[1/25, 12:37 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma: *आयुर्वेद रहस्य - - पित्त प्रकरण भाग - 1 * *25-1-22* *पिछली चर्चा में कुछ जिज्ञासाओं के उत्तर सहित ....* *सद्रव और निर्द्रव पित्त* *क्या पित्त और अग्नि एक है ?* *जब जब पाचक पित्त का द्रव गुण त्यक्त होता है तब उसे अनल संज्ञा दी जाती है।* *पित्त सस्नेह अर्थात जब स्नेह से युक्त होता है तो उष्ण और तीक्ष्ण होता है। आमाश्य कफ का स्थान है जिसके अधोभाग में पित्त भी स्थित है यह पित्त स्नेह युक्त पित्त है और द्रव भी जो क्लेदक कफ को सहयोग देता है यह सद्रवं पित्त है यदि लंघन या उपवास करें तब भी पित्त उपस्थित होता है पर पित्त की द्रवता अत्यन्त अल्प रह जाती है एवं वात का रूक्ष गुण स्निग्ध गुण को भी अत्यन्त अल्प कर देता है। इसे और समझें तो मधुर अवस्थापाक तक क्लेदक कफ सामान्य है अब अगर इसमें स्नेह, मधुर, अम्ल, पिच्छिल, द्रवादि सब हैं यहां पित्त में स्नेह अधिक है, इसके बाद अम्लपाक में अम्ल हो कर ग्रहणी में आयेगा जहां स्वच्छ पित्त बनता है और आहार के पूर्ण पाचन तक ग्रहणी इसे धारण करती है, यहां स्नेह कम हो गया लेकिन अम्ल और द्रव भाव अधिक हैं और अन्न का अंत
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