[6/18, 12:36 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi:
*धातु पोषण - क्रम परिणाम पक्ष - धातुयें एक के बाद एक किस प्रकार से उत्पन्न होती हैं और पोषण करती हैं ?
माष (उड़द दाल) की पंचभौतिकता, जाठराग्नि, भूताग्नि और धात्वाग्नि के उदाहरण सहित सैद्धान्तिक व्याख्या..*
Vaidyaraja Subhash sharma, MD (kayachikitsa, jamnagar - 1985)
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*आर्ष ग्रन्थों में आयुर्वेद का ज्ञान सूत्र रूप में वर्णित है, टीकाकारों ने इसे स्पष्ट किया है पर आधुनिक समय में जो आहार है उसकी पंचभौतिकता सहित इसका पाचन होकर किस प्रकार यह शरीर मे धातुओं का निर्माण कर रहा है उसकी विस्तार से व्याख्या यहां कर रहे हैं।*
*माष अर्थात उड़द की दाल का प्रयोग भारत ही नहीं विश्वभर में दाल मखनी, काली दाल, लाला मूसा दाल, दाल बुखारा, दाल महारानी आदि नाम से सेवन किया जा रहा है। इसके उदाहरण सहित सेवन के पश्चात शरीर में किस प्रकार 3 और 13 प्रकार की अग्नियों द्वारा digestion & absorption हो कर धातु निर्माण हो रहा है, यह क्रम परिणाम पक्ष स्पष्ट करेंगे।*
*'रसाद्रक्तं ततो मांसं मांसान्मेदः प्रजायते मेदसोऽस्थि ततो मज्जा मज्ज्ञः शुक्रं तु जायते....'
सु सू 14/10,
आचार्य डल्हण टीका 'रसात् स्तन्यमार्तवं च, रक्तात् कण्डराः सिराश्च, मांसाद्वसात्वचौ, मेदसः स्नायुसन्धी इति'*
*'तत्रैतेषां धातूनामन्नपानरसः प्रीणयिता रसजं पुरुषं विद्याद्रसं रक्षेत् प्रयत्नतः । अन्नात्पानाञ्च मतिमाना -चाराञ्चाप्यतन्द्रितः'
सु सू 14/11-12,*
*यहां धातु पोषण का क्रम परिणाम पक्ष अति महत्वपूर्ण प्रकार से स्पष्ट किया है, जिस को जानकर ही अनेक जिज्ञासाओं का समाधान मिलेगा।*
*रस की रक्षा प्रमुख प्राथमिकता सदैव होनी चाहिये और इसकी रक्षा आहार, पान और आचार रसायन का पालन कर के होती है।*
*इन तीनें में ही आधुनिक समय का diet, daily routine और human values का भी समावेश हो जाता है। क्योंकि सब धातुओं का तर्पण अन्नपान से प्राप्त रस ही करता है और मनुष्य का शरीर भी रस से ही उत्पन्न हुआ है।*
*जब हम भोजन ग्रहण करते हैं तो यह क्रम तीन प्रकार से परिणाम देगा जो प्रत्येक धातु के बनते हैं,
1- मल,
2- स्थूल और
3- अणु।
भोजन के अन्न का मल विष्ठा और मूत्र है।इसका सार भाग रस है। भोजन के अन्न के रस का यह सार भाग 'पोषक रस' है जिसे आधुनिक संज्ञा chyle भी दी है।*
*इस पोषक रस का भी पचन होने पर मल कफ बनेगा और स्थूल भाग 'पोष्य रस' कहलाया जायेगा और अणु भाग रक्त बनेगा जिसे आधुनिक में plasma कहते हैं।*
*पोषक रस से बने नवीन रक्त का पचन हो कर स्थूल भाग रक्त और मल पित्त बनता है और अणु भाग मांस बनता है।*
*इस नवीन उत्पन्न मांस का पचन हो कर स्थूल मांस, मल नासा, कर्ण, नेत्र आदि का मल और भाग मेद बनता है।*
*अब नवीन उत्पन्न मेद का पचन हो कर स्थूल भाग मेद बनेगा, मल स्वेद और अणु भाग अस्थि बनता है।*
*अस्थि का पचन होकर मल रूप में केश, लोम, श्मश्रु के रूप में बनते हैं और स्थूल भाग अस्थि बनता है और अणु भाग मज्जा।*
*इस नवीन भाग मज्जा का पचन होने पर मल स्वरूप नेत्रों का कीचड़ और त्वचा का स्नेह बनता है, स्थूल भाग मज्जा और अणु भाग शुक्र बनेगा।*
*शुक्र का पचन होने पर मल नहीं बनता और स्नेह भाग ओज कहलाता है।*
*धातुयें क्रमशः एक से दूसरे की पुष्टि कैसे करती हैं यह,
'रसस्तुष्टिं प्रीणनं रक्तपुष्टिं च करोति, रक्तं वर्णप्रसादं मांसपुष्टिं जीवयति च, मांसं शरीरपुष्टिं मेदसश्च, मेदः स्नेहस्वेदौ दृढत्वं पुष्टिमस्थ्नां च, अस्थीनि देहधारणं मज्ज्ञः पुष्टिं च, मज्जा स्नेहं बलं शुक्रपुष्टिं पूरणमस्थ्नां च करोति, शुक्रं धैर्यं च्यवनं प्रीतिं देहबलं हर्षं बीजार्थं च'
सु सू 15/6
में स्पष्ट किया है।*
[6/18, 12:36 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi:
*माष/उड़द दाल-*
*'माषो गुरुः स्वादुपाकः स्निग्धो रुच्योऽनिलापहः*
*स्रंसनस्तर्पणो बल्यः शुक्रलो बृंहणः परः, भिन्नमूत्रमलः स्तन्यो मेदः पित्तकफप्रदःगुदकीलार्दितश्वासपक्ति
शूलानि नाशयेत्, कफपित्तकरा माषाः कफपित्तकरं दधि, कफपित्तकरा मत्स्या वृन्ताकं कफपित्तकृत्'*
*भा प्र धान्य वर्ग 41/43*
*'वृष्यः परं वातहरः स्निग्धोष्णो मधुरो गुरुः बल्यो बहुमलः पुंस्त्वं माषः शीघ्रं ददाति च'*
*च सू 27/24*
*'माषो गुरुर्भिन्नपुरीषमूत्रः स्निग्धोष्ण वृष्यो मधुरोऽनिलघ्नः सन्तर्पणः स्तन्यकरो विशेषाद्बलप्रदः शुक्र -कफावहश्च'
सु सू 46/34*
*'माषाः श्लेष्मपित्तजननानां'
च सू 25/40*
*रस - मधुर,
गुण - मधुर स्निग्ध,
वीर्य - उष्ण,
विपाक - मधुर*
*मधुर, गुरू और स्निग्ध से कफवर्धक, उष्ण होने से पित्त वर्धक और इन सब गुणों के कारण स्वभाव से वातशामक।*
*1- पंचभौतिकता (Composition based on Five Elements) -*
*'सर्वं द्रव्यं पाञ्चभौतिकमऽस्मिन्नर्थे तच्चेतनावदचेतनं च, तस्य गुणाः शब्दादयो गुर्वादयश्च द्रवान्ताः, कर्म पञ्चविधमुक्तं वमनादि'
च सू 26/10,
"सर्वं द्रव्यं पंचभौतिकम्" यह सिद्धांत आयुर्वेद का एक मौलिक सिद्धांत है कि ब्रह्मांड में प्रत्येक चीज़, जिसमें यह प्राणियों का शरीर भी शामिल है, पंचमहाभूतों पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से बनी है और यहां उड़द की दाल भी पंचभौतिक तत्वों से बनी है।*
*उड़द दाल में मुख्य रूप से पृथ्वी और जल महाभूतों की प्रधानता होती है।*
*पृथ्वी महाभूत - यह स्थिरता, गुरूता और स्थूलता प्रदान करता है। उड़द दाल के गुरु गुण में पृथ्वी महाभूत का योगदान सर्वाधिक होता है।*
*जल महाभूत - यह स्निग्धता, तरलता और पोषण प्रदान करता है। उड़द दाल की स्निग्धता और शरीर में पोषण देने की क्षमता जल महाभूत के कारण होती है।*
*अग्नि महाभूत - हालांकि पृथ्वी और जल प्रधान हैं, इसमें अल्प मात्रा में अग्नि महाभूत भी होता है जो इसके पाचन और उष्ण वीर्य बनाने में योगदान देता है।*
*वायु और आकाश महाभूत - ये बहुत ही अल्प मात्रा में होते हैं और उड़द दाल के पाचन में विलंब और गुरुता के विपरीत प्रभाव डालते हैं, लेकिन इनका प्रभाव नगण्य होता है।*
*2 - रस-*
*उड़द दाल का मुख्य रस मधुर होता है।*
*मधुर रस - मधुर रस शरीर को पोषण देता है, बल बढ़ाता है, tissues का निर्माण करता है और मन को शांत करता है। उड़द दाल का मधुर रस इसे शरीर के लिए पौष्टिक बनाता है।*
*3 - गुण (Qualities)-*
*उड़द दाल के प्रमुख गुण निम्नलिखित हैं -*
*गुरु (Heavy) - यह पाचन में भारी होती है।*
*स्निग्ध (Unctuous/Oily)- यह स्निग्ध और तैलीय होती है, जो शरीर में रुक्षता को कम करती है।*
*बल्य (Strength promoting)- यह शारीरिक बल और मांसपेशियों का वर्धन करती है।*
*बृहण (Nutritive/Bulky)- यह शरीर में tissues का निर्माण करती है और body weight बढ़ाने में सहायक होती है।आजकल gym जाने वाले युवा इसका सेवन भरपूर करते हैं।*
*उष्ण- इसका वीर्य उष्ण होता है इसीलिये यह शरीर में हल्की गर्मी पैदा करती है।*
*वातघ्न (Vata pacifying) - यह वात दोष को शांत करती है।*
*कफकर (Kaph promoting) - यह कफ दोष को बढ़ा सकती है, विशेष रूप से अधिक मात्रा में या अनुचित तरीके से सेवन करने पर जैसे देर रात्रि, दिन में दो तीन बार सेवन करने पर, भोजन करते ही शयन करने पर।*
*पित्तकर (Pitta promoting) - उष्ण वीर्य और अति सेवन से किंचित अम्लता के कारण यह पित्त को बढ़ा सकती है यदि इसका सेवन उचित मात्रा में न किया जाये।*
*मूत्रल (Diuretic) - यह मूत्र के उत्पादन को बढ़ा सकती है।*
*शुक्रल (Aphrodisiac) - यह शुक्र धातु को बढ़ाती है और यौन शक्ति में सुधार करती है।*
*4 - वीर्य-*
*उड़द दाल का वीर्य उष्ण (Hot) होता है।*
*उष्ण वीर्य - उष्ण वीर्य वाले पदार्थ शरीर में गर्मी, ताप या उष्णता उत्पन्न करते हैं, पाचन की वृद्धि करते हैं, वात और कफ को शमन करते हैं। यही कारण है कि उड़द दाल वातशामक होती है और ठंडे मौसम में इसका सेवन अधिक उपयुक्त माना जाता है।*
*5 - विपाक-*
*उड़द दाल का विपाक मधुर होता है।*
*मधुर विपाक - मधुर विपाक वाले पदार्थ पाचन के बाद मधुर रस में परिवर्तित होते हैं। यह शरीर में पोषण, शक्ति और ओज का निर्माण करते हैं, और मल-मूत्र की प्रवृत्ति को सामान्य करते हैं।*
*उड़द दाल (माष) का सेवन करने पर आयुर्वेद के क्रम परिणाम पक्ष (Sequential Transformation) के सिद्धांत के अनुसार, जाठराग्नि, भूताग्नि और धात्वाग्नि की भूमिका से रस और धातुओं का पोषण व निर्माण किस प्रकार होता है, इस पर विस्तार से चर्चा करते हैं...*
*1- जाठराग्नि की भूमिका-*
*जब हम उड़द दाल का सेवन करते हैं तो यह सबसे पहले वह जाठराग्नि के संपर्क में आती है जो हमारे आमाश्य और पक्वाशय में स्थित होती है।*
*पाचन का आरंभ - जाठराग्नि उड़द दाल के गुरु (भारी) और स्निग्ध (तैलीय) गुणों के कारण इसे पचाने के लिए तीव्रता से कार्य करती है। यह उड़द दाल को छोटे-छोटे घटकों में विभाजित करती है।*
*सार और किट्ट विभाजन - जाठराग्नि भोजन को दो भागों में विभाजित करती है..*
*सार भाग (Nutritive Essence) - यह पोषक तत्वों से भरपूर होता है जिसमें आधुनिक मतानुसार प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, विटामिन और खनिज शामिल हैं। उड़द दाल का मधुर रस पाचन के बाद मधुर विपाक में बदलता है, जिससे यह सार भाग अधिक पौष्टिक बनता है।*
*किट्ट भाग या मल स्वरूप Waste Products- यह अपचित और अनुपयोगी भाग होता है जो मल के रूप में शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है।*
*रस धातु का निर्माण - जाठराग्नि द्वारा पचित सार भाग, जिसे आहार रस या प्रथम रस धातु कहा जाता है आंतों द्वारा अवशोषित होकर रक्त परिसंचरण में प्रवेश करता है। यह रस धातु शरीर के सभी अंगों और धातुओं (tissues) को प्रारंभिक पोषण प्रदान करती है।*
*2 - भूताग्नि की भूमिका-*
*आहार रस के शरीर में प्रवेश करने के बाद, भूताग्नि जो प्रत्येक महाभूत से संबंधित होती है- पार्थिवाग्नि, आप्याग्नि, तैजसाग्नि, वायव्याग्नि और आकाशाग्नि अपना कार्य करती है। ये भूताग्नियां रस धातु में मौजूद विभिन्न महाभूतों के अंशों पर कार्य करती हैं।*
*महाभूतों का कार्य - उड़द दाल मुख्य रूप से पृथ्वी और जल महाभूतों से बनी है। भूताग्नियां आहार रस में मौजूद इन महाभूतों के अपक्व अंशों को परिपक्व करती हैं और उन्हें शरीर के महाभूतों के समान गुणों वाला बनाती हैं। उदाहरण के लिए पार्थिवाग्नि पृथ्वी तत्वों को संसाधित करती है जिससे वे शरीर की पृथ्वी आधारित संरचनाओं जैसे अस्थियां, मांसपेशियों में उपयोग के लिए तैयार होते हैं।*
*समरूपता का निर्माण- यह प्रक्रिया सुनिश्चित करती है कि ingested food उड़द दाल के महाभूत शरीर के अपने महाभूतों के साथ सामंजस्य स्थापित कर सकें। इससे रस धातु की गुणवत्ता बढ़ती है और वह अगली धातु में परिवर्तित होने के लिए तैयार होती है।*
*3- धात्वाग्नि की भूमिका एवं धातुओं का क्रमबद्ध पोषण-*
*भूताग्नियों द्वारा शुद्ध किए गए आहार रस पर अब धात्वाग्नियां प्रत्येक धातु की अपनी विशिष्ट अग्नि कार्य करती हैं। आयुर्वेद में वर्णित सात धातुयें रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, शुक्र और प्रत्येक धातु का निर्माण पिछली धातु के पोषण से होता है।*
*रसाग्नि और रक्त धातु का निर्माण -*
*रसाग्नि - आहार रस भूताग्नियों द्वारा शुद्ध होकर रसाग्नि के संपर्क में आता है।*
*रक्त धातु का निर्माण - रसाग्नि इस रस को और अधिक परिपक्व करती है, जिससे इसका कुछ अंश रक्त धातु में परिवर्तित हो जाता है। उड़द दाल के बल्य और बृहण गुण यहां काम आते हैं, क्योंकि वे रस के पोषण को बढ़ाकर रक्त निर्माण में सहायता करते हैं।*
*उपधातु और मल - इसी प्रक्रिया में स्तन्य और आर्तव जैसी उपधातुएं बनती हैं और कफ (श्लेष्मा) के रूप में रस का मल बनता है।*
*रक्ताग्नि और मांस धातु का निर्माण-*
*रक्ताग्नि - रक्त धातु का सार भाग रक्ताग्नि के संपर्क में आता है।*
*मांस धातु का निर्माण- रक्ताग्नि इस सार को पकाकर मांस धातु (मांसपेशियों) का निर्माण करती है। उड़द दाल का प्रोटीन और बृंहण गुण मांसपेशियों के विकास और दृढ़ता में विशेष रूप से सहायक होते हैं।*
*उपधातु और मल- मांस धातु के पोषण से वसा (त्वचा के नीचे की चर्बी) जैसी उपधातु बनती है और कर्ण मल (कान का मैल), नासिका मल (नाक का मल), नेत्र मल (आंखों का मल) आदि इसके मल होते हैं।*
*मांसाग्नि और मेद धातु का निर्माण -*
*मांसाग्नि - मांस धातु का सार भाग मांसाग्नि द्वारा पकाया जाता है।*
*मेद धातु का निर्माण - इससे मेद धातु (वसा tissues) का निर्माण होता है। उड़द दाल की स्निग्धता और पोषण क्षमता यहां मेद के स्वस्थ निर्माण में योगदान करती है, जो शरीर को ऊर्जा और इन्सुलेशन प्रदान करती है।*
*उपधातु और मल मेद से स्नायु और संधिबंधन (लिगामेंट्स) जैसी उपधातुयें बनती हैं और स्वेद इसका मल होता है।*
*मेदाग्नि और अस्थि धातु का निर्माण-*
*मेदाग्नि- मेद धातु का सार भाग मेदाग्नि के संपर्क में आता है।*
*अस्थि धातु का निर्माण- मेदाग्नि इसे पकाकर अस्थि धातु का निर्माण करती है। उड़द दाल में कुछ मात्रा में खनिज भी होते हैं, जो अप्रत्यक्ष रूप से अस्थि निर्माण में सहायक होते हैं।*
*उपधातु और मल -अनेक विद्वान अस्थि से दंत, केश जैसे तत्व उपधातु के रूप में बनते हैं और नख इसका मल होता है, ऐसा भी मानते हैं।*
*अस्थ्याग्नि और मज्जा धातु का निर्माण -*
*अस्थ्याग्नि- अस्थि धातु का सार भाग अस्थ्याग्नि द्वारा पकाया जाता है।*
*मज्जा धातु का निर्माण - इससे मज्जा धातु (अस्थि मज्जा- bone marrow) का निर्माण होता है। मज्जा वात नाड़ी तंत्र के स्वास्थ्य और रक्त कोशिकाओं के उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण है।*
*उपधातु और मल- मज्जा से नेत्रपटल (नेत्रों के श्वेत भाग) और त्वचा की चर्बी जैसी उपधातुयें बनती हैं।*
*मज्जाग्नि और शुक्र धातु का निर्माण -*
*मज्जाग्नि - मज्जा धातु का सार भाग मज्जाग्नि द्वारा पकाया जाता है।*
*शुक्र धातु का निर्माण- अंततः यह शुक्र धातु (प्रजनन tissues) में परिवर्तित होता है। उड़द दाल को आयुर्वेद में शुक्रल कहा गया है जिसका अर्थ है कि यह सीधे शुक्र धातु के पोषण और उसकी गुणवत्ता को बढ़ाने में सहायक है, जिससे प्रजनन क्षमता और यौन शक्ति में सुधार होता है।*
*उपधातु और मल - शुक्र से ओज का निर्माण होता है जो सभी धातुओं का परम सार है।*
*इस प्रकार, उड़द दाल का सेवन करने पर, जाठराग्नि उसे आहार रस में परिवर्तित करती है। फिर भूताग्नियां उस रस को शुद्ध करती हैं, और अंत में क्रमबद्ध रूप से कार्य करने वाली धात्वाग्नियां उस शुद्ध रस को एक-एक धातु (रस से लेकर शुक्र तक) में परिवर्तित करती हैं।*
*माष (उड़द दाल) का स्रोतस पर कार्य..*
*यहां उड़द दाल के कार्य क्षेत्र को प्रमुख स्रोतस के संदर्भ में समझते हैं...*
*1 - प्राणवह स्रोतस (Respiratory Channels) -*
*'क्षयात् सन्धारणाद्रौक्ष्याद्व्यायामात् क्षुधितस्य च ।*
*प्राणवाहीनि दुष्यन्ति स्रोतांस्यन्यैश्च दारुणैः'
च वि 5/10*
*कार्य - श्वसन, प्राणवायु का आदान-प्रदान।*
*उड़द दाल का प्रभाव - उड़द दाल के गुरु (भारी) और कफकर (कफ बढ़ाने वाला) गुण के कारण यदि इसका सेवन अधिक मात्रा में या अनुचित तरीके से किया जाए तो यह फुफ्फुस और श्वसन मार्ग में कफ की वृद्धि कर सकती है। इससे प्राणवह स्रोतस में अवरोध या गुरूता का अनुभव हो सकता है, विशेष रूप से कफ प्रकृति के व्यक्तियों या श्वसन संबंधी विकार वाले रोगियों में।हालांकि इसकी उष्ण वीर्य वात को शमव करके श्वसन मांसपेशियों को विश्राम दे सकता है, लेकिन कफ वृद्धि का पक्ष अधिक प्रमुख है।*
*2- अन्नवह स्रोतस (Digestive Channels)-*
*'अतिमात्रस्य चाकाले चाहितस्य च भोजनात् अन्नवाहीनि दुष्यन्ति वैगुण्यात् पावकस्य च'
च वि 5/12*
*कार्य - भोजन का पाचन, अवशोषण और मल का निष्कासन।*
*उड़द दाल का प्रभाव -*
*पाचन में उड़द दाल गुरु (भारी) और स्निग्ध (तैलीय) होने के कारण अन्नवह स्रोतस पर बोझ डाल सकती है। इससे पाचक अग्नि मंद हो सकती है (अग्निमांद्य) और आध्मान या अपच हो सकता है, विशेषकर मंदाग्नि वाले व्यक्तियों में।*
*विबंध - इसकी गुरु और किंचित ग्राही क्षमता कुछ व्यक्तियों में कब्ज का कारण बन सकती है, खासकर यदि पर्याप्त जल के साथ या उचित रूप से तैयार न किया जाये हालांकि इसमें मौजूद फाइबर कुछ लोगों में मल त्याग को नियमित करने में भी मदद कर सकता है।*
*3- रसवाही स्रोतस-*
*'गुरुशीतमतिस्निग्धमतिमात्रं समश्नताम् । रसवाहीनि दुष्यन्ति चिन्त्यानां चातिचिन्तनात्'
च वि 5/13*
*कार्य - शरीर के सभी धातुओं को पोषण पहुंचाना, द्रव संतुलन बनाए रखना।*
*उड़द दाल का प्रभाव- उड़द दाल बृहंण(पोषक) और मधुर विपाक होने के कारण रसवह स्रोतस को सीधे प्रभावित करती है । यह रस धातु की गुणवत्ता और मात्रा को बढ़ाती है, जिससे शरीर को उचित पोषण मिलता है। इसकी स्निग्धता रस को चिकनाई प्रदान करती है, जो पूरे शरीर में उसके प्रवाह को सुगम बनाती है।*
*4 - रक्तवह स्रोतस-*
*'विदाहीन्यन्नपानानि स्निग्धोष्णानि द्रवाणि च । रक्तवाहीनि दुष्यन्ति भजतां चातपानलौ'
च वि 5/14
*कार्य - शरीर में ऑक्सीजन और पोषक तत्वों का परिवहन, जीवन शक्ति बनाये रखना।*
*उड़द दाल का प्रभाव - उड़द दाल रक्त धातु के निर्माण में सहायक होती है, जो रसवह स्रोतस के माध्यम से पोषण प्राप्त करने के बाद रक्तवह स्रोतस द्वारा पूरे शरीर में वितरित होती है। इसकी उष्ण वीर्यता रक्त परिसंचरण को बढ़ावा दे सकती है। हालांकि, यदि पाचन कमजोर हो तो अपचित "आम" रक्त में मिलकर रक्तवह स्रोतस में अवरोध पैदा कर सकता है।*
*5 - मांसवह स्रोतस-*
*'अभिष्यन्दीनि भोज्यानि स्थूलानि च गुरूणि च । मांसवाहीनि दुष्यन्ति भुक्त्वा च स्वपतां दिवा'
च वि 5/15*
*कार्य - मांसपेशियों का निर्माण,बल और स्थिरता।*
*उड़द दाल का प्रभाव- उड़द दाल बल्य (शक्तिवर्धक) और बृंहण (मांसपेशियों का निर्माण करने वाला) होने के कारण मांसवह स्रोतस पर सीधा सकारात्मक प्रभाव डालती है। यह मांसपेशियों के tissues को पोषण देती है जिससे उनकी वृद्धि और मजबूती होती है।*
*6 - मेदवह स्रोतस-*
*'अव्यायामाद्दिवास्वप्नान्मेद्यानां चातिभक्षणात् । मेदोवाहीनि दुष्यन्ति वारुण्याश्चातिसेवनात्'
च वि 5/16*
*कार्य - ऊर्जा भंडारण, स्नेहन, शरीर का इन्सुलेशन।*
*उड़द दाल का प्रभाव- उड़द दाल की स्निग्धता और बृंहण कर्म मेद धातु के स्वस्थ निर्माण में सहायक होते हैं। यदि इसका सेवन अत्यधिक मात्रा में किया जाए, खासकर घी और मक्खन के साथ तो यह मेदवह स्रोतस में वसा के अत्यधिक संचय का कारण बन सकती है जिससे ये स्रोतस अवरुद्ध हो सकते हैं।*
*7 - अस्थिवह स्रोतस-*
*'व्यायामादतिसङ्क्षोभादस्थ्नामतिविघट्टनात् । अस्थिवाहीनि दुष्यन्ति वातलानां च सेवनात्'
च वि 5/17*
*कार्य - अस्थियो का निर्माण और पोषण।*
*उड़द दाल का प्रभाव - यद्यपि उड़द दाल सीधे अस्थि निर्माण में प्राथमिक रूप से शामिल नहीं है। यह अन्य धातुओं (रस, रक्त, मांस, मेद) के पोषण के माध्यम से अप्रत्यक्ष रूप से अस्थि धातु को पोषण देती है, क्योंकि सभी धातुएं एक-दूसरे पर निर्भर करती हैं।*
*8 - मज्जावह स्रोतस-*
*'उत्पेषादत्यभिष्यन्दादभिघातात् प्रपीडनात् । मज्जवाहीनि दुष्यन्ति विरुद्धानां च सेवनात्'
च वि 5/18*
*कार्य- nerve functions और अस्थि मज्जा का पोषण।*
*उड़द दाल का प्रभाव - उड़द दाल वातघ्न (वात शामक) है और वात दोष nervous system से जुड़ा है। मज्जावह स्रोतस के माध्यम से यह nervous tissue को पोषण देती है और वात के असंतुलन से होने वाली समस्याओं such as neurological impairment को कम करने में मदद कर सकती है।*
*9- शुक्रवह स्रोतस-*
*'अकालयोनिगमनान्निग्रहादतिमैथुनात् । शुक्रवाहीनि दुष्यन्ति शस्त्र क्षाराग्निभिस्तथा'
च वि 5/19*
*कार्य - प्रजनन स्वास्थ्य, जीवन शक्ति, ओज का निर्माण।*
*उड़द दाल का प्रभाव - उड़द दाल को आयुर्वेद में एक उत्कृष्ट शुक्रल (Aphrodisiac) द्रव्य माना गया है। यह शुक्रवह स्रोतस को पोषण देती है जिससे Reproductive Tissue की गुणवत्ता और मात्रा में सुधार होता है, यौन शक्ति बढ़ती है, और ओज का निर्माण होता है।*
*10 - मूत्रवाही स्रोतस-*
*'मूत्रितोदकभक्ष्य स्त्रीसेवनान्मूत्र निग्रहात् मूत्रवाहीनि दुष्यन्ति क्षीणस्याभिक्षतस्य च'
च वि 5/20*
*'कार्य- मूत्र का निर्माण और निष्कासन।*
*उड़द दाल का प्रभाव - उड़द दाल मूत्रल (Diuretic) गुण रखती है, जिसका अर्थ है कि यह मूत्रवाही स्रोतस के माध्यम से मूत्र के उत्पादन और निष्कासन को बढ़ाती है। यह शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करती है।*
*11 - स्वेदवह स्रोतस-*
*'व्या२यामादतिसन्तापाच्छीतोष्णाक्रमसेवनात् स्वेदवाहीनि दुष्यन्ति क्रोधशोकभयैस्तथा'
च वि 5/22*
*कार्य- स्वेद निकालना,शरीर के तापमान का नियमन।*
*उड़द दाल का प्रभाव - उड़द दाल के उष्ण वीर्य के कारण यह स्वेदवह स्रोतस को कुछ सीमा तक उत्तेजित कर सकती है जिससे पसीना आता है और शरीर से कुछ विषाक्त पदार्थ बाहर निकलते हैं।*
*12 - पुरीषवह स्रोतस-*
*'सन्धारणादत्यशनादजीर्णाध्यशनात्तथा वर्चोवाहीनि दुष्यन्ति दुर्बलाग्नेः कृशस्य च'
च वि 5/21*
*कार्य- मल का निर्माण और निष्कासन।*
*उड़द दाल का प्रभाव - उड़द दाल का गुरु गुण और फाइबर सामग्री मल के निर्माण और निष्कासन को प्रभावित करती है। कुछ लोगों में यह मल को बांध सकती है (ग्राही गुण), जबकि अन्य में यह नियमित मल त्याग में मदद कर सकती है यदि पाचन शक्ति ठीक हो।*
*13 - अम्बुवाही स्रोतस-*
*'औष्ण्यादामाद्भयात् पानादति शुष्कान्नसेवनात् अम्बुवाहीनि दुष्यन्ति तृष्णायाश्चातिपीडनात्'
च वि 5/11*
*कार्य- द्रव, जल संतुलन, तृषा*
*उड़द दाल का प्रभाव - उड़द दाल के स्निग्ध और जल महाभूत की प्रधानता शरीर में जलीय अंश को पोषण देती है जिससे अम्बुवह स्रोतस के माध्यम से जल संतुलन बनाए रखने में मदद मिलती है।*
*सारांश में उड़द दाल का स्रोतस पर प्रभाव उसके गुणों पर निर्भर करता है। यह मुख्य रूप से रसवह, रक्तवह, मांसवह, मेदवह, मज्जावह और शुक्रवह स्रोतस को पोषण देकर उन्हें मजबूत और कार्यशील बनाती है। यह मूत्रवह स्रोतस को भी साफ करती है। हालांकि, इसकी गुरुता और कफकर गुण के कारण, यह प्राणवह और अन्नवह स्रोतस में कफ और आम के संचय का कारण बन सकती है यदि इसका सेवन अधिक मात्रा में या कमजोर पाचन वाले व्यक्ति द्वारा किया जाए। इसलिए, उड़द दाल का सेवन व्यक्तिगत प्रकृति (प्रकृति), पाचन शक्ति (अग्नि) और ऋतु के अनुसार संतुलित मात्रा में करना महत्वपूर्ण है ताकि स्रोतस सुचारु रूप से कार्य कर सकें।*
*उड़द दाल के विशिष्ट गुण जैसे गुरु (भारीपन), स्निग्धता (चिकनाई), बल्य (शक्तिवर्धक), बृंहण (वजन बढ़ाने वाला) और शुक्रल (प्रजनन क्षमता बढ़ाने वाला) इस संपूर्ण पोषण प्रक्रिया को बढ़ावा देते हैं, जिससे शरीर के सभी ऊतकों का निर्माण और मजबूती होती है, और व्यक्ति को ऊर्जा व ओज की प्राप्ति होती है। यह पूरी प्रक्रिया संतुलित अग्नि और स्वस्थ आहार पर निर्भर करती है।*
[6/18, 5:25 AM] Vaidya Sanjay P. Chhajed:
This is great understanding ; one can explore any food for it's action in the same manner.
[6/18, 5:33 AM] Vd. V. B. Pandey Basti(U.P.):
सादर प्रणाम व आभार गुरुवर 🙏
उड़द को माध्यम बनाकर लगभग पूरी आयुर्वेदिक शरीर क्रिया विज्ञान का सुन्दर व सरल विश्लेषण गुरुवर।🙏
[6/18, 6:36 AM] L. k. Dwivedi Sir:
कफपित्तं मल:खेषु स्वेद:स्यान्नखरोम च। नेत्रविट् त्वक्षुच स्नेहो नधातूनां क्रमशो मला।। 🌞🙏🏽🌞
[6/18, 6:52 AM] Dr Divyesh Desai:
🙏🏾🙏🏾अति सुंदर 🙏🏾🙏🏾 अग्नि व्यापार, धातु पोषण क्रम, उपधातु, मल उत्पत्ति, आहार का स्त्रोत्स पर प्रभाव, एक ही आहार से कोई दोष का शमन और किसी दोष का प्रकोप,
Indirectly क्यों 1 या 2 बार ही आहार ग्रहण करना चाहिए ये बात भी उडद द्रव्य के माध्यम से अच्छी तरह से समझ में आई ।
उडद का प्रयोग जानु बस्ति या कोई अंग की बस्ती देने के लिए, अन्न लेपन (अर्दित में) के रूप में आचार्यो ने बताया है, तो......
त्वचा के अलग अलग लेयर
अवभासिनी,
लोहिता,
श्वेता,
वेदिनी,
ताम्रा,
रोहिणी एवं मांसधरा कला पर उडद का क्या क्या प्रभाव होता है ? या अन्न लेपन, उद्वर्तन से उडद शरीर पर कैसे कार्य करेगा ?
आदरणीय सुभाष सर ने *उड़द* का ही उदाहरण दिया, इसके पीछे भी कोई कार्यकारण भाव अवश्य होगा, ऐसा प्रतीत होता है।
सुप्रभात एवं वंदन सभी आयुर्वेद गुरुजनोंको🙏🏾🙏🏾
[6/18, 7:18 AM] L. k. Dwivedi Sir:
यही सब उड़द पंचांग को लेकर विचार करें तो, पशुओं की विविध अग्नि यों की क्षमता का पता चलता है। यथा
"*माषपर्णभृतां धेनूं*" परिणाम में क्षीर में वाजीकरण गुण बढ़ता है । जब की मनुष्य में पंचांग प्रयुक्त नहीं करते हैं, ऐसे नहीं बीज पंचांग का प्रतिनिधित्व करता है। तभी तो बीजांकुर (कोरमा) के परांठे बना कर प्रयुक्त करते हैं। अस्तु इसका पंचांग क्वाथ/क्षीरपाक कल्प बनाकर चिकित्सा एवं भैषज्य कल्पना में उपयोग किया गया है।किन्तु मानव वाजीकरण के लिए *अड़दिया* खाते है। कषाय कल्पना द्रव्य बला पेक्षिणी अपि। बचपन में जब उड़द से दाल बनाते, एवं धूप में सुखाया जाता है, खेल-खेल में कच्चि दाल चबा कर खा लेते,तो दादीजी डांटते हुए कहती थी कि, कान में बहर (बाधीर्य)आ जाएगी । अर्थात् बाधीर्य का निदान है , कच्ची दाल खाना।🌞🙏🏽🌞
[6/18, 8:44 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi:
*सादर नमन आचार्य जी, आपने इस ज्ञान का विस्तार कर दिया 👌🙏*
[6/18, 8:51 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi:
*सुप्रभात दिव्येश भाई, उड़द इसलिये चुनी कि यह पूरे भारत ही नहीं विदेश में dosa-vada, उड़द दाल पिन्नी, खस्ता कचौड़ी, दही भल्ले, ईमरती आदि के रूप में भी सेवन की जाती है और शरीर पूर्ण होने के बाद भी परिजनों का प्रथम आहार और धार्मिक कृत्यों में इसका उपयोग होता है।*
[6/18, 8:59 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi:
*सुप्रभात नाड़ी गुरू संजय जी, इसी बहाने हम नवीन आयुर्वेदज्ञों को संदेश भी दे कर चल रहे हैं कि किस प्रकार आयुर्वेद को आयुर्वेदीय तल पर समझा जाये, कार्य किया जाये और रोगी को लाभ दिया जाये।*
*क्योंकि हम ऐसा बहुत कुछ अच्छा भी त्याग देते हैं कि उसके बारे में अधिक नहीं जानते पर आयुर्वेद के मूल सिद्धान्तों की कसौटी पर उसे जान कर प्रयोग कर सकते हैं।*
[6/18, 9:10 AM] L. k. Dwivedi Sir:
स्त्रियां तैलमषोत्तराहाराम्। गर्भाधान चर्या !
[6/18, 9:35 AM] Vd Shailendra Mehta:
गुरुदेव श्री इसका सन्दर्भ नहीं खोज पा रहा हूं, आप ही कृपा कर दें 🙏🙏
[6/18, 9:40 AM] L. k. Dwivedi Sir:
अ.हृ.सूत्र पहले १-१३ अध्याय।
क्रिया शारीर, आचार्य रणजीत राय देसाइ
[6/18, 9:44 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi:
*अरूणदत्त की टीका मे है,
'कफः पित्तं मलाः खेषु प्रस्वेदो नखरोम च। स्नेहोऽक्षित्वग्विशामोजो धातूनां क्रमशो मलाः'
अ ह सू 1/13*
[6/18, 10:13 AM] M. L. Jaysawal sir:
ऊँ
सादर प्रणाम वैद्यवर जी
माषद्रव्य (आहार व औषध द्रव्य) का आयुर्वेदोक्त शरीरक्रियाविज्ञान व द्रव्यगुण (गुणकर्मात्मक पक्ष) के दृष्टिकोण से शारीर पर व्यापक प्रभाव के साथ विकारावस्था विशेष में प्रयोग पक्ष का विशद व ससन्दर्भ सानुभव विश्लेषण अभिनन्दनीय है।
यही दृष्टिकोण सद्गुरुदेव आचार्य प्रियव्रत शर्मा जी ने अपने द्रव्यगुणविज्ञान द्वितीय व तृतीय भाग
में अनेकशः द्रव्यों के लिये विश्व के समक्ष सर्वप्रथम शास्त्रीय व वैज्ञानिक
ढंग से प्रस्तुत करके द्रव्यों के कार्मुक त्व को समझने के लिये माडल स्थापित किया है।
विशेषतः पश्चिमोत्तरदेशों/प्रभागों के लिये सात्म्य माष का वैशिष्ट्य यह है कि जहाँ यह "कफपित्तकर द्रव्यों में अग्रणी है (च.सू.-25/40) वहीं शिम्बी (दालों) धान्यों में अहिततम है (माषा शमीधान्यानां अपथ्यत्वेनप्रकृष्टतमा:) (च सू-25/27)।
क्योंकि यह बहुमलकारक तमोवर्धक होने से प्रज्ञा के लिये अहितावह है व अचक्षुष्य जब कि प्रायः शुक्रल द्रव्य चक्षुष्य होते हैं। वहीं मुद्ग हितावह व चक्षुष्य है।
इस कालीदाल के अपाय (Complications or adverseeffect) को सन्तुलित करने के लिये सर्वदा सीमित मात्रा व घृतसंस्कारित ही प्रयोग निर्देशित है।
🚩👏
[6/18, 10:18 AM] Dr Divyesh Desai:
उड़द की गुरुता कम करनेके लिए ही इडली में 3 part चावल
1 पार्ट उड़द होता है, गुजराती लोग इडली को सॉफ्ट बनाने के लिए ENO डालते है, बाद मे उड़द का प्रभाव पित्तकर हो तो वापस ENO लेने वाले कई सारे लोग है।🤠
[6/18, 10:23 AM] L. k. Dwivedi Sir:
कफपित्तं मल:खेषु स्वेद:स्यान्नखरोम च। नेत्रविट् त्वक्षुच स्नेहो धातूनां क्रमशो मला।। 🌞🙏🏽🌞
[6/19, 8:22 AM] pawan madan Dr:
Most important point.
But there is a need to discuss how Udad has therapeutic Vaata shamak effect ??
As practically patients feel, all symptoms do aggravate when this is used in Vaatolvan diseases.
🙏🏻
[6/19, 8:29 AM] Vd.Abhishek Thakur:
Thanxx for rising this qustion same doubt i m having...
अक्सर व्यावहारिक तौर पर यह देखने में आया है कि, संधिवात, अर्श यह अन्य कुछ वात रोगों में रोगी कहता है कि मास की दाल से मेरा वात बढ़ गया, अर्श रोग में हम समझ सकते हैं कि उष्ण होने से कुछ लक्षण बढ़ सकते हैं, परंतु अन्य वायु रोगों में क्यों रोगी ऐसा फील करता है..... गुरु वर मेरे इस संशय का निवारण भी करने की कृपया करें 🙏
[6/19, 9:12 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi:
*सुप्रभात पवन भाई, 🌹🙏हमारे यहां आहार द्रव्यों को संस्कारित करने की प्रथा और विधान पूर्वजों से मिला है जैसे आपके यहां पंजाब में दाल में तड़का, अन्य स्थलों पर छौक या बघार भी कहते हैं और हमने तो बचपन से देखा है कि अंगीठी पर पतीली में थोड़ी सी हींग डाल कर पकने के लिये दाल को छोड़ दिया जाता था और उबलते हुये आने वाली फेन को कड़छी से निकाल कर फेंक देते थे।*
*उड़द दिन में ही सेवन की जाती थी, मात्रा सम्यक होती थी और इसमें घर के कुटे पिसे गरम मसालों का प्रयोग होता था।*
*अब भोजन खाया नहीं कई लोगों के द्वारा जल्दी में निगला जाता है, phone या tv के साथ, देर रात्रि, पैदल चलना या वियायाम कम हो गया, बाजार में readymade पैक्ड दाल का उपयोग हो रहा है, गौघृत के स्थान के cream और मक्खन ने ग्रहण कर लिया, इसके साथ और भी conditions apply हैं।*
*आपकी जिज्ञासा उचित है कि उड़द दाल वात शामक कैसे !*
*माष या उड़द गुरु भारी और स्निग्ध गुणों से भरपूर है, वात दोष को रुक्ष, लघु और खर है। उड़द दाल अपने गुरु और स्निग्ध गुणों के कारण वात के इन विपरीत गुणों को संतुलित करती है। यह शरीर में स्निग्धता और स्थैर्य लाती है जिससे वात की रूक्षता और चल गुण एवं तीव्रता कम होती है।*
*मधुर रस - उड़द दाल का स्वाद में रस मधुर है। मधुर रस वात को शांत करने वाला माना जाता है क्योंकि यह शरीर में पोषण और संतुष्टि प्रदान करता है जो वात की वृद्धि को कम करता है।*
*उड़द बलवर्धक और बृंहण (शरीर का पोषण करने वाला)- वात दोष प्रायः शरीर में क्षीणता उत्पन्न करता है जिसका उदाहरण अनेक रोगों के जीर्ण अवस्था में आने पर वात वृद्धि के लक्षण स्वतः ही उत्पन्न होने लगते हैं।उड़द दाल बलवर्धक और बृंहण होती है, यानी यह शरीर को शक्ति प्रदान करती है और tissues का पोषण करती है। इससे वात के कारण होने वाली दुर्बलता कम होती है।*
*वात का अनुलोमन - कुछ ग्रंथकारों ने उड़द दाल को वात का अनुलोमन करने वाला भी बताया गया है, यानी यह वात को उसकी सही दिशा में प्रवाहित करने में लाभ विशेषकर समान और अपान वात को, जिस से वात संबंधी विकार कम होते हैं।*
*उड़द दाल सेवन कुछ बातों का ध्यान रखना ज़रूरी है....*
*पाचन में गुरू -उड़द दाल गुरू होती है और इसे पचाने में अधिक पाचन शक्ति की आवश्यकता होती है। यदि पाचन कमजोर हो तो यह गैस और अपच का कारण बन सकती है, जो वात को बढ़ा भी सकती है । इसलिए इसे सही तरीके से पकाना और सही मात्रा में सेवन करना महत्वपूर्ण है।*
*उड़द दाल का उपयोग घी और हींग जैसे वातनाशक मसालों के साथ किया जाना आवश्यक है, जो इसकी गुरूता को कम करने और पाचन में सहायता करने में मदद करते हैं। इसे खिचड़ी, सूप या दाल के रूप में लिया जा सकता है।*
*उड़द दाल अपने गुरू, स्निग्ध और मधुर गुणों के कारण वात को शांत करने में प्रभावी होती है, लेकिन इसके सही उपयोग और व्यक्तिगत पाचन शक्ति का ध्यान रखना आवश्यक है।*
*hyperacidity - कुछ लोगों को उड़द दाल के सेवन से एसिडिटी की समस्या हो सकती है।*
*increased uric acid - उड़द दाल में ऑक्सलेट होता है इसलिए जिन लोगों को यूरिक एसिड या किडनी स्टोन की समस्या हो, उन्हें इसका सेवन सावधानी से करना चाहिये, uric acid बढ़ने पर उड़द दाल ही नहीं किसी भी दाल से वात वृद्धि के लक्षण मिलने लगते हैं।*
[6/19, 9:13 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi:
*आभार अभिषेक जी 🌹🙏*
[6/19, 9:15 AM] Dr. D. C. Katoch sir:
Aggravation of symptoms with consumption of Udad Dal and other Udad made recipes happens if the disease process (Rog Samprapti) is based on Avaran of Vaat, mostly Kaphavrit Vaat, Medavrit Vaat and Saam Vaat.
[6/19, 9:19 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi:
*गुरू गुण वाले द्रव्य अनेक बार अभिष्यन्दि भी बन जाते है, इसमें दिनचर्या,मात्रा और संस्कारित द्रव्यों को भी देखना आवश्यक है।*
[6/19, 9:19 AM] Dr. D. C. Katoch sir:
Otherwise in Niraam Vaat Janit disease conditions Urad is beneficial as Vaat Shamak/ Vaat har.
[6/19, 9:19 AM] L. k. Dwivedi Sir:
Yavani ko bhai iska krit yush banane ke liye karte dekhate hai. Vat-shamnarth.
[6/19, 9:48 AM] Vd.Abhishek Thakur:
अर्दित या अन्य बात विकार में "मास बड़ा"... देते समय हमें कुछ विशेष अनुपान, मात्रा का ध्यान रखना चाहिए ? यह कितनी मात्रा में ऐसी चिकित्सा योग द्रव्य हम इसे दे सकते हैं कृपया संदर्भ में भी मेरा मार्गदर्शन करें गुरुदेव !
[6/19, 9:57 AM] pawan madan Dr:
Pranam Sir
Sir, that's why my query was about this can be used therapeutically.
Udad is good aahaar dravya for poshan and it should be used after it has been sanskaarit in a particular quantity.
*Terms and conditions apply
😊😊😊
[6/19, 9:57 AM] pawan madan Dr:
Good mng katoch sir.
Ji sir.
Ati dhanyawad 🙏🏻🙏🏻
[6/19, 9:59 AM] Prof B. L. Goud Sab:
वैद्यराज सुभाष जी के द्वारा अत्यंत स्पष्ट, शास्त्रसम्मत, व्यवहारप्रधान, सहस्रश: अनुभूत, बहुश: प्रयुक्त, कृतान्न स्वरूप दाल का श्रेष्ठतम देशानुरूप, दोषानुरूप एवं कालानुरूप वर्णन कर देने के बाद अधिकांश विद्वान् भ्रान्त हो रहे हैं या भ्रांत की तरह दिखाई दे रहे हैं उन्होंने संस्कार प्रधान का वर्णन किया है और हम उसे उड़द के साथ मिलकर गुण दोष देख रहे हैं
एक बार भावप्रकाश का कृतान्न वर्णन जहां प्रारंभ हुआ है उसका दूसरा श्लोक एवं जहां दाल का वर्णन प्रारंभ हुआ है उसके दूसरे श्लोक की दूसरी पंक्ति एक बार देख लें तो हमको पता चलेगा कि दाल क्या है और माष क्या है ।
इसके बाद चरक संहिता का वाजीकरण के दूसरे अध्याय का दूसरा पाद पढ़ें तो पता चलेगा कि उड़द क्यों वृष्य है और कैसे वृष्य है ?
क्यों वातहर है और कैसे वातकर है और क्यों श्रेष्ठ माना गया है ?
जहां दाल विष्टम्भ करने वाली है वहां उड़द वृष्य स्वरूप है
इसलिए कृपा करके दाल को और उड़द को मिक्स मत करिए दाल कृतान्न है जो उड़द से भी बनाई जाती है और उड़द एक द्रव्य है जिसका संस्कार के माध्यम से आप विभिन्न प्रकार के योग तैयार करते हैं
विभेद दृष्टि से देखिए और गुणात्मकता को दोषात्मकता से और दोषात्मकता को गुणात्मकता से सम्मिश्रित मत करिए
सब प्रश्नों के उत्तर अपने आप ही मिलेंगे किसी दूसरे से पूछने की जरूरत ही नहीं है केवल मैंने जो बताएं उन प्रसंगों को पढ़ लें |
[6/19, 10:02 AM] Prof B. L. Goud Sab:
यह देखिए यहां भी स्पष्ट कर दिया फिर क्यों भ्रांति हो रही है ।
[6/19, 10:02 AM] pawan madan Dr:
प्रणाम गुरु जी
जी अवश्य
मार्गदर्शन के लिए धन्यवाद।
[6/19, 10:04 AM] Dr. D. C. Katoch sir:
Urad Dal and Bhalla/Bada made from it are my most relishing food items but only when I am hungary, slept properly overnight and feel lightness in body and mind and no pain or stiffness.
[6/19, 10:09 AM] Prof B. L. Goud Sab:
अब बताइए कटोच जी बेईमानी कर रहे हैं अकेले-अकेले दही भल्ले खा रहे हैं दही भल्ले तो हमको भी अच्छे लगते हैं पर जितने वे खा कर पचा जाएं उतना ही मैं भी पचालूं यह जरूरी थोड़ी है ।
[6/19, 10:13 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi:
*सादर चरण स्पर्श गुरूश्रेष्ठ 🌹🙏 आपका कथन पूर्णतया उचित है और अन्य संदर्भ दे कर इसे और अधिक प्रयोगात्मक एवं ज्ञान के विस्तार में कर दिया।*
🙏🙏🙏🙏🙏
[6/19, 10:22 AM] Dr. D. C. Katoch sir:
हृदयतल से प्रणाम, नमन गुरु जी। ईमानदारी से कह रहा हूं अकेले तो कभी दही और कभी भल्ले ही खाता हूं- दोनों को इकट्ठे खाने और पचाने की अब क्षमता नहीं है। शरद ऋतु के दौरान यदि आप दिल्ली पधारें तो अवश्य दही बड़े / भल्ले युक्त भोजन करवाऊंगा। आप आइए जरूर!!
[6/19, 10:24 AM] Dr Shekhar Singh Rathoud:
गुणों को देखते हुए, उड़द प्रथम दृष्टया वात शामक ही प्रतीत होती है.
UP मे कहते हैं, दाल खाओ उड़द की चाहे जहर क्यों ना हो..
[6/19, 10:52 AM] Dr. Bhadresh Naik Gujarat:
Legend of ayurved vd guar sir
Vd Subhash sharmji
Vd katochji
Many other's can analysis the in depth of ayurved quotation
Thanks all guruji for Enlightenment and wisdom of ayurved🙏🙏🙏
[6/19, 12:55 PM] Dr. Vandana Vats Patiyala:
अधिकतर ढाबे या बाहर बनी हुई दाल मक्खनी में MSG, mono sodium glutamate, जिसे कि अजीनोमोटो कहा जाता है डाला जाता है। यह स्वाद / texture of dal/, रंग गाढापन देता है। MSG एक complex amino acid hei which is difficult to break down.साथ में क्रीम डलती है यही चीजे बाजारी दाल मक्खनी को वात कारक व अपाच्य बनाते हैं।
घर में हींग, आदरक या सौंठ व अत्यधिक घृत से बनाई माह दाल स्वादु, बल्य, धातुपोषक व सुपाच्य होती है। हमारे यहाँ दाल बनाते समय ही काफी घृत डालकर पकाते हैं जिससे उसका रंग लाल हो जाता है।
🙏🏻
[6/19, 1:24 PM] Dr. D. C. Katoch sir:
Very nice clarification Dr Vandana. The fact is Urad or Dal Makhani is not Vat Karak but Ama & Kleda Karak being Guru, Abhishyandi and Agnimandyakar leading to cause Vat avaran janya lakshan. Inspite of adding spices to Dal Makhani, Urad Dal and various Urad recipes- the digestive system succumbs to Guru, Snigdha, Abhishyandi , Madhur gunas of Urad if relative agnimandya prevails in the body and ama-kleda are produced to cause srotosang and vaat avaran.
[6/19, 1:32 PM] Dr Arun Tiwari:
गोधूममाषहरिमन्थसतीनमुदङ्गपाको।
भवेज्झटिति मातुलपुत्रकेण।।।
।भावप्रकाश।
माष का तुरंत पाचन करने के लिए मातुलपुत्र (धतूरे के बीज) निर्देशित।
कुछ हिंदी टीकाओं में निम्बू बताया गया।
@Vd. Mohan Lal Jaiswal से निवेदन मातुलपुत्र से क्या लेना चाहिए।🙏🌹
माष का पाचन करने के लिए
[6/19, 1:33 PM] Dr. Vandana Vats Patiyala:
🙏🏻👍👌
Absolutely sir it all depends upon individuals' own metabolism and jatharagni too.. One more point to consider. It's better to eat dal makhani in day time than to eat at night. As punjabis' eating practices/ routines are not healthy that earn the North states a title of *diabetic and obesity capital of India*
[6/19, 1:35 PM] Dr Arun Tiwari:
*माषेण्डरीं निम्बुफलं पायसं मुद्गयूषकः।*
।भाव प्रकाश।
माषेण्डरी (उडद की दाल के बड़े की काट नींबू)
[6/19, 1:35 PM] Dr. D. C. Katoch sir:
Beejpoor- Matulung ingit hai yahan
[6/19, 1:36 PM] Vd. Arun Rathi Sir, Akola:
*प्रणाम गुरुवर*
🙏🙏🙏
*आप के आदेश का अनुशीलन करने से भ्रम और भ्रातियां अवश्य ही दुरु होगी*
*आपश्री व्दारा निर्देशीत संयोग और संस्कार आदि को पढना यह बुद्धि को निर्मल करेगा*
🙏🙏🙏
****************************************************************************************************************************************************************************************************************************Above case presentation & follow-up discussion held in 'Kaysampraday (Discussion)' a Famous WhatsApp group of well known Vaidyas from all over the India.****************************************************************************************************************************************************************
Presented by-
Vaidyaraja Subhash Sharma
MD (Kaya-chikitsa)
New Delhi, India
email- vaidyaraja@yahoo.co.in
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