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WDS 101: 'Kha-vaigunya/Srotas (ख-वैगुण्य/स्रोतस्) by Vaidyaraja Subhash Sharma, Prof. S. K. Khandal, Prof. Gurdeep Singh, Prof. L. K. Dwivedi, Dr. Dinesh Katoch, Dr. Sanjay Chhajed, Prof. Arun Rathi, Prof. Giriraj Sharma, Dr. Pawan Madaan, Vd. Raghuram Bhatta, Dr. B. K. Mishra, Vd. Atul Kale, Dr. Bharat Padhar, Prof. Mrinal Tiwari, Vd. Ashok Rathod, Dr. Sukhbeer Soni, Dr. Divyesh Desai, Dr. Bhadresh Nayak, Vd. Radheshyam Soni, Prof. Madhav Diggavi, Prof. Mamata Bhagwat, Dr. Satish Solanki, Dr. Sanjay Khedkar, Vd. Prajakta Tomar, Dr. Shashi Jindal, Dr. Sumeet Arora & Others.

[12/30, 2:58 PM] Dr. Pawan Madan:  चरण स्पर्श गुरु जी। तीन प्रकार के हेतु ,,,दोष प्रकोपक  ,,,धातु दुष्टि कारक ,,,ख वैगुण्य कारक ये तीनों मिल कर व्याधि की उत्त्पत्ति का निश्चय कर देते हैं। कई बार धातु वैगुण्य कारक  हेतु  बहुत पहले से कार्य कर रहे होते हैं फिर बाद में कभी भी जब दोष प्रकोप होता है तो एक दम से व्याधि प्रकट हो जाती हैं। गुरु जी क्या खवैगुण्य कारण व धातु दुष्टि कारण एक ही नही हैं, क्योंकि खवैगुण्य भी धातुओं में ही होता है ? 🙏🙏  ख-वैगुण्य कारक  हेतु से धातुदुष्टि भी होना आवश्यक नहीं है🙏🏼 [12/30, 5:16 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:  *शुभ सन्ध्या सहित नमस्कार पवन जी, हेतु केवल तीन ही कार्य करेंगें, दोषों को कुपित अथवा वृद्ध करेंगे जैसे प्रमेह में  'बहुद्रवः श्लेष्मा दोषविशेषः'  च नि 4/6  हेतु से कफ की वृद्धि,  तृष्णा रोग में  'पित्तानिलौ प्रवृद्धौ सौम्यान्धातूंश्च शोषयतः'  च चि 22/5  पित्त और वात मिल कर तृष्णा,  गुल्म में वात वर्धक हेतु देखिये  'रूक्षान्नपानैरतिसेवितैर्वा शोकेन मिथ्याप्रतिकर्मणा वा, विचेष्टितैर्वा विषमातिमात्रैः कोष्ठे प्रकोपं समुपैति वाय