[4/10, 12:45 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*case presentation -
दुष्ट व्रण चिकित्सा में भल्लातक का प्रयोग ...
वैद्यराज सुभाष शर्मा, एम.डी. (काय चिकित्सा - जामनगर)*
*मेरे जैसे एक काय चिकित्सक के लिये दुष्ट व्रण की चिकित्सा पराधिकार का विषय है पर अनेक बार धन्वंतरि अधिकार क्षेत्र के रोगियों की चिकित्सा भी धर्म बन जाती है।
'यतो गतिं विद्यादुत्सङ्गो यत्र यत्र च तत्र तत्र व्रणं कुर्याद्यथा दोषो न तिष्ठति'
सु सू 5/12 -
रोग ग्रस्त जिस जिस स्थान पर दोष अर्थात पूय की गति और उभरा हुआ स्थान मिले उस स्थान पर शस्त्र से चीरा लगा देना चाहिये जिस से पूय अर्थात दोष मासं आदि गंभीर धातुओं में ना रह सके।*
[4/10, 12:45 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*रोगी ने एक प्रतिष्ठित अस्पताल में इसकी चिकित्सा कराई पर रोग तो जीर्ण होने ही लगा और अधिक antibiotic और anti-inflammatory औषध के कारण शरीर के अनेक पैरामीटर रिपोर्ट में खराब आने लगे तब रोगी हमारे पास आया।*
*पहले दिन की चिकित्सा के चित्र से क्रमिक सुधार किस प्रकार आया, देखते हैं।*
[4/10, 12:45 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*अन्यथा तु सिरास्नायुच्छेदनम्, अतिमात्रं वेदना, चिराद्व्रणसंरोहो, मांसकन्दीप्रादुर्भावश्चेति'
सु सू 5/13 -
यदि छेदन सही प्रकार से ना हो तो सिरा और स्नायु की संभावना अधिक रहती है, मांस का कंद अर्थात गांठ बन जाती हैं, व्रण चिरकाल में भरता है और रोगी को पीड़ा भी अधिक होती है।*
[4/10, 12:45 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*'कषाय से व्रण का प्रक्षालन, शुद्ध वस्त्र से कषाय साफ कर तिल कल्क, मधु और सर्पि से लिप्त करना, संशोधन औषध युक्त वर्ति रखना और रूई रख कर पट्टी बांध देना'
सु सू 5/10*
[4/10, 12:45 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*व्रण में धूपन -
गुग्गुलु, अगर, राल, वचा, सफेद सरसों, लवण, निम्ब पत्र और घृत से धूपन।*
*तीसरे दिन पट्टी खोलना ।*
[4/10, 12:45 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*व्रण रोग में हम उन्ही रोगियों की चिकित्सा करते हैं जहां दुष्ट व्रण हो,रोगी के लिये शल्य चिकित्सा ही माध्यम रह जाये। ऐसे रोगियों में हम भल्लातक तैल एक छोटा बिंदु के समान जितना आधा सुई को तैल में डुबो कर 1/2 कप गर्म गौदुग्ध में मिश्रित कर एवं 5 gm गौघृत मिलाकर दिन में एक बार पान कराते हैं, यह क्रम सात दिन चलता है फिर 5 दिन विश्राम दे कर पुनः करते है।*
[4/10, 12:45 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*भल्लातक तैल कै प्रयोग भल्लातक की विभिन्न कल्पनाओं में 'भल्लातकसर्पिः, भल्लातकक्षीरं, भल्लातकक्षौद्रं, गुडभल्लातकं, भल्लातकयूषः, भल्लातकतैलं, भल्लातकपललं, भल्लातकसक्तवः'
च चि 1.3/16 में प्रयोग करने के लिये कहा है।*
[4/10, 12:45 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*इस अवधि में सामान्यतः पंचनिम्ब चूर्ण, महासुदर्शन चूर्ण, शरपुंखा चूर्ण, गंधक रसायन आदि कोई औषध रोगीवस्थानुसार साथ में दी जाती हैं।*
*भल्लातक की एक नहीं अनेक विशेषतायें हैं।
भल्लातकफलंपक्वं स्वादुपाकरसं लघु कषायं पाचनं स्निग्धं तीक्ष्णोष्णं छेदिभेदनम् '
भा प्र हरीतक्यादि वर्ग 229,
और इसका स्थान संहिताओं में देखें तो चरक में इसे कषाय स्कंध में रखा गया है, यह कषाय, मधुर, लघु, उष्ण, तीक्ष्ण और छेदन-भेदन करने वाला आग्नेय द्रव्य है।*
[4/10, 12:45 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*अब रोगी लगभग स्वस्थ हो चुका है चिकित्सा मात्र अंतिम चरण में नाममात्र के लिये रह गई है।*
[4/10, 12:45 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*इसमे विभिन्न मार्गों से गुण और कर्म इस प्रकार मिले हुये हैं कि यह एक दिव्य और अलौकिक द्रव्य बन गया है जिसको समझने के लिये एक अलग ही तल और दृष्टिकोण बना कर समझा जा सकता है। केवल इसके कषाय रस को ही ले लीजिये
'कषायो रसः संशमनः सङ्ग्राही सन्धानकरः पीडनो रोपणः शोषणः स्तम्भनः श्लेष्मरक्तपित्तप्रशमनः शरीरक्लेदस्योपयोक्ता रूक्षः शीतोऽलघुश्च'
च सू 26/43
कषाय रस दोषों का शमन करता है, संधान करने वाला और संग्राही, अगर व्रण हो तो उसकी पूय को बाहर निकालता है, रोपण कर्म करता है, शोषण कर के सुखाता है, कफ, रक्त और पित्त का प्रशमन करता है, शरीर में क्लेद का चोषण कर लेता है, रूक्ष, शीत और लघु होता है। इस रस की विशेषता है कि यह वायु और पृथ्वी महाभूत से बनता है और अतिशीघ्र घाव को भर देता है।*
[4/10, 12:54 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*हमारे संहिता ग्रन्थ चिकित्सा ज्ञान का अथाह समुद्र है और आप इनका निरंतर अध्ययन कर तथा आप्त संहिता एवं टीकाकारों के वचनों को गंभीरता से समझ कर असाध्य रोगों की चिकित्सा में भी समर्थ बन सकते हैं।हमारे शास्त्र ज्ञान चक्षुओं को खोल कर हमें चिकित्सा के क्षेत्र में समर्थ और सक्षम कर यशस्वी बनाते है।*
[4/10, 12:57 AM] Isha Anjna Hisar:
Bhallatak tail available na ho to bhallatak capsule use kar sakte hai sir
[4/10, 1:02 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*अवश्य करिये, कई बार रोगियों को ऐसी अवस्था में हम यही देते है । एक एक कैपसूल भोजन के एक घंटे बाद जल से दिन में दो बार।*
*कई बार रोगी को दूध पीने से आमोत्पत्ति हो कर मल प्रवृत्ति अनेक बार होती है तब भी हम भल्लातक वटी या कैपसूल के रूप में ही देते हैं।*
[4/10, 1:04 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*ग्रीष्म ऋतु में भल्लातक प्रयोग करते समय नारियल पानी देते रहिये नहीं तो आतप सेवन से रोगी असहज हो जाते हैं।*
[4/10, 1:04 AM] Isha Anjna Hisar: Ji
[4/10, 1:05 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*आधुनिक immunotherapy सब को सात्म्य नही होती जो कैंसर मे दी जाती है, भल्लातक रसायन भी नही देनी चाहिये यही तो बता रहे हैं ।*
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Above case presentation & follow-up discussion held in 'Kaysampraday (Discussion)' a Famous WhatsApp group of well known Vaidyas from all over the India.****************************************************************************************************************************************************************
Presented by-
Vaidyaraja Subhash Sharma
MD (Kaya-chikitsa)
New Delhi, India
email- vaidyaraja@yahoo.co.in
Compiled & Uploaded by-
Vd. Rituraj Verma
B. A. M. S.
Shri Dadaji Ayurveda & Panchakarma Center,
Khandawa, M.P., India.
Mobile No.:-
+91 9669793990,
+91 9617617746
Edited by-
Dr. Surendra A. Soni
M.D., PhD (KC)
Professor & Head
P.G. Dept of Kayachikitsa
Govt. Akhandanand Ayurveda College
Ahmedabad, Gujarat, India.
Email: kayachikitsagau@gmail.com
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