[12/19/2020, 5:56 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*क्लिनिकल आयुर्वेद - भाग 8*
*19-12-20*
*त्वचा में कुपित पित्त -*
*अनगिनत मैसेज की भीड़ में भूल ना जाये इसलिये स्मरण करा देते हैं कि यह विकल्प सम्प्राप्ति प्रकरण चल रहा है जो दोषों की अंशाश कल्पना पर आधारित होता है जिसमें त्वचा मे प्रकुपित पित्त जो शास्त्रों में वर्णित है या नही भी है उसे रोगी में कैसे देखें और समझे ? पहले बता चुके हैं
'पाचक पित्त- आमाश्य, पच्यमानाश्य, क्षुद्रान्त्र, ग्रहणी*
*कर्म- पाचन, दोष, रस, मूत्र, पुरीष को पृथक कर उनके योग्य बनाना, शेष पित्तो को अग्नि देना, अन्नरसगत धातु उपादानों का पाक, प्रसाद और किट्ट प्रथक करना।*
*रंजक पित्त- आमाश्य,यकृत और प्लीहा*
*कर्म- रस का रंजन कर रक्त में परिवर्तन, ओज*
*साधक - ह्रदय*
*कर्म - बुद्धि (निश्चयात्मक ज्ञान), मेधा (धारण), अभिमान, मनोरथ साधन*
*आलोचक - दृष्टि*
*कर्म - रूप, लोचन*
*भ्राजक - त्वचा *
*कर्म- त्वचा में रह कर लेप,अभ्यंग,अवगाह में प्रयुक्त क्रियाओं और द्रव्यों का पाचन करता है, यह भ्राजकाग्नि भी है।*
*इस पित्त के गुण- उष्ण - अग्नि महाभूत*
*तीक्ष्ण - अग्नि महाभूत*
*सर - जल*
*कटु - वायु+अग्नि*
*द्रव - जल*
*अम्ल - पृथ्वी+अग्नि (जल + अग्नि = सुश्रुत)*
*यह सब संदर्भ हम पुन: इसलिये दे रहे हैं कि हमने लिखा था 'मद्यपान वाले, विशेषकर जो whisky, rum, vodka का सेवन करते हैं वो चाहे इसमें जल और ice कितना ही अधिक मिला लें यह पित्त के सभी अंशों की वृद्धि करेगा ही।' हर पित्त दूसरे से संबंधित है, अगर पाचक पित्त का अधिक स्राव होगा तो अम्लपित्त करेगा और साधक पित्त को प्रभावित करेगा, अनेक रोगी ऐसा कहते मिलेंगे कि पित्त बनने से घबराहट होती है और दिल बैठा बैठा जा रहा है जिसे ह्द द्रव कहते हैं। अभी clinic में ये पंक्तियां लिखते लिखते ही एक नवीन रोगी आया और बोल रहा है कि जब भी drink करता हूं तो धड़कन तीव्र हो जाती है, एसे लगता है श्वास नही आ रहा, शिर प्रदेश कई बार शून्य हो जाता है और आंखे लाल, फिर स्वेदाधिक्य हो जाता है और पूरा शरीर रक्त वर्ण का। हमने इसे औषधि नही दी और 21 दिन बाद पुन:: बुलाया है कि इतने दिन मद्य का त्याग कर दीजिये। इस रोगी में मद्य से सभी 5 पित्त और पित्त के सभी अंश प्रभावित होते हैं।*
[12/19/2020, 5:56 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*इस रोगी की त्वचा देखिये,
चरक सूत्र 20/14 में नानात्मज पित्तज विकार में
'विदाहश्च, अन्तर्दाहश्च, अंसदाहश्च१, ऊष्माधिक्यं च, अतिस्वेदश्च, अङ्गगन्धश्च, अङ्गावद२रणं च, शोणितक्लेदश्च, मांसक्लेदश्च, त्वग्दाहश्च, मांसदाहश्च, त्वगवदरणं च, चर्मदलनं च, रक्तकोठश्च, रक्तविस्फोटश्च, रक्तपित्तं च, रक्तमण्डलानि च'
आदि विकारों की मिश्रित अवस्था आप इस रोगी की त्वचा में देख सकते हैं और इसका मुख्य कारण है वर्षों से नियमित मद्यपान। ये हमारे clinic का चित्र है इसे हमने दूर से देखते ही पूछा कि क्या आप कई वर्षों से daily drink करते हैं ? और इसका उत्तर हां था। इस प्रकार की त्वचा जो लोग अति आतप सेवन करते है, snow fall के दिनों में पहाड़ों पर जा कर धूप का सेवन करते है, समुद्र में या pool में जहां clorine water है वहां अथवा धूप में स्नान करते हैं तब भी होती है इसके पीछे कारण है पित्त के दो अंश उष्ण और तीक्ष्ण*
[12/19/2020, 5:56 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*इसे यह उष्णता और तीक्ष्णता एक प्रसिद्ध सौन्दर्य प्रसाधन विशेषज्ञा की product के प्रयोग करने पर मिली की सारी त्वक ही दाह और रक्त वर्ण युक्त हो गई।*
[12/19/2020, 5:56 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*त्वचागत प्रकुपित पित्त का अन्य उदाहरण देखिये 👇🏿 आयुर्वेद में दोषों को और उनके अंशों को जीवन में हर पल और हर क्षेत्र में ढूंडिये, आपको आश्चर्य होगा कि ये वैसे ही मिल रहे हैं जैसे कहा गया है।*
[12/19/2020, 5:56 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*त्वचा में जो आप विदीर्ण, विस्फोट शब्द पढ़ते हैं ये उसके उदाहरण हैं जो पित्त के उष्ण और तीक्ष्ण गुणों के कारण होते हैं।*
*उष्ण गुण अग्नि महाभूत से उत्पन्न होता है, खाद्य पदार्थों में रसानुसार कटु,अम्ल और लवण उष्ण माने गये हैं।सामान्यत: कटु और अम्ल विपाक के द्रव्य उष्ण होते हैं।उष्ण वीर्य तो है ही उष्ण।*
*दोषों में पित्त, धातुओं में रक्त और अस्थि, उपधातुओं में रज और मलों में मूत्र को उष्ण माना गया है।*
*उष्ण गुण का एक विशेष कर्म है जिसे 'दहन' कहा गया है जिसमें यह को जलाने सदृश कर के उस का वर्ण विकृत कर देता है, विदीर्ण कर के विस्फोट भी कर देता है।*
*इसके साथ ही तीक्ष्ण गुण का प्रभाव भी त्वचा में देखें यह गुण दाह और पाक तो करता ही है त्वचा को विदीर्ण कर के रक्तस्राव भी कर देता है अगर स्राव ना हो पाये तो त्वचा में रक्त की clotting कर के उसे घन रूप दे देता है जो कृष्ण वर्ण का दिखने लगता है।*
*यह तीक्ष्ण गुण भी अग्नि महाभूत से उत्पन्न होता है, यह दहन कर्म करता है जिस से त्वचा रक्त वर्ण की हो जाती है, अपनी तीक्ष्णता से त्वचा में क्षोभ उत्पन्न कर देता है जिस से त्वचा में स्फोट या छाले भी उत्पन्न हो जाते है, यह गुण भी त्वचा में दाह, पाक और स्राव वो पूय हो या रक्त को उसका कारण बनता है। तीक्ष्ण गुण आशुकारी होता है और बढ़ी तीव्रता और शीघ्रता से कार्य करता है।*
*अग्नि गुण का आधार समानभाव होने से उष्ण और तीक्ष्ण गुण का घनिष्ठ संबंध है। कटु और अम्ल के साथ ही लवण द्रव्य भी तीक्ष्ण होते हैं, मद्य, कांजी,सरसों का तेल, मरिच, आर्द्रक, यवानी, ताम्बूल, भल्लातक, रसोन आदि द्रव्य तीक्ष्ण माने गये है। यदि त्वचा के उपरोक्त विकार देखें तो history में इनका उपयोग मिलेगा ही। वर्तमान में अनेक द्रव्य जैसे tomato ketchup, vineger, flavoured iteams भी तीक्ष्ण हैं।*
*उष्ण वीर्य, अम्ल और कटु विपाक हैं। चिकित्सा में प्राय: रूक्षण, दीपन, पाचन, नस्य, वमन, विरेचन और निरूहण वस्ति में प्राय: तीक्ष्ण द्रव्यों का भी प्रयोग बहुत होता है।आधुनिक समय में अनेक औषधियां, chemotherapy, radiotherapy भी तीक्ष्ण के अन्तर्गत ही मानिये और इनके द्वारा उत्पन्न विकार आप त्वचा में प्रत्यक्ष देख सकते हैं।*
*दोषों में पित्त, रक्त और अस्थि धातु, रज और मूत्र उष्ण की भांति तीक्ष्ण भी हैं।*
*तीक्ष्ण द्रव्य शोधन और लेखन भी करते है, स्रावण और पाचन भी, उष्ण और तीक्ष्ण में प्रमुख अंतर ये भी है कि तीक्ष्ण द्रव्य आशुकारी होने से अल्प अवधि में अधिक और शीघ्र कार्य करते है इसीलिये आचार्यों ने इसे मंद के विपरीत अर्थ में ग्रहण किया है।*
[12/19/2020, 5:56 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*...to be continue ..*
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[7/8, 00:48] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi:
*अस्थि और उष्ण गुण*
*अस्थि में उष्ण गुण की प्रधानता, अस्थि आश्रय गत व्याधियां और अस्थि क्षय - इनमें हम केवल अस्थि में अग्निमहाभूत की प्रधानता है इस पर चर्चा करेंगे।*
*सातों धातुओं में रक्त धातु को आग्नेय युक्त होने से उष्ण और अस्थि को उष्ण गुण प्रधान मानते है जिसका आधार है साहचर्य नियम, इसका आधार हमें चरक में इस प्रकार मिलता है...*
*'लघूष्णतीक्ष्णविशदं रूक्षं सूक्ष्मं खरं सरम् कठिनं चैव यद्द्रव्यं प्रायस्तल्लङ्घनं स्मृतम्' च सू 22/12 जो द्रव्य लघु उष्ण तीक्ष्ण विशद सूक्ष्म खर कठिन गुण युक्त होते हैं वो लंघन कारक होते है। *
*'रूक्षं लघु खरं तीक्ष्णमुष्णं स्थिरमपिच्छिलम् रायशः कठिनं चैव यद्द्रव्यं तद्धि रूक्षणम्' च सू 22/14 रूक्षता कारक द्रव्य रूक्ष लघु खर तीक्ष्ण उष्ण स्थिर अपिच्छिल और कठिन होते हैं।*
*'उष्णं तीक्ष्णं सरं स्निग्धं रूक्षं सूक्ष्मं द्रवं स्थिरम् द्रव्यं गुरु च यत् प्रायस्तद्धि स्वेदनमुच्यते' च सू 22/16 स्वेदन द्रव्य उष्ण तीक्ष्ण रूक्ष सूक्ष्म स्थिर और गुरू होते हैं।*
*आग्नेय भाव पाचन, दहन, शोषण कर अस्थि को कठिन बनाता है और अगर ये ना होता तो अस्थि मांस या मेद की तरह मृदु होती कठिन नही इसके अतिरिक्त अन्य अनेक गुणों से भी साहचर्य नियम के अनुसार उष्ण गुण और अस्थि का संबंध स्थापित होता है। इसके विपरीत अगर आप अस्थि को शीत मानेंगे तो जल, पृथ्वी और वायु को आधार बनाना पड़ेगा जिस से शीत उष्ण का विरोधि होने से कफ प्रधान बन जायेगा तो अस्थि को कफ प्रधान मानना पड़ेगा । कफ में शैथिल्य भाव होता है जो अस्थि के स्वरूप के पूर्णत: विपरीत है। *
*शीत गुण स्तंभन करता है जो एक क्षणिक क्रिया है और प्राय: सर्वदा विद्यमान नही रहती जबकि अस्थि का काठिन्य भाव सर्वदा विद्यमान रहता है, आप जो आकाश से snow fall या refrigerator में ice देखने है वो जल का स्तंभन है जो शीत गुण के कारण है काठिन्य नही है।अस्थि में काठिन्य उष्णता से शोषण के कारण विद्यमान होता है।*
[7/8, 01:17] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi:
*चरक के जो तीन सूत्र ऊपर जो संदर्भ में दिये हैं यह आयुर्वेद का 'साहचर्य भाव' है जो अलग अलग अध्यायों मे अन्यत्र भी अनेक सिद्धान्तों को स्पष्ट करनें में लिखा गया है।*
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Above 2 posts are being added as interpretation or explanation by hon'ble Vaidyaraja Subhash Sharma ji after raising question on relationship between asthi and Agni Mahabhoota.
Prof. Surendra A. Soni
08/07/2021
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[12/19/2020, 6:02 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*सब कुछ शास्त्रों में होने पर भी क्यों नही मिलता ? एक यक्ष प्रश्न !!!! आयुर्वेद का ज्ञान ना होने का कारण ?
'पश्यतोऽपि यथाऽऽदर्शे संकलिष्टे नास्ति दर्शनम्, तत्वं जले वा कलेषु चेतस्युपहते तथा।'
च शा 1/55
जिस प्रकार मलिन दर्पण में अपना मुख दिखाई नही देता, मलिन जल में पदार्थ नही दिखते उसी प्रकार चित्त के विकारी होने पर वास्तविकता के दर्शन नही होते।*
[12/19/2020, 6:05 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*आप इस संसार में क्यों आये ???? *
*पुरूष क्यों उत्पन्न हुआ ?
'पुरूषोराशिसंज्ञस्तु मोहेच्छाद्वेषकर्मज:'
च शा 1/53
पुरूष सकारण है क्योंकि यह तो मोह, इच्छा और द्वेषादि कर्मों से उत्पन हुआ है।*
*कितना गज़ब का शास्त्र है हमारा, उन प्रश्नों के उत्तर दे रहा है जिन्हे पाने के लिये लोग समाज और परिवार त्याग कर पर्वतों पर साधना करने चल दिये और उत्तर यही मिला जो चरक शारीर में है।*
[12/19/2020, 6:07 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*इच्छाओं का समाप्त होना ही मोक्ष *
[12/19/2020, 6:08 PM] Dr.Deep Narayan Pandey Sir:
❤️❤️
*क्या बात! क्या बात!*
🙏
[12/19/2020, 6:10 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*शुभ सन्ध्या आचार्य श्रेष्ठ 🌹🙏
शास्त्रों के सूत्र मस्तिष्क में मशीन की तरह चलते रहे है, फिर उन पर चिन्तन । अद्भुत है आयुर्वेद शास्त्र।*
[12/19/2020, 6:10 PM] DR. RITURAJ VERMA:
सहृदय धन्यवाद गुरुवर उष्ण ,तीक्ष्ण गुण बहुत ही सरलता से समझा दिया आपने ।
[12/19/2020, 6:12 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
नमो नम: आचार्य ऋतुराज जी 🌺💐🌹🙏*
[12/19/2020, 6:13 PM] Dr.Deep Narayan Pandey Sir:
निश्चित रूप से अद्भुत है।
आचार्य श्रेष्ठ, यह सूत्र हमें बड़ा प्रिय है क्योंकि हम इसका प्रयोग डंडे की तरह उन लोगों को ठोकने के लिए करते हैं जो फाइल में सारे कागज लगे होने के बावजूद भी सही-सही नोटिंग नहीं करते। पत्रावली में यथार्थ स्थिति दिखाने के लिए सारे कागज लगे होते हैं लेकिन क्योंकि कहीं ना कहीं कोई न कोई *अदृश्य हेतु* काम कर रहा होता है तो अधिकारी लोग कुछ का कुछ लिखते हैं!
[12/19/2020, 6:14 PM] Prof.Giriraj Sharma Sir :
🌹🌹🙏🏼🌹🌹
*मोहेच्छा द्वेष कर्मजा*
[12/19/2020, 6:18 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*आपको भी नमो नम: आचार्य गिरिराज जी, ये सब आपके अधिकार क्षेत्र के विषय है पर कई बार पराधिकार चेष्टा इसलिये कर लेता हूं कि जितना भी पढ़े और चिन्तन करें कम लगता है।* 🙏🙏🙏
[12/19/2020, 6:21 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*24 तत्वात्मक राशि पुरूष का मन कहीं अन्य तरफ होना, अपने कार्य में ना होना।* 😀😀😀
[12/19/2020, 6:24 PM] Prof.Giriraj Sharma Sir :
आदरणीय ,
आप से सीखना भी एक पुण्य कर्म है हमारे लिए,,,,
हजारो बार *मोहेच्छा द्वेष कर्मजा* पढ़ा ।
पर गुना आज है वो भी बड़ी सहजता से ।।
सादर प्रणाम !
🙏🏼🙏🏼🌹🙏🏼🙏🏼
[12/19/2020, 6:38 PM] Vd.V.B.Pandey Basti(U.P.):
ऐसा नहीं है गुरु वर पाप या पुण्य का जन्म आत्मिक भावों से होता है परंतु उसके प्रभाव शारीरिक भावों पर बहुत पडता है । अतः हमें अपने भावों विचारों पर नियंत्रण रखना चाहिए । इच्छा ही तो हमें कार्य करने को प्रेरित करेगी।🙏
[12/19/2020, 6:51 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*आपने तो विषय की कृशरा ही बना दी डॉ पाण्डेय जी 😀😀😀*
*सु शा 3/43
आत्मजभाव- 'इन्द्रियाणि ज्ञानं विज्ञानमायुः सुखदुःखादिकं चात्मजानि' अर्थात इन्द्रियां, ज्ञान, विज्ञान, आयुष्मान, सुख, दुख आदि आत्मज भाव हैं। आत्मा के निर्विकार स्वरूप से ये सब भाव जो आत्मा के सन्निकर्ष में आने से होते हैं ऐसा समझना चाहिये।*
*सत्वज अर्थात मन के भाव - भक्ति, शील, शौच, द्वेष, स्मृति, मोह, त्याग, मात्सर्य, शौर्य, भय, क्रोध, तन्द्रा, उत्साह, तैक्षण्य, मार्दव, गाम्भीर्य, अनवस्थितत्व कुल 17 और 18 वां अन्य भाव जो चिकित्सक मन की प्रकृति के अनुसार करे।
('अस्ति खलु सत्त्वमौपपादुकं; य१ज्जीवं जीवं स्पृशतीति जीवस्पक्; जीवस्पृक्शरीरं शुक्रशोणितात्मक गर्भशरीरम्' च शा 3/13)*
*इसे इस प्रकार समझें तो हर प्रश्न का उत्तर मिल जायेगा।*
🌹🙏
[12/19/2020, 7:05 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
🌺🌹💐🙏
[12/19/2020, 7:17 PM] Dr.Ashwani Kumar Sood Ambala:
पित्त का रोग सम्प्रति में उत्तम मार्गदर्शन ।
[12/19/2020, 8:19 PM] Dr. Vinod Sharma Ghaziabad:
🙏🏾🙏🏾🙏🏾🙏🏾☘️☘️अति सुंदर व्याख्या पित्त और पैत्तिक लक्षणों की ।
[12/20/2020, 9:21 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*साधक पित्त का practice में अधिकतर combination मिलता है तर्पक कफ और व्यान वात के साथ, अगर इसे अच्छी तरह जान लिया जाये तो अधिकतर modern medicines से आप रोगियों को मुक्ति दिला सकते है क्योंकि सही मायने में औषध की आवश्यकता बहुत कम लोगों को है, विवशता कह लीजिये, लोभ, परिवार पालन, व्यवसाय आदि अनेक कारणों और कई बार ना चाहते हुये भी औषधियां देनी पड़ती है। कुछ लोगों को औषधियां खाने का भी शौक होता है।*
[12/20/2020, 9:43 AM] Prof.Giriraj Sharma Sir :
*🙏🏼🌹शुभप्रभात🌹🙏🏼*
*साधक पित्त को जिसने साध लिया , फिर उसके लिए सब साध्य है ।।*
[12/20/2020, 9:58 AM] Shekhar Goyal Sir Canada:
🙏🙏क्या साधक पित्त और तर्पक कफ को बढ़ाने के लिए दिनचर्या और खाने में परिवर्तन किया जा सकता है ।सात्विक भोजन और सात्विक दिनचर्या शब्द कई बार सुनने में आता है । क्या इसे थोड़ा ओर elaborate कर सकते हैं 🙏🙏
[12/20/2020, 10:00 AM] Dr.Bhadresh Naik Gujarat:
Sadachar
Sadvartan
Sadkarma
Awareness
Before doing any activity
Speech work or dasya please think
Thought
Re-think
Purpose
Purity
Intentions
And action
Helping hands
Courtesy
Mankind's
Are make satva uplifting
If we follow we are in satva stage
[12/20/2020, 10:00 AM] Dr.Bhadresh Naik Gujarat:
Control shadritu by 👆stage follow up
[12/20/2020, 10:26 AM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar:
सादर प्रणाम गुरु जी
दोषों को गुणात्मक दृष्टि से अवलोकन करना अपने आप मे बहुत कुछ वर्णन करने वाला है।
दोष अंतत: गुणों का संग्रह ही तो हैं।
सही मे आपने जिस ढंग से दोषों की कार्यता गुणों के अनुसार बतायी है वह सर्वदा स्मरणीय है।
🙏🙏🙏💐
[12/20/2020, 10:26 AM] Prof.Giriraj Sharma Sir :
धी धृति स्मृति( प्रज्ञा) एवं मेधा ,,,,,
का मूल है साधक पित्त ,,,
पित्तज प्रकृति पुरुष का प्रथम गुण मेधावी कहा है । मेधा को साधना ही साधकत्व है ।
[12/20/2020, 10:38 AM] Prof.Giriraj Sharma Sir :
हम धी धृति स्मृति तक ही सीमित रहते है जबकि मेधा एक महत्वपूर्ण घटक है जिसके विषय मे कम चिंतन करते है ।
पुरुष प्रकृति, एवं सार बताते समय कही पर धीवान, कही स्मृतिवान, कहीं धृति वान आचार्य गणों ने उल्लेख किया है वही मेधा, मेधावी जैसे शब्द भी उल्लेखनीय है ।
[12/20/2020, 10:43 AM] Prof.Giriraj Sharma Sir :
मेधा सात्विक प्रकृति
दुर्मेधा तामसिक प्रकृति
[12/20/2020, 10:57 AM] Vd.V.B.Pandey Basti(U.P.):
मेधा तो सदैव सातविक ही रहेगी हमारे मन (विचार) के आवरण के आगे वो भी बेबस हो जाती है ।यही कारण है कि इहलोक में दूसरे को दुःखी देखकर भी कुछ लोगों को मानसिक शांति मिलती है ।
[12/20/2020, 11:07 AM] Prof.Giriraj Sharma Sir :
भगवान कृष्ण मेधावी थे
शकुनि दुर्मेधावी था ,,,,,
[12/20/2020, 11:28 AM] Dr.Satish Jaimini, Jaipur:
🙏🙏🙏🙏अतिसुन्दर विवेचन गुरुदेव की कृपा प्रसाद है ।
[12/20/2020, 12:47 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*आचार्य मुकेश देव जी, एक तो कृपया यहां काय सम्प्रदाय में आचार्यों के लिये लोभी शब्द का प्रयोग ना करे, यहां सभी आचार्यगण विद्वता से परिपूर्ण हैं और सत्वबाहुल्य ही हैं, सत्व रज और तम सदैव एक दूसरे पर आढोलित होते रहते है, ये स्थिर नही रह सकते।*
*चिकित्सा का पहला सूत्र बढ़े दोषों को घटाना, सत्व गुण वर्धन के लिये प्रयास की आवश्यकता नही वो स्वत: ही बढ़ने लगेगा इसके लिये प्रथम कार्य रज गुण चंचलता लाता है जिसके कारण मन की सक्रियता वर्धन होने से हर बात पर reaction उत्पन्न होता है और हर action पर reaction की प्रक्रिया आरंभ होती है तो अंदर के reaction को बंद करना। ये तब होगा जब हम किसी भी विषय को सर्वप्रथम बिना react किये स्वीकार कर लें।*
*तम आलस्य लाता है, आलस्य और प्रमाद में अंतर है। प्रमाद का अर्थ ज्ञान युक्त आलस्य है जिसमें कार्य को टालने की प्रवृति, falls commitment या किसी कार्य में रूचि ना लेना आदि भाव day to day की life के भाव है ।*
*तीसरा चरण है धैर्य, धैर्य इतना कि कोई आपके धैर्य की परीक्षा लेते अपना धैर्य खो दे।*
*इनसे रज और तम का क्षय होगा तो जो कुछ भी सत्व संबंधित ज्ञान या भाव है वो स्वत: ही जीवन में जब चाहे मनुष्य ला सकता है।*
*अगर मन चंचल (रज प्रधान) या आलस्य (तम प्रधान) दोनों में से एक या दोनो से युक्त है तो सत्व की कल्पना ही व्यर्थ है तो सत्व नही बढ़ाना दोनो को घटाना है, ये आयुर्वेद का सिद्धान्त है कि चिकित्सा वृद्ध दोषों की ही की जाती है।*
[12/20/2020, 1:18 PM] Dr. Mukesh D Jain, Bhilai:
🙏 जी सहमत ।
[12/20/2020, 1:42 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
आचार्य गिरिराज जी, आपके पढ़ने का एक अलग ही ज्ञान युक्त आनंद है और मैं आपका बहुत बढ़ा प्रशंसक हूं, ज्ञान का प्रवाह ऐसे ही बनाये रखें ये बहुत महत्वपूर्ण विषय है।* 🌹💐🌺🙏
[12/20/2020, 1:45 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*सादर नमन आचार्य गिरिराज जी, शारीर विषय जिस प्रकार आप स्पष्ट करते हैं मुझे नही लगता कि कहीं इस प्रकार पढ़ाया जाता होगा, इस ग्रुप का ये अहोभाग्य है कि आपके जैसा शारीर विशेषज्ञ यहां गुरू रूप में जिज्ञासाओं का निवारण करता है।*
[12/20/2020, 1:50 PM] Prof.Giriraj Sharma Sir :
*आदरणीय सादर नमन,,,,*
*प्राणोपाणौनिमेष,,,,*
*ये सब सशरीर आत्मा के गुण है अर्थात षडभाव युक्त शरीर,,,,,*
*आत्मज भाव सिर्फ आत्मज है जो अक्रिय है, मन के संयुक्त होने पर ही क्रिय है ।*
*मेधा सात्म्यज भाव है ,,,, जो *सशरीर आत्मा का ही गुण है ।*
*आत्मा तो निर्विकार है ।*
*आत्मज भाव संयोग जन्य है*
*जो सत्वज भावों के संयोग से उतपन्न होते है ।*
*सत्वज भाव स्व भाव है सत्व के*
*आत्मज भाव , सत्व जब आत्मा के संयुक्त होता है को उस अन्योन्याश्रित से प्रभव भाव है*
*सशरीर आत्मा गुण, 24 तत्वात्मक का प्रभव है ।।*
*संभवत ,,,,,*
अपेक्षित सुधार
🙏🏼🙏🏼🙏🏼🌹🙏🏼🙏🏼🙏🏼
[12/20/2020, 1:53 PM] Prof.Giriraj Sharma Sir :
आदरणीय यह सब आप जैसे गुरुजनो का आशीर्वाद एवं ज्ञान प्रवाह का ही फल है
🙏🏼🙏🏼🙏🏼🌹🙏🏼🙏🏼🙏🏼
[12/20/2020, 7:00 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:
*आचार्य गिरिराज जी, सटीक विशलेषण * 🌹👌🙏
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Above case presentation & follow-up discussion held in 'Kaysampraday" a Famous WhatsApp group of well known Vaidyas from all over the India.
Presented by
Vaidyaraj Subhash Sharma
MD (Kaya-chikitsa)
MD (Kaya-chikitsa)
New Delhi, India
email- vaidyaraja@yahoo.co.in
Compiled & Uploaded by
Vd. Rituraj Verma
B. A. M. S.
ShrDadaji Ayurveda & Panchakarma Center,
Khandawa, M.P., India.
Mobile No.:-
+91 9669793990,
+91 9617617746
Edited by
Dr.Surendra A. Soni
M.D., PhD (KC)
Professor & Head
P.G. DEPT. OF KAYACHIKITSA
Govt. Akhandanand Ayurveda College
Ahmedabad, GUJARAT, India.
Email: surendraasoni@gmail.com
Mobile No. +91 9408441150
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