Skip to main content

Posts

Case presentation: Jeern Raktatisar/pravahika by Vaidya Pratyush Sharma

12/27, 11:49 PM] Dr.Pratyush Sharma:  *Case presentation* मैं वैद्य प्रत्यूष शर्मा, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से  एम.डी. कायचिकित्सा २०२१ से कर केवल एक साल से प्रैक्टिस कर रहा हूँ। कृपया गलतियों पर टोकें ज़रूर।  एक रोगी रक्तयुक्त मलप्रवृत्ति की हिस्ट्री के साथ लेकिन उस समय विगत 5 दिनों से मल प्रवृत्ति ना होने की समस्या लेकर आया था। तात्कालिक तौर पर मैंने परीक्षण कर दोषानुसार अविपत्तिकर चूर्ण व ईसबगोल खाने को दिया। 3 दिन बाद वह रोगी मलप्रवृत्ति से संतुष्ट होकर अपनी मुख्य समस्या, ढेर सारी दवाइयों, जांच व  एक गैस्ट्रोलॉजिस्ट के 12-15 हज़ार रुपये प्रति माह की दवाइयों से त्रस्त हूँ ऐसा बताते हुयेआया।     रोगी के पास अल्सरेटिव कोलाइटिस की डाइग्नोसिस व कोलोनोस्कोपी में अल्सर्स की उपस्थिति की रिपोर्ट थी; उसने मुझसे इस बीमारी का इलाज करने को कहा। हीमोग्लोबिन 8ग्राम/डेसीलीटर था। रोग के अनुसार तो अतिसार जैसे लक्षण मिलने थी लेकिन  वह विबंध जैसे लक्षणों के साथ आया था (कारण ऐलोपैथिक दवाइयाँ थी) A male of 45 years of age with Chief complaints of- Non-passage of stool or passage of hard stool. (Rest eve

CLINICAL AYURVEDA PART-15: Case presentation- विशद गुण - सैद्धान्तिक एवं प्रायोगिक स्वरूप by Vaidyaraja Subhash Sharma

[12/14, 7:09 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma: CLINICAL AYURVEDA PART-15 *case presentation-  विशद गुण - सैद्धान्तिक एवं प्रायोगिक स्वरूप में ENLARGEMENT OF PROSTATE & PSA के उदाहरण के साथ ....* *सर्वप्रथम विशद की निरूक्ति एवं परिभाषा देखें तो पृथम दृष्टि में ही इसका महत्व चिकित्सा में कितना अधिक है यह स्पष्ट हो जाता है, 'शतलृ शातने' धातु में टक् प्रत्यय से विसर्ग पूर्वक विशद शब्द की उत्पत्ति होती है जिसका अभिप्राय शुद्ध बना देना और संशोधन कर देना है।* *सुश्रुत की हेमाद्रि टीका में इसे 'शुचि विमली तु विशद विशेषौ अदृष्टाना हि मलानां क्षालने शक्तिं शुचित्वं दृष्टानां विमलत्व' लिखा है अर्थात जो द्रव्य शरीर में दोष, धातु एवं मलों का शुद्धिकरण कर के उन्हे विमलत्व अर्थात शुद्ध, निर्मल एवं पारदर्शी सदृश बना दे उसे विशद कहा गया है।* *'पिच्छिलो जीवनो बल्यः सन्धानः श्लेष्मलो गुरुः, विशदो विपरीतोऽस्मात् क्लेदाचूषणरोपणः'  सु सू 46/517  यहां आचार्य सुश्रुत इसे पिच्छिल के विपरीत कर्म वाला अर्थात शरीर में से क्लेद का शोषण कर निर्मल बनाता है और रोपण कर्म भी करता है।जो शरीर में