WDS 70: Santatadi-jwar by Dr Pawan Madan, Vd. Raghuram Bhatta, Dr. D. C. Katoch, Vd. Rangprasad Bhat, Dr Bhavesh Modh & Prof. S. K. Khandal.
[12/05, 7:13 AM] pawan madan Dr:
Good morning....🙏
*What clinical presentations / conditions could be lebelled as Santata Jwara?*
*ये ज्वर सात दस या बारह दिनो मे अगर धातुओ की शुद्धि हि जाये तो ठीक हो जाता है और अगर शुद्धि न हो तो मार डालता है?*
*How will we know clinically that the shudhi of dhaatus have occured or not?*
*युगपच्चानुपद्यन्ते निय२मात् सन्तते ज्वरे ।*
*स शुद्ध्या वाऽप्यशुद्ध्या वा रसादीनामशेषतः ॥५७॥*
*सप्ताहादिषु कालेषु प्रशमं याति हन्ति वा ।*
*यदा तु नातिशुध्यन्ति न वा शुध्यन्ति सर्वशः ॥५८*
*I have not been able to make a diagnose of Santata Jwara ever till now.*
*और भी......ये ज्वर कई बार अव्यक्त अवस्था मे रहता है....*
🤔🤔
[12/05, 7:46 AM] D C Katoch Sir:
Look at clinical onset, progression and outcome of dengue illness, you will surely understand the concept of संतत ज्वर ।
[12/05, 8:01 AM] Dr Bhavesh Modh:
शास्त्र कहता है की ज्वर आने पे या तो ( ? आमाशय स्थित नविन दोष हो तो) वमन करवा के दोष निकाल दे या फिर लंघन करवा के जब तक दोष अच्छी तरह पक्व नही होते तब तक इंतजार करना चाहिए नवज्वर मे कषाय(औषधी) देना निषेध है,
अक्सर देखा जाता है की High grade fever के रुग्ण को छर्दन होने के बाद स्वेदोत्पति होती है और ताप क्रम कम हो जाता है अंगगौरव या शिरःशूल भी कम हो जाता है
(पर मरीज वमनकर्म करवाने को तैयार नही होते ।)
प्रैक्टिस मे इस से विपरीत हि होता है मरीज़ व उसके परिचारक की एक हि आंकाक्षा होती है कैसे भी करके बोडी टेम्परेचर नोर्मल होनी चाहिए ।
शास्त्रीय ज्वर का एक अर्थ तो FEVER है दुसरे अर्थ मे निश्चित व्याधि लक्षण के समूह के *सर्वनाम* मे भी प्रयुक्त किया गया है ।
Malaria P.vivex की आधुनिक तबीबी विज्ञान की संप्राप्ति से यह विषमज्वर समजा जा शकता है, पर प्रत्येक विषमज्वर वह Malaria नही है ।
संतत विषमज्वर मे दोष, रसधातुमे स्थित (स्टेन्ड बाय) हो जाता है इसलिए लंबे समय तक ज्वर/ body temperature प्रतित होता रहता है ।
मेरी क्लिनीकल प्रैक्टिस मे मैने देखा की वयजुथ 2 से 10 साल के बच्चे मे कभी-कभी दवाई देने के बाद भी पांच दिन या एक सप्ताहे तक बोडीटेम्परेचर नोर्मल नही होता है, कुछ भी कर लो पर बोडी टेम्परेचर 99.5°F से नीचे नही जाता,
मरीज के अभिभावक दवाखाने व डॉक्टर बदलते रहते है, इस स्थिति मे सभी प्रकार के पेथोलोजीकल इन्वेस्टीगेशन WNL होते है अन्य जांच मे भी NAD हि लीखा आता है ।
पांच या सात दिन मे मरीज का भोजन काफी कम हो जाता है अर्थात् स्वयमेव लंघन घटित होता है और आठवे या 10 वे दिन से ज्वर मुक्ति हो जाती है, बहुधा डायग्नोसीस अननोन रहता है ।
*मेरे खयाल से यह संतत विषमज्वर का उदाहरण है ।*
अवलोकन मे यह भी आया है की इतनी लंबी अवधि तक चलके Fever छूट जाता है तब *मुखपाक नही होता है,*
पर Malaria P.vivex मे ज्वरमुक्ति होते हि मुखपाक होता है मेरा मानना है की Malaria P.vivex रक्तधातु स्थित दोष की वजह से होता हुआ सतत विषम ज्वर है ।
[12/05, 8:04 AM] pawan madan Dr:
Will look and come back to you sir....
[12/05, 8:05 AM] pawan madan Dr:
सर
आपने ये जो presentation बच्चो मे बताइ है वह अक्सर आज के viral fevers मे मिलती है जो के अपनी मरजी से ५-७ दिन बाद ठीक होते है...🤔
[12/05, 8:17 AM] Dr Bhavesh Modh:
डॉक्टर्स भी जब सारे इन्वेस्टीगेशन नोर्मल आने पे मरीज के परिचारको को यही बताते है की वायरल फीवर है, मरीज़ ओर उसके संबंधिमें तो पहले से हि थके हुए है तो बुद्धि व तर्क ग्राह्य न होने पर भी मन मना ले ते है,
मै ने कई डॉक्टर से पूछा भी है की वायरल फीवर होता क्या है ?
पर वो कोइ सामान्य या हरेक मरीज के बारे मे ग्राह्य हो शके एसी संप्राप्ति या लक्षण बताने मे असमर्थ हुए ।
जैसे की कोइ व्याधि विकार समूह की क्रोनिक कंडिशन जब अननोन डायग्नोसीस होती है तब ऑटोइम्युन डिसीज बताते है ठीक वैसे हि एक्यूट 10 दिन से कम अवधि वाली व्याधि समूह जब अनडायग्नोस होती है तब वायरलफिवर बताते है ।
[12/05, 8:18 AM] pawan madan Dr: 😅😅👍🏻👍🏻
[12/05, 8:20 AM] pawan madan Dr:
धातुशुद्धि का.होन या न होना याहा क्या अभिप्रेत है?
[12/05, 8:39 AM] D C Katoch Sir:
धातु शुद्धि का होना means to be devoid of residual symptoms and underlying illness sequels.
[12/05, 8:42 AM] Vd. Aashish Kumar, Lalitpur:
सभी धातुओं का प्राकृत कार्य न करना🙏🏻
[12/05, 9:09 AM] pawan madan Dr:
और अगर धातु शुद्धि न हो तो ये ज्वर म्रित्यु कारक होता है...🤔
[12/05, 11:07 PM] Prof. Surendra A. Soni:
उत्कृष्ट चिंतनपरक विमर्श भावेश भाई ।।
अभिनन्दन ।।
🙏🌹
[12/05, 11:30 PM] Prof. Surendra A. Soni:
Great question Pawan Sir !
You have entered in core field of Charak Sanhita.
The question you have raised is concerned to a unique description of jwar where timing of jwar has been emphasized only. Aacharya doesn't mention dosha pattern etc, only concerned to 'jwar avastha' and reasons are also described in short.
स्रोतोभिर्विसृता *दोषा गुरवो रसवाहिभिः*||५३||
👉 *स्रोतोभिर्विसृता*- Deep routed/ spread dosha sthiti
👉 *दोषा गुरवो* - excessive Dosha-sthiti without specifying Dosha, indicates two or tridosha prakopa.
*सर्वदेहानुगाः*- generalized affection
*स्तब्धा*- indicates dosha-baddhata or saamata.
ज्वरं कुर्वन्ति सन्ततम् |
दशाहं द्वादशाहं वा सप्ताहं वा सुदुःसहः||५४||
स शीघ्रं शीघ्रकारित्वात् प्रशमं याति हन्ति वा|
कालदूष्यप्रकृतिभिर्दोषस्तुल्यो
👇
description of doshaja pattern of jwar never presented continuous jwar condition as mentioned by Acharya in ch nidan sthan, so such kind of jwar has no escaping because none is to oppose viz kal, dushya, prakriti etc that is called
हि सन्ततम्||५५||
👇
निष्प्रत्यनीकः कुरुते तस्माज्ज्ञेयः सुदुःसहः|
यथा धातूंस्तथा [१] मूत्रं पुरीषं चानिलादयः||५६||
युगपच्चानुपद्यन्ते नियमात् [२] सन्तते ज्वरे|
स शुद्ध्या वाऽप्यशुद्ध्या वा रसादीनामशेषतः||५७||
सप्ताहादिषु कालेषु प्रशमं याति हन्ति वा|
Hence
1. Involvement of 2 or more dosha
2. Deep generalized involvement of various srotas.
3. Stabdha Dosha - may lead to either as dosha-pak, then towards improvement or Dhatu-pak means death.
I hope you remember our discussion on Dosha Pak and Dhatu Pak.
🙏
[12/05, 11:32 PM] Prof. Surendra A. Soni:
Such continuous type of fever may be seen in any kind of fever if we correlate as per modern where host defence is very weak and Dosha prakopa or infection is stronger.
[12/05, 11:52 PM] Prof. Surendra A. Soni:
https://kayachikitsagau.blogspot.com/2018/09/wds59-dosha-pak-dhatu-pak-role-of-visra.html
[13/05, 12:04 AM] Ravi Nagpal Dr:
Thanks Soni Sir ! Your answer has cleared my many doubts about Jwar also.
[13/05, 6:26 AM] pawan madan Dr:
Good morning !
I am deeply thankful Soni ji for paying attention to my query and respinding.
I have learned from you how to address key issues.
Here two things were imp to be noticed...
निष्प्रत्यनीक .... this is basic to diagnose a case as Santata
शुद्धा वा अपि अशुद्धा ... this shows prognosis ... and we need to consider syms which tells us either the case is going through Dosha paaka or Dhaatu paaka.
Well we must consider our cases As Jwar with which we can help many unsolved cases.
Thanks a lot. 🙏
[13/05, 6:29 AM] pawan madan Dr:
👌🏻👌🏻👌🏻
Dhaatupaak....
निद्रानाशो हृदिस्तम्भो विष्टम्भो गौरवारुचिः|
अरतिर्बलहानिश्च धातूनां पाकलक्षणम्|
Doshapaak
दोषप्रकृतिवैकृत्यं लघुता ज्वरदेहयोः|
इन्द्रियाणां च वैमल्यं दोषाणां पाकलक्षणम्|
👍🏻👍🏻
[13/05, 6:33 AM] Prof. Deep Narayan Pandey:
👌👌
*As always, great question by Dr Pawan Madaan ji. Ànd, brilliant analysis by Prof. Surendra Soni ji*
[13/05, 7:15 AM] pawan madan Dr:
*महत्वपूर्ण ये है के...*
*ज्वर के किसी केस को यदि हम सन्तत ज्वर निदान करते है तो हमारी चिकित्सा व्य्वस्था या चिकित्सा सूत्र मे कोई फर्क पडता है?*
[13/05, 8:58 AM] Dr Bhavesh Modh:
स्त्रोतोभि:विसृता *दोषा गुरवो* रसवाहिभिः *सर्वदेहानुगा *स्तब्धा* ज्वरं कुर्वन्ति सन्ततम् ।।
यथा धातूंस्तथा मूत्रं पुरीषं च अनिलादयः *युगपत्* अनुपद्यन्ते नियमात् सन्तते ज्वरे ।।
तीन दोष, सातधातु मूत्र व पुरीष एसे बारह स्थान मे एकसाथ रसवाही प्राणली के माध्यमसे, बढा हुआ दुष्य व्याप्त होता है ।
यदा तु न अतिशुध्यन्ति
न वा शुध्यन्ति सर्वशः
द्वादश ऐते सम उद्दिष्टाः
सन्ततस्य आश्रयाः तदा
विसर्गम् द्वादशे
*कृत्वा दिवसे अव्यक्त लक्षणम् , दुर्लभ उपशमः काल दीर्घम् अपि अनुवर्तते ।*
इति बुद्ध्वा ज्वरं वैद्यः सन्ततः
सम उपाचरेत् क्रिया-क्रम-विधौ
युक्तः प्रायः *प्राक् अपतर्पणैः*
प्रायशः संनिपातेन दष्टः पञ्चविधो (विषम)ज्वरः
सन्निपातो तु यो भूयान् स दोषः परिकीर्तित् ।
विषमज्वर सन्निपातज्वर की केटगरी मे आते है फिर भी तीन दोष मे से कोइ एक अधिक प्रबल होता है ।
चरकसंहिता मे विषमज्वर की चिकित्सा के प्रारंभ मे लिखा है की,
कर्म साधारणम् कुर्यात् तृतीयक चतुर्थकौ *आगन्तुः* अनुबन्धो हि प्रायशो विषमज्वरे ।।
यहाँ पे *आगन्तुः* का अर्थ टीकाकारोके ने विभिन्न बताया है,
यह सूत्र के बाद *वातप्रधानम् पित्तोतरे* व *कफोत्तोरे* चिकित्सा विषमज्वर की निर्देशीत की है ।
योगाः पराः प्रवक्ष्यन्ते विषमज्वरनाशनः प्रयोक्तव्या मति मताम् दोष आदिन् प्रविभज्य ये ।।
बाद मे आचार्य ने पांच विषमज्वर मे इस्तमाल किए जाए एसे औषधियोग व क्रियाओका निर्देशन कीया है ।।
संहिता के सूत्रो के साथ यहाँ विवेचन करने का तात्पर्य यह है की सन्तत विषम ज्वर का कोइ निश्चित Ready to use जैसी चिकित्सा या चिकित्सा योग का निर्देशन नही किया गया है,
चिकित्सक को जब विषम या सन्निपातज्वर की चिकित्सा मे उचित उपशय नही मिलता है तब उसे समझने व स्वीकार ने हेतु सन्तत विषम ज्वर का विवेचन है । जैसे मॉर्डन मे ऑटोइम्युन या वायरल डिसीजीस नामकरण करते है एसा हि है पर *उत्कृष्टता यह बात की है की वहाँ डायग्नोसीस अननोन है यहाँ संप्राप्ति की समझ दि गइ है*
सन्तत ज्वर या पांच सात दिन से लगातर बना रहता फीवर जीस मे सारे रिपोर्टस नोर्मल होते है उस मे,
गुडुचि - ताजा प्रकांड
धन्वयवासक - ताजा पंचाग
कालमेघ - ताजा पत्र
सूंठी - चुर्ण
मुस्ता - जड ( नागरमुस्ता)
का चतुर्थांश शेष कवाथ 40 ML tid असमान घृत व एक साल पुराण मधु के साथ तीन दिन देने से अच्छा उपशय मीलता है ।
यदि मरीज़ को श्वास कास के लक्षण हो तो कंटकारी का पंचाग मिलाया जाता है ।
मुझे अधिकांश एसे वायरल फीवर जीसे मे सन्तत विषम ज्वर समजता हुँ उसमे वातप्रधान लक्षणों की शांती के लिए घृत का सहपान की योजना की है ।
वातप्रधानम् सर्पिभिः स्निग्धं उष्णैः अन्नपानैः च शमयेत् विषमज्वर ।।
[13/05, 9:07 AM] pawan madan Dr:
🙏🙏🙏🙏🙂
ताजा धन्व्यासक व कालमेघ ताजा पत्र उपलब्ध न हो तो क्या किया जाये?
[13/05, 9:16 AM] Prof. Deep Narayan Pandey:
चूर्ण को श्रेष्ठ मान लिया जाए आचार्य ।
ताजी औषधि तो तभी संभव है जब वैद्य या रोगी में से कोई न कोई उगाने का आदी हो ।
[13/05, 9:33 AM] Dr Bhavesh Modh:
धन्वयास यहाँ कच्छ मे काफि उपलब्ध है कुदरती उग आते है मैने पर्पटक के विकल्प मे लिया है, आप पर्पटक को ले शकते हो, कालमेघ के बीज तो घमले मे या घरआगन मे बोने से हो जाता है, कालमेघ भी हिमालय के किराततिक्त के विकल्प मे लिया गया है कालमेघ को यहाँ *लीलुकरियातुं* कहते है ।
[13/05, 9:37 AM] pawan madan Dr:
जी...
यहा गिलोय चिर्याता कुटकी का प्र्योग भी लाभ्कारी होगा....साथ मे.पर्पटक जोड सकते है ।
[13/05, 9:39 AM] Dr Bhavesh Modh:
✅
यहाँ जो 5 +1 द्रव्यों का वर्णन किया गया है उसमे से गुडुचि व कालमेघ तो मरीज़ के घर आंगन मे बोये जा शकते है, कंटकारी और धन्वयवासक तो यहां की भूमी मे ऐसे ही सुलभ है मात्र मरीज व उसके परिचारक को पहचान करवानी होती है नागरमुस्ता व सुंठीचुर्ण डिस्पेन्स करना रहता है जीस मे सूंठी तो आद्रक को सुखाके स्वयं निर्माण करनी है मात्र नागरमूस्ता की खरीद करनी होती है
ताजी औषधि का प्रभाव शिघ्र होता है उसमे भी मरीज खुद बीन चुन के योग बनाता है तो उसके प्रति ओर भी श्रद्धावान रहेता है परिणाम आशातीत मिलता है ।
[13/05, 9:48 AM] Dr Bhavesh Modh:
जिस प्रदेश मे जो वनौषधि सहज सुलभ है वह चिकित्साप्रयोग मे श्रेष्ठ परीणाम दाइ रहती है,
1... क्वॉलिटी एवं क्वॉन्टीटी का कोम्प्रोमाइज व पहचानकी संदिग्धता से मुक्ति मिलती है ।
2... एक ही प्रदेश मे पाइ जाने वाली वनौषधि व रोगी एवं रोग आपस मे एक दुसरे पे शिघ्र व शुभ परीणाम देने वाले होते है प्रकृति व सात्म्यं के द्रष्टि कोण से
3... अन्य प्रदेश की वनौषधि खरीद करनी पडती है, पुरान मिलती है , नतीजा चिकित्सक को महंगी पडेगी तो मरीज को और भी महंगी बेचनी पडेगी अर्थात् चिकित्सा का कॉस्ट बढ जाता है ।
4... आयुर्वेद के औषधियोग बहु द्रव्य व बहु आयामी होते है मतलब द्रव्यों की गुणकर्म की विशलता व प्रतिनीधी द्रव्य विकल्प के हिसाब से उचित द्रव्यों का सिलेकशन किया जाता है ।
[13/05, 6:28 PM] Prof. Surendra A. Soni:
There are Two possible factors that may lead to an doshaja jwar to santata...
*1. Potent Nidan with nishptatyanikatva and*
*2. Jwarapachar/nidan-*
*Aparivarjan.*
First we should ruled out this. Concept of Occurence of fever, either Antar/bahirvegi is very helpful here to know the severity.
As Acharya has mentioned in short that *prak-apatarpanai*, that is an effort to start Dosha-pak that is an essential step to do srotoshodhan. That's why shadanga paniya, ushnodak etc are
instructed and appreciated in jwar.
Principals of management of jwar has been mentioned in details step by step, and We are to use these as per presenting features.
[13/05, 7:06 PM] D C Katoch Sir:
Dhatupak is indicative of progressive samprapti and Doshpak is indicative of regressive samprapti. For Dhatupak the process starts from Aahar Rasa to Poshak Dhatu and from Poshak Dhatu to Poshya Dhatu but in the reverse order for Doshapak.
[13/05, 7:09 PM] Prof. Surendra A. Soni: 🙏🌹
[14/05, 7:44 PM] D C Katoch Sir:
Dr Pawan and Dr Soni presented lot of views and shastriye quotes about Dhatupak and Doshpak. Appreciate their wisdom and would like to know the litteral simple meaning of Dhatupak understandable, adaptable and applicable practically. Is it cellular or tissue degeneration, atrophy, dysfunction, catabolism or disintegration ?
[14/05, 7:47 PM] D C Katoch Sir:
In the body system, Dhatu and Dosha are inseparable. So what are the implications ensued from Dhatupak and Doshpak?
[14/05, 8:00 PM] Prof. Surendra A. Soni:
Sir !
Sorry to say that it has been discussed in that discussion and I have shared the link.
I try it to copy here.
🙏🌹
[14/05, 8:10 PM] Prof. Surendra A. Soni:
Copied and pasted below.....
[9/11, 9:21 PM] Dr Surendra A Soni:
*1. Dhatupak in reference to basic metabolism.*
विविधमशितं पीतं लीढं खादितं जन्तोर्हितमन्तरग्निसन्धुक्षितबलेन यथास्वेनोष्मणा सम्यग्विपच्यमानं कालवदनवस्थित सर्वधातुपाक मनुपहतसर्वधातूष्ममारुतस्रोतः केवलं शरीरमुपचयबलवर्ण सुखायुषा योजयति शरीरधातूनूर्जयति च ।
Ch Su 28/3
बलिनः शीतसंरोधाद्धेमन्ते प्रबलोऽनलः॥७॥
भवत्यल्पेन्धनो धातून् स पचेद्वायुनेरितः।
अतो हिमेऽस्मिन्सेवेत स्वाद्वम्ललवणात्रसान्॥८॥
A.H. Su. 3
*2. Dhatupak in reference to tissue destruction in terminal condition of fever.*
सन्निपातज्वरस्य मोक्षवधयोरवधिमाह- सप्तमे दिवसे प्राप्ते इत्यादि। शीघ्रमध्यमन्दशक्तित्वाद्वातादीनां सप्तमे दिने वाताधिकः सन्निपातज्वरः, दशमे दिने पित्ताधिकः, द्वादशे दिने श्लेष्मधिको विमुञ्चति मलपाकात्, हन्ति च धातुपाकात्; यदि हि तस्य दीर्घजीवनं(ने) कर्मास्ति तदा मलपाको भवति, अन्यथा धातुपाकः।
Dalhan on Su. U. 39/45
*3. Dhatupak in reference to tissue maturation.*
तत्राऽऽहाररसो व्यानविक्षिप्तो यथास्वं सप्तसु धात्वग्निषु क्रमात् पच्यमानः स्वात्मभावप्रच्युतिसमनन्तरमेव प्राप्तरक्तादिधातुसंज्ञकः कालवदस्खलितबलप्रमाणो देहमुर्जयित्वा धातून् धातुमलांश्च पुष्णाति ||४३||
A. H. Sha. 6
We can say that dhatupak terminology has been used differently as per context. Hyperthyroidism may be taken as example of dhatu pak with increased basic metabolism.
Humble request to respected ojha sir and khandal sir to give guidance.
[9/11,9:30PM]Prof Mamata Bhagwat:
Very well narrated Soni Sir.
[9/11, 9:33 PM] Dr Jayshri Kulkarni:
दोषपाक is necessary to obtain health.
धातुपाक is unwanted पचन as in case of अत्यग्नि
पक्त्वा अन्नं स ततो धातून्...पचति अपि॥
ततो दौर्बल्यं..........
.... तृट्श्वासदाहमूर्छा...॥च.चि.
[9/11, 9:45 PM] Dr Atul Kale:
Dr Soni sir !
[9/11, 9:50 PM] Prof. S. K. khandal sir:
A good conclusion by Surendra Soni. thanks !
[14/05, 8:47 PM] D C Katoch Sir:
Query is -in the context of Santata Jwara does Dhatupak indicate asadhyata or bad prognosis or arishta lakshan ?
[14/05, 8:57 PM] Prof. Surendra A. Soni: Yes Sir !🙏🌹
[15/05, 9:22 AM] pawan madan Dr:
*सन्तत ज्वर मे हम पहले ये चर्चा कर चुके है के ये continouus type ज्वर है व इस मे दोष रस धातु गत रहते है.*
आगे
*रस गत ज्वर के ये लक्षण कगे गये है..*
*गुरुत्वं दैन्यमुद्वेगः सदनं छर्द्यरोचकौ ।*
*रसस्थिते बहिस्तापः साङ्गमर्दो विजृम्भणम् ॥७६*
*तो ये दोनो ज्वर अवस्थाये एक ही हुई...*.
*और ऐसा निदान करने का मह्त्व क्या है?*
*क्या ऐसा निदान करने से हमे ये दिशा निर्देश मिलता है के यदि हम इस्मे रस पाचक द्रव्यो जैसे कुटकी चिर्याता पटोल आदि से चिकित्सा करेन्गे तो अवश्य शुद्ध उपश्य होना चाहिये?*🤔
यही प्रश्न मेरे मन मे अन्य धातुगत ज्वरो के लिये भी है..
[15/05, 12:28 PM] Prof. Surendra A. Soni:
Pawan Ji ! My reply in bracket.....
*सन्तत ज्वर मे हम पहले ये चर्चा कर चुके है के ये continouus type ज्वर है व इस मे दोष रस धातु गत रहते है.*
आगे
*रस गत ज्वर के ये लक्षण कगे गये है..*
*गुरुत्वं दैन्यमुद्वेगः सदनं छर्द्यरोचकौ ।*
*रसस्थिते बहिस्तापः साङ्गमर्दो विजृम्भणम् ॥७६*
*तो ये दोनो ज्वर अवस्थाये एक ही हुई...*.
[How these are similar ? बहिस्ताप: is specially mentioned. Please note.
Another important thing is that here ekadoshaja features are dominated while it is not in santata as we discussed.]
*और ऐसा निदान करने का मह्त्व क्या है ?*
(Acharya has instructed various aspects to identify the pathology.)
*क्या ऐसा निदान करने से हमे ये दिशा निर्देश मिलता है के यदि हम इस्मे रस पाचक द्रव्यो जैसे कुटकी चिर्याता पटोल आदि से चिकित्सा करेन्गे तो अवश्य शुद्ध उपश्य होना चाहिये ?*🤔
(Applicable here definitely but may or may not work in santata, depends upon the severity of pathology.)
यही प्रश्न मेरे मन मे अन्य धातुगत ज्वरो के लिये भी है......
(Santata with potent Nidan and weak host defence if untreated may involve other Dhatu, srotas and even marma leading to even death.)
[15/05, 12:30 PM] Prof. Surendra A. Soni:
Requesting to all Gurujan, kayachikitsa and clinical experts to give inputs/expert opinions/ guidance on this crucial issue.
🙏🌹
[15/05, 7:42 PM] Vd Raghuram Bhatta, Banguluru:
*Santata Jwara* v/s *Rasagata / Dhatugata Jwara*
I would like to make *some additions to this discussion from my end* – 👇👇👇
*Story of Santata Jwara*
The *Santata Jwara* follows this *sequence of pathogenesis* –
The heavily vitiated doshas traverse in the rasavaha srotas all through the body and cause Santata Jwara. As we know, it has three features which it carries with it –
👉 *Vishamatva*
👉 *Avisargi*
👉 *Rasa Gata / ashrita*
💥💥💥💥💥💥💥
*_Hypothesis 1_* - *_Taking Santata as nidanarthakartva of rasa gata jwara_*
If there is *pittadhikya* -
👉 If by chance, the doshas regress due to *dosha / mala paka*, the fever subsides in 10 days in totality.
👉 If by misfortune, the *dhatu paka* occurs, the fever will kill the person in 10 days time.
👉 If the doshas and dushyas are incompletely cleansed or not cleansed in totality or when they are not at all cleansed, and if dhatu paka does not occur by fortune, the mala paka takes place and the fever comes down in 10 days time and *i.e. the fever vanishes for a short period being devoid of symptoms (symptoms disappear or get feeble) for a short time on the 10th day and reappears on 11thday and runs a lengthy course and becomes difficult to treat*.
✨We can also understand this in another sense - *since it is not cured completely due to non-availability of medicines or appropriate treatment, the subsided or latent fever runs a long course in the body and becomes latent in the tissue in which it got manifested, rasa dhatu in case of santata jwara* .
✨Here we need to note that *santata* is seated in *rasa dhatu*. And also the *dhatugata jwara i.e. rasagata jwara in this instance has been immediately explained after vishama jwara by master Charaka* .✨
*Manifestations 👇👇*
🕵 *Hidden and disappears for short duration, appears back and runs long course in milder or life threatening form without responding to treatment* - So the subsided or latent fever, as mentioned in the earlier paragraph, is left out in the rasa dhatu and continues a long course. It may be evident in a life threatening severe form if the immunity of the person is low or it may continue a long course in a milder form and keep sustained with frequent medication if the immunity is good enough.
🕵 *Hidden and not evident for long time, but relapses back* - That fever which is hidden in the rasa dhatu in latent form and is running long course may also be symptomless or not manifest when immunity is good or when frequent medicine is given during its long course. In many people the fever may run long course being seated in the rasa dhatu and the fever may not be evident for many days. In these people, when favorable conditions occur or when the nidanas are consumed or when the immunity of the person reduces, the *latent fever, hidden in the rasa dhatu, running a long course may manifest, with or without vishamatva*. If it shows characteristics of vishamatva, it may be considered as relapse of vishama jwara and if it just shows the symptoms mentioned in classics, it should be diagnosed as *rasa gata jwara*.
🕣 Similarly, the *Kapha pradhana Santata* and *Vata Pradhana Santata* should be understood in terms of the *regression or progression / death, occurring in 12 and 7 days respectively*. 🕣
💥💥💥💥💥💥💥
*_Hypothesis 2_* - *_Taking Rasa Gata Jwara as independent entity_*
The pathology of jwara being located in each and every dhatu will have its specific symptoms, rasa gata jwara too. The differentiating points are –
👉 *absence of vishamatva*
👉 *absence of kala doosyha prakriti dosha tulyataa*
👉 *presence of visargi or avisargi nature*
✨ *Commentator Gangadhara* tells that the *dhatu gata jwaras should be regarded as the doshaja jwaras occurring in the dhatus & the symptoms will depend on the predominance of the vitiated dosha at the point of manifestation of jwara*.
This shows that various types of *vikalpa samprapti* takes place even in dhatu gata jwaras.
✨The *dhatugata jwaras* doesn’t merely occur due *to the contact or amalgamation of doshas with dhatus*. It occurs due to the *peculiarities of doshas and dhatus and a strange interaction between them* or else, *dhatugatatva of any disease would just be a simple dosha-dushya sammurchana*.
✨We also should note that *dhatugatatva has not been explained in all diseases*. This is only an indication by *Shastrakaras* that *dhatugatatva may be possible when unique interaction takes place between dhatus and doshas in any disease, but that doesn’t occur in all diseases, but the possibility cannot be ruled out when such interaction takes place*. It may also be a liberty given to the physician telling him that - *_See, we have just mentioned a few diseases wherein dhatugatatva takes place. Even in other diseases, you can infer or understand situationally using anumana or yukti, if you find that those diseases are running a slow and hidden course, manifesting on and often, have got chronic and are stubborn to treat – a Secret Message, understanding anukta by ukta_* .
✨ *Thus, any jwara which seems to be running a long course, due to it being latent in the tissues, responds when treatment is given but bounces back when conditions i.e. nidanas are favorable to it, keeps visiting on and off, with mild symptoms when immunity is good and with severity when immunity is less, shows the symptoms of particular dhatu dushti or contamination of srotas of that particular dhatu along with classical symptoms mentioned in the text, particular for each dhatugata jwara, with absence of vishamatva, may be put into the bracket of dhatugata jwara*
✨ *The same jwara when shows signs of the dhatu in which it is located and behaves with vishamata in terms of arambha, kriya and kala and also shows muktanubandhatva is called vishama jwara*.
🕵🕵 Here we need to see that *santata jwara doesn’t follow the rule of muktanubandhatva*, therefore some authors opine that it is not *vishama jwara*. But holding on to *reference from Charaka* wherein he tells that *Visarge dwaadasham krutva divase avyakta lakShaNaH. Durlabha upashamah kaalam deergham api anuvartate*, which means santata jwara too sometimes disappear after / on twelfth day, for a short time and again appears again to continue a course of long duration in case proper interventions are not available*. This short period of absence of fever is considered *muktanubandhatva in santata jwara* which qualifies it to be amongst vishama jwaras.
👉 *Disclaimer*
👉👉👉 *_The above said are only my opinions based on the hypothesis and extended hypothesis which I dared to apply on classical references_*
*This is my humble submission to the elite panel*🙏🙏
*DrRaghuramYS*
[15/05, 8:10 PM] pawan madan Dr:
सोनी जी ।
दोनो ही प्रकार के ज्वरो मे रस धातु दुष्टि उल्वणता है....आप तर तम के भाव से इस को अलग मान सकते है पर अन्तत दोनो मे रस धातु दुष्टि सामान्य होने से दोनो को समान कहा जा सकेगा ।
बहि ताप लक्षण विशेश है....लेकिन आपके अनुसार इसका क्या अर्थ है....क्या hyperthermia.....तो फिर सन्तत ज्वर मे तो temperature continous होता ही है....तो क्या ये बहिताप नही है?
[15/05, 8:11 PM] pawan madan Dr:
तो जब दोनो मे रस धातु दुष्टि सामान हो तो चिकित्सा सामन क्यु नही होगी?
🤔
[15/05, 8:56 PM] pawan madan Dr:
Super as usual Raghu Sir....
👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👏🏻👏🏻
Veru comprehwnsive...
Well written...
But sir...
It hasnt solved the mystery yet.
I will have to go through again and will come to you again.
Chakrapaani has described all this also. But in practice we need to see through some different angle perhaps...
🤔
[15/05, 9:03 PM] Prof. Surendra A. Soni:
Please see the signs and symptoms of Antar/bahirvega jwar. You will see the difference. AV jwar involves Marmas too.
Around 2 or 3 years back we had little discussion on it.
[15/05, 9:04 PM] pawan madan Dr:
Sir !
I have gone through and found that less syms. in bahivega and when these syms are too much aggravated invilving marmas called antarvega.
Difference is in severity only.
[15/05, 9:05 PM] Prof. Surendra A. Soni:
Raghu Sir has given very good detailed description.
You are just seeing the similarity not eyeing on differential points that I mentioned in my previous posts.
[15/05, 9:07 PM] Prof. Surendra A. Soni:
That is the reason that I mentioned in my first post and that is the only reason that santata may be fatal, hence Chikitsa is different targeting marma/Pran raksha.
[15/05, 9:07 PM] pawan madan Dr:
I am trying to fing.
The whole.exercise is.for this...
[15/05, 9:08 PM] Vd Raghuram Bhatta, Banguluru:
Thanks Pawan sir🙏
Yes, you are right, many concepts are mysterious and we need to solve these tough puzzles. For practice, I agree, we need a broader horizon and insight, we need to decide it and translate them so that they conveniently fit into our practice.
*Santata and rasagata* looks similar entities, as you HV quoted. You are right. I just tried to scramble the puzzle and see where they differ. That led to some hypothetical presentation. *If both were one and the same, why would they be explained as different entities ?*
Going with shastra, it is wise to accept that they are different. From practical point of view, we need to break the ice by vishaya manthan!!🙏🙏
[15/05, 9:08 PM] pawan madan Dr:
It means....Santata and Rasagat jwara differs in severity ?
[15/05, 9:11 PM] pawan madan Dr:
But sir....your help is extremely needed.....please keep.giving inputs....
[15/05, 9:12 PM] Vd Raghuram Bhatta, Banguluru:
Thanks Soni sir🙏🙏
There need to be some reason for these entities to be mentioned separately in shastra. From aptopadesha point of view, they can never be the same. We need to accept that and try to differentiate them. Many concepts in AYURVEDA have subtle differences, but difference is a difference !!
[15/05, 9:13 PM] pawan madan Dr:
Sir
I also accept this.....purely.
But question raised to know the practical benefits...
[15/05, 9:14 PM] Vd Raghuram Bhatta, Banguluru:
Thanks Pawan sir. You HV raised a good topic as usual. It made me too think in various perspectives. We will discuss and see where we reach🙏🙏
[15/05, 9:14 PM] Prof. Surendra A. Soni:
Since day 1 I am trying to say that santatadi description is mentioned as per timing / duration of Occurence of jwar.
This is the speciality of Acharya that they have mentioned all aspects of the diseases, it's upto you that you pick.....
Santatadi concept or
Dwi/tridosha jwar concept or
Antar/bahirvegi concept or
Visham jwar concept if muktanubandhitva is there.
These all are different aspects of disease. Even modern has no Concept similar to this though it is less therapeutic but more prognostic.
[15/05, 9:16 PM] Vd Raghuram Bhatta, Banguluru:
Got your point sir🙏🙏
First we need to settle down with basics and reach to a common opinion regarding similarities and dissimilarities of concepts. Once we are clear, we can drill through practical approach.
*I got your good intentions very clearly*
[15/05, 9:22 PM] Prof. Surendra A. Soni:
I tried to explain that Sir.
🙏🌹
[15/05, 9:46 PM] Sanjay Chhajed Dr. Mumbai:
I think rasa gat jwar and santat jwar are two different entities. One is Sama jwar & other one is visham jwar.
Though both are rasa gat, but there is jwar visarga and other has no visarga. That is definitely because of variation in samprapti. & that alters the treatment too.
[16/05, 9:16 AM] D C Katoch Sir:
I feel, nomenclature of diseases is not done on the basis of severity. It is the total aetio-pathological complex (निदानपञ्चक), which leads to specify the disease manifestation and it's naming.
Pawan Sir 👆👆👆👆
🙏🙏🌹🌹
क्षुद्र प्रयास ।।
[16/05, 8:36 PM] Dr B K Mishra Ji:
Excellent Elaboration 💐🙏🏼
Excellent Elaboration 💐🙏🏼
[17/05, 8:12 AM] pawan madan Dr:
Thanks Soni Ji.
आपके स्नेह के लिये आभारी हू
इस चार्ट से ये निष्कर्ष हुआ के जो ज्वर ७ दिन य झ्यादा लगातार रहता है उसको सन्तत श्रेणी मे रखेन्गे और ये severe typa का हो सकता है.
एव्म जो ज्वर short duration का एवम अधिक कफ दुष्टि आम दुष्टि युक्त लक्षणो वाला रहेगा उसे रस गत ज्वर कहा जा सकेगा. ये ज्यादा severe नहि होगा और usually short duration मे ठीक हो जायेगा.
👏🏻👏🏻
[18/05, 2:32 PM] Vd Ranga Prasad Ji Chennai:
Pawan bro', Will/can dhatupAka occur in dhatugata jvara or not ?! 🤔
Manifestion of GAtra vikshepa if is occurring, vega of jvara be mild / teevra ? 🤔
🙏🙏🙏
[18/05, 2:47 PM] pawan madan Dr:
I cant say
I am on search....🤔
[18/05, 11:21 PM] Prof. Surendra A. Soni:
My reply in bracket.....
Pawan bro', Will/can dhatupAka occur in dhatugata jvara or not ?! 🤔
*(Dhatupak may occur in dhatugat jwar but dhatugat jwar doesn't always mean Dhatu-pak, as I understand.)*
Manifestion of GAtra vikshepa if is occurring, vega of jvara be mild / teevra ? 🤔
🙏🙏🙏
*(It will be a teevra Vega of jwar, an indication of Dhatu-pak. You selected example of Mansa-dhatu-gat jwar.)*
Ranga Guru !!🙏🙏🌹🌹
[19/05, 6:58 AM] pawan madan Dr:
🙏🙏🙏
Soni sir, Ranga bro...👏🏻👏🏻
🌿
*Observing the series of the symptoms from Rasagata to Shukragata jwar we find that there is उत्तरोतर inceease in the severity of the symotoms in all dhatugata jwara.*
🌿🌿
*Dhatugata jwara description has been given just after and along with the description of the Satataadi vishama jwara.*
🌿🌿🌿
*Even chakrapaani has not given any commentry on these. Rather he has been more interested in the first berse about the interchangeability and aggravation of different visham jwars.*
🌿🌿🌿🌿
*And in the Sataataadi jwara there is mention of only the Vegakaal....no any other imp symps given*.
🌿🌿🌿🌿🌿
*The first verse just before description of dhatugata jwara is also about the interchangeability of.the different visham jwara as per the dosha, kaala etc.*
🌿🌿🌿🌿🌿🌿
*I understand that all these dhatugata jwaara are the gradual stages of the satataadi visham jwara in terms.of the severity. This can be understood.....when we see the syms of shukragata jwara it doesnt depict any one particular clinical condition if we dont consider the symps described under other poorva dhaatu gata jwars.*
🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿
*In this way we can consider these dhatugata jwara as the increasing severity of the Vishama jwaras if not treated.*
🙏🙏🙏
*This is my humble submission and I would like to seek more guidance on this.*
[19/05, 8:06 AM] D C Katoch Sir:
तो क्या समज्वर धातुगत ज्वर में परिवर्तित /प्रवृद्ध नहीं होता ?
[19/05, 8:13 AM] pawan madan Dr:
नमस्ते सर !
मुझे लगता है yes ...हो सकता है. कोई भी भी ज्वर अपनी प्रव्रिध अवस्था मे धातुगत हो सकता है.
🙏
👆Doshapaka and Dhatupaka in Pneumonia
[19/05, 9:46 PM] Prof. Surendra A. Soni:
Description of dhatu-gat jwar is mainly instructed to *'chikitsa-soukarya'* while santatadi is instructed as per timing/Occurence/ episode of fever and prognosis. This is intelligence of our Maharshi that they descrbibed various aspects of one pathology. Dhatu-gat jwar may be episodic as dhatugatatva progresses in santatadi in presence of *pratyanik* like anyedyushka etc, it's mentioned clearly to manage accordingly as per involved dhatu.
If you say that these are two different aspects of one pathology then it would not wrong, as I understand. If dhatugat jwar either ras or other Dhatu showing involvement of 12 mentioned dushya, then it will be santat as per previous description.
Pawan Sir !
Ranga Sir !
Raghu Sir !
Dr Pankaj !
🙏🌹
[19/05, 9:59 PM] Prof. Surendra A. Soni:
Jwar itself isa condition of dosha Pak when body temporarily suspends few unnecessary physiological activity and starts burning doshas as mentioned in *pachyaman jwar* condition and resumes it when Dosha-pak is over that we can see in *jwar mukt* condition.
If body can't control or causative factors are potent than Dhatu-pak starts as a result of tissue necrosis.
This is our speciality that we have so much aspects of disease.
[19/05, 10:16 PM] Vd Ranga Prasad Ji Chennai:
👌👌👌
The involvement of dhatus at santatAdi types of jvaras mentioned in jvarAdhikAra cikitsA.
1. स्रोतोभिर्विसृता दोषा गुरवो *रसवाहिभिः*||५३||
सर्वदेहानुगाः स्तब्धा ज्वरं कुर्वन्ति *सन्ततम्|*
2. *रक्तधात्वाश्रयः* प्रायो दोषः *सततकं ज्वरम्*||६१||
3. *अन्येद्युष्कं ज्वरं* दोषो रुद्ध्वा *मेदोवहाः* सिराः||६३||
4. *मांसस्रोतांस्यनुगतो* जनयेत्तु *तृतीयकम्|*
संश्रितो *मेदसो* मार्गं दोषश्चापि *चतुर्थकम्* ||६६||
5. दोषो *ऽस्थिमज्जगः* कुर्या *त्तृतीयकचतुर्थकौ*||६४||
🤝🙏💐
[19/05, 10:18 PM] Vd Ranga Prasad Ji Chennai:
Accepted Soni sir. 🤝
[19/05, 11:10 PM] pawan madan Dr: 🙏🙏🙏🙏🙏
[19/05, 11:15 PM] D C Katoch Sir:
This is diplomatic conclusion Dr Soni. समज्वर, विषमज्वर, जीर्णज्वर व धातुगत ज्वर are different clinical entities not only in terms of nomenclature but also aetio-pathologically, prognostically and treatment-regimen wise.
[19/05, 11:17 PM] Prof. Surendra A. Soni:
This is my understanding as I mentioned.
🙏🙏🌹🌹
[20/05, 12:19 AM] Ravi Nagpal Dr:
Respected Katoch SIr !
kindly express your views in detail about these types of jwar.
[20/05, 5:14 AM] Sanjay Chhajed Dr. Mumbai:
I do agree sir, we all get patients with different clinical presentations and different etiopathology. These needs different treatment modalities. These can not be same. When we talk of jwara it is invariably "jwarada tu rasanuga"
These various types of jwara are nothing but the jwara occurring due to various factors like infections. The variation of the inflammatory process is signified by the clinical variant. Acharya Charak was very choosy while selecting the words. That is the reason for different names.
[20/05, 6:30 AM] pawan madan Dr:
Pranaam sir.
You have pointed importantly.
*Visham jwara..*.
Irregular onset
Irregular symptoms - it may give burning or cooling sensation.
Irregular time - it may occur in the morning, afternoon etc.
Irregular treatment - it may be cured by Brinhan`a or Langhana etc.
*Sama jvara* ... सम ज्वर
Opposite of visham jvara. Ek doshaja, dvidoshaja, sannipaataj
*Jeerna Jwara*
that which remains or continous beyond 21 days and is generally low grade fever
*Dhatugata Jwar*
Different stages / conditions / avasthas of any jwara when it manifests with the particular syms as described under various dhatugatava in the text.
My humble submission but need your guidance to correct this if wrong.
🙏🙏
[20/05, 8:16 AM] D C Katoch Sir:
सुप्रभात । ज्वर के बारे में मुख्यतः तीन मनीषियों ( डा सोनी, डा रघु और डा पवन) के मन्तव्यों से इंगित होता है कि सन्ततादि और धातुगत ज्वर एक ही हैं और यह सामान्यत्व या एकमतत्व तापक्रम के पैटर्न, उग्रतादि पर आधारित प्रतीत होता है। वस्तुतः ज्वर के विभिन्न प्रकार निदान-सम्प्राप्ति की विशिष्ट स्थितियों पर आधारित हैं नाकि केवल तापक्रम के पैटर्न इत्यादि पर । धातुनिर्माणपोषणक्रम और शास्त्रविहित निदान-सम्प्राप्ति सिद्धांतों की अनुपालना को ज्वर के परिप्रेक्ष्य में निम्नवत समझा जा सकता है -
1) ज्वर आद्य धातु की प्रदुष्टि जन्य आद्य रोग है इसीलिए यह कहा गया है कि यह जन्म काल और मृत्यु काल दोनों में मनुष्य को ग्रसित करता है।
2) समज्वर में दोषदूष्य सम्मूर्छना रस पोषक धातु तक सीमित रहती है और तदनुसार ज्वरविन्यास व लक्षणसमुच्चय उत्पन्न होता है व सम्यक चिकित्सा करने पर दोषस्थिति अनुसार ठीक हो जाता है। 3) सन्ततादि ज्वर में पोष्यरसधातु व अन्य धातुओं के पोषकांशो की दुष्टि दोषकालप्रकर्ष के अनुसार प्रकट होती है इसलिए लक्षणोत्पति व इनकी उग्रतादि में विषमता रहती है।
4) उचित चिकित्सा न करने से या चिकित्सापचार से या ज्वरकाल में पथ्य की अवहेलना से समज्वर व विषमज्वर दोनों ही जीर्णज्वर में परिवर्तित हो सकते हैं और ऐसा होने/कहने के लिए अग्निसाद, ज्वरतनुता और प्लीहावृद्धि आवश्यक है तीन सप्ताह के बाद।
5) धातुगत ज्वर में दोषदूष्य सम्मूर्छना तद्तद् पोष्य धातु के साथ होती है जिससे उस उस धातु के धारणत्व कर्म प्रभावित होते हैं व तदनुसार लक्षणों की अभिव्यक्ति होती है।
[20/05, 9:26 AM] D C Katoch Sir:
सन्तत ज्वर के प्रकरण में धातुपाक और दोषपाक को क्रमशः रोगस्थिति से उत्पन्न complications( गम्भीर परिणाम) और resolution (सम्प्राप्तिविघट्टन) समझना चाहिए । धातुपाक की स्थिति प्रवृद्ध दोषदुष्टि द्वारा पोष्य धातु में हुए विभ्रंश को दर्शाती है जो रोगी के हीनसारत्व और रोग की प्रबलदोषदूष्यसम्मूर्छना पर निर्भर करती हैं ।
सन्तत ज्वर के प्रकरण में धातुपाक और दोषपाक को क्रमशः रोगस्थिति से उत्पन्न complications( गम्भीर परिणाम) और resolution (सम्प्राप्तिविघट्टन) समझना चाहिए । धातुपाक की स्थिति प्रवृद्ध दोषदुष्टि द्वारा पोष्य धातु में हुए विभ्रंश को दर्शाती है जो रोगी के हीनसारत्व और रोग की प्रबलदोषदूष्यसम्मूर्छना पर निर्भर करती हैं ।
[20/05, 9:51 AM] pawan madan Dr:
🙏🙏🙏🙏🙏
...आपका अभिप्राय है के सम ज्वर मे जो धातुओ को पोषण देने वाला आहार रस बनता है वह दूषित या ill formed या negatively affected with doshas रहता है ... तो क्या हम.इस से ये सम्झ सकते है के जो सन्निपातज ज्वर गम्भीर रूप के होते है उन मे भी दुष्टि केवल रस पोषक धातु तक रहती है 🤔
...सन्ततादि ज्वर मे पोष्य धातु गत दुष्टि आती है और जोधातु गत ज्वर के लक्षण कहे गये है वे क्या इस से कुछ अन्यथा है?🤔
...जीर्ण ज्वर मे अग्निसाद, ज्वरतनुता, प्लीहाव्रिधि.....👌🏻उत्तम प्रयिग करने योग्य विचार
...और धातु पाक एवम दोषपाक concept.....well accepted and understood.
🙏🙏🌹
[20/05, 7:42 PM] D C Katoch Sir:
1) आपका अभिप्राय है कि सम ज्वर मे जो धातुओ को पोषण देने वाला आहार रस बनता है वह दूषित या ill formed या negatively affected with doshas रहता है ... तो क्या हम.इस से ये समझ सकते है के जो सन्निपातज ज्वर गम्भीर रूप के होते है उन मे भी दुष्टि केवल रस पोषक धातु तक रहती है -
Yes।
2) सन्ततादि ज्वर मे पोष्य धातु गत दुष्टि आती है और जो धातु गत ज्वर के लक्षण कहे गये है वे क्या इस से कुछ अन्यथा है-
Yes that is why सन्ततादि विषमज्वर and धातुगत ज्वर are separately mentioned in shastra.
3)जीर्ण ज्वर मे अग्निसाद, ज्वरतनुता, प्लीहाव्रिधि.....👌🏻उत्तम प्रयोग करने योग्य विचार-
Thanks for accepting. 4) धातु पाक एवम दोषपाक concept.....
well accepted and understood- Cheers!
🙏🙏🌹
[20/05, 9:05 PM] Prof. Surendra A. Soni:
द्विविधो विधिभेदेन ज्वरः
1.शारीर-
separate doshaja nidan samprapti mentioned. Further eight types are mentioned.
2. मानसः|
no separate nidan mentioned.
पुनश्च द्विविधो दृष्टः
3. सौम्य
4. श्चाग्नेय
No separate nidan samprapti mentioned. Only presentation of fever mentioned. It's because of way of methodology to description of ancient times.
एव वा||३२||
5. अन्तर्वेगो-
severe presentation of fever involving the marma. This may take place in any type of fever either santatadi or dhatu-gat or any other. Because it is not a type of fever, it's menifestation of fever with severity. It has no separate nidan panchak.
6. बहिर्वेगो द्विविधः पुनरुच्यते|
Milder presentation as above.
7. प्राकृतो
8. वैकृतश्चैव
👆👆👆👆
description as per management perspective whether langhan is applicable or not...,? It has no separate nidan panchak.
9. साध्य
10. श्चासाध्य एव च||३३||
As per prognosis.
पुनः पञ्चविधो दृष्टो दोषकालबलाबलात्|
11-15
सन्ततः
सततो
ऽन्येद्यु
स्तृतीयक
चतुर्थकौ||३४||
These are as per episode/timings of occurrence of fever because of dosha, kal, Bal, abal. Why santat (continuous), tritiyak, chaturthak etc words used in description of fever ? What is the meaning of use of numbers in description of fever ?
No nidan panchak etc mentioned...?
16.-22
पुनराश्रयभेदेन धातूनां सप्तधा मतः|
Here also no separate nidan panchak mentioned.
Again these are as per the location of site of pathology. Why santatadi also have description of site of pathology, because, Acharya has given importance to the menifestation timing of fever. There is no other applicable meaning of description of above types of fever is interpretable. If anyone helps in this regard I would be grateful.
भिन्नः कारणभेदेन पुनरष्टविधो ज्वरः||३५||
👆👆👆👆👆
these 8 types are the real type of fever that have unique complete nidan panchak, line of management, pathyapathya etc and *except these eight all descriptions of fever are various stages, presentation, menifestation, various aspects etc of said eight types of fever.*
Resp. Dinesh Sir !
Pawan Sir !
Ranga Sir !
Raghu Sir !
सभी को सादर प्रणाम । त्रुटि सुधार अपेक्षा सह ।।
🙏🙏🌹🌹😌😌
[20/05, 9:09 PM] pawan madan Dr:
👍🏻👍🏻👍🏻👍🏻
Same questions in my mind....
Scratching my mind to get answers....🤔
[20/05, 9:09 PM] Prof. Surendra A. Soni: 😊
[20/05, 9:10 PM] pawan madan Dr:
Thank U very much Respected Katoch sir.
How can we differentiate Santata jwara and Rasadhaatugata jwar?
Based on timing of attacks 🤔
[20/05, 9:14 PM] pawan madan Dr:
Aur bhi....
आम ज्वर
पच्यमान ज्वर
निराम ज्वर
..can be different stages in any jwar..
[20/05, 9:15 PM] Prof. Surendra A. Soni:
👍
सही पकड़े है ।
[20/05, 11:07 PM] Dr B K Mishra Ji: 👌🏽👍🏽🙏🏼🌹💐
[21/05, 12:32 AM] Vd. Subhash Sharma Ji Delhi:
*cream of ayurved यहां है, सैद्धान्तिक पक्ष पर discussion चिकित्सा को बहुत मजबूत आधार देता है जबकि अनेक विद्वान तो शिक्षण क्षेत्र से हैं, उन्हे ऐसे गंभीर विषयों पर जरूर चर्चा में भाग लेना चाहिये।*
[21/05, 6:59 AM] Vd Raghuram Bhatta, Banguluru:
👌👌👌👌🙏🙏🙏
Sounds good Soni sir...
[21/05, 7:11 AM] Vd Raghuram Bhatta, Banguluru:
I feel *santata* if not treated completely, or remains *latent* in *rasa dhatu* due to *incomplete treatment/Shuddhi* it *keeps repeating in its pattern, every now and then, runs a chronic course and needs interventions as and when it appears*.
The first attack was *santata*
The consequent attacks of *santata like jwara, with added rasagata jwara lakshanas, which keep coming due to its incomplete cure, being latent is rasagata jwara*
👉 Santata - contact with rasa
👉 Rasagata - blended with rasa
And
The above mentioned is seeing that santata and rasagata are *extensions*
*Rasagata jwara lakshanas if not showing vishamatwa, i.e if santata pattern isn't followed, and has only it's specified lakahanas, it is just rasagata*
It's my hypothetical understanding and humble submission 🙏
[21/05, 9:32 AM] Prof S. K. khandal Sb:
प्रिय पवनजी
ज्वर चरक निदान व चिकित्सा का आरंभ है अतः इसका विस्तृत विवरण आगे के सभी रोगो में एप्लाई होता है
१ ज्वर में कहे गए विधि भेद
धातुगत अवस्थाये
आगन्तु अनुबंध से वैषम्य
ससर्ग सन्निपात
पुनरावृत्ति
मानसिक आदि सभी अवस्थाओं का चिन्तन सभी रोगो में करना चाहिए
२ सन्ततादि भेद व धातुगत अवस्थाये धातुओं के आश्रय साम्य के बावजूद भी आगन्तु अनुबंध के कारणों से ज्वर प्रवृत्ति में वैषम्य के कारण से भिन्न हैं
इसीलिए चिकित्सा भी भिन्न है
च चि ३/२००-२०३
आगन्तु रनुबधोहि प्रायशो विषमज्वरे च चि ३/२९३
३ उत्तर धातुओं में ज्वर असाध्य होता जाता है यह सभी रोगो के लिए कथन हैं
४ धातु या दूष्य दोषविपरीत होने से प्रायसाध्यता है
५ पुनरावृत्ति में ज्वर लक्षण है ही नहीं ऐसा हम प्राय देखते हैं
पेरासिटामोल से ज्वर सम्प्राप्ति नष्ट होना शक्य नहीं है
६ मेरा निवेदन है आयुर्वेद चिकित्सा समझने के लिए ज्वर को आधार बनाकर करने से सशय दूर होते हैं
इसे बारम्बार पढ़ें लाभ ही लाभ होगा ।
[21/05, 9:36 AM] Prof S. K. khandal Sb: प्रिय सोनीजी भी ।
[21/05, 9:38 AM] Prof S. K. khandal Sb: पुनरावृत्ति सन्दर्भ च चि ३/३३३-३३८
[21/05, 9:58 AM] Shridutta Trivedi Dr: 👍🏻🙏🏻
[21/05, 10:02 AM] Dr Shashi Jindal: 👍🏼👌👌👌🙏🏼🙏🏼🙏🏼
[21/05, 10:56 AM] Prof. Surendra A. Soni:
हार्दिक आभार गुरु जी । आपके वचन सदैव गम्भीरता से विचारणीय है ।
🙏🙏🌹🌹😌😌
[21/05, 5:20 PM] pawan madan Dr:
प्रणाम सर.
आपके कथन अति महत्वपूर्ण है
आप कह रहे है के धातुगत ज्वर आम तौर पर निज होते है व विषम ज्वर आगन्तुज रहते है और ये ही दोनो मे फर्क है और इसिलिये दोनो की चिकित्सा भी भिन्न है...🙏
पोइन्ट न..३और ४ स्मर्णीय है.
पोइन्ट न. ५ को अभी समझना है.
🙏🙏
[21/05, 7:51 PM] D C Katoch Sir:
🙏🏽 गुरू जी, आपके स्पष्टीकरण से अब शायद ज्वरभेदों सम्बन्धी कोई शंका या उलझन नहीं होनी चाहिए इस ग्रुप के सदस्यों में । साधुवाद इति।
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Above discussion held on 'Kaysampraday" a Famous WhatsApp-discussion-group of well known Vaidyas from all over the India.
Compiled & edited by
Dr.Surendra A. Soni
M.D.,PhD (KC)
Professor & Head
Professor & Head
P.G. DEPT. OF KAYACHIKITSA
Govt. Akhandanand Ayurveda College
Ahmedabad, GUJARAT, India.
Email: surendraasoni@gmail.com
Mobile No. +91 9408441150
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