WDS 89: Therapeutic use of 'Gud-haritaki' by Vaidyaraja Subhash Sharma, Prof. Mohan Lal Jayasawal, Prof. Laxmikant Dwivedi, Dr. D. C. Katoch, Vd. Pawan Madaan, Dr. Ashok Rathod, Prof. Kishor Singh Chudwana, Dr. Sanjay Chhajed, Dr. V. B. Pandey, Dr. Suneet Arora & others
[12/10, 10:52 AM] Dr. Suneet Aurora:
Respected gurus and colleagues, 🙏🏼
A case for guidance.
51y punjabi male, Delhi.
Alcoholic++, smoker non veg history
Diabetes 7yrs under control
2018 Developed alcoholic liver cirrhosis gr 2.
2020- Episodes of raktpitta epistaxis and Malena.
Thrombocytopenia (low platelets~70k) with esophageal varices mild
CT Scan: cirrhosis, portal HTN, splenomegaly, ascites, unconfirmed SOL in liver ? Hepatocellular carcinoma.
Fibroscan: CAP 260dB/m, LEV 75kPA
No alcohol, smoke x 3y
eggs for protein loss.
लक्षण: उद्गार, आध्यमान।
दोष: त्रिदोष- अपान, समान, उदान वात; पाचक पित्त, क्लेदक कफ।
दूष्य: रस, रक्त
स्रोतावरोध (अन्नवह, रसवह)
चिकित्सा आनाह, उदावर्त, रक्तपित्त को सोचते हुए।
आरंभिक चिकित्सा:
आरोग्यवर्धिनी, महाशंखवटी, पुनर्नवा मंडूर, भूमिआमलकी, फलत्रिकादि कषाय
1 माह
आनाह, उद्गार में कमी, पाचन, मल ठीक हुआ।
Reports: bilirubin 4.74 ➡️ 3.3, SGPT 51➡️32, GGT 115➡️ 197, PLT 80.
आगे की चिकित्सा के लिए गुरुजनों से मार्गदर्शन का निवेदन 🙏🏼
[12/10, 12:38 PM] Dr. Surendra A. Soni:
गुड़ हरीतकी प्रयोग प्रशस्त है । हरीतकी 5-10 gms + गुड़ 5-10 gms BD or OD in morning.
हमने कई बार इसकी चर्चा की है । आ सुभाष सर और कई साथियों ने इसका प्रयोग किया है ।
चरक संहिता अनुसार 'निर्जल निर्लवण निरन्न और क्षीरवृत्ति चिकित्सा अपेक्षित है ।
ब्लॉग पर आ अरुण राठी जी का केस भी उपलब्ध है ।
अर्बुद के लिए आ सुभाष जी और जयसवाल सर द्वारा जिह्वार्बुद केस में उत्कृष्ट चिकित्सा व्यवस्था निर्दिष्ट एवं प्रयुक्त है उसका युक्तियुक्त प्रयोग अपेक्षित है ।
आ सुनीत जी ।🙏🏻🌻
[12/10, 1:43 PM] Dr. Suneet Aurora:
🙏🏼
Sir,
Diabetes में गुड़ हरीतकी इसी dose में चलेगी ?
[12/10, 1:44 PM] Dr. Suneet Aurora:
However, diabetes is in control (HbA1C ~6.5)
[12/10, 1:48 PM] Dr. Surendra A. Soni:
I have used in DM blindly...
Once purgation starts, never observed rise in sugar.
[12/10, 1:50 PM] Vd. V. B. Pandey:
Well one of my pt.of fissure known case of NIIDM is well and fine with gud hareetkee.
[12/10, 2:02 PM] Prof.Vd.Arun Rathi:
After t/t what about the condition of SOL in liver.
[12/10, 2:19 PM] Dr. Pawan Madan:
रोगी का वजन कितना है?
रोगी का इस समय सत्व कितना या कैसा है?
[12/10, 2:25 PM] Dr. Pawan Madan:
👌🏻👌🏻👌🏻
ऐसी शोधन व्यवस्था आवश्यक है।
[12/10, 2:41 PM] Dr. Pawan Madan:
Weight is reducing.
Need to employ mridu shodhan for at least 15 days with either only haritaki as suggested by Soni sir ir with kutaki haritaki.
Then to start...
Punarnava and Bhringraj.
With cap Amplycure DS , cap cytozen and phaltrikaadi kwaath.
[12/10, 2:46 PM] Dr. Suneet Aurora:
🙏🏼
[12/10, 3:01 PM] Prof.Vd.Arun Rathi:
Ok
[12/12, 10:32 AM] Vaidya Ashok Rathod :
प्रणाम आचार्य जी।
🙏🙏🌹🌹
गुड हरीतकी प्रयोजन का मै भी अनुकरण कर रहा हुं, जब से आचार्य श्रेष्ठ सुभाष सर से ये गुरुमंत्र प्राप्त हुआ हैं। अनेक रूग्ण मे इसका अमृतवत परिणाम मिले हैं। औषधीयां उपलब्धी की कमी होने कि अवस्था मे भी गुड हरीतकी ने मेरी चिकित्सा सरल एवं अत्याधिक परिणाम कारक बना दी हैं। 🙏🙏🙏🌹🌹🌹
[12/12, 11:53 AM] Dr. Surendra A. Soni:
आपकी पुष्टि हम सब के लिए बहुमूल्य है आचार्य जी ।
हार्दिक आभार !
🌹🙏🏻😍
[12/12, 11:58 AM] Vd. V. B. Pandey :
🙏सहमत।
[12/13, 5:41 PM] Dr. Ramesh Kumar Pandey:
आदरणीय आचार्य
प्रणाम👏👏
गुड हरीतकी का प्रयोग आचार्य चरक ने चिकित्सा स्थान में अर्श अधिकार अध्याय में वर्णित किया है।
जिज्ञासा👏👏
गुड हरीतकी का प्रयोग अर्श के अतिरिक्त किन किन व्याधियों में किया जा सकता है ??
आचार्य चरक ने गोमूत्र सहित गुड हरीतकी प्रयोग का निर्देश दिया है।
क्या गोमूत्र सहित गुड हरीतकी प्रयोग करने पर कुछ विशिष्ट प्रभाव मिलते हैं ??
[12/13, 6:03 PM] Prof. Giriraj Sharma:
नमस्कार
अर्श रोग के जितने उपद्रव रोग है उनमें सामान्य नियम से किया जा सकता है ।
[12/13, 6:06 PM] Dr. D. C. Katoch sir:
सिरा कुटिलता srotodushti में और सिराकुटिलतावत विकृतियों में गुड़ हरितकी का प्रयोग प्रभावी होता है।
[12/13, 6:11 PM] Dr. D. C. Katoch sir:
क्या गोमूत्र सहित गुड हरीतकी प्रयोग करने पर कुछ विशिष्ट प्रभाव मिलते हैं ?? इस प्रश्न का उत्तर है - गुड़ हरितकी उन सभी अवस्थाओं में कार्मुक है जहां स्रोतोबंध, वायु विलोमता, मलसंग और मल संगजन्य आवरण है।
[12/13, 6:20 PM] Vd Mayur Kulkarni:
👍👍 गुड - सृष्ट मूत्र शकृत गुड : । हरीतकी सोतोविबंध नाशक अनुलोमक , रसायन है ।
लवणेन कफं हन्ति । पित्तं हन्ति स शर्करा । घृतेन वातजान् रोगान् । सर्वान् रोगान् गुडान्वितः ।
[12/13, 7:28 PM] Dr. D. C. Katoch sir:
तान तान व्याधीन गुड़हरीतकी हन्ति या: या: स्रोतोमलसंग समुत्था:
[12/13, 7:34 PM] Vaidya Sanjay P. Chhajed:
✌️👍
[12/13, 9:23 PM] Dr Shivali Arora:
🙏🏻
[12/14, 8:27 AM] Dr Shivali Arora :
Good morning Sir🙏🏻
Will gud haritaki be helpful in conditions like varicose veins and chilblains?
[12/14, 8:42 AM] Dr. D. C. Katoch sir:
Kyon nahin
[12/14, 10:02 AM] Dr. Ramesh Kumar Pandey:
Thanks Sir👏👏
[12/14, 10:03 AM] Dr. Ramesh Kumar Pandey:
Thanks a lot Sir for guidence👏👏
[12/14, 10:05 AM] Dr. Ramesh Kumar Pandey:
Thank you so much Sir👏👏
[12/14, 10:13 AM] Prof. Lakshmikant Dwivedi Sir:
Gomutra Haritaki ka vikasit swroop hi Eranda bhrashta Haritaki.
Kintu saubhagya se hi koi "Eranda bhrashta Haritaki" me 'Gomutra Haritaki" ke SOP ka anugaman karta ho.🙏☺️
[12/14, 10:18 AM] Dr. Satyam Bhargava झांसी:
Namaste sir
Samjh nai aaya mujhe 🙏🙏🙏
[12/14, 10:25 AM] Vd. V. B. Pandey :
Erenda bhrsj hareetkee may be more beneficial.
[12/14, 11:00 AM] Dr Shivali Arora MD, Ludhiana:
Thanks 🙏🏻
[12/14, 11:00 AM] Dr Shivali Arora:
Thanks Sir🙏🏻
[12/14, 11:08 AM] Dr. Surendra A. Soni:
Answer to Dr. Ramesh Pandey ji with copy pasted the questions....
आदरणीय आचार्य
प्रणाम👏👏
गुड हरीतकी का प्रयोग आचार्य चरक ने चिकित्सा स्थान में अर्श अधिकार अध्याय में वर्णित किया है।
जिज्ञासा👏👏
गुड हरीतकी का प्रयोग अर्श के अतिरिक्त किन किन व्याधियों में किया जा सकता है ??
*Charak has instructed this in Shotha and pleehodar too. Few references compiled below...*
👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻
1. कुष्ठ-
अभया प्रयोजिता वा मासं सव्योषगुडतैला ॥६१॥
2. उदर रोग-
षट्पलं पाययेत् सर्पिः पिप्पलीर्वा प्रयोजयेत् ।
सगुडामभयां वाऽपि क्षारारिष्टगणांस्तथा ॥७८॥
एष क्रियाक्रमः प्रोक्तो योगान् बसंशमनाञ्छृणु ।
क्षीरानुपानां गोमूत्रेणाभयां वा प्रयोजयेत् ।
सप्ताहं माहिषं मूत्रं क्षीरं चानन्नभुक् पिबेत् ॥१५१॥
मासमौष्ट्रं पयश्छागं त्रीन्मासान् व्योषसंयुतम् ।
हरीतकीसहस्रं वा क्षीराशी वा शिलाजतु ॥१५२॥
शिलाजतुविधानेन गुग्गुलुं वा प्रयोजयेत् ।
शृङ्गवेरार्द्रकरसः पाने क्षीरसमो हितः ॥१५३॥
3. अर्श-
सगुडामभयां वाऽपि प्राशयेत् पौर्वभक्तिकीम् ॥६५॥
4. कामला-
चूर्णिताः कामली लिह्याद्गुडक्षौद्रेण वाऽभयाः ॥९८॥
5. अतिसारे-
कृच्छ्रं वा वहतां दद्यादभयां सम्प्रवर्तिनीम् ॥१७॥
तया प्रवाहिते दोषे प्रशाम्यत्युदरामयः ।
जायते देहलघुता जठराग्निश्च वर्धते ॥१८॥
6. वातरक्त-
तक्राभयाप्रयोगैश्च क्षपयेत् कफमेदसी ॥१५७॥
7. योनिव्यापद-
दोषकालबलापेक्षी स्नेहयित्वा विरेचयेत् ।
त्रिवृतामभयां वाऽपि त्रिफलारससंयुताम् ॥२५४॥
8. श्यामात्रिवृत्त अ-विरेचन-
क्षीरमांसेक्षुकाश्मर्यद्राक्षापीलुरसैः पृथक् ॥२०॥
सर्पिषा वा तयोश्चूर्णमभयार्धांशिकं पिबेत् ।
9. पाण्डु-
कफपाण्डुस्तु गोमूत्रक्लिन्नयुक्तां१ हरीतकीम् ।
हरीतकीं प्रयोगेण गोमूत्रेणाथवा पिबेत् ।
जीर्णे क्षीरेण भुञ्जीत रसेन मधुरेण वा ॥६८॥
आचार्य चरक ने गोमूत्र सहित गुड हरीतकी प्रयोग का निर्देश दिया है।
क्या गोमूत्र सहित गुड हरीतकी प्रयोग करने पर कुछ विशिष्ट प्रभाव मिलते हैं ??
*Yes !*
Increased 'Srotoshodhan' effects are there.
आ. रमेश पाण्डेय जी !🙏🏻
[12/14, 11:15 AM] Dr. Ranjit Nimbalkar Sir:
👌🏻👌🏻
सिंधूत्थ शर्करा शुण्ठी कणा मधु *गुडैः* क्रमात्।
वर्षादिष्वभया प्राश्या रसायन गुणैषिणा।।
भाप्र
ग्रीष्म ऋतु रसायन
(कार्यकारण भाव पता नही, उष्ण ऋतु मे उष्ण गुड के साथ?🤔)
[12/14, 11:16 AM] Dr. Ranjit Nimbalkar Sir:
घी के साथ होता तो बात समझ मे आ जाती🙏🏻
मार्गदर्शनापेक्षी🙏🏻🙏🏻
[12/14, 11:36 AM] Dr. Ramesh Kumar Pandey:
आदरणीय आचार्य सुरेन्द्र जी !
सादर प्रणाम👏👏
बहुत ही सुंदर और विस्तृत विवेचना
मार्ग दर्शन करने के लिए बहुत बहुत हार्दिक धन्यवाद👏👏
[12/14, 11:37 AM] Vd DARSHAN KUMAR PARMAR:
👌
[12/14, 11:42 AM] Dr. Surendra A. Soni:
कफ के मधु और वात के लिए तैल भी नहीं है अतः घृत भी नहीं है ।
🙏🏻🌹
[12/14, 11:54 AM] वैद्य नरेश गर्ग:
धन्यवाद सर🙏🙏
[12/14, 12:06 PM] वैद्य नरेश गर्ग:
अजीर्ण के लिए हरीतकी का निषेध बताया है तो वहां क्या हरीतकी का निषेध अकेले एकल रूप में है या किसी अन्य अनुपान रूप से गुड के साथ में लेने पर हम उसका प्रयोग का कर सकते हैं
[12/14, 12:13 PM] Dr. Surendra A. Soni:
नहीं ।
अजीर्ण की अवस्था में पाचनाभाव में सभी काष्ठ ओषधि का निषेध किया जाता है । क्षार अम्लादि द्रव द्रव्य ही प्रशस्त है रसौषध ।
[12/14, 12:15 PM] Dr. Ranjit Nimbalkar Sir:
🙆🏻♂️🤔😁🤣
वर्षा में सैंधव
शरद शर्करा
हेमंत शुण्ठी
शिशिर पिप्पली
वसंत मधु
ग्रीष्म गुड
बाकी 5 समझ मे आते है, षठा नही🙏🏻
[12/14, 12:15 PM] Dr. Ranjit Nimbalkar Sir:
छठा*
[12/14, 12:17 PM] Dr.Pradeep kumar Jain:
प्राकभक्त में गुड़ हरीतकी का अर्श में प्रयोग उत्तम है 🙏🙏🙏
[12/14, 12:49 PM] Prof. Lakshmikant Dwivedi Sir:
Gomutra Haritaki v/s Eranda bhrashta Haritaki.
Sop & formulation compilation & Camper it.
[12/14, 1:00 PM] Dr. D. C. Katoch sir:
सही पकड़े हैं गुरुवर, नमो नमः !!
[12/14, 1:10 PM] Prof. Lakshmikant Dwivedi Sir:
🙏☺️
[12/14, 2:56 PM] Dr. Surendra A. Soni:
नातिश्लेष्मकरो धौतः सृष्टमूत्रशकृद्गुडः|
प्रभूतकृमिमज्जासृङ्मेदोमांसकफोऽपरः||५३||
संभवतः सृष्ट विण्मूत्र, वृंहण, तर्पण और वात प्रशमन होने के कारण निर्दिष्ट किया गया है ।
🙏🏻
[12/14, 6:53 PM] Dr. Surendra A. Soni:
🙏🏻🌹
[12/14, 9:04 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
अति सार्थक एवं उपयोगी संदर्भ 👌👍👏 इसके अतिरिक्त अनेक अनुक्त आधुनिक व्याधियों में भी इनका बहुत प्रयोग हम करते हैं जो अनेक case presentations मे दे चुके है।*
*गुड़ हरीतकी अत्यन्त उपयोगी अनुलोमक और स्रोतोशोधक है और सब से बढ़ी विशेषता कि कभी मल प्रवृत्ति कुछ अधिक भी हो जाये तो गुड़ के कारण दौर्बल्य नही होता। उदर को inches में अगर कम करना हो तो गुड़ की मात्रा कम कर के हम देते हैं। hypothyroidism, pcod, ut. fibroids में तो इसका प्रयोग करते ही हैं और अब हमने नया योग बना लिया है.. गौमूत्र हरीतकी और गुड़ । इसे हम गौमूत्रगुड़हरीतकी कहते हैं। जिन रोगियों को भल्लातक सात्म्य नही होता उनको गौमूत्रहरीतकी या गौमूत्रपिप्पली गुड़ के साथ सेवन कराते है और कई बार तीनों को मिलाकर।*
*स्तन ग्रन्थि में तो यह इतना प्रभावकारी है और शरीर मे ग्रन्थियां होने पर भी यह अति शीघ्र और उत्तम प्रभाव दिखा देता है।*
[12/14, 9:07 PM] Vd. Yashpalsinh A. Jadeja :
👌🏼🙏🏼
[12/14, 9:13 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*🌹❤️🙏 गुड़ हरीतकी हमारा प्रिय योग है और प्रो. सुरेन्द्र सोनी जी से चर्चा के बाद ये और गौमूत्र पिप्पली ने वो सफल परिणाम दिये हैं कि आश्चर्य होता है, बस रोगी की सम्प्राप्ति जरूर बनानी चाहिये क्योंकि उसके अनुसार और रोग की जीर्णता के आधार पर औषध की मात्रा का निर्धारण अत्यधिक सफलता देता है।*
[12/14, 9:19 PM] Dr. Satyam Bhargava झांसी:
Pranam sir
Gomutra haritaki
Jihwatgat roga wala content hai kya
Jisma
Gomutra
Kooth
Hauber
Saunf qwath mai soak kara kar banate hai
Ya ashtang hridaya wala
Jisme gomutra mai haritaki phal ko paka kar churn banate hai,.
Aur phir
Aap
Gomutraharitaki ko gud k saath dete hai
Toh ise gomutragudharitaki naam diya hai.
🙏🙏🙏
[12/14, 9:27 PM] Dr. Surendra A. Soni:
नमो नमः महर्षि !!
🙏🏻🌹😍💖
आचार्य चरक ने योनिव्यापद में निर्दिष्ट किया है ।
👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻
दोषकालबलापेक्षी स्नेहयित्वा विरेचयेत् ।
त्रिवृतामभयां वाऽपि त्रिफलारससंयुताम् ॥२५४॥
पाययेन्मधुसंयुक्तामभयां वाऽपि केवलाम् ।
🙏🏻🌹
[12/14, 10:21 PM] वैद्य ऋतुराज वर्मा:
नमन गुरुवर
[12/14, 10:24 PM] Vd. V. B. Pandey Basti(U. P. ):
🙏मामूली योगों से अप्रत्याशित लाभ कोई आप से सीखे।
[12/14, 10:24 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
🌹🙏 *अच्छा संदर्भ दिया आपने 👌👍 अंतिम पंक्ति पाठान्तर में 'पाययेन्मूत्रसंयुक्तां विरेकार्थं च शास्त्रवित्' अर्थात आयुर्वेद का ज्ञाता चिकित्सक हरितकी को गौमूत्र में पीने के लिये भी विरेचन हेतु दे सकता है अतः गौमूत्र हरीतकी का संदर्भ यहां भी है।*
*चिकित्सा में द्रव्यों का उपयोग हम अपनी युक्ति के अनुसार शोधन,शमन और स्वस्थहितं द्रव्यों के रूप में भी कर सकते है वैसे आचार्य चरक ने 'किञ्चिद्दोषप्रशमनं किञ्चिद्धातुप्रदूषणम् स्वस्थवृत्तौ मतं किञ्चित्त्रिविधं द्रव्यमुच्यते'
च सू 1/68
में द्रव्य दोष प्रशमन, धातु प्रदूषण और स्वस्थहितकर ये तीन प्रकार भी बताये हैं पर हरीतकी शोधन, शमन और ऋतु अनुसार तीनों प्रकार से कार्य करती है।*
*गौमूत्र हरीतकी, गौमूत्र पिप्पली का प्रयोग हम शमन चिकित्सा में बहुत करते हैं जिसके लिये इनकी 500 mg की मात्रा भी पर्याप्त है जो 500-500 mg की वटी के रूप में दिन में दो बार हम रोगियों को देते हैं और 1-1 gm भी शोधन या विरेचन ना कर के कई रोगियों में शमन प्रभाव दिखाती है ये रोगी के बल पर निर्भर करता है, शोधन हेतु हरीतकी की अधिक मात्रा गुड़ के साथ ही दी जाती है। Hypothyroidism रोगियों में गौमूत्र हरीतकी TSH normal आने के बाद 500 mg दिन में दो बार और कुछ समय बाद सप्ताह में दो बार भी पर्याप्त है।*
[12/14, 10:25 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*नमस्कार वैद्य ऋतराज जी 🌹🙏*
[12/14, 10:30 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*ये सभी योग आशुकारी प्रभाव दिखाते है डॉ पाण्डेय जी और हमारी चिकित्सा तो आधारित ही इस प्रकार के योगों पर है। किसी भी जीर्ण विबंध रोगी को आप हरीतकी चूर्ण 4-5 gm गुड़ के साथ सांयकाल 5-6 बजे दीजिये तो प्रातः विबंध दूर होगा ही, इसी प्रकार CLD जलोदर युक्त रोगियों में गौमूत्र पिप्पली दो तीन दिन में ही परिणाम दे देती है।*
[12/14, 10:40 PM] वैद्य मृत्युंजय त्रिपाठी उत्तर प्रदेश:
धन्यवाद सर जी बहुत दिनों बाद आप का मार्गदर्शन मिला 🙏🙏
[12/14, 10:40 PM] Prof. J P Singh :
पिप्पली वर्धमान रसायन का भी प्रभाव बहुत ही अच्छा जलोदर में है, रोगी को निरन्न और बिना जल के रखना है, भूख और प्यास लगने पर केवल दुग्ध का ही प्रयोग करे, मैंने alcoholic liver disease and liver cirrocis induced ascites में पिप्प्ली वर्धमान रसायन का बहुत ही संतोषप्रद परिणाम मिले है
[12/14, 10:46 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*यही आयुर्वेद की विशेषता है डॉ. सिंह जी अगर इसी प्रकार चिकित्सा की जाये तो सफलता निश्चित मिलेगी ही 👍👌 *
[12/14, 10:58 PM] Dr. Pawan Madan:
प्रणाम सोनी जी।
गुड़ हरीतकी के इन प्रयोगों पर कई बार मंथन किया, पर क्या ये प्रयोग इसी तरह से परीणाम भी देते हैं, कुछ का प्रयोग करने की कोशिश की है पर ज्यादा सफलता नहीं पाई, या कई प्रयोग तो प्रक्टिकली करने संभाव्य नहीं प्रतीत होते
जैसे पहला ही लें
क्या कुष्ठ रोग एक मास में जा सकते हैं, क्या अभ्या में trikatu व गुड़ व तैल मिला कर खिलाना palatable है?
🙏🙏🙏
[12/14, 11:01 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*चरक सूत्र 1/124 ये एक सूत्र चिकित्सक के लिये बहुत महत्वपूर्ण है
'योगमासां तु यो विद्याद्देशकालोपपादितम् पुरुषं पुरुषं वीक्ष्य स ज्ञेयो भिषगुत्तमः '
अर्थात चिकित्सक प्रत्येक रोगी की परीक्षा अलग अलग ही करे अर्थात हर रोगी के सम्प्राप्ति घटक उसकी प्रकृति के अनुसार अलग बनेंगे और किस देश में है जैसे उष्ण या शीत अथवा जहां आर्द्रता अधिक है, काल जिसमें ऋतुओं का चक्र आ जाता है, दोषों की अंशाश कल्पना करें, रोग बल और रोगी बल, सात्म्य और असात्म्य तो देखना ही है तथा इसके अतिरिक्त आधुनिक समय के अनुसार देखिये कि रोगी का क्या चिकित्सक पर विश्वास भी है ? उसमें चिकित्सा करने हेतु धैर्य कितना है ? मनोबल कैसा है ? कहीं गुड़ हरीतकी से चार पांच विरेचन आते ही वो चिकित्सा ना त्याग दे।*
*अगर गौमूत्र हरीतकी या गौमूत्र पिप्पली किसी एक रोग के रोगी में जो कार्य कर रही है तो यह आवश्यक नही कि दूसरे उसी प्रकार के रोगी में भी वैसा ही परिणाम देगी क्योंकि रोगी की प्रकृति एवं उपरोक्त अन्य भाव बदल जाते हैं। यही पुरूषं पुरूषं... सिद्धान्त है जिसका ज्ञान हम सभी के लिये आवश्यक है।*
[12/14, 11:08 PM] Dr. Pawan Madan:
चरण स्पर्श गुरुदेव 🙏
बहुत बढिया।
[12/14, 11:12 PM] Dr. Pawan Madan:
गुरु जी
गोमुत्र पिप्पली कैसे व किस मात्रा मे cld के रोगियों मे दे सकते हैं?
[12/14, 11:46 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
वैद्य विश्वासु गौड़ जी ने 500 mg की tab बनाकर दी थी, दो दो गोली दिन में दो या तीन बार से आरंभ करते है और दो दिन में ही इसकी मात्रा और साथ में क्या दिया जाये निर्धारित हो जाता है, रोगी बल का बहुत महत्व है अगर जलोदर भी है तो सांयकाल गुड़ हरीतकी भी add कर देते है। गौमूत्र, हरीतकी,पिप्पली, गुड़, शरपुंखा और फलत्रिकादि क्वाथ , मात्र इन्ही योगों से मात्रा का निर्धारण कर के आप अनेक CLD रोगी स्वस्थ कर सकते हैं इसका उदाहरण आप fibro scan की report में देखिये जहां E kPa 39.7 था अब E kPa 18 पर आ गया, इस रोगी को वर्धमान पिप्पली कल्प तो कराया था पर गौमूत्र पिप्पली नही दी गई थी....* 👇🏿
[12/15, 7:16 AM] Dr. Chndraprkash Dixit Sir:
🌹🙏🙏
[12/15, 9:42 AM] Dr. Ramesh Kumar Pandey:
गुरुवर प्रणाम👏👏
अपना अनुभव शेयर करने और मार्ग दर्शन करने हेतु आपको कोटि कोटि नमन👏👏
गुड हरीतकी को practically ग्रहण कैसे कराया जाय ??
पहले हरीतकी चूर्ण को खाकर ऊपर से गुड खा लिया जाय ??
या
हरीतकी और गुड को अच्छी तरह से मिलाकर लड्डू जैसे बनाकर लिया जाय ??
👏🌹
[12/15, 9:55 AM] Vd. Mohan Lal Jaiswal:
सादर वन्दन जी,
सद् गुरुदेव आचार्य प्रियव्रत शर्मा जी अप्रतिम श्रेष्ठ आचार्य गुरुवर हैं,हम तो उनके पदरज मात्र हैं।
आप ने द्रव्यगुण के प्रयोग पक्ष को सिद्धांत व युक्ति से पूरित कर स्वानुभव परक बहु आयामी रुप दिया है। हरीतकी की हारीत संहिताकार की विशेषता को आप ने चिकित्सा मे ं चरितार्थ किया है।
हरीतकी श्रेष्टतमो नराणां चिकित्सिते पंकज योनिराह।
हा. स.
हरीतकी मानव के लिये श्रेष्ट ही नहीं श्रेष्ठतम(सूपरलेटिव डिग्री) है और उसमें आचार्य चरक ने 'गुड.' को संयोजित कर उसके अनुसंगी प्रभाव को दूर करने के साथ पोषण भाव को भी और संयुक्त कर दिया।
कषाय रस सर्वाधिक रुक्षतम रस होने के साथ 'अप्' स्नेह' तत्व का अवशोषण करता है । ग्रीष्म में वैसे ही शरीर का अप् अंश न्यून होने से बलांश कम होने के साथ पाचन कर्म भी इस काल में कम हो जाता है जिसे मधुर, स्निग्ध गुण प्रधान गुड. सन्तुलित करता है।इसकी विशेषता है कि मधुर होते हुये भी अल्प उष्ण व स्वल्प क्षारीय होने मे हरीतकी के दीपन पाचन व स्रोतोविशोधन कर्म सें सहायक होने के साथ उसके रसायन कर्म को बढा़ कर ग्रीष्म की विभीषिका से शरीर की रक्षा व संपोषण करता है।
धन्य हैं आप जैसे युक्तिज्ञ वैद्य वर।
सद्गुरु देवाय नमः
[12/15, 10:15 AM] Vd. Mohan Lal Jaiswal:
हरीतकी का श्रेष्टतम फल वाला वृक्ष देखना हो तो जम्मू में राजरीड. नाम से 'मथवार' मे देखा जा सकता है जिसे वहाँ की सरकार ने एक पेड को विशेष रुप से सुरक्षित रखा है। अमृतसर मण्डी में बड. आकार की गलेवाली हरीतकी के नाम से बिकने वाली से भी इसका फल बडा श्रेष्ट है।
उत्तम देशी गुड. तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश व बाबा गोरखनाथ की पुण्य धरा पर इस काल में ग्रामीण अंचलों मे निर्मित हो ही रहा है।
[12/15, 11:46 AM] वैद्य नरेश गर्ग:
सादर प्रणाम सर 🙏🙏
अत्यंत उपयोगी जानकारी ।
यहां पर एक प्रश्न है कि हरीतकी में 5 रसो का स्थान उसके अलग-अलग भाग में होता है हरीतकी का प्रयोग संपूर्ण रूप से करना चाहिए या क्योंकि सामान्यतः उसके छिलके का ही अधिक प्रयोग किया जाता है या बिना गुठली के हरीतकी का प्रयोग चूर्ण रूप में ज्यादा किया जाता है जबकि कषाय रस गुठली वाले भाग में सबसे अधिक रहता है
[12/15, 6:57 PM] Dr. RAJNEESH PATHAK :
Ji sir, yah ap sbki kripa hi hai ki vyavharik taur pr jankar v prayog kam kiya krte the but iska ab parinam ati sighra or uttam prakar se mil rha hai Hypothyroidism n fibroid cyst me parinam prapt hote dekha
[12/15, 6:59 PM] Dr. RAJNEESH PATHAK :
Krishna gandha (sahjan chhal) ka prayog charak anusar jo bataya gya hai, uska prayog practically kisi ka anubhav ho to plz share karein 🙏🙏🙏
[12/15, 7:45 PM] Vd Mayur Kulkarni:
सटीक विवेचन 🙏🙏 सिर्फ इसमें एक शंका थी ग्रीष्म ऋतु में जो वायु का चय होता है उसका कारण रुक्ष गुण उसके साथ उष्ण गुण भी है
उष्णेन युक्ता रुक्षाद्या वायोः कुर्वन्ति संचयम् । हरीतकी तथा गुड यह दोनो उष्ण है तो रसायन स्वरूप में उष्ण गुण बढाने मे करण नही हो सकते क्या? यहा घृत जादा लाभ कर सकता है ( स्निग्ध शीत ) अग्नि को भी संभाल लेगा ( रौक्ष्यात् पिबेत् सर्पि: तैलं वा दीपनैः युतम् । )
[12/15, 7:49 PM] Dr. RAJNEESH PATHAK :
Achar rasayan me Ghrit varnit hai hi
[12/15, 7:51 PM] Vd Mayur Kulkarni:
रौ क्ष्यात् मन्दे
[12/15, 7:54 PM] Vd. Divyesh Desai :
शायद हरड़े और गुड़ दोनोका साथमे उपयोग ग्रीष्म ऋतु में प्रभाव से कार्य करता होगा,
ग्रीष्म ऋतु में रसक्षय की वजह से Hypoglycemia ओर Electrolyte imbalance न हो वो बात भी हमारे आचार्यो को पता होगी....इसलिये गुड़ के साथ हरीतकी का प्रयोग बताया होगा ...
शायद इक्षु रस से गुड़ बनाने की प्रोसेस भी उसी समय हेल्प करती होगी...🙏🏾🙏🏾
[12/15, 8:00 PM] Vd. Divyesh Desai :
अति स्वेद प्रवृति की वजह से जो श्रम श्वास होता है, उसमे गुड़ सद्य श्रमहर होता है....
[12/15, 11:06 PM] Vd. Mohan Lal Jaiswal:
घृत के सापेक्ष गुड का शीघ्रातिशीघ्र पाचन, अवशोषण व सरलता पूर्वक ऊर्जा दायक है। गुड स्वय पाचन को प्रेरित भी करता है व मधुर होने से कम प्रमाण में सेवन करने से सापेक्षरुप में कम उष्ण होता है।
[12/15, 11:07 PM] Dr. Surendra A. Soni:
👌🏻🌹🙏🏻👍🏻
[12/15, 11:09 PM] Dr. Surendra A. Soni:
आ रंजीत निम्बालकर जी !
मुझे लगता है अब आपकी शंका का पूर्ण समाधान आ. गुरु जी जायसवाल जी ने कर दिया है ।
🙏🏻🌹
[12/15, 11:10 PM] Dr. Surendra A. Soni:
नमो नमः !🙏🏻🌹
[12/15, 11:20 PM] Dr. Surendra A. Soni:
संभवतः पुराणा: न इति सर्वं साधु मन्यन्ते के अनुसार आचार्य भावप्रकाश जी ने घृत को उपेक्षित किया है । दूसरी बात यह है कि आहारीय द्रव्यों में दुग्ध और घृत नित्य सेवनीय पहले से ही निर्दिष्ट हैं अतः उन्हें आवश्यक न लगा हो तथा ऋतु हरीतकी को भी विशिष्ट दोषस्थिति के लिए नित्य रसायन मानने के बजाय नैमित्तिक रसायन मानना मेरी क्षुद्र बुद्धि ज्यादा उचित प्रतीत हो रहा है । क्योंकि विशिष्ट आहारीय योजना बिना उक्त ऋतु हरीतकी भी पूर्ण रसायन फल प्रदान करे ऐसा पूर्ण विश्वास से कहना कठिन है ।
Dr. Ranjit ji !
🙏🏻🌹
[12/15, 11:32 PM] Dr. Surendra A. Soni:
अ१जीर्णिनो रूक्षभुजः स्त्रीमद्यविषकर्शिताः ।
सेवेरन्नाभयामेते क्षुत्तृष्णोष्णार्दिताश्च ये ॥३५॥)
👆🏻👆🏻
गुजरात में अति हरीतकी सेवन जनित azoospermia का भी केस हुआ है जिसने हरीतकी की अति भक्ति(सेवन) की थी ।
अति सर्वत्र वर्जयेत् ।
🙏🏻🌹
[12/15, 11:34 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*'स्नेहनं गुडसंयुक्तं हृद्यं दध्यनिलापहम्'
सु सू 46/384
गुड़ युक्त दधि स्नेहन, ह्रद्य और वातशामक कर्म करती है। ग्रीष्म ऋतु में सर्वाधिक दधि का प्रयोग किया जाता है और वात प्रकोप ना हो इसकी व्यवस्था प्राचीन आचार्य पहले ही बता कर चले हैं। किसी भी विषय के एकाकी ना ले कर समग्रता से लें क्योंकि ग्रीष्म में आहार मात्र हरीतकी नही है अपितु अन्य द्रव्य भी विधि अनुसार साथ में निर्दिष्ट हैं।*
[12/15, 11:37 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*बहुत ही स्पष्ट व सटीक व्याख्या 👌👌👌*
[12/15, 11:44 PM] Vd. Divyesh Desai :
🙏🏾🙏🏾👌👌आदरणीय सोनी सर, सुभाष सर और बाकी गुरुजनों ने भी गुड़ हरीतकी को काफी रोगों में इस्तेमाल करते हुए बेहतरीन परिणाम प्राप्त किया है।🙏🏾🙏🏾अभी बिना केमिकल वाला गुड़ प्राप्त करना बहुत ही मुश्किल है।।
[12/16, 9:13 AM] Dr. D. C. Katoch sir:
इसी प्रकार गुड़ का अधिक सेवन ग्रीष्म ऋतु में नहीं करना चाहिए, नहीं तो रक्तपित्त ( epistaxis) हो सकता है।
[12/16, 9:41 AM] Dr. Ranjit Nimbalkar Sir:
True sir👍🏻🙏🏻
इसीलिये, ये👆🏻 पूछा था🙏🏻
[12/16, 9:47 AM] Vd. Mohan Lal Jaiswal:
सादर नमस्ते जी,
आयुर्वेद तो सर्वत्र सम की बात करता है।
[12/16, 10:12 AM] Vd. Mohan Lal Jaiswal:
हरीतकी समप्रमाण में प्रजास्थापन जैसा श्रेष्ट कार्य करती है तभी तो 'शिवा'के रुप में इस महाकषाय में प्रतिस्थापित है।
वैसे कुछ विद्वानो ं 'शिवा' से यहाँ आमलकी भी लिया है।
हरीतकी के इसी कर्म को ध्यान में रखते हुए Pcod में इसका प्रयोग अन्य द्रव्यों के सहपान के साथ किया जा रहा है।
[12/16, 10:23 AM] Dr. BK Mishra:
👍🏼 अति महत्वपूर्ण व्यावहारिक उपयोगी सन्दर्भ संकलन प्रस्तुति...
धन्यवाद 💐💐🙏🏼
[12/16, 11:18 AM] Dr. D. C. Katoch sir:
ब्राह्म रसायन के अलावा मुझे कोई और हरीतकी का योग नहीं सूझता जिसका सतत प्रयोग लंबे समय तक किया जा सके, गुड़ हरीतकी भी नहीं।
[12/16, 11:31 AM] Dr. D. C. Katoch sir:
संक्षेपतया गुड़ हरीतकी का प्रयोग मलसंग, कफमेदाधिक्य, महास्रोतसरोध की स्थितियों में अभीष्ट है।
[12/16, 11:39 AM] Dr. Surendra A. Soni:
प्रणाम सर !
इसका नित्यसेवनीय रसायन रुप न होकर नैमित्तिक रसायन स्वरूप ज्यादा कार्यकर प्रतीत होता है अर्थात curative action is greater than preventive.
नमो नमः ।🙏🏻🌹☺️
[12/16, 11:40 AM] Dr. Surendra A. Soni:
गागर में सागर भरने वाला वक्तव्य ।
Resp. Katoch Sir !
🙏🏻🌹☺️😍💖👌🏻
[12/16, 11:52 AM] Dr.Pradeep kumar Jain:
अति उत्तम🙏🙏🙏
[12/16, 11:59 AM] Vd. Divyesh Desai :
सर, आपकी बात सही है,
अमृत को भी आप अति मात्रा में सेवन करोंगे तो मृत्यु का कारण बन जाता है, ओर विष को आप उचित मात्रा में सेवन करते हो तो जीवनदान का कार्य करेगा...
इस लिए ज्यादा कृश, पितप्रधान प्रकृति, गर्भिणी, रुक्ष भोजन या स्नेह न लेने वालों को, उष्ण काल मे वर्जित बताया है..
हां गुड़ हरीतकी का सेवन अपान काल मे ज्यादा फायदा करता है तो वो काल सुबह या शाम का होता है, दोपहर में नही ...इस लिए
अन्नादौ विगुणे अपाने...
हरीतकी को अनुलोमन के लिए, अपान वायु की दृष्टि से होनेवाले रोगों में ओर
वाग्भट्ट ने कफवातनुत कहा है,
वयसः स्थापनी परं कहा है।
जय आयूर्वेद, जय धन्वंतरि🙏🏾🙏🏾
[12/16, 12:01 PM] Dr. D. C. Katoch sir:
आयुर्वेद के दोनों उद्देश्यों के लिए है ब्राह्म रसायन। 🥳🥳
[12/16, 12:59 PM] Vd Mayur Kulkarni:
शिवा से आमलकी लेने का कारण यह हो सकता है क्या ? हरीतकी का निषेध गर्भिणी अवस्था में भावप्रकाश ने निषिध्द बताया है।
अध्वातिखन्नो बल वर्जितः च रुक्षो कृशो लंघन कर्शित श्च । पित्ताधिको गर्भवती च नारी विमुक्त रक्तः तु अभयां न खादेत् ।
प्रजास्थापन - प्रजोपघातकं दोषं हृत्वा प्रजा स्थापयति इति ।
इस व्याख्यानुसार गर्भिणी अवस्था में हरीतकी का निषेध नही हो ना चाहिए था ।
[12/16, 1:36 PM] Dr. D. C. Katoch sir:
हरीतकी वस्तुत: गर्भिणी के लिए अहितकर है परंतु प्रजास्थापन के लिए उपयोगी है क्योंकी ' हरीतकी तु पथ्यानाम' के अनुसार श्रेष्ठ स्रोतोशोधक होने के कारण Fallopian Tubes के अवरोध को दूर कर के ovulation और fertilization की प्रक्रिया को संपन्न करती है ।
[12/16, 2:22 PM] Dr. Ramesh Kumar Pandey:
एक ही द्रव्य की भिन्न भिन्न अवस्थाओं में भिन्न भिन्न प्रभाव👍👍👍
[12/16, 2:28 PM] Vd. Mohan Lal Jaiswal:
समुचित विचार
[12/16, 2:32 PM] Dr.Ramesh Kumar Pandey:
आर्द्र हरीतकी का कैसे प्रयोग किया जा सकता है ?? इसकी क्या कल्पना तैयार कर सकते है ??
[12/16, 2:44 PM] Dr. Deep Narayan Pandey Sir:
फिलहाल तो हरा आंवला, हरी हरीतिकी, और इसी प्रकार का विभीतकी मिल जाए तो त्रिफला सेवन की जो विधि आचार्य चरक ने वर्णित की है उसको आप क्रियांवित कर सकते हैं।
[12/16, 2:44 PM] Dr. Deep Narayan Pandey Sir:
ध्यान दीजिएगा एक साथ मिलाने की बात नहीं है अलग-अलग समय में अलग-अलग पदार्थ ग्रहण करने की बात है।
[12/16, 3:21 PM] Dr. Ramesh Kumar Pandey:
👏👏🌹🌹
[12/16, 3:26 PM] Dr. Ranjit Nimbalkar Sir:
बहुत ही बढिया taste 👌🏻👌🏻
एकबार रायपुर के जंगल में "करप्रचितीय" हरीतक फल खाने का सौभाग्य प्राप्त हुवा है🙏🏻
[12/16, 4:20 PM] Dr.Raminder kaur:
🙏🏻🙏🏻
[12/16, 4:37 PM] Dr. D. C. Katoch sir:
नियमित प्रयोग के लिए हरा धनिया व पुदीना के साथ चटनी बना कर ।
[12/16, 4:37 PM] Vd Shailendra Mehta:
👌🏻👌🏻🌷🌷
[12/16, 7:04 PM] Vd. Atul J. Kale:
हम लोगों ने एक दो बार भिमाशंकरजीके जंगल से ऎसी ही हरितकी इकठ्ठा करके अगस्ति हरितक्यावलेह बनाया था।
[12/16, 8:25 PM] Prof. Lakshmikant Dwivedi Sir:
10/or100 /or1000 Aardra ka weight kare, swinna kar, vitrin kar ke, shushka kar weight kare.
Seed ka Aardra and shushka ka weight record kar ke tusha part? 6-7 time study kar mean ka study required for preparing Brahma Rasayana,kansa /Agastya Haritaki,
[12/16, 8:35 PM] Prof. Lakshmikant Dwivedi Sir:
☺️🙏 processing
inka dry fruits ka weight.10/💯/1000.
As whole.(Sabut harde).
The Verity should be authothenti cally certified.that the fruits are not the Chhipa harde Which is not used in Tannery,🙏☺️
That's available in market harde baccal.
[12/16, 8:50 PM] Dr. Surendra A. Soni:
Namo namah guruji....
🌹🙏🏻
[12/17, 7:17 AM] Vaidya Sanjay P. Chhajed:
Bramha Rasayan also if taken in appropriate dose, can not be consumed for long time. Rather other than Nitya Rasayan nothing can be consumed for long time sir. This is my understanding and practice.
[12/17, 7:23 AM] Dr. Bhargav Thakkar:
सिंधुत्थ शर्करा सुंठी कणा मधु गुडै क्रमात्।
वर्षादी अभयाप्राश्या रसायण गुणेक्षणाः।।
सर इस क्रम से सतत ले सकते है या नही ? 🙏🏻
[12/17, 7:42 AM] Vd. V. B. Pandey :
🙏अकेले सूंठी भी कोई कम नहीं महाऔषध है गुरूवर।
[12/17, 8:21 AM] Prof. Lakshmikant Dwivedi Sir:
कणा & मधु भी अच्छे रसायन एवं क्रामण द्रव्य हैं।
[12/17, 8:47 AM] Dr. D. C. Katoch sir:
Sahi pakade hain, phir bhi as a sweet dish or dessert can be taken regularly after meals to satisfy tongue and stomach and for proper evacuation in the morning.
[12/17, 8:49 AM] Dr. Ramesh Kumar Pandey:
सभी विद्वानों को सादर प्रणाम👏👏
क्या ऋतु हरीतकी का किसी विद्वान ने स्वयं पर या किसी रोगी पर प्रयोग किया हो तो उसके सुप्रभाव / दुष्प्रभाव साझा करने की कृपा करें।
बहुत बहुत सादर धन्यवाद्
👏👏
[12/17, 8:53 AM] Dr. Surendra A. Soni:
नहीं किया और न ही किसी को प्रयोग करते देखा और सुना ।
[12/17, 8:57 AM] Vaidya Sanjay P. Chhajed:
No, never used or seen anyone using it
[12/17, 9:33 AM] Vd. Mohan Lal Jaiswal:
हरीतकी नहीं अपितु त्रिफला का रितु विधान से मुम्बई में एक संस्था द्वारा बडे समूह पर 12 वर्ष सतत प्रयोगकर निष्कर्ष पुस्तक रुप में प्रकाशित किया गया जो हमलोग पढे हैं।
[12/17, 9:38 AM] Dr. Surendra A. Soni:
आ. गुरु जी ।
आपके और आ. द्विवेदी सर द्वारा निरन्तर प्रदान किए जा रहे बहुमूल्य मार्गदर्शन के लिए हम सब कृतज्ञ और धन्य हैं ।
हार्दिक आभार ।
सादर प्रणाम ।
🙏🏻🌹💖☺️
[12/17, 9:50 AM]Dr.Kishor singh Chudasma:
[12/17, 9:53 AM] Vd. Mohan Lal Jaiswal:
शुभ भाव🙏
[12/17, 10:06 AM] Vd. Mohan Lal Jaiswal:
चरक के रसायनपाद में 'अभया' (भय नहीं युक्तिपूर्वक) आमलकीयम् रसायनपादम् ।
स्पष्ट संदेश है।
[12/17, 10:10 AM] Prof. Giriraj Sharma:
🌹🌹🙏🏼🌹🌹
त्रिफला में अभया के जितने निषेध एवं युक्तिगत प्रयोग अभया के बताए है उतने अन्य दो औषध के प्रयोग एवं निषेध नही कहे है आचार्य गणों ने,,,,
🙏🏼🙏🏼🌹🙏🏼🙏🏼🌹🙏🏼🙏🏼
[12/17, 12:01 PM] Dr. Surendra A. Soni:
त्रिफला में विषम मात्रा में मधु+घृत मिश्रित कर रसायन रूप में सेवन का भी निर्देश मिलता है ।
🙏🏻
[12/17, 12:06 PM] Dr. Ranjit Nimbalkar Sir:
त्रिफला मधुसर्पिभ्यां निशि नेत्रबलाय च।
अ हृ सू
[12/17, 12:15 PM] Dr. Surendra A. Soni:
🙏🏻🌹
[12/17, 3:34 PM] Dr. Ramesh Kumar Pandey:
आदरणीय सर 👏👏
आजकल बाज़ार में उपलब्ध हरीतकी के फल में हरीतकी के सप्त भेदों में से कौन सी जाति है ??
[12/17, 3:51 PM] Dr. Ramesh Kumar Pandey:
गुरुवर प्रणाम👏👏
अपना अनुभव शेयर करने और मार्ग दर्शन करने हेतु आपको कोटि कोटि नमन👏👏
गुड हरीतकी को practically ग्रहण कैसे कराया जाय ??
पहले हरीतकी चूर्ण को खाकर ऊपर से गुड खा लिया जाय ??
या
हरीतकी और गुड को अच्छी तरह से मिलाकर लड्डू जैसे बनाकर लिया जाय ??
👏🌹
[12/17, 4:02 PM] Vd. Mohan Lal Jaiswal:
अभया के साथ स्थान विशेष से कुछ अन्य भी मिलती हैं जो प्रमुख मंडियों का सर्वेक्षणीय विषय है।
[12/17, 4:26 PM] Vd. Mohan Lal Jaiswal:
न तु निर्गुणं गुणभूयस्त्वन्तो विचिन्त्यते। च. सि.
[12/17, 4:54 PM] Vd. Mohan Lal Jaiswal:
न तु किंचददोषनिर्गुणं गुणभूयस्त्वमतो विचिन्त्यते।च.सि.11/11
[12/17, 5:05 PM] Prof. Giriraj Sharma:
🙏🏼🙏🏼🌹🙏🏼🙏🏼
[12/18, 1:32 PM] Dr. Pawan Madan:
आदरणीय गुरूजन व मित्रगण
नमस्ते।
हरीतकी एक सर्वश्रेष्ठ अनुलोमक कहा जाता है।
अनुलोमक वह होता है जो मल का पाक करते हुये, मल को बन्धे हुये स्वरूप में अधोग मार्ग से निष्कासित करता है।
*प्रक्टिस में मल का पाक करने का क्या अर्थ है?*
*हरितकी के गुण भी आज कल एक laxative की तरह ही दिखाई देते हैं।* यहां मैं पीली हरड़ की बात कर रहा हूँ , काली हरड़ की नहीं।
[12/18, 1:43 PM] Dr. Satish Soni:
मेरे विचार से मल पाक का अभिप्राय आम मल के पाचन से है। आम मल का पाचन कर सम्यक मल प्रवृत्ति करवाना हरीतकी का कार्य रहेगा
[12/18, 2:30 PM] Dr. Ramesh Kumar Pandey:
एक जिज्ञासा👏👏
क्या गुड हरीतकी का सेवन diabetes रोगी को कराया जा सकता है ??
( गुड का विचार करते हुए)
🌹🌹
[12/18, 3:04 PM] Vd. V. B. Pandey :
जी। खिलाया जा सकता है किन्तु रोगी कफज प्रकृति का न हो।
[12/18, 3:15 PM] Prof. Kishor singh Chudasma:
और गुड 1 साल पुराना होना चाहिए
[12/18, 3:17 PM] Vd. V. B. Pandey :
गुड गोघृत आसव अरिषट और वैध भी जितना पुराना उतना ही अच्छा। 🙏
[12/18, 3:39 PM] Prof. Kishor singh Chudasma:
सगुडामभयामवाडपि प्राशयेत पौरभकतिकम ।अशॅ चिकित्सा। चरक
[12/18, 4:34 PM] Dr. Pawan Madan:
तो इसका एक कार्य आम पाचन भी होगा?
[12/18, 4:50 PM] Dr. Satish Soni:
जी जरूर🙏🙏🙏
[12/18, 5:08 PM] Dr. Pawan Madan:
Ji Dhanyvaad.
[12/18, 5:11 PM] Dr. Pawan Madan:
How much role Haritaki has in the treatment of Vibandh?
I am not asking about its action in evacuating the stools but giving perfect solution for Vibandha?
Although the treatment of Vibandh will certainly depend on the cause but still in what kind of vibandha ...haritaki can provide a complete cure?
[12/18, 6:02 PM] Vd. V. B. Pandey :
As per my experience and knowledge hareetkee in the tt.of vibandh act as a vehicle as per prakriti and vikrati hareetkee with gud or erenda or go mutra or kutkee or trikatu or even peeper or even shunti in the ratio of 3:1 may be beneficial.
[12/18, 6:09 PM] Dr. Pawan Madan:
Ji thanks.
How do you differentiate, in what type of vibandh case, what type of haritaki be given ?
[12/18, 6:17 PM] Vd. V. B. Pandey :
As per pt.prakriti of pt his complaint and consistency of his stool also help in choosing the appropriate combination. Say for example if pt says he have to sit for half an hour ultimately Erenda bhrast will be the choice.
[12/18, 8:36 PM] Dr. D. C. Katoch sir:
दोष, धातु, किट्ट तीनों के विकृत हो जाने पर मल कहा जाता है और ये तीनों साम या निराम हो सकते हैं जठराग्नि व धात्वग्नि की स्थिति के अनुसार। हरीतकी उष्ण और लघु होने के कारण साम मल (दोषज, धातुज या किट्टज) को पका कर ही अनुलोमन कर्म संपादित करती है और उसका निर्हरण करती है । हरितकी के ये तीनों कर्म महास्रोतस, शाखाओं और धातुओं में संभव है।
[12/18, 8:38 PM] Dr.Pradeep kumar Jain:
अति उत्तम
इसीलिए ये वय स्थापन कर्म भी करती है🙏
[12/18, 9:00 PM] Dr. Rajeshwar chopde:
[12/18, 9:51 PM] वैद्य मेघराज पराडकर :
कषायः प्रायशः शीतं स्तम्भनं च *अभयां विना* । - वा सू 10
[12/18, 9:55 PM] वैद्य मेघराज पराडकर :
हरीतकी पंचरसा है, परंतु कषाय प्रधान है । इसलिए विबंध की तीव्रता के अनुसार कटु, अम्ल तथा लवण रस से संयोग करने की आवश्यकता पड़ सकती है, ऐसा मेरा विचार है ।
[12/19, 1:08 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*अनुलोमक वह होता है जो 'मल का पाक करते हुये' मल को बन्धे हुये स्वरूप में अधोग मार्ग से निष्कासित करता है।*
*अनुलोमक मल का पाक भी करता है यह परिभाषा का संदर्भ भी देने की कृपा करें ।*
*नमस्कार वैद्य पवन जी 🌹🙏*
[12/19, 1:37 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*अनुलोमन, रेचन, मृदु विरेचन, विरेचन, स्रन्सन, भेदन, विबंध हर, लेखन, कर्षण, रेचन, छेदन इन पर भी अनुलोमन के साथ विचार करें कि हरीतकी का क्या सम्बंध है ?*
*अधिकतर गुग्गलु में त्रिफला का घटक हरीतकी भी है, क्यों ? क्या इतनी अल्प मात्रा भी विरेचन करेगी ? क्या हरीतकी शोधन ही करेगी और शमन भी करती है क्या ???*
[12/19, 2:23 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*हरीतकी का प्रयोग अगर शास्त्रीय शाब्दिक जटिलताओं से बाहर आ कर देखें तो विबंध में ??? मगर विबंध क्या है ?? विबंध के लिये आनाह का भली प्रकार अध्ययन करें तो दो बातें विशेष रूप से मिलती है, अधिष्ठान - आमजन्य आमाश्य से और पुरीषज पक्वाश्य से संबंधित हैं।*
*जिस रोग में पक्वाश्य अथवा प्राकृत अधो मार्ग से मल और वात की प्रवृत्ति ना हो उसे आनाह समझें और विबंध आनाह का ही एक भाग है और 'आनाहस्तु विबन्ध: स्यात्' एसा भी कहा है।
'आमं शकृद्वा निचितं क्रमेण भूयो विबद्धं विगुणानिलेन प्रवर्तमानं न यथास्वमेनं विकारमानाहमुदाहरन्ति '
माधव निदान 27/17
अर्थात स्व: कारणों से प्रकुपित वायु आम और मल को शुष्क कर ग्रथित कर देती है। वर्तमान समय की कब्ज, विबंध या साधारण भाषा की constipation यही है।*
*विबंध प्रत्यक्ष रूप में हेतु एवं अंशाश कल्पनानुसार वात के रूक्ष गुण से संबंधित अवस्था है। विबंध में एक अथवा अनेक दिन तक भी मल का त्याग नही होता और मल का रूक्ष होना भी संभव है।*
*विबंध हर देखें तो
'अमृता साङ्ग्राहिकवातहरदीपनीय- श्लेष्मशोणितविबन्धप्रशमनानां'
च सू 25/40
सांग्राहिक, शोणित, विबंध का नाश करने वालों में गुडूची।
हिंगु को
'वातश्लेष्मविबन्धघ्नं कटूष्णं दीपनं लघु हिंगु शूलप्रशमनं विद्यात् पाचनरोचनम्'
च सू 27/229*
*हरीतकी से अनुलोमन क्यों कर रहे हैं ? क्योंकि मल का रेचन या विरेचन हो और ये रेचन या विरेचन क्या है ? *विरेचन कर्म अर्थात विशिष्ट प्रकार का रेचन कर्म जो पंचकर्म का एक भाग है।'यथोक्तं वमनं देयम्' और विरेचनं योग्यतमं प्रयोज्यम्' यह वमन कर्म और विरेचन कर्म है जिनका प्रयोग यथोक्त स्नेहन स्वेदन के बाद ही किया जाता है।*
*अब विरेचन की बात करते है, विरेचन कर्म नही मात्र विरेचन,
'विरेचनं तु सर्वोपक्रमेभ्यः पित्ते प्रधानतमं मन्यन्ते भिषजः; तद्ध्यादित एवामाशयमनुप्रविश्य केवलं वैकारिकं पित्तमूलमपकर्षति, तत्रावजिते पित्तेऽपि शरीरान्तर्गताः पित्तविकाराः प्रशान्तिमापद्यन्ते, यथाऽग्नौ व्यपोढे केवलमग्निगृहं शीतीभवति तद्वत्'
च सू 20/16 ,
पित्त विकारों में अन्य चिकित्साओं की अपेक्षा विरेचन को प्रधानता दी गई है। यह विरेचन क्यों है क्योंकि 40 पित्तज विकारों में आप अनेक में जैसे अतिस्वेद, उष्माधिक्य, मांस क्लेद, रक्त विस्फोट, जीवादान और अनेक अनुक्त विकारों में आप स्वेदन कर्म नही करा सकते और पित्त प्रधान विकार अचय पूर्वक प्रकोप से होते है जो ग्रीष्म ऋतु में प्राय: मिलते हैं जिनमें तुरंत ही पित्त के अधोमार्ग से निष्कासन की आवश्यकता होती है।*
*रेचन का उल्लेख स्वत: ही आप अभी समझ जायेंगे, रेचन एक कर्म है,
'प्रयत्नादि कर्म चेष्टितमुच्यते'
च सू 1/49
प्रयत्न जनित जो भी व्यापार शरीर में घटित हो रहा है वो कर्म है या जो किया जा रहा है वो कर्म है और वो इस प्रकार हो रहा है जैसे आकुंचन, प्रसारण, भ्रमण, 'रेचन', तिर्यग्गमन आदि और पंचकर्म से संबंधित पूर्वकर्म, प्रधान और पश्चात कर्म सहित वमन - विरेचनादि पंचकर्म।यह कर्म आयुर्वेद में स्थानिक, सार्वदैहिक और विशिष्ट रूप में होते हैं, स्मरण रहे 'वि' पहले लगने से रेचन की संज्ञा विशिष्ट संज्ञा, उद्देश्य या कर्म से स्वत: ही हो जाती है।*
*अनुलोमक, स्रंसक, भेदक और रेचक द्रव्य अधो मार्ग से दोषों का निर्हरण करते हैं, ये सब हमने जैसा ऊपर लिखा, कर्म हैं। शार्गंधर चतुर्थ स्थान में 'मलादिकमबद्धं यद् बद्धं वा पिण्डितं मलै:, भित्वाध: पातपति तद् भेदनं कटुकी यथा'
मल किसी भी प्रकार का हो बद्ध, अबद्ध, दोषों के द्वारा ग्रथित उसे किसी भी प्रकार तोड़ कर बाहर निकालना भेदन कर्म है । च सू 4/4 भेदनीय महाकषाय में दस भेदनीय औषधियां त्रिवृत्त, अर्क, दन्ती, कटुकी आदि है।*
*त्रिफला घृत - इसमें हरीतकी है क्या इसे अनुलोमन और शोधन और स्रोतो शोधन के लिये दे रहे है या विबंध दूर करने के लिये ! इसके साथ देते है सप्तामृत लौह और हरीतकी इसमें भी मगर यहां भी यही स्थिति । हरीतकी को अन्य अनेक गुग्गलु मे देख सकते है यह अनुलोमन या शोधन और विबंध हर नही है अपितु शमन औषध भी प्रमुखता से प्रयोग होती है ।*
[12/19, 2:42 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*हरीतकी का पूर्ण अनुलोमन प्रभाव तभी मिलेगा जब अन्न का परिपाक हो चुका हो और पक्व अन्न पक्वाश्य गत हो, आमाश्यगत अन्न मे आम जन्य मल का भी यह हेतु बन सकती है।*
[12/19, 3:34 AM] Dr. Ramakant Sharma Jaipur:
👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏
[12/19, 3:39 AM] Dr. Ramakant Sharma Jaipur:
कृत्वा पाकं ......is अनुलोमन की परिभाषा में मलानाम का अर्थ सर्वदा पुरीष नहीं होता, अनेकधा malini karnan mala bhi hota hai
[12/19, 5:23 AM] Dr Mansukh R Mangukiya :
🙏🙏🙏
[12/19, 5:51 AM] Dr. Pawan Madan:
Ji. Good mng sir.
[12/19, 5:52 AM] Dr. Pawan Madan:
कषाय होने पर भी ये स्वयमेव ही अनुलोमक है
विचित्र प्रत्यारब्ध।
[12/19, 5:53 AM] Dr. Pawan Madan:
चरण स्पर्श गुरु जी।
ये भाव प्रकाश की परिभाषा है।
[12/19, 5:55 AM] Dr. Pawan Madan:
हरीतकी जो मैने प्रभाव देखा है वह मात्रा पर dependent है। अल्प मात्रा मे शमन भी करती है व अधिक मात्रा में तीव्र रेचन भी करती है।
🙏🙏
[12/19, 6:02 AM] Dr. Pawan Madan:
🙏🙏🙏🙏👏🏻👏🏻👏🏻
अमरकोष में आनाह व विबन्ध को एक ही कहा गया है।
सुश्रुत ने दो प्रकार के आनाह,,, आमज व पुरीशज कहे हैं, जिसमे से पुरीशज आनाह लगभग विबन्ध की ही स्तिथि बताई गयी है।
विबन्ध भी पुरीष के स्वरूप के अनुसार शुष्क, स्तोक, ग्रथीत, कठिन आदि कहा गया है।
यहां पर चर्चा में रेचन कर्म से पंचकर्मोक्त विरेचन अभिप्रेत नहीं है गुरु जी।
जी, त्रिफला घृत व गुग्गुलू आदि में अवश्य जी ये शमनार्थ ही प्रयुक्त है।
पर एकल रूप में इसके क्या प्रभाव है, वे चर्चा का विषय हैं।
👏🏻👏🏻👏🏻🙏🙏🙏
[12/19, 6:04 AM] Dr. Pawan Madan:
कुछ स्थानों पर हरीतकी को अपने उष्ण वीर्य की वजह से दीपन व धातु गत आम पाचक भी बताया गया है।
🙏🙏
[12/19, 6:04 AM] Dr. Pawan Madan:
चरण स्पर्श गुरु जी।
Point noted ।
🙏🙏🙏
[12/19, 8:13 AM] Vd.Sujata Choudhary:
यदि मल का स्वरूप जैसा होना चाहिए वैसा ही हो (वात, पित्त, कफ से प्रभावित ना हो; अपक्व, अति चिकना आदि ना हो) तथा वात का अनुलोमन हो (anal sphincters व pelvic floor की muscles में खिंचाव ना हो, वे relaxed state में हों) तो मल सुखपूर्वक निकलता है।
हरीतकी रूक्ष होने से मल के चिपचिपेपन को खत्म करके तृतीय अवस्था पाक को अच्छी प्रकार से करवाकर (मल का पूर्ण रूप से बनना व एक निर्धारित मात्रा में उसमें द्रव का होना- ना अधिक पतला होना ना ही ग्रथित होना) तथा वात का अनुलोमन कर (सभी muscles व sphincters का spasm दूर कर) मल बाहर निकलवाती है।
ऐसा मैंने अनुभव किया है।
कितना सही है उसके लिए गुरुजन मार्ग दिखलायें🙏
[12/19, 8:22 AM] Vd.Sujata Choudhary:
स्निग्धाम्ललवणोष्णाद्यैराहारैर्हि मलश्चितः||८५||
स्रोतो बद्ध्वाऽनिलं रुन्ध्यात्तस्मात्तमनुलोमयेत् ||
(चरक चिकित्सा 28)
शायद इस श्लोक में भी इन्हीं दो बातों (चिपचिपापन या स्निग्धता हटाकर मल को सुखपूर्वक निकालना) को कराने के लिए अनुलोमन शब्द का प्रयोग किया गया है।
🙏🙏
[12/19, 8:30 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
सुप्रभात एवं नमो नमः सर 🌹🙏*
[12/19, 8:40 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*सुप्रभात पवन जी, आपका अनुभव सही है 👍*
*कल देर रात्रि एक नवजात शिशु जो अभी एक माह का है और परिवार का ही है सांयकाल से निरंतर रूदन कर रहा था और चार दिन से मल त्याग नही हुआ था उसे 11 बजे देख कर आया था और थोड़ी सी उत्तम क्वालिटि की हिंगु घर से ले कर गया था तो पानी मे घोल कर उदर पर लेपन कर दिया । घर आने पर लगभग 1 बजे ही फोन आ गया कि थोड़ी देर पहले उसने दो बार मल त्याग किया और अब सो रहा है ये प्राचीन और पारंपरिक प्रायोगिक ज्ञान हमें आचार्य चरक के इस सूत्र से सदैव स्मरण रहता है कि हिंगु को
'वातश्लेष्मविबन्धघ्नं कटूष्णं दीपनं लघु हिंगु शूलप्रशमनं विद्यात् पाचनरोचनम्'
च सू 27/229
ऐसा कहा गया है। अति शीघ्र बाह्य प्रयोग से ही इसका प्रभाव अनेक भिषग् तो काय सम्प्रदाय के भी देख ही चुके है।*
[12/19, 8:50 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*उष्ण वीर्य होते भी हरीतकी का प्रभाव देखिये जहां इसका कषाय रस इसके वीर्य को दबाकर बाह्य प्रयोग में अपना कर्म करता है।*
*आचार्य स्व. बृहस्पतिदेव त्रिगुणा जी करतल स्वेद प्रवृत्ति जो शीत ऋतु मे भी हो तो हरीतकी सूक्ष्म चूर्ण talcum powder की तरह मलने के लिये देते थे और उन्होने एक दिन मुझे कहा था कि प्रयोग करो ये तुरंत कार्य करता है। कल दिल्ली में प्रातः temp 16 था एक 15-16 वर्षीया लड़की की नाड़ी देख रहे थे तो दोनो हस्त स्वेद से गीले थे, तुरंत ही हमने उसे इसी प्रकार लगाने के लिये दिया और 15 मिनट बाहर बैठकर प्रतीक्षा के लिये कहा । इस अवधि मे दो बार लगाया और हस्त शुष्क हो गये थे। यह प्रयोग हमने बहुत पहले भी बताया था कि दिन में पांच छह बार थोड़ा थोड़ा लगाने के लिये दीजिये श्रेष्ठ कार्य करता है।*
[12/19, 8:58 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
सामान्यतः हरीतकी को उदरशुद्धि तक ही सीमित कर दिया गया है
'अमृता साङ्ग्राहिकवातहरदीपनीय
श्लेष्मशोणितविबन्धप्रशमनानां' च सू 25/40 साग्राहिक, शोणित, विबंध का नाश करने वालों में गुडूची । गुडूची भी एकल द्रव्य के रूप मे बहुत प्रयोग होती है पर यहां भी मात्रा का ही महत्व है जैसे लगभग 25- 30 ml गुडूची स्वरस एक बार प्रातः खाली पेट हमारे रोगी सेवन करते हैं तो 4-5 दिन बाद ये अपना कार्य विबंध में आरंभ कर देता है और एक माह तक तो निरंतर सेवन करना ही चाहिये।*
[12/19, 9:08 AM] Dr. S D Khichariya:
शानदार विवेचन आचार्य 🙏
[12/19, 9:56 AM] Dr.Bhushan Bhakkad:
मल पाक से धातुओ के मल कफ पित्त etc ध्यान मे लेते हुए उनका पाक या पूर्ण पक्व होने कि प्रक्रिया भी लिया जा सकता है
[12/19, 10:24 AM] Dr. M B Gururaja: 👏🏻👍🏻🙏🏻👌🏻💐
Thanks sirji.... for giving yet another idea of using hareetaki in excessive sweating in palms and soles ...
[12/19, 10:28 AM] Dr. D. C. Katoch sir:
बहुत सुंदर हरीतकी विवेचन वैद्य सुभाष जी। साधुवाद !! मैं समझता हूं हरीतकी cellular level तक अनुलोमन अर्थात नियमितीकरण करती है तभी तो श्रेष्ठ पथ्य (correct transformation) व रसायन (regenerative & rejuvenative) है । जै हो !!
[12/19, 12:29 PM] Prof. Giriraj Sharma:
🙏🏼🙏🏼🌹👌🏻🌹🙏🏼🙏🏼
[12/19, 2:26 PM] Vd. Mohan Lal Jaiswal:
सम्मनीय वैद्यवर जी
सादर प्रणाम
तभी तो 'सहस्रवेधि' पर्याय अभिहित है।
[12/19, 3:26 PM] Vd. Mohan Lal Jaiswal:
मान्यवर जी।
अ. स.सू.17 के अनुसार..
घृतामलकसिन्धूत्थपटोलीनागराभयाः।
उपर्युक्त मे ं प्रत्येक रसवर्ग के प्रधानतम द्रव्यों का निर्देश है जिसमें हरीतकी कषाय रस में हिततम है व च.सू.25 के अनुसार 'हरीतकी पथ्यानाम्'
पत्थानाम् होने से स्रोतोमयं पुरुष के लिये सर्वप्रधान त्रिमर्म/त्रिस्रोत
के मलविबन्ध का अनुलोमन कर
त्रिमर्म की रक्षा करते हुये संशोधन व संशमन द्वय रसायन रुप में(मात्रा भिन्नतानुसार)
'आयुष्यां पौष्टि कीं धन्यां वयसःस्थापनीं परां सर्वरोगप्रशमनीं बुद्धीन्द्रियबलप्रदाम्......
स्मृति बुद्धीप्रमोहं च जयेच्छीध्रहरीतकी। चरितार्थ कर
पुरुष के लिये सर्वहितकारी है।
सद्गुरुदेवाय सादर नमः,जय आयुर्वेद।
आप के अप्रतिम विवेचन के लिये साधुवाद।ऊँ शम
[12/19, 3:33 PM] Vd. Mohan Lal Jaiswal:
द्रव्य जब वाह्य रुप से लेप प्रलेप आदि रुप में प्रयोग किया जाता है तो प्रथमतः रस के द्वारा कार्मुक होता है इसीलिए हरीतकी का कषाय रस पाद हस्त तल के स्वेद को अवशोषित कर लेता है।
मोहनलाल. जायसवाल
[12/19, 4:33 PM] Vd Darshna vyas:
हिंगु का नाभी पर्यंत लेप का अनुभव हमनें भी कई रोगियों में किया है🙏🏻🙏🏻
[12/19, 4:48 PM] Vd. Mohan Lal Jaiswal:
सादर समस्ते जी,
सम्यक स्पष्टीकरण
[12/19, 6:15 PM] Vaidya Sanjay P. Chhajed:
नाभी में हिंगु रख एरंड तैल डालना
बच्चो में हिंगु जल का उदरलेप महाराष्ट्र में प्रचलीत है
[12/19, 6:40 PM] Dr.Pradeep kumar Jain:
Very nice combination
I also takes results by this lepa 🙏
[12/19, 6:43 PM] Vd Darshna vyas:
Nice combination👌🏻👌🏻 will apply 👍🙏
[12/20, 7:44 AM] Vaidya Sanjay P. Chhajed:
Chhoti harde + Badi harde ko ekkattha kar usame nishottar, hingu saindhav milakar harde ki kwath ki bhavana dekar ham golia banate hai.
[12/20, 7:49 AM] Vd. V. B. Pandey :
🙏बहुत अच्छा योग अनाह चिकित्सा हेतु।
[12/20, 4:04 PM] वैद्य मृत्युंजय त्रिपाठी उत्तर प्रदेश:
सादर प्रणाम सर जी, बहुत ही उत्तम विवेचन किया आप ने गुरु जी🙏🙏🌺🙏🙏
[12/21, 2:04 PM] Dr. Ramesh Kumar Pandey:
बहुत बहुत धन्यवाद गुरुवर, अपना अनुभव शेयर करने के लिए
👏👏🌹🌹
[12/21, 2:14 PM] Dr. Ramesh Kumar Pandey:
हरीतकी कोष्ठगत दोषों/ दूषी विषो को तो पाचन करते हुए और अनुलोमन/ रेचन कर्म करते हुए अधोमार्ग से शोधन करती ही है, साथ ही साथ हरीतकी धातु गत दोषों/, विषों का भी पाचन करते हुए शरीर का शोधन करती है।
ऐसा मेरा मत है।
गुरुवर, आप इस पर अधिक प्रकाश डाल सकते हैं ।
👏👏
[12/21, 2:26 PM] Dr. Janardhana V hebbar:
True sir.
अन्नपानकृतान्दोषान्वातपित्तकफोद्भवान् |
हरीतकी हरत्याशु भुक्तस्योपरि योजिता ||२९|| - Bhavaprakasha Nighantu says the same thing.
If used after food, it relieves the adverse effects of food and drinks.
[12/21, 4:21 PM] Dr.Pradeep kumar Jain:
अति उत्तम प्रयोग भुक्तस्योपरी योजिता🙏🙏🙏
[12/21, 4:32 PM] Dr. D. C. Katoch sir:
Because Haritaki is laghu, ushna and anulomak so it facilitates proper digestion, intestinal peristalsis and absorption and excretion of digested food.
[12/21, 4:35 PM] Vd. Mohan Lal Jaiswal:
विचित्रप्रत्ययारब्ध व प्रभाव में अन्तर है। एक द्रव्य है तो दुसरा गुण है।
[12/21, 4:40 PM] Dr. D. C. Katoch sir:
प्रभाव द्रव्य का विशिष्ट अचिंतनीय कर्म होता है, गुण नहीं।
[12/21, 5:03 PM] Vd. Mohan Lal Jaiswal:
शिवदास सेन जी का सन्दर्भ ग्रहण करें।
तभी तो कहा जाता है कि द्रव्य का अमुक कर्म प्रभावजन्य है। हाँ यह विशिष्ट गुण की श्रेणी है।
सद्गुरु देव जी की कृति द्रव्यगुण विग्यान प्रथम भाग व'आयुर्वेद के छः दशक 'का भी अवलोकन प्रार्थित है।
[12/21/2021, 6:02 PM] Dr. D. C. Katoch sir:
यदि प्रभाव विचित्र गुण है तो उसका कर्म क्या है ?
जिज्ञासा है अन्यथा न लें।
प्रो जायसवाल जी !
[12/21/2021, 7:24 PM] Dr. Pawan Madan:
Right sir.
I am using and trying more to use Haritaki for such purposes.
It would be a great boon.
But in reality I havent found such good results.
I need to learn how to use this properly, in wht type of cases, in what ways...
🙏🙏
[12/21/2021, 9:23 PM] Dr. M B Gururaja:
Hon'ble Katoch Sirji...
एक संदर्भ में एक रेफेरेंस मिलता है।।
*गुण शब्देन चेह धर्मवाचिना रस वीर्य विपाक प्रभाव: सर्वा एव गृह्यन्ते ।*
So under the broad term guna even rasa, veerya, vipaka, prabhava all are considered ....
[12/21/2021, 9:29 PM] Dr. Surendra A. Soni:
🙏🏻🌹
गुणशब्देन चेह धर्मवाचिना रसवीर्यविपाकप्रभावाः सर्व एव गृह्यन्ते, तेन प्रभावादपि यद्वातविपरीतं तदपि गृह्यते। अन्ये त्वेकविपरीतशब्दलोपाद्विपरीतं विपरीतगुणं च ग्राहयन्ति; तेन विपरीतग्रहणात् प्रभावविपरीतं गृह्यते, गुणवैपरीत्याद्विपाकादयो गृह्यन्ते। ननु विपरीतगुणभूयिष्ठैरपि वातादीनां प्रशमो भवति,
आ. चक्रपाणि जी
च सू 1/59-61 पर
🙏🏻🌹👌🏻
[12/21/2021, 9:35 PM] Dr. D. C. Katoch sir:
Thanks a lot Dr Gururaja for shastra-based clarification.
[12/21/2021, 10:14 PM] Vd. Mohan Lal Jaiswal:
विशिष्ट गुण का विशिष्ट कर्म
[12/22/2021, 8:43 AM] Dr. D. C. Katoch sir:
🙏🏽🙏🏽 अब तो समझ गया हूं, धन्यवादसहित नमो नमः !!
[12/22/2021, 9:00 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*सुप्रभात एवं सादर नमो नमः 🌹🙏 कल आपके प्रश्न के बाद च सू 26 को पढ़ने पर चक्रपाणि की व्याख्या सहित लगा कि बहुत कुछ नवीन मिलता जा रहा है जैसे द्रव्यों का जीवनीय या मेध्य होना भी विशिष्ट गुण अथवा प्रभाव है और अब सभी जीवनीय गणादि द्रव्यों का अध्ययन पुनः करना पड़ेगा साथ ही द्रव्यों का नैसर्गिक (स्वाभाविक) बल का ज्ञान होना भी अत्यन्त महत्वपूर्ण है।*
*'प्रभावश्चेह द्रव्यशक्तिरभिप्रेता, सा च द्रव्याणां सामान्यविशेषः दन्तीत्वादियुक्ता व्यक्तिरेव, यतः शक्तिर्हि स्वरूपमेव भावानां, नातिरिक्तं किञ्चिद्धर्मान्तरम्; एवं प्रदेशान्तरोक्तगुणप्रभावादिष्वपि वाच्यम्; यथोक्तं- द्रव्याणि हि द्रव्यप्रभावाद्गुणप्रभावात् इत्यादि' च सू 26/68-72 पर आचार्य चक्रपाणि सहित व्याख्या कि अनेक द्रव्य रस के द्वारा, कुछ वीर्य, कुछ गुण, अनेक विपाक तथा कुछ प्रभाव के द्वारा अपना कर्म करते हैं। यहां बलवान अन्यों को दबा कर कार्य करता है। रस के द्वारा द्रव्यों का अगर हम चिंतन करें कि यह द्रव्य जीवनीय है या मेध्य है तो इसका ज्ञान प्राप्त नही होगा क्योंकि यह अचिन्त्य है तो इसे प्रभाव ही माना गया है।*
*यहां बल का क्रम इस प्रकार बना कि ...*
*रस को विपाक*
*रस और विपाक को वीर्य*
*रस,विपाक और वीर्य को प्रभाव अपने बल से दबा कर कार्य करता है।*
*प्रभाव द्रव्य में आश्रित विशिष्ट गुण ही है जो विशिष्ट कर्म करता है जैसे ...*
*चित्रक - रस कटु, विपाक कटु, उष्ण वीर्य*
*दन्ती - चित्रक की तरह उपरोक्त *
*यहां दन्ती का विरेचन कराना विशिष्ट कर्म है।*
*द्रव्यो का स्वाभाविक बल वो है जब द्रव्य रस,वीर्य,विपाक और प्रभाव की साम्यता रख कर कर्म करेगा।*
[12/22/2021, 9:02 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*सुप्रभात आचार्य जायसवाल जी, सूत्र रूप में अत्यन्त सटीक बात कही आपने 🌹🙏 *
[12/22/2021, 9:08 AM] Dr. D. C. Katoch sir:
निश्चित है हम द्रव्य के प्रभाव का कारणकार्य संबंध स्थापित नहीं कर सकते । I feel, so called 'Prabhav' of Ayurveda is specific pharmacological action of the dravya, whose dynamics are not revealed fully.
[12/22/2021, 9:12 AM] Dr. D. C. Katoch sir:
उस विशिष्ट गुण का उस विशिष्ट कर्म से फिर भी संबंध स्थापित नहीं हो पाता, यही तो निग्रहस्थान है।
[12/22/2021, 9:26 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*इसीलिये इसे अचिन्त्य शक्ति कहा है क्योंकि कार्यकारण सिद्धान्त और अन्य कोई भी वाद के तल पर जा कर देखें तो लगता है कि सामान्य बुद्धि बल अल्प पड़ रहा है । पर जो लिखा है मिल वही रहा है यही आयुर्वेद ज्ञान का 'प्रभाव' है।*
[12/22/2021, 11:16 PM] Vd. Mohan Lal Jaiswal:
आज जो अचिन्त्य है वह कालान्तर में अनुभव व विज्ञान के विकास के साथ चिन्त्य की श्रेणी में आ जायेगा।
[12/23/2021, 1:39 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*क्या मूल प्रकृति जो त्रिगुणात्मक है वो भी आ जायेगी ? महर्षि कणाद ने भौतिक राशियों (अमूर्त) को द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष और समवाय के रूप में नामांकित किया है।आयुर्वेद का अधिकांश पक्ष वैशेषिक दर्शन से लिया गया है जहां अभाव पक्ष भी है।*
*वैशेषिक दर्शन में चार प्रकार के अभाव माने गये हैं..*
*1 प्रागभाव - 'उत्पत्ते: पूर्वं कार्यस्याविद्यमानोऽभाव: प्रागभाव' किसी कार्य की अभी उत्पत्ति भी नही हुई तो उसका अभाव है और उत्पत्ति हो कर विनाश हो जाये। यह परंपरा अनादि कहलाती है।*
*2 प्रध्वंसाभाव - यह विनाश के बाद उत्पन्न होता है पर कभी इसका विनाश नही होता और अनंत है।*
*3 अन्योन्याभाव - एक वस्तु का दूसरी वस्तु में अभाव और 4 अत्यंताभाव - यह वह अभाव जो सर्वदा तीनों काल में विद्यमान रहता है और नित्य है जैसे स्पर्श वायु का गुण है और रूप चक्षु का, संसार में ये दोनो पदार्थ विद्यमान है पर पर रूप कभी भी वायु का गुण नही बनेगा अर्थात इनका आपस में संसर्ग नही होगा।*
*अगर हम उपरोक्त सारे पक्ष कोदेखें तो आयुर्वेद में अभाव को इसलिये प्रधानता नही दी गई कि यह चारों प्रमाणों से सिद्ध नही होता, इन्द्रियों द्वारा प्रत्यक्ष या अनुभव जन्य नही है और चिकित्सा तो भाव पदार्थों से ही की जायेगी अभाव से नही।*
*आप्तोपदेश, प्रत्यक्ष और अनुमान से हम अपने सिद्धान्तों और भावों की पुष्टि करते है पर आचार्य जायसवाल जी मेरा मत है कि आयुर्वेद के अनेक सिद्धान्त जो अमूर्त भाव जन्य है उन्हे हम आधुनिक विज्ञान की कसौटी पर कभी भी नही ला सकते । प्रकृति और पुरूष सूक्ष्म रूप मे, चेतना, मन आदि अनेक भाव सहित वात, पित्त, कफ सहित अनेक विषय ऐसे हैं जो आयुर्वेद तल पर ही समझे जा सकते है। आयुर्वेद की भाषा और इसकी व्याकरण जो जानता है वो तो मूल आयुर्वेद को समझ सकता है अन्यथा इसकी translations अनेक बार अर्थ का अनर्थ ही करेगी जो हम प्रतिदिन देख रहे हैं।*
*आयुर्वेद का अनुसंधान आधुनिक संसाधनों को माध्यम बना कर आयुर्वेदीय सिद्धान्तों पर और आयुर्वेदीय तल पर ही हो तभी बात बनेगी अन्यथा लोग वायु को air और पित्त को fire ही बनाकर इसका अनर्थ करते रहेंगे।*
[12/23/2021, 2:01 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*आयुर्वेद में अनुसंधान का क्षेत्र क्या हो सकता है ? पंचमहाभूत ! ये पांच ही रहेंगे कितने भी तर्क कर लीजिये, 5 ज्ञानेन्द्रियां, 5 कर्मेन्द्रियां और एक मन, तीन दोष, सात धातु और इसी प्रकार प्रभाव अर्थात अचिन्त्य शक्ति ये सब अकाट्य सत्य है क्योंकि इनका ज्ञान दिव्य ज्ञान है जो अनेक तर्कों से और स्वभाव से सिद्ध है। अनुसंधान तो जो भी होगा इनको आधार बनाकर ही संभव है इनको बदल कर नही क्योंकि हम इनकी अप्रामाणिकता सिद्ध किसी भी तर्क से कभी भी कर ही नही सकते । कितनी रिसर्च कर ली जाये पर प्रभाव तो प्रभाव ही मिलेगा ।*
[12/23/2021, 5:49 AM] Vaidya Sanjay P. Chhajed:
गुरुदेव क्षमा, हम आपसे असहमत हैं। सिर्फ आयुर्वेद ही मानवी शरीर के बारे में सुक्ष्मतम ज्ञान रखता है इससे । मानवी शरीर सर्वत्र एक-समान है। सर्वदूर, सभी काल में स्थित वैज्ञानिकों के लिए वह हमेशा पहेली रहा है। संपूर्ण विश्व में इसे सुलझाने के प्रयास हमेशा से होते आये है। अनुसंधान क्षेत्र की कोई सीमा हो नहीं सकती। ज्ञान असिमीत है, उस ज्ञान को पाने की चाहत भी उतनी ही होनी चाहिए। अनुसंधान इस ज्ञान की अनसुलझी कडीयों को जोड़ने की प्रक्रिया है। इसमें प्राचीन-आर्वाचीन या पूर्वी पश्चिमी भेद नहीं कर सकते। ह्रदय है यह सत्य- वह धड़कता है यह दुसरा सत्य- वह कुछ नलिकाओं से जुड़ा है - जो ३ प्रकार की है - यह भी सत्य - कुछ में धमन है - कुछ में सरण है- कुछ में स्त्रवन है - यह भी तो सत्य है। इस ह्रदय का धड़कना जीव का साक्ष रूप प्रमाण है। इस धड़कन से शरीर में पोषक द्रव्य का आवागमन होता है, यह प्रतिक्षण अलग-अलग प्रमाण एवं परीमाण में होती है यह भी त्रिकालाबाधीत सत्य है , जो सभी को स्वीकार है। अब इस शरीर के अंदर जीवित अवस्थाओं होनेवाली प्रक्रिया को बाह्य रूप से समझने की प्रक्रिया ज्ञान है। यह ज्ञान अनेकों विधाओं से संभव है। जो एक-दुसरे से विरोधी तो नहीं हो सकते। इन अलग-अलग विद्या शाखाओं को एक दुसरे के सिद्धांतों के समकक्ष समझने का प्रयास अनुसंधान है। वह एक दुसरे के विरोधी हो ही नहीं सकते। यही तो द्वैत भाव है। आज जो अदृष्ट है वह कल दृष्ट बन सकता है, पर उनके दृष्टता के साथ अन्योन्य संबंध के बारे मे पूर्वसुरीयोंने किये चिन्तन को नकारे बिना समझना विज्ञान है। *विज्ञान से ज्ञान की तरफ की यात्रा ही अनुसंधान है।* बस कडीयों को तो जोडना मात्र है।
[12/23/2021, 10:31 AM] Vd. Mohan Lal Jaiswal:
श्रद्धेय सुप्रभात वैद्यवर जी
हम आप के मत से सहमत हैं कि आयुर्वेद के मूल सिद्धांतों को आयुर्वेद पक्ष से ही समझा जा सकता है।
इसके साथ ही देखा जाय तो आयुर्वेद सर्व प्रगतिशील रहा है उसने कालक्रमानुसार अपने समकालीन अन्य शास्त्र के सिद्धांतों व नये द्रव्यो को अंगीकार किया तदनुसार वर्तमान परिप्रेक्ष्य मे ंप्रगतिशील विचार को रखते हुये परिवर्तन को समझने अपने सिद्धांतों पर अडिग रहते हुये नित्य प्रयत्नशील रहना चाहिए।
BAMS पाठ्यक्रम के वर्तमान स्वरूप से आप की पीडा के साथ हमलोग भी हैं।
ऊँ सद्गुरु देवाय नमः
आयुर्वेद अक्षुण्ण रहे।
[12/28/2021, 04:19 PM] Vaidya Ashok Rathod Oman
*73 yrs /Female from Bangalore K/c/o DM, CKD, HTN, Cardiomegaly H/o MI twice. On Renal Diet and allopathic management.*
*C/o raised K level on 7th December which was 5.58 along with breathing difficulty*
Advised 'Gud-Hareetaki' as per Guruvarya Subhash Sir's recommended dose of *10 grams of Hareetaki + 20 grams gud twice a day.*
Patient was not happy with the test. I insisted to continue. Patient reduced dose and frequency as well on her own as *once a day and 8 gram Hareetaki+10 grams Gud at morning only.*
Repeated test on *24th December, found K level is down to 5.19 and no breathing difficulty since last ten days*
Now, Patient is very happy and decided to continue the dose as advised.
*Thanks to Kayasampradaya for the precious guidance* 🙏🙏🙏🌹🌹🌹🌹😊
[12/28/2021, 7:46 PM] Dr. Surendra A. Soni:
Very good Sir !
Thanks for feed back.
🙏🏻🌹
[12/28/2021, 7:55 PM] Dr. Santanu Das:
Nice.... 👌🏻
[12/28/2021, 7:58 PM] Vd Sachin Vilas Gajare Maharashtra:
गुड हरितकी योग बताने के पीछे क्या उद्देश गुरुदेव सुभाष जी ने आपको उस समय बताए,कृपया साझा करे।
[12/28/2021, 8:03 PM] Dr. Ramesh Kumar Pandey:
Really encouraging👍👍
A new but successful experiment
Thanks for sharing👏👏
[12/28/2021, 10:04 PM] Vaidya Ashok Rathod Oman:
जी आचार्य, यह रुग्णा काफी समय से मेरे चिकित्सा ले रही हैं। october 2021 के तृतीय सप्ताह में second episode of MI की वजह से ICU में कुछ दिन रही। रुग्णालय से बताया गया की वे किसी भी intervention के लिये medically fit नही हैं और उनकी स्वास्थ्य चिंताजनक एवं गंभीर हैं। सारे करिबी रिशतेदार को खबर किया गया। मस्कत स्थित उनकी पुत्री जो मेरी नियमित रुग्णा हैं वे भी उनकी अंतिम क्रियाकरम की पूर्ती के लिये वहां चली गयी। जब की हॉस्पिटल मे उनको देने जैसी कोई चिकित्सा बची नही थी तो उन्हे घर भेज दिया गया। मेरी रूग्णा ने मुझे कॉल करके ये सब हकीकत बतायी और मैं कुछ सुझाव दे सकता हुं तो कृपया देकर देखे ऐसे कहा। कुछ औषधींया शूरु की गयी। रुग्णा का स्वास्थ्य बेहतर होने लगा। cardiologist से routine check up किया गया। cardiologist ने भी रुग्णा की सेहत में रिकव्हरी की पुष्टी की। डिसेंबर के प्रथम सप्ताह में रुग्णा को विष्टम्भ के लक्षण मिले। ब्लड रिपोर्ट मे K level का उछाल मिला। मैने गुड हरीतकी का प्रयोजन विष्टम्भ के लिये किया। जिससे रुग्णा को उपशय मिला । अंततः blood report में K level मे भी correction मिला। विशेष बात बताना चाहता हुं की रुग्णा को गोमुत्र हरीतकी के नियमित सेवन के बावजुद ये विष्टम्भ हुआ था। यहा पर गुड हरीतकी संयोग ने अपना कार्य सिद्ध कर दिया। रुग्णा स्वास्थ्य महसुस कर रही हैं एवं उनकी पुत्री ये भी कह रही हैं की उनकी माताजी अब उनसे किसी किसी बात पे झगडा भी कर सकती हैं।
जय आयुर्वेद। जय कायसंप्रदाय। 🙏🙏🙏🌹🌹
[12/28/2021, 10:45 PM] Dr. Pawan Madan:
Great...👍👍👌🏻👌🏻
[12/28/2021, 10:47 PM] Dr. Pawan Madan:
👌🏻👍👌🏻👍👌🏻👍
[12/28/2021, 10:54 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*पक्वाश्य गत वात का अनुलोमन सहित शोधन और कुपित दोषों का निर्हरण कर दिया आपने ।* 👌👏👍 🌹❤️
[12/28/2021, 11:50 PM] Vaidya Ashok Rathod Oman:
धन्यवाद गुरुवर्य। आपने यथायोग्य एवं कम से कम शब्दो में रचित कर मेरी सहायता करी।* 🙏🙏🙏🌹🌹🌹
[12/29/2021, 12:27 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*आपने जो 'गुड़ हरीतकी ' का प्रयोग किया उसका सीधा प्रभाव समान और अपान वात पर होता है, हरीतकी- रसायन, दीपन, यकृत प्लीहा।*
*अब समान वात को अगर ध्यान से देखें
'समानोऽन्तरग्निसमीपस्थस्तत्सन्धुक्षणः पक्वामाशयदोषमलशुक्रार्तवाम्बुवहः स्रोतोविचारी तदवलम्बनान्नधारणपाचनविवेचन्किट्टाऽधोनयनादिक्रियः' अ स सू 20/6
स्थान -
स्वेदवाही, दोषवाही, अम्बुवाही, मलवाही, शुक्रवाही, आर्तववाही स्रोतस, अन्तराग्नि का पार्श्व स्थित क्षेत्र- आमाशय, पच्यमानाशय, पक्वाशय के साथ जठर, कोष्ठ, नाभि*
*कर्म -
स्वेद, दोष, अम्बु, शुक्र, आर्तव धारण, अग्नि संधुक्षण, अन्न धारण, अग्नि बल प्रदान, अन्न विपचन, अन्न-मल विवेक, किट्टाधोनयन, स्रोतोवलंबन*
*अग्निव्यापार में पाचक पित्त के साथ इसकी प्रमुख भूमिका है।*
*आगे जब अपान वात के कर्मों और हरीतकी के गुणों पर जायें तो पक्वाश्यगत समस्त वात पर इसका प्रभाव मिल रहा है,
'अपानस्त्वपानस्थितो बस्तिश्रोणिमेढ्रवृषणवङ्क्षणोरुचरोविण्मूत्रशुक्रार्तवगर्भनिष्क्रमनादिक्रिय'
अ स सू 20/6
स्थान -
वृषण, बस्ति, मेढ्र, योनि, वंक्षण, ऊरू, नाभि, श्रोणि, पक्वाधान, गुद, आन्त्र।*
*कर्म-
शुक्र, आर्तव, गर्भ, मल, मूत्र धारण-उत्सर्ग*
*हरीतकी धात्वाग्नि के तल पर गौमूत्र के साथ मिल कर इतनी प्रभावकारी है कि hypothyroidism में TSH level को सामान्य ला देती है, आवरण को दूर करती है, गुड़ के साथ मिल कर वहां तक कार्य करती है जिसकी आप कल्पना भी नही कर सकते।*
*आयुर्वेद तल में मूल सिद्धान्तों के आधार पर चिकित्सा का अपना ही आनंद है जो पूर्णतः वैज्ञानिक है।*
[12/29/2021, 12:28 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*हरीतकी व्यान वात पर भी कार्य करती है।*
[12/29/2021, 12:34 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*बहुत पहले हमने गुणों पर लिखना आरंभ किया था तथा गुरू और शीत गुण पर विस्तार से लिखा था। अगर 20 गुणों को सूक्ष्मता से जान लें तो दोषों की अंशाश कल्पना के साथ द्रव्यों के गुणों का बहुत स्पष्ट सांमजस्य स्थापित होता है जो स्रोतस की होने वाली दुष्टि से संबंधित है और चिकित्सा सिद्धान्त और द्रव्यों का चयन किस प्रकार किया जाये स्पष्ट कर देता है।*
*आयुर्वेद को जानने के अनेक मार्ग है और चिकित्सा का ये पूरा नेटवर्क एक दूसरे से पूरी तरह संबंधित है।*
[12/29/2021, 12:39 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*अनुलोमन में खाली पेट हरीतकी सर्वश्रेष्ठ है जो अपान वात पर सीधा कार्य करती है और वात का अनुलोमन तथा वृद्ध दोषों को शरीर से बाहर निकाल देती है। *
[12/29/2021, 12:41 AM] Vaidya Ashok Rathod Oman:
*अनमोल ज्ञान कुंजी के लिये सादर धन्यवाद, गुरुवर्य।* 🙏🙏🙏🌹🌹🌹
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Above discussion held on 'Kaysampraday"(Discussion) a Famous WhatsApp-discussion-group of well known Vaidyas from all over the India.
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Vd. Rituraj Verma
B. A. M. S.
Shri Dadaji Ayurveda & Panchakarma Center, Khandawa, M.P., India.
Mobile No.:-
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Edited by
Dr.Surendra A. Soni
M.D., PhD (KC)
Professor & Head
P.G. DEPT. OF KAYACHIKITSA
Govt. Akhandanand Ayurveda College
Ahmedabad, GUJARAT, India.
Email: surendraasoni@gmail.com
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