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Case-presentation: Vrikka-dushtijanya Uchcha-raktachap (Renal Hypertension) by Vaidyaraja Subhash Sharma

[2/26, 12:33 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi: 



*case presentation ...*



*उच्चरक्तचाप (hypertension) जन्य वृक्कदुष्टि (medical renal disease) एवं आयुर्वेदीय व्यवस्था)*



*आज इस वर्तमान के प्रमुख रोग पर विस्तार से कहेंगे कि किस प्रकार एक रोग से दूसरे रोग की उत्पत्ति होती है और b urea 201, s. cr. 10.94 एवं uric acid 12.88 तक वृद्धि होने पर भी समुचित आयुर्वेदीय सिद्धान्तों के अनुसार रोग को नियन्त्रित कर दिया जाता है और लगभग तीन महीने में ही b urea 1.00, s cr. 32 एवं uric acid 4.09 स्तर तक आ सकता है।*



*रूग्ण male/ 37 yrs/ weight 73 kg./business*



*प्रमुख वेदना - उदरशूल एवं आध्मान,  मंदाग्नि, जलोदर, उत्क्लेश एवं छर्दि, पाद शोथ एवं स्वेद,  विबंध, मनोविभ्रम एवं घबराहट, भय, ह्द द्रव।*



 *History of present illness - 



रोगी को पिछले तीन वर्ष से उच्चरक्तचाप था जिसकी allopathic चिकित्सा अनियमित थी, और कुछ समय से बंद कर रखी थी तो कुछ समय से चलने श्वास कृच्छता, उदर वृद्धि और पाद शोथ लक्षण मिल रहे थे एक दिन 10-10-2019 को BP 180/110 mmHg होने पर AIIMS emergency में admit हो गया जहां b urea 165, s cr 8.1 था।*





























[2/26, 12:33 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi: 



*usg में medical renal disease, rt. cortical cyst 3.7/3 cm , rk 9.3 cm- Lk 3.5 cm*




























[2/26, 12:33 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi: 




*रोगी hospial में admit था, रोग क्योंकि अधिक पुराना नही था हमने कहा कि discharge कर कर हमारे पास ले आईये प्रयास करेंगे, रोगी 19-10-19 को हमारे पास आ गया और BU, S. cr. चिकित्सा से पूर्व कराये गये।*



[2/26, 12:33 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi: 




















*b urea 171 s cr 9.1 मिला*


[2/26, 12:33 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi: 


*allopathic med. बंद नही की bp अधिक ही चल रहा था 160/100-110 औषध दे कर तीन दिन बाद kft पुन: कराया गया 23-10-19 को burea 160 s cr 10.94 UA 12.8 मिला रोगी को धैर्य दे कर विरेचन पर लाया गया, पर ये ध्यान रखा गया कि वात प्रकोप और जलीयांश कम हो कर मूत्राम्लता की वृद्धि ना हो।*






[2/26, 12:33 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi:



 *चिकित्सा से bp 140/90-100 तक आ गया था, वजन कम हो कर जलोदर में लाभ था, 1012-19 को bu 138/scr 7.06/ ua   8.42 था।*


















[2/26, 12:33 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi: 



*31-10-19 को रोगी के एक परिचित और अधिक श्रेष्ठ चिकित्सा के लिये अन्य आयुर्वेद चिकित्सालय ले गये वहां उसे चंदनासव, महाशंखवटी, द्राक्षासव एवं पंचवल्कल क्वाथ दिया गया।*

*महाशंख वटी में पांचों नमक, सज्जी एवं यवक्षार, पारद, वत्सनाभ, दन्तीमूल के साथ ही अम्ल द्रव्यों में मर्दन से यह वृक्कों के लिये अहितकारी है, अनुभव ज्ञान कम होने से इसका प्रयोग नही करना चाहिये था अत: रोगी को भयंकर उपद्रव हो कर 15-1-2020 को bu 201/s cr 7.94/ua 7.79 और HT 180/110 मिला।*















[2/26, 12:33 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi: 



*23-12-19 को bu 128.8/s cr 7.63/ ua 7.67 रोगी प्रसन्न था, लाक्षणिक लाभ काफी मिल चुका था।*



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*रोगी हमारे पास पुन: आ गया तो हमने पुन: मृदु विरेचन के साथ चिकित्सा आरंभ की 28-1-2020 को bu 32 और s cr 1.10 मिला, BP 120/70 आ गया।*






















[2/26, 12:33 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi: 



* 14-2-20 को usg में R K cyst 3.7/3 cm से 43/43 mm की मिली, kidney size normal, gr 2 parenchymal changes मिले, चिकित्सा चल रही है और BP 120/70 allopathic में HT की केवल एक औषधि चल रही है।*



[2/26, 12:33 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi: 



*पुन: 3-2-2020 को burea 39/ s cr 1.00 / ua 4.90 मिला*



[2/26, 12:33 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi:



 *कुल वृत्त - जन्म से पूर्व पिता अति मद्यपान करते रहे है।*



[2/26, 12:33 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi:



 *history of past illness- रोगी केवल मेदस्वी रहा था, आहार non veg., अनियमित रहा ।*



[2/26, 12:33 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi: 



*आईये अब उच्चरक्तचाप (HT) और वृक्क दुष्टि (medical renal disease) को जानने के लिये शास्त्रों के आधार पर हम किस तरह चले और रोगी को लाभ मिला इस पर चलते है। यह बहुत ही गूढ, गंभीर और विस्तृत विषय है।*



*पहले उच्च रक्तचाप से आरंभ करते है, 

'तत: शोणितजा रोगा:... मुखपाको... रक्तपित्त... विद्रधी' 

च सू 24/11 

अर्थात शोणितज रोग अर्थात जो दूषित रक्त के कारण होते हैं जो मिथ्या आहार विहार या काल से दूषित होता है और आगे 

'विकारा: सर्वं एवैते विज्ञेया शोणिताश्रया:' 

च सू 24/16 

शोणिताश्रया रोग जो दुष्ट रक्त को अपना आश्रय बना कर रूग्ण करते हैं और उचित चिकित्सा करने पर रोगी उस रोग से मुक्त हो जाता है। उच्च रक्तचाप अर्थात hypertension को आयुर्वेदानुसार समझने के लिये चरक का ये सूत्र बहुत महत्व पूर्ण है।*



*'विधिना शोणितं जातं शुद्धं भवति देहिनाम्, देशकालौकसात्म्यानां विधिर्य: सम्प्रकाशित:' 

च सू 24/3 

रक्त की शुद्धि देश, काल और ओक सात्म्य की विधि के अनुसार होती है। चार प्रकार के सात्म्य अष्टांग संग्रह नि 1 में स्पष्ट किये गये हैं 
ऋतुसात्म्य, 
ओक सात्म्य, 
देश सात्म्य और 
रोग सात्म्य, 
ये स्वभाव से उत्तरोत्तर बलवान होते हैं।*


*रस धातु का सूक्ष्म भाग रंजक पित्त से रक्त वर्ण हो रक्त कहलाता है, रस कफ प्रधान और रक्त पित्त प्रधान है। रक्त में गंध पृथ्वी से, द्रवता जल से, रक्त वर्ण और उष्णता तेज से, स्पंदन वायु से तथा लघुता वायु और आकाश से है।*



*'प्राणिनं प्राण: शोणितं ह्यनुवर्तते' 

च सू 24/4 

प्राणियों में प्राण शुद्ध रक्त के अनुसरण अनुसार ही चलता है  जो बल, वर्ण, सुख और दीर्घ आयु प्रदान करता है,

'रक्तं जीव इति स्थिति :' 

सु सू 14/44
 
में सुश्रुत ने रक्त को जीव संज्ञा भी दी है, 

'धातुक्षयात् स्रुते रक्ते मन्द: संजायतेऽनल:' 

सु सू 14/37

 रक्त के स्रुत होने पर धातुयें क्षीण हो जाती हैं, जिस से अग्नि मंद होती है और वात का प्रकोप और सु सू 14/21 में 

'तेषां क्षय वृद्धि शोणितनिमित्ते'

 अर्थात धातुओं की वृद्धि या क्षय रक्त के कारण होती है।'

 देहस्य रूधिरं मूलं रूधिरेणैव धाय्यर्ते'

 सु सू 15/44 

रक्त ही शरीर का मूल है और ये ही शरीर को धारण करता है।*




*रक्त दुष्टि/पित्त दुष्टि एवं उच्च रक्तचाप के  कारण -*

*रक्त में तेज महाभूत और पित्त दोष प्रधान है अत: पित्त को दूषित करने वाले सभी कारण रक्त दुष्टि करेंगे जिसे सु सू -21/ 21-22 में बहुत स्पष्ट किया है 'तदुष्णैरूष्ण काले' उष्ण पदार्थ सेवन से और उष्ण काल अर्थात गर्मी के दिनों में (ग्रीष्म ऋतु इस वर्ष सन् 2020 में 19 अप्रैल से 20 जून तक है) 'मेघान्ते' शरद ऋतु में (शरद ऋतु 22 अगस्त से 22 अक्तूबर तक है) अगर इन दिनो में हम 15-30 दिन की वृद्धि कर लें क्योंकि कई बार मास की वृद्धि भी होती है तो आप देखेंगे कि ये दिन वास्तव में ही पित्त और रक्त दुष्टि के हैं और हमने कई वर्ष शास्त्र की इस बात का अनुभव रोगियों पर लिया है।  'मध्याह्ने चार्धरात्रे' मध्याह्न और आधी रात के समय 'जीर्यत्य्न्ने' भोजन के पाचन के समय। क्रोध-शोक-भय-अति परिश्रम-उपवास-स्त्रीसंभोग-भ्रमण-कट-अम्ल-लवण-उष्ण-विदाही-तिल तैल-खली सरसों कुलथी अलसी का तैल-कांजी-सुरा-अम्ल फल और चरक 24/5-10 अध्याय में और अधिक स्पष्ट कर रहे हैं 
'प्रदुष्टबगुतीक्ष्णोष्णै: मद्यै:' दूषित, अति और तीक्ष्ण मद्य  और मादक पदार्थ जिनमें हम तम्बाखू जिसमें सिगरेट, खाने वाला तम्बाखू, चरस, गांजा आदि ले सकते है -उड़द-देश-काल-संयोग विरूद्ध 'क्लिन्नपूतीनां भक्षणेन्' गीले तथा दुर्गंधित पदार्थ भक्षण से, इसका उदाहरण है कि अगर आप शुष्क सुपारी सेवन करे तो कोई समस्या होती और यही सुपारी अगर गीली अर्थात स्वाभाविक पाक से पूर्वावस्था की सेवन करें तो शिरो भ्रम, उत्तेजना कर के एकदम रक्तचाप की वृद्धि कर देती है- गुरू भोजन कर दिन में सोना - अति धूप और तेज हवा का सेवन- वमन का वेग धारण (ये स्थिति हमने बस या कार में यात्रा के समय या पहाड़ों की यात्रा में और वायुयान यात्रा में भी बहुत देखी है - अभिघात - संताप (ज्वर में प्राय: हो जाता है) - अजीर्ण - अध्ययशन।*



* कुछ रोगियों का BP स्वेदन करते समय बढ़ जाता है, विषाक्त द्रव्य, काजू, पिस्ता, इमली युक्त पदार्थों का अति योग, आम का अचार, मिर्च का अचार, काफी, कुछ लोग किसी resorts, hotel etc. में जब sona bath या किसी रूप में steam लेते है, ऋतु के अनुसार भी जैसे अत्यधिक शीत में, सर्दियों में शीतल जल स्नान से**वृक्क रोग, मधुमेह, ह्रदय रोग, सन्निपातिक ज्वर, मेदोरोग आदि।*

[2/26, 12:33 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi:

 *सु शा 9/6 में 
‘अधोगमास्तु वातमूत्रपुरीष...तोयवहे द्वै, मूत्रबस्तिमभिप्रपन्ने मूत्रवहे द्वे’ 

मूत्रोत्पत्ति का स्थान आमाश्य-पक्वाश्य बताया है कि किस प्रकार आहार जलीयांश प्रधान किट्ट का अंश मूत्र विभिन्न स्रोतों द्वारा बस्ति प्रदेश में संग्रहीत हो जाता है।*
*यदि वृक्क रोग पर जाने से पहले हम ध्यान से देखें तो आर्ष ग्रन्थों में क्रिया शरीर और विकृत शरीर के अंगों से अधिक महत्व दोष और स्रोतस को दिया है। अथर्ववेद में 

‘यदान्त्रेभ्योथ गवीन्योर्यद् वस्तावधि संश्रितम्, एवा ते मूत्र मूच्यतां वहिर्वालिति सर्वकम्।...’

 अर्थात मैं तेरी आन्त्र में, गवीनियों,मेहन और बस्ति में रूके हुये मूत्र को बाहर करता हूं, अर्थात मूत्र मार्ग का आरंभ बृहदान्त्र से हो कर अंत गवीनियों में होता है, *


*वृक्क रोगों की चिकित्सा करने से पहले हमें बहुत से पक्षों को जानना आवश्यक है क्योंकि मूत्र निर्माण में जो भी वर्णन आयुर्वेद है वो एक स्थान पर नही है, एसा ही निदान और चिकित्सा पक्ष के साथ भी है। मूत्र निर्माण की आयुर्वेदोक्त प्रक्रिया की तुलना अगर आप आधुनिक पक्ष से कर के चलते है तो आप भ्रमित हो जायेंगे, ये सब हम पहले भी वृक्क रोगों पर case presentations में लिख चुके हैं पर यहां पुन: उल्लेख आवश्यक है जिससे पूर्ण विषय स्पष्ट हो जाये।*



*आयुर्वेद में वृक्क और मूत्रवाही स्रोतों से संबधित अव्यव ये है जो निदान और चिकित्सा में सहायक हैं...*



*भुक्त आहार पाचक पित्त कि क्रिया से रस और किट्ट भाग में परिवर्तित हो जाता है, रस से रक्तादि धातु उपधातुओं की और किट्ट से मल मूत्रादि उत्पन्न होते हैं। अन्न का अंत में पाक क्षुद्रान्त्र में हो प्रसाद भूत रस रसवाहिनियों द्वारा सर्वांग शरीर में और शेष किट्ट भाग पक्वाश्य में जा कर कटु रस दूषित वायु प्रधान पिंड स्वरूप पुरीष, सूक्ष्म भाग मूत्र स्थित करता है।अत: वृक्क रोगों की चिकित्सा में एक स्थान पक्वाश्य और यहां स्थित अपान वात का है।*

*मेदोवहानां स्रोतसां वृक्कौ मूलं वपावहनं च अर्थात दौ वृक्क ।
च वि 5/8*
*मूत्रवहानां स्रोतसां बस्तिर्मूलं वंक्षणौ च । 
च वि 5*
*मूत्रवाही धमनी द्वय*
*गवीनी द्वय*
*मूत्र प्रसेक*
*वृक्कौं का निर्माण रक्त और मेद प्रसाद, पक्वाश्य एवं इसके अंतर्गत अव्यवों का निर्माण रक्त के प्रसाद से एवं अपान वायु क्षेत्र होने से, चिकित्सा घटकों में रक्त, मेद और अपान वायु घटकों का विशिष्ट महत्व है।*
*रस धातु ही सर्व धातुओं का पोषण करता है, अग्नि मंद हो कर दोष वैषम्य होने से रस धातु दूषित हो कर 
‘...ह्रत्पांडुरोगमार्गोपरोध ... 
अर्थात स्रोतों का अवरोध’ (सु सू 24/9) कर देता है, वैसे भी प्रथम दृष्टि में वृक्क दोष साक्षात स्रोतोवरोध ही प्रतीत होता है, अत: अग्नि, आम दोष और आद्य धातु रस का सर्व प्रथम स्थान है।*


*मूत्रवहन विकृति 2 प्रकार की मिलती है, 
1- मूत्र की अप्रवृत्ति जन्य और
 2-अति प्रवृत्ति जन्य।*

*अप्रवृत्तिजन्य में भी दो भेद हैं एक मूत्राघात - इसमें वातकुंडलिका वात अष्ठीला वात बस्ति मूत्रातीत मूत्रजठर मूत्रोत्संग मूत्रक्षय मूत्रग्रन्थि मूत्रशुक्र उष्णवातादि और मूत्रकृच्छ में वातादि,अश्मरी शुक्रादि*
*अतिप्रवृत्ति जन्य में 20 प्रमेह*



*वृक्कौं का आप्य अर्थात सूक्ष्म जल से सीधा संबंध है 
‘मूल: स्वेदस्तु मेदस:’ च वि 5/8 एवं मेद का मूल वृक्क है।*

*वृक्क रोग के बहुत से लक्षण सीधे पक्वाश्यस्थ वायु की विकृति के रूप में मिलते हैं,
‘पक्वायस्थोऽन्त्रकूजं शूलं नाभौ करोति च।
कृच्छ्रमूत्रपुरीषत्वमानाहं त्रिकवेदनाम्।।’ 

सु नि 1/2 

तथा 
डल्हण की टीका 

‘चकाराद् वातविण्मूत्रसंग जंघो स त्रिक पार्श्वपृष्ठादीन प्रतिशूलन्यं कुरूते।’ 

अर्थात पक्वाश्य में कुपित हुई वायु आन्त्र कूजन (ये जलोदर होने पर भी होता है), नाभि प्रदेश शूल, मूत्र एवं पुरीष प्रवृत्ति में कठिनत, आटोप, विबंध जनित आनाह, पार्श्व पृष्ठ त्रिक जंघा ऊरू प्रदेश में शूल तथा मल-मूत्र वात का संग करती है, यहां अपान वायु की विकृति है तथा अधोगामी अपान से समान वात भी विकृत हो जाती है।*

[2/26, 12:33 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi:

 *उच्च रक्तचाप के लक्षण -*

*शिरो रूजा, दौर्बल्य, शिरोभ्रम, उत्क्लेश, तमोदर्शन, दृष्टि भ्रम, मूर्छा, क्षुद्र श्वास*


*दोष - प्राण और व्यान वात, साधक पित्त, अवलंबक कफ*

*समान और अपान वात भी अनेक रोगियों में मिलता है।*
*दूष्य - रस रक्त मेद भी *
*स्रोतस - रस रक्त प्राणवह मनोवह*
*दुष्टि - अति प्रवृत्ति ,संग *
*अग्नि - विषम*
*उद्भव स्थान - ह्रदय और उसकी धमनियां, आमाश्य, पक्वाश्य , मन*
*रोगाधिष्ठान - सर्व शरीर और मन*
*रोगमार्ग - बाह्य और मध्यम*
*व्याधि स्वभाव - चिरकारी*
*साध्यासाध्यता - कृच्छ साध्य*


*चिकित्सा सूत्र*

*सत्वाजय, धैर्य, आम का पाचन, शोधन, दोषप्रत्यनीक, वातानुलोमन, पित्त विरेचन, रक्त मोक्षण, शमन, व्याधि प्रत्यनीक, रसायन*

[2/26, 12:33 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi:

 *अब वृक्कौं की स्थिति का आंकलन करें तो  वृक्क दुष्टि में सब से अधिक महत्व वात, अग्नि (पित्त) और स्रोतस का किस प्रकार है ये आगे स्वत: ही स्पष्ट हो जायेगा।*

*गर्भस्य यकृत्तप्लीहानौ शोणितजो ... असृज: श्लेषमणश्चापि य प्रसाद: ... ततोऽस्यान्त्राणि जायन्ते गुदं बस्तिश्च ... रक्तमेद: प्रसादवृक्कौ। 

सु शा 4/ 24-30*

*अर्थात गर्भ के यकृत प्लीहा रक्त से, रक्त और कफ के सार में पित्त और वायु के द्वारा आन्त्र, गुदा और बस्ति तथा रक्त और मेद के प्रसाद से वृक्कौं की उत्पत्ति होती है।*

*च शा 3/12 में वृक्कौं को मातृज भाव जन्य कहा है।*

*अष्टाग संग्रह शा 5 में  ‘सप्ताश्या:...वायुमूत्रधारा:... वृक्कान्त्रादीनि’ के अतिरिक्त आर्ष ग्रन्थों में कहीं भी स्पष्ट नही बताया गया है कि वृक्कों का संबंध मूत्र निर्माण से है।*



*वृक्क मेदोवाही स्रोतो का मूल है, इसका कार्य मेद की पुष्टि करना है और दूसरा मूत्रवाही स्रोतस है जिसका मूल बस्ति और वंक्षण है, अत: चिकित्सा में दोनो को ले कर चलते है क्योंकि दोनो अपानवात के क्षेत्र हैं और दोनो के लिये अनुलोमन आवश्यक है साथ ही उच्चरक्तचाप में में पित्त और वात की प्रधानता के कारण अनुलोमन और विरेचन दोनो ही चिकित्सा के मूल हैं।*


[2/26, 12:33 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi: 

*इस रोगी में जो लक्षण मिले जैसे पाद या सर्वांग शोथ - कफ*
*मंदाग्नि - आम दोष एवं कफ*
*श्वास कृच्छता - प्राण वात*
*जलोदर -त्रिदोषज*
*उत्क्लेश - समान वात*
*अल्प मूत्र एवं विबंध - अपान वात*
*चित्त भ्रम या घबराहट - पित्त*
*ये सभी मिलकर त्रिदोषज हैं और रोगियों में जो कारण मिलते है उसे हम चार भागों में बांट सकते है ....*
*आहार - आम दोष कारक आहार, अम्ल, लवण रस का अधिक प्रयोग, विरूद्ध आहार, असात्म्य और विदाही आहार, अभिष्यंदी एवं एसा आहार जो पुराना हो गया था, या बार बार भोजन करना, अति जल पान, अति अथवा दीर्घ काल से मद्यपान करते रहना, केवल मद्यपान करना पर भोजन ना करना आदि, ketch up, vineger युक्त fast या instant food  का अधिक प्रयोग।*



*औषध - बहुत से रोगी हैं जो दीर्घ काल से HT DM GOUT ARTHRITIS आदि रोगों की, antibiotics, मूत्रल या अन्य शूल नाशक अथवा पीड़ाहर औषधियां ले रहे थे, दो रोगी एसे भी थे जिन्होने protien shakes का सेवन किया था, practice में एसे भी रोगी मिलते रहे है जिन्होने अपनी चिकित्सा स्वयं कर आयुर्वेदीय sex tonics या रसौषधियां ली हैं जिनसे b urea, s cr. level में वृद्धि हुई या hydronephrosis मिला।*



*विहार - रात्रि जागरण, एसे भी प्रमेह रोगी है जो भोजन करते ही दिवास्वप्न करते हैं।*



*अन्य कारण - अधिक उपवास करना, मूत्र वेग को धारण करना, जीर्ण विबंध, क्षुधा लगने पर भी किसी कारण आहार ग्रहण ना करना। इसके अतिरिक्त प्रमेह रोग, व्यान एवं अपान वात के साथ साधक पित्त की विकृति जो HT के सदृश है, uric acid वृद्धि, वृक्क में ग्रन्थि आदि अनेक कारण है, हमें practice अभी पिछले दिनो कुछ रोगी एसे मिले जिनका kidney failure chemotherapy कराते ही हो गया था।*


[2/26, 12:33 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi:

 *उच्चरक्तचाप से पृथक सम्प्राप्ति यहां वृक्क दुष्टि (medical renal disease) की इस प्रकार ही बनती है जैसे हम कुछ समय पूर्व बता कर चले थे।*


*दोष - त्रिदोषज होते हुये भी वात प्रधान, समान वायु, अपान वायु, HT और जलोदर होने पर व्यान और प्राण वायु, पाचक पित्त*

*पर यहां यह यह व्याधि उच्चरक्तचाप के कारण उत्पन्न हुई है तो हम पित्त की प्रधानता स्वीकार कर के चलेंगे क्योंकि रक्तचाप सामान्य आते ही वृक्कौं का कार्य सामान्य होने लगता है।*
*धातु - रस रक्त मेद मल मूत्र और सिरा*
*अग्नि - जाठराग्नि एवं धात्वाग्नि*
*स्रोतस - मेद मूत्र पुरीष*
*दुष्टि - संग एवं विमार्ग गमन*
*अधिष्ठान - पक्वाश्य*
*व्याधि स्थान - वृक्क एवं वस्ति*
*व्याधि स्वभाव - चिरकारी तथा असाध्य*
*चिकित्सा उद्देश्य - रोगी को dialysis और kidney transplant. से बचाना, संबंधित रोग अवयवों को बल प्रदान कर repair करना, रोग से संबंधित उपद्रवों को आयुर्वेद द्वारा शांत करना।*



*चिकित्सा सूत्र - दीपन, आम पाचन, रक्त शोधन, स्वेदन, अनुलोमन, रसायन, कर्षण, भेदन, लेखन, मूत्र शोधन, मूत्र प्रवर्तन, मृदु रेचन तथा लाक्षणिक चिकित्सा।*


[2/26, 12:33 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi: 

*इस रोगी में हम दोनो सम्प्राप्तियों का मिश्रित विघटन कर के चले है और इसे समझने के लिये एक व्याधि दूसरी को कैसे उत्पन्न करती है पहले इसे ध्यान से समझें, सूत्र रूप में सभी रोगों का हेतु 

'कालबुद्धीन्द्रियार्थानां योगो मिथ्या न चाति च,
द्वयाश्रयाणां व्याधीनां त्रिविधो हेतु संग्रह' 
च सू 1/54 

व्याधि के आश्रय दो ही हैं शरीर और मन, रही बात चेतना की जो शरीर में है तो वो निर्विकार है, दुख या सुख मन को ही ही होता है जो आप सुनते हो ना कि 'मेरी आत्मा दुखी है' वो भ्रम है । अब इस शरीर या मन में जो भी रोग आयेंगे तो उसके तीन ही कारण मिलेंगे शीत, उष्ण या वर्षा काल का मिथ्या, हीन (अयोग) या अति योग।अक्षि, कर्ण, नासिका, जिव्हा और त्वचा और शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गंध का मिथ्या, अयोग या अति योग। इस सूत्र का विस्तार करें तो बहुत विस्तृत है क्योंकि प्रज्ञापराध भी इसी में समाया हुआ है जो बुद्धि के अंतर्गत ही है।*



*अब चलते हैं विमान स्थान के अध्याय पांच में जहां एक नवीन बात और मिलती है कि रोगों का हेतु एक और भी है जहां एक रोग दूसरे रोग को उत्पन्न कर देता है, 

च वि 5/9 में 

'स्रोतांसि स्रोतांस्येव धातवश्च धातूनेव प्रदूष्यन्ति प्रदुष्टा:' 

अर्थात दूषित स्रोतस दूसरे स्रोतों को और दूषित धातु दूसरी धातुओं को दूषित कर देती है और आगे कहा है 

'तेषां सर्वेषामेव वातपित्तश्लेष्माण: प्रदुष्टा दूषयितारो भवन्ति दोषस्वभावादिति' 

और इनमे भी दुष्ट वातादि अपने स्वभाव से ही दूसरों को भी दूषित करने वाले होते हैं। इसमें एक विशिष्ट बात ये है कि

 'प्राणवहानां स्रोतसां ह्रदयं मूलं महास्रोतश्च ...' 

च वि 5/7 

अब आगे देखें 

'रसवहानां स्रोतसां ह्रदयं मूलं दश च धमन्य:'

 च वि 5/8 

यहां ह्रदय को प्राण वह और रस वाही दोनो स्रोतस का मूल बताया गया है अत: उपरोक्त सिद्धान्त जो हम ले कर चले हैं कि प्राण वह स्रोतस की दुष्टि में रस वाही स्रोतस के लक्षण भी संभव है क्योंकि मूल दूषित होगा तो वह अपने निज स्रोतस सहित समीपस्थ स्रोतस, दोष समीप के दोष, धातु, उपधातु और मल सभी को प्रभावित करेगा इसको आप ठीक प्रकार से तब समझेंगे जब hypertension और वृक्क दुष्टि की सम्प्राप्ति देखेंगे कि किस प्रकार hypertension वृक्क रोगों का हेतु बनता है और वृक्क दुष्टि hypertension का हेतु।*



*जिस रोग ने दूसरे नवीन रोग को उत्पन्न किया है अगर उनमें कुपित दोषों की अंशांश कल्पना, स्रोतस, दुष्टि प्रकार, व्याधि अधिष्ठान में अधिक भिन्नता नही होगी तो चिकित्सा सरल हो जायेगी अन्यथा चिकित्सा सूत्र में भिन्नता से अत्यन्त जटिलता आ जाती है।*


[2/26, 12:33 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi: 

*'समष्टयोऽथ लिंगानां निदाने व्याधिसज्ञिता' 

सि नि 1/44 

लक्षणों के समूह को व्याधि कहते हैं। व्याधि की उत्पत्ति के षडक्रिया काल की प्रमुख दो स्थितियां संचय और प्रकोप है तथा उसके बाद प्रसर अवस्था है। दोषों का संचय अपने स्थान पर होता है, यहीं पर चय हुये दोष का प्रकोप भी होता और यह दोष की वृद्धि होती है और उस वृद्ध दोष के लक्षण भी यहीं मिलेंगे, जब दोष का संचय और कोप दोनो ही दोष की वृद्धि है तो दोनो में भिन्नता कैसे माने ? संचित दोष जब अपने लक्षण संचित स्थान पर  प्रकट करेगा तो विरूद्ध गुण वाले द्रव्यों या कर्मों से शांत हो जायेगा और अब यही प्रकोप के लक्षण शरीर मे भिन्न स्थानो पर मिलेगे तो जरूर पर अपने चय स्थान क्षेत्र में साथ साथ अवश्य मिलेंगे, इस बात का ज्ञान होते ही क्या करें कि दोष कुपित हो रहे है ? वायु को साम्यावस्था में लाना है क्योंकि उसका चल गुण संचित दोष को अति तीव्रता से कुपित होने और प्रसर में भी सहयोगी बनेगा। तीसरी प्रसर अवस्था वह है जब दोष अपने साथ अपने अन्य अंश, अन्य दोषो में उनके एक या अधिक अंश भी साथ ले कर चलता है इसीलिये रोग के विषय में कहा गया है कि रोग सभी त्रिदोषज होते हैं, वो जो दोष संचित हुआ था ना वो प्रकुपित हो अन्य दोषों को साथ ले कर चला और कहीं तो रूकेगा ही और जहां रूकेगा अर्थात स्थान संश्रय लेगा वहां अपने लक्षण पूर्ण रूप से व्यक्त करने लगेगा।*



*किसी भी रोग के मूल और उसकी चिकित्सा समझने की ये सब से बहुमूल्य और बारीक बात है क्यों ? क्योंकि अनेक लोग हमने देखे हैं जो प्रकोप अवस्था में बहुमूल्य रसौषधियां देनी आरंभ कर देते हैं जबकि व्याधि भेदावस्था तक भी नही पहुंची और यह भ्रम इसलिये भी बन जाता है कि कुछ रोगों में संचय काल, प्रकोप काल कितने दिन तक रहता है या रहेगा इसका ज्ञान ना होना है, अपरिपक्व लक्षण अगर कुछ दिन निरंतर बने रहते हैं तो वो व्याधि का भ्रम उत्पन्न कर देते है, रूप या लक्षणों  में उनकी अपरिपक्वता, क्षणिक,  अल्पकालिकता या तात्कालिकता का ज्ञान होना भी आवश्यक है।*


[2/26, 12:33 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi:

 *पूरे चिकित्सा काल में जो औषध दी गई ..*
*यह हमारा प्रिय योग वृक्क रोगों में है जिसका उल्लेख पिछले case presentation में भी कर के चले थे इस बार हमने इसमें ब्राह्मी, शंखपुष्पी, जटामांसी 100-100 gm और अल्प मात्रा में सर्पगंधा (20 gm) का प्रयोग भी किया इसके घटक द्रव्य तृणपंचमूल, शतावरी, गोखरू पंचांग, शालपर्णी, पृष्णपर्णी, काकमाची, पुनर्नवा, धनिया, श्वेत जीरक, उन्नाव - प्रत्येक 100-100 gm, आरग्वध 500 gm, खीरे के बीज 30 gm गुलाब के फूल 40 gm, इमली के बीज 40 gm*
*10 gm मिश्रण का क्वाथ प्रात: सांय।*   * यह क्वाथ मूत्रविरेचन स्वेदन मृदुविरेचन बल्य मूत्रकृच्छहर वृक्क शोथहर मूत्रल मूत्रकृच्छ सहित उच्चरक्तचाप हर भी है।*



*पुनर्नवा चूर्ण+ प्रवाल पिष्टी शर्बत अनार में मिलाकर चटाना।*

*कूष्मांड स्वरस, कुटकी+ हरीतकी चूर्ण*
*फलत्रिकादि क्वाथ*
*वरूणादि क्वाथ*
*अश्मरी हर क्वाथ*
*प्रभाकर वटी।*
*कहरवा पिष्टी।*
*आरोग्य वर्धिनी।*
*हजरूल यहूद भस्म*
*शरपुंखा, भुट्टे के बाल, तोरई का अधिक प्रयोग, यव गेहूं में मिश्रित कर रोटी, खरबूजे के बीज, खीरा, तरबूज।*



*निष्कर्ष - विरेचन उच्च रक्तचाप में बहुत उपयोगी है, जलीयांश कम ना हो यह ध्यान रखें और कूष्मांड स्वरस अवश्य दें इससे मूत्र वर्ण पीत नही होता और ना ही दाह युक्त आता है, विरेचन हेतु वृक्क दुष्टि में जलोदर हो तो कुटकी और हरीतकी सर्वोत्तम है ये विरेचन से उच्च रक्तचाप भी नियंत्रित कर देती है और रोगी का वजन भी कम कर देती हैं । उच्च रक्तचाप में meditation चिकित्सा के साथ बहुत उपयोगी है मानसिक लक्षण ये ही दूर कर देता है।*


[2/26, 1:38 AM] Dr. Ajay Gopalani:

 धन्य हैं गुरूवर ....आप जी ने तो पूरा वृक्करोग चिकित्सा का पाठ समझा दिया और चिकित्सा के कई गूढ सिद्धांत भी सिखा दिए.......बहुत ही बढिया ....साष्टांग नमन.....🙏🏻🙏🏻🙏🏻
कल आप जी के दर्शन की उत्सुकता पूरी होगी🙏🏻🙏🏻😊

[2/26, 2:00 AM] Shivam Sinwar Gngangr:

 नमो नमः गुरुवर 👏👏आज के युग के असाध्य रोगों को साध्य करने का  सारा सैद्धांतिक एवं प्रायोगिक ज्ञान प्रस्तुत किया है 
कोटि कोटि नमन । सिर्फ पढने में ही एक घंटा लग गया है आपको टाइप करने और प्रस्तुत करने में कितना समय लगा होगा 👏👏

[2/26, 4:38 AM] Prof. Ramakant Chulet Sir: 

देश को यह जानकारी होनी चाहिए कि आयुर्वेद से क्या होता है, हो सकता है, हो रहा है  ?
अभिनन्दन प्रियवर !
👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏

[2/26, 5:05 AM] Prof. Satish Panda K. C: 

सुप्रभात गुरुदेव
इतने जटिल केस को आपने शकुशल आराम प्रदान दीया, फिर step by step post करें। कल से ले कर आज तक एक से बड़ कर एक case present हो रहे है। creatinine को इस हद तक कम करना अदभुत है।👏🏻👍🏻👌🏻💐🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

[2/26, 5:36 AM] Prof Mamata Bhagwat: 

Pranams Sir, very good morning🙏🏻💐🙏🏻
Your case presentation is so crystal clear that it keeps me truly spellbound. Anyone hardly dares to take up such a complicated case. 



Mentioning *thanks* implies a very meger meaning I feel..  just🙏🏻🙏🏻🙏🏻


[2/26, 7:48 AM] satyendra ojha sir:

 *प्रात: कालीन भेंट स्वरुप अति उच्चकोटि की हेतु सम्प्राप्ति चिकित्सा व्यवस्था आपने प्रस्तुत की, एक सोच पर आप कार्य कर रहे हैं और परिणाम लगातार मिल रहा है, निश्चित रुप से आप के वर्षो का अनुभव यहाँ कुछ पल में मिल गया, ये कुछ पल  अपने आप में ३५ वर्ष समेटे हुए हैं, आभारी हूं*

*नमस्कार वैद्य राज शर्मा जी नमो नमः आचार्य गण* 🙏🙏🌹💐🙏

*नि:शब्द हूं इस परोपकारी वृत्ती देखकर*

[2/26, 7:53 AM] Upendr dixit Prof. Goa: 

वैद्यराज उत्तम विवेचन, उत्तम परिणाम 👌👌🙏🌹

[2/26, 8:01 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi: 

*सुप्रभात एवं सादर नमन ओझा सर 🙏💐🌹🌺मुझे लगता है आयुर्वेद में केवल पेटेंट औषधि सिस्टम से ही रोग नही ठीक किये जा सकते, अलग अलग रोगियों में सम्प्राप्ति अलग बनानी पड़ती है और उसी प्रकार से चिकित्सा सूत्र और औषध चयन करना पड़ता है। मैं क्वाथों के रूप में औषध प्रयोग बहुत करता हूं, एक तो द्रव्यों की मात्रा मन मुताबिक मिल जाती है, द्रव्य fresh होते है, boil करने से fungus का भय नही और और द्रव्यों का absorption भी तुरंत क्योंकि अधिकतर क्वाथ हम खाली पेट देते है तो परिणाम शीघ्र मिलने लगता है और सब से बढ़ी बात, अपने हाथों से स्वयं रोगी या परिवार के सदस्य बनाते हैं तो सेवन करने वाली औषध से रोगी की एक आत्मीयता रहती है जो मन को बहुत शान्ति देती है।*



                🙏🙏🙏


[2/26, 8:03 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi: 

*धन्यवाद एवं सुप्रभात सर, आपका एक input वृक्क प्रदाह इस रोगी की चिकित्सा में बहुत सहायक रहा और ये ही अनेक रोगियों में रोग को समझने का ब्रह्मास्त्र।*

[2/26, 8:06 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi:

 *ये आपकी सहजता है, आपको तो शिक्षण में वर्षों का अनुभव है और मैं आपसे बहुत कुछ सीखता हूं और आगे भी सीखना है।* 🙏🙏🙏

[2/26, 8:08 AM] satyendra ojha sir:

 *वृक्क मेदोवह स्रोतस मूल, मधुमेह में भी मेद प्रारम्भिक दूष्य, धमनी प्रतिचय में भी मेद दूष्य तथा उच्च रक्तदाब में धमनी प्रतिचय एक हेतु. उच्च रक्तदाब से रस विक्षेप उचित न होने से वृक्क का अपतर्पण तथा कर्म वाधा, अन्ततोगत्वा वृक्क मर्मोपघात जिससे बस्ति गत दोष यथा मूत्रक्षयादि*..

[2/26, 8:11 AM] Dr Shashi Jindal: 

Namaskaar sir, your efforts are endless with 101% benefits for world health, I really have a great wish to meet you, it is also true where there is a will there is a way. I have to still wait for that  way. Otherwise when I read scholarly and scientific posts from all group members, I feel as they are talking to me, its a great experience. we all must be having some poorvajanma links with each other.
🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼💐💐💐💐💐

[2/26, 8:11 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi:

 *इस ग्रुप में मैं अनुक्त व्याधियों को ले कर चला हूं जो ग्रन्थों में इस प्रकार नही मिलते जैसे लोग जानना चाहते है, मैं साधारण सा clinician हूं, भोजन चाहे ना करूं पर शास्त्र प्रतिदिन पढ़ता हूं और वो ही मुझे मार्ग दिखाते हैं, फिर जो परिणाम मिला सरल शब्दों में as it is आप लोगों के सामने with evidence रख देता हूं।*

[2/26, 8:12 AM] Dr Shashi Jindal: 

🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼💐💐💐💐

[2/26, 8:14 AM] Dr. Namadhar Sharma, Delhi.: 

Great work Vaidya Ji !

[2/26, 8:15 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi:

 *बिल्कुल सही कहा सर, ये ही सोच मेरी रही है, वृक्क रोगों में वस्ति exit point है जो बाद में involve होती है, मूल मेद मान कर चलें तभी मूल की चिकित्सा कर सकते हैं।*

[2/26, 8:16 AM] Prof Mamata Bhagwat: 

🙏🏻🙏🏻 you are truly inspirational Sir🙏🏻🙏🏻
You keep the things so simple indeed that no question remains there and a beginner also can adopt the principle..🙏🏻🙏🏻

[2/26, 8:19 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi:

 *इस रोगी में right kidney cortical cyst थी वो भी 'मेद'।*

[2/26, 8:20 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi: 

*धन्यवाद वैद्य नामाधार जी ! 🙏🙏🙏*

[2/26, 8:24 AM] Dr. Mrityunjay Tripathi, Gorakhpur: 

प्रणाम गुरुवर 🙏🙏
यही कार्य हमें आप  से  सीखने व समझने को मिल रहा है  🌺🌺🙏🙏

[2/26, 8:31 AM] Dr. Ravikant Prajapati M. D, BHU.: 

👏👏🙏🙏🌹🌹 
Pranam Guruji !

Aapke margdarshan se aaj bahut saare deep concepts clear hue hain..... Aur ish prakar ke jatil rogo ki chikitsa karne ka bal bhi mila hai......aapke ish Mahalekh ke liye Shat shat naman🙏🙏💐💐💐  Sabhi Mahaguruon ka dil se aabhar🌺🌹


[2/26, 8:47 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi: 

*हमारा उद्देश्य यही है कि आप सभी को आयुर्वेद में निर्भय और निर्द्वन्द्व (संदेह से बाहर सटीक निर्णय वाला) बना सके।*

[2/26, 8:51 AM] Dr Shashi Jindal: 

A great motive sir, a godly one 👌👌👌👌👌💐💐💐💐💐🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼

[2/26, 9:07 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi: 

*यही सर वृक्क प्रदाह शब्द, पहले कई बार विरेचन अधिक होने से जलीयांश कम हो कर मूत्र की घनता और पीतता बढ़ जाती थी, पित्त की वृद्धि होती थी और मूत्र अल्प हो कर वृक्कों में प्रदाह उत्पन्न होता था जिस से s.cr level कम नही होता था, हमने कूष्मांड स्वरस रोगियों में दोनो समय आरंभ किया, जल भी सामान्य मात्रा में दिया तो लाभ मिलने लगा, पहले हम रोगी का जल 800 ml तक कर देते थे फिर देखा कि 1500 ml तक करने पर भी हानि नही लाभ ही मिलता है।*

[2/26, 9:08 AM] Shantanu Das Prof KC: 

Sir if DM with CKD then how much days we can continue the vireachana.... Normally in Premeha .... vireachan is restricted.........🙏🏻

[2/26, 9:19 AM] Prof Mamata Bhagwat: 

🙏🏻🙏🏻 namasthe Shantanu Sir !



Why virechana is restricted in Prameha?



It is bahu doshayukta, bahu abaddha meda and bahu drava shleshma yukta.. 

I think you have mistaken. Virechana is well indicated in Prameha, also 
_Santarpanothanam vikaranam shastam ullekhanam virekam cha_..

[2/26, 9:19 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi:

 *ऐसे रोगियों में जलोदर है तो क्या करेंगे santanu ji ? विरेचन देना ही पड़ेगा ये ध्यान रख कर की वात की वृद्धि ना हो।*

[2/26, 9:38 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi: 

*नमस्कार डॉ शिवराम जी, स्वयं टाईप करना और प्रस्तुत करना, ये ग्रुप आप सभी से है और मैं काय सम्प्रदाय या कहें तो आप सभी के प्रति मैं समर्पित हूं और जहां समर्पण है वहां थकान नही आनंद है।*



               🌹💐🌺🙏


[2/26, 9:38 AM] Shantanu Das Prof KC: 

Yes sir......With appropriate calculation is required.....🙏🏻

[2/26, 9:41 AM] Shantanu Das Prof KC: 

No Mamta ji...CKD nd DM case is little much complicated...It is not easy to handle.....We have to care about water loss..... Calculative approach needed.....🙏🏻

[2/26, 9:54 AM] Vd Dilkhush M Tamboli: 

सर प्रमेह मे विरेचन नही देना ऐसा नही
सिर्फ रोग और रोगी बल पे ध्यान देना चाहीये



*मेहीनो बलिनौ कुर्यात आदौ वमन रेचने*


[2/26, 10:02 AM] Prof Mamata Bhagwat: 

In ckd and dm, fluid is restricted to lessen the burden on kidneys. If fluid is going out through the other route then it is well indicated. Virechana karma, lessens the burden on kidneys. So in ckd also it is essential to some extent as i have seen and learnt. 
As respected Subhash Sir mentioned, vata prakopa possibility has to be monitored. 



Also, you mentioned.. *normally in Prameha virechana is restricted* this sentence caught my attention. 

🙏🏻🙏🏻

[2/26, 11:44 AM] Dr Naresh Garg, Jaipur: 

सादर नमन 🙏🙏
सर ऐसे जटिल रोगी को आपने जिस प्रकार  ठीक किया है बहुत ही प्रशंसनीय है और साथ ही अपने को बहुत अच्छी तरीके से हमें समझाया भी है कि हमें चिकित्सा में किन चीजों का ध्यान रखना है बहुत-बहुत धन्यवाद !

[2/26, 12:15 PM] Vd Raghuram Shastri, Banguluru: 

*Namaste Guruji*🙏🙏💐❤❤❤ Such an elaborate description of not only the case, but also the entire aspects related to it, the logics behind samprapti, it's ghatakas, choice of medicines, the related reports before and after treatment, the anatomical, embryological and physiological aspects of the organs and tissues involved, methodology of breaking samprapti and effortlessly handling complicated ailments including kidney diseases....
you are *an incarnation* sir... 
*this is big picture and true face of Ayurveda*.....



 *You are indeed one of the greatest ambassadors and pioneers of evidence based Ayurveda which our generation would hv witnessed*🙏🙏💐❤❤



It's like *we HV come back to Atreya Sampradaya of ancient times in modern gestures.... HISTORY REPEATS*🙏🙏💐❤❤ and the *new venue of this tadvidya sambhasha is this Himalaya called KayaSampradaya*💐🙏


[2/26, 12:53 PM] Dr. Roji DG: 

It's like *we HV come back to Atreya Sampradaya of ancient times in modern gestures.... HISTORY REPEATS*🙏🙏💐❤❤ and the *new venue of this tadvidya sambhasha is this Himalaya called KayaSampradaya*💐🙏







Very true👌🏻👌🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻💐💐...me too feels so.....


[2/26, 3:01 PM] Dr Shashi Jindal: 

👌👌👌👌💐💐💐💐
sir what was your diagnosis  ?Pakvaashyagata vaat ??🙏🏼🙏🏼🙏🏼

[2/26, 3:05 PM] Dr Shashi Jindal: 

👌👌👌👍🏼🙏🏼🙏🏼💐in pakwashyagata vaat virechan is not advised, basti is indicated. 
??🙏🏼🙏🏼

[2/26, 3:14 PM] Dr Darshana Vyas, Vadodara: 

👌👌👌💐💐💐💐👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻 नमो नमः गुरुजी💐💐💐🙏🏻🙏🏻🙏🏻

[2/26, 3:46 PM] Dr Shashi Jindal:

 sir one question ? In prameha roga,   kled is dooshit, jaleeyansh in mansa and meda dhatu increases, this kleda damages kidneys  ? with virechan this kled cannot be excreted out well, it has be shoshit  or dried up ???? with tikta rasa dravyaas ??? or vyaayam ??? 
🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼

[2/26, 4:05 PM] Dr Shashi Jindal: 

Excessive use of lawana and amla rasas is nidaan of prameh, lawan, kshar, amla and katu rasas are nidaan of rakta dushti. So all these should be contraindicated in prameh and ckd ????
🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼

[2/26, 5:21 PM] Dr. Arun Rathi, Akola: 

*गुरुवर प्रणाम।*



🙏🏻🙏🏻🙏🏻



*कल.रात से इसे 3 बार पढ लिया है।*



*किसी व्याधि के निदान पंचक और चिकित्सा पर इतना सरल और समग्र चिंतन आज तक विगत 30 - 32 वर्षो के आयुर्वेद के स्नातक के रुप मे मैने कभी नही पढा है।*



*तुसी ग्रेटम ग्रेट हो गुरुवर।*



🙏🏻🙏🏻🙏🏻


[2/26, 5:26 PM] Dr. Arun Rathi, Akola: 

*ओझा सरजी ! आप और सुभाष सरजी की आयुर्वेद पर निष्ठा और परोपकारी वृत्ति पर मै हर वक्त निःशब्द हो जाता हूँ।*



*आप व्दय हर दिन कायासम्प्रदाय मे नवचेतना प्रदान कर सभी सदस्यों को ज्ञानार्जन के लिए प्रेरित करते हो।*

🙏🏻🙏🏻🙏🏻

[2/26, 5:27 PM] Dr. Arun Rathi, Akola: 

*Well Said Raghuji*
👌🏻🌹🌹🌹👌🏻

[2/26, 5:28 PM] satyendra ojha sir: 

*Great analysis of the day*

[2/26, 6:22 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi:

 *अरूण जी, 🙏🙏🙏*

[2/27, 7:45 AM] Sanjay Chhajed Dr. Mumbai:

 I would like to add one more observation out of this case presentation, the patient discontinued sir's treatment and tried treatment at other Ayurveda hospital, where due to lac  of experience,  the treatment was altered and patient worsened.  It was corrected by the same approach later when patient returned. 
*This necessitize the experience while selecting drugs and at the same time understanding the origin at meda with one strotas vitiating other*

[2/28, 6:47 AM] pawan madan Dr: 

Pranam Gurudev
🙏🙏💐



This is a wonderful caSe presentated by you. Reversing a medical renal disease is really a great great success.



This is the USG from AIIMS and it says the case is medical renal disease although there is no mention of the destruction of the corticomedullary differentiation which is the important criteria to differentiate the cases of ARF and CRF as far as I have understood till now.



🙏🙏🙏🙏


[2/28, 6:50 AM] pawan madan Dr: 

Guru ji



What I have seen is.....When the creatinine reaches 10.94  there is almost complete destruction of CMD and I have never been able to completely reverse this process in around 25 to 30 such cases which I have taken till now.

And it's a great learning from you to reverse the pathology anatomically as well. 
Thanks a lot....🙏🙏🙏🌹💐🌹

[2/28, 6:54 AM] Dr Sandesh Chavhan: 

GURUVARYA i am speechless.... शतशः नमन।🙇🏻‍♂🙇🏻‍♂🙇🏻‍♂

[2/28, 6:55 AM] pawan madan Dr: 

Blood urea 32
And creatinine 1.1 



👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻

Wow......



This means complete reversal of renal pathology.

👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻

[2/28, 7:04 AM] pawan madan Dr: 

Wonderful guidance to understand ayurvedic samprati of hypertension...



❤️💐❤️💐❤️


[2/28, 7:06 AM] pawan madan Dr: 

👏🏻👏🏻



All these symptoms are found as per the cause of the HTN. In many others HTN is found without any symptoms. 

This is what I have seen.
Kindly guide and Correct if wrong.
🙏

[2/28, 7:18 AM] pawan madan Dr: 

कुछ सप्ताह पूर्ब इस प्रश्न पर खूब चर्चा हुई के वृक्क medovah स्रोतों का मूल है।
अंत मे इसका 100% scientific validation नही पाया। 
परंतु अपने आयुर्वेदिक methodology व सिधान्तो से गुरुजनो ने ये स्थापित किया है जैसे के आप बता रहे हैं
🙏🙏



मेद के प्रसाद से वृक्कों की उत्तपत्ति होती है। 

तो क्या इसका अर्थ ये है के अगर मेद दुष्टि होगी तो वृक्क प्रभावित होंगे ?



तो क्या हमें इसमे मेद दुष्टि की चिकित्सा भी करनी होगी ?



और यदि ऐसा है तो क्या ऐसी मेद दुष्टि नाशक चिकित्सा हो जिस से वृक्क भी स्वस्थ हो जाएं ?



पता नही मेरा प्रश्न ठीक भी है या नही। यदि आपको ये उचित न लगे तो इसकी तरफ ध्यान न दें।

कृपया अन्यथा न लें🙏🙏






विरेचन व अनुलोमन 👌🏻👌🏻👌🏻point noted...🙏🙏🙏


[2/28, 7:28 AM] pawan madan Dr: 

👏🏻👏🏻🌹



पक्वाशय की चिकित्सा

अपान वायु की चिकित्सा
रक्त दुष्टि की चिकित्सा
🙏🙏



यहां मेद दुष्टि की चिकित्सा,,, अभी इसको समझना बाकी है

🙏

[2/28, 7:33 AM] pawan madan Dr: 

Respected Subhash Sir !


Wonderful.....💐💐


[2/28, 7:39 AM] pawan madan Dr:

 गुरुदेव 🙏🙏



बहूत ही महत्वपूर्ण विषय !

पर आज के युग मे जब तक रोगी वैद्य के पास आता है तो व्याधि की भेद अवस्था तक पहुंच चुका होता है। 😥

[2/28, 7:49 AM] pawan madan Dr: 

🙏🙏🙏🙏



गुरु जी

यदि किडनी functions पहले से बहूत कम हैं तो क्या उस केस में मूत्रवीरेचक औषधि देने से उस पर और load नही पढ़ता। वैसे reports से ये पता चला है के नही पड़ता पर अभी तक मैं इसी गलत सिद्धान्त को मन मे बिठाए हुए था 😌



मेद दुष्टि की चिकित्सा में वरुणादि क्वाथ सहायक रहा होगा 🤔



गुरु जी यह आपने कहरवा पिष्टी एवं प्रभाकर वटी का प्रयोग किया है, क्या ये रक्तचाप को नियंत्रित करने के लिए है ?



मेरे लिए किडनी केसेस को समझना आवश्यक है बस इसीलिए ये प्रश्न प्रस्तुत किये हैं

उचित न लगें तो कृपया ignore करें।
🙏🙏🙏

[2/28, 8:30 AM] Dr Shashi Jindal: 

Before medovahi srotas, mansvahi srotas are also to be explored. As ch chi 1/3 it is clearly mentioned SHITHILIBHAVANTI MANSANI, I think every dhatudushti starts with it. 
Shithilibhavanti mansani (micro muscles)-  vimuchyate sandhye (not only joints but cell to cell, tissue to tissue union (space and adherebility) - vidhayete raktam (acidity in blood) - vishyante ch naalpam medah........
🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼



Udak vahi srotas - clear water or normal kled vahi srotas.



Kled of mans and meda has to be cleared by kidneys, not pakvaashya, that is why virechan has limited role, mootra virechan becomes the necessity, but it will surely overload kidneys. 

In prameh samprapti it is also clear that this kled is taken to basti by vaayu, it will be via kidneys (?? ayurvedic reference).
🙏🏼🙏🏼

[2/28, 8:37 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi: 

*पवन जी नमस्कार, परसों की मेरी पोस्ट आपने पढ़ी होती तो हमने स्पष्ट किया है 'वृक्क प्रदाह' इसे समझाया है पहले हम रोगी का पूरेदिन में जल 800 ml तक कर देते थे , ये allopathic मत था बाद में इसे त्याग कर 1500 ml तक देने लगे साथ ही कूष्मांड स्वरस दिन में दो बार 30 ml लगभग, इससे मूत्र की अम्लता और घनता कम हो कर मूत्र स्वच्छ और अधिक आने लगता है साथ ही चिकित्सा को समग्रता में ले कर चले इस प्रकार के रोगियों में मूत्र से हम मल और मूत्र दोनों को एक साथ ले कर चलते हैं अर्थात विजातीय द्रव्य जिनका अपान वात के द्वारा पक्वाश्य से निर्हरण होता है और इसके लिये आपको अनुलोमन, भेदन और मूत्रविरेचन तीनो ही करना पड़ता है।इस रोगी को जलोदर भी है ये देखिये आप पित्तस्य तु विरेचनम सिद्धान्त पर चलते ही रक्तचाप कम हुआ हमने रोगी की HT medicine stop नही की वो अब भी चल रही है, पहले उस से bp कम नही हुआ पर जब अपनी चिकित्सा साथ दी तभी कम हुआ, मेद दुष्टि अर्थात अनेक स्थानों पर मेद का संग दोष, इस रोगी को वृक्क में cyst है। अनुलोमन-भेदन के साथ मूत्र विरेचन ये सब ऐसे अव्यव की चिकित्सा का ही तो भाग है। मूत्र विरेचन अनुलोमन करते है, संग दोष का भेदन में बहुत सहायक है और ऐसे रोग में कफ और मेद प्रधान है तो चिकित्सा सूत्र ऐसे ही बनेगा और औषध चयन भी ऐसे ही होगा। प्राय: हम सर्पगंधा का प्रयोग वृक्क दुष्टि में करने से बचते थे पर अल्प मात्रा में सहायक द्रव्यों के साथ हमें परिणाम अच्छे मिलने लगे तो प्रयोग कर रहे हैं कोई उपद्रव नही।*

[2/28, 8:48 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi:

 *हमें चिकित्सा को समग्रता में ही लेना है, और यही क्रम है इसलिये लिखा मूत्र से मल मूत्र दोनों भी अनेक स्थान पर ग्रहण करने पड़ेंगे, हम symptomatic चिकित्सा नही कर रहे परक्वाश्य की चिकित्सा कर रहे है अगर ये समझ में आ जाये तो पवन जी के ये प्रश्न नही उठते।*

[2/28, 8:49 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi:

 *कटोज सर के उद्धरण सहित हमने वृक्क प्रदाह स्पष्ट किया था ऋतुराज जी।*

[2/28, 8:52 AM] Dr. Mrityunjay Tripathi, Gorakhpur: 

जी सर जी प्रणाम 🙏🙏🌺🙏🙏

[2/28, 8:52 AM] D C Katoch Sir: 

Aims of Ayurvedic management of CRF should be- Apan anuloman, reduction in Kleda, and ras-rakt-mutra prasadan with samyak poshan.

[2/28, 8:52 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi:

 *हमारे जैसे वैद्यों के भाग्य में तो पूर्वरूप लक्षण देखने हैं ही नही, भेद अवस्था तो क्या विभिन्न चिकित्साओं के बाद आता है और विडंबना उपद्रवों की स्थिति के साथ।*

[2/28, 8:53 AM] D C Katoch Sir: 

samaan and vyan niyaman also..

[2/28, 8:54 AM] satyendra ojha sir: 

राजवैद्य जी, समस्या यही है, गहन अध्ययन न होने से विषयांतर होने की सम्भावनाएं बनी रहती है !

[2/28, 8:56 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi: 

*बिल्कुल सही कहा सर, कल मैं ओझा सर की चिकित्सा देख रहा था वो भी सारिवा और मंजिष्ठा का प्रयोग ऐसे रोगी में करते है, रस रक्त मूत्र प्रसादन में इन सब का योगदान है।*

[2/28, 8:57 AM] D C Katoch Sir:

 Same wavelength as I told yesterday.

[2/28, 8:58 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi: 

*जी सर, आगे हम लोग सिद्धान्तों को और भी स्पष्ट कर के चलेंगे।*

[2/28, 9:14 AM] Vd V. B. Pandey Basti U. P: 

🙏गुरु वर मैंने तो  आज के पहले कभी कल्पना भी नहीं की थी की Serum Creatinine 10.4 is reversible with only oral medicine. बस आपसे विनम्र निवेदन है कि कभी कुछ बहुत साधारण सी बातें भी लिख दिया करें जिससे हम जैसे साधारण योगी भी कुछ अच्छा कर सकें । आपका आभार गुरु जी आपने हमें आत्मविश्वास  दिया ।

[2/28, 9:16 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi: 

*पवन जी, इस रोगी की original file जिसमें और भी reports हैं मेरे पास रखी है, आ शायद ये रोगी repeatation के लिये आयेगा अगर आपका दिल्ली आना हो तो 14 दिन बाद ये आता है, दो सप्ताह के लिये ये file अपने पास रख लेता हूं, इसमें आपको हर सप्ताह और 14 दिन की reports भी मिल जायेंगी आपको और अधिक समझने को भी मिल जायेगा।*

[2/28, 9:17 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi:

 *वैद्य पांडे जी, सब से सरल साधारण भाषा में तो मैं ही लिखता हूं । 🙏🙏*

[2/28, 9:26 AM] Vd V. B. Pandey Basti U. P: 

🙏जी सर बात भाषा की नहीं  मेरा मतलब साधारण रोगों से है ।

[2/28, 9:29 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi:

 *साधारण रोगों की चिकित्सा मैं करता नही।*

[2/28, 9:45 AM] pawan madan Dr: 

गुरुदेब !
मैंने आपकी सारी पोस्ट को कई बार पढ़ा है और मैने पहले ही कह दिया के मैं गलत सिद्धान्त पे चल रहा था।



आपकी किसी भी बात पर शंका नही है। ये मेरी नासमझी है के समझने में देर लगी।

शंका दूर करने के लिए अतीव धन्यवाद।
🙏🙏

[2/28, 9:45 AM] Dr. Rituraj Verma: 

जी गुरुवर !

[2/28, 9:46 AM] pawan madan Dr: 

शायद मैं अपनी बात को ठीक से रख नही पाया।
क्षमाप्रार्थी हूँ🙏

गुरुवर
आपका एक एक वचन मेरे लिए आप्त वचन ही है
मुझे कुछ और देखने की आवश्यकता नही है।
🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏

[2/28, 9:49 AM] Dr. Rituraj Verma:

 जी गुरुवर वृक्क रोग की चिकित्सा में मुझे बहुत डर लगता है, आपके मार्गदर्शन से आगे बढूंगा ।

[2/28, 9:52 AM] Dr Ashwini Kumar Sood, Ambala: 

Organs like liver those who have property to regenerate can be relieved symptomatically, otherwise anatomically reversal is not possible, terms and conditions apply. For example in CVA, spine pathology,  cardiomegaly, emphysema, chronic bronchitis, renal fibrosis etc reversal not possible'. Pretreatment and posttreatment reports are always expected if it's so .

[2/28, 10:49 AM] Dr. Ravikant Prajapati M. D, BHU.: 

👏👏🙏🙏🌹🌹 We are blessed to have Great Guru's of ayurveda...... Koti koti naman Guruji ko🌺🌹

[2/28, 11:11 AM] Dr Pradeep Mohan Sharma: 

उच्चरक्तचाप एवम पंचकर्म 
उच्चरक्त चाप के कुछ ऐसे रोगी जिनको antihypertensive medicine देने के पश्चात भी सिस्टोलिक 170 व डायस्टोलिक 120 से कम नही हुआ था, उनको जब सम्यक वमन कराया गया तो उनका रक्तचाप बिना किसी औषधि के 120/80 mmHg रहा। संसर्जन कर्म तक बिल्कुल भी विकृत नही हुआ। उनको अभी 4 वर्ष हो गए हैं इस घटना को कुल 7 में से 3 लोगों को पुनः उच्चरक्तचाप की औषधि देनी पड़ी। 
शेष लोग व्यायाम एवम खानपान को अनुशाषित रखे हुए हैं तो ठीक हैं।

[2/28, 11:14 AM] Dr Pradeep Mohan Sharma: 

सामान्य तौर पर शासकीय औषधालयों में सिर्फ सर्पगन्धा घन बटी ही आती हैं लेकिन अम्लपित्त की चिकित्सा व प्रमेह की सामान्य चिकित्सा के साथ साथ अपान वायु को अनुलोम करने से रक्त चाप कुछ समय के लिए तो ठीक रहता है परंतु औषधियाँ बन्द करने के कुछ माह पश्चात पुनः होने लगता है।

[2/28, 11:31 AM] Dr. Ramteerth Sharma, Ujjain: 

उच्च रक्तचाप की संप्राप्ति में अपान वायु की दृष्टि एक प्रधान संप्राप्ति।
 इसमें भी मूत्रवहस्रोतस का शुद्धि और पूरीष वह स्रोतः की शुद्धि अनिवार्य रूप से होनी ही चाहिए ।
आधुनिक चिकित्सा में भी इन्हीं दोनों तंत्रों पर औषधियां दी जाती है ।
पंचकर्म में बमन के साथ साथ वस्तिचिकित्सा को प्रधान रूप से स्वीकार करना चाहिए।
औषधियों से ज्यादा रोगी का दिनचर्या व्यवस्थित होगी तो दोषों का प्रकोप सहजता से नही होगा।

[2/28, 11:49 AM] Dr Pradeep Mohan Sharma: 

क्या मात्रा बस्ति का नियमित प्रयोग उच्चरक्तचाप में प्रभावकारी होगा ?

[2/28, 11:49 AM] Dr. Rituraj Verma:

 नही सर निरुह देना चाहिए !

[2/28, 11:50 AM] Dr Pradeep Mohan Sharma:

 धमनिकाठिन्य के संदर्भ में मात्रा बस्ति की कल्पना की जासकती है ?

[2/28, 11:50 AM] Dr. Rituraj Verma:

 योग क्रम बस्ती !

[2/28, 11:52 AM] Dr Pradeep Mohan Sharma: 

उच्चरक्तचाप की जब तक कोई एक निश्चित सम्प्राप्ति न हो तब तक कोई एक चिकित्सा सिद्धांत बनाना दुष्कर कार्य है !

[2/28, 12:00 PM] Prof. Satish Panda K. C: 

जी यह सही हैं, पर 80% hypertension idiopathic होती हैं। इसलिए योग वस्ति दे भी सकते हैं।🙏🏻

[2/28, 12:43 PM] Dr. Rituraj Verma: 

उच्च रक्तचाप में पित्त का उष्णत्व तीक्ष्ण गुण वृद्धि है तो विरेचन उत्तम है !

[2/28, 1:41 PM] Dr B K Mishra Ji: 

आवृतव्यान से उच्च रक्तचाप होने में क्या युक्ति हो सकती है। 
आवरण का सर्वमान्य सिद्धान्त तो यही है कि आवृत भाव पर आवरक भाव अधिक प्रभावी होता है...🙏🏼

[2/28, 1:56 PM] Upendr dixit Prof. Goa:

 अनुक्तज्ञानार्थमावरणस्वरूपमाह- एषां स्वकर्मणामित्यादि। अत्र आवार्याणां बलीयसाऽऽवरणात् स्वकर्महानिर्भवति, आवरकस्य तूत्सर्गतः स्वकर्मवृद्धिर्भवति, तथा आवरणेन च आवार्यः प्रकुपितो भवति तदा स्वकर्मणां वृद्धिर्भवतीति व्यवस्था; अन्ये तु आवरणीयस्य स्वकर्महानिः, आवरकस्य तूत्सर्गतो वृद्धिर्भवतीति व्यवस्थामाहुः॥२०६-२१६॥ 

चक्रपाणि

[2/28, 2:13 PM] Dr. Satish Jaimini Choumu, Jaipur: 

आचार्य श्री इसको थोड़ा और स्प्ष्ट करने की कृपा करें👏👏

[2/28, 2:15 PM] Dr Pradeep Mohan Sharma:

 जब तक हेतु व षटक्रिया काल ही स्पष्ट न हो तब तक तो क्या कह सकते हैं ?

[2/28, 3:00 PM] Upendr dixit Prof. Goa: 

वायोर्धातुक्षयात् कोपो मार्गस्यावरणेन च (कोपः) 
आवरण के कारण भी वात का प्रकोप होता है।  आवरक बलवान और आवृत तुलनात्मक रूप से दुर्बल, तथा आवरक की तुलना में आवृत कुछ अधिक बलवान इस प्रकार दो स्थितियां वर्णित हैं।  इसीको चक्रपाणि जी ने स्पष्ट किया है।  तात्पर्य आवरण के कारण व्यान का प्रकोप संभव है।

[2/28, 3:07 PM] Dr Ashwini Kumar Sood, Ambala: 

Absolutely right, how long one can keep giving योग बस्ति when HYT is continuous problem. It works for mild or grade 1 hypertension only. Beyond GR 2 medicines are required for long term.

[2/28, 3:35 PM] Dr. Satish Jaimini Choumu, Jaipur:

 जी आचार्य इन दोनो परिस्थितियों में आवरक की या आवृत की बलवान होने की प्रधानता के आधार पर कर्मवृद्धि के लक्षण प्रकट होंगे जो बलवान हो उसके लक्षण ज्यादा स्प्ष्ट दिखाई पड़ेंगे ऐसा ?

[2/28, 3:36 PM] Upendr dixit Prof. Goa: 

जी, यही चक्रपाणि टीका में भी कहा है।

[2/28, 3:39 PM] Dr B K Mishra Ji: 

चक्रपाणि ने दो व्यवस्थायें दी हैं, कौन सी उचित है  ?

[2/28, 3:42 PM] Upendr dixit Prof. Goa: 

परमतमप्रतिषिद्धमनुमतमेव से दूसरा मत भी चक्रपाणि जी के अनुसार गलत नहीं। पर उनका स्वमत तो पहले वाला है, उनके अनुसार वह अधिक उचित है।

[2/28, 4:04 PM] Dr Shashi Jindal: 

???? both these types are present in prameh samprapti ?? 1st vaayu is aavrit with mansa and meda, then vaayu takes oja to basti ??
🙏🏼

[2/28, 4:49 PM] Dr B K Mishra Ji: 

🙏🏼💐 स्पष्ट प्रतिपादन के लिये धन्यवाद सर ।

[2/28, 5:06 PM] Dr. Rituraj Verma: 

जी गुरुवर बहुत उत्तम ओषधि है
सारिवा शीत होते हुवे भी स्वेद उतपन्न करती है without पित्त को बढ़ाये
Skin pt. With स्वेद क्षय में भी उसे करते है ।
 🙏🙏 एवं यह शामक मूत्रल भी है इसका secondary work मूत्रल है ।

[2/28, 5:41 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi:

 *natural steroids हैं इसमें, इसकी घनवटी का प्रयोग बहुत करते हैं हम।*

[2/28, 5:45 PM] Dr. Rituraj Verma: 

जी गुरुवर !
 पहले भी आपने बताया था आपके मार्गदर्शन से मैं इसे use कर रहा हु अब एवं परिणाम भी शेयर करूँगा जल्द ही
सहृदय धन्यवाद !

[2/28, 5:48 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi:

 *हमें आचार्य गिरिराज जी ने बताया था।*

[2/28, 7:18 PM] Dr. Ravikant Prajapati M. D, BHU.: 

🙏🙏🌹🌹Pranam Guruji.......mai bhi ishka prayog sandhigata vata me kar raha hu.....results bhi pahle se better mil rahe hain....🙏🙏

[2/28, 7:19 PM] Dr. Suresh Nayak: 

I am very thankful full to you sir , guiding in right direction 💐

[2/28, 7:35 PM] satyendra ojha sir:

 Hypertension बहु हेतु जन्य, त्रिदोषज हृदय रोग है , विस्तृत चर्चा अपेक्षित है !

[2/28, 7:47 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi: 

*अनेक विद्वान पित्तावृत व्यान को hypertension मान कर चलते है पर हम रोगी की पूरी सम्प्राप्ति ही बनाते है, अपान और समान दोनो वात का भी इसमें प्रमुख रोल है तथा जैसा आज कटोच सर ने primary और essential HT की व्याख्या आयुर्वेदानुसार की बहुत उचित लगी।*

[2/28, 7:48 PM] satyendra ojha sir: 

Hypertension may occur in both hyper & hypothyroidism, it means that underlying pathology is different.

[2/28, 7:50 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi: 

*पित्त में साधक पित्त की प्रधानता।*

[2/28, 7:53 PM] satyendra ojha sir: 

जी, पंचात्मा वात अलग अलग व्याधियों में अलग अलग स्वरुप में..  काम शोक भयात् वायु से होने वाले hypertension में प्राण वात, PCOD में समान और अपान कफ एवं मांस- मेद के साथ.. renal artery stenosis में व्यान एवं अपान...

मधुमेह में समान एवं व्यान ।

उदान, समान एवं व्यान ।

[2/28, 7:58 PM] Vd Raghuram Shastri, Banguluru: 

Good evening to *Guru Shubhash sir* & *Guru Ojha sir*🙏🙏💐💐❤❤
You both HV summed up beautifully about HTN in a nutshell



Just adding sir

*The role of Avalambaka kapha, Sadhaka & Ranjaka Pitta, Udana Vayu can be considered*



👉 *Ranjaka Pitta imparts Ranjana to Rasa and converts it into Rakta, obviously it is associated with rakta throughout. It is needed to push the rakta into the vessels.*



👉 *Avalambaka is needed for the heart to relax after pumping, and comes after the action of Udana, Vyana, Samana, Sadhaka and Ranjaka which play a role in pumping the blood out. With the help of Vyana, and Udana, Avalambaka enables return of blood to the heart. I feel the balance between Avalambaka & Ranjaka / Sadhaka determines the peripheral resist which is key in HTN*



( *This is only keeping the role of heart in HTN - a small hypothesis*)



This is my humble submission🙏🙏💐💐❤❤


[2/28, 7:59 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi: 

*सम्प्राप्ति विघटन के प्रमुख घटक, 👌👌👌बिना इन्हे जाने चिकित्सा सूत्र बन ही नही सकता।*

[2/28, 8:00 PM] satyendra ojha sir:

 जी ।

[2/28, 8:00 PM] Vd Raghuram Shastri, Banguluru: 

Comprehensive👌🙏💐❤

[2/28, 8:02 PM] satyendra ojha sir: 

*रंजक पित्त*
The overproduction of red blood cells and high hematocrit levels associated with polycythemia vera can contribute to systemic hypertension; high hematocrit levels have been found to interfere with the vasodilatory effects of nitric oxide..

[2/28, 8:05 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi: 

*रंजक पित्त का ओज से संबंध, ओज का ह्रदय से, ह्रदय का HT से।*

[2/28, 8:05 PM] Vd Raghuram Shastri, Banguluru: 

Wow... great equation guruji🙏🙏💐❤

[2/28, 8:08 PM] Prof. Deep Narayan Pandey:

 *एकदम*
👍👍🌹🙏💐✅

[2/28, 8:10 PM] Vd Raghuram Shastri, Banguluru: 

*Aap Ranjaka Pitta ho* - *Ojha sir Ojas hai* - *Hriday KS hai* - *combination se jnana Pravah hai* (but no tension or hypertension here, just learning on a lighter note) 🙏🙏💐💐❤👌

[2/28, 8:16 PM] satyendra ojha sir: 

*लवण अति सेवन से पित्त ए्वं कफ प्रकोप तथा रक्तवृद्धि ( रक्तं वर्धयति ) से hypertension*

[2/28, 8:18 PM] [2/28, 7:55 PM]  Vaidyaraja Subhash Sharma, Delhi: 

*ईर्ष्योत्कंठाभयत्रासक्रोधशोकातिकर्शनात्...तत् स्नेहक्षयाद् वायुर्वृद्धो दोषावुदीरयन्' 

च चि 8/24 

इनके कारण शरीर की स्थायी धातु  रस, स्नेह और शुक्र सहित अन्य धातुओं का भी क्षय होता है और वात का प्रकोप।*


*किन्त्वेतानि विशेषतोऽनिलाद्रक्ष्याणि, अनिलो हि पित्तकफसमुदीरणे हेतु: प्राणमूलं च' 

च सि 9/7 

मर्म स्थान ह्रदय, सिर और वस्ति की विशेष कर वात दोष से रक्षा करनी चाहिये क्योंकि वात ही पित्त और कफ को उदीर्ण करता है और वायु ही जीवन अर्थात प्राण का मूल है।*

*hypertension में प्रधान दोष वायु ही है और पहले वायु को साम्यावस्था में लाना आवश्यक है, अगर रघुजी और आपके अनुसार देखें तो अलग अलग सम्प्राप्तियों में पांचो वायु का ही महत्व है पर व्यान प्रधान है।*


[2/28, 8:18 PM] Dr. Suresh Nayak: 

Sir treatment protocol please..

[2/28, 8:19 PM] satyendra ojha sir: 

*पित्त प्रकोप से अग्नि वृद्धि से increased BMR - increased heart rate - increased cardiac output - hypertension*

[2/28, 8:20 PM] satyendra ojha sir: 

*कफ प्रकोप - धमनी प्रतिचय - increased total peripheral resistance - hypertension*

[2/28, 8:20 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi: 

*जी सर, इसका उदाहरण हम मद्य सेवियों में हर रोज प्रत्यक्ष देखते हैं।*

[2/28, 8:21 PM] pawan madan Dr:

 *प्रणाम सर*

[2/28, 8:21 PM] pawan madan Dr: 

Raghu sir !



Very important points.



🌹🌹


[2/28, 8:21 PM] pawan madan Dr: 

*गुरूद्वय ओझा सर एवं सुभाष सर जी ने बड़ी सरलता से HTN को समझा दिया*
इन सब घटकों की विभिन्न रोगियो में कारणता बनाती है
👏🏻👏🏻🙏🙏

[2/28, 8:21 PM] satyendra ojha sir: 

एक लवण से ही कितनी घटनाएं हो सकती है ।

[2/28, 8:23 PM] pawan madan Dr: 

🙏🙏🙏



मदात्यय जनित

रक्त प्रकोप जनित
रक्तगत क्लेद वृद्धि जनित
मानसिक कारण जनित
मलावरोध जनित
🙏🙏🙏🙏🙏

[2/28, 8:26 PM] Vd Raghuram Shastri, Banguluru: 

👌👌❤❤❤💐💐🙏🙏👏👏👏
Vayu, undoubtedly the chief culprit sir, and Panchavayu as you rightly mentioned hv their roles at various stages of pathogenesis🙏🙏



Nice references sir🙏


[2/28, 8:27 PM] Vd Raghuram Shastri, Banguluru: 

Wowwwwww... Great chronology of events initiated by Pitta... Thanks sir🙏🙏👏👏💐💐❤❤

[2/28, 8:28 PM] Dr. Rituraj Verma: 

जय हो गुरुवर  ! 
धन्य हूँ मैं कायसम्प्रदाय का  !
नि:शब्द हूँ जय हो ।

[2/28, 8:31 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi: 

*पीनस, कंठ, श्वास नलिका से संबधित रोगो में विशेषकर जिनको snoring की समस्या है उनमें भी कुछ रोगियों में HT मिलता है जिसका प्रत्यक्ष संबंध प्राण वायु से है उसमें बिना HT औषध के अणु तैल, सितोपलादि आदि योग से मूल दूर होते ही रोगी का BP सामान्य आ जाता है।इसलिये निदानपरिवर्जन और मूल को समझना आवश्यक है।*

[2/28, 8:47 PM] satyendra ojha sir:

 *Ahar sambhavam vastu rogah cha ahar sambhavah, *Hit ahit visheshah cha visheshah sukh dukhyoh. Ch.su.28/45*.. 
*Diet modification is mandatory for health and diseases*.  
*A particularly useful approach is DASH (Dietary approaches to stop hypertension) diet,which uses natural foods that are high in potassium and low in saturated and total fat,emphasizing fruits,vegetables, and low fat dairy products*. *Dash diet with moderate sodium restriction leads to greater falls in blood pressure*...

[2/28, 8:48 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi: 

*इन तीनो formulas से बाहर कुछ भी नही है सर, सब इसी में समाया है बस औषध स्थानुसार बदल जाती है जैसे हम  लेखन के बदले भेदन में कुटकी या आरोग्य वर्धिनी ले लेते हैं पर कर वही रहे हैं दोषों का निर्हरण, मेध्य हेतु meditation भी सिखा देते है, चिकित्सा घटक ये ही हैं बाकी युक्ति।*



              🙏🙏🙏🙏🙏


[2/28, 8:51 PM] Dr Ramanuj Soni New Delhi: 

अद्भुत गुरुवर....💐💐💐🙏

[2/28, 8:52 PM] Dr. Rituraj Verma: 

combination of punarnava gokshuru varuna shankhapushpi jatamansi brahmi sarpagandha and amrita each 500 mg tds
आदरणीय गुरु ओझा सर के मार्गदर्शन से malignant hypertension के रोगी को स्टार्ट किया है
पहले से improvement है सभी लक्षणो में
सहृदय धन्यवाद गुरुवर ।

[2/28, 8:54 PM] Prof. Deep Narayan Pandey: 

🌹🙏🌹
 *हे अग्निवेश!* 
*केवल आहार पर नहीं, सम्पूर्ण व्याधिक्षमत्व पर निर्भर करता है बीमार होना या बीमारी से बचे रहना...*
–Ch.Su., 28.6-7



व्यायाम भी करवाइए आचार्य श्रेष्ठ ऐसे लोगों को। प्रायः यह देखा गया है कि हाइपरटेंशन से परेशान रहने वाले लोग अक्सर वे लोग होते हैं जो चेष्टाद्वेषी होते हैं।


[2/28, 8:54 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi: 

*जैसे विश्वास हो ना हो paracetamol से ज्वर कम होगा ही, ऐसे ही आयुर्वेद पर विश्वास हो ना हो ये योग शत प्रतिशत कार्य करेगा ही।* 👌👌👌

[2/28, 8:57 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi: 

*जी आचार्य श्रेष्ठ, धमनी प्रतिचय ओझा सर ने उन्ही लोगों के लिये तो कहा है।*

[2/28, 8:57 PM] satyendra ojha sir: 

*जी , चेष्टा द्वेषी को संतर्पणोत्थ व्याधि होने की संभावना अधिक होती है : मधुमेह , हृदय रोगादि*

[2/28, 8:58 PM] satyendra ojha sir: 

*अति प्रशंसनीय शुरुवात*

[2/28, 9:02 PM] Prof. Deep Narayan Pandey: 

जी बिल्कुल 



बड़ी गड़बड़ है। खा खा कर मोटे होते जाते हैं और फिर कार्डियोवैस्कुलर पचड़ा अंत में लगता ही है। प्रमेह, मधुमेह लगता ही है, रास्ते में उच्च रक्तचाप भी साथ हो लेता है।


[2/28, 9:03 PM] satyendra ojha sir:

 *आदरणीय श्री पाण्डेय जी, आप चेष्टा द्वेषी पर एक समीचीन चर्चा किये थे, मुझे याद है, आप हमसे ज्यादे आचार्य चरक को  समझते है*

[2/28, 9:07 PM] Prof. Satish Panda K. C:

 गुरुदेव प्रणाम
व्यायाम से hypertension control होगा या नहीं ?🙏🏻

Should we recommend ?

[2/28, 9:13 PM] satyendra ojha sir:

 Cardiovascular, or aerobic, exercise can help in decreasing Hypertension. Examples include walking, jogging, jumping rope, bicycling (stationary or outdoor), cross-country skiing, skating, rowing, high- or low-impact aerobics, swimming, and water aerobics..

[2/28, 9:14 PM] satyendra ojha sir: 

Weight lifting like exercise is not indicated in hypertensive and other cardiac Patients

Yes.  *You must recommend aerobic exercise*

[2/28, 9:20 PM] satyendra ojha sir: 

HCM and HOCM with ayurveda perspective;  Hypertrophic cardiomyopathy is characterized by non dilated left ventricular hypertrophy. Later there may be hypertrophic obstructive cardiomyopathy due to left ventricular outflow tract pressure gradient. Three basic mechanisms are involved ; 

(1) increased left ventricular contractility (effect of prakupita kapha), 
(2)- decreased ventricular volume (preload),( aadaana karma of praana vaayu is impaired ), 
(3)- decreased aortic impedance and pressure (afterload) -( vyaana vaata karma haani) 
2&3 are because of hridaya gata vaata (angina pectoris, fatigue and syncope are present with dyspnea, a common symptom due to diastolic dysfunction/ impaired left ventricular filling indicate predominance of vaata Kaphaja hridroga with hridaya gat vaata can be considered in HCM and HOCM.. Hridayarnava rasa, chandraprabha vati, gokshuraadi guggula, kvaatha of combination of dashamoola arjuna punarnava gokshuru varuna haritaki devadaru pushkaramoola kamal shatavari ashwagandha chitraka vacha shunthi. Shaalaparni with milk. Kamadudha, arjunaarishta, hrida basti by dashamoolaadi tail or prepared as per ch.chi 26 vaatika hridroga.. Advice for salt restriction, no physical and mental stress, no alcohal, no smoking , small bolus of food at a time 4-5 times per day. Pomegranate grape orange fig are good fruits .. Gandharva haritaki can be added at night for proper bowel motion to avoid straining during defaecation... Food intake increases blood suply to splanchnic circulation so demand is increased which in turn develops overload on failing (compromised) heart and manifests dyspnea fatigue giddiness chest pain... Its due to vaata prakopa in hridayashtha sthaan ie hridaya gata vaata. Anshumati sapayasaa is indicated by acharya charak...
I have elaborated 3 specific underlying pathology in HCM and HOCM with vaata predominace, but initial factor is  kapha prakopa leading to non dilated cardiomyopathy, increased mass of myocardium, mass represents sthoola bhaava so its due to kapha, later contractility preload and after loads are impaired. due to diastolic dysfunction dyspnea manifests, due to increased mass demand for O2 is increased and that is not supplied adequately so there is imbalance between demand and supply leading to ischaemia and chest pain ie due to apatarpana vaata prakopa in hridaya so hridaya gata vaata can be considered.. decreased cardiac output (due to left ventricular outflow obstruction - sanga ) causes decreased effective arteriolar volume and renal hypoperfusion resulting in activated renin angiotensin aldosterone system to manifest salt and water retention vasoconstriction and remodelling of ventricle. These are consequences of disease process and can be considered as vitiated vaata to bring ambu dhatu to retain beneath tvaka and maansa ie edema.. treatment plan includes to work on 3 basics ; arjuna shatavari kakamachi ashwagandha for srength of contractility to maintain diastolic function. Punarnava gokshuru varuna to reduce preload and pushkaramoola dashamoola to maintain normal after load.. chitraka vacha trikatu to decrease sanga or obstruction.. hridayarnava rasa contains tamra and kaakamaachi so better option in this condition.. chandraprabhavati gokshuradi guggula to decrease congestion , gokshuru is hridya too. Kamadudha  acts on action potential to  provide normal ionic changes across cell membrane . Angiotensin 2 is potent vasoconstrictor (increases peripheral resistance), increases sympathetic activity (increased cardiac output),  secretion of arginine vassopressin so increase renal reabsorption of water, increase aldosterone secretion so promote salt and water retention (increase venous return so increased cardiac output) ➡ hypertension.. salt is major cause of activated RAAS - pitta prakopaand rakta vriddhi. Kapha prakopa and dhamanipratichaya...HTN. Aamaashaya gata vaata manifests shvaasa, as pranavaha sroto dushti since pitta sthaana samudbhava is mentioned in shvaasa roga.. here shvaasa is one of symptom of HCM.
 Hridaya as a whole organ is moola sthaana of prana vaha rasa vaha and rakta vaha.In dhamanipratichaya sakapha meda and maansa interplay to develop uplepana on dhamani .. it leads to avarodha of vaata gati.. it should not be considered as dhamanipoorana: In Aortic stenosis pathogenesis occurs similar to as that of atherosclerosis so modern dr advice statins in AS . CAD, AS and HCM are different disease entities .. but in AS and HCM angina pectoris is present without CAD , only due to increased demand caused by hypertrophy..

[2/28, 9:21 PM] satyendra ojha sir: 

*Please read it and let me know your feedback*

[2/28, 9:27 PM] Prof. Satish Panda K. C: 

परंतु गुरदेव व्यायाम से वात की वृद्धि होति हैं।फिर यह शमन भी यहां कर रहीं हैं।
इसके सम्प्राप्ति के बारे में कुछ साझा करने की कृपा करें।🙏🏻

[2/28, 9:34 PM] satyendra ojha sir: 

अति व्यायाम नहीं , यथाशक्ती.

[2/28, 9:35 PM] Dr. Kalpana Choudhury:

 I have a doubt. In my experience Sarpagandha is a habit forming medicine and it also causes bradycardia. 
does anyone have a work around ?

[2/28, 9:41 PM] D C Katoch Sir:

 Sarpgandha combined with Ashwagandha takes care of all potential bad effects of Sarpgandha. 😞😞
Dr Kalpana !

[2/28, 9:41 PM] satyendra ojha sir:

 *शरीरचेष्टा या चेष्टा स्थैर्यार्था बलवर्धिनी, देहव्यायामसंख्याता मात्राया तां समाचरेत् , 

च.सू.७/३१*
.
Excess exercise - increased demand - increased pressure load on heart - heart failure in compromised heart (preexisting Cardiovascular diseases).

[2/28, 9:42 PM] Dr Ashwini Kumar Sood, Ambala: 

Habit forming in which sense ? 
It doesn't cause bradycardia in recommended dose .

[2/28, 9:42 PM] Dr. Shailendra Mehta, Chandigarh: 

In mine experience,,,some cases complain of blocked nose/sinusitis 🤔🤔🤔

[2/28, 9:44 PM] Dr B K Mishra Ji:

 👍🏽 वर्तमान में विश्वव्यापी Hypertention का आयुर्वेदींकरण होना ही चाहिये !

[2/28, 9:44 PM] satyendra ojha sir:

 हृदयाद्युपरोधश्च इति व्यायाम लक्षणम्..

[2/28, 9:45 PM] Prof. Deep Narayan Pandey: 

👌✅✅👍🙏💐



व्यायाम बड़ी ऊँची अद्रव्य चिकित्सा है! बड़ी विचित्र भी! सम्यक कीजिये तो वात शमन -- अति कीजिये तो वात प्रकोप !


[2/28, 9:49 PM] Prof. Deep Narayan Pandey: 

🙏🙏💐
*शस्यते त्रिष्वपि सदा व्यायामो दोषनाशनः*

[2/28, 9:50 PM] Prof. Deep Narayan Pandey: 

आयुर्वेद का निष्कर्ष बिल्कुल स्पष्ट है (सु.चि.24.108-109): 



कफे प्रच्छर्दनं पित्ते विरेको बस्तिरीरणे।। 

शस्यते त्रिष्वपि सदा व्यायामो दोषनाशनः। 
भुक्तं बिरुद्धमप्यन्नं व्यायामान्न प्रदुष्यति।। 



कफ में वमन, पित्त में विरेचन, वात में बस्ति उपयोगी है, पर त्रिदोष शमन के लिये व्यायाम सदा हितकारी है। यहाँ तक कि विरुद्ध भोजन ले लेने पर व्यायाम करने वालों को हानि नहीं हो पाती|


[2/28, 9:53 PM] Dr. Satish Jaimini Choumu, Jaipur: 

ओझा जी गुरुजी आप तो वास्तव में अग्निवेश भगवान के दूत हैं अब सिध्द हो रहा है 👏👏

[2/28, 9:54 PM] Prof. Satish Panda K. C: 

गुरुदेव !
क्या इस तरह हो सकता है
1.व्यायाम से वात वृद्धि फिर
2.शरीर में ताप की वृद्धि
3.अग्नि की वृद्धि
4.आम का पाचन
5.स्रोतस शोधन
6.धमनी प्रतिचय (hyperlipidemic artherosclerosis) का ह्रास



also some release endorphin, which reduce stress and dilate vessels, their by reduce PR

7.peripheral resistance reduce
Result in reduce Hypertension...

[2/28, 9:55 PM] satyendra ojha sir: 

*Hyperkalemia and hypekalaemia दोनों में भी हृदय बेकाबू हो जाता है*

[2/28, 9:57 PM] satyendra ojha sir: 

थोङा गङबङ है
गुरुदेव
क्या इस तरह हो सकता है
1.व्यायाम से अग्नि की वृद्धि
2 आम का पाचन
3. स्रोतस शोधन
4- धमनी प्रतिचय (hyperlipidemic artherosclerosis) का ह्रास



also some release endorphin, which reduce stress and dilate vessels, their by reduce PR

7.peripheral resistance reduce
Result in reduce Hypertension

[2/28, 9:58 PM] Prof. Satish Panda K. C: 

जी गुरुदेव मार्ग दर्शन करने की कृपा करें🙏🏻

[2/28, 9:59 PM] Prof. Satish Panda K. C: 

वात काभी तो हैं ।

[2/28, 10:00 PM] Dr Ashwini Kumar Sood, Ambala: 

Applicable in GR 1 hypertension

[2/28, 10:01 PM] Dr. Satish Jaimini Choumu, Jaipur: 

प्राणायाम से सम्भवतः कोई हानि नहीं हो आचार्य ।

[2/28, 10:02 PM] Prof. Satish Panda K. C: 

बात तो सत्य है, फिर क्या इसे preventive approach में recommend करें।🙏🏻

[2/28, 10:03 PM] Prof. Deep Narayan Pandey: 

आचार्य 
व्यायाम और तीक्ष्ण व्यायाम में भी थोड़ा देखना पड़ेगा



🙏


[2/28, 10:03 PM] Dr Ashwini Kumar Sood, Ambala:

 Not correct drji , PCTA pts and POST CABG  pts are advised 30 mins brisk walk.

[2/28, 10:04 PM] satyendra ojha sir: 

यथा शक्ति व्यायाम ।

[2/28, 10:04 PM] Prof. Deep Narayan Pandey: 

व्यायाम के बिना दिल स्वस्थ नहीं रह सकता, परन्तु अति व्यायाम दिल के लिये हानिकारक हो जाता है ।

[2/28, 10:06 PM] Prof. Deep Narayan Pandey: 

*बलार्ध* का तात्पर्य उस विशेष रोगी का *बलार्ध*, अर्थात पुरुष पुरुष/ व्यक्ति व्यक्ति का बलार्ध ।

[2/28, 10:06 PM] Dr. Satish Jaimini Choumu, Jaipur:

 इसके साथ अन्य घटक भी विचारणीय है यदि व्यायाम को हृदरोग का कारण तो नही माना जा सकता अति तीक्ष्ण दो शब्द इस सम्प्राप्ति में विशेष अवसर प्रदान करते हैं👏👏👏

[2/28, 10:07 PM] satyendra ojha sir:

 ऐकान्तिक वचन से हम निष्कर्ष पर नहीं पहुचेगें ।

[2/28, 10:11 PM] Prof Giriraj Sharma: 

तीक्ष्ण शब्द रस पदार्थ के प्रयुक्त होता है ।
व्यायाम के लिए अति, मध्यम, अल्प बल अनुसार शब्द प्रयुक्त होए है ,,, 
तीक्ष्ण आहार है
🙏🏼🙏🏼🙏🏼🌷🙏🏼🙏🏼🙏🏼

[2/28, 10:13 PM] Prof. Satish Panda K. C: 

इसे इस तरह ले सकते हैं।
In MI exercise contraindicated. only mild walking.
In Hypertension indicated in moderate.🙏🏻

[2/28, 10:18 PM] Prof Giriraj Sharma:

 आयर्वेद आर्ष गर्न्थो में नही है कहीं ऐसा,,,,,
हालांकि दीपपांडे सर के शब्द बहुत प्रचलित है आजकल ,,, यथा 
भड़के हुए त्रिदोष
😅😅😉

[2/28, 10:18 PM] Prof Mamata Bhagwat: 

वयोबल शरीराणि देशकालाशनानि च। 
समीक्ष्य कुर्यात् व्यायामं *अन्यथा रोगमाप्नुयात्* ।।

 व्यायामं कुर्वते नित्यं विरुद्धमपि भोजनम्।
विदग्धं अविदग्धं वा निर्दोषं परिपच्यते।।
*व्यायामो हि सदा पथ्यो बलिनां स्निग्ध भोजिनाम्*।।

[2/28, 10:23 PM] Dr. Satish Jaimini Choumu, Jaipur: 

तैक्ष्ण्यम आग्नेयम  शस्त्र की धार के लिए तीक्ष्ण मिलता है आचार्य ।

[2/28, 10:27 PM] Vd Dilkhush M Tamboli:

 यहा पर एक चीज मेरे लिये बहुत ही important है
और वो है



व्यायाम पश्चात सर्व लक्षण उपशम



अगर ये रुग्ण आयुर्वेद की चिकित्सा नही लेगा और व्यायाम नही करेगा तो

ये कफावृत व्यान मे धिरे धिरे convert होगा 
*गुरुता सर्व गात्राणा सर्व संधी अस्थी रुजा।*
*व्याने कफावृते लिंग गति संग तथा अधिक:।।*



और अगर इस आवरण की आयुर्वेद से चिकित्सा नही हुई तो ये रोग

हृदय रोग मे परिवर्तित होगा



*हृद्रोगो विद्राधी प्लिह गुल्म अतिसार एवं च ।*

*भवंती उपद्रव तेषम आवृतांनामुपेक्षणात।*



रुग्ण के पिताजी की मौत हृद्रोग से हुई है ।


[2/28, 10:27 PM] satyendra ojha sir: 

*आचार्य चक्रपाणी;  मात्रया अनपायिपरिमाणेन; एतावती चेयं शरीर चेष्टा मात्रावती यावत्या लाघवादयो वक्ष्यमाणा भवन्ति, चेष्टातियोगवक्ष्यमाणाश्च श्रमभ्रमादयो न भवन्ति*..
कितना स्पष्ट है फिर भी हम समझना नहीं चाहते ?

[2/28, 10:28 PM] Prof Mamata Bhagwat: 

Absolutely... Very well mentioned Sir👍🏻👌🏻💐

[2/28, 10:34 PM] Prof Giriraj Sharma: 

व्यायाम की मात्रा लघु अति योग आदि का जब उल्लेख है परन्तु ह्रदय रोग में 
आचार्य ने अतिव्ययाम नही सिर्फ व्यायाम लिखा है ,,,
बाकी सबके अपने राम है 
🙏🏼🙏🏼🙏🏼🌷🙏🏼🙏🏼🙏🏼

[2/28, 10:34 PM] satyendra ojha sir:

 *व्यायाम से दोषक्षय, तथा अति व्यायाम से धातुक्षय, और धातुक्षय से वात प्रकोप न कि दोषक्षय से*

[2/28, 10:34 PM] satyendra ojha sir: 

च.सू.७/३२-३३

[2/28, 10:35 PM] Prof Giriraj Sharma: 

ह्रदय रोग के परिप्रेक्ष्य में व्यायाम को हेतु कहा है ,,,,
🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼

[2/28, 10:36 PM] Prof. Satish Panda K. C: 

Yes !

[2/28, 10:36 PM] Dr. Satish Jaimini Choumu, Jaipur: 

👏👏👏👏👏प्रणाम सर अविस्मरणीय !

[2/28, 10:37 PM] Prof Mamata Bhagwat: 

Cheshta dvesha janya Santarpana vikara upadrava is again hridroga. So we need to be wise here. 
*Matraya Tam aacharet.*

[2/28, 10:40 PM] Dr. Satish Jaimini Choumu, Jaipur:

 व्यायाम को नित्य सेवनीय बताया गया है इसलिए हृदरोग का कारण तो नहीं होगा लेकिन गुरुदेव ओझा जी ने कारण भी स्प्ष्ट कर दिया  दिलसुख जी ने परिणाम भी बता दिए व्यायाम से लाभ मिला !

[2/28, 10:41 PM] Dr. Satish Jaimini Choumu, Jaipur: 

अति व्यायाम को हृदरोग का कारण माना गया है ये बात समझने में आई !

[2/28, 10:42 PM] Vd Dilkhush M Tamboli: 

हृद्रोग से बचने के लिये व्यायाम जरुरी है !
हृद्रोग होने बाद व्यायाम को हितकारी बोला है हृदय के बल को ध्यान मे रखते हुये 



हिरण को heart attack नही आता 



But the data says

88% of deer hunters that are male, are at risk for heart disease.

[2/28, 10:42 PM] Prof Mamata Bhagwat: 

व्यायाम हास्य भाष्य अध्व ग्राम्यधर्म प्रजागरान्। 
*न उचितानपि सेवेत बुद्धिमान् अतिमात्रया।।*



It is compared to a sahasa karma here if indulged excessively..

We need to be wise enough to advice/ perform according to our individual specifications. 



But vyayama is must to live healthy happy and *happeningly*.


[2/28, 10:43 PM] satyendra ojha sir: 

*आचार्य चक्रपाणी :एतेन भारहरणाद्याऽनिष्टा कार्यवशात् क्रियमाणा चेष्टा निरस्यते , चङ्क्रमणरुपा तु क्रिया प्राप्यते*..



*Cardiovascular, or aerobic, exercise can help lower  blood pressure and make heart stronger. Examples include walking, jogging, jumping rope, bicycling (stationary or outdoor), cross-country skiing, skating, rowing, high- or low-impact aerobics, swimming, and water aerobics*..

*अर्थात हे गिरीराज जी , भारहरणादि व्यायाम से हृदय रोग सम्भाव्य है न कि चंक्रमणादि चेष्टा से*

[2/28, 10:45 PM] Prof. Deep Narayan Pandey: 

*आरोग्यं चापि परमं व्यायामादुपजायते*
--सु.चि. 24.39-40



🙏


[2/28, 10:46 PM] Dr. Satish Jaimini Choumu, Jaipur: 

👍👍अब बताओ क्या बाकी है👏👏😅

[2/28, 10:46 PM] Prof. Satish Panda K. C: 

Concluded
In MI exercise contraindicated. only mild walking.
In Hypertension indicated in moderate.🙏🏻

[2/28, 10:47 PM] Prof Giriraj Sharma: 

*आचार्य चक्रपाणी: एतेन भारहरणाद्याऽनिष्टा कार्यवशात् क्रियमाणा चेष्टा निरस्यते, चङ्क्रमणरुपा तु क्रिया प्राप्यते*, j



*आदरणीय आज , भारहरणादि व्यायाम करते समय हृदय रोगी की मृत्यु ज्यादा सम्भाव्य है न कि चंक्रमणादि चेष्टा से ह्रदय रोगी की मृत्यु के उदाहरण कम ही  मिलते है*


[2/28, 10:48 PM] Vd Dilkhush M Tamboli: 

Exactly.....🙏🙏🙏🙏🙏🙏

[2/28, 10:48 PM] satyendra ojha sir: 

चेष्टादि नहीं है, वहां thromboembolism है ।

[2/28, 10:49 PM] Prof Giriraj Sharma: 

आचार्य व्यायाम की जगह अतिव्ययाम  लिख सकते थे ,,,

[2/28, 10:55 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi:

 *हमने सर्पगंधा की मात्रा 65 mg से 100mg निर्धारित कर रखी है साथ में ब्राह्मी, शंखपुष्पी और जटामांसी सहित प्रवाल भस्म, अब ckd में पुनर्नवा add करते है। आप भी निश्चिन्त हो कर करें।* 👍👍👍

[2/28, 10:57 PM] satyendra ojha sir: 

धमनी प्रतिचय में ग्रथित रक्त निर्मिती से अवरोध होकर myocardial infarction हो सकता है, जिसको रोकने के लिये त्रिकटु/पंचकोल सक्षम है ।

[2/28, 10:57 PM] Vd Dilkhush M Tamboli: 

इस *राज*  की वजह से ही आयुर्वेद का बहुत नुकसान हुआ है सर और आगे जाकर ना हो



इसलीये तो *कायसंप्रदाय* बना है



यहा कोई भी बात राज की नही रहेगी 



रहेगा तो सिर्फ 

*शास्त्र*

[2/28, 10:57 PM] Prof. Deep Narayan Pandey: 

आचार्य व्यायाम को अग्र्य संग्रह में भी नहीं भूले ---



*व्यायाम: स्थैर्यकराणां श्रेष्ठम्।*

*व्यायाम शारीरिक और मानसिक स्थिरता देने वाले कारकों में श्रेष्ठ है।*

---च.सू.25.40 (अंश)

[2/28, 11:04 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi: 

*नमस्कार प्रो. ममता जी।* 🙏🙏🙏

[2/28, 11:08 PM] Prof. Deep Narayan Pandey: 

शुभ रात्रि



और चलते चलते---

*विरुद्धाहार से चिंतित होने की जरूरत नहीं होगी, सुन्दर तो दिखेंगे ही व्यायाम कीजिये|*
वयोरूपगुणैर्हीनमपि कुर्यात् सुदर्शनम् 
व्यायामं कुर्वतो नित्यं विरुद्धमपि भोजनम् ||

--सु.चि.24.44
🙏

[2/28, 11:48 PM] satyendra ojha sir: 

*कायसम्प्रदाय का भी कार्य परस्परयोजन (एक दूसरे से जोडना ) तथा प्रह्लाद अर्थात शरीर इन्द्रिय को तृप्त करना ही है*

[2/28, 11:50 PM] Prof Giriraj Sharma: 👍🏻👍🏻🙏🏼💐🙏🏼👍🏻👍🏻

[2/28, 11:50 PM] Dr Atul Kale, Pune: 

We found many of hidden symptoms related to HT ILin vidhishonitiya adhyay.

क्रोधप्रचुरता बुद्धे संमोहो लवणास्यता
........... रक्तपित्त प्रमिलक: 
शिरःशूल.......



There are ennumerous speculations can be seen towards Ayurved pathogenesis. As our sages have mentioned at many references and expounded the things in scatter sentences. Under one Ayurved pathological umbrella its so difficult to count HT.

         Ofcourse we should not consider HT as a complex of symptoms only in relation with vidhishonitiya. Its only a touch to the samprapti. There are many speculations coming towards the centre at which HT situated. Even though its a idiopathic in nature Ayurved is in position to rule out the perfect hetu sangraha behind the disease. Its very vast subject and needs much more time and patience. 
Raktavrita vata like diagnostic till date determinations are not suffucient to acquire the subject in its whole sense. So Drishya doshavritam, anyonyavritam and their minute anshansha Kalpana are manifestation causing factors behind. Guna sankalpana is also very essential to think over. For perfect diagnosis Gunas, direction of particular vayu (natural and changed), it's force related to acceleration and due forces exerted on vesseles, उद् + आवर्त upward centrifugal circulatory force or changed path circulatory centrifugal force may be the counterparts key objectives behind the pathology.

[2/28, 11:54 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi: 

*व्यायाम को ऐसे भी समझें, 

'चतुष्प्रकारा संशुद्धि पिपासामारूतातपौ, पाचन्युपवासश्च व्यायामश्चेति लंघनम्' 

च सू 22, 

व्यायाम अपतर्पण चिकित्सा का एक भाग लंघन है जो कफ और पित्त को साम्यावस्था में लाने के लिये किया जाता है। 

'यत्किंच्चलाघवकरं देहे तल्लघनं .. '

 जो भी क्रिया या उपाय शरीर में लघुता लाये वो लंघन है।*



*व्यायाम से जो वायु प्रकोप हो कर लक्षण उत्पन्न हो रहे हैं उनमें कोई सम्प्राप्ति घटित नही हो रही वो लक्षण मात्र हैं रोग उत्पादक नही पर अति व्यायाम, मिथ्या व्यायाम नियमित करने से जो लक्षण उत्पन्न होगें वो सम्प्राप्ति बनाकर रोग के लक्षण होगें जैसे राजयक्ष्मा में ।*


[2/28, 11:58 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi:

 *hypertension रोगियों में आराम पूर्वक भ्रमण करने से bp सामान्य ही मिलता है, बल पूर्वक, अति वेग से या अत्यधिक चलने से ही वृद्धि मिलेगी,लंघन (व्यायाम)के भी नियम है।*

[2/29, 12:00 AM] Prof Giriraj Sharma: 

🙏🏼🙏🏼👍🏻💐👍🏻🙏🏼🙏🏼
बढ़े हुए दोषों को क्षय करना 
*दोषक्षय*
मन्द जठर,  मन्दधात्वाग्नि को वृद्धि
 *अग्निवृद्धि* 



*साम्यवस्था*

🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🌹🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼

[2/29, 12:00 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi:

 *भोजन के पश्चात कफ की वृद्धि लक्षण है रोग नही, भोजन पाक के पश्चात वात वृद्धि लक्षण है रोग नही, इसमें कोई दोष-दूष्य सम्मूर्छना नही होती।*

[2/29, 12:01 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi: 

*नमो नम: आचार्य गिरिराज जी।* 🙏🙏🙏

[2/29, 12:14 AM] Dr Atul Kale, Pune: 

सर सिस्टोलिकमें आरामसे फर्क पडता है किंतु डायस्टाॅलिकमें मुझे इतका फर्क नहीं मिला। डायस्ट‌अॅलिकमें आरामसे जादातर ५-१० Mm of HG का फर्क दिखा।

[2/29, 12:21 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi:

 *कूष्मांड स्वरस, खीरे का जूस, तोरई, तरबूज जूस, गवार की फली, लौकी, भुट्टे के बाल का क्वाथ शीतल कर के साथ में दे, ऐसे ही मूंग दाल सूप (पंचकोल सिद्ध)। व्यायाम -भ्रमण-अपतर्पण- लंघन, पर जिस से वात वृद्धि ना हो दोषों का पाचन  और अनुलोमन हो।*

[2/29, 12:23 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi: 

*आज का मनुष्य पांच मिनट भी स्थिर नही बैठ सकता, बैठ गया भी पर शरीर स्थिर है लेकिन दिमाग तो चल रहा है, ऐसे रोगियों को मेरी तरह सामने बिठाकर 15 मिनट meditation करायें।*

[2/29, 12:24 AM] Dr Atul Kale, Pune: 

जी सर, बहुत बढियाँ 😊 🙏🏻🙏🏻

[2/29, 12:25 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi: 

*अतुल जी ऐसा कोई रोग नही जो आप ना ठीक कर सके, मात्र कुछ विशिष्ट रोगों को छोड़ कर,अच्छी quality के चतुष्पाद होने चाहिये बस।*

[2/29, 12:26 AM] Prof. Madhav Diggavi, Bellari: 

Very nice applied aspects sir... vyayamam trdoshahrut

[2/29, 5:20 AM] Dr. Arun Rathi, Akola: 

*व्यायाम :*



*शरीरचेष्टा या चेष्टा स्थैर्यार्थो बलवर्धिनी।*

*देहव्यायामसंख्याता मात्रया तां समाचरेत्।।*
च.सू.७ /३१.



*इष्टा अभिप्रेता, एतेन भारहरणाद्यानिष्टा कार्यवशात् क्रियमाणा चेष्टा निरस्यते, चक्रमणरुपा तु क्रिया प्राप्यते।*

*मात्रया अनपायिपरिमाणेन, एतावती  चेयं शरीरचेष्टा मात्रावती यावत्या लाघवादयो वक्ष्यमाणा भवन्ति, चेष्टाति योगवक्ष्यमाणाश्च श्रमभ्रमादयो न भवन्ति।*
*कल्म इह मनइन्द्रियग्लानिः।*
च.सू. ७ / ३१ पर आचार्य चक्रपाणि।



*शरीरायासजनकं कर्म व्यायाम उच्यते।*

आ. सं सू. ३ / ६२.



*व्यायाम की परिभाषा:*

*शरीर की जो चेष्टा मन के अनुकूल शरीर में स्थिरता लाने वाली और बल बढ़ाने वाली हो उसे शारीरिक व्यायाम कहते हैं। इसे उचित मात्रा में सेवन करना चाहिये ।*
*यहां पर पहले "चेष्टा" शब्द का अर्थ शारीरिक कर्म और दूसरे "चेष्टा" शब्द का च + इष्टा ऐसा पदच्छेद करके अर्थ करना चाहिए। इष्टा का अर्थ जो शारीरिक कर्म अभीष्ट हो ऐसा किया जाता है ।*
*व्यायाम शारीरिक और मानसिक भेद से दो प्रकार का होता है ।*
*इस तरह से शरीर और मनोsनुकूल चेष्टा को व्यायाम बतलाया है।*
*आचार्य चक्रपाणि भार वाहन आदि चेष्टा को व्यायाम से अलग करते हैं और चंक्रमण ( पैदल चलना ) को व्यायाम के अधीन लेते हैं ।*
*मात्रावत व्यायाम कहा है इसका अर्थ होता है जो शरीर और मन के लिए हानिकारक ना हो ।*
*यहां पर श्रम से शारीरिक थकान और कल्म से मानसिक थकान लेना चाहिये।*



*व्यायाम से लाभ :*



*लाघवंं कर्म सामर्थ्यं स्थैर्यं दुःखसहिष्णुता।*

*दोषक्षयोsग्निवृध्दिश्च व्यायामदुपजायते।।*
च.सू.अ.७ / ३२.

*दोषक्षयोsत्र श्लेष्मक्षयोsभिप्रेतः, यदि वाsग्निकर्तृत्वेन त्रिदोषक्षयोsपि।*

च. सू. अ. ७ /३२ पर आचार्य चक्रपाणि.

*लाघवं कर्मसामर्थ्य दीप्तोsग्निर्मेदसः क्षयः।*
*विभक्तघनगात्रत्वं व्यायामदुपजायते।*
अ. हृ. सू. अ. २ / १०.



*सम्यक व्यायाम लक्षण :*



*स्वेदागमः  श्वासवृध्दिर्गात्राणां लाघवं तथा।*

*हृदयोद्युपरोघश्च इति व्यायामलक्षणम्।।*
च. सू. अ. ७ योगीन्द्रनाथ सेन संमतोsयं पाठः



*अधिक व्यायाम से हानि :*



*श्रमः क्लमः क्षयस्तृष्णा रक्तपित्तं प्रतामकः।*

*अतिव्यायामतः कासो ज्वरश्छर्दिश्च जायते।।*
च. सू. अ. ७ / ३३.



*एतानेवंविधाश्चान्यान् योsतिमात्रं निषेवते।*

*गंज सिंह इवाकर्षन् सहसा स विनश्यति।।*

च. सू. अ. ७ / ३५.



*आमदोष एवं व्यायाम संबन्ध :*



*विरुध्दाहारचेष्टस्य मन्दग्नेर्निश्चलस्य च।*

*स्निग्धं भुक्तवतो ह्यन्नं व्यायाम कुर्वतस्तथा।।*
*वायुना प्रेरितो ह्यामः श्लेष्मस्थानं प्रधावति।*
मा. नि. आमवातनिदानम् .



*विरुध्दाहारः संयोगादिविरुध्दः विरुध्दा च चेष्टा यथा अजीर्णे व्यायामव्यवायजलप्रतरणादि।*

*स्निग्धं भुक्तवतो व्यायामं कुर्वत इतिमिलितो हेतुः, नपृथकत्वेन।*
मा. नि. आमवातनिदानम् पर टिका.



*व्यायाम को समग्र रुप से समझने के लिए चरक सूत्र. आ. ७, सुश्रुत चि. आ. २४, आ. हृदय सूत्र. आ. २, आ. संग्रह सूत्र. आ. ३ एवं माधवनिदानम् का आमवातनिदान आध्याय कम से कम पढना आवश्यक है।*

*व्यायाम से लाभ अर्जित हो इस के लिए आहार पचन अवस्था, प्रकृति, ऋतु, वय आदि बहोत से बिन्दुओं पर ध्यान देकर ऋतुचर्या और दिनचर्या की युक्ति पुर्वक योजना करनी चाहिए, अन्यथा इससे लाभ की जगह हानी होने की संभावना अधिक होती है।*

[2/29, 5:54 AM] Dr. Arun Rathi, Akola:

 *व्यायाम के अयोग्य व्यक्ति :*



*अतिव्यवायभाराध्वकर्मभिश्चातिकर्शिताः।*

*क्रोधशोकभयायासैः क्रान्ता ये चापि मानवा।।*
*बालवृद्धप्रवाताश्च ये चोच्चोर्बहुभाषकाः।*
*ते वर्जयेयुर्व्यायामं क्षुधितास्तृषिताश्च ये।।*
च. सू.आ. ७. योगीन्द्रनाथ सेन संमतोsयं पाठः।
*इसके अलाव व्यायाम के अधिक करने से होनेवाले रोगों से अगर व्यक्ति पिडित हो तो वह भी व्यायाम करने के अयोग्य होता है।*

[2/29, 6:40 AM] Dr. Ajit Kumar Ojha: 

लाघवं कर्मसामर्थ्यं स्थैर्यं दुःखसहिष्णु१ता ।
दोषक्षयोऽग्निवृद्धिश्च व्यायामादुपजायते ॥



दोषक्षयोऽत्र श्लेष्मक्षयोऽभिप्रेतः; यदि वाऽग्निकर्तृत्वेन iत्रिदोषक्षयोऽपि। उक्तं हि- शमप्रकोपौ दोषाणां सर्वेषामग्निसंश्रितौ इति। व्यायामातिप्रवृत्तिदोषमाह- श्रम इत्यादि।  चक्रपाणी टीका ।


[2/29, 7:03 AM] pawan madan Dr:

 Arun ji



बढ़िया संकलन।

👏🏻👏🏻👏🏻








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Above case presentation & follow-up discussion held in 'Kaysampraday" a Famous WhatsApp group  of  well known Vaidyas from all over the India. 




Presented by










Vaidyaraj Subhash Sharma
MD (Kaya-chikitsa)

New Delhi, India

email- vaidyaraja@yahoo.co.in



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[1/20, 00:13] Vd. Subhash Sharma Ji Delhi:  1 *case presentations -  पित्ताश्य अश्मरी ( cholelithiasis) 4 रोगी, including fatty liver gr. 3 , ovarian cyst = संग स्रोतोदुष्टि* *पित्ताश्य अश्मरी का आयुर्वेद में उल्लेख नही है और ना ही पित्ताश्य में gall bladder का, आधुनिक चिकित्सा में इसकी औषधियों से चिकित्सा संभव नही है अत: वहां शल्य ही एकमात्र चिकित्सा है।* *पित्ताश्याश्मरी कि चिकित्सा कोई साधारण कार्य नही है क्योंकि जिस कार्य में शल्य चिकित्सा ही विकल्प हो वहां हम औषधियों से सर्जरी का कार्य कर रहे है जिसमें रोगी लाभ तो चाहता है पर पूर्ण सहयोग नही करता।* *पित्ताश्याश्मरी की चिकित्सा से पहले इसके आयुर्वेदीय दृष्टिकोण और गर्भ में छुपे  सूत्र रूप में मूल सिद्धान्तों को जानना आवश्यक है, यदि आप modern पक्ष के अनुसार चलेंगें तो चिकित्सा नही कर सकेंगे,modern की जरूरत हमें investigations और emergency में शूलनाशक औषधियों के रूप में ही पड़ती है।* *पित्ताश्याशमरी है तो पित्त स्थान की मगर इसके निदान में हमें मिले रोगियों में मुख्य दोष कफ है ...* *गुरूशीतमृदुस्निग...

Case-presentation: Management of Various Types of Kushtha (Skin-disorders) by Prof. M. B. Gururaja

Admin note:  Prof. M.B. Gururaja Sir is well-known Academician as well as Clinician in south western India who has very vast experience in treatment of various Dermatological disorders. He regularly share cases in 'Kaysampraday group'. This time he shared cases in bulk and Ayu. practitioners and students are advised to understand individual basic samprapti of patient as per 'Rogi-roga-pariksha-vidhi' whenever they get opportunity to treat such patients rather than just using illustrated drugs in the post. As number of cases are very high so it's difficult to frame samprapti of each case. Pathyakram mentioned/used should also be applied as per the condition of 'Rogi and Rog'. He used the drugs as per availability in his area and that to be understood as per the ingredients described. It's very important that he used only 'Shaman-chikitsa' in treatment.  Prof. Surendra A. Soni ®®®®®®®®®®®®®®®®®®®®®®® Case 1 case of psoriasis... In this ...

Case presentation: Vrikkashmari (Renal-stone)

On 27th November 2017, a 42 yrs. old patient came to Dept. of Kaya-chikitsa, OPD No. 4 at Govt. Ayu. College & Hospital, Vadodara, Gujarat with following complaints...... 1. Progressive pain in right flank since 5 days 2. Burning micturation 3. Dysuria 4. Polyuria No nausea/vomitting/fever/oedema etc were noted. On interrogation he revealed that he had h/o recurrent renal stone & lithotripsy was done 4 yrs. back. He had a recent 5 days old  USG report showing 11.5 mm stone at right vesicoureteric junction. He was advised surgery immediately by urologist. Following management was advised to him for 2 days with informing about the possibility of probable emergency etc. 1. Just before meal(Apankal) Ajamodadi choorna     - 6 gms. Sarjika kshar                - 1 gm. Muktashukti bhasma    - 250 mgs. Giloyasattva                 - 500 mgs...

WhatsApp Discussion Series: 24 - Discussion on Cerebral Thrombosis by Prof. S. N. Ojha, Prof. Ramakant Sharma 'Chulet', Dr. D. C. Katoch, Dr. Amit Nakanekar, Dr. Amol Jadhav & Others

[14/08 21:17] Amol Jadhav Dr. Ay. Pth:  What should be our approach towards... Headache with cranial nerve palsies.... Please guide... [14/08 21:31] satyendra ojha sir:  Nervous System Disorders »  Neurological Disorders Headache What is a headache? A headache is pain or discomfort in the head or face area. Headaches vary greatly in terms of pain location, pain intensity, and how frequently they occur. As a result of this variation, several categories of headache have been created by the International Headache Society (IHS) to more precisely define specific types of headaches. What aches when you have a headache? There are several areas in the head that can hurt when you have a headache, including the following: a network of nerves that extends over the scalp certain nerves in the face, mouth, and throat muscles of the head blood vessels found along the surface and at the base of the brain (these contain ...

WhatsApp Discussion Series:18- "Xanthelasma" An Ayurveda Perspective by Prof. Sanjay Lungare, Vd. Anupama Patra, Vd. Trivendra Sharma, Vd. Bharat Padhar & others

[20/06 15:57] Khyati Sood Vd.  KC:  white elevated patches on eyelid.......Age 35 yrs...no itching.... no burning.......... What could be the probable diagnosis and treatment according Ayurveda..? [20/06 16:07] J K Pandey Dr. Lukhnau:  Its tough to name it in ayu..it must fall pakshmgat rog or wartmgat rog.. bt I doubt any pothki aklinn vartm aur klinn vartm or any kafaj vydhi can be correlated to xanthelasma..coz it doesnt itch or pain.. So Shalakya experts may hav a say in ayurvedic dignosis of this [20/06 16:23] Gururaja Bose Dr:  It is xantholesma, some underline liver and cholesterol pathology will be there. [20/06 16:28] Sudhir Turi Dr. Nidan Mogha:  Its xantholesma.. [20/06 16:54] J K Pandey Dr. Lukhnau:  I think madam khyati has asked for ayur dignosis.. [20/06 16:55] J K Pandey Dr. Lukhnau:  Its xanthelasma due to cholestrolemia..bt here we r to diagno...

WhatsApp Discussion Series 47: 'Hem-garbh-pottali-ras'- Clinical Uses by Vd. M. Gopikrishnan, Vd. Upendra Dixit, Vd. Vivek Savant, Prof. Ranjit Nimbalkar, Prof. Hrishikesh Mhetre, Vd. Tapan Vaidya, Vd. Chandrakant Joshi and Others.

[11/1, 00:57] Tapan Vaidya:  Today morning I experienced a wonderful result in a gasping ILD pt. I, for the first time in my life used Hemgarbhpottali rasa. His pulse was 120 and O2 saturation 55! After Hemgarbhapottali administration within 10 minutes pulse came dwn to 108 and O2 saturation 89 !! I repeated the Matra in the noon with addition of Trailokyachintamani Rasa as advised by Panditji. Again O2 saturation went to 39 in evening. Third dose was given. This time O2  saturation did not responded. Just before few minutes after a futile CPR I hd to declare him dead. But the result with HGP was astonishing i must admit. [11/1, 06:13] Mayur Surana Dr.:  [11/1, 06:19] M gopikrishnan Dr.: [11/1, 06:22] Vd.Vivek savant:         Last 10 days i got very good result of hemgarbh matra in Aatyayik chikitsa. Regular pt due to Apathya sevan of 250 gm dadhi (freez) get attack asthmatic t...

DIFFERENCES IN PATHOGENESIS OF PRAMEHA, ATISTHOOLA AND URUSTAMBHA MAINLY AS PER INVOLVEMENT OF MEDODHATU

Compiled  by Dr.Surendra A. Soni M.D.,PhD (KC) Associate Professor Dept. of Kaya-chikitsa Govt. Ayurveda College Vadodara Gujarat, India. Email: surendraasoni@gmail.com Mobile No. +91 9408441150

UNDERSTANDING THE DIFFERENTIATION OF RAKTAPITTA, AMLAPITTA & SHEETAPITTA

UNDERSTANDING OF RAKTAPITTA, AMLAPITTA  & SHEETAPITTA  AS PER  VARIOUS  CLASSICAL  ASPECTS MENTIONED  IN  AYURVEDA. Compiled  by Dr. Surendra A. Soni M.D.,PhD (KC) Associate Professor Head of the Department Dept. of Kaya-chikitsa Govt. Ayurveda College Vadodara Gujarat, India. Email: surendraasoni@gmail.com Mobile No. +91 9408441150

Case-presentation- Self-medication induced 'Urdhwaga-raktapitta'.

This is a c/o SELF MEDICATION INDUCED 'Urdhwaga Raktapitta'.  Patient had hyperlipidemia and he started to take the Ayurvedic herbs Ginger (Aardrak), Garlic (Rason) & Turmeric (Haridra) without expertise Ayurveda consultation. Patient got rid of hyperlipidemia but hemoptysis (Rakta-shtheevan) started that didn't respond to any modern drug. No abnormality has been detected in various laboratorical-investigations. Video recording on First visit in Govt. Ayu. Hospital, Pani-gate, Vadodara.   He was given treatment on line of  'Urdhwaga-rakta-pitta'.  On 5th day of treatment he was almost symptom free but consumed certain fast food and symptoms reoccurred but again in next five days he gets cured from hemoptysis (Rakta-shtheevan). Treatment given as per availability in OPD Dispensary at Govt. Ayurveda College hospital... 1.Sitopaladi Choorna-   6 gms SwarnmakshikBhasma-  125mg MuktashuktiBhasma-500mg   Giloy-sattv...

Case-presentation: 'रेवती ग्रहबाधा चिकित्सा' (Ayu. Paediatric Management with ancient rarely used 'Grah-badha' Diagnostic Methodology) by Vd. Rajanikant Patel

[2/25, 6:47 PM] Vd Rajnikant Patel, Surat:  रेवती ग्रह पीड़ित बालक की आयुर्वेदिक चिकित्सा:- यह बच्चा 1 साल की आयु वाला और 3 किलोग्राम वजन वाला आयुर्वेदिक सारवार लेने हेतु आया जब आया तब उसका हीमोग्लोबिन सिर्फ 3 था और परिवार गरीब होने के कारण कोई चिकित्सा कराने में असमर्थ था तो किसीने कहा कि आयुर्वेद सारवार चालू करो और हमारे पास आया । मेने रेवती ग्रह का निदान किया और ग्रह चिकित्सा शुरू की।(सुश्रुत संहिता) चिकित्सा :- अग्निमंथ, वरुण, परिभद्र, हरिद्रा, करंज इनका सम भाग चूर्ण(कश्यप संहिता) लेके रोज क्वाथ बनाके पूरे शरीर पर 30 मिनिट तक सुबह शाम सिंचन ओर सिंचन करने के पश्चात Ulundhu tailam (यह SDM सिद्धा कंपनी का तेल है जिसमे प्रमुख द्रव्य उडद का तेल है)से सर्व शरीर अभ्यंग कराया ओर अभ्यंग के पश्चात वचा,निम्ब पत्र, सरसो,बिल्ली की विष्टा ओर घोड़े के विष्टा(भैषज्य रत्नावली) से सर्व शरीर मे धूप 10-15मिनिट सुबज शाम। माता को स्तन्य शुद्धि करने की लिए त्रिफला, त्रिकटु, पिप्पली, पाठा, यस्टिमधु, वचा, जम्बू फल, देवदारु ओर सरसो इनका समभाग चूर्ण मधु के साथ सुबह शाम (कश्यप संहिता) 15 दिन की चिकित्सा के ...