WDS 84: Aashayapakarsh 2 (आशयापकर्ष 2) Prof. Satyendra Narayan Ojha, Vaidyaraja Subhash Sharma, Vd. Raghuraj Bhatta, Prof. Gurdeep Singh, Prof. Ramakant Sharma 'Chulet', Dr. Pawan Madaan & Others.
[2/26, 9:39 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
*एक प्रश्न ; मूल शब्द आनयापकर्ष या आशयापकर्ष ? ससंदर्भ बताने का कष्ट करें*
[2/26, 9:46 PM] Dr. Sadhana Babel Mam:
Madhavnidan १/५
[2/26, 9:47 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
मूल शब्द आनयापकर्ष या आशयापकर्ष ?
[2/26, 9:48 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
फिर क्या यह शब्द माधवनिदान का है या अन्यत्र से उद्धरित है ?
[2/26, 9:53 PM] Dr. Sadhana Babel Mam:
चरक मे नही मिला
[2/26, 9:53 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
🙏🙏
[2/26, 9:54 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
हमारा दुर्भाग्य है की चरक संहिता पर लिखी हुई सभी व्याख्याएं उपलब्ध नहीं है..
[2/26, 9:54 PM] Dr. Sadhana Babel Mam:
Yes not mentioned in bruhat trayi as per my knowledge
May b wrong
[2/26, 9:55 PM] Dr. Sadhana Babel Mam:
अशयापकर्ष
[2/26, 9:55 PM] Dr. Sadhana Babel Mam:
Yes
[2/26, 9:56 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
*मधुकोष को उद्धरित करें , मेरे प्रश्न का जबाब वहीं पर है*
[2/26, 9:57 PM] Dr. Sadhana Babel Mam:
Yes
[2/26, 11:12 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*आश्यापकर्ष पर ग्रुप में बढ़ी अच्छी चर्चा पहले भी हो चुकी है ...👇🏿*
https://kayachikitsagau.blogspot.com/2019/01/wds-65-aashyaapakarsh-by-prof-ramakant.html?m=0
[2/26, 11:16 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*प्रो. रमाकान्त शर्मा चुलैट सर ने इस पर विस्तार से वर्णन किया है 🙏🙏🙏*
[2/26, 11:35 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*आश्यापकर्ष आयुर्वेद का ऐसा विषय है कि चिकित्सा में हर कुछ समय बाद ऐसे विषयों पर पुन: पुन: भी चर्चा की जाये तो अनेक नवीन उदाहरण प्राप्त होते हैं जो चिकित्सा में सहायक बनते हैं।*
[2/27, 12:37 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*अभी कुछ दिन पहले ही आयुर्वेद में एक अनुसंधान कर रहा था 'आयुर्वेद का गति विज्ञान' इस पर अभी लिखना ही आरंभ किया कि clinic पर व्यस्त हो गया तो बीच में रह गया, इसमें दोषों की गति, आश्याकर्ष, विमार्गगमन आदि सब पर लिखने का मन था और आज आश्यापकर्ष पर अच्छा हुआ कि पुन: चर्चा चल पड़ी। प्रथम दृष्टि में तो देखने में ये सब एक सदृश कर्म करने वाले लगते है पर एक नही कर्मानुसार भिन्न हैं।*
*आश्यापकर्ष शब्द का सीधा प्रयोग माधव निदान मधुकोष टीका में चरक का उद्धरण दे कर किया है 'आशयापकर्षतो यथा–
यदा स्वमानस्थितमेव दोषं स्वाशयादाकृष्य वायुः स्थानान्तरं गमयति तदा स्वमानस्थोऽपि स विकारं जनयति'
मा नि 1/5
सम अवस्था में स्थित किसी भी दोष को जैसे पित्त या कफ को वात अपने आश्य से आकृष्ट कर अन्यत्र ले जाता है तब सम अवस्था का वह दोष भी रोगोत्पत्ति का कारक हो सकता है ।*
*आगे चरक का उदाहरण दे कर 'प्रकृतिस्थं यदा पित्तं मारुतः श्लेष्मणः क्षये स्थानादादाय गात्रेषु यत्र यत्र विसर्पति, तदा भेदश्च दाहश्च तत्र तत्रानवस्थितः गात्रदेशे भवत्यस्य श्रमो दौर्बल्यमेव च'
च. सू. 17/45-46
कफ के क्षीण पर वात प्रकोप अर्थात वृद्ध हो गया और पित्त स्थान में समावस्था के पित्त को ले कर शरीर के जिस जिस भाग में ले जायेगा तो वात के कारण वह पित्त स्थिर नही रहेगा और उस स्थान पर भेद अर्थात फटने सदृश पीड़ा, दाह, थका हुआ शरीर और दुर्बलता प्रकट करेगा।*
*अस्य प्रयोजनं वातस्यैव तत्र विगुणस्य स्वस्थानानयनं कार्यं, नतु पित्तस्य ह्रासनं, 'ये त्वेनां पित्तस्य स्थानाकृष्टिं न विदन्ति, ते दाहोपलम्भेन पित्तवृद्धिं मन्यमानाः पित्तं ह्रासयन्तः पित्तक्षयलक्षणं रोगान्तरमेवोत्पादयन्त आतुरमतिपातयन्ति'
इसका चिकित्सा की दृष्टि से बढ़ा महत्व है कि यहां वात का वैगुण्य है तो वात को उसके स्व: स्थान पर लाना चाहिये ना कि पित्त का ह्रास करें क्योंकि जो चिकित्स इस भ्रम में रहेगा कि यह पित्त वृद्धि है और पित्त का क्षय करेगा वह रोगी में पित्त क्षय के लक्षण उत्पन्न कर देगा जो रोगी की मृत्यु का भी कारण बन सकता है।*
*देखा जाये तो यह सब क्रियाऐं वात कर रहा है और अपनी गति से।
'क्षयः स्थानं च वृद्धिश्च दोषाणां त्रिविधा गतिः, ऊर्ध्वं चाधश्च तिर्यक्च विज्ञेया त्रिविधाचापरा...कोष्ठशाखामर्मास्थिसन्धिषु, इत्युक्ता विधिभेदेन दोषाणां त्रिविधा गतिः' ।
च सू 17/112-113
वात, पित्त और कफ इनकी शरीर में गति तीन प्रकार से है - 1 क्षय,स्थान और वृद्धि 2 उर्ध्व, अध: और तिर्यक और कोष्ठ, शाखा, मर्म, अस्थि और सन्धि । चक्रपाणि ने स्थान को अपने मान,परिमाण अथवा उनकी समानता में रहना लिखा है और अन्य मत गति प्रकार या अवस्था, स्थिति और स्वरूप भी ग्रहण किया है। उर्ध्व गति में उर्ध्वग रक्तपित्त छर्दि आदि, अधोग में अतिसार, संग्रहणी आदि सहित अधोग रक्तपित्त भी, तिर्यग् गति में ज्वर, शूल, मंदाग्नि, आध्मान आदि हैं, यहां आवरण का उल्लेख नही है।*
*यहां सूत्र में जो कोष्ठ लिखा है उसका उल्लेख चरक शारीर अध्याय 7 में 15 अंगों का ग्रहण है, नाभि ह्रदय क्लोम यकृत प्लीहा दोनोवृक्क बस्ति पुरीषाधार आमाश्य पक्वाश्य उत्तर गुद अध: गुद क्षुद्रान्त्र स्थूलान्त्र और वपावहन। शाखाओं में रक्त मांस मेद अस्थि मज्जा शुक्र और त्वचा तथा मर्मास्थि संधि में बस्ति, ह्रदय आदि मर्म एवं अस्थि संधियां।*
*ऋतुओं के अनुसार भी दोषों की गति तीन प्रकार से बताई गई है, 'चयप्रकोपप्रशमाः पित्तादीनां यथाक्रमम्,भवन्त्येकैकशः षट्सु कालेष्वभ्रागमादिषु,
च सू 17/114
पित्त आदि दोषों द्वारा क्रम से वर्षा आदि 6 ऋतुओं मेंकेरम अनुसार चय, प्रकोप और प्रशमन एक एक का क्रमानुसार होता है अर्थात दोष का क्षय या कम होना, सम रहना या वृद्ध होना है।*
*आगे दोषों की कालानुसार गतियां बताई गई हैं,
'गतिः कालकृता चैषा चयाद्या पुनरुच्यते गतिश्च द्विविधा दृष्टा प्राकृती वैकृती च या'
च सू 17/115
चय, प्रकोप और प्रशमन तो काल के अनुसार होती है पर अन्य दो गतियां प्राकृत physiological और वैकृत pathological हैं। वात की गतियों का उल्लेख इस प्रकार से किया है,
'सर्वा हि चेष्टा वातेन स प्राणः प्राणीनां स्मृतः, तेनैव रोगा जायन्ते तेन चैवोपरुध्यते'
च सू 17/118
सर्व चेष्टायें अर्थात चलना, फिरना, उठना, बैठना, बोलना, आंख खोलना, बंद करना आदि और ये कर्म सब प्राकृत वात के द्वारा संचालित होते हैं, यही दोष रहित वात प्राणियों का प्राण कहा गया है और जब यह विकृत होता है तभी प्राणियों में रोगोत्पत्ति होती है।*
*आवरण स्रोतस में होने वाली कौन सी दुष्टि है ? क्योंकि आवरण में भी वात ही प्रधान है, हमारे लिये गति होना या किसी कारण से वात की गति का ना हो पाना रोग और चिकित्सा की दृष्टि से दोनों ही महत्वपूर्ण है।
'अतिप्रवृत्तिः सङ्गो वा सिराणां ग्रन्थयोऽपि वा, विमार्गगमनं चापि स्रोतसां दुष्टिलक्षणम्।'
च वि 5/24
स्रोतस में किस का वहन हो रहा है ?रसादि धातुओं का, यहां चक्रपाणि ने संग दोष पर 'संगोऽपि रसादेरेव' अर्थात संग रसादि धातुओं का ही होता है। हर जगह वात और इसके द्वारा गति की प्रधानता है।*
*च चि 28/246 में
'क्षयं वृद्धिं समत्वं च तथैवावरणं भिषक्, विज्ञाय पवनादीनां न प्रमुह्यति कर्मसु'
वात, पित्त और कफ के क्षय, वृद्धि और समता को जानकर और इनके आवरण की स्थिति को जानकर चिकित्सा करने वाला कभी चिकित्सा में मोहित नही होता। चक्रपाणि इसे स्पष्ट करते हैं कि
'क्षयमित्यादौ आवरणमपि क्षयवृद्धि सम्बन्धान्तर्निर्दिष्टमेव, तथा ऽप्यावरणस्य विशेषलक्षण चिकित्सार्थं पृथगभिधानम्, कर्मस्विति चिकित्सासु' अर्थात आवरण भी क्षय, वृद्धि संबंधों के अंदर ही कहा गया है पर आवरण का विशेष लक्षण चिकित्सा करने के लिये पृथक रूप से कहा है। दोषों की गति, आवरण, आश्यापकर्ष, विमार्गगमन सभी का ज्ञान चिकित्सा के लिये आवश्यक है ।*
[2/27, 1:00 AM] Vd Raghuram Shastri, Banguluru:
*Excellent summary of different perspectives of understanding the gatis of doshas and their clinical significance Guruji. As you rightly concluded each aspect needs to be analyzed while in clinical practice. Ashayapakarsha may be misleading often. We are trying to address the fire scattered everywhere in the body but we may miss out looking for the main culprit i.e. vata and we may also fall into a false illusion that it is a pittaja vyadhi or pitta pradhana lakshana / lakshanas depending on the displacement of normal pitta in the body. But the chief patron of mischief is vata. WIND IS BLOWING THE SILENT AND INNOCENT FIRE IN VARIOUS DIRECTIONS MAKING IT LOOK LIKE A BURNING CULPRIT WHILE WIND IS ENJOYING THE SHOW BEING BEHIND THE SCREEN. Interestingly there is a RELATIVE IMBALANCE than needs to be addressed. One dosha is in a state of balance, one is blown out of proportions and the other has decreased abnormally. WE ALSO NEED TO DIFFERENTIATE ASHAYAPAKARSHA FROM DOSHA PRASARA AVASTHA. Thanks for highlighting various gatis Guruji*
🙏🙏💐❤️🙏
[2/27, 1:19 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*धन्यवाद युवा ऋषि आचार्य रघुराम जी, बच्चे विदेश में हैं उनका फोन रात को ही आता है तो लेखन वहीं समाप्त करना पड़ा था, अभी इसमें कुछ बाकी था , आश्यापकर्ष को भिन्न कैसे मानें ? आश्यापकर्ष केवल दोषों का होता है धातुओं का नही। आश्यापकर्ष ध्यान से देखें तो संग और आवरण से अलग ही है और इसकी चिकित्सा भी । आश्यापकर्ष आम दोष से अलग है।चरक में स्रोतोदुष्टि के लक्षणों में कहीं भी आश्यापकर्ष नही मिलता जबकि अति प्रवृति और विमार्ग गमन वात के माध्यम से मिलता है, अमुक स्रोतस अर्थात उस धातु का वहन करता है पर आश्यापकर्ष अनुसंधान का एक नया अध्याय खोलता है एक आश्य से दूसरे आश्य में दोषों को ले जाना।*
*अनेक बार सब साधन उचित होने पर भी असफलता का एक कारण आश्यापकर्ष का ज्ञान ना होना भी है कि निदान ही सही नही था।*
🙏🙏🙏
[2/27, 1:29 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*आश्यापकर्ष और विमार्गगमन भी अलग है क्योंकि विमार्गगमन धातुओं और मलों का ही प्राय: होता है।
[2/27, 1:33 AM] Vd Raghuram Shastri, Banguluru:
Thanks Guruji. There are so many areas to explore and your final sentence tells that, Ashayapakarsha is such a maze and a complicated puzzle sometimes that we stand at point of deception. Our common sense doesn't reach there many times. With exceptions of experienced Gurus like your kind self, Ojha sir and other senior Gurus who would look at atura and vyadhi from 360 degrees, with all possible vikalpas. Lack of knowledge or lack of precision in our thought process focusing upon Ashayapakarsha might lead to failures as you rightly said sir. You have given a big dimension for this topic and reasoning wherein you have also brought in the concept of possible involvement of dhatus in the ashayapakrsha!! Great point Guruji! Though Shastra doesn't mention it directly we can think of exploring such aspects. Ayurveda is an ocean and we definitely do not know where which gem of knowledge is secretly hidden! It is all about decoding things and with help of Gurus like your kind self we get to learn various possibilities of exploring these deeper oceans. We also need to study Vimargagamana and Ati Pravrutti in comparison to concepts like Ashayapakarsha, all of which are caused due to Vata, as you have rightly pointed out. Indeed, Ashayapakarsha and its understanding is a kind of dedicated research, when we understand it properly many gates will open up. Respects and hats off to your dedication sir. In spite of busy clinics you write so much of your experience and share with us, late nights many times. You also dedicate your valuable time for us. See the magnanimous nature of your kind heart, you get to speak to your children staying abroad at late night and you have time for this family too, always. Love to you and your family sir. Kindly take rest.
Shubh Ratri Guruji.
Love you*
💐💐🙏🙏❤️❤️
[2/27, 5:54 AM] Vd. V. B. Pandey Basti(U.P.):
चिकित्सा के मूल सिद्धांतों का इतना आसान वर्णन। गुरूवर सादर प्रणाम 🙏
[2/27, 5:57 AM] Vd. V. B. Pandey Basti(U.P.):
🙏Its Physics every action is equal but opposite to the reaction of vaata.
[2/27, 6:02 AM] Vd. V. B. Pandey Basti(U.P.):
Thanks to you also sir .
[2/27, 6:21 AM] वैद्य मृत्युंजय त्रिपाठी उत्तर प्रदेश:
Excellent sir ji pranam 🙏🙏
[2/27, 6:56 AM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar:
Good mng sir.
Ji sir..🙏🙏🙏
[2/27, 7:12 AM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
वैद्यराज सुभाष शर्मा जी का आशयापकर्ष पर एक अति विशिष्ट श्रेणी की व्याख्या है जो कि चिकित्सा की दृष्टि से अवलोकनीय है एवं प्रशंसनीय भी.. यहाँ पर वात के गति की वृद्धि का हेतु कफ या पित्त का क्षीण होना है , कफ और पित्त के बहुत से गुण वात के विपरीत है जिसके कारण उन स्निग्धादि गुणो के क्षय होने पर वात की गति में वृद्धि होकर वात सम दोष को उसके स्थान से खींचकर बाहर निकालकर ले जाता है और लक्षण सम दोष के होते हैं लेकिन अनवस्थित होते हैं. यह अनवस्थितता ही आशयापकर्ष का प्रत्यात्म लक्षण है और यही समझना जरुरी है जिससे यथोचित चिकित्सा व्यवस्था सम्भाव्य होती है..
[2/27, 7:19 AM] Dr. Chandrakant Joshi Sir:
🙏🙏
[2/27, 7:24 AM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
Vaidyaraja Raghuram ji, Vaidyaraja Pawan madan ji and Vaidyaraja Atul kale ji.. one more thing I wish to submit here regarding katuki .. kutaki is katu in rasa & veerya : कटुको रसो शोणित संघातं भिन्नत्ति ➡️ katuki is more katu than pipalli like katu dravya , pippali with other dravya is given in Raktapitta but not katuki indicates that it's शोणितसंघातं भिनत्ति action is more predominant and in turn lead to bleeding therefore contraindicated in all types of bleeding disorders..
What is my additional submission is that katuki may be the best choice in hepatic venous thrombosis , portal venous thrombosis..
[2/27, 7:27 AM] Dr. Chandrakant Joshi Sir:
इसे तत्वावबोध कहते है गुरुवर्य। यही हर्षण का कारण होता है। तत्वावबोधो हर्षणानाम्।🙏🙏
[2/27, 7:34 AM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
🙏🙏
[2/27, 8:24 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*नमस्कार आचार्य रघु जी, हम सब लोग जो काय सम्प्रदाय में हैं आपस में मिलकर गंभीर मन्त्रणा और चिन्तन करते है यह आयुर्वेद के लिये अति आवश्यक है, सूत्रों को समझना, उन्हे रोगी में ढूंडना और differential diagnosis आयुर्वेद में किस प्रकार किया जाये ? अति महत्वपूर्ण भाग है ।*
*आधुनिक समय में आयुर्वेद के नाम पर अधिकतर जो भी चिकित्सा बाहर की दुनिया में देखने को मिल रही है, कार्य हो रहा है वो आयुर्वेदीय नही 'हर्बल' है। हमारे अनेक श्रेष्ठ गुरूजन,ओझा सर, आप एवं अन्य अनेक विद्वानों को पढ़ कर अत्यधिक संतुष्टि मिलती है कि यह है आयुर्वेद जो अपने मूल स्वरूप के साथ शाश्वत वर्तमान में भी सफलता पूर्वक चल रहा है।*
*love u raghu ji 🌹🌺💐❤️🙏*
[2/27, 8:39 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*नमो नम: सर 🌺🌹🙏 आयुर्वेद ज्ञान का महासमुद्र है और एक विशिष्ट बात देखी इसके सिद्धान्तों का चिंतन सदैव ऊर्जा और प्रसन्नता देता है साथ ही शिरो लघुता। हम आयुर्वेद की भाषा रोगियों को prescriptions के पीछे लिख कर भी देते रहते है जिस से रोगी आ कर कहता है कि वैद्यराज जी कल उदर में आध्मान हो गया था, मूत्र में अवरोध था, विबंध हो गया था, आर्तव नही आता आदि आदि । आज का रोगी घर जा कर पहले net खोलकर ये पढ़ता है कि हमने जो औषधियां दी उसके गुण क्या है और side effects कितने है, लक्षण क्या लिखे और निदान क्या किया ?*
*अनेक रोगी ये भी कहते मिलेंगे कि वैद्य जी आरोग्य वर्धिनी आपने भी दे दी, ये तो मैने बहुत खाई है और कुछ काम नही करती। दो मिनट में बिना हमारी औषधि सेवन किये हमें फेल करने वाले रोगी भी बहुत मिलेंगे।*
*सब ज्ञान रोगी ने अपने हाथ के फोन में रखा हुआ है और उलझा हुआ है, उसे जैसे पता है पर ज्ञान कुछ नही ।*
😃😃😃🙏🙏🙏
[2/27, 8:40 AM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
*समाज की क्लिष्टता में ही समाज के लिये करना है*
[2/27, 8:41 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*पूर्ण सत्य कथन सर 👌👌👌🙏*
[2/27, 8:41 AM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
आप सक्षम है अपने रुग्णों को सही दिशा निर्देश में*
[2/27, 8:44 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
🙏❤️🌹🙏
*ईश्वर कृपा, भाग्य, काल आदि सभी का महत्व है और अनेक कुछ अनसुलझे हेतु भी है सर*
[2/27, 8:47 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*पहले कभी इतना लिख नही पाता था पर आप सहयोग और साथ मिला तो लेखन की क्षमता बढ़ने लगी।* 🙏🙏🙏
[2/27, 8:47 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*आपका*
[2/27, 8:49 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*एक श्रेष्ठ शिक्षक, चिकित्सक और सहयोगी का साथ जीवन में आवश्यक है जो आपके रूप में मिला।*
[2/27, 8:53 AM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
यस्य वायु:
अव्याहतगति: ,
स्थानस्थ: ,
प्रकृतौ स्थित: स्यात्
(१) अव्याहतगति: अपरित्यक्तस्वमार्ग:
(२) स्थानस्थ इति न विमार्ग:
(३) प्रकृतौ स्थित इति अक्षीणवृद्ध:
अपरित्यक्तस्वमार्ग को अनावृतमार्ग भी कहा गया है अर्थात् आवरणरहित मार्ग, अप्रतिघातयुक्त मार्ग ..
वात गति सिद्धांत को समझने के लिये इन तथ्यो को भी समझना जरुरी है..
[2/27, 8:58 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*अत्युत्तम व्याख्या 👌👌👌🙏*
[2/27, 9:07 AM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
🙏🙏
[2/27, 9:08 AM] Dr. Mukesh D Jain, Bhilai:
*Ayurveda is not so simple* !
Ayurvedic practitioners should have a thorough knowledge of ashay-apakarsha and should clearly know the difference between dosha vriddhi and ashay-apakarsha. Without this subtle knowledge doctor can do serious complications.
[2/27, 9:09 AM] Dr. Mukesh D Jain, Bhilai:
We should remember and understand the importance of master energy “VATA”, its role to create disharmony and dysregulation of metabolic function. The current discussion in our *Kaysampraday* will help the physician to understand the Dosha-dushti and make a differential diagnosis.
[2/27, 9:15 AM] Dr. Sadhana Babel Mam:
दोषस्य च प्राकृत वैकृताभ्यां ' भेदो S नुबन्ध्यादपि चानुबंधात - I तथा प्रकृत्य प्रकृतित्वयोगात्तथा ss शया कर्ष वशा तेश्च इति निदान । मधु कोष
[2/27, 9:16 AM] Dr. Sadhana Babel Mam:
आशयाकर्ष🙏
[2/27, 9:32 AM] Vd.Shailendra Harayana:
Respected mam🙏🏻🙏🏻 Is it आश्यऽपकर्ष or आशयाकर्ष...🙏🏻🙏🏻
[2/27, 9:35 AM] Vd.Shailendra Harayana:
It seems आश्यापकर्ष ,,,🌷🌷
[2/27, 10:27 AM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
प्रो. साधना जी..
आशयाकर्ष ➡️ मधुकोष
आचार्य चरक (सू.१७/४५,४६) के इस सिद्धांत पर सर्व प्रथम आचार्य भट्टारहरिचन्द्र ने टीका की जिसे मधुकोष में आचार्य विजयरक्षित ने उल्लेखित किया..
विशेष ज्ञान हेतु एक बार आप सभी मधुकोष को पढे
[2/27, 10:28 AM] Prof. Lakshmikant Dwivedi Sir:
Thanks Nameste Hardik shubhkamnaye 🎉
Very nice 👍
[2/27, 10:29 AM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
*सादर प्रणाम गुरु जी* 🙏🙏
[2/27, 10:31 AM] Prof. Lakshmikant Dwivedi Sir:
😃🙏🏼
[2/27, 11:35 AM] Dr. Rajeshwar Chopde:
Gurujii, Jwar aur Seetpitta me Aashayapkarsh gati hai pitta ki twacha me, to Sampatti aur Chikitsa ka bhed ke upar prakash dalne ki krupa kare?
[2/27, 11:36 AM] Prof. Lakshmikant Dwivedi Sir:
AashyApakarsha✓
[2/27, 11:46 AM] Dr. Gurdip Sing Sir:
Clear example of Ashyapkarsh is Shakhasrit kamala Charak Chikitsa 16 Shloka 125 to 131. Read with treatment for better understanding
[2/27, 11:46 AM] Dr. Sadhana Babel Mam:
🙏🙏🙏
[2/27, 11:52 AM] Prof.Giriraj Sharma Sir Ahamadabad:
*सिराव्यध में व्याधि विशेष में स्थान विशेष की सिरा का व्यधन बताए है ।*
*वहां प्राण, प्राणायतन, मर्म (मांससिरास्नायुअस्थि संधि), षड़भाव, गर्भव्याकरण (अंग निर्माण) अन्य आदि में से या इनसे कोई न कोई कारण होता है जो गुढ़ है ।*
एक विशेष चिंतन उदाहरण
1. *सिरा व्यध को स्थान एवं प्रत्यंग या अंग अवयव के रूप में नही बल्कि प्राण के परिपेक्ष्य/में देखना चाहिए*
2. *प्राण गति उसके स्थिति के परिपेक्ष्य में ,,,यथा*
*प्लीहा वाम क़ुर्पर*
*Horizontal line से देखे तो दोनो अंग एवं व्यध स्थान एक ही लाइन में आ रहे है ।*
*यहां Pran गति है या अन्य हेतु*
*Spleen स्थान एवं क़ुर्पर का व्यध स्थान एक ही सीमा (होरिजेंटल लाइनिंग)*
*यकृत दक्षिण क़ुर्पर*
*यहां सिरा व्यध स्थान एवं रोग आश्रय अंग का स्थान एक ही होरिजेंटल लाइन में आ रही है ।*
*परन्तु बहुत जगह ऐसा नही है वहां प्राण गति या भाव , अंग निर्माण की साम्यववस्था हो सकती है ।*
*जैसे आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में जैसे referred pain में Dermatome की भूमिका,,,*
*वैसे सिरा व्यध में भाव, गर्भव्याकरण, प्राण से सम्बन्ध हो सकता है ।*
*आप सब का चिंतन एक नया आयाम दे सकता है सिरा व्यध को,,,,,,,*
🙏🏼🙏🏼🌹🙏🏼🙏🏼🙏🏼🌹🙏🏼🙏🏼
[2/27, 12:03 PM] Vd. Shailendra Harayana:
Gurudev...🙏🏻🙏🏻I m searching Aashyaapkarsh word in charak...Couldn't find yet...A similar one is कर्षेत् is this same .
[2/27, 12:10 PM] Dr.Bhavesh R. Modh Kutch:
👌👍
अत्यंत नविन द्दष्टिकोण ... ✅💯
Thanks for sharing 😊
[2/27, 12:17 PM] Dr Venkata N Joshi London:
Pitta Visarpana is experiencing instantly
When recently I was tasting the unripe tamarind chutney preparation with red fresh chilli 🌶 and green chilli varieties! Being in India 🇮🇳 and carrying to UK 🇬🇧
The taste sour spicy salty addictive and burning
Clearly with pins and needles over scalp with sweat drops and
Recently I also sweat around upper nose and cheeks which was not before
Surge of pitta instantly over and upwards is immediately with daha and tamas bhrama etc
.... same day after consuming 3 tsf for tasting
Has reached
Kha vaigunya
Area at.... my past cervical disc prolapse history from 2010,
Now relapse of similar symptoms like discomfort on pillow adjustment and neck pain, difficulty in falling asleep and
Immediately I realised it’s purva rUpa of my past neck trauma
Immediately nothing when found
Gulped parachute coconut 🥥 oil
Along with sipping hot water
.... until morning
After few hours
Pain gone and back to normal neck movements and discomfort disappears
Otherwise symptoms continued in past
Experience of electric currents over both sides of my neck running often
.... suddenly broke 4.5, and 6 cervical disc prolapse
Past in 2010
Now perfect with only once panchakarma in my life
Of over 60 years now
[2/27, 12:17 PM] Dr Venkata N Joshi London:
आशयापकर्श
[2/27, 12:21 PM] Dr. Gurdip Sing Sir:
In my opinion there are two strange conditions one is avarana of vata and Ashyapkarsh of pitta and.
[2/27, 12:23 PM] Vaidya Sanjay P. Chhajed Sir Mumbai:
Respected sir Pranaam,
Can there ashayaapakarsh of Kaph?
[2/27, 12:30 PM] Dr. Gurdip Sing Sir:
In avaran hetu and sanchay etc occurs of others but disease of vata occurs. Here in Shakhasrit kamala hetu mentioned are Ruksh, shit, guru, svadu vyayam veg nigrah but none of pitta though disease is of pitta
[2/27, 12:30 PM] +91 99003 31567:
Dear sir, in some cases, where virechana is done without vamana, the kapha gets pulled down by Vata into pitta sthana leading to mandagni related issues.
This can be an example of kapha ashayapakarsha by Vata.
[2/27, 12:35 PM] Vaidya Sanjay P. Chhajed Sir Mumbai:
Respected VN garu,
Do you mean that the unripe tamarind chutney which is amla aggrevated Pitt and at the same time vata, causing the relapse of symptoms which got subsided by coconut oil?
[2/27, 12:36 PM] Dr Venkata N Joshi London:
Yes please
Vata subsidised by Sneha ushna
While pitta aggravated by Fresh 🌶
[2/27, 12:36 PM] Dr. Gurdip Sing Sir:
Yes. Only condition is that hetu and in the initial stage prakop should be other than the dosha the disease
[2/27, 12:38 PM] Dr Venkata N Joshi London:
In South more chillies are used
[2/27, 12:38 PM] Dr Venkata N Joshi London:
For pitta aggravation
[2/27, 12:38 PM] Dr Venkata N Joshi London:
Katu ruksha ushna teekshna
[2/27, 12:39 PM] Dr. Gurdip Sing Sir:
Dear Dr. Sanjay in your examples vata is provoked but disease is of kapha. You are right it is Ashyapkarsh
[2/27, 1:38 PM] Vd Raghuram Shastri, Banguluru:
Ji Guruji...🙏🙏💐❤️noted✅✅✅. Shonita sanghata binatti👌👌👌. Additional submission from your kind self gives a good conclusion sir.*
👉 *Katuki is better avoided or rather contraindicated in Atipravrutti of rakta*
👉 *On the other hand it can be used readily in sanga / grathitha rupa vikruti of rakta...in fact the best choice - shonita sanghata binatti*
🙏🙏🙏💐❤️
[2/27, 1:43 PM] Vd Raghuram Shastri, Banguluru:
*Good morning Guruji🙏🙏💐❤️ You are absolutely right sir, we are witnessing unparalleled group work here at KS to decode the deeper meaning of Ayurvedokta sutras, under the able guidance of Gurus of the likes of your kind self, Guru Ojha sir and other senior Gurus. This is the key to draw probable conclusions which would help our and gen next in understanding the concepts clearly and implement these ideas in clinical practice. Thanks for constantly guiding us sir. 🙏🙏💐❤️*
[2/27, 1:44 PM] Vd Raghuram Shastri, Banguluru:
Rightly said sir... Google specialists are a big challenge to our practice*✅
[2/27, 1:45 PM] Vd Raghuram Shastri, Banguluru:
Wow....👌👌🙏🙏💐
[2/27, 1:48 PM] Vd Raghuram Shastri, Banguluru:
*Nice and unique thoughts on sira vedha and its practical implications dear sir👌👌🙏💐*
[2/27, 2:24 PM] +91 94137 20487:
च.चिकित्सा-30, अतिउत्तम संद्र्भ उल्लेखित किया आदरणीय गुरुदेव लक्ष्मीकांत जी sir आपने,
ज्वर का इतना विस्तृत चिकित्सीय वर्णन करने के बाद भी आचार्य अग्निवेश का ज्वर चिकित्सा के प्रति इतना रुझान रहा की चिकित्सा स्थान समाप्त करते करते भी एक संद्र्भ ज्वर चिकित्सा का लिख कर ही माने, ऐसे भूले-बिसरे संद्र्भो की तरफ़ आपका इशारा, आपके शास्त्रीय ज्ञान और चिकित्सा सिद्धहस्तता को समझने के लिए बहुत है, और आप सभी गुरूजनो के इसी तरह के इशारे हमें प्रेरित करते है और मजबूर कर देते है की दिनभर में 5-7 शास्त्र टटोल ही लेते है हम लोग भी , लक्ष्मीकान्त जी sir आपको और इस group के सभी आचार्यों को, गुरूजनो को मेरा कोटि कोटि प्रणाम , और सोनी sir का विशेष आभार जिन्होंने आप सबके अनुभूत आप्त ज्ञान से रूबरू होने का एक अवसर प्रदान किया🙏🏻💐
[2/27, 3:22 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
डॉ विरेन्द्र जी , च.चि.३/१६० पर आचार्य चक्रपाणी ने च.चि.३० का संदर्भ दिया है; ज्वरे पेया: कषायाश्च क्षीरं सर्पिविरेचनम् , षडहे षडहे देयं कालं वीक्ष्यामयस्य च.. च.चि.३०/३०२..
क्रम का ध्यान दें ➡️ पेया ➡️कषाय ➡️क्षीर ➡️ सर्पि ➡️ विरेचन ...
[2/27, 3:37 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
चरक संहिता के सभी अध्यायों का और अध्याय में श्लोक का परस्पर सह सम्बन्ध अद्वितीय है, एक भी शब्द महत्त्वहीन नहीं है, प्रत्येक शब्दो का उन उन अध्यायों में और उन उन अध्यायों के विषय वस्तु से सह सम्बन्ध रहता है, इसीलिए ससंदर्भ व्याख्या की अपेक्षा रहती है..
[2/27, 5:01 PM] Prof. Lakshmikant Dwivedi Sir:
CD jwarcikitsa.🙏🏼
[2/27, 5:09 PM] Prof. Lakshmikant Dwivedi Sir:
Gurudev Sri Ramdayaluji ,
Gurudev Ranganath Ji ke Cikitsa kosal ki, Hand book thi.🙏🏼
[2/27, 5:29 PM] Vaidya Manu Vats, Punjab:
आशय...अपकर्ष...itself a Very much self defined Phenomenon..But Respected Subhash Sir differentiate between विमर्श गमन and आशय अपकर्ष very minutely .
Just trying to understand more about it..e.g.
⬇️कफ ⬆️वात does आशय अपकर्ष of पित्त....leads to दाह etc लाक्षणिक चिन्ह..so here I am thinking that as in शिशिर ऋतु; पित्त प्रकोप लक्षण is not आशय अपकर्ष..but as We all witnessed during COVID many patients complained of mouth ulcers etc along दाह after taking over dosages of काढ़ा । So here due to over usages of काढ़ा the desired कफ ⬇️ and वात ⬆️..this lead to दाह etc..Thus it should be example of आशय अपकर्ष.
Second Point in above Example..I would like to comment about उत्पादक हेतु and व्यंजक हेतु। In case of शिशिर ऋतु कफज रोग may be due to उत्पादक हेतु i.e. गुरु आहार विहार which can lead to Vimarggaman of other धातु, मल..
But in वसंत ऋतु where कफज रोग is due to व्यंजक हेतु...Here chances of आशय अपकर्ष is more because of taking dravyas in higher dosages like मगपिपल etc..
From Treatment point of view In above all situations...Most important is the IDENTIFICATION of अनुबंध and अनुबंधय दोष..I.e. प्रधान and अप्रधान ...
I tried to Think and Express..
I might be wrong..
Regards🙏
[2/27, 6:28 PM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar:
शुभ सन्ध्या गुरु जी* 🙏
*आशय अपकर्ष पर 2018 मे उत्तम चर्चा हुई थी जिस मे आदरणीय रमाकांत जी ने चरक से बहुत सारे उदाहरण देकर समझाया था।*
*चरक सूत्र 17/45-61 मे आशयपकर्श का सीधा शब्द का प्रयोग ना होते हुये भी बहुत सी आश्यपकर्श की स्तिथियों का वर्णन है। ये वर्णन लक्षणो के आधार पर किया गया है, यदि अमुक लक्षण सम्मिलीत रूप से हैं तो अमुक स्तिथि बनती है आदि आदि।*
*परंतु इन सब स्तिथियों का अवलोकन करने पर कोई ऐसा नियम नही स्पस्ट होता जिस से रोगी मे हमे इसको समझने मे मदद हो।*
*उदाहरणतया पहली ही स्तिथि च सू17/45-46 में pitta is being moved by Vaata to other places when there is already present kaphakshya also, this situaition produces symptoms of*
भेद
श्रम
दौर्बल्य
एवं दाह
*इसमे प्रथम तीन वात के कारण व दाह पित्त के कारण है,*
*इसमे दाह का प्रमुख लक्षण होते हुये भी चिकित्सा वात शामक करनी है, जबकी सम्प्राप्ति मे पित्त का बढ जाना बताया गया है*
*ऐसा चकृपानी ने स्पष्ट किया है।*
*सोच ये है के रोगी सामने उपस्तिथ होने पर कैसे निर्णय किया जायेगा के चिकित्सा किस दोष की करनी है??*
कृपया अनुग्रहीत किजीये
🙏🙏🙏
[2/27, 6:35 PM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar:
Very nicely summed up.
But Vaata is always the culprit?
How about the condition when the Vaata is itself decreased as explained in Ch Su 17/49 when the pitta is normal, Vaata is decreased and Kapha is causing the obstruction producing Tandra, Gaurav and Jwara.
🤔🤔
There are many such question rolling in my mind.
🤔
[2/27, 6:42 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
Demyelination ➡️ कफधर्मीय अंश का क्षय ➡️ वात वृद्धि ➡️ दाहादि लक्षण ➡️ neuropathy
[2/27, 6:43 PM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar:
जी सर
आपका तात्पर्य ये है के कुटकी का कटु गुण ज्यादा predominantly manifest होता है।
🙏🙏
मै कुटकी के तिक्त रस को ज्यादा महत्वपूरन मान रहा था।
😔😔😊
[2/27, 6:44 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
जी, पवन जी, कटुकी की कटुता का अनुभव किजिए
[2/27, 6:44 PM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar:
Thank You sir.
One patient saying burning feet.
How will we understand that it is due to Pitta vridhi or due to Aavaran or due to Aashayaapakrsh?
🙏🙏🙏
[2/27, 6:44 PM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar:
Ji Avashya...🙏🙏
[2/27, 6:45 PM] Prof. Surendra A. Soni:
वाते पित्ते कफे चैव क्षीणे लक्षणमुच्यते ।
कर्मणः *प्राकृताद्धानिर्वृद्धिर्वाऽपि विरोधिनाम् ॥५२॥*
च सू 18
Pawan Sir !🙏🏻
[2/27, 6:48 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
Sun stroke ➡️ पित्त वृद्धि ➡️ Failure of heat regulating mechanism ➡️ आवृत वात ➡️ पित्तावृत वात ➡️ दाह तृष्णा शूल भ्रमादि लक्षण
[2/27, 6:49 PM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar:
NAMASTE SONI SIR --- aapki ek puraani post --- very important ----- "*Aashay-apakarsha phenomenon “*
It's one of great concept of charak samhita that made us great fan of it.
1. A. A. Is usually very quick pathological phenomenon
2. Doesn't wait for 6 kriya kal in their sequential occurrence , even started by Chay purvak prakop.
3. Needs pradhanik type of powerful nidan to menifest in AA condition may be some times in form of ubhay hetu but maximum examples are related to multiple dosh hetu, may be increasing one dosh, decreasing another and no effect on third one.
4. Even though Leads to vikriti visham samvat type of pattern of symptomatology, but always has solid grounds to establish hetu laxan sambandh.
5. You can say charak is mentioning the basic guidelines for sheeta-pitta, shakhashrita kaamala etc diseases and provided sutra for aashayapakarsh, assay vikshep and aashay sah gaman known as visarpan, a pre requisite to produce such symptoms .
6. Rx will be based on either leader vat or as per symptoms occurred, tt always starts from shaman first in maximum cases.
7. Exact careful History, acute manifestation phenomenon, presence of specific potent nidan, absence of other factors; usually give essential clue for AA along with major change in road map of prasar of prakupit/leader dosh .
8. Many scholars consider this as a type of Aavaran, but in absence of avarak - avrit identifications with presence and absence of related symptoms of avarak-avarit, it’s not acceptable.
9. AA are clearly based on quick movement of doshas from not only koshtha to different places but also from doshadhisthan stahl to vyadhi abhivyakti sthal .
[2/27, 6:49 PM] Vd.AAkash changole, Amravati:
Yes sir
[2/27, 6:50 PM] Prof. Surendra A. Soni :
नमो नमः महर्षि ।
कफक्षय भी जोड़ा जा सकता है जो विरोधी पित्त वृद्धि में सहायक है ।
🙏🏻🌹
[2/27, 6:51 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
विदाही आदि आहार सेवन ➡️ पित्त प्रकोप ➡️ उर:दाहादि लक्षण ➡️ विदग्धाजीर्ण
[2/27, 6:52 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
आपकी मर्जी
[2/27, 6:52 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
नमो नमः आचार्य सोनी जी
[2/27, 6:56 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
Capacity of dosha should be considered whether pitta and kapha have strength to bring away any other dosh from it's place...
[2/27, 6:57 PM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar:
जी सर
आपने महत्वपूरन बात कही
हेतू जानना आवश्यक है
मै हेतू को जान कर ये निश्चय कर्ता हूँ के ये आवरण की स्तिथि हो सकती है, क्युकी आश्यपकर्श मे हेतू के आधार पर भी कई बार निश्चय नही पाता।
जैसे च सू 17/50 मे कफ प्राकृत है, पित्त क्षीण बताया है, वात रूद्ध बताया है, लक्षण कफ व वात के हैं, चिकित्सा भी कफ व वात की बताई है, हेतू चाहे कोई भी हों।
क्या ये सही सोच है??
[2/27, 6:57 PM] Vd.AAkash changole, Amravati:
वायु का क्षीण होना मतलब सिर्फ गती कम होना इस्मे वायू के वहन कार्य को बादा नही पोहोचती ऐसा समजा जा सकता है क्या?
[2/27, 6:58 PM] Dr. Surendra A. Soni:
वाह पवन सर जी !
इसमें कुछ शंका है क्या ?
आपके प्रश्न का मैंने समाधान का प्रयास श्लोक पोस्ट करके किया है कि दोष विशेष के क्षय से विरोधी दोष प्राकृत रूप में नहीं रह पाएंगे/अथवा उनके प्राकृत कर्मों की हानि होगी । ये चरक ने ही निर्दिष्ट किया है ।
चक्रपाणि जी ने आगे स्वयं ही स्पष्ट किया है ।
तत्र शरीरावयवे प्रकृतिमानस्थितमपि पित्तं वृद्धमेव, यतस्तस्मिन् प्रदेशे तावान् पित्तसम्बन्ध उचितो न भवत्येवेत्यधिकेन तत्र पित्तेन दाह उपपन्न एव, एवमन्यत्रापि *प्रकृतिस्थस्यापि दोषस्य विकारे व्याख्येयम्।* अन्ये तु ब्रुवते- प्रकृतिस्थानामपि दोषाणां दुष्टदोषसम्बन्धाद्विकारकारित्वं भवति; यथा- रक्तादीनाम्।
🙏🏻🌹
[2/27, 6:59 PM] Vd Raghuram Shastri ,Banguluru:
*Dear Pawan sir, you have answers in your questions*
*Vata is culprit in Ashayapakarsha. Not always. In other references vata is either VICTIM or JOINT CULPRIT. Except in Cha Su 17/48 & 47 - classical examples of Ashayapakarsha. The other conditions are just relative imbalances Though Ashayapakarsha too is relative imbalance, it is a condition caused by Vata due to PULL or PUSH mechanism. Even the example you hv raised query upon*
*In Ch Su 17/49 example, vata is not displacing pitta or kapha. It is a scenario caused by PITTA as it BLOCKS KAPHA keeping VATA HELPLESS (inactive). This cannot be Ashayapakarsha bcoz there is no apakarsha here.*🙏🙏💐
[2/27, 7:00 PM] Vd Raghuram Shastri, Banguluru:
👌👌👌🙏🙏💐Soni sir
[2/27, 7:00 PM] Vd Raghuram Shastri, Banguluru:
🙏🙏🙏👌👌💐💐❤️
[2/27, 7:02 PM] Vd Raghuram Shastri, Banguluru:
*Exactly the point I hv made in my reply to Pawan sir Guruji*👌👌🙏💐❤️
[2/27, 7:05 PM] Vd Raghuram Shastri, Banguluru:
*Ksheena vata can't cause ashayapakarsha sir. That's the logic.*
[2/27, 7:05 PM] Prof. Surendra A. Soni:
वातपित्तक्षये श्लेष्मा स्रोतांस्यपिदधद्भृशम् ।
चेष्टाप्रणाशं मूर्च्छां च वाक्सङ्गं च करोति हि ॥५९॥
Classical example of sudden CVA indicating cerebral ischemia/TIA.
Pawan Sir !🙏🏻
[2/27, 7:09 PM] Vd Raghuram Shastri, Banguluru:
Namo namah sir ji🙏🙏💐
You are always the driving force here. You hv indeed connected us all and you are always with us in all discussions. And we know that you have many important roles to play. Respects sir🙏🙏💐❤️
[2/27, 7:10 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
हेतु के समझ के लिये आचार्य चरकोक्त शाखाश्रित कामला अवलोकनीय है जहाँ पर परस्पर विरोधी हेतु वात और कफ के प्रकोप एवं कफ द्वारा वात के मूर्च्छित होने के कारणभूत है
[2/27, 7:11 PM] Prof. Lakshmikant dwivedi sir
Aatreya ne Cikitsa (jwar) ke 30/36 upkram bataye, hArit samhita se is par bhi Drishti paat kariyega, CD jwarcikitsa/9 par Ratna Prabha
[2/27, 7:12 PM] Prof. Lakshmikant Dwivedi Sir:
Pp16
[2/27, 7:12 PM] Prof. Surendra A. Soni :
गुरुजी ।
सादर प्रणाम ।
🙏🏻🌹
[2/27, 7:14 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
🙏🙏
[2/27, 7:17 PM] Dr. Surendra A. Soni:
Specific nidan condition may lead to specific pathology and types of pathologies as Maharshi Charak has instructed
समीरणे परिक्षीणे कफः पित्तं समत्वगम् ।
कुर्वीत सन्निरुन्धानो मृद्वग्नित्वं शिरोग्रहम् ॥५१॥
निद्रां तन्द्रां प्रलापं च हृद्रोगं गात्रगौरवम् ।
*वातगति हानि*👆🏻
नखादीनां च पीतत्वं ष्ठीवनं कफपित्तयोः ॥५२॥
हीनवातस्य तु श्लेष्मा पित्तेन सहितश्चरन् ।
करोत्यरोचकापाकौ सदनं गौरवं तथा ॥५३॥
*वृद्धिर्वाsपि 👆🏻विरोधीनाम्
।*
हृल्लासमास्यस्रवणं पाण्डुतां दूयनं मदम् ।
विरेकस्य च वैषम्यं वैषम्यमनलस्य च ॥५४॥
आचार्य आकाश जी !!🙏🏻🌹
[2/27, 7:17 PM] Prof. Lakshmikant Dwivedi Sir:
Aap ke kshetradhikar ka hArit ne kuch batayavanhi koshikokta vidhi ka vyahar me lete ho., Ratna Prabha pp112.❤️🎉 Namaskar
[2/27, 7:19 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
किसी भी पित्त या कफ के क्षय से वात वृद्ध होकर सम दोष को उसके स्थान से बाहर ले जाता है और उस सम दोष से सम्बन्धित लक्षणो को उत्पन्न करता है; यही आशयापकर्ष है और इसके दो ही स्वरुप होते हैं
[2/27, 7:20 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
सुरेन्द्र जी, आप कहना क्या चाहते है ?
[2/27, 7:21 PM] Dr. Surendra A. Soni:
गुरुजी
चरक के उक्त क्षीण वात निर्देश को कैसे ग्रहण करेंगें ।
कृपा कीजिए ।
🙏🏻🌹
[2/27, 7:21 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
सन्निरुद्धता है अर्थात् अवरोध है न कि आशयापकर्ष
[2/27, 7:23 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
और संसर्ग है
[2/27, 7:23 PM] Dr. Surendra A. Soni:
निर्दिष्ट प्रकरण में विशिष्ट निदानों से ही उक्त आशयापकृष्ट सम्प्राप्ति को समझा जा सकता है यथा आपने sunstroke के माध्यम से श्रेष्ठ उदाहरण देकर समझाया है ।
🙏🏻🌹
[2/27, 7:25 PM] Prof. Surendra A. Soni:
तो मेरा नम्र निवेदन है कि उक्त प्रकरण को क्षीण दोष के साथ नहीं होना चाहिए था ?
[2/27, 7:26 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
आशयाकर्ष ➡️ मधुकोष
आचार्य चरक (सू.१७/४५,४६) के इस सिद्धांत पर सर्व प्रथम आचार्य भट्टारहरिचन्द्र ने टीका की जिसे मधुकोष में आचार्य विजयरक्षित ने उल्लेखित किया..
४५ , ४६ क्रमांक के श्र्लोक पर ही आचार्य विजयरक्षित की टीका है और आचार्य भट्टारहरिचन्द्र का संदर्भ देते हुए..
[2/27, 7:28 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
यह ज्ञान हमें सर्वप्रथम आचार्य विजयरक्षित के मधुकोष टीका से मिला और आचार्य को चरकन्यास से
[2/27, 7:33 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
क्षीण दोष के साथ ही होना अभिष्ट है परंतु हर क्षीणता आशयापकर्ष में कारण हो यह जरुरी तो नहीं
[2/27, 7:34 PM] Vd Raghuram Shastri, Banguluru:
✅✅✅👌💐🙏❤️
👉 *1. Vata vriddhi, Ksheena Kapha, Pitta Sama*
👉 *2. Vata Vriddhi, Ksheena Pitta, Kapha Sama*
✅ *Vata is pulling and pushing the other doshas...displacement. Other doshas CANNOT cause Ashayapakarsha bcoz they are PANGU*
💐💐💐💐💐💐💐
✅ *When Vata is ksheena, it can't cause Ashayapakarsha. The other doshas are operating the show. Pitta or Kapha symptoms are seen as per Predominance. Vata is silent or latent*
✅ *When Vata is Sama too it can't cause Ashayapakarsha. Here too other dosha symptoms are seen as per Predominance*
✅ *When Vata Vriddhi is jointly with pitta or kapha, symptoms of samsarga dushti are seen and again there is no Ashayapakarsha*
💐💐💐💐💐💐💐
*Finally - To consider Ashayapakarsha - Vata Vriddhi is mandatory along with Pitta Kshaya / Sama & Kapha Sama/ Kshaya (in relation to Pitta)*
🙏🙏🙏💐💐💐
[2/27, 7:37 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
Conclusive remarks..✅🌹👌☺️
[2/27, 7:40 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
It's approach of Acharya Charak and well interpreted by Acharya Bhattaraharichandra...
[2/27, 7:48 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
आश्यापकर्ष केवल दोषों तक सीमित है इसमें दूष्यों का कोई कोई संबंध नही है, इसमें इसीलिये कोई दोष दूष्य सम्मूर्छना ना होने से यह सम्प्राप्ति घटित व्याधि ना हो कर दोषों की एक तात्कालिक स्थिति है जो किंचित उग्र भी हो सकती है और औषध तथा बिना औषध भी चिकित्स्य है ।*
*इसे ऐसे भी समझ सकते हैं जैसे किसी कारण से रात्रि में निद्रा नही आ रही जिसके कारण कफ क्षय हो कर वात वृद्धि हुई तो व्यान वात सामान्य पित्त को अपने स्थान से ले जा कर मुख कटुता, अम्ल रसता, अरति, भ्रम, हस्त पाद तल दाह, तृषा, उत्क्लेश उत्पन्न कर रहा है। यहां early morning भी पित्त की चिकित्सा ना कर के यदि रोगी को 2-3 घंटे sound sleep मिल जाये तो वात के शमन से ये लक्षण स्वत: ही शान्त हो जाते हैं।वात स्व: स्थान पर निद्रा से आ जाता है।*
[2/27, 7:53 PM] Vd Raghuram Shastri, Banguluru:
👌👌👌🙏🙏💐❤️Guruji...lovely example from our dinacharya👌
[2/27, 7:54 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
अचूक बाण 👌✅🌹☺️🙏🙏
[2/27, 7:54 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
शुभ संध्या वैद्यराज सुभाष शर्मा जी
[2/27, 7:58 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*शुभ सन्ध्या सर आपको, रघु जी एवं समस्त विद्वानों को, आज दिन भर clinic में आपके दिये इस home work पर खूब कार्य किया और आश्यापकर्ष मिल गया। हमारे शास्त्र pure clinical हैं सर और सब कुछ रोगियों में प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर है।* 🙏🙏🙏
[2/27, 7:59 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
निश्चित रुप से..
[2/27, 7:59 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*धन्यवाद प्रिय रघुराम जी।* ❤️🌹🙏
[2/27, 8:00 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
इसीलिए अनवस्थित लक्षण मिलते हैं
[2/27, 8:02 PM] Vd Raghuram Shastri, Banguluru:
*Shubh Sandhya sir...rightly said...we now need to look for Ashayapakarsha type of presentations from our day to day life, in us, in patients...*🙏🙏💐
[2/27, 8:02 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
*It can be seen in transient ischemic attacks*
[2/27, 8:03 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*जी सर, सत्य कथन*
[2/27, 8:04 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
*Difference between TIAs and CVA should be noted*
[2/27, 8:04 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
👌👌👌👌
[2/27, 8:05 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
कभी कभी अर्दित में भी मिलता है
[2/27, 8:07 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
बिल्कुल सही उदाहरण है सर इसके अतिरिक्त अन्य और भी है।*
[2/27, 8:07 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
For most people, feelings of anxiety come and go, only lasting a short time. Some moments of anxiety are more brief than others, lasting anywhere from a few minutes to a few days. But for some people, these feelings of anxiety are more than just passing worries or a stressful day at work.
[2/27, 8:07 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
Ji
[2/27, 8:08 PM] Dr. Rajeshwar Chopde:
Plz , clear my this doubt
[2/27, 8:12 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
ज्वर सामान्य व्याधि है और सामान्य चिकित्सा सिद्धांत है यहाँ पर आशयापकर्ष नहीं है
[2/27, 8:14 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
कोष्ठ से शाखा में जाना या शाखा से कोष्ठ में आना भी अलग प्रक्रिया है न कि आशयापकर्ष
[2/27, 8:15 PM] Vd. Atul J. Kale M.D. (K.C.) G.A.U.:
Really great sir. ऎसे उदाहरण मिलते है पर दृष्टी चाहिए। 🙏🙏🌹
[2/27, 8:17 PM] Dr. Digvijaysinh Gadhvi sir:
Simplified Ayurveda 😊🙏🏻
[2/27, 8:17 PM] Dr.Rajeshwar Chopde:
And what's about Seetpitta
[2/27, 8:18 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
वहां भी, सामान्य सिद्धांत से ही प्रशमन मिलता है
[2/27, 8:20 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
पिण्ड तैल, चंदनादि तैल और शतधौतघृतादि से यदि पाद दाह कम नहीं हो रहा है अर्थात् पित्त नहीं वात की चिकित्सा अपेक्षित है
[2/27, 8:21 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
कुष्ठादि चूर्ण से प्रशमन मिलता है
[2/27, 8:22 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
योगरत्नाकर ⬆️
[2/27, 8:23 PM] +91 88671 45122:
If PADA DAHA not cured by pittahara rx, then ex as DHATU KSHAYA RX, USE SUVARNA KALPA AND TRIVANGA BHASMA
[2/27, 8:24 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
लघुपंचमूल उद्धवर्तन भी उपयोगी है
[2/27, 8:32 PM] Dr.Satish Jaimini, Jaipur:
विशद वर्णन है गुरुजी प्रणाम इससे ज्वर की विशालकाय तस्वीर दिखाई पड़ती है🙏🏻🙏🏻
[2/27, 8:40 PM] Dr.Satish Jaimini, Jaipur:
कुछ सरल होता जा रहा है आश्यपकर्ष🙏🏻🙏🏻प्रणाम गुरुदेव
[2/27, 8:42 PM] Dr. Chandrakant Joshi Sir:
धन्यवाद सरजी.🙏🙏
[2/27, 8:47 PM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar:
Very inportant example patholigically.
Thanks sir..🙏
[2/27, 8:50 PM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar:
जी सर जी
पूर्णतः सहमत
सोच सिर्फ इसको clinical frequent अप्लाई करने है।
जिसमे हेतू की हिस्ट्री लेना आवश्यक है।
फिर ये कैसे निश्चित होगा के ये आवरण है या आशय अपकर्ष?
यदि ये ना पता चले तो चिकित्सा कर्ने मे क्या फर्क आएग?
दोनो ही अबस्थाओ मे चिकित्सा तो हेतू विपरित ही करनी होगी न?
🙏
[2/27, 8:54 PM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar:
येस सर
I also wanted to say the same..
[2/27, 8:58 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
हेतु प्रत्यनिक चिकित्सा ही करनी है , परंतु आवरण या आशयापकर्ष में अलग अलग चिकित्सा ही करनी है यथा पित्तावृत वात में शीत उष्ण व्यत्यसात चिकित्सा तथा पित्त के आशयापकर्ष में वात की चिकित्सा
[2/27, 8:59 PM] Prof. Surendra A. Soni:
प्रणाम आ. ओझा सर ।
अगर हम शास्त्र लिखित क्षीण वात वर्णन को उक्त प्रसंगानुसार आशयापकर्ष से पृथक मानते हैं तो हमें उक्त प्रकरण को वर्गीकृत करना पड़ेगा । विजयरक्षित जी ने और भट्टार हरीश चन्द्र जी ने उक्त सन्दर्भ में कोई टिप्पणी नहीं की है ।
आपके और रघु जी के मन्तव्य से दोष गति प्रकरण को दो भागों में बाँटा जाना चाहिए ।
1. आशयापकर्ष गति प्रवृद्ध वात एवं शेष दोष क्षय एवं /सम ।
2. क्षीण वात जनित अवस्था
शेष दोष वृद्ध/सम ।
विशेषतः ध्यातव्य है कि क्षीण वात अवस्था पर किसी आचार्य या टीकाकार ने कोई टीका नहीं की है तो क्या हम अपने चिंतन को ही विराम लगा दे !
चरकेण– “क्षयः स्थानं च वृद्धिश्च विज्ञेया त्रिविधा गतिः|” (च. सू. अ. १७) इत्यादि, तत् प्रायिकमिति| गतितो यथा– *गतिर्दोषाणां क्षीणवृद्धत्वादयः*| यदुक्तं चरके “क्षयः स्थानं च वृद्धिश्च दोषाणां त्रिविधा गतिः| ऊर्ध्वं चाधश्च तिर्यक्च विज्ञेया त्रिविधा परा|| त्रिविधा चापरा कोष्ठशाखामर्मास्थिसन्धिषु|” (च. सू. अ. १७)
🙏🏻🌹😌
[2/27, 8:59 PM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar:
Jab sab sampraption ka adhyan karre hain to bahut different cheeze milati hain....ch su 17 me
कोई एक नियम बनाना मुश्किल जान पढता है
🤔
[2/27, 9:01 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
यस्य वायु:
अव्याहतगति: ,
स्थानस्थ: ,
प्रकृतौ स्थित: स्यात्
(१)अव्याहतगति: अपरित्यक्तस्वमार्ग:
(२) स्थानस्थ इति न विमार्ग:
(३) प्रकृतौ स्थित इति अक्षीणवृद्ध:
अपरित्यक्तस्वमार्ग को अनावृतमार्ग भी कहा गया है अर्थात् आवरणरहित मार्ग, अप्रतिघातयुक्त मार्ग ..
वात गति सिद्धांत को समझने के लिये इन तथ्यो को भी समझना जरुरी है..
[2/27, 9:02 PM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar:
याने के इस तरह की अवस्था आशय अपकर्ष ही नही हैं
🤔
[2/27, 9:03 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
क्षीण वात से मृत्यु सम्भाव्य है
[2/27, 9:03 PM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar:
Let me come back on this with some more queries later.....
[2/27, 9:03 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
वायु को आयु भी कहा गया है
[2/27, 9:05 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
मधुकोष टीका भी अवलोकनीय है
[2/27, 9:05 PM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar:
Shubh sandhya Guri ji
🙏💐🙏💐
[2/27, 9:05 PM] Prof. Surendra A. Soni:
च सू 17/45-61 में क्षीण वात का उल्लेख क्यों हुआ है ये समझना है । मूल चरक में पूर्व एवं पश्चात् दोष गति सन्दर्भ है और आगे उसे आशयापकर्ष के रूप में स्थापित कर दिया गया है और वो भी अपूर्ण टीका के साथ !
🙏🏻🌹😌
[2/27, 9:05 PM] Prof. Surendra A. Soni:
अभी टीका का पूर्ण पठन किया है ।🙏🏻🌹
[2/27, 9:06 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
४७-६१ को आशयापकर्ष से अतिरिक्त समझिए
[2/27, 9:06 PM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar:
गुरु जी ये तो सीधे हेतू विपरित चिकित्सा करने वाली स्तिथि है।
[2/27, 9:06 PM] Dr. Gurdip Sing Sir:
Dear Vaidya Subhash ji I advise you to go through Hetu, samprapti lakshan and then full and detail treatment given of Shakhasrit kamala by charak chikitsa chapter 16 shloka 124to 131, the concept will be crystal clear
[2/27, 9:06 PM] Prof. Lakshmikant Dwivedi Sir:
Jwar = papma atanka ,roga.
Jwar = fever.
[2/27, 9:07 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
मधुकोष टीका पूर्ण है अपूर्ण नहीं
[2/27, 9:07 PM] Dr. Surendra A. Soni:
यही पृथक वर्गीकरण के रूप में निवेदन के रूप में था ।
🙏🏻
[2/27, 9:12 PM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar:
अवश्य विचारणीय
[2/27, 9:14 PM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar:
ये तो नई विचार हो गयी
🤔🤔😟😟😟
[2/27, 9:14 PM] Dr. Surendra A. Soni Sir
M. D Phd. KC. Gujrat:
क्षीण वात का कोई उल्लेख ही नहीं है ।
आपकी और रघु सर का सैद्धांतिक पक्ष ।
👇🏻👇🏻👇🏻
आशयापकर्षतो यथा– यदा स्वमानस्थितमेव दोषं स्वाशयादाकृष्य वायुः स्थानान्तरं गमयति तदा स्वमानस्थोऽपि स विकारं जनयति| यदाह चरकः– “प्रकृतिस्थं यदा पित्तं मारुतः श्लेष्मणः क्षये| स्थानादादाय गात्रेषु यत्र यत्र विसर्पति|| तदा भेदश्च दाहश्च तत्र तत्रानवस्थितः| गात्रदेशे भवत्यस्य श्रमो दौर्बल्यमेव च||” इति (च. सू. अ. १७)| अस्य प्रयोजनं वातस्यैव तत्र विगुणस्य स्वस्थानानयनं कार्यं, नतु पित्तस्य ह्रासनं; “ये त्वेनां पित्तस्य स्थानाकृष्टिं न विदन्ति, ते दाहोपलम्भेन पित्तवृद्धिं मन्यमानाः पित्तं ह्रासयन्तः पित्तक्षयलक्षणं रोगान्तरमेवोत्पादयन्त आतुरमतिपातयन्ति|” इति भट्टारहरिचन्द्रः|
मुझे तो मात्र श्लोक विशेष की टीका प्रतीत होती है और आपश्री के कथनानुसार आशयापकर्ष सिद्धांत मात्र वृद्ध वात से होता है तो ये टीका पूर्ण प्रकरण को समाहित नहीं करती है । क्षीण वात सन्दर्भ दोष गति के दृष्टिकोण से देखना चाहिए जैसा कि आपने उपदिष्ट किया है तो पुनः प्रश्न उपस्थित होता है कि क्षीण वात से भी गति होती है ?
आ. ओझा सर !🙏🏻🌹😌
[2/27, 9:20 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
क्षीण वात + कफ से पित्त का अवरोध ➡️ मंदाग्नि शिरोग्रह निद्रा आलस्य प्रलाप हृदय रोगादि लक्षण.. कफ और पित्त के मिश्रित लक्षण..
[2/27, 9:24 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
हीन वातस्य इत्यादि यह द्वन्दवृद्धि : क्षयश्चैकस्य अर्थात् दो दोषो की वृद्धि तथा एक दोष का क्षय इसका उदाहरण है.. ऐसा सम्पूर्ण संहिता में देखने को मिलता है , यथा सन्निपातिक ज्वर
[2/27, 9:27 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
वातपित्त के क्षय होने पर कफ स्रोतस् को अत्यधिक ढकते हुए लक्षण उत्पन्न करता है
[2/27, 9:31 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
*स्वयं ही क्षीण स्थिति में रहने से क्षीण हुए दोष रोगों को उत्पन्न नहीं करते*
[2/27, 9:32 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
६२ भेद है
[2/27, 9:34 PM] Vd Raghuram Shastri ,Banguluru:
*Respected Soni sir, we need to see that in Madhava Nidana or the commentary of Bhattaraharichandra, a particular example has been quoted to describe Ashayapakarsha. Not the entire prakarana. Entire prakarana was not needed, only a part or example was needed to explain Ashayapakarsha. This clearly implies that the other dosha stages or relative imbalances mentioned in Charaka aren't Ashayapakarsha stages. Thus its not incomplete explanation*
*As per your query about gati caused by ksheena vata - Kshaya Sthana Vriddhi as you mentioned the gatis of doshas, gati need not be taken as movement. Gati is also a state of being. Trividha gati in this context may be three states of doshas - balance, increase, decrease. If other doshas i.e. pitta and kapha can cause apakarsha, then Vayuna Yatra Niyante principle should be wrong!!*
*My humble understanding. As I understand. Not putting my argument.🙏🙏*
[2/27, 9:36 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
४५ में स्थानादादाय, और ४७ में कर्षेत् शब्द आया है, और ४८- ६१ तक कहीं भी नहीं..
[2/27, 9:37 PM] Dr. Rajeshwar Chopde:
Vaidya Andankarji ke Ksheendosh chikitsa pustak upalabdh hai, awalokaniy hai
[2/27, 9:44 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
श्लेष्मण: क्षये ➡️ यदा मारुत: ➡️ पित्तं स्थानात् आदाय ➡️ गात्रेषु यत्र यत्र विसर्पति ➡️ तदा तत्र तत्र अनवस्थित: भेद: च दाह: च अस्य गात्र देशे भवति , श्रम: दौर्बल्यं एव च भवति.४५,४६
पित्ते क्षीणे ➡️ यदा बली वायु: ➡️ प्राकृतस्थं कफं कर्षेत् ➡️ तदा (कुपित: वायु:) सशैत्यस्तम्भगौरवं शूलं कुर्यात्.४७
⬆️⬆️
आशयाकर्ष के उदाहरण..
इति..
[2/27, 9:46 PM] Dr.Mamata Bhagwat Ji:
दोषाः प्रवृद्धाः स्वं लिंगं दर्शयन्ति यथाबलम्।
क्षीणा जहति लिङ्गं स्वं समाः स्वं कर्म कुर्वते।।
[2/27, 9:46 PM] Vd Raghuram Shastri ,Banguluru:
✅✅✅👌👌🙏
[2/27, 9:53 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
Rightly said.. such description is based on gati siddhanta and is needed for specific treatment..
[2/27, 9:54 PM] Dr.Mamata Bhagwat Ji:
Apakarshana ability is possible to only Vata.
Pitta and kapha cannot because of Gati heenata independently. They are dependent on Vata.
For any Gati vata aline is responsible. Apakarshana is a Gati from Ashaya.
[2/27, 9:58 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
*Your approach to describe the subject is awesome , I feel that I should resign from the job and should be in Bengaluru and we should write a Samhita with ayurveda and contemporary science dealing with modern time existing diseases*
*I am thinking to hire myself by myself for due noble cause*
[2/27, 10:03 PM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar:
क्षीण दोष से रोग उत्त्पत्ती
शायद चक्र्पानी टीका मे कुछ है इस बारे मे 🤔
[2/27, 10:08 PM] Vd Raghuram Shastri, Banguluru:
*Guruji...thanks for your good words of blessings as always. NO WORDS SIR....ABSOLUTELY SPEECHLESS. WHAT TO TELL! Sir, I am learning from your kind self as a humble disciple. I am always your shishya. It would be a blessing to work under your guidance sir, anything, anytime. It would be a new learning experience for me. Always at your command sir. Still I am at loss of words....and expressions....Blessed...*🙏🙏💐💐❤️❤️
[2/27, 10:10 PM] +91 95300 28266:
प्रणाम आचार्यश्री, आपने वात द्वारा उत्पन्न आशयापकर्ष तथा आवरण आदि विकृतिपरक स्थितियों के सापेक्ष विवेचन द्वारा चक्षु उन्मीलन कर नूतन क्लिनिकलज्ञान प्रदान किया है किया है।
सादर अभिनंदन 🙏🏼🙏🏼💐
[2/27, 10:11 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
श्लेष्मणा रुद्धमार्गं इति कोष्ठस्थेन श्लेष्मणा शाखाश्रयी पित्तं कामलाजनकं रुद्धमार्गं कोष्ठगमनार्थं निषिद्धमार्गमिति यावत् ➡️ संग प्रधान व्याधि है ➡️पित्तं कफहरैर्जयेत्..
रुक्ष + शीत + व्यायाम + वेगनिग्रह ➡️ वात प्रकोप
शीत + गुरु + स्वादु ➡️ कफ प्रकोप
कफसंमूर्च्छित: बली: वायु : ➡️ पित्तं स्थानात् क्षिपेत् ➡️ तदा अल्पे पित्ते शाखासमाश्रिते ➡️ हारिद्रनेत्रमूत्रत्वक् , श्वेतवर्चादि लक्षण..
[2/27, 10:14 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
शाखाश्रित कामला में पित्त या कफ का क्षय नहीं है जो कि आशयापकर्ष में प्रथम घटना है*
[2/27, 10:18 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
*चिकित्सा में कफनाशक एवं पित्त वर्धक चिकित्सा बतायी गयी है जबकि आशयापकर्ष में वात की चिकित्सा है*
[2/27, 10:22 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
*पित्तवर्धन की अवधि/काल ➡️ आपित्तरागाच्छकृत इति यावत् कोष्ठमार्गस्थो मलो न रंजते तावत् पित्तवर्धनम्*
[2/27, 10:28 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
श्लेष्मण: क्षये or पित्ते क्षीणे are prerequisite to initiate vata prakopa leading to पित्तं स्थानात् आदाय or प्राकृतस्थं कफं कर्षेत् ....
[2/27, 10:34 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
*स्थानात् आदाय और स्थानात् क्षीपेत् में भी अन्तर है*
[2/27, 10:36 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
मेरी सोच है ; मान्य है या नहीं : व्यक्तिगत है*
[2/27, 10:36 PM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar:
आदरणीय ओझा सर जी आपके अवलोकनार्थ परमादेनीये श्री रमाकान्त सर जी के द्वार आशय अपकर्ष के कुछ उदाहरण व संदर्भ 2018 मे बताये गये थे जो मै दोबारा प्रस्तूत करने की धृष्टता कर रहा हूँ।
गलती हो तो सुधार कर मार्ग दर्शित करियेगा
आश्यपकर्श सम्पूर्ण संहिता मे व्याप्त है चाहे इस शब्द का प्रयोग किया गया हो या नहीं, पर ये सिधान्त हमे मिलेगा।
*ज्वर मे आशय अपकर्ष*
1,, चरक नि 1/20,,वात द्वारा उष्मा का आमाशय से अपकर्षँण
2,, च नि 1/23,,,,पित्त द्वारा पक्तिस्थां से उष्मा का बहिर निर्गमन
3,, च नि 1/27 कफ द्वारा
4,, चक्रपाणि च नि 1/24 पर
प्रमेहे
1,, मज्जमेह मे मज्जा का बस्ती की तरफ अपकर्षँण
2,,वात द्वारा लसीका का मूत्राषय मे अपकर्षँण
3,,मूत्राषय मे ओज का विक्षेपण च नी 4/37
इसी तरह शोष मे कफ का अपने आशय से अपकर्षँण,,,,च नि 6/4, 6/6, 6/8
इसी तरह अपस्मार मे काम क्रोध भय आदि का हृदय मे विक्षेपण
आशय अपकर्ष वह है जिसमे दोष के बिना स्वयं प्रकोप प्रसार व स्थान संश्र्य।
🙏🙏🙏🙏
[2/27, 10:40 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
*सभी मान्य है, परंतु च.सू.१७/४५-४७ के संदर्भ में नहीं*
[2/27, 10:40 PM] Dr. Surendra A. Soni :
That's the point that there is trividha gati
Balance
Increase
Decrease
That I highlighted bold in my post referring madhukosha teeka.
As resp. Ojha Sir has already clarified that shloka number 45, 46 & 48 has concerned to ashayapakarsh not whole 45 to 63.
So we can conclude that ashayapakarsha is a phenomenon that is applicable only when vat dosha is increased. If so then again question raised that above gati is not concerned to Ashayapakarsh and you and resp. Ojha Sir emphasize this. Then this must be clear that 1. charak didn't use the term AA.
2. AA is applicable in vat increased condition only.
3. Entire 45 to 63 shlokas are concerned to dosha gati that also mentioned in 41-44,112-113 & 120.
4. Sheetapitra is a condition that is very close to AA.
Resp. Raghu Sir and Ojha Sir !
🙏🏻🌹
[2/27, 10:41 PM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar:
गुरु जी
क्या ये सब आशय अपकर्ष हैं?
[2/27, 10:41 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
सुरेन्द्र जी ⬆️ इसका ध्यान दें
[2/27, 10:42 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
जी
[2/27, 10:42 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
आशयाकर्ष/आनयापकर्ष/आशयापकर्ष
[2/27, 10:44 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
श्लेष्मण: क्षये or पित्ते क्षीणे are prerequisite to initiate vata prakopa leading to पित्तं स्थानात् आदाय or प्राकृतस्थं कफं कर्षेत् ....
अव्यभिचारी है अर्थात् प्रत्यात्म है
[2/27, 10:45 PM] Dr. Surendra A. Soni:
जी सर ।
तो आपश्री और रघु सर अनुसार अन्तिम निर्णय करने का मैंने प्रयास किया है ।
अवलोकन और स्वीकृति हेतु ऊपर प्रस्तुत है ।
कृपा कीजिए ।
🙏🏻🌹😌
[2/27, 10:47 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
मैंने पढा , लेकिन आप क्षीण कफ या क्षीण पित्त के पश्चात् वात की वृद्धि को महत्त्व दें : ऐसा मेरा मत है
[2/27, 10:47 PM] Dr. Surendra A. Soni Sir
M. D Phd. KC. Gujrat:
आशयापकर्ष is limited to ch su 17/45-47 aiming the vat dominance.....?
As per Madhukosha teeka too....?
🙏🏻🌹
[2/27, 10:48 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
Right , Professor saheb
[2/27, 10:48 PM] Dr. Surendra A. Soni Sir
M. D Phd. KC. Gujrat:
जी सर । यह पक्ष भी सम्मिलित है ।
🙏🏻
[2/27, 10:49 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
इसे सम्मिलित करने पर संदेह नहीं है*
[2/27, 10:50 PM] Vd Raghuram Shastri , Banguluru:
*Yes dear Soni sir, it should be like that. I too have given similar opinion, I had not mentioned the shloka numbers though. The entire shlokas from 45-63 are not concerned to Ashayapakarsha, only the two shlokas wherein Vata increase with decrease or balance of pitta / kapha as the case may be may be concerned. Master Charaka has not mentioned Ashayapakarsha, Madhava Nidana / Madhukosha has taken an example from Charaka to describe Ashayapakarsha, which is typically a pathological state caused by increased Vata since it alone can displace pitta or kapha. You are right sir, 45-63 shlokas explain different relative imbalances / gatis of doshas - 2 out of them representing displacement of either pitta or kapha causing Ashayapakarsha* 🙏🙏💐
[2/27, 10:52 PM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar:
The guidance given by Respected Ramakant Sharma Guru Ji च.सू.१७/४१-४४
Agnivesh asked some questions in 17th chapter. १-कियन्त: शिरसि प्रोक्ता:रोगा:
—शिर में होने वाले रोग कितने हैं
२- हृदि च -कियन्त: प्रोक्ता:रोगा: —-हृदय में होने वाले रोग कितने हैं
३- कतिच अपि अनिलादीनाम् रोगा: मानविकल्पजा: वात आदि दोषों की मात्रा / मान/ परिमाण quantity के विकल्प /variations से होने वाली व्याधियाँ कितनी है । तीसरे पृश्न का जो उत्तर आचार्य ने दिया उसमें प्रथम श्लोक में ही “आदाय “ गात्रेषु विसर्पति की व्याख्या ने अप्रत्यक्ष रूप से आशयापकर्ष की धारणा /सिद्धान्त को जन्म दिया, जबकि श्लोक ४१-४४ में कति कितने ?? का उत्तर देते हुये उन रोगों की संख्या व वर्ग गिनाये हैं जो दोषों के मान के विकल्प से उत्पन्न होते हैं । मान यहाँ तकनीकी अर्थ लिये है जिसका अर्थ है -क्षय स्थान वृद्धयो:दोषमानम्, तस्य विकल्पो दोषान्तर संबंध, दोषान्तर असंबंध कृत भेद !! *अर्थात् दोषों के क्षय स्थान व वृद्धि- के कितने भेद हैं जो व्याधिकारक है !!*
आचार्य का निर्देश भी है -प्रकृतिस्थम्यदा पित्तम् इत्यादि । अत्र केचित् एतद् एव परम् उदाहरणम् पठन्ति, शेष उदाहरणम् तु कृत्स्ने तन्त्रे बोद्धव्यम्, सब इसी श्लोक को परम उदाहरण मानते है *शेष उदाहरण तो सम्पूर्ण तन्त्र में से जानना चाहिये !!!!!*
As for as clinical application of AA is concerned, Ch Su 17/62 slok is sufficient ..दोषा: प्रवृद्धा: स्वे लिंगम् दर्शयन्ति यथा बलम् .....
*श्लोक ४५ में स्थानाद् आदाय के माध्यम से आशयापकर्ष को इंगित करते हुये श्लोक ८० में आशयापकर्ष को सुस्पष्ट कर दिया तथा श्लोक 81 में इसकी क्लीनिकल एप्लीकेशन या इसके द्वारा निदान कैसे करें यह निश्चित कर दिया ।* Respected Ojha sir and Resp Raghu sir !!
[2/27, 10:53 PM] Vd Raghuram Shastri, Banguluru:
✅✅✅👌👌Vata vrddhi but *RELATIVE*...
[2/27, 10:53 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
Yes, that is beauty of this concept..
[2/27, 10:54 PM] Dr. Surendra A. Soni:
आ. ओझा सर !
पवन सर द्वारा दिये गए उदाहरणों के आधार पर क्या हम यह नहीं कह सकते कि आशयापकर्ष शब्द आयुर्वेद में
1.सामान्य/extensive/बृहत्तर/ generalised- यथा आ. पवन जी ने उदाहृत किया है ।
2.विशिष्ट/specific- यथा आप श्लोक न 45-47 में निर्दिष्ट कर रहे हैं । जैसा कि मधुकोष में वर्णित है ।
🙏🏻🌹😌🌻
[2/27, 10:55 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
बार बार वही बात हो रही है
[2/27, 10:55 PM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar:
Although the word ASHYAPAKARSH has not been mentioned in Charak but as mentioned by the 2 posts of Ramakant Guru Ji, Can this be said that the principle of Ashyapakarsh has been explained at many places in Charak?🤔
[2/27, 10:55 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
विशिष्ट है*
डॉ सोनी !
[2/27, 10:56 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
Condition is applied
Pawan ji !
[2/27, 10:57 PM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar:
Thanks sir
[2/27, 11:32 PM] Vd. Divyesh Desai Surat:
आशय का मतलब स्थान
अपकर्ष का मतलब बहार खीचना तो
वायुका स्थान :-- पक्वाशय कटि सक्थि श्रोत...
पित का स्थान :-- नाभिरामाशय स्वेद लसिका रुधिरं रसः......
कफ का स्थान :-- उरः कण्ठ शिर क्लोम......
तो कृपया गुरुजनो आशयापकर्ष केवल वृद्ध वात दोष से ही रिलेटेड है या फिर
वृद्ध पित या वृद्ध कफ से भी रिलेटेड है?🙏🏻🙏🏻
आचार्यो ने जो वात, पित्त ,कफ का स्थान जो स्पेसिफिक बताया है इनका क्या महत्व है? वायु अगर वृद्ध है तो चल गुण से पित्त और कफ का अपकर्ष कर सकता है तो वृद्ध पित्त अपने तीक्ष्ण उष्ण गुण से कफ वायु का अपकर्ष नही करेगा?
[2/27, 11:45 PM] Prof. Lakshmikant Dwivedi Sir:
Ye 62 ki sankhya badhai bhi jasakti hai na, ref acharya ne raso ki to 63 se 766 karib kardi.
RASA Veisheshika Sutra par comments karte hue kisi jain muni ne.
Ab to 🖥️ ka jamAna hai.👍
[2/28, 12:01 AM] Vaidya Manu Vats, Punjab:
Great !
Superb... Raghu Sir..thanks 😊 🙏
[2/28, 12:32 AM] Shekhar Goyal Sir Canada:
Very nicely explained Sir 🙏💐🌷👌
[2/28, 12:42 AM] Dr. Ramakant Sharma Jaipur:
17/45,46,47 के संदर्भ में क्यों अमान्य आचार्य ओझा जी ?
हेतु स्पष्ट करने का श्रम करें 🙂
[2/28, 1:40 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
🌹💐🙏
[2/28, 1:41 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
बिल्कुल सही सर 👌*
[2/28, 1:42 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*पाद दाह के अनेक हेतु है और क्या है यही समझना है।*
[2/28, 1:52 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
पवन जी, हेतु विपरीत चिकित्सा कम से कम 150 प्रकार से बनती है, हेतु अर्थात निदान परिवर्जन ही नही अब जो निदान ने कर दिया यह चिकित्सा उसके भी अनुसार होगी, समय मिलते ही इस पर भी लिखूंगा कि हेतु और सम्प्राप्ति घटित होने पर हेतु प्रत्यनीक चिकित्सा सम्प्राप्ति घटकानुसार कैसे होती है।हमारा आयुर्वेद वहां तक पहुंचा है अगर इसे कोई समझ ले तो गंभीर और असाध्य रोग भी सरल हो जाते हैं।आप को ये सब clinical presentations मे प्रमाण अनुसार मिलेंगे और जो चाहे तो personally रोगियों के फोन नं. भी दे सकता हूं।*
*मेरी इच्छा है आप सब सर्वश्रेष्ठ आयुर्वेदज्ञ बनो और इसे main stream में लाओ।*
[2/28, 1:53 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*आनंद आ गया सर ये कथन पढ़कर, मेरे मन की बात कह दी आपने। 🌹🙏
[2/28, 2:08 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*सादर प्रणाम सर, कल आराम से विस्तारपूर्वक अध्ययन करता हूं और पुन: वापिस इस विषय पर आता हूं।*
[2/28, 2:10 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*सादर नमन आचार्य मिश्र जी* 🙏🙏🙏
[2/28, 2:16 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*व्यक्तिगत नही है मेरी भी यही है क्योंकि शाखाश्रित कामला में संग दोष है, विमार्गगमन है और आश्यापकर्ष संग और विमार्गगमन रहित मात्र दोषावस्था है इसमें रस-रक्त या कोई अन्य धातु सम्बद्ध ही नही है। कामला में धातु की involvement है।*
[2/28, 2:18 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*पहले तल पर ही मतभेद - ज्वर में आम, संग और विमार्ग गमन, चिकित्सा सूत्र अलग, आम पाचन, पित्त शमन, इसमें वात का कोई महत्व ही नही। आधार ही अलग है।*
[2/28, 2:23 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
आश्यापकर्ष को जब तक दूष्यों से अलग नही करेंगे मतभेद बने रहेंगे क्योंकि समस्त उदाहरणों में संग और विमार्गगमन है जो दूष्यों से संबंधित है और आश्यापकर्ष मात्र विशुद्ध दोष लक्षणों से संबंधित है जिसमें दूष्यों से सम्मूर्छना नही हुई।*
[2/28, 2:38 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*विमार्गगमन और त्रिविध गति से जो अलग है वो आश्यापकर्ष है, अनेक रोगों के उदाहरण देख लिये, आप लोगों के चक्कर में 2:36 am हो गये । 😃😃😃*
[2/28, 6:53 AM] Vd Sachin Vilas Gajare Maharashtra:
आशायापकर्ष गती और रोग मार्ग (अभ्यांतर, शाखा, मध्यम मार्ग ) इन दोनोंको साथ साथ जोड़े तो व्याधि उत्पत्ति और संप्रा प्ती विघटन कराने में उपयोगी है।
आशयापकर्ष गति सिर्फ दोष गति है जो दोषोका स्थानसंश्रय कराती है।
जिससे व्याधि उत्पत्ति - क्षय होता है।
और यह युक्ति कृत भी हम कर सकते है।
जैसे,
स्नेहपानोत्तर लघु आहार से हम शाखा और मध्य मार्गस्थ दोषोको अभ्यांतर मार्ग में लाते है।
और यही दोष व्यायाम आदि विहार से पुनः मध्यम - शाखाश्रीत होते है।
यह क्रिया वात की सिवा हो ही नहीं सकती।
लेकिन वृद्घ - क्षीण (कफ पित्त) दोष और आहार - विहार आदि इस गती पर अपना प्रभाव बना सकते है।
बहुपित्त कामला में
हेतु सेवन से पित्त वृद्धि फिर यही पित्त नॉर्मल गती से (व्यान वायु) intestin में आता है फिर वही समान वायु के कार्य के बाद व्यान वायु के साथ सम्पूर्ण देह संचार कराकर व्याधि उत्पत्ति होती है।
इसमें चिकित्सा करते समय दिए गए विरेचन आदि अनुलोमन से शाखाश्रीत दोष कोष्ठश्रीत होकर फिर उनका शोधन होता है। *इस कड़ी में व्याधि उत्पत्ति में आशयापकर्ष गती में कारण वृद्घ पित्त और वायु है, तो संप्राप्ति विघटन में शाखा से कोष्ठ जो अनुलोमन हुआ यह भी आशयापकर्श है।*
यदि इसी व्याधि के पुर्वरूप समय अगर व्यायाम आदि चंक्रमन ज्यादा किया जाय तो व्याधि निर्मिती की संप्राप्ती जल्द बनेगी। *आशयापकर्ष गति बढ़ गई* लेकिन व्याधि स्वभाव से ही रुग्ण जल्द थक जाता है। (कामा न लाती इती कामला।) और व्याधि धीरे धीरे हेतु - पुर्वरूप - रूप - संप्राप्ति के राह पर चलती है।
उपरोक्त लक्षण रुद्घ पथ कामला में नहीं मिलते।
[2/28, 7:03 AM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar:
शुभ प्रभात गुरु जी।
जी, 🙏🙏🙏🙏🙏
[2/28, 7:36 AM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
*शुभ प्रभात वैद्यराज सुभाष शर्मा जी एवं आचार्य गण नमो नमः ॐ नमः शिवाय* 🙏🙏🌹🌹🙏🙏
[2/28, 7:40 AM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
मन प्रसन्न हो गया, कोई तो मिला जो मेरे मत को मान्य किया, अलग अलग सिद्धांतो के प्रतिपादन में चिकित्सा विशेष ही है . विशिष्ट अवस्थाओं को समझकर ही विशिष्ट चिकित्सा व्यवस्था की जाती है तभी चिकित्सा फलदायी होती है..
[2/28, 7:44 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
सुप्रभात एवं सादर नमन ओझा सर, प्रो. चुलैट सर एवं समस्त आचार्य गण* 🙏🌹🌺💐
[2/28, 7:45 AM] Dr. Ramakant Sharma Jaipur:
निस्संदेह स्पष्ट अंतर है ।
आदाय में वात दोष प्रसर में साथ साथ चलता है अथवा अपकर्षित दोष यद्यपि सामान्य/ प्रकृतिस्थ है तथापि वात उसे साथ लेकर जाता है है जैसे बच्चे का हाथ पकड़ कर ले जाते है। साथ साथ छोड़ते नही है हाथ
विक्षेप में वात खुद अपने स्थान पर स्थित रहता है और अपनी शक्ति का उपयोग करके दुसरे दोष को विक्षेपित करता है वह दोष भी प्रक्रतिस्थ ही रहता है जैसे भाला फेंक, डिस्कस थ्रो आदि में
[2/28, 7:46 AM] Dr. Ramakant Sharma Jaipur:
प्रति प्रणाम शुभ प्रभात
आप सब का सारा दिन मंगलमय हो
हर दिन मंगलमय हो !!
[2/28, 7:46 AM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
सादर प्रणाम गुरु जी
[2/28, 7:46 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*इसका वर्णन मधुकोष में है अगर उनके मत को ही ले कर चलें तो सब स्पष्ट है।*
[2/28, 7:46 AM] Dr. Ramakant Sharma Jaipur:
प्रणाम सदा प्रसन्न रहो स्वस्थ रहो !!!
[2/28, 7:47 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*आपके आशीर्वचन मिल गये तो आश्यापकर्ष पर निष्कर्ष भी मिलेगा 🌺🌹💐🙏*
[2/28, 7:49 AM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
शाखाश्रित कामला में वात का बल स्व हेतुओं से तथा कफ के द्वारा मूर्च्छित होने से वृद्ध होता है जिससे पित्त को फेंकने में सक्षमता मिलती है
[2/28, 7:52 AM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
भाला फेंक, डिस्कस थ्रो.. अति सुंदर उदाहरण.. इसी तरह के उदाहरण से गूढ विषयों पर आपके विचार प्रशंसनीय है और अतिरिक्त ज्ञान भी देते हैं.. आभार गुरु जी🙏🙏
[2/28, 7:57 AM] Dr Mansukh R Mangukiya Gujarat:
🙏🙏शुभ प्रभात गुरुवर सुभाष शर्मा जी, आचार्य सत्येन्द्र ओझा जी एवं आचार्य गण । ॐ नमो नमः ।* 🙏🙏
[2/28, 9:10 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
नमस्कार 🌹🙏*
[2/28, 9:24 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*कालो हि नाम भगवान् ... रसव्यापत्सम्पत्ती जीवित मरणे च मनुष्याणामायत्ते।सु सू 6/2*
*काल ही भगवान है, द्रव्याश्रित रसों की व्यापत्ती, प्राणियों का जीवन-मरण ये सब काल के अधीन हैं।*
*सुखदु:खाभ्यां भूतानि योजयतीति काल:*
*सभी प्राणियों को जो सुख और दुख होता है वो काल के कारण होता है।*
*आयुर्वेद क्षेत्र में ही क्यों आये ? ये भी काल ही लाया, clinic आरंभ होते ही पहला रोगी 170 kg का तो सोचा आज देखते हैं कि कितने रोगी 'लंबोदर' मिलते है तो कुल 27 तो बृहत् उदर के ही मिले।*
*मेद अनेक रोगों का risk factor है, शायद भविष्य में संभावित रोगों से रक्षा के लिये काल ने ही इन्हे भेजा हो ?*
*आयुर्वेद का दर्शन पक्ष clinical पक्ष से पूर्ण रूप से जुड़ा है जिसका उत्तर भी अनेक बार काल ही देता है।*
[2/28, 9:31 AM] DR. RITURAJ VERMA:
सुप्रभात गुरुवर ऐसे रोगियों की भरमार है यहां भी
[2/28, 9:34 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*लॉक डाऊन प्रभाव भी है आचार्य ऋतराज जी।*
[2/28, 9:36 AM] Dr. Mukesh D Jain, Bhilai:
आयुर्वेद में सात प्रकार की धातुओं के बारे में बताया गया है और इन्हें एक निश्चित ... थक जाना, स्तनों और पेट का लटकना, शरीर से दुर्गंध आना मेद धातु के मुख्य लक्षण हैं। मनोविकारों पर हो रही रिसर्च बताती है कि बीमारी, जिम्मेदारी और बेरोजदारी के कारण ज्यादातर लोग उदासी और अकेलापन महसूस करते हैं। एक खास तरह का रासायनिक असंतुलन के कारण उदासी और अकेलापन सहित अनेक तरह के वात रोगों का जन्म होता है। मेद धातु के असंतुलन से होने वाले रोग का इनसे भी संबंध हो सकता है।
[2/28, 9:38 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*मेदोरोग जन्य वात विकार*
*मेदोरोग जन्य मनोविकार।*
*इस प्रकार का निदान हमारे prescriptions पर प्राय: मिलता है आचार्य जैन साहब और यह होता ही है, आपका कथन सही है।*
[2/28, 9:47 AM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
*रोगातिकर्षण वात प्रकोप का एक हेतु है. अतिस्थौल्य से विविध विकार प्रमुखत: वात विकारो की सम्भावनाए बनी रहती है*
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Above discussion held in 'Kaysampraday' a Famous WhatsApp group of well known Vaidyas from all over the India.
Compiled & Uploaded by
Vd. Rituraj Verma
B. A. M. S.
Shri Dadaji Ayurveda & Panchakarma Center,
Khandawa, M.P., India.
Mobile No.:-
+91 9669793990,
+91 9617617746
Edited by
Dr.Surendra A. Soni
M.D., PhD (KC)
Professor & Head
P.G. DEPT. OF KAYACHIKITSA
Govt. Akhandanand Ayurveda College, Ahmedabad, GUJARAT, India.
Email: surendraasoni@gmail.com
Mobile No. +91 9408441150
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