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Case-presentation: Fatty Liver Grade- III, [Non-alcoholic Fatty Liver Disease (NAFLD)] by Vaidyaraja Subhash Sharma

[9/9, 4:29 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:

*case presentation - 

एक देशीय मेदो यकृतशोथ grade 3 fatty liver non alcoholic disease (NAFLD) एवं यकृत बल्य = यकृत पित्त प्रसादन व्यवस्था...*

*वैद्यराज सुभाष शर्मा, एम.डी.(काय चिकित्सा, जामनगर -1985)*

*रोगी 40 yrs/ male / businessman*

*रोगी दिखने में स्वस्थ है किंचित मेदस्वी था तथा अपने साथ fibroscan एवं अन्य परीक्षणों के साथ आया था जिसमें fibro scan की report इस प्रकार थी..*

28-2-24

CAP- 304- fatty liver grade 3

26-7-24

CAP- 220 - normal value

*आयुर्वेदानुसार यह एक अनुक्त व्याधि है, आयुर्वेद चिकित्सा शास्त्र 
'शास्त्रप्रयोजनं यदातुरव्याधिहरणं स्वस्थस्य स्वास्थ्यरक्षणं च; यदाह- स्वस्थातुरपरायणम्' 
च सू 5/1 पर आचार्य चक्रपाणि मत है कि व्याधि की तो चिकित्सा करनी ही है पर स्वस्थ मनुष्य के स्वास्थ्य की रक्षा प्रथम महत्वपूर्ण कार्य है और शरीर पर निरंतर विभिन्न उपलब्ध साधनों, तकनीक और इन्द्रियों को साधन बनाकर यह ज्ञान बनाये रखना कि कहीं जो रोगी हमारे सामने है उसमें षडक्रिया काल की कहीं संचय या प्रकोप अवस्था तो नहीं घटित हो रही जो आगे चल कर अन्य गंभीर व्याधियों का risk factor ना बन जाये !*

*स्थौल्य या मेदोरोग जो स्वयं ही अनेक रोगों को आमन्त्रित करता है।*
*triglycerides के स्तर को सामान्य से अधिक करना*
*कटि प्रदेश को अति स्थूल या दीर्घ करना*
*HDL कोलेस्ट्रॉल का निम्न स्तर*
*रक्त में शर्करा का स्तर सामान्य से अधिक रखना, आपने देखा होगा कि क्यों हम इसीलिये आधुनिक मधुमेह में फलत्रिकादि का प्रयोग सर्वाधिक करते हैं क्योंकि अनेक रोगी मधुमेह के fatty liver साथ ले कर आते हैं और फलत्रिकादि क्वाथ दोनो ही कार्य कर देते हैं।*
*रक्त में माधुर्य भाव की अधिकता या आधुनिक भाषा में type 2 diabetes*
*blood pressure का सामान्य से अधिक या अति उच्च स्तर पर आना*

*Grade 3 fatty liver अवस्था का अभिप्राय है कि किसी व्यक्ति के यकृत में वसा या एकदेशीय मेदो संचय का प्रतिशत अधिक है। ग्रेड 3 NAFLD तब होता है जब किसी व्यक्ति के यकृत में वसा का प्रतिशत 66% से अधिक होता है और गंभीर शोथ हो जाता है।ग्रेड 3 से जुड़ी अति मेद व्यक्ति में रोग वृद्धि का जोखिम बढ़ाती है एवं गंभीर अवस्थाओं में रोगी को लीवर ट्रांसप्लांट की भी अवस्था तक पहुंचा सकती है।*

*रोगी शाकाहारी है, रात्रि भोजन काल 9-10 बजे होता है, कोई अधिक व्यायाम की प्रवृत्ति नहीं है और कभी मद्यपान नहीं करता।*

*लक्षण- केवल अंगसाद, आलस्य, दौर्बल्य, मल प्रवृति असंतुष्ट, अल्प एवं तीन चार बार। यह सब कोई रोग के लक्षण नहीं प्रतीत हो रहे थे और सामान्यतः स्वस्थ लोगों में भी तात्कालिक मिलते हैं। यह एक देशीय मेदजन्य यकृत शोथ (grade 3 fatty liver non alcoholic disease NAFLD) आमतौर पर लक्षणों का कारण नहीं बनता है। आधुनिक मत से कुछ विशेषज्ञ इसे इस एक मूक या साईलेंट रोग कहते हैं। यहां तक ​​कि जिन रोगियों को यकृदाल्युदर या सिरोसिस आफ लिवर हो जाता है उनमें भी कुछ समय तक कोई लक्षण नहीं दिखाई देते और जब वे होते हैं तो लक्षणों में उदर के ऊपरी दाहिने हिस्से में शूल या बेचैनी और दौर्बल्य हो सकते हैं।*

*आयुर्वेद के अनुसार हम इस यकृत शोथ को क्या व्याधि मानें ? अगर व्याधि मानेंगे तो यहां षडक्रिया काल के अनुसार चलते हैं और देखते हैं यकृत में मेदो वृद्धि जन्य शोथ की व्याधि की उत्पत्ति के षडक्रिया काल की प्रमुख दो स्थितियां संचय और प्रकोप है तथा उसके बाद प्रसर अवस्था अभी उत्पन्न ही नहीं हुई है।दोषों का संचय अपने स्थान पर होता है, यहीं पर चय हुये दोष का प्रकोप भी होता और यह दोष की वृद्धि होती है।उस वृद्ध दोष के लक्षण भी यहीं मिलेंगे, जब दोष का संचय और कोप दोनो ही दोष की वृद्धि है तो दोनो में भिन्नता कैसे माने ? संचित दोष जब अपने लक्षण संचित स्थान पर  प्रकट करेगा तो विरूद्ध गुण वाले द्रव्यों या कर्मों से शांत हो जायेगा और अब यही प्रकोप के लक्षण शरीर मे भिन्न स्थानो पर मिलेगे तो जरूर पर अपने चय स्थान क्षेत्र में साथ साथ अवश्य मिलेंगे। यहां दोष अल्प बली हैं, लक्षण विशेष प्रकट नहीं कर रहे और modern technology fibro scan की सहायता ले कर हम शरीर के आभ्यन्तरिक अवयव ज्ञान यकृत तक पहुंचे हैं कि वह सामान्य है अथवा दूषित !*

*पित्त का मूल यकृत भी है जहां यह उत्पन्न होता रहता है और इसका संचय स्थल पित्ताशय है, पाचन काल में तो यह पित्तनलिका द्वारा ग्रहणी में आता रहता है और शेष समय यह पित्ताशय में एकत्र रहता है। Fatty liver में यकृत में मेद संचय होने से पित्त की गति मंद और सान्द्र गुण से प्रभावित रहती है जो पित्त के संचयीभाव का भी एक कारण बनता है और मेद का भी जिस से हम इसे संचय काल जो चिकित्सा का प्रथम काल है ग्रहण कर के चले हैं।*

[9/9, 4:29 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma: 

*संचय काल होने से हम चिकित्सा सूत्र और कर्म संबंधित कर के चले हैं...*

*यकृत पित्त प्रसादन*
*दीपन*
*पाचन*
*अनुलोमन*
*मेद क्षपण*
*भेदन*
*सामान्यतः शरीर भार का लगभग 5-7 % वज़न कम करने से यकृत के आस-पास की चर्बी कम करने में बहुत सहायता मिल सकती है, जबकि शरीर का लगभग 10% से 15% body wt. कम करने से यकृत शोथ और यकृत के scars  को अल्प करने में हमें चिकित्सा क्षेत्र में सफलता मिल जाती है।*

*नियमित व्यायाम या शारीरिक गतिविधियां जैसे एक ही स्थान पर अधिक देर तक नहीं बैठे रहना।आजकल computer एवं tv के युग में यह अधिक हो रहा है।हमारा अनुभव है कि 40 मिनट बाद कुछ देर उस स्थान से उठ कर पुनः बैठना चाहिये।*

*मद्यपान fatty liver वालों के लिये बहुत हानिकारक है।*
*अधिक माधुर्य भाव जैसे cold drinks, ice cream, cake, pastry, चाय के साथ बिस्किट का चलन ज्यादा ही बढ़ गया है इस से बचना चाहिये, मैदे से बने पदार्थ, अधिक वसा युक्त एवं fried पदार्थ।*

*आधुनिक मधुमेह या उच्च कोलेस्ट्रॉल की चिकित्सा अवश्य करनी चाहिये।*

*अनाज कम कर के अधिक मात्रा में शाक और फल सहित मूली, खीरा, ककड़ी आदि का प्रयोग भी रोगी को ऋतु के अनुसार कराया गया।*

*दीपन-पाचन एवं अनुलोमन के लिये...*
*शुण्ठी-जीरक फांट, यह हमारे प्रिय योग है। लगभग 500 ml जल में लगभग 5 gm जीरक और 3 gm शुण्ठी को अच्छी चाय की तरह उबाल कर छान लेते हैं और एक flask में भरकर गर्म ही रख देते हैं तथा पूरा दिन 10-11 बजे प्रातः काल से सांय 6 बजे तक बीच बीच में एक दो घूंट भर कर पीते रहें।*

*यह योग हम आमवात सहित आम प्रदोषज अनेक रोगियों को भी हम देते हैं और अनेक व्याधियों में तो इतना लाभकारी है कि रोगों की तीव्रता को भी समूल समाप्त करने की सामर्थ्य रखता है। इन दोनों साधारण से दिखने वाले द्रव्यों की कार्मुकता देखिये..*

*शुण्ठी.....*
*रस - कटु*
*गुण - लघु, स्निग्ध*
*वीर्य - उष्ण*
*विपाक - मधुर*
*कर्म -कफ-वात शामक*
*पाचन संस्थान - दीपन, पाचन, अनुलोमन, शूल प्रशमन।*

*जीरक....*
*रस - कटु*
*गुण - लघु, रूक्ष*
*वीर्य - उष्ण*
*विपाक - कटु*
*कर्म - कफ-वात शामक एवं पित्त वर्धक, मूत्रल, रक्त शोधक, यह कटु पौष्टिक होने से अल्प मात्रा में बल की वृद्धि करता है।*
*पाचन संस्थान - दीपन, पाचन, अनुलोमन, शूल प्रशमन और कृमिघ्न।*

*Grade 3 fatty liver रोगी को हमने कोई विशिष्ट औषधियां ना दे कर फलत्रिकादि क्वाथ में कासनी मिलाकर, 'कासनी-फलत्रिकादि क्वाथ' नाम रख कर सूक्ष्म चूर्ण 5-5 gm प्रातः सांय 1 घंटा भिगोकर फांट विधि से दिया। क्वाथ का fine powder या सूक्ष्म चूर्ण कर देने से रोगी अब by air flight में भी 1 cup गर्म पानी में 5 gm 20 मिनट अच्छी तरह चला कर रख दें तो वो नीचे बैठ जाता है, क्रिया का लोप नहीं होता और औषध की निरंतरता भी बनी रहती है।*

[9/9, 4:29 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma: 

*आयुर्वेद में अनेक संज्ञायें, विशेषण एवं क्रियायें एसी है जिनमें बहुत गंभीर छुपे अर्थ को समझ ले तो वे पूर्ण चिकित्सा को ही स्पष्ट कर रहे हैं जैसे प्रसादन, प्रसादन शब्द प्र+सद्+णिच् + ल्युट से निर्मित है जिसका अर्थ पवित्र, स्वच्छ, निर्मल, शुद्ध एवं आनंदित करने वाला है। यह वृद्धि का भी सूचक है और क्रिया शीलता को भी बताता है।*

*दोषों में इसे लागू करें तो 'पित्त प्रसादक' से हम क्या लेंगें ! विशुद्ध पित्त की वृद्धि या मात्रा को जो बढ़ाये और उसकी क्रिया की भी वृद्धि करेगा और करेगा उसके समुचित या जो आवश्यक हो उसके गुणों की।*

*पांचों पित्त में पाचक पित्त प्रधान है और अन्य पित्त अनेक स्थलों में इसी पर आश्रित हैं, पाचक पित्त का प्रसादन होगा तो वह अन्य पित्तों के लिये प्रसादन में सहयोगी बनेगा। जैसा हमने ऊपर लिखा है यह प्रसादन क्रिया स्वरूप भी है तो पाचक पित्त का प्रसादन आमाशय की क्रिया का प्रसादन, आहार के पाचन हेतु अग्नि रस का प्रसादन, यकृत में स्थित पित्त रस का प्रसादन एवं आन्त्रों में स्थित पाचन से संबंधित रसों का भी प्रसादन करेगा साथ ही जो रस पहले से शुद्ध है उनकी रक्षा भी करेगा।*

*जब भी हम पित्त पर चर्चा करते हैं तो आमाशय का अधोभाग पित्त का भी है तो इसके साथ ही यकृत, पित्ताश्य एवं अग्नाश्य को भी साथ ही ग्रहण कर के चलें तो पित्त प्रसादक इन अव्यवों को उत्तेजित करते हैं, अधिक स्राव करा कर पित्त की मात्रा का वर्धन कर पित्त की क्रिया को समावस्था में रखते हैं।*

*यह सिद्धान्त हमेशा के लिये स्मरण कर लीजिये क्यों कि आने वाले वर्षों में आधुनिक मधुमेह, CAD जहां संग दोष है, lipid profile को समावस्था में लाने के यह आपके काम आयेगा इस पर हम आगे धीरे धीरे प्रमाण सहित अब case presentations देंगे।*

*पित्त प्रसादन में अम्ल, कटु एवं तिक्त रस प्रधान द्रव्यों का अधिक योगदान होता है। अगर आमाशय में पित्त प्रसादन करना है तो ऐसे द्रव्य अम्ल, लवण एवं कटु रस प्रधान होते हैं।*

*जब भी हम यकृत दुष्टि के रोगी देखते हैं उनमें ऐसे लक्षण प्रायः मिलते ही हैं जो आमाशय से संबंधित रहते हैं तो आमाशय को बल देने के लिये हमें निम्न द्रव्यों में से चयन करना चाहिये...*

*आमलकी, हरीतकी, यवानी, अजमोद, अनारदाना, एला, रसोन, जीरक, लवंग, तुलसी, सौंफ, विभीतक, करौंदा, कुटकी, कर्पूर, नागरमोथा, शुंठि, दालचीनी, तुलसी, मिश्री, धान, पपीता, पुदीना, नींबू, पीपल, पीपलामूल, जायफल, जावित्री, तेजपात, तालीस, यवक्षार, राई, कूठ, नागरमोथा, सुरा, आसव एवं अरिष्ट ।*

*यकृत पित्त प्रसादक - यह द्रव्य यकृत स्थित पित्त का प्रसादन कर यकृत को बल प्रदान करते है और उष्ण वीर्य एवं शीत वीर्य दोनों ही हो सकते हैं तथा प्रायः तिक्त और कटु रस की अधिकता से युक्त रहते हैं जैसे, कुटकी, कूठ, कासनी, चिरायता, पोदीना, एलुवा, लवंग, केसर, पित्तपापड़ा, मामज्जक, मरिच, नागकेशर, नवसार, जायफल, कचूर, बिजौरा नींबू आदि।*

*अनेक पुराने वैद्य पित्ताशय अश्मरी में पुरूषों को रजः प्रवर्तिनी वटी देते थे और हम अभी भी देते हैं क्योंकि इसमें एलुवा है, olive oil के साथ हम बिजौरा नींबू स्वरस में शुंठि, मरिच और पीपल का चूर्ण भी इसीलिये देते हैं । कुटकी और कासनी का प्रयोग सर्वाधिक करते ही हैं। आमाशय, यकृत, पित्ताशय और अग्नाशय को साथ ही ले कर यहां चलेंगे तभी चिकित्सा में सफलता मिलेगी और उपद्रवों से बचेंगे कि कहीं पित्ताशय की अश्मरी आगे pancreas में ना अटक जाये।*

*यकृत शोधक - पुनर्नवा, उशीर, शतावरी, बला, चंदन, गुडूची, इन्द्रायण, कांचनार, पटोल एवं इन्द्रायण आदि यकृत की शुद्धि कर पित्त रस को सामान्य ला देते हैं।*

*सामान्यतः यकृत का कर्म ही शरीर में प्रायः पित्त की वृद्धि या पित्त के क्षय का प्रमुख कारण है।*

[9/9, 4:29 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma: 

*कासनी-फलत्रिकादि क्वाथ घटक एवं कार्मुकता देखिये...*

*0 - कासनी....*
*रस - तिक्त*
*गुण - लघु, रूक्ष*
*वीर्य - उष्ण*
*विपाक - कटु*
*कफ पित्त हर, मूत्रल,यकृत् और प्लीहा रोग, अग्निमांद्य, कामला और पित्तोदर में अत्यन्त प्रभावी।*
*पाचन संस्थान - यकृत् उत्तेजक, दीपन, पित्त सारक।*
*रस-रक्त वाही स्रोतस - ह्रद द्रव में बहु उपयोगी।*

*1- हरीतकी -*
*रस - मधुर, अम्ल, कटु, तिक्त और कषाय एवं प्रधान रस कषाय*
*गुण - लघु-रूक्ष*
*वीर्य - उष्ण*
*विपाक - मधुर*
*प्रभाव - त्रिदोष नाशक*
*मधुर तिक्त कषाय से पित्त नाशक, कटु तिक्त कषाय से कफ नाशक और अम्ल रस से वातनाशक है।दीपन, पाचन, अनुलोमन, कृमिघ्न, यकृद् उत्तेजक, मूत्र विरेचक, मल विरेचक मृदु रूप में, रसायन, मेध्य।*

*पाचन संस्थान - दीपन, पाचन, यकृत उत्तेजक, अनुलोमन, मृदु रेचक।*

*2- विभीतक -*
*रस - कषाय*
*गुण - रूक्ष-लघु*
*वीर्य - उष्ण*
*विपाक - मधुर*

*उष्ण वीर्य से वात शामक, मधुर विपाक और कषाय रस होने से पित्त शामक, गुणों में रूक्ष, लघु और रस में रषाय होने से यह कफ शामक हो कर त्रिदोष नाशक है।*
*दीपन, अनुलोमन, भेदन, रक्त स्तंभक, चक्षुष्य, वेदना स्थापक।*

*पाचन संस्थान - दीपन एवं अनुलोमन*


*3- आमलकी -*
*रस- अम्ल प्रधान पंचरस, लवण रहित*
*गुण - लघु-रूक्ष*
*वीर्य - शीत*
*विपाक - मधुर*
*अम्ल रस से वात शामक,मधुर रस और शीत वीर्य होने से पित्त शामक, लघु-रूक्ष गुण और कषाय रस से कफ शामक*

*अग्निमांद्य, अम्लपित्त, उदर विकार, रक्तपित्त, ह्रदय विकार आदि के साथ रसायन है*

*पाचन संस्थान - दीपन,
अम्लतानाशक, यकृत उत्तेजक एवं अनुलोमन*

*4- गुडूची -*
*रस- तिक्त -कषाय*
*गुण - स्निग्ध - गुरू*
*वीर्य - उष्ण*
*विपाक - मधुर*

*उष्ण वीर्य और स्निग्ध गुण से वात शामक, तिक्त और कषाय रस पित्त और कफनाशक होने से इसका स्वभाव भी त्रिदोष नाशक बना है।*
*दीपन, ज्वरघ्न, रसायन, विषध्न, मूत्रजनन, बल्य*

*पाचन संस्थान - दीपन, पाचन, पित्तसारक, अनुलोमन एवं आमाशय की अम्लता को अल्प कर देती है।*

*5- निम्ब -*
*रस - तिक्त-कषाय*
*गुण - लघु*
*वीर्य - शीत*
*विपाक - कटु*

*पित्त कफ शामक तिक्त रस के कारण, निम्ब रस प्रधान द्रव्य है, पाचन, ज्वरघ्न, शोथघ्न, दाहप्रशमन, व्रणशोधन, व्रणपाचन, कृमिघ्न, रक्तशोधक और यकृद् उत्तेजक*

*पाचन संस्थान - यकृत उत्तेजक एवं एवं पित्त के द्रव गुण का शोषण करता है जिस से अम्लपित्त रोग में बहुत अच्छा परिणाम भी देता है।*


*6- कटुकी -*
*रस - तिक्त*
*गुण - रूक्ष, लघु*
*वीर्य - शीत*
*विपाक - कटु*

*दीपन, पाचन, कफ-पित्त शामक, भेदन, लेखन, स्रंसन और विरेचन, यकृत उत्तेजक, पित्त विरेचक, ह्रदय रोग में भी लाभकारी।*

*पाचन संस्थान - दीपन, यकृत उत्तेजक, पित्त सारक एवं मात्रा में अधिक दें तो रेचन करती है।*

*7- वासा -*
*रस - तिक्त-कषाय*
*गुण - रूक्ष-लघु*
*वीर्य - शीत*
*विपाक - कटु*

*कफ पित्त शामक, श्लेष्महर, मूत्र प्रवर्तक, ज्वरहर, वेदनास्थापन, स्वेदजनन, श्वास रोग में अत्यन्त लाभकारी, ह्रद्य और विशेषकर कफ विकारों में बहुत उपयोगी।*

*पाचन संस्थान - शीत-कषाय से यह स्तंभन कर के यदि पित्त वृद्धि भी हो तो यह उसकी balancing कर देता है।*

*8- किरातिक्त -*
*रस - तिक्त-कषाय*
*गुण - लघु*
*वीर्य- शीत*
*विपाक - कटु*

*उष्ण वीर्य होने से वात-कफ शामक और तिक्त होने से कफ-पित्त शामक।ज्वरघ्न, यकृद् उत्तेजक, शोथघ्न।*

*पाचन संस्थान -दीपन, पाचन, पित्त सारक और अनुलोमन।*

*'कासनी-फलत्रिकादि क्वाथ' के संपूर्ण घटक द्रव्य 9 बनते हैं उनके रसादि का योग इस प्रकार बनता है ...*
*रस - मधुर, अम्ल, कटु, तिक्त, कषाय पर सर्वाधिक रस तिक्त और कषाय मिलने से तिक्त-कषाय प्रधान*
*गुण - गुरू-लघु, रूक्ष-स्निग्ध*
*वीर्य - 4 द्रव्य शीत वीर्य और 5 उष्ण वीर्य जिनके कारण यह क्वाथ 'उष्ण वीर्य' बन गया ।*
*विपाक - 4 द्रव्यों का विपाक मधुर है और 5 द्रव्यों का विपाक कटु होने से कटु-मधुर विपाक।*
*त्रिदोष शामक प्रभाव - 9 में से सर्वाधिक 5 द्रव्य त्रिदोष शामक है और 4 द्रव्य कफ-पित्त शामक होने से यह त्रिदोषशामक है।*

*रोगी की चिकित्सा अवधि का काल लगभग तीन मास का रहा जिसमें रोगी का षडक्रिया काल में चिकित्सा का प्रथम चरण सफल रहा और fibro scan में report normal आ गई ।*







[9/9, 4:36 PM] Prof. Madhava Diggavi: 

Most welcome to the clinical diagnosis and treatment protocol sir 
Dhanyawad !

[9/9, 4:55 PM] Vd. Arun Rathi Sir, Akola: 

*प्रणाम गुरुवर*

🙏🙏🙏

*Excellent Spoon Feeding*
😊😊😊

[9/9, 5:42 PM] Vd.Rituraj verma 🇮🇳: 

श्रेष्ठ गुरुदेव🙏🙏🙏

[9/9, 6:38 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma: 

*अत्यन्त आभार 🌹🙏*

[9/9, 7:36 PM] Vd.Surendra Sharma Hyderabad: 

श्रेष्ठ गुरुदेव 🙏👍👌🪷

[9/9, 7:39 PM] Dr Mansukh R Mangukiya Gujarat: 

🙏 प्रणाम गुरुवर 
आप की उपस्थिति ग्रुपमें संजीवनी जैसा काम करती है।

[9/9, 7:48 PM] Dr. PM Sharma: 

अतुलनीय 🙏🏻🙏🏻

[9/9, 9:30 PM] Vd. Mohan Lal Jaiswal: 

ऊँ
शुभरात्रि वैद्यवर जी सादर प्रणाम जी
युक्तिसंगत औषधव्यवस्था के साथ 
1-फलत्रिकादि + कासनी
2- शुण्ठी + जीरक 
का सुसंयोग।

[9/9, 10:43 PM] Dr. Ramesh Kumar Pandey: 

आदरणीय सर जी, सादर प्रणाम !👏👏
इतना विस्तृत ज्ञान देने के लिए आपको सादर धन्यवाद एवम साधुवाद 
👏👏

[9/10, 2:09 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma: 

*सादर सस्नेह नमन आचार्य जायसवाल जी !🌹🙏*







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Above case presentation & follow-up discussion held in 'Kaysampraday (Discussion)' a Famous WhatsApp group  of  well known Vaidyas from all over the India.
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Presented by-




















Vaidyaraja Subhash Sharma

MD (Kaya-chikitsa)

New Delhi, India

email- vaidyaraja@yahoo.co.in


Compiled & Uploaded by-

Vd. Rituraj Verma
B. A. M. S.
Shri Dadaji Ayurveda & Panchakarma Center,
Khandawa, M.P., India.
Mobile No.:-
 +91 9669793990,
+91 9617617746

Edited by-

Dr. Surendra A. Soni
M.D., PhD (KC) 
Professor & Head
P.G. Dept of Kayachikitsa
Govt. Akhandanand Ayurveda College, Ahmedabad, Gujarat, India.
Email: kayachikitsagau@gmail.com















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