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WDS 93: 'SHRESHTHA APATHYA' by Prof. B. L. Goud, Prof. Satyendra Narayan Ojha, Prof. S. K. Khandal, Vaidya raj Subhash Sharma, Prof. R. K. Sharma Chulet, Dr. D. C. Katoch, Prof. Deep Narayan Pandey, Dr. Shashi Jindal, Dr. Mayur Surana & others.

[11/20, 18:05] Dr Shashi Jindal, Chandigarh:

 🙏🏼potato is told as nikrishta shaak by Charak, Because it not of Indian origin.According to charak dravyas which are not from same origin as person r asatmya. desh asatmya.

[11/20, 18:05] Prof. Deep Narayan Pandey: 

संहिताओं में बिना प्रयोजन तो कुछ समाहित नहीं है, इसलिए लगता है आचार्य का कोई गूढ़ मंतव्य रहा होगा!

[11/20, 18:54] Dr Narinder:

 I had same doubt and discussed with one of my DG friends. 
He told that Potato is Solanum tuberosum. It's not the आलुक told in Charaka. Potato was introduced in india in 17th century.
The आलुक told by Charaka are the tubers of Dioscorea species, which when eaten are either poisonous or show toxicity.
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

[11/20, 18:55] Dr Narinder: 

Rest Gurujans should guide. 🙏🏻

[11/20, 18:55] Prof. Deep Narayan Pandey: 

👍

[11/20, 18:56] Prof. Deep Narayan Pandey: 

आज जिसे हम आलू के रूप में जानते हैं वह तो निश्चित रूप से आचार्य चरक का आलू नहीं है।

[11/20, 18:56] Prof Satyendra N Ojha: 

👍👍

[11/20, 18:56] Dr Narinder: 

जी सर  🙏🏻🙏🏻।

[11/20, 19:10] Vd. Subhash Sharma Ji Delhi: 

*u r right*
👍👍👍

[11/20, 19:24] Dr. D C Katoch sir: 

वो अमेरिका से आया आलू है जो हम रोज खाते हैं परन्तु है वो सब को सात्म्य। चरकोक्त तो पिण्डालु है जो मैंने बचपन में हिमाचल के अपने मातृगांव में खाए थे।

[11/20, 19:27] Prof. Deep Narayan Pandey: 

🙏🙏💐👌💐
पिंडालू को निकृष्टतम् क्यों कहा होगा आचार्य, कोई ना कोई कारण होगा?

[11/20, 19:27] Prof. Deep Narayan Pandey: 

कुछ ना कुछ गड़बड़ करता होगा खाने पर।

[11/20, 19:28] Dr Narinder: 

Same question sir.. 😊 🤔🤔

[11/20, 19:37] Dr. D C Katoch sir: 

चरकोक्त आलुक सम्भवतः अरबी कन्द हैं जो बहुत गरिष्ठ व विष्टम्भी होता है ।

[11/20, 20:22] Prof Satyendra N Ojha: 

आलुकं कन्दानाम् , च.सू. 25/39  
मूलकं कन्दानां अपथ्यत्वे प्रकृष्टतमम्; आचार्य चक्रपाणी का मन्तव्य च.सू.27/168
यदि इस संदर्भ को उल्लेखित किया जाय तो आलुकं नहीं मूलकं है , अर्थात मूली..

[11/20, 20:25] Prof Satyendra N Ojha: 

वृद्धं त्रिदोषम् !

[11/20, 20:26] Prof Satyendra N Ojha: 

बालं दोषहरम् !

[11/20, 20:34] Prof Satyendra N Ojha: 

गौड़ गुरु जी ने च.सू.27/168 के संदर्भ मे एषणा मे च.सू. 25/39 को उल्लेखित किया है, लेकिन उस संदर्भ मे मूलक है हि नहीं !

[11/20, 20:43] Prof. Ramakant Chulet Sir: 

थोड़ा स्पष्ट कीजिये आचार्य क्या कहना चाहते हैं 8:22 वाली व इस पोस्ट में

[11/20, 20:44] Prof Satyendra N Ojha: 

आचार्य चुलेट जी के मन्तव्य कि प्रतिक्षा है

[11/20, 20:45] Prof. Ramakant Chulet Sir: 

ज़रूर किन्तु पृश्न गत विषय व विषयगत पृश्न तो समझलूं

[11/20, 20:50] Prof Satyendra N Ojha: 

आलुकं च.सू.25/39 मे है , जिसे च.सू. 27/168 के संदर्भ मे उल्लेखित करते समय मूलक कहा गया है.. एषणा को देखा जाय..🙏🙏

[11/20, 21:03] Prof. Ramakant Chulet Sir: 

जहाँ तक समझ पाया हूँ आपकी एषणावर्तमान में यह जानना है कि —१-च सू २५/३९ में मूल सूत्र में —आलुकम् कन्दानाम् उल्लिखित है 
२-च सू 27-168 की टीका में मूलक के दोषप्रभाव को स्पष्ट करते हुये आचार्य चक्रपाणि ने इसी सूत्र को - मूलकम् कन्दानाम् अपथ्यत्वे प्रकृष्टतमम् (सू.अ.25 ) ऐसा उद्धृत किया है ।इसी को आधार मानकर 8:22 की पोस्ट में आपने प्रस्तावित किया है कि आलुकम् कंदानाम् के स्थान पर मूलकम् कंदानाम् अपथ्यतमत्वे प्रकृष्टतमा ऐसा मानना चाहिये ...क्या यहाँ तक मैंने ठीक समझा आचार्य ?????

[11/20, 21:04] Prof. Deep Narayan Pandey: 

कहीं ऐसा तो नहीं है कि टंकण की त्रुटि आदि हो। संहिता देखना पड़ेगा। 

आजकल पब्लिशर उस पुस्तक को जल्दी जल्दी जमा कराने के लिए बढ़ा दबाव डालते हैं और ऐसे में प्रूफरीडिंग तक का समय नहीं मिलता। 

मैं यह इसलिए लिख रहा हूं क्योंकि आचार्य प्रोफेसर बनवारी लाल गौड़ द्वारा किया गया यह अनुवाद वास्तव में बहुत ही रोचक और मनोहारी है। आनंद आ जाता है पढ़ने में।

[11/20, 21:04] Prof. Ramakant Chulet Sir: 

एषणा का प्रसंग नहीं समझा मेरे पास वो प्रति भी नहीं है।

[11/20, 21:06] Prof Satyendra N Ojha: 

जी |

[11/20, 21:06] Prof Satyendra N Ojha: 

मंगा लिजिए🙏🙏

[11/20, 21:08] Prof Satyendra N Ojha: 

जी, निश्चित रुप से, तभी तो मैनें यहां उद्धरित किया है |

[11/20, 21:10] Prof Satyendra N Ojha:

 टंकण कि दुष्टि नहीं दिखति

[11/20, 21:13] Prof Satyendra N Ojha: 

आचार्य श्रेष्ठ चुलेट गुरु जी 🙏🙏👆👆

[11/20, 21:16] Prof Satyendra N Ojha: 

चर्चा अपेक्षित है, आचार्य श्रेष्ठ खांडल गुरु जी भी यहां उपलब्ध है

[11/20, 21:19] Prof. Deep Narayan Pandey: 

ओह, इस मुद्दे पर बड़ा चक्कर है।

आचार्य चक्रपाणि २५.३९ में आलू पर कुछ कह के नहीं गये हैं। और अचानक इधर २७.१६८ की मूली को २५.३९ का आलू कर दिया यह कहते ही कि *मूलकं कन्दानामपथ्यत्वे प्रकृष्टतमम्*

🙏🙏

[11/20, 21:22] Prof. Deep Narayan Pandey: 

आपके इस पुस्तक को कल ही मंगाना पड़ेगा आचार्य।
🙏
यह तो बड़ी रोचक पुस्तक है। कितने बार मिले हम आपने कभी चर्चा ही नहीं की।

[11/20, 21:23] Prof Satyendra N Ojha: 

यही तो मुद्दा है

[11/20, 21:25] Prof Satyendra N Ojha: 

ji.. Guru ji 🙏🙏

[11/20, 21:25] Prof. Deep Narayan Pandey: 

यह कैसे रिजाल्व होगा आचार्य

यह तो समझबाह्य हो रहा है।

[11/20, 21:26] Prof Satyendra N Ojha: 

आचार्य श्रेष्ठ गौड़ गुरु जी हि करेगें

[11/20, 21:28] Prof. Ramakant Chulet Sir: 

मेरे जीवन का सबसे उज्ज्वल किन्तु सबसे दुखद पक्ष, उस समय बीस पचीस हज़ार ख़र्चा हुवा था, यदि उस समय इतने की ज़मीन ख़रीदता तो ५०-६० लाख की होती, इस की चर्चा करते ही सहम जाता हूँ मैं, इसने मुझसे मेरा शैक्षणिक बचपन छीना, मेरा शैक्षणिक यौवन छीना, मुझे जीवक  बना दिया, मैं कनखल में कूद कर निकल नहीं पाया तो वृद्ध जीवक नहीं बन पाया ।

[11/20, 21:29] Dr Narinder: 

सर ये book किस प्रकार उपलब्ध हो सकती है?? 🙏🏻🙏🏻🙏🏻

[11/20, 21:29] Prof Satyendra N Ojha: 

जी, आपने आग मे हाथ डाला था 

[11/20, 21:31] Prof. Deep Narayan Pandey: 

इसका मतलब कुछ ना कुछ खतरनाक जुड़ा हुआ है इसके साथ। कभी बैठकर चर्चा करेंगे।
🙏🙏

[11/20, 21:32] Prof Satyendra N Ojha: 

दुखति रग पे हाथ मत रखिए

[11/20, 21:32] Prof. Deep Narayan Pandey: 

*लेकिन अभी समय नहीं बीता है आचार्य।*

*कौन जानता है कि आज की चर्चा इसीलिए प्रारंभ हो गई हो।*

[11/20, 21:32] Prof Satyendra N Ojha: 

👆🙏🙏💐🌷🌹

[11/20, 21:34] Prof S. K. khandal Sb: 

मूलत:शब्द तो आलुक ही है
कदाचित् पिण्डालु आकार वाची है  मूलक जाति है 
आलुक का अभिप्राय मूलक नहीं है अन्यथा च चि ३० मैं मूलक तैल की जगह आलुक लिखा जा सकता था 
गौड़ सा का मौन ही आलुक की निर्विवादत है

[11/20, 21:35] Prof Satyendra N Ojha: 

लेकिन एषणा मे उनका अभिमत अपेक्षित था

[11/20, 21:36] Dr. D C Katoch sir: 

आचार्य जी, जयपुर से प्रकाशित इस पुस्तक के मुखपृष्ठ पर हिमालय श्रृंखला दिखा रहे हैं,  निश्चिततः अन्दर अतीव दुर्लभ ज्ञानसामग्री है। 😌😌😌

[11/20, 21:39] Prof B. L. Goud Sab: 

यादव जी द्वारा सम्पादित में जहाँ मुद्रण में अशुद्धि  है उस का उल्लेख एषणा के बाद कर दिया है पर यह तो तथ्यात्मक रूप में निर्णय की अपेक्षा रखता है अतः केवल उल्लेख करना ही अपेक्षित था यह निर्णय तो द्रव्यगुण वालों को करना है कि चरक ने आलुकं कहा है या मूलकम्।क्या अग्निवेश, चरक और दृढबल के समय आलू उपलब्ध था ।वैसे योगीन्द्र नाथ की मुद्रित प्रति के मूल में तो मूलकम् कन्दानाम् ही है।अतः चरक ने मूलकम् कहा है या आलुकं यह निर्णय द्रव्यगुण वाले करें तो अच्छा है

[11/20, 21:42] Prof. Ramakant Chulet Sir: 

जी हाँ किन्तु आवश्यक था , मेरे विचार अभी भी अपरिवर्तित हैं । रही बात आग में हाथ डालने की, मैं तो कूदता हूँ, यह सोचकर कि कुछ कचरा है, जल जाय तो अच्छा है, आपकी रुचि का एक उदाहरण प्रस्तुत करता हूँ कृपया बताना कि क्या प्रस्तुत प्रसंग में आग में हाथ नहीं डालना चाहिये था

[11/20, 21:42] Prof B. L. Goud Sab: 

मौन नहीं यह नीतिगत था ऊपर स्पष्ट कर दिया

[11/20, 21:43] Prof Satyendra N Ojha: 

👍🙏🌷👍🙏

[11/20, 21:43] Prof. Ramakant Chulet Sir: 

👏👏👏👏👏👏👏👏👏

[11/20, 21:44] Prof S. K. khandal Sb: 

विवाद नहीं तो एषणा आवश्यक नहीं मूलक से मूली समझना उचित नही है 
मूलक root से है 
आलुक आलू भी नहीं है उस समय मैं होने वाला कन्द है 
जिसका hybrid अब आलू है

[11/20, 21:44] Prof Satyendra N Ojha: 

परंतु अपेक्षा आप से हि है

[11/20, 21:50] Prof B. L. Goud Sab: 

NIA के पुस्तकालय में  केवल मूल मुद्रित चरक है सम्भवतः 1860  की मुद्रित  है उसे देखना चाहिए शायद वहां भी मूलकम् ही है

[11/20, 21:52] Prof B. L. Goud Sab: 

मैंने कुछ विचार तो किया है पर वह अष्टांग हृदय की व्याख्या में है

[11/20, 21:57] Prof. Ramakant Chulet Sir: 

चरक संहिता के विषयों तथ्यों समस्याओं का निर्णय चरक संहिता से ही होगा, उस संहिता को पढ़कर अष्टांग के एक विशेष अंग के आचार्य रूप में प्रतिष्ठित आचार्य नहीं !!!🙏🙏🙏🙏🙏
चरक के प्रत्येक सूत्र में समग्रता है , किसी भी सूत्र से कोई सिद्धान्त खण्डित नहीं होता, हर सूत्र किसी न किसी सिद्धान्त का मण्डन ही करता है !!!!
यहाँ भी निर्णय द्रव्यगुण के आचार्य न करें , समग्रता की दृष्टि व समझ रखने वाले किसी भी विषय के आचार्य करें , नि:संदेह द्रव्यगुण के आचार्य भी ..बस इतना सा निवेदन है, समग्रता की प्यास बुझाने ही चरक चरक बने नहीं यायावर बन कर रहना भी ऋषियों ने तब प्रारम्भ कर दीया था !!!

[11/20, 21:57] Prof. Ramakant Chulet Sir: 

👏👏👏👏👏👏👏👏👏

[11/20, 21:58] Prof Satyendra N Ojha: 

मूलक एवं मूल अलग प्रतित होते हैं !

[11/20, 21:58] Dr Surendra A Soni: 

आलुकानि च सर्वाणि तथा सूप्यानि लक्ष्मणम्॥९४॥ 
स्वादु रूक्षं सलवणं वातश्लेष्मकरं गुरु। 
शीतलं सृष्टविण्मूत्रं प्रायो विष्टभ्य जीर्यति॥९५॥ 
स्विन्नं निष्पीडितरसं स्नेहाढ्यं नातिदोषलम्।
A H Su 6

आलुकानि च सर्वाणि-नानाविधानि रक्तालुकमधुकालुकादिभेदेन। सूप्यानि-मुद्गराजमाषादिपत्राणी। 

Sarvang sundara

🙏🙏😌

[11/20, 21:58] Dr Narinder: 

प्रणाम गुरुजी। 🙏🏻🙏🏻🙏🏻। 
पुस्तकालय में देखूंगा।। 🙏🏻🙏🏻🙏🏻

[11/20, 21:58] Prof Satyendra N Ojha: 

🙏🙏🌷🌹💐🙏🙏

[11/20, 22:04] Prof B. L. Goud Sab: 

पर मूल में  मूलकम्  है या आलुकं यह तो निर्णय करना ही होगा ।योगीन्द्र नाथ जी की में मूलकम् ही है

[11/20, 22:05] Dr Surendra A Soni: 

🙏🙏🌹🌹

[11/20, 22:08] Prof Satyendra N Ojha: 

पिण्डालु , मूलक दोनों हि रक्तपित्तकर हैं !

[11/20, 22:10] Prof Satyendra N Ojha: 

आलुकम् का वर्णन अन्यत्र नहीं याद आ रहा है !

[11/20, 22:14] Prof B. L. Goud Sab: 

मूलकम् से कुछ तो लेना पडेग़ा यहां मूलकम् जातिवाचक नहीं है व्यक्तिवाचक है अतः root  कैसे कहेंगे

[11/20, 22:15] Prof Satyendra N Ojha: 

पिण्डालुमूलकादीनां हरितानां च सर्वशः .. च.सू. 24/6

[11/20, 22:15] Prof Satyendra N Ojha:

 जी !

[11/20, 22:18] Prof Satyendra N Ojha: 

आपने मूलक को मूली हि माना है

[11/20, 22:18] Prof B. L. Goud Sab: 

पिण्डालु भी ले सकते हैं और आलू भी पर इतिहास में उपलब्धता सुनिश्चित करनी होगी

[11/20, 22:19] Dr Surendra A Soni: 

आलुकानि च सर्वाणि सपत्राणि कुटिञ्जर१म्  ।

च सू 27/99

🙏🙏

[11/20, 22:20] Dr Pravin Soni Beawar: 

Alu ko purtgali laaye the..uske phle aalu india me.nahi tha

[11/20, 22:21] Prof B. L. Goud Sab: 

सोनीजी इसके ऊपर मूलकसम्बन्धी वर्णन भी है

[11/20, 22:21] Prof Satyendra N Ojha: 

आलुकानि पिण्डालुकादीनि

[11/20, 22:21] Dr Surendra A Soni: 

जी गुरु जी ।

🙏🙏

[11/20, 22:22] Dr Surendra A Soni: 

वल्लूरं मूलकं मत्स्यान् शुष्कशाकानि वैदलम् ।।७५।। 
न खादेदालुकं गुल्मी मधुराणि फलानि च ।

सु उ त 42

🙏🙏

[11/20, 22:23] Prof B. L. Goud Sab:

 हां।

[11/20, 22:24] Prof Satyendra N Ojha: 

आलुकानि अर्थात् पिण्डालु आदि, आपने एषणा मे लिखा है, फिर संदेह क्यों ?

[11/20, 22:26] Prof Satyendra N Ojha:

आप को स्पष्ट करना हि चाहिए !

[11/20, 22:26] Prof B. L. Goud Sab:

 उत्तर तन्त्र क्या मूल संहिता का अंश है यह अभी विचारणीय है !

[11/20, 22:26] Prof. Ramakant Chulet Sir: 

आचार्य ओझा जी 
💐💐💐💐💐💐💐💐💐

[11/20, 22:26] Prof Satyendra N Ojha: 🙏🙏

[11/20, 22:27] Dr Surendra A Soni: 🙏😟

[11/20, 22:28] Prof. Ramakant Chulet Sir: 

२७/९९ भी प्रस्तुत किया गया है ,

[11/20, 22:30] Prof. Deep Narayan Pandey: 
👍👍👍🌹🙏

[11/20, 22:30] Prof B. L. Goud Sab:

 यह एषणा में नहीं संवर्तिका में है  और मेरे नहीं हेमाद्रि के विचार हैं

[11/20, 22:31] Prof. Deep Narayan Pandey: 👍👍🌹💐🙏

[11/20, 22:32] Prof B. L. Goud Sab: 

यह ऊपर स्पष्ट कर दिया है

[11/20, 22:33] Prof Satyendra N Ojha: 

तद्वत् पिण्डालुकं विद्यात् कन्दत्वात् च मुखप्रियम् ..च.सू.27/123

[11/20, 22:34] Prof B. L. Goud Sab: 

यह एषणा में नहीं संवर्तिका में है  और मेरे नहीं हेमाद्रि के विचार हैं

[11/20, 22:37] Dr Surendra A Soni: 

कटूष्णो वातकफहा पिण्डालुः पित्तवर्धनः||१४५||

A S Su

पिण्डालुः रसे कटुकः, वीर्ये उष्णः, वातश्लेष्मनाशनः पित्तवर्धनश्च|| १४५||

Shashilekha

[11/20, 22:38] Prof. Ramakant Chulet Sir: 

हेमाद्रि के विचार भी अपने स्थान पर महत्व पूर्ण व सम्माननीय है

[11/20, 22:40] Prof Satyendra N Ojha: 

पिण्डालु एवं विभिन्न प्रकार के आलुक के वर्णन से स्पष्ट है कि दोनो हि अलग है

[11/20, 22:41] Prof Satyendra N Ojha: 

अहितकर नहीं है

[11/20, 22:41] Prof B. L. Goud Sab: 

पिण्डालु वातकफहा है तो अपथ्यतम होगा क्या
यह विचारणीय है

[11/20, 22:42] Dr. Venkat Joshi UK: 

आलुका कंद निकृष्टानाम्

[11/20, 22:42] Prof Satyendra N Ojha: 

जी , मेरा भी प्रश्न यहीहै

[11/20, 22:43] Dr Surendra A Soni: 

जी गुरुजी ।
ये तो आपने हेमाद्रि टीका से स्पष्ट भी किया है ।

🙏🙏

[11/20, 22:44] Prof Satyendra N Ojha: 

इसे उपेक्षित नहीं किया जा सकता

[11/20, 22:46] Dr Surendra A Soni: 

Dalhan su su 46/298

केचित् फलवदुपयुज्यमानत्वात् फलवर्गादनन्तरं कन्दान् पठन्ति, शाकविषयत्वादन्ये शाकानन्तरमिति कन्दानाह- कन्दानत इत्यादि। विदारी विदारीकन्दः; शतावरी शतमूली स्वानामप्रसिद्धा; बिसं पद्ममूलम्, अन्ये स्थूलपद्मनालं बिसमाहुः; मृणालं पद्ममूलात् स्थूलप्ररोहः, अन्ये तु सूक्ष्मं नालमाहुः; शृङ्गाटकं जलमध्ये त्रिकण्टकं "सिङ्घाडा" इति लोके; *कशेरुकपिण्डालूप्रसिद्धौ; मध्वालुकं रोमशं मधुरास्वादमेव; हस्त्यालुकं महत्काष्ठालुकमित्येके; काष्ठालुकशङ्खालुकरक्तालुकोत्पलकन्दाः स्वनामप्रसिद्धाः। प्रभृतिग्रहणात् केलूटमुञ्जातकादयः।।२९८।।*

🙏🙏

[11/20, 22:46] Satish Sharma ji Dr: 

guru ji ki gyan gaga me aaj sabhi snan kar rahe hai

[11/20, 22:47] Prof. Ramakant Chulet Sir:

 नि:संदेह यह सभी कन्द सुप्रचलित थे आचार्य चरक कहते हैं ये ये विकारावयवा: 
१-भूयिष्ठम् उपयुंजंते ,जिनका प्रयोग ज्यादा होता है, 
भूयिष्ठ कल्पानाम् च मनुष्याणाम् 
ज़्यादातर मनुष्यों को ,
हिततमा: अहिततमा: च हिततम या अहिततम 
उससमय में अधिकतम प्रयोग का कंद था आलुकम् ,अधिकतम मनुष्यों को अहिततम था आलुकम् 
कन्दत्वात् च मुखप्रियम् — लोग कंद बहुत शौक़ से खाते रहे होंगे , कंद है ...खाओ ..

[11/20, 22:48] Dr Manu Vats, Patiala: 

Agreed Sir🙏🙏

[11/20, 22:48] Prof B. L. Goud Sab: 

इस लिए मूलकम् से पिण्डालु न ले कर मूली ही लें

[11/20, 22:48] Prof Satyendra N Ojha: 👍🙏🌹🌷💐

[11/20, 22:49] Prof Satyendra N Ojha: 

उत्पलकंदाः है , अलग है

[11/20, 22:50] Prof Satyendra N Ojha: जी

[11/20, 22:51] Prof B. L. Goud Sab: 

यहतो अति सेवन है जिसमें तिल और तैल भी गृहीत है

[11/20, 22:51] Prof. Ramakant Chulet Sir: 

किन्तु प्रस्तुत प्रकरण तो यह विनिश्चय करने के लिये प्रारम्भ हुवा था कि वहाँ पर आलुकम् कंदानाम् उचित है या मूलकम् कंदानाम्, यदि आलुक भेदादि पूर्ण हो चुके हों  तो वांछित प्रसंग पर पुन: पधारें !!!!सुधीजन

[11/20, 22:52] Prof B. L. Goud Sab: मूलकम्

[11/20, 22:53] Prof Satyendra N Ojha: मूलकम्

[11/20, 22:54] Prof Satyendra N Ojha: 

उत्पलानि कषायाणि रक्तपित्तहराणि .. च. सू.27/115

[11/20, 22:54] Vd. Subhash Sharma Ji Delhi: 

*जी हां, अभिप्राय यही है तभी ref दिया।*
🙏🙏🙏🙏

[11/20, 22:55] Prof Satyendra N Ojha: 👍💐🌷🌹👍

[11/20, 22:55] Vd. Subhash Sharma Ji Delhi: 🙏🙏🙏🙏

[11/20, 22:58] Prof B. L. Goud Sab: 

9 बजे सोता हूँ मूली ने 11 बजा दिये

[11/20, 22:59] Prof. Ramakant Chulet Sir:

 Dalhan su su 46/298

केचित् फलवदुपयुज्यमानत्वात् फलवर्गादनन्तरं कन्दान् पठन्ति, 
फल की तरह प्रयुक्त होने से फल वर्ग के बाद कंद वर्ग वर्जर्णन है 

शाकविषयत्वादन्ये शाकानन्तरमिति 

शाक विषयत्वात् अन्ये शाकान्तरम् इति 

आलू भी शाक है 
मूली भी शाक है 
आलू व मूली दोनों को फल की भाँति बिना अन्य संस्कार के उपयोग करते हैं 
कन्दानाह- कन्दानत इत्यादि। रंगों के नाम गिनाते हैं-
विदारी विदारीकन्दः; 
शतावरी शतमूली स्वानामप्रसिद्धा; 
बिसं पद्ममूलम्, 
अन्ये स्थूलपद्मनालं बिसमाहुः; मृणालं पद्ममूलात् स्थूलप्ररोहः, अन्ये तु सूक्ष्मं नालमाहुः; 

शृङ्गाटकं जलमध्ये त्रिकण्टकं "सिङ्घाडा" इति लोके; 

**कशेरुकपिण्डालूप्रसिद्धौ; मध्वालुकं रोमशं मधुरास्वादमेव; हस्त्यालुकं महत्काष्ठालुकमित्येके; *

*काष्ठालुकशङ्खालुकरक्तालुकोत्पलकन्दाः स्वनामप्रसिद्धाः। *
केवल यही स्वनाम प्रसिद्ध -उत्पलकंदा: हैं ...

[11/20, 23:01] Dr Surendra A Soni: 🙏🙏

[11/20, 23:02] Dr Surendra A Soni: 🙏🙏🌹🌹

[11/20, 23:03] Prof. Ramakant Chulet Sir: 

**पंचावयव अनुमान परीक्षा १-१-प्रतिज्ञा :-मूलकम् एव आलुकम् इति प्रतिज्ञा 
२-हेतु : .........
३-उदाहरणम् ........
४-उपनयन........
५-निगमन : तस्माद् प्रस्तुत प्रकरणे मूलकम् एव आलुकम्  इति 
**
Ojha ji  pl fill in the blanks

[11/20, 23:04] Prof B. L. Goud Sab:

 इस लिए भी मूली अपथ्यतम है
[11/20, 23:05] Dr Surendra A Soni: 

वल्लूरं मूलकं मत्स्यान् शुष्कशाकानि वैदलम् ।।७५।। 
न खादेदालुकं गुल्मी मधुराणि फलानि च ।

सु उ त 42

मुझे तो यह गुल्म के अपथ्य सबसे महत्वपूर्ण लगे जो मधुर फलों का भी निषेध करते हैं । 

🙏🙏

[11/20, 23:05] Prof Satyendra N Ojha:

 मूलकबीज अवल्गुज लेपः पिष्टो गवां मूत्रे से भि स्पष्ट है कि यह मूली हि है

[11/20, 23:06] Prof Satyendra N Ojha: 🙏🙏

[11/20, 23:07] Prof B. L. Goud Sab:

 मूलकम् ही आलुकं नहीं है अपितु मूलकम् कन्दानाम् है

[11/20, 23:08] Prof. Ramakant Chulet Sir: 

**पंचावयव अनुमान परीक्षा 
१-प्रतिज्ञा :-आलुकम्  एव आलुकम् इति प्रतिज्ञा 
२-हेतु : स्व नामत्वात् 
३-उदाहरणम् आम्र लकुचादि नाम वत् 
४- उपनयन : तथा चायम् 
५- निगमन तस्माद् अत्र आलुकम् एव आलुकम् 


Ojha ji  pl fill

[11/20, 23:09] Prof Satyendra N Ojha: 🙏🙏🌹🌷💐🙏🙏

[11/20, 23:10] Prof. Ramakant Chulet Sir: 

किन्तु चरक तो आलुकम् कंदानाम् कह रहे है च सू २५/३९

[11/20, 23:12] Prof B. L. Goud Sab: 

यह मैं पहले ही उल्लेख कर चुका। चरक ने कहा है या नहीं।य  ह स्पष्ट नहीं

[11/20, 23:13] Vd. Subhash Sharma Ji Delhi: 

*मूली पर आपकी व्याख्या*
👌👌👌👌
*आनंद आ गया *
🙏🙏🙏🙏

[11/20, 23:14] Prof Satyendra N Ojha: 

मूलकं रक्तदुष्टिकर रक्तपित्तकर कुष्ठकरादी से स्पष्ट है कि मूलकं अपथ्यकर है..

[11/20, 23:15] Vd. Subhash Sharma Ji Delhi: 

🙏🙏🙏🙏🙏
*यही तो यहां की विशेषता है, जब सब विद्वान action mode में आते हैं तो ज्ञान वर्षा Ph.D level की होती है।*

[11/20, 23:16] Prof B. L. Goud Sab: धन्यवाद

[11/20, 23:18] Dr Surendra A Soni: 

मारुतापहम् ।
स्निग्धसिद्धं,

स्नेहसाधित वातनाशक है ।

🙏🙏

[11/20, 23:18] Prof. Ramakant Chulet Sir:

 गुरूजी प्रसंगगत पृश्न यह है कि १-च सू २५/ ३९ में चरक ने आलुकम् कंदानाम् कहा है !!
२-च सू २७/१६८ की टीका में आचार्य चक्रपाणि उसी सूत्र को उद्धृत करते है किन्तु अालुकम् के स्थान पर मूलकम् लिखते हैं टीका में 
३- सदस्य गण अपेक्षा कर रहे हैं कि यह निर्णय हो कि अपथ्यत्वे आलुकम् कंदानाम् -यह चरक मत स्वीकार करें अथवा 
चक्रपाणि मतानुसार मूलकम् कंदानाम् स्वीकार करें 
क्या स्वीकार करें और 
क्यों स्वीकार करें —आधार भी चाहिये तभी स्वीकार्य है ...

[11/20, 23:21] Prof Satyendra N Ojha: 

मूलकं कंद नहीं है , मूल है..

[11/20, 23:23] Prof Satyendra N Ojha: 

प्रश्न के समुचित उत्तर कि अपेक्षा है

[11/20, 23:23] Prof B. L. Goud Sab: 

आप यादव जी संपादित की बात कर रहे हैं।योगीन्द्र नाथ जी की चरक में तो मूलकम् ही है

[11/20, 23:24] Prof Satyendra N Ojha: 

मूलकं कंद नहीं है , मूल है ??

[11/20, 23:24] Prof. Ramakant Chulet Sir: 

कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता क्योंकि 
१- इस वर्ग के सभी द्रव्य अपथ्यत्वे होने से अहितकर है और 
२-अहितकरों में भी अहिततम है 
३-अहिततमों में भी प्रकृष्टतमहैं 
४- और प्रकृति से ही हैं कोई तात्कालिक कारण नहीं है ।अत: अहिततम के प्रमाण आलुकम् के स्थान पर मूलकम् स्वीकार करने का औचित्य प्रतिपादित नहीं कर पा रहे ....

[11/20, 23:26] Prof Satyendra N Ojha:

 जी, आपके मतसे आलुकं हि है ?

[11/20, 23:28] Prof. Ramakant Chulet Sir: 

संभव है , किन्तु सम्पादक का नाम सूत्र के निर्धारण का आधार नहीं हो सकता !!!
अन्य स्थलों पर तो निर्णय चरक के आधार पर होता है न कि चरक के सम्पादक के आधार पर 
उसकी चक्रपाणि टीका मे तो फिर समस्या ही नहीं होनी चाहिये वहाँ भी चैक करना पड़ेगा

[11/20, 23:29] Prof Satyendra N Ojha: 

फिर आचार्य चक्रपाणी एवं आचार्य गौड़ का मत अप्रासंगिक है???

[11/20, 23:30] Prof. Ramakant Chulet Sir: 

हाँ लेकिन जिसे हम आलू कहकर ख़रीदकर लाते हैं वह यही है इसमें मैं निश्चित नहीं हूँ !

[11/20, 23:30] Prof Satyendra N Ojha: 

निश्चित् रुप से

[11/20, 23:32] Prof Satyendra N Ojha: 

आचार्य खाण्डल एवं आपके मत का खण्डन भी इतना आसान नहीं है🙏🙏🌹🌷💐🙏🙏

[11/20, 23:33] Mayur Surana Dr: 

बाल मूलक नित्य सेवनीय द्रव्य है

[11/20, 23:34] Prof Satyendra N Ojha:

 *वृद्धं त्रिदोषम्*
बालं दोषहरम्

[11/20, 23:35] Mayur Surana Dr: 🙏🏼

[11/20, 23:35] Prof Satyendra N Ojha: 

कहीं गलति हुई है

[11/20, 23:35] Prof. Ramakant Chulet Sir: 

कभी नहीं 
आपका पृश्न ग़लत है, पृश्न का विषय ग़लत है और पृश्न की भाषा भी ग़लत है क्योंकि ....
१- एक ग्रुप के कुछ व्यक्ति टीकाकारों की प्रासंगिकता या अप्रासंगिकता पर टिप्पणी भी नहीं कर सकते निर्णय तो दूर है ।
२-यादव जी व योगेन्द्र नाथ जी चरक के सूत्रों का औचित्य या प्रासंगिकता सिद्ध नहीं कर सकते ।

[11/20, 23:36] Prof Satyendra N Ojha: जी

[11/20, 23:36] Prof. Ramakant Chulet Sir: 

गच्छत: स्खलनम् चापि भवत्येव प्रमादत:
हसन्ति दुर्जना: तत्र समादधति पंडिता:

[11/20, 23:37] Prof B. L. Goud Sab: 

मूलक भी कंदाकार मूल है

[11/20, 23:37] Prof Satyendra N Ojha: जी

[11/20, 23:38] Prof Satyendra N Ojha: क्षमाप्रार्थी हूं

[11/20, 23:38] Prof. Ramakant Chulet Sir: 

मूल विषय यह है कि :
अपथ्यत्वे प्रकृष्टतम आलुक है या मूलक और क्यों

[11/20, 23:39] Prof. Ramakant Chulet Sir: 

और सभी कंद , कंदाकार मूल ही होते है
[11/20, 23:40] Prof Satyendra N Ojha: 

आलुक का निदानों मे वर्णन कम है , जबकि मूलक का बहुतायत से मिलता है

[11/20, 23:43] Prof Satyendra N Ojha: 

आप हि निष्कर्ष दें 🙏🙏

[11/20, 23:45] Prof. Ramakant Chulet Sir: 

यह महत्वपूर्ण आधार है अपथ्य निर्धारण का, प्रकृष्टतम अपथ्य निर्धारण का तथा अपथ्यत्वे अहिततमानाम् प्रकृष्टतमम् के निर्धारण का विविध निदानों में किसी द्रव्य की गणना, पुन: पुन: गणना, उसके वैकारिक प्रभावों के सतत दीर्घकालिक निश्चित प्रंभावों का बोध कराता है , जो मूलक के साथ है पर आलुक के साथ नहीं है ,

[11/20, 23:45] Vd. Subhash Sharma Ji Delhi: 

*जी हां सही कहा आपने, तभी तो कंद - मूल कहा जाता है, कहीं एसा तो नही जो लंबाई में है वो मूल और जो गोलाकार, चपटा या छोटा वो कंद ?*

[11/20, 23:46] Dr Surendra A Soni: 👏🙏🌹

[11/20, 23:46] Prof Satyendra N Ojha: 

आपको मूलकम् मान्य है 🙏🙏

[11/20, 23:48] Prof. Ramakant Chulet Sir: 

मुझे कोई एतराज़ नहीं है 
आपकी इच्छीनुसार द्रव्यगुण विज्ञानी द्वारा पुष्टि की प्रतीक्षा है !!

[11/20, 23:49] Prof Satyendra N Ojha: 

मैं निदान परक अध्ययन पश्चात् पुनः अपना मत स्पष्ट करने कि अनुमति चाहता हूं 💐💐

[11/20, 23:51] Prof Satyendra N Ojha: 

आप इस मत के अनुयायि नहीं है 🙏🙏

[11/20, 23:53] Prof. Ramakant Chulet Sir: 

हाँ यही अभीष्ट है और वांछित भी 
किसी भी निर्णय के लिये आधार सुस्पष्ट व सर्वमान्य होना चाहिये ।
अपथ्यों में रोगकारिता, शारीर व मानस उभय विध रोग कारिता, प्रकृष्ट रोग कारिता आदि महत्वपूर्ण आधार है, होने चाहिये ।

[11/20, 23:56] Prof Satyendra N Ojha: 

क्लिन्नशुष्काम्बुजानुपमांसपिण्याकमूलकैः वातरक्त निदान

[11/20, 23:57] Prof. Ramakant Chulet Sir: 

अनुयायि नहीं हूँ किन्तु द्विबद्धम् सुबद्धम् भवति, आप रोग विज्ञानी है अत: अनुकरणीय है ऐसा नहीं है किन्तु प्रकृत्यैव अहिततमानाम् अपथ्यत्वे प्रकृष्टतम: के विनिश्चय के प्रसंग में रोगकारिता  एवम् नैदानिक अध्ययन महत्वपूर्ण आधार होता है यहउचित है अत: अनुकरणीय है

[11/20, 23:58] Prof Satyendra N Ojha: 

मेरा तात्पर्य है कि आप किसी और पर नहीं छोड़ते

[11/20, 23:59] Prof Satyendra N Ojha: 

आपका खुद का विश्लेषण होता है

[11/21, 00:00] Prof. Ramakant Chulet Sir: 

वातरक्त भी समाज की सामान्य व्याधि है, गुणों के आधार पर दोषप्रकोपत्व तथा दोषप्रकोपत्व के आधार पर संबंधित व्याधि जननत्व निर्धारित होता है

[11/21, 00:00] Prof Satyendra N Ojha: 

🌹🌷💐

[11/21, 00:01] Mayur Surana Dr: 

मूलक का सर्वाधिक उपयोग वातव्याधी मे किया गया दिखता है...

[11/21, 00:03] Vd. Subhash Sharma Ji Delhi: 

*सिद्धान्तो नाम स य: परीक्षकै: बहुविधं परीक्ष्य हेतुभिश्च साधयित्वा स्थाप्यते निर्णय:*
*clinical practice में शास्त्र को साथ ले कर भी हमारी एक अलग individual आयुर्वेद भी चलती है।*

[11/21, 00:03] Prof. Ramakant Chulet Sir: 

हेतुमूलक या चिकित्सार्थ पथ्यात्मक

[11/21, 00:06] Mayur Surana Dr: 

 चिकित्सार्थ पथ्यात्मक पर बाकी द्रव्यो के साथ, मूलक स्वरस के रुप मे मुख्यतः यथा मूलक तैल (दोनो) मूलकाद्य तैल; शुष्कमूलक (यवादि तैल)

[11/21, 00:07] Mayur Surana Dr:

 लीन गर्भ मे माषमूलक पेया

[11/21, 00:08] Prof. Ramakant Chulet Sir:

क्लीनिकल प्रैक्टिस ही बहुविधम् परीक्ष्य की अतिमहत्वपूर्ण किंवा सर्वाधिक महत्वपूर्ण चरकोक्त विधि एवम् विधा है , यदि ऐसा न होता तो ... “निदानोक्तानि चास्य नोपशेते, विपरीतानि चोपशेते “
चरक संहिता मे यह वाक्य दिखायी नहीं देता चूँकि यह हर व्याधि विनिश्चय के साथ संयुक्त  है अत: सर्वाधिक महत्वपूर्ण विधि या विधा है

[11/21, 00:09] Mayur Surana Dr: 

शुष्क मूलक बस्तिरुप गर्भिणी अष्टम मांस मे --पुराणशकृत् शोधन विशेष फलश्रुती...

[11/21, 00:13] Prof Satyendra N Ojha: 

मारुतापहं स्निग्ध सिद्धम् के कारण वातरोगो मे वर्णित् है

[11/21, 00:14] Prof Satyendra N Ojha: बालं वृद्धं च

[11/21, 00:16] Prof Satyendra N Ojha:

 गुल्म मे शुष्क क्यों ? 
शुष्काणि कफवातघ्नान्येतानि

[11/21, 00:17] Prof. Ramakant Chulet Sir: 

मूत्र रोगों दोषों मे प्रचुरता सेप्रयुक्त है . महा स्रोतस् की विविध व्याधियों में मूलक क्षार युक्त औषधि के प्रयोग वर्णित है ।
एक क्षार गुटिका है मैंने बहुत प्रयोग किया ।

[11/21, 00:18] Prof. Ramakant Chulet Sir: 

शुष्क का क्षार बनता है जो गुल्म में वर्णित है

[11/21, 00:18] Prof Satyendra N Ojha: जी

[11/21, 00:18] Vd. Subhash Sharma Ji Delhi: 

🙏🙏🙏🙏🙏
*अति उत्तम 👌👌👌*

[11/21, 00:21] Mayur Surana Dr:

 https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC5622774/
[11/21, 00:21] Prof. Ramakant Chulet Sir: 

क्षार गुटिका में मूलक और शुण्ठि क्षार संयुक्त हैं मैंने लगभग दस पंद्रह वर्ष तक प्रत्येक रोगी को दिया है, मैं बनाता हूँ अनेक बार पूरी मंडी की मूलियाँ ख़रीद कर छत पर डाली हैं सूखने पर क्षार बनाता था ।

[11/21, 00:21] Prof Satyendra N Ojha: 

आचार्य श्रेष्ठ चुलेट गुरु जी , *मूलकं इति सिद्धं*

[11/21, 00:22] Mayur Surana Dr: 

शुष्क मूलक शाखाश्रित कामला मे भी

[11/21, 00:23] Mayur Surana Dr: 

बाल शुष्क मूलक?

[11/21, 00:23] Vd. Subhash Sharma Ji Delhi:

 *क्षार गुटिका ने तो gall stone को ही बाहर कर दिया, क्षार सिद्ध भी हैं आप*
💐💐💐💐💐

[11/21, 00:24] Prof. Ramakant Chulet Sir: 

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

[11/21, 00:25] Prof Satyendra N Ojha: 

कफहरै जयेत्

 क्षार तंत्रविदां भिषजां बलम्

[11/21, 00:34] Prof. Ramakant Chulet Sir: 

हाँ जो क्षार गुटिका आप के साथ विमर्श के बाद,  आपके अनुभव के आधार पर कुछ परिवर्तन करके बनाई थी और आपको भेजी थी उसके परिणाम आशानुरूप रहे ।
आप द्वारा कृत परिवर्तनों से पूर्व लाक्षणिक लाभ था किन्तु सोनोग्राफी में अपेक्षित परिणाम नहीं आ रहे थे , आपकी राय के बाद परिवर्तन करके बनायी तो आश्चर्य चकित रह गया । सोनोग्राफी में वर्णित पित्ताशमरी की न केवल आकार घंटा किन्तु उसका एक अंश cbd में भी आया है , अत: ज्ञात होता है कि आपके अनुमान केअनुसार क्षार गुटिका से पित्ताश्मरी लेखन , पित्ताशमरी भेदन व पित्ताश्मरी पातन कर्म त्रैविध्य प्राप्त हो गया जो अभीष्ट था ।
सोनोग्राफी रिपोर्ट की फ़ोटो ली तब हाथ हिल गया अस्पष्ट है अत: अगली बार रोगी आयेगा तब केस प्रोजेक्ट करूँगा , आपको अच्छा लगेगा

[11/21, 00:35] Prof. Ramakant Chulet Sir: 

तत् पित्तम् कफहरै: जयेत् 
ग़ज़ब का सूत्र है ...

[11/21, 00:35] Prof. Ramakant Chulet Sir:

 प्रेजेन्ट करूँगा

[11/21, 00:37] Dr Surendra A Soni: 

👏👏🙏🌹

[11/21, 00:37] Prof. Ramakant Chulet Sir:

 ना पूर्ण , पूर्ण वीर्य मूलक

[11/21, 00:38] Prof Satyendra N Ojha: 

CBD मे रुकना अभिष्ट नहीं है

[11/21, 00:39] Prof Satyendra N Ojha: 

शाखाश्रित कामला भी सम्भाव्य है , अपितु ध्यान दें

[11/21, 00:40] Mayur Surana Dr: 🙏🏼

[11/21, 00:43] Prof. Ramakant Chulet Sir:

 हाँ ध्यान है किन्तु आतुर में कोई लक्षण नहीं है अगली बार आयेगा तो USG करा कर लायेगा आशा करते हैं वो निकल ही जायेगी

[11/21, 00:44] Prof. Ramakant Chulet Sir: 

USG में आया तो छिपायें क्यों हो सकता है उसी दिन भेदन पातन हुवा हो पातनप्रक्रियागत हो

[11/21, 00:45] Prof Satyendra N Ojha:

 बालं दोषहरं इति तरुण अवस्थायां अव्यक्त रसायां त्रिदोषहरणम्

[11/21, 00:46] Prof Satyendra N Ojha: 

जी , इसकी भी सम्भावना है

[11/21, 00:47] Prof Satyendra N Ojha: 

प्रतिक्षा रहेगी

[11/21, 08:15] Prof Satyendra N Ojha: 

मूलक बीज लेप का प्रयोग श्वित्र मे  मूली को हि इंगित् करता है.

[11/21, 08:47] pawan madan Dr: 

Good mng everybody.
Sab Gurujan ko pranaam.

Hundreds of msgs in the mng and what a fantastic discussion about one sutra !!!

Thank You all Indeed..
@Guru Ji Banwari lal Gaud ji
@⁨Prof Satyendra N Ojha⁩ sir
@⁨Prof. Ramakant Chulet Sir⁩ ji
@⁨Prof. Deep Narayan Pandey⁩ ji
@⁨Dr Surendra A Soni⁩ ji
@⁨Dr. D C Katoch sir⁩ sir ji
@⁨Mayur Surana Dr⁩ ji

🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻☺☺☺💐🌹🌹🌹🌹💐💐🌹💐

Could not participate in previous discussions as I was fighting with Dengue Fever but now I am fine and coming back to normal routine.

Thank U all...🌹🙏🏻






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Above discussion held on 'Kaysampraday"(Discussion) a Famous WhatsApp-discussion-group  of  well known Vaidyas from all over the India. 



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Compiled & Uploaded by

Vd. Rituraj Verma
B. A. M. S.
Shri Dadaji Ayurveda & Panchakarma Center,
Khandawa, M.P., India.
Mobile No.:-
 +91 9669793990,
+91 9617617746

Edited by

Dr.Surendra A. Soni
M.D., PhD (KC) 
Professor & Head
P.G. Dept of Kayachikitsa

Govt. Akhandanand Ayurveda College
Ahmedabad, Gujarat, India.
Email: surendraasoni@gmail.com
Mobile No. +91 9408441150


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This is a c/o SELF MEDICATION INDUCED 'Urdhwaga Raktapitta'.  Patient had hyperlipidemia and he started to take the Ayurvedic herbs Ginger (Aardrak), Garlic (Rason) & Turmeric (Haridra) without expertise Ayurveda consultation. Patient got rid of hyperlipidemia but hemoptysis (Rakta-shtheevan) started that didn't respond to any modern drug. No abnormality has been detected in various laboratorical-investigations. Video recording on First visit in Govt. Ayu. Hospital, Pani-gate, Vadodara.   He was given treatment on line of  'Urdhwaga-rakta-pitta'.  On 5th day of treatment he was almost symptom free but consumed certain fast food and symptoms reoccurred but again in next five days he gets cured from hemoptysis (Rakta-shtheevan). Treatment given as per availability in OPD Dispensary at Govt. Ayurveda College hospital... 1.Sitopaladi Choorna-   6 gms SwarnmakshikBhasma-  125mg MuktashuktiBhasma-500mg   Giloy-sattva-                500 mg.  

Case-presentation: 'रेवती ग्रहबाधा चिकित्सा' (Ayu. Paediatric Management with ancient rarely used 'Grah-badha' Diagnostic Methodology) by Vd. Rajanikant Patel

[2/25, 6:47 PM] Vd Rajnikant Patel, Surat:  रेवती ग्रह पीड़ित बालक की आयुर्वेदिक चिकित्सा:- यह बच्चा 1 साल की आयु वाला और 3 किलोग्राम वजन वाला आयुर्वेदिक सारवार लेने हेतु आया जब आया तब उसका हीमोग्लोबिन सिर्फ 3 था और परिवार गरीब होने के कारण कोई चिकित्सा कराने में असमर्थ था तो किसीने कहा कि आयुर्वेद सारवार चालू करो और हमारे पास आया । मेने रेवती ग्रह का निदान किया और ग्रह चिकित्सा शुरू की।(सुश्रुत संहिता) चिकित्सा :- अग्निमंथ, वरुण, परिभद्र, हरिद्रा, करंज इनका सम भाग चूर्ण(कश्यप संहिता) लेके रोज क्वाथ बनाके पूरे शरीर पर 30 मिनिट तक सुबह शाम सिंचन ओर सिंचन करने के पश्चात Ulundhu tailam (यह SDM सिद्धा कंपनी का तेल है जिसमे प्रमुख द्रव्य उडद का तेल है)से सर्व शरीर अभ्यंग कराया ओर अभ्यंग के पश्चात वचा,निम्ब पत्र, सरसो,बिल्ली की विष्टा ओर घोड़े के विष्टा(भैषज्य रत्नावली) से सर्व शरीर मे धूप 10-15मिनिट सुबज शाम। माता को स्तन्य शुद्धि करने की लिए त्रिफला, त्रिकटु, पिप्पली, पाठा, यस्टिमधु, वचा, जम्बू फल, देवदारु ओर सरसो इनका समभाग चूर्ण मधु के साथ सुबह शाम (कश्यप संहिता) 15 दिन की चिकित्सा के वाद