Case-presentation - पित्ताशय अर्बुद (comet tail artefact in gall bladder - adenomayomatosis) by Vaidya raja Subhash Sharma
[1/14, 12:49 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
case presentation -
पित्ताशय अर्बुद (comet tail artefact in gall bladder - adenomayomatosis), वृक्काश्मरी एवं fatty liver .*
*रोगी - युवा/ 18 yrs / male / student*
*प्रमुख वेदना - पिछले पांच दिन से उदर शूल जो शनैः शनैः वृद्धि को प्राप्त हो कर अत्यन्त तीव्र था, ज्वर 99-100 डिग्री तक तीन दिन से, उत्क्लेश एवं छर्दि, कभी कभी मूत्र कृच्छता एवं मूत्र प्रवृत्ति के समय वेग लगाना, अम्लपित्त ।*
*पूर्व व्याधि वृत्त - मूत्रवाही स्रोतस में अश्मरी का निर्मांण कुछ समय पूर्व हुआ था जिसका निष्कासन हो गया था।*
*व्याधि समुत्पत्ति क्रम - पिछले दो वर्ष से गुरू, स्निग्ध एवं अहित आहार का सेवन अधिकता से था जिसके कारण अजीर्ण, ग्रहणी दोष जिसमें असम्यक मल प्रवृत्ति रहती थी । इस अवधि में अश्मरी होने पर पथ्य पालन एवं अश्मरी हर आयुर्वेदीय चिकित्सा से अश्मरी का भेदन हो गया था तथा कुछ काल से अम्लपित्त से भी रोगी पीड़ित था।*
*कुल वृत्त - परिवार में सभी आस्या सुखम प्राणी है पर रोगी की व्याधि से कोई fatty liver के अतिरिक्त कोई विशिष्ट सम्बन्ध नही।*
*अष्टविध एवं अन्य परीक्षा - *
*नाड़ी - तीव्र , तीक्ष्ण , उष्ण , रज्जु वत, 98-100/ per minute, त्रिदोषज - वात पित्त और कफ तीनों प्रदेश में किंचित कंपन के साथ ।*
*मूत्र - पीत, अल्प, कभी बूंद बूंद एवं दाह एवं feeling के साथ ।*
*मल - दो दिन से विबंध सदृश, अत्यन्त अल्प, शुष्क एवं ग्रथित पर स्निग्ध।*
*जिव्हा - साम, मलिन पर किंचित पीताभ*
*शब्द - क्षीण, कर्कश एवं भयभीत *
*स्पर्श - अत्यन्त उष्ण*
*दृक - पीताभ रक्त तथा मलिन*
*आकृति - प्राकृत पर किंचित स्थौल्य*
*प्रकृति - हमने तात्कालिक दोषों को ही महत्व दिया और प्रकृति परीक्षण नही किया।*
*सार - त्वक्, मांस, मेद और शुक्र सार*
*संहनन - किंचित स्थूल *
*प्रमाण - सम से किंचित अधिक *
*सात्म्य - मधुरादि रस के अनुसार - मधुर एवं लवण*
*शीत-उष्ण गुणादि अनुसार शीत सात्म्य *
*सत्व - मध्यम *
*आहार शक्ति - आहार इच्छा शक्ति - अधिक *
*आहार परिपाक शक्ति - मध्यम एवं कदाचित अल्प*
*व्यायाम शक्ति - हीन, मध्य और प्रवर बल*
*वय - युवावस्था क्योंकि 18 वर्ष पूर्ण हो गये ।*
*देश - साधारण / दिल्ली निवासी*
*काल - रोगी 23 nov. को आया था, दक्षिणायन तथा शीत का आरंभ *
*ऋतु - हेमन्त *
*मास - मार्गशीर्ष*
*पक्ष - कृष्ण *
*सम्प्राप्ति घटक - *
*हेतु - अति स्निग्ध, अम्ल, गुरू पदार्थों का सेवन, रात्रि जागरण एवं अनियमित दिन चर्या।*
*दोष - उदान, समान, अपान और व्यानवात, पाचक पित्त और क्लेदक कफ ।*
*दूष्य - रस, रक्त और मांस*
*स्रोतस - अन्न, रस, रक्त, मांस और मूत्रवाही।*
*स्रोतोदुष्टि - संग एवं विमार्ग गमन *
*आम की स्थिति - साम*
*अग्नि - मंद एवं विषम*
*व्याधि समुत्थान - आमाश्य*
*व्याधि अधिष्ठान - पित्तवाही स्रोतस*
*बल - कालज एवं युक्तिकृत*
*व्याधि स्वभाव - चिरकारी*
*साध्यासाध्यता - आधुनिक मतानुसार असाध्य पर हमारे मत आयुर्वेदानुसार साध्य *
*स्वप्न, उपद्रव अथवा अरिष्ट लक्षण - अगर रोगी को छर्दि रक्त युक्त या जलोदर होता तब हम इसमें ग्रहण करते।*
*usg - 20-11-21*
*liver - mildly enlarged 14.22 cm with increased parechymal echotexture*
*GB - comet tail artefact seen / adenomayomatosis*
*both kidney - 3-4 calculus size 3-4 mm*
[1/14, 12:49 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*अभी तक हम पित्ताशय अश्मरी, पित्ताशय पंक (GB Sludge) के अनेक रोगियों पर case present कर तुके हैं पर पित्ताशय में अर्बुद सदृश रोग के आरंभ का यह प्रथम केस आपके सामने है । आधुनिक मत के अनुसार The comet-tail artefect appears as a dense tapering trail of echoes just distal to a strongly reflecting structure अर्थात धूमकेतु की पूंछ की तरह कलाकृति का इसमें निर्माण हो जाता है।हम इसका कारण आम और आमविष की स्थिति को हम मान कर चले है जिसके कारण पित्ताश्य प्रदेश में शूल एवं छर्दि लक्षण भी उत्पन्न हुये। अगर पूर्ण सम्प्राप्ति को समझें तो मधुर अवस्थापाक तक क्लेदक कफ सामान्य है अब अगर इसमें स्नेह, मधुर, अम्ल, पिच्छिल, द्रवादि द्रव्यों का अतियोग होगा तो साम कफ बनेगा जो इसके बाद अम्लपाक में अम्ल हो कर ग्रहणी में आयेगा जहां स्वच्छ पित्त बनता है और आहार के पूर्ण पाचन तक ग्रहणी इसे धारण करती है। पित्त का संचय पित्ताश्य में होता है जब आवश्यकता हो तो भोजन के पाचन के लिये पित्त अपनी नलिका द्वारा ग्रहणी में आता रहता है और अगर आवश्यकता ना हो तो यह पित्त पित्ताश्य में ही सुरक्षित रहता है। सामावस्था ही इस अर्बुद का कारण बनी
'गात्रप्रदेशे क्वचिदेव दोषाः सम्मूर्च्छिता मांसमभिप्रदूष्य वृत्तं स्थिरं मन्दरुजं महान्तमनल्पमूलं चिरवृद्ध्यपाकम्, कुर्वन्ति मांसोपचयं तु शोफं तमर्बुदं शास्त्रविदो वदन्ति वातेन पित्तेन कफेन चापि रक्तेन मांसेन च मेदसा च '
सु नि 11/13-14
ये अर्बुद त्रिदोष, मांस और मेद के होते हैं तथा ग्रन्थि के समान ही है जो शनैः शनैः वृद्धि करते है, स्थिर, गोल, अल्प पीड़ा युक्त, गभीर धातुगत और पाक ना होने वाले होते है हैं, साम रक्त, साम मांस और साम मेद के कारण अर्बुद की उत्पत्ति संभव होती है जिसे सु सू 24, और च सू 28 में स्पष्ट किया गया है।पित्तवाही स्रोतस में संगदोष के कारण दोषों का विमार्ग गमन हुआ, मूत्रवाही स्रोतस में पहले से ही संग दोष है और यकृत प्रदेश का fatty होना भी एकांग मेदोरोग है जो संग दोष ही है । मूत्रवाही स्रोतस की अश्मरी और fatty liver पर हम पूर्व में बहुत प्रकाश डालकर अनुभव व्यक्त कर चुके हैं ।*
*चिकित्सा सूत्र - निदान परिवर्जन, नियमित दिनचर्या एवं आहार विधि का पालन पथ्यापथ्य सहित कर संयुक्त रूप से एक चिकित्सा सूत्र इस प्रकार बना- दीपन, पाचन, अनुलोमन, शोथघ्न, स्रोतोशोधन, स्र्ंसन, भेदन, रेचन, मूत्रविरेचन, मेदक्षपण।*
[1/14, 12:49 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
प्रातः 8 बजे तक am तक पुनर्नवा, गोखरू और वरूण छाल मिश्रित शुष्क चूर्ण प्रत्येक 5-5 gm एक 200 ml. जल में 20 मिनट भिगोकर रखा और उबालने के बाद 1/4 रहने पर छान भल्लातक क्षार 1 gm + मूली क्षार 1 gm + हजरूल यहूद भस्म 1 gm मिलाकर कर पीने के लिये दिया।*
*8:30 से 9 बजे के मध्य bfast में मूंग, धुली मसूर, या इनको mix कर के सूप, पतली कृशरा प्रथम सात दिन तक दी गई जिसमें चुटकी भर त्रिकटु चूर्ण, तवे पर भून कर और पीस कर हिंगु और जीरा सैंधव युक्त मिलाकर दिया गया।*
*नाश़्ते के एक घंटे पश्चात अन्य औषध योग जिनका वर्णन आगे करेंगे।*
*12:30 तक दोपहर का भोजन जिसमे टिण्डा, लौकी, तोरई , कच्चा पपीता, सीताफल, परवल आदि शाक और साथ में नमकीन दलिया प्रात: या 2 चपाती*
*सांयकाल 4 बजे लगभग pineapple juice, नमकीन सत्तू पेयकालानमक, थोड़ा नींबू स्वरस, भुना जीरक मिलाकर , चिड़वा, मुरमुरे, थोड़े से पोहे, भुने मखाने आदि जो रूचिकर लगे ।*
*लगभग 6 बजे सांयकालीन भ्रमण 30-40 मिनट*
*7:30 बजे - 3 से 5 ग्राम फलत्रिकादि क्वाथ, पुनर्नवा, गोखरू और वरूण छाल मिश्रित शुष्क चूर्ण प्रत्येक 5-5 gm एक 200 ml. जल में 20 मिनट भिगोकर रखा और उबालने के बाद 1/4 रहने पर छान भल्लातक क्षार 1 gm + मूली क्षार 1 gm + हजरूल यहूद भस्म 1 gm मिलाकर कर पीने के लिये दिया।*
*रात्रि भोजन 7:40 बजे तक कृशरा अथवा मूंग या मसूर दाल पंचकोल, हिंगु एवं जीरक मिश्रित सूप।*
*रात्रि 11 बजे लगभग सोने से पूर्व शिवक्षार पाचन चूर्ण 3 gm + कुटकी वटी 1 gm सुखोष्ण जल से।*
*अपथ्य - समस्त fast food जिसमें chinese, italian सहित street food, तिल, पालक, टमाटर, बैंगन, अचार, उष्ण तीक्ष्ण पदार्थ, चना, मैदा, अधिक स्निग्ध तैलीय पदार्थ।*
*पथ्य - प्रतिदिन 1-2 मूली,तोरई, सेम, लौकी, कुन्दरु, टिण्डक, मकोय के पत्र, सीताफल, मखाने, मक्की के बालों का क्वाथ, गेहूं के साथ यव मिश्रित रोटी, सक्तुक, कृशरा, मूंग, मसूर, कुलथी की दाल का पानी।*
*चिकित्सा सूत्र *
*दीपन,
पाचन,
अनुलोमन,
शोथघ्न,
स्रोतोशोधन,
स्र्ंसन,
भेदन,
रेचन,
मूत्रविरेचन,
मेदक्षपण।*
*औषध योग -*
*शिवक्षार पाचन - दीपन, पाचन, अनुलोमन*
*यव का आटा - मेद क्षपण और fatty liver के रोगियों में हमने बहुत गुणकारी परिणाम देखा ।*
*आरोग्य वर्धिनी - दीपन, पाचन, मेद -हर, रक्त शोधक, शोथ हर होने के साथ स्रोतों का शोधन करता है। मात्रा 1-1 gm दिन में दो बार ।*
*भल्लातक क्षार -
भल्लातकं त्रिकटुकं त्रिफलां लवणत्रयम् अन्तर्धूमं द्विपलिकं गोपुरीषाग्निना दहेत् स क्षारः सर्पिषा पीतो भोज्ये वाऽप्यवचूर्णितः हृत्पाण्डुग्रहणीदोषगुल्मोदावर्तशूलनुत्'
च चि 15/177-178
चरकोक्त ग्रहणी रोगाधिकार का यह रोग बहुत ही आशुकारी परिणाम देता है। जब रोगी प्रथम दिन हमारे पास आया था तो छर्दि हेतु tab Dom T का सेवन कर के आया था पर उत्क्लेश फिर भी था, हमने उसे भल्लातक क्षार 1 gm, प्रवाल भस्म 500 mg, शिवक्षार पाचन 2 gm की एक मात्रा अपने हाथ से सेवन कराई तथा ऐसी एक मात्रा 4 घंटे बाद सेवन के लिये दी तो रात्रि से पूर्व ही रोगी को बहुत लाभ मिल गया था । ज्वर हेतु प्रथम दिन दिन गुडूची घन वटी, सुदर्शन घन वटी 2-2 वटी भी दी थी और प्रथम पांच दिन दिन व्यतीत कर रोगी ने मुख्य चिकित्सा आरंभ की।*
*हजरूल यहूद भस्म- अश्मरी भेदक- मूत्र विरेचक- अश्मरीजन्य शूलघ्न*
*गंडमालाकंडन रस - यह त्रिकटु और गुग्गलु के साथ कंचनार और सैंधव का योग है जो अर्बुद को मृदु बनाकर नष्ट करने में अत्यन्त सहयोगी है, 2-2 गोली दो बार*
*कांचनार गूगल - कफ वात हर, ग्रन्थि, अर्बुद, गंडमाला आदि नाशक 2-2 वटी दिन में दो बार *
*नित्यानंद रस - कफ वात प्रधान रोगों में अति उत्तम है, पाचन, शोथघ्न, ग्रन्थि -हर और रसायन कर्म करता है, 1-1 गोली दिन में दो बार *
*पुनर्नवा - मधुर तिक्त रूक्ष उष्ण दीपन मूत्रविरेचन कफध्न शोथघ्न पाण्डु कामला उदररोग नाशक*
*गोखरू - मधुर शीतवीर्य अग्निदीपक शोथहर बल्य वातहर मूत्रविरेचनीय वेदनास्थापक मूत्रकृच्छ वस्ति एवं वृक्करोग हर*
*वरूण - मधुर तिक्त कटु कषाय रूक्ष लघु उष्ण मल का भेदन करने वाला अग्निदीपक अश्मरी मूत्रकृच्छ गुल्म स्रंसन मूत्रजनन शोथघ्न *
*कटुकी - पित्त विरेचक, दीपन, पाचन, लघु, अग्निदीपक, भेदन में इसे सर्वश्रेष्ठ मानते है, रूक्ष होने के साथ शीतवीर्य भी है, यह मेदोरोग पर MD (काय चिकित्सा) में thesis drug थी ।*
*मूली क्षार - विभिन्न प्रकार के अर्बुद एवं ग्रन्थियों को समाप्त करने के लिये उष्ण तीक्ष्ण लघु रूक्ष दहन छेदन भेदन कर्षण लेखन द्रव्यों की आवश्यकता होती है जो हमें क्षार में मिलते है और इसकी चिकित्सा का सूत्र हमें चरक संहिता से ही मिला था,
'तीक्ष्णोष्णो लघुरूक्ष्ष्च क्लेदी पक्ता विदारणा:, दाहनो दीपश्च्छेता सर्व: क्षारोऽग्निसन्निभ :'
च सू 27/306 ।*
*12 जनवरी 2022 को पुनः USG कराने पर समस्त रोग समाप्त हो कर report normal मिली तथा कुल चिकित्सा अवधि लगभग 6 सप्ताह की रही ।*
[1/14, 1:25 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
आयुर्वेद की शास्त्रोक्त और सैद्धान्तिक चिकित्सा प्रणाली शाश्वत चली आ रही है इसे अपनाईये सफलता निश्चित मिलेगी और अपने शास्त्रों पर, आर्ष ग्रन्थों पर विश्वास रखें ये पूर्ण सत्य हैं जैसे आधुनिक मतानुसार तो इस रोगी में अश्मरी की चिकित्सा शल्य ही है और पित्ताशय अर्बुद में कुछ समय बाद युवावस्था मे ही इस रोगी का शल्य कर्म से पित्ताशय ही निष्कासित कर दिया जाता ।*
*अनुसंधान की प्रक्रिया आयुर्वेद में निरंतर चलती रहनी चाहिये, हम भी आधुनिक संसाधनों का उपयोग investigations के रूप में करते हैं पर रोग निदान और चिकित्सा सिद्धान्त आयुर्वेद तल पर द्रव्यों की कार्मुकता के अनुरूप ले कर चलते हैं।*
[1/14, 1:27 AM] वैद्य ऋतुराज वर्मा:
नमो नमः गुरुवर
सहृदय धन्यवाद 🙏🙏
[1/14, 1:27 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*जो चिकित्सा अब दी जा रही है उसका स्वरूप क्या है ?
'काष्ठौषध्यो नागे नागो वंगेऽथ वंगमपि ताम्रे, शुल्वं तारे तारं कनके कनकमपि लीयते सूते '
अर्थात काष्ठौषधियां नाग में, नाग वंग में वंग ताम्र में, ताम्र रजत में, रजत स्वर्ण में और स्वर्ण पारद में लीन हो जाता है अर्थात ये सब उत्तरोत्तर एक दूसरे से अधिक गुणकारी होते हैं।*
*'अल्पमात्रोपयोगित्वादरूचेरप्रसंगत:, क्षिप्रमारोग्यकारित्वादौषधेभ्यो रसोधिक:'
अर्थात काष्ठौषधियां अधिक मात्रा में दी जाती है, मुख का स्वाद खराब कर देती है और अनेक बार चिर काल में फल प्रदान करती है इसके विपरीत रसौषधियां अल्पमात्रा में देते है, मुख के स्वाद पर कोई प्रभाव नही और फल भी शीघ्र देती हैं इसीलिये पहले श्लोक के अनुसार वाग्भट्ट ने औद्भिज्ज औषध के बदले खनिज औषधियों को महत्वपूर्ण माना है।*
*'भैषज्यं त्रिविधं प्रोक्तं दैवं मानुषमासुरम्' रस चिकित्सा दैव चिकित्सा, मात्र काष्ठौषधियों से करने वाली मानुष और जो केवल क्षार कर्म या क्षार योगों से करते हैं वो आसुर चिकित्सा है। हम लोग सभी का मिश्रण प्रयोग करने वाली मिश्रक श्रेणी के चिकित्सक हैं।*
[1/14, 1:28 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
प्रिय भिषग् ऋतराज को सप्रेम नमन ❤️🙏*
[1/14, 2:38 AM] Prof. Madhava Diggavi Sir:
Vaikuntha ekadashi ..makara Sankranti parva kala , it is very nice to go through the case of GB ... dhanyawad sir
[1/14, 6:15 AM] Dr Mansukh R Mangukiya Gujarat:
🙏 प्रणाम गुरुवर 🙏
आपकी केस प्रस्तुति सदा हमें ज्ञानोपार्जन कराती है।
[1/14, 6:35 AM] Vaidya Sanjay P. Chhajed:
प्रणाम गुरुदेव , सही है।
[1/14, 6:57 AM] Dr. Satish:
गुरुवर प्रणाम
एक असाध्य रोग पर विजय।
☕💐💐🙏🏻🙏🏻
आपका उत्कलेश (भल्लातक आदि) के लिये दिया गया योग क्या छर्दी के किये भी कारगर होगा?
[1/14, 7:36 AM] Dr. Pawan Madan:
सुप्रभात व चरण स्पर्श गुरु जी
इस रोगी का weight कितना था?
मल शुष्क व स्निग्ध, दोंनों एक साथ,,, उसको थोडा और समझना चाहता हूँ 🙏
[1/14, 7:43 AM] Vaidya Sameer Shinde:
🙏🙏 अतिसुंदर आचार्य।
आपकी चिकित्सा हमेशा एक नई दिशा दर्शक होती है।
सादर प्रणाम आचार्य।
[1/14, 7:49 AM] Dr. Pawan Madan:
गुरु जी
जो ये आप काढा बना कर दिया उसमे स्व काढा बना कर चूर्ण को निकाल देना है क्या?
क्युओंके 50 मल जल में क्वथित 15 ग्राम चूर्ण व साथ में 3 ग्राम अन्य 3 चीजें,,,,ये सब एक मात्रा में रोगी के लिये लेना ही दुश्वार हो जाता है 🤔🤔
शाम को pinapple juice के पीछे आपका क्या मन्तव्य है, क्युंकि मैं इसे भी एक सन्तर्पण कारक हेतू ही समझता हूँ?
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
[1/14, 8:39 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
* नमस्कार वैद्यश्रेष्ठ पवन जी, बकरी के मल जैसा गांठदार एवं कठिन पर मल करने के बाद भी गुदा मे स्निग्धता मल की लगी रहना जिसे कई बार अच्छी तरह साफ करना पड़ता है। शब्दों का भाव ये था ।*
[1/14, 8:48 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*पुनर्नवा, गोखरू एवं वरूण समभाग का fine powder, 3 tsp 200 ml जल में और 50 ml पतली छलनी से छान कर थोड़ी देर रख कर पीना। चूर्ण इस से नीचे बैठ जाता है जिसे सेवन करने की आवश्यकता नही। कई रोगी ऐसे हैं जो अकेले या service aptt. में भी रहते है, कई ऐसे है जिनकी पत्नी उनके लिये कुछ नही करेगी और स्वयं के पास समय नही, भोजन मेड बनाती है जिनके नखरे बहुत है तो पिछले कई वर्षों मे हमने उनके लिये चिकित्सा का सरल बना दिया । वो अब इस प्रकार फांट बनाकर अथवा अच्छी तरह जितना पी सके उतने उष्णोदक मे अच्छी तरह मिलाकर आधा घंटा रखें और ऊपर का फांट पी ले, ये भी कर दिया है। इस से क्रिया का लोप नही होता और औषध उदर में जाती है तथा 80% से अधिक परिणाम ये भी देता ही है।*
[1/14, 8:51 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
pineapple juice एक option है जो कभी थोड़ी मात्रा में लिया जा सकता है, जब हम इतने पथ्य देते है तो रोगी जिसमे प्रसन्नता अनुभव करे उसके मन की भी तथा जो हानि ना करे करने देनी चाहिये। आखिर 18 वर्ष का fast food culture का युवा बालक ही तो है।*
[1/14, 8:52 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*आभार वैद्य माधव जी 🌹🙏*
[1/14, 8:57 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*भल्लातक क्षार के गुण देखिये अग्निमांद्य, अजीर्ण, उदावर्त, गुल्म, ग्रहणी से ह्रदय शूल तक ।*
[1/14, 9:22 AM] Dr. Pawan Madan:
जी गुरु जी
कठिन व स्निग्ध
गुरु जी मुझे थोडा मल के स्वरूप के आधार पर कैसे निदान करना है, जिस से विबन्ध की चिकित्सा उचित रूप से कर सकें, ऐसा मार्गदर्शन करेंगे तो मैं आपका बहुत बहुत आभारी रहूंगा।
🙏🙏🙏
[1/14, 9:24 AM] Dr. Pawan Madan:
धन्यवाद गुरु जी
यही जानना चाह रहा था
इस प्रकार तो अच्छी प्रकार से सब रोगी ले सकेंगे।
🙏
[1/14, 10:22 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*पवन जी, आजकल तो अधिकतर रोगी ऐसे मिलेंगे ही क्योंकि शीत ऋतु है, मक्की की रोटी, बाजरे की रोटी या खिचड़ी, मूंगफली का अधिक सेवन, सरसों का साग पर घी सेवन से डरते है कि cholesterol की वृद्धि ना हो मगर गाजर का हलवा जो दुग्ध और खोया में बनता है वो सेवन करते है जिस से अधिकतर लोग यही कहते है कि मल कठिन हो जाता है और स्निग्ध भी ।*
[1/14, 10:35 AM] Dr. D. C. Katoch sir:
Suprabhat avum Makar Sakranti ki shubh kamanayon ke saath- Yeh samajhana avashyak hai ki Vivandh lakhan hai vyadhi nahin. Isliye Udavart, Anaha, Vishtabadhajirna, Pakvashayegat Vaat aadi mein se kounsi vyadhi hai yeh nirdharit kar lene par hi vivaddh mala ke swaroop ko anya lakshano ke pariprekshya ke anusaar apnaya gaya chikitsa sootra aur aushadh vyavastha hi safal hoti.
[1/14, 10:52 AM] वैध आशीष कुमार:
प्रणाम गुरुदेव चरण स्पर्श,
भल्लातक क्षार आदि औषधि कहाँ से प्राप्त कर सकते हैं🙏🏻🙏🏻
[1/14, 11:01 AM] Dr. S D Khichariya:
नमस्कार वैद्य श्री सुभाष शर्मा जी 🙏
आपके जिस कष्टसाध्य व्याधि का सरलतम चिकित्सा कर रुग्ण को राहत दी है
साधुवाद आपको 👏
[1/14, 11:02 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
सुप्रभात एवं मकर संक्रान्ति की शुभकामनाओं सहित सादर - सप्रेम नमन सर 🌹🙏 विबंध के लिये आनाह का भी भली प्रकार अध्ययन करें तो विबंध और अधिक स्पष्ट होता है, इसका अधिष्ठान - आमजन्य आमाश्य से और पुरीषज पक्वाश्य से संबंधित हैं।*
*जिस रोग में पक्वाश्य अथवा प्राकृत अधो मार्ग से मल और वात की प्रवृत्ति ना हो उसे आनाह समझें और विबंध आनाह का ही एक भाग है और 'आनाहस्तु विबन्ध: स्यात्' एसा भी कहा है।
'आमं शकृद्वा निचितं क्रमेण भूयो विबद्धं विगुणानिलेन प्रवर्तमानं न यथास्वमेनं विकारमानाहमुदाहरन्ति'
माधव निदान 27/17
अर्थात स्व: कारणों से प्रकुपित वायु आम और मल को शुष्क कर ग्रथित कर देती है। वर्तमान समय की कब्ज, विबंध या साधारण भाषा की constipation यही है।*
*विबंध प्रत्यक्ष रूप में हेतु एवं अंशाश कल्पनानुसार वात के रूक्ष गुण से संबंधित अवस्था है। विबंध में एक अथवा अनेक दिन तक भी मल का त्याग नही होता और मल का रूक्ष होना भी संभव है। आजकल जो आहार चल रहा है जैसा हम शीत ऋतु का लिख कर चले है ये अल्पकालिक विबंध बहुत मिलती है जो आहार-विहार और दिनचर्या से ठीक हो जाता है।*
[1/14, 11:09 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*सब आप जैसे विद्वानों का स्नेह एवं आशीर्वाद है 🌹🙏*
[1/14, 11:19 AM] Dr. D. C. Katoch sir:
For effective management of Vivandha, one has to first ascertain the Vyadhi (Dosh-Dusyasammoorchhana Janito hi Vyadhi) of which Vivandha is one of the symptoms. Aanah, Vishtabadhajirna, Pakvashayegat Vaat, Adhrangvaat, Vishtambh etc and above all Kroor Koshth itself could be the underlying cause (Hetu/ Nidan) of Vivandh. Ayurvedic Chikitsa Siddhant considers Nidan Parivarjan as the first step of treatment plan. So first explore the underlying condition responsible for Vivandh and treat that condition i.e. do Nidan Parivarjan followed by other steps of treatment required for samprapti vighattan of underlying Vyadhi.
[1/14, 11:31 AM] Dr. Shashi:
पक्वाशय स्थित वायु मल में उपस्थित जलीय अशं को शुष्क कर देता है, जिससे मल कठिन हो जाता है ।
[1/14, 11:48 AM] Dr. D. C. Katoch sir:
Namo Namah Ji, fully agree to your explanation and viewpoint. However. Vivandha as such is not described as Vyadhi in shastra, so it has be considered as symptom (lakshan) of some underlying Vikriti. Appropriate treatment of that Vikriti will automatically lead to management of Vivandh otherwise practitioner may resort to symptomatic treatment with some carminative/ laxative/ purgative drug and dietary modulation.
[1/14, 11:59 AM] Dr. Pawan Madan:
Pranaam sir.
Ji sir. We encounter many types of vibanadh in different vyaadhis and I want to discuss each of these.
🙏🙏
[1/14, 12:00 PM] Dr. Shashi:
Rounded dried out masses of stool indicates muscular dysfunction of intestinal walls also, as is peristalsis is well coordinated stool will be passed out, but when peristalsis in not coordinated it caused stool to stay in intestinal lumen and movements of vayu goes on, in that segment only, this makes the masses of stool.
?????
[1/14, 12:10 PM] Prof. Giriraj Sharma:
सादर नमन आचार्य श्री
🙏🏼🙏🏼🌹🙏🏼🙏🏼🌹🙏🏼🙏🏼
दुष्य- रस रक्त मांस
स्रोतस दुष्टि- अन्न रस रक्त मांस एवं मूत्र,,,
मेद के परिपेक्ष्य में वृक्क अश्मरी के उपद्रव समझ आ गया परन्तु ,,,,,
पित्ताशय (GB) अच्छपित्त के परिपेक्ष्य में भी अगर ग्रहण करे तो इसे मल पित्त समझे या दोष पित्त,,,
🙏🏼🙏🏼🙏🏼🌹🙏🏼🙏🏼🙏🏼
[1/14, 12:11 PM] Dr. Pawan Madan:
Ji 🙏
जी क्या हम मल का स्वरूप देख कर ये निश्चित कर सकते हैं के किस हेतू से विबन्ध है?
क्योंकि आम तौर पर मल का स्वरूप बदलता रहता है?
[1/14, 12:12 PM] Dr. Pawan Madan:
Ji sir.
Always do like that.
And in this process , my question was about ....weather we can decide the vyaadhi on the basis of mala as seen ...as one of the diagnostic tools?
[1/14, 12:13 PM] Dr. Pawan Madan:
Ji sir.
My point of concern is the same.....other than the laxatives......
🙏
[1/14, 1:20 PM] Dr. Vandana Vats Madam Canada:
सादर प्रणाम सर
🙏🙏
आपके द्वारा वर्णित चिकित्सा पद्धति नयी दिशा दिखाती है और नया उत्साह ऊर्जावान करती है।
वृक्काश्मरी में भी रुग्ण को आराम आ गया, पित्ताशय अर्बुद के साथ साथ
धन्यवाद 🙏🙏
समस्त गुरुजन को मकर संक्रांति की शुभकामनाएं
🙏💐🙏
[1/14, 1:45 PM] Dr. D. C. Katoch sir:
Combined effect of water & fibre (indigestible) contents of the food, extent of digestibility of food, tone of the intestinal muscles, neural pathways including gastrocolic reflex, physical activity and emotional status of the persons determines the consistency and nature of stool mass.
[1/14, 1:50 PM] Dr Kaamini Dheeman AIIA, Delhi :
मूत्र परीक्षा के समान ही मल परीक्षा में समस्त विधियों का विधान है l मात्रा, प्रवृत्ति, संहनन, वर्ण, गंध, सरक्तता,. सपूय, सकृमि, आमता, निरामता, सकफता आदि l यह परीक्षण विबंध, विसूचिका, अतिसार, प्रवाहिका, ग्रहणी, रक्तपित्त, कामला, जलोदर, राजयक्ष्मा आदि में सामान्य रूप से किया जाता है l विबंध में मल की कठोरता, मलत्याग में कठिनाई, अल्प मात्रा में मल, आटोप, आनाह आदि च. चि २८ में निर्दिष्ट है l
विबंध, आनाह एवं उदावर्त तीनो में पुरीष संग होता है अपितु विभेदक लक्षण देखे तो विबंध में पुरीष संग एवं अपान संग, आनाह में पुरीष संग, अपान संग के साथ आध्मान भी मिलता है तथा उदावर्त में पुरीष संग, अपान संग एवं आध्मान के साथ अपान वायु का उर्ध्व गमन भी होगा l
[1/14, 1:51 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*सादर नमन आचार्य गिरिराज जी , अगर देखा जाये तो '“धातवश्च मलाश्चापि दुष्य-न्येभिर्यतस्ततः, वातपित्तकफा एते त्रयो दोषा इतिस्मृताः” दोषा इत्यत्र दुष वैकृत्ये इति दुषधातोःदुष्यन्त्ये भिरिति वाक्ये अकर्त्तरि च कारके संज्ञाया'
दोष धातुओं और मलों को दूषित करते हैं ।यहां पित्त दूष्य अर्थात मल स्वरूप अधिक है क्योंकि यह दूषित हो कर अश्मरी एवं sludge का भी निर्माण हो रहा है। इस विषय में आपका क्या दृष्टिकोण है क्योंकि आयुर्वेद में अनेक विषय ऐसे हैं जो उस तरह से स्पष्ट नही है जैसा हम चाहते है जैसे gall bladder भी उनमें एक है।* ❤️🌹🙏
[1/14, 1:58 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*ये कोई इतने बढ़े केस होते नही जितना समझा जाता है, स्रोतोमय शरीर है । सीधा स्रोतस को देखें और दुष्टि क्या है ? तीन व्याधि मिली, तीन भिन्न भिन्न स्रोतस और स्रोतोदुष्टि तीनों में एक संग दोष । शेष युक्ति, अनुभव एवं अन्य भाव है।*
🌹🙏
[1/14, 1:58 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*केवल हमने संग दोष ही तो दूर किया है।*
[1/14, 2:00 PM] Dr. D. C. Katoch sir:
Very apt and brilliant explanation👌. There are certain conditions associated with frequent passing of constipated stools, may be in the form of pellets. This form of Vivandh in Ayurveda is designated as Vid-bheda.
[1/14, 2:20 PM] Dr. Pawan Madan:
🙏🙏🙏👌🏻👌🏻
Vibandh id more than just hard stools..
[1/14, 2:21 PM] Dr. Satish Jaimini:
बहुत विचारणीय बिंदू हैं ये इन सब की विभेद कर चिकित्सा से सटीक परिणाम मिलते हैं डॉ साब
[1/14, 2:22 PM] Vd. Mohan Lal Jaiswal:
सादर वन्दन वैद्यवर जी
औषधान्नविहाराणाम् का अत्युत्तम सुसंयोग जैसे त्रिवेणी।
चिकित्सा की इस पावन त्रिवेणी पर मकरसंक्रांति की शुभकामनाएं व हृदयाभिनन्दन ।
जैसे वीर्यसंक्रान्ति में द्रव्यों के वीर्य की संक्रान्ति गोक्षुरादि क्वाथ कल्प में कराकर रुग्ण को आरोग्य प्रदान किया वैसे मकरके सुर्यदेव समस्त जगत को आरोग्य प्रदान करें।
एक निवेदन जिन रुग्णों को भल्लातक क्षार अनुकूल नहीं होता उन्हें भल्लातक की गोडम्बी (Karnel of Bhallatak) से निर्मित भल्लातक क्षार दें और परिणाम से सबको सुखबोध प्रदान करें।
जय हो स्वनाम वैद्य वरजी।
सद्गुरु देव आचार्य प्रियव्रत शर्मा जी नमः
[1/14, 2:59 PM] Dr. D. C. Katoch sir:
No, merely on the basis of mala pariksha (Stool examination), we can not and we should not fix the underlying cause of Vivandh.
[1/14, 3:00 PM] Dr. D. C. Katoch sir:
and the Vyadhi also.
[1/14, 3:05 PM] Vd. V. B. Pandey Basti(U. P. ):
🙏Sir with due respect I would like to add that stool analysis plays vital role in making true prakriti parikshan and differential diagnosis. Say stool sticking to the sheet hands confirms aamaj stool peculiar pungent smell confirms worms infestation.
[1/14, 3:54 PM] Dr. Pawan Madan:
Ji sir
I understand. Thats why I wrote....as one of the diagnostic tools.
[1/14, 6:27 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*शुभ सन्ध्या एवं मकर संक्रान्ति की शुभकामनाओं सहित सद्वचनों के लिये ह्रदय तल से आभार आचार्य श्री । भल्लातक की गोडम्बी से निर्मित क्षार एक नवीन सुझाव है । इसी प्रकार समय समय पर नवीन कल्पनाओं से परिचित कराते रहे 🌹❤️🙏*
[1/14, 7:04 PM] Prof. Giriraj Sharma:
*सादर नमन आचार्य श्रेष्ठ,,,,*
*जब परिणाम सुखद है तो निश्चित ही सम्प्राप्ति विखंडन हुआ है, सम्प्राप्ति विखंडन ही चिकित्सा का श्रेष्ठतम सिद्धांत है जिसमे आपका कोई सानी नही,,,,,*
*शास्त्रोक्त चिकित्सा सिद्धांत स्वतः ही परीक्षित होते है आप उन्हें पुनः उसी कसौटी पर सुखद परिणामप्रद बनाकर इन सिद्धांतों को विश्वनीय बनाते है आचार्य श्रेष्ठ,,,,*
*मुझे सिर्फ GB में जो stone बना वो रक्त मल पित्त है इस पित्त दुष्य के भेदन लेखन में प्रयुक्त औषधियों एवं रक्तवह स्रोतस मूल यकृत प्लीहा के परस्पर अनुमेयता पर संशय था परन्तु आगे सम्पूर्ण लेख पढ़कर एवं रिपोर्ट देखकर संशय निवारण हो गया,,,,*
*ह्रदय से आपको नमन एवं साधुवाद*
🌹🌹🌹🙏🏼🌹🙏🏼🌹🌹🌹
[1/14, 10:32 PM] Prof. Vd. Prakash Kabra Sir:
बहोत ही सफल चिकित्सा. उपरोक्त चिकित्सा सफल होने पर भी मै उपरोक्त औषधी में पाषाणभेद को add करे तो क्या परीणाम होगा ?
[1/14, 11:32 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*पाषाण भेद भी मेरी प्रिय औषध है और अश्मरी हर क्वाथ में मैं इसकी मात्रा कई बार दे तीन गुणा अधिक देता हूं अगर इस रोगी को देते तो परिणाम की तीव्रता में वृद्धि करता। *
*जिस प्रकार की संतर्पण जन्य व्याधियां आजकल हैं और विशेषकर धनाढ्य एवं सुख सुविधा सम्पन्न वर्ग में तो वहां जरा देखे सु चि 11/12 'पादत्राणातपत्रविरहितो....मृगै: सह वसेत्।' प्रमेह रोगी बिना जूता या छाता ले कर, भिक्षावृत्ति धारण कर एक ग्राम में एक दिन ठहरे, मुनि समान इन्द्रियों को वश में करे, सौ योजन या इस से अधिक यात्रा करे... आमलकी, कैथ, पाषाणभेद का फलाहार करे, मृगों के साथ रहे.. गौमूत्र सेवन करे ... कृषि करे, कूप खोदे, वेदाध्ययन करे । और आगे श्लोक 13 में '... संवतसरादन्तराद्वा प्रमेहात् प्रतिमुच्यते' इस प्रकार का आचरण कम से कम एक वर्ष तो करे, डल्हण कहते हैं 'परिक्रमणं चंक्रमणं गतागतामेत्यर्थं : सर्वतो भ्रमणमित्यन्ये' । यहां पाषाण भेद के फलाहार का भी वर्णन है।*
पाषाण भेद-
'भेदनो हन्तिदोषार्शोगुल्म कृच्छ्राश्महृद्रुजः योनिरोगान्प्रमेहांश्च प्लीहशूलव्रणानि च' 👌👌👌*
[1/14, 11:35 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*आदरणीय आचार्य द्वय लक्ष्मीकान्त द्विवेदी जी एवं मोहनलाल जायसवाल जी से विनम्र निवेदन 'पाषाणभेद का फलाहार ' इस पर भी किंचित प्रकाश डालने की कृपा करें।*
[1/15, 4:52 AM] Vaidya Sanjay P. Chhajed:
क्या पाषाण भेद का फल होता है? और वह आद्र मिलता है?
[1/15, 5:02 AM] Vaidya Sanjay P. Chhajed:
Coleus forskohlii is an herb historically used in Ayurveda (Ayurvedic medicine).
Today, Coleus forskohlii is used as a fat burning supplement.
The main bioactive ingredient in Coleus forskohlii is called forskolin. Through forskolin, Coleus forskohlii supplementation may increase testosterone, and protect against cancer and inflammation. Further research is needed to confirm these effects, since forskolin is most often used as a research tool in vitro, or outside the body, like in a test tube or petri dish. Forskolin may act differently inside the body.
Forskolin increases cellular levels of a molecule called cyclic adenosine monophosphate (cAMP). Elevated cAMP levels are associated with increased rates of fat loss, and can improve the effects of other fat burning compounds.
Forskolin is still being researched for its effects on testosterone and fat loss, but preliminary evidence is promising.
The part used is flower
[1/15, 5:11 AM] Vd Dilkhush Tamboli:
🙏🙏🙏🙏🙏🙏
बहोत बढिया सर
सर
क्षार/यव इत्यादि के सेवन से कर्षण होकर रुग्ण का वजन मे कुछ कमी आयी क्या?
🙏🙏🙏🙏🙏🙏
[1/15, 8:21 AM] Dr. D. C. Katoch sir:
Suprabhat, Shubhamastu. Meri to priyatama hai Pashanbhed (Bergenia ligulata). 10 mein se 7 ashmari rogiyon ko (vishesh roop se calcium aur phosphate stones/concretions hone par) Pashanbhedadi Kwath deta hun Shudh Narsaar ya Sangeyahood (Badarpashaan Bhasm) mila kar. Acidic urine pH wale stones/concretions mein bahut labhaprad hai yeh kwath.
[1/15, 8:43 AM] Prof. Lakshmikant Dwivedi Sir:
Bazar me to milte kaam me lete dekha nahi.
Shreyasi ki tarah Pashan bheda nam ka ekadhik vanaspatik dravya vyajar me hai.
Aap kise sanstut karte hain,to uske vidhya me mantavya dena hai?
Ya Acharya sushrut samhita ke Pashan bheda ka.
[1/15, 12:17 PM] Vaidya Ashok Rathod Oman:
🙏🙏🙏🌹🌹🌹 *केवल 6 सप्ताह में अद्भूत चिकित्सा* ✨
[1/15, 12:44 PM] Dr. D. C. Katoch sir:
Samprapti and corresponding treatment approach of the atypical case has been presented brilliantly. 🤘Must appreciate your clinical skill and systematic presentation. Important point with regard to Pachak Pitta and its variable pH. Normally acidic pH is
[1/15, 12:59 PM] Dr. D. C. Katoch sir:
Samprapti and corresponding treatment approach of the atypical case has been presented brilliantly. 🤘Must appreciate your clinical skill and systematic presentation. Important point with regard to Pachak Pitta and its variable pH. In the normal course of digestion first acidic pH of digestive juices is required in Amlavastha Pak and then alkaline pH in Katu Avastha pak. That is why fresh secreted Bile is alkaline (around 8.20 pH) and on getting stored in the gall bladder for 4-5 hours without eating becomes acidic (pH less than 7.00). In your case probably there was continous availability of Saam Pitta of Acidic pH and the Bhallatak Kshar worked well to modulate the pH and control the disease condition.
[1/15, 1:06 PM] Dr. Vinod Sharma Ghaziabad:
So scientific evaluation 👌🏿👌🏿👌🏿👌🏿.
Thanks a lot .
[1/15, 1:18 PM] Dr. Satish:
Kshar have achintya shakti.
Perhaps
Nano particles present in bhallatak kshar enter and break down the molecules in aamavasth of the disease process.
My hypothesis
🙏🏻
Correct me if needed.
[1/15, 2:22 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
आपका ये मैसेज पढ़कर और कल पवन जी ने भी रोगी के वजन के विषय में पूछा था, अभी रोगी से फोन कर के आज का वजन पूछा तो 73 kg था जब हमारे पास आया तो 80.5 kg था।*
[1/15, 2:24 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*ये तो 100% कार्य करेगा और इस प्रकार के योग और संबधित रोग ही हमें अत्यन्त यशस्वी बनाते है।* 👌🙏
[1/15, 2:32 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*ये सब व्याधियां प्राचीन काल में भी थी और उनकी सफल चिकित्सा भी थी ही पर उनका ज्ञान संस्कृत में अल्प शब्दों में सूत्र रूप में सूत्रबद्ध किया गया है।हेतु,सम्प्राप्ति और उसको विघटन का चिकित्सा सूत्र ये बहुत महत्वपूर्ण ज्ञान है और ये समझ आते ही गंभीर रोग भी साधारण दिखने लगते हैं।*
[1/15, 2:37 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
नमो नमः सर 🌹🙏 आपने आयुर्वेदीय पक्ष की पूर्ण विस्तृत व्याख्या कर दी ।*
[1/15, 3:39 PM] Vd Dilkhush Tamboli:
धन्यवाद सर
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
[1/15, 3:39 PM] Vaidya Ashok Rathod Oman:
*जी गुरुवर्य। आप जैसे सिद्धहस्त गुरुजन के आशिर्वाद से कायसंप्रदाय अब सभी का विस्तृत रूप से और सूक्ष्मतम भेद कर के एक नया इतिहास संपन्न करेगा इस बात में जरा सी भी शंका नही।*
[1/15, 3:51 PM] Vd. Mohan Lal Jaiswal:
ऊँश्रद्धेय सादर प्रणाम
स़ु. चि.11/12 मे ं
.........आमलककपित्थतिन्दुकाश्मन्तकफलाहारो...है।
अतःपाषाणभेद के फल न होकर तिन्दुक का फल
हिन्दी-गाभ या तेदू फल
Diospyrus peregrina
अश्मन्तक फल
हि-गजना, राज. में जिसे अष्ट या अष्टा कहते हैं।पीपल की तरह पत्र वाला छोटा वृक्ष।
Ficus rumphi
तिन्दुक बाजार में प्रायः फल नहीं मिलता तो इसकी त्वक पंसारी के उपलब्ध है न।
या चीकू का अपक्व फल या अर्ध पक्व उपलब्ध है न जी।
अश्मन्तक फल पीपलफल जैसा ही परन्तु प्रकृति में हम जैसे वनचारियों को तो उपलब्ध परन्तु बाजार में इसके स्थान पर शहतूत फल है न जी ।
मौलश्री का फल भी कईबार बाजार मे ं अपनी सुन्दर पीत वर्ण छटा बिखेरता हुआ मिल जाता है जो शिव जी का भी प्रिय फल है।
हर हर महादेव शम्भू काशी विश्वनाथ माँ गंगे।।
सद्गुरु देव आचार्य प्रियव्रत शर्मा जी के पदारविन्द में श्रद्धावनत ।
[1/15, 5:11 PM] Vd. Mohan Lal Jaiswal:
मुझे लगता है कि सूत्र मे ं 'अश्मन्तक'(अश्म+अन्तक) समझ कर हिन्दी टीकाकारों ने अश्म* पत्थर का अन्त#भेदन करने वाला मानकर इसे पाषाणभेद अर्थ कर दिया होगा जबकि दोनों. भिन्न द्रव्य हैं।
पाषाणभेद का पर्याय अश्मघ्न, अश्मभिद है जोBergenia lig ulata है। जिसमें गुलाबी पुष्प तो आते परन्तु फल अत्यंत सूक्ष्म जो सामान्य तः दर्शित भी नहीं होकर आतेके बाद सूक्ष्भरुप से झडकर नये पौधे तैयार होतेहैं।
[1/15, 5:24 PM] Dr. D. C. Katoch sir:
Bilkul sahi pakade hain aap, Ashmantak aur Pashanbhed ek nahin hain.
[1/15, 7:57 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*शुभ सन्ध्या सहित सादर नमन आदरणीय आचार्य जायसवाल जी, आपकी ये post भी save करने योग्य है। द्रव्य गुण विषयो का पता होना और उनकी सूक्ष्मता तक जा कर आत्मसात कर जीना ये दूसरी श्रेणी है और आप इसे जीने वाली श्रेणी के विद्वान है। एक फल ना भी मिल पाये तो कोई दुख नही उसके बदले फलों की श्रंखला की विस्तृत श्रेणी का वर्णन वो भी सर्वसुलभ 👍👌🙏❤️ आपको अनेको साधुवाद - ज्ञान वही जो संशयों से मुक्त कर दे।*
[1/15, 10:40 PM] Vd. Mohan Lal Jaiswal:
आदरणीय jaiswal Sir से निवेदन है कि पाषाणभेद plant पर कुछ प्रकाश डालने की कृपा करें।
क्या उपर्युक्त दोनों plants को पाषाणभेद के रुप में लिया जा सकता है ??
असली पाषाणभेद ( Berginia ligulata ) बाजार में मिलता है ??
👏👏
[1/15, 10:40 PM] Vd. Mohan Lal Jaiswal:
मान्यवर सादर शुभसन्ध्या
पाषाणभेद नहीं हो क्यों यह अश्म का भेदन करके उत्पन्न नहीं होता(प्राकृतिक वास वैसा नही (Habitate) जैसा Bergenia log ulata का होता है न ही वटपत्री पर्याय इसमें घठित होता।
उपरोक्त पर्णबीज पर हमलोग कार्य किये हैं यह B.ligu जैसा अश्मरी भेदन भी Potentरुप से उतना नहीं करना जैसा वह करता है।
[1/15, 10:40 PM] Vd. Mohan Lal Jaiswal:
भेदन के सिद्धांततः सामान्य रुप से तीक्ष्ण गुण होना चाहिये जो B. ligu में है न कि पर्णबीज में
पर्णबीज बहुरुपिया है ।
आज भगवान भास्कर मकर राशि में संक्रमित होकर प्रातः उदित हुये हैं(उदयात तिथि में आज)ः
अतः काशी विश्वनाथ पंचांग के अनुसार आज म.संक्रान्ति है जो.सूर्यदेव की तेजस्विता तीक्ष्ण गुण के लिये उत्तर दायी है जो वटपत्री को तेजस्वी कर रही है पर्णबीज के सापेक्ष मे ं।
जिसमें भेदन +मूत्रल दोनों ही कर्म सक्षम रुप से करे वही शास्त्रोक्त पाषाण भेद है जो वटपत्री में सक्षम रुप से मिलता है।
हा पर्णबीज रक्तस्तम्भक, व्रणशोधक रोपक अच्छा है।
बीज में शक्ति पत्र के सापेक्ष अधिक होती है। वटपत्री का उद्भवन बीज से जबकि पर्णबीज का पत्रकलिका से होता है।
हाँ पिप्पल, पलाश का पत्र अद्वितीय है।
कहीं कलिका का भी महत्व हैअन्य प्रसंग में।
B.ligu.भारतीय है जबकि पर्णबीज मूलतः नहीं।
अतः पाषाणभेद को सादर नमन करते हुये साहचर्यभाव से पर्णबीज को समादर ।
समादर सभी सुधीजनों को कि तटस्थभाव से विचार करें कि तिक्त रस द्रव्यों के साथ पठित रास्ना तिक्त होनी अपेक्षित है जबकि Alpinia कटु है, साथ ही इसका हृदय पर अवसादक प्रभाव माना जाता है व लघु है जबकि अनुवासनोपग में पठित रास्ना में गुरु गुण होने पर अच्छी तरह वातशमन व अनुवासन कर्म करेगी जो P.lanceo.में गुरु गुण है।
मकरसंक्रांति के पावन पर्व सबकी तेजस्विता में वृद्धि होकर द्रव्यगुण का संवर्धन हो,इन्हीं शुभ भावों के साथ सर्व सभासदों को सादर अभिवादन।
ऊँ सद्गुरुदेव श्रद्धेय आचार्य प्रियव्रत शर्मा जी के पदरज को नमन वन्दन ।
हर हर महादेव ऊँ शम🙏🚩
[1/15, 10:40 PM] Vd. Mohan Lal Jaiswal:
वास्तविक पाषाणभेद B. ligu बाजार में प्रमुख प्रतिष्ठानों पर प्रयास करने पर मिलता है।
[1/15, 10:40 PM] Vd. Mohan Lal Jaiswal:
ऊँ हम शिक्षक हैं इसलिये विद्यार्थियों को आयुर्वेद के तल से सादृश्य करते हुये पहचान बिन्दु बताने से अधिक सुबोध होता है जैसे शालवत पत्र हों जिसके वह शालपर्णी । इसी तरह अन्य द्रव्यों का नामाभिधान भी हमारे शास्त्र में मौलिक रुप से किया गया है।
एक दृष्टि गुरु देव की कृपा से सभी सुधी जनों को दे रहा हूँ जिसके आधार पर बायोडाटा वृद्धि हेतु ग्रन्थ कोई लिख दे परन्तु स्वान्तः सुखाय तुलसी रघुनाथ गाथा की तरह सर्वजनसुबोध भाषा शैली मे ंसत्य ग्रन्थ रचना समादृत होती है।
[1/15, 10:40 PM] Vd. Mohan Lal Jaiswal:
हमें यह भी गम्भीर चिन्तन करना. है कि उक्त कथित तीनों अरिष्टक स्रोतों मे ं मूलतः कौन सा है?
[1/15, 10:43 PM] Vd. Mohan Lal Jaiswal:
ऊँ शुभरात्रि जी
पाषाणभेद की बात है तो आज ही दूसरे वर्ग में इस पर जो प्रेषित किया है वह सभी आपसही सभी मानद सभा सदों को प्रेषित है√🚩√ऊपर कृपया अवलोकन करें जी।
[1/15, 10:44 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
बहुत ही सार्थक विषय आपने पुनः आरंभ कर दिया, इस पर पहले भी चर्चा चली थी कि किस पाषाण भेद को स्वीकार करें। बाजार मे इसकी बहुत सी qualities है और कुछ तो ornamental हैं।*
[1/15, 10:51 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*पाषाण भेद पर इतना सूक्ष्म और गंभीर कार्य आपके द्वारा मिल रहा है ये हमारा सौभाग्य है ।* 🌹🙏
[1/16, 10:53 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*जब फलाहार की चर्चा आरंभ की है तो लक्ष्य तक अवश्य पहुंचेंगे ऐसा मेरा दृढ़ विश्वास है क्योंकि आपका मार्ग सही है ।* 👌❤️🙏
********************************************************************************************************************
Above case presentation & follow-up discussion held in 'Kaysampraday (Discussion)' a Famous WhatsApp group of well known Vaidyas from all over the India.
Presented by
Vaidyaraj Subhash Sharma
MD (Kaya-chikitsa)
New Delhi, India
email- vaidyaraja@yahoo.co.in
Compiled & Uploaded by
Vd. Rituraj Verma
B. A. M. S.
Shri Dadaji Ayurveda & Panchakarma Center,
Khandawa, M.P., India.
Mobile No.:-
+91 9669793990,
+91 9617617746
Edited by
Dr.Surendra A. Soni
M.D., PhD (KC)
Professor & Head
P. G. DEPT. OF KAYACHIKITSA
Govt. Akhandanand Ayurveda College
Ahmedabad, GUJARAT, India.
Email: surendraasoni@gmail.com
Mobile No. +91 9408441150
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