WDS 105: 'Grahani-dushti' & 'Milk-intake' by Vaidyaraja Subhash Sharma, Dr. Dinesh Katoch, Vd. Amol Kadu, Prof. Arun Rathi, Dr. Pawan Madaan, Vd. Raghuram Bhatta, Dr. Divyesh Desai, Dr. Pawan Mali & Vd. Chinmay Phondekar and others.
[2/7, 1:57 PM] Dr.Amol kadu:
Respected kayasampraday gurujan !
A 25 year female patient visited to OPD for consultation.
She is having wheat allegry since since the age of 8 years. Presently when she eats wheat powder items she develop following symptoms...
1. सर्वांग शोथ
२. द्रव मल प्रवृत्ति
At the age of 5 years
(*she and her whole family consume rat grinded ata - interested point*) later on she developed hepatitis, managed by allopathic medication later on started this wheat allergy problem (as per history given by patient)
She was taking ayurvedic medicine for wheat allergy under my treatment.... Hardly 3 times she consulted to me in between these 2 years.
Present major disturbing complaints are as follow.
👇🏼
1. श्रम
२. अयासेन श्वास
३. शब्द असहिष्णुता
4. Amlapitta
४. Heart beat increase
५. Feeling very better while taking fruit juices
Consulted with cardiologist
Hb - १० gm/dl
2DEcho normal study
ECG - normal
On the basis of presenting diagnosed as Rasakshay
And started....
1. Khajuradi manth
2. Punarnawa mandur- prabhakar vati
3. Amylcure DS
4. Bilwadi gulika ( 2, 3 , 4, 5 bhojanottar)
5. Avipattikar + pittantak bhojan purva
Your expert comments for framing out the sampraprti and management is expected...🙏🙏🙏
[2/7, 1:58 PM] Dr.Amol kadu:
2 D echo report👆🏼
[2/7, 2:16 PM] Dr. D. C. Katoch sir:
Get her Sr Ferritin test and LFT including Sr Proteins to find out whether haem and globin are adquately available in her body. For the time being she needs to be treated on the lines of Grahani Chikitsa, Panchamrit Parpati with bhrisht jeerak churna and Anar Ras should be given to strengthen Agnideepan- pachan and aaharasavashoshan karm.
[2/7, 2:25 PM] Vd. V. B. Pandey Basti(U. P. ):
🙏As per me she is in deep depression. YOU May check as per upshaya and Unushya.
[2/7, 2:38 PM] Dr. prajakta Tomar:
How is her sleep pattern ? Is she married if yes how is her martial life. Many times anxiety converts into sharir vyadhi....
[2/7, 3:44 PM] Dr. Pawan Madan:
Amol ji !
Whats the role of Bilwaadi gullika here ?
Whats is 2, 3, 4, 5 ?
What is pittantak ?
[2/7, 3:54 PM] Dr.Amol kadu:
Namaste pawanji....
Pittantak is NIA formulation having
Shuddha gairik
kapur
Which is commonly used here as a pittashamak yog.
Medicine no 2, 3, 4, 5
She is not not married. Preparing for competitive examination
Nidra- samyak.
Asked for चिंता-though she said no stress or any chinta but... She is stress related to her wheat allergy problem as it is since her childhood.
[2/7, 3:58 PM] Dr.Amol kadu:
This is what I forgot to right... Menstrual history is absolutely normal. (I emphasized on this repeatedly but she has no problem related to menstruation)
Though she said that I have no anxiety. By her body language and presenting problem. She has a Stress... She thinks about (why me for this allergy)....
[2/7, 4:02 PM] Dr. prajakta Tomar:
I think that rat episode is also haunting her.
[2/7, 4:02 PM] Dr.Amol kadu:
OK Katoch Sir... I will advise her for this..
[2/7, 4:04 PM] Dr.Amol kadu:
Presently she is more concerned about her presenting complaints related to Rasakshay laxana...
[2/7, 4:04 PM] Dr.Amol kadu:
Bilwadi gulika for considering garavisha as a hetu.
Dr. Pawan Sir !
[2/7, 4:05 PM] Dr. D. C. Katoch sir: Ok.
Then start Sitopaladi Churna + Manikya Bhasm with Lajamand.
[2/7, 4:23 PM] Dr.Amol kadu: K sir
[2/7, 4:24 PM] Dr.Amol kadu:
Laja mand as food advised to her..dadima Dana siddha. Mudag yush.
[2/7, 7:27 PM] Vd Mayur Kulkarni:
सतत प्रध्यानं यह ओज तथा रस क्षय को कारण और उसका परिणाम अग्नि पर होता है
(मात्रया अभ्यवहृतम् पथ्यं च अन्नं न जीर्यति ।
चिंता शोक भय कोध्र दुःख शय्या प्रजागरैः )
ऐसी cases में मै सिद्ध क्षीर का use करता हुं तथा औषधीयों में वसंत कुसुमाकर (सुगंधी द्रव्य भावना-सुखानुबंधी सूक्ष्म श्च सुगंधो रोचनो मृदुः), लीला विलास रस / सुक्ष्म अभ्रक. सू रौप्य भस्म, शतावरी
(शतावरी का पर्याय अभीरु) उसके कारण अगर भय हेतु है तो उसमें शतावरी use करता हुं । वह रस धातु बल वर्धन करने वाली है । तथा अनुपान में कुष्माण्डावलेह (चेतो विकाराणां पथ्यं) / महाकल्याणक घृत इनक अनुपान के रूप में उपयोग लाभदायक होता है। हद्य है तथा रसक्षय में उत्पन्न होती है उसमें मृगशृंग भस्म (व्यानोदान ) तथा जटामांसि फांट (स्वप्न काल) उपयोग कर सकते है l
[2/7, 7:44 PM] Vd. Atul J. Kale: Great .....
रसक्षयसे रक्तक्षय अौर रक्तक्षयसे अग्निमांद्य
भूतेस्मिन भवेत् सर्व: कर्णक्ष्वेड हतानल: ....
[2/7, 10:30 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*अमोल जी, ग्रहणी दोष और ग्रहणी रोग इनका क्षेत्र इतना विस्तृत है कि अनेक बार जो लक्षण मिल रहे हैं चिकित्सक भ्रमित रहता है कि इन सब का मूल कहां है और वो मिलता है ग्रहणी दोष या रोग में । सब रोगियों की सम्प्राप्ति भिन्न भिन्न हो जाती है और चिकित्सा भी अलग । आईये ग्रहणी के विस्तृत स्वरूप को देखें ...*
[2/7, 10:34 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*चरक संहिता में ग्रहणी रोग और ग्रहणी दोष दोनों स्थितियों का प्रयोग किया है।
'ग्रहणीमाश्रितोऽग्निदोषो ग्रहणीदोषः, एवं चाश्रयाश्रयिणोरभेदोपचाराद् ग्रहणीदोषशब्देन ग्रहण्याश्रितोऽग्निदोषोऽपि गृह्यते'
च चि 15/1-2 पर आचार्य चक्रपाणि ने आश्रय और आश्रयी भाव मे भेद नही मान कर ग्रहणी में आश्रित अग्निदोष को ग्रहणी दोष माना है।*
*चरक विमान 6 में चार प्रकार की अग्नियों में से ये तीन अग्नि दोष है...
जिसे च चि 15/71 में
'यश्चाग्निः पूर्वमुद्दिष्टो रोगानीके चतुर्विधः तं चापि ग्रहणीदोषं समवर्जं प्रचक्ष्महे'
इस प्रकार स्पष्ट कर दिया है।*
*1- व्याधि कफ प्रधान होगी तब अग्नि का बल हीन होगा तो मंदाग्नि*
*2- पित्त प्रधान होने पर अग्नि भस्मक जैसे रोग उत्पन्न कर देती है तो तीक्ष्णाग्नि*
*3- वात क्योंकि विषम है उसके प्रधान होने पर अथवा मेदोरोगी में अग्नि का आवरण होने से अग्नि विषम हो जाती है।*
*आचार्य चक्रपाणि ने ग्रहणी अधिकार 15/38-41 में लिखा है कि अग्नि से होने वाले सभी विकार जैसे ...*
*4 ग्रहणी विकार*
*3 अग्नि विकार- ये हम ऊपर लिख कर चले हैं, अग्निमांद्य, अजीर्ण आदि सब ग्रहणी दोष हैं
*'भौमाप्याग्नेयवायव्या: पंचोष्माण: सनाभसा:,
पंचाहारगुणान्सवान् स्वान् पार्थिवादीन् पंचयम्तु।
यथास्वं ते च पुष्णन्ति पक्वा भीतगुणान् पृखक्।'
अ ह 3/59-60
शरीरगत पंचमहाभूतों की अपनी अपनी अग्नियां आहार से संबंधित पार्थिवादि के निज गुणों को उनकी अग्नियां पाक करती हैं, अत: पार्थिवादि गुणों की वे अग्नियां वृद्धि करती हैं।*
*इसका विस्तार अरूणदत्त ने किया है
'त्रयोदशाग्न्य: तथा सप्तसुशिरासतेषु सप्ताग्निशतानि पंचसुमांसपेशीषतेषु पंचाग्निशतानि' 700 शिराओं और 500 मांसपेशियों की अपनी अपनी अलग अग्नि होती है।*
*ग्रहणीदोष चरक चि 15/38
'इति भौतिकधात्वान्नपक्तृणां कर्म भाषितम्'
अनुसार अग्नियों के कर्म बताते हुये चक्रपाणि अपनी टीका में
'यान्यग्न्यन्तराणि उपधातुमलादिगतानि तान्यप्यवरूद्धानिभूताग्निष्वेव'
लिखते हुये उपधातु और मल आदि की भी पृथक अग्नि बताते हैं और उसे भूताग्नि में ही ग्रहण कर लेते हैं।*
*सामान्यत: अतिसार, अग्निमांद्य, अजीर्ण, अम्लपित्त, परिणाम शूल, प्रवाहिका, आदि ये लंबी श्रंखला उन रोगो की है जो जाठराग्नि गत है और धात्वाग्नि गत नही और इनमे भी एसे लक्षण उत्पन्न होते है जो जाठराग्नि गत विकृत आम जन्य है और धातुगत ना होने से विष स्वरूप हो कर गंभीर लक्षण नही उत्पन्न कर रहे तथा पथ्य, आहार विहार, दिनचर्या और साधारण औषधियों से भी ठीक हो रहे है। ग्रहणी दोष और ग्रहणी रोग, ये दोनो अलग स्थितियां है इसीलिये चरक ने ग्रहणी रोग में आम विष का उल्लेख किया है कि अजीर्णादि को जाठराग्नि से धात्वाग्नि तक पहुंचने से रोका जाये नही तो यह आमविष अन्य धातुओं में और स्रोतस में गंभीर व्याधियां उत्पन्न करेगा।*
*ग्रहणी दोष और रोग में क्या भिन्नता संभव है इसरे लिये हमें दोष जनित और रोग जनित अवस्था को सूक्ष्मता से जानना होगा तभी हम किसी निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं, पहले दोष जनित भाव को समझें ...*
*दोषः, पुं. दूष्यते इति ,दुष वैकृत्ये + णिच् + भावे घञ् अर्थात दूषणम् । यथा, “अदाता वंशदोषेण कर्म्मदोषाद्दरिद्रता । उन्मादो मातृदोषेण पितृदोषेण मूर्खता ।"*
*ये सब दोष भाव चल रहे हैं
'मिथ्याज्ञानजन्यवासनायां दुःख-जन्यप्रवृत्तिदोषा मिथ्याज्ञानानामिति सूत्रवृत्तौ चरमे दोष-शब्दस्य तथार्थत्वाभिधानात्।'
और आगे देखें तो
'तेषांदोषाणां त्रयोराशयस्त्रयः पक्षाः, रागपक्षाः- कामोमत्सरः स्पृहा तृष्णा लोभ इति। द्वेषपक्षाः- क्रोधःईर्ष्याऽसूया द्रोहोऽमर्ष इति। मोहपक्षाः- मिथ्याज्ञानंविचिकित्सा मानः प्रमादः इति।*
*आयुर्वेद सम्पूर्ण जीवन का विज्ञान है जिसमें उपरोक्त भाव आचार रसायन के भाव है, रज और तम ये मानसिक भाव भी संबंधित है तथा शारीरिक दोषों में
'दोषशब्दस्य निरुक्तिमाह
“धातवश्च मलाश्चापि दुष्य-न्येभिर्यतस्ततः,
वातपित्तकफा एते त्रयो दोषा इतिस्मृताः”
दोषा इत्यत्र दुष वैकृत्ये इति दुषधातोःदुष्यन्त्ये भिरिति वाक्ये अकर्त्तरि च कारके संज्ञाया'
दोष धातुओं और मलों को दूषित करते हैं । इसे ध्यान से समझें तो यह एक क्रिया का दोष है जैसे राग पक्ष और द्वेष पक्ष, ये मन कि क्रिया का दोष है और इसमें किसी अव्यव की विकृति नही ।*
*चरक में अग्नि दोष का उल्लेख है जिसका स्पष्ट अभिप्राय कफ, पित्त और वात से तथा इसके अतिरिक्त स्त्रीदोष का उल्लेख भी किया है
'क्षयाद्भयादविश्रम्भाच्छोकात् स्त्रीदोषदर्शनात् नारीणामरसज्ञत्वादविचारादसेवनात्'
च चि 2.4/44
जिसका अर्थ स्त्रियों में दोष देखने मात्र से है।*
*अब रोग को देखें तो रोगः, पुं, रुज्यतेऽनेनेति, रोजनमिति वा । रुज धातु में घञ् प्रत्यय लग कर बना है जिसे राजनिघंटुकार कहते हैं कि 'धातुवैषम्यजाते व्याधौ ' इसे देहभङ्गकारकः कहा है जिसके पर्याय हैं *
*रुक् ,रुजा, उपतापः, व्याधिः, गदः, आमयः अपाटवः, आमः, आतङ्कः, उपघातः, भङ्गः, अर्त्तिः, तमोविकारः, ग्नानिः, क्षयः, अनार्ज्जवः, मृत्युभृत्यः, मान्द्यम, आकल्पम् ।
आगे इसके उदाहरण दे कर स्पष्ट किया है कि ...*
*राजयक्ष्मा, नासारोगः, छिक्का, कासरोगः, शोथः, पादस्फोटनरोगः, सिध्मरोगः, खसुरोगः, गात्रविर्घणः, विस्फोटः, व्रणम्, सदा गलतो व्रणम्, मण्डलाकारकुष्ठः, श्वेतकुष्ठः, गुदरोगः, मलमूत्रनिरोधः, ग्रहणीरोगः, वमनम्, विद्रधिरोगः, ज्वरः, प्रमेहरोगः, भगन्दररोगः, पादवल्मीकरोगः, मस्तककेशरोगः, मूत्रकृच्छ्रम्, मूलव्याधिः, वातकृतचित्तविभ्रमः, दृग्रुजः, नारीरोगः ये रोग या व्याधि हैं जिनमें धातु, मलों के साथ स्रोतस अथवा अवयवों की विकृति भी होती है।*
*ग्रहणी रोग में महास्रोतस या कोष्ठगत अनेक अवयवों की विकृति का समावेश इनमें हो जाता है।*
*मूल बात है कि ग्रहणी दोष या ग्रहणी रोग कहने से चिकित्सा में कोई भिन्नता आ जाती है क्या ? यह भिषग् का निजी विषय हो सकता है।*
[2/7, 10:34 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*ग्रहणी दोष में हम गौधूम असात्म्यज विकार ले कर चलते है जैसे celiac disease, इसका निर्धारण हम आयुर्वेदीय मत से ही कर के चलते है पर रोगी का TTG भी रोगी की स्वेच्छानुसार criteria of assessment मानते है , इसके उदाहरण देखें ..,*
Date: 27-7-18
TTG - 800
26-11-19
TTG - 65.50
[2/7, 10:34 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma: *दूसरी रूग्णा ..* 👇🏿
Date: 7-10-19
TTG - 800
2-12-19
TTG - 100
[2/7, 10:35 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*इसके अतिरिक्त अनेक case presentations हम पहले देते रहे है कि किस प्रकार रोगी अति शीघ्र गौधूम का सेवन लगता है और चिकित्सा पूर्ण होने के बाद भी स्वस्थ रहता है।*
*वस्तुत: ये ग्रहणी रोग की अवस्था ही है क्योंकि इसमें आम विष का प्रसरण अति शीघ्र होता है।*
[2/7, 10:57 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*दुग्ध या गौधूम आसात्म्य होने पर सम्प्राप्ति घटक और चिकित्सा सूत्र कैसे बनायें और औषधियों का चयन किस प्रकार करें ?*
*कभी किसी को दूध असात्म्य है, किसी को गोधूम तो क्या उसे जीवन पर्यन्त इन आहार द्रव्यों से वंचित रहना पड़ेगा ? ऐसा नही है क्योंकि 2017 और 2018 में हमने कुछ रोगियों पर case present किये थे कि किस प्रकार हम celiac disease में एक सम्यक चिकित्सा सूत्र बनाकर गौधूम तो सात्म्य कर ही देते है और Ttg की reports भी within normal limit में ला देते हैं।*
*इनकी चिकित्सा करनी हो तो दो व्याधियों को अच्छी तरह समझ लीजिये,
1 - ग्रहणी दोष और
2 ग्रहणी रोग।
lactose की असात्म्यावस्था ग्रहणी दोष है और ग्रहणी रोग गौधूम असात्म्यज अवस्था अर्थात celiac disease है क्योंकि इसमें पक्वाशय में विकृति कारण रक्त मल तो आता ही है साथ रस- रक्त धातु की दुष्टि के कारण शरीर में असहिष्णुता से कंडू, कोठ, उदर्द भी उत्पन्न हो जाते हैं।विकार मूलत: अग्नि की विकृति ही है।*
* आयुर्वर्णो बलं स्वास्थ्यमुत्साहोपचयौ प्रभा।*
*ओजस्तेजोऽग्नय: प्राणाश्चोक्ता देहाग्निहेतुका:॥* च सू 15/3
*अर्थात आयु वर्ण बल स्वास्थ्य उत्साह शरीर का उपचय प्रभा ओज तेज सभी अग्नियां तथा प्राण ये सभी अग्नि अर्थात जाठराग्नि के अधीन है।*
*यदन्नं देहधात्वोजोबलवर्णादिपोषकम्।*
*तत्राग्निर्हेतुराहारान्न ह्यपक्वाद् रसादय॥*
च चि 15/5
अर्थात जो आहार देह धातु ओज बल वर्णादि की पुष्टि करता है उसका आधार जाठराग्नि है और अपक्व आहार से धातुओं की पुष्टि नही हो सकती।*
* ग्रहणी दोष जन्य दुग्ध असात्म्य सम्प्राप्ति घटक - *
*दोष - समान और व्यान वायु, पाचक पित्त, क्लेदक कफ*
*दूष्य - अन्न रस *
*स्रोतस - अन्नवाही और पुरीषवाही*
*स्रोतोदुष्टि - अति प्रवृत्ति, संग और विमार्ग गमन*
*अग्नि - जाठराग्नि मांद्य*
*उद्भव स्थान - आमाश्य*
*रोगाधिष्ठान - महास्रोतस एवं जाठराग्नि*
*साध्यासाध्यता - कृच्छसाध्य*
*व्याधि स्वभाव - चिरकारी*
*रोगी को दुग्ध सात्म्य कराने के लिये चिकित्सा के कुछ समय बाद प्रात: तक्र, दोपहर में दधि और रात्रि में लघु आहार देने के तीन घंटे बाद अल्प मात्रा से हम थोड़ी सी सौंफ या आर्द्रक उबालकर और छानकर इस प्रकार से आरंभ करते है और दूध केवल एक ही समय रात्रि भोजन के ढाई-तीन घंटे बाद सेवन के लिये कहते हैं तो प्राय: दुग्ध विकार नही करता।*
*रोगी को दिन में लघु आहार दे कर रात्रि हरीतकी चूर्ण 5 gm से मृदु विरेचन कराकर प्रथम तीन दिन रोगी को केवल चावल का मंड दिन में 2 बार, मूंग और धुली मसूर दाल का सूप और रात को पतली कृशरा 1/2 gm पंचकोल चूर्ण और 1/2 tsp गौधृत मिलाकर हम देते हैं।*
*300 ml जल में 1/4 tsp शुंठि और 1/2 tsp जीरक उबाल कर छान कर पूरे दिन थोड़ा थोड़ा पीने को दिया जाता है जो लगभग 15 दिन तक देते हैं।*
*गौदुग्ध fresh हो तो प्राय: जीर्ण होने लगता है और बीच बीच में रोगी पुन: कभी लक्षणों का पुन:उद्भव कहता है तो
संजीवनी वटी 2-2,
चित्रकादि वटी 2-2,
पंचामृत पर्पटी 100 mg + गंगाधर चूर्ण 3 gm + लवणभास्कर 2 gm दो बार देते हैं। लाक्षणिक लाभ मिल जाता है।*
*रोगी को यह स्थिति तब होती है अगर वो दिन में दुग्ध या इस से निर्मित आहार जैसे गुलाब जामुन, खीर, सेंवई, ice cream, केक, banana या mango shakes या milk powder जिनमें हो biscuits आदि सेवन करे, रोगी को प्रात: तक्र और दोपहर में दधि अवश्य लेना चाहिये।कुछ रोगियों को लाभ नही मिलता तो हम उन्हे स्पष्ट कह देते हैं कि दुग्ध का सेवन ना ही करें।*
[2/8, 8:07 AM] Dr. Pawan Madan:
प्रणाम व चरण स्पर्श गुरु जी।
आपने बहुत विस्तृत कहा।
इस विषय पर पूर्व मे भी लम्बी चर्चा हुई थी।
आदरणीय ओझा सर जी ग्रहणी दोष व रोग को पर्याय बता रहे थे।
सुश्रुत के संदर्भ साथ देखने से ये स्पष्ट है के ग्रहणी दोष व रोग 2 अलग अवस्थायें हैं
Sushrut uttar tantra 44/163-178
There are 2 types of deformity .... anatomical and physiological.
There occurs ....Agni ka abhidooshan.
Grahni Dosh is Physiologic.. .as per the description of Charak sutra 15/51-52
Grahni Roga ...is anatomical as per the sandrabh of Sushrut given above where there is Grahni ka Abhidooshan.
🙏🙏🙏
[2/8, 8:30 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*नमस्कार पवन जी 🌹🙏 इसी लिये ये सब लिखा गया कि सब को चिंतन का आधार मिले और ग्रहणी का व्यापक रूप स्पष्ट हो ।*
[2/8, 8:46 AM] Dr. Pawan Madan:
गुरु जी
जिन्को दूध असात्म्य होता है
वे तक्र या दही को भी सहन नही कर पाते 🤔
गुरु जी
क्या इसमें कुछ दूषी विशनाशक या गर विष नाशक औश्दीयों की आवश्यक्ता रहती है, और ये कौन सी औषधिआं हो सकती हैं ?
🙏🙏🙏🙏🙏
[2/8, 8:52 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*नही, कुछ लोगों को दूध असात्म्य होता है पर दधि या तक्र से कोई परेशानी नही होती ।*
*और अनेक रोगियों को dairy products सेवन करते ही उद्वेग आदि होने लगता है।*
[2/8, 8:57 AM] Dr. Pawan Madan:
जी दोबारा चेक कर्ता हूँ
Because if it is real lactose intolerance then it is not possible but there are too many such patients which are actually not lactose intolerant ..... but milk causes gas formation to them with distension and pain abdomen. This has many causes like taking milk along with food or little after food etc.
Will observe keenly again.
Thanks Guru ji..🙏
[2/8, 9:04 AM] Dr. Pavan mali Sir, Delhi:
Sir..In such person i usually advice to take sunthi siddha milk..which gets adopted to them.
[2/8, 9:04 AM] Dr. D. C. Katoch sir:
'ग्रहणी दोष' नामक स्थिति में वस्तुतः केवल ग्रहणी के कर्म (रोचन-दीपन-पाचन, आहाररस-किट्ट विवेचन- आहार रस अवशोषण) विकृत होते हैं और 'ग्रहणी रोग' में ग्रहणी नामक महास्रोतस के अवयव में दोष-दूष्यसम्मूर्छना जनित रचनात्मक विकृति के फलस्वरूप तदनुसार विभिन्न लक्षण व चिन्ह और उपद्रव प्रकट होते हैं। दोनों का चिकित्सा विधान पृथक है।
[2/8, 9:05 AM] Dr. Pavan mali Sir, Delhi:
Pranaam Subhash sir !
in depth analysis sir🙏🏻🙏🏻
[2/8, 9:06 AM] Dr. Pawan Madan:
Ji...🙏
I ask them not to take anything 2 hours before and after milk, and to take nothing with milk.
Is se bhi bahut baar baat ban jaati hai.
Aapka sujhaav bhi uttam hai.
[2/8, 9:06 AM] Vd. Divyesh Desai Surat:
🙏🏾🙏🏾सुप्रभात एवं प्रणाम गुरुश्रेष्ठ,
ग्रहणी के बारे में मैंने हमारे सर को प्रश्न पूछा था, तो ग्रहणी का अर्थ duodenum तक ही सीमित बोला था, और ज्यादा प्रश्न पूछने पर क्लास में से निकाल दिया था, आज आपने ग्रहणी के सारे उत्तर दे दिए है,
आगे भी आदरणीय ओझा सर, गिरिराज शर्मा सर, और बाकी गुरुजनो ने ग्रहणी पर चर्चा की थी, Solution आपने दिया है, जब एक कॉन्फ्रेंस में आदरणीय भूपेश सर ने कहा था कि आप को ठीक से आयुर्वेद की प्रैक्टिस करनी हो तो आपको ज्वर, ग्रहणी और वातरक्त को समझना पड़ेगा, आज आपने ग्रहणी दोष/ग्रहणी रोग का detail बताकर ग्रहणी का महत्व बताया है...
अन्नम गुह्यति, पच्यान्ति, विवेच्यति, मुच्यति इति ग्रहणी ।।
ये व्याख्या आज समझ मे आई,
मुझे आयुर्वेद का superficial ज्ञान है, कभी भी गहराई तक जाने की कोशिश नही की है, किन्तु जब सुभाषसर लिखते है तो आयुर्वेद को पढ़ने का उत्साह कई गुना बढ़ जाता है।। या फिर सर की पोस्ट से सम्पूर्ण संदर्भ प्राप्त हो जाता है,
ग्रहणी कोई 1 रोग या दोष न होकर पूरे पाचनतंत्र के विकारों का सूचक है, इसमें आमशयोत्थ और पक्वाशयोत्थ रोगों का समावेश, बोधक कफ, समानवायु, पाचकपित, क्लेदक कफ, अपानवायु दुष्टि तक पता था, आज सर ने गोधूम ओर दुग्ध की एलर्जी में व्यान वायु की दृष्टि बताई है, ग्रहणी की जो सम्प्राप्ति है कि
अतिसरे निवृते$पि, मंदाग्निरहिताशन,
भूय संदुषितो वह्नि(अग्नि) ग्रहणीमभिदुष्येत,
एकैकस्च सर्वेसश्च, दोषो अत्यर्थ मुर्च्छिते,
सा दुष्टो बहुशो भुक्तं, आमं एवं विमुच्यति,
पक्वम वा सरुजम पूतिमुहूर्बद्धम मुहूर्द्र्वं,
*ग्रहणी रोग:* आहुस्तम, आयुर्वेदः
विद्वज्जनः।।
(माधवनिदान, ग्रहणी प्रकरण)
आज ये श्लोक का सही मायने में विस्तृत विवेचन के लिए गुरुश्रेष्ठ सुभाषसर को नमन🙏🏾🙏🏾👏🏻👏🏻
जय आयुर्वेद,जय धन्वंतरि, जय गुरुजन !
[2/8, 9:07 AM] Dr. Pawan Madan:
Pranaam sir...🙏🙏🙏
Bilkul sir.
Most IBDs come under Grahni Roga
Most IBS like cases come under Grahni Dosha.
🙏🙏🙏
[2/8, 9:09 AM] Dr. Pawan Madan:
All vyadhi described in Charak are generally Umbrella terms and many many diseases and cases may be incorporated under them
Especially those described in Nidaan Sthaan.
🙏
[2/8, 9:15 AM] Dr. D. C. Katoch sir:
ग्रहणी रोग में औषध सिद्ध दूध और तक्र सेवन तो अपेक्षित है और निर्दिष्ट भी, पर दहीं गुरू, द्रव, सर अभिष्यन्दि होने के कारण उचित नहीं। हां मलसंग या विवद्धमल त्याग होने पर ग्रहणी रोग में हरीतकी-शुण्ठी-शतपुष्पा आदि के साथ दहीं का सेवन किया जा सकता है केवल सम्यक मलप्रवृति के लिए।
[2/8, 9:16 AM] Dr. Pavan mali Sir, Delhi:
Absolutely sir..this is habit in many parts of India to take milk along with food or just after food which causes lot of problems like virudhahar janya vikaar also...milk is entity ised for drinking and not for eating...as it is mentioned in nitya rasaayana...it should be taken in rasayaana kaal in early morning which will solve major problems related with milk.
[2/8, 9:32 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*सुप्रभात - नमो नमः सर 🌹🙏*
[2/8, 9:58 AM] Dr.Amol kadu:
आदरणीय सर, ग्रहणी संबधित इतनी विस्तृत जानकारी के लिए धन्यवाद।
आपने ग्रहणी दोष और ग्रहणी रोग का पृथक वर्णन किया है। इसमें आज के परिपेक्ष काल में देखने वाले कौन कौन सी व्याधियां सम्मिलित किए जा सकते है।
जैसा कि पवन सर ने कहा ,
IBS-ग्रहणी दोष में अन्तर्भूत कर सकते है
IBD-ग्रहणी रोग में अन्तर्भूत कर सकते है
आपने भी इसका उदाहरण बताया ही है। फिर और ऐसी व्याधियां जो इसमें अन्तर्भूत कर सकते है, चिकित्सा दृष्टि से कुछ विशेषता आती है गृहणी दोष और ग्रहणी रोग को ट्रिट करते हुए🙏🙏
[2/8, 10:08 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*आप हमारी तरह इस प्रकार के रोगियों के LFT, lipid profile भी कराईये तो सोच और व्यापक होगी कि कोष्ठ गत और शाखागत प्रसरण कहां तक है !*
[2/8, 10:58 AM] Dr. D. C. Katoch sir:
Could not undèstand what IBD is you are referring to, but IBS seems equivalent to Grahani Dosh, which results due to deranged cooperative signals for functioning of gastrointestinal tract. This derangement of psycho-neuro-muscular/secretary signals leads to produce Abdominal pain and cramps Diarrhoea, Constipation, alternate diarrhoea & constipation, change in bowel movements, gaseous feeling & bloating, intolerance to certain food items, fatigue, difficulty in sleeping, anxiety or depression. This symptom complex can be the outcome of Grhani Dosh. Whereas in Grahani Rog, the pratyam lakshan are: muhu badham- muhu drav saam or niram malapravriti resulted from damage to intestinal villi and surface area of the intestines for absorption of digested food.
[2/8, 11:00 AM] Dr Arun Tiwari:
ग्रहणी, अतिसार,प्रवाहिका के रोगियों की 25-30 वर्ष पहले लाइन लगी रहती थी आज वैसे रोगी नहीं मिलते हैं।
लेकिन पुनः स्वीगी जोमैटो और जंक फ़ूड से होने वाले नए रोगों की नई लड़ाई के लिये आयुर्वेदग्यो तैयार रहना पड़ेगा।
पुराणाः प्रविलीयन्ते नवीनाः प्रादुरासते।
विभिद्यन्ते स्थिताश्चाथ नृणां नानाविधा गदाः ।।
नये नये रोग प्रादुर्भूत होते हैं, पुराने लुप्त हो जाते हैं, या उनके लक्षण बदल जाते हैं, एक ही काल में एक ही रोगके लक्षण भी आतुरभेद से भिन्न होते हैं, पर वात, पित्त और कफ अंशांश से विकारमात्र में पाये जाते रहते हैं। अतः वातादि दोष, अधिष्टान और निदान इन तीन की कल्पना से रोगचिकित्सा करनेवाला वैद्य कभी निष्फल नहीं होता।
[2/8, 11:26 AM] Dr. Pawan Madan:
Resp. Katoch Sir !
I was referring to Inflammatory bowel disorders..
In these....there is Acutr or Chronic inflammation of the internal layers which lead to Crohn, UC or many such similar cases. All these have anatomical invasion which is Grahni ka Abhidooshan.
Please correct if wrong...🙏
[2/8, 11:32 AM] Dr. Mukesh D Jain, Bhilai:
*स्वीगी, जोमैटो और जंक फ़ूड से होने वाली बिमारिओं से लड़ाई के लिये तैयार रहें। आयुर्वेद के अच्छे दिन आने वाले हैं*।
[2/8, 11:35 AM] Dr. D. C. Katoch sir:
Grahani Rog is basically digestion & absorption disorder and to my understanding can not be classified as Inflammatory Bowel Disease. Crohn's disease, UC etc are other than Grahani Roga, wherein inflammation of intestinal tract may be the underlying cause.
[2/8, 11:39 AM] Dr. Pawan Madan:
This is altogether different view.
So as per this....
In Grahni Rog there are no anatomical changes or pathologies sir ?
[2/8, 11:41 AM] Vd Chinmay phondekar:
As per my opinion, Inflammatory Bowel Disease can come under Pittaj Grahani.
Grahani Roga is an umbrella term for many small bowel and to some extent large bowel diseases.
[2/8, 11:41 AM] Dr. Pawan Madan:
GRAHNI ROGA---described by SUSHRUTA UTTARA TANTRA 40#163-178---defining the GRAHNI as an organ, and saying it is a condition, in which there is a KARMAKSHYA of GRAHNI, another phrase GRAHNI KA ABHIDOOSHAN means further deterioration of GRAHNI as an organ, so pointing that there is functional as well as anatomical defect in the GRAHNI ROGA.
SUSHRUTA named it as GRAHNI ROGA.
How can we understand this practically sir ?
What type of cases will come under this category ?
[2/8, 11:41 AM] Dr. D. C. Katoch sir:
In the previous post you equated IBD to Grahani Roga, IBS to Grahani Dosh. Now here you are equating IBD with Grahani abhidooshan, it is confusing me.
Dr. Pawan Madaan ji !
[2/8, 11:43 AM] Dr.Kaustubh badave:
In grahani rog there are 2 main possibilities
1.अग्नीविकृती
2.अवयव विकृती
As per my understanding
Is these correct ?
[2/8, 11:43 AM] Vd Chinmay phondekar: Yes
[2/8, 11:47 AM] Dr. Pawan Madan:
Katoch Sir !
Abhidooshan here means anatomical invasion.
This is as per Dalhan.....Rachna karma kshya.
First post me bhi maine yahi likhaa tha....
Probably Sushrut is indicating towards Avyav vikriti....
[2/8, 11:48 AM] Dr. Pawan Madan:
PITTAZ GRAHNI---CHARAKA CHIKITSAA 15 # 64 – 66
कट्वजीर्णविदाह्यम्लक्षाराद्यैः पित्तमुल्बणम्|
अग्निमाप्लावयद्धन्ति जलं तप्तमिवानलम्||६५||
सोऽजीर्णं नीलपीताभं पीताभः सार्यते द्रवम्|
पूत्यम्लोद्गारहृत्कण्ठदाहारुचितृडर्दितः||६६||
Katoch Sir....🙏
What type of cases can be included under this ?
[2/8, 11:53 AM] Dr. D. C. Katoch sir:
Acid Peptic disease...
[2/8, 11:54 AM] Dr. Pawan Madan: Ok...
Then what type of diasese will be under अम्लपित्त 🙏
[2/8, 11:57 AM] Dr. D. C. Katoch sir:
Charak has not desribed Amlapitta separately but touched it under Paittik Ajirna (Vidaghdajirna) and Paittik Grahani.
[2/8, 11:58 AM] Dr. Pawan Madan:
जी सर
So
Amlapitta as described by Madhav and just mentioned as a symptom in Grahni ... and..... pittaj grahni may be considered similar conditions ?
[2/8, 12:02 PM] Dr. D. C. Katoch sir:
Nomenclature and interpretation of one Acharya/Shastra should not be co-related with others. Every Acharya/Sahmita has used his preferred nomenclature and philosophy of the subject matter.
[2/8, 7:15 PM] Dr. Surendra A. Soni:
नमो नमः महाचार्य सुभाष जी ।
पूर्ण विस्तृत विवेचना के लिए हार्दिक आभार । हमने आ. ओझा सर की उपस्थिति में पहले भी यह चर्चा की है और आपने उस समय भी पूरा मार्गदर्शन दिया था ।
सादर प्रणाम !
🙏🏻🌹👏🏻☺️🕉️
[2/8, 7:18 PM] Dr. Surendra A. Soni:
Katoch Sir, Pawan Sir !🙏🏻🌹👏🏻🕉️☺️
[2/8, 7:25 PM] Dr. Surendra A. Soni:
Really insightful description @Vaidyaraj Subhash Sharma sir !
मेरे कुछ प्रश्न सादर स्वीकार करें -
रात्रि के भोजन के पश्चात दुग्ध सेवन का क्या कारण/आधार है ? क्यों रात्रि दुग्ध सेवन से विकार उत्पन्न नहीं होते ?
*Please see the shodhan process induced for srotoshuddhi. After deepan pachan most probably milk was advised for Brinhan being janmana-satmya.*
क्या रात्रि के भोजन के पश्चात दुग्ध लेना “भुक्तस्यपरि भोजनम” नहीं होगा?
*It was not immediately just like asavarisht. At least there is probable gap of 2-3 hours. What I understood in company of Honourable Sir.*
Dr. Pratyush ! tried to answer your questions......
[2/8, 7:43 PM] Vd Raghuram Y. S, Banguluru:
*Good ongoing discussions about grahani etc*🙏
💐💐💐💐💐💐💐
*My little thought insertion – though not related to grahani, but might be a lead to understand such diseases*
*Just a perspective*
💐💐💐💐💐💐💐
Many diseases are named *on the basis of the organs and organ systems involved* . Probably the names of these diseases carry a *broad spectrum of numerous pathological conditions* manifesting in these organs and surrounding structures. Example, grahani, hrdroga, shiroroga, udara, etc.
In spite of their doshic patterns (sankhya samprapti and description therein) of these diseases having been mentioned we need to also look at the aspect so as to *why certain diseases carry the name of the organs of manifestation! And what it exactly reflects from Ayurveda perspective (classical viewpoint)!*
*We get a clue of this in the explanation of unmada samprapti*
तैरल्पसत्त्वस्य मलाः प्रदुष्टा *बुद्धेर्निवासं हृदयं* प्रदूष्य।
स्रोतांस्यधिष्ठाय मनोवहानि प्रमोहयत्याशु नरस्य चेतः॥
च.चि.१/५॥
*हृदयोपघाताद् बुद्धि उपघातो वक्ष्यमाणो युक्त एव, आश्रय उपघातेन आश्रितस्य उपघातः सिद्ध एव।
चक्रपाणि।*
*बुद्धेर्निवासं हृदयमित्यनेन हृदयस्य आश्रयस्य दुष्ट्या तदाश्रित ज्ञानस्यापि दुष्टिर्भवतीति दर्शयति।मधुकोष।*
Master Chakrapani emphasizes that the *damage (pathology, affliction, vitiation) of ashraya will consequentially lead to the damage of ashrita* .
Like *when there is upaghata (dushti) of hrdaya, there is also upaghata (dushti) of buddhi / jnana seated therein* .
*This principle can also be applied to grahani*
💐💐💐💐💐💐💐
*The moral is* – (Many points here may not be relevant, bit may be seen as related)
👉 When a particular organ is afflicted it is afflicted structurally and functionally most often than not.
👉 The components of an organ may also be afflicted in the process.
👉 As per sankhya / vishishta samprapti concept – a particular dosha / doshas aggravated predominantly can cause different patterns of symptoms related to the afflicted organ.
👉 Ayurveda has also provided the *ahraya ashrayi bhava* concept to figure out such conditions.
👉 *Sthana Samshraya* in susceptible organs / tissues may create a suitable environment for the manifestation of diseases in the cycle of shatchakra. Weaker tissues show more affinity to the circulating doshas (kupitanam hi doshanam sharire paridhavanam…)
👉 *Ashayapakarsha* concept shows the depletion of inhabiting dosha in a particular sthana (organ) and its subsequent displacement followed by its hyperactivity (owing to abnormal increase) in seats of other dosha (where it is not intended to be).
These concepts help us to understand the diseases of the pattern of grahani in a precise way.
The above said concepts (mentioned in moral) may not be related to the point of discussion but may help us to understand it with the help of other patterns of disease manifestation.
💐💐💐💐💐💐💐
*My humble submission to the elite panel in the context of ongoing discussions*
(Please ignore if found irrelevant)
💐💐💐💐💐💐💐
*Dr Raghuram* 🙏❤🙏❤
[2/8, 7:43 PM] Dr. Suneet Aurora, Punjab:
🙏🏼
Practically, as we see growing अग्निमांद्य in most, the morning कफ काल / रसायन काल as you mentioned, gives symptoms of कफ/आम-अजीर्ण in later day.
So I shift most patients to evening 6pm रसायन दुग्ध। Although I suggest morning milk to वात/पित्त प्रकृति with समाग्नि।।
Please share your clinical experience on this, sir.
[2/8, 7:54 PM] Dr.Kaustubh badave:
ग्रंथो के हिसाब से सुर्यास्त से पहले भोजन लेना चाहिये
तो रात्र मे दुग्ध सेवन से दोषप्रकोप नही होगा जरूर कफ कुछ हद तक बढेगा पर प्रकोप नही होगा
ऐसा होता तो ये भुक्तस्योपरी भोजन नही होगा
क्या ऐसा हो सकता है ?
[2/8, 8:05 PM] Vd. Divyesh Desai Surat:
मैं मेरी अल्पमति से दूध रात को लेना चाहिए या नही....ये मेरे हिसाबसे जवाब देने की कोशिश करता हूँ।
आरोग्य के लिए 1 ही समय का भोजन करने वाले के लिए ये बात है, जो लोग शाम को भोजन नही करते उनको रात को
1 भाग जल 1 भाग दूध और पानी का भाग जल जाने पर केवल दूध शेष बचे तभी पीने से कोई भी दोष प्रकोप या वृद्धि नही करता, यहाँ पे गोदुग्ध ही लेना चाहिये।।
एक काल भोजनं आरोग्यकराणाम।।
इस बात पे मतभेद हो सकता है🙏🏾🙏🏾
[2/8, 8:44 PM] Dr. Vinod Sharma Ghaziabad:
एकदम सही, मैं भी वात और पित्त दोष में शाम को 5 से 6 बजे के बीच एक गिलास दूध में छुआरा, मुन्नक्का, खजूर पकाकर लेने की सलाह देता हूँ।
बच्चों को, और स्वस्थ में भी ये देने का परामर्श देतें है ताकि दूध का एकेले और स्वतंत्र पाचन हो सके, जैसे कि रसायन का।
रसायन भी प्रातः इसीलिए देतें हैं, दूध भी एक रसायन ही है, शिशु इसी दूध को पीकर पल बढ़कर जवान होतें हैं ।
[2/8, 8:59 PM] Dr. Surendra A. Soni:
क्षीरघृताभ्यासो रसायनानां ।
ये कैसे होगा ?
कृश परिश्रमी, व्याधि क्षीण में प्रशस्त ।
संतर्पण में अप्रशस्त ।
पथ्य सिद्धांत भी अवलोकनीय है ।
[2/8, 9:02 PM] वैध आशीष कुमार:
प्रणाम🙏🏻🙏🏻
आपके प्रश्न के उत्तर स्वरूप में एक संदर्भ यह भी है वैसे प्रश्न को और अधिक स्पष्ट भी कर सकते हैं कि कौन से पशु का दुग्ध और सुबह या शाम का दुग्ध क्योकि सभी मे अंतर दिया है।
भोजन के तुरंत बाद पीने के लिए दुग्ध सेवन नहीं बोला है🙏🏻🙏🏻
इसके अलावा आदरणीय गुरुदेव सोनी सर एवं गुरुदेव देसाई सर ने भी मार्गदर्शन प्रदान कर दिया है।
*जन्म से ही दुग्ध सेवन का अभ्यास होने से मनुष्यों के लिए सर्व प्रकार का दुग्ध सेवन निषेध नहीं है।*
*तत्र सर्वमेव क्षीरम प्राणिनामप्रतिषिद्ध जातिस्सातमयात*....
सु.संहिता,सूत्र ४५/49
[2/8, 9:34 PM] Dr.Chandresh Patel:
आओ जाने क्या कहता है #आयुर्वेद # दूध पीने के काल के बारे में -
प्रातकाल - में दूध सेवन बल्य ओर अग्नि को बढ़ाने वाला होता है
दोपहर में - दूध सेवन बल्य, कफ नाशक पित को शांत करने वाला ओर अग्नि वर्धक होता है
बाल्यकाल में दूध पान शरीर को बढ़ाने वाला ओर
वृद्धा अवस्था में - दूध पान क्षय नाशक ओर शुक्र वर्धक होता है
रात्रि में दूध पान सदा पथ्य दोष शामक ओर चक्षुष्य होता है ।
[2/8, 9:36 PM] Dr. Manoj Kumar Singh:
मैं अक्सर कफज प्रकृति के रोगीयो में दुग्ध+ हल्दी
या दुग्ध + पिप्पली
वातज प्रकृति - शतपुष्पा + अजवाइन+ पिप्पली
एवं कभी कभी पोस्ता दाना का भी प्रयोग करने के लिए बोलता हूं।
ऐसा करने से दुग्ध का सेवन भी हो जाता और कोई समस्या भी नहीं होती।
[2/8, 9:44 PM] Dr Sanjay Dubey:
फिर भी नवज्वर, मंदाग्नि, आम दोष वाले रोगियों में दुग्धपॎन से अनुपशय देखने को मिलता है l
[2/8, 9:58 PM] वैध आशीष कुमार:
इसके साथ ही आचार्य सुश्रुत द्वारा दुग्ध प्रकरण में कफ को छोडकर वात पित्त रक्त एवं मानसिक विकारों के लिए बताया गया है🙏🏻🙏🏻
[2/8, 10:16 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*वैद्य प्रत्यूष जी, आपका काय सम्प्रदाय में ह्रदय से स्वागत है और आपकी presentation ने मन प्रसन्न कर दिया कि आयुर्वेद की नई पीढ़ी भी आयुर्वेद तल पर निदान और चिकित्सा में पूर्ण रूप संलग्न है।*
*सम्प्राप्ति घटकों के साथ अंशाश कल्पना और चिकित्सा सूत्र का बहुत महत्व है, शोथ अनेक रोगों में उपद्रव है तो अनेक अवस्थाओं में लाक्षणिक चिकित्सा के रूप में रोगी का बल देख कर विरेचन निर्धारित किया जाता है साथ ही दीपन, पाचन, अनुलोमन, शोथघ्न, भेदन आदि कर्मों के अनुसार द्रव्यों का चयन करते है।*
*सामान्यतः रोगी के बलानुसार 3 से 7 दिन तक के बीच हम विरेचन देते हैं इस से शाखागत कुपित दोष कोष्ठ में आ कर शरीर से बाहर हो जाते हैं और रोगी का body wt. भी प्रतिदिन देखना चाहिये। *
*रोगी की investgation reports भी अगर साथ देते हैं तो निदान में और भी सहायता हो जाती है।*
*इसी प्रकार से उत्साह पूर्वक आगे भी अपनी शंकाओं का निवारण करने हेतु निरंतरता बनाये रखें, यहां अनेक विद्वान गुरूजन हैं जो भरपूर सहयोग देते है और अपने अनुभवों को भी share करते रहिये।*
*काय सम्प्रदाय में आये नवीन सदस्यों से भी निवेदन है वैद्य प्रत्यूश जी की तरह चर्चा में भाग लीजिये, कोई जिज्ञासा है तो प्रश्न कर सकते हैं, अपने आयुर्वेदीय ज्ञान और अनुभव को यहां प्रस्तुत करिये और बिल्कुल भी भयभीत ना रहें । हम लोग हर समय आपके हर संभव सहयोग के लिये ही हैं।*
[2/8, 10:25 PM] Dr.Pratyush Sharma: 😊 सादर धन्यवाद 🙏🏻
[2/8, 10:27 PM] Dr. Surendra A. Soni: नमो नमः ।🙏🏻🌹🕉️
[2/8, 11:24 PM] Vaidya Sameer Shinde, satara:
निद्राल्पता मे रात को सोते समय माहिष दुग्धपान कारगर सिद्ध होता है।
आजकल packed एवं pasturized milk ज्यादा सेवन करनेवाले अनेक रोगी मे अग्निमांद्य एवं त्वक विकार के लक्षण देखने को मिलते है
।
[2/9, 12:15 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*सत्य वचन डॉ तिवारी जी,
*अनुक्त व्याधियां अब अनेक आती जा रही हैं और इनके निदान और चिकित्सा की विधि यही है जो आपने लिखी 👍👌🙏*
[2/9, 12:29 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*डॉ रघु जी , बहुत ही विस्तार से और महत्वपूर्ण व्याख्या । ग्रहणी और इस से संबंधित भावों को इसी प्रकार से समझना अति आवश्यक है।* 👌👍👏🙏
[2/9, 6:58 AM] Dr. Shashi:
Evening and early nights (4pm to 10 pm) after evening meals, udana kaal, milk having all the 10 Gunas of oja.
1. Will keep bata pitta and kafa balanced.
2. Patients having vataja or pittaj vyadhies will be relieved of .
3. But in kafaja vyadhies or samaj vyadhies milk will create problems.
4. Some persons eat dinner very late, even then have the habit of taking milk just after milk, for good sleep, it is not good. I advise them to take milk in evening at there work place after 4hrs. of lunch.
Thanks
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Above discussion held on 'Kaysampraday" a Famous WhatsApp-discussion-group of well known Vaidyas from all over the India. This is very old discussion held in 2021 and it was pending for publication.
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Compiled & Uploaded by
Vd. Rituraj Verma
B. A. M. S.
Shree Dadaji Ayurveda & Panchakarma Center,
Khandawa, M.P., India.
Mobile No.:-
+91 9669793990,
+91 9617617746Edited by
Dr.Surendra A. Soni
M.D., PhD (KC)
Professor & HeadP.G. DEPT. OF KAYACHIKITSA
Govt. Akhandanand Ayurveda College
Ahmedabad, GUJARAT, India.
Email: kayachikitsagau@gmail.com
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