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WDS 81: Fungal nail (कुनख) by Vd.Ashok Rathod, Prof.Satyendra Narayan Ojha ,Vaidyaraj Subhash Sharma Sir, Vd Raghuram Bhatta & others.



[1/26, 7:52 PM] Vaidya Ashok Rathod, Oman: 



Recurrent fungal infection of nails of both hands since more than 15 years. Patient age 38 years, Male, Working at IT industry. In the beginning he had Alopecia on head which was treated by homeopathic medicines. After that fungal infection of nails started. Using topical and internal antifungal allopathy medicines whenever the problem exaggerated. Now looking for Ayurveda medicines. Aacharyashri @⁨Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir।⁩  @⁨Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi⁩ Please guide. 🙏🌹🙏🌹


[1/26, 7:57 PM] Vd. V. B. Pandey Basti(U.P.): 

Let me share my experience I have got quite satisfactory results with Nirgundi tail for local applications and S. ghan vatti for internal use.


[1/26, 7:58 PM] Vd. Shailendra Harayana:

 🙏🏻🙏🏻🌷🌷👌🏻👌🏻


[1/26, 8:00 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir: 

Use either gandhak malahar or sarjaras malahar  and chakramarda tail externally.. 
Internally, gandhak rasayan, krimikuthar rasa

[1/26, 8:00 PM] Vaidya Ashok Rathod Oman:

 धन्यवाद आचार्य 🙏🙏🌹🌹


[1/26, 8:01 PM] Vaidya Ashok Rathod Oman: 

🙏🌹धन्यवाद आचार्य


[1/26, 8:06 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir: 

Great work


[1/26, 8:06 PM] Vd. V. B. Pandey Basti(U.P.): 

🙏सादर प्रणाम स्वीकार करें गुरूवर।


[1/26, 8:07 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir: 

hhan vati ? खुश रहिये स्वस्थ रहिये सुरक्षित रहिये🌹☺️🌹


[1/26, 8:07 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir: 

Nirgundi ghan vati ?


[1/26, 8:14 PM] Dr. Vinod Mittar Dehli: 

🙏pranam Guruji


[1/26, 8:16 PM] Dr. Vinod Mittar Dehli: 

Kunakh m panchtikt guggul kafi effective h, chakramard, neem, karanj yukt cream / lotion bahut accha rahega, krimi kuthar ras main stay.🙏🌹


[1/26, 8:17 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir: 

God bless you


[1/27, 12:46 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi: 

*नमस्कार डॉ अशोक जी 🌹🙏 पहले आपके प्रकरण को पूरा मूल से समझ ले तो रोग और चिकित्सा दोनो ही सरल हो जायेगी क्योंकि यह साध्य है या असाध्य क्या है ? यह भी समझ आ जायेगा,

'स्यात्किट्टं केशलोमास्थ्नो, मज्ज्ञः स्नेहोऽक्षिविट्त्वचाम् प्रसादकिट्टे धातूनां पाकादेवंविधर्च्छतः'
च चि 15/18 

केश, श्मश्रु, लोम तथा नख अस्थि के मल है, 'अस्थिमलं नखोऽपि' सुश्रुत उत्तर तन्त्र में भी अस्थि का मल नख को मानते हैं और अनेक आचार्य भी नख की गणना अस्थि में करते हैं।त्वचा का स्नेह जो प्रत्यक्ष रूप से नख के साथ रहता है यह मज्जा का मल है।*

*माधव निदान कर्ता कुष्ठ की साध्यासाध्यता में स्पष्ट करते हैं कि
 'साध्यं त्वग्रक्तमांसस्थं वातश्लेष्माधिकं च यत्, मेदसि द्वन्द्वजं याप्यं वर्ज्यं मज्जास्थिसंश्रितम्' 
मा. नि.- 49/31

कुष्ठ के पूर्व रूप से ले कर रस, रक्त,मांस और मेद चार धातुओं तक पंचकर्म अर्थात वमन, विरेचन आदि कार्य करता है लेकिन अस्थि और मज्जागत कुष्ठ असाध्य होता है। नख में fungal infection क्या है ये भी एक प्रकार का क्षुद्र कुष्ठ ही मेरे मत से है क्योंकि चरक में देखें तो स्पष्ट लिखा है 

'न च किञ्चिदस्ति कुष्ठमेक दोषप्रकोपनिमित्तम्, 
अस्ति तु खलु समानप्रकृतीनामपि कुष्ठाना, दोषांशांश विकल्पानुबन्ध स्थानविभागेन वेदनावर्णसंस्थान प्रभावनामचिकित्सितविशेषः, सप्तविधोऽष्टादशविधोऽपरिसङ्ख्येयविधो वा भवति । 
दोषा हि विकल्पनैर्विकल्प्यमाना विकल्पयन्ति विकारान्, अन्यत्रासाध्यभावात् तेषविकल्पविकार सङ्ख्यानेऽतिप्रसङ्गमभिसमीक्ष्य सप्तविधमेव कुष्ठविशेषमुपदेक्ष्यामः' 
च नि 5/4 

अगर पूरे प्रकरण को समझें तो सभी कुष्ठ त्रिदोषज होते हैं, 18 प्रकार के नाम अवश्य दिये है पर दोषोल्वणता या हीनता के कारण लक्षण, वेदना, आकार और वर्ण के कारण बहुत सूक्ष्मता आ जाती है इसलिये चरक ने कुष्ठों की संख्या को अपरिसंख्य कहा है।।*

*सुश्रुत ने तो स्पष्ट ही लिखा है कि कृमि भी कुष्ठ का हेतु है 

'सर्वाणि कुष्ठानि सवातानि सपित्तानि सश्लेष्माणि सक्रिमीणि च भवन्ति' 
सु नि 5/6

fungus के लिये हमारे ग्रन्थों में कवक शब्द आया है, सु सू 20/8 में 'तद्यथा- वल्लीफलकवककरीराम्लफललवणकुलत्थप' 
कवक का वर्णन है जिसे 
'कवकं छत्रकं, छत्रकभेदं सुखण्डकसञ्ज्ञम्’ 
जिसे छत्रक अर्थात जैसे मशरूम है जो एक प्रकार की fungus वनस्पति ही है। उइसी प्रकार Onychomycosis जिसे टिनिया यूंगियम भी कहा जाता है, एक कवक संक्रमण है जो अस्थि के मल नख को प्रभावित करता है। नख को अस्थिवत मान ले जैसा कुछ आचार्य अस्थि में इसकी गणना करते ही हैं तो यह असाध्य हुआ। अत: यह पूर्णतया: ठीक नही होता और बार बार होता रहेगा और एक नख के बाद दूसरे किसी नख में भी आयेगा पर मूल से समाप्त नही होता।*

*इस प्रकार की व्याधियों में हमने अनेक प्रकार के द्रव्यों का प्रयोग कर के देखा है, किंचित लाभ तो मिलता है पर रोग पूर्णत: समाप्त ना होने से कभी संतुष्टि नही मिली अब हम अपने रोगियों को oil olosyn (j j dchane) 50 ml में 2-3 बूंद भल्लातक तैल mix कर के दे देते है और रोग ग्रस्त नख पर दिन में दो बार ear bud से थोड़ा सा लगाने के लिये कहते है और काम करता है। यह 50 ml तैल क्योंकि किंचित touch ही करना होता है अत: बहुत समय चलता है। भल्लातक तैल कभी दिल्ली आना हो को मुझ से ले जाना, चुलैट सर ने प्रेम से दिया था जो बहुत वर्षों तक चलेगा। भल्लातक इसलिये कि अग्नि, वायु और आकाश महाभूत प्रधान ही fungus के पुन: उद्भव के नियन्त्रित करते है। यह fungus फुफ्फुस में भी आती है और अनेक बार आन्त्रों में भी तो हम इसे भल्लातक अन्त: प्रयोग से ही काबू करते है।*


[1/27, 1:26 AM] Vaidya Ashok Rathod Oman:

 *नमो नमः आचार्य जी* 🙏🙏🌹🌹

*आप के इस मार्गदर्शन से fungus एवं कवक का आज उचित ज्ञान अर्जित हुआ ।* *आपने बतायी हुयी बात सदैव स्मरण रहेगी।*

*इसी रुग्ण में मुझे multiple lipomas भी मिले हैं जिसकी रुग्ण को कोई चिंता नही हैं। कहने लगा उनकी माताजी को भी आजन्म से multiple lipoma हैं और उससे उन्हे कोई उपद्रव नही हुआ।*

*एक विशेष घटना भी हुयी हैं रुग्ण के साथ जो आप का मार्गदर्शन पढने पर अब मुझे और भी चिंतन करने पर मजबूर कर रही हैं। दिसम्बर 2020 में रुग्ण की पत्नी ने गर्भधारणा की किंतु 6 सप्ताह के बाद ultra-sonography से पता चला की गर्भ में हृदय की कोई गतिविधी पायी नही गयी। स्त्रीरोग चिकित्सक ने उन्हे abortion induce करके गर्भपात कारवाया।*

*क्या इन दोनो बातो से अर्थात lipoma एवं अनुचित गर्भधारणा सें मेद एवं शुक्र की दुष्टी भी मान के चलना चाहीये ? इन सभी घटनाओ का क्या एक दुसरे से घना संबंध होगा ? अगर होगा तो इस रुग्ण को चिकित्सार्थ कर्म क्रम विनिश्चय कैसे किया जाये ?* 🌹🌹🙏🙏


[1/27, 5:13 AM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar: 

Good mng Ashok ji.
Really this is a very disfficult condition.
I have tried many medicines on this but in vain.
Even with modern antifungals it is not being treated and repeated because the treatment is not being done completedly. Local antifungals dont work at all.
If you want to treat it with internal antifungals you need to to continoue the treatment for 48 to 52 weeks even if it is cleared in 16 to 24 weeks, if not done like this it is repeated again..

I havent find much effect with ayu med.
I have tried with krimighan chikitsa for 3 to 4 patients, result do came but still I am not satisfied much.

🙏


[1/27, 5:15 AM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar: 

सुप्रभात एवं चरण स्पर्श गुरु जी ।

कृमिघ्न चिकित्सा से कुछ लाभ होता है पर अभी इस पर बहुत कार्य करने की आवश्यकता है।

धन्यवाद 🙏🙏🙏🌹💐


[1/27, 5:16 AM] Dr. Pawan Madan Sir, Jalandhar: 

कवक शब्द का संदर्भ
ये नई जानकारी है
बहुत बहुत धन्यवाद।
💐💐


[1/27, 5:58 AM] Vaidya B.L.Gaud Sir: 

आदरणीय वैद्यराज जी बहुत ही सुंदर विश्लेषण। महर्षिसम विश्लेषण। 11वीं 12वीं शताब्दी के व्याख्याकारों के समान विश्लेषण । आनंद आ गया गोसदृशो गवय:  के प्रमाण का अति उपयुक्त प्रयोग।  कवक की सुंदर व्याख्या की । कवक चरक में संभवत: एक बार भी प्रयुक्त नहीं हुआ और सुश्रुत में भी शायद केवल एक बार ही प्रयुक्त हुआ है


[1/27, 5:59 AM] Dr Mansukh R Mangukiya Gujarat: 

🙏 नमो नमः। गुरुवर सुभाष शर्माजी 🙏


[1/27, 6:14 AM] Vaidya Sanjay P. Chhajed Sir Mumbai: 

प्रणाम सर, उद्बोधक. 
हम निम +करंज तैल+ एरण्ड तेल से दिन मे 3-4 बार पुरे नाखुनो पर खुब मलने को कहते है  शुरु मे प्रसर रुकता है, जैसे नाखुन बढता है, नया साफ नाखुन आता है


[1/27, 7:14 AM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:

 सादर प्रणाम आदरणीय श्री गुरुदेव.. 🙏🙏


[1/27, 7:14 AM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir: 

*शुभ प्रभात वैद्यराज सुभाष शर्मा जी एवं आचार्य गण नमो नमः ॐ नमः शिवाय* 🙏🙏💐🌷🌹🙏🙏
*अति सुंदर परिपूर्ण लेखन शैली साधुवाद शर्मा जी*
जैसा की आदरणीय श्री गुरुदेव ने कहा की ११वी, १२वी शताब्दी के व्याख्याकारों सदृश ही आपने समुचित सोदाहरण सभी के लिये ग्राह्य हो ऐसी सुंदर  व्याख्या  प्रस्तुत  किए.. 
कवक ➡️ छत्रप ➡️ mushroom ➡️ fungus एक नवीन ज्ञान की प्राप्ति हुई, जिसके लिये आभार.. 🙏🙏


[1/27, 7:14 AM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir: 

Very good morning to you too Dr Pawan ji 💐🌷🌹☺️☺️


[1/27, 7:41 AM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar: 

नमो नम: महागुरु गौड सर जी
💐💐


[1/27, 7:42 AM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar: 

वाह सर
प्रयोग करवाता हू
🙏🙏


[1/27, 7:51 AM] Vd. V. B. Pandey Basti(U.P.): 
🙏


[1/27, 7:57 AM] Vd.Somraj Kharche Gujarat: 
🙏🏻🙏🏻


[1/27, 8:01 AM] Dr.Santanu Das: 

Sir Gandhak druti ko use bhi achha reheta hei.....


[1/27, 8:35 AM] Vaidya Ashok Rathod Oman: 

सुप्रभात पवन सर, आपका अनुभव बताने के लिये बहोत धन्यवाद 🙏🌹😊


[1/27, 8:36 AM] Vaidya Ashok Rathod Oman: 

धन्यवाद आचार्य जी 🙏🌹🌹


[1/27, 8:55 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi: 

*सुप्रभात, सप्रेम सादर नमन ओझा सर एवं सभी विद्वानों को 🌹💐🌺🙏*


[1/27, 9:04 AM] DR. RITURAJ VERMA: 

कुनख में हरताल रसायन प्रयोग भी कर सकते है


[1/27, 9:05 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:

 *डॉ अशोक राठौड़ जी, विमान स्थान के अध्याय पांच में स्पष्ट किया  है कि रोगों का हेतु एक और भी है जहां एक रोग दूसरे रोग को उत्पन्न कर देता है,
 च वि 5/9 में 
'स्रोतांसि स्रोतांस्येव धातवश्च धातूनेव प्रदूष्यन्ति प्रदुष्टा:' 
अर्थात दूषित स्रोतस दूसरे स्रोतों को और दूषित धातु दूसरी धातुओं को दूषित कर देती है और आगे कहा है 
'तेषां सर्वेषामेव वातपित्तश्लेष्माण: प्रदुष्टा दूषयितारो भवन्ति दोषस्वभावादिति' 
और इनमे भी दुष्ट वातादि अपने स्वभाव से ही दूसरों को भी दूषित करने वाले होते हैं। इसमें एक विशिष्ट बात ये है कि 
'प्राणवहानां स्रोतसां ह्रदयं मूलं महास्रोतश्च ...' 
च वि 5/7 
बताकर इस प्रकार स्पष्ट किया है और अब आगे देखें 
'रसवहानां स्रोतसां ह्रदयं मूलं दश च धमन्य:' 
च वि 5/8 
यहां ह्रदय को प्राण वह और रस वाही दोनो स्रोतस का मूल बताया गया है अत: उपरोक्त सिद्धान्त जो हम ले कर चले हैं कि प्राण वह स्रोतस की दुष्टि में रस वाही स्रोतस के लक्षण भी संभव है क्योंकि मूल दूषित होगा तो वह अपने निज स्रोतस सहित समीपस्थ स्रोतस, दोष समीप के दोष, धातु, उपधातु और मल सभी को प्रभावित करेगा इसको आप ठीक प्रकार से तब समझेंगे जब hypertension और वृक्क दुष्टि की सम्प्राप्ति देखेंगे कि किस प्रकार hypertension वृक्क रोगों का हेतु बनता है और वृक्क दुष्टि hypertension का हेतु।*

*रोगी आपके पास है ही तो उसका हेतु ढूंडिये, दोषों की उल्वणता और स्र्तोस कौन कौन से involve है देखिये । ये कोई कठिन कार्य नही है क्योंकि पहले ये सब हम विस्तार से यहां लिखते आये हैं तो आपके सामने एक स्पष्ट सम्प्राप्ति आ जायेगी जिसके अनुसार चिकित्सा का सूत्र बनेगा और औषध चयन हो जायेगा ।*


[1/27, 9:07 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi: 

*नमस्कार पवन जी 🌹🙏*


[1/27, 9:14 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi: 

*गुरूश्रेष्ठ, सादर प्रणाम एवं ह्रदय तल से आभार। आपके लिखे इन आशीर्वचनों के बाद अब जीवन में कुछ शेष नही रहा। जिस प्रकार से आपका आयुर्वेद में विभिन्न विषयों पर लेखन है वो आयुर्वेद की गहनता तक ले जाता है और सिखाता है कि विषय की विषय वस्तु और गंभीरता को कैसे समझा जाये, आप अपने आप में एक institute हैं जिसे पढ़कर चिन्तन,ज्ञान और लेखन का मार्ग स्वत: ही प्रशस्त हो जाता है।* 
🙏🙏🙏🙏🙏


[1/27, 9:18 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi: 

*आभार सहित सप्रेम सादर नमन सर ❤️🙏 *


[1/27, 9:24 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi: 

*जी santanu ji, कुष्ठ में शमन चिकित्सा का भी प्रावधान है। 'वातोत्तरेषु सर्पिर्वमनं श्लेष्मेत्तरेषु कुष्ठेषु ... च चि 7/39 
वात प्रधान में प्रथम घृतपान, कफ में वमन और पित्त प्रधान में रक्त मोक्षण या विरेचन अर्थात वमन, विरेचन और दोष अधिक हो तो यह बार बार साथ ही यह भी कहा है 
'बहुदोष: संशोध्य: कुष्ठी बहुशोऽनु रक्षता प्राणान् .....
अर्थात रोगी के प्राणों की रक्षा का भी ध्यान संशोधन में करना है। पहले तो यह मान लें कि सभी कुष्ठ त्रिदोषज होते हैं। इसके पश्चात स्नेहपान पुन: वामक द्रव्यों का प्रयोग, विरेचन द्रव्यों का प्रयोग, आस्थापन वस्ति, अनुवासन, नस्य, धूममपान, लेप प्रयोग, प्रच्छन्न, अलाबू, जलौका, क्षार प्रयोग, अगद प्रयोग, प्रदेह प्रयोग और अंत में संशमन कर्म।*

*कुष्ठ में रक्त, मांस, वसा, मज्जा ये धातुयें तो दूषित रहती ही हैं पर प्रधान रूप से त्वचा यह कहकर चरक में शमन योगों का वर्णन किया है। ये सब एक क्रम में दे तो कितने दिन लगेगें ? क्या ये सभी रोगी के लिये संभव हैं या आज के समय में affordable है ? इसलिये इस प्रकार के रोगों में सीधा ही शमन चिकित्सा भी दी जा सकती है पर यह देखना है कि वह मात्र 'lipstick work' जैसा भ्रम ना हो जो बाहर से तो रोग दबा दे और चमक पैदा कर दे पर भीतर बना रहे। इसीलिये हम कुष्ठ में भल्लातक अवश्य किसी ना किसी रूप में प्रयोग करते ही हैं। आप सभी ने जो योग बताये हैं वे सभी उत्तम हैं।* 🌹🙏

[1/27, 9:26 AM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:

वैद्यराज सुभाष शर्मा जी, 
परस्पर संबंध के कारण ही श्वास रोग में हृदयस्य रसादीनां धातूनां चोपशोषणौ वर्णित है, यथा- COPD ➡️ Pulmonary hypertension➡️ Right ventricular hypertrophy ➡️ right heart failure ➡️ raised jvp, congestive hepatomegaly, 
+hepatojugular reflux, jaundice, indigestion, pedal edema, ascites, etc .
रुग्ण परीक्षण से विभिन्न स्रोतस् दुष्टि लक्षण के आधार पर विशिष्ट स्रोतस् दुष्टी को समझा जा सकता है..


[1/27, 9:26 AM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:

 *आपका मार्गदर्शन हमारे लिये बहुत ही उपयोगी है*

[1/27, 9:35 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi: 

*बहुत ही उत्तम प्रकार से व्याख्या कर दी आपने सर, ऐसा ही मिलता है और आपने सब से बढी बात लिखी कि विभिन्न स्रोतस दुष्टि लक्षण के आधार पर 'विशिष्ट स्रोतस दुष्टि' (ये शब्द अति महत्वपूर्ण है) को समझा जा सकता है। क्योंकि अनेक बार अनेक स्रोतस की दुष्टि मिलती है तो धीरे धीरे ज्ञान होता है कि इनमें प्रमुख एक ही है ।*

*ये बढ़ा विषय है सर इस पर समयानुसार चर्चा चलती ही रहती है और मुझे तो आपके ज्ञान का लाभ लेना है क्योंकि ये सब आपसे संबंधित शिक्षण के विषय है और जिस प्रकार आप सरलता से कठिन विषयों को भी सरलता से स्पष्ट कर देते हैं वो अद्भुत शैली है आपकी । * 🌹❤️🙏


[1/27, 10:15 AM] Vaidya Ashok Rathod Oman:

 🙏🙏🙏🌹🌹🌹 
*नमो नमः आचार्यजी। अद्भुत विश्लेषण। आपकी बतायी गयी सभी बाते मुझे अवश्य उचित मार्गदर्शन करेंगी।* *साधु प्रणाम* 🙌🏽🙌🏽🙇🏻‍♂️🌹🌹🌹


[1/27, 10:52 AM] Vd Darshna vyas Vadodara:

 👌👌🙏🏻🙏🏻🙏🏻💐💐💐


[1/27, 11:07 AM] Dr.Ashwani Kumar Sood Ambala: 

CHAKRAPANI rewritten in same pattern will be a fantastic creation .


[1/27, 11:12 AM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:

 Namaste Sir ji, yes, it will be more clinical understanding of interlinked srotas ..


[1/27, 11:23 AM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:

 *Understanding of anubandha dosha* ➡️
तमक: कफकासे तु स्याच्चेत् पित्तानुबन्धज:, पित्तकासक्रियां तत्र यथावस्थं प्रयोजयेत् , च.चि.१८/१३१.
*तमक: कासोपद्रवरुप:*

कफज कास + पित्तानुबंध‌➡️ तमक ➡️ पित्तज कास चिकित्सा.

Chronic bronchitis + secondary infection ➡️ dyspnea, wheezing, cough, yellowish sputum, fever, crepts,  etc ➡️ bronchodilator with antimicrobial agents.


[1/27, 11:45 AM] Vd.Divyesh Desai Surat: 

अशोकजी, कुष्ठ विकारों में संशोधन, संशमन, चिकित्सा करने के बाद, दोषों की अंशांश कल्पना कर के चिकित्सा करने के पश्चात सही नही होता तो इसमें पूर्व जन्म के पापकर्म या अभिशाप मानकर मंत्र चिकित्सा या दान देने के लिए हमारे आदरणीय नाड़ी गुरुजी ने बताया था, पहले मुझे इन बातों पर विश्वास नहीं था लेकिन ऐसे मरीज जब मंत्र चिकित्सा से गुरुजी ने ठीक किये, तब मैं भी मरीज को गायत्री मंत्र या सूर्य नारायण का मंत्र जाप ओर कुछ सद्कार्य मरीज से करवाता हूँ और रिजल्ट भी मिलते है, शायद इस विषय मे हमे गुरुजनों का मार्गदर्शन की जरूरत होती है, क्योंकि एविडेंस बेस युग मे ये बातें सबको निरर्थक लगती है।🙏🏻🙏🏻🙏🏻
जय आयुर्वेद, जय धन्वंतरि।।


[1/27, 11:57 AM] Vd Darshna vyas Vadodara:

 Absolutely true Divyeshbhai. 👍🏻👍🏻💐💐


[1/27, 11:57 AM] Dr.Bhavesh R. Modh Kutch: 

*विकार* - प्रकृतिः अन्यथाभाव 

विकारो धातुवैषम्यं साम्यं प्रकृतिरुच्यते । सुखसंज्ञकमारोग्यं विकारो दुःखमेव च ॥ च सू अ 9 

विकारो धातुवैषम्यं - Sign - something that shows that something is present, exists or may happen.

शब्दः स्पर्शश्च रूपञ्च रसो गन्धस्तथैव च । 
प्रकृतिश्च विकारश्च यच्चान्यत् कारणं महत् ॥

 _विकार से Sign ले शकते है या यूँ समझें के विकार मे signs का प्रभूत्व होता है । sign is any objective evidence of a disease that can be observed by others (for example a skin rash or lump)._ 

 *रुज्यते अनेन् इति रोगः* 
जीस मे शरूआत से हि मन व तन की पीड़ा - pain कुछ समय के लिए ज्यादा होती है, वैसे Acute Diseases...

रोगः पाप्मा ज्वरो व्याधिः  विकारो दुष्टम् आमयः । 
यक्ष्मा आतङ्क गदावाधाः शब्दाः पर्य्यायवादिनः ॥ 

निदानं पूर्व्वरूपाणि रूपाण्युपशयस्तथा । संप्राप्तिश्चेति विज्ञानं रोगाणां पञ्चधा स्मृतम् ॥

रोग मे symptoms का प्रभुत्व होता है ।
symptom is subjective, that is, apparent only to the patient (for example back pain or fatigue)

अतः अधिकांश चिकित्सापद्धतियों मे रोग की Symptomatic relief मीले वैसी ही चिकित्सा करने का अभिगम हो गया है ।

 *व्याधिः - विविधा आधयोऽस्मात्  ।* 
 आध्यो ~ आधिः - मनःपीडा / बन्धकं /व्यसनं 
जो Chronic Diseases है जिसमे Symptomatic treatment से  आगे बढके संप्राप्ति विघटन चिकित्सा समझनी व करने की नितांत आवश्यकता है व बादमे रसायन चिकित्सा भी करनी पडती है ऐसी बीमारियाँ ।

चिकित्सा के द्रष्टिकोण से ....

 *विकारः* - घरेलु उपचार सबसे पहले अखत्यार होते है।

 *रोगः* - अधिकांश एलोपथीक सिम्पटोमेटीक रीलीफ मीले एसी चिकित्सा की जाती है,  आयुर्वेद मे भी अक्सर रोग के लक्षणानुसार  शमन औषध ढुंढे जाते है ।

 *व्याधिः* - एलोपथीमे लंबे चोडे इन्वेस्टीगेशन्स व  एक से अधिक डाॅकटर्स की ट्रीटमेंट या टीम की जरूरत रहती है ।

आयुर्वेद मे पहले संशोधन, फिर संशमन अंतमे रसायन चिकित्सा से व्याधि अपुनर्भव हो जाता है ।


[1/27, 11:58 AM] Vaidya Ashok Rathod Oman: 

*अनेक धन्यवाद आचार्यजी, चिकित्सा का ये भी एक पहलु हैं जो हमे अभ्यास में कभी सिखाया नही गया।* 🙏🙏🌹🌹🌹


[1/27, 12:00 PM] Vaidya Ashok Rathod Oman: 

ऋतुराज जी, यह औषधी पाने में कुछ कठीनाईया हैं मुझे। 🙏🌹


[1/27, 12:16 PM] Vd.Divyesh Desai Surat: 

🙏🏻🙏🏻दर्शना मैडम, ऐसे उपचार से ठीक होने वाले मरीजो को मेंने निर्मल बाबा इफ़ेक्ट नाम दिया है,😀😀 क्योंकि वे मरीज को इतना आसान तरीका बताते है की सब लोग ये उपाय करने के बाद  आत्मविश्वास पैदा होता है और बाद में POSITIVITY से psycoligical फायदा होता है ऐसा मेरा मानना है🙏🏻🙏🏻


[1/27, 12:17 PM] Vd.Divyesh Desai Surat: 

अशोकजी 🙏🏻🙏🏻


[1/27, 12:28 PM] Dr.Rajeshwar Chopde: 

Tankan lahi ka prayog bhi prashast hai Guruji, twice a day



[1/27, 2:59 pM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:

*शुभ मध्याह्न सर, आनंद आ गया आपकी बात पढ़कर, 💐🌺🌹❤️🙏अगर आप इस प्रकार का कार्य ले कर चलते है तो आयुर्वेद में कालानुरूप बहुत महान कार्य होगा, अभी इस रूग्णा से बात कर रहा था तो आपकी कार्य शैली का चिंतन कर रहा था कि बहुत विलक्षण है, इसका एक clinical उदाहरण है ये ... 👇🏿अनेक बार रोगी गंभीर रोग ले कर आयेगा अपनी समस्याओं को बहुत बढ़ा चढ़ा कर उनका वर्णन करेगा तो उलझना नही जैसे एक 21 वर्षीय रूग्णा ने फोन पर बताया कि उसे पिछले एक वर्ष से उदर में नाभि से नीचे तीव्र शूल हो जाता है , 3-4 दिन तक विबंध रहता है, आर्तव भी दो माह तक विलंबित रहते है और body wt. लगभग 70 kg है, स्वभाव में उग्रता,छोटी छोटी बात पर क्रोध, मूत्रावरोध भी कभी कभी तो इस प्रकार की व्याधियों में केवल ये सोचें कि यह सब स्रोतस की कौन सी दुष्टि में आता है ? तो उत्तर मिलेगा संग दोष है और आपका सारा कार्य सरल हो गया।*

*बढ़ी व्याधि अब छोटी बन जायेगी, इसे इस प्रकार समझें कि जैसे ज्वर में ताप तो सारे शरीर में है पर जाठराग्नि मंद है क्योंकि क्षुधा नही लग रही , अरूचि है तो इसे आयुर्वेद की भाषा में कहा गया है 'एक देश में वृद्धि और अन्य देश में क्षय' - एक देश अर्थात सर्व शरीर गत तो ताप अर्थात अग्नि के इस गुण की वृद्धि है पर आमाश्य में क्षय है तभी जाठराग्नि मांद्य है। इस अग्नि को किसी ने अवरोध लगा रखा है इसे संग दोष कहते है और यह स्रोतस में ही होता है और इसका सर्वाधिक कारण आमदोष मिलेगा।स्रोतो दुष्टि में सब से प्रधान और अधिक मिलने वाली दुष्टि यही संग दोष है।*

*संग अर्थात मार्ग में रूकावट या स्रोतस का अवरोध है जिसके कारण दोष, धातु, उपधातु, मल, मूत्र और स्वेद आदि और शारीरिक एवं मानसिक क्रियाओं का भी वहन नही हो पाता।*

*यह संग दोष मात्र शारीर के तल पर ही नही मानसिक भावों का भी होता है जब कुछ लोग अपनी बनाई हुई विचारों की दुनिया में ही जीने लगते है, मानसिक भावों को बाहर नही निकाल पाते, चुप रहते हैं और विचारों की सम्यग् प्रकार से अभिव्यक्ति नही करते तो हम हम इस प्रकार के रोगियों के prescription में मानस संग शब्द लिखा करते है।*

*इस संग दोष में इस रूग्णा की history में मिला प्रात: bfast में वर्षों से परांठा और दुग्ध का सेवन, सुबह गेहूं की चपाती + दूध में cornflakes, रोटी के साथ orange juice, मैगी या पास्ता सेवन कर के दुग्ध पान।*

*रात्रि में भी अधिकतर आहार online order दे कर मंगाना जो अत्यन्त गुरू एवं स्निग्ध gravy food होता है, शारीरिक श्रम की अल्पता, एवं भोजन भी देर रात्रि में करना।इस प्रकार की दिनचर्या के रोगी महानगरों में आपको बहुत मिलेंगे जिनमें स्रोतस का संग दोष प्रधान रहता है।*

*मात्र अन्नरसवाही स्रोतस विकृत हो कर मूत्रवाही, मलवाही और आर्तववाही स्रोतस को भी दूषित करता गया, इसीलिये जैसा आपने प्रात: लिखा की रोगी परीक्षण के पश्चात प्रमुख स्रोतस का ज्ञान आवश्यक है इसीलिये संग दोष में सर्वप्रथम प्राय: दीपन, पाचन द्रव्यों का प्रयोग किया जाता है।*


[1/27, 3:01 PM] Vaidya Sanjay P. Chhajed Sir Mumbai: 

यह बिल्कुल शास्त्र संमत है. अनेको रुग्णो मे यह देखा गया है. आपके नाडी गुरुजी वैद्यवर शिवानंदजी लाड परंपरा से है तथा महर्षी अगस्त्य के वंशज है. मंत्र अपने कीलको सहीत सिध्द है उनके.


[1/27, 3:21 PM] Vd.Divyesh Desai Surat: 

🙏🏻🙏🏻जी, गुरुजी
आयुर्वेद में मंत्र चिकित्सा एवं मंत्र स्नान भी बताया है,जो पाप (व्याधि का पर्याय) को दूर करता है।।
मंत्र भौमं तथा आग्नेयम 
वायव्यम दिव्यं एव च।
वारुणं मानसं चैव
सप्त स्नानानि अनुक्रमात।
अथर्ववेद में भी रोगानुसार मंत्र का निर्देश किया है।
जैसे कि पक्षाघात, केंसर,कर्ण, अक्षि रोग, कफ के रोग, स्नायु रोग... आदि
इस लिए तो हम सब भी सुबह में या संध्या काल मे कोई न कोई मन्त्र रूप में प्रार्थना करते है।🙏🏻🙏🏻


[1/27, 3:22 PM] Vd Raghuram Shastri ,Banguluru: 

*Guruji, good noon... You have rightly pointed out about the imbalance of doshas, kshaya somewhere and vrddhi somewhere else...and the point you have mentioned about Manasika Sanga - EMOTIONAL CONSTIPATION is indeed a point to look for in most cases, immaterial of those being mental or somatic... great points to take note in case taking and for comprehensive understanding of the case sir. Thanks so much* 💐❤️🙏🙏


[1/27, 3:24 PM] Vd Raghuram Shastri, Banguluru: 

*Thanks Guruji....important points to note down for clinical precision*🙏🙏💐❤️

[1/27, 3:28 PM] Vd Raghuram Shastri, Banguluru: 

*Wow sir...Adbhut...Nidanarthakaratva* 🙏🙏💐


[1/27, 3:33 PM] Vd Raghuram Shastri, Banguluru: 

*Wow....importance of Nidanarthakaratva, Samprapti and Vikalpa of Samprapti*👌👌💐🙏❤️ *Guruji*


[1/27, 3:37 PM] Vd Raghuram Shastri, Banguluru: 

🙏🙏💐💐❤️❤️ *Importance of basics & awesome analysis of fungal nail conditions... involvement of asthi and majja... as always inspirational analysis of the case Guruji* 🙏🙏🙏💐


[1/27, 3:42 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:

 *vaidya shrestha raghu ji ❤️🙏 In most patients of pcod, the main reason is मानस भाव, similarly, if you look at the patients of ग्रहणी दोष, then the same is being found now a days, if the basic principles are well understood then it is a different pleasure to make the patient healthy with आयुर्वेद।*


[1/27, 3:44 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi: 

*thanks a lot with love & regards raghu ji ❤️🌹🙏*


[1/27, 3:46 PM] Vd Raghuram Shastri, Banguluru:

 *So true sir, mind and body are never different, they will sooner or later impact and influence one another in the samprapti. Most clinical cases might need a comprehensive mind-body approach, especially now days. A short course of shirodhara has found effective in relieving grahani symptoms many times. Thanks for stressing on looking into the mind concept during clinical diagnosis and stressing on it Guruji*🙏🙏💐❤️


[1/27, 3:47 PM] Vd Raghuram Shastri, Banguluru: 

🙏🙏🙏🙏💐❤️😍Love you Guruji


[1/27, 4:05 PM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar: 

शुभ सन्ध्या गुरु जी
हेतू ढूंढना अति आवशयक है।
ज्यादातर हिस्ट्री मे ये मिल जाता है, कुछ कुछ केसो मे दिक्कत आती है।
🙏🙏


[1/27, 4:22 PM] Vd Raghuram Shastri, Banguluru: 

*An interesting case of Nalpamaradi Ksheera Dhara followed by Guggulutiktaka Ghrta Vasti and Tikta Ksheera Vasti in fungal nail and nail-bed infection*

💐💐💐💐💐💐💐

*Dr Ashok ji* has presented an interesting case on which our hon Guruji *Shubhash Sharma sir* has written an extensive and comprehensive analysis of *vikalpa samprapti* so as to facilitate the treatment process. 🙏🙏💐

*Thanks sir, for this superb post, your posts have been lessons and inspiration to all of us*🙏🙏💐

*The samprapti of the disease, any disease is its own story and the story needs to be understood from all perspectives, component to component and event to event. Only then the treatment can be comprehensive and super effective*.

*Thanks to all group members who have put forth their thoughts in this perspective*

💐💐💐💐💐💐💐

*I would like to share a couple of my clinical experiences in relation to this case* 👇👇👇

*Long back a case was referred to me by a famous allopathic practitioner. The patient was his own father of around 60 years of age*

*Almost all fingernails were damaged, the nail bed was exposed, and there were foul smell discharges and occasional bleeding* It was *diagnosed as a fungal infection of nails and nail bed* He also had carried few reports that suggested the *diagnosis as nail psoriasis with a super-ceded fungus infection*

Though both conditions appear similarly *there is a difference* as we know. *Latest reports were of fungus infection and was treated on the same lines* Toe nails were also afflicted but not to that extent. The patient had been *treated for 3 years without much benefit* The symptoms used to be on and off. The patient had *controlled diabetes* and was on medication for the same. He had *joint pains* – mainly in the knees, ankle, fingers and wrists. The pain *fluctuated between tolerable to intolerable but had never gone away* He felt the need for analgesics more often than not. He was *diagnosed with psoriasis in the past* and was treated for the same. The *family history of the same also existed* Though there were *no active psoriatic lesions* when the patient came to me, the remnants suggest the same and coincided with the history. He might well have had *psoriatic arthritis* But that was *not the point of concern to him or his son*

👉 *_Causes and triggers_* – *Psoriasis might well be the cause* for this case. *Hon Subhash Sharma sir too has mentioned that the fungal infection of the nail is a kind of kshudra kushta* itself and also in the nail and nail bed both asthi and majja are involved. *_I always remembered the asthi component when I am dealing with a stubborn hair or nail case, though the nail cases are very few that I encountered in my clinical practice_*

👉 *The triggers are important here*. He was an orthodox person who used to conduct puja every day by sitting in the puja room. He *used a lot of flowers, kumkum and turmeric for puja. This was found to be the trigger for his problem* In spite of telling him about this, he was not ready to give up. He said he cannot spend a single day without doing puja. He also *took bath twice and spent a lot of time doing that. There was no surety that he would wipe off water properly from the lesions post-bath* He also *visited temples wherein he used to apply kumkum (vermilion) or vibhuti to his forehead* Many people would touch those things and they may contaminate the lesions. Even when he came to me, *he said that he cannot give away his religious practices*. I counseled him a lot, it was tough time though… for patients we doctors would look like non-believers in God when we tell these things. But *no God tells you to damage your health and worship him / her* 

*Finally I was successful in convincing him. I told that he shall conduct puja but someone will offer flowers and kumkum to the Gods on behalf of him. And then the treatment started*

💐💐💐💐💐💐💐

*First line of treatment*

*_I planned to address the condition first by using external measures and also with some oral medications. I started with_* –

👉 *Abhyanga / avagaha of his fingers / toes in mixture of Nalpamaradi Taila and Pinda Taila* (the logic was to *mix up kushta and vatarakta line of treatment* )

👉 *Followed by– Nalpamaradi Ksheera Dhara– milk processed with Nalpamaradi Kashayam– which is Panchavalkala minus Plaksha*. 

Even *Panchavalkala can be used, I too have used it for many dushta vranas, but I found Nalpamaradi to be more effective. It also gives good results when poured on painful joints in vatarakta / or if given a dip with the same milk*

👉 *I also put him on – Aragwadha Mahatiktakam Ghrtam, Guggulutiktakam Ghrtam and Kashayam, Kaishora Guggulu, Stresscom……..*

👉 *Results - The treatment was carried on for 15 days. Lot of improvement was seen. More than 90% lesions were gone. Healing was evitable. I also conducted the dhara on his painful joints. There was reduction in pain too, remarkably*

💐💐💐💐💐💐💐

*Next schedule of treatment*

👉 *After 1 month, when there was remarkable improvement in his symptoms and when the patient showed signs of physical and mental wellness, I carried Vasti Chikitsa with alternative Tikta Ksheera Vasti and Anuvasana with Guggulutiktaka Ghrta* 

👉 *After a 1 month gap, I conducted matra Vasti with Guggulu tiktaka Ghritam. This was when the lesions were almost gone, just as a part of maintenance*

*The patient himself called me a couple of times over a period of next 1 year for remedies for some minor health issues but was absolutely good with his joints and nails. His general health too improved after the course of vasti*.

💐💐💐💐💐💐💐

*Finally*

👉 *I would say that Nalpamaradi ksheera dhara or Panchavalkala Ksheera Dhara is highly effective in the management of dushta vrana, nail and nail bed disorders / infections, pain in vata rakta…*

👉 *Enema with Guggulutiktaka Ghrta and Tikta Ksheera Basti showed rapid improvement in the symptoms of the patient. Tikta Ksheera Basti is indicated in Asthi-Majjagata rogas. With the anatomical correlation of nails and bones as already mentioned by Shubhash Sharma sir, the use of these remedies prove the logical explanation of the results*

👉 *I have seen oral consumption of Guggulu Tiktaka Ghrita or when used as vasti in vatarakta or sandhigata vata – I found it really good in arresting the hair fall and also has enabled hair growth. I have seen this in many cases.*

👉 *I advise tiktaksheera vasti / ghrta vasti, along with some external therapies and oral medications as and when needed, in many women in pre-menopause and also to those who have bone and joint pains in menopause. I have seen many women reporting that their hair fall too has stopped which was indeed a point of concern*.

👉 *The same interventions I have found effective in cases of calcaneal spur*

💐💐💐💐💐💐💐

*This is my humble submission to the elite panel*

🙏💐🙏💐🙏💐🙏

*_DrRaghuram.Y.S_*


[1/27, 4:34 PM] DR. RITURAJ VERMA: 

Great sir ji👌👌👌


[1/27, 4:39 PM] Shekhar Goyal Sir Canada: 

🌹💐🌷👏 Very nice Sir🙏🙏


[1/27, 4:41 PM] Vd Raghuram Shastri ,Banguluru: 

Thanks sir🙏🙏💐


[1/27, 4:41 PM] Vd Raghuram Shastri ,Banguluru:

 Thanks sir 🙏🙏💐


[1/27, 5:04 PM] Vd.Shailendra Harayana: 

Marvelous Sir👏🏻👏🏻👏🏻,Your style of presentation is always Superb....This one is an Epitome... a self explanatory case...... Fills all with more confidence... Thnx a ton for sharing n elaborating....🌷🌷🌷


[1/27, 5:17 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir: 

जी , 🙏🙏💐🌹🌷🙏🙏
अतिमात्रस्य चाकाले चाहितस्य च भोजनात्, अन्नवाहिनी दुष्यंति वैगुण्यात् पावकस्य ।
च. वि.५/१२
अन्नवाहानां दुष्टानां आमप्रदोषिकी. २६.


[1/27, 5:28 PM] वैद्य नरेश गर्ग:

 प्रणाम सर 🙏🙏
आजकल इस भाग दौड़ भरी जिंदगी में सभी लोग इसी प्रकार का जीवन यापन कर रहे हैं किसी के पास भी सही भोजन करने के लिए  समय नहीं है


[1/27, 5:31 PM] वैद्य नरेश गर्ग:

 आयुर्वेद में पथ्य और अपथ्य व्यवस्था जिस प्रकार की आचार्य ने निर्धारित कर रखी है यदि उसका पालन कर लिया जाए तो अन्नवह स्रोतस की अनेक व्याधियों को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है सुभाष सर भी मुख्यतः पथ्य व्यवस्था पर ही अधिक ध्यान देते हैं


[1/27, 5:45 PM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar:

 प्रणाम सर
👌👌🙏🙏


[1/27, 5:55 PM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar: 

गुरु जी प्रणाम

बहुत बढिया
अभी अभी एक ऐसी ही रुग्णा आई। पूर्णत मानसिक व शारिरीक संग दोष सम्प्राप्ति के साथ।
विबंध + कृमि + स्थौलय + विषाद
साथ मे 25 या 30 सालो से चट्पटा या तीखा खाने की आदत
कुटकी हरीतकी व शिवक्षार से शुरु किया।
🙏🙏


[1/27, 5:56 PM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar: 

👌👌👌


[1/27, 6:00 PM] Dr Mansukh R Mangukiya Gujarat: 

🙏 excellent presentation sir.
Thanks a lot for " Sadhuvada "


[1/27, 6:16 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi: 

*shirodhara relieves ग्रहणी लक्षण 👌👌 very true Dr raghu ji ❤️🌹🙏*


[1/27, 6:25 PM] Vd. V. B. Pandey Basti(U.P.): 

Great Submission Sir. Much to learn.


[1/27, 6:43 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:

 *very good evening Dr Raghu the great , It looks like we are not reading but watching live telecast, a case of nail psoriasis in a controlled DM patient seems to be presented in Ayurveda for the first time in this way.*

*पुष्प, कुंकुम & हरिद्रा are triggers for his problem 🌹👌👌👌this is how I remembered आर्द्र यज्ञोपवीत caused fungal infection to people who are wet and sweat.*

*line of treatment  excellent and an example for others is how such cases are managed.*

*अभ्यंग & अवगाहन of toes/ fingers in मिश्रण of naloamradi & pinda taila a good combination... 👌👌👌 excellent Dr Raghu ji - आनंद आ गया.*


[1/27, 6:48 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir: 

Dr Raghuram ji, shirodhara relieves grahani lakshan 👌💐✅🌹☺️
Which lakshan ?
 
Answer; गृद्धि: सर्वरसानां च मनस: सदनं तथा..
अकृशस्यापि दौर्बल्यमालस्यं च....
Which types of patients ?
Answer; सवातगुल्महृद्रोगप्लीहाशङ्की च मानव:.. 
We need to follow case record format strictly to understand exact underlying pathology and relevant treatment..

Thanks Dr Raghuram ji for sharing of excellent clinical and therapeutic knowledge..
☺️💐🌹🌷✅👌


[1/27, 6:49 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi: 

बहुत बढ़िया पवन जी 👌👌👌 लाभ मिल जायेगा।*


[1/27, 6:50 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir: 

*शुभ संध्या वैद्यराज सुभाष शर्मा जी एवं आचार्य गण नमो नमः*


[1/27, 6:52 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:

 *शुभ सन्ध्या सर 🌹🌺💐आपने विशिष्ट लक्षण दे कर विषय को और अधिक पूर्णता दे दी 👌🙏*


[1/27, 7:06 PM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir: 

In this case ; 
तेषु शिथिलेषु दोषा: प्रकुपिता: स्थानमधिगम्य संतिष्ठमानास्तानेव त्वगादीन् दूषयन्त: कुष्ठान्यभि निर्वर्तयन्ति.. 
च.नि.५/६
संतिष्ठमाना इति वचनेन स्थिरा एव दोषा: कुष्ठजनका भवन्ति, न हि सरणशीलास्त इति दर्शयति ; आचार्य चक्रपाणी..
In this patient, long term exogenous  irritating causes to nails and it's beds  are reason of local fungal infection..


[1/27, 7:15 PM] Dr.Ashwani Kumar Sood Ambala:

 Good analysis  repeatedly reading it helps in quick diagnosis


[1/27, 7:22 PM] Dr. Vinod Sharma Ghaziabad: 

Very nice presentation of case .👏👏👏 Naalpamaradi  ksheer Dhara -- 
How the Ratio should be ? 
May you please  explain the process also 🙏🏾🙏🏾.
Regards .


[1/27, 7:25 PM] +91 75750 64296: 

I read very keenly your messages they are very insightful and comprehensive very profound matter Sir🌹


[1/27, 7:31 PM] +91 75750 64296: 

श्लाघनीय . विद्या ददाति विनयम्  🌹


[1/27, 7:43 PM] Vd Raghuram Shastri, Banguluru: 

*Good evening Guruji. Thanks for your complimenting good words and blessings. 🙏🙏💐💐❤️ Good example of Yajnopavita sir… fungal infection to people who are wet and sweat. Yajnopavita, puja, kumkum, pushpa, haridra, everything is important but we need to remember what is affecting what in due course of our dinacharya. It was tough to make him keep away from these things. He did not even interact with me for the first 2-3 days. 
1. Because I had contraindicated exposure to these things which he loved doing. 
2. Because he was fed up of taking medicines for this condition for long. Atura was more challenging than Vyadhi. Gradually I took him into confidence and he started cooperating. Another thing is that he did not have good relationship with his son. His son said – my father does whatever I tell no! Father said that his son too is like that. So, when the son tells his father not to do puja, father felt his egoism rising to heights. How dare you tell your son concept! I was a neutral person. I said, do it for me! He did, luckily for me!*


[1/27, 7:44 PM] +91 75750 64296: 

जी पाल  साहब यही बात आयुर्वेद में कह दी गई है कि हमारा जो कुछ भी यहां ज्ञान है वह आप को  दिशा निर्देश करने के लिए है आगे  अपने हिसाब से (विचार करें) यात्रा करें 🌹🙏


[1/27, 7:46 PM] Vd Raghuram Shastri, Banguluru: 

*Wow Guruji…
you are just fantabulous! You have inserted theory with references for what I had said in one sentence (as reply to Guru Shubhash Sharma sir’s discussion). I have noted sir. You inspire us a lot do things in a methodical way. Thanks for your blessings as always sir* 🙏🙏💐💐❤️ *You make things so easy to understand in their fullest form and make every topic comprehensive sir*


[1/27, 7:47 PM] Vd Raghuram Shastri ,Banguluru: 

Great reference Guruji. 
🙏🙏🙏💐
Thanks so much for quoting Acharya Charaka and Acharya Chakrapani here. Sthira eva doshaH…. wow!👌👌🙏❤️ Master Chakrapani emphasizing the sthanasamshraya of doshas leading to dosha dushya sammurchana in his expertise language*


[1/27, 7:50 PM] Vd Raghuram Shastri, Banguluru:

 *Thanks so much sir ji🙏🙏💐for your good words. Learning from the great Gurus and good friends in this elite platform / institution. and trying to give back as much as possible to our divine system, because of which we are what we are today!*


[1/27, 7:52 PM] Vd Raghuram Shastri, Banguluru: 

*Thanks so much for your compliments dear sir* 
🙏🙏💐

*1. Nalpamaradi Kashaya needs to be prepared initially in the same 1:16 or even 1:8 ratio of dravya and water. You may prefer ¼ or ½ reduction. Then half quantity of milk is added to it. They are heated on moderate fire so as to reduce it to half. This shall be used in tolerable temperature. You may take the quantity as per the surface area of the body which is taken into account for performing the therapy. For one hand or one foot, you may take lesser quantity*

*2. Alternatively you may take – 1 part dravya – 4 parts milk – 8 parts water – Reduce to half and use. All of them can be heated together, easier procedure)*


[1/27, 9:00 PM] Dr.Mamata Bhagwat Ji: 

Sthira dosha and shithila dhatu combination, leads to prameha, kushta and rajayakshma.  
🙏🏻🙏🏻 Very important and exclusive samprapti for all the 3 santarpana vyadhis. 🙏🏻🙏🏻


[1/27, 9:01 PM] Dr.Mamata Bhagwat Ji: 

Great observations Raghuram Sir👌🏻🙏🏻💐


[1/27, 9:22 PM] Vd Raghuram Shastri, Banguluru: 

Thanks dear madam🙏🙏💐


[1/27, 9:25 PM] Dr.Sadhana Babel: 

Superb 🙏🙏🙏


[1/27, 9:26 PM] Vd Raghuram Shastri, Banguluru: 

Thanks dear madam🙏🙏💐


[1/28, 12:15 AM] Vd Raghuram Shastri, Banguluru: 

Thanks dear sir🙏🙏💐


[1/28, 1:15 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi: 

*fantastic Dr Raghu ji 👌👌👌today, it looks like the Ayurvedic युवा ऋषि inside you is in its full form and keep the continuity of this personality because this will elevate Ayurveda.  Today a person like you is needed in Ayurveda for young generations who inspires everyone.* 

*Many members of this group should learn this kind of knowledge, saying their words and etiquette from you.*

*love u raghu ji ,today you won the ह्रदय of the whole group.* 🌹❤️🙏

[1/28, 1:20 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi: 

*today, I am very emotional and happy with your knowledge 👌👍🙏*


[1/28, 1:26 AM] Vd Raghuram Shastri, Banguluru: 

Thanks for your good words and blessings as usual Guruji. You are such a huge motivation, for me, for so many. Your words motivates and encourages me a lot and lot... I am a humble student of Ayurveda, learning from this divine system and great masters like your kind self, Ojha sir and many senior gurus and also from good friends, colleagues and youngsters too. You are so humble and so down to earth sir. It is an inspiration to read your posts, and learn from you. I am blessed to be here, in this privileged institution of KayaSampradaya... under the patronage and right guidance from great Gurus. I would definitely try to contribute and give back as much as possible to this group and Ayurveda. I will definitely not disappoint you sir. Love you sir. I too am extremely emotional and having goosebumps seeing your kind words. YUVA RISHI... wow...! I don't know if I ever deserve this...but I will surely take it because it has come as a blessing and prasadam from one of the greatest AYURVEDA RISHIS and Mahagurus I have ever known, I have ever seen, I have ever conversed with... my beloved Shubhash Sharma Sir. Namo Namah*🙏🙏💐💐❤️❤️❤️❤️❤️


[1/28, 1:29 AM] Vd Raghuram Shastri, Banguluru:

 *These words, are the greatest treasures I carry sir. Priceless. Matchless. This certification from your kind self is more than any degree I have. I am really overwhelmed. I am blessed. I will frame this degree in my soul, for ever*🙏🙏😇💐💐❤️❤️

[1/28, 2:18 AM] Vaidya Ashok Rathod Oman: 

A master stroke as usual and Highly encouraging case presentation done by you respected Dr Raghuram ji. Out of curiosity I am just wondering where can these separate cases can meet together in terms of samprapti. Both cases are from different age groups, different co-morbidities, also having different hetu bhava. You have given loads of insight to me along with all respected KS  guruvarya here.   Both of the cases require  apunarbhavakar radical treatments in which you have shown highly appreciated results. I'm very much interested to follow the possible and suitable solution for the said case from our discussions. I hope the patient will remain in touch for the follow-ups. I'll share patient's prognosis in coming days. I'm doing manthana of all the solutions suggested along with my own understanding about the disease. I'm really grateful to all of you !!!🙏🙏🙏🌹🌹🌹

[1/28, 2:35 AM] Vd Raghuram Shastri, Banguluru:

 *Thanks for your good words dear sir🙏🙏💐 Though the cases are of different age groups and presentations, I am sure you will be able to outline a suitable samprapthi and figure out vikalpas therein as per expertise guidelines of hon Guruji Shubhash Sharma sir. You hv rightly mentioned the same thing in your final sentence. Now you are the master of your case sir since you have all details of the atura and vyadhi, and both those aspects are available in the form of pratyaksha to you. The samprapti for similar diseases with certain deviations will be almost same, the ghatakas will be same, the story of the pathway of formation of samprapti may be different in different cases, like a kushta in a young person may be caused by different causes, may have different symptoms and comorbidities as you have rightly mentioned, but one thing is common among them, that they are kushtas, the samprapti will be the same, vikalpa will be different. We will keenly wait for updates from your end. Best wishes sir🙏💐💐*

[1/28, 5:58 AM] Vd.Divyesh Desai Surat:

 *🙏🏻🙏🏻🙏🏻🌺🌺🌺💐💐 

CONGRATULATIONS TO
OUR BELOVED GURU
RESPECTED SUBHASH SHARMA SIR,
YUVA RUSHI RAGHURAM SIR AND 
DR, ASHOKJI  FOR HIS CASE & QUESTION
& WE ALL GET KNOWLEDGEABLE
TADWIT SAMBHASHA
JAY AYURVED
JAY DHANVANTARI🙏🏻🙏🏻🙏🏻THANKS TO KAY SAMPRADAY AND ALL RESPECTED GURUJANO

[1/28, 6:11 AM] Shekhar Goyal, Canada:

 Congratulations Sir 👏 for being designated as Yuva Rishi, one of the highest graceful reward possible by  गुरुजन.
🙏💐🌹🌷
Keep your excellence going and keep inspiring .

[1/28, 6:17 AM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar:

 Good mng.

Nice elaboration.
A different way of thinking.

[1/28, 6:22 AM] Vaidya B.L.Gaud Sir:

 चार प्रकार के ऋषि होते हैं ऋषिक, ऋषिपुत्र, देवर्षि एवं महर्षि।

[1/28, 6:30 AM] Vaidya Sanjay P. Chhajed Sir Mumbai:

 Excellent and elaborate case presentation Dr. Raghuji. You are truly stepping in Oza sir's shoes. Keep expressing,  God bless you always

[1/28, 6:32 AM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar: 

Good mng Raghu Ji !

Very nice presentation.

Here Abhyang with Nalpamaradi oil means only application of this in a good way or literally it was done like massage?

Very nice results in 15 days.

But then what were the effects of the basti used for 2 months after that when it was almost 90% healed or improved?

Basti with guggulutiktak ghrit and Tiktak ksheer basti.....👌👌
What was its effect on his joint pains of any?

Oral use of Guggulu tikyak ghrit for hair fall...very nice.

Thanks for sharing a important and wonderful presentation.

🙏🙏🙏

[1/28, 6:32 AM] Vaidya B.L.Gaud Sir: 

ऋषि 21 प्रकार के भी माने गए हैं

[1/28, 6:33 AM] Vaidya B.L.Gaud Sir: 

ऋषि सात प्रकार के भी माने गए हैं—
(क) महर्षि, जैसे, व्यास । 
(ख) परमर्षि जैसे, भेल । 
(ग) देवर्षि, जैसे, नारद । 
(घ) ब्रह्मर्षि, जैसे, वसिष्ठ । 
(च) श्रुतर्षि, जैसे सुश्रुत । 
(छ) राजर्षि, जैसे ऋतुपर्ण और 
(ज) कांडर्षि, जैसे जैमिनि

[1/28, 6:34 AM] Vaidya B.L.Gaud Sir: 

दिवोदास धन्वन्तरि भी राजर्षि थे |

[1/28, 6:39 AM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar: 

👌👌👌

Pranaam Sir.
Good mng..🌹

[1/28, 6:40 AM] Vaidya B.L.Gaud Sir: 

दिवोदास धन्वन्तरि भी राजर्षि थे लेकिन  आश्रमस्थ राजर्षि की स्थिति में उन्होंने उपदेश दिया। औपधेनव आदि देवर्षि थे |

[1/28, 6:40 AM] +91 94143 57884: 💐🙏🙏

[1/28, 6:43 AM] Vaidya Sanjay P. Chhajed Sir Mumbai: 

प्रणाम गुरुवर,  फिर आत्रेय पुनर्वसु, अग्निवेश, चरक आदी कीस श्रेणी मे जाने जायेन्गे?

[1/28, 6:47 AM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar: 

प्रणाम गुरुवर 🌹💐🌹💐

[1/28, 6:47 AM] Dr sunil kumar jain Delhi: Very true 👍

[1/28, 6:52 AM] Dr sunil kumar jain Delhi: 

So many time I thought in a same manner 
To give sorodhara first line of treatment in clinic 
But do not have space for shirodhara table 
But now I will try to make examination table into shirodhara table 
👏👏👏👏

[1/28, 6:54 AM] Vaidya B.L.Gaud Sir:

 जिज्ञासु (ज्ञातुमिच्छु:)एवं शुश्रूषु (श्रोतुमिच्छु:), संपूर्ण अध्ययन अध्यापन शिक्षण चिकित्सा अनुसंधान आदि गुणों से युक्त दक्ष चिकित्सक या असिस्टेंट प्रोफेसर ऋषिक, एसोसिएट प्रोफेसर ऋषिपुत्र और उसके आगे तो सभी ऋषि हैं जो अलग-अलग प्रकार के संबोधनों को प्राप्त करने में सक्षम होते हैं |

[1/28, 7:08 AM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir: 

*सादर प्रणाम आदरणीय श्री गुरुदेव* 🌷💐🌹
*भगवान आत्रेय का स्थान अलग है ?*

[1/28, 7:15 AM] Vaidya B.L.Gaud Sir: 

अगले महीने लेख दूंगा जिनमें इन सभी का यथासंभव विश्लेषण करने का प्रयत्न करूंगा। प्रश्न अनेक प्रकार के हो सकते हैं इनमें कुछ उत्तरित होते हैं एवं कुछ सर्वदा अनुत्तरित रह जाते हैं फिर भी उत्तरित का स्वरूप आधिक्येन व्यपदिष्ट हों ऐसा प्रयास करूंगा !

[1/28, 7:21 AM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir: 

गुरु जी, चरक संहिता में वार्योविदो राजर्षि: कहा गया है, नाम के पश्चात् राजर्षि शब्द का उल्लेख है, जबकि अनुवाद में राजर्षि वार्योविद‌ है, भाषा भेद से ऐसा है ? या कुछ अलग कारण है ? 
एक जिज्ञासा.. 🙏🙏

[1/28, 7:22 AM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir: 

प्रतिक्षा रहेगी 🙏🙏

[1/28, 7:29 AM] Vaidya B.L.Gaud Sir: 

ओझेति नामत:ख्यात: सत्यनिष्ठ: जितेन्द्रिय:।
नियमान्नारस्य प्राप्त्यर्थं  यात्यायाति सर्वदा।।
नारस्य का तात्पर्य है ज्ञानस्य ।

[1/28, 7:30 AM] Vaidya B.L.Gaud Sir: 

इसमें आपके प्रश्न का उत्तर है ढूंढ लीजिए !

[1/28, 7:31 AM] Vaidya B.L.Gaud Sir: 

आशीर्वाद

[1/28, 7:31 AM] Vaidya Sanjay P. Chhajed Sir Mumbai:

 🙏🙏🙏

[1/28, 7:31 AM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir: 

आचार्य संजय जी , नमस्कार..
संस्कृत और हिंदी भाषा  में आदरणीय श्री गौड गुरु जी, हिंदी भाषा में वैद्यराज सुभाष शर्मा जी एवं अंग्रेजी भाषा में डॉ रघुराम जी की विशेषज्ञता देखने को मिलती है, एक श्रृखंलाबद्ध लेखन उच्च कोटि के ज्ञान को अभिलक्षित करता है.
श्रद्धेय डॉ दीप नारायण पाण्डेय जी की लेखन शैली का जबाब ही नहीं .. हम सभी का दायित्व है की हम भी उपरोक्त महान पुरुषो के कदम पर चलें..

[1/28, 7:33 AM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir: 

*जी , गुरु जी, उत्तर मिल गया* .
*आपका आशीर्वाद हमारे लिये बहुमूल्य है* 🙏🙏

[1/28, 7:37 AM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir: 

*काय सम्प्रदाय एक ऐसे मुकाम पर पहुंचने वाला है जहाँ सिर्फ ज्ञान देवता का निवास होगा*

[1/28, 7:50 AM] Vaidya Sanjay P. Chhajed Sir Mumbai: 

भाषा से भी अधिक महत्वपूर्ण है विचारो को शृंखला बध्द तरीकेसे व्यक्त करना
जैसे सुभाष सर का संप्राप्ती विचार एवं विघटन

आप श्री द्वारा आधुनिक वैद्यक के संग  चलनेवाला साथमे ग्रंथोक्त संदर्भोका सहज फ्लोचार्ट

गुरुवर गौड सर का शुद्ध भाषामे सहजता से बताये ग्रंथ विचार 

पवनजी, रुतुराजजी, विवेकजी,  भावेशजी जैसे अनेको द्वारा साझा कीये रुग्णानुभव आदी

वैसे ही रघुरामजी द्वारा अंग्रेजी मे दृश्यमान शब्दचित्र 

दिप सर द्वारा दिये गये अभ्यास पूर्ण लेख

और भी अनेक अन्नुलिखीत महानुभावो द्वारा कीये पोस्ट के कारण  ही *कायसम्प्रदाय* विद्यापीठ से भी बेहतर ज्ञानविवर्धन केंद्र बना है.
हम जैसे अनेक भुखे नोन अकेडेमीक लोगो के लीये रोजाना की आदत बन गये है.
सोनीजी ईस हेतु हम सभी आपके सदा ऋणी रहेंगे.

[1/28, 8:19 AM] Vd. V. B. Pandey Basti(U.P.):

 सही आकलन गुरूवर मेरी समझ से जो young Graduates है उनके लिए तो मुंह मांगा वरदान ।

[1/28, 8:47 AM] Vaidya Ashok Rathod Oman: 

Suprabhatam to all Guruvarya 🙏🙏🌹🌹🌹 Thank you so much once again for paying attention to me at late hours respected Yuva Rishi ji. Aptly Said Kushtha is finally a Kushtha only. But I like the wisdom of charakacharya always when he mentions always about the bheda of vyaadhi prakara kahich are depending on tar-tama bhava. He never limits the types/numbers of diseases. He always offers freedom to the Vaidya to decide on his own as you rightly mentioned at the end that I should the master of the case since I am going to handle it. Thank you once again for your precious time and insights you passed on. 🙏🙏🙏🌹🌹🌹

[1/28, 8:48 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi: 

*सुप्रभात, सप्रेम सादर नमन - ओझा सर एवं सभी विद्वतजनों को * 🌹🌺💐🙏

[1/28, 8:49 AM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir: 

*शुभ प्रभात वैद्यराज सुभाष शर्मा जी एवं आचार्य गण नमो नमः ॐ नमः शिवाय*
🙏🙏🌹🌷💐🙏🙏

[1/28, 8:52 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:

 *सादर प्रणाम गुरूश्रेष्ठ - ओझा सर के सभी गुणों को सूत्रबद्ध कर दिया आपने* 🙏🙏🙏🙏🙏

[1/28, 9:00 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi: 

*चरक संहिता सूत्र स्थान 30 अध्याय और कुल 1952 सूत्र हैं। संपूर्ण चरक में वर्णित विषय चार प्रकार के सूत्रों में कही है।

 1 गुरू सूत्र - शास्त्र परंपरा का ज्ञान जो परंपरा गत चला आ रहा है। 

2 शिष्य सूत्र - अगर गुरू ने कुछ कहा और शिष्य को वो स्पष्ट नही हुआ या संतुष्टि नही मिली तो उस विषय को पुन: विस्तार से विभिन्न उद्धरणों और तर्क से स्पष्ट करना।

 3 प्रतिसंस्कर्तरसूत्र - जैसे अग्निवेश संहिता को चरक ने संशोधन और परिवर्तन कर के लिखा। 

4 एकीय सूत्र - किसी विषय को प्रमाणित करने के लिये या उसके समर्थन हेतु किसी अन्य विद्वान या आचार्य के व्यक्तव्यों का उदाहरण प्रमाण रूप में देना।*

*आपका आगमन और लेखन द्वारा ज्ञान रूपी प्रसाद हमें उसी युग से पुन: श्रंखलाबद्ध कर देता है जिस काल का विवेचन चरक में है, आपसे प्रार्थना है कि यथासंभव काय सम्प्रदाय में यही सहयोग बनाये रखिये क्योंकि आप सभी के लिये देव तुल्य हैं।जो ज्ञान यहां प्राप्त होता है उसका चिंतन मात्र कल्पनाओं में होता था और यहां यथार्थ स्वरूप देखने को मिलता है।*

[1/28, 9:03 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi: 

*आयुर्वेद की ज्ञान गंगा का अपना अलग ही आनंद है सर, सत्व गुण बहुल, यहां सभी को मानसिक आनंद, ऊर्जा और शान्ति मिलती है। अधिक से अधिक लोग शास्त्रों का मंथन करे, उस पर चिंतन और कार्य कर के यहां प्रकट करे और मौन स्वरूप से बाहर आ जायें तो इस ज्ञान की वृद्धि ही होगी।*



**********************************************************************************************************************************************************************
Above case presentation & follow-up discussion held in 'Kaysampraday" a Famous WhatsApp group  of  well known Vaidyas from all over the India. 




Compiled & Uploaded by

Vd. Rituraj Verma
B. A. M. S.
ShrDadaji Ayurveda & Panchakarma Center,
Khandawa, M.P., India.
Mobile No.:-
 +91 9669793990,
+91 9617617746

Edited by

Dr.Surendra A. Soni
M.D., PhD (KC) 
Professor & Head
P.G. DEPT. OF KAYACHIKITSA
Govt. Akhandanand Ayurveda College, Ahmedabad, GUJARAT, India.
Email: surendraasoni@gmail.com
Mobile No. +91 9408441150




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