[2/24, 1:10 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*आयुर्वेद रहस्य - पित्त प्रकरण भाग - 3*
*24-2-2022*
*case presentation -
अति मद्यपान जन्य कामला एवं आयुर्वेदीय चिकित्सा *
*पिछले सत्र 14-2-22 को हम पित्त शरीर में किन संज्ञाओं के रूप में मिलता है यह बताकर चले थे जैसे ...*
*स्वेदकर*
*तापहर*
*स्वेदोपग*
*पित्त शमन अथवा पित्त संशमन*
*पित्तावरोध*
*पित्त व्याधिकर*
*पित्तावसाद*
*पित्तकर्षण*
*मूत्रल - क्योंकि विरेचन मल के साथ मूत्र का भी करते हैं।*
*पित्त उत्क्लेश *
*पित्त अनुलोम*
*पित्त प्रकोप*
*पित्तघ्न*
*पित्त प्रदूषण*
*पित्त वर्धन*
*पित्त जनन*
*अग्निसादन*
*ताप प्रशमन*
*पित्त सारक*
*पित्त संग्रहण*
*स्वेदताप हर*
*पिपासा निग्रह*
*पित्त पाचन*
*पित्त शोषण*
*पित्त शोधन*
*पित्त प्रसादन*
*दाह हर*
*पित्तनाशन*
*पित्ताजित*
*अब शनैः शनैः इन सब का प्रायोगिक आधार क्या है यह रोगी और उसकी चिकित्सा में हम प्रत्यक्ष देखेंगे।*
*आयुर्वेदानुसार प्रायोगिक रूप में देखें तो भल्लातक साक्षात अग्नि है और पित्त देखना है तो आपके समक्ष मद्य है।*
*रोगी - 38 yrs/ male/ business*
*प्रमुख वेदना - अम्लोद्गार, रोगी से कुछ भी बोलने पर अर्थात शब्दों से , उच्च स्वर तथा उसे समझाने से असहिष्णुता, क्षुधानाश, आमाश्य प्रदेश तीव्र दाह, दौर्बल्य, त्वचा, मूत्र, नेत्र पीतावभासता, यकृत प्रदेश गुरूता, कण्डू, अनवस्थित मन, एवं क्रोध ।*
*शब्दों से, उच्च स्वर या संगीत की ध्वनि से असहिष्णुता के बहुधा अनेक रोगी मिलेंगे जिनसे प्रश्न परीक्षा करने पर ज्ञात होता है कि उन्हे किसी आयोजन या घर में उच्च स्वर का संगीत, शोर, किसी का उच्च स्वर में बात करना और कोई अन्य व्यक्ति सामने बैठ कर बातें करें तो उन्हे यह असहनीय होता है, आयुर्वेद में इसे 'शब्दासहिष्णुता' कहा है और यह रस क्षय का एक प्रमुख लक्षण है।*
*जिन्हे उच्च स्वर असहनीय होता है वो रस क्षय का लक्षण माना गया है।वाग्भट्ट में इसे श्रवण द्वेष माना गया है।'रसे रौक्ष्यं श्रमः शोषो ग्लानिः शब्दासहिष्णुता' अ ह 11/17 रस धातु क्षय के लक्षणों की व्याख्या करते हुये वाग्भट्ट शरीर में रूक्षता, बहुत शीघ्र ही थक जाना, शरीर का शोष,ग्लानि और किसी के शब्दों को सहन ना कर पाना ये लक्षण कहते हैं। 'शब्दासहिष्णुता-शब्दश्रवणद्वेषः' रस का ह्रदय स्थान है जो मन का भी स्थान है अत: यह लक्षण अपने आप में विस्तृत व्याख्या रखता है। 'रसौज' लिखकर ग्रन्थकार ने रस की तुलना ओज से की है कि प्रसंगानुसार मद्य ओज के साथ रस धातु को भी दूषित करता है, उसका क्षय करता है तभी अधिकतर मद्य का अति और निरंतर दीर्घ काल तक सेवन करने वाले रोगियों में रस क्षय के लक्षण ओज दुष्टि के साथ मिलते ही हैं, मद्य किस प्रकार ओज के विपरीत है यह पिछली बार हमने लिखा ही था अब पुनः एक बार प्रसंगानुसार दे कर चलते हैं ...*
*मद्य के गुण ------ओज के गुण*
*लघु --------- गुरू*
*उष्ण ---------शीत *
*तीक्ष्ण --------मृदु *
*सूक्ष्म --------श्लक्षण *
*अम्ल -------- बहल*
*व्यवायी -------मधुर *
*आशुकर ------ स्थिर *
*रूक्ष ----------स्निग्ध*
*विकासी ------- पिच्छिल*
*विशद ---------प्रसन्न*
[2/24, 1:10 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
पूर्व व्याधि वृत्त - लगभग 10 वर्ष पूर्व ग्रहणीदोष जिसके कारण मल की असम्यक प्रवृत्ति एवं दुग्ध एवं इस से निर्मित मिष्ठान्न से आध्मान*
*व्याधि समुत्पत्ति क्रम - तनाव युक्त व्यवसाय के कारण 5 वर्ष पूर्व सप्ताह में दो तीन बार मद्य सेवन आरंभ हुआ जो नियमित आदत बना गया। पिछले तीन महीने से दोपहर से ही मद्य पान आरंभ हो कर रात्रि तक 750 ml अर्थात एक बोतल समाप्त हो रही थी। रोगी चिड़चिड़ा हो गया था, धैर्य और मन का नियन्त्रण खो रहा था, किसी के भी उच्च स्वर से क्रोधित हे रहा था तथा क्षुधा लगभग समाप्त सी हो गई थी। रोगी की BSF 150-160 तक और BSPP 300 तक ग्लूकोमीटर में आ रही थी।हमारी चिकित्सा लेने से एक सप्ताह पूर्व रोगी ने भय से मद्य का त्याग कर दिया था।*
*कुल वृत्त - परिवार मे अनेक संतर्पण जन्य व्याधियां रही हैं।*
*अष्टविध एवं अन्य भाव - *
*नाड़ी - रज्जुवत एवं काठिन्य भाव युक्त , स्पर्श में उष्ण एवं पित्त तथा वात के स्थान पर अनुभव, अस्थिर किंतु तीव्र।*
*मूत्र - पीत और अल्प*
*मल - प्रातः अल्प पुनः एक बार b fast के बाद पर असंतुष्टि बने रहना।*
*जिव्हा - मलिन और पीताभ*
*शब्द - आवेग युक्त कर्कश*
*स्पर्श - उष्ण*
*दृक - पीत*
*आकृति - प्राकृत *
*प्रकृति - प्रकृति परीक्षण एक बहुत लंबी प्रक्रिया है।*
*सार - मांससार*
*संहनन - मध्यम*
*प्रमाण - सम*
*सात्म्य - अभ्यास सात्म्य -अम्ल,कटु,लवण*
शीत-उष्ण गुणादि अनुसार शीत सात्म्य *
*सत्व - अवर*
*आहार शक्ति - आहार इच्छा शक्ति - अल्प,
आहार परिपाक शक्ति - अल्प*
*व्यायाम शक्ति - हीन*
*वय - मध्य*
*देश - साधारण - दिल्ली निवासी*
*काल - रोगी जब आया था, दक्षिणायन तथा शीत का आरंभ *
*ऋतु - हेमन्त *
*मास - मार्गशीर्ष*
*पक्ष - कृष्ण *
*सम्प्राप्ति घटक - *
*हेतु - अति मद्यपान एवं पित्त वर्धक पदार्थों का अति सेवन, touring job से दूषित जल अथवा प्रदूषित आहार की संभावना।*
*वर्तमान समय में जीवनशैली और आहार विहार के कारण स्वतन्त्र और परतन्त्र कामला, कोष्ठाश्रित, शाखाश्रित और उभयाश्रित, बहुपित्त और अल्पपित्त कामला के हेतुओं में पित्ताश्य की अश्मरी का टूट कर पित्त नलिका में अवरोध उत्पन्न कर देना, उष्ण-तीक्ष्ण और विभिन्न रसायनों से युक्त पित्तवर्धक आहार, पित्ताश्य का पित्ताश्य की अश्मरी से भर जाना, विभिन्न कारणों से दूषित रक्ताधान जैसे hepatitis B इसका प्रमुख उदाहरण है, संक्रमित रोगी को सूचीवेध की needle का पुनः प्रयोग, विभिन्न प्रकार औषधियों से रक्त विषमयता आदि सहित मद्य का बहुकाल तक निरंतर और अति सेवन भी एक प्रमुख कारण है।*
*इस रोगी की history और लक्षणों के अनुसार हम इसे यकृत दुष्टि जन्य स्वतन्त्र कामला ग्रहण कर के चले हैं।*
*दोष - समान वात, पाचक,रंजक और भ्राजक पित्त, क्लेदक कफ*
*दूष्य - रस, रक्त, मांस और ओज*
*स्रोतस - अन्न, रस ( त्वक् को रस धातु में ही ग्रहण करते है, त्वक वर्ण पाण्डुता ), रक्त, मांस और मूत्रवाही।*
*स्रोतोदुष्टि - संग एवं विमार्ग गमन *
*आम की स्थिति - साम*
*अग्नि - मंद एवं विषम*
*व्याधि समुत्थान - आमाश्य विशेष अव्यव यकृत*
*व्याधि अधिष्ठान - शाखा एवं कोष्ठ*
*बल - युक्तिकृत*
*साध्यासाध्यता - कृच्छ साध्य*
[2/24, 1:10 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*LFT की जांच में यकृत की क्रिया में दुष्टि एवं चिकित्सा करने पर लाभ का क्रम इस प्रकार मिलता गया ..*
Dt.-----S.billi---OT---PT---GGTP--ALP
14/10/21-14.65--264---154--512----211
27/10---8.32--155----68---178----184
5/11----6.23---119----44---191----204
13/12---2.34---78----61-----------207
28/12---1.88---69----45-----------186
*USG - *
*liver - gr3 fatty, increased parenchymal echogenicity , portal vein 11 mm with mild ascitis*
*Endoscopy - stomach - cherry red color spot presence in fundus & body*
[2/24, 1:10 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*पित्त का स्वरूप हम रोगी की investigation reports में देख सकते हैं।*
[2/24, 1:10 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*रोगी को लाक्षणिक लाभ अधिकतम आ गया था इसलिये चिकित्सा में विश्राम दे दिया क्योंकि दोष अपने प्राकृत कर्म स्वयं बिना औषध के करें और धातुओं को भी अपना पोषण स्वयं करने दिया जाये ।13 और 14 फरवरी को रोगी ने पुनः कई दिन बाद पारिवारिक आयोजन में पुनः मद्यपान कर लिया तो रोगी का एक नेत्र रक्त वर्ण का हो गया तब पुनः LFT कराया गया ।*
[2/24, 1:10 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
16/2/22--- 1.3 --61----19 --------- 201
*USG - liver 153 mm borderline enlarged & slight irregular changes, portal vein normal.*
[2/24, 1:10 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*एक देशीय पित्त के उष्ण और तीक्ष्ण गुणों की वृद्धि आलोचक पित्त के रूप में अति मद्यपान के दो दिन करते ही देखिये ...*
[2/24, 1:10 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*मद्य पित्त के सभी अंशों की वृद्धि करता है और यह वृद्धि रोगी में कहीं कहीं एकदेशीय अति और अन्य क्षेत्र में गुणात्मक आधार पर भिन्न हो सकती है।*
[2/24, 1:12 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*इस रोगी के कोष्ठ में पित्त का स्वरूप ...*
[2/24, 1:15 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*पित्त प्रकरण अति विस्तृत है जिसकी विस्तृत व्याख्या जाारी है .... to be continue ...* 🌹❤️🙏
[2/24, 3:17 AM] Vd Sachin Vilas Gajare Maharashtra:
🙏🏻🌻
प्रणाम!!!
[2/24, 3:26 AM] Vd Sachin Vilas Gajare Maharashtra:
रुग्ण का blood pressure नापा था??
ऐसे अनेकों रुग्ण होते है,जिनमे आपके बताए पूर्वरूप के साथ ब्लड प्रेशर भी बढ़ा हुआ पाया जाता है,
और ब्लड प्रेशर की दवा शुरू करतेही लक्षण उपशय मिलता भी है। राग क्रोध शब्दासहिष्णुता आदि,
लेकिन bp की गोली पीछे लग जाती है।और हमे लगता है रक्त और पित्त की उष्ण तीक्ष्ण गुण का हनन न होने से ऐसे रुग्ण शीघ्र I C bleed, stroke के रुग्ण हो जाते है।
दोष शामक, रक्त पित्त शामक - प्रसादक चिकित्सा ही भविष्य के भय से बचा सकती है।
कृपया उपरोक्त रुग्ण के चिकित्सा के आधार भी साझा करे।
जैसे रक्तमोक्षण, विरेचन, शमन, प्रसादक आदि। और आपके विशेष *गुण संप्राप्ति* भंग भी बताए।
[2/24, 4:31 AM] Vaidya Sanjay P. Chhajed:
Wonderful understanding of clinical pitt sir
[2/24, 6:08 AM] Vd. V. B. Pandey Basti(U. P. ):
🙏विष द्रव्य जैसे वतसनाभ कुचिला के गुण भी ओज के विपरीत ही होते हैं किन्तु उचित मात्रा व सम्यक समय तक देने पर अमृत समान लाभदायक है।
[2/24, 6:10 AM] Vd. V. B. Pandey Basti(U. P. ):
पित पर विस्तृत वर्णन पढ़कर बहुत कुछ नया जानने को मिला।आपका आभार। 🙏
[2/24, 8:02 AM] Dr. Bhavesh R. Modh Kutch:
🙏😊💐💐💐
[2/24, 8:21 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*पित्त की चिकित्सा में साधारणतः यह मान लिया जाता है कि पित्तस्य तु विरेचनम्, शमन और रक्त मोक्षण।*
*वास्तव में चिकित्सा जो की जा रही है और अनेक कर्म ऐसे है जो सब कर तो रहें हैं पर उनका आभास नही है जैसे पित्त विरेचन,पित्त का अनेक प्रकार से शोधन, शमन, पितावसादन, पित्त का प्रसादन आदि । ये सब किन द्रव्यों से हो रहा है तथा उन द्रव्यों के गुण क्या है? ये समस्त पित्त का कर रहे हैं या पित्त के कुछ अंशों का ये सब आगे विस्तार से रात्रि में लिखेंगे और इस रोगी की सम्प्राप्ति कैसे भंग की तथा अचय प्रकोप के अन्य रोगी में भी स्पष्ट कर के चलेंगे।*
[2/24, 8:39 AM] Dr Mansukh R Mangukiya Gujarat:
🙏 प्रणाम गुरुवर 🙏
अब तो आपका रहस्योद्घाटन मेरे लिए व्यसन बन गया है ।
धन्यवाद गुरुवर 🙏
[2/24, 8:55 AM] Dr. RAJNEESH PATHAK:
Apka kathan margdarsaniya hai navin vaidyo hetu sir
Ye vishay v to ansans kalpana ka hai jo samprapti ke sandarbh me ata .....Aisa charak nidan 1 me v varnit hai
[2/24, 8:59 AM] Dr. Ashwani Kumar Sood:
👍🏻👌🏻
[2/24, 9:37 AM] Dr. Pavan mali Sir, Delhi:
Pranam sir ...important aspects in clinical settings 💐🙏🏻
[2/24, 9:49 AM] Vd. Divyesh Desai Surat:
🙏🏾🙏🏾प्रणाम सर, पहले केवल आयुर्वेदकी पढ़ाई की थी, अब इस सम्प्रदाय के गुरुजनोके मार्गदर्शन से सही मायने में अर्थ थोड़ा थोड़ा समझ मे आ रहा है। 🙏🏾👏🏻
।
[2/24, 10:02 AM] Vd. Mohan Lal Jaiswal:
ऊँ शंखपुष्पी मंगल बेला में प्रफुल्लित होने व स्वल्प मंगल वर्णयुक्त मंगलकारी(मेध्य)होनेसे मांगल्यकुसुमा है जिसका संग्रहण मधुमास में समूलपुष्प मंगलबेला में प्रशस्तकारी है।
समूलपुष्प्या मेध्याविशेषेण !
च.चि.
रसायनपाद
ऊँ युक्तरथकारी नमः !
समादरणीय वैद्यवर जी सुभाष शर्मा जी मेधाकारी पित्तगुण विशिष्ठ गुणकर्म विवेचन के शुभावसर पर सादर समर्पित।
ऊँ शम
[2/24, 10:04 AM] Prof. Lakshmikant Dwivedi Sir:
"Kalkapprayojyam khalu shankha pushpyah." Anukalpa curna🙏😊
[2/24, 10:28 AM] Dr Ajay Bhat:
🙏sir.. for enlightening us regarding Amshaamsha kalpana of pitta
[2/24, 10:38 AM] Dr.Pratyush Sharma:
प्रणाम सर !
वासा घृत या चंद्रकला या दोनो पोर्टल हाईपरटेंशन में बिना ब्लीडिंग के भी काम करेंगे क्या?
मतलब अगर रक्तपित्त के लक्षण नहीं है लेकिन आगे होने की संभावना है तो पोर्टल हाईपरटेंशन को सही करेगा?
[2/24, 11:00 AM] Dr. D. C. Katoch sir:
Portal hypertension mein hypertension ki aushadh Arjun + Punarnava dijiye
[2/24, 11:07 AM] Dr.Pratyush Sharma:
प्रणाम सर !
अर्जुन पुनर्नवा एकल औषध रूप में ?
या किसी योग के रूप में ?
क्या पुनर्नवाष्टककषाय या पुनर्नवा मंडूर दिया जा सकता है जलोदर और शोथ को भी ध्यान में रख कर ?
[2/24, 11:09 AM] Prof. Lakshmikant Dwivedi Sir:
Hridya recan,(nishoth)/Avipatti kar+ punarnavadi mandoor takrena.
[2/24, 11:12 AM] Vd Chinmay phondekar:
Yes sir !
I prefer Chandrakala Rasa in Portal Hypertension. Though it is Sheet Veeryatmak Kalpa. It contains Tamra Bhasma as it is one of the constituent.
[2/24, 11:21 AM] Dr. Sadhana Babel:
Pranam to all🙏🏻🙏🏻🙏🏻
I have observed that whenever pt consume arjunarishta or arjun for long time
It may self medication or by vd updrava is arsh .
Arsh and portal hypertension
increased pressure in the portal vein may lead to the development of large, swollen veins (varices) within the esophagus, stomach, rectum, or umbilical area (belly button). Varices can rupture and bleed, resulting in potentially life-threatening complications
I am using charak raktpitta
अटरूषकमृद्वीकापथ्याक्वाथः सशर्करः|
मधुमिश्रः श्वासकासरक्तपित्तनिबर्हणः||६५||
[2/24, 11:21 AM] Dr.Pratyush Sharma:
प्रणाम सर !
पित्त विवेचन व चिकित्सा में एक के बाद एक और ‘मुक्ता’ रूपी आपके शब्द जुड़ रहे हैं।
सादर आभार।
कुछ प्रश्न-(धृष्टता क्षमा करें)
क्या ऐसा हो सकता है कि LFT में सुधार दिखे लेकिन लिवर अभी भी अपना कार्य सही नहीं कर रहा हो?
PT(prothombin time) अभी भी कम हो? जिससे कि एकदेशीय पित्त के उष्ण तीक्ष्ण गुणों का यह स्वरूप रक्तपित्त के रूप में दिख रहा है।
आँखों के नीचे भी इकाइमोसिस दिख रहा है।
[2/24, 11:22 AM] Dr. Sadhana Babel:
प्रणाम आचार्य🙏🏻🙏🏻🙏🏻
[2/24, 11:46 AM] Prof.Santosh Bhattad:
गुरुजी रुग्ण के पूर्व व्याधि एवं व्याधि वृत्तांत के आधार पर निम्नोक्त चरक संहिता के सूत्र इस रुग्ण की व्याधि की सम्प्राप्ति का वर्णन क्या निम्न प्रकार से कर सकते है.
[2/24, 12:10 PM] Vd. Divyesh Desai Surat:
वैसे भी सारे लक्षण पित्त प्रकोप के मिलते है, portal HTN और varices में, तो चंद्रकला पित्तशामक होने के साथ साथ दाह, वमन, ओर ब्लीडिंग (उर्ध्वग या अधोगत रक्तपित) की औषध है, साथ मे मूत्रल भी है...
वासा के लिए तो
वासायां विद्यमानायाम आशायां जीवितस्य च,
रक्तपित्त क्षय कास: किमर्थं अवसीदति।।
ये तो वासा के लिए सभी को पता है, तो हम उसका घृत देंगे तो और भी अच्छा रहेगा..
पहले इस्तेमाल करें
फिर *पक्का* *विश्वास* करे🙏🏾🙏🏾
[2/24, 12:17 PM] Prof.Santosh Bhattad:
घोरं अन्नाविशम च तत
संस्राज्यमानं पित्तेन दाह तृष्णा मुखामयन
जन्यत्यामलपित्तम च पित्तजश्च अपरान गदान.
च. चि. 15/47,
दोषा : पित्तप्रधानस्तु यस्य कुप्यन्ति धातुषु
शैथिल्य तस्य धातुनाम गौरं चोपजायते
ततो वार्ना बल स्नेहा ये चान्येअपियोजसो गुना:
व्रजन्ति क्ष्यमात्यर्थं।
च. चि. 16/5
पाण्डुरोगी तू योत्त्यर्थं पित्तलानी निषेवते।
तस्य पित्तम असरुग्मांसम दग्धवा रोगाय कल्पते।
हरिद्रनेत्रं स भृशं हरिद्रत्वक नखानानं:
रक्तपितशकरुंमुतरौ भेकवर्णो हत्येन्द्रिय।
दहाविपकदौर्बाल्यासदनरुचिकर्षित:।
कामला बहुपित्त एशा कोष्ठ शाखाश्रय आ माता:।
कालान्तरत ख़रीभूता कृच्छ्रस्यता कुंभकामला।.
च. चि. 16/ 34-37
तस्यइमानि पूर्वरूपाणी भवन्ति; तद्यथा- अनंनाभिलाश; भुक्तस्य विदाह, शुकतामल गंधरस उद्गार; छरदे अभिक्ष्णमागमन, छरदतस्य बिभत्सता, स्वरभेदों, गात्रणाम सदनं, परिदाह, मुखाड़धूमागम इव, लोहलोहितमत्स्यामगन्धितवं चास्यास्य, रक्ताहारित हारिद्रत्वमंगावयवशकरुंमूत्र.
च. नि. 2/6,
शोणितकलेदाश्च, मांसक्लेदश्च, राजताविस्फोटश्च, रकटपित्तम च, हरितत्वम च, हरिद्रत्वमच, कामलम च, पुतिमुखता च, तृष्णाधिक्य म च अक्षीपाकश्च, जीवनदानम च हरित हृदरनेत्र वर्चसत्वम
च. सूत्र. 20/ 14.
[2/24, 12:22 PM] Prof. Santosh Bhattad:
Stepwise samprati from agnimandhya - ajirna - grahanidosha - Amayukta pitta - rasakyaya - pandu- pitta vardhak Sevan atiyoga - Kamala - rakta and raktavah srotodushti, raktavaha sroto mula dushti, rakta pitta.
[2/24, 12:24 PM] Prof. Santosh Bhattad:
गुरुजी के चरणों मे उचित मार्गदर्शन हेतु सादर प्रेषित 🙏🙏
[2/24, 12:38 PM] Dr. D. C. Katoch sir:
यदि अग्नि ठीक है तो चूर्ण बनाकर अन्यथा क्वाथ बनाकर।
[2/24, 12:44 PM] Dr. D. C. Katoch sir:
A study was conducted in AIIMS to evaluate the role of Arjuna in Portal Hypertension and it showed beneficial effects.
[2/24, 12:51 PM] Dr. Vandana Vats Madam Canada:
🙏
[2/24, 1:01 PM] Dr. Suneet Aurora, Punjab:
🌹🙏🏼🌹
सादर प्रणाम, गुरुदेव।।
बहुत आभार।।ko
[2/24, 3:49 PM] Dr. Ramesh Kumar Pandey:
गुरुवर प्रणाम👏👏
पित्त प्रकरण पर विस्तृत जानकारी देने के लिए हृदय तल से बहुत बहुत हार्दिक धन्यवाद
👏👏
[2/24, 5:00 PM] Vaidya Vivek Sawant Pune:
Lastly discussed pt who has ascitis and plural effusion with licking at koorpar sandhi.......discussed before four to five days....who was admitted later....done tapping for plural effusion removed 750ml water from rt side and 800ml from lt side of lung ....three days on supportive system......not done tapping for ascitis .. diuretics given in hilghly doses BD and on antibiotics .......today pt getting discharge from hospital....
We discuss it as arishta lakshana but pt recover well ......
The same thing about in jwara karna mool granthi shof is asaadhya but in my pt if i refer to alopathy with antibiotics pt cures very well😔😇😇😇😇
[2/24, 5:06 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*शुभ सन्ध्या सहित सादर सप्रेम नमन 🌹❤️🙏
आदरणीय आचार्य जायसवाल जी,
आपके द्वारा प्रदत्त प्रत्येक ज्ञान चिकित्सा में बहुत उपयोगी है। पित्त प्रकरण में अधिकांश भाग द्रव्य गुण का भी है अतः मुझे तो हर कदम पर आपके सहयोग की आवश्यकता है । *
❤️🌹🙏
[2/24, 5:09 PM] Dr. Vinod Sharma Ghaziabad:
🙏🏾🙏🏾वो अरिष्ट अब शायद नही रहे ।
प्राणियों की आयु युक्ति (उचित चिकित्सा ) की अपेक्षा करती है
भूतानां आयुरयुक्ति अपेक्षित:
रोगी के लिए शुभेच्छा ।
[2/24, 5:12 PM] Vd. Mohan Lal Jaiswal:
ऊँ सद्गुरु देव जी की कृपा से सतत प्रयत्नशील ।
अथभूतदयां प्रति🙏
[2/24, 5:16 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*नमस्कार वैद्य प्रत्युष जी, CLD के अनेक रोगियों में LFT report तो with in normal limit मिलती है पर यकृत की क्रिया में सुधार ना होने से लाक्षणिक लाभ नही मिलता, इसीलिये हम report से अधिक मापदण्ड लक्षणों को बना कर चलते है, ऊपर हमने पोस्ट में लिखा भी है कि रोगी को लाक्षणिक लाभ अधिकतम मिल गया ।*
*इसी सप्ताह next visit पर रोगी का PT test करा कर वो भी confirm कर लेते है और संभव हुआ तो latest photo भी यहां देंगे, मद्यसेवियों के साथ सब से बढ़ी समस्या ये है वो करते अपने मन की है ।*
[2/24, 5:21 PM] Vd Mayur Kulkarni:
विवेक सर रिष्टाभास भी होता है ।
दोषाणाम् अपि बाहुल्यात् रिष्टाभासः समुद्भवेत् । स दोषाणां शमे शाम्येत् ।
(वा शा 5)
हालांकी रिष्ट और रिष्टाभास में फर्क करना काफी मुश्कील होता है ।
[2/24, 5:29 PM] Vaidya B. L. Gaud Sir:
आपने अरिष्ट लक्षण युक्त माना या असाध्य माना दोनों में अंतर है ।
[2/24, 5:30 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
डॉ संतोष जी ,
आपकी दिशा पूर्ण उचित है और इसी प्रकार अपने ज्ञान को निरंतर शेयर करते रहे क्योंकि इस से आपको आगे लाभ मिलेगा कि जब हम clinic में होते हैं जैसे आरंभ से हम यह पढ़ते हैं कि 'पांडुरोगी तु योऽत्यर्थं पित्तलानि निषेवते' - पांडु रोगी अगर पित्तवर्धक द्रव्यों का अधिक प्रयोग करता है, तस्सपित्तमसृग्मांसं दग्ध्वा रोगाय कल्पते - उसका बढ़ा पित्त रक्त और मांस को जला कर कामला रोग कर देता है ।
च चि 16/34*
*कामला बहुपित्तैषा कोष्ठशाखाश्रया मता - दो भेद कोष्ठाश्रय और शाखाश्रय होतो हैं।
च चि 16/36*
*स्वतन्त्राऽपि कामला भवति कहकर माधव निदान की मधुकोष व्याख्या में लिखा गया है। कामला पित्तज दुष्टि है और अनेक व्याधियों में व्याधि का उपद्रव भी माना जाता है।वर्तमान समय में स्वतन्त्र कामला बहुधा देखने को मिलता है जिसका कारण प्रदूषित जल और आहार है।*
*hepatitis B तो स्वस्थ व्यक्ति को रक्ताधान से हुआ, कुछ औषधियां आधुनिक समय में कामला का कारण बन जाती है और आजकल तो बच्चे गर्भ से बाहर आते ही कामला से पीडित हो जाते हैं तो सम्प्राप्ति भिन्न और चिकित्सा भी विशिष्ट हो जाती है।*
[2/24, 5:31 PM] Vaidya Vivek Sawant Pune:
मैने अरिष्ट aur असाध्य नहीं माना
बल्की कूछ समज नही आया इसलिये सलाह मांगी थी🙏🏻🙏🏻
[2/24, 5:42 PM] Vaidya B. L. Gaud Sir:
फिर तो कोई दिक्कत नहीं है अरिष्ट तो उत्पन्न होने के बाद मृत्यु होती ही है
लेकिन अरिष्ट में संशय हो तो वहां परीक्षण बताए हैं कि निश्चित कर लें अरिष्ट है या नहीं।
संशयप्राप्तमात्रेयो जीवितं तस्य मन्यते।
चरक अरिष्ट 9/15
[2/24, 5:56 PM] Vaidya B. L. Gaud Sir:
आपने इसमें लिखा है
We discussed it as arisht lakshan but patient recover well.
[2/24, 6:27 PM] Dr. M B Gururaja:
Respected *Vaidya Subhash sharmaji , Namaskar* ...🙏🏻
*कामला बहुपित्तैषा कोष्ठशाखाश्रया मता।*
From this above statement if we accept there are two varieties of kamala and they are *कोष्ठाश्रय* and *शाखाश्रय.*
I feel it is not correct ..
This kostashraya and Shakhashraya kamala are categorized based on presence of excess pitta than the normal in kosta as well as in shakha.....
If we accept that kostashraya as one variety of kaamala then in that category excess pitta should not be present in shakha but which is not true ....
Whereas in shakhashraya excess pitta is present in shakha but pitta is absent in kosta that is why we get in this category *तिलपिष्ठनिभयस्तु वर्चः।*
So it is my thinking that we should accept two categories as *कोष्ठशाखाश्रित* and *शाखाश्रित.*
Healthy human being also has normal pitta in kosta but it can't be taken as kostashrita kamala , of course here pitta is prakruta pitta .
Kindly correct me if I am wrong .
[2/24, 6:37 PM] Dr. Ashwani Kumar Sood:
When pt develops ASCITIS it means he has LIVER PARENCHYMAL DISEASE, when he develops PLEURAL EFFUSION it means his CARDIOVASCULAR SYSTEM, RESPIRATORY SYSTEM AND RENAL all the major organs are compromised and further watery discharge from the skin indicates aggravation of his symptoms, though u/s, X rays reports ECG etc important investigations were not presented in the case. It was good luck that the pt was handled by SKILLED TEAM OF PHYSICIANS and pt was saved. As pt is on two types of diuretics danger of electrolyte imbalance still lingers . Heroic measures are still required to save the life of pt .
Please put the investigations done before and after the treatment so as GR MEMBERS can make their diagnosis .
[2/24, 6:37 PM] Dr. Ashwani Kumar Sood:
⬆️ for Dr Vivek Sawant
[2/24, 7:30 PM] Vd. Divyesh Desai Surat:
✅✅Right Sir,
Some time arisht lakshan mimic with others symptoms...So details of patient's history is must for differentiate🙏🏾🙏🏾
[2/24, 8:00 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
नमस्कार डॉ गुरूराजा जी,
हमने अनेक रोगियों में देखा है कि केवल hepatitis B or C quantitative +ve है पर कोष्ठगत या शाखागत कोई लक्षण नही है, virus बहुत समय से लीन दोषों की तरह विद्यमान है पर रोगी में रोग का कोई लक्षण नही। पहले के समय में investigations नही थे तब कोष्ठाश्रित, शाखाश्रित और उभयाश्रित भेद थे ।*
*आपके मतानुसार कोष्ठशाखाश्रित एवं शाखाश्रित यह मत भी मान्य है । 👌👍🙏*
[2/24, 8:02 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma:
*सादर प्रणाम गुरूश्रेष्ठ 🙏🙏🙏🙏🙏 आज बहुत दिनो के बाद काय सम्प्रदाय में आपका आगमन बहुत ही आनंददायक है ।*
[2/24, 8:09 PM] Vaidya B. L. Gaud Sir:
मैंने तो काय संप्रदाय से गमन किया ही नहीं था आगमन कैसा ? यहीं रहता हूं मैं तो । आप लोग बहुत अच्छा विश्लेषण कर लेते हो इसलिए चक्रपाणि के वचनों के अनुसार यतिर्यथा परमशांत: साक्षी सन् जगत:क्रिया पश्यन् न... युज्यते
की तरह शांत होकर सब कुछ देखता रहता हूं सभी लोग श्रेष्ठ विश्लेषण करते हैं इसलिए बीच में बोलने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती ।
[2/24, 8:13 PM] Dr. D. C. Katoch sir:
🙏🏻🙏🏻साधुवाद भवताम गुरूवर्य श्री
[2/24, 8:49 PM] Dr. M B Gururaja:
Dhanyavad sirji ...🙏🏻😊
[2/25, 11:01 AM] Dr.Pratyush Sharma:
जी सर,
प्रत्यक्ष लाक्षणिक प्रमाण तो सर्वोपरि है।
[2/25, 11:34 AM] Vd Mayur Kulkarni:
गुरुवर्य आदरणीय सुभाष शर्मा सर सविनय सादर प्रणाम आपने जो विषय रखा वह काफी महत्व पूर्ण है, बहोत बार ऐसे रुग्ण आते है की उनके investigation में Values abnormal होती है लेकीन वह स्वस्थ लगते है. यहाँ जो लक्षण reports के आधार पर दिखते है वह व्यभिचारी लक्षण मान सकते है क्या ? (यो दुर्बल त्वात् व्याधि ज्ञापक असमर्थ:) ग्रंथ में जैसे आपने कहा वह लीन दोष (व्यभीचारी हेतु) की अवस्था में है (तत्र स्थाश्च विलम्बेरन् भूयो हेतु प्रतीक्षिणः). Reports के आधारपर चिकित्सा करने के बारे में किं कर्तव्यं मूढता उत्पन्न होती है । कृपया मार्ग दर्शन करे ।
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Above case presentation & follow-up discussion held in 'Kaysampraday (Discussion)' a Famous WhatsApp group of well known Vaidyas from all over the India.
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Compiled & Uploaded by-
Vd. Rituraj Verma
B. A. M. S.
Shri Dadaji Ayurveda & Panchakarma Center,
Khandawa, M.P., India.
Mobile No.:-
+91 9669793990,
+91 9617617746
Edited by-
Dr.Surendra A. Soni
M.D., PhD (KC)
Professor & Head
P.G. Dept of Kayachikitsa
Govt. Akhandanand Ayurveda College
Ahmedabad, Gujarat, India.
Email: surendraasoni@gmail.com
Mobile No. +91 9408441150
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