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Case-presentation: साम त्रिदोषज ग्रन्थि (Sarcoidosis) आम विवेचन एवं चिकित्सा by Vaidyaraja Subhash Sharma

[12/17, 12:10 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi:

 *case presentation....*

*साम त्रिदोषज ग्रन्थि (Sarcoidosis)
 आम विवेचन एवं चिकित्सा।*

*देखिये 24 aug 2019* 👇🏿













[12/17, 12:10 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi: 

*अधिकतर चिकित्सक इसे देखते ही diagnosis और treatment के बारे में सोचने लगेगें पर आप ऐसा ना करें , रोग को पहली दृष्टि में ही नाम ना दे कर रोगी की विस्तृत history लें, आयुर्वेदानुसार पूर्ण परिक्षण करें और वहां तक पहुंचे की अंदर घटित क्या हो रहा है तो आप इस रोग की ही नही सैंकड़ो असाध्य रोगों की चिकित्सा भी करने में सफल रहेंगे।।*

*हमने दूर से देखते ही कहा ये आम दोष है और आम विष अपना प्रभाव दिखा रहा है, लगभग तीन महीने चिकित्सा के बाद परिणाम ये रहा ।* 
*1-12-2019* 👇🏿



[12/17, 12:10 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi: 

*आईये इस पर विस्तार से चर्चा करते हैं ..*
*रोगी/ age 50 yrs/ male / govt. employee*

*प्रमुख लक्षण - मुख पर ग्रन्थियां जिनमें शोथ,कंडू एवं दाह , अंगसाद, स्विग्ध मल एवं मल की कदाचित शंका, दौर्बल्य के साथ गात्र गुरूता एवं अंगमर्द सहित सर्वांग शोथ+शूल सहित पीड़ा।*

*History of present illness - *
*रोगी को मार्च 2019 से अंगसाद, दौर्बल्य एवं मुख पर शनैं: शनै: ग्रन्थियां उत्पन्न होना आरंभ हो कर अगस्त 2019 में पूर्ण रूप से विकसित हो गई।*

*History of past illness -*
*23 वर्ष पूर्व रोगी को CA abdomen था, जिसकी आधुनिक शल्य चिकित्सा की गई थी और उसके एक वर्ष बाद यह diagnosis case of sarcoidosis था, तब कफाधिक्य,श्वास कृच्छता के साथ यह ग्रन्थि फुफ्फुस में हुई थी और हमने इस ग्रन्थि की चिकित्सा 9 महीने तक भल्लातक योग से दी थी तथा रोगी स्वस्थ हो गया था।*

*Family history -*
*पूरी history विस्तार से लेने पर भी कोई इस व्याधि से संबंधित कोई विकार नही मिला।*

*रोग हेतु -*
*अनियमित आहार, भोजन का समय निश्चित ना होना , रात्रि भोजन विलंब से और कोई निश्चित दिनचर्या का पालन ना होना।*
*


*वातादयो मांसमसृक् प्रदुष्टा: संदूष्य मेदश्च तथा सिराश्च, वृत्तोन्नतं विग्रथितं च शोथं कुर्वन्तयो ग्रन्थिरिति प्रदिष्ट:।मा नि 38/11 वात,पित्त और कफ स्व: कारणों से प्रकुपित हो कर मांस,रक्त,मेद और सिराओं को दूषित कर गोल और उभरे हुये ग्रन्थि के समान शोथ को उत्पन्न कर देते हैं।sarcoidosis में जो ग्रन्थियां बनती है उन पर मधुकोष टीका कार की ये व्याख्या सटीक मिली ' विग्रथितं कठिनं कर्कशं वा विग्रथितत्वादेव ग्रन्थिरिति...' अर्थात स्पर्श में कर्कश या कठिन और खुरदरेपन से युक्त।*

* इस रोग में स्व: कारणों से दोषों से दूषित शरीर के विभिन्न भागों में मांस और मेद युक्त शोथ युक्त ग्रन्थि संचय  प्राय: सबसे ज़्यादा फुफ्फुस, लसिका ग्रंथियों, नेत्र, मुखादि प्रदेश सहित शरीर में कहीं पर भी त्वचा में पाए जाते हैं.*

*सु नि अध्याय 11 में वात,पित्त,कफ,मेदो और सिराज ग्रन्थि 5 भेद बताये हैं और 'ग्रन्थिर्महामांसभव:' इस कथन से चरक संहिता में मांस ग्रन्थि का भी वर्णन है। अष्टांग संग्रह उत्तर तन्त्र अध्याय 34 में 'दोषासृंगमांसमेदोऽस्थिसिराव्रणभवा नव' अर्थात वात पित्त कफ रक्त मांस मेद अस्थि सिरा और व्रण से नौ प्रकार की ग्रन्थियां बताई गई हैं।*

*ये जो भी विकार उत्पन्न हो रहे हैं इसके पीछे मूल कारण आमोत्पति है, ये आम दो प्रकार से शरीर में हो रहा है, 1 अपक्व अन्न रस जो जाठराग्नि की दुर्बलता से है और 2 आम युक्त अपक्वावस्था की रस धातु जो जाठराग्नि और धात्वाग्नि दोनों के गुणों की क्षीणता से है।अगर आप इसे अच्छी तरह समझ लें तो कठिन से कठिन रोगों की चिकित्सा कर सकते हैं।*

[12/17, 12:10 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi:

 *'स्वेदो रसो लसीका रूधिरामामाश्यश्च पित्तस्थानानि तत्राप्यामाश्यो विशेषेण पित्तस्थानम्' च सू 20/8 
स्वेद, रस, लसीका, रक्त और आमाश्य ये पित्त के स्थान कहे गये हैं उनमें भी विशेष स्थान आमाश्य है।यहां इसका और विस्तार करें तो 
'नाभिरामाश्य: स्वेदो लसीका रूधिरं रस:, दृक स्पर्शनं च पित्तस्य नाभिरत्र विशेषत:।' 
अ ह 12/2 
नाभि आमाश्य स्वेद लसीका रक्त रस दृष्टि तथा त्वचा  ये पित्त के स्थान तो हैं ही पर नाभि विशेष रूप से है । 
'नाभि का वर्णन' 
पक्वाश्ययोर्मध्ये सिराप्रभवा नाभि:' सु शा 6/25 पक्वाश्य और आमाश्य के मध्य सिराओं का उत्पत्ति स्थल नाभि है और इसे क्षुद्रान्त्र भी कहते हैं।आहार का परिपाक तो होता ही है और पाचक पित्त के कार्य का विशेष क्षेत्र भी है ।*

*जो भी आहार ग्रहण किया गया उसका पाचन आमाश्य और पक्वाश्य में हो कर परिणाम स्वरूप रस और मल के रूप में होता है, इस आहार रस में सातों धातु,उपधातुओं के अंश,पांचों इन्द्रियों के द्रव्य, शुद्ध धातुओं का निर्माण करने वाले तत्व रहते हैं, इस आहार रस पर पंचभूतों की अग्नि अपना कार्य कर के अपने अपने अनुसार गुणों में परिवर्तन कर के शरीर उस आहार को आत्मसात कर सके इस अनुरूप बनाती है और पंचभूतों की अग्नि के बाद धात्वाग्नियां अपना कार्य आरंभ करती हैं और अग्नि मंद है तो उस अन्न से बना आहार रस का पाक पूर्ण नही हो पाता और इस अपक्व आम रस जिसका क्षेत्र आमाश्य से नाभि तक है में अपक्वता से शुक्तता (fermentation) हो कर आम विष की उत्पत्ति होती है इसे '
स दुष्टोऽन्नं न तत् पचति लघ्वपि अपच्यमानं शुक्तत्वं यात्यन्नं विषरूपताम्' च चि 15/44 
में स्पष्ट किया है।अब जाठराग्नि की दुर्बलता से इस अपक्व रस का क्या होता है ? अगर यह अन्न रस बिना पक्व हुये आमावस्था में रहता है तो आमाश्य और पक्वाश्य में रह कर ज्वर,अतिसार, अजीर्ण, ग्रहणी आदि रोग उत्पन्न करता है और इसकी संज्ञा आम विष युक्त आम रस होती है और यह आम विष विभिन्न स्रोतों के माध्यम से शरीर में जहां भी जायेगा वहां रोग उत्पन्न करेगा। धात्वाग्नियां जाठराग्नि पर ही निर्भर है, अगर इस रस का पूर्ण पाक जाठराग्नि हो जाता है तो यह किट्ट रहित रस संज्ञक हो कर 
'यस्तेजोभूत: सार: परमसूक्ष्म: स रस इत्युच्यते' सु सू 14/3 
परम सूक्ष्म हो कर सूक्ष्म स्रोतों में प्रवेश कर व्यान वात की सहायता से ह्रदय में पहुंच कर व्यान वायु के द्वारा ही 24 धमनियों के माध्यम से प्रत्येक दोष धातु मल एवं सूक्ष्म अव्यवों तक पहुंचता है ।*

*अगर धात्वाग्नि मंद होगी तो उन धातुओं में यह रस भी साम रस हो जायेगा और वह धातु स्वयं भी धात्वाग्निमांद्य से साम रहेगी ।*

*अब देखें जैसे इस रोगी में अनियमित आहार विहार से, रात्रि भोजन देर से करने से महास्रोतस में अपक्व अन्न रस रहने से ही खवैगुण्य हुआ, दोष प्रकुपित होते गये, धातुओं में शिथिलता आने लगी और जहां खवैगुण्य मिला वहीं दोषों का स्थान संश्रय हुआ और प्रकुपित दोष-दूष्य का मिलन उस स्थान पर ही उस रोग की सम्प्राप्ति को घटित करेगा, ये बात पढ़नें में आप को जितनी सरल लग रही है उतनी है नही, आपको अनेक रोगों में भ्रमित भी कर सकती है जैसे ज्वर में सम्प्राप्ति तो आमाश्य में घटित हो रही है पर प्रसर तो सर्व शरीर गत है  इसलिये मूल को पकड़ना है और उसके लिये हमें स्रोतो दुष्टि को जानना है तब ये आप समझ सकेंगें। जैसे इस रोगी में व्याधि का मूल कहां है, प्रसर कहां है और ग्रन्थि जो स्रोतस का संग दोष है वो कहां हैं ? तभी आप असाध्य रोगों को समझ सकते हैं और चिकित्सा कर सकते हैं।*

[12/17, 12:10 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi: 

*सम्प्राप्ति घटक -*
1. *वात - प्राण, समान,अपान और व्यान*
*(प्राण वायु इसलिये क्योंकि मुख का स्थान तो है ही रोगी को को नियमित रूप से garden में भ्रमण करने कराया गया, शरीर के अव्यवों को ये चाहिये इस से त्वक वैवर्ण्य भी दूर होता है), समान वात स्वेदवाही स्रोतस के साथ आमाश्य और पक्वाश्य को नियन्त्रित रखती है। अपना वात आम को पाचन के पश्चात exit करती है और व्यान वात रस,रक्त और स्वेद वाही स्रोतस को नियन्त्रित रखती है)*
2. *पित्त - पाचक और भ्राजक*
3. *कफ - क्लेदक*
4. *दूष्य - रस,रक्त,मांस,मेद और त्वचा*
5. *स्रोतस - रस, रक्त,मांस,मेद*
6. *स्रोतोदुष्टि - संग*
7. *अग्नि - जाठराग्नि - धात्वाग्निमांद्य*
8. *उद्भव स्थान - आमाश्य-पक्वाश्य*
9. *व्यक्त स्थान - मुख प्रदेश*
10. *साध्यासाध्यता - कृच्छ साध्य*

*चिकित्सा सूत्र -
 निदान परिवर्जन, 
दीपन, 
पाचन, 
अनुलोमन,
मेद क्षपण,
शोथध्न,
रक्तप्रसादन और
 शमन।*

*चिकित्सा -*
*रोगी सरकारी सेवा में है अत: सप्ताह के आखिरी तीन दिन चिकित्सा आरंभ करने के लिये लंघन पाचन हेतु चुने गये जिसमें मूंग, मसूर सूप पंचकोल, हिंगु और जीरा युक्त , vegetable soup और कृशरा दी गई, तीसरे दिन रात को कृशरा 7 बजे सांय सेवन करा कर रात्रि 10 बजे लगभग हरीतकी चूर्ण 2 gm और कुटकी चूर्ण 1 gm दिया, रोगी को office से अवकाश लेना पड़ा क्योंकि प्रात: 4 बजे से ही 3-4 बार मल आ गया था।*

*इसके बाद एक महीने तक हरीतकी और कुटकी केवल शुक्रवार और शनिवार सांय 6-7 बजे ही दी गई क्योंकि अगले दिन रोगी का अवकाश होता था।*

*अलग अलग समय में निम्न औषधियों का प्रयोग किया गया...*
*आरोग्य वर्धिनी 3-3 वटी  2 बार, मेदक्षपण,संग दोष हर, दीपन, पाचन,शोथध्न और नीम पत्र स्वरस में निर्माण से रक्त शोधक और त्वचा पर अच्छा result देती है।*

*संजीवनी वटी - 2-2 गोली और बाद में 1-1 भी और बीच में विश्राम भी दिया गया। आम पाचन में सर्वश्रेष्ठ, इस प्रकार की ग्रन्थियों में कफ और वात दोनों ही दोषों की प्रधानता रहती है और संजीवनी वटी सम्प्राप्ति विघटन में अच्छा योगदान देती है।*

*काचनार गुग्गलु 2-2 गोली 2 बार, कांचनार और त्रिफला के बाद इसमें सबसे अधिक घटक द्रव्य त्रिकटु है जो आम का पाचन तो करता ही है साथ में मेद,कफ,वात शामक है, ग्रन्थि कहीं भी हो ये प्रामाणिक औषध है।*

*महामंजिष्ठादि क्वाथ (चूर्ण) 5 gm, मंजिष्ठा चूर्ण 2 gm ,पुनर्नवा चूर्ण 2 gm और कुटकी चूर्ण 500 mg ,इस मिश्रण का क्वाथ बनाकर आधा सुबह और आधा सांयकाल औषधियों के साथ दिया गया, रोगी के भ्राजक पित्त की दुष्टि शरीर में अनेक स्थान पर भी है जिनमें मंजिष्ठा और कुटकी दोनो ही अच्छा परिणाम देती है पर महामंजिष्ठादि क्वाथ में लगभग 45-46 द्रव्य हैं जिनमें कुटकी और मंजीठ सभी द्रव्यों के समभाग में है यहां हमें अधिक चाहिये फिर संजीवनी वटी से विबंध ना हो जाये जबकि हम आ.वर्धिनी दे रहे है तो कहीं अनुलोमन और भेदन का क्रम ना बिगड़े साथ ही इस योग के साथ पुनर्नवा ने दो दिन में ही ग्रन्थि प्रदेश के शोथ को काफी कम कर दिया ।*

*चिकित्सा के मध्य तीन सप्ताह बाद इस क्वाथ को रोक कर एक सप्ताह फलत्रिकादि क्वाथ में 2 gm मंजिष्ठा मिलाकर भी दिन में दिया गया ।*

*दो मास पूर्ण होने से पूर्व लगा कि लाभ तो काफी है पर एक जगह रूक गया है तो दो सप्ताह कांचनार गुग्गलु बंद कर कैशोर गुग्गलु दी गई और फलत्रिकादि या महामंजिष्ठादि क्वाथ में कांचनार चूर्ण तीन ग्राम मिला दिया गया, कैशोर गुग्गलु भी शरीर में होने पीड़िकाओं में अच्छा कार्य करता है पर ये पित्त प्रधान एवं पित्त वात प्रधान रोगों में हमें  प्रभावकारी लगा,इसमें जयपाल होने के कारण हम इसके अधिक प्रयोग से बचते हैं , इसमें मुख्य द्रव्य हैं त्रिफला और गुडूची ।*

[12/17, 12:10 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi:

 *रोगी को पथ्य में लघु आहार पर वात वृद्धि  ना हो, यह ध्यान रखा गया, दिनचर्या बनाई गई, रात्रिजागरण से बचा कर प्रात: सांय 30-40 मिनट भ्रमण की आदत बनाई गई ।*

[12/17, 12:32 AM] Dr. Arun Rathi, Akola:

 *गुरुवर प्रणाम।**
🙏🏻🙏🏻🙏🏻.
Excellent.

[12/17, 12:40 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi:

 *नमस्कार डॉ अरूण राठी जी*

             🙏🌺💐🌹

[12/17, 1:07 AM] Dr. Ashok Rathod, Oman: 

*आचार्य, आपके इस चिकित्सायज्ञ में एक-एक व्याधी का हवन इस प्रकार से हो रहा हैं जैसे समुद्रमंथन मे प्राप्त अमृतकुंभ से अमृतरुपी ज्ञानरस का परम दान आपसे निरंतर हो रहा हैं। आपकी ये कृपा हमपर सदा बनी रहे।* 🙏🏼🙏🏼🙏🏼💐

[12/17, 5:51 AM] Samta Tomar Dr Jmngr: 🙏🏻🙏🏻

[12/17, 7:07 AM] Vd. Aashish Kumar, Lalitpur:

 बहुत बहुत धन्यवाद सर,आप हम सबके लिये इतनी मेहनत कर रहे है,मेरे पास शब्द नही है।बार बार पड़कर समझकर ,आपके बताये मार्ग पर चलने की कोशिश करूंगा🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻💓💓🌹🌹💐💐🙏🏻🙏🏻

[12/17, 7:15 AM] Dr. Mrityunjay Tripathi, Gorakhpur:

 प्रणाम गुरुजी बहुत उत्तम मार्गदर्शन गुरुजी🙏🙏🌹🙏🙏

[12/17, 7:18 AM] Dr. Rituraj Verma:

 शत शत नमन गुरुवर🙏🙏

[12/17, 7:38 AM] Dr. Mansukh Mangukia: 

🙏🙏 शत शत प्रणाम ।

[12/17, 8:26 AM] Dr Shashi Jindal:

 🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼💐💐💐💐

[12/17, 8:47 AM] Dr. R S. Soni, Delhi: 

🙏🙏 सदैव की भांति अद्भुत परिणाम सहित रोग विवेचना हेतु आभार, आचार्यवर🌹🌹👏👏😌

[12/17, 8:58 AM] Vaidyaraj Subhash Sharma, Delhi: 

*धन्यवाद डॉ अशोक जी, आपके यहां OMAN में ये सब औषधियां प्रयोग करने की सुविधा है या वहां नही कर सकते ?*

💐*

[12/17, 9:26 AM] Dr Ashwini Kumar Sood, Ambala: 

Fantastic presentation subhash sir 🌹
Best part is-- the detailed SAMPRAPTI wherein all the SAHIMTAS are summarised in short.

[12/17, 9:36 AM] Dr. Ashok Rathod, Oman: 

आचार्य, औषधींयां पर्याप्त मात्रा में तो उपलब्ध नही हैं। kottakkal, AVP Coimbatore, Himalaya pharma कि कुछ सीमित औषधींयां मिलती हैं यंहा पर। मैने भी कुछ औषधींयां व्यक्तिगत रखी हुयी हैं। कभी कभी औषधींयां हिंदुस्थान सें भेंट कर रहे रुग्ण के परिवारजन एवं मित्रजन से मंगवाता हुं। निदानपरिवर्जन, युक्तिपूर्वक आहार-विहार प्रयोजन इसके सहारे अधिकतर रुग्ण में विकार पे नियंत्रण लाने के प्रयास करता रहता हुं। रस औषधींयां पे यंहा विशेष विरोध है। वह सबसे बडी बाधा हैं। *कम से कम औषधींयां प्रयोग कर के रुग्ण मे आरोग्य लाने का प्रयास रहता हैं।* ये एक विशेष अनुभव यंहा आने पर प्राप्त हुआ। त्रिदोष समता एवं अग्नी चिकित्सा का प्रयोजन बहोत ही आश्चर्यकारक हैं। जैसे की बडी बडी व्याधींयो की जडे हि काट देते हैं हम। 🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼💐

[12/17, 9:39 AM] Prof. Surendra A. Soni: 

नमो नमः महर्षि । आपके इस विस्तृत वर्णन से मृदु ग्रन्थि चिकित्सा का पूर्ण सम्प्राप्ति विघटन का समावेश हो गया और नये वैद्यों में  सारकॉइडोसिस जैसे विचित्र से शब्दों से होने वाली अनेकों शंकाओं का स्वत: समाधान हो गया है ।

सादर नमन वंदन ।।

🙏🏻🌹🌹🌹🌹🙏🏻

[12/17, 9:41 AM] Dr Shashi Jindal: 

👌👍🏼👏👏🙏🏼🙏🏼💐💐💐

[12/17, 9:42 AM] Dr Rajanish Pathak: 

👌🏼🙂☺gyanvardhak sir 🙏🏼🙏🏼🙏🏼

[12/17, 9:45 AM] D C Katoch Sir: 

शुभमस्तु,  
कल्याणमस्तु,  
आयुर्वेदचिकित्सायाम् परदेशे अपि सफल भवतु।

Dr. Ashok Rathod ji !!

[12/17, 9:50 AM] Dr. Ashok Rathod, Oman: 

औषधींयो कि कमी के कारण प्रारंभिक काल में बहोत सारे रुग्ण गवाने पडे थे। अभी भी आत्यायिक चिकित्सा के लिये रुग्ण को इधर उधर भेजना पडता हैं। हमे अपनी मर्यादा जान के चिकित्सा करनि पडती हैं।


[12/17, 10:19 AM] LP Pandey Vdo: 👌👌

[12/17, 12:02 PM] Vd Dilkhush M Tamboli: 

Wow.....बहोत बढिया सर
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

[12/17, 2:32 PM] Dr B K Mishra Ji: 

सम्प्राप्ति-संगठन तथा सम्प्राप्ति-विघटन की अद्भुत, सूक्ष्म प्रस्तुति....
प्राणाचार्य श्री सुभाष शर्मा  जी को सादर नमन🙏🏼
अभिनन्दन 🌹💐💐

[12/17, 2:33 PM] Dr Chandra Shekhar Sharma: 🙏💐💐

[12/17, 2:41 PM] D C Katoch Sir: 

अद्वितीय सुभाष सर !👌🏽👌🏽


[12/17, 2:58 PM] Dr Deepak Saxena, Kurukshetra: 

Aapka koti koti abhinandan sir🙏🙏💐🌷






**************************************************************************




Above case presentation & discussion held in 'Kaysampraday" a Famous WhatsApp group  of  well known Vaidyas from all over the India. 



Presented by











Vaidyaraj Subhash Sharma
MD (Kaya-chikitsa)

New Delhi, India

email- vaidyaraja@yahoo.co.in


Comments

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UNDERSTANDING OF RAKTAPITTA, AMLAPITTA  & SHEETAPITTA  AS PER  VARIOUS  CLASSICAL  ASPECTS MENTIONED  IN  AYURVEDA. Compiled  by Dr. Surendra A. Soni M.D.,PhD (KC) Associate Professor Head of the Department Dept. of Kaya-chikitsa Govt. Ayurveda College Vadodara Gujarat, India. Email: surendraasoni@gmail.com Mobile No. +91 9408441150

Case-presentation: 'रेवती ग्रहबाधा चिकित्सा' (Ayu. Paediatric Management with ancient rarely used 'Grah-badha' Diagnostic Methodology) by Vd. Rajanikant Patel

[2/25, 6:47 PM] Vd Rajnikant Patel, Surat:  रेवती ग्रह पीड़ित बालक की आयुर्वेदिक चिकित्सा:- यह बच्चा 1 साल की आयु वाला और 3 किलोग्राम वजन वाला आयुर्वेदिक सारवार लेने हेतु आया जब आया तब उसका हीमोग्लोबिन सिर्फ 3 था और परिवार गरीब होने के कारण कोई चिकित्सा कराने में असमर्थ था तो किसीने कहा कि आयुर्वेद सारवार चालू करो और हमारे पास आया । मेने रेवती ग्रह का निदान किया और ग्रह चिकित्सा शुरू की।(सुश्रुत संहिता) चिकित्सा :- अग्निमंथ, वरुण, परिभद्र, हरिद्रा, करंज इनका सम भाग चूर्ण(कश्यप संहिता) लेके रोज क्वाथ बनाके पूरे शरीर पर 30 मिनिट तक सुबह शाम सिंचन ओर सिंचन करने के पश्चात Ulundhu tailam (यह SDM सिद्धा कंपनी का तेल है जिसमे प्रमुख द्रव्य उडद का तेल है)से सर्व शरीर अभ्यंग कराया ओर अभ्यंग के पश्चात वचा,निम्ब पत्र, सरसो,बिल्ली की विष्टा ओर घोड़े के विष्टा(भैषज्य रत्नावली) से सर्व शरीर मे धूप 10-15मिनिट सुबज शाम। माता को स्तन्य शुद्धि करने की लिए त्रिफला, त्रिकटु, पिप्पली, पाठा, यस्टिमधु, वचा, जम्बू फल, देवदारु ओर सरसो इनका समभाग चूर्ण मधु के साथ सुबह शाम (कश्यप संहिता) 15 दिन की चिकित्सा के वाद

Case-presentation- Self-medication induced 'Urdhwaga-raktapitta'.

This is a c/o SELF MEDICATION INDUCED 'Urdhwaga Raktapitta'.  Patient had hyperlipidemia and he started to take the Ayurvedic herbs Ginger (Aardrak), Garlic (Rason) & Turmeric (Haridra) without expertise Ayurveda consultation. Patient got rid of hyperlipidemia but hemoptysis (Rakta-shtheevan) started that didn't respond to any modern drug. No abnormality has been detected in various laboratorical-investigations. Video recording on First visit in Govt. Ayu. Hospital, Pani-gate, Vadodara.   He was given treatment on line of  'Urdhwaga-rakta-pitta'.  On 5th day of treatment he was almost symptom free but consumed certain fast food and symptoms reoccurred but again in next five days he gets cured from hemoptysis (Rakta-shtheevan). Treatment given as per availability in OPD Dispensary at Govt. Ayurveda College hospital... 1.Sitopaladi Choorna-   6 gms SwarnmakshikBhasma-  125mg MuktashuktiBhasma-500mg   Giloy-sattva-                500 mg.  

WhatsApp Discussion Series 48: 'Khalitya' by Prof. Satyendra Narayan Ojha, Dr. Venugopal Rao, Dr. Pawan Madan, Vd. Saneep Hase, Vd. Upendra Dixit, Dr. Vinay Choudhary, Vd. Vinaya Ballakur, Vd. Vivek Savant and others.

[1/18, 8:28 AM] pawan madan Dr: I need a help to understand - Is their any clinical significance of the following two verses in respect to curing the Khalitya -- which is a burning problem now a days...                                                                                               KESHA ARE PITRAJA BHAAVA – केशश्मश्रुनखलोमदन्तास्थिसिरास्नायुधमन्यः शुक्रं चेति (पितृजानि)||७|| - CHARAKA SHARIRA 3 KESHA IS A PRITHAVI PRADHAANA ANGA - नखास्थिदन्तमांसचर्मवर्चःकेशश्मश्रुलोमकण्डरादि तत् पार्थिवं गन्धो घ्राणं च; - CHARAK SHARIRA 7/16 [1/18, 8:28 AM] pawan madan Dr: anything for this query please ? [1/18, 8:32 AM] Prof. satyendra ojha sir: Dr Pawan Madan ji , nowadays , burning problems are metabolic syndrome, multi drugs resistance. [1/18, 8:35 AM] satyendra ojha sir:  For chikitsa of khaalitya , chakradattokta formulations are good enough.  Even charak chikitsa 26 references are worthy enough . Air pollution, heavy water ,