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Case-presentation: PCOD नैदानिक और व्यावहारिक प्राचीन आयुर्वेदीय मूलभूत सिद्धान्तों सहित चिकित्सा व्यवस्था by *Vaidyaraja Subhash Sharma

[6/17, 12:08 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi: 

Case presentation - 

PCOD- नैदानिक और व्यावहारिक प्राचीन आयुर्वेदीय मूलभूत सिद्धान्तों सहित चिकित्सा व्यवस्था.

(vaidyaraja Subhash sharma, MD kaya chikitsa, jamnagar - 1985)
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*सैद्धान्तिक आयुर्वेदीय चिकित्सा में..

  'योगमासां तु यो विद्यातदेशकालोपपादितम्, पुरूषं पुरूषं वीक्ष्य स ज्ञेयो भिषगुत्तम:।

च सू 1/124 

'पुरूषं पुरूषं वीक्ष्य' सिद्धान्त लागू होता है अर्थात प्रत्येक पुरूष स्त्री बाल वृद्ध की परीक्षा जैसे आचार्य चरक ने दशविध परीक्षा बताई है, ऐसा कर के देशकालानुसार औषधियों की मात्रा एवं विधि अनुसार की जाती है।*

*परिवार में सब के लिये एक जैसा भोजन बनता है पर किसी को कच्चा आम सात्म्य है पर जिसमें पित्त की वृद्धि हो उसे तो हानि ही करेगा। यह पुरूषं पुरूषं वीक्ष्य सिद्धान्त आहार, औषध, दिनचर्या और ऋतुचर्या सब पर लागू होता है ।*

*13-4-25 pcod*




[6/17, 12:08 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi: 

*5-6-25 normal apearance* 👇🏿



[6/17, 12:08 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi: 

*रूग्णा - 18-19 वर्षीया*
*छात्रा/ वैभवशाली जीवन/ कुछ माह से दो से तीन माह तक आर्तव अभाव, व्यवहार में कुंठा एवं उद्वेग सहित परिवर्तन, आलस्य, गुरूता, body wt. की वृद्धि, मुख पर रोम की उत्पत्ति एवं युवान पिड़िका।*

*आर्तवहे द्वे, तयोर्मूलं गर्भाशय आर्तववाहिन्यश्च धमन्यः, तत्र विद्धाया वन्ध्यात्वं मैथुनासहिष्णुत्वमार्तव नाशश्च' 

  सु शा  9/22*l

*आर्तववाही स्रोतस दो बताये हैं जिनका मूल जिनका मूल गर्भाश्य और आर्तववाही धमनियां है जिनका वेध होने पर आर्तवनाश और वन्ध्यत्व हो जाता है।*

*PCOD (polycystic ovarian disease) आजकल की जीवन शैली में एक साधारण हार्मोनल विकार है जो आजकल बहुत सी महिलाओं को प्रभावित कर रहा है। आयुर्वेद में इसे "आर्तवक्षय" आदि विभिन्न नामो से देखा जा सकता है, जिसमें कफ और वात दोष की प्रधानता मानी जाती है।*

*आयुर्वेद में आर्तव शब्द के दो अर्थ बताये हैं, एक आर्तव शोणित( menstrual blood) और दूसरा स्त्रीबीज (ova)। इनमें आर्तव तो दृश्य है जो प्रतिमाह योनि से स्रावित हो रहा है और दूसरा अत्यन्त सूक्ष्म जो शरीर के अंदर ही रहती है ।*

*आयुर्वेद में PCOD एक अनुक्त व्याधि है जिसे सीधे किसी एक रोग के रूप में वर्णित नहीं किया गया है बल्कि इसे विभिन्न कारणों और दोष-दूष्य-अग्नि-स्रोतस और स्रोतोदुष्टि के परिणामस्वरूप होने वाले लक्षणों के समूह के रूप में समझा जाता सकता है। इसे आर्तव दुष्टि विकार (मासिक धर्म संबंधी विकार), रस, रक्त, मेद, शुक्र स्रोतस की दुष्टि और संतर्पणजन्य व्याधि के रूप में देखा जा सकता है।*

*रूग्णा का प्रमुख एवं रूचिकर आहार - burger, pizza, noodles एवं छोले भठूरे सहित जंक और packed food*

*भोजन के प्रारूप अब कालानुसार बदल गये हैं, आयुर्वेदानुसार अब आधुनिक समय के अनुरूप इसे आयुर्वेदीय सिद्धान्तों के तल पर जो इसका भोजन है पुरूषं पुरूषं सिद्धान्त के अनुसार जानेंगे....*

*आयुर्वेदानुसार PCOD में बर्गर, पिज्जा, नूडल्स, और पैक्ड फूड जैसे पश्चिमी आहार का सेवन प्रमुख हेतु बनता जा रहा है। इसे समझने के लिए हमें आयुर्वेद के पंचभौतिक सिद्धांतों, दोषों, दूष्यों, स्रोतस, स्रोतोदुष्टि, और अग्नि पर इसके प्रभावों को समझना होगा, साथ ही षडक्रिया काल सहित सम्प्राप्ति (रोगोत्पत्ति की प्रक्रिया) के घटकों पर भी विचार करना होगा।*

[6/17, 12:08 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi: 

1. आहार-
 बर्गर, pizza आदि एवं पैक्ड फूड की पंचभौतिकता (five element impact)

*पृथ्वी और जल महाभूत की वृद्धि- 
बर्गर, पिज्जा, नूडल्स, और पैक्ड फूड साधारणतया गुरू-स्निग्ध  होते हैं। इनमें मैदा, पनीर, अत्यधिक तैल और मधुर रस का प्रयोग होता है जो शरीर में पृथ्वी (स्थैर्य एवं गुरूता) और जल (द्रवता water retention- कफ दोष) महाभूत की वृद्धि करते हैं।*

*अग्नि महाभूत का क्षय- 
ये खाद्य पदार्थ पाचन में बहुत गुरू होते हैं और शरीर की पाचक अग्नि (जठराग्नि) को मंद करते हैं। परिणामतः अग्नि महाभूत का ह्रास होता है।*

*वायु महाभूत का दूषित होना- 
अत्यधिक प्रसंस्कृत और सूखे (रुक्ष) खाद्य पदार्थ कुछ सीमा तक वायु महाभूत को भी असंतुलित कर देते हैं जिससे उदर आध्मान, आटोप, उदावर्त जैसी समस्याएं हो सकती हैं।*

*अगर विस्तार से देखें तो पंचमहाभूतों का योगदान इस प्रकार होता है...*

*जल और पृथ्वी महाभूत की वृद्धि से ये कफ दोष के घटक हैं। PCOD में कफ की वृद्धि से शरीर में गुरूता, वसा का जमाव (मोटापा), और cysts का निर्माण होता है। ये जल और पृथ्वी की स्थिरता और गुरूता के गुण दर्शाते हैं।*

*वायु और आकाश महाभूत की विकृति ये वात दोष के घटक हैं। अनियमित मासिक धर्म, ओव्यूलेशन में अनियमितता, उदर आटोप, चिंता आदि वात के असंतुलन के कारण होते हैं। वात की गति और अनियमितता के गुण यहां प्रकट होते हैं।*

*अग्नि महाभूत की मंदता से पाचन अग्नि (जठराग्नि) और धातु अग्नि (विशेष रूप से रसाग्नि और मेदोधात्वाग्नि) की मंदता PCOD में एक महत्वपूर्ण कारक है। अग्नि के मंद होने से 'आम' का निर्माण होता है और धातुओं का उचित पोषण नहीं हो पाता, जिससे हार्मोनल असंतुलन होता है। पित्त दोष जो अग्नि और जल तत्वों से बना है भी प्रभावित होता है, जिससे त्वचा संबंधी समस्याएं (मुँहासे) और बालों का झड़ना देखा जाता है।*

2. दोष -
कफ दोष की वृद्धि - इन खाद्य पदार्थों का सबसे महत्वपूर्ण प्रभाव कफ दोष की वृद्धि है। इनमें गुरु, स्निग्ध, पिच्छिल (चिपचिपा) गुण होते हैं जो शरीर में कफ को बढ़ाते हैं। PCOD में अक्सर कफ का संचय देखा जाता है, विशेषकर ovaries में सिस्ट के रूप में।

 पित्त दोष का दूषित होना - हालांकि ये सीधे पित्त को नहीं बढ़ाते, लेकिन अग्नि मंद होने से आम (विषैले तत्व) का संचय होता है, जो आगे चलकर पित्त को प्रदूषित कर देता है।

*मसालेदार और अत्यधिक तेल वाले पैक्ड फूड अप्रत्यक्ष रूप से पित्त में अम्ल एवं उष्ण गुण बढ़ा सकते हैं।*

 *वात दोष की विकृति -*
*अजीर्ण और आम संचय से वात का भी मार्ग अवरुद्ध हो सकता है, जिससे अनियमित मासिक धर्म और अन्य वात संबंधी लक्षण PCOD में उत्पन्न हो जाते हैं।*

*हम सदैव कहते हैं कि दोष 3 नहीं 15 मान कर चलें और इनके स्वः स्थान सहित तो diagnosis perfect रहेगा।*

हालांकि अनुक्त व्याधि होने के कारण PCOD को 15 प्रकार के दोषों के भेदानुसार सीधे वर्गीकृत नहीं किया जाता है, बल्कि यह त्रिदोष वात, पित्त, कफ के 5-5-5 प्रकारों और उनके कार्य क्षेत्र में असंतुलन से संबंधित है।

[6/17, 12:08 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi: 

*क्योंकि विस्तार से देखने पर PCOD में मुख्य रूप से त्रिदोषों (वात, पित्त, कफ) के साथ-साथ उनके भेदों का ज्ञान इस प्रकार मिलता है...*

 वात दोष -
अपानवायु- मासिक स्राव, ओव्यूलेशन, मल-मूत्र त्याग आदि अधोगामी क्रियाओं को नियंत्रित करता है। PCOD में अपान वायु की दुष्टि या अवरोध (संग) से अनियमित मासिक स्राव, एमेनोरिया (मासिक धर्म का अभाव), और ओव्यूलेशन में बाधा आती है।

व्यानवायु- पूरे शरीर में संचार और गति को नियंत्रित करता है। इसकी विकृति से रक्त परिसंचरण और हार्मोनल क्रियाओं में बाधा आ जाती है।

साधकपित्त- मानसिक और भावनात्मक स्थिति को नियंत्रित करता है। तनाव और भावनात्मक असंतुलन PCOD में एक महत्वपूर्ण कारक हैं।

भ्राजक पित्त- त्वचा के रंग और चमक को नियंत्रित करता है। मुहांसे और त्वचा पर अतिरिक्त बाल (हर्सुटिज्म) पित्त और रक्त धातु की दुष्टि का परिणाम हो सकते हैं।*

पाचकपित्त- जठर अग्नि को नियंत्रित करता है। पाचक पित्त की मंदता (जो अग्निमांद्य में योगदान करती है) अप्रत्यक्ष रूप से PCOD में योगदान करती है।*

श्लेषक कफ- अस्थि संधियों  और स्नेहन को नियंत्रित करता है। शरीर में अत्यधिक कफ से cyst का निर्माण होता है।

 क्लेदक कफ - आमाशय में भोजन को गीला या क्लिन्न करने और पाचन में मदद करता है। इसकी अधिकता से आम का संचय होता है।



3. दूष्य (tissues affected)-

रस धातु- इन खाद्य पदार्थों के सेवन से रस धातु (पोषण युक्त प्लाज्मा) में आम का संचय होता है। यह रस धातु की गुणवत्ता को प्रभावित करता है और इसे चिपचिपा व सामरस बनाता है।

मेदधातु- ये खाद्य पदार्थ अत्यधिक कैलोरी वाले होते हैं और मेद धातु (fat tissues) में वृद्धि करते हैं। PCOD में अक्सर वजन बढ़ना और इंसुलिन प्रतिरोध देखा जाता है, जो मेद धातु की विकृति से जुड़ा है।

मांस धातु- अप्रत्यक्ष रूप से मांस धातु भी प्रभावित हो सकती है, क्योंकि आम संचय और अग्नि की मंदता सभी धातुओं के पोषण को बाधित करती है।

आर्तव उपधातु - प्रजनन के tissues (आर्तव धातु) सीधे प्रभावित होते हैं। कफ और मेद के संचय से ovaries में सिस्ट बनते हैं और egg का निष्कासन बाधित होता है।


*4 - स्रोतस...*
रसवह स्रोतस- ये आहार द्रव्य रसवह स्रोतस (पोषण के चैनल) को अवरुद्ध करते हैं, जिससे शरीर में पोषण का ठीक से वितरण नहीं हो पाता और आम का संचय होता है।

मेदोवाही स्रोतस- मेदोवाही स्रोतस (वसा के चैनल) में अवरोध उत्पन्न करते हैं, जिससे शरीर में मेद की असामान्य वृद्धि होती है, विशेषकर उदर और कटि के आसपास।

अन्नवह स्रोतस- जठराग्नि की मंदता से अन्नवह स्रोतस (पाचन तंत्र के चैनल) में अवरोध होता है, जिससे अजीर्ण, विबंध और आध्मान एवं उदावर्त जैसे लक्षण होते हैं।

आर्तववह स्रोतस- यह सबसे महत्वपूर्ण है। कफ और मेद के अवरोध से आर्तववह स्रोतस (प्रजनन प्रणाली के चैनल) में बाधा आती है, जिससे ovaries से egg का निकलना बाधित होता है और सिस्ट बनते हैं।

अम्बुवाही स्रोतस- शरीर में जलीय तत्व की वृद्धि करते हैं।

5. स्रोतोदुष्टि (channel impairment)

इन खाद्य पदार्थों से होने वाली स्रोतोदुष्टि मुख्य रूप से 'संग' (अवरोध), 'अतिप्रवृत्ति' (अत्यधिक प्रवाह, जो यहां कम प्रासंगिक है), और 'सिरा ग्रंथि' (ग्रन्थियों का बनना) के रूप में होती है।*

*संग (obstruction) - कफ और आम के कारण रसवह, मेदवह, और आर्तववह स्रोतस में अवरोध उत्पन्न होता है। यह अवरोध ही PCOD के लक्षणों का मूल कारण है, जैसे अनियमित मासिक धर्म, सिस्ट, और वंध्यत्व

सिरा ग्रंथि (formation of nodules/cysts)-
 
मेद और कफ के संचय से आर्तववह स्रोतस में छोटी-छोटी ग्रंथियां (सिस्ट) बन जाती हैं, जो अल्ट्रासाउंड में दिखाई देती हैं।

6. अग्नि-
जठराग्निमांद्य या अग्नि की मंदता- बर्गर, पिज्जा, नूडल्स, और पैक्ड फूड भारी, तैलीय, और पाचन में कठिन होते हैं। इनके लगातार सेवन से जठराग्नि अत्यंत मंद हो जाती है। मंद अग्नि के कारण खाया गया भोजन ठीक से पच नहीं पाता और 'आम' अधपचा भोजन/विषैले तत्व अर्थात आमविष में परिवर्तित हो जाता है।*

 *धात्वग्निमांद्य -*
*जठराग्नि की मंदता का सीधा असर धात्वग्नि (प्रत्येक धातु में मौजूद अग्नि) पर पड़ता है। जब धात्वग्नि मंद होती है, तो धातुएं (tissues) ठीक से पोषित नहीं हो पातीं और उनमें विषैले तत्व जमा होने लगते हैं। विशेष रूप से मेदोधात्वग्नि (fat tissues की अग्नि) और आर्तवधात्वग्नि (प्रजनन tissues की अग्नि) प्रभावित होती हैं, जिससे वसा का संचय होता है और प्रजनन क्रिया बाधित होती है।

PCOD में लक्षणों के अनुसार षडक्रिया काल कैसे मिलता है !

हमारे शास्त्रों में सभी व्याधियों के पूर्वरूप नहीं बताये हैं, षडक्रिया काल के अनुसार व्याधि लक्षणों को अनुसार व्याधि किस तल पर है ! यह शास्त्र ज्ञान से एवं रोगियों को कुछ काल तक देखते हुये अनुभव से ज्ञात होने लगता है। क्योंकि PCOD एक अनुक्त व्याधि है तो यहां षडक्रिया काल रोगी में प्राप्त लक्षणों एवं आयुर्वेद सिद्धान्तानुसार इस प्रकार है.

PCOD में दोषों मुख्यतः कफ और वात, कुछ स्थल तक पित्त भी की विकृति से लक्षण प्रकट होते हैं।

*संचय- कफ और वात का संचय ...*
*लक्षण- शुरुआत में कोई स्पष्ट लक्षण नहीं दिखते, या हल्के से हो सकते हैं जैसे थोड़ा body wt. बढ़ना, अल्प उदर वृद्धि, आलस्य एवं शरीर में गुरूता।*
*दोष- कफ (अग्निमांद्य, मेदोधातु की वृद्धि) और वात (गति में बाधा) अपने-अपने स्थान पर दोष संचित होने लगते हैं।*

*प्रकोप- कफ और वात का प्रकोप...*
*लक्षण- अनियमित मासिक धर्म (कभी-कभी विलंबित या अत्यधिक रक्तस्राव), कुछ मात्रा में body wt. वृद्धि स्पष्ट होने लगती है, थोड़ी थकान, पाचन संबंधी हल्की समस्यायें।*

*दोष - कफ और वात का असंतुलन या विकृति बढ़ने लगता है। कफ की वृद्धि से स्रोतों में अवरोध उत्पन्न होने लगता है, और वात के बढ़ने से गति में अनियमितता आती है।*

*प्रसर - दोषों का प्रसरण...*
*लक्षण - लक्षण अधिक स्पष्ट होने लगते हैं, मासिक स्राव की अत्यधिक अनियमितता जैसे अमेनोरिया या ओलिगोमेनोरिया,शरीर के वजन में लगातार वृद्धि, मुंहासे, चेहरे और शरीर पर अनचाहे बालों का बढ़ना, बालों का झड़ना, मूड स्विंग्स।*
*दोष - कफ और वात अब पूरे शरीर में विशेषकर रस, रक्त, मेद और उपधातु आर्तव में फैलने लगते हैं। इससे हार्मोनल असंतुलन बढ़ता है।*

*स्थान संश्रय- ovaries में दोषों का एकत्रित होना*

*लक्षण अल्ट्रासाउंड पर ovaries में cyst या छोटे-छोटे follicles का दिखना। इंसुलिन प्रतिरोध के लक्षण जैसे गर्दन, under arms, कटि  पर त्वचा का काला पड़ना (एकेन्थोसिस नाइग्रिकन्स), प्रजनन क्षमता में कमी।*

*दोष- प्रसरित कफ और वात आर्तववाही स्रोतस (गर्भाशय) में जाकर जमा हो जाते हैं, जिससे वहां ग्रन्थियां (cyst) बनने लगती हैं और egg का विकास व निष्कासन बाधित होता है, मेदोधातु का भी संश्रय होता है।*

*व्यक्ति (स्पष्ट रोग लक्षण) -*
*लक्षण - PCOD के सभी प्रमुख और स्पष्ट लक्षण पूरी तरह से प्रकट होते हैं, जैसे गंभीर अनियमित मासिक स्राव, स्थौल्य, गंभीर युवान पिड़िका, अत्यधिक रोम हर्सुटिज़्म, वंध्यत्व, अवसाद और टाइप 2 मधुमेह का खतरा।*
*दोष- कफ-वात की प्रधानता के साथ, पित्त भी अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होता है (जैसे मुंहासे, गर्मी लगना)। ओवरी की कार्यप्रणाली पूरी तरह से बाधित होती है।*

*भेद -*
*लक्षण- मधुमेह, हृदय रोग, एंडोमेट्रियल कैंसर का भय, गंभीर अवसाद, स्लीप एपनिया जैसी जीर्ण एवं जटिल समस्यायें।*

*दोष - इस अवस्था तक रोग पुराना और जटिल हो चुका है, जहाँ कई धातुओं और स्रोतों में गंभीर क्षति हो जाती है।*

*पथ्यापथ्य -*
*PCOD के रोगियों की चिकित्सा में आहार की महत्वपूर्ण भूमिका है। आहार का उद्देश्य अग्नि को प्रदीप्त करना, आम को पचाना, कफ को कम करना और वात को अनुलोमित करना है।*

*अपथ्य-*
*कफवर्धक और अभिष्यंदी आहार से बचें।*
*मधुर, गुरु, स्निग्ध और शीत खाद्य पदार्थ।*
*मैदा, बेसन, प्रोसेस्ड और रिफाइंड अनाज जैसे सफेद ब्रेड, pizza, noodles, पास्ता आदि*
*डेयरी उत्पाद विशेष रूप से दही, पनीर, फुल क्रीम दूध।*
*अत्यधिक मीठे फल और जूस विशेषकर पैक्ड।*
*तले हुए और गुरू खाद्य पदार्थ।*
*लवण का अल्प सेवन।*

*पथ्य -*
*लघु, सुपाच्य और उष्ण आहार का सेवन ।*
*अनाज- जौ (Barley), बाजरा (Millet), ब्राउन राइस, कुट्टू (Buckwheat), पुराना चावल।*
*दालें- मूंग दाल, मसूर दाल।*
*शाक सब्जियां - तिक्त और कषाय रस प्रधान वाली सब्जियां जैसे करेला, परवल, लौकी, तुरई, पत्तेदार सब्जियाँ, पालक, मेथी,गोभी, ब्रोकोली।*
*फल- अनार, सेब, जामुन, पपीता।*
*मसाले- अदरक, हल्दी, दालचीनी, जीरा, धनिया, मेथी, काली मिर्च। ये अग्नि को बढ़ाते हैं और कफ को कम करते हैं।*
*गौघृत - सीमित मात्रा में शुद्ध देसी घी का सेवन पाचन में मदद करता है और वात को शांत करता है।*
*उष्णोदक अर्थात गर्म पानी - दिन भर गर्म पानी थोड़ा थोड़ा विशेषकर शुंठी जीरक साधित जल भी।*
*तक्र (Buttermilk)- भोजन के साथ छाछ का सेवन पाचन में सहायक होता है।*
*नियमित और समय पर भोजन करें जिस से शरीर की biological clock स्थिर रहती है।*
*विरुद्ध आहार से बचें।*

*विहार (lifestyle recommendations) -*

*विहार का उद्देश्य दोषों को balanced करना, अग्नि को प्रदीप्त करना और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार करना है।*
*नियमित व्यायाम,योग आसन ।*
*प्राणायाम एवं ध्यान योग (meditation) मानसिक तनाव कम करने और हार्मोनल संतुलन में मदद करते हैं।*
*नियमित रूप से चलना, जॉगिंग, तैराकी।*
*weight management- स्वस्थ वजन बनाए रखना PCOD के प्रबंधन के लिए महत्वपूर्ण है।*
*तनाव प्रबंधन- ध्यान योग Meditation के अतिरिक्त भी गहरी साँस लेने के व्यायाम (Deep Breathing Exercises), प्रकृति के साथ समय बिताना, पर्याप्त नींद लेना।*
*नियमित दिनचर्या और ऋतुचर्या का पालन करें - सुबह जल्दी उठना, तैल से अभ्यंग, स्नान, समय पर भोजन और नींद।*
*प्राकृतिक वेगों को न रोकें।मूत्र, मल आदि के वेगों को रोकना अपान वायु के कार्य को बाधित करता है।*
*पर्याप्त निद्रा लें -देर रात तक जागने से बचें।*
*नकारात्मक भावनाओं से बचें - क्रोध, चिंता, ईर्ष्या आदि को नियंत्रित करें।अत्यधिक मानसिक तनाव excessive stress चिंता, क्रोध, भय आदि वात दोष को प्रकुपित करते हैं और हार्मोनल असंतुलन में योगदान करते हैं।*

*चिकित्सा सूत्र -*

*निदान परिवर्जन, नियमित दिनचर्या, ऋतुचर्या एवं आहार विधि का पालन, तनाव मुक्ति एवं पथ्यापथ्य ।*
*दीपन, पाचन, अनुलोमन, मेदक्षपण, स्रोतोशोधन, आर्तवजनन, भेदन एवं सत्वाजय*

*आरोग्यवर्धिनी- दीपन, पाचन, मेद हर, रक्त शोधक, शोथ हर होने के साथ स्रोतों का शोधन करती है,मात्रा 1-1 gm दिन में दो बार ।*

*गंडमालाकंडन रस- यह त्रिकटु और गुग्गलु के साथ कंचनार और सैंधव का योग है जो cyst को समाप्त करने में अत्यन्त सहयोगी है, 2-2 गोली दो बार*

*कांचनार गूगल - कफ वात हर, ग्रन्थि जैसे ovarian cyst,अर्बुद, गंडमाला आदि नाशक 2-2 वटी दिन में दो बार।*

*नित्यानंद रस - कफ वात प्रधान रोगों में अति उत्तम है, पाचन, शोथघ्न, ग्रन्थि हर और रसायन कर्म करता है, 1-1 गोली दिन में दो बार।*

*इसके अतिरिक्त आवश्यकता पड़ने पर इनका प्रयोग अल्प समय के लिये हम चिकित्सा में करते रहते हैं..*
*रजःप्रवर्तिनी वटी*
*वरुणादि क्वाथ - कफ और मेद को कम करने में सहायक।*
*कुमारी आसव एवं अशोकारिष्ट- मासिक स्राव को नियमित करने और स्त्री रोगों में उपयोगी।*
*शतावरी, अश्वगंधा, मुलेठी, लोध्र - hormonal balancing और प्रजनन स्वास्थ्य के लिए।*
*मेथी और हरिद्रा- इंसुलिन संवेदनशीलता में सुधार और शोथ कम करने में सहायक।*

*आयुर्वेद चिकित्सा करते हुये हम PCOD को एक समग्र दृष्टिकोण से देखते है, जहां मूल कारण दोषों (विशेषकर कफ और वात) की imbalancing, अग्निमांद्य और स्रोतसों में अवरोध होता है। सही आहार और विहार के माध्यम से इन असंतुलनों को ठीक करके PCOD के लक्षणों को प्रभावी ढंग से प्रबंधित किया जा सकता है।*
*बीज दोष (आनुवंशिक प्रवृत्ति) - कुछ मामलों में आनुवंशिक कारक भी PCOD के विकास में योगदान कर सकते हैं।*
*आर्तव वह स्रोतस की दुष्टि - गर्भाशय, डिम्बग्रंथि और wasअन्य प्रजनन अंगों से संबंधित स्रोतस में अवरोध होने पर औषध साधित अवस्था से बाहर जहां यथावश्यक हो  शल्य तन्त्र का प्रयोग अंतिम माध्यम है।*

[6/17, 4:16 AM] Vd. V. B. Pandey Basti(U. P. ): 🙏

[6/17, 5:59 AM] Dr Mansukh R Mangukiya Gujarat: 

🙏प्रणाम गुरुवर  !
PCOD पर आपका अति सुक्ष्म विवेचनात्मक दृष्टिकोण हमे आपका आभार व्यक्त कर ने के लिए शब्दों नही मिल रहे । 
बहुत बहुत धन्यवाद । 
🙏🙏🙏

[6/17, 6:32 AM] Vd Sarveshkumar Tiwari: 

PCOD √🙏

[6/17, 8:35 AM] Vd.Abhishek Thakur: 

अत्यंत ज्ञान तर्पक सूक्ष्म विवेचन श्रद्धेय गुरू वर 🙏🙇 जय आयुर्वेद 🚩❤️

[6/17, 9:36 AM] Dr. Ashwani Kumar Sood: 

very nice explanation 
शारीर-क्रिया-रचना से ले कर सम्प्राप्ति व चिकित्सा का संपूर्ण ज्ञान दे दिया 
बहुत सुंदर !

[6/17, 10:06 AM] pawan madan Dr: 

Pranam and Charan Sparsh Guru ji !

Taking time to absorb this 

😊😊🙏🏻🙏🏻

[6/17, 10:08 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi: 

*आभार प्रभु 🌹🙏 
इस वर्ष सैद्धान्तिक आयुर्वेदीय चिकित्सा की private practice मे 40 वर्ष पूर्ण हो कर 41 वां आरंभ हो गया है, अब नियमित रूप से संहिता ग्रन्थों उल्लेखित सूत्रों और सिद्धान्तों को आधुनिक समयानुसार practical applications के साथ क्यों और कैसे ? उत्तर सहित स्पष्ट कर के लेखन आरंभ कर दिया है और अनेक स्थलों पर अनुभव जन्य case presentations के साथ...यह मानसिक पोषण अब काय सम्प्रदाय में नियमित मिलेगा।*

[6/17, 10:11 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi: 

*नमस्कार वैद्यवर पवन भाई, ❤️🙏बर्गर, pizza, noodles, जंक फूड गुरू आहार है.. पाचन में गुरू...इन पर लिखना भी गुरूता लाता है और इस लेखन को absorb करना भी गुरू है ...😂😅🤣*

[6/17, 10:14 AM] Vd. V. B. Pandey Basti(U. P. ): 

अहो भाग्य हमारा। बहुत पहले एक योजना बनी थी कि आपके इन लेखों को एकजुट कर एक पुस्तक का रूप दिया जाए‌ किन्तु संभव न हो सका । एक बार फिर आज के इस लेख से प्रयास शुरू करते हैं आशीर्वाद फलित हो एसा दीजिए।🙏



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Above case presentation & follow-up discussion held in 'Kaysampraday(Discussion)' a Famous WhatsApp group  of  well known Vaidyas from all over the India.****************************************************************************************************************************************************************

Presented by-





Vaidyaraja Subhash Sharma

MD (Kaya-chikitsa)

New Delhi, India

email- vaidyaraja@yahoo.co.in


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[1/20, 00:13] Vd. Subhash Sharma Ji Delhi:  1 *case presentations -  पित्ताश्य अश्मरी ( cholelithiasis) 4 रोगी, including fatty liver gr. 3 , ovarian cyst = संग स्रोतोदुष्टि* *पित्ताश्य अश्मरी का आयुर्वेद में उल्लेख नही है और ना ही पित्ताश्य में gall bladder का, आधुनिक चिकित्सा में इसकी औषधियों से चिकित्सा संभव नही है अत: वहां शल्य ही एकमात्र चिकित्सा है।* *पित्ताश्याश्मरी कि चिकित्सा कोई साधारण कार्य नही है क्योंकि जिस कार्य में शल्य चिकित्सा ही विकल्प हो वहां हम औषधियों से सर्जरी का कार्य कर रहे है जिसमें रोगी लाभ तो चाहता है पर पूर्ण सहयोग नही करता।* *पित्ताश्याश्मरी की चिकित्सा से पहले इसके आयुर्वेदीय दृष्टिकोण और गर्भ में छुपे  सूत्र रूप में मूल सिद्धान्तों को जानना आवश्यक है, यदि आप modern पक्ष के अनुसार चलेंगें तो चिकित्सा नही कर सकेंगे,modern की जरूरत हमें investigations और emergency में शूलनाशक औषधियों के रूप में ही पड़ती है।* *पित्ताश्याशमरी है तो पित्त स्थान की मगर इसके निदान में हमें मिले रोगियों में मुख्य दोष कफ है ...* *गुरूशीतमृदुस्निग...

Case-presentation: Management of Various Types of Kushtha (Skin-disorders) by Prof. M. B. Gururaja

Admin note:  Prof. M.B. Gururaja Sir is well-known Academician as well as Clinician in south western India who has very vast experience in treatment of various Dermatological disorders. He regularly share cases in 'Kaysampraday group'. This time he shared cases in bulk and Ayu. practitioners and students are advised to understand individual basic samprapti of patient as per 'Rogi-roga-pariksha-vidhi' whenever they get opportunity to treat such patients rather than just using illustrated drugs in the post. As number of cases are very high so it's difficult to frame samprapti of each case. Pathyakram mentioned/used should also be applied as per the condition of 'Rogi and Rog'. He used the drugs as per availability in his area and that to be understood as per the ingredients described. It's very important that he used only 'Shaman-chikitsa' in treatment.  Prof. Surendra A. Soni ®®®®®®®®®®®®®®®®®®®®®®® Case 1 case of psoriasis... In this ...

Case presentation: Vrikkashmari (Renal-stone)

On 27th November 2017, a 42 yrs. old patient came to Dept. of Kaya-chikitsa, OPD No. 4 at Govt. Ayu. College & Hospital, Vadodara, Gujarat with following complaints...... 1. Progressive pain in right flank since 5 days 2. Burning micturation 3. Dysuria 4. Polyuria No nausea/vomitting/fever/oedema etc were noted. On interrogation he revealed that he had h/o recurrent renal stone & lithotripsy was done 4 yrs. back. He had a recent 5 days old  USG report showing 11.5 mm stone at right vesicoureteric junction. He was advised surgery immediately by urologist. Following management was advised to him for 2 days with informing about the possibility of probable emergency etc. 1. Just before meal(Apankal) Ajamodadi choorna     - 6 gms. Sarjika kshar                - 1 gm. Muktashukti bhasma    - 250 mgs. Giloyasattva                 - 500 mgs...

WhatsApp Discussion Series: 24 - Discussion on Cerebral Thrombosis by Prof. S. N. Ojha, Prof. Ramakant Sharma 'Chulet', Dr. D. C. Katoch, Dr. Amit Nakanekar, Dr. Amol Jadhav & Others

[14/08 21:17] Amol Jadhav Dr. Ay. Pth:  What should be our approach towards... Headache with cranial nerve palsies.... Please guide... [14/08 21:31] satyendra ojha sir:  Nervous System Disorders »  Neurological Disorders Headache What is a headache? A headache is pain or discomfort in the head or face area. Headaches vary greatly in terms of pain location, pain intensity, and how frequently they occur. As a result of this variation, several categories of headache have been created by the International Headache Society (IHS) to more precisely define specific types of headaches. What aches when you have a headache? There are several areas in the head that can hurt when you have a headache, including the following: a network of nerves that extends over the scalp certain nerves in the face, mouth, and throat muscles of the head blood vessels found along the surface and at the base of the brain (these contain ...

WhatsApp Discussion Series:18- "Xanthelasma" An Ayurveda Perspective by Prof. Sanjay Lungare, Vd. Anupama Patra, Vd. Trivendra Sharma, Vd. Bharat Padhar & others

[20/06 15:57] Khyati Sood Vd.  KC:  white elevated patches on eyelid....... Age 35 yrs... no itching.... no burning.......... What could be the probable diagnosis and treatment according Ayurveda..? [20/06 16:07] J K Pandey Dr. Lukhnau:  Its tough to name it in ayu..it must fall pakshmgat rog or wartmgat rog.. but I doubt any pothki aklinn vartm aur klinn vartm or any kafaj vydhi can be correlated to xanthelasma..coz it doesnt itch or pain.. So Shalakya experts may hav a say in ayurvedic dignosis of this [20/06 16:23] Gururaja Bose Dr:  It is xantholesma, some underline liver and cholesterol pathology will be there. [20/06 16:28] Sudhir Turi Dr. Nidan Mogha:  Its xantholesma.. [20/06 16:54] J K Pandey Dr. Lukhnau:  I think madam khyati has asked for ayur dignosis.. [20/06 16:55] J K Pandey Dr. Lukhnau:  Its xanthelasma due to cholestrolemia..bt here we r to dia...

WhatsApp Discussion Series 47: 'Hem-garbh-pottali-ras'- Clinical Uses by Vd. M. Gopikrishnan, Vd. Upendra Dixit, Vd. Vivek Savant, Prof. Ranjit Nimbalkar, Prof. Hrishikesh Mhetre, Vd. Tapan Vaidya, Vd. Chandrakant Joshi and Others.

[11/1, 00:57] Tapan Vaidya:  Today morning I experienced a wonderful result in a gasping ILD pt. I, for the first time in my life used Hemgarbhpottali rasa. His pulse was 120 and O2 saturation 55! After Hemgarbhapottali administration within 10 minutes pulse came dwn to 108 and O2 saturation 89 !! I repeated the Matra in the noon with addition of Trailokyachintamani Rasa as advised by Panditji. Again O2 saturation went to 39 in evening. Third dose was given. This time O2  saturation did not responded. Just before few minutes after a futile CPR I hd to declare him dead. But the result with HGP was astonishing i must admit. [11/1, 06:13] Mayur Surana Dr.:  [11/1, 06:19] M gopikrishnan Dr.: [11/1, 06:22] Vd.Vivek savant:         Last 10 days i got very good result of hemgarbh matra in Aatyayik chikitsa. Regular pt due to Apathya sevan of 250 gm dadhi (freez) get attack asthmatic t...

Case-presentation- Self-medication induced 'Urdhwaga-raktapitta'.

This is a c/o SELF MEDICATION INDUCED 'Urdhwaga Raktapitta'.  Patient had hyperlipidemia and he started to take the Ayurvedic herbs Ginger (Aardrak), Garlic (Rason) & Turmeric (Haridra) without expertise Ayurveda consultation. Patient got rid of hyperlipidemia but hemoptysis (Rakta-shtheevan) started that didn't respond to any modern drug. No abnormality has been detected in various laboratorical-investigations. Video recording on First visit in Govt. Ayu. Hospital, Pani-gate, Vadodara.   He was given treatment on line of  'Urdhwaga-rakta-pitta'.  On 5th day of treatment he was almost symptom free but consumed certain fast food and symptoms reoccurred but again in next five days he gets cured from hemoptysis (Rakta-shtheevan). Treatment given as per availability in OPD Dispensary at Govt. Ayurveda College hospital... 1.Sitopaladi Choorna-   6 gms SwarnmakshikBhasma-  125mg MuktashuktiBhasma-500mg   Giloy-sattv...

Case-presentation: 'रेवती ग्रहबाधा चिकित्सा' (Ayu. Paediatric Management with ancient rarely used 'Grah-badha' Diagnostic Methodology) by Vd. Rajanikant Patel

[2/25, 6:47 PM] Vd Rajnikant Patel, Surat:  रेवती ग्रह पीड़ित बालक की आयुर्वेदिक चिकित्सा:- यह बच्चा 1 साल की आयु वाला और 3 किलोग्राम वजन वाला आयुर्वेदिक सारवार लेने हेतु आया जब आया तब उसका हीमोग्लोबिन सिर्फ 3 था और परिवार गरीब होने के कारण कोई चिकित्सा कराने में असमर्थ था तो किसीने कहा कि आयुर्वेद सारवार चालू करो और हमारे पास आया । मेने रेवती ग्रह का निदान किया और ग्रह चिकित्सा शुरू की।(सुश्रुत संहिता) चिकित्सा :- अग्निमंथ, वरुण, परिभद्र, हरिद्रा, करंज इनका सम भाग चूर्ण(कश्यप संहिता) लेके रोज क्वाथ बनाके पूरे शरीर पर 30 मिनिट तक सुबह शाम सिंचन ओर सिंचन करने के पश्चात Ulundhu tailam (यह SDM सिद्धा कंपनी का तेल है जिसमे प्रमुख द्रव्य उडद का तेल है)से सर्व शरीर अभ्यंग कराया ओर अभ्यंग के पश्चात वचा,निम्ब पत्र, सरसो,बिल्ली की विष्टा ओर घोड़े के विष्टा(भैषज्य रत्नावली) से सर्व शरीर मे धूप 10-15मिनिट सुबज शाम। माता को स्तन्य शुद्धि करने की लिए त्रिफला, त्रिकटु, पिप्पली, पाठा, यस्टिमधु, वचा, जम्बू फल, देवदारु ओर सरसो इनका समभाग चूर्ण मधु के साथ सुबह शाम (कश्यप संहिता) 15 दिन की चिकित्सा के ...

UNDERSTANDING THE DIFFERENTIATION OF RAKTAPITTA, AMLAPITTA & SHEETAPITTA

UNDERSTANDING OF RAKTAPITTA, AMLAPITTA  & SHEETAPITTA  AS PER  VARIOUS  CLASSICAL  ASPECTS MENTIONED  IN  AYURVEDA. Compiled  by Dr. Surendra A. Soni M.D.,PhD (KC) Associate Professor Head of the Department Dept. of Kaya-chikitsa Govt. Ayurveda College Vadodara Gujarat, India. Email: surendraasoni@gmail.com Mobile No. +91 9408441150

DIFFERENCES IN PATHOGENESIS OF PRAMEHA, ATISTHOOLA AND URUSTAMBHA MAINLY AS PER INVOLVEMENT OF MEDODHATU

Compiled  by Dr.Surendra A. Soni M.D.,PhD (KC) Associate Professor Dept. of Kaya-chikitsa Govt. Ayurveda College Vadodara Gujarat, India. Email: surendraasoni@gmail.com Mobile No. +91 9408441150