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WDS 100 : 'Tri-marm'- Ayurveda Aspect on Potassium by Vaidyaraja Subhash Sharma, Prof. Mohan Lal Jaysawal, Prof. Giriraj Sharma & Others.

[7/29, 1:05 AM] Vaidyaraja Subhash Sharma:

 
*त्रिमर्म - 

ह्रदय, बस्ति और शिर ... 

इन पर चर्चा की जाये तो कैसा रहे ? आयुर्वेद दोष-दूष्यों पर मूलतः आधारित है, अव्यवों पर जायेंगे तो तो जब यह लिखा था x-ray, USG, MRI और CT नही था कैसे सिद्ध या सिद्धान्त स्थापित करेंगे ?*

*कर सकते हैं हम सब और यह team work है अगर हमें सर्वश्रेष्ठ शारीरविद् प्रो.गिरिराज जी का साथ मिल जाये और ग्रुप के कुछ selected विद्वान भी सहयोग दें तो यह कार्य संभव है।*

*अनर्थक अनेक विषयों से बाहर आ कर हम उन पर भी चर्चा करें जिनसे रोगियों का आधुनिक जीवन में भला होकर उनके गंभीर रोगों से मुक्ति मिले।*

[7/29, 1:08 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma: 

*@आचार्य गिरिराज जी 🙏🌹* 👆🏿

[7/29, 1:11 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma: 

*आयुर्वेद औषध का ब्रेन बैरियर cross करना, DVT, ह्रदय की ब्लॉकेज दूर करना, ब्रेन में clot को समाप्त करना ... यह वर्तमान की गंभीर समस्यायें है और आयुर्वेद का इनमें महत्वपूर्ण योगदान है.. इन पर भी चर्चा करना बनता और हम आयुर्वेदीय सिद्धान्त स्थापित कर सकते हैं।*


*आचार्य डल्हण और चक्रपाणि ने इन पर सूत्र रूप में बहुत कुछ स्पष्ट किया है।*

[7/29, 1:42 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma: 

*अनेक रोग practical भी मिलते हैं और हमें जबरदस्ती उन्हे पुराने रोगों में समावेश ना कर के उन की अलग से सम्प्राप्ति बना कर उनका अलग ही उल्लेख कर लेने में कोई हानि नही है।*

[7/29, 5:18 AM] Vaidya Sanjay P. Chhajed: 

It's an excellent thought sir, as there is a close relationship between  the functionality of tri marma, that is reflected in Nadi. Very much evident in ch. Su. 30 & ch. Si. 9

[7/29, 6:42 AM] Vd Shailendra Mehta: 

बहुत ही उत्साह एवं ज्ञान वर्धक,,,विषय है,

आदरणीय गुरुदेवश्री🙏🏻🙏🏻

[7/29, 10:16 AM] Prof. Madhava Diggavi Sir: 

Ji sir ..this is the need of hour.

[7/29, 10:50 AM] Vd. Mohan Lal Jaiswal:

 ऊँ
हृदय वाहिकाओं के अवरोध को   स्वामी रघुनाथानन्द अवधूत  
जी (डी.लिट.)  ने काशी   आश्रम में एक रुग्ण को "क्षीरमर्कस्य विज्ञेयं वमने स विरेचने" च.सू. के आधार पर नियताहार, नियन्त्रित पथ्यापथ्य पर रखते हुये  इससे वमन व विरेचन कराकर दूर करते हुये इस चरकीय सूत्र की व्यवहारिक उपयोगिता बतायी थी।
बाद में रुग्ण ने दिल्ली में एन्जिग्राफी 
करवायी तो सारे ब्लाकेज समाप्त हो गये थे।


[7/29, 5:52 PM] Dr Arun Tiwari: 

आचार्य 🙏अर्थेदशमहामूलीयोऽध्यायः
यदि इस अध्याय को ठीक समझ लें तो हृदय मस्तिष्क वात के बारे में बहुत सी भ्रांतियां दूर हो सकती हैं।🙏

[7/29, 10:15 PM] Dr.Deepika: 

सभी आदरणीय गुरुजनों को सादर प्रणाम, त्रि-मर्म विषयक कल गुरू जी द्वारा लिखा गया था
इस विषय पे कुछ अध्ययन कर के लिखने का प्रयास कर रही हूं
कुछ गलती हो तो क्षमा किजिए एवम सुधार किजिए
बस्ती इस वात प्रधान सद्यो pranhar मर्म
हृदय इस पित्त प्रधान सद्यो pranhar मर्म
शिर is कफ प्रधान सद्यो pranhar मर्म
Anatomy of kidney
They occupy retroperitoneal space on either side of vertebral column from D१२ to L३ vertebrae
Kidney receives blood supply from renal artery which arises from the aorta
Renal veins drain into inferior vena cava
Urine specific gravity १.०१०-१.०२०
वृक्क is derived from मातृ भाव
रक्त med प्रसाद भाग
मर्म related to vrikk are
वस्ति मर्म
कुकुंदर
नितंब
Lohitaksh
Vitap मर्म
नितंब मर्म is अस्थि मर्म
Can be effected in bone disease when kidney fail to maintain the proper level of calcium and phosphorus in blood

लोहिताक्ष is सिरा मर्म
Can be effected in vascular renal disorders

Vitap मर्म
स्नायु मर्म ,injury can affect the nerves path way to mutr वह srotus
🙏🙏

[7/29, 10:32 PM] Prof. Giriraj Sharma: 

माननीया !
मर्म, दोष के परिपेक्ष्य में शास्त्र में वर्णित नही है ।
मर्म पंचमहाभूतात्मक वर्णित है ।

[7/30, 8:20 AM] Dr.Deepika: 

सादर प्रणाम सर, आपका कथन सत्य है, परंतु दोष स्थान के according देखे तो adho नाभी वात,udharv jatru में कफ स्थान ऐसा बताया है, इसलिए लिखा है, बाक़ी आप बता दिजिए सर ।🙏🙏🙏

[7/30, 12:40 PM] Prof. Giriraj Sharma: 

नमस्कार 
सिद्धांततः मर्म, दोष स्थान नही है प्राण के स्थान है ।
परंतु वर्तमान में हम लोग सिद्धांत कम और सुविधात्मक अध्ययन अध्यापन चिकित्सा में ज्यादा रुचि रखते है। जिसे कुछ आचार्य व्यवहारिक भी मानते है ।
हृदय बस्ती शिर मर्म का उल्लेख करते है तो आचार्य उनका अंगुल प्रमाण का भी उल्लेख करते है जो यह इंगित करता है कि सम्पूर्ण अंग का स्थान विशेष ही मर्म है पूरा अंग नही,,,
मर्म को विशेष स्थान ही समझना चाहिए,,, ।।
शस्त्र सम्मत और व्यवहारिक अनुभूत सम्मत में काफी विरोधाभास प्रतीत होता है ।
परंतु जिस विधा से जिस उपक्रम से आतुर की व्याधि का शमन हो वो ही श्रेष्ठ है ,,,
याभि क्रियाभि,,, धातवा समा , ,, सा चिकित्सा
🙏🏻🙏🏻🌹🙏🏻🙏🏻

[7/30, 2:32 PM] Dr.Deepika: 

सुधार के लिए आभार सर 🙏🙏

[8/2, 1:03 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma: 

*त्रिविध मर्म प्रकरण-
 
द्वि वृक्कौ-ह्रदय विकारों में पोटाशियम एवं सोडियम का त्रिदोषानुसार मूल्यांकन एवं आयुर्वेदीय सिद्धान्तानुसार गुण-कर्म*

*भाग - 1 - पोटाशियम*
*वैद्यराज सुभाष शर्मा , एम.डी.(आयुर्वेद)*

*(Disclaimer: यहां दिये विचारों में बहुत सा चिंतन हमारा व्यक्तिगत और मौलिक है और सभी का सहमत होना आवश्यक नहीं, यह आयुर्वेद में हमारा निजी अनुसंधान है।*)

*शरीर में अपने धातुओं के पोषण को बनाए रखने के लिए कई खनिजों (minerals) की भी आवश्यकता होती है। खनिजों का उपयोग विभिन्न प्रकार की शारीरिक प्रक्रियाओं जैसे रक्त और अस्थि के निर्माण, धातु पाक या हार्मोन बनाने, ह्रदय गति को नियंत्रित करने आदि के लिए आज कल तो किया जाता ही है।*

 *खनिज दो प्रकार के होते हैं...*

*macrominerals - अधिक मात्रा में मैक्रोमिनरल की आवश्यकता होती है।*
*trace minerals - इन खनिजों की बहुत कम मात्रा में आवश्यकता होती है।*

*मैक्रोमिनरल्स कैल्शियम, फास्फोरस, मैग्नीशियम, सोडियम, पोटेशियम, क्लोराइड और सल्फर हैं।*

 *trace minerals या खनिज लोहा, मैंगनीज, तांबा, आयोडीन, जस्ता, कोबाल्ट, फ्लोराइड और सेलेनियम हैं।*

*महागद मात्र 8  नहीं हैं, chronic kidney disease/ renal failure अथवा वृक्कौ दुष्टि भी एक महागद है। तभी इसकी चिकित्सा इतनी सरल नही है जैसा सब समझते है। एक बार S. creatnine कम आ भी गया तो वह पुनः बढ़ कर dialysis की अवस्था तक पहुंचा देगा क्योंकि रोगी ने आलू, खीरा, पालक, avocado, सेम या beans, टमाटर, ब्रोकली, पत्तेदार सब्जियां, फूलगोभी, चुकंदर, गाजर, मसूर की दाल, सीताफल, zucchini, खरबूजा, अंकुरित दालें सेवन की तो तुरंत ही s.creatnine की वृद्धि हो जायेगी। क्योंकि वृक्कौं की क्रिया के सामान्य और असामान्य ज्ञान के लिये हमें आधुनिक संसाधनों पर निर्भर होना पड़ता है तो अधिकतर लोग सिंथेटिक रूप में आहार के रूप में जो खनिज या minerals सेवन कर रहे है, hybrid फल, शाक या टॉनिक ले रहे हैं तो उन सब का ज्ञान आयुर्वेद तल पर ले कर चलें तभी आप वृक्कौं में होने वाली दुष्टि और चिकित्सा को जान कर चिकित्सा कर पायेंगे।*

*सु शा 9/6 में 

‘अधोगमास्तु वातमूत्रपुरीष...तोयवहे द्वै, मूत्रबस्तिमभिप्रपन्ने मूत्रवहे द्वे’ 

मूत्रोत्पत्ति का स्थान आमाश्य-पक्वाश्य बताया है कि किस प्रकार आहार जलीयांश प्रधान किट्ट का अंश मूत्र विभिन्न स्रोतों द्वारा बस्ति प्रदेश में संग्रहीत हो जाता है।*

*आमाशय-पक्वाशय - 

खनिज (minerals) इनका सेवन, पाचन, पोषण,शरीर से निर्हरण साथ ही अति मात्रा में एकत्रित हो कर संग्रहण तो नहीं हो रहा इस सब को हमने आयुर्वेदीय तल पर समझा जिसका एक उदाहरण पोटाशियम के रूप में ये रहा ..*

*potassium - 

इसकी पंचभौतिकता - वात, पित्त और कफ वर्ग में इसका वर्गीकरण - आयुर्वेद सिद्धान्तों के अनुसार इस पर एक चिंतन एवं अध्ययन *

*सभी द्रव्य पंचभौतिक हैं एवं त्रिदोष पर कार्य करते है जिस से हम उन्हें वात, पित्त या कफ वर्ग में रख सकते है... इस मत को हम यहां ले कर चले हैं ।*

*पोटाशियम शब्द की उत्पत्ति - 

 पोटाशियम अंग्रेजी नाम 'पोटाश' शब्द से बना है, जो विभिन्न पोटाशियम लवण निकालने की एक प्रारंभिक विधि के परिपेक्ष्य में है जैसे जली हुई लकड़ी या पेड़ के पत्तों की राख को एक बर्तन में रखना, जल में मिश्रित करना, उसे गर्म करना और घोल को वाष्पित करना, यह सब आयुर्वेद में विभिन्न क्षार बनाने की प्रक्रिया के रूप मे  आयुर्वेद में सांकड़ों वर्षों से चली आ रही प्रक्रिया है। जब हम्फ्री डेवी वैज्ञानिक ने पहली बार 1807 में इलेक्ट्रोलिसिस का उपयोग करके शुद्ध एकल तत्व को अलग किया, तो उन्होंने इसे पोटाशियम नाम दिया, जिसे उन्होंने पोटाश शब्द से लिया था ।*

*वैज्ञानिक भाषा में यह प्रतीक K अक्षर से भी लिखा जाता है जो कलियम है और मूल शब्द क्षार से है जो एक अरबी वानस्पतिक पौधा अल-कल्याह 'पौधे की राख' के संदर्भ में है।पोटाश उस पौधे की वृद्धि का उत्पाद नहीं था, लेकिन वास्तव में इसमें एक नया तत्व था। 1809 में पोटाशियम के लिए कलियम नाम का प्रस्ताव रखा । अंग्रेजी और फ्रेंच भाषी देशों ने डेवी और गे-लुसाक/थेनार्ड के नाम पोटेशियम को अपनाया, जबकि जर्मनिक देशों ने गिल्बर्ट/क्लैप्रोथ के नाम कलियम को अपनाया । गोल्ड बुक ने आधिकारिक रासायनिक प्रतीक को K के रूप में नामित किया है । *

*रस - षड् रसों मधुर अम्ल लवण कटु तिक्त कषाय में से यह त्रिविध रस युक्त है, पोटेशियम आयनों के तनु विलयन का स्वाद मधुर होता है, जिससे दूध और रस में मध्यम सांद्रता होती है, जबकि अति सांद्रता आशुकारी हो कर तिक्त एवं क्षारीय हो जाती है, और अंत में इसका रस लवण हो जाता है।*

*पोटाशियम का गुण धर्म-*
*रस - लवण*
*गुण - उष्ण, तीक्ष्ण*
*वीर्य - उष्ण *
*विपाक - कटु*

*बाह्य प्रयोग - शीतल एवं लेखन।*
*कर्म- दीपन और अनुलोमन, स्वेदजनन, ज्वरघ्न, श्लेष्महर, रक्तस्कंदन का अवरोधक।*

*ह्रदय को क्षीण एवं कार्य मंद करता है, वृक्कौं पर इसका कार्य विशिष्ट रूप से होता है।*

*मधुर रस - दो प्रकार से अपना कार्य शरीर में जा कर करता हैं..*

*1- प्रत्यक्ष कर्म - 

जैसे मधुर रस मुख में आलेप कर देता है, जिव्हा पर अम्ल रस एक अलग ही शब्द रहित आनंद की प्रतीति प्रदान करता है आदि आदि।*

*2- सार्वदैहिक कर्म - 

जाठराग्नि अथवा पंच भूतों की अपनी अपनी अग्नि भूताग्नि पाक के बाद रस बल प्रदान करता है, रस से शुक्र तक समस्त धातुओं का प्रसादन करता है, तर्पण, जीवन, स्थैर्य, संघात, उपधातु जैसे स्तन्य एवं त्वक् का प्रसादन, दोषों का कोपन अथवा शमन एवं विभिन्न रोगों पर प्रत्यक्ष प्रभाव दिखाना । *

*वर्तमान समय में इसका उपयोग वमन जन्य विषमयता, गर्भ विषमयता, मूत्र विषमयता, पित्त विषमयता आदि में glucose water के रूप में सिरावेध द्वारा किया जाता हैं। दाह एवं मूर्छा में यह अति उपयोगी है।*

[8/2, 1:04 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma: 

*तिक्त रस - *

*1- प्रत्यक्ष कर्म - 

जिव्हा पर रखते ही अन्य रसों के स्वाद को दबा देना, रस ज्ञान में विलंबता प्रदान कराना, मुख वैशद्य, कंठ एवं गल प्रदेश में रूक्षता एवं शुष्कता लाना, मुख शोष।*

*2- अन्य दैहिक कर्म - 

रोम हर्ष, ज्वर, कुष्ठ, कृमि नाशक, विषध्न, रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, स्वेद, मूत्र, पुरीष का शोषक है।*

*लवण रस - *

*1- प्रत्यक्ष कर्म - 

मुख में क्लेद, मार्दव उत्पन्न करना, आमाश्य में क्लेदक कफ का सहयोगी बन कर क्लेदन कर्म मे सहायक ।*

*2- सार्वदैहिक कर्म - 

सूक्ष्म गुण से स्रोतो अवरोध दूर करना, छेदन, भेदन, संघात, मार्दव करण, पाचन कर्म करना।*

*लवण रस की विशेषता है कि यह शरीर मे जा कर शारीर लवण स्वरूप धारण कर लेता है एवं अनेक लवण संज्ञा समानगुण धर्मी लवणोंके रूप में कार्य करता है एवं अन्य लवणों को प्रोत्साहित भी करता है।*

*पोटाशियम एक खनिज धातु तत्व है जो शरीर के विभिन्न कर्मों  में महत्वपूर्ण है जैसे कि भूताग्नि के स्तर पर कर्म क्षेत्र बन कर धात्वाग्नि निर्माण में सहयोगी, शरीर में हार्मोन स्राव और क्रिया, व्यान वात इसका कार्य क्षेत्र जिसके द्वारा यह रक्तचाप और कोशिकाओं में उदक की मात्रा का नियमन करता है, तंत्रिका आवेगों का संचरण, महास्रोतस में रह कर पाचन एवं अनुलोमन कर के जठरांत्र संबंधी गतिशीलता बनाये रखता है, माधुर्य भाव, मधुर रस और और इंसुलिन चयापचय, वृक्कौं को जागृत बनाये रखना, मांसपेशियों में संकुचन और ह्रदय स्पंदन, शरीर में उदक  और इलेक्ट्रोलाइट संतुलन बना कर रखना। 60  किलो वयस्क में कुल 120  ग्राम पोटेशियम होता है। शरीर में सल्फर और क्लोरीन जितना पोटेशियम होता है, और केवल कैल्शियम और फास्फोरस अधिक प्रचुर मात्रा में होते हैं।*

*पोटाशियम का शरीर में उपयोग मूत्रवर्धक द्रव्यों के साथ संयोजन में सबसे व्यापक रूप से किया जाता है जो  सोडियम और उदक के पुनः अवशोषण को रोक देता है।*

*जीर्ण वृक्कौ दुष्टि (CKD - chronic kidney disease)  होने पर वृक्कौं  की क्षमता कम होने का मतलब है कि वृक्क शरीर से अनेक रोगियों मे पोटाशियम को पर्याप्त रूप से फिल्टर करने में सक्षम नहीं हो पा रहे हैं।*

*आयुर्वेद से इतर ग्रन्थों मे कुछ एसे आयुर्वेदीय सूत्र हैं जो आयुर्वेद में अनुसंधान का पाद बन कर अग्रिम मार्ग सुगम बना देते हैं जैसे 18 पुराणों में से हरिवंश पुराण का संदर्भ देखिये, 

हरिवंश पुराण, पर्व 1 अध्याय 40/48-58 ...*

*'रसाद् वै शोणितं जातं शोणितान्मांसमुच्यते मांसात्तु मेदसो जन्म मेदसोऽस्थीनि चैव हि अस्थ्नो मज्जा समभवन्मज्जातः शुक्रमेव च शुक्राद् गर्भः समभवद् रसमूलेन कर्मणा तत्रापां प्रथमो भागः स सौम्यो राशिरुच्यते गर्भोष्मसम्भवोऽग्निर्यो द्वितीयो राशिरुच्यते शुक्रं सोमात्मकं विद्यादार्तवं विद्धि पावकम् भागौ रसात्मकौ ह्येषां वीर्यं च शशिपावकौ 'कफवर्गे भवेच्छुक्रं पित्तवर्गे च शोणितम्' कफस्य हदयं स्थानं नाभ्यां पित्तं प्रतिष्ठितम् देहस्य मध्ये हृदयं स्थानं तन्मनसः स्मृतम् नाभिकोष्ठान्तरं यत् तु तत्र देवो हुताशनः मनः प्रजापतिर्ज्ञेयः कफः सोमो विभाव्यते पित्तमग्निः स्मृतं ह्येतदग्नीषोमात्मकं जगत् एवं प्रवर्तिते गर्भे वर्द्धितेऽम्बुदसंनिभे वायुः प्रवेशं संचक्रे सङ्गतः परमात्मना ततोऽङ्गानि विसृजति बिभर्ति परिवर्द्धयन् स पञ्चधा शरीरस्थो भिद्यते वर्द्धते पुनः प्राणोऽपानः समानश्च उदानो व्यान एव च प्राणः स प्रथमं स्थानं वर्द्धयन् परिवर्तते अपानः पश्चिमं कायमुदानोर्ध्वं शरीरिणः व्यानो व्यायच्छते येन समानः संनिवर्तयेत् ।*

*यहां समस्त द्रव्यों का विभाजन तीन वर्गों में कर दिया जो प्रत्यक्ष है ...*
*1- वात वर्ग *
*2- पित्त वर्ग*
*3- कफ वर्ग *

*इस सिद्धान्त के आधार पर हम पोटाशियम ही नहीं अनेक द्रव्यों का एक वर्ग निर्धारित कर सकते हैं ।*

*रात्रि जागरण से वात एवं पित्त दोनों का प्रकोप होता है अर्थात यह हेतु दोनों वर्गों में आता है जिसके अनुसार हम इस वर्गीकरण का विस्तार द्वन्दज रूप अर्थात प्रधानता के अनुसार वातपित्त अथवा पित्तवात आदि के अनुसार कर के संसार के समस्त द्रव्यों का निर्धारण इस प्रकार के वर्ग बना कर कर सकते हैं।*

*वैशेषिक दर्शन के अनुसार जगत या सृष्टि की वे समस्त वस्तुएं जिनका अस्तित्व है, जिनका बोध हो सकता है या होता है तथा जिन्हें पदार्थ की संज्ञा दी जा सकती है, उन्हें 6 वर्गों में विभाजित किया जा सकता है। द्रव्य, गुण, कर्म (सक्रियता), सामान्य, विशेष तथा समवाय (अंतर्निहित)। ये 6 स्वतंत्र वास्तविकताएं अवबोध द्वारा अनुभव की जा सकती हैं। बाद में वैशेषिक के भाष्यकारों यथा श्रीधर, उदयन एवं शिवादित्य ने एक और वर्ग इसमें जोड़ा- अभव (अनास्तित्व)। प्रथम तीन वर्गों द्रव्य, गुण और कर्म को अर्थ (जिसका बोध किया जा सकता है) माना जाता है। इनके अस्तित्व का वास्तव में अनुभव किया जा सकता है। अंतिम तीन वर्गों सामान्य, विशेष और समवाय को बुध्यापेक्षम (बुद्धि से निर्णीत) माना जाता है और ये तार्किक वर्ग हैं, विभिन्न तर्कों से और प्रमाणों से हम इन सब को आज के आधुनिक काल में सत्ता के साथ सिद्ध कर सकते हैं।*

*इस विषय में हम पहले भी संक्षिप्त संकेत दे चुके हैं कि महर्षि कणाद्  ने भौतिक राशियों (अमूर्त) को द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष और समवाय के रूप में नामांकित किया है। उपरोक्त सभी 6 वर्गों में द्रव्य को आश्रय माना गया है जबकि शेष 5 वर्ग आश्रित माने गए हैं। आज हम इसी संदर्भ में वृक्क दुष्टि के एक प्रमुख हेतु पोटाशियम को प्राचीन दृष्टिकोण से देखेंगे।*

[8/2, 1:05 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma: 

*विभिन्न गंभीर व्याधियों में आधुनिक काल में अनेक नैदानिक परीक्षणों का सहयोग लेना पड़ता है जो प्रत्यक्ष होने के कारण आवश्यक भी है जैसे KFT अर्थात किडनी फंक्श्न टेस्ट जिसमें पोटाशियम और सोडियम का प्रभाव प्रत्यक्ष रूप से वृक्कौं की दुष्टि और सामान्य कार्य क्षमता को बताता है।पोटाशियम कई खाद्य पदार्थों में प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला खनिज है।  अच्छी तरह से काम करने पर वृक्क रक्त से अतिरिक्त पोटाशियम को निकालने में सक्षम होते हैं।*

*पोटाशियम एक द्रव्य है जिसमें इस द्रव्य तथा इसके गुण और कर्म का बोध या अनुभव किया जा सकता है और पोटाशियम के सामान्य, विशेष और समवाय जो बुद्धि गम्य है उन्हें विभिन्न तर्कों से सिद्ध करेंगे जिस से आयुर्वेदानुसार इसका वर्ग निश्चित हो जायेगा कि यह वात, पित्त या कफ किस वर्ग का द्रव्य है जिस से हेतु और चिकित्सा के रूप मे इसकी प्रधानता आयुर्वेदानुसार स्पष्ट होगी।*

*पोटाशियम अथवा कोई भी द्रव्य संसार में है तो वह पंचभौतिक है और उसमें आचार्य चरकोक्त पार्थिव द्रव्यादि भाव च सू 26/11 अनुसार अवश्य मिलेंगे ...*

*पार्थिव भाव -
गुरू, खर, कठिन, मंद, स्थिर, विशद, सान्द्र, स्थूल और गंध*

*जलीय-भाव-  
द्रव, स्निग्ध, शीत, मंद, मृदु, पिच्छिल और रस*

*आग्नेय भाव - 
उष्ण, तीक्ष्ण, लघु, सूक्ष्म, रूक्ष,  विशद और रूप*

*वायव्य भाव -  
लघु, शीत, रूक्ष, खर, विशद, सूक्ष्म और स्पर्श*

*आकाशीय भाव - 
मृदु, लघु, सूक्ष्म, श्लक्षण और शब्द*

*पोटाशियम एक प्राकृतिक  खनिज लवण है जो चरक और सुश्रुत के काल ही ही नहीं जब से कारण द्रव्यों के द्वारा सृष्टि का निर्माण हुआ तभी से पार्थिवादि पंचभौतिक भावों के साथ उपस्थित है पर तब विभिन्न द्रव्यों के सूक्ष्मीकरण के ज्ञान के साधन पर्याप्त ना होने का कारण अनेक द्रव्यों का संज्ञाकरण नहीं हो सका जिनकी खोज आधुनिक वैज्ञानिकों ने की, पोटाशियम आधुनिक मतानुसार शरीर में  इलेक्ट्रोलाइट्स का एक भाग है जो विद्युत रूप से आवेशित (charged) खनिज है जो विभिन्न सेल और तंत्रिका कार्यों को सक्रिय करता है। इलेक्ट्रोलाइट्स शरीर के द्रव पदार्थों में घुल जाते हैं तथा ये बहुत अधिक या बहुत कम स्तर सेलुलर क्षमता को बदलकर सेल फ़ंक्शन को बाधित करते हैं और विभिन्न जटिलताओं को जन्म दे सकते हैं, जिनमें से कुछ जीवन के लिए घातक हो सकते हैं। जब कोशिकाओं के अंदर और बाहर ठीक से आदान-प्रदान किया जाता है, तो शरीर की तंत्रिका और मांसपेशियों के कार्यों को संरक्षित किया जाता है। इलेक्ट्रोलाइट्स विभिन्न प्रकार के होते हैं; सोडियम, पोटाशियम और क्लोराइड कैल्शियम, मैग्नीशियम, फॉस्फेट और बाइकार्बोनेट के साथ-साथ सेल होमियोस्टेसिस अर्थात जीवित रहने के लिए इष्टतम स्थितियों में समायोजित करने के लिए की एक स्व-विनियमन प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाना भी है।*

[8/2, 1:07 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma: 

*पोटाशियम एक प्राकृतिक  खनिज लवण है जो चरक और सुश्रुत के काल ही ही नहीं जब से कारण द्रव्यों के द्वारा सृष्टि का निर्माण हुआ तभी से पार्थिवादि पंचभौतिक भावों के साथ उपस्थित है पर तब विभिन्न द्रव्यों के सूक्ष्मीकरण के ज्ञान के साधन पर्याप्त ना होने का कारण अनेक द्रव्यों का संज्ञाकरण नहीं हो सका जिनकी खोज आधुनिक वैज्ञानिकों ने की, पोटाशियम आधुनिक मतानुसार शरीर में  इलेक्ट्रोलाइट्स का एक भाग है जो विद्युत रूप से आवेशित (charged) खनिज है जो विभिन्न सेल और तंत्रिका कार्यों को सक्रिय करता है। इलेक्ट्रोलाइट्स शरीर के द्रव पदार्थों में घुल जाते हैं तथा ये बहुत अधिक या बहुत कम स्तर सेलुलर क्षमता को बदलकर सेल फ़ंक्शन को बाधित करते हैं और विभिन्न जटिलताओं को जन्म दे सकते हैं, जिनमें से कुछ जीवन के लिए घातक हो सकते हैं। जब कोशिकाओं के अंदर और बाहर ठीक से आदान-प्रदान किया जाता है, तो शरीर की तंत्रिका और मांसपेशियों के कार्यों को संरक्षित किया जाता है। इलेक्ट्रोलाइट्स विभिन्न प्रकार के होते हैं; सोडियम, पोटाशियम और क्लोराइड कैल्शियम, मैग्नीशियम, फॉस्फेट और बाइकार्बोनेट के साथ-साथ सेल होमियोस्टेसिस अर्थात जीवित रहने के लिए इष्टतम स्थितियों में समायोजित करने के लिए की एक स्व-विनियमन प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाना भी है।*

*शरीर में पोटाशियम की मुख्य भूमिका हमारी कोशिकाओं के अंदर द्रव के सामान्य स्तर को बनाए रखने में मदद करना है। नमक के विकल्प कभी-कभी पोटाशियम क्लोराइड से बनाए जाते हैं, जो टेबल नमक में कुछ या सभी सोडियम क्लोराइड को बदल देता है। यद्यपि नमक-प्रतिबंधित आहार पर इसकी बहुत कम सोडियम सामग्री से लाभ हो सकता है, पोटाशियम नमक को गर्म करने पर कड़वा स्वाद होता है, इसलिए इसे खाना पकाने के लिए अनुशंसित नहीं किया जाता है। *

*पोटाशियम की कमी होने पर रोगियों में प्रायः निम्न लक्षण मिलने लगते हैं ...*

*स्नायु दौर्बल्य*
*विबंध*
*पक्षाघात*
*बहुमूत्र*
*शारीरिक एवं मानसिक दौर्बल्य*
*उच्च रक्तचाप*
*श्वास कृच्छता*
*अनियमित ह्रदय गति*

*पोटाशियम की वृद्धि होने पर लक्षण प्रायः इस प्रकार मिलते हैं ..*

*स्नायु दौर्बल्य*
*शारीर दौर्बल्य*
*उत्क्लेश अथवा छर्दि*
*शारीर पीड़ा अथवा शूल*
*श्वास कृच्छता *
*ह्रदय दौर्बल्य*
*उरः शूल*

*to be continue....*

[8/2, 1:31 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma: 

*कल हम सोडियम पर लिखेंगे कि इसके रस, गुण, वीर्य आदि सहित विभिन्न स्रोतस पर किस प्रकार इसका कर्म होता है।*

[8/2, 1:37 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma: 

*संसार के सभी द्रव्य पंचभौतिक है और त्रिविध दोष वर्ग वात,पित्त और कफ वर्ग में इनका समावेश हो जाता है तथा विभिन्न आयुर्वेदोक्त प्रमाणों से हम इनकी पंचभौतिकता, दोष-दूष्य-अग्नि और स्रोतस पर इनका प्रभाव clinical applications के साथ सिद्ध कर सकते है।*

*आयुर्वेद स्वयं में एक बृहद् विज्ञान है।*

[8/2, 3:51 AM] Vd. Divyesh Desai Surat: 

👏💐💐
आपको धन्यवाद देने के लिए जो श्रेष्ठतम शब्द है, वो भी आपकी तारीफ के लिए अणु स्वरूप है,....
💐💐💐

[8/2, 4:19 AM] Vd. Divyesh Desai Surat: 

हरेक पदार्थ को जानना 
1st डायमेंशन है, इसके गुण कर्मो को अभ्यास करके जानना दूसरा dimension है,
तीसरे dimension में केवल उसी पदार्थ के बारे में विस्तृत जानकारी जो PHD लेवल की है वो SCIENCE की भाषामे अंतिम और 3RD DIMENSION है,जबकि इस के ऊपर जो 4 था डायमेंशन है, वो तो कोई दिव्य आत्मा को ही प्राप्त होता है, जिसमे जड़ या चेतन पदार्थ खुद अपने बारे में उत्पत्ति से लेकर अव्यक्त या अदृश्य होनेके बारे में  बता देता है, वो डायमेंशन पूजनीय गुरुश्रेष्ठ सुभाषसर ने प्राप्त किया है, जो कई जन्मों की कठिन साधना के बाद ही प्राप्त होता है....
💐💐💐नि:शब्द..👏👏👏

[8/2, 5:48 AM] Vd Shailendra Mehta: 🙏🏻🙏🏻🧎🏻‍♂️🌷

[8/2, 5:48 AM] Vd Shailendra Mehta: 👌🏻👌🏻🌷

[8/2, 6:16 AM] Dr Mansukh R Mangukiya Gujarat: 

🙏प्रणाम गुरुवर

[8/2, 9:05 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma: 

*सुप्रभात दिव्येश भाई, कई बार रोगी आ कर कहता है कि पोटाशियम बढ़ गया, सोडियम कम हो गया और आयुर्वेद में इसी प्रकार के अन्य भावों को हम आयुर्वेदीय सिद्धान्तों के अनुसार समझ कर कैसे ग्रहण कर अपनी चिकित्सा में उपयोगी बनाये बस यह बताना उद्देश्य है।*

*आयुर्वेद शिक्षण से मेरा कहीं दूर का भी सम्बन्ध नही है मात्र एक साधारण सा वैद्य हूं और सैद्धान्तिक आयुर्वेद की private clinical practice में कभी भी संहिता ग्रन्थ पढ़ना नही त्यागा तथा जैसा समझा, प्रयोग किया और परिणाम प्राप्त हुआ सरल शब्दों में आपके सामने रख देते हैं... शेष आप सब का स्नेह एवं आशीर्वाद है जो निस्वार्थ लेखन के लिये प्रेरित कर देता है ।* 🌹🙏

[8/2, 9:08 AM] Dr.Harsh ambasana: 

प्रणाम गुरूवर सादर प्रणाम ,धन्यवाद💐🙏🏻🙏🏻

[8/2, 9:11 AM] Dr. Santanu Das: 

True sir
Any type of CRF case, it is very common that imbalance of Na n K....
Very difficult to manage..
If a comprehensive management will be there, then it is very easy to treat, Sir like u, those r doing work in CRF, may it be private / institutional, it should be discussed 🙏.

[8/2, 9:17 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma: 

*समस्त काय सम्प्रदाय को सुप्रभात - सादर नमन 🌹🙏 ग्रुप में विभिन्न विषयों पर आयुर्वेद चर्चा निरंतर चलती रहनी आवश्यक है क्योंकि यह सत्वगुण बहुल मन का आहार है।*

[8/2, 9:53 AM] Vd. Mohan Lal Jaiswal: 

ऊँ
सादर प्रणाम वैद्यप्रवर जी
वृक्करोगों में अपथ्यों की विस्तृत सूची के साथ समीचीन अनुभवात्मक विवेचना के लिये हृदयाभार।
अपथ्यों में Zucchini क्या है। इसमें कुछ आमलकी, दाडिम के अतिरिक्त अन्य अम्लरसयुक्त द्रव्यों का उल्लेख क्यों नहीं हुआ?

[8/2, 10:27 AM] Vd. Divyesh Desai Surat: 

सर, अगर आप साधारण वैद्य है, तो मेरे जैसे कई वैद्य अभी भी modern को पकड़कर रखे है, शायद वैद्य की श्रेणीमे आते ही नहीं है!!!....
आयुर्वेद शिक्षण से आप का दूर का भी संबंध नही है,किन्तु आपका SOUL/रूह आयुर्वेदकी महान आत्मा है...
हमको आपका मेसेज पढ़ने में जितना समय लगता है (समझने के लिए तो काफी समय चाहिये), इससे भी कम समय मे आप संदर्भ सहित, बिना ग़लती के लिख सकते हो, तो ये कोई मामूली वैध का कार्य नही है, कोई *दिव्यात्मा*  का कार्य है, अगर हम आयुर्वेदकी सेवा में कार्यरत कर्मयोगी की सराहना भी न करे तो ये बड़ा अपराध है।।
जय आयुर्वेद, जय आयुर्वेद ऋषिजनोकी
💐🌹💐

[8/2, 11:11 AM] Vd. Mohan Lal Jaiswal: 

ऊँ
समुचित समादरणीय भावाभिव्यक्ति ।

[8/3, 9:21 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma: 

*सुप्रभात - सादर नमन आचार्य जायसवाल जी एवं समस्त काय सम्प्रदाय 🌹🙏 * 👇🏿

[8/3, 9:21 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:

 *zuchhini*

*रस - मधुर, कषाय*
*गुण - लघु*
*वीर्य - शीत*
*विपाक - मधुर*
*दोष - पित्त शामक, कफ-वात वर्धक *
*प्रति 100 gm zuchhini में पोटाशियम की मात्रा लगभग 264mg पायी जाती है।*

*अनेक स्थानों पर zuchhini को सलाद में, pizza पर topping में भी खूब सेवन किया जाता है, कच्ची या raw सेवन करने पर इसका स्वाद लौकी और अंदर से पीत कद्दू (कूष्माण्ड) जैसा प्रतीत होता है। अनेक लोग सलाद में ड्रेसिंग कर के इसे खीरे की तरह भी खाते हैं।*

*अनेक मेदस्वी रोगियों को हम इसे आहार के रूप में भी देते है, zuchhini में फाइबर की भी अच्छी मात्रा समाहित होती है, भरपूर मात्रा में फाइबर का सेवन करने से पेट भरे रहना प्रतीत होता है साथ ही बार-बार भूख भी नहीं लगती है. अत: जुकीनी के सेवन से वजन को कम करना बड़ी सरलता से हो जाता है।*

*इसी प्रकार boiled पोहा vegetables और zuchhini कुछ बूंद तैल में सोते कर और अंकुरित मूंग-मोठ उबाल कर zuchhini, खीरा, हरा धनिया, हरी मिर्च के साथ सैंधव मिला कर सेवन कराते हैं बार बार क्षुधा लगना समाप्त हो जाता है और थोड़ा सा भी कुछ सेवन करते ही आमाश्य भरा भरा प्रतीत होता है। मेदोरोगियों को हमारे काय सम्प्रदाय के सदस्य सेवन करा कर देखें 👍*
 *अन्य अम्ल द्रव्य अधिक इसलिये लिख नही पाये कि प्रतीक मात्र जो है वो ही लिखे क्योंकि single sitting में ही लिखता हूं तो कई बार हाथ विश्राम मांगते हैं।* 

Respected Jaysawal Sir!
🌹🙏

[8/3, 9:34 AM] Prof. Lakshmikant Dwivedi Sir:

 कूष्माण्डादि परिवार का है। *चाकी*,  बाल कूष्माण्डादि  की तरह। पकने के बाद बीज भी मिलेगा न। 🌞🙏🏼

[8/3, 9:34 AM] Prof. Giriraj Sharma: 

सादर प्रणाम
संभवत 
पोटेशियम और सोडियम मूलत शाक वर्ग में ज्यादा होता है ।
आयुर्वेद में वर्णित शाक वर्ग के विषय में भी हम चिंतन करेंगे तो संभवत कुछ विशिष्ट शाक मिले और पथ्य विशेष में इनका उल्लेख भी शास्त्र संदर्भित हो सकता है ।

[8/3, 9:35 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma: 

*सादर नमन आचार्य, बिल्कुल सही कहा कूष्माण्ड परिवार का ही है पर पिछले कुछ वर्षों में आया विदेश से है ।*

[8/3, 9:39 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma: 

*सादर नमन आचार्य गिरिराज जी, बहुत बढ़ी list हम अपने रोगियों को शाक की देते भी है, हमारा कार्य पूर्णतः practical है क्योंकि हम प्रति सप्ताह KFT कराते है जिसमें सोडियम, पोटाशियम, फास्फोरस आदि सब आ जाते है।*

[8/3, 9:41 AM] Prof. Lakshmikant Dwivedi Sir:

 यहां जीर्ण कूष्माण्ड प्रयोग किया जाता है। ये  फल आम (कूष्माण्ड) रूप में प्रयोग करते हैं परिणाम तद्वत विचार करें। हरीतकि/बालहरड़े (हलेला सियाह/जवा हरड़े/ हीमेज़)। की तरह विचार करें या तो, बिल्व शलाटु/ पक्व बिल्व।🌞🌞

[8/3, 9:47 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:

 *हमने अपनी practice में वर्तमान काल अनुसार विचित्र प्रत्यारब्ध बनाये है जो विभिन्न परीक्षणों के बाद बने, जैसे बाजार में जो सामान्य आलू कदाचित किंचित मधुर भी, पहाड़ी आलू, शिमला या पंजाब का आलू आदि सब से पोटाशियम बढ़ जाता है पर हल्द्वानी का आलू )जो सामान्य आलू से 4-5 रूपये प्रति किलो मंहगा ही होता है) से पोटाशियम बढ़ा हुआ नही मिला। अनेको ही रोगियों पर प्रयोग कर के देख लिया और जो सामान्य से किंचित अधिक भी मिला तो वो भी 7 दिन बाद सामान्य आ गया।*

[8/3, 9:49 AM] Prof. Lakshmikant Dwivedi Sir:

 अतिअद्भुद्।

[8/3, 9:51 AM] Prof. Lakshmikant Dwivedi Sir:

 मुनक्का/मावीज की तरह।    द्राक्षा वर्ग में अग्र्य वत।

[8/3, 9:55 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma: 🌹🙏

[8/3, 10:17 AM] Vd. Mohan Lal Jaiswal: 

ऊँ
सादर प्रणाम वैद्यवर जी
Zucchini तो Exotic Plant है । इसे बाजार में देखा है परन्तु कभी प्रयोग नहीं किया।
मानस में प्रश्न उठता है कि जब आयुर्वेद या यूनानी में "चतुर्मग्ज"  इन विकारों में उपयोगी है तो यह द्रव्य अपथ्य रुप में कार्मुक मिल रहा है कैसे ? जबकि गुणकर्मानुसार व कुलानुसार लगभग समान  है।
बालम खीरा (बाल त्रपुस देशी) का  अत्यन्त सुस्वाद और वर्तमान प्रचलित खीरे का स्वाद भिन्न मिलता है।

[8/3, 10:29 AM] Prof. Giriraj Sharma:

 आचार्य श्री प्रणाम
पोटेशियम के लिए कुछेक चिकित्सक रुदंती का प्रयोग भी करते है ।
रूदंती के विषय में कुछ प्रकाश डालकर अनुग्रहित करे
सादर प्रणाम
🌹🌹🌹

[8/3, 10:40 AM] Vd. Mohan Lal Jaiswal:

 ऊँ
नौ कारण द्रव्यों में देश व काल का बडा महत्व है। 
जिस प्रकार आलूक (आलू)  में देशान्तर (स्थानान्तर) से यह भिन्नता मिली उसी प्रकार यावन मात्र सभी द्रव्यों में मिलेगी।
सूक्ष्मता से अनुभव करेंगे तो बज्रान्न (बाजरा)  भी आप को मरुप्रदेश का सुस्वादु किञ्चित पीतवर्णीय अन्य स्थानों से श्रेष्ठतम मिलेगा।

[8/3, 1:16 PM] Dr. Vandana Vats Patiyala: 

प्रणाम सर🙏
Zuchhini, तो स्थानिय बाजार में हरा पेठा, नाम से ही मिलता है। इसका सलाद के साथ साथ, शाक रूप में  भी बहुत अच्छा लगता है। कुष्मांड सम पित्त शामक व सुपाच्य है। हम अधिकतर बनाते हैं। 
आपने आज इसके गुण धर्म पर प्रकाश डालकर हमें अनुगृहीत किया। 
धन्यवाद🙏💐🙏

[8/3, 7:51 PM] Vd. Mohan Lal Jaiswal: 

ऊँ
नमस्ते गिरिराज जी
रुदन्ती (Capparis moonii) का फल जो विशेषतः दक्षिण भारत में होता है। इसके पक्वफलों का शुष्ककटा हुआ (Chips Type)रुप पंसारियों के यहाँ बिकता है।
फल विशेषतः कषायतिक्त, त्रिदोषघ्न, क्षय, शोष, कास, श्वास, संक्रमित व्रण(anti septic) व रक्तरोधक है।
फल में rutin व beta-sitosterol  होता है।
शुभसन्ध्या !

[8/3, 7:57 PM] Prof. Giriraj Sharma: 

सादर प्रणाम आचार्य
Cressa cretica लैटिन नेम के बारे में मेरी जिज्ञासा है   रुद्रवंती / रूदंती एक ही है या भिन्न,,,
🙏🏻🙏🏻🌹🙏🏻🙏🏻

[8/3, 8:20 PM] Prof. Lakshmikant Dwivedi Sir:

 These 3.                   
*Cressa Cretica* ✓
*Capparis Moonii* ✓✓ *Astragalus Condolenc✓

🙏🙏With hope that you are Best of your health. 🙏🙏रसशास्त्र में, रुदन्ती भिन्न है, चने के पत्र जैसे पत्र वाली।

[8/3, 8:22 PM] Prof. Giriraj Sharma: 

सादर प्रणाम 
शाक वर्ग गुणधर्मी कौनसी है इनमे ?

[8/3, 8:49 PM] Prof. Lakshmikant Dwivedi Sir:

 Dono ek hi hai.

[8/3, 10:13 PM] Vd. Mohan Lal Jaiswal:

 ऊँ
पारद बन्धनादि में प्रयुक्त प्राच्य रुद्रवन्ती, तल्लक्षणं-
चणकपत्रसमं पत्रं क्षुपं चैव यथाम्लकम्।
शिशिरे जलबिन्दुनां स्रवन्तीति रुदन्तिका।।
Cress cretica प्राच्य
जो रणथम्भौर, उ.प्र.के कुछ क्षेत्रों में उपलब्ध।
Capparis mooii प्रतीच्य द्रव्य जो  दूसरे देश से आया है।
रुदन्तिका /रुदन्ती /रुद्रवन्ती
शाक वर्गोक्त Cressa cretica जो चणकपत्र आकृतिवत् पत्र  अम्लरसयुक्त।
हिमालयीक्षेत्र वाली Astragalus candolleanus जो भी चणकपत्रसम पत्र वाली है।

[8/3, 10:24 PM] Prof. Giriraj Sharma: 

सादर नमन
रेफरेंस की जानकारी नही है  गुरु जी,,,
पोटेशियम और सोडियम से युक्त शाक वर्ग में यह होती है या नही ,,
यह जिज्ञासा है ,,,

[8/4, 7:19 AM] Dr. Pawan Madan: 

प्रणाम व चरण स्पर्श गुरु जी।

बहुत ही सार गर्भित विवेचन।

गुरु जी, बहुत से रोगियों में मैने पाया के जिन भोज्य पदार्थों के खाने से creatinine बढ जाति है, यदि वृक्क फ़ेल हो चुके हैं तो उन उन पदार्थों का सेवन बन्द करने से भी नहीं कम होती।

पोटाशियम यदि गुण में उष्ण तीक्षण है, वीर्य भी उष्ण है, तो बाह्य प्रयोग में शीतल काम कैसे करता है ?

Respected Subhash Sir!

[8/4, 7:19 AM] Dr. Pawan Madan: 

गुरु जी, हरिवंश पुराण के इस संदर्भ के अनुसार इन तीन वर्गों में द्रव्यों का विभाजन हम उनके कार्यों के अनुसार करते हैं।

इस हिसाब से पोटाशियम को वात पित्त व कफ किस श्रेणी में रखा जायेगा?

[8/4, 7:19 AM] Dr. Pawan Madan: 

गुरु जी
पोताशियम का बढ़ना, वृक्क दुश्टि के कारण होता है।

क्या पोताशियम के बढने से भी वृक्क दुश्टि हो जाति है?

[8/5, 1:07 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma: 

*नमस्कार पवन जी, आपके समस्त प्रश्नों के उत्तर part - 2 मे  लिख देंगे, अतिव्यस्तता से लेखन का समय नहीं मिल पा रहा है।* 🌹🙏

[8/5, 6:25 AM] Dr. Pawan Madan:

 प्रणाम गुरुवर।
जब आपको समय हो।
🙏🙏

[8/5, 9:00 AM] Dr. Santanu Das: 

Yes sir
Chark jayanti aane bala hei.. Trimarmiya adhya aur its clinical importance ke upar ek bisehes alochana to banta hei 🙏🙏

[8/5, 7:37 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma: 

*भाग 2- त्रिविध मर्म प्रकरण - 

द्वि वृक्कौ-ह्रदय विकारों में पोटाशियम एवं सोडियम का त्रिदोषानुसार मूल्यांकन एवं आयुर्वेदीय सिद्धान्तानुसार गुण धर्म*
*पोटाशियम.... continue*
*वैद्यराज सुभाष शर्मा , एम.डी.(आयुर्वेद)*

*पोटाशियम बाह्य प्रयोग में शीतल कैसे ? जबकि यह तो उष्ण-तीक्ष्ण और उष्ण वीर्य है।*

*इसका उत्तर हमें उन सिद्धान्तों के अनुसार आर्ष ग्रन्थों से मिलता है जिन्होने इस प्रकार के सिद्धान्त स्थापित करने का मार्ग प्रशस्त किया कि अम्ल रस अग्नि और उष्ण होते हुये भी शीत स्पर्शी है, वो कैसे ? इसे देखते हैं...*

*'रसेनाम्लेन तीक्ष्णेन वीर्योष्णेन च योजितः*
*आग्नेयेनाग्निना तुल्यः कथं क्षारः प्रशाम्यति *
*एवं चेन्मन्यसे वत्स! प्रोच्यमानं निबोध मे*
*अम्लवर्जान् रसान् क्षारे सर्वानेव विभावयेत्*
*कटुकस्तत्र भूयिष्ठो लवणोऽनुरसस्तथा *
*अम्लेन सह संयुक्तः स तीक्ष्णलवणो रसे *
*माधुर्यं भजतेऽत्यर्थं तीक्ष्णभावं विमुञ्चति*
*माधुर्याच्छममाप्नोति वह्निरद्भिरिवाप्लुतः*
सु सू 11/22-25

*आचार्य सुश्रुत शल्य चिकित्सक थे जिन्होने उस काल में द्रव्यों की वैज्ञानिकता जो सिद्ध की वो आज भी आश्चर्य है जैसे यहां सूत्र देखें तो कहा है कि अम्ल रस तो स्वयं ही अग्नि रूप है और क्षार तो है ही अग्नि के तुल्य फिर एक अग्नि तुल्य से दूसरे अग्नि तुल्य द्रव्य का शमन कैसे हो जाता है ? यहां भगवान धन्वन्तरि उत्तर देते है कि क्षार में अम्लरस के अतिरिक्त भी रस समझना। क्षार में कटु रस प्रधान एवं अधिकता से तथा लवण रस इसमें अनुरस होता है जब इसका संयोग शीत स्पर्शी अम्ल रस से होता है तो यह अपनी तीक्ष्णता त्याग कर मधुरता को प्राप्त हो जाता है। जैसे गर्म किये हुये जल के छिड़कने से भी अग्नि शान्त हो जाती है।*

*अम्ल रस शीत स्पर्शी कैसे होता है ? *
*अग्नि से दग्ध हो गया तो क्षार जो स्वयं अग्नि के तुल्य है वो शमन कैसे करेगा ?*

*'विशेषादत्र सेकोऽम्लैर्लेपो मधु घृतं तिलाः। वातपित्तहरा चेष्टा सर्वैव शिशिरा क्रिया, अम्लो हि शीतः स्पर्शेन क्षारस्तेनोपसंहितः,यात्याशु स्वादुतां तस्मादम्लैर्निर्वापयेत्तराम्,विषग्निशस्त्राशनिमृत्युतुल्यः क्षारो भवेदल्पमतिप्रयुक्तः, स धीमता सम्यगनुप्रयुक्तो रोगान्निहन्यादिचिरेण घोरान्'

अ ह सू 30/38-39*

*अगर अति दग्ध हो जाये तो प्रमुख रूप में जो अम्ल द्रव्य हैं जैसे कांजी, मस्तु आदि उनसे सेचन करना उचित है, तिल भी उष्ण है उन्हे पीस कर मधु घृत मिला कर लेप करें, वात पित्त नाशक चिकित्सा और शीतल उपचार करेॉ। अम्ल रस स्पर्श में शीतल होता है तथा क्षार केसाथ मिलकर मधुरता को प्राप्त हो जाता है इसीलिये क्षार के प्रयोग करने से जो दाह होती है उसकी शान्ति अम्ल रस प्रधान पेय के प्रयोग से दूर होती है। तभी गर्मी में सन स्ट्रोक या लू लगने पर अम्लरसीय पेय का पान बताया है जैसे कच्चे आम्र या इमली पानक।*

*अष्टांग संग्रहकार भी, भवति चात्र अम्लो हि शीतः स्पर्शेन क्षारस्तेनोपसंहितः, यात्याशु स्वादुतां तस्मादम्लैनिर्वापयेत्तराम्'

अ स सू 39/11 

उष्ण अम्लरस को स्पर्श में शीत बता रहे हैं।*

*पोटाशियम एक खनिज है जो शरीर के द्रव, क्लेद और अम्बुवाही स्रोतस को संतुलित करने में सहयोग करता है और आपकी कोशिकाओं, तंत्रिकाओं और मांसपेशियों के सम्यग् कर्म में ऊर्जा प्रदान करता है।*

*आहार में पर्याप्त मात्रा में पोटाशियम लेने से ह्रदय स्पंदन और श्वास को नियंत्रित करने वाली मांसपेशियों को मदद मिलती है। अतः पोटाशियम को हम कर्मानुसार पित्त वर्ग में ग्रहण कर सकते हैं जो अनेक स्थलों पर वात के कर्मों का भी सहयोगी बनता है। यह पित्त वर्ग भी दो प्रकार से समझना द्रव पित्त और रूक्ष पित्त। रूक्ष पित्त में वात का संयोग साथ होता है।*

[8/5, 7:40 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma: 

*पोटाशियम एक द्रव्य है और हेतु रूप में अधिक सेवन किया जायेगा तो शरीर में खवैगुण्य करेगा, दोष प्रकुपित कर सकता है और धातुओं में शिथिलता ला सकता है, व्यवहार में देखा जा रहा है कि यह धातु शैथिल्य अथवा धातु क्षय का कारण मिलता है।*

*वृक्कौं द्वारा पोटाशियम निष्कासन  करने की क्षमता से अधिक पोटाशियम का सेवन करना भी असामान्य हृदय गति का कारण बन सकता है।*

*पोटाशियम की पर्याप्त  मात्रा शरीर में प्रतिदिन के अनुसार व्यस्क स्त्रियों में लगभग 2700 mg और व्यस्क पुरूषों में लगभग 3400 mg प्रतिदिन पर्याप्त मानी जाती है जो दैनिक अनुशंसित मात्रा उम्र के साथ बदलती रहती है। *

*हमारे यहां भारतीय आहार में सेवन करने वाले आहार द्रव्यों में प्रति 100 ग्राम में पोटाशियम की मात्रा...*

*सोयाबीन- 1613 मिलीग्राम*
*राजमा - 1324 मिलीग्राम*
*लोबिया - 1241 मिलीग्राम*
*हरा चना - 1177 मिलीग्राम*
*काला चना, चना दाल: 1157 मिलीग्राम*
*सफेद काबली चना - 1065 मिलीग्राम*
*रागी - 443 मिलीग्राम*
*चौलाई - 433 मिलीग्राम*
*गौधूम - 330 मिलीग्राम*
*ज्वार - 328 मिलीग्राम*

*किशमिश, सूखी, काली - 1105 मिलीग्राम*
*पिस्ता - 1053 मिलीग्राम*
*खजूर - 804 मिलीग्राम*
*बादाम - 699 मिलीग्राम*
*मूंगफली - 679 मिलीग्राम*

*तुलसी पत्र - 295*
*हरिद्रा  -2374 मिलीग्राम*
*सौंफ - 1441*
*सूक्ष्म एला - 1119*
*मरिच लाल - 2245 मिलीग्राम*
*अजवायन - 1400*
*जीरक - 1886 मिलीग्राम*
*दालचीनी - 1431*
*मरिच काली - 1487 मिलीग्राम*
*लवंग - 1102*
*खस खस - 719*

*मशरूम - 356 mg*
*टमाटर - 218 mg*
*ब्रोकली - 293 mg*
*हरी मटर - 271 mg*
*शलजम - 216 mg*
*पालक - 625 मिलीग्राम*
*हरे चौलाई शाक के पत्ते - 572 मिलीग्राम*
*इमली की पत्तियां - 465 मिलीग्राम*
*सरसों शाक की पत्तियां - 403 मिलीग्राम*
*सहजन की पत्तियां - 397 मिलीग्राम*
*पत्तागोभी - 233 मिलीग्राम*
*मेथी के पत्ते - 226 मिलीग्राम*
*सहजन के पुष्प - 419 मिलीग्राम*
*केला कच्चा शाक के लिये - 402 मिलीग्राम*
*लौकी - 372 मिलीग्राम*
* बीन्स - 362 मिलीग्राम*
*कमल ककड़ी - 611 मिलीग्राम*
*आलू - 541 मिलीग्राम*
*अरबी - 514 मिलीग्राम*
*रतालू - 463 मिलीग्राम*
*सिंघाड़ा - 382 मिलीग्राम*
*फूलगोभी - 329 मिलीग्राम*
*कटहल कच्चा - 327 मिलीग्राम*
*करेला - 326 मिलीग्राम*
*फ्रेंच बीन्स - 324 मिलीग्राम*
*बेबी कॉर्न - 260 मिलीग्राम*
*करी पत्ता - 584 मिलीग्राम*
*धनिया हरे पत्ते - 546 मिलीग्राम*
*पुदीना fresh - 458 mg*
*सोया बीज - 1186 mg*
*सरसों बीज - 738 mg*
*रसोन - 453 मिलीग्राम*
*रसोन शुष्क चूर्ण - 1193*
*मेथी बीज - 770*
*आर्द्रक आर्द्र - 1153 *
*जायफल - 350*
*शिमला मिर्च - 2344*
*केसर - 1724*
*रोज़मेरी - 668*
*कूष्मांड बीज - 663*

*बेल फल: 409*
*एवोकैडो - 377 mg*
*केला - 362*
*सेब - 347 मिलीग्राम*
*अमरूद, सफेद गूदा - 283 मिलीग्राम*

[8/5, 7:40 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma: 

*to be continue ...*

[8/5, 8:24 PM] Dr. Ashwani Kumar Sood:

 बहुत खूब,  
Thanks for information prepared with hard work and dedicating time on it.👌🏻

[8/5, 8:31 PM] Dr. Satish: 

इसे देखने से लगता है बहुत परिश्रम से बनाया गया है प्रणाम गुरुवर किसी एक सिद्धांत और भी दिखाई दे रहे हैं की हर खाद्य पदार्थ में पोटेशियम की मात्रा कम ज्यादा उपलब्ध है केवल हमें अग्नि की जरूरत है ताकि उस आहार  से पोटेशियम शरीर को मिलता रहे🙏🙏🙏🙏

[8/5, 10:12 PM] Vd. Mohan Lal Jaiswal:

 ऊँ
धन्यवाद वैद्यवर जी सादर नमस्ते
पोटैशियम इलेक्ट्रोलाईट्स को आयुर्वेद परिप्रेक्ष्य में परिष्कृत विस्तृत विवेचना के लिये आभार।

[8/6, 8:51 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma: 

*सादर नमन आचार्य जायसवाल जी, 49 वर्ष आयुर्वेद की सैद्धान्तिक चिकित्सा करते हुये बहुत से सिद्धान्त स्पष्ट हुये कि जब संसार में सभी कारण द्रव्य पंचभौतिक है जैसे ...*

*वात - वात+ आकाश*
*पित्त - अग्नि+जल*
*कफ- जल +पृथ्वी*

*वात- गति, ज्ञानप्राप्ति, सूचना, उत्साह,वायु और आकाश प्रधान, राजस रजोगुण प्रधान*

*पित्त - ताप, उष्मा, पाक, परिवर्तन , अग्नि प्रधान और सात्विक*

*कफ - आलिंगन, संयोग, पृथ्वी जल प्रधान से तमो बहुल और तामस*

*महर्षि कणाद ने भौतिक राशियों (अमूर्त) को द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष और समवाय के रूप में नामांकित किया है तो विभिन्न आप्तोपदेश, अनुमानादि प्रमाणों, तर्क संग्रह, विभिन्न न्याय एवं वादों के आधार पर हम समस्त पदार्थों की पंचभौतिकता एवं उनका त्रिदोषात्मक विवेचन निर्धारित और स्पष्ट कर सकते हैं तो हमारी आयुर्वेदीय चिकित्सा का आधार क्योंकि दोष-दूष्य है तो वह पूर्णतः वैज्ञानिक धरातल पर हो कर सरल एवं और अधिक प्रायोगिक हो जाती है।*

*इस से हम भटकते नही है अगर कोई रोगी भी पूछे कि radiotherapy या chemotherapy भी आयुर्वेदानुसार क्या है तो हमें पता है कि इसकी पंचभौतिकता क्या है और किस दोष की वृद्धि करेगी, विभिन्न स्रोतस पर क्या प्रभाव पड़ेगा तो हम उस से होने वाले दुष्परिणामों से उसे बचा लेते है।*

*सब से बढ़ा लाभ उसी स्तर की औषध कल्पनाओं का निर्माण हम भी कुछ सीमा तक कर सकते है जो सीधा व्याधि प्रत्यनीक चिकित्सा के सदृश कार्य करेगी।*

                🌹🙏
[8/6, 9:27 AM] Vd. Mohan Lal Jaiswal: 

ऊँ
सुप्रभात वैद्य वर जी,
सादर प्रणाम
त्रिकालाबाधित आयुर्वेद सिद्धान्त की सतत उपादेयता।
🚩👏











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Above discussion held on 'Kaysampraday" a Famous WhatsApp -discussion-group  of  well known Vaidyas from all over the India. 

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Compiled & Uploaded by

Vd. Rituraj Verma
B. A. M. S.
ShrDadaji Ayurveda & Panchakarma Center,
Khandawa, M.P., India.
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Edited by

Dr.Surendra A. Soni

M.D.,PhD (KC) 
Professor & Head
P.G. DEPT. OF KAYACHIKITSA
Govt. Akhandanand Ayurveda College
Ahmedabad, GUJARAT, India.
Email: surendraasoni@gmail.com
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Case-presentation : 'Pittashmari' (Gall-bladder-stone) by Vaidya Subhash Sharma

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Admin note:  Prof. M.B. Gururaja Sir is well-known Academician as well as Clinician in south western India who has very vast experience in treatment of various Dermatological disorders. He regularly share cases in 'Kaysampraday group'. This time he shared cases in bulk and Ayu. practitioners and students are advised to understand individual basic samprapti of patient as per 'Rogi-roga-pariksha-vidhi' whenever they get opportunity to treat such patients rather than just using illustrated drugs in the post. As number of cases are very high so it's difficult to frame samprapti of each case. Pathyakram mentioned/used should also be applied as per the condition of 'Rogi and Rog'. He used the drugs as per availability in his area and that to be understood as per the ingredients described. It's very important that he used only 'Shaman-chikitsa' in treatment.  Prof. Surendra A. Soni ®®®®®®®®®®®®®®®®®®®®®®® Case 1 case of psoriasis... In this

Case presentation: Vrikkashmari (Renal-stone)

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WhatsApp Discussion Series: 24 - Discussion on Cerebral Thrombosis by Prof. S. N. Ojha, Prof. Ramakant Sharma 'Chulet', Dr. D. C. Katoch, Dr. Amit Nakanekar, Dr. Amol Jadhav & Others

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UNDERSTANDING THE DIFFERENTIATION OF RAKTAPITTA, AMLAPITTA & SHEETAPITTA

UNDERSTANDING OF RAKTAPITTA, AMLAPITTA  & SHEETAPITTA  AS PER  VARIOUS  CLASSICAL  ASPECTS MENTIONED  IN  AYURVEDA. Compiled  by Dr. Surendra A. Soni M.D.,PhD (KC) Associate Professor Head of the Department Dept. of Kaya-chikitsa Govt. Ayurveda College Vadodara Gujarat, India. Email: surendraasoni@gmail.com Mobile No. +91 9408441150

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[2/25, 6:47 PM] Vd Rajnikant Patel, Surat:  रेवती ग्रह पीड़ित बालक की आयुर्वेदिक चिकित्सा:- यह बच्चा 1 साल की आयु वाला और 3 किलोग्राम वजन वाला आयुर्वेदिक सारवार लेने हेतु आया जब आया तब उसका हीमोग्लोबिन सिर्फ 3 था और परिवार गरीब होने के कारण कोई चिकित्सा कराने में असमर्थ था तो किसीने कहा कि आयुर्वेद सारवार चालू करो और हमारे पास आया । मेने रेवती ग्रह का निदान किया और ग्रह चिकित्सा शुरू की।(सुश्रुत संहिता) चिकित्सा :- अग्निमंथ, वरुण, परिभद्र, हरिद्रा, करंज इनका सम भाग चूर्ण(कश्यप संहिता) लेके रोज क्वाथ बनाके पूरे शरीर पर 30 मिनिट तक सुबह शाम सिंचन ओर सिंचन करने के पश्चात Ulundhu tailam (यह SDM सिद्धा कंपनी का तेल है जिसमे प्रमुख द्रव्य उडद का तेल है)से सर्व शरीर अभ्यंग कराया ओर अभ्यंग के पश्चात वचा,निम्ब पत्र, सरसो,बिल्ली की विष्टा ओर घोड़े के विष्टा(भैषज्य रत्नावली) से सर्व शरीर मे धूप 10-15मिनिट सुबज शाम। माता को स्तन्य शुद्धि करने की लिए त्रिफला, त्रिकटु, पिप्पली, पाठा, यस्टिमधु, वचा, जम्बू फल, देवदारु ओर सरसो इनका समभाग चूर्ण मधु के साथ सुबह शाम (कश्यप संहिता) 15 दिन की चिकित्सा के वाद