[6/4, 12:47 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*case presentation..*
*12 mm मूत्रवाहिनी अश्मरी (ureteric calculus hydronephrosis सहित ) का बिना शल्य भेदन ...*
*रोगी / 31 वर्षीय/ पुरूष/ नेवी में कार्यरत*
*3 मई को चिकित्सा हेतु आया ।*
*प्रमुख वेदना - 1 मई को उदर के अधोभाग में तीव्र शूल हुआ तो hospital में inj. voveron से लाभ मिला इस अवधि में मूत्र में किंचित कृच्छता थी।*
*2 मई को usg - 12 mm ureteric calculus मिली, hospital में admit कर शल्य की सलाह दी गई पर सर्जन covid 19 संक्रमण काल में hospital आने से बच रहे थे तो रोगी के परिवार जन हमारे पास ले आये।*
[6/4, 12:47 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*history of present illness -
किसी अन्य प्रकार का कोई अन्य रोग नही,रोगी navy में रहने से स्वस्थ है पर nature of job इस प्रकार का है जिसमें night shift के कारण दिनचर्या अव्यवस्थित हो जाती है।*
*हेतु तथा history of past illness - कोई विशिष्ट नही पर आहार में अधिक वसा युक्त पदार्थों के सेवन से आम दोष लक्षण एवं आहार में टमाटर तथा dry fruits का अधिक प्रयोग मिला जिस से कभी कभी अम्लपित्त एवं उदर गुरूता तथा आनाह।*
*सुश्रुत संहिता में अश्मरी के हेतुओं को दो भागों में विभक्त कर दिया है
'तत्रासंशोधनशीलस्यापथ्यकारिणः प्रकुपितः श्लेष्मा मूत्रसम्पृक्तोऽनुप्रविश्य बस्तिमश्मरीं जनयति'
सु नि 3/4
अर्थात असंशोधनशील और अपथ्यकारी, नियमित रूप से शरीर का संशोधन वमन, विरेचन आदि से होता रहे और दूसरा कारण मिथ्या आहार विहार है जिसके कारण कुपित कफ मूत्र के साथ मिल कर वस्ति में प्रवेश कर अश्मरी को उत्पन्न करता है, इसके अतिरिक्त अति आतप सेवन से जलीयांश की कमी या अति व्यायाम से अति स्वेदन, कैलशियम या नाईट्रोजन युक्त पदार्थ, अति गुरू, मिष्ठान्न, तले हुये पदार्थ, क्षार युक्त पदार्थों का अति सेवन, पालक, टमाटर, बैंगन, मद्यपान, वेगधारण, रात्रिजागरण, दिवास्वप्न, अध्यशन आदि भी अनेक कारण हैं।*
*मूत्रवाहिनी का व्यास 4-7 mm और अश्मरी 12 mm की तो निष्कासन कैसे संभव हो सकता है फिर मूत्र नलिका में अवरोध का भय तथा साथ ही rt.kidney में hydronephrosis भी है। हमने रोगी को आश्वासन दिया कि तीन से चार सप्ताह चिकित्सा ले कर usg repeat करा लीजिये अगर अश्मरी नही निकली तो शल्य क्रिया करा लीजिये।*
*हमारा कर्म क्षेत्र यहां पर है..*
*मूत्रवहानां स्रोतसां बस्तिर्मूलं वंक्षणौ च । च वि 5*
*मूत्रवाही धमनी द्वय*
*गवीनी द्वय*
*मूत्र प्रसेक*
*यह सब पक्वाश्य के अंतर्गत है जो वात का क्षेत्र है और उसमें भी अपानवात का।*
*अश्मरी में प्रमुख दोष कफ होता है पर सभी अश्मरी त्रिदोषज ही होती हैं। कफ और आम समान गुणधर्मी है और स्रोतस का संग दोष मुख्य रूप से आमजन्य है। सब से रोचक बात ये कि इस प्रकार की अश्मरी में प्रमुख दूष्य कोई धातु-उपधातु ना हो कर मूत्र होता है।*
*अश्मरी निर्माण और इसका भेदन हम किस प्रकार करते है इस पूरी साद्धान्तिक प्रक्रिया को आईये हम आयुर्वेद अनुसार ही आपको व्यक्त करेंगे...*
*1- अश्मरी सभी त्रिदोषज होती हैं पर संधान या एकत्रीकरण कफ से होता है अत: कफ की प्रधानता है।*
*2- इसका पाचन पित्त से होगा।*
*3- इसे सूक्ष्म कण बना कर निष्कासन करना है तो यह कर्म वात करेगी।*
*4- अश्मरी मूत्र में होती है मूत्र की उत्पत्ति आमाश्य और पक्वाश्य में होती है जहांसे मूत्र सूक्ष्म स्रोतस द्वारा वस्ति में एकत्रित होता है।*
*5- आयुर्वेदानुसार मूत्र क्या है ? भुक्त आहार का पाचन हो कर सार या प्रसाद भाग या रस बना और दूसरा भाग किट्ट बना और किट्ट भाग से ही मूत्र बना।*
*6- यह जो पूरी प्रक्रिया अब तक की घटित हुई यह आमाश्य और पक्वाश्य में हुई और यह स्मरण रखें कि आमाश्य पित्त का भी स्थान है।*
*7- आमाश्य और पक्वाश्य में यह कार्य पाचक पित्त और समान वात ने किये तो हमारे सम्प्राप्ति घटकों में ये दोनो दोष भी सम्मिलित हैं जो चिकित्सा सूत्र निर्माण और सम्प्राप्ति विघटन के प्रमुख घटक हैं।*
*8- सुश्रुत में अश्मरी निदान में एक महत्वपूर्ण सूत्र दिया है जिसे हम इसकी चिकित्सा में अत्यन्त महत्वपूर्ण मानते हैं
'मारुते प्रगुणे बस्तौ मूत्रं सम्यक् प्रवर्तते विकारा विविधाश्चापि प्रतिलोमे भवन्ति हि'
सु नि 3/27
वात अगर प्राकृतस्थ है तो वस्ति में मूत्र सम्यक प्रकार से प्रवर्तित होता है और वात के विरूद्ध होने पर अश्मरी, मूत्राघात आदि अनेक विकार होंगे। अत: वात का अनुलोमन हर स्थिति में आवश्यक है और किस वात का ? विशेष रूप से अपान वात का जिसका मुख्य स्थान पक्वाश्य है।*
[6/4, 12:47 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*हमारे सम्प्राप्ति घटक बने ..*
*दोष - त्रिदोष पर कफ प्रधान जिसमें समान और अपान वात, पाचक पित्त और क्लेदक कफ ।*
*दूष्य - आहार रस (जिसके कारण अनेक घटकों का सम्यग् पाचन नही हो रहा) तथा मूत्र।*
*स्रोतस - मूत्रवाही*
*स्रोतोदुष्टि - संग*
*उद्भव स्थान - आमाश्य-पक्वाश्य*
*व्यक्त स्थान - वस्ति एवं मूत्रवाहिनी*
*अग्नि - जाठराग्निमांद्य*
*व्याधि स्वभाव - चिरकारी।*
*हमने रोगी को चार सप्ताह का समय दिया है तो प्रत्येक सप्ताह चिकित्सा सूत्र और औषध व्यवस्था इसलिये इस प्रकार बनेगी क्योंकि यह त्रिदोषज व्याधि है, संधान कफ से है अत: कफ की प्रधानता है तो दीपन -पाचन करेंगे जिस से अब आगे आहार का सम्यग् पाचन हो कर सम्यग् प्रकार से ही मूत्र का निर्माण होता रहे तथा अतिरिक्त अश्मरी का नवीन निर्माण ना हो पाचन पित्त से होगा, अश्मरी को सूक्ष्म कण बना कर भेदन और अनुलोमन करेंगे जिनमें कुछ कर्म प्रधान और कुछ सहयोगी रहेंगे। अगर हम एकदम भेदन करेंगे और मूत्र विरेचन देंगे तो अश्मरी ureter में इस प्रकार अवरोध कर देगी कि सीधा शल्य क्रिया की स्थिति उत्पन्न हो जायेगी।*
*चिकित्सा सूत्र -
आमोत्पत्ति हो कर अब कफ का घनीभूत ना हो तो ...*
*दीपन -
'दीपन अन्तरग्ने: संधुक्षणं..' दीपन अर्थात अग्नि को दीप्त करना जिसका प्रभाव क्लेदक कफ पर होता है,*
*पाचन -
दीपन द्रव्य शरीर को आहार ग्रहण करने हेतु प्रेरित करते हैं तो वही पाचन कर्म जरण शक्ति को बढ़ा देता है*
*अनुलोमन -
यह वात का किया जाता है जो मल स्वरूप है और अश्मरी का एक हेतु वैसे भी वात का प्रतिलोम होना है *
* भेदन -
यहां अश्मरी को तोड़ कर सूक्ष्म चूर्ण स्वरूप कर मूत्रवाही स्रोतस से बाहर करना*
*मूत्र विरेचन -
यहां हम मूत्रल द्रव्यों से मूत्र का विरेचन करा कर वस्ति सहित मूत्रवाहिनी का शोधन करेंगे।*
*प्रथम सप्ताह - *
*शिवक्षार पाचन चूर्ण 3 gm (दीपन-पाचन-सारक-अनुलोमन कारक)+ हजरूल यहूद भस्म 500 mg (अश्मरी भेदक- मूत्र विरेचक- अश्मरीजन्य शूलघ्न) दिन में दो बार भोजन के आधा घंटा बाद*
*चन्द्रप्रभा वटी 2-2 गोली (यह मूत्रकृच्छ तो दूर करती ही है hydronephrosis में भी अच्छा परिणाम देती है और अपानवात को नियन्त्रित करती है)*
*आरोग्य वर्धिनी 2-2 गोली (दीपन-पाचन-किट्ट शोधक- स्रोतोशोधक- hydronephrosis में अत्यन्त लाभकारी- अनुलोमक-भेदक)*
[6/4, 12:47 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*इस प्रकार की अश्मरी में मूली क्षार बहुत ही उपयोगी है, देखिये निर्माण विधि...* 👇🏿
[6/4, 12:47 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*द्वितीय सप्ताह - *
*शिवक्षार पाचन के साथ हजरूल यहूद 1 gm कर दी और श्वेत पर्पटी 500 mg (दीपन-पाचन-मूत्रविरेचन-अनुलोमव) साथ में*
*चन्द्रप्रभा वटी और आरोग्य वर्धिनी के साथ गोक्षुरादि गुग्गलु 2-2 गोली (अश्मरी- मूत्रकृच्छ-मूत्राघात - समस्त मूत्रवाही स्रोतस के लिये हितकारी)*
*यव को fry pan में जला कर प्रात: नाश्ते के एक घंटे बाद इसका पानीय क्षार (दीपन-पाचन-अश्मरी भेदन-मूत्रविरेचन-मूत्रकृच्छ नाशन)*
*तीसरा सप्ताह यहां औषध 5 दिन दी गई*
*यह अति महत्वपूर्ण है..*
*अश्मरीहर क्वाथ fine powder 10 gm क्वाथ विधि से इसमें शीतल होने पर हजरूलयहूद 1 gm+ श्वेत पर्पटी 2 gm + मूली क्षार 2 gm (अश्मरी-मूत्रदाह-मूत्रकृच्छ- मूत्राघात हर) मिला कर दिन में दो बार*
*यव का पानीय क्षार दिन में घूंट घूंट भर के थोड़ा थोड़ा पीने के लिये कहा।*
*आरोग्य वर्धिनी 3-3 गोली + गोक्षुरादि गुग्गलु 2-2 गोली।*
*रोगी को 28 मई को बुलाया और 29 मई को सुबह 6 -7 बजे 20 ml स्नेह पान , दो घंटे बाद अश्मरी हर क्वाथ में श्वेत पर्पटी 3 gm और मूली क्षार 5 gm ।*
*दोपहर 12 बजे भोजन, शेष औषध पूर्ववत और सांयकाल 6 बजे अश्मरीहर क्वाथ में श्वेत पर्पटी और मूली क्षार भी सुबह की मात्रा मे दिया गया।*
*रात्रि को सोने से पूर्व कुटकी चूर्ण 1 gm+ हरीतकी चूर्ण 3 gm उष्णोदक से।*
*प्रात: मल 3-4 बार आया, मूत्र बहुत ही वेग के साथ एवं अधिक मात्रा में आ रहा था।*
*30 मई को स्नेह दो चम्मच 10 ml दिया गया और यही औषध दी गई । रात्रि में उदर आटोप हो कर अत्यन्त वेग के साथ मल आया और साथ मूत्र की पुन: पुन: प्रवृत्ति हो कर आविल मूत्र आया ।*
*31 मई को प्रात: काल ही रोगी ने usg कराया तो hydronephrosis और अश्मरी दोनो से रोगी रोगमुक्त मिला।*
[6/4, 12:47 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*पथ्य में रोगी को तरबूज का शर्बत, यव सक्तुक, आजकल चैरी फल मिल गया था, खीरा, ककड़ी, टिण्डा, कमल ककड़ी, लौकी, सीताफल, तोरई, कच्चा पपीता, आलू, मसूर और मूंग दाल, कुलथी की दाल का पानी, लौकी और चने की दाल मिलाकर, मूली और तोरई मिश्रित शाक सेवन कराया।*
*अपथ्य में रोग हेतु का वर्णन हम आरंभ में ही कर चुके है।*
*निष्कर्ष - शल्य साध्य व्याधियों को भी हम आसानी से साधारण द्रव्यों से साध्य बना सकते हैं, इस प्रकार की अश्मरी में चिकित्सा का अंतिम परिणाम बिना किसी व्यवधान के अनेक बार हमें मूली क्षार से मिला।*
[6/4, 12:59 AM] DR. RITURAJ VERMA:
गुरुवर नमन !
[6/4, 12:59 AM] Dr.Satyam Bhargava :
Sir sweta parpati ki matra 3gm and kshar ki matra 5gm
Se koi upadrav nai hua... Pateint mai
[6/4, 1:21 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*जिस प्रकार हम धीरे धीरे बढ़ाते है और वो भी ureteric calculus में ये मात्रा अल्प अवधि के लिये होती है और इस से बिना किसी उपद्रव के अश्मरी निकालते है, मूली क्षार हमने वैद्य विश्वावसु गौड़ जी से प्राप्त किया था और उसी निर्माण का ये वीडियो है। जिस दिन प्राप्त हुआ थी उसी दिन 1 tsp लगभग 5 gm हमने स्वयं सेवन किया था और सामान्य ही रहे ।*
[6/4, 1:24 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*जो कार्य surgery से संभव होता है और उसकी चिकित्सा जब औषध से की जाती है तो चिकित्सा के अंत में अल्प अवधि के लिये अनेक बार अधिक मात्रा में भी औषध प्रयोग किया जाता है जैसे जलोदर में विरेचन हेतु हम तीन दिन कुटकी 3 gm और हरीतकी 5 gm मिलाकर देते है ।*
[6/4, 1:24 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
नमस्कार वैद्यश्रेष्ठ 🌹🙏*
[6/4, 1:26 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*यव का पानीय क्षार अधिक तीक्ष्ण नही होता, इसी प्रकार ये मूली क्षार भी उतना तीक्ष्ण नही है।*
[6/4, 1:28 AM] Dr.Satyam Bhargava :
Adbhut sir...
Parinam dekh kar...
Sadar charan sparsh🙏
Ab toh mai aaram se aise rogiyo ko chikitsa karne k liye prerit ho chuka hu..
Abhi tak 4 5 mm ki ashmari ki chikitsa karta tha aur safal hota tha ab is prakar se aur prayas karunga aise rugn mai..
Punah pranam 🙏
[6/4, 1:29 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*बहुत समय पूर्व हमने जब बाजार से क्षार लिये तो लगा सभी में लवण ही है, कल आपको थोड़ा कूरियर से भेजता हूं प्रयोग कर के देखना आपकी धारणा बदल जायेगी, इतनी मात्रा 5 दिन से अधिक मत दीजिये जबकि यहां तो रोगी को hydronephrosis भी था।*
[6/4, 1:32 AM] Dr.Satyam Bhargava :
*जी गुरुवर* 🙏
[6/4, 5:27 AM] वैद्य मेघराज पराडकर गोवा:
गुरुवर, आपकी ज्ञान दान की तड़प सृष्टि में ज्ञान की स्पंदनों को फैलाती है, इसकी अनुभूति आज मैंने ली ।
आज जब प्रातः जगा तो कोई भी कारण बिना यह श्लोक मन में आया
तिलापामार्गकदलीपलाशयवसंभव: ॥ ३१ ॥
क्षारः पेयोऽविमूत्रेण शर्करास्वशमरीषु च ।
बाद में आपकी अश्मरी चिकित्सा की पोस्ट देखी, तो इस श्लोक याद आने का कारण समझ में आया ।
आपको शतशः नमन ।
आप की इस तड़प के कारण ही हम सीख पा रहे है । 🙏
[6/4, 6:16 AM] Vd DARSHAN KUMAR PARMAR:
Respected sir🙏🙏🙏
💐🌹💐
you are one in infinite...
& infinite in one too
Thanks from the group for your this type of thought provoking & evidences will be shortfall rewards
[6/4, 7:05 AM] Vaidya Vivek Sawant Pune:
Good morning !
Great🙏🙏
[6/4, 7:11 AM] Dr. Pawan Madan:
सुप्रभात व चरण स्पर्श गुरु जी।
💐
[6/4, 7:31 AM] Dr. Pawan Madan:
प्रणाम गुरु जी
👌💐👌💐👌👌
क्या इस रोगी मे अत्यधिक टमाटर व dry fruits का प्रयोग अश्मरी बनने का कारण था ?
गुरु जी मूत्र का निर्माण आमाशय मे भी, ये मैने आज नई बात जानी, पहले कभी नही पढा या जाना,,,
🙏🙏
[6/4, 7:35 AM] Dr. Pawan Madan:
गुरु जी
क्या पहले ही सप्ताह मे शिवाक्षार से दीपन, पाचन व हिजरल्यहूद से भेदन शुरु कर देना है ?
[6/4, 7:38 AM] Dr. Surendra A. Soni:
जय हो महामुनि ।
आपने अश्मरी सम्प्राप्ति विघटन का विस्तृत वर्णन प्रदान किया ।
हृदय से आभार ।
🙏🏻🌹😊🌻🙏🏻
[6/4, 7:40 AM] Dr. Pawan Madan:
गुरु जी
श्वेत पर्पटी 3 ग्राम
व मूली क्षार 5 ग्राम
दिन मे दो बार दो दिन तक
क्या आपने यही मात्रा कही है?
[6/4, 7:58 AM] Dr. Suneet Aurora:
🌹🙏🏼🌹
सादर प्रणाम, गुरुदेव ।
आपके द्वारा पूर्व में बताई अश्मरी चिकित्सा भी क्लिनिक में एक protocol की तरह प्रयोग हो रही है।
इस case presentation के द्वारा आपने और विस्तृत सम्प्राप्ति समझा दी।
आपकी post clinical practice के लिए अतुल्य व बहुमुल्य हैं।
आप का बहुत बहुत आभार ।।
कायसम्प्रदाय अकादमी के भी।।
🌹🙏🏼🌹
[6/4, 8:10 AM] Dr.Santanu Das:
Sir Always great🙏
[6/4, 8:35 AM] Dr. Surendra A. Soni:
Great selection of words for Mahamuni Vaidyaraja Subhash Sir.
👌🏻👏🏻👍🏻🙏🏻
[6/4, 8:52 AM] Vd. Atul J. Kale:
आचार्यका केवल ओषधी बताना ये साध्य नहीं है किंतु संप्राप्ति का सखोल विचार कैसे करे और उस पर युक्तीपूर्वक ओषधीयों का विचार कैसे करे ? कितने अच्छे तरीके से करे ? चिकित्साको संपूर्ण कैसे करे? और अतिमहत्व की बात की हम लोगों को ज्ञानान्वीत कैसे करे? ये सब साध्य गुरुवर आचार्य सुभाष सरके प्रतित होते है। हमे उनसे यही सिखना है की कोई भी व्याधी सामने आई तो उसका युक्तिपूर्वक विवेचन अपने मनमें और ग्रुप पर कैसे करे ना कि सिर्फ औषधीयोंका विवेचन हो।
[6/4, 9:02 AM] Prof.Amol Kadu :
Yuktiyukta vivechan....
[6/4, 9:07 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*नमस्कार वैद्यश्रेष्ठ पवन जी,
*'पक्वामाशयमध्यस्थं पित्तं चतुर्विधमन्नपानं पचति, विवेचयति च दोषरसमूत्रपुरीषाणि:
सु सू 21/10
पक्वाश्य और आमाश्य के मध्य में स्थित पित्त चतुर्विध अन्न का पाचन कर दोष, रस, मूत्र और मल को पृथक करता है, आमाश्य से stomach ना समझें, आयुर्वेदानुसार आमाश्य पित्त का भी स्थान है और इसका क्षेत्र विस्तृत है। मूत्रोत्पत्ति का स्थान आमाश्य-पक्वाश्य बताया है कि किस प्रकार आहार जलीयांश प्रधान किट्ट का अंश मूत्र विभिन्न स्रोतों द्वारा बस्ति प्रदेश में संग्रहीत हो जाता है।*
*अथर्ववेद में
‘यदान्त्रेभ्योथ गवीन्योर्यद् वस्तावधि संश्रितम् , एवा ते मूत्र मूच्यतां वहिर्वालिति सर्वकम्।...’
अर्थात मैं तेरी आन्त्र में, गवीनियों, मेहन और बस्ति में रूके हुये मूत्र को बाहर करता हूं, अर्थात मूत्र मार्ग का आरंभ बृहदान्त्र से हो कर अंत गवीनियों में होता है, यहां भी निर्माण पूरा हो कर पश्चात की बात की गई है।*
*मूत्र निर्माण में जो भी वर्णन आयुर्वेद है वो एक स्थान पर नही है, एसा ही निदान और चिकित्सा पक्ष के साथ भी है। मूत्र निर्माण की आयुर्वेदोक्त प्रक्रिया की तुलना अगर आप आधुनिक पक्ष से कर के चलते है तो आप भ्रमित हो जायेंगे। आयुर्वेदीय मूत्र निर्माण प्रक्रिया को उसी के दृष्टिकोण से समझ कर हम चिकित्सा करते हैं, सम्प्राप्ति भी इसी के अनुसार बनाते है तो वृक्क दुष्टि हो या अश्मरी पूर्ण सफलता मिलती है।*
*वृक्क दुष्टि को कुछ आयुर्वेदीय विद्वान वृक्क प्रदाह के रूप में ग्रहण करते है, इस प्रदाह का प्रत्यक्ष संबंध पित्त से ही है जो आरंभिक क्रिया पाचक पित्त नें आरंभिक की थी मल के दो विभाग कर के सार और किट्ट वो केन्द्र बिन्दु है।*
*चिकित्सा में देश, काल, बल - बल अर्थात रोगी बल और रोग बल। दिल्ली में मई में अत्यन्त उष्णता थी, ग्रीष्म काल से मूत्रोत्पत्ति और निर्हरण दोनो ही अल्प होते है। अश्मरी के निष्कासन के लिये force चाहिये जो नही मिलती। 12 mm की single stone वो भी ureter में आ गई इसका अभिप्राय वो कठिन है जो साधारण मात्रा से शायद नही टूटेगी। रोगी 31 वर्षीय navy में है, अत्यन्त बली है और कोई अन्य रोग नही उसका स्वयं भी ये मानना था कि मुझे अधिक मात्रा में ही औषध दीजिये। हमने उसे पर्पटी और क्षार की मात्रा पूर्ण दी थी और कहा था कि अगर कोई उपद्रव लगे तो फोन कर के बता देना, रोगी ने प्रतिदिन फोन किया और हर बार यही कहा कि सब ठीक है, मूत्र भी सम्यग् है, शूल नही , मूत्र की मात्रा और वर्ण भी ठीक है।*
*मूली क्षार जो हम प्रयोग कर रहे है उसमे अत्यधिक लवण नही प्रतीत होता और बहुत ही premium quality का है।*
*गर्मी में शास्त्रोक्त मात्रा से दो महीने में भी अश्मरी नही गई और मूत्रवाहिनी अवरोध की स्थिति भी अधिक बन रही है, ये देखिये दूसरा रोगी।इसे भी अब अधिक मात्रा में मूली क्षार 2-3 gm तक देंगे, देश,काल का चिकित्सा में बगुत महत्व है। क्या अत्यन्त शीत ऋतु और अत्यन्त् ग्रीष्म ऋतु में क्षार की मात्रा एक समान होगी ??? कभी सोचिये !!!*
[6/4, 9:20 AM] Dr.Bhavesh R.Modh :
एक लोकोकत्ती है, *मागशिर्ष मे मूली 🥕 व भाद्रपद मे केले🍌* ( _માગશરમાં મૂળો ને ભાદરવામાં કેળાં...)_ स्वस्थस्य स्वास्थ्यं रक्षणम् के लिए खाने चाहिए ।
लोक परंपरा के आहार विहार के द्दष्टिकोण मूलतः आयुर्वेदीय ऋतुचर्या का सालो से किया गया पालन मंथन व निष्कर्ष के आधार पे बना होता है अतः वे सर्वथा कल्याणकर होता है ।
[6/4, 9:34 AM] Prof.Amol Kadu :
प्रणाम गुरुवर ....फिर से एक बार, निस्तब्ध होकर बार बार पढ़के इस ज्ञान को बुद्धि में समायोजित करने का प्रयास कर रहे है।।।।। देश, काल, प्रकृति आदि अनुसार भेषज मात्रा बदलनी पड़ती है... इसपर और पढ़ने की अपेक्षा रखते है....समयानुसार रुग्ण अनुभव के द्वारा बताने कि कृपा करे🙏🙏🙏🙏
[6/4, 9:35 AM] Prof. Amol Kadu :
Atyambupan यह भी प्रमुख हेतु अनेक अश्मरी रुग्ण में मिलता है....सभी का अनुभव जानने का कुतुहुल में में है
[6/4, 9:55 AM] Prof.Vd.Prakash Kabra Sir :
डॉ.सुभाष जी क्या मुली को सुखाना पडेगा ?
थोडा विस्तार करने का आग्रह करता हुं ।
[6/4, 10:38 AM] vd vishwavasu gaur jaipur:
हां सर, मूली को सुखाना पड़ेगा ।
[6/4, 10:48 AM] Dr. Satish Jaimini:
🙏🏻🙏🏻🙏🏻प्रणाम गुरुदेव
[6/4, 12:52 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*नमस्कार वैद्य मेघराज जी, अश्मरी पर हम पहले भी अनेक case presentations देते रहे है पर ये एक अलग स्थिति थी जहां पर अधिक मात्रा से अतिशीघ्र लाभ देना था।*
[6/4, 12:55 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*चिकित्सा चर्चा से अधिक करने की विधा है, ये सब रूटीन के कार्य है 🌹🙏*
[6/4, 12:57 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*कुछ रोगों का संबंध nature of job से भी है, जैसे चार -छह महीने ship पर ही रह रहे हैं वहां ग्रहणी दोष बहुत मिलता है।*
[6/4, 12:58 PM] Dr. Chndraprkash Dixit Sir:
💐💐🙏🙏 बहुत सुंदर सर
[6/4, 12:59 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
वस्तुत: भेदन कर्म जो वास्तव में है वो तो अपनी पूरी प्रक्रिया में समय लेता है पर दीपन पाचन शीघ्र होता है और साथ ही मूत्र विरेचन।*
पवन जी ।
[6/4, 1:00 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*सादर नमन एवं आभार सर 🌹🙏*
[6/4, 1:02 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*ऐसी कुल चार मात्रा ली गई।*
[6/4, 1:04 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*यह विशिष्ट स्थिति थी जहां हर हाल में अश्मरी को तोड़ कर निकालना था, अल्प मात्रा देने पर संदेह रहता है फिर रोगी बलवान है और युवा।*
[6/4, 1:05 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*आपका एवं सभी विद्वानों का ह्दय से आभार 🌹🙏*
[6/4, 1:09 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*सैद्धान्तिक चिकित्सा तो ऐसे ही की जाती है और यह सब अब धीरे धीरे लुप्त होना आरंभ हो गया है।*
[6/4, 1:12 PM] Vd.Ankur Sharma:
Great Job
sir
🙏💐🌹
[6/4, 1:13 PM] Dr.Mrunal Tiwari Sir:
हम आपके ज्ञान से हमेशा लाभान्वित होते है। 🙏🙏🙏
[6/4, 1:15 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*आहार और औषध - आहार रस प्रधान और औषध वीर्य प्रधान भावेश जी अब आहार द्रव्य उस काल में सर्वदा तो नही मिलते थे जब कि वो अनेक रोगों में हितकारी थे तो उनसे औषध का कार्य क्षार बना कर ले लिया, वो मूली जो मार्गशीर्ष में आहार थी 12 महीने क्षार के रूप में प्रयोग की जायेगी, अब ये कल्पना वीर्य प्रधान बन गई, क्षार कदली का भी बनाया जाता है।*
[6/4, 1:20 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*औषध और आहार को ऐसे समझें कि जयपुर में आप बाजरे की तीन रोटी, लहसुन और लाल मिर्च की चटनी तथा गुड़ आराम से सेवन कर लेते हैं परन्तु चैन्नई में ये सब नही कर पायेंगे।*
*शीत ऋतु में पहले ही मूत्र मात्रा मे अधिक और वेग से आता है तो मूत्र विरेचनीय द्रव्यों की आवश्यकता अल्प मात्रा में ही होती है, ग्रीष्म ऋतु में 3 लीटर जल पीने वाला अगर बर्फीले पर्वतों में भी इतना ही जल पान करेगा तो पूरा दिन washroom ही जाता रहेगा।*
[6/4, 1:22 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*डॉ काबरा जी, निर्माण वैद्य गौड़ जी ने किया था और उन्होने उत्तर दे ही दिया है कि इसे सुखाना पड़ता है।* 🌹❤️
[6/4, 1:25 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*जहां तक मुझे स्मरण है इसी प्रकार की अश्मरी पहले आपने भी निकाली थी डॉ अंकुर जी *
[6/4, 1:36 PM] Vd Darshna vyas:
👌🏻👌🏻👏🏻👏🏻👏🏻💐💐💐🙏🏻🙏🏻🙏🏻
[6/4, 1:52 PM] Vd Darshna vyas:
*प्राणाभिसार वैद्य जी को नमन*🙏🙏🙏💐💐💐
[6/4, 2:16 PM] Vd.Ankur Sharma:
Ji sir ,removed lots of kidney/ureteric stones.
Some cases are compiled in this playlist .
https://youtube.com/playlist?list=PLqks9q_9r15fp_f2-_5M7xDEC8Or6RP-C
One patient used to come from connaught place he had 45 mm 25 mm bilateral calculus , initially advised pcnl but he didn't want due to some govt job related reason
On his request gave treatment stone size reduced from 45 mm to 20 mm
But due to covid lockdown etc ,I couldn't save his data and follow up.
[6/4, 2:39 PM] Dr.Bhavesh R.Modh :
🙏😊
सदैव पथ प्रदर्शक ...
[6/4, 2:44 PM] Dr. Balraj Singh:
चिकित्सा मे कुछ औषधियां सिद्ध हो जाती है, बहुत समय पहले एक बुजुर्ग वैद्य मात्र कुटकी से ही ह्रदय नलिका अवरोध दूर करते थे तब चिकित्सा के साधन इतने advance भी नही थे, आप भी अपनी चिकित्सा में कुछ औषधियों को ऐसे अपना लीजिये फिर दूर दूर से रोगी आपके पास चिकित्सा के लिये आयेंगे।*
[6/4, 2:47 PM] Dr. Balraj Singh:
Gurudev how much dose of kutki will be given in coronary artery blockage.pl guide other medicines which work in this disease 🙏🏻
[6/4, 3:21 PM] Vd.Divyesh Desai :
गुरुजी अश्मरी भेदन में टंकण का use कर सकते ह?
[6/4, 5:45 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*यवक्षार+सर्जिकाक्षार के साथ टंकण मिला दे तो क्षार त्रय कहलाता है, टकंण का प्रयोग हम व्यक्तिगत रूप से अश्मरी भेदन हेतु नही करते क्योंकि अत्यन्त प्रभावकारी द्रव्य बहुत है जो सारे कार्य कर देते हैं।*
[6/4, 5:49 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*चिकित्सा का यह एक उदाहरण आपको दिया है जिसमें आहार, दिनचर्या के साथ कुटकी के भेदन-लेखन गुणों के उपयोग से किस प्रकार संगदोष को 'संपूर्ण युक्ति' के द्वारा दूर किया जाता है।*
[6/4, 6:21 PM] Dr. Balraj Singh:
🙏🏻
[6/4, 7:50 PM] Dr. Vinod Sharma :
आदरणीय सुभाष सर को हृदय से नमन ।
अश्मरी भेदन पर शास्त्रीय विवेचन बहुत रोचक एवं ज्ञानवर्धक ।
🙏🏾🙏🏾🙏🏾🙏🏾👏👏👏
[6/4, 8:18 PM] Vd.V.B.Pandey Basti (U.P.):
गुरूवर जितनी बार पढता हूँ कुछ और संशय दूर हो जाते हैं। हमारे गुरूवर कहते थे असली परीक्षा तो रोगी ही लेगा।
[6/5, 6:31 AM] Dr. Pawan Madan:
*सुप्रभात एवं चरण स्पर्श गुरुवर।*
🙏💐🙏💐
*आपका कहना सर्वथा सत्य है। आप हमारी बुद्धि को साफ करने का कार्य बहुत अच्व्ही तरह से करते हैं।*
*मूत्र निर्माण का पक्वाश्य मे होना,,,ये कहने का मेरा आधार सुश्रुत का निम्नोक्त संदर्भ था, पर आपने जो बताया वो अब मैं ध्यान मे रखुन्गा*
*पक्वाशयगतास्तत्र नाड्यो मूत्रवहास्तु याः ।*
*तर्पयन्ति सदा मूत्रं सरितः सागरं यथा ।।२१।।*
*सूक्ष्मत्वान्नोपलभ्यन्ते मुखान्यासां सहस्रशः ।*
*नाडीभिरुपनीतस्य मूत्रस्यामाशयान्तरात् ।।२२।।*
*जाग्रतः स्वपतश्चैव स निःस्यन्देन पूर्यते ।*
*आमुखात्सलिले न्यस्तः पार्श्वेभ्यः पूर्यते नवः ।।२३।।*
*घटो यथा तथा विद्धि बस्तिर्मूत्रेण पूर्यते ।*
*और गुरु जी मैं कभी भी इस को मोडर्न के साथ तुलना करके नही सोचता। वैसे भी मोडर्न के अनुसार तो मूत्र के निर्माण का आमाशय या पक्वाश्य किसी के साथ कोई सम्बनध नही है। आमाशय भोजन के गृहण का स्थान व प्रथम स्थान है जहां भोजन का पाक शुरु होता है व पक्वाश्य वह है जहां भोजन का पाक कम व मलों का मुन्चण अधिक होता है। यदि अधिक पक्वाश्य दुश्टि हो तो इसका सीधा सम्बंध किस प्रकार का मूत्र निर्माण होगा इस से होता है। पर आपने जो मार्गदर्शन दिया उसको अब दिमाग मे रखना आवश्यक है।*
*मात्रा के सम्बंध मे आपने जो बताया, अभी तक मैने क्षार व पर्पटी के बारे मे अधिक मात्रा मे प्रयोग कभी नही करवाया, हालांकी मैं गुग्गुल कल्पो का बहुत बार loading doses मे प्रयोग करवाता ही हूँ जैसे के कैशोरे गुग्गुलू का कई बार 2 ग्राम तीन बार तक भी। और आपका कहना बिल्कुक सत्य है है ये सब देश काल बल ऋतु आदि के अनुसार ही सम्भव हो पाता है। प्रक्टिकल मार्गदर्शन के लिये अति धन्यवाद। अब क्षार व पर्पटी का भी देश काल बल ऋतु व रोग बल व रोगी बल के अनुसार प्रयोग करवा कर आपको रेसलट प्रस्तूत करूंगा।*
*बहुत बहुत धन्यवाद*
[6/5, 7:54 AM] Prof.Giriraj Sharma Sir :
*सुप्रभात*
🙏💐🙏
*पक्वाशयगतास्तत्र नाड्यो मूत्रवहास्तु याः ।*
*तर्पयन्ति सदा मूत्रं सरितः सागरं यथा ।।२१।।*
*सूक्ष्मत्वान्नोपलभ्यन्ते मुखान्यासां सहस्रशः ।*
*नाडीभिरुपनीतस्य मूत्रस्यामाशयान्तरात् ।।२२।।*
*जाग्रतः स्वपतश्चैव स निःस्यन्देन पूर्यते ।*
*आमुखात्सलिले न्यस्तः पार्श्वेभ्यः पूर्यते नवः ।।२३।।*
*घटो यथा तथा विद्धि बस्तिर्मूत्रेण पूर्यते ।*
*The chief functions of the large intestine (पक्वाशय )are the absorption of water and the elimination of solid wastes. Large intestine is divided into three parts . i. e., caecum , colon and rectum. In mammals, colon has essential water absorbing role in preparation of faeces.*
*जल का अवशोषण पक्वाशय में ही होता है फिर वह से सूक्ष्मत्वानोपलभ्यन्ते मुखन्यासा सहस्त्र (नेफ्रोन) द्वारा निस्यंद होकर बस्ती मूत्राशय में जाता एकत्रित होता है*
*हम सहस्त्र शब्द से नेफ्रोन ले सकते है परन्तु रचनात्मक स्तर में कोई संबंध ज्ञापित नही है अभी या पक्वाशय से अवशोषित होकर मेसेंट्री के द्वारा नेफ्रोन तक जाता होगा । यथा आंत्र से आहार रस लिवर एवँ ह्र्दय में थोरेसिक डक्ट एवं पोर्टल वेन्स से जाता है ।*
मेसेंट्री यहाँ महत्वपूर्ण रोल प्ले करती है सम्भवत ।।
🌹🌹🌹🙏🏼🌹🙏🏼🌹
[6/5, 8:05 AM] Dr. Pawan Madan:
जी गुरु जी आपका कहा एक दम सत्य है। देश काल वय ऋतु रोग व रोगी बल के अनुसार ही मात्रा का निर्धारण हो सकता है। इसिलिए तो आयुर्वेद फॉर्मूला चिकित्सा कामयाब नही हों पाती*
[6/5, 8:11 AM] Dr. Pawan Madan:
Ji Guru ji.
[6/5, 8:12 AM] Dr. Pawan Madan:
जी गुरु जी
वो आपने कहा था ना के पहले दीपन कर्म करेंगे इस लिये मैं थोडा सा confuse हो था पर आपने सब clear कर दिया।
अति धन्यवाद।
[6/5, 8:15 AM] Prof.Giriraj Sharma Sir :
शास्त्र में कही का सन्दर्भ है
पूर्ण आहार में मूत्र प्रवर्ति का उल्लेख मिलता है ।
आहार उपरांत तुरन्त मूत्र प्रवर्ति आमाशय पक्वाशय गत मूत्र निर्मति का ही संकेत है ।
अति मधपान में भी शीघ्र मूत्र प्रवृति प्रायः मिलती है , अल्कोहल का अवशोषण आमाशय में ही हो जाता है ।
[6/5, 8:40 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*सादर नमन आचार्य गिरिराज जी, अभी मैं यही बात लिखने ही वाला था 🌹👌🙏*
[6/5, 8:58 AM] Prof.Giriraj Sharma Sir :
*सादर प्रणाम आचार्य श्रेष्ठ*
[6/5, 9:25 AM] Dr. Pawan Madan:
Suprabhaat Guru ji.
सुबह सुबह मेरे विचार मे भी यही संदर्भ आया।
धन्यवाद
💐❤️💐
[6/5, 10:27 AM] Dr. S. P. Chouhan:
Pranam sir🙏
In many diseases when patient is kept nill orally (NBM)...IV Fluids are continue...then also mutra pravratti is there....
IV fluids are directly entering in blood ....
how can we understand role of amashay, pakwashay in mutra pravratti in these situations..🙏🙏
[6/5, 10:52 AM] Prof.Giriraj Sharma Sir :
नमस्कार,
*प्राण अन्न एवं उदक मूल रूप से प्रकृति से ही प्राप्त होते है ।*
*आहार में तीनों सम्मलित रहते है इनका मुख्य प्रवेश मार्ग मुखमार्ग (सप्त)ही है.*
*इनका रस रक्त मांस आदि धातुओं में परिवर्तन होने के लिये विधार्य, पाचयति, विवेचयति अवशोषण के उपरांत धातु में परिवर्तन होता है एवं पुनः मूत्र पुरीष स्वेद वह स्रोतस से निसरण या मुंचयती होता है ।*
*श्वसन प्रकिया के द्वारा भी जल मुंचन होता है ।*
*I V थैरेपी से जल बिना विधार्य, एवं अवशोषण प्रक्रिया के सहस्त्र सूक्ष्म मुखन्यासा कैपपिलेरी के माध्यम से रक्त धातु में मिल जाता है । यह एक अस्थायी कुछ काल की व्यवस्था मात्र है , प्राण वर्धक भाव नही होगा ।*
*जब तक यह त्रिविध पाक अवस्थाओं से नही गुजरेगा तब तक यह स्थायी पोषक एवं सोम प्राण के रूप में कार्यकारी नही होगा ।*
🙏🏼🙏🏼🌹🙏🏼🙏🏼
[6/5, 11:09 AM] Prof.Giriraj Sharma Sir :
प्राण अन्न उदक- ग्रहयती
*रस -पाचयती विवेचयती*
*रक्त(प्रणायतन )"'*
*मांस (प्रणायतन )"'*
*मेद अस्थि मज्जा- पाचयती विवेचयती*
शुक्र (प्राणायतन) "'
*शुक्र प्राणायतन , धातु पाचयती विवेचयती के साथ मुंचयती*
*मूत्र पुरीष स्वेद - मुंचयति*
[6/5, 11:27 AM] Dr.Bhavesh R.Modh :
आज जो एकादशी है, उसे *अपरा एकादशी* कहते है, अपरा विद्या पाने के लिए व्यक्ति को प्रयत्नशील रहना चाहिए,
क्योंकि उसे व्यवसाय मे परफेक्टनेस और जो आय - आजिवीका होती है, वह श्री लक्ष्मी होती है अतः श्रेय की वृद्धि होती है।
इस अपरा एकादशी मे कर्कटीका-एवारू, जलक्रिडा का महात्म्य बताया है ।
ग्रिष्म के प्रभाव से मूत्रकृच्छ एवं मूत्राश्मरी हो आती है उसमे कर्कटीका-एवारू आहर औषध के रूप मे प्रयुक्त है ।
हर माह की शुक्ल एवं कृष्ण पक्ष की एकादशी मे एसे निश्चित खाद्य पदार्थ जो की वर्तमान ऋतुकाल के संदर्भ मे स्वस्थस्य स्वास्थ्यं रक्षणम् हेतु निर्देशीत किए गए है ।
इस _अपरा एकादशी मे वामनावतार मे श्री हरि का त्रिविक्रम स्वरूप है उसका पूजन अर्चन करने का विधान है,_
अपरा एकादशी जिस समय कालमे आती है उसमे मूत्रशर्करा एवं मूत्राश्मरी के विकार बहुधा मिलते है ।
रसतंत्रसारसंग्रह मे जो योग *त्रिविक्रमो रसः* नाम से दिया गया है वह इसमे प्रयुक्त होता है ..
मृतताम्रं अजाक्षीरैः पाच्यं तुल्यं गते द्रवे ।
तत् ताम्रं शुद्धसूत्ञ्च गंन्धकञ्च समं समम् ।।
निर्गुण्डीस्वरसैः अर्धं दिनं तद् गोलकीकृतम् ।
यामैकं बालुकायन्त्रे पकत्वा दत्वा अर्धगुञ्जकम् ।।
बीजपुरस्य मूलञ्च सजलञ्च अनुपाययेत् ।
रसः त्रिविक्रमो नाम शर्कराम् अश्मरीं ज्येत्। ।।
अपरा एकादशी, कर्कटीका- आहार औषध मे त्रिविक्रमो रसः श्री हरि का त्रिविक्रम स्वरूप की उपासना ...
[6/5, 12:57 PM] Dr. Surendra A. Soni:
बस्तिपूरणविक्लेदकृन्मूत्रं
सु सू 15
The process you are mentioning is 'Vikledikaran' means removal of Kleda/fluid.
Dr. S. P. Chouhan ji !
[6/5, 1:06 PM] Dr.Ravi Kant Prajapati :
🙏🙏🌹
[6/5, 1:07 PM] Vd.Shailendra :
👌🏻👏🏻🌷
[6/5, 1:23 PM] Dr. S. P. Chouhan:
Ok sir 🙏
Then fluid removed by vikledikaran will be considered as mutra or not ? And will it be suitable for urine analysis in IPD patients on IV fluids
[6/5, 1:24 PM] Dr.Ravi Kant Prajapati :
IV fluid in blood -----> IV fluid in Rakta dhatu -----> rakta dhara kala -------> raktavaha strotas mool ( Yakrut )-------> metabolism--------> pittadhara kala (site of agni or metabolism) ( between amashaya & pakwashya )-------> Sara kitta vibhajan -------> mal mutra nirmiti
🙏🙏Hypothesis only ..... Gurujan margdarshan karein
[6/5, 1:57 PM] Dr.Mrunal Tiwari:
We have already discussed about water metabolism. जलमहाभूताग्नि is responsible for this.Water is absorbed instantly .It has no need to go through avastha pak.
[6/5, 2:10 PM] Dr. Surendra A. Soni:
Yes
It is mutra.
Many times first urine of the day is collected for investigation.
You can say suitable for analysis.
Where is problem in understanding ?
Nirogen and other components of urine are not coming from diet ?
That's why it's 'aahar mal'. Means the substance is not utilizable in body coming from Oral route, metabolized in GIT and further checked by Liver/dhatwagni, and are soluble in water are excreted as urine.
I am unable that what is the problem.
If wish to add that dhatwagni has role in urine production then I am not agree with this.
Cold water bathing/varsha ritu also lead to urination then what will you say....?
Dr. S. P. Chouhan ji !
[6/5, 2:14 PM] Dr. Surendra A. Soni:
Dhatu, have their own individual upadhatu and malas.
[6/5, 2:16 PM] Dr. Surendra A. Soni:
Question was raised about IV fluids.
Dr.Mrunal Tiwari ji !
🙏🏻🌹
[6/5, 5:18 PM] Dr.Vandana Vats Madam :
सादर प्रणाम सर
🙏
आपके द्वारा लिखी गई क्लिनिकल आयुर्वेदिक चिकित्सा मस्तिष्क को जागृत कर गूढ़ मनन करने की और प्ररित करती है। हमारे लिए यह अतुल्य है।
मूत्र उत्पत्ति के विषय में शास्त्रों को सार बद्ध कर जो विवेचन आपने लिखा है, आपका बहुत आभार
🙏
सर कृपया Coeliac disease पर आपके द्वारा लिखी गई case presentation post करे
🙏💐🙏
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Above case presentation & follow-up discussion held in 'Kaysampraday" a Famous WhatsApp group of well known Vaidyas from all over the India.
Presented by
Vaidyaraj Subhash Sharma
MD (Kaya-chikitsa)
MD (Kaya-chikitsa)
New Delhi, India
email- vaidyaraja@yahoo.co.in
Compiled & Uploaded by
Vd. Rituraj Verma
B. A. M. S.
ShrDadaji Ayurveda & Panchakarma Center,
Khandawa, M.P., India.
Mobile No.:-
+91 9669793990,
+91 9617617746
Edited by
Dr.Surendra A. Soni
M.D., PhD (KC)
Professor & Head
P.G. DEPT. OF KAYACHIKITSA
Govt. Akhandanand Ayurveda College
Ahmedabad, GUJARAT, India.
Email: surendraasoni@gmail.com
Mobile No. +91 9408441150
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