग्रहणी रोग मे चिकित्सा व्यवस्थापन यह अग्नि बल, रोगावस्था, रोगी बल, रोगी आयु के अनुसार होनी चाहीए.*
*अतिसार*
*दोष - दुष्य अधिष्ठान :*
*दोष : त्रिदोष.*
*दुष्य : उदक, जलीय धातु, उपधातु,*
*मल.*
*स्त्रोतस : अन्नवह, पुरिषवह, रसवह.*
*अधिष्ठान : महास्त्रोत.*
*रोगमार्ग : अभ्यन्तर.*
*हेतु : प्रकारानुसार स्पष्ट एवं विस्तार से संहिताओं मे वर्णित है.*
*क्रिमी दोष को भी हेतु माना है.*
*दो आगन्तुक अतिसार,भयज और शोकज भी कहे है.*
*इनके हेतु मुख्यतः मानस दोष प्रकोप है.*
*अतिसार सामान्य सम्प्राप्ति :*
*संशम्यापां धातुरग्निं प्रवृद्धः शकृन्मिश्रा वायुनाsघः प्रणुन्नः।*
*सरत्यतीवातिसारं तमाहुर्व्याधिं घोरं....।।*
माधव अतिसारनिदानम् - ४.
*चरक मे वातज अतिसार के सम्प्राप्ति मे कुछ विशेष उल्लेख है.*
*......वेगान् वायुः प्रकोपमापद्यते, पक्ता चोपहन्यते, स वायुः, कुपितोsग्नावुपहते मूत्रस्वेदौ पुरीषाशयमुपहृत्य, ताम्यां पुरीषं द्रवीकृत्य, अतीसाराय प्रकल्पते।*
च. चि. अ. १९ - ५.
*अतिसार रोग की सम्प्राप्ति मे निम्न घटकों पर विशेष ध्यान दिया गया है*
# *त्रिदोषज होते हुए भी, वात दोष पर विशेष बल.*
# *अग्निमांद्य.*
# *शरीरस्थ आप वर्गीय धातु, उपधातु, मल की दुष्टी.*
# *जठराग्नि पाचन प्रक्रिया में उत्पन्न जल वर्गीय स्वेद और मूत्र पोषकांश का विमार्ग गमन होना और उनका पक्वाशय से आचुषण न होना.*
*अग्निमांद्य के कारण पच्यमानावस्था मे प्रतिलोम वायु की उत्पत्ति होने के कारण आहार रस, आहर मल का विमार्ग गमन या कहे एक दुसरे से विष्टम्भ या विबन्ध होना।*
*वात के परस्पर आवरण दोष के कारण ➡️ अन्नवह, पुरीषवह, रसवह स्त्रोतस की दुष्टी होकर लक्षण या व्याधी उत्पत्ति.*
# *समानावृत अपान :*
*समानेनावृतेsपाने ग्रहणी पार्श्वहृद्गदाः।।*
*शुलं चामाशये........।*
च. चि. २८ - २०५, २०६.
# *अपानावृत उदान :*
*मोहोsल्पोsग्निरतीसार ऊर्ध्वगेsपानेसंवृते।।*
च. चि. २८ - २१०.
# *अपानावृत व्यान :*
*अपानेनावृते व्याने भवेद्विण्मूरेतसाम्।।*
*अतिप्रवृत्तिस्तत्रापि.......।*
च. चि. २८ - २१२, २१३.
*वात के आवरण दोष से वातवाहिनीया एवं पेशीया प्रभावित होती है. इसी कारण शरीरस्थ दोषधातुमलादि मे विबन्ध उत्पन्न होता है।*
*CNS, regulation of sympathetic and parasympathetic control of Gastrointestinal ( GI ) Function. :*
*Athough the gastrointestinal track (GI ) possesses intrinsic neural plexus, that allow a significant degree of autonomy over gastrointestinal functions.*
*The CNS provides extrinsic neural inputs that regulate, modulate and control these function.*
*While the intestine are capable of functioning in the absence of extrinsic inputs, the stomach and oesophagus are much more dependent upon extrinsic neural inputs particularly from parasympathetic and sympathetic pathway.*
[6/17, 9:44 PM] DR. RITURAJ VERMA:
वातज ग्रहणी में सर्व रस खाने की इच्छा होने के 3 कारण
1- वात के विषम गुण के कारण कभी ये कभी वो खाने की इच्छा होना
2- मुहूर्बध, मुहूद्रव मल प्रवृत्ति के कारण विपरीत रस की इच्छा
3- वातज ग्रहणी जीर्ण होने पर कृमि उत्तपन्न होजाते है तब मधुर रस की इच्छा
[6/17, 9:47 PM] Dr.Dinesh Chand Katoch Sir:
Agnidusti mein matravat, laghu aur kaalbhojan hi pathya hai.
[6/17, 9:48 PM] Dr.Kapil Kapoor sir
सर रात को अग्निबढने के स्थान पर ये भी कहा जा सकता है कि उसके कोष्ठ में वात बढ़ रही है।
Causing
False appetite.
[6/17, 9:57 PM] Dr.Pawan Madan Ji:
✅✅✅
[6/17, 9:58 PM] Dr.Pawan Madan Ji:
विचारणीय
[6/17, 10:01 PM] DR. RITURAJ VERMA:
वातज ग्रहणी में after motion भूख लगती है वात ⬆️ के कारण
[6/17, 10:18 PM] DR. RITURAJ VERMA:
जीर्ण ग्रहणी - intestine में शैथिल्य एवं दुर्बलता आजाती है।
[6/17, 10:24 PM] DR. RITURAJ VERMA:
सुतशेखर -साम एवं निराम पित्त पर कार्य- विकृतिविषमसमवाय द्वारा कार्य करेगा
शंख- पित्त पचन को प्राकृत करेगा,क्षोभ भी नही होने देता
रक्तपाचक- ग्रहणी रक्त के किट्ट भाग से बनी है
रसराज रस- जीर्ण ग्रहणी अकाल ageing रसायन कार्य
ताप्यादि - योगवाही
[6/17, 10:44 PM] वैध आशीष कुमार:
प्रणाम गुरुदेव पवन सर,क्या ऐसा होना *अभ्यास* से सम्भव है जैसे तरबूज का सेवन(नित्य सेवनीय नहीं) और रात्रि में दो बार खाना और सुबह भोजन न करना।क्योकि लगातार लंबे समय तक हम ऐसा करेंगे तो शरीर मे वही सात्म्य हो जाएगा क्या🙏🏻🙏🏻
[6/17, 10:48 PM] Prof. Satish Panda M.D.( K.C)
Uttarpradesh:
विषमाग्नि के कारण रात को भोजन अधिक लग रही हैं, जैसा प्रतीत हो रहा है।
ईसब गोल की भूसी को मिश्री के साथ मिला कर, रात को खाने के उपरांत दे, जिससे भुख की इच्छा कम होगी रात 9 से 10 बजे तक सोने को तथा सुबह 4am को बिस्तर छोड़ने को कहें।
सुबह गरम पानी, व्यायाम, आसान आदि का अभ्यास करने को कहें।जिससे सुबह भी भुख लगना शुरू हो जाएगी।
प्रवाल पंचा मृत, पंचामृत पर्पटी, संजीवनी वटी, कुटज घन वटी, रामबाण, चित्रकादि वटी आदि का प्रयोग करें।🙏🏻
[6/17, 11:04 PM] DR Narinder paul
J&k: *Grahni mein rogi ki पचं कर्मेंद्रियों vikrit rehti hai..uchit arth ko vo grahn nhi kar pati, phalswaroop rogi mithya aahar vihar karta hai..har ek grahni patient ka bhojan ke प्रति ek apna mithya sidhant hota hai..उसे lagta hai ki eska पालन karne se uska swasthye zyada वदतर nhi hota..वह आहार hmesha apni प्रकृतिक iccha ke viprit karta hai,kyunki aasatmaye indriyearth sanyog aur मन के ईतना zyada vikriti hone ke vjah se vo प्रकृतिक iccha ko pehchan hi ni pata..indrio ke मामले mein ek bat clear hai aap thoda sa इसे विगाड दो phr इसे sambhalna bhut mushkil ho jata hai..vaidya ke pass jane par साम और निराम avastha mein ghumta rehta hai.vaidya ke dwara pathya apathya btaye jane par bhi vo use follow nhi kar pata,kyunki chit bhut asthir rehta hai..yha pe sirf ek chikista kam aati hai aur vo hai satwavajaye chikista..har ek followup mein use esi ki dose deta hoon,use khud ka vaid bnne ki motivation deta hoon..kaise apni indrio ko vash mein karke aatma ki sun k aahar lene ko kehta hoon..hosh mein kaise jeena hai iski counselling karta hu..kyunki mera aisa manna hai ki oushadiye chikista grahni mein sirf symptomatic aaram de skti hai..puran aaram toh tabhi aata hai jab rogi nidan shi karta hai,apna aahar shi karta hai..*
*जितेन्द्रिय shabd jiska acharye charak ne bar bar use kia aahar lene ke samye वही grahni chikista ki कुंजी है।*
*जितेन्द्रिय hone jo 18 prakar ke virudh aahar hai vo khud va khud follow hone lg pdte hai..*
*सारा खेल जितेन्द्रिय होने का है।और इसे विना सत्व को साधे पाया नही जा सकता।*
[6/17, 11:04 PM] Dr.Pawan Madan Ji:
Ji.....Dhanyvad...vichaar karta hoon
[6/17, 11:05 PM] Dr.Pawan Madan Ji:
पर ये सात्म्य प्रतीत नही होता
[6/17, 11:07 PM] वैध आशीष कुमार:
🙏🏻🙏🏻💐💐गुरुदेव चित्त की ऐसी अवस्था मे कैसे सत्वावजय चिकित्सा करना चाहिए🙏🏻🙏🏻
[6/17, 11:07 PM] Dr.Pawan Madan Ji:
विशमाग्नि 👍🏻
इसबगोल + मिश्री 👌🏻
सुबह 4 बजे उठने वाली बात possible नही
[6/17, 11:10 PM] DR Narinder paul
J&k: *Apko eski liye dharm shastra ka सहारा lena pdta hai..rogi ki aatma tak jana pdta hai..par yeh tabhi ho skta hai jab aapka chit bhi sthir ho..*
*Grahni aarsh udar rog paap karmj janye vyadhi hai..dev karm ka bda strong relation rhta hai isme..isliye dharm shastr ko sadhe bina es pr vijay nhi prapt ki ja sakti..*
[6/17, 11:14 PM] DR Narinder paul
J&k: अतिसञ्चितदोषाणां पापं कर्म च कुर्वताम् ।
उदराण्युपजायन्ते मन्दाग्नीनां विशेषतः
[6/17, 11:15 PM] Dr.RaviKant Prajapati (M.D) Prayagraj:
Sir Kaphavritta Pitta ki condition me kai baar.....Pitta ke kaal me Pitta ki prakrit vriddhi hoti hai.....par kaphavritta ke karan Pitta ki agni ativriddhi kar ke False appetite ka bhram karta hai.....Pitta ka kaal jo mainly din me 10am to 2 pm tak ya ratri me bhi 10 se 2 baje false appetite ke symptoms jyada milte hain......aisa meri samjh se hai......Shesh Gurujan margdarshan karein🙏
[6/17, 11:16 PM] वैध आशीष कुमार:
🙏🏻🙏🏻💐💐💓💓
[6/17, 11:21 PM] Dr.Pawan Madan Ji:
बिल्कुल सत्य कहा आपने
मैं भी सर्वदा ऐसे ही करता हूँ
रोगी के हर visit में क्या हर तीसरे दिन फोन पर समझाना एंड counsel कर के उसकी motivation को up रखना ही पड़ता है।
[6/17, 11:22 PM] Dr.Pawan Madan Ji:
ध्यान देने योग्य बात
[6/17, 11:22 PM] DR. RITURAJ VERMA:
शिरोधारा बहुत अच्छा काम करती है सर जी
[6/17, 11:23 PM] वैद्य मृत्युंजय त्रिपाठी ,उत्तर प्रदेश:
सादर प्रणाम सर🙏🙏🌺🙏🙏 जी बहुत ही उत्तम विवेचना की है आप ने एकदम उचित और चिकित्सा की दृष्टि से सही है,
चिकित्सा करते समय हमेशा ध्यान रखने योग्य बातें है, 🙏🙏
[6/17, 11:23 PM] Dr.Pawan Madan Ji:
जी
[6/17, 11:23 PM] Dr.RaviKant Prajapati (M.D) Prayagraj:
✔✔✔👌🙏🌹
[6/18, 12:09 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Delhi:
*' रोगी: सर्वेऽपि मन्देऽग्नौ' अ ह नि 12/1, सभी रोगों का कारण मंदाग्नि है, अजीर्ण, अग्निमांद्य, अम्लपित्त, अन्नद्रव शूल, परिणाम शूल, अर्श, अतिसार,छर्दि, कृमि, अरोचक, उदावर्त्त, आध्मान, आनाह, ग्रहणी आदि ये सब मूलत: जाठराग्नि जन्य रोग हैं धात्वाग्नि जन्य नही।यहां पर विशिष्टत: दोष ही दूषित करने वाले दोष भी हैं और धातु भी। अनेक स्थानों पर रक्त या मांस को जो हम दूष्य में ले कर चलते है वो इसलिये कि रोग स्रोतस में कहीं तो आश्रय लेगा ही।जो भी अन्न ग्रहण किया जायेगा वो पंचभौतिक होगा या ये भी कह सकते है कि इन्ही से त्रिदोष बना है तो वो अन्न त्रिदोषात्मक है और प्रथम धातुओं सप्त धातुओंसे पूर्व इनका महत्व समझिये कि ये भी धातु है, अन्न रस जो त्रिदोषात्मक है उसमें कफ रसादि धातुओं का निर्माण करेगा, पित्त जाठराग्नि की पुष्टि करेगा जिस से वे अन्य अग्रिम धातुओं की भी अग्नि वर्धन कर सके और वात संचार, चेष्टा ज्ञान आदि बना कर रखेंगी।इस 24 तत्वात्मक पुरूष शरीर को धातु पुरूष इसलिये कहा है कि ये 24 के 24 तत्व ही शरीर का धारण कर रहे हैं और धातु ही हैं, इसलिये अवस्था के अनुरूप यहां कुछ रोगों में मल को भी धातु मानिये, ये भी शरीर का धारण कर रहा है।*
*आप अपने रोगी का हाल देखें तो ये व्यक्तित्व है जिसकी इच्छायें बहुत हैं पर वो अपने मन की कर नही पा रहा तो उसने अपना मन जहां उसके अनुसार हो सकता है वहां लगा दिया अपनी अनियमित दिनचर्या और आहार पर।*
*रोगी को दिन में क्षुधा नही होती और रात्रि में अधिक लगती है !*
*इस 24 तत्वात्मक शरीर में क्षुधा आखिर लगती कहां हैं ? आमाश्य में ! जी नही ये भ्रम है।आमाश्य को क्या पता कि तरबूज क्या है, पूरी छोले, परांठा , राजमा, चाय, मद्य ये सब क्या है ? उसके पास नेत्र कहां है ? आमाश्य को तो ये भी नही पता कि जिन पदार्थों का वो सेवन कर रहा है वो मधुर है, अम्ल, लवण या कटु क्या है नही पता।क्योंकि रसनेन्द्रिय से नीचे किसी taste का पता नही चलता। तो फिर ये भोजन कौन मांग रहा है कि मुझे तरबूज दो, भरपेट बार बार भोजन दो इस रसनेन्द्रिय, चक्षु और घ्राणेन्द्रिय को वश में रखने वाला मन। *
*अगर मन सत्व बाहुल्य होता तो रोगी अल्प भोजी होता, तमो बहुल होता तो आलसी होता और रात्रि को नही मांगता, ये है रज प्रधान और रज है चंचल अर्थात चल गुण प्रधान, वात प्रधान।*
*रात्रि में क्षुधा का कारण - रात्रि कफ प्रधान है, चेष्टायें मंद हो जाती है, इन्द्रियां शिथिल, तमो गुण प्रधान और तम कफ स्वरूप है, यहां इस प्रकार के रोगों में कफ ही धातु स्वरूप है तथा कफ और मेद समान गुण धर्मी हैं, जैसे मेदोरोगी में मेद धातु द्वारा स्रोतो अवरोध होने से वायु कोष्ठ में भ्रमण करता जाठराग्नि को तीव्र कर देता है वैसे ही इस रज दोष प्रधान रोगी में कुपित वायु कफ मार्गावरोध से जाठराग्नि तीव्र कर देती है, आहार को सुखा देती है अर्थात शीघ्र पचा देती है और पाचक पित्त, समान और अपान वायु की विकृति कर देती है।*
*रोगी की विकृति का मूल अभी तक हमें यहां तक मन मिला है।*
*कुछ और भी पूछना है आपसे कि रोगी का body wt, व्यवसाय क्या है और उसकी स्थिति ,परिवारिक स्थिति, पत्नी और बच्चों का स्वभाव ???*
*आपके उत्तर के बाद इस रोगी पर चर्चा जारी रहेगी और हम इसका समाधान निकाल कर ही रहेंगे पर रोगी की चिकित्सा तब करिये जब वो आपके अनुसार चले।*
[6/18, 12:13 AM] Dr. Vivek Chadha Canada:
क्षुधा कहाँ लगती है।
अति उत्तम सर🙏🙏
[6/18, 1:11 AM] Dr.RaviKant Prajapati (M.D) Prayagraj:
Uttam margdarshan Guruji🙏🙏🌹🌹
[6/18, 4:32 AM] Dr.Shashi Jindal Chandigarh:
yes after a hectic day, when he comes at home he feels excessive hunger which seems to be vaayu janya. If after coming home he takes a good shower, and then hot milk (sip sip like hot tea) he may get relief from this vaataj hunger.
[6/18, 6:12 AM] DR. RITURAJ VERMA:
सहृदय धन्यवाद गुरुवर
प्रातः वंदन 🙏
[6/18, 7:06 AM] DR Narinder paul
J&k:
🙏🙏👌🏻.
*Yhi chikista hai..mein apne grahni arsh aur udar rogi ke patients ke liye anytime available rehta hai..shuru ke 2 3 months bhut difficult rehte hai..vo bar bar aahar vihar ke bare mein aapse puchta hai..kai bar uska satv bdhta,kai bar ghirta hai..jis prakar ek कच्ची कोपल को सहारे ki jarrut hoti hai, bad mein jab vo वृक्ष ban jati hai phr vo khud prakruti ke sath ho jati hai..aise hi es prakar ke rogio ko shuru ki chikista mein aapke सहारे ki jarrut hoti hai..uske bad jaise hi en rogio ka chit shant ho jata hai,hosh mein aa jate hai, जितेन्द्रिय ho jate hai..phr yeh prakruti ke sath ho jate hai..apna dhyan khud rakh lete hai..*
*Kyunki ayurved ke chikista ka ek hi sidhant hai मनुष्य को प्रकृति की सीध मे लाना। ऐसा जब होता है तब मनुष्य समस्त व्याधियो से मुक्त हो जाता है।*
*Kuch samye pehle maine esi ke संदर्व मे ek lekh likha tha kayasamprdaye jaise ek dusre group mein..uski ka ek अंश aapke समक्ष rakh rha hoon..aasha karta hu isko padhne ke bad चीज़े aur साफ़ hoti jayengi*
*यथा पिंडे तथा ब्रह्माण्डे*
*आचार्य चरक का यह सूत्र बहुत गहरा अर्थ लिए हुए है. अन्डम और पिण्डम ,आत्मा और परमात्मा ये अलग अलग प्रायवाची है जो अलग २ ऋषिओ के द्रारा कहे गऐ पर सभी का मतलब एक ही है और वो यह है की जो भी घटना इस ब्रह्माण्ड में घटित होती है वही हमारे शरीर में घटित हो रही होती है या आसान भाषा में यु कहे की इस ब्रह्माण्ड में घटित होने वाली प्रत्येक घटना का हमारे शरीर पर प्रभाव पड़ता है |*
*और थोड़ा गहरे में जाये तो में यह कहूंगा की आयुर्वेद का सारा जोर मनुष्य को प्रकृति के सामंजस्य में लाने में ही है पिंड को ब्रह्माण्ड की सीध में लाने में है ,आत्मा को परमात्मा में मिलने में है ,बूंद को सागर के साथ हो जाने को है दीर्घायु तो उसका एक प्रसाद है जो प्रकृति के साथ हो जाने पर स्वतः ही मिल जाता है* *( पर उतना ही मिलेगा जितना आपके आत्मज भाव में होगा )*
*अब प्रश्न उत्त्पन होता है की फिर इतनी चिकिस्ता दिनचर्या, ऋतुचर्या के बारे में इतना बताना वो क्यों ? *अगर प्रकृति के साथ हो जाने में दीर्घायु मिल जाती है तो फिर आयुर्वेद क्यों लिखा गया?*
*इस ब्रह्माण्ड में अकेला मनुष्य ऐसा प्राणी है जो प्रकृति के साथ हो जाने की कला में सबसे अविकसित है उसकी बुद्धि दोषरहित नहीं है चित स्थिर नहीं है उसको जनम से लेकर बुढ़ापे तक सब कुछ सीखाना पड़ता है आपने संस्कारो के वशीभूत होकर वो फिर भी प्रज्ञापारध करता इन्द्रिओ का असातमयअर्थ संयोग करता है और दुखी होता है उसे शिष्टाचार सीखना पड़ता है कैसे प्रकृति के उनुकूल रहना है सब सीखाना पड़ता है और इसके विपरीत और प्राणी जैसे जानवर वृक्ष आदि को यह सब नहीं सीखाना पड़ता क्यूंकि वो पहले ही प्रकृति के सामजंस्य में होते है हर चीज़ प्रकृति के अनुकूल करते है इसलिए अगर रुग्ण भी होते है तो वो अपनी चिकिस्ता करना जानते है,या उनकी चिकिस्ता स्वता हो जाती है* *(जो जानवर मनुष्ये के संपर्क में होते है में उनकी बात नहीं कर रहा क्यूंकि मनुष्य तो अपने संगदोष से उनका भी सामजस्य विगाड़ देता है।)*
*मनुष्ये का वच्चा जब जनम लेता है तो वो सब प्राणिओ के वच्चो से कमजोर होता है उसे अगर बिना सहारे के छोड़ दिए जाये तो शयद वो जीवित न रह पाए और इसके विपरीत और प्राणीओ के बच्चे ऐसे निसाहये नहीं होते कुछ तो जनम लेते ही चलने लग पड़ते है।*
*मनुष्य में कर्ता का भाव है अहम है। वो बूंद है और सागर से अपने को अलग मानती है उसका सागर को अलग मानना ही उसके दुखो का कारण है ।*
*जो वैद्य इस परमसत्य को जान लेता है और देखने वाला बन जाता है फिर संहिता उसका अनुसरण करती है उसको हर जगह आयुर्वेद दिखने लग पडता है,उसे ऐसा प्रतीत होता है पूरी कायनात उसको आयुर्वेद सीखने में लग गयी है।*
*मेरे पूजनीय सद्गुरु जी ने एक बार मुझे कहा था की संहिता आयुर्वेद में है ,आयुर्वेद संहिता में नहीं है उस समय शायद में उनके उस प्रवचन से सहमत नहीं था था परन्तु जब मैंने खुद महसूस किआ तो जाना की यही परमसत्य है। हमें अपनी बेढिओ को तोडना होगा अपने अहम और कर्ता के भाव को त्याग कर दृष्टा होना होगा फिर आप आपने आप को उस सागर में पाएंगे जिसका वर्णन आचार्य चरक ने किआ है।फिर ना कोई सीमा शेष रहेगी ना कुछ जानने को शेष रहेगा। शायद तभी कोई द्विजतिये वैद हो पाएगा।*
[6/18, 8:10 AM] Vd.Gopi Krishna Kc Ras Shastr:
Can we differentiate drugs acting on jatharagni bhootagni and dhatuagni ? Clinically observed ?
[6/18,8:30AM]Prof.Giriraj Sharma Sir
Ahamadabad:
👍🏻🌹🌹🙏🏼🙏🏼
[6/18, 8:31 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Delhi:
*अति उत्तम डॉ नरेन्द्र पाल जी 👌👌👍👍🌹💐🌺🙏*
[6/18, 8:32 AM] Dr.Shashi Jindal Chandigarh:
👌👌👌👍🏼🙏🏼🌹🙏🏼👏👏👏👏👏👏👏
One similar case ;
6days back, a male 21yrs. old complained of nausea, pain abdomen, breathlessness, body pains, gaseous distention,constipation and body pains. No fever. Was absolutely healthy 10 days before.
History of ; started gymming and dieting, because of continous sitting etc. during lockdown.
He was so uncomfortable that wanted anything for relief.
I diagnosed it a case of agnimandya due to vata prakop,shakhagat gati of aam .
Advised him to take nothing orally, put two drops of castor oil in nabhi. Hot water bottle after little application of oil on abdomen. No a.c. or fan .
After 4 -5 hrs. was little comfortable, but no motion, felt little hunger in evening. Advised to take 1tsf castor oil in hot milk.
Next morning he visited me at 7 am, wanted some allopathic medicine for quick relief.
Took complete history, what he did was he ate cold bread slices in morning then did pushups etc. his abdominal muscles were so stiff, no feeling of defication was there.
It was a case of udavart also due to strenuous exercise. I advised no medicine, very light hot soups, and hot towel fomentation on abdomen. Moong dal soup. In evening he passed normal stool. No painkiller, or any drug was given. Only milk with slight sonth and kalimirch.
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