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WDS102: लीन दोष भाग-१ (Leen-dosha, Part-1) by Vaidya raja Subhash Sharma, Prof. Shrikrishna Khandal, Prof. L. K. Dwivedi, Dr. Dinesh Katoch, Prof. Prakash Kabra, Prof. Arun Rathi, Dr. Pawan Madaan, Dr. Sanjay Chajed, Vd. Atul Kale, Vd. Vinayak Dongare, Vd. Vinod Sharma, Vd. Akash Changole, Vd. Vandana Vats, Vd. Shailendra Mehata &

[3/17, 1:06 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:  *लीन दोष -भाग 1.....  लीन दोष की व्याख्या और clinical presentations -  Liver Fibrosis एवं अनेक रोगों के साथ* *वैद्यराज सुभाष शर्मा, एम.डी.(आयुर्वेद-जामनगर, गुजरात -1985)* *(सादर आभार परम आदरणीय प्रो.बनवारी लाल गौड़ जी, जिनके द्वारा लिखित चरक चक्रपाणि पर एषणा व्याख्या ने लीन दोषों पर अनुसंधान और आधुनिक काल के रोगों में clinical दृष्टिकोण से कार्य के लिये प्रेरित किया)* *एक युवक gym में व्यायाम करते, कोई DJ पर डांस करते, अनेक लोग असमय या समय से पूर्व ही सोते समय, स्नान करते हुये मृत हो गये। मनुष्य स्वस्थ था पर अचानक ही गंभीर व्याधि से ग्रसित हो गया... क्या है ये सब !* *लीन दोष पर एक विस्तृत श्रंखला clinical presentation के साथ लिखने जा रहे हैं जिसमें आधुनिक काल के अनेक रोग भी हैं...* *लीन दोष तो सभी मनुष्यों में कहीं ना कहीं मिलेंगे ही पर वो कुपित हो कर रोग लक्षण प्रकट करने में समर्थ कब होंगे ?  च सू 28/7 पर आचार्य चक्रपाणि 'अपचार' इस शब्द को स्पष्ट करते हैं और इसकी अत्यन्त ज्ञानवर्धक एवं श्रेष्ठ व्याख्या परम आदरणीय गुरूश्रेष्ठ प्रो.बनवा

WDS 101: 'Kha-vaigunya/Srotas (ख-वैगुण्य/स्रोतस्) by Vaidyaraja Subhash Sharma, Prof. S. K. Khandal, Prof. Gurdeep Singh, Prof. L. K. Dwivedi, Dr. Dinesh Katoch, Dr. Sanjay Chhajed, Prof. Arun Rathi, Prof. Giriraj Sharma, Dr. Pawan Madaan, Vd. Raghuram Bhatta, Dr. B. K. Mishra, Vd. Atul Kale, Dr. Bharat Padhar, Prof. Mrinal Tiwari, Vd. Ashok Rathod, Dr. Sukhbeer Soni, Dr. Divyesh Desai, Dr. Bhadresh Nayak, Vd. Radheshyam Soni, Prof. Madhav Diggavi, Prof. Mamata Bhagwat, Dr. Satish Solanki, Dr. Sanjay Khedkar, Vd. Prajakta Tomar, Dr. Shashi Jindal, Dr. Sumeet Arora & Others.

[12/30, 2:58 PM] Dr. Pawan Madan:  चरण स्पर्श गुरु जी। तीन प्रकार के हेतु ,,,दोष प्रकोपक  ,,,धातु दुष्टि कारक ,,,ख वैगुण्य कारक ये तीनों मिल कर व्याधि की उत्त्पत्ति का निश्चय कर देते हैं। कई बार धातु वैगुण्य कारक  हेतु  बहुत पहले से कार्य कर रहे होते हैं फिर बाद में कभी भी जब दोष प्रकोप होता है तो एक दम से व्याधि प्रकट हो जाती हैं। गुरु जी क्या खवैगुण्य कारण व धातु दुष्टि कारण एक ही नही हैं, क्योंकि खवैगुण्य भी धातुओं में ही होता है ? 🙏🙏  ख-वैगुण्य कारक  हेतु से धातुदुष्टि भी होना आवश्यक नहीं है🙏🏼 [12/30, 5:16 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:  *शुभ सन्ध्या सहित नमस्कार पवन जी, हेतु केवल तीन ही कार्य करेंगें, दोषों को कुपित अथवा वृद्ध करेंगे जैसे प्रमेह में  'बहुद्रवः श्लेष्मा दोषविशेषः'  च नि 4/6  हेतु से कफ की वृद्धि,  तृष्णा रोग में  'पित्तानिलौ प्रवृद्धौ सौम्यान्धातूंश्च शोषयतः'  च चि 22/5  पित्त और वात मिल कर तृष्णा,  गुल्म में वात वर्धक हेतु देखिये  'रूक्षान्नपानैरतिसेवितैर्वा शोकेन मिथ्याप्रतिकर्मणा वा, विचेष्टितैर्वा विषमातिमात्रैः कोष्ठे प्रकोपं समुपैति वाय