WhatsApp Discussion series:20- Concept of 'Mano-brinhan' (?) by Prof. Satyendra Ojha, Vaidya Hrishikesha Mhetre, Prof. Upendra Dixit, Prof. K. Nishtheshwar & Others
[01/07 19:16] satyendra ojha sir:
Namaste Dr Tapan Bhai ! विद्या बृंहणानाम् ; यद्यपि मांसं बृंहण प्रधानं , तथा अपि तत् शरीर मात्र बृंहणं , विद्या तु शरीरमनोबृंहणीया अतिरिच्यते..।आचार्य चक्रपाणि , च.सू. 30/15.. रसायनं ; दीर्घमायुः स्मृतिं मेधामारोग्यं...... I think this is the reason why मांस is not included as Rasayan..
[01/07 21:30] Pankaj Chhayani dr ndyad:
That means मांस doesn't brihan of mana, and so its not included in rasayana.
[01/07 21:30] satyendra ojha sir: Definitely..
[01/07 21:31] Pankaj Chhayani dr ndyad:
[01/07 22:11] Bhagwati Dr:
Respected ojha sir thanx a lot for d mamsa related post really learnt a great point today!
[01/07 22:32] Vd. hrishikesh mhtre:
1
मनोबृंहण ??
मन अणु है ।
मन नित्य है ।
तस्मात् मन का बृंहण यह चक्रपाणि वचन "वाग्वस्तुमात्र" (कहने कि बात : आश्रयासिद्ध हेत्वाभास) है ।
2
अजा मांस शरीर धातु समान है , अदोषल है ।
अ हृ सू 6
3
विश्व में 75% से अधिक लोग मांसाहारी है ।
4
नित्य सेवनीय आहार द्रव्योमें जांगलमांस समाविष्ट है ,
सभी नित्य सेव्य आहार द्रव्य *आजस्रिक रसायन* हि है ।
[01/07 22:34] satyendra ojha sir:
सभी सेवनीय आहार रसायन नहीं होते..
[01/07 22:36] satyendra ojha sir: 75% मान नही हो सकता.. किसी परिभाषा के लिए..
[01/07 22:36] Vd. hrishikesh mhtre:
पूरा च सू 30/15 श्लोक यह एक अर्थवाद मात्र है , वस्तुनिष्ठ व्यावहारिक सत्य नही ।
[01/07 22:38] satyendra ojha sir:
ऐसा नहीं है..।
[01/07 22:38] Vd. hrishikesh mhtre:
मांसाहार के प्रति अनावश्यक नकारात्मकता एवं शाकाहार के लिये अवास्तव आग्रह ये धार्मिक बात हो सकती है ... शास्त्रीय कतई नही ।
[01/07 22:39] satyendra ojha sir:
मांस के संदर्भ मे बृंहण ही उपयुक्त है..
[01/07 22:40] satyendra ojha sir:
शास्त्रिय मतो के लिए संदर्भ चाहिए..
[01/07 22:40] Vd. hrishikesh mhtre:
अर्थवाद : निंदा-प्राशस्त्य-परं वाक्यम् ।
किसी बात महत्त्व अधोरेखित करने हेतु ऐसे अर्थवाद शास्त्र में उल्लेखित है ।
[01/07 22:41] Vd. hrishikesh mhtre:
न शास्त्रमात्रशरण:
Don't adhere to texts blindly
न च अनालोचित आगम:
Neither ignore the classical texts
Ashtaanga Sangraha
[01/07 22:43] satyendra ojha sir:
संपूर्ण चरक संहिता मे मांस को रसायन नहीं कहा गया है.. वाजीकरण के लिए उपयुक्त है , परन्तु कुच्छ विशेष ही..
[01/07 22:44] Vd. Devdatta Deshmukh AP:
[01/07 22:44] satyendra ojha sir:
उपरोक्त सिद्धांत आप और हम सभी पर लागू होता है.।
[01/07 22:45] Dr Parag kanolkar Ay:
Sadhya tarpan manasa rasa...
[01/07 22:45] pawan madan Dr:
[01/07 22:47] satyendra ojha sir:
अष्टांग संग्रह , हृदय , के अतिरिक्त भी सोच है..।
[01/07 22:47] Vd. hrishikesh mhtre:
न चैकान्तेन निर्दिष्टेऽप्यर्थे
अभिनिविशेद्बुधः|
स्वयमप्यत्र वैद्येन तर्क्यं
बुद्धिमता भवेत्||२५||
तस्मात् सत्यपि निर्देशे
कुर्यादूह्य स्वयं धिया|
संदर्भ के परे बहुत ज्ञान संभव है ।
पूरा रसशास्त्र व पुरी मॉडर्न मेडीसीन का हमारे शास्त्र में संदर्भ नही है , तो क्या उसे नकार देंगे ???
उपरोक्त वाक्य चरक का हि है ।
[01/07 22:48] satyendra ojha sir:
यथोचित संदर्भ ही लिए जाते हैं..
[01/07 22:52] Vd. hrishikesh mhtre:
मांस बृंहण करता है
अणु व नित्य होने के कारण , मन का 'बृंहण' तो कतई संभव नही
इतना तो निश्चित
चक्रपाणि कि हर बात को सिद्धांत मानना 'श्रद्धा' हो सक्ती है , सत्य नही ।
स्वयं वो भी कहता है ... नैकमपि निश्चितम् ब्रूम: ...
[01/07 22:54] satyendra ojha sir:
राजयक्ष्मा चि. मे मांस उपयोगी है.. पुष्यन्ति धातु पोषाच्च शीघ्रं शोषः प्रशाम्यति... कहीं भी रसायन नहीं कहा गया है..।
[01/07 22:56] satyendra ojha sir:
आहार संभवं वस्तु....
[01/07 23:09] satyendra ojha sir:
शरीरं ह्यपि सत्त्वमनुविधीयते , सत्त्वं च शरीरम्...।
[01/07 23:14] Dr Surendra A. Soni:
Bhagwat geeta also describes Saatvik Rajasik and Tamasik Aahar.
[01/07 23:16] Upendr dixit Prof. Goa:
मनको साक्षात् पोषण नही मिलता है, परंतु शरीर पांचभौतिक है, और महाभूत अंततः त्रिगुणात्मक है । शरीरस्थ त्रिगुणोंका प्रभाव मन पर पडता है ।
[01/07 23:16] pawan madan Dr:
The imp thing is that here
man ka brihghan
iska actual meaning kya hai?
I dont thiink its physical poshanand brihghan....
...there is something गूढ..
[01/07 23:16] Dr Surendra A. Soni:
Probably this Brinhan may refer to sattvibhavan.
[01/07 23:18] Mayur Surana Dr.:
विद्या से मनोस्थैर्य की प्राप्ति होती है....प्रशम: पथ्यानाम्...इस अत्युत्तम पथ्य से साधा-सात्विक आहार भी पुरी तरह से assimilate होता है और बृंहणकारक होता है
[01/07 23:19] satyendra ojha sir:
सत्त्वं उर्जयति भी कहा गया है..।
[01/07 23:21] satyendra ojha sir:
अन्नपान के संदर्भ मे
[01/07 23:21] Mayur Surana Dr.:
हिंसा दशविध पापोमे से एक है..मांसाहार अप्रत्यक्ष हिंसा है...आत्मवतसततं पश्येद् कीटपिपिलिकाम् कहनेवाले वाग्भट की नैतिकता उच्चकोटि की है...मांसाहार का उल्लेख केवल शास्त्र के परिपूर्ण प्रगटीकरण के लिए है
[01/07 23:21] Upendr dixit Prof. Goa:
सही है, यहाँ बृंहण का अर्थ शब्दशः नही लेना चाहिए ।
[01/07 23:22] pawan madan Dr:
Jaisa khawo anna vaisaa hove man
I have seen direct wffects of different foods on man...
[01/07 23:22] pawan madan Dr:
[01/07 23:22] Dr Surendra A. Soni:
Perfect
[01/07 23:24] satyendra ojha sir:
अहिंसा प्राणिनां प्राणवर्धनानां उत्कृष्टतम्..।
[01/07 23:25] Dr Surendra A. Soni:
[01/07 23:25] Upendr dixit Prof. Goa:
गोमांस के गुणों का भी वर्णन है ।पर टीका मे यह स्पष्ट किया गया है, कि यहाँ उद्देश्य गोमांस खाने के लिए प्रवृत्त करना नही है । परंतु अगर कोई खाता है, तो वैद्य को परिणाम जानना आवश्यक है ।
[01/07 23:28] satyendra ojha sir:
इसे अहितकर मे श्रेष्ठ कहा गया है
[01/07 23:29] Mayur Surana Dr.:
इनके बावजूद जांगलमांस नित्य सेवनीय मे और मांस बृंहणाणाम् कहकर इनकी महत्ता क्यू बढाई गई है ?
[01/07 23:29] satyendra ojha sir:
गोमांसं मृगमांसानाम्..।
[01/07 23:30] Mayur Surana Dr.:
दोनो ही पक्ष की दलीलें उतनी ही सशक्त है
[01/07 23:31] Nistheswar Sir:
Charak quotes" Vidya Brimhananam". Vidya enlightens the mind which makes mind filled with positive thinking( real brimhana). Mind is always influenced by ahara and it also influences digestion of food. Irshya bhaya krodha pariplutaena....Annanam na samyak paripakameti.
Satwikahara engenders manoparibrihana like.
Vaidya Nishteswar
[01/07 23:31] satyendra ojha sir:
एक पक्षिय पहलू मत देखिये.. वैद्य मयूुर..
[01/07 23:31] Mayur Surana Dr.:
इसलिए तो कहा सर...दोनो पक्ष सही लगते है अपनी अपनी जगह पर
[01/07 23:32] Dr Surendra A. Soni:
[01/07 23:32] Upendr dixit Prof. Goa:
कर्म क्या करना है, इस पर आहार का निर्धारण किया जाना चाहिए । एक सैनिक को उत्तम शारीर बल चाहिए, शत्रु को ही सही, पर मारने के लिए थोड़ी क्रूरता चाहिए । पर एक शिक्षक को यह आवश्यक नही ।
वैसे धातु विशिष्ट आहार के अभ्यास से बनते है, कभी कभार खाने से तुरंत धातुओं मे परिवर्तन नही आएगा । इसलिए सात्म्य होने के कारण किसीने कभी खाया तो तुरंत सारे परिणाम नही आएँगे ।
[01/07 23:32] Upendr dixit Prof. Goa:
[01/07 23:34] satyendra ojha sir:
Prof. Nishteswar ji ...
[01/07 23:36] Mayur Surana Dr.:
Thanks Nishteshwar sir..
...that's what I said earlier 2321
[01/07 23:41] Upendr dixit Prof. Goa:
जो खाते है, उनके लिए जांगलमांस सेवनीय । अन्यों के लिए दूसरे पर्याय है ।
जहाँ चिकित्सा मे मांसरस इ. का उल्लेख आता है, वहाँ जिनको उचित, सात्म्य है उनको, यह भी लिखा होता है ।
[01/07 23:43] Mayur Surana Dr.:
क्या मांसाहारी व्यक्ति मोक्ष प्राप्त कर सकती है??...बिना *आर्द्रसंतानता* और *करुणा भाव* के क्या सत्वोत्कर्ष शक्य है??...अगर हा तो कैसे?..कृपया रोशनी डाले...
[01/07 23:45] Dr Parag kanolkar:
What goes in ur mouth is less important than what comes out of ur mouth... said by My Guruji always
[01/07 23:45] pawan madan Dr:
मोक्ष प्रप्ति मे.क्या खाया जाता है उस से फर्क्नही पढेगा बल्कि किस भावना से खाया जाता है वो matter करता है. फिर वो चाहे अन्न हो या मान्स...
[01/07 23:46] Mayur Surana Dr.:
पवनजी मांस खाना ये स्वतः क्रूरभाव का प्रकटीकरण है
[01/07 23:47] satyendra ojha sir:
हिंसा हमेशा निन्दनीय है...
[01/07 23:47] pawan madan Dr:
साधना मे कुछ बात अलग हो सकती है
[01/07 23:47] Upendr dixit Prof. Goa:
हिंसा का उद्देश्य क्या है, इससे यह तय होगा, कि वह पाप का कारण है या नही । वैसे मांस खाने वालों को भी मोक्ष मिल सकता है, वैसे तो फिर गेहूँ, चावल की हत्या के लिए भी नर्क मे जाना पड़ेगा ।
[01/07 23:48] Dr Parag kanolkar:
Intention is much more important
[01/07 23:48] pawan madan Dr:
साधक एवम योगी इस बात से निरपेक्ष होते है. उन्के हाथ मे कुछ भी हो उन की भावना एक ही होती है अन्यथा वे साधक नही हो सकते
[01/07 23:50] abhay Dr Ay pith:
हठयोग में गोमांस भक्षण खेचरी मुद्रा को कहा गया है !!
[01/07 23:50] Mayur Surana Dr.:
दीक्षित सर पंचेन्द्रियो कि हिंसा स्थूल हिंसा है...भावप्रकटीकरण सामर्थ्य जिनमे है उसे स्थूल हिंसा कहा गया है...शेष हिंसा सूक्ष्म हिंसा है
[01/07 23:50] Mayur Surana Dr.:
स्थूल हिंसा निंदनीय है
[01/07 23:51] satyendra ojha sir:
I think , we are diverting ourselves , Prof. Mhetre ji is getting sleep, and we all are indulged in this discussion.. it's हिंसा..।।
It's midnight to you.. less time for liver to detoxing..
[01/07 23:54] Dr Parag kanolkar:
Yes sir... we shall continue the topic tomorrow
[01/07 23:55] satyendra ojha sir:
कृमिघ्न भी हिंसा है.. फिर क्या करें .. अति वाद महत्वहीन है..।
[01/07 23:56] Upendr dixit Prof. Goa:
निद्रा की हिंसा नही करेंगे शुभ रात्रि
[01/07 23:57] +91 98903 12002:
मांसाहार तथा शाकाहार अच्छा भी नही और बुरा भी नही...वह सिर्फ आहार है...अपने संस्कार, सात्म्यानुसार उसे अपनाना चाहीए...बिना कारण हिंसा सर्वथा निंदनीय...पाप और पुण्य के अर्थ काल तथा क्षेत्रानुसार बदलते है...बाकी जीवो जीवस्य जीवनम्...मांसाहारी कोई पाप नही करते नातो शाकाहारी कोई पुण्य btw Dr Dean Ornish has strongly advocated vegetarian diet in his book ,..,.programme for reversal of heart disease ....strange coincidence that charak also advocates it in अर्थेदशमहामूलीय..
[01/07 23:59] satyendra ojha sir:
वैद्य जोशी जी..।
[02/07 00:08] Nistheswar Sir:
If mamsa is mokshapratibandhak, the human body is made up of mamsa. In such case we are not eligible for moksha. Lord Rama and Vasudev were 100% non vegetarians. Mamsa which is satwa guna dominant( madhrarasa, sheetavirya and madhuavipaka) contributes for increasing view of détachement( nissangatwa) which is real moksha.
Nishteswar
[02/07 10:15] Katoch sir: Shanivaar sab ke liye kalyankari ho, Shubhamastu. Interesting inputs and counterputs on Mamsahar. Keeping away what Shastras say, I assume that human body is basically kaphatmak and Mamsa to me seems as the best Kaphadhatu vardhak. See, I am saying Kaphadhatu not Kapha dosha. Biologically also body is made from proteins and the best proteins come from non-vegetarian foods to produce and nourish Kapha dhatu. That is why I feel Mamsa is recommended for Brihghan and as Nityasevan/Swasthvrittikar dravya to maintain health index of the persons. This logical understanding is well explained in Ayurvedic texts in the context of nutritional and therapeutic value of various non-vegetarian foods in Ahaarvarg or Annavarg chapters. Practically also seen in Europeans, Americans, Chinese, Koreans and Africans that they regularly take non-veg and are comparatively healthy people. The incidence of heart diasease, HT, DM etc in my clinical experience ( there may be statistics also) is found to be more in vegetarians. I don't think non-vegetarian food is so bad as it is blamed to be if consumed not in excess and other concomitant indiscriminations. Afterall Shaka is also not recommended as a preferred food item in Ayurveda (Hitbhuk, Mitbhuk, Ashakbhuk). Even if one likes to consume Shaka, there must be prabhoot sneha (ghee), which is again a product of animal origin full of lipoproteins and essential fatty acids. Otherwise also animals and plants differ only due to their cellular structure but all grass is bottled sunlight (photosynthesis- cellulose formation) and all meat is bio-transformation of grass consumed by animals. Jai ho.
[02/07 10:42] +91 94223 57002:
Reality
Whatever rationale, logic n ref we will give
Non vegetarian will not leave non veg n
Pure vegetarian will not eat non veg
Jai ayurved
[02/07 10:46] Katoch sir:
Yes, fortunately or unfortunately aastha, not logic, of a person prevails for food choice.
[02/07 10:47] +91 94223 57002: yes sir
[02/07 10:54] Ranjit Nimbalkar Prof.:
मात्राशी स्यात्...
I permit my pts to take non veg diet 4-5 times a year, wspecially in hemant & shishir rutus...nov, dec & jan.
Remaining yr veg diet.
I too practice the same.
Non veg diet definitely offers some essential amino acids, vit b folic acid etc.
So its for need...not for test.
Non veg....nvr for any party or celebration.
Only veg food in such celebrations..
मध्यममार्ग
[02/07 10:56] pawan madan Dr:
Very nice views.
only one query....
the poeple doing maansahaar are more healthier.......seems. difficult to digest.
I think being healthy doeant depend only on the type of food..........amount of food as well as the agni of person is also important to be considered.
[02/07 11:09] Katoch sir:
Dr Pawan, Aahar chahe kaisa bhi ho (veg or non veg as meals or thoughts) , Aahar aur achaar ke niyamon ke anusaar karana chahiye. Unfortunately, there is no standard Aahar applicable to all.
[02/07 11:10] Katoch sir:
With regard to Aahar, manotushti is most important.
[02/07 11:13] Dr Pratibandh AP:
Respected gurus, i'll share few points here.
Think of paleo diet and evolution of human food habits, the earliest humans were known for hunting of animals for foods, there was no concept of vegetarianism in evolution of human, before 5000 years humans started cultivation, agriculture etc. Then started to follow vegetarian foods. Evolutionarily humans are non-veg.
[02/07 11:22] vivek savant:
लेकिन हम जब आयुर्वेद स्विकारते है तब हमे ऐसा विचार ही नही करना चाहिये
ग्रंध् मे हर मांस का गुणधर्म भी बताया है ताकि हम उसे योग्य व्याधि मे भी use कर सके
अस्थि मज्जा गत रोगोमे कोल्हापुर का पांढरा रस्सा बहोत अच्छा काम करता है हमारे यहां पे मै खुद तैयार करके देता हु admit रुग्ण को
पारावत शकृत रक्त भी काम करता है
मैंने खुद वंध्यत्व मे मयूर अंडा बस्ती मे use किया है और result भी बहोत अच्छा है
अभ्यन्तर मांस रस भी निरुह यापन मे बताया है
कुछ गलती हो तो सुधार दे
[02/07 11:23] Vd. Devdatta Deshmukh AP:
Let's don't be extremists about our view because of our own views.
Let's don't district the शास्त्रदृष्टी for own views.
Let the अग्नी, सात्म्य, रूची etc decide this.
[02/07 11:29] +91 94225 92068:
मन नित्य और अणु रूप है। विभु नही है। मन का अणु रूप होना ही उसपर पंचमहाभुतोंके प्रभाव को अधोरेखित करता है। आहार रस से मन का पोंषण होता है ये तर्कसंगतही है। आजकल gut brain की जो नयी व्याख्या की जा रही है उसमें मन की वृत्तियों पर प्रभाव डालनेवाले neuro transmitters भी आंत्र में पैदा होते है ऐसा संशोधन है। इसका अर्थ आहार से पैदा होनेवाले सूक्ष्म अंश चित्त की वृत्तियोंको प्रभावित करते है ऐसा मानना संयुक्तिक है। मांस रजो गुण बढाता है इसलिए जिन्हें रजो गुण की आवश्यकता है उनके लिए उसका उपयोग लाभप्रद है।
अध्यात्म लाभ के लिए रजो गुण की आवश्यकता नही बल्कि सत्त्व गुण की आवश्यकता है इसलिए प्रायः इसे धार्मिक हेतू से अनुपयुक्त या बांधकारक मानते है। जिन्हें इहलोक का सुख चाहिये वो जरूर खाये और जिन्हें परलोक की या मोक्ष की कांक्षा हो ना खायें।
और विवेकाग्नी और ज्ञानाग्नि इतना तीक्ष्ण हो तो उस की व्यक्ती के लिये कोई परहेज नही है।
[02/07 11:36] +91 94225 92068:
मन के बृंहण का अर्थ है की मन का धी, धैर्य और आत्मादी विज्ञान से परिपूर्ण होना। वो विद्यासे ही संभव है।
ओझा सर ठीक ही कहते है मांस शरीर उपयुक्त है लेकिन रसायन नही।
रसायन, मन पर भी अनुकूल प्रभाव डालता है।
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Above discussion held on 'Ayurveda Peetha"(initiated by Prof. S.N. Ojha) a Famous Whatsapp group of well known Vaidyas from all over the India.
Compiled & edited by
Dr.Surendra A. Soni
M.D.,PhD (KC)
Associate Professor
Dept. of Kaya-chikitsa
Govt. Ayurveda College
Vadodara Gujarat, India.
EMAIL: surendraasoni@gmail.com
Mobile No. +91 9408441150
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