'CLINICAL AYURVEDA' Part-10; Case presentation - श्वसनक ज्वर (Pneumonia - CORADS 5) by Vaidyaraja Subhash Sharma
[2/12, 1:25 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*क्लिनिकल आयुर्वेद- भाग 10
Case presentation- श्वसनक ज्वर
(pneumonia - CORADS 5),
परमाणुवाद एवं शरीर अव्यव निर्माण।*
*रूग्णा/63 वर्षीया / house wife*
*प्रमुख वेदना -
ज्वर,
कष्ट सहित श्वास,
अन्तर्गल प्रदेश में कंडू अनुभव हो कर
निरंतर कास के वेग और
दो चार बार किंचित रक्त मिश्रित कफ,
वक्ष,पार्श्व एवं पृष्ठ में जकड़न युक्त पीड़ा,
दौर्बल्य,
सर्वांग शरीर अंगमर्द,
तीव्र कास के साथ कुछ बिंदु मूत्र निष्कासन*
*History of present illness -
वर्तमान रूग्ण स्थिति से दो मास पूर्व रूग्णा की संधिवात रोग हेतु हमारे यहीं से चिकित्सा चल रही थी। दिसंबर के द्वितीय सप्ताह में रूग्णा को नासा स्राव, ज्वर 103 डिग्री तक आरंभ हुआ, अनेक allopathic antibiotics से इसे allergy है अत: हमने सुदर्शन घन वटी, त्रिभुवनकीर्ति, संजीवनी वटी, तालीसादि चूर्ण आदि की व्यवस्था की, ज्वर तो 99 डिग्री तक पांचवे दिन आ गया लगा कि संक्रमण अधिक है जिस से कास और श्वास कृच्छता की वृद्धि हो रही थी। समीप ही निजी अस्पताल में दिखाया तो covid 19 test negative आया और 20-12-20 को HRCT की report में multifocal area patchy, subpleural ground glass opacities, organizing consolidation आदि मिला।*
[2/12, 1:25 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*चिकित्सा 35 दिन दी गई जिसके बाद report सामान्य मिली और रूग्णा भी रोगमुक्त हो चुकी थी।* 👇🏿
[2/12, 1:25 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*History of past illness-
स्थौल्य, विबंध, जानु, कटि एवं ग्रीवा शूल कभी कभी होता था जो शारीरिक व्यायाम और औषध से सामान्य हो जाता था।*
*covid 19 काल में चिकित्सा online चल रही थी और रोगी को प्रत्यक्ष ना देखना भी अभी तक उचित परिणाम ना मिलने का कारण था, modern में चिकित्सक ने जो antibiotic दी उस से पहली मात्रा में ही रूग्णा को allergy हो गई तो सम्पूर्ण चिकित्सा आयुर्वेदीय लेने का ही निर्णय लिया गया जब तक कोई आपात्कालीन स्थिति ना आ जाये।*
*'लाक्षारसाभं य: ष्ठीवेद् रक्तं श्वासज्वरार्दित:,
स्त्यान फुफ्फुसमूलस्य तस्य श्वसनको ज्वर: ' ।
सिद्धान्त निदानकार इसे ज्वर की तीव्रता, लाक्षा रस आभा युक्त रक्त मिश्रित कफ, फुफ्फुस मूल स्थूल हो हो जाये तो उसे श्वसनक ज्वर कहते हैं। इसे उपरोक्त तीनों लक्षणों युक्त हम श्वसनक सन्निपात भी कह सकते हैं।पीड़ित स्थान पर अंगुलि से प्रतिघात करने पर
'अंगुल्या प्रतिघाते च पाषाणप्रतिघातोत्थ वद् ध्वनि' पाषाण पर प्रतिघात (percussion) वत ध्वनि मिलती है।
'वायुकोषाणामवरोधाद् व्रणशोथज: श्वसनयन्त्र्क्रमणान्च श्वसनकसंज्ञानिष्पत्ति:'
जो वहां स्थित वायु कोषों में अवरोध और व्रणशोथ से मिलती है, श्वास की ध्वनि गीली अर्थात moist युक्त प्रतीत होती है जो फुफ्फुस में अति द्रव के कारण होता है ।*
*प्राण शब्द में प्र उपसर्ग और अन् धातु हो कर प्राणयतीति प्राण: बना है अर्थात जो श्वास क्रिया का निमित्त हो उसे वायु प्राण कहते हैं, पाणिनि ने श्वस और अन् धातु का अर्थ समान माना है जिसमें श्वास लेना और त्यागना।*
*'शरीरावयवास्तु परमाणुभेदेनापरिसङ्ख्येया भवन्ति, अतिबहुत्वादतिसौक्ष्म्यादतीन्द्रियत्वाच्, तेषां संयोग विभागे परमाणूनां कारणं वायुः कर्मस्वभावश्च'
च शा 7/17
पूर्व जन्मों के कर्मों की प्रेरणा से वायु इन शरीर परमाणुओं का संयोग करता है जिनसे यह शरीर के अव्यव बने हैं और इसी से अव्यवों का निर्माण हो कर शरीर की रचना का निर्माण होता है । वायु जब संयोग करता है जीवन है और मृत्यु के कारणभूत कर्मों से प्रेरित वायु जब इन अतीन्द्रिय और अगणित परमाणुओं का विभाग कर देता है तो शरीर की मृत्यु हो जाती है।यह परमाणु अतिसूक्ष्म, इन्द्रियातीत एवं संख्या में अत्यधिक होते हैं जिनकी गणना नही की जा सकती। यहां यह वायु हमेशा इन परमाणुओं का संयोग या विभाग नही करता अपितु जब संयोग अर्थात जोड़ने वाले कर्म से वायु प्रेरणा लेता है तो यह शरीर एवं अव्यवों का निर्माण करता है और जब कर्म विच्छेद करने वाले होंगे तो यह विनाशरूपी कार्य परमाणुओं का करेगा। यह शरीर कहने को तो अनेक अव्यवों से निर्मित है फिर भी संग या मोह के कारण एकत्व या एक संख्या के रूप में अर्थात सामने एक रोगी खड़ा है ऐसा माना जाता है पर वस्तुत: ऐसा है नही। ऐसा इसलिये कि
'शरीरसंख्यां यो वेद सर्वावयवशो भिषक्'
च शा 7/19
जो वैद्य सारे अव्यवों के साथ शरीर संख्या को जानता है वह
'तदज्ञाननिमित्तेन स मोहेन न युज्यते'
च शा 7/19
वैद्य अज्ञान के कारण से उत्पन्न मोह से प्रभावित नही होता।*
[2/12, 1:25 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*यह सूत्र चिकित्सा में हमें कहां ले जा रहा है कि सभी अव्यवों के ज्ञान की सूक्ष्मता अर्थात उन्हे परमाणु स्तर पर जानना। पंचसूक्ष्मभूत, दिक् आत्मा मन और काल ये कारण भूत द्रव्य हैं ये सब परमाणु हैं। द्रव्य का सब से सूक्ष्म भाग जिसका विभाजन ना हो सके वह परमाणु है। सभी द्रव्यों का आरंभ करवे वाले उत्पादक परमाणु पृथक पृथक हैं यदि सब का परमाणु एक ही होता तो तो किसी चीज का विनाश नही होता, विभाजन नही होता और विभाजन वहीं होगा जहां जो द्रव्य जुड़े थे और पृथक हो गये। सत्व, रज और तम ये तीन भी अलग अलग परमाणु स्वरूप हैं। यह सब परमाणु नित्य हैं और इनका विभाजन नही किया जा सकता, जब दो परमाणु मिलते हैं तो इसे द्वयणुक कहते हैं और अणु भी यह भी चक्षुग्राह्य नही है पर पृथकता भाव के कारण अनित्य है और परमाणु नित्य होता है। जब तीन अलग परमाणु मिलेंगे तो त्रसरेणु कहते है यह नेत्रों से देखा जा सकता है जैसे आकाश परमाणु सब से विशाल, उस से वायु मिला दो परमाणु बने दोनो को हम देख नही सकते फिर अग्नि का परमाणु मिला तो त्रयणुक या त्रसरेणु बना दिसे हम देख सकते हैं इसी प्रकार अन्यों को आप समझ सकते हैं।*
*इस रूग्णा में रोग फुफ्फुस गत है तो फुफ्फुस के परमाणु अलग है, बाहर से शरीर एक दिख रहा है पर अव्यवों के परमाणु पृथक पृथक है जैसे वृक्क दुष्टि होने पर वृक्क की कार्य क्षमता हो कर संकोचन हो रहा है धीरे धीरे वृक्क का नाश हो रहा है पर अन्य अंग सुरक्षित है तो इसका अभिप्राय वृक्क के परमाणुओं का विभाजन हो रहा है, इस श्वसन रोगी की रूग्णा में रोग का हेतु आगंतुक है जिसके विषाणुओं ने दोषों को कुपित किया और स्थानसंश्रय फुफ्फुस में लिया तो वह फुफ्फुस के परमाणुओं का विभाजन ना कर हमें इस तल पर जाना पड़ेगा।*
*प्राण वात मात्र ऑक्सीजन तक सीमित नही है इसे ध्यान से देखें
'तत्र प्राणो मूर्ध्न्यवस्थितः कण्ठोरश्चरोबुद्धीन्द्रिय हृदयमनोधमनीधारणष्ठीवनक्षवथूद्गारप्रश्वासोच्छ्वासान्नप्रवेशादिक्रियः'
अ स सू 20/6
शिर, मूर्धा (मस्तिष्क), उर:, फुफ्फुस, श्वास नलिका, ह्रदय, कर्ण, जिव्हा, अक्षि, नासिका, मुख, अन्ननलिका, कंठ तक इसका कार्य क्षेत्र है और इसके कर्म देखें तो बुद्धिन्द्रिय, मनोधारण, श्वास, देह धारण, ह्रदय धारण, क्षवथु, ष्ठीवन, आहारादि कर्म, अन्न प्रवेश, उद्गार आदि से इसका कार्य क्षेत्र बहुत व्यापक है।*
*हमारा उद्देश्य अब यह भी था कि रूग्णा को कृत्रिम रूप में आक्सीजन जो कि प्राण वायु का एक भाग है उसकी आवश्यकता ना पड़े क्योंकि अनेक रोगी जो ventilator पर निर्भर हो जाते हैं उनमें एक risk वेंटीलेटर एसोशिएटिड निमोनिया (VAP) का भी रहता है ।*
*श्वसनक ज्वर का हेतु-
'ज्वर: प्रादुर्भवत्येष जीवाणुविष सम्भव:' है, यह ज्वर जीवाणु विष के माध्यम से रोगी को पीड़ित करता है। इस विष के द्वारा कुपित दोष श्वसन प्रणाली को दूषित कर इसके मूल भाग को ठोस और रक्तपूर्ण बना देते हैं जिस से श्वास कृच्छता एवं ज्वर उत्पन्न होता है।
इसके पूर्वरूप में
'पार्श्वार्ति' पार्श्व में पीड़ा,
श्वासकासो - श्वास एवं कास ,
क्वचित् कम्पोऽवसन्नता- कभी कंपन एवं अत्यधिक दौर्बल्य आदि पूर्वरूप मिलते हैं।*
[2/12, 1:25 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*इसके रूप को देखें तो
'प्राक् प्राय: शीतमत्यर्थं ज्वरस्तीब्रोऽरूचितृषा, पार्श्वशूलमथो कास: श्वासवृद्धि: क्रमेण च।'
अर्थात आरंभिक अवस्था में तीव्र शीत की अनुभूति उसके बाद तीव्र ज्वर,
मुख में स्वाद taste की अनुभूति का नाश,
फुफ्फुस प्रदेश में शूल,
कास और क्रम से श्वास में वृद्धि।
'मोह: प्रलाप: कण्ठकूजनम् ... धमनी युग्मतामेति कोमला स्थूल चंचला'
नाड़ी की गति दुगुनी या कोमल, स्थूल और चंचल हो जाती है।*
*ज्वर की सम्प्राप्ति में जायें तो दोषों में पित्त प्रधान होते हुये भी त्रिदोष कुपित रहते है, दूष्य रस, स्रोतस रसवाही, दुष्टि संग और विमार्ग गमन, अधिष्ठान आमाश्य और प्रसर सर्वशरीर, अग्नि मंद रहती है। यहां ज्वर भी है और श्वास भी है, श्वास रोग पित्तस्थान समुद्भव व्याधि है, इसमें कफ और वात की प्रधानता है और सब से बढ़ी विशेष बात जो दोषों को भी धातु माना गया है जब यह शरीर का धारण करते हैं तो उसका प्रत्यक्ष स्वरूप हमें श्वसनक ज्वर में देखने को मिल रहा है। हमने अनेक रोगियों को ICU में भी जा कर देखा कि रोगी की investigation reports में कोई ऐसी विशिष्ट दुष्टि नही है जिसे हम उस स्तर का धातु क्षय मान ले जिसके कारण रोगी इस अवस्था तक पहुंचा है लेकिन उसे मात्र oxygen (प्राण वायु का एक भाग) की आवश्यकता है जो उसे ventilator से दी जा रही है वहां प्राण वात धातु स्वरूप है जिसने शरीर का धारण कर रखा है। अगर यह प्राण वात प्राकृत स्वरूप में आ जाये और कृत्रिम रूप (artificial) में ऑक्सीजन ना देनी पड़े तो व्यान वात के सहयोग से पंगु पड़े कफ और पित्त में संचार ला देगी और अन्य तीन वायु को भी प्रेरित करेगी।*
*इस प्रकार हमने देखा कि श्वसनक ज्वर में प्राणवात दूष्य है, इसी ने फुफ्फुस गत परमाणुओं का संयोग कर रखा है जिस से जीवन चक्र चल रहा है है और यही परमाणु अन्य शरीरगत परमाणुओं के भी संयोग का आधार बन रहे हैं, धातु स्वरूप है और इसी ने शरीर का धारण कर रखा है, धातु स्वरूप मे प्राण वात का क्षय हो गया है, नाम के अनुरूप प्राणवाही स्रोतस की दुष्टि हो गई है जिसमें संग दोष हो गया है। पर इस सब से अधिक महत्वपूर्ण है दोषों की अंशाश कल्पना जो गुणों पर आधारित है और आप देखेंगे कि जिस विषय को दर्शन का विषय मान कर त्याग दिया जाता है उसी के पंचभोतिक तत्वों से निर्मित गुण किस प्रकार इस प्रकार के कृच्छ साध्य रोगों में प्राणरक्षक और जीवनदायी बन जाते है।
कफ के गुरू - पृथ्वी + जल गुण, स्निग्ध गुण - जल महाभूत, जल+पृथ्वी (सुश्रुत) अनुसार और पिच्छिल गुण - जल की वृद्धि हो गई है।
पित्त के सर गुण - जल महाभूत और द्रव गुण - यह भी जल महाभूत से उत्पन्न है।
वात के चल गुण का यहां एक देशे वृद्धि अन्य देशे क्षय सूत्र में बहुत महत्व प्रतीत हो रहा है जैसे पित्त अग्निस्वरूप हो कर आमाश्य में क्षय और सर्व शरीर गत वृद्धि वैसे ही जैसे प्रो.बनवारी लाल गौड़ जी की चक्रपाणि एषणा टीका पृष्ठ 576 देखें 'चल: का तात्पर्य हैं संक्रमण वान अर्थात गतिशील या प्रसरण शील होना यहां वात के चल गुण का फुफ्फुसों में निरंतर क्षय हो रहा है और अनेक स्रोतस में वृद्धि हो कर अनेक मानसिक और शारीरिक क्रियाओं को अति सक्रिय बना दिया, वात का शीत गुण यहां वृद्ध है जो कफ के शीत गुण में सहयोगी बन गया है और अनेक बार तो प्राण के आवरण की स्थिति उत्पन्न हो रही है।*
*यहां हमें वात के रूक्ष, लघु और सूक्ष्म गुणों को वायु+आकाश+ अग्नि महाभूतो के माध्यम से लाना है, पित्त के उष्ण - अग्नि महाभूत, तीक्ष्ण - अग्नि महाभूत, कटु - वायु+अग्नि, वायु और आकाश प्रधान तिक्त रस इस सम्प्राप्ति के विघटन में सहयोग करेंगे।*
[2/12, 1:25 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*सम्प्राप्ति -*
*त्रिदोषज - जब ज्वर था तो पित्त, कफ तथा वात प्रधान और ज्वर मुक्ति के पश्चात कफ-वात प्रधान*
*(अंशाश कल्पना इस बार हम इसलिये नही लिख रहे कि तब हम रोगी को प्रत्यक्ष नही देख रहे थे, उसकी नाड़ी नही देखी और ना ही परीक्षण किया मात्र वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग और investgations के आधार पर सम्प्राप्ति घटक बनाये तथा अंशाश कल्पना का अनुमान ले कर चले)*
*दूष्य - रस धातु*
*स्रोतस - रस-प्राणवह स्रोतस*
*दुष्टि - संग तथा विमार्गगमन।*
*व्याधि अधिष्ठान - प्राण वह स्रोतस*
*चिकित्सा सूत्र - दीपन, पाचन, ज्वर हर, कफवात हर, वातानुलोमन, शमन, रसायन।*
*चरक के इस सूत्र को देखिये,
प्रमेह के दूष्य
'कफ: सपित्त: पवनश्च दोषा मेदोऽस्त्र शुक्राम्बुवसालसीका:,
मज्जा रसौज: पिशितं च दूष्या: प्रमेहिणां विंशतिरेव मेहा।'
च चि 6/8
यहां बताया गया है कि प्रमेह के कफ, पित्त, वात तीन दोष हैं और दूष्यों का अंत मज्जा, रस, ओज और मांस से किया है। यहां रसौज को एकान्त रूप में लिया है कि रस और ओज एक सदृश हैं। कफ, रस और ओज एक ही वर्ग का प्रतिनिधित्व करती हैं और हमें इस रूग्णा रस और ओज दोनों की रक्षा करनी है और रूग्णा को आहार में solid आहार के बदले द्रव आहार पर रखना है पर इस तरह कि कफ वृद्धि ना हो तो हम औषध सिद्ध या प्रक्षेप युक्त तरल या द्रव आहार देंगे।*
*प्रथम सात दिन -*
*1.
श्वास कुठार रस 1 गोली
+ लक्ष्मी विलास नारदीय 1 गोली
+ सितोपलादि 3 gm
+ श्रंगराभ्र 100 mg
+ अभ्रक भस्म 300 mg
+ टंकण भस्म 300 mg
- दिन में तीन बार मधु से *
*2.
संजीवनी वटी 2-2 गोली दो बार*
*3.
आमलकी यष्टि मधु - 1-1 ग्राम दो बार*
*4.
सुदर्शन घन वटी 2-2 गोली*
*5.
सीरप श्वासामृतम 1-1 tsp दिन में तीन बार*
*6.
पांच तुलसी पत्र, तीन काली मरिच और एक लौंग एक कप पानी में उबाल कर चौथाई रहने पर छान कर दिन में दो बार, अगर ज्वर हो तो मरिच पांच कर दीजिये 20 मिनट बाद स्वेद ला कर यह ज्वर कम करना आरंभ कर देता है, आप अपने रोगियों पर प्रयोग कर के देखिये कभी।*
*7.
एक कप दूध में एक छुहारा (dry date), 3 पिप्पली और तीन पत्ती केसर की उबाल कर छान कर पीने को दी गई।*
*8.
500 ml जल के अंदर शुंठि, जीरक 5-5 gm लगभग और 3 लवंग उबालकर छानकर थोड़ा थोड़ा दिन में कई बार पीने के लिये।*
*9.
रोगी के परिजनों को गरम मसाला बनाने का फॉर्मूला बताया गया जिस में जीरक, धान्यक, पिप्पली, लवंग, जायफल, तेजपत्ता, सूक्ष्म एला अलग अलग मात्रानुसार होता है। यह प्रक्षेप के रूप में चुटकी भर द्रव आहार में प्रयोग करने के लिये कहा।*
*औषधियां अधिक थी और उष्ण भी अत: अगर रक्त मल, छर्दि, या रक्तष्ठीवन हो तो हमसे संपर्क तुरंत कर लेना ऐसा कहा गया, पर ईश्वर कृपा से ज्वर मुक्ति भी हो गई और दो मात्रा से ही लाभ मिलना आरंभ हो गया।*
*संजीवनी वटी से विबंध हो गया तो फिर भी सात दिन जारी रखी मगर पांचवे दिन रात्रि में 10 ml एरंड तैल दिया जिस से दोपहर में अल्प रूक्ष मल प्रवृत्ति हुई।*
*सात दिन बाद संजीवनी वटी, सुदर्शन घन वटी और श्वास कुठार बंद कर दिया और आमलकी यष्टि मधु 2-2 गोली की गई।*
*आहार में रोटी नही दी प्रथम सात दिन मूंग छिलका, मूंग धुली, धुली मसूर और साबुत मसूर दाल पतला या किंचित thick सूप, बहुत द्रव रूप में कृशरा उपरोक्त गर्म मसाला युक्त, गौदुग्ध दिन में दो बार छुहारा पीपल केसर युक्त इसी प्रकार देने से शरीर में लघुता भी आई, क्षुधा प्रवृत्ति होने लगी और उदर गुरूता कम होने से श्वास कृच्छता में बहुत लाभ मिल चुका था।*
[2/12, 1:25 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*सात दिन बाद संजीवनी वटी तो बंद कर दी पर फुफ्फुसौं के लिये हमें भल्लातक अवश्य देना था तो cap serenkottai 1 bd दिया गया और अगले सात दिन बाद वो भी बंद कर के भल्लातक 65 mg, गुग्गलु 100 mg और शुद्ध कुचला 30 mg दिन में दो बार कर दिया गया। सात दिन बाद कृशरा, नमकीन दलिया, सब्जियां कम मात्रा में आरंभ कर के 10 वें दिन से पतली रोटी आरंभ कर दी गई।*
*दही, पनीर, उड़द, चने, राजमा, अरबी, भिन्डी आदि का पूर्ण त्याग किया गया। कुल चिकित्सा लगभग 35 दिन चली, बाद में मात्र सितोपलादि ही दिया गया और पूर्ण लाभ मिल गया जिसमें investigations की reports भी ठीक मिली।*
[2/12, 3:06 AM] Shekhar Goyal Sir Canada:
🙏🙏🌹💐🕉️🕉️
[2/12, 3:24 AM] Vd Raghuram Shastri, Banguluru:
*Ati Adbhut Guruji !
This is not case presentation - THIS IS PHILOSOPHY OF DISEASE FORMATION, only a Maharshi like your kind self can present a case in this way. The way you explained not only the case, but also plugged in the deeper and subtle understanding of a body part / parts in relation to the gross physical body, the impact of pathology occuring in the cells of one organ and its impact on the other organs and the body as a whole is exemplary and a deeper philosophy. In the days wherein e-medicines and quick diagnosis, handy prescriptions and quick disposal of patients is a trend, it takes a lot of EFFORT AND EMOTION in handling the patients in the way you do
sir...
It is a TAPAS, not just practice. Hats off Guruji. The elaboration of PRANA, prana vata and its karya kshetra and its various dimensions in this perspective is awesome. The cellular theory, the paramanu and phuppusa paramanu concept, taking prana vata as dushya and the way you establish the pathway of diagnosis and treatment plan-up, the way you script the story and narration, and all LOGICAL aspects to prove your methodology and approach to explain WHY I DID WHAT I DID is phenomenal and divine. And what to tell about the samprapti, vikalpa, the treatment line up, step ladder strategies in terms of medicines, combinations, diet, lifestyle changes and everything which occupies their places where they need to be in the most comprehensive way...
YOU ARE NOT TREATING THE PATIENTS GURUJI, YOU ARE SERVING THEM...AND HOW BLESSED THEY ARE! Respects to the GOD IN YOU sir! Love you Guruji!*
💐💐🙏🙏😍😍❤️🙏💐🙏
[2/12, 6:42 AM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar:
प्रणाम गुरु जी
रोगी को देखने का इतना व्यापक तरीका अद्भुत है ।
🙏🙏🌹🙏🌹🙏
[2/12, 6:47 AM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar:
अन्शांश से रोग को समझना ।
🌹💐🌹💐🌹
[2/12, 7:05 AM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
*शुभ प्रभात वैद्यराज सुभाष शर्मा जी, वैद्यराज पवन जी, वैद्यराज रघुराम जी, आचार्य श्रेष्ठ गण नमो नमः, ॐ नमः शिवाय* 🙏🙏
[2/12, 7:11 AM] Prof.Satyendra Narayan Ojha Sir:
सम्यक् सम्प्राप्ति व्यापार विवेचन. क्रियात्मक से विकृति पक्ष तक एक श्रृंखलाबद्ध अद्वितीय प्रस्तुतीकरण. प्राण वायु के संदर्भ में वैज्ञानिक दृष्टिकोण और तद्नुसार चिकित्सा व्यवस्था, संयोग एवं विभाग का चिकित्सकीय मूल्यांकन.
अद्भूत विश्लेषण.. साधुवाद.. पढकर मजा आ गया.. आभार..
🙏🙏🌷💐🌹🙏🙏
[2/12, 7:15 AM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar:
👌👌👌🙏🙏🙏👌🙏🙏
अद्भुत गुरु जी।
आहार के बारे मे जो आप व्यवस्था करते हैं वो हमेशा follow करने लायक रहती है।
मैने प्रयोग मे ये पाया है के जब श्वासकुठार व संजीवनी को एक साथ देता हूँ तो रोगी को कुछ बैचनी व घबराहट जैसी शिकायत आ जाती है, ये अच्छी बात रही के इस रुग्णा मे ऐसा कुछ नही हुआ
,,even अकेला श्वासकुठार देने पर भी बहुत से रोगी palpitation जैसी शिकायत बताते है, पर आपने बताया के इसे सिर्फ 7 दिन ही दिया गया 🙏🙏
,,सिरप श्वासअमृतं 10 ml व सिरप bronchorid 20 ml दिन मे 3 से 4 बार गर्म पाणी मे मिला कर श्वास के attack को या एलर्जी के attack को रोकने मे अति सहायक रहता है।
,,तुलसी पत्र काली मिर्च लौंग,,,नोट कर लिया
,,गुरु जी इस केस मे दूध मे छुहारा पिप्पली केसर दाल कर लेने से क्या क्या लाभ है ?
,,इस केस मे आपने आमलकी यष्टिमधु का प्रयोग करवाया।
इसे और समझना चहता हूँ
,,,सर वो गर्म मसाला के घटको की मात्रा पर भी ज्ञान दिजीये
🙏🌹💐🙏🌹🙏💐🙏🌹💐🙏
[2/12, 7:16 AM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar:
🙏🌹💐🙏🌹💐
[2/12, 7:18 AM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
Good morning to you Dr Raghuram ji.
Your commentary on Vaidyaraja's case record format is super, very clinical description considering all aspects concern with underlying pathology.. really, Ayurveda will be enriched after going through such efforts in treatment plan with theoretical description.. diagnosis and treatment plan for individual is specified in this case by Vaidyaraja Subhash Sharma ji, it's his beauty.. great going on..
thanks for your beautiful interpretation..🌷💐🌹☺️☺️❤️❤️
[2/12, 7:24 AM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
डॉ पवन जी !
इस तरह के दुष्परिणाम यदि औषधियों के मिलते हैं तो औषधि निर्मिती के गुणवत्ता पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए. सितोपलादि आमलकी सदृश औषधियो के साथ देने पर श्वासकुठार रस संजीवनी वटी से दुष्परिणाम नहीं मिलना चाहिए, यदि फिर भी मिल रहा है तो वत्सनाभ की शुद्धता पर प्रश्न चिन्ह है ।
[2/12, 7:26 AM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
*दूध के साथ छूहारा पिप्पली एवं केशर से तर्पण, स्रोतोशोधन, रक्तप्रसादन तथा पिप्पली देने से दूध का सम्यक् पाचन होना अभिष्ट है*
[2/12, 7:29 AM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
पिप्पली के प्रयोग से अन्य औषधियो की bioavailability भी बढ जाती है ।
[2/12, 7:31 AM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
*प्रक्षेप द्रव्य प्रयोग औषधि योग के पाचनार्थ और bioavailability के लिये होता है*
[2/12, 7:34 AM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
श्वासकुठारादि मिश्रण में वैद्यराज सुभाष शर्मा जी ने टंकण दिया है और हमेशा देते हैं जिससे श्वासकुठार संजीवनी वटी के दुष्परिणाम नहीं मिलते हैं
[2/12, 7:44 AM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar:
जी सर 🙏🙏🙏
[2/12, 7:45 AM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar:
जी सर
इसीलिए संजीवनी मे भी टंकण है।
🙏🙏😊🙏🙏
[2/12, 8:04 AM] +91 77989 61429:
वत्सनाभ युक्त कल्प मे अगर टंकन milaya जाय तो वत्सनाभ से होने वाला अवसाद कम होता है ।
[2/12, 8:05 AM] +91 77989 61429:
गुणे शास्त्री की औषधी गुण विज्ञान मे संदर्भ मिला ।
[2/12, 8:16 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*सुप्रभात एवं सादर नमन प्रो. ओझा सर एवं समस्त काय सम्प्रदाय विद्वानों को।* 🌺💐🌹🙏
[2/12, 9:02 AM] Vd.Divyesh Desai Surat:
🙏🏻🙏🏻प्रणाम गुरुवर्य !
आप जब केस प्रेजेंट करते हो तो मानो रुग्ण हमारे सामने खड़ा हो जाता है, ओर हम गुणों का तारतम्य, महाभूतों का कार्य ओर किस ऑर्गन में क्या changes आता है इसका चित्र हमारे मानसपटल में आने लगता है, ओर आप सम्प्राप्ति विघटन करने के लिए चिकित्सा का वर्णन करते हो तो हरेक अंग में विकृति से प्राकृत होने तक का बदलाव जैसे प्रत्यक्ष देख रहे हो ऐसा महसूस होता है, जठराग्नि, धातवाग्नि, भुताग्नि का कार्य भी थोड़ा थोड़ा समझ में आता है, फिर चिकित्सा के लिये औषधि का चयन करते हो तो ऐसा लगता है कि ये औषधि के बारे में हम भी जानते है, किन्तु ऐसा ही केस हमारे सामने आता है तो मानो की हमे
*IMPLEMENT PARALYSIS* हो जाता है, ओर आप जो रुग्ण के शरीर और मन के अंतः तक जा सकते हो, ऐसा हम नही कर पाते है, आप के ओर नए नए केस से आप के साथ साथ हम सबको भी रुग्ण रूपी देश मे आपकी गाइड लाइन से हमे भी यात्रा करने का मौका मिल जाता है।।
🙏🏻🙏🏻🙏🏻कोटि कोटि प्रणाम💐💐💐🌺🌺🌺👌🏽👌🏽👌🏽
[2/12, 10:04 AM] Dr.Radheshyam Soni Delhi:
प्रातः कालीन वंदन आचार्यवर🙏🙏🌹🌹
रोग, रोगी एवं चिकित्सा के सभी अंगोपांगों का सूक्ष्म विवेचन है आपके इस प्रस्तुति करण में। हार्दिक आभार😊🌹🌹
परमाणुवाद की व्याख्या में त्रसरेणु की उत्पत्ति में तीसरा परमाणु अग्नि का (जो रूप तन्मात्रा का द्योतक है,) उल्लेख मेरे लिये अत्यंत प्रकाशकारक है। अब तक मैं त्रसरेणु से कोई भी 3 परमाणु ही समझता था फिर चाहे वो तीनों एक ही प्रकार के क्यों न हों, और इसी कारण उनके दृश्यमान होने पर उलझन में था। परंतु आपकी इस व्याख्या में रूप तन्मात्रा के प्रवेश ने प्रकाश का कार्य किया।
बहुत बहुत आभार एवं प्रणाम🙏🙏🌹🌹😊
[2/12, 10:04 AM] Prof.Giriraj Sharma Sir:
*अवयव एक रचनात्मक विवेचन*
*सादर प्रणाम आचार्य श्रेष्ठ*
*मानव शरीर का मूल षड भाव है उनमें से सम्पूर्ण शारीरिक अवयव मातृज पितृज भाव से निर्मित है ।*
*भाव से अवयव निर्मित होते है महत्वपूर्ण बात यह है कि मातृज पितृज अवयव या सिर्फ मातृज अंग प्रत्यंग सिर्फ एक अवयव से उतपन्न नही होते जबकि इनकी निर्माण में एक ही भाव से उतपन्न अवयव दो या इससे अधिक अंग प्रत्यंग निर्मित करते है*
1. उदाहरणतः *दो भाव के अवयवों का परस्पर संयोग से एक अंग प्रत्यंग का निर्माण यथा मातृज भाव के मेद अवयव से पितृज भाव सिरा एवं स्नायु का निर्माण,,,*
2. *एक भाव के भिन्न भिन्न अवयवों के संयोग से एक ही अंग य प्रत्यंग का निर्माण - यथा- मातृज भाव से परस्पर अवयव सम्बन्ध ह्रदय एवं यकृत के परिपेक्ष्य में*
*A histological aspect of heart and renal tubles*
*The Squamous Epithelium line form serous pericardium, blood vessels, endocardium (सिरा ह्रदय ) and renal tubles (वृक्क) and some part of internal ear*
*अगर हिस्टोलोजिकल आस्पेक्ट पर अवयव को समझे तो मातृज भाव से उतपन्न (squamous epithelium) ह्रदय एवं वृक्क का निर्माण कर रहा है अर्थात ह्रदय के एवं वृक्क में दोनो में मातृज अवयव उपस्तिथ है*
*कुछ समय पूर्व रसवह स्रोतस मूल ह्रदय एवं शब्द असहिष्णुता पर चर्चा हुई, रसवह स्रोतस शब्द असहिष्णुता का को histological aspect पर समझे तो देखेंगे कि ह्रदय की endothelium and external ear some parts form by same epithelial lining,,,, ह्रदय की एवं शब्द का परस्पर सम्बंध प्रत्यक्ष हो जाता है*
*ऐसे बहुत से उद्धरण है जिनसे हम सोच सकते है कि आचार्य चरक सुश्रुत की अंग प्रत्यंग अवधारणा कितनी वैज्ञानिक है ।*
*Cell को भाव समझे और Tissues को अवयव*
*आचार्य चरक ने यहां भाव से उतपन्न नाम को शरीर लक्षणानि कहा है एवं आचार्य सुश्रुत ने अवयव, न कि अंग प्रत्यंग*
*'शरीरावयवास्तु परमाणुभेदेनापरिसङ्ख्येया भवन्ति, अतिबहुत्वादतिसौक्ष्म्यादतीन्द्रियत्वाच्, तेषां संयोगविभागे परमाणूनां कारणं वायुः कर्मस्वभावश्च'
च शा 7/17*
*यह परमाणु अतिसूक्ष्म, इन्द्रियातीत एवं संख्या में अत्यधिक है शरीरसंख्यां में अत्यधिक है एवं मातृज औऱ पितृज भाव से उतपन्न कोई भी अंग में ये अवयव आपस मे मिलते है ।*
*वेद सर्वावयवशो भिषक्' तदज्ञाननिमित्तेन स मोहेन न युज्यते'
च शा 7/19*
*स्रोतस स्तर, अंग प्रत्यंग स्तर gross aspect है अवयव स्तर Histological aspect है।*
*अवयव स्तर पर ज्ञान होने पर किसी प्रकार का संदेह नही रहता ।*
*We must Re-write, Re-read, Re- interpreted all aspect of अवयव*
*प्रातः स्मरणीय आदरणीय गौड़ गुरु जी एवं आचार्य M Dinkar गुरु जी की प्रेरणा से A Histological aspect of Sushrut Sharira.पर अग्रसर हूँ आपका एवं श्री ओझा जी रघुराम जी का पूर्ण सहयोग एवं स्नेह आशीर्वाद अपेक्षित है ।*
🙏🏼🙏🏼🙏🏼🌹🙏🏼🙏🏼🙏🏼
[2/12, 10:13 AM] Vd.Divyesh Desai Surat:
शायद इस लिए ही श्वासकुठार, त्रिभुवनकीर्ति में टंकण होता ही है, सर
श्वासकुठार:-- पारद, गंधक, मनःशिला, त्रिकटु, वत्सनाभ, टंकण, मरीच
त्रिभुवनकीर्ति:-- हिंगुल, वत्सनाभ, त्रिकटु, टंकण, पिपरिमूल 🙏🏻🙏🏻
[2/12, 10:23 AM] Dr. Radhe shyam Soni Delhi:
विडंग नागरं कृष्णा पथ्यामल विभीतकं।
वचा गुडूची भल्लातं सद्विषम चात्र योजयेत।
नमस्कार पवन सर🙏🙏
ये संजीवनी वटी के घटक द्रव्य हैं जिसमें गोमूत्र की भावना से वटी निर्माण किया जाता है। इसमें टंकण नहीं है।
आप किस ग्रंथाधार की संजीवनी लेते हैं ?
क्या कोई अन्य पाठ है जिसमें संजीवनी वटी में टंकण शामिल है ?🤔
[2/12, 11:22 AM] Vd Raghuram Shastri, Banguluru:
*Very Good morning Guruji🙏💐❤️
Thanks for morning dose of blessings sir !
🙏🙏
Om Namah Shivaya as such induces a volcanic energy and when those words come with top up of your words, Ayurveda looks enriched and inspiration flows in every cell*🙏
[2/12, 11:23 AM] वैद्य नरेश गर्ग:
प्रणाम गुरुवर !🙏🙏
व्याधि के निदान और संप्राप्ति का सूक्ष्म तम ज्ञान दिया गया है। आपके द्वारा औषध और पथ्य की कल्पना उत्तम तरीके से दी जाती है इस केस में भी आपने यह दिखाया है कि इतनी गंभीर व्याधि में भी औषध का चयन और पथ्य व्यवस्था ठीक प्रकार से रखी जाए तो परिणाम मिलना निश्चित है ।
[2/12, 11:24 AM] Vd Raghuram Shastri, Banguluru:
*Good morning Guruji 🙏 💐❤️
You have given lot of thought process to run and figure them out even in the dreams*🙏🙏
[2/12, 11:29 AM] Vd Raghuram Shastri, Banguluru:
*Suprabhatam yet again dear Guruji. Thanks for your good words, encouragement and inspiration🙏🙏💐❤️ Your words will indeed come true sir, bcoz Shubhash Sharma sir, your kind self, and many senior Acharyas in our elite group and even away are putting great efforts to take Ayuto its great heights, that too in its true unadultrated form. This foundation will help build a strong Ayurveda empire which will never be conquered.* 🙏🙏💐❤️
[2/12, 11:34 AM] Dr. Pavan mali Sir, Delhi:
Pranaam Acharya...!
detail elaboration of concept.
🙏🙏
[2/12, 11:55 AM] Vd Raghuram Shastri, Banguluru:
*Giriraj sir, you are unbelievable !
🙏🙏💐❤️
Really a rare and great perspective of AVAYAVA & its differentiation from the other terms like anga, pratyanga etc. The examples you have given about the involvement of same and different bhavas leading to formation of gross anatomical structures and their set up on the basis of matrujadi bhavas is exemplary and worth appreciating sir. The histological link for interpretation of Ayurveda concepts is great. Cell = Bhava, Tissues = Avayava - thought process in an innovative perspective 👏👏👌💐❤️ Avayava star = Histological aspect👌👌Need to run my mind in this perspective to understand the concept you hv given in a new direction*
*And best wishes for your upcoming - A Histological Aspect of Sushruta Sharira - sir. I feel that book would open new doors in understanding concepts of Master Sushruta*
*In short - whatever you have presented here is Ayurveda Embryology and Histology in its best and innovative form*🙏💐
*I am a believer and learner sir. Of course you ll hv blessings from elders. I follow all your posts. And also love them. With you in this sir. Best wishes*💐💐🙏🙏
[2/12, 12:08 PM] Vd. Rangaprasad Bhat (Marma chikitsa) Chennai:
Today's clinical posts of Shubhash bhaiyya ji and Giriraj sir has ensued *Tamaso mA jyotirgamaya* in me.
Thanks to the elite physician and anatomist. 🙏
[2/12, 12:10 PM] Vd.AAkash changole, Amravati:
Bahot bahot dhanyawaad sir....
[2/12, 12:11 PM] Prof.Giriraj Sharma Sir:
🌹🌹🙏🏼🌹🌹
सादर नमन आचार्य श्रेष्ठ !
[2/12, 12:12 PM] Prof.Giriraj Sharma Sir:
सादर नमन आचार्य श्री !
🌹🌹🌹🙏🏼🌹🌹🌹
[2/12, 12:20 PM] Dr.Satish Jaimini, Jaipur:
👍🏻👍🏻👏🏻👏🏻👏🏻सुंदर अति महत्वपूर्ण विचार आचार्य !
[2/12, 12:37 PM] Prof. Lakshmikant Dwivedi Sir:
Agrya varga ke Aushadh and Prashastaushadha sangrah Reffer karain.
Vyadhi nigrah & Prashastaushadha sangrah Reffer karain.
Saath me RasAyasa shuddha siddha processed kAm liya jaaye.👍
[2/12, 12:40 PM] वैद्य नरेश गर्ग:
प्रणाम गुरुजी🙏
सारे औषध द्रव्य साबुत ही मंगवाता हूं और खुद ही उनको प्रोसेस करके प्रयोग में लेते हैं इससे एडल्टरेशन की संभावनाएं कम हो जाती है और जितना प्रयोग में लेना है उतना ही थोड़ा थोड़ा सा तैयार करते रहते हैं !
[2/12, 12:41 PM] Prof. Lakshmikant Dwivedi Sir:
😀🙏🏼 ATI Uttam 🌞 sadhuvaadh Bhavatam Shubhkaamnaayin 👍
[2/12, 12:42 PM] वैद्य नरेश गर्ग:
🙏🙏 आप गुरुजनों का आशीर्वाद इसी प्रकार बना रहे ।
[2/12, 12:55 PM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar: 👌👌👌👌
भाव,,,cells
अवयव,,,tissues
Very interesting.
What could we interpret then by Maatraj Bhaav and Pitraj Bhaav?
The endothelium and the internal lining of the ear are made from same epithium so the effect of heart disease may produce the symptom of shabda ashishunta.
Kya main ye theek samjhaa hoon sir ?
Best wishes for your book. Would like to read the book.
🙏🙏
[2/12, 12:59 PM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar:
नमस्ते राधेश्याम सर !
आप सही कह रहे हैं।
भूल सुधार के लिये बहुत धन्यवाद।
वत्स्नाभ युक्त औषधि मे ज्यादातर टंकण रह्ता है।
🙏🙏
[2/12, 1:01 PM] Prof.Giriraj Sharma Sir:
🌹🙏🏼🌹🙏🏼
सादर नमन आचार्य
रचनात्मक दृष्टिकोण से तो यही है । सिर्फ रचनात्मक अवयव ही महत्वपूर्ण हेतु नही होते है,,,
अन्य कार्य कारण सिद्धान्त
जिसमे मूलतः
स्वभाव ईश्वर काल यदृच्छा नियति तथा ।
परिणामं च मन्यते,,,,,,,,
उनमें सिर्फ स्वभाव एक मात्र है ,,,,
बाकी अन्य कारण भी उतने ही महत्वपूर्ण है,,,
🙏🏼🙏🏼🙏🏼🌹🙏🏼🙏🏼🙏🏼
[2/12, 1:46 PM] Dr. Digvijaysinh Gadhvi sir:
🙏🏻🙏🏻💐💐
[2/12, 1:47 PM] Dr.Satish Jaimini, Jaipur: 🙏🏻🙏🏻🙏🏻
[2/12, 5:47 PM] Prof. Lakshmikant Dwivedi Sir:
Rasaushadhi bhi to trividh hai.
Aapki suci bhejiye to pata chale ki inme kitani rasaushadhi hai.
Kitani Ayurvediya.
[2/12, 5:47 PM] Prof. Lakshmikant Dwivedi Sir:
😀🙏🏼
[2/12, 6:10 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*बहुत बहुत आभार वैद्यश्रेष्ठ एवं युवा ऋषि रघुराम जी, आपका यह स्नेह मेरे लिये बल्य एवं ओजोवर्धक है। ❤️🌹🌺🙏*
[2/12, 6:23 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*शुभ सन्ध्या सर एवं आपका भी ह्रदय से आभारी हूं, आयुर्वेद एक अथाह महासागर है लगता है इस से बाहर ही ना निकलो, लॉकडाऊन काल में प्रो. बनवारी लाल गौड़ सर की एषणा टीका को इस तरह से पढ़ा गया कि आचार्य चक्रपाणि के द्वारा सिद्धान्तों का विशलेषण सरलता से समझ आने लगा और रोगियों को देखने का दृष्टिकोण भी परिवर्तित हो गया।*
*परम आदरणीय गौड़ सर की एषणा टीका मेरा मानना है BAMS में compulsary कर देनी चाहिये जिस से सभी को जिन्हे संस्कृत की चरक कठिन लगती है सरलता से समझ आने लगेगी ।* 🌹❤️🙏
[2/12, 6:25 PM] Vaidya Manu Vats, Punjab:
प्रणाम Sir 🙌🙌.
your case study presentation is like a THESIS.. One can learn not only about this Case rather it gives Value Addition.. Its a Comprehensive Learning of So many concepts whether its Nidaan, Samprapti, Chikitsa sutra etc...
And you always GIVE... Everyone who follows you think you are closer to him or her.. Its a unique eternal character Sir..
Thanks and Regards🙏🙏🌹🌹
[2/12, 6:27 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*नमस्कार पवन जी, दूध में छुहारा, पिप्पली और केसर एक प्रकार से बल्य एवं रसायन कर्म करते है, बहुत वर्षों से इसका प्रयोग परिवार में भी और रोगियों में भी करते हैं यह कास, श्वास में पहली मात्रा में ही परिणाम दे देता है।*
[2/12, 6:30 PM] Vaidya Manu Vats, Punjab:
नमस्ते Sir 🙏..
Your art of Establishing Clinical Anatomy purely on basis of AYURVEDIC Concepts is mind blowing..
Learning a lot from your Concepts.. still remember talking to you on phone about my queries.. Really helps to Establishing the BASE and NEED OF NON CLINICAL ASPECT FOR UNDERSTANDING CLINICAL AYURVEDA ..
Thanks and Regards GIRIRAJ JI🙏💐🌹
[2/12, 6:32 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*आचार्य रघुराम जी का आयुर्वेद में एक अपना निजी दृष्टिकोण एवं मत रहता है जिसके आधार पर ये आयुर्वेद की व्याख्या करते है जो मुझे बहुत पसंद आती है जिसे हमेशा ये लिख कर चलते हैं कि ये इनकी hypothesis है। ऐसा ही होना चाहिये 👌👌👌❤️🙏*
[2/12, 6:34 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*जी सर, मात्र दुग्ध में केसर भी इतना रक्तप्रसादन कर देता है कि मैं शीत ऋ्तु में स्वयं सेवन करता हूं।*
[2/12, 6:36 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*जी सर, टंकण भस्म हम सितोपलादि और तालीसादि चूर्ण में अब तो अधिकतर वैसे भी मिला कर रखते है।*
[2/12, 6:37 PM] Vaidya Manu Vats, Punjab:
[2/12, 6:39 PM] Vaidya Manu Vats, Punjab:
Giriraji Ji... after reading repeatedly I am not able to understand this point..
Interrelation of मातृ and पितृ भाव..
[2/12, 6:41 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*रोगी को देखने का एक विशिष्ट तरीका है डॉ दिव्येश जी, अभी कुछ समय पहले ही clinic से ही आया हूं तो आगे चल कर अवश्य बताऊंगा कि किस प्रकार एक भिषग् रोगी को स्पर्श करते ही उसे उसके अन्त:करण तक अनुभव कर सकता है।*
[2/12, 6:42 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*नमस्कार वैद्य राधेश्याम जी 🌹🙏*
[2/12, 6:51 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*सादर नमन आचार्य गिरिराज जी, बहुत ही उच्च स्तरीय विशलेषण एक सर्वश्रेष्ठ शारीरविद् द्वारा । cell को भाव समझें और tissue को अव्यव और भाव से लक्षण उत्पन्न हो रहे है 👌👍🙏*
[2/12, 6:52 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*धन्यवाद मनु जी 🌹🙏*
[2/12, 6:54 PM] Prof.Giriraj Sharma Sir:
*सादर प्रणाम आचार्य*
🌹🌹🙏🏼🌹🙏🏼🙏🏼
1. *मातृज भाव मे बीज (ovem ) में माता के पिता का बीजभाग एवं बीजभाग अवयव (क्रोमोजोम एवं जीन) उपस्थित रहते है परन्तु फिर भी वह स्त्रीबीज आर्तव (मातृज) ही कहलाता है ।*
2. *मृदु अवयव मांस मेद मातृज भाव है परन्तु उसी मातृज भाव मेद से पितृज भाव स्नायु एवं सिरा बन रहे है ।*
*मेद से अस्थि*
*मातृज भाव से पितृज भाव*
*अस्थि से मज़्ज़ा*
*पितृज भाव से मातृज भाव*
*चतुर्भि सहित स सूक्ष्म*
*भाव प्राधान्यता से अलग है प्रतीत होते है परन्तु ये आपस मे अन्यानन्योन्य सिद्धान्त से एक दूसरे में है ।*
*मातृज भाव मेद से यह अर्थ नही कि वह सिर्फ मातृज भाव है माता से है,,, बल्कि मातृज प्रधान है उसमें पितृज काठिन्य सिरा रसज वर्ण सात्म्यज बलवर्ण भी निहित है ।*
*परन्तु प्राधान्यता मातृज ही है फिर भी मर्म परिपेक्ष्य में इसे मांसज (मातृज) मर्म न कहकर सिरा मर्म (पितृज) कहा है ।*
[2/12, 6:59 PM] Prof. Giriraj Sharma Sir :
*सादर प्रणाम आचार्य श्री*
मैंने तो बिखेरी थी कुछ स्याही,,
आपने सराह कर उन्हें मोती बना दिया
🌹🌹🌹🙏🏼🌹🌹🌹
[2/12, 7:04 PM] Vaidya Manu Vats, Punjab:
बहुत बढ़िया Giriraj ji...Thanks 😊 🙏
[2/12, 7:11 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*सादर नमन आचार्य मनु जी,*
*समुन्द्र/मन-अचेतन*
*सीप/भाव -चेतन *
*मोती/सृजन-अचेतन *
*स्याही/मस्तिष्क में लेखन अचेतन*
*स्याही, मोती और सृजन अचेतन होकर भी बेशकीमती होते हैं *
*आपका लेखन बहुमूल्य है आचार्य ❤️🙏*
[2/12, 7:11 PM] Prof. Giriraj Sharma Sir:
🙏🏼🙏🏼🌹🙏🏼🙏🏼
[2/12, 7:12 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*हार्दिक आभार आचार्य मिश्र जी 🌹🙏*
[2/12, 7:15 PM] +91 78386 82736:
प्रणाम गुरुवर !👏👏
आपने निदान, संप्राप्ति व चिकित्सा आदि का समग्र वर्णन करके सम्पूर्ण व्याधि को स्पष्ट कर दिया है।
इसके लिए आपको बहुत बहुत हार्दिक धन्यवाद व आभार ।
🌹🌹👏👏
[2/12, 7:15 PM] Vd Raghuram Shastri, Banguluru:
*Good evening Guruji. Felt overwhelmed and blessed with your words. You are the actual source of bala and ojus. I m just tapping drops from that ocean. Your love is unconditional*
🙏🙏💐❤️
[2/12, 7:17 PM] Vd Raghuram Shastri, Banguluru:
*Overwhelmed and blessed to receive your blessings and love sir. Couldn't be possible without blessings and encouragement from both of you*
🙏🙏💐❤️
[2/12, 10:17 PM] Dr.Vandana Vats:
प्रणाम सर !
🙏
अद्भुत विशलेषण !
🙏💐🙏
[2/12, 10:31 PM] Prof. Madhava Diggavi Sir:
Sirji it was excellent to learn a good case trial...new way I got about tulasi maricha lavanga jala ..
[2/12, 10:44 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*नमस्कार एवं आभार डॉ वंदना जी 🌹🙏*
[2/12, 10:44 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*सप्रेम नमन डॉ माधव जी 🌹🙏*
[2/13, 6:22 AM] Dr.Mamata Bhagwat Ji:
Pranams Sir,
Outstanding narration of a different case presentation.
Hats off to your analytical ability sir. I am spellbound indeed.🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
[2/13, 8:28 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*सुप्रभात एवं सादर नमन प्रो. ओझा सर एवं सभी विद्वानों को 🌺💐🌹🙏*
[2/13, 8:33 AM] Prof. Satyendra Narayan Ojha Sir:
*शुभ प्रभात वैद्यराज सुभाष शर्मा जी एवं आचार्य गण नमो नमः ॐ नमः शिवाय !
🙏🙏🌷🌷🌹🌹💐💐🙏🙏*
[2/13, 8:35 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*आभार प्रो. ममता जी 🌹🙏*
**********************************************************************************************************************************************************************
Above case presentation & follow-up discussion held in 'Kaysampraday" a Famous WhatsApp group of well known Vaidyas from all over the India.
Presented by
Vaidyaraj Subhash Sharma
MD (Kaya-chikitsa)
MD (Kaya-chikitsa)
New Delhi, India
email- vaidyaraja@yahoo.co.in
Compiled & Uploaded by
Vd. Rituraj Verma
B. A. M. S.
ShrDadaji Ayurveda & Panchakarma Center,
Khandawa, M.P., India.
Mobile No.:-
+91 9669793990,
+91 9617617746
B. A. M. S.
ShrDadaji Ayurveda & Panchakarma Center,
Khandawa, M.P., India.
Mobile No.:-
+91 9669793990,
+91 9617617746
Edited by
Dr.Surendra A. Soni
M.D., PhD (KC)
Professor & Head
Professor & Head
P.G. DEPT. OF KAYACHIKITSA
Govt. Akhandanand Ayurveda College
Ahmedabad, GUJARAT, India.
Email: surendraasoni@gmail.com
Mobile No. +91 9408441150
💐💐👌
ReplyDeleteSir I want to join this group.।। Plz add me in kaysampraday group.।। As im PG student.।।। So much concepts are there for me to learn.।। Plz
ReplyDelete7276120488
Sir I want to join this group.।। Plz add me in kaysampraday group.।। As im also PG student.।।। Plz add me sir
ReplyDelete8830297001