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Case-presentation :'Vrikka-nipat' (Renal-failure) by Vaidya Subhash Sharma

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This is greatest case-presentation by Great Vaidyaraja Subhash Sharma Sir in last 3 years of duration of publication of 'Kaya-chikitsa-blog' for the students and young Ayurveda doctors. 
It is advised to generation next that first read, understand and analyse all basic concepts in classical Ayurveda texts book before implementation in practice. Hon'ble Subhash Sir has mentioned all essential contents of Samprapti and other relevant factors with evidences of recovery in form of Investigation-reports. 
I, as an Admin of the blog, on the behalf of Gujarat Ayurved University, Jamnagar, Gujarat, India; grateful to Vaidya Subhash Sharma Sir for case given for publication on Blog.
Dr. Surendra A. Soni
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[9/20/2018, 01:59] Vd. Subhash Sharma Ji Delhi: 



case presentation* 



*chronic kidney disease

 आयुर्वेदीय सम्प्राप्ति घटक एवं चिकित्सा सूत्र - 10 रोगियों पर clinical study*



*विविधम पीतं लीढं खादितं .... सर्वधातूष्ममारूतस्रोत:... च सू 28/3 अर्थात सम्यग् आहार सेवन करते हुये भी उसका सही प्रकार से उपयोग होने में जाठराग्नि, पंचभूताग्नि, धात्वाग्नि, वायु और स्वस्थ स्रोतस आवश्यक है।*



*अग्नि, व्यान वायु और स्रोतस में सब से अधिक महत्व अग्नि को दिया गया है। च सू 27/32 में ‘बलमारोग्युश्च प्राणाश्चाग्नौ प्रतिष्ठिता:’ एसा कह कर अग्नि को ही प्रधानता दी गई है।*



*वृक्क दुष्टि में सब से अधिक महत्व वात, अग्नि और स्रोतस का किस प्रकार है ये आगे स्वत: ही स्पष्ट हो जायेगा ।*



*गर्भस्य यकृत्तप्लीहानौ शोणितजो ... असृज: श्लेषमणश्चापि य प्रसाद: ... ततोऽस्यान्त्राणि जायन्ते गुदं बस्तिश्च ... रक्तमेद: प्रसादवृक्कौ । 
सु शा 4/ 24-30*

*अर्थात गर्भ के यकृत प्लीहा रक्त से, रक्त और कफ के सार में पित्त और वायु के द्वारा आन्त्र, गुदा और बस्ति तथा रक्त और मेद के प्रसाद से वृक्कौं की उत्पत्ति होती है ।*
*च शा 3/12 में वृक्कौं को मातृज भाव जन्य कहा है ।*
*अष्टाग संग्रह शा 5 में ‘सप्ताश्या:...वायुमूत्रधारा:... वृक्कान्त्रादीनि’ के अतिरिक्त आर्ष ग्रन्थों में कहीं भी स्पष्ट नही बताया गया है कि वृक्कों का संबंध मूत्र निर्माण से है ।*


*वृक्क मेदोवाही स्रोतो का मूल है, इसका कार्य मेद की पुष्टि करना है और दूसरा मूत्रवाही स्रोतस है जिसका मूल बस्ति और वंक्षण है, अत: चिकित्सा में दोनो को ले कर चलते है क्योंकि दोनो अपानवात के क्षेत्र हैं और दोनो के लिये अनुलोमन आवश्यक है।*
*सु शा 9/6 में  ‘अधोगमास्तु वातमूत्रपुरीष...तोयवहे द्वै, मूत्रबस्तिमभिप्रपन्ने मूत्रवहे द्वे’ मूत्रोत्पत्ति का स्थान आमाश्य-पक्वाश्य बताया है कि किस प्रकार आहार जलीयांश प्रधान किट्ट का अंश मूत्र विभिन्न स्रोतों द्वारा बस्ति प्रदेश में संग्रहीत हो जाता है।*

*यदि वृक्क रोग पर जाने से पहले हम ध्यान से देखें तो आर्ष ग्रन्थों में क्रिया शरीर और विकृत शरीर के अंगों से अधिक महत्व दोष और स्रोतस को दिया है।अथर्ववेद में ‘यदान्त्रेभ्योथ गवीन्योर्यद् वस्तावधि संश्रितम् , एवा ते मूत्र मूच्यतां वहिर्वालिति सर्वकम्।...’ अर्थात मैं तेरी आन्त्र में, गवीनियों, मेहन और बस्ति में रूके हुये मूत्र को बाहर करता हूं, अर्थात मूत्र मार्ग का आरंभ बृहदान्त्र से हो कर अंत गवीनियों में होता है, *
*वृक्क रोगों की चिकित्सा करने से पहले हमें बहुत से पक्षों को जानना आवश्यक है क्योंकि मूत्र निर्माण में जो भी वर्णन आयुर्वेद है वो एक स्थान पर नही है, एसा ही निदान और चिकित्सा पक्ष के साथ भी है। मूत्र निर्माण की आयुर्वेदोक्त प्रक्रिया की तुलना अगर आप आधुनिक पक्ष से कर के चलते है तो आप भ्रमित हो जायेंगे।आयुर्वेदीय मूत्र निर्माण प्रक्रिया और वृक्क रोगों की चिकित्सा में यदि हम तत्कालीन प्राचीन आयुर्वेदीय आधार ले कर चिकित्सा करते है आश्चर्य होता है कि अति शीघ्र ही लाभकारी परिणाम मिलते है जो आप आगे रोगियों की before & after treatment investigation reports में देखेंगे ।*

*आयुर्वेद में वृक्क और मूत्रवाही स्रोतों से संबधित अव्यव ये है जो निदान और चिकित्सा में सहायक हैं...*


*भुक्त आहार पाचक पित्त कि क्रिया से रस और किट्ट भाग में परिवर्तित हो जाता है, रस से रक्तादि धातु उपधातुओं की और किट्ट से मल मूत्रादि उत्पन्न होते हैं। अन्न का अंत में पाक क्षुद्रान्त्र में हो प्रसाद भूत रस रसवाहिनियों द्वारा सर्वांग शरीर में और शेष किट्ट भाग पक्वाश्य में जा कर कटु रस दूषित वायु प्रधान पिंड स्वरूप पुरीष, सूक्ष्म भाग मूत्र स्थित करता है।अत: वृक्क रोगों की चिकित्सा में एक स्थान पक्वाश्य और यहां स्थित अपान वात का है ।*

*मेदोवहानां स्रोतसां वृक्कौ मूलं वपावहनं च अर्थात दौ वृक्क । च वि 5/8*
*मूत्रवहानां स्रोतसां बस्तिर्मूलं वंक्षणौ च । च वि 5*
*मूत्रवाही धमनी द्वय*
*गवीनी द्वय*
*मूत्र प्रसेक*
*वृक्कौं का निर्माण रक्त और मेद प्रसाद, पक्वाश्य एवं इसके अंतर्गत अव्यवों का निर्माण रक्त के प्रसाद से एवं अपान वायु क्षेत्र होने से, चिकित्सा घटकों में रक्त, मेद और अपान वायु घटकों का विशिष्ट महत्व है।*
*रस धातु ही सर्व धातुओं का पोषण करता है, अग्नि मंद हो कर दोष वैषम्य होने से रस धातु दूषित हो कर ‘...ह्रत्पांडुरोगमार्गोपरोध ... अर्थात स्रोतों का अवरोध’ (सु सू 24/9) कर देता है, वैसे भी प्रथम दृष्टि में वृक्क दोष साक्षात स्रोतोवरोध ही प्रतीत होता है, अत: अग्नि, आम दोष और आद्य धातु रस का सर्व प्रथम स्थान है।*

*मूत्रवहन विकृति 2 प्रकार की मिलती है, 1- मूत्र की अप्रवृत्ति जन्य  और दूसरी अति प्रवृत्ति जन्य।*

*अप्रवृत्तिजन्य में भी दो भेद हैं एक मूत्राघात - इसमें वातकुंडलिका वात अष्ठीला वात बस्ति मूत्रातीत मूत्रजठर मूत्रोत्संग मूत्रक्षय मूत्रग्रन्थि मूत्रशुक्र उष्णवातादि और मूत्रकृच्छ में वातादि, अश्मरी शुक्रादि*
*अतिप्रवृत्ति जन्य में 20 प्रमेह*


*वृक्कौं का आप्य अर्थात सूक्ष्म जल से सीधा संबंध है ‘मूल: स्वेदस्तु मेदस:’ च वि 5/8 एवं मेद का मूल वृक्क है ।*



*वृक्क रोग के बहुत से लक्षण सीधे पक्वाश्यस्थ वायु की विकृति के रूप में मिलते हैं, ‘पक्वायस्थोऽन्त्रकूजं शूलं नाभौ करोति च । कृच्छमूत्रपुरीषत्वमानाहं त्रिकवेदनाम् ।।’ सु नि 1/2 तथा डल्हण की टीका ‘चकाराद् वातविण्मूत्रसंग जंघो स त्रिक पार्श्वपृष्ठादीन प्रतिशूलन्यं कुरूते।’ अर्थात पक्वाश्य में कुपित हुई वायु आन्त्र कूजन (ये जलोदर होने पर भी होता है), नाभि प्रदेश शूल, मूत्र एवं पुरीष प्रवृत्ति में कठिनत, आटोप, विबंध जनित आनाह, पार्श्व पृष्ठ त्रिक जंघा ऊरू प्रदेश में शूल तथा मल-मूत्र वात का संग करती है, यहां अपान वायु की विकृति है तथा अधोगामी अपान से समान वात भी विकृत हो जाती है।*

*जब diagnosis किया हुआ रोगी CHRONIC KIDNEY DISEASE,CHRONIC RENAL FAILURE या RENAL DISEASE ले कर आता है तो यहां शास्त्र का स्पष्ट मत है कि रोग अपरिसंख्य है, सभी का नाम ग्रन्थों में मिलना संभव नही है ‘विकारनामाकुशलो न जिव्हीयात् कदाचन । न हि सर्वविकाराणां नामतोऽस्ति ध्रुवा स्थिति: ।। च सू 18/44 तथा चक्रपाणि अनुसार 
दोषादीनिति दोषदूष्यनिदानान्यग्रे वक्ष्यमाणानि, किंवा दोषभेषज देशकालबल शरीराहारसात्म्यसत्वप्रकृतिवयांसि सूत्रस्थानोक्त’ अर्थात चिकित्सा में रोग के मूल दोष को जाने, रोग का नाम कोई उपयोगी नही है तथा यह भी संभव है कि किसी कारण रोगी के रोग का नाम चिकित्सक भूल जाये तो इस से चिकित्सा में कोई व्यवधान नही होता। चिकित्सक दोषों की अंशाश कल्पना करे, दूष्य और निदान को उनके अनुसार औषध आहार और विहार के ज्ञानानुसार चिकित्सा करे तो रोग नष्ट हो सकता है।*

[9/20/2018, 02:00] Vd. Subhash Sharma Ji Delhi: 

*अनेक रोगियों मे जिन पर case study यहां लिखी जा रही है उनमें मिले जुले लक्षण इस प्रकार मिले-*

*अक्षि कूट, मुख, पाद या सर्वांग शोथ - कफ*

*मंदाग्नि - आम दोष एवं कफ*
*श्वास कृच्छता - प्राण वायु*
*पृष्ठ वेदना - अपान वात*
*कटि - त्रिक वेदना - अपान व्यान वात*
*जलोदर -त्रिदोषज*
*रक्ताल्पता - रंजक पित्त*
*उत्क्लेश - समान वात*
*अल्प एवं कृच्छ मूत्र - अपान वात*
*विबंध - अपान वात*
*अंगसाद -कफ*
*कदाचित भ्रम - पित्त*
*आध्मान - वात*
*वक्ष गुरूता - कफ*
*रात्रि गुल्फ संधि शूल - वात*
*रोग का भय - वात*
*रात्रि समय मूत्र प्रवृत्ति - वात*
*त्वक रूक्षता - वात*
*कुछ रोगियों में त्वक वैवर्ण्य - भ्राजक पित्त*


*रोग निदान - *


*रोगियों में जो कारण मिलते है उसे हम चार भागों में बांट सकते है ....*

*आहार - आम दोष कारक आहार, अम्ल, लवण रस का अधिक प्रयोग, विरूद्ध आहार, असात्म्य और विदाही आहार, अभिष्यंदी एवं एसा आहार जो पुराना हो गया था, या बार बार भोजन करना, अति जल पान, अति अथवा दीर्घ काल से मद्यपान करते रहना,केवल मद्यपान करना पर भोजन ना करना आदि, ketch up, vineger युक्त fast या instant food से रोग के लक्षण एवं investigation reports बढ़े हुये मिलते है।*

*औषध - बहुत से रोगी हैं जो दीर्घ काल से HT DM GOUT ARTHRITIS आदि रोगों की, antibiotics, मूत्रल या अन्य शूल नाशक अथवा पीड़ाहर औषधियां ले रहे थे, दो रोगी एसे भी थे जिन्होने protien shakes का सेवन किया था, practice में एसे भी रोगी मिलते रहे है जिन्होने अपनी चिकित्सा स्वयं कर आयुर्वेदीय sex tonics या रसौषधियां ली हैं जिनसे b urea, s cr. level में वृद्धि हुई या hydronephrosis मिला।*
*विहार - रात्रि जागरण, एसे भी प्रमेह रोगी है जो भोजन करते ही दिवास्वप्न करते हैं।*
*अन्य कारण - अधिक उपवास करना, मूत्र वेग को धारण करना, जीर्ण विबंध, क्षुधा लगने पर भी किसी कारण आहार ग्रहण ना करना।इसके अतिरिक्त प्रमेह रोग, व्यान एवं अपान वात के साथ साधक पित्त की विकृति जो HT के सदृश है, uric acid वृद्धि, वृक्क में ग्रन्थि आदि अनेक कारण है, हमें practice अभी पिछले दिनो कुछ रोगी एसे मिले जिनका kidney failure chemotherapy कराते ही हो गया था।*



[9/20/2018, 02:01] Vd. Subhash Sharma Ji Delhi:



 *दोष - त्रिदोषज होते हुये भी वात प्रधान, समान वायु, अपान वायु, HT और जलोदर होने पर व्यान और प्राण वायु,पाचक पित्त*

*धातु - रस रक्त मेद मल मूत्र और सिरा*
*अग्नि - जाठराग्नि एवं धात्वाग्नि*
*स्रोतस - मेद मूत्र पुरीष*
*दुष्टि - संग एवं विमार्ग गमन*
*अधिष्ठान - पक्वाश्य*
*व्याधि स्थान - वृक्क एवं वस्ति*
*व्याधि स्वभाव - चिरकारी तथा असाध्य*
*चिकित्सा उद्देश्य - रोगी को dialysis और kidney transplant. से बचाना,संबंधित रोग अव्यवों को बल प्रदान कर repair करना, रोग से संबंधित उपद्रवों को आयुर्वेद द्वारा शांत करना।*


*चिकित्सा सूत्र - दीपन,आम पाचन, रक्त शोधन, स्वेदन, अनुलोमन, रसायन, कर्षण, भेदन, लेखन, मूत्र शोधन, मूत्र प्रवर्तन, मृदु रेचन तथा लाक्षणिक चिकित्सा।*



*पंचभौतिक चिकित्सानुसार 

1 पार्थिव ‘...विशेषतश्चाधोगतिस्वभावमिति 

2 वायव्य ,... सूक्ष्मखरशिशिरलघुविशदं ..ईशतिक्तं विशेषत: कषायमिति वायवीयं। 

3 आकाशीय ‘लाघवग्लपनविरूक्षण.. शलक्ष्णसूक्ष्ममृदुव्यवायीविशद...।

सु सू 41, तथा रस स्कंधानुसार 

(1) मधुर - गुडूची यव गोक्षुर कूष्मांड पुनर्नवा कुश कास शर आदि 

(2) तिक्त - चंदन पुनर्नवा गुडूची आदि च चि 8 , आरग्वध गुडूची हरिद्रा वरूण पुनर्नवा आदि सु सू 42, 

(3) कषाय - पाषाणभेद त्रिफला के घटक, च चि 8 आदि का प्रयोग अधिक होता है।*


*patent औषधियों से CKD चिकित्सा कठिन है क्योंकि रोगी की प्रकृति, दोष दूष्यानुसार विभिन्न योगों का निर्माण भिन्न भिन्न अवस्थाओं में करना पड़ता है।*

*इस रोग में अलग अलग रोगियों पर हम विभिन्न प्रकार के योगों का प्रयोग अवस्थानुसार करते हैं,पारद योग का प्रयोग करने से बचे, बेरपत्थर भस्म, टंकण भस्म, प्रवाल भस्म का प्रयोग करते हुये वृक्कों पर कोई दुष्प्रभाव नही मिलता। विभिन्न क्वाथों एवं औषधियों का प्रयोग इस प्रकार करते है ...*

*तृणपंचमूल,शतावरी, गोखरू पंचांग, शालपर्णी, पृष्णपर्णी, काकमाची, पुनर्नवा, धनिया, श्वेत जीरक, उन्नाव - प्रत्येक 100-100 gm, आरग्वध 500 gm, खीरे के बीज 30 gm गुलाब के फूल 40 gm, इमली के बीज 40 gm*

*10 gm मिश्रण का क्वाथ प्रात: सांय।* (मूत्रविरेचन स्वेदन मृदुविरेचन बल्य मूत्रकृच्छहर वृक्क शोथहर मूत्रल मूत्रकृच्छ)
*सरकंडा पत्र, गुडूची, पित्तपापड़ा, उशीर, नेत्रबाला, पुनर्नवा पंचांग, गोखरू, काकमाची, गुलाब के फूल, रक्त कमल, श्वेत चंदन,पाषाण भेद और हरिद्रा समभाग ले कर इनका क्वाथ ।* (मूत्र विरेचन विषध्न बल्य मूत्रकृच्छहर रसायन भेदन मूत्रविशोधन वृक्क शोथहर )
*पाषाणभेद, गोखरू, वरूण छाल, यव, ककड़ी के बीज, खरबूजे के बीज और बढ़ी एला समभाग ले कर क्वाथ विधि से।* (मूत्र विरेचन बल्य मूत्रकृच्छहर भेदन वृक्क शोथहर मूत्रल )
*कुलथी की दाल का सूप* (स्वेदन कर्षण 
*पुनर्नवा मूल, ईक्षु मूल, छोटा गोक्षुर, सौंफ, धनिया, मकोय, कासनी के बीज, खीरे के बीज, पाषाण भेद और गिलोय समभाग ले कर इनका क्वाथ।* (मूत्र विरेचन स्वेदन दीपन मूत्रकृच्छहर बल्य रसायन भेदन वृक्क शोथहर )
*अश्मरी हर क्वाथ बेर पत्थर भस्म मिलाकर* (मूत्र विरेचन भेदन वृक्क शोथहर मूत्रल मूत्रकृच्छ)
*वरूणादि क्वाथ* (मूत्र विरेचन भेदन वृक्कशूल बस्तिशूल हर)
*फलत्रिकादि क्वाथ* (लेखन भेदन आमलकी- हरीतकी से रसायन वयस्थापक दीपनीय रक्त शोधक प्रमेह हर मेदमूल वृक्कौं पर शीघ्र कार्य कर)
*चन्द्रप्रभा वटी*(मूत्रकृच्छ मूत्राघात हर बल्य मूत्र में albumine नियन्त्रक)
*कुटकी चूर्ण* (लेखन भेदन पित्तरेचन)
*गुड़ हरीतकी* (रसायन त्रिदोष नाशक मलमूत्र रेचन प्रमेह हर होने से मेदोवाही स्रोतो वृक्क दोष हर)
*गोक्षुरादि गुग्गलु* (मूत्रकृच्छ वृष्य रसायन)
*पुनर्नवा चूर्ण* (वृक्क शोथहर मूत्रल मूत्रकृच्छ)
*गोक्षुर क्वाथ - छोटा गोक्षुर 10 gm ले कर 100gm जल में उबालें 50 gm रहने पर छान कर रखें और दिन में तीन बार पीने के लिये दें।* (मूत्रकृच्छहर बल्य )
*आरग्वध का pulp* (मृदु विरेचन,अनुलोमन)
*कूष्मांड स्वरस 30 ml प्रात: बेरपत्थर भस्म 500 mg मिलाकर।* (बस्ति शोधक,मूत्राम्लता नाशक)
*मयूरशिखा, भुट्टे के बाल, गोखरू, खरबूजे के बीज, गोखरू, तृणपंचमूल, पुनर्नवा और कुटकी समभाग ले कर 10 -15 gm ले कर दिन में दो बार देने पर ये बहुत अच्छा परिणाम देता है।* (मूत्रकृच्छहर बल्य )
*यव - * (पुरीषजनन लाघवम लेखन)
*तोरई* (वृक्क बस्ति शोधन)
*शरपुंखा* (स्रोतो अवरोध नाशक)

*पुनर्नवा गुग्गलु का प्रयोग इस रोग में हम नही करते क्योंकि उसमें भल्लातक होता है, इसी प्रकार कुचला योग भी रोगियों को नही देते क्योंकि इनसे s.cr level  बढ़ जाता है।*



[9/20/2018, 02:02] Vd. Subhash Sharma Ji Delhi: 



*2018 में नये रोगियों में से कुछ जिनकी चिकित्सा अभी चल रही है, की चिकित्सा प्रगति इस प्रकार रही... 



BU - blood urea, S.Cr. -Serum creatnine,UA - uric acid*



*patient 1/male/ 55 yrs*
1/4/18   BU 140 - SCR 6.33 - UA - 11.40
22/4/18 BU 101 - SCR 5.93 - UA - 8.30
29/4/18 BU 66.  - SCR 4.76
16/5/18. BU 86. - SCR 8.10  - UA - 5.58
11/7/18. BU 78. - SCR 4.70
14/9/18 BU 73.9 - SCR 4.51









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*patient 2/male/60 yrs*
24/7/17 BU 89 - scr - 3.58
11/11/17 bu 53 - scr - 2.84
12/7/18 bu 58 - scr - 2.92























































——————————-
 *patient 3/male/ 68*
28/7/18 bu 86.11 - scr 3.95 - ua - 9.12
18/8/18 bu 51.74 - scr 2.79 - ua - 6.31
7/9/18  bu 44.8. - scr 2.52. - ua - 5.94



























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 *patient 4/male/60*
23/7/18 bu 242.90- scr 9.79 - ua - 7.13
30/7/18 bu 193 - scr 7.69. - ua - 6.35
19/10/18bu 113.50-scr 4.13-ua - 6.26









































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 *patient 5/ male/56*
6/8/18 bu 58.20 - scr 2.73 - ua - 6.20
23/8/18 bu 42 - scr  2.30 
4/8/18. bu 37.90 - scr 2.45 - ua - 5.30























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 *patient 6/female/ 42*
25/8/18 bu 70.5 - Scr 2.65
6/9/18. bu 59.3 - scr - 1.60































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*patient 7/male/ 63*
25/7/18 bu 77 - scr - 2.
3/8/18 bu 69 - scr - 2.2
9/8/18 bu 51 - scr - 1.79

























——————————
 *patient 8/male/ 60*
6/5/18 bu 65 - scr - 1.22 - ua - 11
22/6/18 bu 59 - scr - 0.85 - ua - 7.5





























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*patient 9/male/ 19 yrs*
20/8/18 bu 98 - scr 1.87
10/9/18 bu 83 - scr - 1.42
(Reports could not be uploaded. )


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 *patient 10/ female/ 48*
15/10/16 bu 228.6 - scr - 9.50 - bsr 205
26/2/17 bu 124 - scr - 6.3
24/3/17 bu 59 - scr - 4.8

*यह रूग्णा सवाई मान सिंह अस्पताल जयपुर का case था जिसे kidney transplant. करने के लिये कहा था। धीरे धीरे इसकी सभी blood reports wnl हो गई, अब हम इसे केवल एक क्वाथ ही प्रात: सांय पीने के लिये देते हैं।*





*CKD असाध्य रोग है, इसमें हम रोगियों की privacy रखते हैं।अत: सभी रोगियों की before & after investigations reports evidence के रूप में admin Prof.Dr. Surendra Soni ji को forward कर रहे हैं।*




[9/20/2018, 02:31] Vd Ranga Prasad Ji Chennai: 

अत्युत्तम, विस्तृत, विश्लेषण तथा कार्य सिद्धि - नमोन्नम: सुभाष शर्माजी ।।

[9/20/2018, 05:51] Dr Naresh Garg, Jaipur: 

excellent presentation sir. Apke Anubhav se Ayurved ka practical knowledge milta hai.

[9/20/2018, 05:55] pawan madan Dr:

 लाजवाब !
 Very comprehensive.....
 Ultimate explanation.


*Wonderful maintenance results.*



*This is the problem which I used to face. In almost all of the CKDs the value of creatinine come down e.g. from 10 to 6 or from  4 to 2 or from 3 to 1.9 or 1.5 but it is never coming less than 1 and that too for few months*.

*
*After few months the creatinine again shoots up very rapidly*.

*Sir is ke baare me maargdarshan dijiye please* 


[9/20/2018, 06:03] pawan madan Dr: 

*This is I am talking about CKD patiwnys.....all AKDs are completely curable and reversible usually.*

[9/20/2018, 06:14] pawan madan Dr:

 *Gokshuraadi guggulu is one of the best combination which gives ultimate reaults. Sometimes I use it in larger doses in CKd patients which gives fast results*.


*Punarnava swaras is another favourite one in such cases*.



*Somtimes mahasudharshan ghan vati is useful im many cases.*



*Even in few cases....Adding basantkusumakar rasa is helpful althogh it contains Parad etc*.



*In few cases when there was pitta predominance I added kamdudha rasa with promising results*.


[9/20/2018, 06:40] Dr Yogesh Gupta:

 SHAT SHAT PRANAM SIR AAYURVED JAGAT KO APNA KIMATI SAMAY PRADAN KARNE KE LIYE .

[9/20/2018, 06:46] Ranvir Rajpurohit Dr: शानदार


[9/20/2018, 07:09] Dr. D C Katoch sir: नमो नमः,  अत्युत्तम मान्यवर।

[9/20/2018, 07:23] Prof Giriraj Sharma: 

सादर नमन आचार्य,,,
मेदवह स्रोत एवं वृक्क के आर्ष सूत्र की चिकित्सीय दृष्टिकोण से प्रतिपादन के लिए आपने जो प्रयोगधर्मिता का साहस दिखाया है । आपके इस नैतिक बल को सादर नमन 


[9/20/2018, 08:54] Dr Atul Kale, Pune: 

Sharma sirji very nice presentation. 

[9/20/2018, 09:02] Prof. Deep Narayan Pandey: 

Dr Subhash Sharma ji, 

First of all, many many congratulations to you on a great success that you had, and that finally brought smiles on the faces of the people.



It is through such meticulous documentation at the level of Vaidya that actually results in a large number of Vaidya-Scientists working on the same problem and running the  *n-of-1 clinical trials*



This can change the face of Ayurveda tomorrow....brilliantly made presentation here. 



[9/20/2018, 09:08] Dr C P. Dixit:

अनुभवजन्य ज्ञान का तथ्यात्मक विश्लेषण सर पहली बार पढने को मिला है।
बहुत बहुत धन्यवाद सर l

[9/20/2018, 09:19] Dr Surendra A Soni: 

नमो नमः आचार्य जी ।

[9/20/2018, 09:58] Sanjay Chhajed Dr. Mumbai: 

Guruvar, dhanya ho Gaye.



[9/20/2018, 10:02] Sanjay Chhajed Dr. Mumbai: 

In my practice I use fresh quath of Gokharu mul, Punarnava mul, and guduchi along with dashmool Ghana and gokshuradi guggulu, chandraprabha.


[9/20/2018, 10:15] Dr Divyesh Desai: 

सर, धन्यवाद l
पुनर्नवागुगुल के बदले पुनर्नवा अष्टक घन use कर सकते है?
गोमूत्र का use CKD में कर सकते है ? 
हमारे यहाँ गाय को भी दूध बढ़ाने के लिये oxytocin इंजेक्शन देते है, ऐसा गोदुग्ध वृक्क में हानिकारक होकर s creatinine ओर बढ़ सकता है ?
drug induce kidney failure, diabetic nephropathy, renal vasculitis, uremia induce or infection induce kidney failure में क्या ध्यान रखना चाहिए ?
कभी कभी pts को clinicaly लाभ होता है लेकिन s.creatinin or blood urea कम नही होता है, तो modern parameter को avoid करना पड़ेगा ?
Renal vasculitis मैं जैसे मरीज़ prednisolone बंध करता है वैसे तुरंत creatinine or urea बढ़ जाता है उसमें steroid tapper dose में कम करना होगा या तुरंत बंध करें ? 
Hepatorenal failure or leptospirosis मैं  kidney function improve करने के लिए क्या करना चाहिए ?
सर आपको वृक्क रोगोपचार में काफी अनुभव है तो कृपया इस के बारे में मार्गदर्शन करें, आपके Suggesion से मुझे भी मेरे मरीज़ में बहोत फायदा मिला है,इसके लिए आपको कोटि कोटि वंदन।।

[9/20/2018, 10:20] Dr Kapil kapoor: 

Vrikk dosh mein Kwath kalpanaon ki karmukta ka vistrit vivechan 

Namonamaha Acharya

[9/20/2018, 13:24] Dr Rahul Pathania: 

Best explanation sir !

[9/20/2018, 15:40] Dr Rupinder Kaur: 

Case presentation ke liye dhanyawad sir !

[9/20/2018, 15:44] Dr. R S. Soni, Delhi: 

बहुमूल्य अनुभव को साझा करने के लिये बहुत बहुत आभार !

[9/20/2018, 17:05] Vd. Subhash Sharma Ji Delhi: 

*उत्साह वर्धन के लिये सभी ग्रुप मेम्बर्स का हार्दिक धन्यवाद*




*मेरे यहां सभी रोगों में क्वाथों का प्रयोग बहुत होता है, क्योंकि काफी रोगी विदेशों से भी आते हैं जो पारद और heavy metals से डरते है। अच्छी क्वालिटी की काष्ठौषधियां और घनवटी किसी रसौषधि से कम नही होती और कार्य भी शीघ्र करती हैं।*


[9/20/2018, 17:17] Vd. Subhash Sharma Ji Delhi:

 *पुनर्नवा अष्टक घन का प्रयोग नि:संदेह कर सकते है।*



*बाकी प्रश्नों के उत्तर आराम से दूंगा*

Divyesh ji  !

[9/20/2018, 17:24] Vd. Subhash Sharma Ji Delhi: 

*जामनगर से कायचिकित्सा में MD ने जो मुझे दिया उसका जीवन भर ऋणी रहूंगा, इस ग्रुप में नियमित रूप से case presentations दे कर IPGTR, JAMNAGAR का आयुर्वेद ऋण चुकाता हूं, जिस से नई पीढ़ी भी मेरी इस आयुर्वेद चिकित्सा शैली का लाभ उठा सके।*


[9/20/2018, 17:27] Dr Atul Kale, Pune: 

सर कौनसी बॅच है आपकी ?

[9/20/2018, 17:28] Vd. Subhash Sharma Ji Delhi:

 *सत्य को तो स्वीकार करना ही पड़ेगा, वर्ना तर्क वितर्क में ही रहेंगे कि आर्षग्रन्थानुसार वृक्क मूत्र निर्माण करता है या नही तो पूरा जीवन इसी में निकल जायेगा।*

[9/20/2018, 17:30] Vd. Subhash Sharma Ji Delhi: 

*सर 1985, DR S K MISHRA JI का last student*

[9/20/2018, 17:31] Dr Atul Kale, Pune: 

आपको साष्टांग नमस्कार !

[9/20/2018, 17:34] Vd. Subhash Sharma Ji Delhi: 

*आगे समय मिलने पर explain करूंगा कि किस प्रकार b urea, s cr. आगे नही बढ़ता, सब से पुराने रोगी लगभग 20-21 वर्ष से चल रहे है और वरूणादि क्वाथादि से ही स्वस्थ हैं।*

[9/20/2018, 17:36] Vd. Subhash Sharma Ji Delhi: 

*शत: शत: नमन आपको भी, जिनके ग्रुप में पदार्पण से नई ऊर्जा मिली*
Dr. Atul ji  !

[9/20/2018, 17:41] Vd. Subhash Sharma Ji Delhi: 

*यहां jamnagar कायचिकित्सा से DR RAMAKANT SHARMA CHULLET JI भी है, जो Dr Mishra ji के student रहे हैं और मेरे से 3 वर्ष सीनियर।आज वो कुछ मूड में नही लग रहे नहीं तो कुछ ना कुछ लिखते अवश्य है।*



[9/20/2018, 17:55] Dr Atul Kale, Pune: 

सर आप सब हमारे लिए गुरूतुल्य ही हो, आपका निदान, संप्राप्तिका विवेचन अौर द्रव्यज्ञान अगाध है।  आपका अंशमात्र भी हो जाउँ तो भाग्यवान समझुंगा । 

[9/20/2018, 18:20] Satish Sharma ji Dr: 

Prof deep pandey sir, guruvary R. K. sharma sir, adhunik charak chaturanan guru tulya Dr shubhash sharma sir avam katoch sir is group ke char  (4) stambh hai sabhi ko koti koti pranam shat shat naman.

[9/20/2018, 18:38] Dr Atul Kale, Pune: 

आजकल इतने प्यारसे, कर्तव्यभावनासे ज्ञान देनेवाले गुरु मिलते नहीं। सर हमारा अहोसौभाग्य है की हम इस ग्रुपमें है

[9/20/2018, 18:38] Dr Darshana Vyas, Vadodara: 

Absolutely true


[9/20/2018, 19:10] Vd Madhav Patade: 

अतिशय सुंदर वर्णन. ऐसा ज्ञान पुर्वक कर्म हमेशा प्रेरणादायी होता है. धन्यवाद !

[9/20/2018, 19:17] Dr Atul Kale, Pune: 

आधुनिक युगके परिपेक्षमें एक विषय विशेषरूपसे चिंतनीय अौर चिंतानीय प्रतित होता है की आयुर्वेद शास्रमें तत्त्वतः संशोधन होता है या नहीं अौर यदी हो रहा है तो उसका जनपदको अब तक क्या लाभ सिद्ध हुआ। हाँ ये मानना जरूरी है की अपने स्व व्यवसायमें वैद्य अस्वस्थोंको स्वस्थता प्रदान करते आए है लेकिन उसका भी ठिक तरह से विवेचन नहीं किया जाता। आजकल बडे वैदजी जीनका टि.आर.पी. जनपदमें उच्चकोटीपर है अो यशस्वी चिकित्साके संदर्भमेंही बात करते है किंतु अयशस्वीता के संदर्भमें मौन रहते है। मेरे मतसे जीन वैद्योंके पास अयशस्वीता है ही नहीं तो ओ धन्वन्तरीके अवतार स्वरूपही है। किंतु मैं ये भी उध्दृत करना इतिकर्तव्य समझता हूँ की हमारे आयुर्वेदपीठपर अौर कायचिकित्सासंप्रदायमें ये परंपरा बिल्कूल नहीं है, साक्षी भावसे तथ्योंको जानना हमारे सभी गुरुजन अौर वैद्य मित्रोंका विशेष सन्माननीय गुण प्रतित होता है। 
लेकिन आजकल पैसेके पिछे भागनेवाले बाहरी जगतमें ये साक्षीभाव कमही दिखता है। सालोंसे " आप्त वाक्य" का संदर्भ देते हुए स्वयं को आयुर्वेद उत्थानसे ही परे कर देते है। एम्.डी. पी.एच्.डी. में कम संख्यामें देखे गये रुग्णोंका अविर्भाव करके किसी निश्चयपे आ जाना मिथ्यारूप प्रतित होता है। केवल डिग्रीके लिए किया गया रिसर्च अौर अो भी केवल आधुनिक साधनोंका उपयोग करके, ये न्याय्य नहीं। अपना शास्र विशेष है, उसके सिद्धांत विशेष है, उसको समझनेकी कसोटियाँ अलग है। तो व्याधिका आयुर्वेदके ज्ञानाधारपर नाम देकर, उसमें प्रकर्षित दोषोंका निदान करके बादमें आधुनिक पॅरॅमिटर्सका उपयोग करके आयुर्वेद संशोधन करनेके बाद जो संमुर्च्छित एवं कलुषित नवनीत मंथन होके निकलेगा उससे जनपदका भला होगा ये असंभवसा है। 
सालोसाल बडेबडे वैद्योंकी चली प्रॅक्टिस फलफुल तो रही है किंतु अब तक आयुर्वेदमें स्थित्यंतर नहीं दिख रहा। लेकिन आधुनिक वैद्यकमें देखेंगे तो नित्य नुतनता का अनुभूव मिलता है। उनके रुग्णोपशयका कॅनव्हास बडा करनेका प्रयास नित्य दिखाई देता है अौर उसमें बडे गुरूजन अपने शिष्योंकोभी बेझिझक इस ज्ञानयज्ञमें संम्मिलित कराते दिखते है। 
नाविन्यका स्वीकार, ज्ञान देनेकी अौर लेनेकी वृत्ती ये सभी गुण आधुनिक अभिभावकोंमें दिखाई देते है। किंतु हमारे लोग आयुर्वेदको शाश्वत बताके अपना कर्तव्य टाल देते है। हम केवल ग्रंथोंके संदर्भ, वृद्ध वैद्याधार पर ही विराजमान होके आयुर्वेदमें नया कुछ लानेके लिए सहजतासे तय्यार नहीं होते। संदर्भोंका उपयोग तो ठिक है ही किंतु उसके अतिउपयोगसे मात्र अतियोग होने का भय अौर उसमें नाविन्यका अवरोध होनेकी आशंका उत्पन्न होती है। अौर फिर संदर्भोंके बिना आयुर्वेद है या नहीं ऎसा प्रश्न पडता है। संदर्भोंके मध्यमें जो कुछ भी नहीं लिखा जिसे हम अनुक्त कहते है अो भी जानना जरूरी है ही। इसलिए अप्रत्यक्ष तो अपरिमित है ही, सिर्फ उसे जितना अनावरीत करो उतना जनपदके लिए लाभदायी होगा। 
संदर्भका अतिरेक करके शास्र साक्षीभावसे तराशा नहीं जा सकता। या केवल संदर्भको पुनर्प्रस्थापित करनेकी चेष्टा हो सकती है अौर अो भी पूर्वग्रहदूषित होनेकी संभावनाही जादा रहती है। आज तक आयुर्वेदमें किसीसे बहु लाभप्रद कुछ विशेष संशोधित हुआ अौर अो युरेका युरेका चिल्लाते हुए पुरे गाँवमें भागता फिरा ऎसा नहीं दिखा। (केवल विशेषण मात्र, दुसरे तरिकेसे भी अपना तोष प्रकट हो सकता है) आजतक घिसेपिटे संशोधनसे क्या सिद्धता हुई ?, नया क्या मिला ?, आयुर्वेदका कितना उपबृंहण हुआ? ये संलग्न प्रश्न लगते है। सालोंसे करोडो रुपये खर्च हुए, क्या साध्यता हुई? थेसिसके गठ्ठे जमते गये, लेकिन संदर्भ संग्रहके उपर उसका महत्त्व कितने थेसिसोंका रहा ? एखाद रूग्ण संदर्भ के उपर व्याधिमुक्त नहीं हुआ तो 'असाध्य' या 'मम् दोष' कहके बडी नम्रतासे हार मानने वाले आयुर्वेदमें है ही ना।
मेरे मतसे आयुर्वेद शाश्वत सिद्धांतोंके उपर आधुनिक जगतमें आयुर्वेदमें कुछ आधुनिक उपबृंहण हो तो बात बने। उसके लिए लोग लगेंगे, समय.लगेगा। सभी आयुर्वेद के लोगोंने अलग अलग विषय लेकर संशोधन करनेके बजाय सभीने एकही विषय लेके संशॊधन किया तो उसमें साक्षीभाव आके कुछ तो फल निष्पत्ती होगी। व्याधीका तरतमभाव जानके, दोषधातुओंका जादासे जादा सही गुणात्मक तरतमभाव, स्थित्यंतर जानके, द्रव्यनिर्णय उतनाही सही हो सकता है। ये भी एक पैलू संशोधनसे साध्य होने जैसा है। ये एक प्रोटोटाईप भी हो सकता है, उपयोगमें प्रथमतः कुछ कठिन प्रतित हो सकता है किंतु फिनिशिंग प्राॅडक्टकस उपयोग करना आसान हो सकता है। 
ये सब क्रियाकलाप इसलिए की आयुर्वेदकी सार्थकता मृत्युलोकमें व्याधिप्रशमन अौर जनपदके सुखमेंही है। इसिलिए मेरे मतसे आयुर्वेदकी ऎसी लॅबोरेटरी भी डेव्हलप होनी चाहिए जिसमें उदाहरणतः दोषोंका, धातुओंका मान, गुणोंका मान, मल परिक्षण अौर आयुर्वेदके परिसिमामें जीतने भी टेस्ट हो सकते है डेव्हलप होने चाहिए, आने चाहिए। इसके लिए जिन जिन वैद्योंने अपने व्यवसायमें अपने लिए जो भी परिक्षाएँ रूढ की है उसे खुले ह्रद्यसे इस मंचपर लाना चाहिए जिससे आयुर्वेदका आधुनिक उपबृंहण हो जाए इतनीही मनोकामना। सादर प्रणाम।

[9/20/2018, 20:26] Dr Aakash Chhangole: 

गूरुवर्य यह अनमोल है।मै २0१६  passed out pg हूॅं चिकीत्सा जामनगर से। अब तो वहा इस तरह का अध्ययन Research की चकाचौंधमे खो गया है !

[9/20/2018, 20:32] Dr Atul Kale, Pune: 

Sir you are really great, thank you very much and sir please don't call me sir. You are Guru.

[9/20/2018, 21:14] Dr Yogesh Gupta: 

 THANKS A LOT SIR. GURU MANTRA PRADAN KARNE KE LIYE. 

[9/20/2018, 22:03] Prof. Ramakant Chulet Sir: 

कितना गम्भीर, कितना पूर्ण, परमोपयोगी चिन्तन, विश्वास नहीं होता कि जो शिक्षक नहीं है, चिकित्सा में संलग्न वैद्यराज है, इतना सटीक, इतना सूक्ष्म, विवेचन जिसमें व्याधि के सम्पूर्ण अंशांशों की कल्पना नहीं अपितु उनसे साक्षात्कार कराते हुये, व्याधि की अंशांश सम्प्राप्ति का समुचित, क्रमिक,आवश्यक और अनेकों के लिये अज्ञात तथ्यों का निरन्तर प्रस्तुतीकरण, एक रोगविशेष के बिन्दु विशेष पर ज्ञान गंगा सी ही प्रवाहित कर दी आपने आचार्यवर्य .....आपका हार्दिक अभिनन्दन !!!!!!!
आप जैसे प्राणाभिसर वैद्यों के लिये ही लिखा है ज्ञान बुद्धि प्रदीपेन ........आप तो वस्तुत: अन्तरात्मा प्रवेश करते हैं और यह आपके लिये स्वाभाविक ही है !!!

[9/20/2018, 22:07] Prof. Ramakant Chulet Sir: 

कहीं अन्यत्र था , व्यस्तता के आधिक्य से अस्तव्यस्त सा हो गया हूँ , प्रतीक्षा कर रहा था शान्त वातावरण की, और आपके केस प्रज्न्टेशन, केस प्रजेन्टेशन नहीं है, यह तो कम्प्लीटली डिजर्टेशन है रोगियों की संख्या भी पर्याप्त है !!!

[9/20/2018, 22:14] Prof. Ramakant Chulet Sir: 

जिन रोगों का आपने उल्लेख किया है उन सहित विविध उदावर्त मूत्रकृच्छ मूत्राघात आदि के लक्षणादिक के समन्वय के आधार पर आविष्कृत एक शोध प्रारूप प्रपत्र की कायसम्प्रदाय वर्ग से आशा करता हूँ ताकि जो कार्य वैद्यराज ने हाथ में लिया है उसे उसके परिणाम तक पंहुचाकर कुछ ज्ञान प्राप्त किया जाय तथा कुछ सामान्य चिकित्सा का निर्धारण भी हो, और उसकी देयता का भी मापदण्ड हो ताकि जिन लोगों के पास रोगी आते हैं वो लोग आपका अनुकरण करते हुये समाज के स्वास्थ्य की रक्षा करें !!!

[9/20/2018, 22:17] Prof. Ramakant Chulet Sir: 

अत्यन्त उचित है प्रभु जी !!!संहिता वाक्यम् प्रमाणम् मानते हुये ही आगे बढ़ पायेंगे ,आपने बिल्कुल ठीक कहा है, यही पहली सीढ़ी है.....

[9/20/2018, 22:25] Prof. Ramakant Chulet Sir: 

जाम नगर से प्रकाशित पाण्डुरोग विमर्श की भाँति वृक्क एवम् वृक्क रोग विज्ञानीयम् पुस्तक का संकल्प लेवें, गिरिराज महाराज रचना व क्रिया को देख लें, विकृति विज्ञान व चिकित्सा वैद्यराज देखलें, लक्षण विज्ञान, प्रपत्र निर्माण, ये इस वर्ग में सहज संभव लगता है .. सभी लोग इस ज्ञान यज्ञ में आहुति दे सकते है , सबमें सामर्थ्य है, वैद्यराज के नेतृत्व में आगे बढ़ते है !!

[9/20/2018, 22:26] Ranvir Rajpurohit Dr: 

उत्तम अति उत्तम गुरुवर्य ।।

[9/20/2018, 22:29] Prof. Ramakant Chulet Sir: 

यह इतना स्पष्ट है कि इससे अधिक कुछ स्पष्ट नहीं हो सकता, आपने अपने चिकित्सा कौशल से न केवल सिद्धान्तों को सत्यापित किया है अपितु परिणाम प्राप्त करने के विविध मार्ग भी प्रदर्शित किये है ...
आपका अभिनन्दन !!

[9/20/2018, 22:32] Prof. Ramakant Chulet Sir: 

वृक्क रोगों में क्वाथ का अलग महत्व है आधुनिक चिकित्सा विज्ञान जहाँ जल सेवन का प्रतिषेध करता है , परिणाम स्वरूप वृक्क शोष , संकोच आदि प्रत्यक्ष दिखते हैं ..क्वाथ चिकित्सा इसके लिये श्रेष्ठ औषधि है ... वृत्क्कों को सिकुड़ने नहीं देते क्वाथ .....

[9/20/2018, 22:47] Samta Tomar Dr Jmngr: 

Purn anumodan hai sir !

[9/20/2018, 22:51] Praveen Medi Dr: 

Excellent interpretation sir !
Vrukka roga has to be dealt in conjunction with pakwasaya gata Vata and Rakta is a very valid point. 

In fact vasti is indicated in both mutraghata and Mitta krichra, Which are considered to be “Mutra- apravrittija vikaras”. We know that vasti acts mainly on pakwasaya gata Vata. 

Even practically we have some excellent results which are attributable to vasti in renal disorders. 


Also Bhaisajya Ratnavali is the one text that has separately dealt a chapter on “ Vrukka roga chikista”. 



Rakta Dosha is implicated as one of the important pathological factor in vrukka Roga in Bhaisajya ratnavali. 

Appropriately Raktamokshana has been suggested as one of the therapy. 



Also Parada is strictly contra indicated in vrukka Roga in the same text. 



A Swarna yoga with out parada, popularly known as “Sarvatobadra ras” is mentioned in Vrukkatoga  by Bhaisajya Ratnavali. 



However Prameha which happens to be “Mutra - Ati pravruttaja vyadhi”, vasti is contraindicated. Aprears logical as medo dhatu involves more in prameha. 


[9/20/2018, 23:53] Dr Anita Bhirud:

 Sir सचमुच यह अनमोल तोहफा दिया आपने।. thanks a lot.

[9/20/2018, 23:55] Vd. Subhash Sharma Ji Delhi: 

*उत्साह वर्धन के लिये ह्रदय से आभार*


*मेरे यहां सब से अधिक रोगी CKD और CLD के ही होते हैं, सैंकड़ों रोगियों की चिकित्सा का अभ्यास करते हुये औ बहुत से group members के personel messages मिलने पर CKD पर लिखने का सूक्ष्म सा प्रयास किया है पर बहुत कुछ आगे अन्य रोगियों की case presentation में लिखूंगा।*


[9/20/2018, 23:57] Vd. Subhash Sharma Ji Delhi: 

*बस्ति रोगों पर भी अनेक रोगियों की investigation reports है जैसे जैसे समय मिलेगा प्रस्तुत करूंगा।*
🙏🙏🙏🙏

[9/21/2018, 00:00] Vd. Subhash Sharma Ji Delhi: 

*वृक्क और बस्ति रोगों पर अभी भी इतना कुछ है जैसे पथ्यापथ्य जो रह गया है उस पर आगे प्रकाश डालूंगा।*

[9/21/2018, 00:06] Vd. Subhash Sharma Ji Delhi: 

*वृक्क रोगों मे में सब से अधिक क्वाथों का ही महत्व है, इसमें अधिक मात्रा में एक बार में ही औषधि दे सकते है, खाली पेट देने पर quick absorption होता है, रोगी को heavy metals का भय नही होता।*

*दिल्ली में तो कई रोगी आयुर्वेदीय औषधियों को सेवन करने से पहले lab. में test कराते हैं कि कहीं इनमें steroids तो नही है।*


[9/21/2018, 05:56] Dr Narendra Gujarati: 

सुप्रभातम् भवान् 
इदम् खलु उतमम् ll
 अति आवश्यक  तथा वैज्ञानिक संधाय संभाषा 
अतः बहुत आभारी
 प्रणमाम्यहम् !
[9/21/2018, 06:33] Dr. D C Katoch sir: अत्युत्तम 

[9/21/2018, 08:30] Dr Anupma Patra: 

गुरुजी प्रणाम !
आप के चिकित्सा परिणाम, नए चिकित्सक के लिए तथा आयुर्वेद के ऊपर कम विस्वास रखने वाले चिकित्सकों के लिए एक  प्रेरणा का  भंडार है। इसमें आप का छूटा हुआ पथ्यापथ्य और भी महत्व पूर्ण होगा, जिसको देखने की लिए उत्सुक हुँ । 

[9/21/2018, 09:09] Dr Anupma Patra: 

अपने मनकी बात को सुंदर रूप से प्रस्तुत किये हैं सर्।🙏🙏 प्रायोगिक ज्ञान वर्धन के साथ साथ,आयुर्वेद को लेकर अपनी समझ के आदान प्रदान के मामले में यह मंच प्रमुख भूमिका निभा रहि है।
क्षमा कीजियेगा सर्, मैं आयुर्वेद में नूतनता की खिलाप हुँ।😌
यह अपने में इतना सम्पूर्ण है कि उसीको समझने में युगों वीत जा रही है।
अवस्य हमारी शोध की लक्ष ही गलत है जिसके कारण आयुर्वेद जगत को खास लाभ नहीं मिल पा रही है। यह मॉडर्न सोच की अनुरूप है,वजाए आयुर्वेद के।
हमारी लक्ष तो ये होनी चाहिए कि आयुर्वेद की चिकित्सा भंडार से कौनसी चिकित्सा किस रोगी को किस परिस्थिति में ,कौन सी मात्रा में देने से सबसे ज्यादा लाभ मिल सकता है। पर हम तो इस पथ को चुन लिए हैं कि कैसे हम रोगी को कुछ आराम दे सकते हैं। जो लक्ष आयुर्वेद वाखुबी से निभा तो रही है पर अय्यर्वेद की असली ताकत की अंदाज़ हम नहीं लगा पा रहे हैं।
दुख की बात ये है कि हम उस डियग्नोसिस तंक पहुंचना ही नाहिंचाहते हैं। 😞
सुरु सुरु में मैं आयुर्वेद की स्पेसिफिक डियग्नोसिस को कंप्यूटर की पासवर्ड बताई थी। जैसे पासवर्ड के वगैर हम अंदर की ज्ञान को नहीं जान सकते उसीतरह आयुर्वेद में सबकुछ सठीक ज्ञान तो है पर उचित पासवर्ड के वगैर उनतक पहुंच नहीं पाएंगे। 
बीच में मैंने पानी के बारेमें कुछ ढूंढ रही थी तो इतना अच्छा लगा कि एक आर्टिकल लिख डाली। कभी शेयर करूंगी। उससे अंदाज़ होगा कि हर ज्ञान आयुर्वेद में पहले से ही कितनी विस्तृत है। मेरे हिसाब से नए ज्ञान की खोज में हम असली मणि को अपने से दूर कर रहे हैं।
😌🙏🙏🙏

[9/21/2018, 10:26] Prof Giriraj Sharma: 

आचार्यो का दिशा निर्देशन एव  शुभकामनाएं निश्चित हमे प्रयोगधर्मिता एवं कालानुरूप ज्ञान के लिए प्रेरित करता रहेगा ।



सादर नमन !


[9/21/2018, 17:17] Dr Atul Kale, Pune: 

सभी गुरुजन अौर मित्रोंको बहुत बहुत धन्यवाद.

[9/21/2018, 18:44] Vd. Subhash Sharma Ji Delhi: 

जितने रुग्ण अपनी जान हथेलीपे लेकर अॅलोपॅथी अस्पताल में भर्ती होते है उतने हमारे यहाँ होते नहीं क्योंकी हम गारंटी नहीं दे सकते क्युँकी उस दिशामें रिसर्च नहीं कर पाएँ हम। यहीं तो सुधारना है। जो चरक सुश्रुतजीने अनल्प कहके छोड दिया है वहि तो साकार करना है। 
*___________
*आपने मूल को पकड़ कर एक बहुत ही सारगर्भित कही है।*
Dr. Atul ji  !


[9/21/2018, 19:05] Dr Surendra A Soni: 

अतुल सर ।
अतुल्य विश्लेषण ।
🙏








************************************************************************************************************



Above case presentation & discussion held in 'Kaysampraday" a Famous WhatsApp group  of  well known Vaidyas from all over the India. 




                                                      


  Presented by




Vaidyaraj Subhash

 Sharma

MD (Kaya-chikitsa)

New Delhi, India

email- 

vaidyaraja@yahoo.co.in












Compiled, edited & Uploaded by

Dr.Surendra A. Soni


M.D., PhD (KC)
Associate Professor
DEPT. OF KAYACHIKITSA
Govt. Ayurveda College
Vadodara GUJARAT, India.
Email: surendraasoni@gmail.com
Mobile No. +91 9408441150

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