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'CLINICAL AYURVEDA' Part- 7 by Vaidyaraja Subhash Sharma

[12/8/2020, 12:59 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi: 

*क्लिनिकल आयुर्वेद - भाग 7*
(8-12-20)

*विकल्प सम्प्राप्ति (continue..)*

*पिछले भाग में हमने बताया था कि विकल्प सम्प्रप्ति दोषों की अंशांश कल्पना है, 
'दोषाणां समवेतानां विकल्पोंऽशांशकल्पना' 
अ ह नि 1/10 दोषों रूक्ष, शीत, उष्ण, स्निग्धादि अंश हैं, इनमें किसका बल अधिक है या अल्प है ये कल्पना विकल्प सम्प्राप्ति है।*

*इस सम्प्राप्ति को समझने का पहला नियम जान लीजिये कि अंशांश कल्पना के लिये दोषों के पंचभौतिक नैसर्गिक गुण कभी नही बदलते इसीलिये बढ़े हुये दोषों को घटाना या क्षय हो गये हैं तो वृद्ध करना यही चिकित्सा में चलेगा।*

*त्रिदोष के पंचभौतिक नैसर्गिक गुण जो कभी नही बदलते वो
 वात -  'रूक्षः शीतो लघुः सूक्ष्मश्चलोऽथ विशदः खरः' *
*पित्त - 'सस्नेहमुष्णं तीक्ष्णं च द्रवमम्लं सरं कटु|'*
*कफ -'गुरुशीतमृदुस्निग्धमधुरस्थिरपिच्छिलाः*
*च सू 1/59-61
 ये हैं। आपको आश्चर्य होगा कि इन नैसर्गिक गुणों का इतना सूक्ष्म ज्ञान हमारे आचार्यों ने अपने तपोबल और इन्द्रियातीत ज्ञान से किया था कि वो clinically आज भी वैसे ही सत्य मिलता है। ये गुण ही किसी भी रोग में रोग का हेतु बनते है और माध्यम द्रव्यों को अर्थात आहार या औषध को,विहार या मानसिक भाव को बनाते है। अपने नैसर्गिक गुणों के आधार पर ही लक्षण उत्पन्न करेंगे और विपरीत गुणों से शान्त हो जाते है जिसे चिकित्सा कहते हैं।*

*रोग निदान और चिकित्सा कोई कठिन कार्य नही है, आयुर्वेद से भयभीत मत होना कि हमें समझ नही आता, यह सब इसलिये आपको लगता है क्योंकि आपने इसे अभी तक अच्छी तरह समझा नही और जाना नही और अधिक अनुभव नही लिया। वायु के कुल कितने गुण है रूक्ष शीत लघु सूक्ष्म चल विशद और खर अर्थात कोई अधिक नही कुल 7 ही है और हम चिकित्सा करते हैं तो ये इस प्रकार मिलेंगे, ये जो कुछ भी हम आपको बता रहे हैं यह प्राचीन समय की बताई विकल्प सम्प्राप्ति है...*


[12/8/2020, 12:59 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi: 

यह रोगी रविवार को हमारे पास प्रथम बार चिकित्सा हेतु आया है, इसकी त्वचा को देखे तो रूक्षता है यह वायु के रूक्ष गुण के कारण है, खर और विशद दोनों गुण भी हैं अर्थात अंशाश कल्पना के अनुसार वात के तीन अंश इस में विद्यमान है पर एक अंश और है और वह है चल गुण इन सब पर हम अभी आगे चर्चा करेंगे।*

*एक अन्य रोगी देखिये...* 👇🏿
[12/8/2020, 12:59 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi: 

इसमें अगर zoom कर के देखेंगे तो रूक्ष और खर के अतिरिक्त विशद गुण भी है।*

*आगे इसी वात की अंशाश कल्पना हम त्वक में करेंगे, इस रोगी की त्वक् में वात के अंश देखिये ...* 👇🏿



[12/8/2020, 12:59 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi: 

'तत्र द्रव्याणि गुरुखरकठिनमन्दस्थिरविशदसान्द्रस्थूलगन्धगुणबहुलानि पार्थिवानि१, तान्युपचयसङ्घातगौरवस्थैर्यकराणि; द्रवस्निग्धशीतमन्दमृदुपिच्छिलरसगुणबहुलान्याप्यानि, तान्युपक्लेदस्नेहबन्धविष्यन्दमार्दवप्रह्लादकराणि; उष्णतीक्ष्णसूक्ष्मलघुरूक्षविशदरूपगुणबहुलान्याग्नेयानि, तानि दाहपाकप्रभा प्रकाशवर्णकराणि; लघुशीतरूक्षखरविशदसूक्ष्मस्पर्शगुणबहुलानि वायव्यानि, तानि रौक्ष्यग्लानिविचार वैशद्यलाघवकराणि; मृदुलघुसूक्ष्मश्लक्ष्ण शब्दगुणबहुलान्याकाशात्मकानि, तानि मार्दवसौषिर्यलाघवकराणि' 
च सू 26/11 में पार्थिव आदि द्रव्यों के गुण कर्म बहुत स्पष्टता से बताये हैं जो आप वहां देख सकते है।*

*इस रूक्ष गुण का महाभूत वायु और अग्नि होता है, वात तो रूक्षता ला ही रही है पर अग्नि क्लेद का शोषण कर रूक्षता कर रही है, यव, मूंगदाल, चना, कलाय दाल, राजमा, सरसों, मसूर, जिमिकन्द, शिम्बिधान्य, चने की रोटी, लाजा, पुराना मधु, शिलाजतु, लौह, यशद, वंग, टंकण, कांस्य, पीतल, विभितक, हरीतकी, आमलकी, जीरक, चव्य, पीपलामूल, आर्द्रक, मरिच, बिल्व, बाकुची, विडंग, हरिद्रा, अपामार्ग,  कुटज, शिग्रु, भृंगराज, कटु, तिक्त, कषाय द्रव्यों का अधिक सेवन शरीर में रूक्ष गुण की वृद्धि कर देता है।*

*यह रूक्ष गुण उष्ण वीर्य द्रव्यों में भी होता है और शीत वीर्य द्रव्यों का अति सेवन करने पर भी रूक्षता आ जाती है, जनवरी फरवरी के दिनों में, अधिक cooling कर के AC में सोने पर, तीव्र गति से पंखा चला कर सोने पर वात का यह रूक्ष अंश प्रत्यक्ष देख सकते हैं।*

*जो द्रव्य कटु विपाक के होते हैं वो प्राय: शरीर में रूक्षता लाते हैं, अम्ल विपाक के द्रव्य भी रूक्षता लाते हैं जैसे आप आम या मरिच का अचार खा कर स्वयं देख सकते हैं, अनेक रोगी आ कर हमें कई बार ये कहते हैं कि वैद्यराज जी बार बार हमारे होंठ फटते है और रूक्षता आ जाती है तो इसमें अधिकतर की history में कटु और अम्ल विपाकी द्रव्य जैसे तिल, कच्चा आम, इमली, अचार, काजू, पिस्ता, उपवास, सांय भोजन कर के देर रात तक रात्रि जागरण जैसे हेतु बहुत मिले।*

*वात का यह रूक्ष अंश शरीर में बल का क्षय करता है जैसा हम अभी ऊपर लिख कर आये हैं, शरीर में स्तंभन कर्म करता है अर्थात एक जकड़न लाता है, यह रूक्ष अंक्ष वर्ण के प्राकृतिक रूप की हानि करता है, शरीर में एक काठिन्य भाव उत्पन्न कर देता है और खरता और विशदता लाने में सहायक का कार्य कर के कफ का शोषण कर देता है।*

*वात का यह रूक्ष अंश जहां विभिन्न विकार उत्पन्न कर रहा है वहां चिकित्सा में भी बहुत उपयोगी है जैसे दीपन, पाचन, वमन, विरेचन, निरूहण और नस्य कर्म में वहां ये देखिये औषध का कार्य करता है और तो और पुरूषों वीर्य के शीघ्र स्राव में स्तंभन कर्म करता है।
'अनेनोपदेशेन नानौषधिभूतं जगति किञ्चिद्द्रव्यमुप लभ्यते  तां तां युक्तिमर्थं च तं तमभिप्रेत्य' 
Zच सू 26/12 
में स्पष्ट किया है कि कोई भी द्रव्य या युक्ति औषध है।*

*विकल्प सम्प्राप्ति में त्वचा में कुपित वात पर आगे चर्चा कल करेंगे...*

*to be continue...*


[12/8/2020, 12:59 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi: 

*इसे भी zoom कर के देखेंगे तो रूक्षता और खरता के साथ विशद और चल गुण भी यहां है।*

*आईये इन सभी का पूरा analysis करेंगें कि इन रोगियों में वात के ये अंश क्यों मिले तो इसके लिये हमें इनका जानना आवश्यक है, ये हेतु भिन्न भिन्न रूप में मिलेंगे जिसका ज्ञान हमें रोगी की history में जा कर मिलेगा और हेतु इस प्रकार मिलेंगे, 
निज- जो दोषों को सीधे ही प्रकुपित करते है और  आगंतुज- जो अभिघात, अभिशाप, अभिचार और अभिषंग से विभिन्न आगन्तुक रोगों को उत्पन्न कर देते हैं।*

*सन्निकृष्ट हेतु जैसे वय, दिन, रात और भोजन के अन्त, मध्य और आरंभ में वात पित्त और कफ का प्रकोप रहता ही है तथा विप्रकृष्ट जैसे हेमन्त में संचित कफ का वसंत में प्रकोप होगा और कफज रोग उत्पन्न करेगा।*

*व्यभिचारी हेतु - ये वो निदान है जो दुर्बल होने से पूर्ण सम्प्राप्ति बनाकर रोग उत्पन्न करने में तो असमर्थ है पर लक्षण उत्पन्न कर रोगी को विचलित कर के रखते हैं।*

*प्राधानिक हेतु - जो उग्र स्वभाव होने से तुरंत ही दोषो को प्रकुपित कर देते हैं जैसे विष, अति मादक द्रव्य आदि ।*

*उभय हेतु - ये हेतु दोष और व्याधि दोनो को उत्पन्न करने की सामर्थ्य रखते हैं जैसे अति उष्ण-तीक्ष्ण-अम्ल विदाही अन्न*

*विभिन्न वायरस, कृमि या जीवाणु*

*रोगी के वात की अंशाश कल्पना में जो रूक्षता रूक्ष गुण के कारण मिल रही है उसका अभिप्राय स्निग्धता का अभाव है और यह 
'रूक्षः शीतो लघुः सूक्ष्मश्चलोऽथ विशदः खरः ।विपरीतगुणैर्द्रव्यैर्मारुतः सम्प्रशाम्यति' 
च सू 1/59 वायु के गुण जो बताये है अपने विपरीत गुणों से क्षय भी होता है और शान्त भी तथा  यह गुण स्पर्श और चक्षु इन्द्रिय से ज्ञात किया जाता है।इस रोगी ने ऐसे हेतुओं का सेवन या प्रयोग अधिक किया है जो स्निग्धता के विपरीत थे अर्थात कठिन, खर, रूक्ष, विशद आदि जिन्होने कुछ विशिष्ट धातुओं या ओज का (ओज और कफ के गुण समान मान ले यहां पर) कहीं ना कहीं क्षय अवश्य किया है। अगर वात वृद्धि होगी तो ओज से संबंधित बल एवं व्याधि क्षमत्व का भी क्षय होगा और इस रोगी में शरीर विभिन्न कृमियों या जीवाणुओं का मुकाबला नही कर पायेगा और fungal infection हो कर भी यह स्थिति आ सकती है जिसमें मूल क्या मिला वात।*

[12/8/2020, 8:28 AM] Dr.Santanu Das: 

Bahut Sundar sir🙏🙏

[12/8/2020, 9:00 AM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar: 

सुप्रभात एंड चरण स्पर्श गुरु जी

याने के जब भी हम दोष के बारे में आकलन करें तो हमारा ध्यान दोष का को से गुण disturb हुआ है इस तरफ अबश्य ही जाना चाहिए।

🙏🙏🙏


[12/8/2020, 9:28 AM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar:

 गुरु जी 
ये विशद शब्द कई बार भ्रम उत्पन्न करता है
आमतौर पर इसके अर्थ, चिकना माना जाता है
इसको हम कैसे समझेंगे ?
या प्रैक्टिकली विशद का कुछ और ही अर्थ है।

यहां त्वचा के इन लक्षणों में चल गुण से क्या परिलक्षित होता है। 
🤔


[12/8/2020, 9:35 AM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar: 

बहुत बढ़िया प्रैक्टिकल टिप्स,,,
🙏🙏🙏🙏


[12/8/2020, 3:23 PM] Dr.Ashwani Kumar Sood Ambala: 

प्रभू आपके बताये हुए सिध्दांतों का अनुसरण करते हुए a lot of improvement is noticed in pts of CKD with progressively declining eGFR who were advised DIALYSIS by NEPHROLOGIST. THANKS FOR  GUIDANCE


[12/8/2020, 6:51 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi: 

*शुभ सन्ध्या पवन जी, आपका प्रश्न 'त्वचा के लक्षणों में चल गुण से क्या परिलक्षित होता है ?*

*चलिये इस चल को समझने के लिये चलते हैं चरक के 18 वें त्रिशोथीय अध्याय में जहां प्रकरण चर रहा है वातजन्य शोथ के हेतु सहित लक्षण
 'अयं त्वत्र विशेषः- शीतरूक्षलघुविशद श्र१मोपवासातिकर्शनक्षपणादिभिर्वायुः प्रकुपितस्त्वङ्मांस शोणितादीन्यभिभूय शोफं जनयति; स क्षिप्रोत्थानप्रशमो भवति, तथा श्यामारुणवर्णः प्रकृतिवर्णो वा, चलः स्पन्दनः खरपरुषभिन्नत्वग्रोमा छिद्यत इव भिद्यत इव पीड्यत इव सूचीभिरिव तुद्यते पिपीलिकाभिरिव संसृप्यते सर्षपकल्कावलिप्त इव चिमिचिमायते सङ्कुच्यत आयम्यत इवेति वातशोथः' 
च सू 18/7 
यहां वात के विशिष्ट हेतु स्पष्ट करते हुये कहा है कि शीत, रूक्ष, लघु, विशद, परिश्रम, उपवास, शरीर के कृश हो जाने पर, क्षय-क्षीणता से वात प्रकुपित हो कर ... शोथ उत्पन्न करता है यह चल अर्थात गतिशील होता है।
प्रो.बनवारी लाल गौड़ सर की चक्रपाणि एषणा टीका पृष्ठ 576 देखें 'चल: का तात्पर्य हैं संक्रमणवान् अर्थात गतिशील या प्रसरण शील।*

*चल वात का गुण है, अनेक ग्रन्थकार स्थिर के विपरीत सर को और कुछ चल गुण को मानते है। सर गुण जल महाभूत प्रधान होता है। सर की कार्मुकता है कि इसके कारण द्रव्य वात, मल, मूत्र की अधोमार्ग से प्रवृत्ति कराते हैं, धातुओं को द्रवीभूत करते हैं और कफ की वृद्धि करते है। पर यहां शोथ में देखें तो शोथ का जो प्रसरण हो रहा है वह चल गुण के कारण है और जिस रोगी का हमने त्वक् गत वात में दिया है वहां रूक्षता पहले एक छोटे से स्थान पर थी जिसका धीरे धीरे प्रसरण होता है जो किसी अन्य गुण जैसे सर से भी तर्क अनुसार संभव नही है।*

*विशद गुण जैसा आपने पूछा है इसका वर्णन हम आगे त्वक् गत वात में करेंगे ही।*

*विकल्प सम्प्राप्ति का अर्थ जानने का प्रयास clinically करें और मक्षिका स्थाने मक्षिका नही बनना जैस कहा है कि 
'दोषाणां समवेतानां विकल्पोंऽशांशकल्पना' 
अ ह नि 1/10 
दोषों के जो रूक्ष, शीत, उष्ण, स्निग्धादि अंश हैं, इनमें किसका बल अधिक है या अल्प है ये कल्पना विकल्प सम्प्राप्ति है। सामान्य विशेष सिद्धान्त यहां भी लागू होगा जैसे वायु के रूक्ष, खर, विशद गुण एक दूसरे को सहयोग देते हैं, बल देते है, इस पर भी आगे हम बतायेंगे कि यह किस प्रकार होता है।*


[12/8/2020, 11:04 PM] Vd. Atul J. Kale M.D. (K.C.) G.A.U.: 

*विशद:*

 *'¦ पु॰ वि + शद--अच्।*

*१ शुभ्रवर्णे*

*२ तद्वति त्रि॰ अमरः।*

*३ विमले हेम॰।*

*४ व्यक्ते च त्रि॰ मेदि॰।*

*वाचस्पत्यम्*

विशद¦ mfn. (-दः-दा-दं)
1. Of a white colour.
2. Clear, pure, pellucid.
3. Evident, apparent, 
manifest.
4. Beautiful.
5. At ease. m. (-दः) White, the colour. E. वि, शद् to wither or perish, aff. अच् |

शब्दसागर


[12/8/2020, 11:07 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi: 

प्रभु अश्विनी जी, इस CKD की आयुर्वेद सम्प्राप्ति बनाने में मुझे कई वर्ष लगे थे क्योंकि इसके हेतु में URIC ACID, HT , DM और life style मिल रहा था और सब सम्प्राप्ति अलग बनती है। इसे हमने ऐसे बनाया था ..*

*रक्त और मेद से वृक्कौं का निर्माण होता है।*
*रक्त और सार भाग एवं वायु  से वस्ति ।*
*
*आन्त्र, गुद; ये सब पक्वाश्य है अर्थात अपान वात का स्थान।*

*इसमें स्वेद का भी महत्व है जिसका मूल मेद 'मूल: स्वेदस्तु मेदस:' 
च वि 5/8*
*मेद का स्नेह भाग विभक्त हो कर मांस को सिरा और स्नायु में परिवर्तित करती है यह कार्य पित्त करता है सिरा मृदु पाक से और स्नायु खर पाक से बनते हैं। सिरा उपधातु है जो रक्त को ले कर जाती हैं।*

*समान वात - स्वेद वाही स्रोतस जिनका संबंध मेद से है, अग्निबल एवं संधुक्षण और पक्वाश्य।*

*व्यान वायु - स्वेद वाही स्रोत, मूत्र वाही स्रोतस में सम्यक आकुंचन और प्रसारण जिस से संग दोष ना हो, स्रोतो शोधन कर्म, पक्वान्न से सार और किट्ट पृथक कर के मूत्र निर्माण में सहायक, रक्त का संवहन।*

*मेदोवाही स्रोतों का मूल वृक्क है तो वृक्क दुष्टि में चिकित्सा मेद की होगी और मूत्रवाही स्रोतस की involvement तो बाद में है।*

*हम वृक्क की चिकित्सा अर्थात मेदोवाही स्रोतस और  मूत्र का exit मूत्रवाही स्रोतों को repair करने चले हैं तो यह कार्य रसायन द्रव्यों से होगा जिनका स्पष्ट उल्लेख शास्त्रों में नही है पर जो हमने परिश्रम से स्वंय खोज कर उनसे सम्प्राप्ति विघटन किया।*

*जब ग्रन्थ लिखे गये तब अनेक रोग जो आज मिल रहे हैं  इस प्रकार नही होते थे इसलिये उनकी सम्प्राप्ति मूल को समझ कर बनाई जायेगी जिसमें मातृज,पितृजादि भाव को समझना आवश्यक है, इसीलिये हम ये श्रंखला क्लिनिकल आयुर्वेद आपके लिये लिख रहे है कि जिस से आप संसार में होने वाले किसी भी रोग की सम्प्राप्ति बना कर चिकित्सा में समर्थ बन सकते हैं जो ग्रन्थों में नही है।*

*यह सब लिखने का अभिप्राय इसलिये है कि आयुर्वेद में चिकित्सा के ये गूढ़ विषय है और यह आपका मार्ग प्रशस्त करेगा।*


[12/8/2020, 11:10 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi: 

दुष्टि संग और विमार्ग गमन जिस से आम और कफ के कारण यह व्याधि त्रिदोषज बनती है, जब इसकी अंशाश कल्पना करते हैं तो कृच्छ साध्य या असाध्य क्योंकि रोगी तब आता है जब जीर्ण हो जाता है।*


[12/8/2020, 11:17 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi: *

बहुत उत्तम अतुल जी 👌👌 इसका आयुर्वेदी करण हम आगे करेंगे जिसमें इसका भौतिक संगठन,कार्मुकता, कर्म अधिष्ठान आदि और किन रस गुण वीर्य विपाक से इसका संबंध है तथा कौन कौन से द्रव्यों में यह मिलता है ।*


[12/9/2020, 6:41 AM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar: 

सुप्रभात एंड चरण स्पर्श गुरु जी।

जी आपने जी चल गुण शोथ के संदर्भ में बताया वह बिल्कुल स्पष्ट हुआ है व क्षीप्रोतथान आदि गुण से क्लियर है।

पर यहां इस उदाहरण में जो रूक्षता एक स्थान से शुरू हो कर अन्य स्थानों पर प्रसार करती है, इसको भी चल गुना से समझ जाएं ऐसा मैंने कभी नही सोचा।
🙏🙏

जी, हर विषय को क्लीनिकॉली समजहने के प्रयासरत हूँ।
💐💐

[12/9/2020, 9:10 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi: 

*सुप्रभात सहित नमस्कार जी, आपके लिये एक चिन्तन दे रहा हूं ये वात के 'चल' गुण के लिये है , 
'तत्र द्रव्याणि - 
पार्थिवगुण-    गुरुखरकठिनमन्दस्थिरविशदसान्द्रस्थूलगन्धगुणबहुलानि पार्थिवानि, तान्युपचयसङ्घातगौरवस्थैर्यकराणि; *

*जलीयगुण- द्रवस्निग्धशीतमन्दमृदुपिच्छिलरसगुणबहुलान्याप्यानि, तान्युपक्लेदस्नेहबन्धविष्यन्दमार्दवप्रह्लादकराणि; *

*आग्नेयगुण- 'उष्णतीक्ष्णसूक्ष्मलघुरूक्षविशदरूपगुणबहुलान्याग्नेयानि, तानि दाहपाकप्रभाप्रकाशवर्णकराणि; *

*वायव्यगुण- 'लघुशीतरूक्षखरविशदसूक्ष्मस्पर्शगुणबहुलानि वायव्यानि, तानि रौक्ष्यग्लानिविचारवैशद्यलाघवकराणि; '*

*आकाशीयगुण-'मृदुलघुसूक्ष्मश्लक्ष्णशब्दगुणबहुलान्याकाशात्मकानि, तानि मार्दवसौषिर्यलाघवकराणि' 

च सू 26/11*

*इन सभी गुणों में जो चरक ने पहले चल गुण सूक्ष्म के बाद बताया l
 वात -  'रूक्षः शीतो लघुः सूक्ष्मश्चलोऽथ विशदः खरः' *
*पित्त - 'सस्नेहमुष्णं तीक्ष्णं च द्रवमम्लं सरं कटु|'*
*कफ -'गुरुशीतमृदुस्निग्धमधुरस्थिरपिच्छिलाः' 
च सू 1/59-61*

 *वो चल कहां गया और यहां 26 वें अध्याय में क्यों नही बताया जब कि चल तो प्रमुख गुण है और नैसर्गिक गुण है ।*

[12/9/2020, 9:33 AM] Dr.Pawan mali sir,delhi


Good morning sir...
your clinical series is truelly blessing for me generation....
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
This query was also raised in ch su 12.4 and chakrapani opined regarding same as chal guna is replaced by darun guna again in cha vi 8/99  while describing prakriti chala guna is described clinically as chala guna is responsible for anavasthit sandhill etc....Without chala guna vata can not do its activity as explained by you sir...it is basic guna for vaat karma.


[12/9/2020, 9:42 AM] Dr. Pavan mali Sir, Delhi: 

Resp Baghel sir used to say  while teaching in humerous way that.....chal guna chalate chalate chala gaya ... in a lighter note...But due to his guidance we remembered still after 15 years importance of chal guna ....In jamnagar we  came across book/thesis work in jamnagar 'samrapti lakshan sambandh'..that gives way insights to think of underlying samprapti of every symptoms inpatients..which will be helpful for samprapti vighatan....As subhash sir has said jamanagar institute and teachers has contributed so much in developing ayurvedic perspective in scholars of IPGT.🙏🏻


[12/9/2020, 10:02 AM] +91 95300 28266: 

विशद गुण
सामान्यतः विशद शब्द का अर्थ स्वच्छ या निर्मल (Clean) होता है।

आयुर्वेद में शरीर पर होने वाले प्रभाव के अनुसार गुणों का विवेचन किया गया है। यथा-

 *जिस गुण के कारण द्रव्य क्लेद (शरीरावयव, त्वचा, व्रणों आदि में स्थित द्रवांश) का शोषण,  व्रणों का रोपण , धातुओं का लेखन, मलों का शोषण तथा वात की वृद्धि करता हो, उसे विशद कहते हैं।* 

  *द्रव्यस्य क्षालने कर्मणि शक्तिः विशदः* 
(हेमाद्रि)
विशदो विपरीतो अस्मात (पिच्छिलात) क्लेदाचूषणरोपणः    सुश्रुत सू 46
 *क्लेदच्छेदकरः ख्यातो विशदो व्रणरोपणः* (भा प्र)


[12/9/2020, 10:17 AM] Vd.Divyesh Desai Surat: 

चल गुण से गति होती है, लेकिन चल गुण को कंट्रोल करने में साथ साथ स्थिर गुण का होना भी जरूरी है, इस लिए सारी सन्धियों में चल ओर स्थिर गुण एक पहिये के माफिक दोनों ओर सामने सामने रहते है, ओर एकदूसरे के सहायक होते है।🙏🏻🙏🏻


[12/9/2020, 10:44 AM] Vd. Atul J. Kale M.D. (K.C.) G.A.U.: 

चल गुण स्वयंमें प्रेरणा देनेवाला अौर प्रत्यक्ष कार्य करनेवाला है। किंतु चल गुणकेभी मूलमें भी कुछ प्रेरणा की आवश्यकता आवश्यक प्रतित होती है। शरीरमें तो इसे जाना जा सकता है किंतु ब्रह्माण्डमें नित्य चलायमान ग्रह, सागर, वायु, गुरूत्व, स्यन्दत्व, इतर सृष्टीका चलायमान होना एवं हर कणमें रहनेवाली गतीके पिछे रजोगुण प्रेरक प्रतीत होता है जो परमात्माके त्रिगुणात्मक स्वरूपका एक भाग है। जिसे ब्रह्माचे, विष्णू, महेश शक्तियाँ अनुग्रहित करती है। ये शक्तियाँ हर कणमें नित्य संवाहित रहती है। 

वायुमंडलमें एक दिशा गती, प्रसरण ये वायुके कार्यस्वरूप होते हुए भी गुरुत्व-स्यन्दत्व ये पदार्थमें उत्पन्न होनेवाली अधोगतीके प्रेरक है अौर ये भी पृथ्वीके संयोग तक रज अौर संयोगसमयसे तमके प्रेरक है।


[12/9/2020, 10:46 AM] Vd. Atul J. Kale M.D. (K.C.) G.A.U.: 

मेरे छोटेसे मन्तव्यका धारिष्ट्य


[12/9/2020, 11:17 AM] Vd.Ajay Kumar Singh Mumbai: 

इस प्रकरण में मूर्त वायव्य द्रव्यों के गुण बताए गए हैं 

जबकि वात दोष अमूर्त होता है।


[12/9/2020, 11:53 AM] +91 95300 28266: 

सभी द्रव्य पंचभौतिक होते हैं। वायव्य द्रव्यों में वायु महाभूत का आधिक्य होता है।
अमूर्त वात का ज्ञान उसके शास्त्रोक्त आत्म रूपों/ कर्मों से ही अनुमान होता है
 *कर्मभिस्त्वनुमीयन्ते नाना  द्रव्याश्रिताः गुणाः*🙏🏼🙏🏼


[12/9/2020, 11:57 AM] Dr.Mrunal Tiwari Sir: 

Vishad gunase ek prakar se Sharir me vishuddha 
avastha aa jati hai.
Lekin agar adhik shoshan hota hai to vaha vaat vridhi Ka karan ban jata hai.


[12/9/2020, 12:15 PM] +91 95300 28266: 

जिन द्रव्यों में विशद गुण का अधिष्ठान होता है, उन्ही में प्रायः लघु, उष्ण, तीक्ष्ण, रुक्ष, खर, कठिन गुण भी उपलब्ध होते हैं। अतः उक्त गुणों में एकार्थ समवाय सम्बन्ध से विशद गुण की प्रतीति होती है । जिससे यह स्पष्ट है कि विशद गुण की उक्त गुणों से समानता है।
उष्ण  विशद  तैजसं
सूक्ष्म  विशद  वायवीयम
श्लक्ष्ण विशद  आकाशीयम।   सु सू 41
(गुण परिज्ञान)


[12/9/2020, 12:42 PM] Vd.Ajay Kumar Singh Mumbai:

 प्रणाम सर
विशद गुण को रोगी में लक्षणों के आधार पर कैसे समझें?


[12/9/2020, 1:15 PM] +91 95300 28266: 

(द्रव्यस्य) *प्रेरणे (कर्मणि शक्तिः) चलः*   हेमाद्रि


[12/9/2020, 1:19 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi: 

*सादर नमन आचार्य पवनजी, बिल्कुल उचित व्याख्या आज आपके द्वारा प्रदान की जा रही है 👌👍🙏। जामनगर में गोठेचा जी के गुण पर निबंध के हमने अनेक नोट्स बना रखे थे, उन्होने बहुत अच्छा compilation किया है। जब practice आरंभ की तो गुणों को समझने में अत्यन्त सुविधा तो मिली ही हमने गुणों को अपने clinical practice का एक भाग बना लिया और गुणों को चिकित्सा में कैसे समझते है इस पर पूरा एक महाग्रन्थ चित्रों और वीडियो सहित  अब बनाया जा सकता है क्योंकि इतना data मेरे पास अपने रोगियों का है।*
*clinical work करने पर हमें क्या क्या नवीन ज्ञान मिला आपको share करते हैं।* 👇🏿




[12/9/2020, 1:26 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi: 

*जब हम चिकित्सा करते हैं तो मात्र एक गुण नही मिलता रूक्षता के साथ खरता आदि मिलती ही है।*
*जब रोपण कर के विशद गुण मिलता है तब भी स्पर्श करने पर खरता या रूक्षता मिलती ही है।*


[12/9/2020, 1:29 PM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar: 

Pranam sir

ये बात के बारे मैं पहले भी बहुत सोचा, फिर मुझे लगा के यहां संदर्भ के अनुसार वायव्य या वात उल्वन द्रव्यों के गुणों का वर्णन है , शायद इसलिए चल गुण का विशेषत: यहां उल्लेख नही है, 🤔

यहां एक और भी बात का संशय है
बाद में विशद की जगह दारुण शब्द का उल्लेख है और उसको भी logically समझना बहुत जरूरी है।


[12/9/2020, 1:29 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi: 

विशदता clear अवश्य है पर कांच के समान नही है, क्योंकि जब सामान्य त्वचा पूर्णत: आ जायेगी तो रस धातु सामान्य हो गई वहां विशदता स्वत: ही समाप्त हो गई।*


[12/9/2020, 1:32 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi: 

हमने discovery channel की तरह ऊपर चित्रों में देखिये एक एक सप्ताह के चित्र अपने पास रखे हैं कि किस ऋतु में, किस आहार या दिनचर्या से वात के किन किन गुणों पर प्रभाव पड़ा और अंतिम चित्रों में रूक्षता, खरता, चल गुण समाप्त हो कर विशद गुण आ गया जिसे आप प्रत्यक्ष देख सकते है।*


[12/9/2020, 1:33 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi: 

*इस रूग्णा की त्वचा अभी कुछ दिन पहले जब आई थी तो देखने में सामान्य थी पर हाथ को नीचे से ऊपर तक ले जाने पर किंचित खरता थी जो दृश्य नही है पर स्पर्श जन्य है।*


[12/9/2020, 1:41 PM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar: 

विशद
स्फुटित अंग
Clear, soft, spotless, shining, pure, white, evident, calm, आदि शब्दिज अर्थ मिलते हैं


[12/9/2020, 1:41 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi: 

*सीधा सा सरल सिद्धान्त है 'पिण्ड ब्रह्माण्ड ' न्याय जो इस ब्रह्माण्ड में है वो सब इस शरीर में घटित होगा। पंचभूत माध्यम बनायेंगे आहार द्रव्यों को, औषध द्रव्यों को जिसमें प्रभाव भी होगा, और लौकिक घटनाओं को जैसे तीव्र आंधी में खड़े रहने पर बाहरी रूक्षता का प्रभाव आपकी त्वचा पर भी पड़ेगा। आंधी बाहरी वायु के कौन से गुण से आई ?*


[12/9/2020, 1:45 PM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar: 

ओह
अद्भुत

पर गुरु जी जब हम वात के वृद्ध गुणों की वातशामक चिकितस्य से ये प्रभाव ले रहे हैं तो अंत मे जो विशदता आई है उसको भी वात का ही गुण कहेंगे 👌

ये समझ नही पाया,, माफी चाहता हूँ गुरु जी


[12/9/2020, 1:45 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi: 

भौतिक संगठन अनुसार चलिये तो सही।*


[12/9/2020, 1:46 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:

 *क्योंकि कभी भी वात अकेला नही है अंशाश कल्पना का क्या मतलब हुआ*


[12/9/2020, 1:46 PM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar: 

जी सर
सामान्यतः वात का चल गुण तो समझ मे आता है पर प्रश्न तो उस त्वक रोगी के संदर्भ में मन मे आया था।
🙏


[12/9/2020, 1:47 PM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar: 

जी गुरु जी 🙏🙏


[12/9/2020, 1:49 PM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar: 

जी
जैसे ही वात के रूक्षादि गुणों का क्षय हुआ 
तो कौन के किंचित स्निग्धादि गुण परिलक्षित हो गए

क्या ऐसा भी समझा जा सकता है?


[12/9/2020, 1:49 PM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar: 

कफ के,,,


[12/9/2020, 1:50 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi: 

*चिकित्सा बढ़े दोषो को घटाना और क्षीण को बढ़ाना अर्थात उनके अंशो को।*


[12/9/2020, 1:52 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi: 

हम खरता, रूक्षता, चलता को समाप्त कर के रोपण कर्म करते हुये सामान्य स्निग्धता इस रूग्णा में लाये है।*=H


[12/9/2020, 1:55 PM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar: 

सब संदर्भो के अनुसार वात के गुण बनते है
,,,रूक्ष
,,लघु
,,शीत
,,दारुण
,,सूक्ष्म
,,चल
,, विशद
,,खर
,,कषाय
,,शीघ्र
🙏🙏🙏


[12/9/2020, 2:05 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi: 

नमो नम: आचार्य 🙏 दरअसल मैं clinician हूं अत: मेरा मानना है कि चरक और सुश्रुत के विपरीत वाग्भट्ट और अष्टांग संग्रहकार ने स्थिर के विपरीत सर ना मानकर चल क्यों माना ? क्योंकि उन्हे अनुभव कुछ और मिले । सारा मतभेद भौतिक संगठन को और कार्मुक स्वरूप को ले कर हुआ। सर गुण हमे अधोगमन के लिये प्रतीत हुआ लेकिन त्वचा में रोगों रोगों का प्रसार तो उर्धवगामी और चारों तरफ है तो इसमें अग्नि, वायु, अग्नि ही मिलेंगें जल नही जो सर गुण का भौतिक गुण है।*

*हम केवल clinical point of view से ही सोच कर चलते हैं क्योंकि हमें रोगी ठीक करना है किसी से शास्त्रार्थ नही 😀😀🙏*


[12/9/2020, 2:05 PM] Vd. Atul J. Kale M.D. (K.C.) G.A.U.: 

मेरे विचारसे विशद को समझना है तो पिच्छिलत्व मदद करेगा।  Stickyness present or not
एकही सवाल. Sticky bonds breaking--- Non sticking material may be with any other  gunas.

 But vishadatva will remain one mile stone which will be present but will be time being  dominated with other gunas of same nature and is the outcome of prior involvement of Ruksha guna. All Vayu gunas are seems to be dravyashrayi and so Ruksha is main Guna and its intensity makes differences and shows different types of Gunas like parusha, Khara, Vishad etc. So gunas other than Ruksha may be or may not be present but Rukshatva is mandatory which again may be present on subtle levels.


[12/9/2020, 2:10 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi: 

पहना नियम जब हम रोगी देखते हैं तो हमने मान रखा है कि मात्र एक अंश नही अनेक मिलेंगे।*

*जो भी अंश मिलेंगे उनमें भी हीन, तर और तम भेद मिलेंगे।*

*कुछ अंश मिश्रित हो कर मिलेंगे जैसे रक्ताभ त्वचा में त्वचा शीतल मिलेगी।*


[12/9/2020, 2:13 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi: 

*अनेक रोगों में स्थिर के विपरीत चल और अनेक स्थानों पर सर बनेगा ।*


[12/9/2020, 2:26 PM] Vd. Atul J. Kale M.D. (K.C.) G.A.U.: 

जी सर, किंतु 
१) अौषधीयोंका उपयोग करते समय अंशांश कल्पना का विचार एक तो बहुत जटिल हो जाता है, अगर हम करते भी है किंतु तरतमताका द्रव्यसापेक्ष विचार करना कठिण लगता है। 
२) दुसरी बात कोई भी व्याधीका प्रगटीकरण एक तो गुण, काल एवं दोष-धातु परिणमन सापेक्ष हो सकता है, 
३) व्याधिका प्रारंभ भी अौर वृद्धी भी रुक्षत्वादीके अतिरिक्त वृद्धीसे व्याधिस्वभावके समान रहके अनुपरम की ओर बढती जाती है। 

इसीलिए कालसापेक्षतासे असाध्यत्व आनेका प्रमाण है। 

४) काल-अग्नि-गुण ये विगुण होते है तब बाधक लगते है अौर गुणत्वमें साधक लगते है। 

५) अतः सिर्फ गुणोंका विचार अन्य सिद्धातोंके आधारपर करना अनिवार्य होगा क्या?


[12/9/2020, 2:33 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:

 *नही अतुल जी, चिकित्सा में ऐसे अनेक कार्य हैं जो लगते कठिन हैं पर हैं नही । ये अनेक पुराने वैद्यों का अनुभव जन्य ज्ञान हैजैसे हम नाड़ी में पित्त की तीक्ष्णता या sharpness देखते हैं तो नाड़ी के दबाने पर यह कितना विरोध कर रही है यह अनुभव से आता है उसी के अनुसार हम आ.वर्धिनी की मात्रा का, या कुटकी या आ.वर्धिनी कुटकी की एक भावना वाली दे या तीन भावना की इसका निर्धारण होता है।*

*मात्र गुण ही नही अन्य भाव भी देखे जाते है पर सभी भावों के साथ साथ गुणों में भी विशेषज्ञता होनी ही चाहिये, ऐसा मेरा अनुभव है।*


[12/9/2020, 2:40 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:

 *सारे विषय को एकाकी ना ले कर समग्रता से ले कर चलें तभी चिकित्सा और निदान सफल होते है आपकी सारी बातों का सारांश ये है जो पूर्णत: उचित है 👌👌👍👍🙏*


[12/9/2020, 3:50 PM] +91 95300 28266: 

🙏🏼 बहुत गूढार्थ को प्रकाशित किया है आपश्री ने...
वाग्भट्ट के विंशति गुणों में चल गुण सामिल नहीं है।
अरुणदत्त ने *स्थिर* के विपर्यय रूप में अस्थिर अर्थात *सरणशील* अर्थ में *सर* ग्रहण  किया है। 
  
और हेमाद्रि ने *स्थिर* के विपर्यय रूप में  *प्रेरण* भाव स्वीकारते हुये *चल* ग्रहण किया है।
 *सादर प्रणाम*🙏🏼💐


[12/9/2020, 6:29 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi: 

*शुभ सन्ध्या आचार्य जी 🌹🙏 जिस रूग्णा के हमने चित्र पोस्ट किये है उसमें वात के रूक्ष, खर और चल गुण का क्षय किया है और विशद का वर्धन जबकि वात एक ही है और सभी अंश वात के हैं, यही अंशाश कल्पना का महत्व है।*

*अनेक रोगों की विशिष्टता देखिये कषाय रस वात प्रधान है और रूक्षता लाता है पर वहीं कषाय रस प्रधान द्रव्य वात के चल गुण को वृद्धि से रोकते है। प्रदर रोग में देखें तो अति प्रदर में अति प्रवृत्ति वायु के कारण है और वात बहुल मौलश्री ही उसे रोक रही है। *

*जहां भी ग्रन्थों में द्रव्यों के साथ ये लिखा है कि यह द्रव्य वात का शमन करता है तो वह वात के सभी अंशों का शमन करता हो यह आवश्यक नही। इसी प्रकार शास्त्रों में जो रोगों के हेतु बतायें हैं उनमें कुछ उदाहरण हम पिछली सीरीज में दे कर चले हैं कि जैसे किसी रोगी ने हिंगु का अधिक प्रयोग कर लिया तो यह पित्त के तीन अंशों की वृद्धि करेगी, उष्ण, तीक्ष्ण और कटु और यह ज्ञान होते ही इसके विपरीत अंशों का प्रयोग करिये।*

*तिल उष्ण है तो पित्त के उष्ण अंश की वृद्धि करेगा अत: ग्रीष्म ऋतु में प्रयोग ना करे, रक्तातिसार, रक्तपित्त, ul colitis, आमाश्य के व्रण में प्रयोग ना करे क्योंकि वहां पहले ही उष्ण गुण बढ़ा हुआ है।*

*कमल ककड़ी (कमलनाल) जल में ही उत्पन्न होती है और शीत गुण प्रधान है अत: कफज विकारों में मत दीजिये क्योंकि कफ के शीत अंश की वृद्धि करेगी।*

*मद्य पित्त के सभी अंशों की वृद्धि करेगा।*

*अनेक बार सभी साधन उत्तम होते हुये भी चिकित्सा में सफलता ना मिलने का कारण यह भी होता है कि इन गुणों के गुण जन्य अंशों के ज्ञान का अभाव।*

*यह सब बाते चिकित्सा करते करते सामने आने लगती हैं अगर हम चिकित्सा करते हुये शास्त्रों का अध्ययन भी करते रहें तब, हमे कई बार ये करना पड़ता है कि एक ही दोष के कुछ अंश आभ्यन्तर औषध से शमन कर रहे हैं और बाह्य प्रयोग से उसी दोष के किसी अंश का वर्धन। ज्वर में आम पाचन के लिये कुछ उष्ण द्रव्य और शिर पर उस उष्णता को शमन कर temperature कम करने के लिये ठंडे जल की पट्टी का प्रयोग।*

[12/9/2020, 1:26 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:

 *जब हम चिकित्सा करते हैं तो मात्र एक गुण नही मिलता रूक्षता के साथ खरता आदि मिलती ही है।*
*जब रोपण कर के विशद गुण मिलता है तब भी स्पर्श करने पर खरता या रूक्षता मिलती ही है।*


[12/9/2020, 1:29 PM] Dr.Pawan Madan Sir, Jalandhar: 

Pranam sir

ये बात के बारे मैं पहले भी बहुत सोचा, फिर मुझे लगा के यहां संदर्भ के अनुसार वायव्य या वात उल्वन द्रव्यों के गुणों का वर्णन है, शायद इसलिए चल गुण का विशेषत: यहां उल्लेख नही है, 🤔

यहां एक और भी बात का संशय है
बाद में विशद की जगह दारुण शब्द का उल्लेख है और उसको भी logically समझना बहुत जरूरी है।


[12/9/2020, 1:29 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi: 

*विशदता clear अवश्य है पर कांच के समान नही है, क्योंकि जब सामान्य त्वचा पूर्णत: आ जायेगी तो रस धातु सामान्य हो गई वहां विशदता स्वत: ही समाप्त हो गई।*

[1/7, 3:42 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi: 

*हमारा क्लिनिकल आयुर्वेद - भाग 6 और 7 पढ़िये वो सब इसी पर तो लिखा है गुरूजी, - विकल्प सम्प्राप्ति - *

*साधारण भाषा में मान लीजिये कि यह दोषों की अंशांश कल्पना है, 
'दोषाणां समवेतानां विकल्पोंऽशांशकल्पना' 
अ ह नि 1/10 
दोषों रूक्ष, शीत, उष्ण, स्निग्धादि अंश हैं, इनमें किसका बल अधिक है या अल्प है ये कल्पना विकल्प सम्प्राप्ति है। इसी से व्याधि की द्वन्द्वज और त्रिदोषज स्थिति का आभास होता है, इसका चिकित्सा में बहुत अधिक महत्व है और विकल्प सम्प्राप्ति रोगी के रोग का भविष्य निर्धारित करने में बहुत सहायक है।*

*अंशांश कल्पना के लिये दोषों के नैसर्गिक गुण जो कभी नही बदलते और उनकी उत्पत्ति के आधार-भूत महाभूतों का ज्ञान आवश्यक है और यही चिकित्सा का आधार बनता है, इनका उल्लेख इस प्रकार है, इसे हम बार बार इसलिये बताते हैं कि इसे आप कंठस्थ कर लीजिये क्योंकि यही चिकित्सा का आधार बनेगा ...*

*वात 'रूक्षः शीतो लघुः सूक्ष्मश्चलोऽथ विशदः खरः' *
*पित्त 'सस्नेहमुष्णं तीक्ष्णं च द्रवमम्लं सरं कटु|'*
*कफ 'गुरुशीतमृदुस्निग्धमधुरस्थिरपिच्छिलाः*
*च सू 1/59-61*

*वात - वात+ आकाश*
*पित्त - अग्नि+जल*
*कफ- जल +पृथ्वी*

*वात ........*
*रूक्ष - वायु महाभूत, भा प्र ने वायु+ अग्नि *
*लघु - आकाश+वायु+ अग्नि भी मानते हैं क्योंकि अग्नि अस्थिर है।*
*शीत - जल+वायु + पृथ्वी को भी साहचर्य भाव से मानते हैं।*
*विशद- पृथ्वी, अग्नि,वायु और आकाश*
*खर - पृथ्वी+ वायु*
*सूक्ष्म - वायु+आकाश+ अग्नि*

*पित्त ......,*
*उष्ण - अग्नि महाभूत*
*तीक्ष्ण - अग्नि महाभूत*
*सर - जल*
*कटु - वायु+अग्नि*
*द्रव - जल*
*अम्ल - पृथ्वी+अग्नि (जल + अग्नि = सुश्रुत)*


*कफ .......*
*गुरू - पृथ्वी + जल*
*शीत - जल+वायु + पृथ्वी को भी साहचर्य भाव से मानते हैं।*
*स्निग्ध - जल महाभूत, जल+पृथ्वी (सुश्रुत)*
*मधुर - जल+पृथ्वी*
*स्थिर - पृथ्वी *
*मृदु - जल+ आकाश*
*पिच्छिल - जल*

*किसी रोगी ने हिंगु का अधिक प्रयोग कर लिया तो यह पित्त के तीन अंशों की वृद्धि करेगी, उष्ण,तीक्ष्ण और कटु और यह ज्ञान होते ही इसके विपरीत अंशों का प्रयोग करिये।*

*तिल उष्ण है तो पित्त के उष्ण अंश की वृद्धि करेगा अत: ग्रीष्म ऋतु में प्रयोग ना करे,रक्तातिसार, रक्तपित्त, ul colitis, आमाश्य के व्रण में प्रयोग ना करे क्योंकि वहां पहले ही उष्ण गुण बढ़ा हुआ है।*

*कमल ककड़ी (कमलनाल) जल में ही उत्पन्न होती है और शीत गुण प्रधान है अत: कफज विकारों में मत दीजिये क्योंकि कफ के शीत अंश की वृद्धि करेगी।*

*मद्यपान वाले, विशेषकर जो whisky, rum, vodka का सेवन करते हैं वो चाहे इसमें जल और ice कितना ही अधिक मिला लें यह पित्त के सभी अंशों की वृद्धि करेगी ही।*

*रोगी से हेतु अर्थात जो भी  निदान मिले उस से दोष वृद्धावस्था में आ गये , यहां यह ध्यान रखना कि संपूर्ण दोष नही बढ़ा, जैसे वायु के प्राकृत गुण रूक्ष शीत लघु सूक्ष्म चल विशद और खर है तो लंघन जो वात प्रकोप होने का प्रमुख कारण है उस से सभी मनुष्यों में लंघन से वात के सभी अंश एक साथ नही वृद्ध होगे क्योंकि सभी की गर्भ में बनी प्रकृति, जन्मोत्तर प्रकृति और रोगी ने जब लंघन किया उस समय तात्कालीन दोषों की स्थिति क्या थी इस पर निर्भर करता है तो वात के एक या दो ही अंशों की वृद्धि होगी, हेतु सर्वप्रथम दोषों को एक तो समावस्था में नही रहने देगा उन्हे प्रकुपित करेगा, शरीर के दूष्यों को दूष्य धातु ही नही हैं उपधातु और मल भी हैं, विकृत करेगा और खवैगुण्य लायेगा तो यहां हमें हेतु से तीन बाते मिली ग्रन्थों में रोगों के जो अनेक हेतु या निदान मिलते हैं उनमें सभी निदान एक जैसा कार्य नही करते कुछ दोषों के कुछ अंशों की वृद्धि  करते है, कुछ धातुओं को शिथिल करेंगे और कुछ खवैगुण्य लाते हैं अगर हेतु दोषोंको प्रकुपित करेगा तो यह प्रकोप दोषों के चय से भी हो सकता है और अचय से भी।*

*जब भी रोगी आपके समक्ष आता है तो लक्षणों से दोषों का ज्ञान होता है पर इस ज्ञान को और सूक्ष्मता में ले जा कर यह ढूंडिये की इस लक्षण में दोष के कौन से अंश बढ़े हुये हैं ? यह ज्ञान आपको सापेक्ष निदान में भी सहायता देगा, स्रोतस में किस प्रकार की विकृति है जैसे अति प्रवृत्ति है या संग दोष है ? औषध चयन में भी सहयोग देगा। रोगी के हेतु में जो भी आहार लिया गया है वो षडरस ही है और किस रस में किस महाभूत से उसकी उत्पत्ति हुई है ये ज्ञान अति आवश्यक है ..*


*1- मधुर - पृथ्वी + जल *
*2- अम्ल - पृथ्वी +अग्नि (चरक ) जल +अग्नि ( सु) *
*3लवण - जल +अग्नि ( चरक) पृथ्वी +अग्नि सुश्रुत*
*4कटु - वायु +अग्नि *
*5 तिक्त -.वायु +आकाश*
*6 कषाय - वायु + पृथ्वी *

*रसो के महाभूतों का ज्ञान विकल्प सम्प्राप्ति में आपके बहुत काम आयेगा।*

*जब रोगी आपके समक्ष आता है तो उसके लक्षण देखते ही अनेक प्रश्न चिकित्सक के मन में ही आते हैं क्योंकि विभिन्न स्रोतस संलिप्त है तो इसकी सुविधा के लिये लक्षणों को धातु, उपधातु और स्रोतस से मिला कर चलें, दोष साथ में संलग्न है ही और अंशाश कल्पना में आप प्रवीण हो जायें तो आपका निदान सरल होता जायेगा जैसे रोगी की सब से पहले आप त्वचा को देखें यहां वात, पित्त, कफ में से कौन सा दोष प्रकुपित है इसका निदान इन लक्षणों से करें...*

*त्वचा में कुपित वात - रूक्षता लायेगी, जिस प्रकार रूक्ष ठंड का प्रकोप इन दिनों में चल रहा है तो स्फुटित त्वचा मिलेगी, कुछ रोगियों में त्वचा में numbness मिलेगी जिसके लिये वो त्वचा सुन्न हो जाती है या कोई sensations नही मिलती ऐसे शब्दों का प्रयोग करेंगे, रोगी देखते ही कृश मिलेगा, कुछ रोगी सुई सी चुभती है ऐसे शब्दों का प्रयोग करेंगे, यदि कोई कहे कि कुछ समय से त्वचा या complexion dark या कृष्ण वर्ण का होता जा रहा है, कुछ रोगियों को प्रतीत होता है जैसे त्वचा अपने स्थान से फैल रही है, त्वचा में पीड़ा सी प्रतीत हो, कुछ रोगियों की त्वचा में दूर से देखने से स्फुरण मिलेगा, कई बच्चों में एवं बढ़ों में भी गुदा की त्वचा में कंडू सी मिलेगी तो इन्हे त्वचा में स्थित कुपित या वृद्ध वात मान लेना।*

*त्वचा में कुपित पित्त- इसका उल्लेख हम विस्तार से पिछले case presentation में कर के आये हैं कि रस या त्वचा में कुपित पित्त एवं रक्त में कुपित पित्त में कैसे भेद करे ? 'स्वेदो रसे लसिका रूधिरमामाश्यश्च पित्तस्थानानि तत्राप्यामाश्यो विशेषेण पित्तस्थानम्' च सू 20/8 स्वेद, रस, लसिका, रक्त और आमाश्य ये पित्त के स्थान है और विशेषकर आमाश्य है । इसी महारोगा अध्याय में नानात्मज पित्तज विकार 40 इस प्रकार बताये गये हैं 
'ओषश्च, प्लोषश्च, दाहश्च, दवथुश्च, धूमकश्च, अम्लकश्च, विदाहश्च, अन्तर्दाहश्च, अंसदाहश्च१, ऊष्माधिक्यं च, अतिस्वेदश्च, अङ्गगन्धश्च, अङ्गावद२रणं च, शोणितक्लेदश्च, मांसक्लेदश्च, त्वग्दाहश्च, मांसदाहश्च, त्वगवदरणं च, चर्मदलनं च, रक्तकोठश्च, रक्तविस्फोटश्च, रक्तपित्तं च, रक्तमण्डलानि च, हरितत्वं च, हारिद्रत्वं च, नीलिका च, कक्षा(क्ष्या)च, कामला च, तिक्तास्यता च, लोहितगन्धास्यता च, पूतिमुखता च, तृष्णाधिक्यं च, अतृप्तिश्च, आस्यविपाकश्च, गलपाकश्च, अक्षिपाकश्च, गुदपाकश्च, मेढ्रपाकश्च, जीवादानं च, तमःप्रवेशश्च, हरितहारिद्रनेत्रमूत्रवर्चस्त्वं च; इति चत्वारिंशत्पित्तविकाराः पित्तविकाराणामपरिसङ्ख्येयानामाविष्कृततमा व्याख्याताः ' 
च सू 20/14 
के संदर्भ में यह विस्तार से स्पष्ट किया है कि जिन विकारों का वर्णन यहां नही है अगर पित्त का ना बदलने वाला स्वरूप और कर्म पूर्वरूप या आंशिक रूप में भी मिले तो चिकित्सक को दृढ़ता पूर्वक कहना चाहिये कि यह पित्तज विकार है, विस्फोट और मसूरिका को अष्टांग संग्रह कार ने त्वचा में आश्रित कुपित पित्त के अन्तर्गत लिया है और जिन पित्तज विकारों का नाम नही है उनका नामकरण हम स्वयं भी रख सकते हैं क्योंकि यह पित्तज विकार अपरिसंख्येय हैं।*

*त्वचा में कुपित कफ - त्वचा में श्वेतता मिलेगी, एक जकड़न सी या स्तम्भ मिलेगा, त्वचा शीतल होगी, जिव्हा श्वेताभ या मलिन होगी, पर लेप सा प्रतीत होगा।*

*त्वचा अथवा रस धातु गत कुपित दोष के लक्षण एक ही मान कर चलिये।*


[1/7, 3:54 PM] Vaidyaraj Subhash Sharma Sir Delhi:

 *ये ऐसे ही है आचार्य जैसे आयुर्वेद ज्ञान का होना अलग बात है और उसे जीवन में उतारना, व्यवहार में लाना अलग बात है। अब अग्रिम पीढ़ी पर बहुत कुछ निर्भर है।* 🌹🙏


[1/7, 6:55 PM] Vd.Arun Rathi Sir ,Akola: 

*श्रेष्ढतम दोष, धातु, उपधातु, मलादि का अशांश विश्लेषण.*
*तुसी Great हो गुरुवर.*
🙏🏻🙏🏻🙏🏻



**********************************************************************************************************************************************************************
Above case presentation & follow-up discussion held in 'Kaysampraday" a Famous WhatsApp group  of  well known Vaidyas from all over the India. 




Presented by















Vaidyaraj Subhash Sharma
MD (Kaya-chikitsa)

New Delhi, India

email- vaidyaraja@yahoo.co.in


Compiled & Uploaded by

Vd. Rituraj Verma
B. A. M. S.
ShrDadaji Ayurveda & 
Panchakarma Center,
Khandawa, M.P., India.
Mobile No.:-
 +91 9669793990,
+91 9617617746

Edited by

Dr.Surendra A. Soni
M.D., PhD (KC) 
Professor & Head
P.G. DEPT. OF KAYACHIKITSA
Govt. Akhandanand Ayurveda College
Ahmedabad, GUJARAT, India.
Email: surendraasoni@gmail.com
Mobile No. +91 9408441150

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Admin note:  Prof. M.B. Gururaja Sir is well-known Academician as well as Clinician in south western India who has very vast experience in treatment of various Dermatological disorders. He regularly share cases in 'Kaysampraday group'. This time he shared cases in bulk and Ayu. practitioners and students are advised to understand individual basic samprapti of patient as per 'Rogi-roga-pariksha-vidhi' whenever they get opportunity to treat such patients rather than just using illustrated drugs in the post. As number of cases are very high so it's difficult to frame samprapti of each case. Pathyakram mentioned/used should also be applied as per the condition of 'Rogi and Rog'. He used the drugs as per availability in his area and that to be understood as per the ingredients described. It's very important that he used only 'Shaman-chikitsa' in treatment.  Prof. Surendra A. Soni ®®®®®®®®®®®®®®®®®®®®®®® Case 1 case of psoriasis... In this

Case presentation: Vrikkashmari (Renal-stone)

On 27th November 2017, a 42 yrs. old patient came to Dept. of Kaya-chikitsa, OPD No. 4 at Govt. Ayu. College & Hospital, Vadodara, Gujarat with following complaints...... 1. Progressive pain in right flank since 5 days 2. Burning micturation 3. Dysuria 4. Polyuria No nausea/vomitting/fever/oedema etc were noted. On interrogation he revealed that he had h/o recurrent renal stone & lithotripsy was done 4 yrs. back. He had a recent 5 days old  USG report showing 11.5 mm stone at right vesicoureteric junction. He was advised surgery immediately by urologist. Following management was advised to him for 2 days with informing about the possibility of probable emergency etc. 1. Just before meal(Apankal) Ajamodadi choorna     - 6 gms. Sarjika kshar                - 1 gm. Muktashukti bhasma    - 250 mgs. Giloyasattva                 - 500 mgs. TDS with Goghrita 20 ml. 2. After meal- Kanyalohadi vati     - 2 pills Chitrakadi vati        -  4 p

WhatsApp Discussion Series: 24 - Discussion on Cerebral Thrombosis by Prof. S. N. Ojha, Prof. Ramakant Sharma 'Chulet', Dr. D. C. Katoch, Dr. Amit Nakanekar, Dr. Amol Jadhav & Others

[14/08 21:17] Amol Jadhav Dr. Ay. Pth:  What should be our approach towards... Headache with cranial nerve palsies.... Please guide... [14/08 21:31] satyendra ojha sir:  Nervous System Disorders »  Neurological Disorders Headache What is a headache? A headache is pain or discomfort in the head or face area. Headaches vary greatly in terms of pain location, pain intensity, and how frequently they occur. As a result of this variation, several categories of headache have been created by the International Headache Society (IHS) to more precisely define specific types of headaches. What aches when you have a headache? There are several areas in the head that can hurt when you have a headache, including the following: a network of nerves that extends over the scalp certain nerves in the face, mouth, and throat muscles of the head blood vessels found along the surface and at the base of the brain (these contain delicate nerve fibe

WhatsApp Discussion Series:18- "Xanthelasma" An Ayurveda Perspective by Prof. Sanjay Lungare, Vd. Anupama Patra, Vd. Trivendra Sharma, Vd. Bharat Padhar & others

[20/06 15:57] Khyati Sood Vd.  KC:  white elevated patches on eyelid.......Age 35 yrs...no itching.... no burning.......... What could be the probable diagnosis and treatment according Ayurveda..? [20/06 16:07] J K Pandey Dr. Lukhnau:  Its tough to name it in ayu..it must fall pakshmgat rog or wartmgat rog.. bt I doubt any pothki aklinn vartm aur klinn vartm or any kafaj vydhi can be correlated to xanthelasma..coz it doesnt itch or pain.. So Shalakya experts may hav a say in ayurvedic dignosis of this [20/06 16:23] Gururaja Bose Dr:  It is xantholesma, some underline liver and cholesterol pathology will be there. [20/06 16:28] Sudhir Turi Dr. Nidan Mogha:  Its xantholesma.. [20/06 16:54] J K Pandey Dr. Lukhnau:  I think madam khyati has asked for ayur dignosis.. [20/06 16:55] J K Pandey Dr. Lukhnau:  Its xanthelasma due to cholestrolemia..bt here we r to diagnose iton ayurvedic principles [20/06 17:12] An

WhatsApp Discussion Series 47: 'Hem-garbh-pottali-ras'- Clinical Uses by Vd. M. Gopikrishnan, Vd. Upendra Dixit, Vd. Vivek Savant, Prof. Ranjit Nimbalkar, Prof. Hrishikesh Mhetre, Vd. Tapan Vaidya, Vd. Chandrakant Joshi and Others.

[11/1, 00:57] Tapan Vaidya:  Today morning I experienced a wonderful result in a gasping ILD pt. I, for the first time in my life used Hemgarbhpottali rasa. His pulse was 120 and O2 saturation 55! After Hemgarbhapottali administration within 10 minutes pulse came dwn to 108 and O2 saturation 89 !! I repeated the Matra in the noon with addition of Trailokyachintamani Rasa as advised by Panditji. Again O2 saturation went to 39 in evening. Third dose was given. This time O2  saturation did not responded. Just before few minutes after a futile CPR I hd to declare him dead. But the result with HGP was astonishing i must admit. [11/1, 06:13] Mayur Surana Dr.:  [11/1, 06:19] M gopikrishnan Dr.: [11/1, 06:22] Vd.Vivek savant:         Last 10 days i got very good result of hemgarbh matra in Aatyayik chikitsa. Regular pt due to Apathya sevan of 250 gm dadhi (freez) get attack asthmatic then get admitted after few days she adm

DIFFERENCES IN PATHOGENESIS OF PRAMEHA, ATISTHOOLA AND URUSTAMBHA MAINLY AS PER INVOLVEMENT OF MEDODHATU

Compiled  by Dr.Surendra A. Soni M.D.,PhD (KC) Associate Professor Dept. of Kaya-chikitsa Govt. Ayurveda College Vadodara Gujarat, India. Email: surendraasoni@gmail.com Mobile No. +91 9408441150

UNDERSTANDING THE DIFFERENTIATION OF RAKTAPITTA, AMLAPITTA & SHEETAPITTA

UNDERSTANDING OF RAKTAPITTA, AMLAPITTA  & SHEETAPITTA  AS PER  VARIOUS  CLASSICAL  ASPECTS MENTIONED  IN  AYURVEDA. Compiled  by Dr. Surendra A. Soni M.D.,PhD (KC) Associate Professor Head of the Department Dept. of Kaya-chikitsa Govt. Ayurveda College Vadodara Gujarat, India. Email: surendraasoni@gmail.com Mobile No. +91 9408441150

Case-presentation- Self-medication induced 'Urdhwaga-raktapitta'.

This is a c/o SELF MEDICATION INDUCED 'Urdhwaga Raktapitta'.  Patient had hyperlipidemia and he started to take the Ayurvedic herbs Ginger (Aardrak), Garlic (Rason) & Turmeric (Haridra) without expertise Ayurveda consultation. Patient got rid of hyperlipidemia but hemoptysis (Rakta-shtheevan) started that didn't respond to any modern drug. No abnormality has been detected in various laboratorical-investigations. Video recording on First visit in Govt. Ayu. Hospital, Pani-gate, Vadodara.   He was given treatment on line of  'Urdhwaga-rakta-pitta'.  On 5th day of treatment he was almost symptom free but consumed certain fast food and symptoms reoccurred but again in next five days he gets cured from hemoptysis (Rakta-shtheevan). Treatment given as per availability in OPD Dispensary at Govt. Ayurveda College hospital... 1.Sitopaladi Choorna-   6 gms SwarnmakshikBhasma-  125mg MuktashuktiBhasma-500mg   Giloy-sattva-                500 mg.  

Case-presentation: 'रेवती ग्रहबाधा चिकित्सा' (Ayu. Paediatric Management with ancient rarely used 'Grah-badha' Diagnostic Methodology) by Vd. Rajanikant Patel

[2/25, 6:47 PM] Vd Rajnikant Patel, Surat:  रेवती ग्रह पीड़ित बालक की आयुर्वेदिक चिकित्सा:- यह बच्चा 1 साल की आयु वाला और 3 किलोग्राम वजन वाला आयुर्वेदिक सारवार लेने हेतु आया जब आया तब उसका हीमोग्लोबिन सिर्फ 3 था और परिवार गरीब होने के कारण कोई चिकित्सा कराने में असमर्थ था तो किसीने कहा कि आयुर्वेद सारवार चालू करो और हमारे पास आया । मेने रेवती ग्रह का निदान किया और ग्रह चिकित्सा शुरू की।(सुश्रुत संहिता) चिकित्सा :- अग्निमंथ, वरुण, परिभद्र, हरिद्रा, करंज इनका सम भाग चूर्ण(कश्यप संहिता) लेके रोज क्वाथ बनाके पूरे शरीर पर 30 मिनिट तक सुबह शाम सिंचन ओर सिंचन करने के पश्चात Ulundhu tailam (यह SDM सिद्धा कंपनी का तेल है जिसमे प्रमुख द्रव्य उडद का तेल है)से सर्व शरीर अभ्यंग कराया ओर अभ्यंग के पश्चात वचा,निम्ब पत्र, सरसो,बिल्ली की विष्टा ओर घोड़े के विष्टा(भैषज्य रत्नावली) से सर्व शरीर मे धूप 10-15मिनिट सुबज शाम। माता को स्तन्य शुद्धि करने की लिए त्रिफला, त्रिकटु, पिप्पली, पाठा, यस्टिमधु, वचा, जम्बू फल, देवदारु ओर सरसो इनका समभाग चूर्ण मधु के साथ सुबह शाम (कश्यप संहिता) 15 दिन की चिकित्सा के वाद