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Case-presentation: अर्बुद {inflammatory myofibroblastic tumor benign (IMT)}- आयुर्वेदीय चिकित्सा by Vaidyaraja Subhash Sharma

[4/9, 1:22 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma: 

*case presentation - अर्बुद inflammatory myofibroblastic tumor (IMT) benign एवं आयुर्वेदीय चिकित्सा व्यवस्था ...*

*रूग्ण 34 yrs/ male/ निजी व्यवसाय *
*प्रमुख वेदना - वाम पाद एवं गल प्रदेश दक्षिण भाग अर्बुद जो पीड़ा रहित था ।*

*रोगी अपने साथ जो investigation reports लाया था वो इस प्रकार थी...*
*24-2-22 का चित्र *

[4/9, 1:22 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma: 

6.2/4.8 cm


[4/9, 1:22 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma: 

*4-4-22 तक चिकित्सा के पश्चात ये परिणाम मिला 👇🏿*
[4/9, 1:22 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma: 

*पाद में अर्बुद जन्य शोथ 24-2-22 👇🏿*

[4/9, 1:22 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma: 

8/10.5/21.5 cm
few lymph nodes , largest
1.4/1.2 cm

[4/9, 1:22 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:

 *4-4-22 तक परिणाम ये रहा 👇🏿*

[4/9, 1:22 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma: 

*history of present illness - 4 वर्ष पूर्व accident में वाम पाद अस्थि भग्न और रोगी रोग मुक्त हो गया । लगभग 6 माह पश्चात पाद में ग्रन्थि उत्पन्न हो गई जिसने शोथ युक्त अर्बुद का रूप धारण कर लिया और एक वर्ष के पश्चात इसी प्रकार गल प्रदेश में भी ग्रन्थि हो कर अर्बुद का निर्माण होने लगा,हमारे यहां शाखानुसार जो रोग बताये गये है अगर ध्यान पूर्वक देखें 

'गण्डपिडकालज्यपचीचर्मकीलाधिमांसमषककुष्ठव्यङ्गादयो विकारा बहिर्मार्गजाश्च विसर्पश्वयथुगुल्मार्शो विद्रध्यादयः शाखानुसारिणो भवन्ति रोगाः' 

च सू 11/49 

गलगंड, चर्मकील, अर्बुद, अधिमांस आदि शाखानुसारी रोग हैं और अगर ये विकृत हो जायें तो कोष्ठ अर्थात अन्त: मार्ग में प्रवेश करने लगते हैं। यही इस रोगी के साथ हुआ कि रोग विकृत हो कर अब गल प्रदेश में आ गया और रोगी भयभीत हो गया कि यह अर्बुद या ग्रन्थियां शरीर के अन्य भागों में ना उत्पन्न हो जाये।*

*History of past illnes - वर्षों से असम्यक मल प्रवृत्ति एवं अनेक बार आम युक्त ।*

*लगभग दो वर्ष तो रोगी इस भय में जीता रहा कि यह कैंसर ना हो क्योंकि रोगी युवा है और अनेक लोगों ने यह भय भी बना दिया कि अगर biopsy कराई तो रोग फैल जायेगा। अर्बुद में यह भ्रम सदैव बना रहता है कि यह सामान्य है या कैंसर ? कैंसर अनुक्त रोग है और आयुर्वेदोक्त अर्बुद साधारण या सामान्य अर्बुद की श्रेणी के हैं कैंसर नही, 

'गात्रप्रदेशे क्वचिदेव दोषाः सम्मूर्च्छिता मांसमभिप्रदूष्य वृत्तं स्थिरं मन्दरुजं महान्तमनल्पमूलं चिरवृद्ध्यपाकम्, कुर्वन्ति मांसोपचयं तु शोफं तमर्बुदं शास्त्रविदो वदन्ति वातेन पित्तेन कफेन चापि रक्तेन मांसेन च मेदसा च ' 

सु नि 11/13-14 

ये अर्बुद त्रिदोष, मांस और मेद के हैं तथा ग्रन्थि के समान ही है जो शनैः शनैः वृद्धि करते है, स्थिर, गोल, अल्प पीड़ा युक्त, गभीर धातुगत और पाक ना होने वाले हैं। आधुनिक विद्वानों के अनुसार साधारण अर्बुद एक कोष से उत्पन्न होते हैं जिसमें छेदन से सब का निर्हरण किया जा सकता है, अर्बुद प्रायः एक ही मिलता है, सामान्यतः इनमें व्रण की उत्पत्ति नही होती और रक्त स्राव भी नही होता, वृद्धि चिरकालीन होती है, शरीर पर विशिष्ट घातक नही होते अगर मर्म स्थान या स्वर यन्त्र में इनकी उत्पत्ति ना हो तब तथा समीपस्थ धातुओं सदृश इनकी रचना मिलती है।*

*Oct.2021 में test कराने पर यह benign मिला पर रोग वृद्धि सभी आधुनिक चिकित्सा के बाद भी होती रही तो चिकित्सको ने यह कहा कि भविष्य में यह कैंसर भी बन सकता है अतः chemotherapy दी जाये क्योंकि सभी औषध अब कार्य नहीं कर रही। आधुनिक काल की अनुक्त व्याधि कैंसर आचार्य सुश्रुत के रक्तार्बुद 

'दोषः प्रदुष्टो रुधिरं सिरास्तु सम्पीड्य सङ्कोच्य गतस्त्वपाकम्, सास्रावमुन्नह्यति मांसपिण्डं मांसाङ्कुरैराचितमाशुवृद्धिम्, स्रवत्यजस्रं रुधिरं प्रदुष्टमसाध्यमेत द्रुधिरात्मकं स्यात्, रक्तक्षयोपद्रव पीडितत्वात्पाण्डुर्भवेत्सोऽर्बुदपीडितस्तु' 
सु नि 11/15-16 

लक्षणों से भी भिन्न हैं क्योंकि वर्तमान समय में रोगियों में मिलने वाला कैंसर अत्यन्त तीव्र गति से वर्धन करता है अर्थात द्रुत गति से प्रसरण शील जो वात के चल और सर गुण से संबंधित है। यह समस्त धातुओं में पहुंच कर अपनी स्थिति नियत कर लेता है।अगर इसे शल्य कर्म से छेदन कर के निकाल भी दें तो पुनः उद्भव संभव है, यह आवरण मुक्त होता है अर्थात इस पर किसी प्रकार का आवरण नही होता,यह अत्यन्त बलवान होने से एक होते हुये भी अन्य सभी स्रोतस और अव्यवों में secondary deposits या metastatic उत्पत्ति करने का बल रखता है, त्वचा को दूषित कर व्रणोत्पत्ति भी कर देता है जिस से अति रक्तस्राव जन्य पांडुता,भय,अवसाद तथा अनेक विकार संभव है, अनेक रोगियों में आमोत्पत्ति जन्य संग दोष कैंसर का हेतु मिलता है तथा यह कैंसर आम विष को घोर अन्न विष बना देता है 
'अरोचकोऽविपाकश्च घोरमन्नविषं च तत्' 
च चि 15/46 
यहां इस आम विष की विषाक्तता इतनी लिखी है कि इसे घोर अन्न विष कहा है और जब 
'रसादिभिश्च संसृष्टं कुर्याद्रोगान् रसादिजान्' 
अर्थात जब यह आम विष रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि मज्जादि धातुओं से युक्त होता है तो उन उन से संबंधित रोगों को उत्पन्न कर देता है।विष के 10 गुण 
'लघु रूक्षमाशु विशदं व्यवायि तीक्ष्णं विकासी सूक्ष्मं च, उष्णमनिर्देश्यरसं दशगुणमुक्तं विषं ...' 
च चि 23/24 
अर्थात लघु रूक्ष आशु विशद व्यवायी तीक्ष्ण विकासी सूक्ष्म उष्ण और अनिर्देश्य रस जिस रस का कोई नाम नही बताया जा सकता, ये दस विष के गुण हैं।विष रूक्ष होने से वात, उष्णता से रक्त और पित्त, तीक्ष्णता से मति भ्रम, सूक्ष्म गुण से सर्वशरीर गत प्रवेश करता है, व्यवायी से सर्वशरीर में प्रसरण करता है, विकासी होने से दोष-धातु-मलों का नाश करने लगता है, विशद होने से स्थिर नही रहता, लघु होने से चिकित्सा सरलता से नही हो पाती तथा अविपाकी होने से इसका भेदन कठिनता से होता है, कैंसर में यह घोर अन्न विष तीनों दोषों को अत्यन्त प्रकुपित करता है । इसीलिये लाक्षणिक चिकित्सा कितनी भी दें बिना आम विष की चिकित्सा और निर्हरण के रोगियों को या तो क्षणिक लाभ मिलता है अथवा विष उत्तेजित हो कर तीव्र गति से प्रसरण करता है और कैंसर सदैव शरीरगत रहता है।हमने भी चिकित्सा में सर्व प्रथम यह सिद्धान्त बनाया कि हर हाल में रोग के प्रसरण का अवरोध करना है।*

[4/9, 1:23 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma: 

*अष्टविध एवं अन्य परीक्षा - *

*नाड़ी - दृढ़ और दवाब देने पर विपरीत प्रक्रिया कर रही थी, नाड़ी में तीक्ष्णता एवं कठोरता थी अतः हमने इसे साधारण स्थिति ना मानकर विशिष्ट श्रेणी में माना।*
*मूत्र - अल्प और असंतुष्टि के साथ।*
*मल - अल्प और स्निग्ध।*
*जिव्हा - साम *
*शब्द - कर्कश *
*स्पर्श - स्निग्ध*
*दृक - सामान्य*
*आकृति - प्राकृत *
*सार - त्वक्, रक्त, मांस सार*
*संहनन - सामान्य *
*प्रमाण - सम *
*सात्म्य - सर्व रस*
*सत्व - मध्यम *
*आहार शक्ति - मध्यम*
*व्यायाम शक्ति - हीन *
*वय - युवावस्था।*
*देश - साधारण बिहार निवासी*

*पिछले कुछ दिनों हमनें कैंसर पर लिखा था और इसे अनुक्त व्याधि माना था, रोगी और परिजन यह चाहते हैं कि यह व्याधि हमारी चिकित्सा के बाद कैंसर में परिवर्तित ना हो ।विभिन्न अव्यवों में अर्बुद के पिछले कुछ दिनों में अनेक नवीन रोगी और लिये गये।शारीरिक अव्यवों में होने वाले कैंसर की तुलना अनेक आयुर्वेदज्ञ अर्बुद से करते रहे हैं हैं पर आयुर्वेद में जो आठ महागद बताये हैं उनमें तो अर्बुद सदृश स्थिति  है ही नही और चरक ने तो अर्बुद को शोथ रोग में ही लिया है। कैंसर असाध्य है पर शोथ असाध्य नही । यदि अव्यवों में यकृत और प्लीहा वृद्धि देखें, गलगण्ड या ग्रन्थि रोग देखें तो यह अर्बुद नही है पर दिखने में वैसे ही हैं और स्वतन्त्र रोग हैं। सुश्रुत में प्रदुष्ट मांस का वर्णन अवश्य मांसार्बुद में आया है।*

*यदि अव्यवों होने वाले कैंसर को अगर हम कैंसर ही नाम दें जैसे यकृत कैंसर, गर्भाश्य कैंसर, जिव्हा कैंसर आदि तो सभी सम्प्राप्ति अलग अलग प्रकार से इस प्रकार बनेगी....*

*दोषों के अनुसार मुख्यतः 7 प्रकार जैसे वातज, पित्तज, कफज, वातपित्त, वातकफ, पित्तकफ और त्रिदोषज, इसके अतिरिक्त दोषों की उल्वणता के आधार पर अनेक प्रकार भी बनेंगे,धातुओ और सुविधानुसार आप इनका नामकरण मांसार्बुद myoma, मज्जार्बुद myeloma, अस्थ्यार्बुद osteoma, त्वक् अंकुर अर्बुद papilloma, वसार्बुद lipoma आदि रख सकते है पर कैन्सर सभी त्रिदोषज ही होते हैं तथा होगा कोई एक या दो दोष प्रधान, इन सभी प्रकारों के विस्तृत ज्ञान का चिकित्सा में बहुत महत्व है।इस रोगी के अर्बुद को हम 'पाद-गल प्रदेश गत साधारण मांसार्बुद ' मान कर चले हैं  और इसके लिये चिकित्सा में कुछ विशिष्ट नियम बनाये ।*

*इस रोगी के सम्प्राप्ति घटक - *

*दोष - समान और व्यानवात, क्लेदक कफ, पित्तानुबंध*
*दूष्य - रक्त, मांस, मेद और सिरा*
*स्रोतस- रक्त, मांस, मेद और अम्बुवाही*
*स्रोतोदुष्टि - संग एवं विमार्गगमन*
*अग्नि - विशेषतः धात्वाग्निमांद्य*
*व्याधि स्वभाव - चिरकारी*
*साध्यासाध्यता - शल्य चिकित्स्य एवं कृच्छ साध्य*

*चिकित्सा सूत्र - आम पाचन, स्रोतो शोधन, शोथघ्न, मेद क्षपण, बल्य एवं शमन।*

*औषध - *
*चिंचा भल्लातक वटी 250 mg bd, यह भल्लातक और इमली का योग है जो जामनगर में भी बहुत प्रयोग किया जाता था। आम पाचक तो है ही साथ में अर्बुद, ग्रन्थि, कैंसर की प्रथम अवस्था, ग्रहणी दोष में भी बहुत कार्य करती है।*

*शोथान्तक क्वाथ - पिछले कुछ समय से इसका प्रयोग हम अनेक रोगियों में कर रहे है जिस से शरीर के एकांग और सर्वांग सभी शोथ में बहुत लाभ मिलता है। हम इसे देसी anti inflammatory & diuretic भी कहते हैं, कुटकी 1 kg, पुनर्नवा 900 gm, गुडूची 800 gm, मुस्तक 700 gm, शुंठि 600 gm, गोक्षुर 500 gm, कूठ 400 gm, पाषाण भेद 300 gm, हजरूल यहूद भस्म 200gm। पहले इसकी 500 mg की वटी बनाई गई थी। फिर हजरूल यहूद अलग कर fine powder दिन में 2 बार फांट या क्वाथ दोनों रूप में देते हैं और हजरूल यहूद भस्म जब पीना हो तो 500 mg मिला देते हैं ।*

*गूलर (उदुम्बर) की छाल का क्वाथ , यह कषाय और मधुर है, शीत वीर्य होने के साथ सब से अधिक लाभ इसका यह है कि यह व्रण का शोधन और रोपण करता है अर्थात natural healing system के लिये बहुत प्रभावकारी है। अगर कभी भी कैंसर की शंका हो तो इसके प्रसरण को रोकना आवश्यक है और इसके लिये कषाय रस का हमने अपनी चिकित्सा में बहुत प्रभाव देखा है जो यहां भी मिला, 

'कषायो रसः संशमनः सङ्ग्राही सन्धानकरः पीडनो रोपणः शोषणः स्तम्भनः श्लेष्मरक्तपित्तप्रशमनः शरीरक्लेदस्योपयोक्ता रूक्षः शीतोऽलघुश्च' 

च सू 26/43 

कषाय रस दोषों का शमन करता है, संधान करने वाला और संग्राही, अगर व्रण हो तो उसकी पूय को बाहर निकालता है, रोपण कर्म करता है, शोषण कर के सुखाता है, कफ, रक्त और पित्त का प्रशमन करता है, शरीर में क्लेद का चोषण कर लेता है, रूक्ष, शीत और लघु होता है। इस रस की विशेषता है कि यह वायु और पृथ्वी महाभूत से बनता है।इसके साथ हमने शरपुंखा, कांचनार और खदिर  को भी इसमें मिला दिया तो परिणाम आशा से भी अधिक मिला ।*

*शरपुंखा - 

शरपुङ्खः प्लीहशत्रुर्नीलीवृक्षाकृतिश्च सः शरपुङ्खो यकृत्प्लीहगुल्मव्रण विषापहः तिक्तः कषायः कासास्रश्वासज्वरहरो लघुः' 

 भाव प्रकाश गुडूच्यादि वर्ग 219, 

विभिन्न रोगों सहित कुछ असाध्य रोगों के प्रसरण में अवरोध लगाने की यह हमारा प्रिय द्रव्य है  और कषाय, तिक्त और लघु होने के साथ यकृत,प्लीहा, व्रण, गुल्म जैसे रोगों के लिये अमृत है। शरपुंखा किंचित उष्ण है पर यह अल्प उष्णता हम इसे फलत्रिकादि क्वाथ में मिलाकर देते हैं तो फलत्रिकादि क्वाथ दूर कर देता है।*

*कांचनार - 

'काञ्चनारो हिमो ग्राही तुवरः श्लेष्मपित्तनुत् कृमिकुष्ठगुदभ्रंश गण्डमालाव्रणापहः' 

भा प्र गुडूच्यादि वर्ग 103, 

इसकी छाल रसायन होने के साथ शोधन और रोपण दोनों कर्म करती है , त्वचा पर इसका कार्य अति प्रशंसनीय है ही साथ अर्बुद, ग्रन्थि, गल शोथ में भी इसने बहुत अच्छा परिणाम दिया ।*

*खदिर - 

'खदिरः शीतलो दन्त्यः कण्डूकासारुचि प्रणुत्तिक्तः कषायो मेदोघ्नः कृमिमेह ज्वरव्रणानश्वित्र शोथामपित्तास्रपाण्डु कुष्ठकफान् हरेत्' 

भा प्र वटादि वर्ग 30-31, 

यह कषाय और तिक्त रस प्रधान द्रव्य है जो तिक्त रस होने से सूक्ष्म स्रोतस तक पहुंचती है और कषाय रस इसका अनुगमन कर प्रसरणशील व्याधियों को नियन्त्रित करता है।*

*इस रोगी को हर चार घंटे में क्रम से शोथान्तक क्वाथ, गूलरादि क्वाथ, शोथान्तक क्वाथ और गूलरादि क्वाथ दिया ।*

*आरोग्य वर्धिनी वटी 1-1 gm तीन बार*
*कांचनार गुग्गुलु 500 mg दो बार *
*गौमूत्र हरीतकी गुड़ के साथ*
*कैशोर गुग्गुलु*
*वर्धमान पिप्पली कल्प*

*पथ्य का विशेष ध्यान रखा गया ।*








[4/9, 5:00 AM] Dr Mansukh R Mangukiya Gujarat: 

🙏 प्रणाम गुरुवर 🙏

[4/9, 9:05 AM] Vaidya Sameer Shinde
MD(K. C. ) satara: 

अतिसुंदर एवं गहन विवेचन आचार्य जी
🙏🙏🙏





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Above case presentation  held in 'Kaysampraday (Discussion)' a Famous WhatsApp group  of  well known Vaidyas from all over the India.
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Presented by 




Vaidyaraj Subhash Sharma
MD (Kaya-chikitsa)

email- vaidyaraja@yahoo.co.in


Compiled & Uploaded by

Vd. Rituraj Verma
B. A. M. S.
Shri Dadaji Ayurveda & Panchakarma Center,
Khandawa, M.P., India.
Mobile No.:-
 +91 9669793990,
+91 9617617746

Edited by

Dr.Surendra A. Soni
M.D., PhD (KC) 
Professor & Head
P. G. DEPT. OF KAYACHIKITSA
Govt. Akhandanand Ayurveda College
Ahmedabad, GUJARAT, India.
Email: surendraasoni@gmail.com
Mobile No. +91 9408441150

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